छटा अध्याय
सेक्स और परलोक
पिछले अध्यायों तक लिखी गयी सभी बातें मनुष्य की पैदाईश से लेकर जीवन के आखिरी दिन तक बाक़ी रहने वाली –सेक्सी इच्छा- (जिन्सी ख्वाहिश) से सम्बन्धित है। जो सभी मनुष्यों यहाँ तक की दीवाने और पागल ( 291) दिखाई देने वाले लोगों में भी एक जैसी होती और महसूस की जाती है।
इस अध्याय (सेक्स और परलोक) में उन बातों की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ जिस से यह स्पष्ट होता है कि दुनियां के सभी मनुष्यों में से कुछ मनुष्यों की सेक्सी इच्छा परलोक में भी बाकी रहेगी। जहाँ उनके जोड़े हुरों से लगाए जायेंगे। यही मनुष्य मुत्तक़ी और पर्हेज़गार होगें। जो बिना विलम्भ किये ईमान लाने वाले , खुदा की खुशी और रज़ा को चाहने वाले , खुदा के क़ानून की पाबंदी करने वाले , खुदा से दुआ और तौबः करने वाले , सब्र (धीरज और धौर्य) करने वाले , खुदा की राह में खर्च करने वाले और दुनियां के कुछ दिनों के मुक़ाबले में आखिरत के लम्बे जीवन (दीर्घकालीन जीवन) को पसन्द करने वाले होते हैं। यह वह लोग है जो दुनियां की कुछ दिनों की इम्तिहान गाह (परिक्षा केन्द्र) में परलोक को दृष्टिगत रखते हुवे जल्दी- जल्दी तोशए आख़िरत (अर्थात वह काम जो यम लोक , परलोक में काम आए) जमा करते रहते हैं। क्योंकि दुनियां हमेशा रहने की जगह नहीं बल्कि एक आने जाने का रास्ता है। जिसमें रहकर परलोक का सामाने-सफर तैय्यार किया जा सकता है। शायद इसी लिए हज़रत अली (अ ,) ने इर्शाद फ़र्मायाः
ऐ लोगों। दुनिया एक आने जाने की जगह और आख़िरत ठहरने की जगह है। अतः अपनी आने जाने की जगह से हमेशा ठहराव की जहग के लिए सामान-ए-सफर (अर्थात वह काम जो परलोक में काम आ सके , तोशः) उठा लो। जिसके सामने तुम्हारा कोई राज़ (रहस्य) छुपा नहीं उसके सामने अपने पर्दे चाक न करो और इसके पहले के तुम्हारे शरीरों को दुनिया से निकाल लिया जाए दिलों को इस से अलग कर लो।
इस दुनिया में केवल तुम्हारी परीक्षा ली जा रही है , वास्तव में तुम्हें दूसरी जगह के लिए पैदा किया गया है। जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं कि क्या छोड़ गया है। और फ़रिशते पूछते हैं कि इसने आगे के लिए क्या सामान भेजा है। खुदा तुम्हारा भला करे कुछ तो आगे के लिए भेजो वह एक तरह का (खुदा के ऊपर) कर्ज़ः होगा। सारे का सारा पीछे न छोड़ जाओ कि वह तुम्हारे लिए बोझ बने।( 292)
इस दुनिया से परलोक के लिए अच्छे कामों को जमा करने के लिए मनुष्य के लिए आव्यशक है कि वह कम उम्मीदें (आशाऐं) करे , खुदा के दिए हुवे पर उसका धन्यवाद (शुक्र) अदा करे और हराम (अर्थात वह काम जिसके करने पर गुनाह पड़ता है) से बचा रहे। क्योंकि ज़्यादा आशाऐं , खुदा के दिए हुवे पर उसका ध्नयवाद करना और हराम को कर बैठना ही वह चीज़े होती हैं जो मनुष्य को गुमराह कर के (अर्थात धार्मिक रास्ते से हटाकर) जहन्नुम (नरक) में ढकेल दिया करती है। इसी लिए हज़रत अली (अ ,) ने एक खुतबे में इर्शाद फ़र्मायाः
ए लोगों कम उम्मीदें , नेअमतों (खुदा के दिए हुवे) पर शुक्र और हराम से बचना यही तक़वा और पर्हेज़गारी है। अगर यह न हो सके तो कम से कम इतना तो हो कि हराम तुम्हारे सब्र पर ग़ालिब न आने (अर्थात विजेता न होने) पाये और नेअमतों के समय खुदा का शुक्र न भूल जाओ।
खुदा वन्दे आलम ने खुली हुवी रौशन दलीलों और आख़िरी हुज्जत (दलील , प्रमाण) देने वाली स्पष्ट किताबो के द्वारा तुम्हारे लिए किसी बहाने या विवश्ता (उज्र) का मौका बाक़ी नहीं रखा। ( 293)
उपर्युक्च चीज़ो के अतिरिक्त सेक्सी इच्छाओं की पैरवी और खुदा के बन्दों (लोगों) पर अत्याचार (अर्थात उन्हें कष्ट देना) भी नर्क में जाने का कारण हुवा करती है। हज़रत अली (अ ,) ने फ़र्मायाः
आख़िरत के लिए सब से बुरा सामाने सफर खुदा के बन्दों पर अत्याचार है। ( 294)
इन खुदा के बन्दों में दुनिया के सभी लोगों के साथ एक कड़ी में बन्धे हुवे पति- पत्नी और बच्चे भी आते हैं। जिन में से किसी एक को भी दूसरे पर अत्याचार नहीं करना (कष्ट नहीं देना) चाहिए। क्योंकि हज़रत अली (अ ,) के कथनानुसार यह अत्याचार और कष्ट परलोक के लिए सब से बुरा सामाने सफर (अर्थात परलोक में काम आने वाली चीज़) है। जिस के होते हुवे स्वर्ग का मिल जाना कठिन है। जबकि आधुनिक युग में औरत ---- मर्द और बच्चों पर ---- माता पिता पर औप मर्द ----- औरत और बच्चों पर अत्याचार करने और कष्ट देने पर फख्र महसूस करते हैं। लेकिन वह यह नहीं समझते कि यह अत्याचार और कष्ट उन्हें नर्क तक पहुँचाने मे मददगार साबित (सिद्ध) होता है। जो अत्याधिक ख़राब और बुरा ठिकाना है।
अत्याचार करने और कष्ट देने की सूची (औरत , बच्चे और मर्द) में औरत सदैव ऊपर रही है। (इसका अनुमान आधुनिक युग में भी लगाया जा सकता है) क्योंकि हज़रत अली (अ ,) के कथनानुसार औरत की ख़स्लत (प्रवृति , स्वभाव) में अत्याचार करना , कष्ट देना और लड़ाई-झगड़े को पैदा करना ही होता है।
नहजुल बलाग़ी में हैः
........ वास्तव में जानवरों के जीवन का उद्देशय (मक़्सद) पेट भरना है , फाड़ खाने वाले जंगली जानवरों के जीवन का उद्देशय दूसरों पर हमला कर के चीरना फाड़ना है और औरतों का उद्देशय दुनिया की ज़िन्दगी का बनाव- सिंगार और लड़ाई झगड़े का पैदा करना होता है। मोमिन वह है जो घमण्ड से दूर रहते हैं। मोंमिन वह हैं जो मेहरबान हैं मोमिन वह हैं जो खुदा से डरते हैं। ( 295)
जहाँ हज़रत अली (अ ,) ने औरत को लड़ाई झगड़े फैलाने और पैदा करने वाला बताया है वहीं रसूल-ए-खुदा (स.) ने इर्शाद फ़र्मायाः
औरतें शैतानों की रस्सीयाँ हैं।
अर्थात औरतें कम अक़्ल (मन्द बुद्धि , नाक़िसुल अक्ल) होने के कारण ( 296) शैतान के कब्ज़े (चंगुल) में शीघ्र आ जाती है और शैतान उस मन्द बुद्धि औरत के हाथों दुनिया में लड़ाई झगड़ा (दंगा , फ़साद) फैलाने (अर्थात खुदा के बन्दों पर अत्याचार करने का काम लेता है और हज़रत अली (अ.) के विचारानुसार मर्द वह होता है जो औरत के लड़ाई झगड़े फ़ैलाने के बावजूद भी खुदा से डरता रहता है और औरत जैसी कमज़ोर जाति पर मज़बूत (क़वी) ( 297) होने की वजह से अत्याचार नही करता और न ही कष्ट देता है।
बहरहाल हज़रत अली (अ.) ने औरतों को जहाँ लड़ाई झगड़ा फ़ैलाने और पैदा करने वाला बताया है वहीं पूरी तरह से (सरापा) आफत (मुसीबत) भी बताया है.
औरत सरापा (पूरी तरह से) आफत (मुसीबत) है और इस से ज़्यादा आफत यह है कि उसके बिना कोई चारा नहीं (अर्थात गुज़ारा नही)। ( 298)
अर्थात औरतों के साथ होने या न होने ----- दोनों हालातों (अवस्थाओं) में मर्द के लिए मुसीबत ही मुसीबत है शायद इसी लिए मर्द। इस पूरी तरह से मुसीबत औरत को अपने गले से लगा लेता है ताकि मुसीबत के साथ साथ उसके शरीर से चिमटने और लिपटने पर स्वाद और आनन्द भी मिलता रहे। हज़रत अली (अ ,) इर्शाद फ़र्माया किः
औरत एक बिच्छु है लिपट जाए तो (उसके ज़हर में) स्वाद है। ( 299)
लेकिन जिस तरह बिच्छु अपनी आदत (खस्लत , प्रविति) के अनुसार डंक मारे बिना नही रह सकता उसी तरह औरत भी लड़ाई झगड़ा फ़ैलाए बिना नहीं रह सकती। (अर्थात कुछ को छोड़कर अधिकतर) औरत की खस्लत में अत्याचार करना , ढ़ोंग मचाना , कष्ट देना और शत्रुता फ़ैलाना इत्यादि कुट कुट कर भरा होता है ऐसी औरतों के लिए रसूलल्लाह (स.) ने इर्शाद फर्मायाः
जो औरत अपने पति को दुनिया में तकलीफ पहुँचाती है हूरे उससे कहती हैं , तुम पर खुदा की मार , अपने पति को कष्ट न पहुँचा (दे) , यह मर्द तेरे लिए नहीं है तू इसके लाएक (पात्र) नहीं वह शीघ्र ही तुझ से जुदा (अलग) होकर हमारी तरफ आ जाएगा। ( 300)
अर्थात अपने पति को कष्ट देने वाली औरत स्वर्ग नही पहुँच सकती।
सम्भव है ऐसी ही दुश्मन औरतों से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम ने ऐलान किया होः
ऐ ईमानदारों। तुम्हारी बीवी और तुम्हारी औलादें में से कुछ तुम्हारे दुश्मन हैं और तुम उनसे बचे रहो और अगर तुम मांफ कर दो और छोड़ दो और बख्श दो तो खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।( 301)
उपर्युक्त क़ुर्आन की आयत से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि औरत ( 302) के अलावा कुछ बच्चे भी मर्द के दुश्मन हुआ करते हैं। जिन पर वह क़वी होने के बावजूद भी अत्याचार नहीं करता और न ही कष्ट देता है बल्कि मोमिन ( 303) होने की वजह से मआफ़ करता , छोड़ देता , बख़्शता , महरबानी करता और उनके लिए खुदा से दुआ करता रहता हैः
और वह लोग जो (हम से) कहा करते है कि परवर्दिगार हमें हमारी बीवीयों और बच्चों की तरफ से आँखों की ठंडक अता फर्मा (दे) और हम को पर्हेज़गारों का पेशवा (लीडर , अगुवाकार) बना , यह वह लोग हैं जिन्हे उनकी जज़ा (इनआम) में (स्वर्ग के) बालाखाने (ऊँचे ऊँचे मकानात , दर्जे) अता किये (दिये) जायेंगे और वहाँ उन्हे सम्मान (तअज़ीम) और सलाम (का हदिया , तोहफः) पेश किया जाएगा और यह लोग उसमें हमेशा रहेंगे और वह रहने और ठहरने की क्या अच्छी जगह है। ( 304)
और इस दुआ के नतीजे में बीवी , बच्चे नेक होकर , मर्द की आँखों को ठंडक पहुँचाते हैं उनके हक़ (परिश्रमिक) में फ़रिश्ते भी दुआ करने लगते हैः
जो फ़रिश्ते आसमान अर्थात (अर्श) को उठाये हुवे हैं और जो उसके चारो तरफ (तैनात) हैं (सब) अपने परवर्दिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह (प्राथना) करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिन के लिए बख्शिश की दुआऐं माँगा करते हैं कि परवर्दिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म (ज्ञान , जानकारी) हर चीज़ को अपने घेरे में किये (लिये) हुवे है तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबः कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख़्श दे और उनको नर्क (जहन्नम) के आज़ाब (पाप , कष्ट) से बचा ले। ऐ हमारे पालने वाले उनको हमेशा बहार वाले बागों में जिनका तूने उनसे वायदा किया है दाखिल कर (पहुँचा) और उनके बाप दादाओं (पूर्वजों) और उनकी पत्नीयों और औलादों में से जो लोग नेक हों उनको (भी बख़्शिश दे)। बेशक (निःसंदेह) तू ही सबसे ज़्यादा शक्ति शाली (और) हिकमत (युक्ति) वाला है। ( 305)
बहरहाल मोमिन मर्द और फ़रिश्तों की दुआओं को क़ुबूल करते हुवे खुदा कहता हैः
.. (और खुदा उन अर्थात मुत्तक़ी और पर्हेज़गार लोगों से कहेगा) ऐ मेरे बन्दों। आज न तो तुम को कोई ख़ौफ (डर) है और न तुम दुखी होगे। (यह) वह लोग हैं जो हमारी निशानियों (आयतों) पर ईमान लाये और (हमारे) कहे पर चले (फ़र्मांबर्दार थे)। तो तुम अपनी बीवीयों (पत्नियों) के साथ इज़्ज़त और सम्मान के साथ स्वर्ग मे दाखिल हो जाओ। उन पर सोने की रकाबियों और प्यालों का दौर चलेगा और वहाँ जिस चीज़ को जी चाहेगा और जिससे आँख़ें स्वाद और आनन्द उठायें (सब मौजूद हैं) और तुम इसमें हमेशा रहोगे और यह जन्नत (स्वर्ग) जिसके तुम वारिस (हिस्सेदार) कर दिये गये हो , तुम्हारे द्वारा दुनियां में किये गये कार्यों का फल है। ( 306)
मालूम हुआ कि मोमिन मर्द के साथ उनकी नेक पत्नी (और नेक बच्चे) भी स्वर्ग में दाखिल हो जायेंगे। जिस में वह हमेशा हमेशा रहेंगे। जो नर्क (जहन्नुम) की तुलना (मुक़ाबले) में अच्छा और खूबसूरत ठिकाना है। जहाँ उनके आराम व सुकून का सारा सामान मौजूद होगा। वह जो चाहेगा वह मिलेगा और दोनों साथ रहकर खूब स्वाद और आनन्द उठायेंगे।
स्वर्ग के रहने वाले आज (क़यामत के दिन) एक न एक मशूग़ले (काम) में जी बहला रहे हैं वह अपनी पत्नीयों के साथ (ठंडी) छाओं में तकिये लगाये तख़्तों पर (चैन से) बैठे हुवे हैं। ( 307)
क्योंकि हूरें भी उस नेक (अर्थात पति पर अत्याचार न करने वाली) औरत से यह नहीं कह पायेगी किः
......... यह मर्द तेरे लिए नहीं है। तू इसके लाइक़ (पात्र , योग्य) नहीं। वह शीघ्र ही तुझ से जुदा (अलग) होकर हमारी तरफ़ आ जायेगा। ( 308)
अर्थात नेक औरतें बिल्कुल हूर जैसी होंगी बल्कि उनसे बढ़कर होंगी। क्योंकि वह और नेक मर्द स्वर्ग में रहकर आपस में स्वाद व आनन्द उठायेंगे।
यहाँ यह लिखना अनुचित नहीं है कि आज मोमिन मर्द की चेतावनी या दुआ के नतीजे में औरत नेक नहीं हो पाती तो वह स्वर्ग में दाखिल नहीं हो सकती। अतः केवल मोमिन मर्द ही स्वर्ग में दाख़िल होंगे। जहाँ उनकी सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए खुदा उनके जोड़े हूरों से लगायेगा। क़ुर्आन-ए-करीम में है किः
और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे। ( 309)
खुदा जाने कि उन हूरों में कितना आकर्षण (खिचाव , कशिश) है कि उनका ख्याल आते , नाम सुनते या नाम लेते ही सभी मर्दों मुख्य रूप से नेक मर्दों के शरीर में एक मुख़्य तरह की लहर दौड़ जाती है , चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और खुशी व प्रसन्नता को ज़ाहिर करने लगते हैं। जबकि उन हूरों को आज तक किसी ऍसे मनुष्य ने नहीं देखा जो दुनिया के लोगों को बता सके कि वह हूरें कैसी है। ----- फिर भी आकर्षण (खिचाव) बाक़ी है---- और अपनी अपनी आँखों से देख ले तो क्या हालत होगी। ---- इसका केवल विचार किया जा सकता है बल्कि यह विचार से भी ऊपर की चीज़ है।
बहरहाल स्वर्ग में सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए हूरों जैसी महान नेअमत (अता , तोहफः) केवल नेक और पर्हेज़गार मर्दों के लिए होगी। क्योंकि मर्द प्राकृतिक तौर पर और चीज़ों (बेटों आदि) के साथ साथ औरत को भी पसन्द करता है। जिस (अर्थात औरत) की आव्यशकता उसको स्वर्ग के लम्बे जीवन में उसी तरह महसूस होगी जिस तरह दुनिया के कुछ दिनों के जीवन में महसूस होती है। ---- लेकिन परलोक में यह आव्यशकता उसी समय पूरी हो सकती है जबकि मर्द दुनिया में रहकर खुदा पर ईमान लाए , खुदा के क़ानूनों (आदेशों) पर पूरी तरह अमल करे , सच बोले , सब्र (धैर्य , धीरज) व शुक्र से काम ले , अच्छे काम करता रहे , खुदा की राह (के लिए) खूब खर्च करे , रातों मे उठकर खूब इबादत (प्राथना) करे , तौबः (अर्थात खुदा से पापों की क्षमा चाहता) व मोक्ष-प्राप्ति की दुआ करता रहे , दुनिया के कुछ दिनों के आराम व सुकून की तुलना में जन्नत (स्वर्ग) अर्थात आख़िरत (परलोक) के (अधिकारों) को पूरा करता रहे , किसी पर अत्याचार न करे और न ही किसी को कष्ट दे इत्यादि। ------ तब ही मर्द को स्वर्ग में दाखिल होने का इजाज़तनामः (अनुमति पत्र , आज्ञा पत्र) मिल सकता है , जो बेहतरीन , खूबसूरत और अच्छा ठिकाना है। जहाँ और नेअमतों के साथ- साफ सुथरी बीवीयों जैसी महान नेअमत भी मिलेगी। क़ुर्आन-ए-करीम में हैः
.. (दुनिया में) लोगों को उनकी पसन्दीदः चीज़े (जैसे) बीवियों और बेटों और सोने चाँदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेरों और अच्छे व खूबसूरत घोड़ो और जानवरों और खेती के साथ लगाव भला करके दिखा दिया गया है। यह सब दुनिया कि ज़िन्दगी के (कुछ दिनों के) फ़ायदे (लाभ) हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो खुदा ही के यहाँ है (ए रसूल (स.)) इन लोगों से कहो कि क्या तुम को इन सब चीज़ो से अच्छी चीज़ बता दूँ (अच्छा सुनों) जिन लोगों ने पर्हेज़गारी और नेकी को अपनाया उनके लिए उनके परवर्दिगार (खुदा) के यहाँ (स्वर्ग में) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं (और वह) सदैव उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ़ सुथरी बीवियां हैं और (सबसे बढ़कर) खुदा की खुशनुदी है और खुदा अपने उन बन्दों (लोगों) को खूब देख भाल रहा है जो यह दुआऐं माँगा करते है किऐहमारे पालने वाले हम तो (बिना किसी सोच विचार के) ईमान लाये हैं अतः तू भी हमारे गुनाहों (पापों) बख्श (माफ़ कर दे) और हम को नर्क के आज़ाब (पाप , दुखों) से बचा (यही लोग हैं) सब्र (धीरज) करने वाले और सच बोलने वाले और (खुदा के) क़ानूनों पर अमल करने वाले और (खुदा की राह में) खर्च करने वाले और पिछली रातों में (खुदा से तौबः) व मोक्ष- प्राप्ति करने वाले। ( 310)
अर्थात स्वर्ग मे साफ सुथरी बीवियाँ नेक काम करने वालों और पर्हेज़गार लोगों को केवल उनके द्वारा दुनिया में किये गये नेक कामों के बदले मे दी जायेगी। इसी खूशखबरी से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः
और जो लोग ईमान लाए और उन्होने नेक काम किये उनको (ए पैग़म्बर (स.)) खुशखबरी दे दो कि उनके लिए (स्वर्ग के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं जब उन्हें उन (बाग़ात) का कोई मेवा (फल) खाने को मिलेगा तो कहेंगे यह तो वही मेवा है जो पहले भी हमें खाने को मिल चुका है (क्योंकि) उन्हें मिलती जुलती सूरत व रंग के (मेवे) मिला करेगें और स्वर्ग में उनके लिए साफ सुथरी बीबियाँ होंगी और यह लोग उस (बाग़) में हमेशा (सदैव) रहेंगे। ( 311)
और
बेशक (निःसंदेह) पर्हेज़गार लोग बाग़ों और नेअमतों में होंगे जो (जो नेअमत) उनके परवर्दिगार ने उन्हें दी हैं उनके मज़े ले रहे हैं और उनका परवर्दिगार उनहें नर्क के अज़ाब (पाप) से बचायेगा जो काम तुम कर चुके हो उनके बदले में (आराम से) तख़्तों पर जो बिछे हुवे हैं तकिये लगा कर खूब मज़े से खाओ पीयो और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से उनका बियाह (विवाह) रचायेंगे। और जिन लोंगो ने ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी संतान को भी उनके दर्जे तक पहुँचा देंगे। ( 312)
इसी तरह।
और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जैसे ठीक (अहतियात) से रखे हुवे मोती। यह बदला है उनके नेक कामों का। वहाँ न तो बुरी और खराब बात सुनेगा और न गुनाह (पाप) की बात (गालियाँ , फ़ोहश) बस उनका कमाल (उनकी बात) सलाम ही सलाम होगा और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है बे कांटे की बेरीयों और लदे गुथे हुवे केलों और लम्बी-लम्बी छाओं और झरने के पानी और बहुत सारे मेवों में होंगे जो न कभी ख्तम होंगे और न उनकी कोई रोक टोक और ऊँचे ऊँचे (नरम गबभों के) फ़रिश्तों में (मज़े करते) होगें (उनको वह हूरें मिलेंगी) जिनको हम ने नित नया पैदा किया है तो हम ने उन्हें कवाँरियाँ प्यारी प्यारी हमजोलियाँ बनाया (यह सब सामान) दाहिने हाथ (में अपना कर्मपत्र , नामः-ए-आमाल) लेने वालों के वास्ते है।( 313)
या
उन बाग़ों में खुश मिज़ाज और खूबसूरत औरतें होंगी तो तुम दोनों अपने परवर्दिगार की किस किस नेअमत (अता) को न मानोंगे वह हूरें जो ख़ैमों मे छुपी बैठी हैं। फिर तुम दोनों अपने परवर्दिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे। उनसे पहले उनको किसी इन्सान ने छुआ तक नहीं और न जिन ने। फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत का इन्कार करोगे यह लोग हरे कालीनों और खूबसूरत व नाज़ुक मसनदों पर तकीया लगाए (बैठे) होगें फिर तुम दोनों अपने परवर्दिगार की किन किन नेअमतों का इन्कार करोगे। ( 314)
अर्थात स्वर्ग में नेक काम करने वाले और पर्हेज़गार लोगों के लिए बड़ी बड़ी आँखों (जैसे ठीक से रखी हुवी मोतियों) वाली हर घड़ी नयी पैदा की हुवी , कुँवारी प्यारी , उनसे पहले किसी इन्सान या जिन की छुई तक नहीं , खैमों में छुपी हुई , शर्मीली तख़्तों पर सजी सजाई हुई बैठी होंगी।
स्वर्ग में इन नेक काम करने वालों लोगों के लिए हूरों के अलावा सेवा के लिए आस पास चक्कर लगाते , हाथों में शरबत के प्याले लिए , खूबसूरत या कहा जाए ठीक से रखे हुए मोती , खुश मिज़ाज और खुश अख़लाक लड़के (अर्थात ग़िलमान) होगें जिस से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः
.. (और सेवा के लिए) नौजवान लड़के आस पास चक्कर लगाया करेंगे वह (खूबसूरती में) गोया अहतियात (ठीक) से रखे हुए मोती है और एक दूसरे की तरफ मुँह करके (मज़े की) बातें करेंगे। ( 315)
और
... नौजवान लड़के जो स्वर्ग में सदैव (लड़के ही बने) रहेंगे (शरबत आदि के) प्याले और चमकदार टोटिदार और साफ शराब के प्याले लिए हुवे उनके पास चक्कर लगाते होंगे। ( 316)
बहरहाल उपर्युक्त क़ुर्आनी आयतों की रौशनी में यह नतीजा आसानी के साथ , निकाला जा सकता है कि परलोक में हर तरह के आराम व सुकून और सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आव्यशक है कि मनुष्य दुनिया कि इम्तिहानगाह (परिक्षा केन्द्र) में ईमानदार रहे , नेक काम करता रहे , दूसरों के अधिकारों को पूरा करता रहे , दुआ व तौबः करे , खुदा की राह में खर्च करे , अल्लाह के क़ानूनों पर अमल करे , खुदा की वन्दना (इबादत , प्राथना) करे , अपने वायदे को पूरा करे , सच बोले इत्यादि। क्योंकि यही बातें नेकी और पर्हेज़गारी की निशानियाँ हैं। जिससे सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः
.. नेकी कुछ यही थोड़ी है कि (नमाज़ में) अपने मुँह पूरब या पश्चिम की ओर कर लो , बल्कि नेकी तो उसकी है जो खुदा और परलोक के दिन और फ़रिशतों और (खुदा की) किताबों और पैग़मबरों पर ईमान लाए और उसकी मुहब्बत में अपना माल रिश्तेदारों (परिवार वालों) और यतीमों (अनाथों) और मोहताजों और परदेसीयों और माँगनेवालों और लौड़ी ग़ुलाम (के आज़ाद करने) में ख़र्च करे और पाबन्दी से नमाज़ पढ़े और ज़कात देता रहे और जब कोई वायदा करे तो अपनी बात को पूरा करे और भूख व प्यास , दुख और कठिनाईयों के समय साबित क़दम रहे , यही लोग वह हैं जो (अपने ईमान के दावे में) सच्चे निकले और यही लोग पर्हेज़गार हैं। ( 317)
उपर्युक्त क़ुर्आनी आयतों के हिसाब से मुत्तक़ी और पर्हेज़गार लोगों की पहचान होने के बाद किताब के अन्त में यह दुआ कि खुदाया (हे ईश्वर) हम सब को जीवन के हर भाग (शोबे , हिस्से) में क़ुर्आन व आइम्मः-ए-मासूमीन (अ ,) के बताये हुवे रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़र्मा (उमंग पैदा कर) ताकि नेक , मुत्तक़ी और पर्हेज़गार बन कर जन्नत (स्वर्ग) में पहुँचने के लाएक़ (पात्र , योग्य) हो सकें। आमीन सुम्मा आमीन।