बहाईयत और अमरीका
दूसरे विश्व युध्द के बाद नवनिर्मित-विस्तार वादी शक्ति अमरीका वास्तव में ब्रिटिश साम्राज्य और यहूदियों को बढ़ावा देने मे सहायक सिध्द हुई। खूँखार ब्रिटेन ने बहुत से स्थानों पर कमज़ोर जातियों को दबाने के लिए जिस अन्तर्राष्ट्रीय यहूदी आन्दोलन की सहायता की थी। वह उनका शिष्य है। और विश्व में उग्रवाद और खूंखारी करने का ठेका आजकल उसी को दे रखा है। इस समय बड़ी शक्ति होने के दो दावेदार है। अमरीका और इसराईल। दुनिया भर की पूंजी अमरीका में ,और अमरीका की सारी पूंजी यहूदियों के अधिकार में हैं। यही लोग फ्री मेंशनी संस्थाओं के बड़े बड़े पदों पर नियुक्त है। अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद का नमूना अमरीका है। कठिनाईयों का सामना करने वाले गरीब मजदूरों के विरुध्द योजनाएं अमरीका से बनकर आती हैं। और इन योजनाओं को कार्य रुप देने मे इसराईल आगे है। यह बात भी कही जा सकती है कि बहाईयों ने भी साम्राज्यवाद से अपना समर्थन प्रकट करने मे एक क्षण भी बर्बाद न होने दिया और अपनी इस सरकार सेवा को लोगों के सामने प्रकट भी कर चुके हैं।
अमरीका के राष्ट्रपति रीगन ने कानूनी तौर पर एक बयान मैं बहाईयों का समर्थन करते हुए ईरान में बहाईयत की हालत पर मगरमच्छ के आँसू बहाए और उनसे हमदर्दी प्रकट की। ईरानी क्रान्ति के धार्मिक नेता आयतुल्ला खुमैनी ने 28 मई 1983 के एक बयान में कहा-
“ बहाईयो के अमरीकी जासूस होने पर अगर हमारे पास कोई सबूत न भी होता तो अमरीकी राष्ट्रपति रीगन का बहाईयों के प्रति समर्थन हमारे लिए पूरी दलील है। ”
यह सबूत बताते हैं कि बहाईयत विस्तारवाद की कार्य प्रणाली है। और साथ ही बहाईयत अमेरीका की विश्वसनीय सेना तथा संस्था है। अत: जहां जहां साम्राज्यवाद से युध्द जारी है वहां वहां बहाईयों से निपटना जरुरी है।
कुछ महत्व पूर्ण बातें बहाई कार्यकर्ताओं के विस्तारवादी होने के अतिरिक्त बहाई धार्मिक विश्वासों का फैलाव स्वयं साम्राज्य के लिए लाभदायक है। अगर यह गिरोह अपने ग़लत विश्वासों को किसी भी समाज मे फैला दें तो साम्राज्यवादियों के लिए उस समाज को अपनी संस्कृति मे ढ़ाल देना आसान हो जाता है। क्योकि माहौल बना बनाया मिलता है। इसलिए वह क़ानूनी तौर पर लोगो को अपना अधीन बना लेते हैं। बीसवीं शताब्दी में विस्तारवाद नये नये हथियारों से लैस होकर निकला। न्यू कालोनिजम को मालूम है। कि धार्मिक विश्वास समाज को बनाने और मजबुत करने में बहुत ही असरदार होते हैं क्योकि लोगों कि जिन्दगी से धार्मिक विश्वासों का अलग होना असम्भव है। इसलिए साम्राज्यवादी इस विचार मे रहते हैं कि धार्मिक विश्वासों और उनके फैलाव के सिध्दान्तों को जड़ से हिला दें। फिर साम्राज्य के अन्दर फैले हुए असर को बेकार कर दें। विशेषत: इस्लामी विचारधारा और धार्मिक विश्वास दुनिया के गरीबों को शक्ति और आज़ादी प्रदान करते हैं। और अत्याचार से टक्कर लेने के लिए ताकत और हिम्मत प्रदान करती है। साम्राज्यवादीयों के विचार मे इसका तोड़ आपस मे फूट ड़ालना और धार्मिक विश्वासों को कम करना है। जिससे क्रान्ति फैलाने वाले व्यक्तियों की सक्षमता समाप्त हो जाती है।
धर्म के प्रति विश्वासों को समाप्त कर नए विश्वासों को प्रचलित करना
मेहदवियत या एक मुक्ति देने वाली मानवता का विश्वास अर्थात खुदा की ओर से एक शक्ति का आगमन होगा। जो लोगो को अच्छईयों की ओर प्रेरित करेगा। खुदा की सहायता से लोगों को न्याय दिया जाएगा और संसार मे एक न्यायपूर्ण शासन स्थापित होगा। यह धार्मिक विश्वास आकाश से सम्बन्धित सभी दीन और मज़हब मे पाया जाता है। यह अवश्य है कि इस्लाम मे यह धार्मिक विश्वास भरपूर तरीके से पाया जाता है। अत: न्याय पसन्द और आज़ादी दिलाने वाले दर्शन शास्त्री मनुष्यों ने कमज़ोर और गरीब जनता को सदा अत्याचार से टक्कर लेने पर उभारा है। और उनकी सफलता का विश्वास दिलाया है।और ऐसे ही विश्वासों को भंग करके धर्म पर हमला भी किया जाता हैं। पूंजी पति और अपनी शक्ति से ड़राने वाले धोखेबाज़ इस धार्मिक विश्वास का मज़ाक उड़ाते हैं। और इन विश्वासों से इन्कार करते हैं क्योकि यह धार्मिक विश्वास विस्तारवाद की राह मे सबसे बड़ी रुकावट है। इसलिए फूट ड़ालने वाले गुट फसाद और दंगा भड़काने वाली बाते करते हैं। और नए विश्वासो की सहायता से असली धार्मिक विश्वासो को कमज़ोर करते रहते हैं। उनका विचार है कि अगर एक व्यक्ति मैहदी मौऊद बन बैठे तो कोई खराबी नहीं होगी। ज़ालिम अपने स्थान पर मज़बूत ही रहेगा। कोई उसका विरोधी नहीं होगा। बल्कि “मैहदीं ” साहब भी उनसे टक्कर लेने के बजाए उनकी सहायता करते और आशीर्वाद देने मे भी संकोच न करते। इसके नतीजें में कमज़ोर और बेचारी जनता धार्मिक विश्वासों से बद दिल होती। उनकी आशाओं पर पानी फिर जाता विरोध करने का उत्साह ठंड़ा पड़ जाता और वह हिम्मत हार जाते ; विस्तारवाद को एक नयी शक्ति मिलती।मैहदी साजी की यह चाल विस्तार वाद के लिए लाभदायक सिध्द हुई। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के मध्य मैहदियों का आगमन आरम्भ हो गया। किन्तु ब्रिटिश उपनिवेश(नौ आबादियात) के अन्तर्गत सोने की चिडिया भारत ,या उसके आस पास वाले देशों मे और उत्तरी अफ्रीका मे भी मेहदवियत के दावेदारों का समर्थन करने वालों में बहाई सबसे प्रसिध्द और शक्तिशाली गुट था। इसलिए बहाई अपने झूठे और बे दलील दावों के साथ साथ कमज़ोर मज़दूर जातियों के लिए सबसे खतरनाक गुट माना जाता है। यह गिरोह विस्तारवाद के लिए रास्ता खोलने और साम्राज्यवाद की सेनाओं के लिए मोर्चे बनाने का कार्य ग्रहण किये हुए है।
बहाई शिक्षा के अंधविश्वासों से उनके धार्मिक विश्वास कमज़ोर होते है , और मनुष्य शंका मे पड़ जाता है। इन्हीं शिक्षाओं के आधार पर हुसैन अली बहा एक दिन इमामे ज़माना(मैहदी मौऊद) बनता है। तो दूसरे दिन आख़िरी नबी होने का दावा करता है। और साथ ही नए धर्म को प्रचलित करता है। कुछ़ दिनो के बाद खुदाई (अल्लाह) का भी दावेदार हो जाता है। उसकी इच्छा यह है कि मानव , धर्म के प्रति विश्वास समाप्त कर बैठे और समाज मे यह प्रचलित हो जाए कि धर्म (मज़हब) बे-बुनियाद चीज़ है। जिस धर्म में अंध विश्वास भरा हो , अच्छ़ा यह है के ऐसे धर्म को छोड़कर बे धर्म रहा जाए।
एक ओर अंध विश्वास वर्णमालाओं का खेल है। जिससे तरह तरह की खुराफात पैदा होते है। पढ़ी लिखी जनता इससे गुमराह होती है। और सीधे साधे लोग इस जाल मे फंस जाते है।
बहाई किताबों में इस प्रकार की निर्रथक और प्रतिकूल बाते जब खुलकर सबके सामने आयीं तो उनके नेताओं ने सभी किताबों और लेखों को छ़ुपा दिया। इसी कारण आज वह किताबें केवल बहाईयों के धर्मगुरुओं के पास मौजूद हैं। इतनी सुरक्षा और बचाव के बावजूद खोज करने वाले विध्दान , ईरानी संसद के पुस्तकालय और मिश्र , लन्दन पैरिस , मास्को , लाहौर के पुस्तकालयों में से थोड़ी बहुत किताबें और लेख प्राप्त कर ही लेते हैं।
बहाईयत ने आरम्भ से प्रतिकूलता का प्रचार इसलिए किया कि धार्मिक विश्वासों को कमज़ोर कर के कुछ नाम निहाद नारे अपनाने के साथ ही आपस मे विरोध , दुश्मनी और एक दूसरे के धार्मिक विश्वासों में दखल आन्दाज़ी न करने का प्रचार शुरु कर दिया जाए। अत: संक्षेप मे कहा जा सकता है कि यह गिरोह धार्मिक विश्वासों का विरोधी होने के साथ साथ न तो मानवता का ही आदर करता है और न ही उसने साम्राज्यवाद के विरुध्द आवाज़ उठाई है।
मानवीय सभ्यता से युध्द
यह पूर्ण रुप से कहा जा सकता है कि जहां भी साम्राज्यवाद का आगमन होता है। वहां से सभ्यता और एक दूसरे के प्रति आदर को निकाल फेंकता है। इससे गुलामी की रस्सियों मे जकड़ी जनता में विरोध की क्षमता कमज़ोर हो जाती है। क्योकि जिस जाति (क़ौम) में सभ्यता का बोलबाला होता और सच्चाई पाकदामनी ,शराफत , गैरत जैसी भावनाएं पाई जाती है तो उसके लिए किसी दुष्ट , दुराचारी के सामने झुकना कठिन होता है। और कोई विस्तारवाद आसानी से उनको अपना ग़ुलाम नहीं बना सकता।
समाज से अगर दुष्टता , दुराचार , शराब खोरी और बैग़ैरती फैलेगी तो उस समाज में सभ्य मनुष्य का जीना कठिन हो जाएगा। साम्राज्यवाद की ग़ुलाम जातियों पर निगाह ड़ालिए तो मालूम होगा कि दुनियाँ के कितने ग़रीब़ और बेसहारा लोग धन दौलत और शक्ति के नीचे दबे हुए हैं। विस्तारवाद के कार्यों का पहला कार्य यह है कि वह समाज मे अय्याशियों के अड्ड़ो , नाइटक्लबों , शराब खानो और दूसरी गंदी चीज़ों के सहारे असभ्यता और दुराचार का प्रचार व प्रचलन करता है। मस्जिदों और धार्मिक स्थलों को बन्द करने के साथ साथ लोगो को इन स्थानों तक जाने से रोकता है। शिक्षा में कभी सुचनाएं और समाचार पहुंचने पर प्रतिबन्ध लगाता है। जिससे जिहालत और असभ्यता लोगों के दिलों मे प्रवेश कर जाती है। अत: यही साम्राज्यवाद के विजयी होने का कारण है। पश्चिमी देशों मे गुंड़ागर्दी और असभ्यता को फैलाने मे बहाईयत आगे आगे है। वह मानवता के कुशल और सभ्य विचारों से युध्द कर रही है। नंगापन , बदमाशी और औरतों को साम्राज्यवादी आज़ादी का समर्थन करने को उक्सा (प्रोत्साहित कर) रही है।
उसका एलान है कि अगर पति पत्नि माता पिता नही बन पाए है तो वह दूसरे मर्द या औरत से सम्भोग द्धारा माता पिता बन सकते हैं।
उनके धर्म मे धात (मनी) का जबरदस्ती निकालना जायज़ है। और इसी तरह से असली , और खूनी रिश्तों को समाप्त करके नामहरम , महरम बन गया है। अब केवल बाप अपनी बेटी से रिश्ता करने के अलावा सभी से अपनी इच्छ़ाओं कि पूर्ति कर सकता है। उनके धर्म मे बलात्कार का जुर्माना 9 तोला है। यह जुर्माना ब्याही और कुँवारी औरत में कोई अन्तर नही रखता। इन सब को देखकर मालूम होता है कि अय्याशी और बलात्कारी को इस धर्म मे पूरी छूट दी गयी है।
जनता की सभ्य राजनीति से सामना
बहाई राजनितिक गुट , राजनीति मे खेलने के बावजूद अपने समर्थकों से कहता है और प्रोपेगंड़ा करता है कि बहाईयत के समर्थक राजनीति से दूर रहें। अब्बास आफन्दी का इस सम्बन्ध में प्रसिध्द वाक्य जो कि बहाईयो का नारा भी समझा जाता है।
“ बहाई होने या न होने का आधर यह है कि जो व्यक्ति राजनीति मे दख़ल देता है। और अपनी औक़ात से बढ़ चढ कर बोलता है। तो इससे सिध्द होता है कि वह बहाई नही है। ” और यही व्यक्ति एक स्थान पर लिखता है। “जनता पर शासन करने वाले शासक का विरोध करने का किसी बहाई का अधिकार नही है। उनकी समस्याओं और कार्यो मे दखल अन्दाज़ी न करें उनको उनके कार्यों और शासन करने पर छोड़ कर उनके दिलों पर नज़र रखें। ”
इन विचारो और विश्वासों का प्रोपेगण्डा करके वास्तव मे विस्तारवाद की सेवा और कार्य प्रणाली को बयान किया गया है। अपने निकटतम साथियों को राजनीतिक अड्डों से हटाकर उनके समाज को अपना गुलाम बनाया है। राजनीतिक नेताओं और सामराजवादी शासकों को तानाशाही करने के लिए पूरी छूट दी गई है। जनता को दुहरी राजनीति मे फँसाया। अत: इस अत्याचार को छुपाने के लिए अपने राजनीतिक कार्य कलापों को गुप्त रखकर दूसरों के विचारों से पीछा छुड़ाया है। दीन और मज़हब के नाम पर विस्तारवाद की प्रसन्नता अर्जित की है।
दूसरे शब्दो मे बहाईयों की राजनीति यह है कि शासनिक कार्यों मे दख़ल न दिया जाए और शासन की सहायता करने को राजनीतिक कानून बनाया जाए।
(समाप्त)
[[अलहम्दो लिल्लाह किताब (बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था ) पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.स.) फाउनड़ेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क ) के लिऐ टाइप कराया। 20 .6.2017