हदीस न. 41 से 60
41- अपना दिन इधर उधर की बातों में ज़ाया न करो , क्योंकि तुम्हारे साथ ऐसे अफ़राद हैं जो तुम्हारी हर चीज़ को लिख रहे हैं।
42- हर जगह अल्लाह को याद करो।
43- पैग़म्बरे इस्लाम पर सलवात भेजा करो , ख़ुदा पैगम्बर के एहतेराम में तुम्हारी दुआ कुबूल करेगा।
44- खाना ठण्डा करके खाया करो- जब रसूले ख़ुदा के सामने गर्म खाना लाया गया उस वक़्त हज़रत ने इरशाद फ़रमाया , ठहरो ताकि ठण्डा हो जाये ख़ुदा हमें गर्म नहीं खिलाना चाहता – बरकत तो ठण्डे में है गर्म में कोई बरकत नहीं।
45- अपने बच्चों को ऐसी चीज़ें तालिम दों जिन्हें अल्लाह ने उनके लिए मुफ़ीद क़रार दिया है ताकि उनपर ला – मज़हबियत ग़ालिब न हो।
46- ऐ लोगों ! अपनी ज़बान को रोको और अच्छ़े अन्दाज़ में सलाम करो।
47- अमानते अदा करो चाहे क़त्ल अम्बिया के बारे में हों।
48- जिस वक़्त बाज़ार में दाख़िल हो , और लोगों से तिजारती गुफ़्तगु करो उस वक़्त ख़ुदा को बहुत ज़्यादा याद करो क्य़ोकि गुनाहों का कफ़्फारा है और नेकियों में इज़ाफ़े का सबब है देख़ों ग़ाफ़िलों में शामिल न हों।
49- माहे मुबारके रमज़ान मे सफ़र करना मुनासिब नहीं है। क्योकि अल्लाह का इरशाद है कि “ जब माहे मुबारके रमज़ान आ जाये तो रोज़ा रखो ”
50- शराब पीने और मोज़े पर मसा करने में कोई तक़इया नहीं हैं।
51- देखो हमारे हक़ में हरगिज़ गुलू न करना बल्कि कहो के हम अल्लाह के पर्वर्दाबन्दे हैं। फिर हमारे बारे में जो चाहो कहो।
52- जो हमसे मोहब्बत करता हैं उसे हमारे जैसा अमल करना चाहिये और परहेज़ग़ारी से हमारी मदद करनी चाहिये। यही बेहतरीन चीज़ हैं जिससे दुनिया व आख़ेरत में मदद ली जा सकती है।
53- जहाँ हमारी बुराई की जा रही हो वहाँ न बैठो।
54- हमारे एलानिया दुश्मन के सामने हमारी तारीफ़ न करो। हमारी दोस्ती ज़ाहिर करके ज़ालिम बादशाह के सामने ख़ुद को ज़लील न करो।
55- सच्चाई के पाबंद रहो उसी में निजात है।
56- जो अल्लाह के पास है उसे तलब करो , उसकी ख़ुशनूदी और उसकी इताअत के मुतालाशी रहो और उस पर साबित क़दम रहो।
57- कितनी बुरी बात है कि मोमिन बे-आबरू होकर जन्नत में जाये।
58- अपने किरदार के ज़रिये क़यामत के दिन हमारी शफ़ाअत से दूर न हो।
59- क़यामत के दिन अपने दुश्मन के सामने ज़लील न हो।
60- ख़ुदा के नजदीक तुम्हारी जो मंज़िलत है उसे ह़कीर दुनिया की मोहब्बत में हाथ से न जाने दो।
हदीस न. 61 से 80
61- जिस चीज का ख़ुदा ने हुक्म दिया है उस पर अमल करो।
62- इससे बढ़कर कोई आरज़ू नहीं के इन्सान एहतेज़ार के वक़्त रसूले ख़ुदा की ज़ियारत का शरफ़ हासिल कर ले।
63- जो कुछ अल्लाह के पास है वह बाक़ी रहने वाला है , शहादत दी जाये जो आखँ की ठण्डक और रहमते इलाही से मुलाक़ात का सबब होगी।
64- अपने कमज़ोर भाइयों को गिरी निगाह से न देखो जो किसी को गिरी निगाह से देखेगा कयामत के दिन ख़ुदा उसे हक़ारत से देखेगा और दोनों को एक जगह जमा नहीं करेगा मगर यह के वह तौबा कर लें।
65- जब अपने भाई की ज़रूरत से आगाह हो तो उसे सवाल की ज़हमत न दो।
66- एक दूसरे से मुलाकात करो , आपस में मेहरबान रहो और एक दूसरे को तोहफ़े दो।
67- मुनाफ़िक़ की तरह न हो जो बातें तो करता है मगर अमल नहीं करता।
68- शादी करो , रसूले ख़ुदा ने इरशाद फ़रमाया “ जो मेरी सुन्नत पर अमल करना चाहता है उसे शादी करना चाहिये। शादी करना मेरी सुन्नत है। ”
69- औलाद तलब करो मैं क़यामत के दिन दूसरी उम्मतों पर तुम्हारी कसरत की बिना पर मुबाहात करूँगा।
70- अपनी औलाद को कुंद ज़ेहन और बदकिरदार औरत का दूध न पिलाओ क्योंकि दूध से आदत फैलती है।
71- ऐसे परिन्दें न खाओ जिसके पोटा और संगदाना न हो।
72- उन परिन्दों का गोश्त न खाओ जिनके नाख़ून तेज़ होते हैं और उन परिन्दों का भी गोश्त न खाओ जिनके पंजे शिकारी होते हैं।
73- तिल्ली न खाओ क्योंकि उससे फ़ासिद खून बनता है।
74- सियाह लिबास न पहनो क्योंकि यह फ़िरऔन का लिबास है।
75- गोश्त के ग़ुदूद न खाओ उससे जुज़ाम का ख़तरा है।
76- दीन में क़यास आराइयाँ न करो , ऐसा गरोह आयेगा जो क़यास करेगा और वही दीन का दुश्मन होगा सबसे पहले जिसने क़यास किया वह इब्लीस था।
77- नोंकदार जूते न पहना करो इस तरह के जूते फ़िरऔन पहना करता था।
78- शराब ख़ोरों से दूर रहो।
79- खजूर खाया करो इसमें अमराज से शिफ़ा है।
80- रसूले ख़ुदा के अक़वाल की पैरवी करो हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के जो शख़्स अपने लिये दूसरे के सामने सवालात के दरवाज़े खोल लेता है ख़ुदा उसके लिये फ़क़्र का दरवाज़ा खोल देता है।
हदीस न. 81 से 100
81- बहुत ज़्यादा अस्तग़फ़ार किया करो इससे रिज़्क़ हासिल होता है।
82- जितना हो सके अमले ख़ैर करो , कल तुम्हें यही मिलेगा।
83- बहस व मुबाहिसा न किया करो इससे शक में मुबतला हो जाओगे।
84- जो अल्लाह से कुछ मुरादें चाहता है वह जुमे के दिन तीन वक्त दुआ करे।
1- ज़वाल के वक़्त जब हवा चलती है , आसमान के दरवाज़े खुल जाते हैं औऱ रहमत नाज़िल होती है , परिन्दे आवाज़ देते हैं।
2- रात के आखिरी हिस्से में तुलू- ए- फ़ज्र के नज़दीक उस वक़्त दो फरिश्ते यह निदा देते हैं के है कोई तौबा करने वाला जिसकी तौबा क़ुबूल की जाये , है कोई माँगने वाला जिसे दिया जाये , है कोई मुरादें माँगने वाला के मुरादे पूरी की जायें , पस अल्लाह की आवाज़ पर लब्बैक कहो।
तुलू- ए- फ़ज्र और तुलू- ए- आफ़ताब के दरमियान रिज़्क़ तलब करो , ज़मीन में गर्दिश करने की ब-निस्बत उस वक़्त रिज़्क़ बहुत जल्दी मिलता है। यही वह वक़्त है जब अल्लाह अपने बन्दों के दरमियान रिज़्क़ तक़सीम करता है। इमाम के जुहूर का इन्तेज़ार करो और अल्लाह की रहमत से मायूस न हो जुहूर का इन्तेज़ार अल्लाह के नज़दीक बहुत ज़्यादा पसंदीदा है। और वह चीज़ बहुत ज़्यादा पसंदीदा है जिस पर मोमिन मुस्तक़िल कारबंद रहे।
85- नमाज़े सुबह के बाद अल्लाह पर तवक्कुल करो उस वक़्त मुरादें मिलती हैं।
86- तलवार लेकर हरम न जाओ।
87- तलवार के सामने नमाज़ न पढ़ो क्योंकि क़िब्ला अम्न व अमान की जगह है।
88- जब हज करो तो रसूले ख़ुदा की ज़ियारत ज़रूर करो इसी का तो हुक्म दिया गया है। ज़ियारत न करना हज़रत पर जफ़ा करना है।
89- जिनके हुक़ूक़ तुम पर हैं उनकी क़ब्रों की ज़ियारत करो और वहाँ रिज़्क़ तलब करो वे तुम्हारी ज़ियारत से ख़ुश होते हैं। वालदेन की क़ब्रों के पास उनके लिये दुआ करने के बाद अपने हक़ में दुआ क़ुबूल होती है।
90- गुनाहे कबीरा की ताक़त न रखने की बिना पर गुनाहे सग़ीरा को कम न समझो , क्योंकि सग़ीरा जमा होकर गुनाहे कबीरा हो जाते हैं।
91- सजदों को तूल दो जो सजदे को तूल देगा वह इताअत गुज़ार और निजात चाहता होगा।
92- मौत को अक्सर याद किया करो और उस दिन को भी याद रखो जिस दिन क़ब्र से निकाले जाओगे और जिस दिन अपने ऐब के सामने पेश किये जाओगे ताकि तमाम मुसीबतें तुम्हारे लिये दूर हो जायें।
93- जब आँख में कोई तकलीफ़ हो तो “ आयतल कुर्सी ” पढ़ो और यह एतेक़ाद रखो के इससे शिफ़ा हो सकती है तो इन्शाल्लाह शिफ़ा होगी।
94- गुनाहो से परहेज़ करों , क्योकि मुसिबत और रिज़्क़ मे तंगी सब गुनाहो की बिना पर है यहाँ तक कि ख़राश भी गुनाह का नतीजा है। ख़ुदावन्दे आलम का इरशाद है कि “ तुम्हें जो मुसीबतें पहुँचती हैं वे तुम्हारे आमाल की बिना पर है ख़ुदा तो बहुत सी चीज़ो को दरगुज़र करता है ” ।
95 ख़ाने पर अल्लाह को बार बार याद करो , खाने को फ़ेको नहीं अल्लाह की हर नेमत और रिज़्क पर उसकी हम्द “ और शुक्र ज़रुरी हैं ”
96- हर नेमत से अच्छा बर्ताव करो , क़ब्ल इसके के वह छ़िन जाये- नेमत तो ज़ायल हो जायेगी लेकिन तुम्हारा बर्ताव तुम्हारे ऊपर गवाह रहेगा।
97- जो अल्लाह से मुख़्तसर से रिज़्क पर राज़ी होगा अल्लाह उससे मुख़्तसर से अमल से ख़ुश्नुद होगा।
98- तफ़रीत से बचों , क्योकि उस दिन शर्मिन्दा होना पड़ेगा जिस दिन शर्मिन्दगी फ़ायदामन्द न होगी।
99- मैदाने जंग मे जब दुश्मन के रु-ब-रु हो तो बाते कम करों , अल्लाह बुज़ुर्ग व बर्तर को ज़्यादा याद करो मैदान से मुँह न मोड़ो , वरना अल्लाह के ग़ज़ब के मुसतहक हो जाओगे । जंग मे जब अपने भाई को ज़ख्मी या दुश्मनों में गिरफ्तार देखो तो उसको तक़वियत पहुँचाओ इमकान भर अच्छा बर्ताव करो इस तरह बुरी मौत से महफ़ुज़ रहोगे ।
100. बेहतरीन जख़ीरा बकरी है जिसके घर मे एक बकरी हो हर रोज़ एक मरतबा फ़रिश्ते उसकी ताज़ीम करते हैं। और जिसके पास दो बकरियाँ हो फ़रिश्ते दो बार उसकी ताज़ीम करते हैं। और इसी तरह अगर तीन बकरीयाँ हो तो तीन मर्तबा ताज़ीम करते हैं। और ख़ुदा कहता है के तुझे बरकत दी गई हैं।
हदीस न. 101 से 120
101- जब मुस्लिम कमज़ोर हो जाये तो उसे गोश्त और दही खाना चाहिये अल्लाह ने इन दोनो के क़ुव्वत क़रार दी हैं ।
102- जब हज करने जाओ तो अपनी ज़रुरयात की बाज़ चीज़े पहले ख़रीद लो क्योकि ख़ुदावन्दे आलम का इरशाद है कि जब सफ़र का इरादा करो तो सामान पहले मोहय्या करो।
103- अगर धुप में बैठना जाहते हो तो सुरज की तरफ पुश्त करके बैठों इससे अनदुरुनी बामारी दुर होती हैं।
104- जब हज करने जाओ तो ख़ान- ए- काबा को बार- बार देखो , ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने घर के ईर्द गिर्द 120 रहमते रखी हैं । 60 तवाफ़ करने वालो के लिए , 40 नमाज़ पढ़ने वालो के लिए और 20 ख़ान- ए- ख़ुदा को देखने वालों के लियें।
105- जितने गुनाह याद हों ख़ान- ए- ख़ुदा के सामने सबका इक़रार कर लो और जो न याद हो तो यह कहो के ऐ ख़ुदा जो चीज़े तेरे यहाँ महफ़ुज़ हैं और हम भूल गये हैं सब को माफ़ कर दें। क्योकि जो शख्स उस जगह अपने गुनाहो का इक़रार करेगा और उन्हे शुमार करेगा , तो खुदावन्दे आलम के लिए सज़ावार है कि उस शख्स को बख़्श दे।
106- बला नाज़िल होने से पहले दुआ करों क्योकि छ़: मौकों पर आसमान के दरवाज़े खुलते हैं।
I- बारिश के वक़्त
II- जंग के वक़्त
III- अज़ान के वक़्त
IV- तिलावते कुरान के वक़्त
V- ज़वाल के वक़्त
VI- तुलू- ए- फ़ज्र के वक़्त
107. जो मय्यित को सर्द होने के बाद छ़ुए उस पर ग़ुस्ल वाजिब है जो मय्यित को ग़ुस्ल व कफ़न दें उसे बाद में खुद नहाना चाहिये।
108- कफ़न को धुनी न दो , काफ़ुर के अलावा मुर्दो को कोई और ख़ुश्बू न दो , क्योकि मय्यित उस शख्स की तरह है जो अहराम की हालत में हो।
109- अपने खानदान वालों को बताओं कि मय्यित के पास अच्छ़ी बात करें। जब रसूले ख़ुदा का इन्तेक़ाल हुआ उस वक़्त बनी हाशिम की लड़कियों ने जब फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैयहा के पास आकर कुछ़ अशार पढ़े। उस वक़्त आपने फ़रमाया के “ रस्म को तर्क करो और दुआएं करो ” ।
110- मुसलमान मुसलमान का आईना है , जब अपने भाई कि लग़्ज़िश देख़ो तो सब उस पर बार न कर दो उसको समझाओ , नसीहत करों और नर्मी से पेश आओ।
111- देखो इख़्तेलाफ न करो , वरना दीन से ख़ारिज हो जाओगे हमेशा राहे एअ़तेदाल इख़्तेयार करो आपस में मेल व मोहब्बत से रहो , सवारी के ज़रिये सफ़र शुरु करने ने से पहले अपने जानवर को आब- व- दाना दो देखो जानवरों के मुँह पर मत मारो , क्योकि ये अपने परवरदिगार की तसबीह करतें हैं।
112- सफ़र मे रास्ता भुल जाओ या किसी से ड़र हो तो यह कहो “ या सालेहो अग़िस्नी ” ( ऐ सालेह मेरी इमदाद कीजिये) क्योकि जिनों मे कुछ़ ऐसे है जो आवाज़ सुनते हैं , जवाब देते हैं और गुमशुदा को तलाश कर देते हैं।
113- जिसे बिच्छ़ू का ख़ौफ़ हो वह इस आयत की तिलावत करे “ सलामुन अला नुहिन फ़िल आलेमीन अना तज- ज़ेयुल मोहसेनीन इन्नहू मिन एबादेनल मोमेनीन ” ।
114- पैदाइश के सातवें दिन अपनी औलाद का अक़ीक़ा करो और बाल के हम वज़न चाँदी सदक़ा दो क्योकि यह हर मुसलमान पर वाजिब है और रसूले ख़ुदा ने हसन (अ.) और हुसैन (अ.) के सिलसिले मे यही किया था।
115- जह साएल को कुछ़ दो तो उससे कहो कि तुम्हारे हक़ मे दुआ करें उसकी दुआ तुम्हारे हक़ मे क़बूल होगी। और ख़ुद उसके हक़ मे क़बूल न होगी क्योकि यह अक्सर ग़लत बयानी करते हैं। जो चीज़ देने के लिए अपने हाथ मे लिये हो उसको चुम लो क्योकि साएल के क़ुबूल करने से पहले ख़ुदा क़ुबूल करता है। खुद ख़ुदा ने फ़रमाया है कि अल्लाह सदक़े को क़ुबूल कर लेता हैं.।
116- रात में सदक़ा दिया करो , रात का सदक़ा ग़ज़बे ख़ुदा को कम करता हैं।
117- बातों का आमाल से मवाज़ना न करो बातें कम करो मगर नेकी की बात।
118- जो रोज़ी अल्लाह ने तुम्हे दी है उसमे से राहे ख़ुदा मे ख़़र्च करो- राहे ख़ुदा मे इनक़ाफ़ करने वाला राहे ख़ुदा मे जिहाद करने वाले की तरह हैं। जिसे मुआवज़े का यक़ीन होता है वह राहे ख़ुदा मे ख़र्च करता है और इसी तरह अपने दिल को सख़ावत का ख़ुगर बनाता है।
119- अगर यक़ीन के बाद शक हो तो यक़ीन पर एतेमाद करो क्योकि शक न य़कीन को दुर करता है। और न कम कर सकता है।
120- बातिल गवाही न दो।