हज़रत शीश अ 0
हज़रत शीस की विलादत का वाक़िया तारीखों मे यूं मिलता है कि एक दिन हज़रत आदम और हव्वा एक पाकीजा मकाम पर बैठे हुए महवे गुफ़तगू थे। कि जन्नत से एक जू-ए-आब जारी होकर दोनो के करीब पहुचां और इसी के साथ साथ जिबराईले अमी भी कुछ फरिश्तो को लिए हुए वारिद हुए , उन्होने आकर हज़रत आदम को सलाम किया , आदम ने जवाबे सलाम दिया उसके बाद जिबरईल ने आदम के सामने जन्नती मेवों का एक तबक पेश किया और कहा कि इसे नोश कीजिये और आप आबे बेहिशत से गुल्ल करके हव्वा के पास जाइये क्योकि आज नूरे मोहम्मदी तुम्हारे सुल्ब से रहमे हव्वा मे मुन्तिकि़ल किया जाएगा और तुम्हरी वही की बुन्याद पड़ेगी।
हज़रत आदम ने इस हुक्मे इलाही की तामील की और हज़रत हव्वा इसी शब हामेला हुई। मोद्दते हमल गुजरने के बाद एक फरजन्द की विलादत हुई जिसका नाम शीस रखा गया।
तारीखे़ ख़मीस मे है कि चूंकि नूरे मोहम्मदी को हज़रत आदम के सुल्ब से मुन्तकि़ल होकर हज़रत शीस के सुल्ब मे आना था इसीलिए उनकी विलादत मे खास एहतेमाम किया गया।
अजाएबुल क़सस और हयातुल कु़लूब मे है कि जब हज़रत शीस सिने बुलूग़ पर पहुचें तो जिबराईल नाज़िल हुए है और आदम से कहा कि ए आदम तुम फलां मकाम पर कल शीस को लेकर पहुँच जाओ और मै भी फरिश्तों को लेकर वहाँ आ जाऊगा। आदम ने इस इजतेमा का सब्ब दरयाफ्त किया तो जिबराईल ने कहा कि शीस से नूरे मोहम्मदी के मोताल्लिक़ एहदो मीसाक लेना है। दूसरे दिन हजरत आदम मकामे मोइयना पर पहुँच गये , हजरत जिबरईल भी हजारो फरिशतो को लेकर वहां आ गये , और हजरत शीस से अहदे मीसाक़ लिया गया और उन्हे कुछ हिदायें
जिस वक्त हज़रत शीस मोतावल्लिद हुए उस वक्त हज़रत आदम की उम्र 230 बरस की थी। आप की नस्ल हज़रत शीस से ही चली। और हज़रत शीस के अहद मे अवलादे आदम दो गिरोह मे तक़सीम हुई एक क़ाबील की पैरव , जो आतश परस्त हुई दूसरी हज़रत शीस की पैरव जो खुदा परस्त रही।
हज़रत शीस अवलादे आदम मे इन्तेहाइ मोहतरम बुजुर्ग अपने वालिद से मुशाबेह और खू़बसूरत थे। इन पर 50 सहीफे नाजिल हुए। और जब इनकी उम्र 612 बरस की हुई तो इन्तेक़ाल हुआ। इन्तेक़ाल से क़ब्ल इन्होने अपना वसी अनूश को मोकर्रर किया और अनूश ने क़ीनान को क़ीनान ने महलाईल को और महलाईल ने यारो को यारो ने अख़नूख़ को अपना वसी और जानाशीन मोक़र्रर किया जो हजरत इदरीस कहलाए।
हज़रत इदरीस अ 0
आप को इदरीस इसलिए कहा जाता है कि आप अपनी क़ौम के लोंगों को , अल्लाह की रुबूबियत , मआरेफत , इबादत , इताअत और इन्सानी ज़ाबताए हयात का दरस दिया करते थे। आप हज़रत आदम की सातवीं पुश्त में मोतावल्लिद हुए , अंग्रेज़ मोहक़्कि ने आप और हज़रत आदम का दरमियानी वक़्फ़ा 622 बरस बताया है।
आप लहीम शहीम , फरबे और वलन्द क़ामत थे , नर्म आवाज़ से आहिस्ता आरिस्ता बाते करते थे। अल्लामा अब्दुल वाहिद हनफी देवबन्दी का कहना कि ख़ुदा ने आप को दस चीज़ो से मुम्ताज़ और मुन्फरिद किया था
आप नबीये मुरसल थे
आप पर 30 सहीफे नाज़िल हुए
इल्में नुजूम जानते थे
क़ल्म से लिखने की इबतेदा की
कपड़ा इजाद किया
जंगी अस्लहे इजाद किया
जेहाद क़ायम किया
काफ़िरों और उनकी गिरफ्तारी का तरिक़ा इजाद किया
लोगों को लिबास पहन्ना बताया
ख़ुदा ने आपको ज़िन्दा आसमान पर उठाया
कुछ़ मोअर्रिख़ों का कहना है आपने तक़रीबन 100 शहर आबाद किये। अल्लामा मजलिसी अलैहिर्रहमा का बयान है कि आप मस्जिदे सहला मे दर्स देने के अलावा ख़याती का काम भी करते थे और वहीं रहते भी थे कशफुल ग़म्मा में है। आप को 72 ज़बानों पर क़ुदरत हासिल थी और आप हर ज़बान मे तबलीग़ का काम अन्जाम देते थे। रौज़ा तुल सफा में है कि आप ही ने बुर्जो में आफताब की मुन्तक़ाली से लोगों को आगाह किया और रुय ते हिलाल के बारे में बताया बुर्जो के नाम तजवीज़ किये नुजूम कि इसतेलाहें का़यम की और अपने इल्म से अम्बिया की तादाद बताई।
दुनिया मे आप ने 365 साल तक कारे तबलीग़ अन्जाम दिया इसके बाद अल्लाह ने आप को जिन्दा आसमान पर उठा लिया। आसमान पर उठाये जाने से पहले आप ने उमुरे दीनी अपने साहबज़ादे मुतवशलख़ को अपना जानशीन बनाया। मुतवशलख़ ने वक्ते आखिर अपने फ़रज़न्द लमकया लामख़ को जानशीन मोकर्रर किया। और उनसे वह वसीयते की जो आप के बुज़ूर्गों ने आप से की थी। लमकया लामिख की उम्र 800 बरस की हूई और उनकी वफात तुफाने नूह से 620 साल पहले बताई जाती है। उन्ही लमक के साहबज़ादे हज़रत नूह थे।
हज़रत नूह अ 0
आप को नूह इस लिए कहा जाता है कि आप ने अपनी गुमराह क़ौम की सरकशी , और अज़ीयत रसानी पर 650 बरस तक नौहा. किया। मुखतलीफ हदीसों और रवायतों मे आप का नाम अब्दुल आला , अब्दुल मलक , अब्दुल शकूर , अब्दुल ग़फ़्फ़ार और सकन बताया गया है। आप गुदाज़ जिस्म बलन्द व बाला क़द के इन्सान थे. चेहरा पतला कदरे लम्बा , आँखें बड़ी और दाढ़ी घनी थी। खुदा ने आप को 2500 साल की ज़िन्दगी अता की लेकिन इस उम्र में मोअर्रेखीन के दरमियान इखतेलाफ है कि कब आप मनसबे नबूअत पर फायज़ हुए , किसी रवायत में 850 बरस , किसी रवायत में 840 बरस , किसी में 860 बरस , किसी में 400 बरस , किसी में 250 बरस तहरीर किया है तबरी मे सिर्फ 50 साल तहरीर है जो मेरे ख़याल मे किताबत की ग़लती का शाखसाना है।
मोअर्रेखीन इस बात पर मोत्ताफिक है कि आप ने 650 साल तक तबलीग़ी ख़िदमत अन्ज़ाम दी लेकिन चूंकि आप क़ाबील की अवलादों पर मबउस हुए थे जो इब्तेदा ही से गुमराह , सरकश , आतिश परस्त , ज़िनाकार , जराएम पेशा और नाफरमान थी इसलिए आप की तबलीग़ी कोशिशों का कोई खास नतीजा बरामद न हुआ और आप के मोतक़दीन की तादाद 80 से ज़्यादा न हो सकी।
आप पर कोई सहीफ़ा नाज़िल नही हुआ। क़बले नुबूवत भी आप अपने बाप दादा के मज़हब पर थे और इन्तेहाई इबादत ग़ुज़ार , मुत्तकी , परहेज़गार , मोवारिद और खुदा परस्त थे। अपनी क़ौम की इज़ा रसानियों से परेशान होकर आप ने उनसे अलाहेदजी इखतेयार करली थी और कुफ़े के क़रीब सिम्त फ़ुरात के किनारे एक ग़ैर आबाद मुकाम पर रहते थे और वहीं हमा वक्त खुदा की इबादत में मस्रुफ रहते थे।
अल्लामा मजलिसी इब्ने ताउस के हवाले से रक़म तराज़ हैं कि जब आप की उम्र का एक तवील हिस्सा गुज़र गया तो आप की ख़िदमत में जिबरईल आयें और उन्होने कहा कि ऐ नूह तुम ग़ोशो नशीन क्यो हो तुम बाहर निकलो और भटकी हुई क़ौम को राहे रास्त पर लाने की कोशिश करो , आप ने फरमाया , यह क़ौम बड़ी बेकार है , न मेरी सुनती है न मेरी तरफ रुख करती है और न मुझे पहचानती है। जिबरईल ने फरमाया अगर ये लोग नरमी से राहे रास्त पर आने को तैयार नही है तो उनसे जिहाद करों। आप ने फरमाया , मैं उनके मुक़ाबले मे जिहाद की ताक़त व तवानाई नही रखता। जिबरईल ने कहा अगर खुदा ताक़त व तवनाई अता कर दे तो।
जिहाद करोगे। आप ने फरमाया यक़ीनन मे जिहाद करुगाँ। इस पर जिबरईल ने कहा ऐ नूह मैं खुदा की तरफ से भेजा गया फरिश्ता हुँ , इस वक्त अल्लाह ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है बाद सलाम के कहा है कि मैने तुम्हे ताक़त व तवनाई दे कर नबूवत के मन्सब पर फायज़ कर दिया है अब तुम तबलीग़ के लिए गोशा छ़ोड़ कर मैदान में निकलों और फरीज़ाए नबूवत अदा करो , खुदा तुम्हारे साथ है वह तुम्हारी मदद करेगा। यह सुनना था कि नूह अ 0 अज्म व हिम्मत के साथ एक सफेद असा लेकर उठ खड़े हुए और खुदाई ताक़तों को समेट कर तबलीग़ की ग़रज़ से एक ऐसी बस्ती में दाखिल हुए जहाँ लोग ईद की खुशियाँ मना रहे थे , अतिश परस्ति में मशग़ूल थे और आग भड़क रही थी , नाराए तौहीद बलन्द किया और फरमाया। ऐ ग़ुमराह क़ौम के लोगों आगाह हो जाओ कि तुमनें शैतानी जामा पहन रखा है , हक़ीकी खुदा से मुन्हरिफ होकर , आग और बुतों की परसति कर रहे हो जो तुम्हे जहन्नुम की तरफ ले जाने वाली हैं अगर तुम्हे जहन्नुम की आग से बचना है तो ख़ुदाए वहदहू लाशरीक की इताअत करो , मैं तुम्से यही एक़रार लेने आया हुँ क्योकि अल्लाह ने मुझे तुम पर नबी मोक़र्रर किया हैं। मगर बदबख़तो ने एक न सुनी , हालांकि उन पर हैबत तारी हुई और उनका आतिश कदा गुल हो गया।
आतिश कदा के गूल होने और हज़रत नूह की इस दिलेराना गुफ़तग़ु से एक तरफ तो आतिश परसतों पर खौफ व हिरास और सरासीमगी के आसार तारी थे और दुसरी तरफ अमुरा बिन्ते हमरान नामी एक हसीन व जमील दोशीज़ा पर उन कलमात का यह असर हुआ की वह उसी वक्त ईमान ले आयी , उसका ईमान लाना था कि पुरी कौम , पुरी बस्ती ,बल्कि गिरदो नवाह मे एक तहेलका मच गया। अमुरा का ख़ौफ ज़दा बाप , उस पर इस कदर बेरहम हुआ की उसने बेटी को कैद कर के एक कमरे में बन्द कर दिया कि जब तक वह अपने इस फैल पर तौबा नही करेगी उस का खाना पानी बन्द रहेगा। वह ज़िन्दा रहे ख्वाह मर जाए , रफता रफता अमुरा का एक साल का अर्सा ग़ुज़र गया। और जब दरवाज़ा खोल कर देखा गया तो वह पहले से बहतर हालात में थी , और उसकी पेशानी मे एक नूर चमक रहा था। लोगो ने इस्तेजाबाना लहज़े में उससे पुछा कि वे साल भर तक बग़ैर खाने और पानी के क्यों कर जिन्दा रही , उसने कहा कि जब भुख और प्यास से मेरी जान लबों पर आ गयी तो जिन्दगी की कोई उम्मीद बाक़ी न रही तो मैने नूह के परवरदिगार से दुआ की और मुझे बेहतर से बेहतर खाना व पानी मिलने लगा। बा एजाज़ हज़रत नूह अ 0 मेरे कमरे में आते थे और मुझे सेरो सेराब करके चले जाते थे , इसलिए मै तनोमन्द और तन्दुरुसत हूँ , यही अमुरा बाद में हज़रत नूह की ज़ोजियत मे दाखिल हुई और उनके बत्न से साम की विलादत अमल में आयी।
बहर हाल अमूरा बिन्ते हमरान के यह मोजिज़ा नुमा वाक़ियात भी क़ाबील की अवलादों पर असर अन्दाज़ न हुए क्योकि यह पूरी क़ौम इब्तेदा ही से आतिश परस्त व बुत परस्त थी , मुस्तजाद यह कि उनसे हज़रत शीस की क़ौम के लोगों ने भी इख्तेलाफ़ कर लिया था और उनके साथ भी इन्सानियत सोज़ हरकतों और बुराईयों की तरफ़ मायल हो गये थे , आतिश परस्ती , बुत परस्ती , ज़िनाकारी , आबरु रेज़ी , शराब खोरी और बद अमली उनका मोकद्दर बन चुकी थी , फिर शैतान भी उनकी बद कारियों में उनका मोईन व मददगार था , इसलिए उस वक्त का पूरा इन्सानी मोअशरा बुराईयों और बद आमालियों के समन्दर में ग़रक़ हो चुका था।
हज़रत नूह 650 साल तक इस क़ौम की इस्लाह के लिए सरगरदां व परेशान रहे और जब ज़मीन पर उस क़ौम के गुनाहों और मासियत का बोझ ज़रुरत से ज़्यादा बढ़ गया और कोई ख़ातिर खवाह नतीजा बर आमद न हो सका तो आप ने ख़ुदा की बारगाह में बद्दुआ के लिए हाथ बलन्द किये और फरयाद की कि परवरदिगार इस क़ौम पर अपना अज़ाब नाज़िल फरमा और उन्हे नेस्त व नाबूद कर दे।
अल्लाह ने नूह अ 0 की यह फरयाद सुन ली , लेकिन उसके साथ ही जिबरईल के ज़रिये यह पैग़ाम भी दिया कि ऐ नूह अ 0 तुम अपनी क़ौम को मेरे अज़ाब की ख़बर भी देते रहो और उन्हे राहे रास्त पर आने का मौक़ा भी फ़राहम करते रहों। इस पर नूह अ 0 ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर कि की फ़िलहाल औरतों को अक़ीमा कर दिया जाय ताकि ताकि वक्ते अज़ाब बच्चे महफ़ूज़ रह सके। खुदा ने नूह अ 0 की यह ख्वाहिश पूरी की , औरतों को अक़ीमा कर दिया और उनका बच्चा जनना बन्द हो गया। इसके बाद हुक्में इलाही के मोताबिक़ हज़रत नूह अ 0 अपनी क़ौम को अजाबे इलाही के बारे मे मुत्तला करते रहे यहां तक कि एक ज़माना ग़ुज़र गया और ख़ुदा ने उन्हे कश्ती की तैयारी का हु्क्म दिया।
कश्ती की तैयारी
रवायतों में है कि जिबरईल आसमान से कुछ़ दरख्तों के पौधे लेकर आये थे जिन्हे हज़रत नूह ने लगाया , उनकी देख भाल और आबयारी की और जब 40 साल में दरख्त तैयार हुए तो उन्हें काट कर यकजा किया गया और एक सौ बीस बरस में यह अमल तीन बार दोहराया गया कि हज़रत नूह अ 0 इन दरख्तों के बीज बोते रहे और तैयारी पर चालीस साल के बाद उन्हें काटते रहे। आखिर कार खुदा का हुक्म हुआ कि ऐ नूह अ 0 इन दरख्तों से एक लाख चौबीस हज़ार तख्तें तैयार कराओ।इस हुक्में रब्बानी पर नूह अमल पैरा हुए और तक़रीबन निस्फ सदी की मेहनत और जाफिशानी के बाद जब तखतों की तादाद मोकम्मल हो गयी तो फिर हुक्म हुआ कि इन तख़तों पर तमाम अम्बियाओं के नाम लिख दिये जाए। यह काम जिबरईल की मदद से शुरु हुआ और अम्बियाओं के इस्मा ग्रामी लिखे जाने लगें , लेकिन दुसरे दिन हज़रत नूह अ 0 ने देखा कि पहले दिन जो नाम तख्तों पर लिखे जा चुके थें वह महो हो चुके है वह हैरान और परेशान हुए और दुबारा उन नामों को फिर लिखा। तीसरे दीन फिर मिट गये , यह माजरा देख कर हज़रत नूह अ 0 सख्त फिक्रमन्द थे। वही आयी ऐ नूह , तुम अम्बियाओं के नामों को लिखने का आग़ाज़ मेरे नाम से करो और मेरे हबीब (मोहम्मद) के नाम पर खत्म करों। चुनांचें इस ग़ैबी तालीम की रौशनी में जनाबें नूह अ 0 ने इबतेदा की और जब तमाम अम्बिया के अस्मा तख्तों पर लिख चुके तो आसमान से एक निदा आयी की अब कश्ती का आग़ाज़ करो। कश्ती के तमाम तख्ते जोड़ दिये गये लेकिन आखिर मे चार तख्तों की जगह फिर रह गयी। फिर जनाबे नूह अ 0 ने जिबरईल से पुछ़ा की इन चार तख्तों पर क्यो लिखा जाए जिबरईल ने फरमाया कि अम्बिया के इन तमाम अस्मा के साथ साथ जब तक अली अ 0, फातिमा अ 0, हसन अ 0, हुसैन अ 0 का अस्माए मुबारक शामिल न होगा , उस वक़्त तक कश्ती की तकमील नामुम्किन है. क्योकि तमाम अस्माए मुबारक में खुदा और उसके हबीब के नामों के अलावा यही नाम ऐसे है जो उस कश्ती को जुमला आफ़ते अर्ज़ी व समावी से महफ़ुज़ रख सकते है और उन्ही नामों की बरकत से पैग़म्बरों को अज़मत बख्शी गयी है। जनाबे नूह अ 0 ने बराए एहतराम तख्तों पर उन नामों को भी लिखा और जब चारों तख्ते कश्ती में लग गये तो परवरदिगार ने फरमाया कि ऐ नूह अ 0 अब कश्ती मुक़म्मल हो गयी।
अल्लामा मजलिसी का बयान है कि तख्तों की तराशकारी और कश्ती की तैयारी में काफी आदमीयों की ज़रुरत थी ,चुनांचे इसके लिए हज़रत नूह अ 0 ने खुदा की बारगाह में दुआ की ऐ पालने वाले मुझे कुछ़ मददगार मोहय्या कर , हुक्म हुआ कि ऐ नूह अ 0 यह ऐलान करदे की जो शख्स मेरे काम मे मदद करेगा उसके लिए मेरा परवरदिगार , लकड़ी का बूरादा सोने चाँदी में तबदील कर देगा। इस एलान के बाद लालच मे कुछ़ लोग आने लगें और कश्ती खुदा की निगरानी में जिबरईल की हिदायत के मुताबिक तैय्यार होना शुरु हो गयी।
अल्लामा जज़ाएरी बहवलए किताबुल खेराज में तहरीर फरमाते है कि रसूलल्लाह ने फरमायाः
जब हज़रत नूह अ 0 कश्ती की तैय्यारी मे मसरुफ हुए तो जिबरईल ने उन्हे कीले मोहय्या की जिनकी तादात एक लाख उनतीस हज़ार थी। हज़रत नूह अ 0 जिबरईल की हिदायत के मोताबिक उन कीलों को कश्ती के तख्तों मे पेवस्त करते रहे यहाँ तक की जब आखरी पाँच कीले रह गयी और नूह अ 0 ने उनकी तरफ हाथ बढ़ाना चाहा तो वह नूरानी हो गयी और उनसें शुआएं फूटने लगी। यह माजरा देख कर हज़रत नूह अ 0 हैरान हुए तो जिबरईल ने फरमाया कि इन कीलों से पंजतन का नाम वाबस्ता है यानी यह कीलें मोहम्मद स 0, अली अ 0, फातेमा स 0,हसन अ 0, हुसैन अ 0, के नामों से मन्सूब है लिहाज़ा ऐ नूह अ 0 पहली कील को कश्ती की दाहिनी तरफ , दुसरी को बाई तरफ , तसरी को दरमियान में , चौथी को बाई तरफ वाली कील के नीचे और पाँचवी को दाहिनी तरफ वाली कील के नीचे ठोंक दो नूह अ 0 ने ऐसा ही किया लेकिन जब आखरी कील लगाने लगें तो उनहे इस तख्ते पर खुन की तरी नज़र आई , उन्होने घबरा कर जिबरईल से पुछा कि क्या माजरा हैं जिबरईल ने वाक्या बताया जिस पर वह बहुत रोए और का़तिलाने हुसैन पर लानत की।
मोअर्ररेखीन का बयान है कि इस कश्ती की तैय्यारी मे 250 साल लगे। इस कश्ती की लम्बाई , चौड़ाई , और ऊचाँई में मोहक़्क़ेक़ीन के दरमियान इख्तेलाफ़ है। य़ाक़ूब ने तीन सौ हाथ लम्बाई और पचास हाथ चौड़ाई तहरीर की है , अल्लामा मजलिसी का कहना है कि लम्बाई तीन सौ हाथ , चौड़ाई 250 हाथ और ऊचांई 33 हाथ थी। तबरी ने 1200 गज लम्बाई और 40 गज चौड़ाई बतायी गयी है। लेकिन ये दुरुस्त इसलिए नही है कि इमाम जाफ़रे सादिक़ अ 0 का कौल है कि 1200 एक हज़ार दो सौ हाथ , चौड़ाई 800 आठ सौ हाथ और ऊचांई 80 अस्सी हाथ थी।
हज़रत ईसा अ 0 के अहद में उनके हुाएरीन ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की कि जो तुफाने नूह का हाल बयान कर सके। जनाबे ईसा ने ज़मीन से एक मुट्ठी ख़ाक उठाई और क़ाब बिन साम बिन नूह की रुह को उसमें समों कर उससे तूफ़ाने नूह का वाक़या दरयाफत किया , हज़रत ईसा ने कशती की लम्बाई पुछ़ी तो उसने बताया कि 1200 हाथ लम्बी थी और उस पर सर पोश भी था ताकि उसमें सवार होने वाला बारिश से महफ़ूज़ रह सकें।
(अजाएबुल क़सस)
तूफ़ान
उलेमा और मोअर्रेखीन ने तूफ़ान के जो वाक़यात बयान किये हैं उनका खुलासा यह है कि हज़रत नूह अ 0 की बीवि कूफें में अहानी तन्दूर में रोटियां तैयार कर रही थी जो हज़रत आदम अ 0 की बीवी हव्वा की मिलकीयत में था। चंद औरतें भी यहाँ मौजुद थी जो कश्ती और तूफ़ान का तज़किरा कर के हज़रत नूह अ 0 का मज़ाक़ उड़ा रही थीं कि अचानक तन्दूर के अन्दर एत ज़ोरदार धमाका हुआ और ज़़मीन के सीने से पानी का धारा उबल पड़ा। जो औरतें मज़ाक़ उड़ा रही थी वह यह कहती हुई भागीं की हमें जिस अज़ाब की ख़बर थी वह नाज़िल हो गया। नूह की बीवी रोटियां छ़ोड़ कर नूह की तरफ भागी और उनसे सारा वाक्या दरयाफ्त किया , वह भी दौड़ते हुए तन्दूर के पास आये और इस ख्याल से की अपने एहलो अयाल को महफ़ूज़ करले , उन्होने तन्दूर का दहाना एक बड़े पत्थर से ढ़क दिया और हुक्में इलाही का इन्तेज़ार करनें लगें। फ़ौरन हुक्म हुआ कि जिस क़दर हो सके अपने एहलो अयाल और बाईमानको लोंगों को लेकर कश्ती में सवार हो जाओ और अपने हमराह जुमला मख़लूकात का एक एक जोड़ा भी लेलो। नूह ने कहा पालने वाले इस उजलत में दुनिया भर के जानवरों और परिन्दों को कैसे जमा करु , इरशाद हुआ कि वह मेरे हुक्म से खुद तुम्हारे पास पहुचं रहे है। चुनांचे दुनिया भर के मख़लूक़ एक हवा के झोकें से हज़रत नूह अ 0 तक पहुंच गये। उन्होने सब को इस तरह सवार किया कश्ती के नीचले हिस्से में दरिन्दों को , परिन्दों को और दीगर चौपायों को रखा। दरमियानी हिस्से मे खुर्रद्दनी आशया और दीगर ज़रुरयात का सामान रखा और बालायी हिस्सें में अपने अहलो अयाल और दीगर बाईमान लोगों की एक मुखतसर सी जमाअत को ठहराया। जानवरों मे चीटी , चुंकि सबसे छोटी और उसके पायमाल हो जाने का अन्देशा था , इसलिए उसको बलायी हिस्से में रखा। एक रवायत में है कि कश्ती में जब सब जानवरों और परिन्दों को सवार किया जाने लगा तो तीतर सबसे पहले सवार हुआ। अल्लामा इसमाईल सब ज़ावारी का कहना है कि चुंकि तीतर मोहिब्बें एहलेबैत होता है। इस लिए हज़रत नूह अ 0 ने उसे सबसे पहले सवार किया।
क़ुरानी सराहत के साथ जुमला मोअर्रेख़ीन और मोहद्दसीन का बयान है कि जब तन्दूर से पानी उबलना शुरु हुआ तो हजरत नूह ने अपनी ज़ुर्रियत से फ़रमाया कि वक्त बहुत कम है लिहाज़ा तमाम लोग बउजलत कश्ती मे सवार हो जाएं इस हुक्म की तमील नूह के बेटों साम , हाम और याफिस ,नीज़ , बीवी उमूरा के साथ दीगर ने भी की जो बाईमान और मोमिन थे , लेकिन उनका एक बेटा केनान , जो नाफ़रमान और सरकश था और एक बीवी जिसका नाम दामेला था , इस हुक्म से बरी उज़जिम्मा रहे , उन्होने नाफ़रमानी सरताबी की और कहा कि यह कश्ती आप ही को मुबारक हो , हमारे लिए बुलन्द और बाला पहाड़ो की चोटियां काफी है। शायद यही केनानी सीरत थी जिस पर अमल करते हुए हजरत उमर ने रसूलल्लाह से फरमाया था कि हमारे लिए कुर्आन काफी है।
इमाम जाफ़रे सादिक़ अ 0 फ़रमाते है कि नूह के बेटे किनान ने जिस पहाड़ पर भरोसा किया था वह कोहे नजफ था जिसकी चोटियां बड़ी सर बलन्द थीं केनान का भरम खाक मे मिलाने के लिए खुदा वन्दे आलम ने इस पहाड़ को ज़र्रो मे तबदील करके हवा मे उड़ा दिया और इसकी जगह एक दरिया बहने लगा जिसका नाम “ नै ” हुआ फिर वह दरिया खुश्क हो गया , और किसी शय के खुश्क होजाने को अरबी जबान मे “ जफ़ ” कहते है इसीलिए इस मकाम को “ जफ़ ” कहा जाने लगा। फिर कसरते इस्तेमाल की बिना पर “ नैजफ़ ” रफता रफता नजफ हो गया और यह वही जगह है जहां हज़रत आदम हज़रत अली- ए- मुर्तुज़ा और नूह अ 0 की क़ब्रें हैं।
हजरत आदम के बारे मे तारीखें यह बताती है कि वह मक्के में दफन हुए थे , लेकिन तूफान के मौके पर हज़रत नूह ने उनके ताबूत को अपनी कशती मे रख लिया था , और एक रवायत मे यह है कि आप का ताबूत लहद से बुलन्द होकर पानी की सतह पर आ गया था जिसे नूह अ 0 ने अपनी कशती मे ले लिया था और तूफान खत्म होने के बाद उन्हे ऩजफ मे दफन कर दिया।
अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अ 0 की क़ब्र के बारे मे यह रवायत है कि इसे हज़रत नूह ने बादस्तेखुद तय्यार की थी और सियानी ज़बान मे एक तख्ती लिख कर इसमें रख दी थी कि इस क़ब्र को नूह पैग़म्बर ने आखि़रुज़ जमा के वसी हज़रत अली अ 0 के लिए तैयार किया है। चुनाचें हस्नैन अ 0 ने अमीरुल मोमेनीन को दफ़न किया।
मुख्तार यह है कि जब सब लोग कश्ती मे इत्मेनान से सवार हो गये तो हज़रत नूह अ 0 ने तन्दूर का दहाना खोल दिया और खुद भी दौड़ कर कश्ती में सवार हो गये। तन्दूर के मुंह का खुलना था कि ज़मीन का पानी आसमान से बाते करने लगा और आसमान का पानी जमीन के ग़रक़ाब करने लगा। देखते ही देखते कायनात ठाटें मारते हुए समन्दरो की आमाज गाह नज़र आने लगी। फिर आफताब को गहन लगा और दुनिया की रौशनी पर एक भयानक अन्धेरा मोहित हो गया। हज़रत नूह अ 0 इस अन्धेरे को देख कर फिक्रमन्द और परेशान हुए चुनांचे खुदा ने जिबराईल के ज़रिये अपने नबी की खिदमत मे दो मोती भेजे। उनमे एक दिन मे अपनी चमक से कश्ती मे उजाला करता था और दुसरा दिन में , जिससे दिन और रात का फर्क मालूम होता था और नमाज़ का वक्त पता चलता था।
तूफान का आगाज होते ही जनाबे नूह अ 0 ने कश्ती के बादबान खोल दिये थे और वह पानी की सतह के साथ साथ ज़मीन छोड़ कर आसमेन की तरफ बुलन्द हो गयी थी कि तुन्दो तेज हवाओ के झोकों ने उसे कुव्वते रफ्तार अता की और वह एक सिम्त चल पड़ी। उसने पहले दो दुनिया का एक चक्कर लगाया फिर पानी से खेलती हुई खानोए काबा के क़रीब आयी और सात मरतबा इसका तवाफ करके जिधर हवा का रुख था उधर रवाना हुई।
रवायतों से ये साबित होता है कि ख़ानए काबा तूफानें नूह में ग़रके आब नही हुआ बल्कि पानी की सतह के साथ साथ वह भी आसमान की तरफ बुलन्द होता रहा , इसलिए इसे बैतुलअतीक़ कहा जाता है।
कश्ती पूरी कूव्वत के साथ रवां दवां थी मौजों के थपड़े बुलन्द होकर गुनाहों की दुनिया और इस आसी मख़लुक की ग़रक़ आबी का तमाशा देख रहे थे कि एक मुक़ाम पर कोई इनसानी सर पानी से उभरा और दर्द नाक चीख के साथ आवाज़ आई कि अब्बा जान मुझे बचा लीजिए , शफक़ते पिदारी ग़ालिब आइ नूह ने बेटे का बाज़ु पकड़े के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि हुक्में इलाही ने वही रोक दिया। नूह अ 0 ने फरमाया कि परवरदिगार , तेरा वादा है कि तु मेरे एहल को बचाएगा , हुक्म हुआ की ये तेरे अहल से नही है तेरे अहल से वही है जो इबादत और इताअत ग़ुज़ार है और तेरे साथ कश्ती में है। मालुम हुआ कि ग़ैर सालेह अमाल की बिना पर अवलाद , अहल से खारिज हो जाती है। चुनांचे नूह अ 0 का बेटा ड़ुब गया और नूह अ 0 हुक्में इलाही के सामने कुछ़ न कर सकें। अलबत्ता मशीअत ने नूह अ 0 और उनके बेटे के दरमियान एक मौज हायल कर दी थी ताकि हज़रत नूह अ 0 अपने बेटे को डूबते हुए न देख सके।
मोअर्ररेख़ीन का कहना है कि हज़रत नूह की कश्ती करबला की सरज़मीन पर पहूंची तो गिरबाद (भंवर) में फंस गयी और ज़रे ओ ज़बर होने लगी , अन्देशा था की कही ग़रक़ न हो जाए यह कैफियत देख कर हज़रत नूह अ 0 घबरा गये और उन्होने खुदा की बारगाह में अर्ज़ किया कि परवरदिगार यह क्या माजरा है. क्या हम सब ग़रक़ हो जाएगें , निदा आयी आले मोहम्मद को अपनी नियात का ज़रिया क़रार दो और उनके वसीले से दुआ मांगो , नूह ने दुआ मागीं और कश्ती पर जब कुछ ठहराव के आसार मुरत्तब हुए तो फरमाया मेरे माबूद ये कौन सी जगह है जहाँ मेरी कश्ती भी हिचकोले खा रही है और मेरा दिल भी ड़ुब रहा है। इरशाद हुआ की ऐ नूह अ 0 ये करबला है जहां आले मोहम्मद की कश्ती खुन में ग़रक़ होगी और एक दुसरी रवायत में है जब नूह अ 0 की कश्ती क़ैद खानाए शाम के सर के ऊपर से ग़ूजरी तो उस वक्त भी वह मुतज़लज़िल व मुतलातिम हुई और नूह अ 0 ने इस मक़ाम के बारे में भी परवरदिगार से पुछा तो उन्हे जवाब मिला कि ये क़ैद खानएं शाम है। जहां ज़ुर्रियते रसूल मोक़य्यद की जाएगी।
अल्लामा मजलिसी अलैहिर रहमा का बयान है कि चलते चलते जनाबे नूह अ 0 की कश्ती का सीना जब कोहे जूदी से टकराया तो एक हैबतनाक आवाज़ बलन्द हुई और ये उस वक्त ख़त्म हुई जब जनाबे नूह अ 0 ने आले मोहम्मद को सुकून व क़रार का वसीला बनाया।
इन तमाम वाक़्यात का तसल्सुल यह बताता है कि ज़ाते इलाही के अलावा हज़रत नूह अ 0 की कश्ती के हक़ीक़ी पासबान व निगेहबान मोहम्मद अ 0 अली अ 0, फातमा स 0, हसन अ 0, हुसैन अ 0 थे। किसी की मजाल नही कि नुकूसे क़ुदसिया ख़मसा के रौशन चिराग़ो को बुझा सके।
हज़रत नूह अ 0 की कश्ती 10 रजबूल मोरज्जब को कूफ़े से रवाना हुई छः माह ज़ेरे आसमान सफर करने के बाद कोहे जूदी पर ठहरी। अहलैबेत की कश्ती भी छः माह ज़मीन पर चलती रही। नूह की कश्ती कूफे से चल कर करबला पर गिरदाब पर मुबतिला हुई और कश्तीये अहलैबेत मदीने से चलकर करबला मे नज़रे तुफाने सितम हुई , शायद इसलिए रसूल ने फरमाया हो कि मेरे अहलैबेत की मिसाल कश्तिये नूह के मानिनद है जो इसमे सवार हुआ वह निजात पा गया , और जिस ने इसे छोड़ दिया वह ग़रक हो गया।
चालीस शबाना रोज़ पानी बरसता रहा और ज़मीन से पानी उबलता रहा। जब कौमे नूह ग़रकाब होकर अपना वजूद खो बैठी तो परवरदिगार ने अजाब का सिलसिला खत्म करके तूफान के इख्तेताम का फैसला किया चुनांचे फिर ज़मीन को हुक्म हुआ कि पानी पीजा , आसमान को फरमान जारी हुआ की वह बारिश रोक दे , बस इस हुक्म के बाद ही पानी घटना शुरु हो गया कश्ती अहिस्ता अहिस्ता आसमान की बुलन्दी से नीचे उतरने लगी। क़ौस व क़जह ने ज़ाहिर होकर जब अम्न का पैग़ाम दिया तो हज़रत नूह अ 0 ने सजदाए शुक्र मे अपनी पेशानी रख दी। इस तूफान में ख़ुदा की मखलूकात मे से वही बचे जो कश्ती में सवार थे बाकी सब कुछ खत्म हो गया।
बेशतर मोअर्रेख़ीन का ख्याल है कि कोहे जूदी मूसल मे वाक़ा है लेकिन जदीद माहैरीन आसारे क़दीमा और मोहक़्क़ेक़ीन ने दलीलों की रोशनी मे यह वाज़े किया है कि मशहूर तसव्वुराती परसतान वाला कोहकाफ जो रुस में वाके है उसी का एक बुलन्द तरीन हिस्सा कोहे जूदी कहलाता है और उसकी तफसील मोतादिद कुतुबे तारीख मे भी मज़कूर है।
हज़रत नूह अ 0 तक़रीबन दो माह कोहे जूदी पर क़याम फ़रमा रहे और जब ज़मीन का पानी कद्रे ख़ुश्क हुआ तो वह कश्ती से उतरे और उन्हे भी उतारा जो उनके साथ इस कश्ती में सवार हुए थे।
मोअर्रेख़ीन की एक जमाअत का कहना है कि चरिन्द , परिन्दों के अलावा इस कश्ती मे इन्सानों की तादाद 80 थी जो औरतों और द कुलव मर्दों पर मुशतमिल थी लेकिन मेरा तहक़ीक़ी नज़रिया है कि यह तादाद कूल 72 नुफूस पर मुशतमिल थी जिसकी मुनासेबत करबला के उन शहीदों से है जो अपनी मिसाल आप थे मेरे इस नज़रिये को अल्लामा जलालुद्दीन सिवती के इस कौल से भरपूर तक़वियत हासिल होती है जिसमें मौसूफ़ ने इशारा किया है कि कश्तीये नूह अ 0 में बेहतरीन मोमिन सवार थे।
हज़रत नूह अ 0 से शैतान की गुफ्तगू
मोतबर रवायत मे है कि नूह अ 0 जब कश्ती से उतरे और उन्होने इतमेनान की सांस ली तो उन्हें इब्लीस उनकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ और उसने कहा ऐ नूह अ 0 आप का मुझ पर बहुत बड़ा एहसान है। नूह अ 0 ने फरमाया , आखिर मेरा वह कौन सा अमल है जो तेरे नज़दीक एहसान का सबब बना. इबलिस ने जवाब दिया कि अल्लाह के नबी आप ने खुदा से अपनी क़ौम के लिए बद-दुआ करके तमाम काफिरों को एक साथ अज़ाब की आग में झोंक दिया और वह इस आग में फना होकर सीधे जहन्नुम की आग में चले गये और दर हक़ीक़त मेरा यही दिली मक़सद था। अगर ऐसा न होता तो मुझे ख़ौफ़ लाहक़ रहता कि आप की तबलीग़ कहीं इन पर असर अन्दाज़ न हो जाए और वह कहीं इमान न क़बूल कर लें। ऐ नूह अ 0 आप का यह एहसान मुझ पर कम नही है कि आप ने मुझे उऩके बहकाने से निजात दे दी। चुनांचे इस एहसान के बदले में मैं आप को यह बताना चाहता हूँ की वह मवाके कौन कौन से है कि जिन मौक़ो पर मैं इन्सान पर क़ाबू हासिल करके उसे ज़ेर करता हूँ। हज़रत नूह अ 0 ने फ़रमाया कि जल्द बता कि तेरी क़ुरबत से मुझे छुटकारा मिलें। इबलिस ने संजीदगी से बताना शुरु किया कि पहला मौक़ा तो वह है कि जब इन्सान गुस्से की हालत में होता हैं , दुसरा मौक़ा तो वह है कि जब दो अजनबी मर्द और औरत तन्हाई मे होते हैं और तीसरा मौक़ा वह है कि जब कोई शख्स दो आदमियों के दरमियान फैसला करता तो में फैसला करने वाले शख्स से इनतेहाई क़रीब होता हूँ। फिर इबलिस ने कहा कि ऐ नूह मेरी दो बातें और सुन लिजिए अव्वल यह कि हसद और ग़ुरुर से हर आदमी को बचना चाहिए क्योंकि इसी हसद और गुरुर की वजह से में मलउन और मतऊन क़रार दिया गया , दूसरे यह कि इन्सान को हिर्स और तमा से दूर रहना चाहियें क्योंकि हिर्स और तमा ही की बदौलत हज़रत आदम जन्नत से निकाले गये। यह कह कर इबलीस हज़रत नूह अ 0 की निगाहों से ओझल हो गया।
हज़रत नूह अ 0 की रहलत
मुअर्रेख़ीन का कहना है कि जब हज़रत नूह अ 0 की रेहलत का वक्त आया , उस आप धूप मे बैठें थे कि मलाकुल मौत का वरुद हुआ आप ने ख़न्दापेशानी से उनका इस्तेक़बाल करते हुए फ़रमाया कि क्या इतनी इजाज़त है कि मै धूप से उठ कर साए मे आये और बैठ जाऊँ. कहा , हा इजाज़त है , चुनांचे जब हज़रत नूह अ 0 साए में आये मलकुल मौत ने अपना काम शुरु किया तो आप से पुछा कि ऐ अल्लाह के नबी आप ने बड़ी तवील उम्र गुज़ारी है , अब यह बताइये कि आप की नज़र मे मुद्दते हयात क्या मायने रखती है. फ़रमाया , बस इतनी की धूप से उठ कर साए मे आ गया हूँ। इसके बाद मलकुल मौत ने रुह क़ब्ज़ की और अल्लाह का यह नबी हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गया।
अबू मोअन्निफ लूत बिन यहया खज़ाई अपनी तहक़ीकी किताब कंजूल निसाब में हज़रत नूह आ 0 की रेहलत के बारे में लिखते है कि हज़रत नूह अ 0 कही जा रहे थे कि रास्ते में उन्होने देखा कि चार आदमी एक कब्र की तैयारी में मसरुफ़ है , नूह ने उन्से पुछा कि यह क़ब्र किसकी है. जवाब मिला की एक बन्दाए ख़ुदा की है , फरमाया मेरी कोई ख़िदमत दरकार है. कहा कि आप इस क़ब्र मे लेट जाए तो हम इस बन्दाए ख़ुदा के तुलो अर्ज़ का अन्दाज़ा कर ले। हज़रत नूह अ 0 इस कब्र में लेट गये और वहीं उन्की रुह क़ब्ज़ कर ली गयी। अबू मोअन्निफ़ कहते है कि वह चारों अशखास , जिबराईल अलैहिस्सलाम है मिकाईल अ 0 इसराफ़ील अ 0 और इज़राईल अ 0 थे।
रवायतो में यह भी है कि हज़रत नूह अ 0 को उस मुकाम पर दफ़न किया गया जहाँ उन्होने तूफान के बाद हज़रत आदम के ताबूत को दफ़न किया था। या जहाँ बाद में अमीरुल मोमनीन हज़रत अली अ 0 दफ़न हुए।
अल्लामा मजलिसी अलैहिर्रहमा मोतबर रवायतो के हवाले से रक़म तराज़ है कि हज़रत अली अ 0 ने वक़्ते शहादत अपने फ़रज़न्दों इमामे हसन अ 0 और इमामें हुसैन अ 0 से यह फरमाया था कि मेरे जनाज़े के अगली सिम्त तुम लोग हाथ न लगाना जिस तरफ भी वह जाए उसे जाने देना और जहां ठहर जाए वहां रखकर ज़मीन से मिट्टी हटाना एक क़ब्र बरामद होगी उसमें मेरे जनाज़े को दफ़न कर देना। चुनांचे अमीरुल मोमनीन का जनाज़ा चलते चलते एक मुकाम पर रुक गया और वहा की मिट्टी हटायी गयी तो एक क़ब्र बरामद हुई जिसके अन्दर एक क़तबा भी रखा हुआ था और उसमें सरबानी ज़बान में तेहरीर था कि इस कब्र को हज़रत नूह अ 0 ने वसी ए मुस्तेफा हज़रत अली अ 0 इब्ने अबुतालिब के लिए तूफाने नूह अ 0 से सात सौ साल पहले तैयार किया है। मुस्तानद रवायतों से यह साबित है कि हज़रत अली अ 0 नज़्फ़े अशरफ में दफ़न है और आप के सरे मुबारक से मुलहक़ हज़रत नूह अ 0 और हज़रत आदम अ 0 की क़ब्रे हैं.
इमामे जाफ़रे सादिक़ अ 0 फ़रमाते है कि हज़रत नूह आ 0 850 बरस की उम्र में मबऊस हुए , 650 साल उन्होने कारे तबलीग़ अन्जाम दिया , 200 बरस कश्ती तैयार की और तूफान के बाद 500 बक़िया हयात रहे। इस तरह हज़रत नूह अ 0 की उम्र 2500 बरस की हुई है।
हज़रत जाफ़रे सादिक़ अ 0 से यह रवायत भी है कि खुदा ने हज़रत नूह अ 0 को बज़रियाए वही इस अम्र से मुत्तला फरमां दिया था कि आप के बाद ज़ालिम व जाबिर सलातीन बर सरे इक़्तेदार आएगें और जब्र व तशद्दुद और ज़ुल्म व जौर का ग़लबा होगा लिहाज़ा आप अपने फ़रज़न्द साम को जब अपना वसी मुक़र्रर करें तो यह ताकीद भी फरमा दें कि जब तक तुम में हूद नामी एक शक्स ज़ाहिर न हो सबरो जब्त के साथ ज़िन्दगी बसर करना चुनांचे हज़रत नूह अ 0 ने उस अमरे इलाही से अपने बेटे साम को मुत्तला किया और साम ने अपनी क़ौम को बाख़बर किया।
तहक़ीकात व इन्कशाफ़ात
पाकिस्तानी मोहक्किफ हकीम सैय्यद महमूद गिलानी अपने तहक़ीक़ी मक़ाले में तहरीर फरमाते है कि 1651 ईसवी की जुलाई में रुसी महरीन आसार क़दीमा की एक टोली बादी ए क़ाफ़ में देखभाल कर रही थीं और ग़ालेबन किसी नई कान की तलाश में मसरुफ़ थी। कि एक मुक़ाम पर उसे लकड़ी के कुछ बोसिदा टुकड़े नज़र आये ग्रुप आफिसर ने उस जगह को कुरेदना शुरु किया तो मालूम हुआ कि बहुत सी लकड़ीया संगलाख ज़मीन में दबी हुई हैं। माहरीन ने चन्द सतही अलामत से अन्दाजडा कि यह लकड़ीया कोई ग़ैर मामूली और पोशीदा राज़ अपनें अन्दर रखती है। उन्होने उस मक़ाम की खुदाई निहायत तवज्जो से कराई , बहुत सी लकड़ीया और दीगर अशिया बरामद हुई , लकड़ी की एक मुस्तातील तावीज़ नुमा तख्ती भी बोसीदगी और कुहन्गी इख्तेयार कर चुकी है लेकिन चौदाह इन्च तूल और दस इन्च अर्ज़ रखनें वाली यह तख़्ती इक़तादी तग़ैसात से महफ़ुज़ है। 1652 ईसवी के आख़िर मे माहेरीन ने अपनी तहक़ीकात को लिबासे तकमील पहनाकर यह इन्केशाफ़ किया कि मज़कुरा लकड़ी हज़रत नूह अ 0 की उस मारुफ़ कश्ती से ताल्लुक़ रखती है। जो कोह क़ाफ़ की एक चोटी (जूदी) पर आकर ठहरी थी जिस पर किसी कदीम ज़बान मे चन्द हुरुफ कन्दा है उसी में लगी थी।
जब यह तहक़ीक हो चुकी की काफ़ से बरामद होने वाली लकड़ीयां वाक़ई कश्तीए नूह अ 0 की है तो अब यह अम्र तशना रह गया कि पुरअस्रार चूबी तख्ती और उसपर लिखे हुए हुरुफ की हक़ीक़त क्या है।
रुस की सोतियत हुकूमत के ज़ेरे एहतेमाम इसके रिसंर्चिग डिपार्टमेन्ट नें मज़कूरा कशती की तहकीक के लिये माहेरीने आसारे क़दीमा का एक बोर्ड क़ायम किया , जिसने 27 फरवरी 1653 से अपना काम शुरु कर दिया इस बोर्ड के अराकीन मुन्दरजाज़ील थें।
1 सौले नौफ प्रोफेसर शोबाए लिसानियात मासको युनिवर्सिटी ( 2) ईफहाने खीनू , माहिरे सनेसे सने क़दीमा , लूलूहान कालेज चाइना ( 3) मीशाइन , लव फ़ाजिग आफीसर आला आसारे क़दीमा , (4) तानमोल गौरफ , उसतादे लिसानियात कैफरद कालेज ( 5) डीराकीन , माहिर आसारे क़दीमा लाएनन इन्सिटयूट ( 6) एम एहमद कोलार्ड , नाज़िम जिटकोमन रिसर्च एसोसिएशन ( 7) मेजर कोलोफ , निगरा दफतर तहक़ीक़ात मोताल्लिका एसटालिन कालेज।
इन , सातों माहेरीन ने अपनी तहक़ीक़ात पर पूरे आठ महीने सर्फ करनें के बाद पुरइसरार तख्ती से मोताल्लिक यह इनकेशाफ किया कि जिस लकड़ी सें नूह अ 0 की कश्ती तैयार हुई थी , उस लकड़ी से यह तख्ती भी बनाई गई है और नूह अ 0 ने इसको अपनी कश्ती मे तबर्रुक और तक़द्दुस के तौर पर हुसूले अम्नो आफियत और अज़दियाद बरकत व रहमत के लिए लगाया था।
इस तख्ती पर कन्दा हूरुफ़ को रुसी माहेरीन ने आठ माह की मग़जमारी और दिमागी काविशो से बमुशकिल तमाम पढ़ा और रुसी ज़बान में इसका तर्जुमा किया। फिर मिस्टर एन एफ माकिस माहिरे अलसने क़दीमा बरतानिया (मानचिस्टर इंग्लैड़) ने इस रुसी ज़बान के तर्जुमे को अंग्रेज़ी ज़बान में मुन्तकिल किया और उसका उर्दू तर्जुमा यूं है कि (ऐ मेरे खुदा , मेरे मददगार अपने मक़द्दस नुफूस के तुफैल में अपने रहमो करम से मेरा हाथ पकड़ , मोहम्मद अ 0 अली अ 0, फातेमा अ 0 हसन अ 0 हुसैन अ 0 अज़ीम तरीन और वाजिबुल एहतेराम है तमाम दुनिया इन्ही के लिए क़ायम की गयी है इन नामों की बदौलत मेरी मदद कर तू सिराते मुस्तक़ीम की तरफ रहबरी करनें वाला है।)
गैलानी मौसूफ़ लिखते है कि जिस वक़्त यह इबारत मन्ज़रे आम पर आयी तो मोलाहदा ज़नादेका और कुफ्फारों मुन्केरीन की आँखें खुल गयी और उन्हे शदीद हैरत मे मुब्तेला इस बात ने किया कि कश्ती की तमाम लकड़िया तो खुर्दा और बोसीदा हालत में बरामद हुई मगर नुफ़ूसे खमसा के अस्माए गिरामी वाली यह तख्ती हज़ारहा साल गुज़रने पर भी मुकम्मिल महफ़ूज़ रही और तग़य्यूरात उसको कोई गज़न्द न पहुंचा सके। यह तख्ती (आज भी) रुस के मरकज़े आसारो तहक़ीकात (मासको) में हिफ़ाज़त से रखी हुई है।
हज़रत हूद अ 0
हज़रत हूद अ 0 हज़रत नूह अ 0 की सातवीं पुश्त में मुतावल्लिद हुए। इनका शजराए नसब हूद बिने रियाह बिने जादब बिने आद बिने साम बिनें नूह अ 0 पर तमाम होता है। तबरी ने वालिद का नाम शालिख़ बताया है , मुम्किन है कि अब्दुल्लाह का दुसरा नाम शालिख़ रहा हो।
जनाबे हूद अ 0 खसलत और आदत और शक्ल और सूरत मे अपने जद हज़रत आदम से बहुत मुशाबेह थे। यह नूरानी चेहरा , खूबसूरत ख़दोखाल सिड़ौल जिस्म और बलन्द और बाला क़दोक़ामत के मलिक थे , दाढ़ी घनी और दराज़ थी।
ख़ुदा ने उन्हे क़ौमे आद (जो मुल्के यमन और किजडरे मौत में इलाक़ाए एहकडाफ की तरफ बकसरत आबाद थी) की हिदा.त के लिए बी की हैसियत से दुनिया में भेजा।
इस क़ौम के लोग इन्तेहाई तनों मन्द जसीम , ताकतवर , सरकश मग़रुर बदतीनत , बदकिरदार और माफरमान थे। बुत परस्ती और बातिल परस्ती उनका बुनियादी अक़ीदा था और उसी को वह दीन , ईमान और मज़हब समझते थे। उनके क़द चालीस चालीस पचास पचास गज़ के होते थे और उनके सीने दस दस गज चौड़े होते ते यह ज़मीन पर ख़ड़े होकर ऊंचे ऊंचे पहाड़ो की बड़ी बड़ी चट्टानों को अपनी जगह से खिसका देते थे। यह लोग बड़ी बड़ी ज़मीनो के मालिक थे। इनका पेशा ज़िराअत और बाग़बानी था। इनके बाग़ात इन्तेहाई खुबसूरत और सरसब्ज़ और शादाब होते थे और उसमे खजूर व दीगर मेवें जात की पैदावार बकसरत होती थी। उनका रहन सहन शाहाना था। उनके मकान पत्थरों के बने हुए सेह मन्ज़िला और चहार मन्ज़िला होते थे।
हज़रत हूद अ 0 ने जब अपनी उम्र की चालीसवीं मन्ज़िल में क़दम रखा तो खुदा ने उनहे , इसी गुमराह व बरगशता क़ौम पर मबूस किया और उसके साथ ही हज़रत हूद अ 0 ने अपनी मन्सबी ज़िम्मेदारीयों के तहत कारे तबलीग़ की इब्तेदा की , उन्होने कौमे आद के लोगो को समझाया कि तुम लोग उस खुदा की इबादत करो जिसने तुम्हें पैदा किया है और जिसकी तरफ तुम्हें पलट के जाना है। उस खुदा की इताअत करो जो तुमहारी कामरानियों को ज़रिया और आरजुओं की मन्ज़िल है , उस खुदा के सामनें सरे जियाज़ खम करो जो तुम्हारे मालो दौलत मे इजाफा करने वाला है। ऐसे खुदाओं की परस्तिश से क्या फ़ायदा , जो न तुम्हें कुछ दे सकते है और न तुम्हारे किसी काम आ सकते है।
यह पहला मौक़ा था कि अपने ख़ुदाओं के बारे मे हज़रत हुद की ज़बान से खिलाफे उम्मीद इस किस्म के कलमात सुन कर बुत परस्तों के बातिल अक़ीदो पर एक कारी ज़र्ब लगी जिससे ख़िजिल होकर उन लोगों ने जनाबे हूद अ 0 का मज़ाक उड़ाया और उन्हे बुरा भला कहा।
इसके बाद एक दूसरे मौक़े पर जब कौमे आद के बहुत से सरदार एक जगह इकठ्ठा थे तो हज़रत हूद आ 0 भी वहां जा पहुंचे और उन्हें दावते हक़ दी सरदारों ने कहा ऐ हूद अ 0 पहले तुम अच्छे भले थे अब तुम्हे यह क्या हो गया है , जनाबे हूद अ 0 ने फ़रमाया अल्लाह ने मुझें मन्सबे नबूवत पर फायज़ करके तुम्हारी इस्लाह के लिए मुक़र्रर किया है। बस यह सुन्ना था कि वह लोग उन पर झपट पडे उन्हे जदो कोब किया और इस बेदर्दी से गला घोटा कि जनाबे हूद अ 0 बेहोश हो गये। एक दिन एक रात की मुसल्सल बेहोशी के बाद जब उन्हे होश आया तो उन्होने खुदा की बारगाह में फरयाद की और कहा। पालने वाले तूने देखा कि इन बदबख्तों ने मेरे साथ क्या ज़ुल्म किया है। हुक्म हुआ कि ऐ हूद अ 0 तुम मलूल और रंजीदा न हो और मोहकम इरादों के साथ इसी तरह कारे तबलीग़ जारी रखो आज से मैने तुम्हें वह रोब , वह दबदबा ,वह क़ुव्वत और वह हैबत अता करदी है कि आइन्दा यह लोग तुम्हारी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी नही कर सकतें। हज़रत हूद अ 0 को अपने खुदा की इन बातों पर पुरा पुरा एतमाद और भरोसा था इसलिए वह फिर बेखौफ़ व ख़तर उन काफ़िरों के दरमियान गये और उन्हों राहे हक़ की दावत दी। लोगों ने कहा , ऐ हूद अ 0 पहली मार में तुम बच गये लेकिन इस बार तु्म्हे ख़त्म करके ही दम लेगें , वरना अपनी इस तबलीग़ से बाज़ आ जाओं। हूद अ 0 ने फरमाया कि यह तुम्हारे हक़ में बेहत्तर होगा कि तुम अपने साब़िक़ा गुनाहों की तौबा कर लो और सीधे रास्ते पर आ जाओ वरना मेरा खुदा जहां रहीम व करीम है वहां क़हार व जब्बार भी है। हज़रत हूद अ 0 की इस गुफ़त्गू में वह एतमिनान व दबदबा था कि मुलहदीन के दिलों में वह खोफ पैदा उआ कि वह वहां से भाग खड़े हुए और अपनी क़ौम के सरदारों से मारा माजरा बयान किया , चुनांचे एक दिन पूरी क़ौम एक मरकज पर जमा हुई और यह तय पाया कि सब लोग एक साथ मिल कर हूद अ 0 को क़त्ल करदें चुनांचे इस इरादे से वह लोग हूद अ 0 के पास पहुंचे और चाहा कि हमला करके उन्हे क़त्ल कर दें , हज़रत हूद अ 0 ने हालात की नज़ाकत को महसूस किया और एक ऐसा नारा बलन्द किया कि सब के सब दहशत ज़दा होकर मुंह के बल ज़मीन पर गिर पड़े।
इन वाक़ियात को मोतबर रावियों के ज़रिये बहुत से उलेमा और मोअर्रेखीन ने लिखा है। बहरहाल हज़रत हूद अ 0 की तबलीग़ इधर जारी रही और उधर उसके रददे अम्ल में क़ौमे आद के लोगों की सरकशी और नाफ़रमानी बढ़ती गयी चंन्द अफराद के अलावा किसी ने इमान कु़बूल नही किया हांलांकि जनाबे हूद अ 0 इस कौम को हर मन्जिल में मोहकम दलीलों के ज़रिए इस कौम के लोगों को बराबर शिकस्त देते रहें और शिकस्त के नतीजे में यह लोग हज़रत हूद अ 0 को साहिर जादुगर और न जाने क्या क्या कहते रहें।
जह हज़रत हूद अ 0 ने 760 साल तक तवील तबलीग़ी कोशिशों के ज़रिये हुज्जत तमाम कर ली और पानी सर से ऊंचा हो गया तो आपने परवरदीगार से इनपर अज़ाब नाज़िल करने की इस्तेदुआ की।
चुनांचे सबसे पहले ख़ुदा ने इस कौम के लोगों पर चीटियों तो मुसल्लत किया जो इनकी नाक व कान के ज़रिये हलक़ के अन्दर उतर जाती थी और काट काट कर इनहें मौत के हमकिनार कर देती थीं। आखिर कार तंग आ कर इन लोगों ने शहरों की सुकूनत तर्क कर दी और अपनी जान बचाने की गरज़ से माल व पता छोड़ कर दुसरे इलाकों में चले गयें। इस आफत नागहानी के बाद भी जब लोगों की आँखे न खुल सकीं और वह वदस्तूर अपने मसलक पर अड़े रहे तो खुदा ने इन्हें कहत मे मुबतेला किया क्योंकि इनकी ज़िन्दगीयों और ऐश , कोशिशयों का सारा दामोदार ज़राअत पर था। कहत ने जब इन्हे फाका कशी के दहाने पर ला कर खड़ा कर दिया और वह भुखों मरने लगे तो क़ौम के सरदारों ने एक वफ़द मर्सद बिन साद बिन अफीर की क़यादत में हज़रत हूर के पास रवाना किया कि वह इनसे मिलकर बारिश के लिए दुआ का तालिब हों चुनांचे वफ़द हज़रत हूर की खिदमत में हाज़िर हुआ और इन्की गुफ्तगू से मुतास्सिर हो कर पहले अल्लाह की वहदानियत और हूद की नबूवत पर ईमान लाया फिर उसने कहा कि ऐ अल्लाह के नबी आप ख़़ुदा से दुआ कीजिए कि वह हमें इस क़हत से निजात से निजात दे।
हज़रते हूद ने बारिश के लिए दुआ की , और फरंमाया कि परवरदिगार इस गुमराह कौम को एक मौक़ा और दे जवाब मिला कि एै हूद इनसे कह दो कि बस यह आख़री मौक़ा और हैं। ग़रज़ यह कि हज़रत हूद ने इनको हुकमें इलाही से आगाह किया और यह मुजदा सुनाया कि जाओ तुम्हारे शहरों में बारिश होगी। चुनांचे जब वफ़द वापस गया तो उनके शहरों में ऐसी बारिश हुई कि ख़ुश्क ज़मीनें सेराब हो गयीं और सुखी हुई खेती फिर लहलहाने लगी। बाग़ात सरसब्ज़ो शादाब हो गये। लेकिन इस एहसान फरामोश क़ौम के दिल में न हज़रते हूद के लिए कोई जज़बा पैदा हुआ और न उनके तरज़े अमल में कोई तबदीली वाके हुई। बल्कि खुदाए वहदहू लाशरीक के मुक़बिलमें उसकी नाफरमानियां जुरअतें जसारतें और हिम्मतें कुछ और बढ़ गयी लेकिन परवरदिगार इन्हे मोहलत देता रहा और जब यह क़ौम किसी सूरत से राहे रास्त पर न आयी तो मशीयते इलाही को जलाल आ गया और हज़रते हूद को यह हुक्म हुआ कि इन्हें मुकम्मल आज़ाब की खबर दे दो।
इस आख़री अज़ाब की इब्तेदा यूं हुई कि ख़ुदा वन्दे आलम ने इस क़ौम के चारो तरफ रेत व बालू के बुलंद व बाला दीवारें खड़ी करके इसके अंदर इनहें महसुर कर दिया ताकि कोई शख्स राहे फरार इकतेयार न कर सके। अल्लामा मजलिसी अर 0 तहरीर फरमाते हैं कि इस क़ौम के अफराद रेत व बालू के टीलों को हटाते थे मगर वह फिर इनके गिर्द और ऊंचे हो जाते थे और इन टीलों से यह आवाज़े आती थीं ऐ हूद तुम फिक्र न करो यह टीले इनके लिए अज़ाब बन जायेंगे। फिर खुदा ने हवाओ को हुक्म दिया कि वह इस कौम का काम तमाम कर दें। चुनांचे ऐसी तेज़ व तुन्द हवायें चलीं कि जिसने दरख्तों को जड़ो से उखाड़ फेका , पहाड़ो से बड़े बड़े पत्थर आसमान की तरफ बलन्द होते और ज़मीन के सीनों में धंस जाते थें। लेकिन चुंकि हवा इन्तेहाई तेज़ी व शिद्दत के साथ ज़मीन के अन्दर से निकल रही थी। लिहाज़ा वह इन पत्थरों को गेंद की तरह फिर आसमान की तरफ उछाल देती थी। मोअर्रेखीन का बयान है कि यह हवा जो अज़ाब की शक़्ल में क़ौमे आद पर मुसल्लत हुई थी एक हफता रात व दिन चलती रही। यहां तक की पुरी क़ौम नेस्तोनाबुद हो गयी। इनके बाग़ात व मकानात सब खा़क में मिल गये। और पत्थरों के बड़े बड़े किले रेत की शक्ल में तब्दील हो गये बाज़ रवायतों में है कि यह हवा क़ौमें आद के लोगों को ज़मीन व आसमान के बीच बुलन्द करती थी और ऊपर से इस तरह पटकती थी कि इनके जिस्मों की हड्डियां रेज़ा रेज़ा हो जाती थी।
अल्लामा मजलिसी का कहना है कि ज़मीन अहक़ाफ में अब भी क़ौमे आद के मकानात और इनकी हड्डियों के ढांचे रेज़ो की शक्ल में मौजूद हैं। इस हवा का नाम बादे अक़ीम है जो इन्तेहाई तेज़ व तुन्द होती है और जब यह चलती है तो तमाम नबातात को जला कर खाक कर देती है। क़ौमे आद को जडातुल आमाद भी कहा जोता है। क्योंकि इन्होंने पहाड़ो से बड़े बड़े सुतून तराश कर अपने बुलंद मकानों में लगाये थे। इस क़ौम की आबादी वाले इलाकों को एहकाफ़ इसलिए कहा जाता है कि यह ख़ित्ता रेगिस्तानी था और अहक़ाफ के माने रेत हैं और यह अज़ाब क़ौमे आद पर चुंकि चहार शम्बा को नाज़िल हुआ था। इसलिए ख़ुदा ने इसको रोज़े नहस मुसतमिर किया है। जब मोतसिम का दौर आया तो उसने इस एलाक़े के एक मक़ाम बर्तानिया में एक कुंआ खुदवाया मगर 300 गज़ खुदवाई के बावजुद इसमें पानी न निकला आखिर तंग आकर इसने खुदाई बन्द कर दी। और अपना इरादा तर्क कर दिया फिर जब मुतावक्किल का ज़माना आया तो इसने इस कुऐं की अस्सरे नौ ख़ुदाई शुरु करायी।
चुनांचे ख़ुदाई करते करते एक पत्थर की चट्टान नज़र आयी और जब इसको तोड़ा गया तो इसके अंदर से हवाएं सर्द का झोंका बाहर आया जिसने तमाम लोगों को हलाक कर दिया और जितने भी इस कुऐं के आस पास थे सब के सब मौत के घाट उतर गये। जब यह ख़बर मुतवक्किल को मालूम हुई तो वह सख्त हैरान हुआ और उसने तमाम उलमा को जमा करके उइनसे इसके बारे में दरियाफत किया लेकिन कोई कुछ न बता सका। आखिर कार इमामे अली नक़ी को सारे हालात से आगाह किया तो आपने तहरीर फरमाया कि यह जगह कौमे आद के शहरों की है। जो हवाएं तुन्द से हलाक हो गये इसलिए कि जब खुदा ने हज़रत हूद अ 0 को उनकी तरफ भेजा तो उन्होने तकज़ीब की और ख़ुदा की नाफरमानी करते रहे तो खुदा ने उन पर हवा का अज़ाब मुसल्लत किया जिसने उनकी पूरी क़ौम को हलाक कर दिया। हज़रते हूद अ 0 के साथ वही लोग इस अजाब से महफूज़ रहे जो ईमान कुबूल कर चुके थे।
रवायतो से यह पता भी चलता है कि वक्ते अज़ाब हज़रते हूद ने परवरदिगार के हु्क्म से एक बहूत बड़ा हेसार खैंचा था और जो लोग अल्लाह की वहदानियत पर ईमान ला चुके थे इन्हे लेकर वह इसी हिसार में दाखिल हो गये थे। हज़रते इमामे अली अ 0 का कौल है कि हवा की पाँच किस्में है जिनमें से एक का नाम बादे अक़ीम और मे इस की शर से ख़ुदा की पनाह तलब करता हुँ तारीखों की किताबों से यह पता तो चलता है कि हज़रते हूद अ 0 ने 760 सालों तक कारे तब्लीग़ अन्जाम दिया लेकिन यह पता नही चलता कि आपकी वफात के वक्त आप की मजमुई उम्र क्या थी और मुफस्सेरिन व मोअर्रेखीन के दरमियान इस अम्र मे इखतेलाफ है कि आप कहा दफन हुए बाज़ का बयान है कि हज़रे मौत के किसी ग़ार में है। बाज़ का कहना है कि मक्के में हजरे इसमाइल के आस पास मदफुन है।
हज़रत इमामे हसन अ 0 का क़ौल है कि मेरे वालिद हज़रत अली अ 0 ने बादे अज्ज़रबत मुझसे फरमाया था कि मुझको नजफ में मेरे भाईयों हूद और सालेह के दरमियान दफन करना।
इरमें ज़ातुल - एमाद की हक़ीक़त
शेख तुसी और इब्ने बाबुबिया का बयान है कि एक शख्स अब्दुल्ला बिन कलाबा का उँट खो गया था। वह इस अदन के सहराओं और बयाबानो मे तलाश करता फिर रहा था कि अचानक उसकी नज़र एक शहर पर पड़ी जो खुबसुरती में अपनी मिसाल आप था। इस शहर के चारो तरफ एक फसील थी जो बेश कीमत जवाहेरात से मुज़ैयन थी। इस फसील के अन्दर बहुत से कस्र बने थे और उन कस्रो पर उंचे उंच परचम लहरा रहे थे।
अब्दुल्ला बिन क़लाबा शहर के क़रीब आया और फ़सील के साये में मुक़ीम हो गया। वह तीन रोज़ तक वहां क़याम पज़ीर रहा लेकिन उसने न तो किसी को शहर के अन्दर जाते देखा और न शहर के बाहर आते देखा। चुनांचे उसको यह जुस्तु जु हुई कि आखिर यह माजरा क्या है और इस शहर की खामोशी का राज़ क्या है। इसने शहर मे दाखिल होने का इरादा किया और तलवार नियाम से बाहर निकालकर फ़सील के किनारे किनारे एक तरफ चल पड़ा। थोड़ी दुर चलने के बाद इसे दो बुलन्द क़ामत दरवाज़े नज़र आये जो इन्तेहायी खुश्बुदार लकड़ी से बने थे। और इन्हे ज़र्द और सुर्ख रंग के याकूत से मुरस्सकिया गया था। अब्दुल्ला यह हाल देखकर हैरत व इस्तेजाब के आलम में कुछ देर चुप चाप खड़ा रहा। फिर एक दरवाज़ा खोलकर अन्दर दाखिल हो गया था। यह देख कर सख्त तअज्जुब में मुब्तेला हुआ वहां जितनी भी इमारतें है सब की सब याकूत के सुतूनों पर क़ायम है और हर इमारत पर एक बाला खाना है। जो तेला व नुक़रा मखारीद याकूत व ज़मर्रुद से बनाया गया है और इमारतका फर्श मुश्कओ अम्बर से बना है लेकिन किसी मतानफ़िस का दूर दूर तक पता नहीं है। वह यह वीरानी देख कर कुछ खौफ़ ज़दा हुआ फिर इसने इन इमारतों के अतराफ में नज़र डाली बहुत से चमन व खुबसुरत बाग़ात दिखायी दिये। जो फूलों और फलों से लदे हुए थे और जां बजां दूध की तरह साफ व शफ्फाफ नहरे जारी थी। ग़र्ज़ कि मोतियों और ज़ाफरान व मुशको अम्बर से अपना दामन भरा और खामोशी से बाहर आ गया। दुसरे रोज़ वह अपने नाक़े पर सवार हुआ और जिधर से आया था। उधर रवाना हो गया।
जब अब्दुल्ला अपने घर पर पहुंचा तो उसने सारा माजरा लोगों से बयान किया जिसे सुनकर लोग हैरत ज़दा हो गयें। रफता रफता यह ख़बर माविया तक पहुंची। तो इसने हाकिमे सनआ के पास अपना एक क़ासिद रवाना किया और अब्दुल्ला बिन क़लाबा को तलब किया जब वह आया तो माविया ने ख़लवत में इससे सारा हाल मालूम किया अब्दुल्ला ने जो कुछ अपनी आंखो से देखा था बयान कर दिया। फिर माविया ने क़ाबुल अहवार नामी एक शख्स को तलब किया जो साबेका बातों का इल्म रखता था। जब का़ब आया तो माविया ने इससे पूछा कि क्या तुमने ऐसे किसी शहर का हाल किसी से सुना या किताबों में पढ़ा है जो सोने और चाँदी और जवाहरात से बना हो और इसकी इमारतें याकूत व ज़र्मरुद के सुतूनों पर क़ायम हो और इसके अन्दर दूध की तरह साफ व शफ़फ़ाफ नहरे जारी हों। काब नें कहा हां इस शहर को शद्दाद पिसरे आद ने बनाया था और इरमें ज़ातुल माद यही है जिसका तज़केरा ख़ुदा ने कुराने मजीद में किया है और इसके वस्फ़ में कहा है कि लम युख़लोको मिसलोहा फिल बेलाद यानी इस शहर का मिस्ल और कोई शहर नही है। माविया ने कहा कि इसका मुफस्सल हाल बयान करो। इसने कहा कि आद क़ौमे हूद से था। इसके दो बेटे थे। एक का नाम शदीद था और दुसरे का नाम शद्दाद था जब आद ने रेहलत की तो शद्दाद बादशाह हुआ और ख़ुदा ने सल्तनते अज़ीम इसको अता की।
शद्दाद को किताबों के मुतालेआ का बेहद शौक था चुनानंचे जब इसने बहिश्त का ज़िक्र पढ़ा और इसकी इमारतों के कसरों के हालात से आगाह हुआ तो इसने हुक्म दिया कि खुदा की बेहिश्त के मुका़बले में वैसी ही बेहिश्त मेरे लिये दुनिया में तैयार की जाये। सौ आदमी इसके बनाने पर मामूर हुए और हर आदमी को उसके हज़ार मद्दगार मोहय्या किये गये। लोगों ने कहा कि इतना सोना चांदी और जवाहेरात कहां से मोहय्या होगा। शद्दाद ने कहा कि क्या तुम नहीं जाते कि सारी दुनिया मेरे कब्ज़े में है। कहा जानते हैं। शद्दाद ने कहा कि सोने चांदी और जवाहेरात कि कानों में अपने आदमी मुक़र्रर करो जो इन आशिया की फ़राहमी करें। इसने इन तमाम सलातीने ममलेकत के नाम फरमान जारी किये दस बरस में सोना , चांदी और जवाहेरात जमा किये गये। और तीन सौ बरस में जन्नते शद्दाद बन कर तैयार हुयी।
जब शद्दाद को यह इत्तेला दी गयी कि तेरे हुक्म के मुताबिक़ बेहिश्ते अर्ज़ी बनकर तैयार हो चुका है। तो शद्दाद अपने लशकर और अहले ममलेकत के हमराह इसका मोआयना करने की गरज़ से रवाना हुआ और जब वह बेहिश्त के क़रीब पहुंचा तो हक्क़े तआला ने इस पर और इसके तमाम हमराहियों पर एक ऐसी सदा आसमान से नाज़िल की कि वह सब के सब हलाक हो गये। न शद्दाद खुद इस बेहिश्त में दाखिल हो सका न ही उसके साथियों को इसमें दाखिला होना नसीब हुआ। जिसका नाम इरमें जातुल आमाद है। अल्लामा मजलिसी का बयान है कि इस वक्त शद्दाद की उम्र नौ सौ साल की थी।
हालाते हज़रते सालेह अ 0
हज़रते सालेह बिन अबीद बिन आसिफ बिन रासिख़ बिन अबीद बिन आमिर बिन समूद निन इरम बिन साम बिन नूह अ 0 हज़रते नूह की दसवीं पुश्त में मुतवल्लिद हुए। जब तक आप हयात रहे अपने लिए कोई घर नहीं बनवाया। आप का हुलिया मुख़तलिफ़ किताबों में अलग-अलग अन्दाज़ में मोअर्रेख़ीन ने तहरीर किया है। जिसकी मजमुयी सूरत यह है कि आप का क़द लम्बा चेहरा बेज़ावी पेशानी कुशादा आंखें बड़ी जिस्म फ़रबे और रंग गोरा था। और आप हमेशां बरहेना पैर रहते थे।
आप बचपन ही से बड़े ज़ाहिद व मुत्तकी व परहेज़गार और इबादत गुज़ार थे परवरदिगार ने सोलह बरस की उम्र में सन्सबे नबूवत पर फाएज़ कर दिया और उसी वक्त से आप कारे तबलीग़ की अन्जाम देही में मसरुफ़ हो गये। जिसका सिलसिला 120 साल तक जारी रहा। खुदा ने आपको क़ौमें समूद पर मबऊस फरमाया था। जो वादियेक़रा से तेरह किलो मीटर की दूरी पर हजर नामी एक मक़ाम पर आबाद थीं और इसका हल्क़ए मस्कन न सिर्फ हजर बल्कि दूर दराज़ तक फैला हुआ था।
यह क़ौम बुत परस्त थी और 70 बुतों को अपना ख़ुदा तस्लीम करती थी। जब सालेह इस क़ौम को मुद्दतों बुतपरस्ती से मना करते रहे और समझाते रहे कि तुम लोग उस खुदा की इबादत करो जो याफ्ता व लाशरीक है। और जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है। लेकिन जब यह लोग न मानें और हज़रते सालेह इनके जाहिलाना अफ़आल से आजिज़ आ गये तो उन्होंने पूरी क़ौम के सरदारों को जमा किया और फरमाया कि मैं तुम लोगों जिहालत से तंग आ चुका हूं। अब सिर्फ यह सूरत रह गयी है कि हमारे तुम्हारे दरमियान अमली मुनाज़ेरा हो। यानी तुम लोग हमसे सवाल करो और इस सवाल को हम अपने ख़ुदा से पूरा करा दें तो तुम लोग ईमान ले आओ या फिर हमें इजाज़त दो कि हम तुम्हारे ख़ुदाओं से सवाल करें और वह उसे पूरा कर दें। तो हम अपने चंद साथियों के साथ तुम लोगों से किनारा कश हों जायें। और किसी दूसरी जगह चले जायेंगे। लोगों ने कहा कि तुम्हारी यह बात दुरूस्त है। मुनासिब होगा कि ईद के मौक़े पर यह मारका आराई हो जाये।
चुनांचे जब ईद का मौक़ा आया तो क़ौमे समूद की सरबरआवुरदा अफ़राद अपने बुतों को नहला धुला कर एक जंगल में ले गये। और इनके साथ ही वह लोग खाने पीने का सामन भी ले गये। और जब ईद की खुशियां मना चुके तो हज़रते सालेह को बुलवाया और उनसे कहा कि वह उनके ख़ुदाओं से सवाल करें इन्हें पूरा यक़ीन था कि सालेह का हर सवाल पूरा होगा। क्योंकि इनके ख़ुदाओं में अकसर शैतान हुलूल कर जाता था। जो इन बुत परस्तों को गुमराही के रास्ते पर कायम रखने के लिए इनसे बातें किया करता था। और इन्हें तरह तरह की झूठी तसल्ली दिया करता था। मगर अल्लाह के नबी के सामने शैतान की क्या मजाल थी कि वह उन बुतों में हुलूल करता। या इनकी ज़बान में बातें करता।
ग़र्ज़ कि हज़रते सालेह इन बुत परस्तों के बड़े बुत के पास गये और इसके नाम से इसे आवाज़ दी। लेकिन कोई जवाब न मिला फिर लोगों ने कहा कि दूसरे बुत को पुकारों आपने इसे भी आवाज़ दी वह भी खामोश रहा यहां तक कि जनाबे सालेह ने उन्होने एक एक कर के देकर बुतों को मुख़ातिब करना चाहा मगर कोई न बोला तब आपने फरमाया कि तुम्हारे यह खुदा गूंगे हैं , बहरे हैं , बेजान हैं और मजबूर हैं। जब यह मेरी आवाज़ पर बोल नहीं सकते हैं तो यह मेरा सवाल कैसे पूरा कर सकते हैं। फिर आपने फरमाया कि अब तुम सब लोग मुझसे मिल कर अपनी ख्वाहिशों को ज़ाहिर करो मैं इन्शाअल्लाह अपने खुदा से ज़रूर पूरी करा दूंगा। इस पर लोगों ने कहा कि ऐ सालेह इस वक्त हमारे खुदाओं को न जाने क्या हो गया जो ख़ामोश हैं तुम हमें एक मौक़ा और दो ताकि हम इन्हें राज़ी कर लें। चुनान्चे हज़रते सालेह ने इन्हें मोहलत दी और वापस चले आये। चन्द दिनों के बाद फिर पूरी कौम इकट्ठा हुई बुतों के सामने फर्श बिछाया गया और सब के सब इस पर लोटने लगे। जब लोटते लोटते थक कर बेहाल हो गये तो उन लोगों ने फरियाद ओ ज़ारी शुरू की और कहा कि ए हमारे ख़ुदाओं हमें ज़लील और रूसवा न करो। सालेह को जवाब दो वरना हम मुंह दिखाने के क़ाबिल न रहेंगे। इतने में किसी बुत के अन्दर छिपे हुए शैतान ने ज़ोरदार क़हक़हा बुलन्द किया जिसका मतलब लोग यह समझे कि इनके खुदाओँ ने अपनी रज़ा मन्दी ज़ाहिर की है। उन्होंने फौरन हज़रते सालेह को बुलवाया और कहा कि हमारे खुदा हमसे राज़ी हो गये हैं। अब आप इनके सामने अपनी ख़वाहिश बयान करें। हज़रते सालेह ने साबेक़ा अन्दाज़ से फिर बुतों को मुख़ातिब करना शुरू किया। मगर नतीजा कुछ न निकला और सिवाये खामोशी के कोई जवाब न मिला। तो हज़रते सालेह ने फलमाया की मेरी हुज्जत तमाम हो चुकी है। अब तुम लोगों को चाहिए कि तुम अपनी ख्वाहिश बयान करो और मैं अपने खुदा से पूरी करा दूं मगर शर्त यह कि अगर तुम्हारी ख्वाहिश पूरी हो जाये तो तुम्हें मेरे खुदा पर ईमान लाना होगा।
चुनान्चें अरबाबे समूद ने अपनी क़ौम के बुजुर्ग व मोअतबर 70 आदमी इस बात के लिए मुन्तखब किए कि वह हज़रते सालेह से सावाल करें और अगर वह पूरा हो जाये तो पूरी क़ौम इनका मसलक कुबूल कर ले। ग़्रज कि वह 70 अफराद हज़रते सालेह को एक पहाड़ की तरफ ले गये और वहां उनसे कहा कि अपने खुदा से कहो कि इस पहाड़ी से एक सुर्ख़ रंग की उटनी पैदा करे। जो दस माह की हामला हो। और जिसकी लम्बाई एक मील की हो।
हज़रते सालेह ने फरमाया कि यह काम मेरे लिए मुश्किल और दुशवार हो सकता है लेकिन मेरे परवरदिगार के लिए बहुत आसान है फिर आपने दुआ के लिए हाथ बलन्द किये और पहाड़ की तरफ इशारा किया अभी दुआ तमाम न हुई थी कि पहाड़ पर एक ज़लज़ला तारी हुआ और के मुहीब आवाज़ के साथ उसमें शिगाफ पैदा हुआ जिससे ऊटनी का सर बाहर निकला देखते ही देखते एक चीख के साथ वह बाहर आ गयी।क़ुतरत का यह करिशमा देखकर सब लोग हैरान रह गये और हज़रत सालेह से कहने लगे कि तुम्हारे परदिगार ने बेशक हमारी बात मान ली। और महारी ख्वाहिश पूरी हुई। अब इससे कहो कि वह हमें इस ऊटनी के शिकम से बच्चा पैदा कर के भी दिखाये। हज़रते सालेह ने फिर दुआ कि और उसी वक्त इसके शिकम से बच्चा पैदा हुआ।
इसके बाद जनाबे सालेह ने क़ौम समूद के लोगों से फरमाया कि अगर और कोई ख्वाहिश है तो उसे भी बयान करो उन्होंने कहा कि नहीं हम मुतमइन हो गये। बेशक तुम्हारा खुदा सच्चा और इबादत व इताअत का मुसतहक़ है अब तुम इस ऊटनी को लेकर हमारी क़ौम के पास चलो ताकि जो कुछ हमने देखा है वह और लोगों से बयान करें और इन्हें तरग़ीब दें कि वह लोग भी ईमान ले आयें हज़रते सालेह अपने नाक़े के हमराह इनके साथ चल पड़े लेकिन रास्ते ही में 70 आदमियों के दरमियान इख़तेलाफ पैदा हुआ और 64 अफराद फिर मुतद हो गये और इस करिश्मये कुदरत को हज़रत सालेह के सेहरओ जादू से ताबीर करने लगे सिर्फ 6 आदमी बाक़ी रहे लेकिन बाद में इनमें से भी एक शख्स शक व शुब्हे में मुब्तेला होकर इमान से फिर गया।
इस बाहमी इखतेलाफ का नतीजा यह हुआ कि क़ौमे समूद में से चंद लोग ईमान लाये बाक़ी लोगों ने यह कह दिया कि यह सब जादू है। हम अपने खुदाओं को नही छ़ोड़ सकते हैं।
नाकेय सालेह का अन्जाम और अज़ाब
हज़रते सालेह ने हुक्मे इलाही के मुताबिक़ अहले समूद के दरमियान यह एलान कर दिया था कि तुम्हारी वादी का पानी एक रोज़ मेरा नाक़ा पियेगा और दूसरे दिन तुम्हारे जानवर सेराब हुआ करेंगे। मोअर्ख़ीन का बयान है कि नाक़ा अपनी बारी पर सारी वादी का पानी पी जाता था और इस क़द्र दुध देता था कि पूरी क़ौम इससे सेराब होती थी। फिर कुछ सरकशों ने बाहम यह मशवेरा किया कि इस ऊंटनी को ख़त्म कर देना चाहिए। क्योंकि इसकी वजह से हमारे जानवरों को दीसरे दिन पानी मिल पाता है और जब तक यह ज़िन्दा रहेगी उस वक्त तक यही होता रहेगा। बाज़ मोअर्रेख़ीन का कहना है कि इस काम के लिए क़ौमे समूद के सरदारों ने कुछ इनाम भी मुकर्रर किया।
चुनांचे क़ेताम नामी एक औरत के एक आशिक़ क़ेदार जो वलदुज़्ज़ेना था अपने साथियों की मद्द से ऊटनी को उस वक्त पै कर दिया जब वह वादी से पानी पी कर वापस आ रही थी वह पहलू के भल ज़मीन पर गिरी और ख़ून में लोटने लगी फिर उस ज़ालिम नें उसे ख़त्म करके इसका गोश्त क़ौम के लोगों में तक़सीम कर दिया। ऊंटनी के बच्चे ने जब अपनी मां का यह हाल देखा तो वह भाग कर पहाड़ पर चढ़ गया। और आसमान की तरफ मुंह उठाकर खुदा से फरियादो ज़ारी करने लगा। जिसके नतीजे में ग़ैज़ै इलाही जुम्बिश में आया।
बजरिया वही हज़रते सालेह को हुकम हुआ कि ऐ सालेह इन ज़ालिमों को अज़ाब की ख़बर दे दो। और इनसे कह दो कि मेरी तरफ से इन्हें तौवा के ले तीन दिन का मौक़ा दिया जाता है वरना यह लोग अज़ाब में मुब्तेला होंगे। जिसकी अलामत यह होगी कि कल सुबह तक इनके चेहरे ज़र्द हो जायें फिर दूसरे दिन सुर्ख और दीसरे दिन सियाह हो जायेंगे। अगर इस पर भी इन लोगों ने तौबा न की तो यह पूरी क़ौम के घाट उतर जायेगा।
चुनान्चे इस खुदाई फैसले से हज़रते सालेह ने अहले समूद हो आगाह किया लेकिन वह लोग अपनी सरक़शी पर अड़े और सालेह की बातों पर कोई तवज्जहू न दी बल्कि इनका मज़ाक उड़ाया। ग़रज़ कि रात गुज़रने के बाद जब दूसरे दिन सुबह हुई तो अहले समूद के चेहरे ज़र्द थे। कुछ ने कहा कि सालेह की बतायी हुई पहली अलामत ज़ाहिर हो चुकी है। अब हमें क्या करना चाहिए। कुछ ने काह कि यह भी सालेह का एक जादू है जिसके जरिये वह चाहते हैं कि हम उनका कहना मान लें और अपने ख़ुदाओं को छोड़ दें लिहाज़ा इस पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिए।
दूसरे दिन सुबह के वक्त इनके चेहरे सुर्ख हुए। तो कुछ लोग तशवीश में मुबतेला हुए। और कुछ ने कहा कि हम इस फरेब में मुब्तेला होने नहीं। दीसरे दिन इनसे चेहरे सियाह हो गये मगर इस सरकश क़ौम ने की परवाह न की और कहा कि ख़्वाह हमारी जानें चली जायें लेकिन न हम तौबा करेंगे और न ही हम सालेह की बात पर तवज्जो देंगे।
और हुज्जत तमाम हो चुकी थी। इसलिए कुदा की तरफ से अज़ाव में कोई ताख़ीर भी न थी। चुनान्चे तीसरा दिन गुज़कर कर जपब रात आयी और लोग अपने अपने घरों में सो गये तो निस्फ़ शब को एक आवाज़ गूंजी ऐसी भयानक आवाज़ कि जिससे कानों के प्रर्दे फट गये। दिल टुकड़े- 2 और जिस्म पारा पारा हो गये और जब सुबह हुई सतो वह तमाम अहले समूद जो ना फ़रमान और सरकश ते अपने अपने घरों में मुर्दा पड़े थे। फिर आसमान से एक शोला उतरा जिसने इनकी लाशों को राक के ढेर में तब्दील कर दिया सिर्फ वही लोग बचे जो सालेह और उनके कुदा पर ईमान ला चुके ते। तबली का कहना है कि यह क़ौम शाम और यमन के दरमियानी हिस्सा यानी होजाज़ और हरमैन में आबाद थी। और ख़ुदा ने इसपर बिजली और ज़ल्ज़ले का अज़ाब नाजिल किया।
अल्लामा मजलिसी हयातुल कुलूब में काबुल अहबार से रवायत करते हैं कि जब क़ौमे समूद ने यह तय किया कि नाक़े को पै कर दिया जाना चाहिए। तो कोई शख्स हमें ऐसा हिम्मत और दिलेर नहीं मिलता था जो इस काम के अन्जाम दे सके। क़दार को क़ेताम नामी एक औरत ने इस काम पर तैयार किया जो इसकी मासूक़ा थी और अपने वक्त की हसीन व जमील औरतों में इसका सुमार होता था।
असहाबे रस का वाक़ेया
यानी मोअर्रेख़ीन का खयाल है कि (रस) वह कुआं है जो मक्के के रास्ते में वाक़े है। इस कुऐं से कुछ फासले पर एक दरिया था और इस दिरिया के किनारे वह अस्हाबे रस की बस्ती कहलाती थी। यह लोग इन्तेहाई खुन्ख़्वार सरकश और जाहिल थै। हज़रते सालेह अनपी तब्लीग़ के इब्तेदाई दौर में लोगों की हिदायत के ले अपने नुमाइन्दे भी भेजा करते थे। चुनान्चे भेजा जिसे इन लोगों ने कत्ल कर दिया फिल दूसरा भेजा वह भी कत्ल कर दिया गया। यहां तक कि तीन नुमाइन्दे यके-बा-दीगरे क़त्ल कर दिये गये तो आपने चौथा नुमाइन्दा भेजा और इसके साथ अपना एक वली भी बेजा चुनान्चे एत दूसरे की मदद से यह लोग महफूज़ रहें और कारे हिदायत अन्जाम देते रहे मगर असहाबे रस की खूंखार सरिश्त पर इनकी हिदायत का को ई असर न हुआ उन्होने ख़ुदा की इताअत कुबूल करने से इनकार किया और कहा कि हमारा खुदा दरिया में रहता हैरजिसे हम सजदा करते हैं और वह साल में ईद के मौके पर ज़ाहिर होता है।
हज़रते सालेह के वली ने कहा कि मैं अपने ख़ुदा का एक हक़ीर बन्दा हूं लेकिन अगर तुम्हारा कुदा मेरी इताअतरफरमाबरदारी करने लगे तो क्या तुम लोग मेरे ख़दा की इताअत कुबूल कर लोगें असहाबे रस ने का कि अगर ऐसा हुआ तो हम तुम्हारे ख़ुदा पर ईमान ले आयेंगे। इस परवलीये सालेह ने कहा कि अच्छा तो ईद के दिन फिर आऊंगा। ईद का मौक़ा आया तो दोनों नुमाइंदै वहामं पहुंचे असहाबे रस दरिया के किनारे जमा ते। यह लोग भी वहां बैठ गये.और असहाबे रस के ख़ुदा का इन्तेज़ार करने लगे।
थोड़ी देर में एक देव पैकर मछली नमूदार हुई जो चार मछलियों पर सवार ती असहाबे रस इसे देखते की सजदे में गिर पड़े और अपनी अपनी मुरादें मांगने लगे हज़रते सालेह के वली ने इस मछली से कहा कि ऐ मछली बहुकमे ख़ुदा तू मेरे पास चली आ वह अपनी सवारी के साथ मेरे पास आ वह चारों मछलियों से साथ इनके पास आ गयी। फिल कहा कि वापस जा और दरिया में ग़र्क हो जा। वह वापस हुई और तरिटया की तह में ग़्रर्क हो गयी लेकिन असहाबे रस यह सब कुछ अपनी आंखों से देखने के बावजूद ईमान नहीं लाये बल्कि इन लोगों ने हज़रते सालेह के वली की तकज़ीब की और इन्हें जादूगर ठहराया जिसके नतीजे में वह अज़ाबे इलीहरी का शिकार हुए एक तेज़ और तुन्त हवा का तूफान आया जिससे असहाबे रस को मैं इनके मवेशियों समैत तरिया में ग़र्क़ कर दिया। और इनके वजूदसे दामने गेती को पाक कर दिया इसके बाद हज़रत सालेह के दोनों नुमाइन्दे इस कुएं के पास पहुंचे जिसका नाम रस था। और इसके अन्दर असहाबे रस का सोने और चांदी का खज़ाना था जिसे इन लोगों ने निकाला और जो लोग ईमान लाने की वजह से तूफ़ान की ज़द से बच गये ते इनके दरमियान तक़सीम कर दिया और हज़रते सालेह की खिदमत में वापिस आ गये।
तबरी का कहना है कि इन दोनों अज़ाबों के बाद हज़रते सालेह वह मकान छोड़ कर पिलस्तीन की तरफ़ उन लोगों के साथ हिजरत कर जो ईमान ला चुके थे।
हज़रते सालेह का मदफ़न
आम मोअररेखीन का खयाल है कि आप का इन्तेक़ाल मक्का – ए- मोअज़्ज़मा में हुआ और वहीं आप दफ़न भी हुए। लेकिन अइम्मए अहलेबैत की मोअतबर रवायात से यह वाज़ेह होता है कि आप नजफ़े अशरफ (इराक़) में मदफून हुए और आप की क़ब्र वहीं है। जैसा कि इमामे हसन अ 0 से ज़रबत लगने के बाद अमीरल मोमेनीन हज़रते अली 0 ने फरमांया था कि मुझे नजफ में हज़रते हूद और हज़रते सालेह के दरमियान उस क़ब्र मे दफन करना जो हज़रते नूह की बनायी हुई है। इस तरंह आप की उम्र के बारे में भी इख़तेलाफ है। किसी ने 58 साल और किसी ने 85 साल किसी ने 180 साल किसी ने 200 साल और किसी ने 250 साल बतायी है। मेरे नज़दीक आखरी क़ौल तहक़ीक शुदा और दुरुस्त है।
नाक़ेय सालेह और हज़रत अली 0 के वाक़ेयात में मुताबेक़त
नाक़ेय सालेह को जब हम वाक़ेयाते अलवी के आइने में देखते है तो दोनों में हैरत अंगेज़ मुताबेक़त नजर आती है।
1. नाक़ेह सालेह अगर अल्लाह की निशानी था तो अमीरल मोमेनीन भी आयतुल्लाह थे।
2. नाक़ेह सालेह अगर पहाड़ के पत्थरो के पहाड़ से नमूदार हुआ तो हज़रत अली भी पत्थरो से बनी इस अज़ीम इमारत मे पैदा हुए जिसका नाम काबा है।
3. नाक़ेह सालेह के दूध से अगर लोग सेराब होते थे तो हजऱत अली के चश्मए इल्म भी लोगो को सेराब करता था।
4. नाक़ेह सालेह को अगऱ पै किया गया तो हज़रत अली अ 0 को भी शहीद किया गया।
5. नाक़ेह सालेह को पै करने वाला क़ेदार अगर वलदुज़्ज़ेना था तो हज़रत अली अ 0 का क़ातिल इब्ने मुल्जिम भी ज़ेनाज़ादा था।
6. अगर क़ेदार पस्ता क़द और करंजा था तो इब्ने मुल्जिम भी पस्ता क़द और करंजा था।
7. नाक़ेह सालेह को अगर क़ित्ताम नामी औरत के इश्क में पै किया तो हज़रत अली को क़ित्ताम नामी औरत के आशिक़ ने कत्ल किया।
8. नाक़ेह सालेह के पै होने पर अगर खुदा की तरफ से अज़ाब नाज़िल हुआ तो वारिसे अली का ज़हूर भी दुश्मनाने आले मोहम्मद के लिए अज़ाब होगा।
9. अगर हज़रते सालेह की क़ब्र नजफ में है तो हज़रत अली अ 0 का मज़ारे अक़दस नजफ में है।
10. अगर हज़रते सालेह बरोज़े हश्र अपने नाक़े पर सवारर होंगे तो हजरत अलीअ 0 भी नाक़ए जन्नत पर सवार होकर बरामद होंगे।
11. रसूलअल्लाह स 0 ने हज़रत अली से पूछा कि ऐ अली क्या तुम जानते हो कि पहले के लोगो मे बदबख़्तरीन इन्सान कौन था। हज़रत अली ने फरमाया कि ऊटनी की कोचें काटने वाला। फिर आप ने दरियाफ़त किया कि आखिरी लोगों में बदबख़त तरीन लोग कौन है ?फिर अर्ज़ किया कि यह खुदा और उसका रसूल बेहतर जानता है। रसूल अल्लाह ने फ़रमाया कि यह वह शख्स़ होगा जो तुम्हारे सर पर ज़रबत लगायेगा और तुम्हारी दाढ़ी को तुम्हारे खून से ख़ेज़ाब करेगा।
सात चीज़ें
एक सवाल के जवाब में हज़रत इमामे हसन अ 0 ने फ़रमाया कि अल्लाह की मखलूक़ मे सात चीज़े ऐसी हैं जो बत्ने मादर से नहीं पैदा हुई-
1. आदम़
2. हव्वुआ
3. नाक़ए सालेह
4. गोस्फंदे इब्राहीम
5. मारे बेहिश्त
6. शैतान
7. किलाग़ हाबील और क़ाबील यानी कौआ।