तारीख़े इस्लाम भाग 1

तारीख़े इस्लाम  भाग 118%

तारीख़े इस्लाम  भाग 1 लेखक:
कैटिगिरी: इतिहासिक कथाऐ

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तारीख़े इस्लाम  भाग 1

तारीख़े इस्लाम भाग 1

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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हज़रते लूत अ 0

हज़रते लूत , हज़रते इब्राहीम के हक़ीक़ी भतीजे और उन पैग़म्बरों में ते जो ख़नता शुदा पैदा हुए। इराक़ से हिजरत और फिलिस्तीन में क़याम के बाद हज़रते इब्राहीम ने आपको रदुन के नबाही इलाकों में तब्लीग़ पर मामूल किया था। जहां उन्हें एक एसी बदआमाल और सरकश क़ौम से सावेक़ा पड़ा जो नफ़सानी ख़्वाहिशात की तनमील। (लवायता) यानी इग़लामबाज़ी के ज़रिये किया करती थी। मर्दों के अलावा इस क़ौम की औरतें बी अपने नफस की तस्कीन के लिये बाहम चिपटी लड़ाया करती थीं। जिन शहरों में यह क़ौम आबाद ती वह सदूम और सैदूम लुदना और उमरिया के नाम् से मशहुर थे। जनाबे लूद ने उनकी इस्लाह और हिदायत में कोई दक़ीक़ा उठा नहीं रखा। मगर उनकी तालीमात और हिदायात का इस क़ौम की तरफ से जवाब यह मिला कि उन्होंने आपस में यह तय किया कि लूत को संग सार कर दिया जाये। या पिर इन्हें शहर से बाहर निकाल दिया जाये क्योंकि यह पारसायी का दर्स देते हैं और बदफेलियों में हमारे साथ शिरकत नहीं करते।

क़ौमे लूत में लवाता (एग़लाम) की इब्तेदा कब और कैसे हुई

इस ज़ैल में अल्लामा मजलिसी र 0अ 0 ने अपनी किताब हयातुल क़ुलूब जिल्द अव्वल में इमामे बाक़िर अ 0 का एक क़ौल नक़्ल किया है। जिसका खुला 4सा यह है कि इसं शर्मनाक फेल के इरतेकाब से पहले यह क़ौम शराफ़त और नेकियों की तरफ माएल थी और इनकी तमाम खूबियों में एक खूबी यह भी थी कि जब यह किसी काम से कहीं जाते थे तो सारे मर्द एक साथ मिल कर जाते थे। और अपने घरों में अपनी औरतों को तनहा छोड़ जाते थे।शैतान इन्हें गुमराह करने में रात दिन फिक्र में लगा रहता था और नई – नई तरकीबें सोचा करता था। चुनान्चे एक मौक़े पर औरतों की तनहायी से उसने फायदा उठाया और एक खूबसूरत औरत का भेस बदल कर इसने कुछ मस्तूरात को चिपटी के ज़रिये लुत्फ अन्दोज़ होने की तालीम दी। फिर वह उनकी ज़राअतों की तरफ मुतावज्जे हुआ और इन्हें नुक़सान पहुंचाने की ग़रज़ से उसने हरे भरे खेतों और बागों को तहस नहस करना शुरू किया। जब कभी उस क़ौम के अफराद शहर के बाहर जाते तो वह उनकी इमलाक को तबह व बरबाद करता।

यहां तक कि लोग आजिज़ व परेशान हो गये तो उन्होने आपस में यह मशविरा किया कि जो शख़्स हमारे बाग़ों व खेतों को नुक़सान पहुंचाता है उसकी ताक में रहना चाहिए। चुनान्चे वह लोग ताक में लग गये आख़िरकार एक दिन एक इन्तेहायी हसीन न जमील और ख़ुबसूरत लड़के को गिरफ़्तार किया और उससे पूछा कि क्या तू वही है जो हमारे खेतों और बाग़ों को तबाह करता है। उसने इक़रार किया तो सबों की राय इस अम्र पर मुत्तफ़िक़ हुई कि इसे क़त्ल कर दिया जाये। चूंकि शाम ढल चुकी थी और रात अपनी जवानी की तरफ बढ़ रही थी। लिहाज़ा क़त्ल का मामला दूसरे दिन पर रखा गया और उस लड़के को एक शख़्स की निगरानी और सुपुदर्गी में रात भर के लिए दे दिया गया।

वह शख़्स उसको अपने घर ले आया और जिस कमरे में खुद सोता था और उसी में लड़के का इऩ्तेजाम भी कर दिया ताकि वह नजरों से ओझल न होने पाये। जब रात काफी गुज़र चुकी थी और तमाम घर के लोग सो गये तो लड़के ने फ़रियाद शुरु की और कहा कि मेरा बाप हर शब मुझकों अपने पेट पर सुलाता था इसलिए मुझे नींद नहीं आ रही है। उस शख़्स ने कहा यह बात है तो मेरे पेट पर सो जा लड़का उसके पेट लेट गया और रफता रफता इसने कुछ ऐसी हरकतें कीं कि उसने इस शख़्स को अपने साथ बदफेली पर आमादा कर किया और पूरी रात दोनों लवाएता से लुत्फ़अन्दोज़ होते रहे। यह लड़का दरहक़ीक़त शैतान था जो सुबह होने से पहले ही गायब हो गया। सुबह हुई तो वह शख़्स अपनी क़ौम के लोगो से मिला और उसने रात का माजरा और लवाता की लज्जत और कैफ़ियत से इन्हें आगाह किया जिसे उन्होंने बेहद पसन्द किया और इसी दिन से यह फेले क़बीहा इनके शरस्त में दाख़िल हो गया। अल्लामा मजलिसी की इस रवायत से यह बात वाज़ेह भी होती है कि इन्सान पर जब गुमराही और नफ़सानी ख़्वाहिशात का भूत सवार होता है तो वह शैतान को भी नही छोड़ता। बहर हाल रफता रफ़ता नौबत यहां तक आगयी जो मुसाफ़िर इनके शहर की तरफ़ से गुज़र जाता था तो उसे यह ज़ेर कर देते थे और वह अपनी बचाने में कामयाब न होता था।

लवाता के अलावा इस क़ौम के लोगों में जो आदतें नुमायां थी वह यह थी कि ( 1) यह लोग जरुरत स ज्यादा मन्हूस और बख़ली थे। ( 2) गुरूर की बिना पर इस कद्र लम्बा लिबास पहनते थे कि वह चलते वक़्त ज़मीन पर ख़त खैंचता था। ( 3) अज़राहे तकब्बुर अपने पैरहन और क़बा के बटन खुले रखते थे।( 4) महफ़िलों में एक दूसरे के मुंह पर रियाह सादिर करते थे। ( 5) लोगों के सामने एलानिया एग़लामबाज़ी करते थे। ( 6) ग़ुस्ले जनाबत नही करते थे। ( 7) पैशाब करके पानी नही लेते थे। ( 8) पैखाने के बाद आबदसत नही लेते थे। वग़ैरह जनाबे लूत ने मुसलसल तीस बरस तक इस क़ौम को राहे रास्त पर लाने की अनथक कोशिशें की लेकिन आप की तब्लीग़ी कोशिशों का कोई असर न हुआ।

बिलाआखिर मायुस होकर आपने बहालते मजबूरी इस क़ौम पर अज़ाब की ख़ुदा से इल्तेजा की। परवरदिगार ने चार फरिश्तो को अज़ाब के लिए मामुर किया। जिसके सरबराह हज़रते जिबरईल थे। यह चारो फरिश्ते खूबसूरत लड़को की शक्ल मे हज़रते लूत के पास इस वक्त पहुंचे जब वह शहर से बाहर अपने खेतों और बाग़ों की आब पाशी कर रहे थे और शाम हो चुकी थी। जनाबे लूत ने इन्हे हैरत से देखा और पुछा की आप लोग कौन हो और किस मक़सद से यहां आये है। उन्होने कहा कि मुसाफिर है चुंकि शाम हो चुकी है इसलिए आज की रात हम लोग आप के यहां क़याम करना चाहते हैं और आप के मेहमान होना चाहते हैं। जनाबे लूत ने फरमाया की तुम्हारी मेहमानी मुझे मन्ज़ूर है लेकिन इस बात से भी तुम्हें आगाह कर देना चाहता हुँ कि इस शहर के लोग इन्तेहायी सरकश और बद किरदार हैं मेहमान को मायुब समझते हैं और उन्हे लूट लेते हैं और लड़कों और मर्दो से बदफेली किये बग़ैर उन्हे नही छोड़ते मेरी समझ मे नही आता कि किस तरह तुम लोगों को अपना मेहमान बनाऊँ। फरिश्तो ने कहा रात ज्यादा हो गयी है आज तो हम आप ही के मेहमान होंगे।

ग़र्ज़ की जनाबे लूत इन लोगों को अपने घर लें आये और जब घर के अन्दर सब लोग दाखिल हो गये तो जनाबे लूत ने अपनी ज़ोजा को (जो उसी क़ौम की थी) और जिसकी ज़ात से जनाबे लूत को यह खतरा था कि कंही वह इन मेहमानों के आने की ख़बर अपनी क़ौम वालों को न दे दे। अपनी ज़ौजा को अलग बुलाया और उससे कहा कि इन मेहमानों को आने की ख़बर किसी को न होने पाये अगर तूने मेरा कहा माना तो मै तेरी गुज़शिता नाफ़रमानियों को माफ कर दुंगा। उसने कहा बेहतर है। ऐसा ही होगा लेकिन जब हज़रते लूत मुतमईन हो कर मेहमान की मेहमान नवाज़ी की तरफ मुताव्वजे हो गये तो उनकी ज़ौजा ने मेहमानों की आमद की खबर अपनी क़ौम वालों को कर दी। नतीजा यह हुआ की जनाबे लूत का घर चारो तरफ से घेर लिया गया। मुहासेरीन का मुतालेबा था कि मेहमानों को हमारे हवाले कर दिया जाये ताकि हम अपना शौक़ पुरा करें।

जनाबे लूत ने फरमाया कि हमारी पाको पाकीज़ा लड़कियां तुम्हारे लिए काफ़ी है। खुदा के कहर से डरो और मुझे ज़लील (हमारी लड़कियों से मुराद क़ौम की लड़किया हैं क्योकि हर पैग़म्बर अपनी उम्मत के लिए बाप के मसावी होता है।) व रुस्वा न करो लेकिन वह लोग न मानें और जनाबे लूत की कोई बात सुननें के बजाय शिद्दत पर उत्तर आये तो आपने बेबसी के आलम में खुदा की बारगाह में फरियाद की और कहा कि पालने वाले तू देख रहा है कि मेरी क़ौम मेरे उपर कहां तक मुझ पर जुल्म कर रही है। काश मुझे भी कूवत हासिल होती तो मैं भी इन ज़ालिमो को जवाब देता। यह सुन कर जिबरईल ने कहा कि ऐ लूत आपको मालूम होना चाहिए कि आप के साथ खुदा की बहुत बड़ी ताक़त है। फरमाया वह क्यो कर जिबरईल ने कहा मै जिबरईल हुँ और मेरे साथ तीनो लड़के भी जो इस वक्त आप के मेहमान हैं फरिश्ते हैं हम लोग इस कौम पर अज़ाब के लिए आये हैं लूत ने फरमाया कि फिर देर किस बात की है।

जिबरईल ने कहा कि नुज़ूले अज़ाब के लिए सुबह का वक्त मुअय्यन है। उस वक्त का इन्तेज़ार कीजिये। अभी यह बात हो ही रही थी कि यह लोग लूत के घर का दरवाज़ा तोड़ कर घर के अंदर दाखिल हो गये। बस इनका दाखिल होना था कि जिबरईल ने अपने परों को जुम्बिश दी जिसकी हवा से सबके सब अन्धे हो गये। जैसा कि कुरआन ने कहा कि हमने उन्हे अन्धा कर दिया क्यूकिं इन लोगों ने नाजायज़ फेल की ख्वाहिश की थी। बीनायी जाने के बाद वह एक दुसरे पर गिरते पड़ते भागने लगे और तमाम शहर में यह खबर फैल गयी कि लूत ने जिस आज़ाब की खबर दी थी खुदा की तरफ से इसकी इब्तेदा हो चुकी है।

अल्लामा मजलिसी हयातुल कुलूब में रक़म तराजड हैं कि क़ौमे लूत मे एक शख्स काहिन व आलिम भी था जब उसे सारा हाल मालूम हुआ तो उसने कहा कि बेशक यह वही अज़ाब है इससे बचने की सूरत सिर्फ यही है कि तुम लोग हजडरते लूत के घर का मुहासेरा कर लो। ताकि वह यहां से निकल कर जाने न पायें इस लिए कि जब तक वह तुम्हारे तहमियान रहेंगे। खुदा की तरफ से अज़ाब का नुजूल नही होगा। गर्ज़ कि पूरी क़ौम यकजा हुई और सभी ने मिलकर दुबारा हज़रते लूत का घर घेर लिया जब निस्फ शब गुज़री तो जनाबे लूत से जिबरईल ने कहा कि आप अपने घर वालों को यहां से लेकर निकल जाइये। तो हज़रते लूत ने फरमाया मैं किस तरह जाऊं चारों तरफ तो मुहासेरा है।

फिर जिबरईल ने मुहासेरीन और जनाबे लूत के दरमियान नूर का सुतून क़ायम किया और फरमाया कि इसी सुतूने नूर के सहारे आप निकल जाइये। आपको कोई न देख सकेगा। मगर शर्त यह है कि आप मे कोई शख्स पीछे मुड़ कर न देखे। मुखतसर यह कि जनाबे लूत अपने घर वालों के साथ निकले और जिबरईल के बताने के मुताबिक़ एक तरफ रवाना हो गये। अभी थोड़ी ही दूर गये होंगे कि लूत कि बीवी ने जो उनके हमराह थी पीछे मुड़ कर देखा उसका मक़सद दरअसल यह था कि अपनी क़ौम वालों को हज़रते लूत के जाने की इत्तेला कर दें। नागहा उस पर आसमान से एक पत्थर गिरा और वह वहीं ढेर हो गयी।

इसके बाद जब खुदावंदी अज़ाब का मुअय्यन वक्त क़रीब आया तो हज़रते जिबरईल ने अपने साथी फरिश्तों कीमद्द से अपना काम इस तरह शुरु किया कि क़ौमे लूत की आबादी वालें चारों शहरों को ज़मीन की तह से उठा कर इस कद्र बलंद किया कि अहले आसमान को अरबाबे लवायता और उनके जानवरों की आवाज़े सुनाई देने लगीं जो चीख व चिल्ला रहे थे।

फिर जिबरईल ने इन शहरों को इस तरह पलटा दिया कि पूरी क़ौम धरती में समा गयी और आबादी का वुजूद सफए हस्ती से मिट गया जो लोग इस शहरों से बाहर थे उन पर आसमान से पत्थरों की बारिश हुई जिससे वह लोग भी हलाक हो गये। इन वाक़ेयात का ज़िक्र करते करते हुए परवरदिगार ने क़ुरआने मजीद में इरशाद फरमाया है कि हमने क़ौमे लूत की बस्ती के ऊपरी हिस्से को ज़मीन के नीचे का हिस्सा कर दिया। और आसमान से पत्थरों की बारिश की। ( 1) क़ुरानें मजीद बारहवां पारा आयत न 0 7 (2) तारीखें तबरी जिल्द पहली सफह 187 यह वाक्या हज़रते आदम अ 0 के 3422 साल के बाद बयान किया जाता है।

जुलक़रनैन का वाक़ेया

तारीख़ी और पुरानी सराहतों से यह पता चलता है कि रूम के शहंशाह अयास या अब्दुल्ला बिन ज़हाक़ बिन माद का लक़ब जुलक़रनैन और सिकंदर था इस अम्र में उलमा के दरमियान इख़तेलाफ हे कि आप पैग़म्बर थे या नहीं बेशतर का यह कहना है कि आप पैग़म्बर नहीं थे। मगर आप के खुदा परस्त और मुक़र्रेबए बारगाह होने से इन्कार नहीं किया जा सकता।

इसमें शक नहीं कि आप क नेक तीनत नेक ख़सलत और पाकबाज़ इन्सान थे आप का दिल बचपन ही से नूरे इमान से रौशन व मुनव्वर था शायद यही वजह थी कि इबतदा में आपने तबलीग़ का रास्ता अपनाया और अपनी कौम के लोगों को नेकियों और ख़दापरस्ती की तालीम देने लगे चुनान्चे एक दिन कारे हिदयत की अन्जाम देही के दौरान कुछ शरपसन्दों ने आप के दाहिनी तरफ एक ऐसी ज़रब लगायी कि आप जांबहक हो गये और सौ साल एक दूसरी रिवायत के मुताबिक पाँच सौ साल तक मौत की नींद सोया किये इसके बाद मशीयते खुद ने फिर आप के सर पर बाएँ तरफ ज़र्ब लगायी और आप सौ साल तक फिर मिर्दा पड़े रहे यहाँ तक कि खुदा ने आप को फिर जिन्दा किया और सर के ज़ख्म खुर्दा दोनों हिस्सों में सीगों की जड़ की तरह उबार पैदा करके तमाम दुनिया की बादशाही अता कर दी मुवरेख़ीन का कहना है कि चूंकि मौत के बाद प को परवरदिगार ने दोबारा जिन्दा किया इसलिए आप को जुलकरनैन कहा जाता है कुरान-ए-मजीद से इस बात की सराहत भी होती है कि खुदा ने सलतीन की सफ़ में सिर्फ चार अशख़ास को तमाम दुनिया की जमीन पर हुकूमत का हक़ दिया जिनमें नमरूद और बख़्तेनसर दोनों काफ़िर थे और दो मोमिन थे जो हज़रते सुलेमान और सिकन्दर जुलक़रनैन के नामों से मशहूर हुए।

जब ख़ुदा ने सिकन्दर जुलक़रनैन को शिकोह दबदबा और एक़तेदार का मालिक बना दिया और इज़्ज़त , कूवत , हैबत व हुकूमत आता कर दी तो उन्होंने दुनिया का सफर करके अपनी सलतनत की वसअतों का जाय़जा लेने का इरादा किया चुनान्चे वह रुप से निकले और चलते आफताब के गुरुब होने की जगह पर पहुंचे वहां उन्होने देखा कि कायनात को रोशनी देने वाला और नूर बरसाने वाला सूरज सियाह रंग की कीचड़ के एक चश्में मे डूब रहा है। और इस चश्मे के करीब एक क़ौम भी आबाद है अभी यह करिश्मा देख ही रहे थे कि परवरदिगार का इरशाद हुआ ऐ जुलक़रनैन तुम इस क़ौम को सजा दोगे या इनके साथ हुस्ने सुलूक करोगे।

जुलक़रनैन ने कहा पालने वाले हम सरकशों , मुशरिकों और ज़ालिमों को सज़ा देंगे क्योंकि वह तेरी तरफ से भी बरोज़े क़यामत अज़ाब सुलूक करेंगे। चूंकि वह क़यामत में जज़ाते ख़ैर का मुसतहक़ होगा। इस क़ौम के लोगों के बारे में मुवर्रेख़ीन और मुफ़स्सेरीन का कहना है कि यह नास्तिक काफ़िर , क़दावर , सुर्ख़बालों , करंजी आंखो वाले थे। इनका लिबास हैवानों की खाल और ग़िज़ा जानवरो का गोशत था।

इस अजीबो ग़रीब मुक़ाम का मुशाहेदा करने के बाद जुलक़रनैन ने एक दूसरे सिम्त का रुख़ किया और चलते-चलते उस मुक़ाम पर पहुंचे जिस जगह से आफ़ताब निकलता है वहां भी इन्होने एक ऐसी आबादी देखी कि जिनके सरों पर आफ़ताब तुलू हो रहा था और सर छुपाने के लिओ कोई साया नहीं है। इस क़ौम के बारे में मुफ़स्सेरीन व मुअर्रेख़ीन का कहना है कि यह लोग वहशी थे इन्हें घर बनाने का सलीका नहीं था। ना धूप से बचने का कोई ज़रिया था। अलबत्ता जब तेज़ बारिश होती थी तो यह पहाड़ के ग़ारो में पनाह ले लेते थे। औरर घास-फूस इनकी ग़िज़ा थी और यह लोग जानवरो की तरह ज़िन्दगी बसर करते थे। ज़ुलक़रनैन ने यहां से एक तीसरा रास्ता इख़्तेयार किया और चलते-चलते जब एक पहाड़ के दो किनारों के दरमियान से गुज़रे तो वहां देखा कि वहां भई एक क़ौम आबाद है। जिसकी ज़बान अजीबो ग़रीब है। मगर चूंकि इन्हें खुदा ने मुख़तलिफ ज़बानों पर भी क़ुदरत अता की थी। इसलिए उन्होंने इस क़ौम के लोगों से बाचतीच भी की और इनका हाल भी पूछा इन लोगों ने इस बात की शिकायत की कि इस घाटी के पार याजूज-माजूज की क़ौम आबाद है। जो फ़साद बरपा करती है और जब वह हम लोगों पर खुरूज करते हैं तो हमारी ज़राअतों और बाग़ों को तबाह और बरबाद और हमारे सैकड़ों आदमियों को खा जाते है। अगर आप कहें तो हम लोग आप के पास इस ग़र्ज से चन्दा जमा करेंकि आप हमारे और उस क़ौम के दरमियान कोई मुसतहकम दीवार तामीरकर दें। ताकि बवक़्ते खुरूज वह हमारी तरफ न आ सकें।

ज़ुलक़रनैन ने कहा मेरे परवरदिगार ने मुझे खर्च की जो कुदरत दी है वह तुम्हारे चन्दे से कहीं बेहतर है। मुझे तुम्हारा माल नहीं चाहिए। शर्त यह है कि अगर तुम लोग मेरी मदद व मेरी हितायत पर अमल करो तो मैं तुम्हारे और इस क़ौम के दरमियान एक आहनी दीवार (लोहे की) तामीर करके इनकी तबाहकारियों से हमेशा के लिए तुम्हें महफूज़ कर दूं। ग़र्ज़ कि सब लोग जुलक़रनैन की हिदायतों पर अमल करने के लिए तैयार और कमरब़स्ता हो गये।

याजूज और माजूज

यह एक बहुत बड़ी क़ौम है जो जानिबे शिमाल ज़मीन के आख़िरी हिस्से पर पहाड़ों के दरमियान आबाद हैं। याजूज और माजूज इस क़ौम के यूरिसे आला थे। बाज़ रवायतों से पता चलता है कि याजूज और माजूज हज़रते याफ़िस बिन नूह की औलाद से दो गिरोह हैं और इनके जिस्मानी साख़्त की किस्में हैं।

पहली यह कि इनमें कुछ ऐसे लम्बे तडंगे हैं तो इनका क़द ताड़ के दरख़त के बराबर है। दूसरी क़िस्म के लोगो की लम्बायी और चौड़ाई दोनो बराबर है।और तीसरे क़िस्म के लोग जिनके कान बहुत ही बड़े है चुनान्चे वह अपने एक कान से बिछौने और दूसरे कान से ओढ़ने का काम लेते हैं। इनकी तादाद अहद ज़ुलकरनैन में चार लाख थी। याजूज और माजूज की क़ौम में औरतें भी है और मर्द भी इनमें से कोई मर्द इस वक्त तक नही मरता जब तक कि वह एक हज़ार औलादें न करे। यह बरहैना रहते हैं। चलते फिरते जानवरों की तरह जुफती खाते है। और हैवानों की सतह पर ज़िन्दगी बसर करते है। इन्के जिसमों पर रिछ की तरह बाल होते है। जिनसे ऐसी बदबू निकलती है जिसे कोई बर्दाशत नही कर सकता। इनकी आवाज़े इतनी क़रखत और बलन्द हैं कि मीलों के फासले से सुनी जा सकती है। असल ग़िज़ा इनकी मछली है।

चुनांचे जब इनके इलाकों में बारिश होती है तो पानी के साथ साथ मछलियां भी आसमान से बरसती है। और वही इनकी ग़िज़ा बनती है। लेकिन जब बारिश नही होती और इन पर भुख का ग़लबा होता है तो यह निकल पड़ते है और घास , दरखतों की पत्तियां , आदमी , जानवर , हराम हलाल जो इन्हे मिलता हैं सब खा जाते है। जिधर यह हमला करते है उस जगह को तहस नहस और तबाह व बरबाद कर देते है।

दीवार की तामीर

ज़ुलक़रनैन ने पहाड़ी क़ौम के लोगों से कहा कि मैं तुम्हें लोहे और ताम्बे के कानों का पता बताता हूं तुम लोग सबसे पहला काम यह करो कि वहां जाओं और लोहा और ताम्बा इकरट्ठा करो। पूरी क़ौम लोहा और ताबा लाने में लग गयी। इधर ज़ुलक़रनैन ने अपनी हिक्मते अमली से दातों को पिघलाने वाला एक सुफूफ तैयार किया था।जिसकी ख़ासियत यह थी कि जब वह लोहे या तांम्बे पर डाला जाता था तो वह पानी की तरंह पिघल जाता था। मुख़तसर यह कि पहाड़ी क़ौम लोहा और ताम्बा लाती गयी और इस सफुफ की मद्द से बड़ी बड़ी सिलें तैयार होती रहीं।

एक नामालूम मुद्दत में जब यह तमाम तैयारियां मुकम्मल हुई और दीवार की तामीर का काम शुरू हुआ इस करंह की लोहे की तैयार शुदा सिलें तरतीब के साथ एक दूसरे पर जमायी जाने लगीं यह तक कि तीन मील लम्बी एक दीवार बुलन्द हुई फिर ज़लक़रनैन ने इन्हें हुक्म दिया कि अब तुम लोग इस दीवार के चारों तरफ लकड़िया कजमा करो। पूरी क़ौम लकड़िया जमा करने में मसरूफ हुई। और बड़े बड़े तनों और दरख़तों को काट काट कर दीवार के चारों तरफ ढेर कर दिये गये। जब लकड़ियों का अम्बार लग गया तो जुलक़रनैन ने कहा कि इसमें आग लगा दो और दूर से इसे धौकते रहो। धौकते धौकते जब वह दीवार सुर्ख़ अंगारा बन गयी तो ज़ुलक़रनैम ने धातु पिघलाने वाले सफ़ूफ़ की मद्द से तांबा पिघला पिघला कर इस दीवार में डाल दिया। यहां तक कि दीवार इस करंह मजबूत और मुसतहकम हो गयी कि न तो याजूज और माजूज की क़ौम उस पर चढ़ सकती थी और न ही इसमें नक़ब के ज़रिये कोई रास्ता बना सकती थी।

दीवार की तकमील पर ज़ुलक़रनैम नै सजदए शुक्मर अदा किया और कहा कि ये मेरे परवरदिगार की नीशानी और मेहरबानी है। क़ुरबे क़यामत जब हुज्जतुल्लाह का जहूर होगा तो खुदा वन्दे आलम इस दीवार को मुनहदिम कर देगा। इसका वायदा सच्चा और अटल है।

अल्लामा मजलिसी अ 0 र 0 का कहना है ज़ुलक़रनैन के साथ दीवार बनाने में खुदा ने एक परिशता मुक़र्रर किया था जिसका नाम रक़ाईल था।

समन्दर की सैर

हयातुल क़ुलूब क़ससे जुलक़रनैन में इमामे जाफरे सादिक़ अ 0स 0 से मरवी है कि जब दुनिया के गोशे पर ज़ुलक़रनैन की हुकूमत मुसल्लम और मुस्तहकम हो गयी तो उनके दिल में समुन्दर की सैर और उसके गहराइयों का हाल मालूम करने का इश्तेयाक़ पैदा हुआ। चुनान्चे उन्होंने शीशे का एक बड़ा तवील व अरीज़ सन्दूक़ बनवाया कताकि इसके अन्दर बैठ कर बाहरी चीजों का मुशाहेदा किया जा सके। जब इस संदूक के अन्दर हवा पानी और खाने वगैरा का सारा इन्तिज़ाम कर लिया गया तो वह इसे अपने कुछ हमराहियों को साथ लेकर समुंदर के किनारे पहुंचे और एक जहाज़ नुमा कशती पर सवार एक तरफ चल पड़े। जब इनकी कशमी समुन्दर के दरमीयान में पहंची तो उन्होंने सन्दूक़ में एक रस्सी बांधी और अपने साथियों से कहा कि मुझे सन्दूक़ में बन्द कर के समुंदर में डाल दो। और मुझे तह की तरफ जाने दो। लेकिन इस बात का ख़याल रहे कि जब मैं पानी के अन्दर से रस्सी को हरकत दूं तो मुझे ऊपर खैंच लेना। गर्ज कि ज़ुलक़रनैन समुंदर गहराइयों में उतरते गये। और समन्दरी अजायबात और इसके मख़्लूक़ात को देखते गये यहां तक कि एक शख़्स ने सन्दूक़ पर हाथ मारा और इसे अपनी तरफ मुतावज्जे करना चाहा और पूछा कि ऐ ज़ुलक़रनैन कहां का इरादा है कहा चाहता हूं कि समन्दर की तह तक पहुंच जाऊं और वहां देखूं कि क्या है। इस शख़्स ने जवाब दिया कि इस वक्त प इस जगह हैं जहां से तूफ़ान के जमाने में हज़रते नूह गुज़रे थे और इनका तीशा कशती से गिर गया था और आज तक इसकी गहरइयों में उतरता चला जा रहा है। और अभी तक तह तक नहीं पहुंचा। लिहाज़ा मेरी बात मानिये तो इस जगह से वापस चले जायें। और अपने को मज़ीद ख़तरे में न डालें। ज़ुलक़रनैन ने इस शख़्स के कहने पर अमल किया और रस्सी को हरकत देकर वापस पलटे और उस मुक़ाम पर आपने एक हद क़ायम कर दी जो सिद्दे सिकन्दरी कहलायी। आज वह जगह बाक़ी है।

नमाज़ी से मुलाक़ात

ज़ुलकरनैन समुंदर की सैर से लुत्फ अन्दोज़ होने के बाद वापस पलट रहे ते कि रास्तें में इन्होंने देखा कि एक शख़्स नमाज़ में मसरूफ है और उसने इन्हें देख कर भी कोई तवज्जो न की तो वह ठहर गये। और जब वह शख़्स नमाज़ से फारिग हो चुका तो वह उनके क़रीब गये और कहा कि तुमने मुझे देखकर बी मेरी तरफ तवज्जे नहीं की जानते हो मैं कौन हूं इसने कहा जानता हूं लेकिन मैं इस वक़्त उसकी मुनाजात में मसरूफ था। जिसकी बादशाही तेरी बादशाही पर ग़ालिब , जिसकी हुकूमत तेरी हुकूमत से बाला। मुझे ख़ौफ था कि मैं अगर तेरी तरफ मुतावज्जे हुआ तो वह कहीं नाराज न हो जाये। ज़ुलक़रनैन ने महसूस किया कि यह कोई ख़ुदा परस्त शख़्स है। लिहाज़ा उन्होने कहा कि क्या तुम इस बात पर राज़ी हो कि मेरे साथ चलो ताकि मैं तुम्हें हुकूमत शरीक करूं और उमूरे ममलेकत में तुम्से मद्द हासिल करूँ।

इस शख्स ने जवाब दिया कि मैं चार शर्तों पर तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं। अव्वल यह कि तुम मुझे ऐसी नेअमत अता करो जो कबी जवाल पज़ीर न हो , दूसरे यहकि मुजे ऐसी सेहत दो जिसमें बीमारी का ख़तरा न हो , तीसरे यह कि मुझे ऐसी जवानी बख़शों जिसमें बुढ़ापा न हो और चोथी श्रत यह है कि मुझे ऐसी ज़ीन्दगी देने का वादा करो जिसमें मौत न हो। ज़ुलक़रनैन हैरत ज़दा रह गये और उसने जवाब में कहा कि मख़लूक़ात में कौन ऐसा है जो इन चीजों पर क़ादिर है। इस शख़्स ने कहा तो पिर मुझे उसी के साथ रहने दो जो इन तमाम चीजों पर कुदरत रखता है।र ऐ ज़ुलक़रनैन तुम बी इसके क़बज़ए कुदरत में हो। ज़ुलक़रनैन ने इस खुदा परस्त की गुफतुगू से इबरत हासिल की और आगे बढ़ गये।

ज़ुलक़रनैन से चन्द सवालात

अल्लामा मजलिसी अपनी किताब हयातुल कुलूब में लिखते हैं कि जुलक़रनैन का गुज़र एक ऐसे शख़्स के पास से हुआ जो आलिम था। उसने आपसे चन्द सवालात किया। उसने कहा ऐ जुलक़रनैन आप मुझे इस बात से आगाह फरमाइये कि वह दो चीज़ें कौन सी हैं जो अपनी किलक़त के बात से अब तक उसी हालत पर काय़म हैं। वह दो चीज़े कौन सी हैं जो बाते अज़तक़लीक़ अब तक रवां दवां हैं। वह दो चीज़ें से भी मुझे मुत्तेला फ़रमाइये जो एक दूसरे पर बराबर आती रहती हैं। और उन दो चीजों से बी आगाह कीजिए जो एक दूसरे की दुश्मन हैं। जुलक़रनैन ने कहा वह दो चीज़ें जो किलक़त के बाद से अपनी हालत में बरक़रार हैं वह ज़मीन व आसमान हैं। वह दो चीज़ें जो अब तक रवां दवां हैं वह आफ़ताब और महताब हैं। इसी तरंह वह दो चीज़ें जो एक दूसरे के बाद जुहूर होती हैं वह दिन और रात हैं। वह दो चीज़ें जो एक दूसरे की दुश्मन हैं इन्सानकी जिंन्दगी और मौत है। यह जवाबात सुनकर उस आलिम ने कहा बेसक तुम इस क़ाबिल हो कि खुदा तुम पर अपनी नेअमतों और नवाज़िशों को जारी रखे।

मुर्दों की खोपड़ियां

अल्लामा मजलिसी रक़मतराज़हैं कि इसी सफर के दौरान जुलक़रनैन का गुज़र एक ऐसे शख्स के पास से बी हुआ जो मुर्दों की खौपड़ियां जमा किये हुए उन्हें उलट पुलट कर देख रहा है। जुलक़रनैन ने उससे दरियाफ़त किया कि तुम इन खोपड़ियोंम में क्या देख रहे हो उसने जवाब दिया कि मैं जानना चाहता हूं कि इनमें कौन अमीरथा और कौन ग़रीब। मगर मुझे कुछ पता नहीं चलता। ज़ुलक़रनैन समझ गये कि यह शख़्स मुझे इबरत का दर्स दे रहा है और इसका मतलब सिर्फ मेरी तन्बीह है। चुनान्चे वह आगे बड़ गये।

आबे हयात की तलाश

क़ौमे याजूज और माजूज की रोक के लिये आहिनी दीवार की तामीर के मौक़े पर रक़ाएल नामी जिस फरिशते को खुदा ने मासूर किया था ज़ुलक़रनैन की उससे दोस्ती हो गयी थी। चुनान्चे वह फरिशता कभी कभी अपने परवरदिगार से इजाज़त लेकर जुलक़रनैन के पास आया करता था और मुख़लिफ़ मौजूआत पर दोनों में गुफतुगू हुआ करती थी। एक दिन ज़ुलक़रनैन ने उससे कहा ऐ रक़ाएल काश मैं इतने दिनों तक ज़िन्दा रहता कि मैं अपने परवरदिगार की इबादत का हक़ अदा कर सकता। क्या इसकी कोई सूरत मुम्किन है। रक़ाएल ने जवाब दिया कि हां। परवरदिगार ने ज़मीन से एक चश्मा पैदा किया है जिसका नाम आबे हयात है। उसके पानी में यह तासीर है कि जो शख़्स उसे पी लेता है उसे मौत नहीं आती।जब तक अपनी मौत के लिए खुदा से इस्तेदुआ न करे।जुलक़रनैन ने पूछा कि क्या तुम बता सकते हो कि वह चश्मा कहा है। रक़ाएल ने कहा कि बस मै इतना जानता हूं कि इसी ज़मीन के किसी मुक़ाम पर बहरे जुल्मात है और वह चश्मा इसी में है। मगर वहां तक पहुंचना नामुम्किन अम्र है। रक़ाएल की ज़बानी यह ख़बर सुनकर ज़ुलक़रनैन को फ़िक्र लाहक़ हुई कि किस तरंह बहरे जुल्मात का पता लगाया जाए और किस तरंह इस चश्मे तक पहुंचा जाये। चुनान्चे उन्होंने तमाम दुनिया के उलेमा व फ़ोक़हा और औसिया और औलिया को जमा किया जो आसमानी किताबों के माहिर और आसारे पैग़म्बरी को देखे हुए थे। उनसे दरियाफ़त किया सभीं ने अपनी लाइल्मी का इज़हार किया। इस बज़्म में जनाबे ख़िज़ भी तशरीफ फ़रमा थे उन्होने बताया कि वह जुल्मात और वह चश्मा मशरिक़ में है। मैने इसका हाल हज़रते आदम के सहीफे मे पढ़ा है। जनाबे ख़िज की इस निशानदेही से ज़ुलकरनैन के हौसलों पर जवानी आ गयी।

चुनान्चे उन्होंने तमाम उलमा व फोक़हा , होकमा को अपने हमराह लिया और काफ़ी साज़ो सामा नीज़ लशकर के साथ जनाबे खिज़ की रहनुमायी में आबे हयात की तलाश मे निकल खड़े हुए।और बारह साल तक मुसलसल सफर की सउबतें बरदाश्त करने के बाद बिला आख़िर उस बहरे जुल्मा तक पहुंच गये जिसका जिक्र रक़ाइल ने किया था। जुलक़रनैन ने अपने लशकर को जुल्मात के किनारे ठहराया और उसमें से छह हज़ार अहले दानिश व अहले कमाल को मुनतख़ब करके उनसे फ़रमाया कि मै इस ज़ोलमात में दाख़िल होकर इसे तय करना चहाता हूं तुम्हारी क्या राय है। अकसरीयत ने मुखालेफत की और कहा कि यह इरादा तर्क कर दीजिए। ज़ुलकरैन ने कहा मै जो इरादा कर चुका हूँ वह अपनी जगह अटल है ख्वाह कि मै ज़िन्दा रहू या हलाक़ हो जाउं। उलमा व होकमा ने भी समझाया मगर जब ज़ुलकरनैन किसी की बात मानने पर तैयार न हुए तो लौगो ने कहा कि आप को इख्तेयार है मगर इस सफर में हम आप से माफी के ख्वास्तगार हैं।

इसके बाद जुलक़रनैन ने ख़िज्र से पुछा कि क्या जोलमात के सफर में आप मेरी रहबरी फरमायेगें। जनाबे खिज्र ने जब अपनी रज़ा मंदी का इज़हार फरमाय़ा तो जुलकरनैन ने इन्हे दो हज़ार का एक दस्ता फ़राहम किया और इस पर इन्हे सरदार मुकर्रर कर के और खुद भी चार हज़ार जांबाज़ों का दस्ता अपने साथ भी लिया। बाक़ी लशकर को यह हुक्म दिया कि वह इसी मक़ाम पर रहे और मेरी वापसी का इन्तज़ार करे। अगर बारह साल की मुद्दत ग़ुज़र जाने पर में वापस पलट कर न आउं तो तमाम लशकरियों को यह इखतेयार होगा कि जहां चाहे चलें जायें। गर्ज़ कि बाकरा घोडियों पर सवार छः हज़ार का यह अज़ीम क़ाफेला जोलमाल में अपनी मंज़िल की तरफ रवाना हुआ। सबसे पहले हज़रते खिज्र दाखिल हुए उनके पीछें ज़ुलकरनैन और उनका लशकर। सफर का तरीक़ा यह था कि जनाबे खिज्र रवाना होते थे ज़ुलक़रनैन उसी मंजिल पर क़याम करते जाते थे।

अल्लामा मजलिसी का कहना है कि जुलकरनैन को यह भी पता बताया गया था कि यहां आबे हयात का चश्मा वाक़ये है वहा मिनजुमला उनके 356 चश्में और भी है जो आबे हयात की तासीर नही रखते इसलिए वह अपने साथ नमक आलूदा खुश्क मछलियां भी लाये थे। और उन्होने ज़ोलमात में दाखिल होने से पहले 360 मछलियां जनाबे खिज्र अ 0 को दी थी। ताकि ऐसा हंगाम आये तो वह 356 आदमियों में एक एक मछली तक़सीम करें और एक एक आदमी को एक एक चश्में पर इस हिदायत के साथ मुकर्रर कर दें कि अगर वह अपनी मछली को इस चश्में में जिस पर वह मुक़र्रर थें गोता दे। अगर वह मछली ज़िन्दा होकर चलनें लगे तो वह समझ लेंगे कि आबे हयात का चश्मा यही हैं। फिर इसकी ख़बर मुझे भी कर दीजिये। चुनांचे जनाबे खिज्र जब इस मुकाम पर पहुचें जहां 360 चश्में थे। तो उन्होने जुलक़रनैन की हिदायत के मुताबिक अपने असहाब में से एक एक मछली 356 आदमियों में तक़सीम कर के एक मछली अपनें पास रख ली। फिर आपने इन आदमियों को अलग अलग चश्मों पर भेजा और एक चश्में पर खुद भी गये इत्तेफाक़ से जिस चश्में की जानिब जनाबे खिज्र गये वही चश्मा आबे हयात का था।

जैसे ही आपने उस नमक आलूदा मुर्दा मछली को पानी में डाला वह जिन्दा हो गयी और पानी पर चलनें लगी. फिर आपने उसी पानी से गुस्ल किया और कपड़े धोये और उसे जी भर कर पिया। इसके बाद आप अपने असहाब के साथ ज़ुलकरनैन के पास आये और इनसे सारा माजरा बयान किया और खडुशकडबरी दी। लेकिन जब ज़ुलकरनैन को साथ लेकर चश्में के मुक़ाम पर फिर वापस आये तो लाख इस चश्में को तलाश करने की कोशिश की गयी लेकिन वह न मिल सका। यहां तक कि यह लोग इस मक़ाम से आगे बढ़ गये और बहरे जुलमात से आगे बढ़ कर रोशनी के समन्दर में पहुच गये। यह आफताब या महताब की रोशनी न थी। बल्कि उसे अनवारे इलाही की तजल्ली से ताबीर किया जाये तो ज्यादा मुनासिब होगा। इस जगह की ज़मीन सुर्ख थी और इसके संगरेज़े मरवारीद के थे। इस मक़ाम पर ज़ुलकरनैन ने एक आलीशान महल को देखा जो चमक दमक के साथ अपनी खामोशी को दास्तान दोहरा रहा था।

जुलकरनैन ने जनाबे खिज्र की निगरानी में अपने लशकर को महल के बाहर ठहराया और खुद तनो तनहा उसमें दाखिल हो गये। जंहा सिर्फ वीरानी नज़र आयी फिर उन्होने देखा कि एक तरफ बालायी हिस्से पर जानें के लिए एक ज़ीना था आप बेधड़क इस ज़ीने से उपर पहुंचे तो वहां इन्हें एक इन्तेहायी खूबसूरत शख्स नज़र आया जिसकी शक्ल व सूरत इंसान की शक्ल व सूरत सें मुशाबेह थी। वह शख्स सफेद लिबास में महफुस अपने मुहं पर हाथ रखे आसमान की तरफ कुछ देख रहा था। ज़ुलकरनैन की आहट पर वह चौंका और उनसे पुछा कि तुम कौन हो कहा मैं ज़ुलक़रनैन क्या इनती अज़ीम और कुशादा दुनिया जिसे छोड़ कर तुम यहां आये हो काफी न थी। फिर इसनें एक पत्थर का टुकड़ा उठा कर ज़ुलकरनैन की तरफ फेंका और कहा कि इसे ले जाओ और इसको और पत्थरों के साथ वजन करो तुम्हें इससे अजीबो ग़रीब सबक मिलेगा।

ज़ुलकरनैन ने वह पतथर का टुकडा उठा लिया और वापस पलटे। फिर आपने अपने असहाब से सारा वाक्या बयान किया और पत्थर दिखाया और हुक्म दिया कि इस पत्थर के वजन की हकीकत से आगाह किया जाये। इस पत्थर का वजन किया गया जिस चीज़ से भी वह तोला जाता था वजन में ज़्यादा ठहरता था। यहां तक कि एक हज़ार पत्थर इसके बराबर तराज़ू में ऱखें गये फिर भी वह वजन में ज्यादा ही रहा। जनाबे खिज्र भी यह करिश्मा देख रहे थे। उनसे ज़ुलकरनैन ने कहा कि क्यों इस पत्थर का वजन ज्यादा ठहरता है। हज़रते खिज्र ने जवाब दिया कि यह मामला अभी हल हो जाता है। इस पत्थर को एक बार फिर वजन किया जाये। चुनांचे जैसे ही वह पत्थर तराजू के एक पल्ले मे रखा गया जनाबे खिज्र ने इस पर एक मुठ्ठी खाक़ डाल दी और कहा कि अब इसको वजन किया जाये। ग़र्ज़ कि इस पत्थर के मुक़ाबले में जब एक पत्थर रख कर तराजू उठायी गयी तो उसका वजन कम ठहरा।

हांलाकि खाक़ डालने से उसे बढ़ जाना चाहिए था। फिर वह पत्थर हर शय के मुक़ाबले में कम ही ठहरता चला गया। तो ज़ुलकरनैन ने पुछा ऐ खिज़्र आखिर इसमें राज़ क्या है तो जनाबे खिज़्र ने फरमाया ऐ ज़ुलकरनैन जिसने आपको यह पत्थर दिया है वह फरिश्ता था और इसने इस पत्थर के इस मामुली टुकड़ों को आप की मिसाल क़रार दिया है कि ख़ुदा ने तमाम दुनिया की बदशाही आप को अता कर दी है फिर भी आप की हिरस व हवस में इज़ाफा होता जा रहा है। एक दिन आपकी यह हिरसों हवस खुद बखुद खत्म हो जाएगी। यह सुनकर ज़ुलकरनैन पर रिक़्कत तारी हो गयी उन्होने कहा की ऐ ख़िज्र तुम सच कहते हो यह पत्थर मेरे लिए दरसे इबरत है। अब मैं अपनी ज़िन्दगी सिर्फ इबादते खुदा में गुज़ारुगां। इसके बाद ज़ुलकरनैन और उनके लशकरी बहरे जुलमात मे दाखिल होकर वापस पलटे और जब वापसी पर भी आबे हयात का चश्मा जुलक़रनैन को न मिला तो इस पर उन्होनें खिज़्र से कहा कि यह मेरी क़िस्मत है कि खुदा ने मुझको इससे महरुम रखा।

अल्लामा मजलिसी तहरीर फरमाते है कि आबे हयात की जुस्तजू के बाद वापसी पर ज़ुलक़रनैन ने दुमतहुल जिनदल के एक मक़ाम पर सुकूनत इखतेयार कर ली। और 500 बरस की उम्र में वहीं इन्तेक़ाल फरमाया।

हालाते हज़रते इब्राहीम अ 0

नसब- हज़रत इब्राहीम बिन नाहूर बिन सारूग़ बिन अरग़वा बिन फ़ालिग़ बिन आबिर बिन शलिख़ बिन क़िनान बिन अरफशद बिन साम बिन नूह अ 0

विलादत – हज़रते नूह से 2040 साल बादनमरूद बिन क़ेनआन के दौरे हुकूमत में आप कूफ़े (इराक) के नवाह में कोसारिया नामी गांव के एक ग़ार में मुतावल्लद हुए। आपकी जाए विलादत के बारे में बाज़ मोअर्रेख़ीन ने बाबुल और बाज़ ने एहवाज़ भी तहरीर किया है। लेकिन मेरी तहक़ीक़ के मुताबिक़ कूफ़ा ज्यादा दुरूस्त है। ग़ार में प की विलादत का वाक़ेया यूं बयान किया जाता है कि आपव का बुत साज़यो बुत परस्त चचा जिसका नाम (आज़र) था। नमरूद के दरबार में साही ज्योतिषि के मंसूब पर फाएज़ था और मुस्तक़बिल में आने वाले हालात के बारे में पेशिनगोइयां किया करता था। एक दिन उसने अपने इल्मे नजूम के ज़रिये नमरूद को यह ख़बर दी कि तेरी हुकूमत में ऐसा बच्चा पैदा होने वाला है जो तेरी बिसात उलट कर तेरी तबाही और हलाकत का सबब बनेगा।

नमरूद चूंकि आज़र की बात पर यक़ीन व भरोसा करता था इसलिए इसने अपनी हुकूमत में हर तरफ मनादी करा दी कि आज की तारीख से कोई मर्द अपनी रत के साथ मुक़ारेबत नहीं करेगा। जो औरत हामिला हो उसका हमल फौरी तौर पर गिरा दिया जाये। और जो बच्चा पैदा हो उसी क़त्ल कर दिया जाये। इस नमरूदी फरमान पर सख़्ती से अमल हुआ और हज़ारो मर्द व रतों को मुक़ारेबत के जुर्म में कैद कर लिया और हर नवज़इदा मासूम बच्चा मौत के घाट उतार दिया गया।

इसी ज़माने में मादरे इब्राहीम बी हामेला थीं मगर खुदा की कुदरत से इनका हमल ज़ाहिर न हुआ। यहां तक कि जब हज़रते इब्राहीम अ 0 की विलादत का वक्त करीब आया आप पर वज़ये हमल के आसार मुरत्तब हुए और दर्दे जेह में मुब्तेला हुईं। तो आप ने घर से बाहर निकल कर पहाड़ के एक ग़ार में पनाह ली और वहीं हज़रते इब्राहीम अ 0 पैदा हुए। विलादत के बात इस ख़ौफ से कि बच्चा कहीं क़त्ल न कर दिया जाये। दूसरे दिन हज़रत इब्राहिम अ 0 की वालिदा ने इन्हें खुदा के हवाले किया और ग़ार का दहाना एक पत्थर से बन्द करके पने घर वापस आ गयी।

हज़रते इब्राहीम अ 0 के सामने यह पहली इम्तेहानी मंज़िल थी जब आप ग़ार की तन्हायी में अपनी मां की आग़ोशे तरवियत और दूध से महरूम हो गये। लेकिन चूंकि नबूवत का ताज प के सर पर रखा जाने वाला था। इसलिए कुदरत ने अपने इन्तेज़ामें कास से आपके दाहिने हाथ के अंगूठे से एक दूध का चश्मा जारी किया जिससे आप सिकम सेर होने लगे। इस दूध में कूवते नमूं इस क़द्र ज़्यादा थी कि बच्चा एक माह में जितना बढ़ता है. हज़रते इब्राहीम एक दिन में इतना ही बढ़ते थे। ममता से मजबूर होकर कभी- 2 आप की वालेदा भी लोगोंम की नज़रें बचा कर ग़ार में तशरीफ ले जातीं और अपने बच्चे को दूध पिला कर नीज़ प्यार वग़ैरा कर के वापस चली आती थीं। सवा साल के अरसे में ही हज़रते इब्राहीम इस क़ाबिल हो गये थे कि वह अच्छी तरंह गुफतगू करने लगे थे।

एक दिन हज़रते इब्राहीम अ 0 ने अपनी वाल्दा से फरमाया कि ऐ मादरे गिरामी आप मुधे यहां से गर ले चलिए ताकि देखूं कि इस दुनिया के हालात क्या हैं। आप की वालेदा ने कहा ऐ बेटा अभी इसका मौक़ा नहीं हा अगर ऩमरूद को ख़बर हो गयी तो वह तुम्हें क़त्ल करवा देगा। रफता रफता ग़ार में रहते रहते हज़रते इब्राहीम को 13 साल की मुद्दत गुज़र गयी। एक दिन फिल आप ने पलमाया कि ऐ मादरे गिरामी आप मुधे गर ले चलिये। आपने फरमाया कि ऐबेटा अच्छा मैं तेरे चचा आजटर के खयालात मालूल कर लूं और इससे इजाज़त ले लूं तो तुझे ले चलूं। चूंकि वह नमरूद का ख़ास आदमी है।

कहीं तेरे बारे में कुछ कह न दे यह कह कर वाल्दए इब्राहीम रुख़सत हो गयीं और जब वह थोड़ी दूर निकल गयीं तो हज़रते इब्राहीम भी इनके पीछे पीछे चल पड़े और अपने घर गये। जब आज़र की नज़र हज़रते इब्राहीम पर पड़ी तो हैरत अंगेज़ हुआ और उसने मादरे इब्राहीम से पूछा कि यह कौन है फरमाया कि यह मेरा बेटा है जो तेरह साल क़ब्ल नमरूद के ख़ौफ से फलां ग़ार में पैदा हुआ था। और मैंने आज तक इसे लोगों की नज़रों से पोशीदा रखां। इस पर आज़र सख़त बरहम हुआ और कहा कि अगर नमरूद को इसकी ख़बर हो गयी तो वह इसे ज़िन्दा नहीं छोड़ेगा। फिलहाल तुम यह वादा करो कि अपनी ज़बान बन्द रखोगे।

रवायतों से पता चलता है कि आज़र ने जनाबे इब्राहीम की वालदा से अपवी ज़बान बन्द रखने का वादा तो कर लिया लेकिन अक्सर उसके दिल में यह खयाल पैदा होता कि वह नमरूद को उसकी ख़बल दे दे। लेकिन जब हज़रते इब्राहीम का चेहरा इसकी नज़रों के सामने आता तो इसके दिल में आप की तरफ से मोहब्बत जोस मारती और वह अपना ख़याल तर्क कर देता था। अल्लामा मजलिसी अलैहिर्रहमा अपवी किताब हयातुल कूलूब में तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमामे हसन अ 0 का यह क़ौल नक्ल किया है कि हज़रते इब्राहीम इन्तेहायी ख़ूबसूरत और हसीन और जमील थे। ख़ूबसूरती का यह आलम ता जिसकी नज़र आप पर पड़ती थी उसके दिल में आप की मोहब्बत पैदा हो जाती थी।

हज़रत रसूल ख़ुदा स 0 अ 0 का क़ौल है कि हज़रते इब्राहींम शक्ल व सूरत में मुझसे बहुत मुशाबेह ते। रवायतों से यह भी पता चलता है कि हज़रते इब्राहीम ख़ूबसूरती में हजरते यूसुफ़ के हुस्न के बराबर थे।

आज़र की हक़ीक़त

बाज़ मोअर्रेख़नी यह न समझ सकेकि आज़र दरअस्ल इब्राहीम का बाप था या चाचा। चुनांचे इस ज़ैल में उलमाए तफ़ासीर और सियर तारीख़ ने बड़ी-बड़ी बहसें की हैं और आख़िर कार यह नतीजा बरामद किया है कि आज़र दर हक़ीक़त इब्राहीम का चचा ही था। जैसा कि अल्लमा अब्दुल अली ने शरए मुस्लिम में तहरीर फरमाया है कि आज़र के बारे में सही क़ौल यह है कि वह हज़रते इब्राहीम का चचा था। आप के वालिद तारीख़ थे। क्योंकि अरब का दस्तूर था कि जो चचा अपने भतीजे की परवरिश करता था वह उसका बाप कहलाता था।

इसी उसूल के तहत खुदा ने भी कुरआने मजीद में फरमाया है कि इज़ क़ाला इब्राहीमा लेअबी (जब जनाबे इब्राहीम ने अपने अब से कहा) यहां तहक़ीक़ के खिलाफ अगर कोई यह बात कहता है कि कि खुदा ने इब्राहिम के बाप को बुत परस्त कहा है तो हमारा जबाव यह है कि बाप का लफज़ चचा के लिए भी इस्तेमाल होता है। जैसे कि हज़रते याकूब के फरज़न्दो ने इब्राहीम , हज़रते इस्माइल , हज़रते याकूब़ के माबूद की इबादत करते हैं। इसमें हज़रते याकूब़ के फरज़न्दो ने हज़रते इस्माई को खभी हज़रते याकूब का बाप कहा है। हालांकि यह मालूम है कि हज़रते इस्माइल आप के बाप न थे बल्कि आप के चचा थे। यह भी एहतेमाल है कि हज़रते इब्राहीम के बुतपरस्त बुजुर्ग का तज़केरा है इससे मुराद आप का नाना हो। क्यूंकि अरबी ज़बान में नाना को भी बाप कहते हैं। नमरुद के दरबार से वाबस्ता होने के बावजूद आज़र अपने पेशे के लिहाज़ से सनमसाज़ व बुततराश था। चुनान्चे वह बुत बनाया करता था। और अपने बेटोंको दिया करता था कि वह इन्हें बाज़ार में ले जाकर फ़रोख़त करें। एक दिन हज़रते इब्राहीम को भी कुछ बुत दिये और इनसे भी कहा कि इन्हें ले जाओ और बाज़ार में फरोख़त करो। हज़रते इब्राहीम ने इन बुतों की की गर्दनों में रस्सी बांधी और इन्हें घसीटते हुए बाज़ार में ले गये और वहां पुकार पुकार कर कहने लगे कि ऐ भाइयों मैं ऐसी चीज़ बेचने लाया हूं जो किसी को भी फायदा नहीं पहुंचा सकती। और न ही इससे किसी को कोई नुक़सान का अन्देशा है। फिर आप इन बुतों को पानी के क़रीब ले जाते थे और इनसे कहते थे कि तुम्हें प्यास लगी होगी लो पानी पी लो कभी कहते कि ऐ बुतों कुछ बातें करो बुतों के साथ हज़रते इब्राहीम का यह बरताव देख कर तमाम बाज़ारी लोग शशदर रह गये। जब आज़र को इस तौहीन का हाल मालूम हुआ तो वह भी आपे से बाहर हो गया और इसने हज़रते इब्राहीम को घर में क़ैद करके इन पर घर से निकलने पर पाबन्दी आयद कर दी।

तारीख़े इस्लाम का आग़ाज़

इस्लाम जो अल्लाह का पसन्दीदा दीन और कुरआनी आयात का मजमुआ है हमेशां से था और हमेशा रहेगा। तमाम अम्बियाए मुरसलीन की तब्लीग़ी कोशिशें सिर्फ और सिर्फ इस्लाम के लिए थीं। चुनान्चे जो हज़रते आदम पैग़ाम लाये वह भी इस्लाम था। और जो शीस इद्रीस और नूह जिस अम्र की तब्लीग की वह भी इस्लाम था।

इसी तरंह जितने अम्बियाए मुरसलीन मबऊस हे वह सब इसनलाम ही के मुबल्लिग़ थे। इस लेगाज़ से आदम नूह और तमाम अम्बिया के सरगुज़ार हयात सब इस्लाम की तारीख़ का जुज़ है। मगर हज़रते इब्राहीम से पहले इस्लाम इस्लाही तौर पर इस्लाम के नाम से मौसूम न था। कुरआने मजीद से पता चलता है कि लफज़े इस्लाम का आग़ाज हज़रते इब्राहीम के वक्त से हुआ। आप ही ने इस दीने इलाही के पौरों का नाम सबसे पहले मुस्लिम रखा। जैसा कि इरशाद हुआ है (इवीसवाकुम उसमुस्लेमीनी मिनक़ब्ले) और सबसे पहले इस लक़ब से मौसूम होने लावे हज़ते इब्राहीम और इनके फ़रज़ंद इस्मीइल ते जिन्होंने अपनी नश्ल में इनके बाक़ी रहने की दुआ भी की। जैसा कि कुरआने मजीद का बयान है कि (परवरदिगार) हमें आपनी बारगाह में मुस्लिम कराह दे और हमारी नस्ल में भी एक उम्मत क़रार दे जो तेरी बारगाह में मुस्लिम हो। इससे काफ ज़ाहिर है कि औलादे इब्राहीम जो लोग नस्ले इस्माइल से हैं वह इस्लाम ही के पैरो समझे जायेंगे।

चूंकि इनके बुजुर्गो का दीन यही था। जिसकी बक़ा के लिए इन्होंने बक़ा के लिए उन्होंने दुआ फरमायी। मेरे नज़दीक नस्ले इस्हाक़ का सिलसिला बी ख्वाह वह ईसाई पर मबनी हो या मूसा पर उसूली तौर पर इस्लाम ही से मुन्सलिक है। यह और बात है कि इनकी शरियतें मखसूस थी जिनकी वजब से इनके पैरो बाद में यहूदी और नस्रानी के नाम से मैसूम हुए। मगर यह शरीयते बनी इस्राइल से मुख़तस थीं औलादे इब्राहीम व इस्माइल के क़तई नहीं थीं। औलादे इस्माइल के लिए सिर्फ दीने इब्राहीम था जो क़ानून और शरीअत के एतेबार से इस्लाम कहलाता था और ब नस्से कुरआन यहूदियत और नसरानियत के मुक़ाबले में था जैसा कि कुरआनि से वाज़ेह है कि इब्राहीम न यहूदी ते न ईसाई बल्कि वह दीने इलाही के पैरो और मुसलमान थे। वह मुशरिकों में से नहीं थे।

हज़रते इब्राहीम ही वह पहले शख़्स हैं जिन्होंने अपने अमल के ज़रिये मेहमान नवाज़ी का दर्स दिया ख़तने का हुकम जारी किया। मूछों और नाखूनों को तरशवाया मिसव़ाक की , बालों को कंघी से संवारा , पानी से नाक और मुंह साफ करना बताया , नवाज़ पढ़ने का कग्म दिया और इसका तरीक़ा बताया। सजदे मुअय्यन किये और पानी से इस्तिनजे का तरीक़ा राएज किया। कुछ मोअर्रेख़ीन ने लिखा है कि आप ने तीशे से अपना ख़तना खुद किया। इस रवायत से मुझै इत्तेफ़ाक नहीं है क्यूंकि इमाम और पैगम्बर ख़तना शुदा नाफ बुरीदा पैदा होता है। हज़रते इब्राहीम को खुदा ने पहले नबी फिर रसूल बनाया इसेक बाद इमामत के मन्सब पर फाएज़ किया।

जिससे यह मालूम होता है कि खुदा की नज़र में इमामत का मन्सब तमाम मनासिब से लन्द है। और शायद यही वजब थी कि जनाबे इब्राहीम ने अपनी नस्ल में इमामत की दुआ भी की थी।

हज़रते इब्राहीम के तबलीग़ी कारनामे

हज़रते इब्राहीम अ 0 के दोर मेंम मुशरेकीन के दरमियान तीन तरहं के शिर्क राएज थे।

1. चांद , सितारों और सूरज की परस्तिश

2. इसनाम परस्ती

3. इन्सान परस्ती

आप ने इन तीनों बातें के खिलाफ खुल कर एहतेजाज किया और बड़े ही हकीमाना अंदाज़ में इन्हें तस्लीम करने से इन्कार किया। चुनान्चे जब रात की तारीकी छायी और सितारा नज़र आया तो प ने फरमाया कि यहब मेरा परवरदिगार है और जब वह ग़ुरूब हो गया तो कहा मैं कुरूब हो जाने वाली चीज़ को पसन्द नहीं करता। फिर चांद को चमकते हुए देखा तो फरमैया कि क्या यह मेरा ख़ुदा है ? जब वह भी कुरुब हो गया तो बोले कि आगर मेरा हक़ीक़ी ख़ुदा मेरी हिदायत न करता तो मैं बी गुमराहों की तरंह होता और जब सूरज निकला तो फरमाया कि यह तो सबसे बड़ा है क्या यह मेरा ख़दा हो सकता है। जब वह भी गुरुब हो गया तो कहा कि ऐ मेरी क़ौम वालों जिन जिन चीज़ों का तुम खुदा समझते हो में इन सब चीजों से बेज़ार हूं यह हरगिज़ ख़ुदा नहीं हो सकते। मेरा खुदा तो बस वही है जो ज़मीनो आसमान का पैदा करने वाला है और मैं मुशरेकीन में से नहीं हूं।

हज़रते इब्राहीम का इन चीजों का खुदा कहना बतौर इस्तेक़हाम और इनकारी के था और क्यूंकि मुशरेकीन में इस वक्त लोग चांद , सूरत और सितारों की खुदायी के कांयल थे और आप काहिन को माकूल करना और दलील के जरिये खुदाये यकता की ख़ुदाई साबित करना मन्जूर था इसलिए यह तक़रीर फरमाई रर यह समझा दिया कि इन चीज़ों में हुदूस व इमकान की अलामत पायी जाती है। क्यूंकि तगय्यूर व हरकत सिर्फ मुमकिन के लिये है लिहाज़ा इनके लिए एक ऐसे ख़ालिक़ की जरूरत है जिसमें किसी क़िस्म का तगय्यूर न पाया जाता हो। और वह न किसी तरंह मजबूर हो जैसे चांद तारे वगैरह और न ही इसकी हुकूमत महदूद हो जैसे नमरूद वग़ैरह। यह खयाल न करना चाहिए कि माज़अल्लाह हज़रते इब्राहीम पहले मुशरिक थे लबकि आपने मुशरेकीन को अक़वाल और नज़रियात को महज़ फ़र्ज करके फिर इसे ग़लत साबित किया।

दूसरी तरंह का शिर्क इस्लाम परस्ती की शक्ल में राएज था। यानी बुतों की परस्तिश और इबादत की जाती थी। यह वह वाज़ेह शिर्क है जिसके मुर्तकिब गिरोह का इस्तेलाही नाम मुशरेकीन हुआ। और यह शिर्क लोगों के दरमियान आज भी कायम है। और इसके खिलाफ जनाबे इब्राहीम ने अपने ही घर से जेहाद शुरु किया।

क्यूंकि आप का चचा (जिसे आप खुद भी बाप कहते थे) और कुरआने मजीद बी बाप ही के लफज़ से याद करता है। बुतपरस्ती का बहुत बड़ा अलमबरदार था। हज़रते इब्राहीम ने आज़र को पहले नर्म लहजे में समझाया कि आप ऐसी चीजों की इबादत क्यों करते हैं। जो न सुन सकती हैं न देखती हैं और न आपको कोई फायदा पहुंचा सकती हैं। यह सिलसिला काफी दिनों तक जारी रहा। और जब आज़र पर इब्राहीम के समझानवे बुझाने का कोई असर न हुआ तो आपका लहजा बदला। और अंदाज़े गुफतुगू में तलखी पैदा हुई।

चुनान्चे आपने फरमाया तुम कुछ बुतों को अपना खुदा बनाये हुए हो। मैं तुम्हें और तुम्हारी क़ौम को खुली हुई गुमराही में देखता हूं जब इस गुफतुगू का भी आज़र पर कोई असर न हुआ तो आपने पूरी क़ौम के दिल में अमली चोट लगाने का एक मन्सूबा जेहन में मुरत्तब किया और इस की तकमील के लिए वह मौक़ा निकाला जब तमाम मुशरेकीन अपनी ईदगाह में कोई मुशरेकाना रस्म अदा करने जा रहे थे। आज़र ने इब्राहीम को भी ले जाना चाहा। मगर आप ने अपनी अलालत का उज्र कर के जाने से इन्कार कर दिया। (इसी का नाम तक़य्या है) और जब सब लोग चले गये तो आपने खाना और थोड़ा खाना और तीशा अपने साथ लेकर मरकज़ी बुत खाने में दाखिल हुए। जहां कसीर तादाद में बुत रके हुए थे।

चुनान्चे आप एक-एक बुत के सामने जाते और इससे कहते कि खाना खाओं और मुझसे बाते करो। जब वह कोई जवाब न देता तो उसका सर और पांव तीशे से काट देते थे। रफता रफता आप ने तमाम बुतों का यही हाल कर दिया और जो सबप से बड़ा बुत था उसेक गले में तीशा लटका कर अपने घर वापस चले आये। जब ईदगाह से रस्म की अदायगीके बाद लोग अपने अपने घर लौटो और बुतों की शिकस्ता हालत देखी तो पूरी क़ौम में कोहराम बरपा हो गया। कुछ लोगों ने कहा कि यह इब्राहीम नाम का एक नौजवान रहता है जो हमारे बुतों को बुरा भला कहता है। यह हरकत इसी की हो सकती है।

ग़र्ज कि कुछ लोगो ने हज़रते इब्राहीम को पकड़ लिया और नमरुद के पास ले गये इससे सा माजरा बयान किया। और कहा कि यह आज़र का भतीजा है इसी ने हमारे बुतों को तोड़ा है। नमरुद ने आज़र को तलब किया और कहा कि तुमनें हमें धोखा दिया जो इसको हमसे पोशीदा रखा कि अब यह जवान हो गया है। आज़र ने कहा कि यह काम दरअस्ल इसकी मां का है जो यह कहती थी कि मैं नमरुद को जवाब दे लूंगी। नमरुद मे जनाबे इब्राहीम की मां को बुलवाया और उनसे पूछा कि तुमने हमसे इस बच्चे को क्यो छुपाया। जबकि बच्चा पैदा होने पर मेरा हुक्म इसकी गर्दनज़दनी का था।

मादरे इब्राहीम ने फरमाया कि ऐ नमरुद मैंने इस बच्चे को इसलिए छुपाया कि लोगों के मासूम बच्चे कत्ल होने से बच जायें जैसा कि तुझे बताया गया है कि तेरी हुकूमत में एक ऐसा बच्चा पैदा होगा जो तेरी तबाही और बरबादी का बाएस होगा। अगर यही वह बच्चा है तो हलाक कर दिया जायेगा। और बाक़ी बच्चे बच जायेंगे। और अगर वह यह नहीं है तो मेरा बच्चा बच जायेगा। यह दलील नमरुद पर कारगर हुई और मादरे इब्राहीम से मज़ीद बाज़ पुरसी के बजाये वह फिर जनाबे इब्राहीम से मुखातिब हुआ और इनसे दरियाफत किया कि क्या तूने हमारे ख़ुदाओं के साथ यह सुलूक किया है कि वब पारा-पारा हो गये। जनाबे इब्राहीम ने फरमाया कि मैं ऐसा क्यों करने लगा। मेरा खयाल है कि यह काम इस बड़े बुत का है जिसकी गर्दन में तीशा लटका हुआ पाया गया है। अगर वह बोलता हो तो खुद पूछ लो। नमरुद इस जवाब पर महबूत रह गया क्योकि यह लतीफ पैराया मैं इसके खुदाओं की आजज़ी और बेबसी की इज़हार था। जो जनाबे इब्राहीम ने कहा इन्सान परस्ती के ज़ैल में नमरुद अपने को खुदा कहलवाता था।

चुनान्चे हज़रते इब्राहीम ने इसके इस गुरुर को भी तोड़ा जब इसने आपसे सवाल किया कि तुम अपना परवरदिगार किसे समझते हो। जवाब दिया कि मेरा परवरदिगार वह है जो जिलाता भी है और मारता भी है। नमरुद ने कहा मैं भी मारता और जिलाता हूं इस तरंह कि किसी बेगुनाह की जान ले ली और एक ऐसे शख़्स की जान बख़्श दी जिसके लिए मौत की सज़ा का हुक्म हो चुका था। हज़रते इब्राहीम ने कहा कि मेरा परवरदिगार सूरज को मशरिक़ से निकालता है। तुम अगर खुदाई का दावा करते हो तो मग़रिब से निकाल दो। वह काफ़िर इब्राहीम की यह बात सुनकर दंग रह गया और खामोशी के अलावा इससे कोई जवाब न बन पड़ा मगर इसके नतीजे में उसका ग़ैज़ और ग़ज़ब जनाबे इब्राहीम के खिलाफ़ बहुत बढ़ गया और उसने लोगों के मशविरे के बाद यह तय किया कि जनाबे इब्राहीम को जिन्दा आग में जला दिया जाये।

हज़रते इब्राहीम क़ैद कर लिये गये और उन्हें आग में जलाने का इन्तेज़ाम किया जाने लगा। पूरी क़ौम ने मिलकर एक माह तक लकड़ियां जमा कीं और फिर उसमें आग देकर मुशतइल किया गया यहां तक कि शोले बलंद होकर आसमान से बातें करने लगे। रवायतों में आग की कैफियत यह बतायी गयी थी कि उसके एतेराफ में तीन मील तक के परिंदे परवाज़ नही कर सकते थे। नमरुद ने अपने लिए एक बहुत ही ऊंचा मुक़ाम तामीर करवाया था ताकि वह वहां से बैठकर हज़रते इब्राहीम का तमाशा देख सके।

अब मसला हज़रते इब्राहीम को भड़कती हुई आग में डालने का था। लिहाजा उसके लिए मिनजनीक़ तैयार किया गया और जनाबे इब्राहीम को ज़ंजीरों में जकड़ कर इस मिनजनीक में बैठाया गया फिर आग में फेंक दिया गया। लिखा है कि जिस वक़्त हज़रते इब्राहीम आग की तरफ चले तो आसमान करवटें लेने लगा और ज़मीन के सीने से एक आवाज़ बलंद हुई कि ऐ परवरदिगार तेरी इस दुनिया में हज़रते इब्राहीम के अलावा तेरी इबादत करने वाला फिलहाल दूसरा कोई नहीं है। क्या तू राजी है कि इन्हें आग में जला दिया जाये। लेकिन हिकमते इलाही ख़ामोश रही और अब तक इसकी कुदरते कामला किसी भी मंज़िल में कुदरते इलाही मज़ाहिम हो जाती तो ज़ालिमों के जुल्म की आख़िरी हद सामने न आती और न ही साबिर के सब्र का पता चलता। फिर ज़ालिमो को यह कहने का मौक़ा फराहम हो जाता कि हज़रते इब्राहीम को जलाने का मक़सूद ही न था हम तो फक़त धमका रहे थे।

लेकिन हज़रते इब्राहीम जब मिनजनीक़ से जुदा हो गये तो इनका इखतेयार की मंज़िल ख़त्म हो गयी। अब अगर ज़ालिम खुद बी चाहता कि हज़रते इब्राहीम आग से बच जायें तो यह खुद भी उसके बस की बात थी। यानि जूल्म की हद तमाम हो चुकी थी। मलाएका ने जब हज़रते इब्राहीम को हवा के दोश पर आग की तरफ बढ़ते हुएअ देखा तो वह भी बेचैन हो गये। और बारगाहे इलाही में यह अर्ज़ करने कि ए परवरदिगार तेरा ख़लील आग में जलाया जा रहा है। तू खामोश क्यों है जवाब मिला कि अगर वह मुझसे मद्द् तलब करेगा तो मैं ज़रुर करूंगा। जिबरईल से सब् न हुआ और कहा कि ऐ परवरदिगार अगर तेरी इजाज़त हो तो मैं तेरे ख़लील की मद्द करने के लिए जाऊं। हुक्म हुआ कि अगरप मेरा ख़लील तुम्हारी मद्द क़ुबूल करे तो ज़रूर जाओ। हज़रते इब्राहीम भड़कती हुई आग से मुत्तसिल होने ही वाले थे कि जिबरईल हाज़िर हुए। उन्होंने कहा या ख़लील अल्लाह क्या आप को मुझसे कोई हाजत तो है मगर तुमसे नहीं और जिससे हाजत है उससे कुछ कहने की जरूरत नहीं आयी और आग को हुक्म हुआ “ यानारोकूनी बरदंव व सलमान अला इब्राहीम ö ऐ आग इब्राहीम के लिए सलामती के साथ बुरूदत अख़तियार कर इस हुक्म के साथ ही आग की फितरत बदली और वह सर्द होना शुरू हुई और इस हद तक सर्द हुई कि हज़रते इब्राहीम के दांत बजनवे लगे फिर वह एतेदाल पर आयी तो वह भड़कते हुए शोले गुलज़ार बने और दहकते हुए अंगारे लाला बन गये।

यहां तक कि इस करिशमें कुदरत को देखकर नमरूद भी बेअख़तियार होकर चीख उठा कि खुदा हो तो ऐसा जैसा कि इब्राहीम का खुदा है। होना तो यह चाहिए था कि रइस मुशाहिदये कुद 0रत के बाद पूरी क़ौम ईमान ले आती। मगर इन बदबखतों के कुर्फ्रो एनाद में कोई कमी नहीं आयी बस मुख़तसर से लोगों ने नमरूद से छिपकर (तक़य्या करके) ईमान कुबूल किया। नमरूद अपनी इस शिकस्त परल मुंह दिखऱाने के क़ाबिल नहीं रह गया था। इसलिये उसने हज़रते इब्राहीम के मामलात में कुछ दिनों तक खामोशी इखतेयार की। जिसके नतीजे में हज़रते इब्राहीम एलानिया तौर पर तबलीग़ के मैदान पर उतर आये ताकि इस क़ौम पर ख़ुदा की तरफ से कोई अज़ाब नाज़िल होने से पहले वह हुज्जत तमाम कर लें। इस वक्त हज़रते इब्राहीम की उम्र 16 साल की थी (तबरी)।

नमरूद का इबरत नाक अंजाम

नमरूद अपनी शिकस्त व नीकामी पर एक साल तक खामोश रहा मगर जब उसने देखा कि हज़रते इब्राहीम अपने मौक़िफ पर अड़े हुए हैं और कारे तबलीग़ तेज़ी से जारी है तब वह बदबख़त जुनून में गिरफतार होकर हज़रते इब्राहीम के खुदा से जंग पर आमादा हो गया। उसने आप को पिर तलब किया और कहा (कुरआने मजीद पारा 17 आयत 5) ऐ इब्राहीम मैं तुम्हारे खुदा से जंग करना चाहता हूं क्या वह मुझसे मुक़ाबले के लिये तैयार है।

हज़रते इब्राहीम ने फरमाया कि क्या तू मेरे कुदा से अपनी शिकस्त का इंतेक़ाम लेना चाहता है। पिर हज़रते इब्राहीम ने बारगाहे इलाही में अर्ज की ऐ खुदा नमरूद तुझसे जंग का ख़वाहिशमंद है। इसे क्या जवाब दूं हुक्म हा कि कहा दो नमरूद अपना लशकर जमा करे। नमरूद ने छः माह में लशकर इकट्ठा किया और जब तमाम तैयारियां मुकम्मल हो गयीं तो वह तीरो कमानों नैज़ों और तलवारों से लैस लशकर लेकर एक मैदान मैं डट गया और हज़रते इब्राहीम को बुलवा कर कहा कि अपने खुदा से कहो कि अपना लशकर लेकर आये।

इज़रते इब्राहीम ने कहा घबराता क्यों है हलाकत के ले मेरा परवरदिगार का लशकर जरूर आयेगा। नागहा मग़रिब की सिम्त से एक घटा उठी जो तेज़ी से नमरूद के लशकर पर मुहीत हुई। लोगों ने देखा तो पता चला कि एक काली घटा सियाह रंग के मच्छरों की एक अजीम फोज है जो अज़ाब की शक्ल में नाज़िल हुई है। नमरूद के सिपाही घबराहट और बौखलाहट में इधर उधर भागने लगे। मगर उन्हें मफ़र कहा एक – एक सिपाही से लाखों की तादाद में मच्छर लिपट गये और उनका खून चुस – चूस कर सब को कैफरे किरदार तक पहंचा दिया। एक मच्छर बाद में आया था इसे खुदा ने नमरूद पर मुसल्लत किया था। जो उसकी नाक के रास्ते से दिमाग में घुस गया चुनान्चे जब वह काटता था तो नमरूद चीख़ने लगता था। और उसे एसी सख़्त अज़ीयत होती थी कि जब तक इसके सर पर जूताकारी नहीं होती थी उसको चैन नहीं आता था। यह सिलसिला 40 साल तक जारी रहा। और रोज़आना जूते खाते खाते अखिरकार वह उसी अजाब में मर गया।

जिलावतनी और हिजरत

हज़रते इब्राहीम कै मुक़बले में नमरूद की यह दूसरी शिकस्त थी जिस पर बराफरोख़ता होकर उसने आपको अपने मुल्क से जिलावतन कर दिया फरमान जिलावतनी के बाद जदनाबे इब्राहीम ने हिजरत का फैसला किया। और अपनी बीवी सारा जो (बक़ौले तबरी) आपके चचा हारान बाज़ मोअर्रेखीन के मुताबिक़ अपकी खाला की साहबजटादी थीं के लिए एक संदूक बनवाया ताकि वह इसमें बैठकर सफर कर सकें फिर आपने अपना सरमाया (पूंजी) और तमाम माल व असबाब (जिसमें ऊंटों , भेड़ों और बकरियों का ग़ल्ला भी शामिल था) लिया और अपने भतीजे हज़रते लूत के साथ ईराक से शाम की तरफ रवाना हो गये। यह तीनों अफराद इस्लाम के पहले मुहाजिर हैं। यह क़ाफ़िया ईरान में कुछ रोज़ मुक़ीम रहा। वहां रोज़ाना शब को ज़लज़ला आता था। जब पहली रात जनाबे इब्राहीम ने इस मक़ाम पर क़याम किया तो यह मुक़ाम ज़लज़ले से महफूज़ रहा। वहां के लोगों ने कहा कि क्या सबब है कि जो आज रात खहर में ज़लज़ला नहीं आया। ज़रूर कोई बुजुर्ग शख़्स हमारे शहर में आया है। दूसरी रात फिर खैरियत से गुजरी। अब लोग आप की तलाश में निकले और जब मुलाक़ात हुई तो लोगों ने कहा कि आप अब इसी शहर में बूद व बाश इख़तेयार करें हम आप की खिदमत करेंगे क्योंकि आपही के क़दमों की बरकत से हमें जलज़ालें से निजात मिली है। आप ने फरमाया कि तुम्हारे इलाके में फिलहाल ठहरने का की इरादा नहीं है। मगर खुदा से यह दुआ करूंगा कि वह आइंदा भी तुम्हारे शहर को जलज़लो से महफूज़ रखे। फिर आप ने वहां दो चार दिन कयाम किया फिर आप मिस्र के ले रवाना हो गये। उस वक़्त मिस्र पर तूलीसनामी फिरऔन की हूकूमत थी। और वह इन्तेहायी नफसपरस्त और इन्तेहायी बदकार था।

जब इसे हज़रते इब्राहीम के आने की ख़बर मालूम हुई और उसके हाशिये बरादरों ने यहं भी बताया कि उनके साथ एक इन्तेहायी हसीन व जमील औरत भी है तो उसने दोनों को अपन दरबार में तलब किया और जनाबे सारा की तरफ इशारा करके हज़रत इब्राहीम से पूछा कि यह ख़ातून तुम्हारी कौन हैं आप ने फरमाया कि यह मेरी बहन हैं। यह एक हक़ीक़तआमेज़ तकंय्या था जिस पर आप ने अमल किया और आप का जवाब इसलिए दुरूस्त था कि जनाबे सारा आप की बीवी होने के अलावा आप की चचाज़ाद बहन भी थीं। तूलीश ने जब जनाबे सारा के हुस्नो जमाल को देखा तो इस पर शैतानी नफ़स का ग़लबा हुआ। चुनान्चे इसने बेइखतेयार होकर अपना हाथ आप की तरफ बढ़ाने का इरादा किया ही था कि कुदरते इलाही ने उसे मफ़लूज (लुंजा) कर दिया।

यह करिशमा देखकर तूलीश का सारा भूत चश्मेज़दन में उतर गया। और वह अपनी इस बेहूदा हरकत पर नादिम हुआ आख़िरकार उसने तौबा की और जनाबे इब्राहीम ने दुआ फरमायी तो उसका हाथ ठीक हो गया। इस वाक्ये के बाद उसको जनाबे सारा की अज़मत का एहसास हुआ। और उसने आप की बड़ी क़द्र और बहन का मरतबा दिया इसके साथ ही ख़िदमत के लिए एक कनीज़ बतौर तोहफ़ा पेश की जिसका नाम हाजरा था। नीज़ काफी नज़राना वग़ैरह देकर इन्हें अपने यहां से रुख़सत किया। यह लोग वहां से शाम की तरफ रवाना हुए और चंद मुक़ामात की रद्दोबदल के बाद हज़रते इब्राहीम जनाबे सारा के साथ फिलिस्तीन में मुक़ीम हुए और हज़रते लूत को उरदुन के नवाही इलाकों में बग़रज़े तबलीग़ भेज दिया यह है इस्लाम के वह इब्तेदायी नुकूश जो मसाएब व आलाम गुरबत और जिला वतनी को अपना सरमायए इफतेखार बनाये हुए थे। इसलिए तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया कि इस्लाम का आग़ाज़ ही गुरबत और जिलावतनी से है।

हज़रते इस्माईल कि विलादत और हिजरत

जनाबे हाजरा के लिए परवरदिगार ने यह शरफ मख़सूस कर दिया था कि हज़रते इस्माइल की विलादत उनके बत्न से हो। इसलिए जनाबे इब्राहीम को शाम में रहते हुए एक अरसा गुज़र गया। मगर आप का दामन आरजुए औलाद से अब तक खाली था उम्र ज्यादा हो जाने की वजह से जनाबे सारा भी औलाद की तरफ से मायूस हो चुकीं थीं। चुनान्चे हज़रते सारा ने हज़रते इब्राहीम से कहा कि आप मेरी कनीज़ हाजरा से जो अभी जवान हैं अक़दकर लें शायद इन्हीं के बत्न से खुदा आपको कोई औलाद अता करदे। जो आप की जानाशीन हो।

हज़रते इब्राहीम ने जनाबे सारा की तजवीज़ पर अमल करते हुए जनाबे हाजरा से अक़द फरमाया और इज़जवादी ताअल्लुक़ात क़ायम किये। जिसके नतीजे में हज़रते इस्माइल मुताविल्लद हुए इस वक्त हज़रते इब्राहीम की उम्र 86 साल की हो चुकी थी। हज़रते इस्माइल की विलादत के बाद अद्ल के दायरे में रह कर हज़रते इब्राहीम की मज़ीद और ख़ुसूसी तवज्जे का हज़रत हाजरा की तरफ मबजूल हो जाना और हज़रते हाजरा की तरफ से जनाबे सारा के दिल में रश्क़ व हसद का पैदा हो जाना एक फितरती अमल था जिसका इज़हार इस शक्ल में हुआ कि जनाबे सारा मुसतकिल मख़जून व मग़मूम रहने लगीं और इन्हें यह एहसास परेशान करने लगा कि ख़ुदा ने हाजरा के बदन से इब्राहीम को बेटा अता किया और मेरी गोद खाली रखा।

एक दिन हज़रते इब्राहीम ने जनाबे सारा से हुज़न व मलामत का सबब दरियाफ़त किया तो आपने फरमाया कि कुछ नहीं। बस मैं यह चहाती हूं कि आप हज़रते हाजरा और हज़रते इस्माईल को मुझसे अलाहदा कर दें और कहीं दूर ले जाकर इनके क़याम का इंतेज़ाम करदें। हजरते इब्रहीम जनाबे सारा की मोहब्बत इताअत फरमा बरदियों और कुरबानियों की वजह से इन्हें बहुत चाहते थे क्योंकि वह एक बेहद इताअत गुज़ार और फरमा बरदार बीवी थीं इसके अलावा आप के सर पर इनके एहसानात भी बहुत ज़्यादा थे। शादी के बाद इन्होने अपनी तमाम दौलत और ज़ायदाद हज़रते इब्राहीम को हिबा कर दी थी। मगर इन तमाम बातों के बावजुद मिजाज़े इब्राहीम को मुक्कदस परेशानी पर मागवारी की शिकन उभर आयी और चेहरे पर कबीदा खातिरी के आसार मुरत्तब हो गए। मगर मशीयते इलाही से इस परदे में अज़ीम उम्मत के लिये एक अज़ीम मरकज़ की तशकील व तामील का मुरक्क़ा देख रही थी।

इसीलिए परवदिगार का हुक्म हुआ कि ऐ इब्राहीम सारा की जो ख़्वाहिश है उस पर अमल करो इस हुक्में इलाही के सामने हज़रते इब्रहिम के लिए इसके अलावा कोई चारएकार न था कि वह इसकी तामील फौरी तौरफ् करें चुनान्चे उन्होंने शीरख़्वार इस्माइल को गोद में उठाया और जनाबे सारा को साथ लिया और अपने माबूद पर भरोसा करके घर से निकल खड़े हुए। कहां अर्जे फिलस्तीन कहां सरज़मीने मक्का मगर जिस रहनुमाए मुतलक़ ने जनाबे सारा की ख़्वाहिश पर अमल करने का हुक्म दिया था। उसी की रहनुमाई में आप ने अपना सफर तमाम करके एक ऐसे बेआबोगेयाह मैदान को मंज़िल क़रार दिया जहां न कोई दरख़त था न कोई चश्मा ता न कोई सबज़ा न ग़िजा की फराहमी का की ज़रिया था न वहां पानी की सबील की कोई सूरत।

मुख़तसर यह कि जहां कुछ न था वहां आप ने खुदा की ज़ात पर भरोसा रखने वाली अपनी पाक बाज बीवी और मासूम फरज़ंद इस्माइल को छोड़ा। एक मशक पानी और कुछ खाने का सामान दिया और आसमान की तरफ हाथ बुलंद करके यह दुआ फरमायी कि पालने वाले तेरा खलील अपनी जुर्रियत को तेरे घर के ज़ेरे साया छोड़ कर जा रहा है। लोगों के दिलों को इनकी तरफ मोड़ दे और इनकी हिफाजत फरमा। इसके बाद आप शाम की तरफ वापस पलट गये और कभी इनकी खबर गीरी के लिए आते जाते रहे। इमामे जाफ़रे सादिक़ अ 0 का इरशाद है कि जब आप फिलस्तीन से मक्कए मोअज़्जा का इरादा करते थे तो खुदा वंदे आलम के हुक्म से ज़मीन सिमट जाती थी और आप आनेवाहिद में मककए मोअज़्ज़मा पहुंच जाते थे। दुसरे या तीसरे दिन हज़रते इब्राहीम का दिया हुआ एक मश्क़ पानी जनाबे हाजरा के पास ख़त्म हो गया और हज़रते इस्मिल पर प्यास का ग़लबा हुआ तो आप पानी की तलाश में निकलीं और सफा व मरवा के दरमियान सात चक्कर लगाये जिसकी यादगार मनासिब हज में हमेशां के लिए क़ायम है।

सातवें चक्कर के बाद जनाबे हाजरा थक गयीं और पानी न मिला तो मायूस होकर अपने फरजंद इस्माइल के पास वापस आयीं और कुदरते इलाही का यह हैरत अंगेज़ करिशमा देख कि बच्चे के पैरों तले साफ और शफ़फ़ाफ़ व शीरीं पानी का एक चश्मा उबल रहा है। यही वह चश्मा है जो बाद में आबे ज़मज़म कहलाया। ख़ुश्क ज़मीन से पानी का बरामद होना था कि चारों तरफ से तायरों का झुरमुट अपनी अपनी प्यास बुझाने के लिए वहां जमा हो गया और इन्हीं तायरों की रइनुमाई से इन्सानों का गुज़र भी वहां हुआ और रफता रफता सर जमीने मक्का आबाद होने लगी। दर हक़ीक़त यही दुनिया - ए - इस्लाम के मरकज़े अक़ीदत का संगे लस संगे बुनियाद था जिसकी तारीख़ में भूख प्यास , बेसरो सामानी , संगे बूनियाद था। जिसकी तारीख़ मे भूख प्यास , बेसरो सामानी ,संगे बुनियाद था। जिसकी तारीख में भूख प्यास गूरबत सब ही चीजें नुमाया तौर पर नज़र आती हैं।

हज़रते इसहाक़ की विलादत

जनाबे सारा की उम्र 60 साल की हुई तो जिबरईल ने उन्हें यह खुशखबरी सुनाई कि खुदावन्दे आलम आप को एक फरज़न्द अता करने वाला है यह सुनकर जनाबे सारा को सख़्त हैरत हुई और आपने जिबरईल से फरमाया कि अब मैं बूढ़ी हो चुकी हूं और औलाद पैदा करने की तमाम सलाहियतें दम तोड़ चुकी हैं। किसी फरज़ंद का अब क्या सवाल है। जिबरील ने कहा यह कादिरे मुतलक़ का हुक्म और अम्रे इलाही है इसीलिए यक़ीनन ऐसा ही होगा। जिब्रईल की इस यक़ीन दहानी के चन्द दिनों के बाद मसलहते एज़दी ने करवट ली और जनाबे साराह को हैज़ जारी हुआम मुद्दत खत्म हुई तो आप हामला हुई और जनाबे इस्हाक़ 10 माह 3 दिन शिकमे मादर में रहकर दुनिया में तशरीफ़ लाये। इमामे जाफरे सादिक़ अ 0 ने फरमाया है कि सारा से पहले दुखतराने अम्बिया हैज़ से मुस्तसना थीं। क्योंकि हैज़ उकूबत में दाखिल है हज़रते इस्हाक़ अपने वालिद हज़रते इब्राहीम से इस क़द्र मुशाबेह थे कि बाप और बेटे के दरमियान इम्तेयाज़ मुश्किल था। इसलिए खुदा ने हज़रते इब्राहीम के दाढ़ी के बालों को सफेद कर दिया ताकि दोनों में फर्क़ पैदा हो जाये।

हज़रते इस्माईल की कुरबानी

हज़रते इब्राहीम की तरफ से खुदा की बारगाह में पेश की जाने वाली तमाम कुरबानियों में हज़रते इसमाइल की कुरबानी वह अहम व अज़ीम कुरबानी है जिसका ज़िक्र खुसूसियत के साथ क़ुरआने मजीद में मौजूद है। और जिसका इजमाल यह है कि हज़रते इब्राहीम ने ख़्वाब में देखा कि वह अपने बेटे को ज़िबह कर रहे हैं। यह हुक्मे इलाही क्योंकि ख़्वाब की हालत में मौसम हुआ था। और इसकी सूरते वही इल्हाम या ग़बी आवाज़ की न ती। इसलिए जनाबें इब्राहीम ने उस दिन कोई क़दम नहीं उठाया।दूसरी रात फिर यही ख़वाब देखा और वह दिन भी तरद्दुद और कश्माकश मैं गुज़र गया। तीसरी रात को बैनहू फिर वही ख्वाब देखा तो आपने महसूस किया कि हुक्म की तामील ज़रूरी है। आपने अपने बेटे इस्माइल से फरमाया ऐ बेटा मैं बराबर यह ख़्वाब देख रहा हूं कि मैं अपने हाथों से तुम्हें ज़िब्ह कर रहा हूं। तो बेटे ने भी फरमाया कि बाबाजान जो आपको हुक्म हो रहा है उस पर आप अमल कीजिये इन्शाअल्लाह आप मुझे साबेरीन में पायेंगे।

जब जनाबे इब्रहीम ने अपने फरजोद का यह अज़्म और इरादा देखा तो बीबी हाजरा के पास आये और उनसे फ़रमाया कि मुझे एक छुरी और रस्सी देदो। बीबी हाजरा ने मतलूबा चीजें फराहम कर दीं। और यह दोनों बाप बेटे घर से निकल खड़े हो गये। एक मख़सूस मक़ाम पर पहुंच कर हज़रते इब्राहीम ने अपनी क़बा ज़मीन पर बिछाई और जनाबे इस्माईल को उनकी ख़्वाहिश के मुताबिक़ हाथ पैर बांध कर पेशानी के बल पर लिटा दिया। इसके बाद आपने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि बेटे के ज़िबह होने और तड़पने का मंज़र न देख सकें पिर आपने इस्माइल की पुश्ते गर्दन पर छुरी रखकर उसे पूरी कूपत से चलाना ही चाहा था कि हुक्में इलाही सो जिबरईन ने छुरी पलट दी दूसरी बार फिर यही हुआ क्योंकि निगाहे कुदरत जनाबे इस्माइल की नस्ल में एक बड़ी कुरबनी का मुरक़क़ा देख रही थी और इब्राहीम के ख़्वाब की ताबीर इसी कुरबानी अज़ीम में मस्तूर थी। इसलिए हूक्म की तामील के साथ – साथ हज़रते इस्माइल को बचाना भी मक़सूद था। चुनान्चे तीसरी मरतबा हज़रते इब्राहीम ने जब छुरी फेरी तो हज़रते इस्माइल बचाने गये और इनकी जगह दुमबा जबह हो गया।

हज़रते इब्राहीम ने आंखों से पट्टी हटायी तो यह देखकर हैरान हो गये कि हज़रते इस्माइल सजदए शुक्र में और इनकी जगह मजबूह दुम्बा पड़ा हुआ है। आपदम ब खुद खड़े थे कि निदा आयी ऐ इब्राहीम तुमने अपना ख्वाब सच कर दिखाया। हम नेकी करने वालों को जज़ाए ख़ैर देते हैं (कुरआने मजीद सूरए सफ़ात आयत 108) और हमने इस कुरबानी का फिदया ज़बहे अज़ीम यानी एक बड़ी कुरबनी को क़रार दिया जो इस्माइल की नस्ल में मुज़मर है और ऐ इब्राहीम हमने तुम्हारे दरजात बुलन्द करके तुम्हें इमाम बना दिया। इब्राहीम ने अर्ज की परवरदिगार क्या यह मंसब मेरी लाद को बी अता होगा इरशाद हुआ कि हां मगर जो ज़ालिम होंगे वह इस मंसब से महरुम रहेंगे।

जब जनाबे हाजरा को अपने बेटे की कुरबानी का हाल मालूम हुआ और उन्होंने इस्माइल की गर्दन पर छुरी का निशान देखा तो वह बेहद ग़मग़ीन हुई और इनके दिल में यह ख़्याल पैदा हा कि अगर दुम्बा न आता तो मेरा बच्चा इस्माइल ज़बहा हो जाता चुनान्चे वह इस ग़म में बीमार हुई और फिर इस दुनिया से रेहलत कर गयीं।

अहले किताब यहूदी व नसारा इस म्र के दावेदार हैं कि हज़रते इब्राहीम ने अपने ख़्वाब की बिना पर जो कुरबानी अल्लाह की बारगाह में पेश की वह हज़रते इस्माइल की न थी बल्कि हज़रते इस्हाक़ की थी। मगर कुरआन और बाईबिल के सायाक़ओ सबाक़ से इस बात की वज़ाहत होती है कि वह हज़रते इस्माइल ही थे। दराएत भी इसकी ताइद में है इसले कि अगर यह वाक़ेया जनाबे इस्हाक़ से मुताल्लिक़ होता तो उसकी यादगार बनी इस्राइल में नज़र आती। क्योंकि हज़रते इस्हाक़ बनी इस्रइल के मूरिसे आला थे। मगर इनकी मज़हबी रवायात में किसी क़िस्म की कोई यादगार इस वाक़ये से मुताल्लिक नहीं मिलती। बरख़िलाफ इसके कि औलादे इस्माइल में इस वाक़ये अज़ीम की यादगार क़ायम है जो आज तक ईदुलअज़हा और मनासिके हज के मौक़े पर कुरबानी की शक्ल में मनायी जाती है।

उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज ने अपने दौर में यहूदी आलिम से यह दरियाफ़त किया कि हरज़ते इब्राहीम ने हज़रते इस्माइल की क़ुरबानी पेश की यी हज़रते इस्हाक की उसने कहा कि अहले किताब (यहूदो व नसास) के उलमा क इस बात का यकीन है कि ज़बहीउल्लाह हज़रते इस्माइल हैं मगर रश्क व हसद की बिना पर वह लोग यह चाहते थे कि यह फ़ज़ीलत इनके जद के लिये साबित न हो और तुम्हारे जद के लिये साबित न हो (हयातुल कुलूब जिल्द 1 सफा 280)

खानए काबा की तामीर

जब हज़रते इस्माइल ने सिने बुलूग़ की मन्जिलों में क़दम रखा को परवदिगार ने हज़रते इब्राहीम को हुक्म दिया कि तुम और इस्माइल मिल कर ख़ानए काबा की तामीर करो।

ख़ानाए काबा की तामीर दरहक़ीक़त मुसलमानों और दीने इस्लाम के एक मुक़द्दर मरकज़ की तामीर थी जो तमाम आलमीन के लिए सरमायए निजात नीज़ बनस्से कुरआन अल्लाह का घर है। ग़र्ज़ दोनों बाप बेटे इस तामीर में मसरुफ हुए। हज़रते इब्राहीम मेमारी कर रहे थे और हज़रते तामी में मसरुफ हुए। हज़रते इस्माइल मज़दूर का काम अंजाम दे रहे थे। हालांकि क़बीलए जुरहम के लोग मक्के में कसरत से आबाद हो चुके थे और मज़दूरों की कमी न थी मगर शायद खालिक़ को यही मन्जूर था कि उसका घर हज़रते इब्राहीम और हज़रते इस्माइल के मुताबिक हाथों से बने यही वह मौक़ा था कि जब हज़रते इब्राहीम इस्माइल की मदद से ख़ानए काबा की दीवारें ऊंची करते जाते थे और अपने ज़ुर्रियत के लिए इस्माइलपर बरक़रार रहने की दुआ करते जाते थे जिसका ज़िक्र इब्तेदा में हो चुका है।जब खानए काबा की तामीर मुकम्मल हो गयी तो जनाबे इब्राहीम को हुक्म हुआ कि अब तुम हज का ऐलान करदो चुनान्चे आपने ऐलान फ़रमाया और लोगों को हज्जे बैतुल्लाह की दावत दी। इस दावत मे कुछ ऐसी तासीर थी कि तमाम अरब में ख़वाह वह मोमिन हों या काफ़िर ससे मुताअस्सिर हुए बग़ैर न रह सका यहां तक कि जब हुजूरे खत्मी मरतबत स 0 मबऊस ब रेसालत हुए तो उसी वक़्त अरब का मआशेरा नमाज़ रोज़ा , ज़कात ,और दीगर दीनी फराएजी की अदायगी से बेगाना था। मगर हज की रस्म उस वक्त बी कायम थी।

हज़रते इब्राहीम की रेहलत

हज़रते इब्राहीम उलुलअज़म पैग़म्बर थे और आप का लक़ब ख़लीलुल्लाह था और खुदा की बाहगाह में आप का यह मरतबा था कि हज़रत रसूलउल्लाह स 0 को आप की शरीयत को कायम रखने का हुक्म हुआ। 175 साल की उम्र में जब आपने इस दुनिया से रेहलत की और कुदसे जलील में दफन किये गये।

हज़रते इस्माइल और इस्हाक़ का मुख़तसर तअर्रुफ

हज़रते इस्माइल

हज़रते इस्माइल हज़रते इब्राहीम की दुआ से मुतावल्लिद हुए आप अपने वालिदे बुजुर्गवाल की शरीयत पर गामज़न थे और इसी की तब्लीग़ करते ते आप का तब्लीग़ी दायरए कार तमाम हेजाज़ यमन और बैरूत तक फेला हुआ था आपनै अपनी शादी क़बीलए जुरहम में रमला नामी एक दोशीज़ा से की थी जिसके बत्न से ख़ुदा ने आप को बारह बेटे अता किये जो सब के सब सरदारी के ओहदे पर फाएज़ थे। इन औलादों की औलादों इस कसरत से हुई कि ज़मीने मक्का सुकूनत के मामले में इनके लिए तंग हो गयी और बहालते मजबूरी इन्हें दूसरे शहरों में आबाद होना पड़ा। अरब की तारीख़ , अरबों को तीन हिस्सों में तक़सीम करती है। पहला हिस्सा जो यमन की नस्ल योरा बिन कहतान से था अरबे आलेबा कहलाया इसमें क़बाएले आद व समूद तसम व जदलीस और जुरहुम ऊला थे। इनका कुफ्र व ऐलान जब हद से ज़्यादा बढ़ गया तो यह अज़ाबै इलाही का शिकार हुए। इसलिए इनको क़बाएले वाएदा (नेस्त व नाबूद शुदा क़बीला) कहा जाता है कि दूसरा हिस्सा अरबे मुताअर्रबा कहलाया यह वह थे जो अरबे आरेबा से अज़दवाजी रिशतों कै साथ मुन्सलिक हुए इऔर फिर इनि औलादों में अरबी ज़बान में नशोनुमां पायी चाहे ज़मज़म के नमूदार होने पर क़बीलए जुरहम जो सरज़मीने मक्का पर कर आबाद हुआ इन्हीं क़बाएल में था और इन्हें जुरहमें सानीया कहा जाता है।

जनाबे इस्माईल ने इसी क़बीले में नशोनुमा पायी। इसीलिए इब्तेदा ही से प की ज़बान अरबी थी। फिर आप ने इसी क़बीले में शादी भी की इसलिए आपनकी औलादों की भी मादरी ज़बान अरबी हुई। यह क़ौम तीसरें हिस्से पर मुश्तमिल थीं जो अरबे मुस्तअर्रबा कहलाया अपब का मुस्तक़बिल प वेक़ार दुनिया में क़यामत तक के लिए इसी अपने मुस्तहर्रबा से वाबस्ता हुआ। अरबे आरेबा पहले ही फ़ना हो चुके थे।

अरबे मुस्तहर्रबहा की नस्लें मुम्किन हों कि सहरायी क़बाएल में हों। मगर तारीख़ मेंम उनका कोई नामों निशान नहीं मिलता। अलबत्ता तमाम आलम में जो अरब के इज़्ज़त व इफतेख़ार के अलम बरदार हैं वह आले इस्माइल ही हैं। जो दुनिया भर में फैले हुए हैं। यह ख़ुदा का वह लवादा है जो उसने इब्राहीम् से नस्ले इस्माइल के बारे में किया था कि मैं उनकी नस्ल में बरकत दूंगा और इनमें बारह सरदार क़रार दूंगा इस वायदे का ज़िक्र तौरैत में सफरे तकरीन बाब 17 में भी है हज़रते इस्माइल के बोटों मैं कीदार की नस्ल बहुत फली पूली और हिजाज़ में आबाद हुई यही पैग़म्बर इस्लाम के मूरिसे आला हैं। जनाबे इस्माइल का आबाद होना ख़ानए काबा ज़मज़म का बरामद होना मक्कए मोअज्ज़मा का आबाद होना ख़ानए काबा की तामीर होना मनासीके हज का जारी होना 10 ज़िल्हिज्जा को तमाम दुनिया के मुसलमानों मैं रस्में कुरबानी का क़ायम होना वग़ैरह शामिल है आप ने अपने वालिदे बुजुर्गवार की मौजूदगी में 133 साल की उम्र में इन्तेक़ाल फरमाया।

हज़रते इस्हाक़

हज़रते इस्हाक़ हज़रते ब्राहीम की पहली बीबी जनाबे सारा से स वक्त पैदा हे जब उनकी उम्र 70 साल की हो चुकी थी। क़ुरआने मजीद में आप से मुताअल्लिक़ की सा वाक़या नहीं मिलता जिसे तारीख़े इस्लाम का जुज़ क़रार दिया जाये। अलबत्ता तौरैत में कुछ वाक़ेयात मज़कूर हैं जो हर ऐतेबार से नाक़बिले कुबूल हैं। आपके वालिद हज़रते इब्राहीम ने शाम में आपके अपना जानशीन मुक़र्रर किया था तबरी का कहना है कि जब हज़रते इस्माइल की रेहलत का ज़माना क़रीब आया तो उन्होंने भी आप ही को अपना जानशीन क़रार दिया और अपनी बेटी की शादी आप के बेटे ऐस से की इससै वाज़ेह होता है कि इस्माल और इस्हाक़ के दरमियान ताअल्लुक़ात नेहायत खुशगवार थे और दोनों भाई सुकूनत की बिना पर बहुत दूर होने के बावजूद एक दूसरे के दिल के बहुत क़रीब थे।

हज़रते इस्हाक़ की शादी जनाबे इब्राबीम के चचा आज़र की पोती रफक़ा बिनते नाहेरा से ही जिनके बत्न से दो लड़के याकूब , इस्रिल और ऐस पैदा हुए याकूब की औलादें बनी इस्रिल कहलायीं। ऐस सुर्ख रंग के थे इनका एक बेटा रोम नामी पैदा हुआ जिसका रंग ज़र्द था इस वजह से औलाते रोम बनी असग़र कहलायीं चुनांचे जितने रोमी हैं वह सी रोम और इसके भाइयों की औलादें हैं। इस्हाक़ ने बरस की उम्र में रेहलत की और अपने वालिद हज़रते इब्राहीम की कब्र के पास दफ़न किए गए।


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