हज़रते याक़ूब व यूसूफ़ अ 0
हज़रते इसहाक़ बिन इब्राहीम के दो बेटे जनाबे याक़ूब और ऐस जुडवां पैदा हुए उनकी विलादत के सौ साल बाद तक हज़रते इसहाक़ हयात रहे और जब वफ़ात का ज़माना क़रीब आया तो उन्होंने हज़रते याक़ूब को अपना खलीफ़ा और जानशीन मुकर्रर किया।
हज़रते याक़ूब की विलादत हज़रते ईसा से 1837 साल कब्ल हुई। जवान हुए तो आपने पहली शादी लेया बिनते लेयान बिनते शोराइल से की। उनके बत्न से छह बेटे यहूदा रूएल शमउन लावी ज़बालून और यशजर पैदा हुए दूसरा अकद आप ने अपने मामू लोबान बिन नाबिर बिन आज़र की बेटी रायल से फरमाया जिनके बत्न से एक लड़की वीना और दो लड़के यूसुफ और बनयामीन मुतावल्लिद हुए। चूंकि यूसुफ़ की वाल्दा रायील उनकी कमसिनी ही में इन्तेक़ाल कर गयीं थीं। इसलिये वह अपनी ख़ाला राहील की गोद में पले और बढ़े। नीज़ उन्हीं को अपनी मां कहते थे। हज़रते याकूब ने तीसरा अक़द राहील की एक कनीज़ से किया। उनके बत्न से भी दो बेटे दान और तफ़तानी हुए। चौथा अक़्द आपने अपनी पहली बीवी लेया की कनीज़ से किया। इसके बत्न से भी दो बेटे हाद और अशर पैदा हुए। इस तरंह हज़रते याकूब एक बेटी और मजमुई तौर पर बारह बेटों के बाप थे। लेकिन इन तमाम बेटों में हज़रते यूसुफ़ का हुस्न व जमाल इस क़दर शोहरए आफ़ाक़ था कि। जो शख़्स उन्हैं एक मरतबा देख लेता था तो उनकी आंखों में उसकी तस्वीर उतर जाती थी।
हज़रते यूसुफ़ का ख़्वाब
हज़रते यूसुफ़ जब बारह बरस के हुए तो उन्होंने यह ख्वाब देखा कि आसमानों के दर खुल गये हैं। और एक ऐसा नूर ज़ाहिर है कि जिसकी तजल्ली सै तमाम कायनात रौशन और मुनव्वर है। और मैं ख़ुद एक अज़ीम पहाड़ की बलन्दी पर खड़ा हूं। मेरे गिर्द व पेश हरे-भरे दरख़तों की क़तारें हैं और नहरे जारी हैं जिसकी मछलियां तस्बीहे इलाही में मशग़ूल हैं। फिर मुझे एक नूरानी पोशाक पहनायी गयी जिसके पहनते ही आलम के तमाम रमूज़ व असरार मुझ पर रोशन हो गये। फिर जमीन के ख़ज़ानों की कुंजियां मेरे सुपुर्द की गयी। और सूरज और चाँद और ग्यारह सितारों ने मुझे सजदा किया। मुफ्सेरीन का कहना है सूरज से मुराद हज़रते याक़ूब अ 0 और चांद से मुराद जनाबे यूसुफ़ की मां राहील और ग्यारह सितारों से मुराद उनके ग्यारह भाई।
हज़रते याक़ूब की आंख कुली तो रात ही में अपना ख़्वाब अपने वालिद याक़ूब से बयान किया। उन्होने फरमाया बेटा इस ख्वाब को अपने भाइयों से न बयान करना वरना वह तुम्हारे ख़िलाफ मक्कारी और अय्यारी की तदबीरें इख़तेयार करेंगे। और इस अम्र में शक नहीं कि शैतान इन्सान का खुला हुआ दुश्मन है। तुमनें जो ख़्वाब देखा है उसकी ताबीर यह है कि परवरदिगारे आलम तुम्हें मनसबे जलीला पर फ़ाएज़ करेगा। बरगुज़ीदा करेगा और ख़्वाबों की ताबीरों का इल्म देगा। जिस तरह उसने तुम्हारे दादा व पर दादा इस्हाक़ व इब्राहीम पर अपनी नेअमतें तमाम की हैं। उसी तरह तुम पर भी अपनी नेअमतें तमाम करेगा। यक़ीनन तुम्हारा परवरदिगार बड़ा अलीम और हकीम है।
जिस वक़्त दोनों बाप बेटों (याक़ूब और यूसुफ़) के दरमियान यह गुफ़तुगू हो रही थी। उस वक़्त यूसुफ़ के किसी भाई की बीवी जाग रही थी। चुनान्ते सुबह होते ही उसने सारा हाल अपने शौहर से बयान किया और उसके ज़रिये तमाम भाइयों में इस वाक़ये की ख़बर मशहूर हो गयी।
बरादराने यूसुफ़ के रश्क और हसद का सबब
हज़रते याकूब यूसुफ़ को इस क़द्र चाहते थे कि उन्हे एक पल भी आंखों के सामने से ओझल होना गवारा न था। और यही वह वालहाना मोहब्बत थी जो बरादराने यूसुफ़के लिए रस्क ओ हसद का सबब बनी। चुनान्चे याकूब की दीगर औलादों ने अकसरों बेशतर उनसे इस बात की शिकायत भी की कि आप का तरज़े अमल यूसुफ के साथ कुछ और है और हमारे कुछ और है। यह सरासर आप की नाइंसाफी है कि सारी मोहब्बतें व शफ़क़ते सिर्फ यूसुफ से लिए हैं। और हम लोग इससे महरूम है। मगर चूंकि याकूब के दिल में यूसुफ़ की तरफ़ से मोहब्बत का समन्दर ठाठें मार रहा था। इसलिए उन्होंने बेटों की इस शिकायत पर कोई तवज्जों नहीं दी। आख़िरकार इसका नतीजा यह हुआ कि वह यूसुफ की दुश्मनी पर उतर आये। और आपस में मशविरा कर के यह फ़ैसला किया कि इनका क़िस्सा ही तमाम कर दिया जाये। ताकि बाप की सारी मोहब्बतें और हमदर्दियां जो यूसुफ़ से वाबस्ता हैं वह हमारी तरफ मबज़ूल हो सकें।
फ़रेब कारियां
जनाबे यूसुफ़ के सब बाई एक दिन अपने बाप याक़ूब की खिदमत में हाजिर हुए और उनसे कहने लगे कि आप यूसुफ को इतना चाहते हैं कि हर वक़्त इनको घर की चहार दीवारी में क़ैद रखते हैं। हमारी भी ख़वाहिश है कि हम लोगों के साथ वह खेलनें-कूदनें में कभी कभी हिस्सा लिया करें। लिहाज़ा आज हमारे साथ इसे भेजिये। वह हम लोगों के साथ जंगल में भेड़े भी चरायेगा और खेले-कूद भी लेगा। हम कोई ग़ैर नहीं है। हमारा भी यूसुफ पर हक़ है। आप हम पर भरोसा कीजिए हम इनकी पूरी तरंह देख – भाल रखेंगे। याक़ूब ने फ़रमाया कि अगर तुम इसे अपने साथ ले जाओगे तो यक़ीनन मुझे सदमा होगा। इसके अलीवा मैं इस बात से बी डरता हूं कि ऐसा न हो तुम लोग खेल कूद में लग जाओ और यूसुफ की तरफ से हरगिज़ गाफिल न होंगे। अगर खुदा न ख़ास्ता ऐसा हो गया तो यक़ीनन हमारा शुमार निकम्मों में होगा। ग़र्ज कि जनाबे यूसूफ पसे पेश करते रहे और बरादराने यूसुफ़ इस्रार। यहां तक कि वह लोग अपनी फरेबकारियों में कामयाब हो गए। और हज़रते याक़ूब की कर्बनाक ख़ामोशी को इजाज़त ,खामोशी को इजाज़त समझकर उन लोगों ने यूसुफ का हाथ पकड़ा और इन्हें लेकर तेज़ी से जंगल की तरफ रवाना हुए। जब यह लोग जंगल में दाखिल हुए और एक ऐसे मक़ाम पर पहुंचे जहां यूसुफ़ की फरियाद सनने वाला कोई न था। तो इन लोगों ने चाहा कि इन्हे क़त्ल कर दें। मगर बड़े भाई ने मुख़लेफत की और कहा कि इनके ख़ुन में हाथ रंगने से क्या फायदा। ज़्यादा मुनासिब यह है कि इसको किसी कुएं में डाल दो यह खुद ही मर जायेगा। या फिर कोई राहगीर इधर से गुज़रा तो वह इसे निकाल कर अपने साथ ले जायेगा। इस तरंह हम क़त्ल के गुनाह से भी बच जायेंगे और हमारा मकसद भी पूरा हो जायेगा।
यह तजवीज़ सभी को पसन्द आयी चुनान्चे इन लोगों ने जनाबे यूसुफ को पहले मारा-पीटा फिर उनका पैरहन उतारा और इन्तेहायी बेदर्दी और बेरहमी से उनको एक कुएं में फेंक दिया। और ख़ुद कुछ फासले पर उनकी बर्बादी का तमाशा देखने के लिए बैठ गये। मगर क़ुदरते इलाही को यूसुफ की ज़िन्दगी मक़सूद थी। इसलिए पहला मोजिज़ा यह हुआ कि उनके गिरते ही इस कुएं का सारा पानी ज़मीन पी गयी और इसके सोते खुश्क हो गये मगर ज़ाहीर है कि ज़ीन्दगी और मौत की इस कश-मकश के दौराना जनाबे यूसुफ की क्या कैफ़ियत रही होगी। इस यासो बीम के आलम में बस फ़क़त एक ख़ुदा की ज़ात थी जो इनकी निगेहबानी और पासबानी कर रही थी। चुनान्चे जब यूसुफ़ ने फ़रयाद की कि पालने वाले तू देख रहा है कि मेरे भाई मुझ पर क्या-क्या ज़ुल्म कर रहें हैं तो जवाब मिला कि अन्क़रीब़ हम तुम्हें बुलन्द मन्सब पर फाएज़ करेंगे। तब तुम इस फेले बद से इन्हें मुतानब्बेह करोगे। (क़रआने मजीद सुरए यूसुफ आयत 15)
हज़रते यूसुफ़ का कुएं से बाहर निकलना और फ़रोख़त होना
अपने ख़ालिक़ से यूसुफ की फ़रयाद अभी नातमाम थी कि दूसरा मोजिज़ा यह हुआ कि हुक्मे इलाही से एक मिस्री क़ाफिला आकर उस कुएं के पास ठहरा। और उनमें से एक शख़्स ने पानी के लिये कुएं में डोल डाला फिर क्या था। जनाबे यूसुफ़ ने इस डोल की रस्सी को मज़बूती से पकड़ा और डोल पर चढ़ कर बैठे गये। जब उस शख़्स ने डोल को पूरी ताक़त से उपर खैंचा तो यह देख कर हैरान रह गया कि उस पर एक इन्तेहायी हसीन व जमील व ख़ुबसूरत लड़का बैठा हुआ है। उसने इन्हें बाहर निकाला और अपने क़ाफिले वाले के पास ले आया।
बरादराने यूसुफ जो उनकी तबाही और बरबादी का तमाशा देखने के लिये कुछ फ़ासले पर मौजूद थे यह देखकर कि यूसुफ़ कुएं के बाहर निकल आये हैं। क़ाफिले वालों की तरफ दौड़ पड़े और उनसे कहा कि यह हमारा गुलाम है जो ला पता हो गया था। अगर तुम लोग चाहो तो हमसे इसे ख़रीद लो वरना हमारे हवाले कर दो। जनाबे यूसुफ ने भी मसहलते ईज़्दी की बिना पर अपनी ज़बान इस मौक़े पर बन्द रखी। यहां तक कि उनके भाइयों से एक शख़्स मालिक बिन ज़अर ने बीस दिरहम में उन्हें ख़रीद लिया और क़ाफ़िला आगे बढ़ गया। अब हज़रते यूसुफ के भाइयों को यह फ़िक्र लाहक हुई कि हज़रते याकूब को क्या जवाब दिया जाए।
चुनान्चे बाहम मशविरा करके उन लोगों ने एक भेड़ का बच्चा ज़बह किया और यूसुफ का पैरहन जो इन लोगों ने इन्हें कुएं में डालने से पहले उतार लिया था। भेड़ के खून में तर करके जब रात-रात की तारीकी मोहीत होने लगी तो घर की तरफ़ रवाना हुए। करीब पहुंच कर उन लोगों ने बड़ी सफाकी के साथ रोना पीटना शुरू किया और पछड़े खाते हुए घर में दाख़िल हुए। जनाबे याक़ूब ने रोने का सबब पूछा तो वह कहने लगे कि जिस अम्र का आपने अंदेशा ज़ाहिर किया था वही हुआ। हम लोग यूसुफ को सामान के साथ छोड़ कर खेलने में मसरूफ़ हो गये और भेड़िया उन्हे खा गया। यह उनका ख़ून आलूदा पैरहन है।
हालांकि हमें मालूम है कि अगर हम लोग अपनी बात में सच्चे भी हों तब भी आपको यक़ीन नही आयेगा। हज़रते याकूब ने जब हज़रते यूसुफ़ का पैराहन देखा तो कहा कि तुम लोगों ने महज़ अपने बचाव के लिये यह कहानी मुरत्तब की है। अगर भेड़िया खाता तो यह पैरहन फटा ज़रुर होता। ख़ैर जो तुम लोग कह रहे हो उसका फैसला खुदा ही करेगा। मेरे लिये तो सब्रो शुक्र के अलावा अब और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। क्योकि यूसुफ़ से तुम लोगों ने मुझे महरुम कर दिया है। यह कह कर आप ज़ारो क़तार रोने लगे। मोअर्रेख़ीन का कहना है कि आपने 21 साल तक फ़िराक़े यूसुफ़ में शबो रोज़ इस तरह गिरिया किया कि आंखों की बीनायी रुख़सत हो गयी थी। क़ुरआने मजीद में है कि आप की आंखें सफ़ेद हो गयी थी।
हज़रते यूसुफ़ अज़ीज़े मिस्र और जुलैख़ा
जिस क़ाफिले ने हज़रते यूसुफ़ को उनके भाईयों से ख़रीदा था। उसने अपनी तिजारती सामान में खूब मुनाफ़ा कमाया और क़ाफिले वाले जब लोट कर अपने वतन (मिस्र) आये तो लोगों ने यूसुफ़ के हुसन व जमाल का मुशाहेदा किया। और यह ख़बर आम होते होते अज़ीज़े मिस्र के कानों तक पहुंची। चुनान्चे उसने मालिनक बिन ज़अर को बुलाया और उनसे हज़रत यूसुफ़ को उनके बराबर दिरहम कि एवज़ ख़रीद लिया ख़रीदारी के बाद जब हज़रते यूसुफ़ उनके सामने पेश किये गये तो उसने इन्हें बग़ौर देखा और उनकी पेशानी में अनवारे पैग़म्बरी को महसूस किया तो उसने पूछा तुम्हारा नसब क्या है। फ़रमाया मैं याक़ूब का बेटा इस्हाक़ का पोता और हज़रते इब्राहीम का पर पोता हूं।
यह सुनकर उसने अपनी बीवी जुलैख़ा को फ़ौरन तलब किया और जनाबे यूसुफ को उनके हवाले करके यह ताकीद कर दी कि तुम उनकी ख़िदमत करो और इनके आराम व आसाइज का पूरी तरंह ख़याल रखों। खुदा इनके सबब से हमें मज़ीद बरकतें अता करेगा। फिर मुम्किन हुआ तो हम उनको अपनी औलाद बना लेंगे। क्योंकि हमारा घर औलाद की नेअमत से ख़ाली है। मुख़तसर यह कि अज़ीज़े मिस्र के घर में जनाबे यूसुफ़ ऐशो आराम से रहने लगे और उनकी देख भाल तरबियत और मोहब्बतें और शफ़क़क़तों में आला मेयारी सतह पर होने लगीं यहां तक कि आप जवान हुए। चढ़ती हुई जवानी की मलाहत ने आपके हुसन व जमाल में चार चांद लगा दिये। चुनान्चे भरपूर शबाब हुस्नों जमाल चौदवीं रात को चांद की तरंह दमकता हुआ चेहरा। हसनी नुकूश ख़बसूरत व दिलकश खंदो ख़ाल देखकर अज़ीज़े मिस्र की बीवी जुलैख़ा यूसुफ पर दीलों जान से फ़रेफ्ता हो गई। और उसके अन्दर नफ़सानी ख़्वाहिशात का ज्वालामुखी भड़कने लगा। और वह रात दिन इस फिक्र में रहने लगीं कि किस तरंह यूसुफ को अपनी तरफ मुतावज्जे कर के इनसे तसकीने नफस का सामान फराहम किया जाये।
आख़िरकर एक दिन मौक़ा पाकर उसने जनाबे यूसुफ को अपने कमरे में बन्द कर लिय और खुद बरहैना होकर कहने लगी आओ यह मंज़र देखकर यूसुफ़ के होश उड़ गये। उन्होंने फ़रमाया कि तुझे शर्म नहीं आती कि तू मुझसे फेले बद की तालिब है। जबकि तेरा शौहर मौजूद है। मेरा मालिक व मोहसिन है। भला यह क्योंकर मुमकिन है कि मैं उसकी ज़ौजा के साथ ज़िना करूं। जो खुदा की नज़र में गुनाहे अज़ीम है। मगर जुलैख़ा पर चूंकि नफस का भुत बुरी तरंह सवार हो चुका था इसलिए वह यूसुफ़ की कोइ भी बात सुनने को तैयार न हुई। और उसने इनका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खैचा और उनके ऊपर गिर जाये। हज़रते यूसुफ़ ने उस हाथ को झटका दिया और छुड़ाकर दरवाज़े की तरफ भागे। उसने झपट कर उनके कुर्ते का दामन पकड़ कर फिर अपनी तरफ़ खैंचा। इसी अफ़रा तफ़री में हज़रते यूसुफ़ का दामन फट गया। और वह दरवाज़ा खोलकर हापतें कांपते बाहर निकले। तो अज़ीज़े मिस्र को दरवाज़े पर ख़ड़ा पाया। शायद पहले से ही कुछ सुन गुन पा चुका था। और इसी टोह में आया था कि यह दोनों क्या करते हैं।
यूसुफ़ के पीचे बरहैना हालत में जुलैख़ा बी निकली। चुनान्चे अज़ीज़े मिस्र को देखा तो झट अपने शौहर से कहने लगी कि यह तुम्हारी बीवी के साथ बदकारी का इरादा करे इसकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं है कि इसे कैद कर दिया जाये। या दर्दनाक अज़ाब में मुब्तेला करदिया जाए। आप देख रहे हैं कि यूसुफ़ ने मेरी वह हालत बना दी कि मैं बरहैना आप के सामने खड़ी हूं अज़ीज़े मिस्र ने हज़रते यूसुफ़ की तरफ खूंख़वार और सवालियत नज़रो से उसकी तरफ देखा। आप ने फरमाया कि इसने ख़ुद मुझसे फैले बद की ख्वाहिश की थी। मेरा कुसूर हरगिज़र नहीं है। मेरे परवरदिगार ने मुझे बहुत बचाया। अगर आप को यक़ीन न हो तो सारी हक़ीक़त इस शीरख़वार बच्चे से पूछ लें जो आप के क़रीब इस ग़हवारे में पड़ा है।
जुलेख़ा के ख़ालाजाद या मामूज़ाद बाई का ख़लीका नामी बच्चा जिसकी उम्र सिर्फ चार माह की थी झूले में पड़ा था। अज़ीज़े मिस्र ने कहा कि यह बच्चा जो बोल नहीं सकता तुम्हारी वह गवाबी क्या देगा। अज़ीज़े मिस्र का यह कहना था कि वह बच्चा बहुक्में खुदा गोया हुआ और उसने कहा ऐ अज़ीज़े मिस्र तुम यूसुफ का कुर्ता देखों कि आगे से फटा है या पीछे से। अगर यूसुफ के कुर्ते का दामन आगे से फटा हो तो यूसुफ़ ख़तावार हैं और गर पीछे से फटा है तो जुलैख़ा खतावार है। अज़ीज़े मिस्र ने चार माह के बच्चे के मुंह से यह आवाज़ सुनी तो हैरतज़दा रह गया। और उसके दिल में ख़ौफ पैदा हुआ।
चुनान्चे उसने यूसुफ के कुर्ते का दामन देखा जिसका दामन पीछे से फटा था। तो अज़ीज़े मिस्र जुलैख़ा पर बरस पड़ा और कहने लगा कि यह सब तेरा मक्र व फंरेब है। जबकि वह बेख़ता हैं तुझे चाहिये कि इनसे माफी मांग और खुदा से अपने फेले बद पर तौबा और अस्तख़फ़ार कर फिर उसने यूसुफ से कहा आप इस मामले को पोशीदा रखें क्योंकि यह मेरी इज्जतों आबरु का मसला है और इसकी तशहीर में मेरी सख़्त बदनामी और रूसवायी है। मगर न जाने वे किस तरह इसकी ख़बर सारे शहर में फैल गयी और औरतों के दरमियान घर घर मे यह चर्चे होने लगे कि अज़ीज़े मिस्र की बीवी जुलैख़ा ने अपने परवर्दा नौजवान से फेले बद की कोशिश की और वह उस पर बुरी तरंह आशिक़ व फ़रेफ़्ता है।
नीबू और छुरी
जब जुलैख़ा को यह खबर मालूम हुई कि शहर की औरतों और मर्दो में इसके इस फेले बद में हिक़ारत आमेज़ तज़किरे हो रहे हैं। और ज़रूरत से ज्यादा उसकी रूसवायी और बदनामी हो रही है। उसने शहर के मौहज्जब तरीन घरानों से चालीस ऐसी हसीन व ख़ुबसूरत औरतों को मुन्तख़ब करके अपने यहां दावत पर बुलाया जो हुस्नों जमाल में अपनी मिसाल आप थीं जब सब औरतें जमा हो गयी तो जुलैख़ा ने एक एक नेबू और एक – एक छुरी दे दी और कहा कि मैं यूसुफ को बुलाती हूं जब वह तुम्हारे दरमियान से गुज़रने लगें तो तुम लोग अपना अपना नेबू काट लेना। फिल जुलैख़ा ने यूसुफ को बुलाया और कहा कि तुम इनके दरमियान से गुज़र जाओ।
चुनान्चे जब युसुफ़ इनके दरमियान से गुज़रने लगे तो सब औरतों ने उनके हुस्नो जमाल को देख कर इतनी बेखुद और मदहोश हो गयीं कि सभी ने नीबू के बदले अपने हाथों को काट लिया और कहने लगीं कि एक फरिशता है। रवायतो से पता चलता है कि उनमें से नौ औरतें बेहोश हो गयीं। इसके बाद ज़ुलैख़ा ने इन औरतों को मुख़ातिब किया और कहा कि यह वही शख़्स है जिसके बारे में तुम मुझ पर लानत और मलामत करती थीं। बेशक मैंने इससे फेले बद की ख्वाहिश की थी अगर यह मेरी बात पर अमल नहीं करेगा तो यक़ीनन क़ैद भी होगा और जलील भो होगा। जुलैख़ा की यह बातें सुनकर यूसुफ ने अपने परवरदिगार से दुआ की और कहा - कि पालने वाले जिस बात के लिये यह औरतें मुझसे ख़्वाहिशमंद हैं उसकी बनिस्बत क़ैदख़ाना मुझे ज्यादा पसन्द है। सूरए यूसुफ़ आयात 33
हज़रते यूसुफ़ और क़ैदख़ाना
ख़ुदा की बारगाह में यूसुफ़ की दुआ मुस्तेजाब हो गयी। इस तरंह कि अज़ीज़े मिस्र ने सोंचा कि इस बदनामी के दाग़ को धुलवाने के लिये मसलहतन कुछ अरसे तक क़ैदख़ाने में रखा जाये ताकि जुलैख़ा और दीगर औरतों से वह मह़फूज रह सकें। चुनान्चे हज़रते यूसुफ को उसने क़ैदख़ाने में क़ैद करके उस जगहं रखा जहां दो क़ैदी और थे उनमें एक बादशाह का साक़ी यूनान और दूसरा शाही बवर्ची मजीला था। और यह दोनों बादशाह को ज़हर देने के इल्जाम में क़ैद किये गये थे।
एक दिन इन दोनों ने हज़रते यूसुफ़ से पूछा कि आप क्या सिफ़त और कमाल रखते हैं फरमाया में ख़्वाबों की ताबीरें जानता हूं यह सुनकर इनमें से एक ने कहा कि मैंने यह ख़्वाब देखा है कि अंगूरों की शराब बना रहा हूं आप ने फ़रमाया कि इसकी ताबीर यह है कि तुम बहुत जल्द इस क़ैद ख़ाने से रिहा होगे। और बादशाह के साक़ी बनोगे। दूसरे ने कहा कि मेरा ख़्वाब यह है कि मैं रोटियों का एक गट्ठर उठाये हुए हूं और चीलें कौए इस पर मंडला रहे हैं आप ने फ़रमाया कि तुम क़त्ल किये जाओगे। और तुम्हारे सर का भेजा चील कौऐ खायेंगे।
चुनान्चे पहला शख़्स रिहा होकर बादशाह का साक़ी बना और दूसरी शख़्स को क़त्ल करके ऐसी जगह डाल दिया गया जहां उसके सर का भेजा चील कौऐ खा गये। जब पहले शख़्स की रिहायी का परवाना आया था। इस वक़्त जनाबे यूसुफ़ ने उससे कहा था कि जब तुम बादशाह के साक़ी बन जाना तो मेरा भी तज़केरा उससे करना वह मेरे बारे में भी कुछ ख़याल करे। मगर वह भूल गया। यहां तक कि क़ैदख़ाने में यूसुफ़ को सात साल गुज़र गये। बादशाह ने एक दिन ख़्वाब में देखा कि सात मोटी ताज़ी गायें सात दुबली पतली गायों को खा रही हैं। और गंदुम की सात हरी भरी बालियों से सात सूखी हुई बालियां लिपटी हुई है। बेदार हुआ तो उसे ताबीर मालूम करने की फ़िक्र लाहक़ हूई।
चुनान्चे उसने हुकूमत के तमाम वज़ीरों और दानिसवरों को जमा करके उनसे ख़्बाव बयान किया। और ताबीर चाही मगर सब के सब ताबीर बताने से क़ासिर रहे। और बाज़ों ने यह कह कर टाल दिया कि यह एक ख़्वाबे परेशां है इसकी कोई ताबीर नहीं है। इस मौक़े पर साक़ी भी मौजूद था। अचानक उसे अपना क़ैदख़ाने वाला ख़्वाब याद आया। उसने कहा अगर हुज़ूर मुझे क़ैदख़ाने तक जाने की इजाज़त दें तो मैं इस ख़्वाब की ताबीर ला सकता हूं। चूंकि वहां ऐसा बरगुज़ीदा शख़ क़ैद है। जो ख़्वाबों की ताबीरों का मुकम्मल इल्म रखता है। बादशाह की इजाज़त से उस क़ैदख़ाने में गया पहले तो उसने जनाबे यूसुफ़ स अपनी भूल की माज़रेत की फिर बादशाह का ख़्वाब बयान किया।
आपने परमाया कि इसकी ताबीर यह है कि इस साल मुल्क मे सात साल तक गल्ला ख़ुब पैदा होगा। इस पैदावार के दरमियान बादशाह को चाहिए कि ज़रुरत के मुताबिक ही बालियों से गल्ला निकालने का हुक्म सादिर करे। बाक़ी को युंही महफुज़ कर लिया जाए ताकि ग़ल्ले में कीडे वगैरह न लगे। क्योकि इसके बाद सात साल तक मुल्क सख्त व शदीद कहत मे मुब्तेला होगा। और यही महफ़ुज़ कि हुई बालियों की ग़ल्ला लोगों की जान बचायेगा। और सात साल की क़हत के बाद फिर खुशहाली का दौर आयेगा। तो ज़रात और बाग़ात पर फिर हरियाली छा जाएगी। ख्वाब की ताबीर लेकर वह बादशाह के पास आया और सारा वाकया बयान किया जिसे सुनकर हैरत ज़दा हो गया और बेहद मुताअस्सिर हुआ यहां तक कि उसने हुक्म दिया कि तुम फिर क़ैदखाने में जाओ और उन्हे मेरे पास लेकर आओ। वह शख्स फिर गया और उसने जनाबे यूसुफ़ को बादशाह का पैग़ाम सुनाया आप ने फ़रमाया कि मैं बादशाह की खिदमत में ज़रुर चलूंगा।
मगर मेरी एक शर्त है कि वह पहले ज़ुलैखा और उन औरतों को जिन्होने अपने हाथ काट लिए थे तलब करे। और उनसे पुछें कि मेरे बारे में अब इन्का क्या ख्याल है। वह अपनी ग़लतियां तस्लीम करने को तैयार है या नही। हज़रते यूसुफ़ के कहने पर बादशाह ने अज़ीज़े मिस्र के ज़रिये उन तमाम औरतों को बुलवाया और जब वह आ गयी तो उनसे पुछा कि तुम लोग मुझे सच सच बताओ कि तुम्हारे मामले में युसुफ कि खता थी। कि तुम लोगों ने उनके मामले में मक्कारी व फरेब से काम लिया था। सब औरते खामोश रही मगर ज़ुलैखा ने बैखोफ हो कर एतेराफ किया कि ग़लती हमारी थी। और हमने यूसुफ के साथ बद कारी का इरादा किया था। वरना हक़ीक़त ये है कि वह बेखता और पाक दामन है। इस सच्चायी के ज़ाहिर हो जाने के बाद बदशाह ने यूसुफ के फ़ौरी तोर पर रिहायी का परवाना जारी किया। और कहा कि इन्हें कैद से इज्ज़तो एहतेराम के साथ निकाल कर बाहर लाया जाये। ग़र्ज़ जब यूसुफ बादशाह के सामने लाये गये तो उसने उनको बग़ौर देखा और बड़ी देर तक कुछ सोचता रहा। फिर उसने आपकी अक़लमन्दी और दानिशमन्दी का अन्दाज़ा किया और कहा कि मैं आज से अपना मुकर्रब और अपना अमीन बनाता हूं और इस बात का वायदा करता हूँ कि आप जो हुक्म देंगे उसकी तामील की जायेगी। क्या आपको यह पेशकश मंज़ूर है।
हुकुमते मिस्र में हज़रते यूसुफ का मन्सब
हज़रते यूसुफ ने फरमाया कि अगर आप मुझ पर इस दरजे मेहरबान ही हैं और मेरी ख़िदमत की आप को ज़रुरत है तो इस मुल्क का शोब ए मालियात महारे हवाले कर दिजिए. क्योकि मैं मुल्की खज़ानो की इस्लाही उमूर और हिसाबो किताब को बड़ी खुश उसलूबी और खूबसूरती से अन्जाम दे सकता हूँ। बादशाह ने यूसुफ की बात फौरन मान ली और मुल्की खज़ाने और उसकी जुम्ला इखतेयारात यूसुफ को सौंप दिये इस तरह आप मिस्र की हुकुमत मे सबसे पहले ख़ज़ानों के अफ़सरे आला पर फायज़ हुए। और ओहदा सम्भालते हुए ही अपने कामों की अन्जाम देही में मस्रुफ हो गये। चुनान्चे सबसे पहले आप ने हूकुमत की आमदनी और खर्च पर तवज्जो फरमायी और एक ऐसा ज़ाबेता मुअय्यन किया जिस्से फ़ालतु अख़राजात का बोझ अज़ानो पर न पड़े। फिर आप ने टैक्सों और ज़जीयों को उसूली का एक कारगार निज़ाम और मन्सूबा मुरत्तब किया। जिसका नतीजा यह हुआ कि बहुत ही कम वक्फे मे तमाम ख़जाने दीरहम और दीनार से छलकने लगे। ख़ज़ानों की हालत जब इत्मीनान बख्श हो गयी तो आपने ज़ेराअत का शोबा भी अपने हाथ मे ले लिया और माशीयात की तरफ मुतावज्जे हुए। आपकी कोशिशों और तदबीरों से जब पैदावार में नुमाया इज़ाफा होने लगा तो अनाज का ज़खीरा करने के लिए बड़ी बड़ी इमारते तामीर हुई। और वसीय और अरीज़ गोदाम बनाये गये। जब यह सारा इन्तिज़ाम हो गया तो आप ने इस शर्त के साथ आम ख़रीदारी का ऐलान किया कि जो शख्स भी अपना फालतू ग़ल्ला फ़रोख्त करना चाहे वह ख़ोशों (बालियों) से दाना जुदा किये बग़ैर बाज़ारी भाव पर हूकुमत के हाथ फरोख्त कर सकता है।
इस तरह आप ने मुसलसल सात साल तक ग़ल्ला इस्टाक किया। यहां तक की इतना ज़खीरा हो गया कि दस बरस तक मुल्क भर के लिए काफी हो सके। इसके चबाद जब क़हत साली के दौर का आग़ाज़ हुआ और बहरानी कैफियत पैदा हुई तो आपने जमा शुदा ग़ल्ला बग़ैर मुनाफे के आवामं मे फरोख्त करना शूरु किया।
लेकिन किसी भी शख्स को उसकी ज़रुरत से ज्यादा ग़ल्ला नही दिया जाता था। महज़ इस गरज़ से कि कहीं मौका परस्त लोग उसकी तिजारत न करने लगे। चुनान्चे दूर दूर से लोग आते थे और मुखतलिफ आशिया के एवज़ ग़ल्ला ले जाते थे। तारीखे बताती है. कि आप (यूसुफ) ने पहले साल दिरहम और दीनार के एवज़ लोगो को ग़ल्ला फराहम किया। दुसरे साल ज़ेवरात वग़ैरह तीसरे साल जानवरों और चौपाओं , चौथे साल गुलाम और कनीज़ो , पाँचवे साल घरों और असासुलबैत , छटे साल बाग़ो ज़मीनों और नहरों वगैरह के एवज़ ग़ल्ला दिया , सातवे साल जब लोगों के पास कुछ न रह गया तो उनकी जानों का मोल कर के गल्ला दिया गया।
ग़र्ज़ कि पूरे मुल्क में कोई शख्स भी ऐसा नही रह गया जो किसी न किसी ज़ाविये से आप का गुलाम न हो। इस तरह परवरदिगारे आलम ने आपके दामन से गुलामी का धब्बा मिटा कर पूरे मुल्क को आपका गुलाम बना दिया।
भाईयों से मुलाक़ात
हज़रते यूसुफ के आबायी वतन पर भी क़हत का ज़बरदस्त असर पड़ा। वहां के लोग भी बुरी तरह मुताअस्सिर हुए। चुनांचे जब नौबत फ़ाके की आ गयी तो मजबूर हो कर याकूब ने भी जो यूसुफ़ के ग़म मे रोते रोते नाबीना , कमजोर और जईफ हो गये थे अपने फरज़न्दो को ग़ल्ले की खरीदारी के लिए मिस्र रवाना किया। जब वह लोग वहां पहोंचे तो यूसुफ ने उन्हे पहचान लिया। मगर वह लोग उन्हें पहचानने से क़ासिर रहे। जनाबे यूसुफ़ ने अपने भाईयों से पूछा कि तुम लोग कौन हो और कहां से आये हो उन लोगों ने जवाब दिया कि हम लोग याकूब के फरज़न्द और वह इसहाक के बेटे और हज़रते इब्राहीम ख़हीउल्लाह के पोते हैं। पूछा तुम्हारे वालिदे बुज़र्गवार क्यों नहीं आये हैं। कहा वह इन्तेहायी ज़ईफ़ और कमज़ोर हैं। इसके अलावा आखों की बीनायी से भी महरूम हैं। फिर आप ने दरियाफ़ किया कि तुम्हारा कोई भाई और भी है। कहां हां , एक सौतेला भाई और भी है। यह सुनकर आप नै फ़रमाया कि आइंदा जब तुम लोग आना तो अपने साथ उसको लेकर आना। वरना यह समझ लेना कि तुन्हारे लिए मेरे पास कुछ न होगा।
इसके बाद आपने भाईयों को इनकी ज़रूरत के मुताबिक़ ग़ल्ला दिया और उसकी जो क़ीमत उनसे उसूल हुई थी उसे भी नज़रें बचाकर इन्हीं के बोरों में रख दिया और इज़्ज़त के साथ इन्हें रूख़स्त किया। जब वह लोग अपने घर पहुंचे और बोरियों को खोला गया तो ग़ल्ले के साथ उन्हें उनकी अदा कर्दा कीमत वापस मिल गयी। ज़ाहिर है कि इस हुस्ने सुलूक पर इनकी ख़शियों का क्या आलम रहा होगा। इन्होंने अपने वालिद जनाबे याक़ूब से सारा वाक़ेया बयान किया और इनके साथ ही अज़ीज़े मिस्र (यूसुफ़) के एख़लाख़ व एहसान और हुस्ने सूलूक का तज़केरा भी किया और यह भी कहा कि आइंदा अगर आप हमें ग़ल्ले के लिए फिर भेजिये तो हमारे साथ बनयामीन को ज़रूर रवाना करें।
वरना यह समझ लें कि वहां मायूसी के अलावा कुछ न मिलेगा। क्योंकि अज़ीज़े मिस्र का कहना है कि अगर तुम उस भाई को लेकर न आये तो तुम्हारे लिए हमारे पास कुछ भी न होगा। हज़रते याक़ूब ने फ़रमाया कि मैं तुम लोगों के साथ बनयामीन को उस वक़्त तक नहीं भेजूंगा जब तक तुम लोग खुदा को हाज़िरो नाज़िर जानकर यह हलफ न उठाओगे कि इनको अपने साथ हर हालत में वापस भी लाओगे।
चूंकि एक बार यूसुफ़ के मामले में तुम्हारी तरफ से धोखा हो चुका है। तमाम भाईयों ने इस बात का अहद लिया और क़स्में खायीं कि ख़्वाह हमारी जानें ही क्यों न चली जायें लेकिन बनयामीन इन्शाअल्लाह हर हाल में वापस आयेंगी। ग़र्ज़ कि जब आया हुआ ग़ल्ला ख़त्म हुआ तो बहालते मजबूरी हज़रते याकूब ने अपने तमाम फ़रज़न्दों से एहदे पैमाना लेकर बनयामीन को उनके साथ मिस्र रवाना कर दिया और यह ताकीद फरमा दी कि सब भाई एक ही दरवाजे से उस शहर में दाख़िल न होना वरना नज़र लगने का अन्देशा है।
जब फ़रज़न्दाने याकूब बुनयामीन को साथ लेकर मिस्र पहुंचे और अलग अलग दरवाज़े से शहर में दाख़िल होकर हज़रते यूसुफ की ख़िदमत में हाज़ीर हुए तो बनयामीन को देखकर आपकी खुशियों का ठिकाना न रहा फिर आपने बनयामीन के इस तर्जे अमल पर भी ग़ौर किया कि वह अपने भाईयों से अलग थलग हैं। और एक जगह ख़ामोशी से बैठे हुए हैं। तो आपने उन्हें अपने पास बुलाया और पूछा कि क्या यह लोग तुम्हारे भाई नहीं हैं जिनके साथ तुम यहां तक आये हो। जवाब दिया कि यह हमारे भाई जरूर है मगर मैं खुद ही इन लोगों से अलहदा रहता हूं।
इसका यह सबब है कि मेरा हक़ीक़ी भाई था जिसका नाम यूसुफ था। बचपन में उसे यह लोग एक दिन अपने साथ जंगल में ले गये फिर वह वहां से नहीं आया। इन लोगों का कहना था कि उन्हें भेड़ियों ने खा लिया था। इन लोगों की इस बात पर मेरे बाप को आज तक यक़ीन नहीं है। हालांकि वह इस ग़म में रोते रोते अन्धे हो चुके हैं। जबसे इनके साथ मैं किसी अम्र में शरीक नहीं होता। वालिद के हुक्म से मजबूर होकर फ़लिस्तीन से यहां तक आया हूं। मगर खुदा गवाह है कि इस सफर में इनसे बुल्कुल अलग थलग रहा। यहां तक कि जहां यह लोग क़याम करते थे वहां से कुछ दूर हट कर क़याम करता था। और इस वक्त भी लग हूं जैसा कि आप देख रहे हैं। बनियामीन की यह अलम अंगेज़ गुफ़तुगू सुनकर यूसुफ़ का दिल रंजों ग़म की गहराइयों में डूबने लगा। और आंखों से आंसू टपकने के लिए बेक़रार होने लगे।
मगर आप ने सब्रो ज़प्त से काम लिया और आप ने मज़ीद गुफ़तुगू के लिए अपने भाईयों से फ़रमाया कि तुम लोग थीड़ी देर के लिए बाहर चले जाओ और अपने इस भाई को मेले पास छोड़ दो। में तन्हायी में इससे कुछ बातें करना चाहता हूं। ग़र्ज वह लोग जब बाहर चले गये तो हज़रते यूसुफ बनयामीन को एक अलहदा कमरे में आये और उनसे लिपट कर बहुत रोये जब दिल कुछ काबू में आया तो आप ने फरमाया कि मैं ही तुम्हारा गुमशुदा भाई हूं। अब तुम्हे ख़ुश होना चाहिए और ख़ुदा का शुक्र अदा करना चाहिए कि उसने हमें एक दूसरे से मिला दिया है। लेकिन इस राज़ को अभी तुम किसी पर ज़ाहिर न करना और मेरा इरादा यह है कि तुम्हे अपने पास ही रोक लूं फिर वालिद को भी बुलवा लूंगा।
लिहाजा तुम्हें रोकने के लिये मैं जो क़दम उठाऊं उससे तुम परेशान न होना। क्योंकि यहां के क़ानून के मुताबिक़ कोई किसी को बग़ैर माकूल वजब के बग़ैर किसी जुर्म के रोक नहीं सकता। इस बात चीत के बाद हज़रते यूसुफ़ बनयामीन से रूख़सत हो गये और वह अपने भाईयों के पास फिर वापस आ गया। हज़रते यूसुफ ने इन्हें रोकने की यह तदबीर इख़तेयार की कि जब वह अपने सब भाईयों को ग़ल्ला देने लगे तो बनयामीन के ग़ल्ले वाली बोरी में बादशाह का एक तेलायी प्याला चुपके से रख दिया औह जब सब लोग यूसुफ से रुखसत हो कर और ग़ल्ले ले कर शहर से बाहर निकले तो इन्हें फिर वापस बुलवायां और एक-एक तलाशी करने के बाद वह प्याला बिनयामीन के बोरे से बरामद करके इन्हे रोग लिया।
हालांकि दीगर भाईयों ने सख़्त एहतेजाज भी किया कि बनयामीन का रोकना उसूली हैसियत से ग़लत होगा। क्योंकि हम लोग चोर नहीं हैं इन्हें आप छोड़ दीजिये। चुंकि हमारे वालिद इन्तेहायी ज़ईफ़ और कमज़ोर और नाबीना है। अपने एक बेटे के ग़म में रोते रोते उनकी आंखें सफ़ेद हो चुकी है। इसके बाद से ही वह बनयामीन को बहुत ज्यादा चाहते हैं। इसी लिए वह इनकी जुदाई का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे।
इसके अलावा हमारा इनसे वायदा भी है कि हम बनयामीन को हर कीमत पर अपने हमराह वापस लायेंगे। लिहाज़ा आप चाहें तो हममें से किसी को रोक लें और इन्हें जाने दें। भला यह क्यो कर हो सकता है कि जिसके पास से माल बरामद हुआ है और उसके एवज़ में किसी दूसरे को रोक लूं। ग़र्ज कि यूसुफ़ बुनयामीन को उनके हवाले करने पर किसी कीमत पर राज़ी न हुए तो बड़े भाई यहूदा ने अपने भाईयों से कहा कि मैं बग़ैर बनयामीन को अपने साथ लिये हरग़िज वापिस नहीं जाऊंगा। तुम लोग जाऔ और जाकर वालिद को इस सूरते हाल से आगाह करो। इसके बाद जैसा उनका हुक्म होगा उसी पर अमल करूंगा।
चुनान्चे वह लोग अपने वतन वापस आ गये। हज़रते याकूब से सारा वाक़ेया बयान किया। बलाआख़िर जनाबें याक़ूब ने अज़ीज़े मिस्र के नाम एक ख़त लिखा जिसका मजमून यह ता कि ऐ अज़ीज़ इस अम्र में कोई शक नहीं कि हम खानवादये नबूवत के अफराद हमेशां रंजोआलाम में मुब्तेला रहते हैं। क्योंकि परवरदिगारे आलम हमारा इम्तेहान लिया करता है। इधर बीस बरस से ज़्यादा मुसीबतों का सामना है। पहली अज़ीम मुसीबत यह थी कि मेरे लख़ते जिगर यूसुफ को इनके भाई सुबह के वक़्त सैर व तफ़रीह के बहाने से जंगल की तरफ ले गये थे और शाम को रोते पीटते इनका ख़ून आलूदा कुर्ता वापस लाये और मुझसे बयान किया कि एक भेड़िये ने इनको फाड़ खाया है।
यह सुनकर दुनिया मेरी नज़रों में सियाह हो गयी और मैं इसके फ़िराक़ में इस क़द्र रोया कि बीनायी जाती रही। इसके बाद इनके छोटे भाई बिन यामीन से मेरा दिल बहलता था कि मिस्र से वापस आकर लड़कों ने बयान किया है कि इसने चोरी की है और अज़ीज़ ने उसे गिरफ़तार कर लिया है। हालांकि हम अहलेबैते बबूवत चोरी नहीं करते। ग़र्ज तुमने इसे क़ैद कर लिया है। जिसके सबब मेरी मुसीबतों में और भी इज़ाफा हो गया हैं। मुझ पर रहम करो और इसे छोड़ दो। यह ख़त लेकर याकूब के बेटे फिर मिस्र की तरफ रवाना हुए और वहां पहुंचकर मकतूब यूसुफ़ के हवाले किया जिसे पढ़कर इन्हें ताबे ज़्बत न रही तन्हायी में जाकर खूब रोये और तीन मरतबा ऐसे ही किया जब किसी सूरत से ज़ब्त न हो सका तो आख़िरकार इन्होंने अपने भाईयों पर सारी हक़ीक़त वाज़ेह कर दी। और कहा कि बनयामीन मेरा हक़ीक़ी भाई है। बेशख खुदा ने मुझ पर फज़लो करम किया है और वह नेकियां करने वालों का अज्र बरबाद नहीं करता। अब आज की तारीख़ से तुम लोगों पर कोई इल्ज़ाम नहीं है खुदा तुम्हारे गुनाहों को माफ करे। और वही सबसे ज़्यादा रहीम है।
बीनायी की वापसी और हिजरत
इसके बाद हज़रते यूसुफ़ ने अपना एक कुर्ता अपने भाई को दिया और कहा कि इसको ले जाओ। और बाप की आंखों से मस करो। इन्शाअल्लाह उनकी बीनायी वापस आ जायेगी। फिर तुम लोग उन्हे और अपने अहलो अयाल को लेकर अपने पास आ जाना। कहा जाता है कि यह वही कुर्ता था जो नमरूद की आग तक सफर के दौरान हज़रते इब्राहीम के जिस्म पर था। और यूसुफ को रूख़सत करते वक्त हज़रते याकूब ने इस कुर्ते को उनके बाजू पर बांधा था। इसकी ख़सूसियत यह थी कि जब वह किसी बीमार के जिस्म से मस किया जाता तो उसका सारा मर्ज जाएल हो जाता था। बहर हाल ब्रादराने यूसुफ़ ने जब वह कुर्ता जनाबे याक़ूब की आंखों से मस किया तो उनकी आंखें रोशन और मुनव्वर हो गयीं। तो इन लोगों ने सारा मिस्र का हाल याकूब से बयान किया। और यूसुफ के मिलने की ख़ुशखबरी के साथ-साथ अपने साबेक़ाना फेल का एतेराफ़ भी किया फिर चन्द दिनों के बाद यह ख़ानवादा फिलिस्तीन से हिजरत कर के मिस्र की तरफ रवाना हुआ। और जब यह सब लोग मिस्र के क़रीब पहुंचे तो हज़रते यूसुफ़ ने शहर से बाहर निकलकर अपने वालदैन का इस्तेक़बाल किया। इज़्जत व एहतेराम के साथ इन्हें महल में लाये और वालदैन को अपने तख्त पर बिठाया।
ज़ुलैखा से हज़रते यूसुफ का निक़ाह
हज़रते यूसुफ मिस्र की हुकूमत मे जिस वक़्त ख़ज़ानो के सरबराह मुकर्रर हुए थे इस वक़त आप की उम्र 33 साल की थी। जब आप 40 साल के हुए तो बादशाह ने आप के हुस्नें ततबीर और फहमो फरासत को देखते हुए अपना ताज उतार कर आप के सर पर रख दिया। और सलतनत के जुम्ला उमूर को आपके सुपूर्द करके ख़ुद दस्त बरदार हो गया। चुनांचे इस ज़मानए क़हत में आप की हैसियत एक ताज़दार की थी इसी साल ज़ुलैखा के शौहर ततफीर का इन्तेकाल हो गया। और उसके इन्तेक़ाल के बाद ज़मानए क़हत में ज़ुलैखा भी एक एक दाने को मोहताज हो गयी। यहा तक कि वह भीख मांगने लगी। उसका यह हाल देखकर लोगों ने उससे कहा कि यूसुफ के पास क्यों नही जाती। उसने कहा हयामाने है। इसलिए हिम्मत नहीं पड़ती।
मगर जब लोगों का इसरार ज़्यादा हुआ तो एक दिन वह सरे राह खड़ी हो गयी। और जब उधर से हज़रते यूसुफ की सवारी ग़ुज़रने लगी तो इसकी ज़बान से बेसाखता यह अलफाज़ निकले कि “ पाको पाकिज़ा है वह खुदा कि जिसने बादशाहों को नाफरमानी की वजह से गुलाम बना दिया और गुलामों को फरमाबरदारी की वजह से बादशाहत अता कर दी। ” ज़ुलैखा की ये आवाज़ यूसुफ के कानों से टकरायी तो उन्होने सवारी रोक दी। उन्होने उसे पास बूला कर पूछा कि क्या तुम ज़ुलैखा हो उसने कहा कि हां। पूछा कोई हाजत उसने कहा हां ऐ युसुफ जब मै बुढियां हो चुकी हूँ तो तुम्हे मेरी हाजत का ख्याल आया काश जवानी मैं तुम्हारे दिल मे मेरी तरफ से कोई ख्याल पैदा होता यह सुनकर हज़रते यूसुफ जुलैखा को अपने हमराह क़सरे शाही मे लाये और वहां उससे पूछा कि क्या तुमने मेरे साथ नारवा सुलूक नही किये ? और क्या मुझे गुनाहों की तरफ माएल करने की कोशिश नही की ?
जुलैखा ने कहां हां- यकीनन तुम्हारी बातें हक़ीक़त पर मब्नी है। मगर इसकी वजह और मजबूरी भी थी।
यूसुफ़ ने फरमाया – वजह और मजबूरी क्या थी ?
ज़ुलैखा ने कहां – अव्वल यह कि परवरदिगार ने तुम को ऐसा हसीन पैदा किया और न मिस्र मे मेरी तरह खुबसूरत औरत पैदा होती। दुसरा कि मेरा शौहर नामर्द था। तीसरे यह कि मुझे आपसे फितरी तौर पर इश्क़ था।
यूसुफ ने फरमाया-अगर तू पैग़म्बरे आखरुज़्ज़मा के ज़माने में पैदा होती और उनका हुस्नों जमाल देखती तो खुदा जाने तेरी क्या हालत होती। खैर अब तेरा इरादा क्या है।
ज़ुलैखा ने कहा- तुम बेशक बरगुज़ीदा और पाक हो। ख़ुदा से दुआ करो कि वह मेरी जवानी वापस कर दे। इसलिए कि मै अब भी तुमसे निकाह की ख़वाहीश मंद हुं।
चुनांचे हज़रते यूसुफ ने दुआ फरमायी और खुदा वन्दे आलम ने जुलैखा की जवानी पलटा दी और इसके साथ ही उसके हुस्न मे मज़ीद इज़ाफा भी कर दिया। और जब हज़रते यूसुफ ने उससे अक़द किया तो वह बाकरा थी। जुलैखा के बदन से हज़रते यूसुफ के दो बेटे मुंशा और अफराहम मुतावल्लिद हुए। अफराहम हज़रते मूसा के वसी यूशा के दादा थे। और एक बेटी रहीमा पैदा हुई। जो हज़रते अय्युब की ज़ौजा थी।
वफात और मदफन
हज़रते यूसुफ की मज़मुयी उम्र 110 साल की हुई। आप 18 साल तक क़ैद मे रहे। और 80 साल तक हुकूमत की। जबकि हज़रते याकूब की मजमुई उम्र 147 साल की हुई और इन्तेक़ाल के बाद वह अपने दादा हज़रते इब्राहीम के पास दफन हुए। जनाबे यूसुफ अपने वालिद के इन्तेकाल के बाद 23 साल तक ज़िन्दा रहे। इसके बाद जब आप का इन्तेक़ाल हुआ तो आप मिस्र में दफन हुए।