तारीख़े इस्लाम भाग 1

तारीख़े इस्लाम  भाग 10%

तारीख़े इस्लाम  भाग 1 लेखक:
कैटिगिरी: इतिहासिक कथाऐ

तारीख़े इस्लाम  भाग 1

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: जनाब फरोग़ काज़मी साहब
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तारीख़े इस्लाम  भाग 1

तारीख़े इस्लाम भाग 1

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

हज़रते यूश बिन नून अ 0

आप हज़रते मूसा के भांजे थे नीज़ आपका नसबी सिलसिला हज़रतै यूसूफ बिन याकूब अ 0 पर तमाम होता है। जनाबे हारून की वफ़ात के बाद आप हज़रते मूसाकगे वसी और जानशीनी मुक़र्रर हुए और खुदा की तरफ से मुक़ामे अरीह में मन्सबे नबूवत पर फ़ाएज़ किये गये।

दौराने तब्लीग़ आपने अपने अहद में मुशरेकीन व मुनाफ़ेक़ीन से कई लड़ाईया लड़ी मगर तमाम लड़ाईयों में सबसे अहम लड़ाई हज़रते मूसा की बीबी सफ़रा से हुई जिससे तरफैन के 70 हज़ार अफ़राद मारे गये। इस जंग की तफसीलऔर एललो असबाब लके बारे में तारीख़ी किताबें ख़ामोश नज़र आती हैं। मगर इस अम्र की निशानदेही ज़रूर होती है कि सफूरा और यूशा बिन नून के माबैन यह जंग जंगे जमल से बड़ी हद तक ममासेलत रखती है।

जिस तरंह हज़रत रसूले खुदा स 0अ 0 ने अपने को जिस तरह हज़रते मूसा से तशबीह दी इसी तरंह हज़रत मूसा की ज़ौजा सफूरा और ज़ौजे रसूल हज़रते आयशा में भी पूरी मुशाबेहत ज़ाहिर हुई। यूशा से जंग की और हज़रते आयशा ने रसूल खुदा के वसी और जानशीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ 0 से लड़ाई की सफूरा भी ऊंट पर बैठ कर लड़ने आयी थी और आयशा भी ऊंट पर सवार होकर जमल में तशरीफ़ लिऐ गयीं थीं। सफूरा के मुक़ाबले में यूशा बिन नून कामयाब हुए और आयशा के मुक़ाबले में अमीरलमोमेनीन को फ़तह हासिल हुई। बांझ थीं और सफूरा के यहां हज़रते मूसा की एक औलाद हो चुकी थी। इससे यह बाद भी वाज़ेह हो जाती है कि बाज़्म्बियाए मुरसलीन की बीवियं सिराते मुस्तक़ीम से खुद बी भटक गयीं और उन्होंने दूसरों को गूमराह किया।

हज़रते यूशा नै जनाबे मूसा के साल बद और हज़रते ईसा से सालक़ब्ल बरस की उम्र में इन्तेक़ाल फ़रमाया। अपनी वफ़ात से कुछ पहले आपने वह तमाम तबररूकात और ताबूते सकीना जो आपको हज़रते मूसा से मिले थे हज़रते हारुन के साहबज़ादों के हवाले कर दिया था (तबरी जिल्द पहला सफा 227)।

हज़रते हिज़क़ील बिन बोरी अ 0

हज़रते यूशा बिना नून के बाद बनी इस्राइल के सरदार व पेशवा जनाबे तालिब बिन यूफना हे इनके बाद हज़रते हिज़क़ीलव का दौर आया। आप के वालिद हज़रते मूसा के दीन की तब्लीग़ किया करते थे। एक मरतबा इनकी क़ौम ने काफ़िरों और मुशरिकों से लड़ने के लिए इनके हुकम पर सरकशी इख़तेयार की तो खुदा ने बसूरते अज़ाब इन पर ताउव्वन की बीमारी को मुसल्लत किया। जो मुसलसल व बार बार साल ब साल आ , रही। जिसके नतीजे में लोग शहर छोड़ कर भाग जाया करते। एक मरतबा इस बीमारी ने वह शिद्दत इख़तेयार की कि तमाम शहर के लोग एक जंगल की तरफ निकल गये औन इन्हें यह गुमान पैदा हो गया कि अब हम यक़ीनन मौत से बच जायेंगे. तो खुदा ने इन पर कबारगी मौत को तारी कर दिया। और 70 हज़ार फ़राद फ़ना के गाट उतर गये। इनकी लाशें यूं हीं पड़ी रहीं यहां तर गोश्त पोस्त सब घुल कर ख़त्म हो गया। और सिर्फ हड्डियों के ढ़ाचे रह गये। जो एक अर्से तक इसी मक़ाम पर पड़े रहे। एक मुद्दत के बाद जनाबे हिज़क़ील का गुज़र इस मक़ाम से हुआ तो कसीर तादाद में इन्सानी ढ़ांचों को देखकर आपने मामले की नवैयत मालूम की। लोगों ने बताय कि यह ज़ाबे इलाही का शिकार हे हैं। चुनान्चे आपने बारगाहे एज़दी में इनकी ज़ीन्दगियों की दुआ फरमायी हुक्म हा कि ऐ हिज़क़ील बक़दरे ज़रूरत पानी लेकर असमाये पन्जेतन को इस पर दम करो। और पिर इस पानी को चुल्लूमें लेकर इनके ढ़ाचों पर छिड़क दो तो हम इन्हें दुबारा ज़िन्दा कर दें। ग़्रर्ज़ आप पानी छिड़कते जाते ते और लोग ज़िन्दा होते जाते थे। यहां तक सब के सब ख़ाक झाड़ते हे उछ खड़े हुए।

यह वाक़या नौरोज़ के दिन का है। इसी वक्त से ख़ुदा ने इस दिन एक का दूसरे पर पानी या गुलाब छिड़कना सुन्नत क़रार दिया। मगर अफ़सोस के हमारे भाईयों ने सुन्नत को होली में तब्दील कर दिया।

नौरोज़ उस दिन को कहते हैं जिस दिन आफ़ताब बुर्ज हमल में दाख़िल हुआ। इस दिन से ज़माने क़दीम से इस दिन को ख़ास फ़ज़ीलत हासिल है। जनाबे नूह की कशती इसी दिन कोहे जूदी पर ठहरी हज़रते इब्रहीम ने इसी दिन बुतों को तोड़ा। पैग़म्बरे इस्लाम ने इसी दिन अपने आख़री हज से वापसी पर ग़दीर में हज़रते अली की वेलायत का एलान किया और इन्हें अपना खलीफ़ा और जानशीन बनाया। अल्लामा मजलिसी अ 0र 0 ने मोअल्ला बिन ख़नीस की ज़बानी रवायत नक़ल की है कि नौरोज़ के दिन के लिऐ हड़रते इमामे जाफ़रे सादिक़ अ 0 का इरशाद है कि नौरोज़ के दिन पाको साफ़ लिबास पहन्ना खुशबू लगाना , आपस में एक दूसरे को मुबारकबाद देना और दुरूद पढ़ते हुए एक दूसरे पर गुलाब या पानी छिड़कना सुन्नत हबै। इसीले कि इस दिन हज़रते रसूले खुदा ने भी ईद और ख़ुशी मनायी थी।

ग़र्ज़ कि हिज़क़ील अपनी नाफरमान क़ौम को बराबर हिदायत करते रहे मगर इन पर आपकी बातों का की असर न हुआ। मगर इनकी रेशादवानियां जब लनाक़बिले बर्दाश्त हो गयीं तो प परेशान होकर बाबुल की तरफ जले गये और वहीं इन्तेक़ाल फ़रमाया।

हज़रते इल्यास अ 0

हज़रते हिज़कील के बाद उनके साहबज़ादे हज़रते इस्माइल उनके वसी और जानशीन मुक़र्रर हुए और उन्होंने भी कारे तब्लीग़ न्जाम दिया लेकिन तारीखों में इनका कोई क़ाबिले ज़िक्र कारनामा नहीं मिलता है।

इस्माइल के बाद ख़ुदा ने हज़रते इल्यास बिन यासी न बिन मीशा बिन फख़ाख़ बिन अज़ा बिन हारून को पैग़म्बरी अता की प इलाक़ए बालाबक के इस्रिलियों पर मबऊस हुए। जिनकी शरारतों और बदआमालियां हद्दे कमाल से तजवुज़ कर चुकीं थीं।

इस वक़्त का बादशाह अजीना नामि का एक शख़्स था जो अपनी साबेक़ा ज़िन्दगी में मोमिन और बाइमान था। मगर शादी के बादग अपनी बीवी असबील के कहने सुनने और बहकाने से काफिर हो गया था। आपने उसकी हर चन्द फ़हमाइश की मगर की असर न हुआ।

एक दिन अज़बील की नज़र एक आबिदों ज़ाहिद की हरे भरे सब्ज़ो शादाब बाग़ पर पड़ी। जिससे वह अपनी गुज़र बसर करता था। इसे देखकर अज़बील की नियत ख़राब हुई। चुनान्चे इस बाग़ के मीलिक को क़त्ल करा दिया और खुद इस परक़ाबिज़ व मुतासर्रिफ़ हो गया। इसकी इस नारवा हरकत पर परवरदागर को जलाल या और इरशाद हा कि मैं इस खूनवे नाहक़ का बदला ज़रूर लूंगा। मगर अजीना और अज़बील इसी बाग़ में इस तरंह मारे जायेंगे कि इनकी लाशों को दफ़न करने वाला कोई न होगा।

एहतेजाजन हज़रते इल्यास ने भी इन्हे समझाना चाहा और मगर अजीना अपनी बीवी के कहने पर इल्यास ही के लिऐ दरपैआज़ार हो गया। और इसने आपनी गिरफ़तारी का परवाना जारी कर दिया। मगर ख़ुदा की शान यह कि इसका बेटा कुछ ऐसा बीमार हुआ कि वह उसकी बीमारी की तरफ़ मुतावज्जे हो गया और हज़रते इल्यास मौक़ा पासर वहां से निकल गये।

और एक पहाड़ पर जाकर खुदा की इबादत में मशगूल हो गये। बादशाह ने जब कुछ लोगों को साम के बुतों के पास अपने बेटे की दुआऐ सेहत के लिए रवाना किया तो उन लोगों ने इन लोगों से आप की मुलाक़ात हुई।

आपने फ़रमाया कि अगर तुम्हारा बादशाह बुतों की परशतिश से दस्तबरदार होकर ख़ुदा पर ईमान ले आये तो उसका बेटा अच्छा हो जायेगा। इस बदबख़्त को अपने आदमियोंसे आप का ठिकाना मालूम हुआ। तो कई बार उसने अपनी फ़ौज के सिपाहियों को आपकी गिरफ़तारी के लिए भेजा। मगर वह सब के सब पनी बद्दुआ से हलाक हो गये।

आख़िर में उसने अपने वज़ीर को जो ईमानदार था रवाना किया। तो वह हज़रते इल्यास ही के पास रह गया और पलट कर न आया। इधर इसका बेटा भी मर गया इसके बाद वहां के लोग कहत काशिकार हुए।

जब एक मुद्दत गुज़र गयी और बारिश न ही तो हज़रते इल्यास फ़िर पलट कर आये और उन्हें समझाया बुझाया कि तुम लोग अपने बुतों के सामने दुआ कर अगर बारिश हो जाये तो बुत परस्ती पर क़ायम रहना। इसका बरअक्स अगर मेरी दा से बारिश हो तो मेरे ख़ुदा की इतात क़ुबूल कर लेना। सब राज़ी हो गये।

मगर इन्हें अपने बुतों से पानी का एक क़तरा न मिला। आख़िरकार आपने दुआ फ़रमायी तो खूब बारिश ही। मगर वह अपने इक़रार से फिर गये। आख़िरकार आपने हज़रते लयसी को अपना नायब मुक़र्रर किया और खुद लोगों की नज़रों से ग़ायब हो गये और कहा जाता है कि ख़ुदा ने आपको ज़िन्दा आसमान पर उठा लिया।

एक मुसतनद रवायत मिलती है कि आप जनाबे ख़िज्र की तरंह इसी दुनिया में हैं मगर लोगों की नज़रों से पोशीदा हैं। और जो अहकामें इलाही इनके सिपुर्द होते हैं इसे अन्जाम देते हैं। हज़रते ख़िज्र दरियाओँ और समुंदरों पर मुक़र्रर हैं। और हज़रते इल्यास सहराओं और पहाड़ों पर मुतीईन हैं। इन दोनों की मुलाक़ात भी हज के मौक़े पर खानए काबा में होती है। ग़र्ज़ कि खुदा ने आप की गैबत के बाद वहां के लोगों पर एक दूसरे बादशाह को मुसल्लत कर दिया जिसने अज़बील और दबील को क़त्ल करे उसी बाग़ में डलवा दिया और दरिंदे इन दोनों को खा गये।

तालूत व जालूत

हज़रते मूसा के बाद एक अरसे तक बनी इस्राइल जंग व जदल फतोहात की तरफ माएल रहे और जब केनान और उसके जैली इलाकों पर इन्हें इकतेदार हासिल हो गया तो चन्द रोज़ चैन से रहे। मगर जब उनके शर पसन्द मिजाज़ ने उन्हें फिर शरारतों पर मजबूर कर दिया और यह लोग फिर अपनी साबेका हालत पर पहुंच गये तो परवर दिगार ने इन पर एक इन्तेहायी ज़ालिम व जाबिर बादशाह को मुसल्लत किया जिसका नाम जालूत था। इसने इस्राइलियों पर वह जा़लिमाना व जाबिराना अक़दाम किये कि इनका जीना दूभर हो गया और इनकी हालतें ख़राब हो गयीं।

आखिरकार जालूत के जब्रो इस्तेबदाद से परेशान होकर इन्होंने हज़रते शामूल की तरफ रुजू किया। जो हज़रते मूसा की शरीयत पर नबी थे और ग़ज़्जा और असक़लान के इलाकों पर मबउस थे।

बनी इस्राइल ने हज़रते शमूवील से जालूत के मजा़लिम की शिकायतें कीं और कहा कि आप खुदा से दुआ करें कि वह हमें इसके जुल्म से निजात दे। इसके अलावा अगर आप मुनासिब समझें तो हम पर कोई ऐसा हाकिम मुक़र्रर फरमायें जिसकी मातेहती में हम लोग जालूत से जंग करें। हज़रते शमूवील ने बारंगाहे ऐजंदी में इनका मुद्दआ बयान किया परवरदिगार ने रौग़ने ज़ैतून से भरा हुआ एक ज़र्फ का असा जिब्रअील के ज़रिये जनाबे शमूवील की खि़दमत में इरसाल फ़रमाया और यह हुक्म दिया कि जिस शख़्स के सामने यह रौग़न जोश खाने लगे यह असा इसके क़द के बराबर हो जाये उसी शख़्स को बादशाह बना दो।

एक फ़रमान रवा के इन्तेख़ाब का यह अजीबो ग़रीब मेयार था। जिसमें मसलेहते इलाही कार फ़रमा थी। बहरहाल यह सुनकर बड़े बड़े लोग इस रौगन और असे के सामने हुक्मरानी की तमन्नाओं के साथ आये। मगर इस रौग़न में न कुछ जोश पैदा हुआ और न असे में कोई हरकत हुई।

चुनान्चे जब बन इस्राइल में हज़ारो लोग इसमें से गुज़र गये तो आखि़र में सक्कायी का पेशा करने वाला एक शख्स आया जिसका नाम तालूत था। इसके आते ही रौगन भी जोश खाने लगा और असा भी उसके कद के बराबर हो गया। यह देख कर हजरते शमूवील ने हुक्में इलाही के मुताबिक इसी को बादशाह बना दिया। लेकिन बनी इस्राइल अपनी साबेका आदतो फितरत की बिना पर इस इन्तेखाब से मितमइन न हो सके। वह ऐतराज़ात और अंगुश्त नुमाईयां करने लगे , उनका नजरिया यह था कि जिनके पास माल व दौलत खजाना और तुजको एहतेशाम हो उसी को बादशाह होना चाहिए।

इन एतेरेजाल के ज़ैल में हजरते शमूवील का जवाब तमद्दुन के कायदे पर मबनी था कि सल्तनत का काम जाहिरी तुजक्को एहतेशाम से नही चल सकता। इसके लिए इल्म व हिकमत , फहम व फरासत के खजानो की जरुरत है। और इसी बात का लेहाज खुदा वन्दे आलम ने हर नबी व खलीफा की तकरसरी में रखा है। बैयत ग़ल्बा और उम्मत का इज्मा और भेड़िया धसान कोई चीज नही है।

गर्ज कि बड़ी मुश्किलो और कट हुज्जतियो के बाद इन लोगो ने तालूत को अपना बादशाह तसलीम किया और इनकी मा तहती में जालूत से जंग करने के लिए निकले। इस वक्त इनकी तादाद 70 हजार थी। गर्मी का मौसम था धूप की शिद्दत में इन पर प्यास का ग़ल्बा हुआ तो तालूत से कहने लगे कि पानी की किल्लत और प्यास हमें मारे डालती है। ऐसी सूरत में हम कैसे जिन्दा रहेगे और क्यो कर सफर करेगे। तालूत ने फरमाया कि घबराओ नही कुछ दूर चल कर एक नहर मिलेगी। वह तुम्हारी प्यास बुझा देगी।

मगर शर्त यह है कि इस नहर से सिर्फ एक चुल्लू पानी पीना वरना मैं किसी का जिम्मेदार न होऊगा। मगर यह लोग जब नहर पर पहुंचे तो तीन सौ तेरह आदमियों के सिवा मुंह के भल उस पर दुरे और खूब जी भर कर पानी पिया और नतीजा यह हुआ कि इनके पेट फूल गये , होंठ सियाह हो गये और यह लोग चलने फिरने को मजबूर हो गये। यह पानी पीते जाते थे मगर इनकी प्यास नही बुझती थी। मगर जिन लोगों ने तालूत के कहने के मुताबिक अमल किया था यानी सिर्फ एक चुल्लू पानी पिया था इन्हे सुकून भी मिला थकन भी दूर हुई और प्यास भी बुझ गयी।

हजरते शमूवील भी तालूत के हमराह थे इन पर खुदा के वही नाजिल हुई कि जो लोग पानी के बीमार है। उन्हे इसी मुकाम पर छोड़ दो और जो तीन सौ तेरह तन्दुरुस्त हैं इन्हे लेकर आगे बढ़ो। चुनान्चे वह आगे बढ़े और बाकी सफर तय करके महाज़ पर पहुंच गये। जब जालूत को यह खबर मिली तो वह भी एक लाख का लशकर लेकर आ धमका।

माराकाए कारजार गर्ब होने से पहले हज़रते शमूवील ने तालूत से कहा कि जालूत को वही शख्स कत्ल करेगा जो आले याकूब में होगा। और जिस के बाप का नाम ईशा होगा। चुनान्चे लोगो की निगाहे हजरते दाउद पर ठहरी जो तीन सौ तेरह आदमियो में शामिल थे। जिस्मानी एतेबार से खान पान होने के बावजूद सेफात व कमालात में हजरते शमूवील के मेयार पर पूरे उतर रहे थे।

लड़ाई छिड़ने से पहले तालूत ने यह भी ऐलान कर दिया कि जो शख्स जालूत को कत्ल करगा में उसे निस्फ सल्तनत दे दुंगा। इसके साथ ही में अपनी बेटी भी इसे ब्याह दुंगा.।

ग़र्ज़ की जंग शुरु हुई और जालूत ने अपना मददे मुक़ाबिल तलब किया किसी कि हिम्मत नही हुई तो हज़रते दाउद मुक़ाबले के लिए चले उन्होने न तलवार ली न नैज़ा बल्कि तीन पत्थर रास्ते से उठा लिये और इनमें से एक पत्थर गोफन (मिनजनीक़) में रखा जालूत की तरफ फेंका जो उसकी पेशानी पर लगा और कासए सर को तोड़ता हुआ पुश्ते गर्दन से बाहर निकल गया। बस यही एक वार काफी था। जालूत इसी जगह ढेर हो गया। इसका मरना था कि फौज के कदम उखड़ गये और तालूत को नुमायां फतेह हासिल हुई।

इसके बाद उन्होने अपने एलान के मताबिक जनाबे दाउद अ 0 को अपनी बेटी ब्याह दी और अपने बाद के लिए उन्हे अपना वारिस व जानशीन मुक़र्रर कर दिया। इस तरह जनाबे दाउद अ 0 हज़रते तालूत अ 0 के बाद हाकिम क़रार पाये। आपकी सलतनत का जिक्र जाबजां क़ुरआन में मौजूद है।

हज़रते दाउद अ 0

हज़रते दाउद अ 0 हज़रते याकूब की नस्ल से थे। सिलसिलए नसब दाउद बिन ईशा बिन ओबेद बिन बाकिर बिन सल्मुन बिन बख़शुन बिन अमीनादिब बिन राम बिन हसनरुन बिन फारिज़ बिन याक़ूब बिन इस्हाक बिन इब्राहिम पर तमाम होता हे।

आप हज़रते ईसा से 1085 साल पहले पैदा हुए आप पैग़म्बर भी थे और बादशाह भी थे। इस तरह खुदा ने आपको दीनो दुनिया दोनों की सरदारी से सरफराज़ किया था। जैसा कि कुरआने मजीद में इरशाद हुआ – यक़ीनन हमनें दाउद को अपनी बारगाह से बुजूर्गी अता की और पहाड़ों को हुक्म दिया की वह तसबीह में इनका साथ दें नीज़ परिंदों को हमनें इनका ताबेह बनाया। (सुरए सबा आयत 10)

आप पर जो अल्लाह की तरफ से आसमानी किताबे नाज़िल हुई उसका नाम ज़बूर है। नबूवत और इल्मो हिक्मत के साथ साथ खुदा ने आपको खुशइलहानी से भी नवाज़ा था। जिसकी कैफियत यह थी कि जब आप सोज़ व गुदाज़ के साथ मसरुफे मुनाजात होते तो तमाम चरिन्द परिन्द आपके गिर्द जमा हो जाते और दरखतो और पहाड़ो से सदाये बलन्द होने लगती और जिस वक्त आप जुबूर की तिलावत फरमाते तो उलमाए यहूद शजर व हजर कोह व सहरा ,जिन्न व इन्स सब के सब बेखुदी में झुमने लगते थे और अकसर जानदारों पर बेहोशी का आलम तारी हो जाता। बरोज़े क़यामत यही एजाज़ व कशिश अमीरलमोमेनीन हज़रेत अली अ 0 की आवाज़ में होगी। जैसा कि रसुले खुदा स 0 अ 0 का इरशाद है कि खुदा वन्दे आलम क़यामत के दिन अली को जिबरईल की कूवत आदम का नूर यूसुफ का जमाल , और दाउद की आवाज़ अता करेगा और अहले बेहिश्त का ख़तीब बनायेगा। और जब वह कलाम करेंगे तो बहूत से लोग उनकी आवाज़ सुनकर बेहोश हो जायेंगे। एक बादशाह और ताज़दार की हेसियत से हज़रते दाउद का तरीक़ए कार यह था कि जब वह अकसर रातों में भेष बदलकर रियाया का हाल मालूम करने निकलते थे तो लोगों से अपने बारे में भी दरियाफत करते थे। कि तुम्हारे बादशाह का तौर व तरीका कैसा है। एक शब एक फरिश्ते ने इन्सानी सूरत में आपसे मुलाकात की तो आपने उससे भी हस्बेदस्तूर अपने बारे में पूछा तो उसने बताया कि बादशाह का रवैया और बरताव रियाया के साथ बहुत ही अच्छा है। मगर एक ऐब यह है कि वह खुद अपना और अपने अहलोअयाल के एख़राजात का बोझ बैतुलमाल पर डालते है जो गैरे मुनासिब है। क्योकि वह एक बादशाह होने के साथ साथ एक नबी भी है।

इस गुफ्तगू के बाद हज़रते दाउद ने यह तय कर लिया कि वह आइंदा अपना व अपने अहलो अयाल का बोझ बैतुलमाल पर नहीं डालेंगे। इस फैसले के बाद खुदा वन्दे आलम ने जिब्रइल के ज़रिये इन्हे ज़िरासाज़ी की तालीम दी और यह एज़ाज़ बखशा कि लोहा इनके हाथ में आने के बाद मोम की तरह नर्म होने लगा। गर्ज़ कि आपने ज़िरासाजी का काम शुरु किया और ऐसी ज़िरा बनाने लगे कि उस दौर में वह चार हज़ार दिरहम में फ़रोखत होने लगी और इसी से आप के जुमला एखराजात पूरे होने लगे। मौर्अरेखीन व मुस्सेरीन का कहना है कि ज़िरा आप ही की ईजाद है। पूरा मुल्के शाम और जज़ीरए आरमीना के तमाम इलाके आप की हुकूमत में शामिल थे। जो आप की ज़ाती फ़तुहात का नतीजा थे। इनका सबब यह था कि एक काफिर और ज़ालिम व जाबिर बादशाह सेआपकी जंग हुई और वह मार गया। इसलिए उसकी हुकूमत पर भी आपका कब्ज़ा हो गया वरना कोई तारीख यह नही वताती कि आपने जबरन लोगों को खुदा परस्ती इख़तेयार करने या एहकामें इलाही का पाबन्द बनाने के लिए जेहाद के नाम पर या मुल्क गीरी के लिए तलवार के ज़ोर से कोई इलाका फ़तेह किया हो जैसा कि पैग़म्बर आखरुज़्ज़मा की वफात के बाद हज़रत उमर के दौर में हुआ।

आपने 40 साल तक बादशाहत और पैग़म्बरी और 70 साल की उम्र मे इन्तेकाल फरमाया। रेहलत के वक्त आपने अपने छोटे साहबज़ादे जनाबे सुलेमान को अपना खलीफा मुक़र्रर किया और कुरआनी सराहतों के मुताबिक वही आपके ममलेकत इल्म और नबूवत के वारिस क़रार पाए।

कुरआने मजीद ने इस विरासत के ज़ैल में हज़रत रसूले खुदा स 0 अ 0 की उस दरमियान चौदह सौ बरस से निज़ा का सबब है। शियों का कहना है कि रसूले खुदा की मीरास भी उसी तरह जारी होना चाहिए जिस तरह और लोगो की होती है.। हज़रते अहले सुन्नत यह कहते है कि आन हज़रते का कोई वारिस नही हो सकता और इसकी दलील बह यह पेश करते है कि रसूले खुदा स 0 अ 0 ने खुद फरमाया है कि हम गिरोहे अम्बिया न किसी के वारिस होते है और न किसी को अपना वारिस बनाते है बल्कि जो कुछ छोड़ जाते हैं वह सदका होता है। लेकिन कुरआने मजीद साफ साफ बता रहा है कि जनाबे दाउद ने अपने फरज़न्द को अपना वारिस छोड़ा और हज़रते सुलेमान हज़रते दाउद के वारिस हुए। मुमकिन है कि पैग़म्बरे इसलाम स 0 अ 0 ने इस तरह फरमाया हो कि हम गिरोहे अम्बिया में वारिस होते भी है और वारिस छोड़ते भी है और हज़रते अबू बक़र उलटी बात समझे हों। हालाकि हुजूरे अकरम वारिस ने छोड़ते के बारे में अगर कुछ फरमाते तो सबसे पहले इसका ज़िक्र जनाबे फात्मा ज़हरा स 0 अ 0 से करते कि बेटी तुम याद रखना कि अम्बिया का कोई वारिस नही होता। इसके बाद हज़रते आयशा से फरमाते या किसी और बीवी से बयान करते। क्योकि आन हज़रत की मीरास का दावायही लोग कर सकतीं थी। लेकिन सरकारे दोआलम की ज़बान से यह बात न जनाबे सैयदा ने सुनी और न किसी ने इसकी तस्दीक की। सिर्फ अबू बक़र इसके मुददई और रावी है जो किसी पहलू से दुरूसत नहीं मालूम होती है।