श्रद्धार्पित
बिस्म्ल्लाह हिर्रहमा निर्हीम
वस्तुवाद के इस भयकन् और डरावने काल में जब मनुष्य के जूनम का कारवां विश्वव्यापी युद्ध के शोलों की भेंट होने के लिये अपने अन्तिम चरण के बिल्कुल समीप पहुँच चुका है।
नये युग की उन्नित संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व पर शासन करने की अभिलाषा दृष्टि से चाँद , सूरज और सितारों पर जो कमन्दें डाली है उस ने सम्पूर्ण विश्व को भयावह नरक का रूप दे दिया है।
सभ्यता के ठेकेदारो ने उन्नति के नाम पर प्राणी वर्ग में सबसे श्रेष्ठ मनुष्य को असभ्यता की उस सीमा पर पहुँचा दिया है। जिसे देखकर आदम का मस्तिष्क लज्जा से पानी पानी हो गया।
प्रत्यक्ष रूप से इस धरती पर अंधकार और नास्तिकता के काले साये फैलते जा रहे है। संसार का चप्पा चप्पा अत्याचार से भर चुका है। शैतान की नस्ल ने आदम की सन्तान से अपने अपमान का बदला लेने की तैयारियाँ पूरी कर ली है। खौफनाक़ माहौल और गुनाहों के तूफान ने मनुष्य मुक्ती के सभी द्वार बन्द कर दिये है और मनुष्यता पर चारों ओर निराशा के बादल छा भी चुके है। इस निराशा के दशक में भी अगर कोई आस बाक़ी है तो वह केवल आपके तेजस्वी मुख की प्रकाशमय किरणों से सम्बन्धित है अतः मैं पापी एवं गुनाहगार अपने मन की शुद्धता व सन्तुष्टि निष्ठा के साथ अत्यन्त विनय एंव नम्रता और बेचैनी से निवोदित हूँ कि बस प्रतीक्षा के क्षणों को कम कीजिये क्योंकि सहनशीलता का दामन कमज़ोर हाथों से छूटने ही वाला है।
ईश्वर के लिये शीघ्र परदे की अदृश्यता को उलटकर तेजस्वी चेहरे की हल्की सी झलक से अधंकरमय संसार को न्याय एवो इंसाफ की ज्योति से जगमगाकर संसार के कण कण से सर्वश्रेष्ठ ईश्वर के उस कथन को सत्य कर दिखाइये कि ईश्वरीय आभा चरम सीमा पर पहुँच कर ही रहेगी चाहै कुफ़्फार (ईश्वर में विश्वास न रखने वाले) कितनी ही घृणा एवं उदासीनता प्रकट करें।
निर्मल मन से स्वीकार है यद्दपि आपका प्रकटन क़यामत से कम नही किन्तु न आना भी तो एक क़यामत है और जब क़यामत स्वयं आपकी चरण प्रतिक्षा में है तो बस-अब शीघ्रताशीघ्र प्रलयकारी रूप में ही पधारें।
उत्पीडित मानवता की सहायता और ईश्वरीय उद्देश्य की पूर्ति हैतु अब आप ही की आवश्यकता है क्योकि आपके आगमन का मुझे भी पूर्ण विश्वास है अतः आगमन-घोषणा व स्वागतम् सूचना के कारणंवश यह श्रद्धार्पित पुस्तक , शीर्षक क़यामते सुगरा सार्पत है – इसके बदलें में उम्मीदवार हूँ केवल उस कृपा दृष्टि का जो महाप्रलय के सेवकों की पंक्ति से गुज़रती हुई मेरे पापी अस्तित्व पर क्षणिक ठहरे और मेरी नजात का सहारा बन जाये , मैं अपने दुस्साहस पर लज्जित अवश्य हूँ किन्तु आप ही न्याय करें।
ज़ब्त कब तक करे कब तक कोई ख़ामोश रहे।
हुस्न बे-मिस्ल है फिर किसलिये रूपोश रहे
आप उलटें तो ज़रा चेहर – ए – गैबत से नकाब
मेरा जिम्मा जो जमाने में कहीं होश रहे।
(इज़हारे ख़्याल) मन अभव्यक्ति
आदरणीय मौलवी सनाऊल हक़ साहब
एम 0 ए 0 (अलीगढ़)
अनुवादकः अलस्टरानामी फ़ार बिगनर्स
मर्टिन डेविडसन ,
बउनवान महोअंजुम , कराची
हर मुसलमान का कर्तव्य है कि वह क़यामत को सत्य जाने और उस पर मन से विश्वात रखे। चूँकि मनुष्य का अन्तकाल (अन्जाम) विचार अमुचित मार्गों पर जाने से रोकता है। इसी कारण प्रलय (क़यामत) का अक़ीदा (विश्वास) ईमान की प्राथमिकताओं में रखा गया है। अल्लाह ने पवित्र कुरान में स्थान पर क़यामत का उल्लेख है कि अर्थ समझे बगैर केवल शब्द ही मनुष्य की अन्तरात्मा को झँकोर देते है। क़यामत को केवल भयभित करने का स्त्रोत न समझना चाहिऐ अपितु इसे जीवन निधि मानते हुऐ इसके सत्य होने का विश्वास करना चाहिए। यदि अक़ीदे से ड़ट कर देखा जाये तो बौद्धिकता की माँग भी यही प्रतीत होती है कि संसार और जीवन जिस का एक आदि है उसका अन्त भी आवश्यक है।
सर जेम्स जेन्सन ने इस विषय पर केवल भौतिकता की दृष्टि से बहस करते हुए अपनी प्रसिद्ध रहस्यमस संसार में इस सत्यता को इन शब्दो सें प्रस्तुत किया है।
हमारी सम्पूर्ण उमंगों को अन्त में असफ़लताओं का सामना करना है और हमारी सारी उपलब्धयाँ तता सफ़लताऐं मनुष्य वंश के समाप्त होते ही समाप्त हो जायेगी और संसार ऐसा हो जायेगा जैसे हम सब जन्मे ही न हों।
क़यामत (प्रलय) किस तरह आयेगी , इसका रुप क्या होगा , इसका घान केवल ईश्वर को है। हमें तो केवल कुछ लक्षण इंगित करा दिये गचें हैं तथा भूकम्पों इत्यादि के उदाहरण द्वारा इसकी भयानकता को बोध कराया गया है। सम्भव है पृथ्वी के आन्तरिक पदार्थों में विक्षोभ उत्पन्न होने से धरातल उलट – पुलट हो जाये या भूमि की ऊपरी तल पर प्राकृतिक या मनुष्य द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न हो जो इस धरती के थिन्न भिन्न होने के कारण बन जाये या फ़िर आकाशीय पिण्ड़ों की नियतता तथा क्रमबद्धता में ऐसी बाधा उत्पन्न हो जिससे धरातल काल के गाल में समा जाये। स्वयं वैज्ञानिक कई ऐसे कारणों को इंगित कर रहे है जो संसार को तबाही के गर्त में ढकेल देंगे। इनमें से एक यह है कि सूरज , छव्टा (नोवा) सितारों से सम्बन्धित है , अचानक इतनी विशालता ग्रहण करेगा कि पृथ्वी इसकी लपेट में आकर पूर्णतया जीवन विहीन हो जायेगी। सम्भव है इसी घटना का सूर्य के सवा नेज़ा पर आने से मोध किया गया हो। यद्यपि यह बात भगवान ही के ज्ञान में है कि वह इस सुख समृद्धि से परिपूर्ण संसार को किस प्रकार उसके अन्तिम चरण सें पहुँचायेगा। हमारे लिये तो यही अक़ीदा काफ़ी है कि ऐसा होना आवश्यक है। इसलिये हमें उस दिन की खेदजनक स्थिति से बचने के लिये भगवान के आदेशानुसार जीवन-यापन का पूरा प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार अन्य घटनाओं के प्रकट होने से पूर्व कुछ लक्षण प्रकट होते हैं उसी प्रकार क़यामत (प्रलय) जैसी महान घटना के लिये उनके लक्षण हैं। जिनमें से कुछ के संकेत मोहम्मद सा 0 की वाणी से हो चुका है। इन लक्षणों में से कई इस समय हमारी दृष्टि के सम्मुख हैं और अनेकों की सम्भावनाऐं विद्ममान है। वह भी भविष्य के परदे से शीघ्र या देर में प्रकट होकर रहेंगे। वर्तमान लक्षणों में सबसे मुख्य वह नाना प्रकार के अवगुण हैं जिनमें लगभग समस्त मानव समाज लिप्त है। और जिन पर पश्चाताप होने के स्थान पर वह गर्व प्रकट कर रहा है। इसी लक्षण को देखते हुऐ डा 0 इकबाल ने इबलीस की ज़बान से यह वास्तविकता प्रकट कराई है।
उस की बरबादी पर आज आमादा है वह कारसाज़
जिसने इसका नाम रखा था जहाने क़ाफ व नून
यद्यपि यह इतना स्पष्ट लक्षण है कि इसके पश्चात अन्य किसी लक्षण की आवश्यकता नहीं रहती है। तर्क समाप्ति हैतु औऱ भी कई लक्षण बताये गये हैं जो सम्भव है हमारे जीवन में घटित न हुऐं हों बल्कि आगामी संतान मानव वंश उनको देख सकें। यह आवश्यक है कि कुछ कथन जो क़यामत के लक्षण के सम्बन्ध में कहै गये हैं , आलोचना और विवेचना के मोहताज (आश्रित) हैं। संक्षेपण और विस्तारीकण में भी भेद सम्भावना रहती है फिर भी इस से मुख्य उद्देश्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि उनके बताने और गिनाने का उद्देश्य क़यामत की याद दिलाना और नसीहत देकर वर्तमान चाल-चलन के सुधार की तरफ आकर्षित करना है और वह उद्देश्य एक या अनेक लक्षणों के प्रकट होने से समाप्त नहीं होता है।
इसी पुनीत उद्देश्य को सामने रखकर आदरणी भ्रातः सै 0 मो 0 अब्बास साहब क़मर जैदी ने कठिन परिश्रम से इन मुख्य-मुख्य क़यामत के लक्षणों को जो हमारे सामने हैं या जिनकी सम्भावनाऐं सम्भव हैं अनेक बड़ी पुस्तकों से उद्धरित करके अत्यन्त सूक्ष्म रुप में एक स्थान पर एकत्र कर दिया , साथ ही यह आभास करके कि वर्तमान समय में कोई भी बात उस समय तक ठोस नहीं समझी जाती जब तक विज्ञान से उसकी पुष्टि न हो उन्होनें बहुधा बातों का वैज्ञानिक ढ़ंग से विश्लेषण करने का सफ़ल प्रयास किया।
ज़ैदी साहब ने क़यामत के दो भाग करके अपने संकल्प को क़यामते सुगरा का शीर्षक दिया है और चूँकि उसे क़यामते कुबरा का प्राक्कथन बताया है इसीलिये दोनों एक ही श्रृंखला की दो कडियां समझना चाहिऐ फिर चूंकि जिस महान क्रांती को उन्होनें क़यामते सुग़रा का नाम दिया है। उसके पश्चात् कुछ समय के अच्छे कार्य भी परलोक के जीवन की अच्छाई के लिऐ होगी जो क़यामते कुबरा के बाद प्रारम्भ होगी इसलिये दोनों अलग-अलग करके नहीं वरन् बल्कि दोनों के सम्पूर्ण चित्रों को एक दर्पण में देखना चाहिऐ।
सम्भव है कुछ कथनों से जो ज़ैदी साहब ने प्रस्तुत किये हैं पाठक को असहमति हो परन्तु जिस उद्देश्य से यह सम्पूर्ण संकलन किया गया है उस पर किसी प्रकार का सन्देह और आलोचना नहीं की जा सकती। उनका उद्देश्य भय दिला कर बुराई से हटाना और भलाई की ओर लाना है , यह उद्देश्य जितना महान है उससे कोई भी असहमति नहीं प्रकट कर सकता अतः इन पृष्ठों को इसी ध्येय के साथ पढ़ा जाये , मात्र मनोरंजन या ज्ञान में वृद्धि के उद्देश्य से नहीं। यदि पाठ्कों ने इस पुस्तक का इस दृष्टिकोण से अध्ययन किया तो संकलनकर्ता के प्रयासों को भी सराहा सकेंगे तथा उनके चाल चलन का सुधार भी हो सकेगा।
ईश्वर सद बुद्धि दे
सनाईल हक़ सिद्दीक़ी