प्राक्कथन
परम आदरणीय ,
श्री अलहाज अल्लामा तालिब जौहरी
(प्रवक्ता गवर्मेन्ट कालिज , नाज़िमा-बाद , कराची)
बिस्ल्लाहिर्रहमान निर्रहीम
क़यामते सुग़रा (लघु प्रलय) सोकलित द्वारा श्री कमर जैदी मेरे सम्मुख है। जिसमें इमामे मेहदी (अ 0) के प्रकटन के लक्षणों को एकत्रित ओर संकलित किया गया है। इमाम मेंहदी (अ 0) का प्रकट होना एक वास्तविक तथ्य है जिस पर इस्लाम के उदभव से आज तक समस्त मुसलमान सहमत रहें हैं। शिया लेखकों ने हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के सम्बन्ध में जिस प्रकार से कथनों का एकत्रीकरण किया है ओर जाँच तथा परख का कार्य सम्पन्न किया है वह आप अपनी मिसाल है। तथा उसके उल्लेख करने की विशेष आवश्यकता भी नहीं परन्तु उसके साथ सुन्नी धर्मशास्त्रीयों तथा पारखियों के विषय में चर्चा भी अपरिहार्य है। इसलिये कि उनकी एक बड़ी संख्या ने अपनी पुस्तको में हज़रत इमाम मेंहदी (अ 0) से सम्बन्धित इतने कथनों का उल्लेख किया है जो विषय के प्रमाण हैतु पर्याप्त हैं। हम उनका संक्षिप्त प्रारूप निम्नवत प्रस्तुत करते हैं।
1. जामये सही मो 0 बिनइस्माईल बुख़ारी 3 हदीसें
2. सही मुस्लिम मुस्लिम बिन हज्जाज 11 हदीसें
3. जमा सहीद्दीन हमीदी 2 हदीसें
4. जमा बैन सहाएसित्ता जैद बिनमाविया अबदरी 11 हदीसें
5. फ़जायलुस सहाबा अब्दुल अज़ीज अबकरी 7 हदीसें
6. तफ़सीरे सालेबी सीलिबी 5 हदीसे
7. ग़रीमुल हदीस इब्ने कतीबा 6 हदीसें
8. अल – फ़िरदैस़ इब्ने शैरविया दैलमी 4 हदीसें
9. मुसन्ते फ़ात्मा हाफिज अबुलहसन दार क़त्नी 6 हदीसें
10. मुसन्दे अली हाफ़िज अबुल हसन दार क़त्नी 3 हदीसें
11. अल – मुब्तदा किसाई 2 हदीसें
12. अब मसाबीह हुसैन बिन मसूद फ़तरा 5 हदीसें
13. अल मसाबीह हुसैन हिम मसैद फ़तरा 5 हदीसें
14. किताब हाफ़िज इब्ने मतीन 3 हदीसें
15. अहलुलखाया मो 0 बन इस्माईल फ़रग़ाफी 3 हदीसें
16. ख़बरे सतीह हमीदी................. 2 हदीसें
17. इस्तेआब युसुफ़ बिन अ 0 अज़ीज नमीरी 2 हदीसें
परन्तु इसके अतरिक्त यह भी एक तथ्य है कि इन तेरह चौदह शताब्दियों में कुछ ऐसे दृष्टिकोण वाले व्यक्ति हुऐ है जिन्होने इमाम मेंहदी (अ 0) की परिकल्पना को सिरे से नकारा है। ऐसे व्यक्ति संख्या में उतने ही कम हैं जितने यज़ीद की ख़िलाफ़त को उचित समझने वाले। हज़रत इमाम मेहदी की परिकल्पना को अस्वीकार करने का कारण वास्तव में दो बाते हैं। एक तो यह है कि यदि उनके अस्तित्व को स्वीकार कर लिया जाचे तो फिर आप के व्याक्तित्व निजी विशेषताऐं , परिवारिक घण , तथा व्यक्तिगत लक्षणों पर भी तर्क वितर्क करना होगा। और फिर अन्ततोगत्वा बातें बहुत दैर तक पहुँच जायेगी। फ़ानी के कथनानुसार
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यकमी का।
बात पहुँची तेरी जवानी तक।।
दूसरी बात यह है कि स्वंय बने झूठे मेहदियों की अधिकता से उत्तरहीन हो जाने वालों के पास इसके अतरिक्त और कोई विकल्प नहीं था कि सिरे से इस सम्मान योग्य अस्तित्व की परिकल्पना ही को अस्वीकार कर दिया जाये , यह एक प्रकार से विमुख (भाग जाना) हो जाना है जिसे इसलाम अकीदों के सम्बन्ध में अनुचित समझता है।
इमाम मेहदी के अस्तित्व को न मानने वाले अपने घटिया और सारहीन वितर्कों के कारण , हमारे तर्क का विषय नही हैं उनके उत्तर के लिये मात्र यही बहुत है कि यदि इमाम मेहदी (अ 0) विद्मान होने के मामले में जान न होती तो न तो इतने झूठे मेहदी पैदा होते और न ही उनकी पुष्टि करने वाले। वास्तविक तर्क का विषय तो वह लोग है जिन्होने मेहदियत के पवित्र शरपर से स्पष्ट करने का असफल प्रयास किया है। बनी अब्बास और बनी फ़ात्मा के मेहदियों से लेकर भारतीय एंव पाकिस्तानी मेहदियों तक समय और स्थान की लम्बी दूरी है जिसमें वह बलते और बिगड़ते रहे। मानव प्रवृत्ति हर नयी वस्तु को आश्चर्य और उत्सुक्ता की दृष्टि से देखती है। यह महानुभाव भी जनता की कृपा दृष्टि से लाभान्वित हुए बिना न रह सके कदाचित ,से ही अवसर के लिये कहा गया है कि हल्क – ए – मुस्तजएलून – (जल्दी करने वाला नष्ट हो जाता है)। हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के विषय में भी जल्दी करने वाले नष्ट हो जायेंगे। इसमे कोई सन्देह नही है कि हज़रत मेहदी के सम्बन्ध में इतनी ठोस रचनाए इसलामी पुस्तको में उपलब्ध है कि किसी झूठे मेहदी के बनने की कोई सम्भावना ही न थी। परन्तु झूठे मेहदियों ने इसका अवसर इस प्रकार प्राप्त किया कि मात्र कुछ लक्षणों को अपने व्यक्तित्व में दर्शा कर अपने मेहदी बनने का दावा किया। परिणाम स्वरुप अध्ययन के अल्प भाव में अज्ञानी और साधारण प्रवृत्ति के लोग उनके आस-पास एकत्र हो गये। इसीलिये उर्दू में ऐसी पुस्तकों की अधिक आवश्यकता है जो हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के सम्बन्ध में जनसाधारण को पूर्ण रूप से जानकारी दे सकें अन्यथा भट्कने की श्रँखलाऐं लम्बी होती जायेगी तथा जानकारी कराने के लाभ का एक दृष्टिकोण यह भी है कि मेहदियत को नकारने वालों ने अपनी कुछ विशेष नितियों के कारण जिन मामलों में परिवर्तन तथा परिवर्धन किया है या जिनका अविष्कार किया है उन्हें तर्क-वितर्क का द्वार खोले बिना सरलता से हल किया जा सकेगा। उदाहणार्थ ऐक फ़िरके ने अपनी नीतिनुसार हज़रत ईसा (अ 0) और हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) को एक ही व्यक्ति ठहराया है। इसकी तुलना में यदि मनुष्य को इमाम के प्रकट होने के विस्तार का ज्ञाल हो और उसे यह भी बोध हो कि हज़रत ईसा (अ 0) सम्मानित इमाम की सहायतार्थ प्रकट होगें और उनके पीछे नमाज़ पढ़गें तो मामला स्वतः हल हो जाता है। यद्दपि यहाँ पर हज़रत मसीह (अ 0) तथा हज़रत मेहदी (अ 0) की इकाई (वहदत) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी उचित होगी। इस दृष्टिकोण के दो मुख्य और मूल भेद हैः
1. जिस मेहदी के हदीस (पै 0 के कथन) में आने की भविष्यवाणी की गयी है वह मेहदी (अ 0) न होगें , बल्कि मसीह तुल्य होंगे
2. महदियत को ला मेहदी इल्ला मसीह (कोई मेहदी नहीं सिवाऐ मसीह के) के अनुसार मसीह में ही निर्भर किया गया है इसलिए मेहदी , मसीह के अतिरिक्त कोई व्यक्ति न होगा , उल्लेखित दृष्टिकोण के प्रमाण स्वरुप जिन अनियमित्ताओं एंव स्पष्टीकरण को मान्यता दी गयी है यदि तर्क और संघर्ष इसकी अनुमति प्रदान करे तो हर सत्य कथन को असत्य से किया जा सकता है। जहाँ जहाँ भी कथनों मे ईसा मसीह (अ 0) के प्रकट होने का वर्णन है वहाँ ईसा पुत्र मरियम के नाम का उल्लेख है। किसी तुल्य या सामान का उल्लेख नहीं है। उस स्थान पर ईसा (अ 0) के जीवन व मृत्यु का विषय इसलिये बेकार और प्रमाण हीन है कि यदि असम्भव परिस्तिथियों में मृत्यु सिद्ध हो जाये जब भी वह कुरान और हदीस के अनुसार उनके गुनः जीवित होने के विपरित न होगी और जहाँ हदीस ला मेहदी इल्ला ईसा का प्रशन है तो यह हदीस शिया पुस्तकों में मूलतः उपलब्ध नही है। हाँ सुन्नी आलिमों ने सल्लेख किया है मगर साथ ही इस कथन को दुबर्ल और इसका सब्बेख करने वाले को अविश्वस्नीय घोषित किया है। इन बातों से हट कर मसीह का इस्रराइली होना तथा हज़रत मेहदी (अ 0) रसूल अल्लाह (स 0) के परिवार से होना इस बात का प्रमाण है कि वह पृथक-पृथक व्यक्तित्व है जिस पर भारी संख्या में कथनों के साक्ष्य उपलब्ध है।
झूठे मेहदियों आधिक्य ते जो असत्य प्रमाण उत्पन्न हुऐ उनसे हट कर सबसे मुख्य बात चह है कि ऐसे व्यक्तियों की निरन्तरता के कारण यदि प्रकट नोने के समय वास्तविक इमाम मेहदी (अ 0) की ओर भी हास्यप्रद दृष्टियाँ उठें तो कुछ दैर नहीं इसलिये विस्तार सहित इस व्यक्तित्द का परिचय कराना हमारे लिये अपरिहार्य है।
आज जबकि बनावटी ग्रहों के युग का संसार अन्याय से पिरपूर्ण होता जा रहा है और तृतीय विश्वयुद्ध की छाया मानव के भाग्य पर गहरी होती जा रही है , ऐसे व्यक्ति का परिचय ह्रदय को शाँति प्रदान कर सकता है जो उन्हें इन समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाला है। वास्तव में अध्ययनाधीन पुस्तक हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के परिचय से सम्बद्ध एक कड़ी है जिसके संकलन एंव प्रकलन पर श्रीमान मौला क़मर ज़ैदी बधाई एंव प्रशंसा के पात्र हैं।
जिस कलात्मक दक्षता के साथ श्री ज़ैदी ने अखबारे कथन व सूचनाऐं) की विवेचना की है , और इमाम के प्रकट होने के लक्षण पर आधारित अत्यधिक जानकारियाँ उपलब्ध करायी हैं वह उर्दू भाषा में वास्तव में बढ़ोत्तरी है। इससे पूर्व इस विषय पर उर्दू में संग्रहीत व स्पष्ट पुस्तक मुझे देखने के नहीं मिली। यह भी एक अद्भुत व अनोखी बात है कि मो 0 साहब (अ 0) के परिवारजनों के ज्ञान व बोध के अतरक्त इस जर्चित तथय के विषय पर इतनी सामग्री कहीं और नहीं मिलती जो शिया अख़बार व हदीसों की पुस्तकों में सहस्त्रों पृष्ठ पर फैली है तथा आज भी इसलामी समाज के अचम्भे का कारण है। इस अवसर पर प्राकृतिक रुप से मस्तिष्क में यह प्रशन उत्पन्न होता है कि मात्र रसूल अल्लाह के परिवारजनों के इमामों ने इस विषय पर क्यों इतना प्रकाश डाला अरबी की एक प्रसिद्ध कहावत है घर वालों को घर अन्दर की अधिक जानकारी होती है , चूँकि यह इनके घर का मामला था इसलिये इनसे अच्छा इस विषय पर कौन प्रकाश डाल सकता था इसके अतरिक्त यह तो हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) इसी श्रंखला के परिपूर्णकर्ता है जिसे ईश्वर रसूल के अहलेबैत (अ 0) (परिवारजनों) से सम्बध किया है। इसीलिये यह रसैल के परिवारजनों का धर्म सम्बंधी एंव धार्मिक कर्तव्य था कि वह इमाम मेहदी के विषय में अधिक सूचनाऐं एकत्र करें। यह बात भी स्मरणीय है कि वह ख्याति प्राप्त सुन्नी आलिमों जिन्होंने हज़रत इमाम मेहदी के जन्म तथा उनके अस्तित्व को स्वीकारा है कि एक बडी संख्या है जिनके कथनों को अस्वीकार करना वास्तविकता को अस्वीकार करने के समान है। लक्षणों का एकत्रीकरण इतनी विकट समस्या नहीं है बल्कि वह बिन्दु जो वास्तव में कठिन है वह लक्षणों का परीक्षण है। अतः एक पारखी के लिये यह आवश्यक है कि वह लक्षणों सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को दृष्टिगत रक्खेः
कूफ़ी लिपी अपने विभिन्न आकार बदल कर हम तक आयी है , वह अपने प्रारम्भिक आकार में स्पष्ट मात्रओं और शब्दों से ख़ाली थी। तता शब्दों में भेद के गुण बहुत कम पाये जाते थे। हमारी सूचनाओं और हदीसों की पुरातन पूंजी चूंकि कीफ़ी लिपी से बलदल कर हम तक पहुँची है अतः इस्तेनाक़ ( Coby) की कुछ कठिनाईयाँ और भूलचुक का उत्पन्न होना अपरिहार्य था। तहरीक़ (फाडना) और तकरीक़ (जलाना) में सिर्फ़ एक बिन्दु का भेद है , इसलिये लेखकों ने इस शब्द को अपने दोनों रूपों से सुरक्षित किया है। परिणाम स्वरूप यह न ज्ञात हो सका कि कूफे की गलियों में झन्डे फाड़े जायेंगे या जलाये जायेंगे। औफ़ सलमी के विषय में एक कथानुसार (मावाहकरीत) तथा दूसरे कथनानुसार (मावाहदकोयत) दोनों ही अरब इलाकों के प्रसिद्ध नगर हैं। जिसके आधार पर विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि इससे किस नगर का बोध है इसलिये कथनों में ( Coby) इस्तेनाक़ की त्रिटियों को निकालना आवश्यक है। यद्पि ऐसी त्रुटियों से मुक्य लेख प्रभावित नहीं होता और वास्तविक्ता प्रत्यक दशा में सुरक्षित रहती है किन्तु एक दृढ़ निर्णय तक पहुँयने के लिये यह अनिवार्य है।
कथनों में बहुधा नगरों स्थानों और जातियों व नाम आये है जो उस समय प्रयेग किये जाते थे परन्तु वर्तमान में उनका प्रयोग नही है। इसलिये बात को सबके समझने योग्य बनाने के लिये भौगोल अनुसार स्थानों एंव नगरों की स्थिति तथा सदरे इसलाम (इसलाम का आदिकाल) के नगरों , जातियों के नाम का नया रुप जानना आवश्यक है।
3. कथनों की पृष्ठभूमि का ज्ञान आवश्यक है कि मासैम ने कथन कहाँ पर कहा , तथा किन लोगों से कहा ताकि उस स्थान से पूरब पश्चिम तथा उत्तर दक्षिण का बोध किया जा सके और जिन लोगों को सम्बोधित किया है उन्हें भा सुगमता से पहचाना जा सके।
4. मासूमों ने अन्तिम काल के सम्बन्ध में उस समय की राजनीति , समाज , रहन-सहन , आर्थिक सभी विषयों पर टिप्पणी की है , उनके भिन्न-भिन्न शीर्षकों से सम्बन्धित पृथक-पृथक एकत्रीकरण पाठक के मन मस्तिष्क हैतु सहायक सिद्ध होगा। इसके अतरिक्त चार और बड़े प्रकार के लक्षण हैं जिनकी विनेचना लक्षणों के साथ ही कर देना आवश्यक है। अटल न टलने योग्य , लक्षण वह है जो परिस्थितियों एंव कार्यों पर निर्भर है। साधारण वह है जो हर स्थान पर दृष्टिगोचर होंगे और मुख्य वह हैं जो किसी क्षेत्र विशेष के साथ सम्बध होगे। इन भेदों को दृष्टिगत रखने से यह लाभ होगा कि जिन कथनों में प्रत्यक्ष रुप से विरोधाभास तथा त्रुटि दृष्टिगोचर है। उनका सन्तोष जनक उत्तर ज्ञात हो जायेगा।
5. लक्षणों में से बहुधा कथनों में किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी का कोई स्थान नहीं है जिन शब्दों में उनका उल्लेख है उन्ही शब्दों में वह पूर्ण होंगे अथवा पूर्ण हो चुके हैं। अतः ज़बरदस्ती किसी को इमाम मेहदी सिधद्ध करने से कथनों को घूमा-फिरा कर विसंगतियां लाने की चेष्टा न की जाये अन्यथा यह ज्ञान के साथ खुली धोखाधड़ी होगी।
मैंने अध्यानाद्दीन पुस्तक को अनेक स्थानों से देखा और मेरे लिए प्रसन्नता का अवसर है कि ज़ैदी साहम उपरोक्त कथित अध्ययन से बड़ी सीमा तक उत्तरदायित्य पूर्ण सिद्ध हुए। इससे बढ़ कर उनका यह चयन भी प्रशंसनीय है कि उन्होने अधिक्ता से उन्ही कथनों को एकत्र किया है जिनमें आने वाली भविष्यवाणी है तथा अब तक महदियत के अस्वीकार कर्ताओं की ओर से उन पर किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी नहीं की गयी है। उलहारणार्थ , सै 0 हसनी का उठना , सुफ़यानी का आतंक , पूर्वी मध्य के कुध भागों का ध्वस्त हो जाना आदि।
अन्त में पाठकों से यह अनुरोध है कि वह इस पुस्तक क अध्ययन मनोरंजन या समय बिताने की दृष्टि से न करें बल्कि उस उद्देश्य को सामने रखे जो संकलन का वास्तविक ध्येय है। कुरान एंव हदीसों से सिद्ध है कि मानव किसी काल में भी बिना किसी इमाम के नही रहा है और न रह ही सकती है। इस बात को सर्वसहमति प्राप्त हदीस मन माता वलम यारिफ़ इमामे ज़माने हि माता मिल्तन जहिलियत (जिसने अपने समय के इमाम को न पहचाना वह अज्ञानता की मृत्यु मरा) की ओर संकेत है। अतः जब यह स्थित हो मोक्ष समय के इमाम के बोध होने पर ही निर्भर हो तो फिर उसकी अनिवार्यता में किसे सन्देह हो सकता है।
मकतबे मेराजे अदब बधाई का पात्र है कि उसने अपने प्रथम प्रस्तुतीकरण हैतु एक महत्वपूर्ण विषय ढूँढा।
तालिब जौहरी