इस्लामी कथाऐ
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लेखक: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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लेखक: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
इस्लामी कथा ऐ
अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क
हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) के पास एक शख़्स अन्सार में से आया और उसने सवाल किया ,ऐ रसूले ख़ुदा अगर किसी का जनाज़ा तदफ़ीन के लिए तैयार हो और दूसरी तरफ़ इल्मी नशिस्त हो जिसमें शिरकत करने से कस्बे फ़ैज़ हो और दोनों एक ही वक़्त हों और वक़्त भी इतना न हो कि दोनों जगह शिरकत की जा सके। एक जगह शरीक हो तो दूसरी जगह से महरूम हो जाएगा ,तो ऐसी सूरत में ऐ रसूले ख़ुदा (स.) आप किसको पसंद करेंगे ?ताकी में भी उसी में शिरकत करूं। रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमाया ,अगर दूसरे लोग मौजूद हैं जो जनाज़े के साथ जाकर उसे दफ़्न करें तो तुम इल्मी बज़्म में शिरकत करो क्योंकि एक इल्मी बज़्म में शिरकत करना हज़ार जनाज़ों के साथ शिरकत ,हज़ार बीमारों की अयादत ,हज़ार दिन की इबादत ,हज़ार दिन के रोज़े ,हज़ार दिन का सदका ,हज़ार गै़र वाजिब हज ,और हज़ार गै़र वाजिब जिहाद से बेहतर है। उसने अर्ज़ किया ,या रसूल अल्लाह (स.) ये सब चीज़ें कहाँ और आलिम की ख़िदमत में हाज़िरी कहाँ ?रसूले ख़ुदा (स.) ने फरमाया ,क्या तुम्हें नहीं मालूम कि इल्म की बदौलत ख़ुदा की इताअत की जा सकती है । और इल्म के ज़रिए इबादत ख़ुदा होती है। दुनिया और आख़िरत की भलाई इल्म से वाबस्ता है जिस तरह दुनिया और आख़रत की बुराई जिहालत से जुदा नहीं।
एक शख़्स हज़रत रसूले ख़ुदा से बेहद मोहब्बत करता था ,और तेल (रौग़ने ज़ैतून) बेचने का काम किया करता था। उस के बारे में यह ख़बर मशहूर थी कि वो सिदक़े दिल से रसूले ख़ुदा (स.) से बेपनाह इश्क व मोहब्बत करता था और आँ हज़रत (स) को बहुत चाहता था ,अगर एक दिन भी आँ हज़रत को नहीं देख़ता तो बेताब हो जाता था और जब भी किसी काम के सिलसिले में घर से बाहर जाता था तो पहले मस्जिद में या फ़िर रसूले ख़ुदा के घर या फ़िर जहां भी रसूले ख़ुदा होते थे वहां पहुंच जाता था और आँ हज़रत की ज़ियारत से मुशर्रफ़ होता था और फ़िर अपने काम के लिए निकलता था ,जब कभी पैग़म्बर (स.) के इर्द गिर्द लोग होते और वो लोगों के पीछे इस तरह होता कि पैग़म्बर को न देख पा रहा हो तो लोगों के पीछे से गर्दन ऊँची करता कि एक बार ही सही जमाल पैग़म्बर पर निगाह डाल सके।
एक दिन हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) उसकी तरफ़ मुतवज्जे हुए कि वो शख़्स लोगों के पीछे से उनको देखने की कोशिश कर रहा है। पैग़म्बर (स.) भी बढ़कर उसके मुक़ाबिल आ गए ताकि वो शख़्स आसानी के साथ उनको देख़ सके। वो शख़्स उस दिन पैग़म्बरे (स.) को देखने के बाद अपने काम के लिए गया ,थोड़ी देर न हुई थी कि वापस आया।
जैसे ही रसूले ख़ुदा (स.) की दूसरी बार ,उस दिन उस पर नज़र पड़ी हाथ के इशारे से उसको करीब बुलाया। वो रसूले ख़ुदा (स.) के पास आकर बैठ गया। हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमाया ,आज की तेरी रविश दूसरे और दिनों से क्यों मुख़्तलिफ़ है ,तू पहले एक मर्तबा आकर अपने काम के लिए चला जाता था लेकिन आज जाने के बाद फ़िर दोबारा आ गया आख़िर क्यों ?
उसने कहा कि ऐ रसूले ख़ुदा (स.) हकीकत यह है कि आज मेरे दिल में आप की मोहब्बत इतनी ज़्यादा हो गई है कि मैं आज अपने काम के लिए न जा सका ,मजबूर होकर वापस आ गया।
रसूले ख़ुदा (स.) ने उसके लिए दुआए ख़ैर की ,वो उस दिन अपने घर गया लेकिन फ़िर दोबारा दिख़ाई न दिया। चन्द दिन गुज़र गए लेकिन उसकी कोई ख़बर न मिल सकी। पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने अपने असहाब से उसके बारे में पूछा तो सबने यही कहा कि एक मुद्दत से हम भी उसको नहीं देख रहे हैं। आँ हज़रत (स) ने इरादा किया कि जाकर उसकी ख़बर लें ,और मालूम करें कि उस पर क्या परेशानी नाज़िल हुई है। आप आपने चन्द दोस्त और असहाब के साथ रोग़ने ज़ैतून के बाज़ार की तरफ़ तशरीफ़ ले गए ,जैसे ही उस शख़्स की दुकान पर पहुंचे देखा। दुकान बन्द है और कोई नही है। उसके हमसाये से मालूम किया तो उसने कहा ,ऐ रसूले ख़ुदा (स.) उसका कुछ दिन पहले इन्तिकाल हो गया है। ऐ रसूल ख़ुदा (स.) वो एक अमानतदार और बहुत सच्चा और बहुत अच्छा इन्सान था लेकिन उसमें एक बुरी ख़सलत थी।
रसूल (स.) ने फ़रमाया ,वो कौन सी बुरी ख़सलत थी ?
उसने कहा ,वो बाज़ बुरे कामों से परहेज़ नहीं करता था
मसलन औरतों की फ़िक्र में रहता था।
रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमाया ,ख़ुदा उस को बख़्श दे और उसको अपनी रहमत में शामिल करे। वो मुझे इतना ज़्यादा चाहता था और मुझसे मोहब्बत करता था अगर वो ग़ुलाम और कनीज़ फ़रोशी भी करता तो ख़ुदा उस को बख़्श देता।
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम के एक सहाबी जो कि मामूल के मुताबिक हमेशा आप के दर्स में शिरकत किया करते थे और दोस्तों की महफ़िलों में बैठते थे और उनके यहाँ आते जाते थे। एक बार उनको देख़े हुए दोस्तों को बहुत दिन हो गए। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ.) ने अपने असहाब और उनके दोस्तों से मालूम किया ,क्या तुम लोग जानते हो कि फ़लाँ शख़्स कहाँ है जो काफ़ी अर्से से देख़ा नहीं गया ?
एक ने उठ कर अर्ज़ किया ,ऐ फ़रज़न्दे रसूल (स.) आजकल वो बहुत तंग दस्त व फ़कीर हो गया है। इमाम (अ.) ने फ़रमाया ,फ़िर वोह क्या करता है ?
उसने जवाब दिया ,ऐ फ़रज़न्दे रसूल (स.) वोह कुछ भी नहीं करता ,वोह घर के एक गोशे में बैठ कर मुस्तकिल इबादत में मशगूल रहता है।
इमाम ने फ़रमाया ,फ़िर उसके अख़राजात कैसे पूरे होते हैं ?
उसने जवाब दिया ,उसका एक दोस्त उसके अख़राजात को बरदाश्त करता है।
इमाम जाफ़र सादिक ने फ़रमाया ,ख़ुदा की कसम उसका यह दोस्त उससे ज़्यादा आबिदतर है।
तुलू ए इस्लाम और इस्लामी हुकूमत की तशकील पाने से पहले अरबों में कबीले की सरदारी की रस्म जारी थी।
अरब वाले अपने सरदारों की इताअत और फ़र्माबरदारी करते थे और कभी-कभी उनको टैक्स वग़ैरा भी देते थे। अरब कबीलों के मुख़्तलिफ सरदारों में एक सरदार हातिम भी था
और जो अपनी सखा़वत की वजह से बहुत मशहूर था और कबील ए तय की सरबराही के उनवान से याद किया जाता था।
हातिम के बाद उसका बेटा अदी उस कबीले का जानशीन हुआ।
कबील ए तय वालों ने उसकी इताअत कुबूल की। अदी सालाना हर शख़्स की आमदनी का एक चौथाई हिस्सा बतौरे टैक्स लेता था।
अदी की हुकूमत व रिसालत हज़रत रसूले खुदा सलल्ललाहो अलैहि व आलेहि वसल्लम के मबऊस होने तक और इस्लाम के फ़ैलने तक रही।
एक नसरानी बूढ़े ने ज़िन्दगी भर मेहनत करके ज़हमतें उठाईं लेकिन ज़ख़ीरे के तौर पर कुछ भी जमा न कर सका ,आख़िर में नाबीना भी हो गया। बूढ़ापा ,नाबीनाई ,और मुफ़लिसी सब एक साथ जमा हो गई थीं । भीख माँगने के सिवा अब उसके पास कोई दूसरा रास्ता न था इसलिए वोह एक गली में एक तरफ़ ख़ड़ा होकर भीख माँगता था। लोग बाग उस पर रहम खाकर उसको सदके के तौर पर एक-एक पैसा देते थे । इस तरह वोह अपनी फ़कीराना और रंज आमेज़ ज़िन्दगी बसर कर रहा था।
यहाँ तक कि एक दिन जब हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.) उधर से गुज़रे और उसको इस हालत में देख़ कर हज़रत अली (अ.) उस बूढ़े के हालात की तहकीक में लग गए ताकि समझ सकें कि यह शख़्स इन दिनों ऐसी हालत में क्यों मुबतला है ?
और यह मालूम करें कि इसका कोई लड़का है जो कि इसका कफ़ील हो सके। क्या और कोई दूसरा रास्ता है जिसके ज़रिए यह बूढ़ा इज़्ज़त के साथ ज़िन्दगी बसर कर सके और भीख न मांगे।
बूढ़े को पहचानने वाले आए और उन्होंने गवाही दी कि या शख़्स नसरानी है और जब तक जवानी थी और आँख़े भी ठीक थी यह काम करता था। अब जबकि जवानी से महरूम और बीमारी में दोचार हो चुका है और कोई काम नहीं कर सकता ,इसलिए गैर इख़्तियारी तौर पर भीख माँगता है। हज़रत अली (अ.) ने फ़रमाया ,अजीब बात है जब तक यह जवान था और ताकत रखता था तुम लोगों ने इससे काम लिया और अब तुम ने इसको इसके हाल पर छोड़ दिया है। इस शख़्स के गुज़श्ता हाल से यह पता चलता है कि जब तक ताकत रख़ता था काम करके ख़िदमते खल्क़ की। इस वजह से हुकूमत व समाज की यह ज़िम्मेदारी है कि जब तक यह ज़िन्दा रहे इसकी ज़रूरियात को पूरा करें और इसको बैतुलमाल से मुस्तकिल कुछ रक़्म दिया करें।
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम मक्का व मदीने के दरमियान का रास्ता तय कर रहे थे। मसादफ़ आप का मशहूर गुलाम भी आप के साथ था कि अस्नाए राह में उन्होंने एक शख़्स को देखा जो दरख़्त के तने पर अजीब अन्दाज़ से पड़ा हुआ था। इमाम ने मसादफ़ से फ़रमाया ,उस शख़्स की तरफ़ चलो ,कहीं ऐसा न हो कि प्यासा हो और प्यास की शिद्दत से इस तरह बेहाल हो गया हो। उसके करीब पहुंचे इमाम (अ.) ने उससे मालूम किया ,क्या तू प्यासा है ??
उसने जवाब दिया ,जी हाँ में प्यासा हूं ।
इमाम (अ.) ने मसादफ़ से फ़रमाया ,इस शख़्स को पानी पिला दो ,मसादफ़ ने उस शख़्स को पानी पिलाया लेकिन उसकी शक्ल व सूरत और लिबास वगैंरा से ज़ाहिर हो रहा था कि वो मुसलमान नहीं ईसाई है ।
जिस वक़्त इमाम (अ.) और मसादफ़ वहाँ से दूर हो गए ,मसादफ़ ने इमाम जाफ़र सादिक से दरयाफ़त किया:
ऐ फ़रज़न्दे रसूल क्या नसरानी को सदका देना जाइज़ है ?
इमाम जाफ़र सादिक (अ.) ने इरशाद फ़रमाया ,हाँ ,ज़रूरत के वक़्त नसरानी को सदका देना जाइज़ है ,जैसे इस वक़्त।
एक शख़्स आम मेहमान की हैसियत से हज़रत इमाम अली (अ.) के घर वारिद हुआ और कई दिन तक आप का मेहमान रहा ,लेकिन वोह एक आदी मेहमान न था। बल्कि उसके दिल में एक बात थी ,जिसका शुरू में इज़हार नहीं किया था। हकीकत ये थी कि ये शख़्स किसी दूसरे शख़्स से इख़्तेलाफ़ रख़ता था। कि दूसरा फ़रीक ज़ाहिर हो तो झगड़े को हज़रत अली (अ.) की ख़िदमत में पेश करे। यहाँ तक की एक दिन खुद ही अस्ल मकसद से पर्दा उठाया। हज़रत अली (अ.) ने इरशाद फ़रमाया ,तू दावे दार फ़रीक है। v
उसने जवाब दिया ,जी हाँ या अमीरुल मोमिनीन।
इमाम ने फ़रमाया ,बहुत ही माज़रत चाहता हूं कि आज से एक मेहमान की हैसियत से में तुम्हारी मेहमानदारी नहीं कर सकता इसलिये कि हज़रत रसूले ख़ुदा सल्लललाहो अलैहि व आलेहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया है ,जब भी काज़ी के पास कोई मुकद्दमा पेश हो तो काज़ी को ये हक़ नहीं कि सिर्फ़ एक की मेहमानदारी करे ,फ़क़त इस सूरत में कि दोनों फ़रीक मेहमानी में हाज़िर हों।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम और उनके सिपाही घोड़ों पर सवार होकर नहरवान की तरफ़ रवाना होना ही चाहते थे कि अचानक असहाब में से एक अहम शख़्सियत वहाँ पहुची और अपने साथ एक शख़्स को लाई और कहा ,या अमीरुल मोमिनीन ये शख़्स सितारा शिनास है ,और आप की ख़िदमत में कुछ अर्ज़ करना चाहता है।
सितारा शिनास ने अर्ज़ किया ,या अमीरुल मोमिनीन आप इस वक़्त सफ़र न फ़रमाएं ,कुछ देर ठहर जाएँ यहां तक कि दिन के दो तीन घन्टे गुज़र जाएं ,उसके बाद तशरीफ़ ले जाईयेगा।
हज़रत अली (अ.) ने फ़रमाया ,क्यों ?उसने जवाब दिया क्यों कि सितारों की कैफ़ियत ये बता रही है कि इस वक्त जो भी रवाना होगा दुश्मन के मुकाबले में शिकस्त से दो चार होगा। उसको और उसके साथियों को बहुत नुक़सान उठाना पड़ेगा। लेकिन उस वक़्त ,जिसके लिए मैंने कहा है सफ़र फ़रमाएंगे तो फ़तहयाबी और अपने मकसद में कामयाब होंगे।
इमाम अली (अ.) ने फ़रमाया ,ये मेरी सवारी (घोड़ी) हामला है। क्या ये बता सकते हो कि इसका बच्चा नर है या मादा ?उसने जवाब दिया ,अगर हिसाब लगाऊँ तो बता सकता हूं।
इमाम (अ.) ने फ़रमाया ,तुम झूट बोल रहे हो ,ये तुम्हारे लिए मुम्किन ही नहीं है क्योंकि कुरआन में लिख़ा है कि हर पोशिदा शय का इल्म ख़ुदा के अलावा किसी को नहीं और वो ख़ुदा ही है जिसे ये इल्म है कि रहम में परवरिश पाने वाला क्या है। हज़रत रसूले ख़ुदा ने भी कभी इस किस्म का दावा नहीं किया जो तू कर रहा है । क्या तू ये दावा करता है कि दुनिया के बारे में तुझे हर चीज़ का इल्म है। और तू यह जानता है कि किस वक़्त बुराई और किस वक़्त अच्छाई मुकद्दर में होती है ,और अगर कोई तेरे इस इल्म पर एतेमाद व एतेकाद करे तो उसे ख़ुदा की ज़रूरत नहीं। उसके बाद हज़रत ने लोगों से ख़िताब फ़रमाया ,ख़बरदार हरगिज़ इन चीज़ों के पीछे न जाना। इस से इन्सान जादूगर के मिस्ल हो जाता है और जादूगर काफ़िर के मानिन्द है और काफ़िर के लिए जहन्नम है। उसके बाद आपने आसमान की तरफ़ रुख़ करके चन्द जुमले दुआ के फ़रमाए जो कि ख़ुदा पर तवक्कुल और एतेमाद के सिलसिले में थे।
फ़िर सितारा शिनास की तरफ़ रुख़ करके फ़रमाया ,मैं ख़ास कर तेरे दस्तूर के ख़िलाफ़ अमल करूंगा और बगैर किसी ताख़िर के अभी रवाना होऊँगा।
इसके फ़ौरन बाद आपने रवानगी का हुक्म दिया और दुश्मन की जानिब रवाना हुए। दूसरे और जिहाद के मुकाबले में इस जिहाद में अली (अ.) को बेहद ज़बरदस्त कामयाबी व कामरानी नसीब हुई।
मुफ़ज़्ज़ल बिन क़ैस ज़िन्दगी की दुशवारी से दो चार थे और फ़क्र व तंगदस्ती कर्ज़ और ज़िन्दगी के अख़राजात से बहुत परेशान थ। एक दिन हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अपनी बेचारगी और परेशानी बयान की ,कि इतना मुझ पर कर्ज़ है और मैं नहीं जानता की किस तरह अदा करूँ ,ख़र्च है मगर आमदनी का कोई वसीला नहीं। मजबूर हो चुका हूँ क्या करूं कुछ समझ मे नहीं आता ,मैं हर ख़ुले हुए दरवाज़े पर गया मगर मेरे जाते ही वो दरवाज़ा बन्द हो गया।
और आख़िर में उन्होने इमाम से दरख़ास्त की कि उसके लिए दुवा फ़रमाएं और ख़ुदा वन्दे आलम से चाहें कि उसकी मुश्किल आसान हो। इमाम ने एक कनीज़ को हुक्म दिया (जो कि वहाँ मौजूद थी) जाओ और वो अशरफ़ी की थैली ले आओ जो कि मंसूर ने मेरे लिए भेजी है। वो कनीज़ गई और फ़ौरन अशरफ़ियों की थैली लेकर हाज़िर हुई। इमाम ने मुफ़ज़्ज़ल से फ़रमाया कि इस थैली में चार सौ दीनार हैं जो कि तुम्हारी ज़िन्दगी के लिए कुछ दिन का सहारा बन सकते हैं। मुफ़ज़्ज़ल ने कहा ,हुज़ूर मेरी ये ख़्वाहिश न थी ,मैं तो सिर्फ़ दुआ का तलबगार था।
इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ,बहुत अच्छा मैं दुआ भी करूंगा ,लेकिन मैं तुझ से एक बात कहूँ कि तुम हरगिज़ अपनी सख़्तियाँ और परेशानियाँ लोगों पर ज़ाहिर न करो क्योकि उसका पहला असर ये होगा कि तुम ज़मीन पर गिर चुके हो और ज़माने के मुकाबले में शिकस्त खा चुके हो और तुम लोगों की नज़रों से गिर जाओगे और तुम्हारी शख़्सियत व वक़ार लोगों के दरमियान से ख़त्म हो जाएगा।
कितना अच्छा होता अगर तुम शादी कर लेते और अपना घर बसा लेते इस तरह तन्हाई की ज़िन्दगी से निजात मिल जाती और तुम्हारी शादी की ख़्वाहिश भी पूरी हो जाती और वही औरत दुनिया और आख़िरत के कामों में तुम्हारी मददगार साबित होती।
या रसूल अल्लाह (स.) न मेरे पास माल है और न जमाल ,न मेरे पास हसब है और न नसब। कौन मुझे लड़की देगा ?कौन सी लड़की मेरे जैसे फ़कीर ,कोताह कद ,सियाहफ़ाम और बदशक्ल इन्सान की तरफ़ माइल होगा।
ऐ ज़ुबेर ,ख़ुदावन्दे आलम ने इन्सान के ज़रिए लोगों की कद्र व कीमत बदल दी है। ज़मान ए जाहिलियत में बहुत से लोग मोहतरम थे ,इस्लाम ने उन्हें पस्त शुमार किया और बहुत से लोग उसी ज़माने जाहिलियत में पस्त व ज़लील थे जिन्हे इस्लाम ने बुलन्द मर्तबे पर पहुंचाया। ख़ुदा वन्दे आलम ने इन्सान के ज़रिए जाहिलियत के ग़ुरूर व तकब्बुर ,को ख़त्म कर दिया हे और नसब व ख़ानदान पर फ़ख्र करने से रोका है ,अब इस वक़्त सब इन्सान सफ़ेद व सियाह और अजमी व ग़ैर अजमी सब के सब एक ही सफ़ में ख़ड़े हैं अगर किसी को फज़ीलत व बरतरी है तो सिर्फ़ तक़वा और इताअते ख़ुदा की वजह से है। मैं मुसलमानों में उस शख़्स को तुम से ज़्यादा बुलन्द मर्तबे वाला मानूंगा जो तुम से ज़्यादा तक़वा और अमल में बेहतर होगा। इस वक़्त मैं जो तुम्हें हुक्म दे रहा हूं उस पर अमल करो।
ये वो गुफ़्तुगू है जो रसूले ख़ुदा (स.) और ज़ुबेर में (असहाबे सुफ़्फ़ा के दरमियान हुई थी) ज़ुबैर ,कामा ,का रहने वाला था ,वो अगरचे फ़कीर और सियाह फ़ाम और कोताह कद था ,मगर हक तलब और साहीबे होश व इरादा था। इस्लाम की शोहरत सुनने के बाद वो फ़ौरन मदीने आया ताकि करीब से हकीकत हाल को समझ सके।
ज़्यादा अरसा न गुज़रा कि वो दाइराए इस्लाम में दाख़िल हो गया और मुसलमानों के साथ रहने लगा। लेकिन चुंकि न माल था और न ही घर व जान पहचान। रसूले ख़ुदा (स.) के हुक्म के मुताबिक मस्जिद में वक़्ती तौर पर ज़िन्दगी गुजार रहा था। दुसरे लोग जो मुसलमान हो गए थे और मदीने में रह रहे थे ,उनमें भी बहुत से अफ़राद ऐसे थे जो ज़ुबैर की तरह मोहताज व तंगदस्त थे और पैग़म्बरे इस्लाम के हुक्म से मदीने में ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे। यहाँ तक कि रसूले इस्लाम (स.) पर ,वही ,नाज़िल हुई कि मस्जिद रहने की जगह नहीं है इन लोगों को मस्जिद के बाहर सुकूनत की जगह दो। हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) ने मस्जिद के बाहर एक साएबान बनवाया और उन लोगों को उस साएबान में मुन्तकिल कर दिया। उस जगह को सुफ़्फ़ा का नाम दिया गया। उसके रहने वाले चूंकि फ़कीर व मुसाफ़िर थे इसलिये उन्हें असहाबे सुफ़्फ़ा कहने लगे। रसूले ख़ुदा (स.) और उनके असहाब उनकी ज़िन्दगी के वसाइल फ़राहम करते थे।
एक दिन आँ हज़रत (स) उस गिरोह को देखने लिए तशरीफ़ लाए कि उसी दौरान हज़रत की निगाह ज़ुबैर पर पड़ी सोचने लगे कि ज़ुबैर को इस हालत से निकालना चाहिए और उसकी ज़िन्दगी के लिए माकूल इन्तिज़ाम करना चाहिए। लेकिन जिस बात का ख़्याल ज़ुबैर के दिल में कभी नहीं आया था खुसूसन अपनी मौजूदा हालत के पेशेनज़र वो ये था कि कभी घर वाला और साहिबे माल व अयाल हो। इसी वजह से जब हज़रत ने शादी करने की तजवीज़ रखी ताअज्जुब के साथ जवाब दिया कि आया मुम्किन है कि कोई मेरे साथ शादी करने को तैयार हो जाए। लेकिन आँ हज़रत ने फ़ौरन उसकी ग़लत फहमी दूर कर दी और इस्लाम की वजह से समाज में जो तब्दीलियां रूनुमा हुई थी ,उनसे आगाह कर दिया।
आँ हज़रत (स) ने जब ज़ुबैर को इस ग़लत फहमी से निकाला और उसको घरेलू ज़िन्दगी के लिए मुतमइन और उम्मीदवार किया और हुक्म दिया कि वो फ़ौरन ज़ियाद इब्ने लुबैदे अन्सारी के घर जाकर उसकी बेटी ज़ुल्फ़ा से अपने लिए शादी की ख़्वाहिश करे।
ज़ियाद इब्ने लुबैद अन्सारी अहले मदीना के सरवत मन्द और मोहतरम लोगों में से था। उसके कबीले वाले उसका बहुत ऐहतेराम किया करते थे। जिस वक़्त ज़ुबैर ज़ियाद के घर वारिद हुआ उसके ख़ानदान के काफ़ी लोग जमा थे।
जब ज़ुबैर उस के घर पहुंचा तो जाकर बैठ गया और काफ़ी देर तक ख़ामोश रहा उसके बाद सर उठाया और ज़ियाद की तरफ़ देख कर कहा मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की तरफ से तेरे लिए एक पैगाम लाया हूँ। पोशिदा तौर पर कहूँ या अलल ऐलान ?
ज़ियाद बोला ,पैगम्बरे इस्लाम (स.) के पैग़ाम मेरे लिए बाइसे फख्र है अल्ल ऐलान कहो ,ज़ुबैर ने कहा मुझे पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने तेरे पास भेजा है ताकि में तेरी बेटी ज़ुल्फ़ा से अपनी शादी
का पैग़ाम दूँ। ज़ियाद ने कहा ,क्या ख़ुद पैगम्बर ने तुझे इस काम के लिए भेजा है ?
ज़ुबैर ने कहा ,में अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं कह रहा हूं। सब मुझे जानते हैं कि मैं कभी झूट नहीं बोलता। ,
ताज्जुब है ये हमारे यहाँ का दस्तूर नहीं है कि अपनी लड़की को अपने हमशान कबीले के अलावा किसी और को दें। तुम जाओ मैं खुद पैग़म्बर से बात करूंगा। ज़ुबैर अपनी जगह से उठा और घर से बाहर चला गया ,लेकिन जिस वक़्त वो जा रहा था ,अपने आप से कह रहा था ,ख़ुदा की कसम जो कुछ कुरआन ने तालीम दी है और जो कुछ नबुव्वते मोहम्मदी (स.) ने तालीम दी है वो ज़ियाद के क़ौल से बिल्कुल अलग है।
ज़ुबैर ने जो बातें धीरे धीरे कहीं थी ,तमाम अफ़राद जो करीब बैठे थे सबने सुन लीं। हुस्न व जमाल में चूर लुबैद की लड़की ,ज़ुलफ़ा ,ने भी ज़ुबैर की बातें सुनीं जब ज़ुल्फ़ा ने तमाम बातें सुन लीं तो अपने बाप के पास आई ताकि हालात से आगाह हो सके। उसने अपने बाप से कहा ,बाबा जान ,अभी-अभी जो शख़्स घर से बाहर कुछ कहता हुआ गया है उसका क्या मतलब है ?
ज़ियाद ने कहा ,बेटी ये शख़्स तुम्हारे लिए शादी का पैग़ाम लाया था और ये दावा कर रहा था कि उसे पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने भेजा है ,ज़ुल्फ़ा ने कहा ,कहीं ऐसा न हो कि वाक़ई पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उसे भेजा हो उसको वापस करना पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के हुक्म की नाफ़रमानी होगी। ज़ियाद बोला ,अब तुम्हारे ख़्याल में ,मैं क्या करूं ?
मेरे ख़्याल में उसे पैग़म्बर इस्लाम (स.) की ख़िदमत में पहुँचने से पहले पहले वापस बुला लेना चाहिए। आप खुद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बारगाह में तशरीफ़ ले जाएं और उनसे मालूम करें की मामला क्या है।
ज़ियाद ज़ुबैर को ऐहतेराम के साथ वापस लाया और बिला ताख़ीर पैग़म्बर की ख़िदमत में रवाना हुआ ,और जैसे ही हज़रत को देखा अर्ज़ किया। या रसूल अल्लाह (स.) ज़ुबैर मेरे घर आया था और आप की तरफ़ से पैग़ाम लाया था। मैं आपसे अर्ज़ करना चाहता हूँ कि हमारे यहाँ के रस्म व रिवाज ये हैं कि अपनी लड़कियों की शादी अपने ख़ानदान में शान व शौकत वालों के साथ करतें हैं जो आपके अनसार व मददगार हैं ।
रसूले खुदा (स.) ने फ़रमाया ,ऐ ज़ियाद ,ज़ुबैर मोमिन है। जिस शान व शौकत का तुम गुमान कर रहे हो वो ख़त्म हो चुकी है। मर्द मोमिन का कुफ़ू मोमिना औरत है।
ज़ियाद सीधे ज़ुल्फ़ा के पास गया और सारा माजरा बयान किया। ज़ुल्फ़ा ने कहा ,मेरे ख़्याल से रसूले ख़ुदा की तजवीज़ को रद्द नहीं करना चाहिए। ये सारा मसअला मुझ से मुतअल्लिक है। ज़ुबैर जो कुछ भी है मुझे उससे राज़ी होना चाहिए। चुँकी रसूले खुदा (स.) इस से राज़ी हैं इसलिए में भी राज़ी हूं।
इस्लामी कथाएँ 1
आलिम के सामने 2
आशिक़े रसूले ख़ुदा (स.) 3
बड़ा आबिद कौन 7
हातिम का बेटा 8
प्यासा नसरानी 11
काज़ी का मेहमान 13
सितारा शिनास 14
ज़माने की शिकायत 17
ज़ुबैर और ज़ुल्फ़ा 18
फेहरीस्त 25