मनाज़िले आख़ेरत

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मनाज़िले आख़ेरत कैटिगिरी: क़यामत

मनाज़िले आख़ेरत

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

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मनाज़िले आख़ेरत

मनाज़िले आख़ेरत

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

मरने के बाद क्या होगा

लेखकः शेख़ अब्बास क़ुम्मी

नोटः ये किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क के ज़रीऐ अपने पाठको के लिऐ टाइप कराई गई है और इस किताब मे टाइप वग़ैरा की ग़लतीयो को सही किया गया है।

Alhassanain.org/hindi

फेहरिस्त

अर्ज़े नाशिर (प्रकाशक) 8

दो शब्द 12

पहला हिस्सा 21

मआद क़यामत 21

मंज़िले अव्वल 24

दुनिया के साथ मोहब्बत 29

उक़बए (यमलोक) अव्वल 31

सकरात मौत (मरते समय की तक़लीफ) 31

वह आमाल जो मरने वाले के लिए जल्द राहत का सबब है। 40

उक़बए दोम 44

मौत के वक़्त हक़ से उदूल 44

आसानी ए मौत के आमाल 45

हिकायते अव्वल 48

मौत के बाद क़ब्र तक 53

क़ब्र 54

वहश्ते क़ब्र 55

वह चीज़ें जो वहश्ते क़ब्र के लिए मुफ़ीद हैं 61

उक़बए (प्रलय) दोम 62

तंगी व फ़िशारे क़ब्र 62

फ़िशारे क़ब्र के असबाब 63

वह आमाल जो अज़ाबे क़ब्र से नजात देते हैं 67

मुनकिर व नकीर का क़ब्र में सवाल 72

फ़स्ल सोम 83

बरज़ख़ (पर्दा) 83

तासीर व ताअसुर की शिद्दत 86

बरज़ख़ की लज़्ज़त फ़ानी (नाशवर) नहीं है 89

वादी उस्सलाम 97

वादिए बरहूत 99

बरज़ख़ वालों के लिए मुफ़ीद (लाभदायक) आमाल 102

फसल चहारुम 121

क़यामत प्रलय 121

क़यामत की सख़्ती से महफूज़ रखने वाले आमाल 125

सूरे इसराफ़ील 132

फ़स्ल पंजुम (पांच) 136

कुबूर (क़ब्रों से निकलना) 136

अहवाले क़यामत के लिए मुफ़ीद आमाल 140

क़ैफ़ियते हशर व नशर 143

फसल शश्शुम (छः) 149

नामए आमाल 149

आओ मेरे आमालनामा को पढ़ो 151

आमालनामों से इन्कार 153

फ़स्ल हफ़तुम (सात) 163

मीज़ाने आमाल 163

रवायाते हुस्ने ख़ुल्क 170

फ़स्ल हश्तुम (आठ) 190

हिसाब 190

मोवक़िफ़े हिसाब 190

हिबास कौन लगे ? 190

हिसाब किन लोगों का होगा ? 192

अहबात व तकफ़ीर 195

अहबात 196

तकफ़ीर 198

पुरसिशे आमाल 201

हुकुकुन्नास 204

फ़स्ल नहुम (नवी फस्ल) 211

हौज़े कौसर 211

ज़हूरे अज़मते आले मोहम्मद (अ 0 स 0) 213

लेवाएहम्द 213

हज़रत अली (अ 0 स 0) साक़िए कौसर होंगे 214

मुक़ामे महमूद 215

अली (अ 0) दोज़ख़ और बेहश्त के बांटने वाले हैं 216

शफ़ाअत 217

शिफ़ाअत किन लोगों की होगी 218

आराफ़ 219

फस्ल दहुम (दस) 223

पुले सिरात 223

जन्नत के महलात और उनका मसलिहा 264

जन्नत के कमरों का सामाने ज़ीनत 265

जन्नती (अपसराएं) और औरतें (स्त्रियाँ) 266

इतरियाते जन्नत (जन्नत की ख़ुशबू) 269

जन्नत के चराग़ 271

जन्नती नग़मात 272

जन्नत की न्यामतें और लज़्ज़तें 273

सहबाने ख़ौफ़े ख़ुदा के क़िस्से 276

शरायते तौबा (प्रायश्चित) 284

क़ाबिले तौबा गुनाह 285

क़िस्सा बलोहर व दास्ताने बादशाह 303

हिकायते आबिद और सग (कुत्ता) 317

अर्ज़े नाशिर (प्रकाशक)

अमीरुल मोमनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया

“ तुम्हें मालूम होना चाहिए कि दुनियां ऐसा घर है कि इसके (अवाक़िब से) बचाव का सामान इसी में रहकर किया जा सकता है। औऱ किसी ऐसे काम से जो सिर्फ़ इसी दुनिया की ख़ातिर किया जाए , निजात नहीं मिल सकती , लोग इस दुनियां में आज़माइश में डाले गए हैं लोगों ने इस दुनिया के लिए हासिल किया होगा , उससे अलग कर दिए जाएंगे और इस पर उनसे हिसाब लिया जाएगा। दुनिया अक़लमन्दों के नज़दीक एक बढ़ता हुआ साया है। ” ( नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 61)

फ़िर फ़रमायाः-

अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो और मौत से पहले अपने आमाल का ज़ख़ीरा (भंडार) फ़राहम कर लो और दुनियां की फ़ानी (ऩाशवान) चीज़ें देकर बाक़ी रहने वाली चीज़ें ख़रीद लो , औऱ मौत के लिए आमदा हो जाऔ कि वह तुम्हारे सिरों पर मंडला रही है , ……….. अल्लाह ने तुम्हें बेकार पैदा नहीं किया न उसने तुम्हें बेक़ैदा बन्द छोड़ दिया है। मौत तुम्हारी राह में हायल है , उसके आते ही तुम्हारे लिए जन्नत या दोज़ख़ है। वह ज़िन्दगी के दिन जिसे हर गुज़रने वाला लम्हा कम कर रहा हो और हर साअत उसकी इमारत को ढ़ा रही हो। कम ही समझी जाने के लायक़ है और वह मुसाफ़िर जिसे हर नया दिन और नई रात खींचे लिए जा रहे हों। उसके मंज़िल तक पहुंचना जल्द ही समझना चाहिए और वह आज़मे सफ़र है। जिसके सामने हमेशा कामरानी या नाकामी का सवाल है। उसको अच्छे से अच्चा ज़ाद मुहैय्या करने की ज़रुरत हैं इसलिए इस दुनियां में रहते हुए इससे इतना तोशए आख़िरत ले लो जिसके ज़रिए कल अपने अल्लाह से डरे , अपने नफ़स के साथ ख़ैरख़्वाही करे (मरने से पहले) तौबा करे , अपनी ख़्वाहिशों पर क़ाबू रख़े चूंकि मौत उसकी निगाहों से ओझल है और उम्मीदें फ़रेब देने वाली हैं और शैतान उस पर छाया हुआ है जो गुनाहों को सजा कर उसके सामने लाता है। यहां तक की मौत उस पर अचानक टूट पड़ती है। (नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 62) ।

एक मुक़ाम पर फ़रमाया

( दुनियां में) चार तरह के लोग हैं। कुछ वह हैं , जिन्हें मुफ़सिदा इंगेज़ी से मानेह सिर्फ़ उनके नफ़्स का बेवक़्त होना उनकी धार का कुन्द होना और उनके पास का कम होना है। कुछ लोग वह हैं जो ऐलानिया शर फ़ैला रहे हैं , कुछ सिर्फ़ माल बटोरने या मिम्बर पर बलन्द होने के लिए , उन्होंने अपने नफ़सो को वक़्फ़ कर दिया है और दीन को तबाह व बरबाद कर डाला है। कितना ही बुरा सौदा है तुम दुनियां को अपने नफ़्स की क़ीमत औऱ अल्लाह के यहां की न्यामतों का बदल क़रार दे लो और कुछ लोग वह हैं जो आख़िरत वाले कामों से दुनिया तल्बी करते हैं और यह नहीं करते कि दुनियां के कामों से भी आख़िरत का बनाना मक़सूद रख़ें , यह लोग अल्लाह की पर्दापोशी से फ़ायदा उठाकर उसका गुनाह करते हैं। (नहजुल बलाग़ा खुतबा 32) ।

और फ़रमाया-

“ अल्लाह की तरफ़ वसीला ढूंढ़ने वालों के लिए बेहतरीन वसीला अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व.व. ) पर ईमान लाना है और उसकी राह में जिहाद करना कि वह इस्लाम की सरबलन्द चोटी हैं और कलमए तौहीद की वह फ़ितरत (की आवाज़) है और नमाज़ की पाबन्दी की वह एैन दीन है और ज़कात अदा करना कि वह फर्ज़ वाजिब है औऱ माह रमज़ान के रोज़े रख़ना कि वह अज़ाब की सिपर है और ख़ानए क़ाबा का हज व उमरा बजा लाना कि वह फ़ख़्र को दूर करते हैं और गुनाहों से धो देते हैं और अज़ीज़ों से हुस्ने सुलूक करना कि वह माल की फ़रावनी और उम्र की दराज़ी का सबब हैं और मख़फ़ी (छुपे) तौर पर ख़ैरात करना कि वह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और वह बुरी मौत से बचाता है। (ख़ुतबा 13) ।

मौत के बारे में फ़रमाया-

“ ख़ुदा की क़सम वह चीज़ जो सरासर हक़ीक़त है , हंसी खेल नहीं सर ता पा हक़ है , वह सिर्फ़ मौत है। ” ( नहजुल बलाग़ा खुतबा 108) ।

मौत के बाद क्या होगा ? अल्लामा शेख़ मुहम्मद अब्बास कुम्मी अलैहिर्रमा ने अपनी किताब मनाज़िले आख़िरह में इस अहम मसला पर कुर्आन व अहादिस की रौशनी में बड़ी आलीमाना बहस की है और हश्र व नश्र के उमूर को उजागर किया है।

चूंकि इस किताब का मुतालिया (अध्ययन) तमाम हक़ परस्त मोमिनों (धार्मिक लोगों) के लिए ज़रुरी और मशअले राह है इसलिए हम अब्बास बुक एजेन्सी के ज़रिए इस हिन्दी एडिशन को शाए (प्रकाशित) करने का शरफ़ हासिल कर रहे हैं जिस के लिये जनाब बी 0 ए 0 नक़वी एड़वोकेट हाई कोर्ट शुक्रिया के मुस्तहक़ हैं जिन्होंने अपना क़ीमती वक़्त लगा कर बेहतरीन तर्जुमा किया। ताकि मोमनीन व मोमिनात इससे इस्तेफ़ादा कर सकें और इसकी रौशनी में अपने नेक व सालेह आमाल के ज़रिए मनाज़िले आख़रह के लिए सामाने आख़िरत फ़राहम कर सकें।

दो शब्द

आज का युग आधुनिक युग के नाम से जाना जाता है औऱ आदमी इक्कीसवीं सदी में कदम रखने के लिए आतुर है , लेकिन धर्म किसी न किसी रुम में सदैव से है और प्रलय क़यामत तक रहेगा।

इमामिया मिशन , लखनऊ से प्रकाशित होने वाली छोटी-छोटी विभिन्न विषयों की धार्मिक पुस्तकों ने हमेशा हमें प्रभावित किया तथा विद्यार्थी जीवन से ही अवैतनिक सेक्रेटी जनाब इब्ने हुसैन नक़वी मरहूम की प्रेरणा पर उनमें से बहुत सी धार्मिक पुस्तकों का अनुवाद किया तथा उर्दू से नावाक़िफ़ लोगों ने उसका समुचित स्वागत किया , उसी समय मौलाए क़ायनात हज़रत अली (अ 0 स 0) के विचारों पर आधारित प्रसिद्ध धार्मिक पुस्तक “ नहजुल बलाग़ा ” का हिन्दी में अनुवाद करने का विचार हुआ और जनाब अली अब्बास तबातबाई के अनुरोध पर उसका अनुवाद किया।

प्रस्तुत पुस्तक “ मनाज़िले आख़िरह ” अपने विषय की एक मात्र ऐसी पुस्तक है , जिसमें आदमी के पैदा होने से मरने तक के विभिन्न अवतरणों पर भली-भांति हिकायतों सहित वर्णन किया गया है।

वास्तव में अल्लाह द्वारा पहले मनुष्य पैदा किया जाता है फ़िर उसे मौत आती है और फ़िर जि़न्दा किया जाएगा। इस तरह उसकी ज़िन्दगी के तीन भाग हैं- पहले ज़िन्दगी , फ़िर मौत और फ़िर ज़िन्दगी।

आज के व्यस्तम युग में आदमी ज़िन्दगी के दूसरे और तीसरे भाग से कम वाक़िफ़ है तथा समस्त धार्मिक पुस्तकें अरबी फ़ारसी एंव उर्दू में होने के कारण भी उसे कुछ मालूम नहीं है। इसलिए समय की आवश्यकता को देखते हुए , धार्मिक पुस्तकों का हिन्दी में होना परम आवश्यक है।

मैं समझता हूँ कि “ मनाज़िले आख़िरह ” के हिन्दी अनुवाद से सभी को विशेषकर युवा पीढ़ी और उर्दू से अनभिग्य लोगों को अत्यधिक लाभ पहुंचेगा ऐसी मुझे आशा है।

जैसा कि मज़कूरा बाला अय्ये करीमा से ज़ाहिर होता है कि इस आलमे कौनो मकां की कोई चीज़ अबस और बेकार नहीं है। इन्सान अपने इर्द गिर्द की चीज़ों और गर्दिशे लैलोनहार पर ग़ौर करे तो उस पर ये बात ज़ाहिर हो जाएगी कि इस आलमे मुमकिनात का ज़र्रा-ज़र्रा हिकमतों मसलहत से ख़ाली नहीं , इन्सान का एक बाल भी बग़ैर मसलहत के पैदा नहीं किया गया।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुफ़ज़्ज़ल से फ़रमाया कि बाज़ जुहला यह कहते हैं कि अगर फ़लां (अमुक) अज़ो (अंग) पर बाल न होते तो बेहतर था। वह यह नहीं जानते कि वह जगह मज़मए क़साफ़ात है और उस जगह से रुतुबात का एख़राज़ (बहाव) होता है , अगर ज़ायद मवाद और कसाफ़तें बालों की सूरत में रफ़ा न होती तो इंसान मरीज़ हो जाता। इसीलिए शरीअते मुतहरा का हुक्म है कि उनको जल्दी-जल्दी साफ़ किया करो। इसी तरह इन्सान के रगो पे , दन्दां नाखून बग़ैर हिक़मतों मसलहते परवर दिगारे आलम के पैदा नहीं होते। अगर इनमें से एक भी मफ़कूद (कम) हो तो इन्सान नाकि़स कहलाता है इन तमान चीज़ों से यह बात अच्छी तरह ज़ाहिर हो जाती है कि इस आलम को ख़लअते वजूद पहनाने वाला साहबे हिकमत है और कायनात की कोई चीज़ हिकमत से ख़ाली नहीं।

इसी तरह ईजादे इन्सान भी बेकार नहीं। अब सवाल पैदा होता है कि क्या इन्सान के पैदा करने का मक़सद यह माद्दी (मायावी) ज़िन्दगी ही है और उसके बाद वह नेस्तो नाबूद हो जाएगा। नहीं हरगिज़ नहीं। अगर ग़ौर किया जाये तो कोई इन्सान इस दुनिया में आसूदा हाल नहीं है और न ही किसी को सुकून हासिल है। तरह-तरह की तकालीफ़ मसायब व आलम बीमारियों , फ़ित्नों , ग़स्बे अमवाल और दोस्तों , व अज़ीज़ों की अमवात के मसायेब (तकलीफ़) को बरदाश्त करता है।

दिल बे ग़म दर ई आलम न माशद।

अगर बाशद बनी आदम न बाशद।

( तर्जुमा- इस आलम में कोई भी दिल ग़म से ख़ाली नहीं होगा , और अगर होगा भी तो वह आदम की औलाद से नहीं होगा)

अगर इन माद्दी वसायल को ही गरज़े ख़िलक़ते इन्सानी तसलीम कर लिया जाये जो कि मसायब व आलम से पुर है तो यह हिकमतों करम और सिफ़ाते कमालिया इलाहिया के मनाफ़ी होगा , और उसकी मिसाल ऐसी होगी जैसे कोई सख़ी किसी शख़्स को मेहमानी पर बुलाये और उसके लिए एक ऐसा मकान मुहैया करे , जिसमें तरह-तरह के दरिन्दे मौजूद हों , फ़िर उस कमरे में उसके लिए खाना चुन दिया जाय और जब वह लुक़मा उठायें तो तमाम दरिन्दे उससे वह लुक़मा छीनने के लिए हमला कर दे तो कोई अक़लमन्द ऐसी मेहमानी को मुफ़ीद और लायक़े तारीफ़ न समझेगा , बल्कि , ऐसी मेहमानी जो कि जान के लिए ख़तरा है , बेकार होगी। किसी चीज़ को बना कर बिगाड़ देना फ़ेले क़बीह है और ख़ल्लाके आलम से कोई फ़ेले (कार्य) क़बीह सरज़द होना नामुमकिन है।

बस यह बात कतई तौर पर साबित हो जाएगी कि इन्सान की मंज़िले मक़सूद यह माद्दी ज़िन्दगी नहीं बल्कि उसकी मंजिले मक़सूद ऐसी जगह है , जिसमें मौत नहीं , जिसमें हुज़्नों मलाल नहीं , जहां कि किसी चीज़ को फ़ना और ज़वाल नहीं है इन्सान जिसको अपनी मंज़िले मक़सूद समझे हुए हैं , यह तो उसकी गुज़रगाह है , और वह मन्ज़िल उस वक़्त तक पार नहीं की जा सकती , जब तक कि इन मनाज़िल के लिए बक़्द्र ज़रुरत तोशा और ज़ादे राह मुहैय्या न कर लिया जाये।

इसलिए हमें चाहिए कि हम अपनी ग़रज़े ख़िलक़त और मक़सद को समझने की कोशिश करें और उसके लिए ज़रुरी ज़ादे राह मुहैय्या करें , ज़ेरे नज़र किताब मनाज़िले आख़िरा में इन्हीं मनाज़िल का तज़किरा नेहायत दिलचस्प और उम्दा अन्दाज़ में पेश किया गया है , और इन मनाज़िल में दरपेश मुश्किलात और उनका इलाज अहादीस व अख़बारात की रोशनी मे ज़ाहिर किया गया है।

मुमकिन है कि कुछ पढ़ने वाले लोग इस किताब में दर्ज शुदा हिकायत व वाक़यात को महज़ क़िस्सा गोयी या झूठी रिवायत ख़्याल करते हुए यक़ीन न करें , इसलिए ज़रुरी समझ़ता हूं कि मरातिबे अख़बार का तज़किरा किया जाय ताकि पढ़ते वक़्त शुकूक व शुब्हात की गुंजाइश बाक़ी न रहे और ईमान व यक़ीन में इज़ाफ़ा हो।

“ हर वह चीज़ जो तेरे कानों तक पहुंचे जब तक तेरे पास उसके न होने पर अक़ली दलील न हो उसे मुमकिन ख़्याल कर। ”

मरातिबे अख़बार- हर वह ख़बर जिसके न होने पर कोई अक़ली और नक़ली दलील न हो , उस का इन्कार न करो।

दरजा दोम- इसके अलावा अगर उसके साथ दोस्ती और सिदक़ के शवाहिद भी मौजूद हों तो उसे कुबूल कर लेना चाहिए और इन्कार नहीं करना चाहिए।

दरजा सोम- अगर ख़बर देने वाला परवरदिगारे आलम की तरपञ से कोई बुरगजीदा हस्ती और सनद याफ़ता और मनसूसमिन अल्लाह मासूम हो तो वह मोजिज़ह है। इस सूरत में अगर अकेले अक़ल उसके अदम इमकान का हुक्म दे तो इसका इन्कार नहीं करना चाहिए। बल्कि बदरजा अव्वल , दरज़ा दोम की ख़बर के मुताबिक़ इसको कुबूल करते हुए मुतमईन हो जाना चाहिए।

जबकि एक मुनज्जिम या इल्मे हैय्यत का दावेदार यह दावा करे के फ़लां सय्यारे के गिर्द कई और सय्यारे या सितारे ऐसे ही चक्कर लगा रहे हैं जैसा कि चांद ज़मीन के गिर्द , तो कोई शख़्स इसका इन्कार नहीं करेगा , बल्कि मुमकिन ख़्याल करते हुए उसके दावे को तसलीम करेगा , क्योंकि जो ख़ालिक़े मुमकिनात एक चांद को पैदा कर सकता है , वह उस पर भी क़ादिर है कि , इसके अलावा भी कई चांद तख़लीफ़ (पैदा) फ़रमाये और जब इन चीज़ों की तसदीक़ अक़वाले मासूम से भी हो जाय तो इन्कार की कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं रहती।

यही हालत उन रुयाये सादिक़ा और हिकायात की है , जो कि ज़ेरे नज़र किताब में दर्ज की गयी है। इसलिए सिर्फ़ हिकायात समझ कर इन्कार कर देना मुस्तहन नहीं है , जबकि उनका माख़ज़ सक्क़ए उल्मा की किताबें हैं।

इससे पहले मुरव्वजुल- एहकाम मौलाना गुलाम हुसैन साहब मज़हर ने पहला एडिशन पेश किया , जिसमें किताब मनाज़िले आख़िरा हाजी शेख़ अब्बास कुम्मी ताब सराह का तर्जुमा था और अस्ल किताब में बाज़ अलमनाज़िल और वाक़ियात के मफ़कूद होने के बाअस सिर्फ़ उसी के तर्जुमा को काफ़ी समझा गया।

अब ज़ेरे नज़र किताब दूसरा एडिशन बमए मुफ़ीद इज़ाफ़ा है , जिसमें इन तमाम ख़ामियों का अज़ाला कर दिया गया है , जो कि पहले एडीशन में मौजूद थे।

इस किताब की तरतीब व तालीफ़ का ज़्यादातर इन्हेसार अलमनाज़िल आख़िरा और आयत उल्ला सैय्यद अब्दुल हुसैन दस्दग़ैब मदज़िल्लूह की किताब “ अलमआद ” पर है। अलावा बरीं कुछ मुफ़ीद मतालिब और हिकायात मुन्दरजा ज़ैल किताबों से इ्कट्ठा की गयी हैं। अहसनुल फ़वायद , तफ़सीर उम्दतुल बिसयान , बहारुल अनवार , तफ़सीर अनवारुल नज़फ , ख़ज़ीनतुल जवाहर वग़ैरा। मौलाना मौसूफ़ ने इन ज़रुरी मुक़ामात पर इज़ाफ़ा फ़रमा कर इस किताब की अहमियत और ज़रुरत को और मोसर बना दिया है।

ख़ल्लाक़े आलम हमें इन मतालिब को समझ़ने और उन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और मरव्वजुल-एहकाम मौलाना गुलाम हुसैन साहब मज़हर जिन्होंने दिन-रात की कठिन मेहनत के बाद , इस को तरतीब दिया उन्हें अज्रे जज़ील अता फ़रमाए।

पेश लफ़्ज़

लेख़क विचारक अब्बास कुम्मी की पुस्तक मनाज़िले आख़िरह का हिन्दु अनुवाद “ मरने के बाद क्या होगा ” ? अब आप के सम्मुख है। हमारे समाज में विशेषकर नौजवान पीढ़ी में धार्मिक शिक्शा तथा धार्मिक ग्यान का सर्वथा अभाव सा हो गया है। जिसके अनेक कारणों में से एक कारण यह भी है कि हमारी धार्मिक पुस्तकें प्रायः अरबी , फारसी तथा उर्दू में हुआ करती हैं। अतः समय की मांग को देखते हुए हमारे कुछ उल्माओं , धार्मिक विचारकों तथा लेखकों ने धार्मिक ग्यान कोष का हिन्दी में अनुवाद करने का बेड़ा उठाया है। श्री बी.ए. नक़वी ऐसे ही जागरुक लेखकों एंव अनुवादकों में से एक हैं।

किसी रचना का मूल सृजन तो लेखक की रचनात्मक छ्मता पर आधारित होता है किन्तु किसी रचना का दूसरी भाषा में अनुवाद वह भी इतना स्वाभाविक कि वह उसी भाषा की मूल रचना प्रतीत हो , यह प्रत्येक व्यक्ति के बस में नहीं होता इसके लिए जिस महारत , कौशल तथा निपुणता की आवश्यकता होती है वह श्री बी.ए. नक़वी में पूर्णतयाः विद्यमान है।

श्री नक़वी ने केवल इसी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद नहीं किया है वरन् वह इससे पूर्व बहुत सी अन्य धार्मिक पुस्तकों का भी अनुवाद कर चुके हैं जिसमें “ नहजुल बलाग़ा ” जैसी पुस्तक का अनुवाद एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण कार्य है।

यद्यपि श्री नक़वी का पेशा वकालत है फिर भी साहित्य विशेषकर धार्मिक साहित्य तथा हिन्दी भाषा में उनकी विशेष रुचि है तथा समस्त धार्मिक पुस्तकों को आज की मांग को देखते हुए हिन्दी अनुवाद के परम हिमायती है।

चूंकि इस पुस्तक का पढ़ना समस्त मोमेनीन के लिए आवश्यक है , अतः श्री नक़वी ने इस पुस्तक को भारत में रहने वाले उन तमाम मोमेनीन तथा नौजवानों तक पहुंचाने का बेड़ा उठाया है जो उर्दू पढ़ना नहीं जानते हैं।

वास्तव में इस पुस्तक में मरने के बाद रुह को किन मनाज़िल से गुज़रना है इस पर प्रकाश डाला गया है , तथा दुनिया में रहते हुए आख़ेरत को संवारने का रास्ता भी बताया गया है , क्योंकि “ बदतरीन अमल वह है जो आख़ेरत को बरबाद कर दे ” ( मौला अली) “ बेहतरीन बात वह है जिसका दुनियां में फ़ायदा हो और आख़ेरत में इनाम मिले। ” ( मौला अली) आख़ेरत में रहना है लेहाज़ा सामाने आख़ेरत भेज दो। (मौला अली)।