फ़स्ल नहुम (नवी फस्ल)
हौज़े कौसर
उन तमाम मुसल्लम मामलों में जिनका ज़िक्र कुर्आन मजीद और रवायते अम्मा और ख़ासा में मौजूद है। हौज़े कौसर भी है और यह वह ख़ैरे कौसर है , जो ख़ल्लाक़े आलम ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व. ) को अता की। बहुत सी किताबें जैसे बसायरुल दरजात मआलमुल जुल्फा और बहारुल अनवार जिल्द 2 में मर्वी हैं कि अब्दुल्ला बिने सनान ने हज़रत अबी जाफ़र अल सादिक (अ 0 स 0) से हौज़े कौसर के बारे में पूछा तो हज़रत ने फ़रमाया इसकी तूल (दूरी) बसरा से सनाए यमन तक के अन्दाज़े के बराबर है। अब्दुल्ला ने ताअज्जुब किया। हज़रत ने फ़रमाया कि क्या तू उसको देखना चाहता है , उसने अर्ज़ किया हां। या बिने रसूल अल्लाह! हज़रत उसको मदीने से बाहर लाए और अपने पांव को ज़मीन पर मारा। अब्दुल्लाह कहता है। हुक्मे इमाम से मेरी आंखे रौशन हो गयीं और पर्दा दूर हो गया। मैंने देखा कि एक नहर बह रही है और जहां मैं और इमाम (अ 0 स 0) खड़े हैं , वह एक जज़ीरा है। उस नहर में एक तरफ़ बर्फ़ से ज़्यादा सफ़ेद पानी और दूसरी तरफ़ दूध जारी है और बीच में सुर्ख़ याकूत की तरह शराबन तहूरा बह रहा है। उससे ज़्यादा ख़ूबसूरत चीज़ कभी न देखी थी और न ही दूध और पानी के बीच इस तरह शराब देखा था। मैंने अर्ज़ किया कि मेरी जान आप पर कुर्बान हो। यह नहर कहां से निकल रही हैं आपने फ़रमाया जैसा कि कुर्आन में ज़िक्र है कि बेहश्त में दूध , पानी और शराब का चश्मा है , यह नहर उसमें जारी है। इस नहर के दोनों किनारों पर दरख़्त हैं और दरख़्तों के बीच दूरे जन्नत अपने वालों को लडकाए हुए हैं कि उससे ज़्यादा खूबसूरत बाल कभी न देखे थे और हर एक के हाथ में इस क़द्र खुबसूरत बर्तन है कि ऐसा बर्तन दुनियां में नहीं देखा। हज़रत एक के क़बरीब गए और पानी मांगा। उस हूर ने बर्तन को उस नहर से पुर करके आं हज़रत (अ 0 स 0) को दिया और आदाब किया। इमाम (अ 0 स 0) ने मुझे दिया। मैंने कभी इतनी लताफ़त और लज़्ज़त न चक्ख़ी और इस क़द्र मुश्क की खुश्बू कभी न सूंघी थी। मैंने अर्ज़ किया कि मेरी जान आप पर कुर्बान हो , जो कुछ मैंने आज देखा है , उन चीज़ों का मुझे गुमान भी न था। हज़रत ने फ़रमाया , यह उससे कमतर है , जो हमारे शियों के लिए मोहय्या की गयी है , जिस वक़्त वह मरता है , उसकी रुह इन्हीं बाग़ात और नहरों में फ़िरती और नहाती है और मेवों से लुत्फ़ उठाती है। (मआद)।
रसूले ख़ुदा (स 0 अ 0) ने हज़रत अली (अ 0 स 0) से फ़रमाया , हौज़े कौसर अर्शे आज़म के नीचे ज़ारी है उसका पानी दूध से ज़्यादा सफ़ेद , शहद से ज़्यादा मीठा , घी से ज़्यादा नर्म है। उसके कंकर ज़बरजद , याकूत और मरजान हैं। उसकी घास जाफ़रान और मिट्टी मुश्क अज़फर है। उसके बाद आं हज़रत ने अपना हाथ अमीरुल मोमनीन (अ 0 स 0) के पहलू पर रखा और फ़रमाया ऐ अली (अ 0 स 0) यह नहर मेरे और तुम्हारे लिए है और तुम्हारे महबूबों के लिए है। (अहसनुल फ़वायद) हुसैनियों के लिये एक खुसूसियत यह भी है। हज़रत सादिक़े आलेमोहम्मद (अ 0 स 0) फ़रमाते हैं कि “ ग़मे हुसैन ” ( अ 0 स 0) में रोने वाला हौज़े कौसर पर खुश व खुर्रम वारिद होगा और हौज़े कौसर उसको देख कर खुश होगा (मआद)
ज़हूरे अज़मते आले मोहम्मद (अ 0 स 0)
ख़ल्लाक़े आलम जिस तरह दूसरी न्यामतों का इज़हार क़यामत के रोज़ फ़रमाएगा , उसी तरह अज़मत व शान और जलालते मोहम्मद व आले मोहम्मद (अ 0 स 0) का भी इज़हार फ़रमाएगा।
लेवाएहम्द
अब्दुल्ला बिने सलाम ने रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) की ख़िदमत में अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाह अलैहे वाआलेही वसल्लम लवा अलहम्द की क़ैफ़ियत क्या है ? आगाह फ़रमाएं। आपने फ़रमाया इश का तूल (दूरी) हज़ार बर्स की राह के बराबर होगा , उसका सुतून सुर्ख़ याकूत और उसका क़ब्ज़ा सफ़ेद मोतियों का , उसका , फ़रेरा सब्ज़ (हरा) ज़मरुद का होगा। एक फ़रेश मशरिक़ की तरपञ दूसरा मग़रिब की तरफञ और तीसरा औसत में और उसके ऊपर तीन सतरें तहरीर होंगी।
1- बिस्मिल्लाह अर्रहमानिर्रहीम।
2- अलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन।
3- लाइलाहा इल्लललाहो , मोहम्मदुर रसूलुल्लाह अलीयुन वलीयुल्लाहे।
हर एक सत्तर हज़ार साल कह राह के बराबर लम्बी होगी। उसने पूछा उसको कौन उठाएगा ? आपने फ़रमाया उसको वही उठाएगा जो दुनियाँ में मेरा अलम उठा रहा होगा यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ 0 स 0) जिसका नाम अल्लाहतआला ने ज़मीन व आसमान की पैदाइश से पहले लिखा , उसने फ़रमाया मोमनीन , दोस्ताने खुदा , खुदा के शिया , मेरे शिया और मोहिब और अली (अ 0 स 0) के शिया और मोहिब उसके साए में होंगे। बस उनका हाल और अंजाम बहुत अच्छा है , और अज़ाब है उस शख़्स के लिए जो अली के बारे में मुझे या अली (अ 0 स 0) को मेरे बारे में झुठलाए या इस बारे में झगड़ा करे , जिसमें खुदा वन्दे आलम ने उसको क़ायम किया हो।
हज़रत अली (अ 0 स 0) साक़िए कौसर होंगे
“ वा अन्ता साहिबो हौज़ी ” एक हदीस के हिस्से में फ़रमाया ऐ अली! तू ही साक़िए कौसर है। ख़स्साल शेख़ सद्दूक (र 0) ने जनाबे अमीरूल मोमनीन (अ 0 स 0) से मर्वी है कि मैं हौज़े कौसर पर रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) के साथ हूंगा और मेरी इतरत भी वहां मेरे साथ होगी , जो शख़्स हमारी मुलाक़ात का ख़्वाहिश मन्द है , उसे चाहिए कि हमारे क़ौल व फ़ेल पर अमल करे , क्योंकि हर घर से कुछ नजीब व शरीफ़ होते हैं , हमार लिए और हमारे मुहिब्बों के लिए शिफाअत साबित है। बस हौज़े कौसर पर मुलाक़ात करने की कोशिश करो , क्योंकि हम वहां से अपने दुश्मनों को हटाएंगें औऱ हम अपने मुहिब्बों को सेराब करेंगे। जो शख़्स उसका एक घूंट पी लेगा , वह हरगिज़ प्यासा न होगा।
बुख़ारी वग़ैरह में है कि जब कुछ असहाब को कौसर से दूर हटाया जाए तो रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) फ़रमाएंगे , “ या रब्बी असहाबी असहाबी ” या अल्लाह यह तो मेरे असहाब हैं। “ फ़युक़ालों लातदरी मा अहदस बादक ” तुम्हें इल्म नहीं कि उन्होंने तुम्हारे बाद क्या किया , अहदास व बिदअत फ़ैलाए। इसी तरह मुस्लिम मय शरह नौवी जिल्द 2 सफ़ा 249, बुख़ारी जिल्द 2 सफ़ा 975 पर मौजूद है। (अहसनुल फ़वायद)।
मुक़ामे महमूद
तफ़सीर फुरात बिने इब्राहिम कूफ़ी में हज़रत सादिक़ आले मोहम्मद अलैहिस सलाम के असनाद से जनाब रिसालत मआब सल्ललाहे अलैहे वा आलेही व सल्लम से एक लम्बी रवायत में मर्वी है , जिसका खुलासा यह है , चूंकि खल्लाक़े आलम ने मुझसे वायदा फ़रमाया है-
उसे वह ज़रुर पूरा करेगा और क़यामत के दिन तमाम लोगों को इकट्ठा करेगा और मेरे लिए एक मिम्बर नसब किया जाएगा , जिसके हज़ार दर्जे होंगे और हर दर्जा ज़बरजद , ज़मर्रूद याकूत और तिला (सोने) का होगा। मैं उसके आख़िरी दर्जे पर चढ़ जाऊँगा। उस वक़्त जिबरइल आकर लवा अलहम्द मेरे हाथ में देंगे और कहेंगे या मोहम्मद (स.अ.व.व. ) यह वह मुक़ामे महमूद है , जिसका परवरदिगारे आलम ने तुझसे वायदा किया था , उस वक़्त में जनाब अली (अ 0 स 0) से कहूंगा या अली (अ 0 स 0) तुम ऊपर चढ़ो , चुनांचे वह मिम्बर पर चढ़ेंगे और मुझसे एक दर्जा नीचे बिला फ़सल बैठेंगे तब मैं लवा अलहम्द उनके हाथ में दे दूंगा।
अली (अ 0) दोज़ख़ और बेहश्त के बांटने वाले हैं
फ़िर मेरे पास रिज़वाने जन्नत बेहश्त (स्वर्ग) की कुंजियाँ लेकर आएगा औऱ मेरे हवाले कर देगा और इस के बाद जहन्नुम (नर्क़) का ख़ाज़िन (ख़जांची) जहन्नुम की कुंजियां मेरे हवाले कर देगा। मैं यह कुंजियां हज़रत अली (अ 0 स 0) के हवाले कर दूंगा
( “ या अलीयो अंता क़सीमुन्नारे वलजन्नत ” ) ।
“ ऐ अली तू जन्नत और जहन्नुम का तक़सीम करने वाला है। ”
उस वक़्त जन्नत और जहन्नुम मेरी और अली (अ 0 स 0) की , इससे ज़्यादा फ़रमा बरदार होगी , जितनी कोई फ़राम बरदार दुल्हन अपने शौहर की अताअत करती है और इस आयत “ अलक़िया फञी जहन्नमा कुल्ला कफ़्फ़ारिन अनीद। ” का यही मतलब है , “ यानी ऐ मोहम्मद (स.अ.व.व. ) व अली (अ 0 स 0) तुम दोनों हर काफ़िर (नास्तिक) और सरकश (बदमाश) को जहन्नुम में झोंक दो। ”
शफ़ाअत
तफ़सीरे कुम्मी में जनाब समाआ से रवायत (कथन) है कि किसी ने हज़रत सादिक आले मोहम्मद (अ 0 स 0) की ख़िदमत में अर्ज़ किया क़यामत के दिन जनाब पैग़म्बर (स 0 अ 0) इस्लाम की शिफ़ाअत किस तरह होगी ? आपने फ़रमाया जब लोग पसीने की कसरत से मुज़तरिब और परेशान हो जाएंगे। इसी नफ़सी नफ़सी के आलम में लोग तंग आकर जनाबे आदम (अ 0 स 0) की ख़िदमत में मग़रज़ शिफ़ाअत हाजि़र होंगे। वह अपने तर्क ऊला का उज़्र पेश करेंगे और माज़रत चाहेंगे। फ़िर उनकी हिदायत के मुताबिक जनाबे नूह (अ 0 स 0) की ख़िदमत में हाज़िर होंगे। वह भी माज़र ख़्वाही करेंगे। इसी तरह हर साबिक़ नबी उनको अपनी बाद वाले नबी की ख़िदमत में भेजेगा। यहां तक कि जनाबे ईसा (अ 0 स 0) की ख़िदमत में पहुंचेंगे। वह उनको सरकारे ख़त्मी मरतब सल्लललाहो अलैहे व आलेहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होने का मशविरा देंगे।
चुनांचे लोग उनकी ख़िदमत में अपनी मुश्किलात दूर करने की दरख़्वास्त पेश करेंगे। आं जनाब उनके हमराह बाबुल रहमान तक तशरीफ लाएंगे और वहां सजदा रेज़ हो जाएंगे। उस वक़्त इरशादे रब्बुल इज़्ज़त होगा-
तर्जुमा- “ ऐ हबीब सर उठाओ और शिफाअत करो , तुम्हारी शिफ़ाअत मक़बूल है और जो कुछ मांगना हो मागों , तुम्हे अता किया जाएगा। ”
( आइम्मां की शिफ़ाअत के बारे में हिसाब की फ़स्ल में तफ़सील गुज़र चुकी है।)
ख़्ससाल शेख़ सद्दूक (र 0) में जनाब रसूल खुदा से मनकूल है कि तीन गिरोह बारगाह इलाही में शफ़ाअत करेंगे और उनकी शफ़ाअत कुलूब होगी। अम्बिया , ओलमा और शोहदा। (अहसनुल फ़वायद)।
बहारुल अनवार जिल्द सोम में है कि रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया कि शिआने अली (अ 0 स 0) को हक़ीर न समझो , उनमें से एक-एक़ शख़्स क़बीले रबीआ व मुज़र की तादाद के मुताबिक़ गुनाहगारों की शिफ़ाअत करेगा।
शिफ़ाअत किन लोगों की होगी
बहारुल अनवार में है कि रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया-
“ शफ़ाअत मेरी उम्मत के उन लोगों के लिए है जो गुनाहे क़बीरा के मुरतकिब होंगे , और जो नेकूकार हैं वह इससे बेनियाज़ हैं। ”
जनाब रसूले खुदा (स अ व व. ) ने फ़रमाया-
“ मैं बरोज़े क़यामत चार शख़्सों की ज़रुर शिफ़ाअत करूंगा , एक वह शख़्स जो मेरी जुर्रियत की इज्ज़त व तौक़ीर करेगा। दूसरा वह शख़्स जो मेरी जुर्रियात की हाजात पूरी करे। तीसरा वह जो उनकी मतलब बरारी करने में कोशिश करे। चौथा वह जो दिल व ज़बान से उनके साथ मुहब्बत करे। ” ( सवायक़)।
एक और जगह सादिके आले मोहम्मद (अ 0 स 0) ने फ़रमाया-
“ जो शख़्स नमाज़ को हक़ीर समझ़े , उसको हमारी शफ़ाअत नसीब न होगी ”
जनाब बाक़रुल उलूम फ़रमाते हैं-
“ हमारा शिया वह है जो हमारी ताबेदारी करे और हमारी मुख़ालिफ़त न करे ” अगर वाजिबात की बजा आवरी और मोहरमात की परवाह न की तो वह शिआने अली (अ 0 स 0) की फ़ेहरिश्त से ख़ारिज हो जाएगा और वह शफ़ाअत का भी हक़दार नहीं रहेगा। (अहसनुल फ़वायद)
मब मुख़्तसर यह कि अहले ईमान को हमेशा ख़ौफ़ व उम्मीद के दर्मियान रहना चाहिए , जो मोमनीन की सिफ़त (गुण) हैं। इरशादे कुदरत है-
“ वह खुदा की रहमत की उम्मीद रखते हैं और उसके अज़ाब से डरते हैं। ” (मआद)
आराफ़
(1) अख़बार अहले बैत (अ 0 स 0) की बिना पर आराफ़ सिरात पर वह ऊँचा मुक़ाम है , जिस पर मोहम्मद व आले मोहम्मद (अ 0 स 0) तशरीफ़ फ़रमा होंगे। हर शिया और अहले बैत से मुहब्बत करने वाले की पेशानी से नूर साते होगा। गोया वह पुले सिरात पर गुज़रने के लिए विलायते अली (अ 0 स 0) का टिकट है। सवायक में है-
कोई शख़्स उस वक़्त तक पुले सिरात से नहीं गुज़र सकता , जब तक उसके पास अली (अ 0 स 0) का टिकट न होगा। कुर्आन मजीद में है-
यानी आराफ़ पर कुछ लोग होंगे , यहां रजाल से मुराद मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व. ) और हज़रत अली (अ 0 स 0) हैं तमाम सेरात पर गुज़रने वाले को पहचानते होंगे उनके चेहरे की निशानियों से।
(2) आराफ़ की दूसरी तफ़सीर यह की गयी है कि यी एक दीवार है जैसा कि कुर्आन मजीद में इरशादे कुदरत है-
“ जिस दिन तुम मोमिन मर्दों और औरतों को देखोगे कि उनके ईमान का नूर उनके आगे-आगे और दाहिनी तरफ़ चल रहा होगा , तो उनसे कहा जाएगा , तुमको बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है , जिनके नीचे नहरें जारी हैं और तुम उनमें हमेशा रहोगे , यही तो बड़ी कामयाबी है उस दिन मुनाफ़िक़ मर्द और औरतें ईमानदारों से कहेंगे , एक नज़र हमारी तरफ़ बी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से रोशनी हासिल करें , उनसे कहा जाएगा कि तुम पीछे दुनियाँ में लौट जाओ और वहीं किसी औऱ नूर की तलाश करो। फिर उनके दर्मियान एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी , जिसमें एक दरवाज़ा होगा और उसके अन्दर की जानिब रहमत और बाहर की तरफ़ अज़ाब होगा। ”
इसकी तफ़सीर में कहा गया है कि वह नूर अक़ायद और विलायते आले मोहम्मद (स.अ.व.व. ) का नूर होगा औऱ यह नूर हर एक की मारिफ़त और अक़ायत के दर्जे के मुताबिक होगा और वह दायीं तरफ़ होगा और बाज़ का नूर इतना रोशन होगा कि वह बमुश्किल अपने क़दमों की जगह देख सकेगा। कुछ का नूर हद्दे नज़र से भी ज़्यादा होगा और बाज़ का इतना कमज़ोर की कभी ख़त्म हो जाएगा और कभी रौशन। वह हैरान व परेशान आवाज़ देंगे।
“ परवरदिगार हमारा नूर कामिल फ़रमा ” ताकि हम मंज़िल तक पहुंच सके। इस जगह किसी दूसरे का नूर काम नहीं देगा। मुनाफ़िक़ीन और गुनाहगार ख़्वाहिश करेंगे कि वह उनके अनवार से फ़ायदा उठाएं। मगर कोई फ़ायदा न होगा और उनके दर्मियान दीवार हायल कर दी जाएगी और यही आराफ़ है-
“ मुनाफ़क़ीन मोमनीन से पुकार कर कहेंगे (क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे। मोमनीन कहेंगे थे तो ज़रुर , मगर तुमने खुद अपने आपको बला में डाला और हमारे हक़ में गर्दिशों के मुन्तज़िर रहे और दीन में शक किया औऱ तुम्हें तुम्हारी तमन्नाओं ने धोखे में रखा यहां तक की खुदा का हुक्म आ पहुंचा और शैतान ने खुदा के बारे में तुम्हें फ़रेब दिया अब कोई चारा नहीं , तुम्हारी जगह आग है। ”
(3) आराफ़ जन्नत और जहन्नुम के बीच व जगह है जहां मुस्तफ़ीन सीधे सीधे लोग , कम अक़्ल और सादा लोह औरतें , दीवाने और नाबालिग़ बच्चे और वह लोग जो दो नबियों के दर्मियान के ज़माने में हो , जिसको जमानए फ़िरत कहा गया है , या वह लोग , जिनको ज़हूरे हुज्जत का इल्म नहीं हुआ। यह तमाम उस जगह होंगे कि वहां बेहश्तियों की तरह न्यामतें और खुशी नहीं है , लेकिन अज़ाब मुबतिला भी नहीं। शेख़ सादी ने ख़ूब नक्शा खींचा है-
हुराने बहश्तीरा दोज़ख बुवद आराफ़।
अज़ दोज़ खयां पुर्स की आराफ़ बेहश्त अस्त।।
“ हूराने बेहश्त के नज़दीक आराफ़ दोज़ख़ है , लेकिन अगर दोज़ख़ियों से पूछा जाए तो वह कहेंगे कि आराफ़ जन्नत है।