मनाज़िले आख़ेरत

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मनाज़िले आख़ेरत कैटिगिरी: क़यामत

मनाज़िले आख़ेरत

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

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मनाज़िले आख़ेरत

मनाज़िले आख़ेरत

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

फस्ल दहुम (दस)

पुले सिरात

यह भी आख़ेरत की उन हौलनाक मंज़िलों में से एक है जिन पर इजमालन एतक़ाद रखना हर मुसलमान के लिए फ़र्ज़ और ज़रुरियाते दीन में से हैं।

सिरात लुग़त (शब्द कोष) में बमानी रास्ता है और इस्तिलाह शराह में वह रास्ता मुराद है जो जहन्नुम के ऊपर से गुज़रता है।

एक रवायत (कथन) में मासूम (अ 0स 0) से मनकूल (उद्धृत) है कि पुले सरात बाल से भी ज़्यादा बारीक (महीन) और तलवार से ज़्यादा तेज और आग से ज़्यादा गर्म है ख़ालिस मोमिन (धर्मनिष्ठ) उस पर से बिजली की तरह तेज़ गुज़र जाएंगे। बाज़ लोग बड़ी मुश्किल के साथ गुज़रेंगे औऱ आख़िर में नजात पाएंगे और बाज़ लोग फ़िसल कर जहन्नुम में गिर पड़ेंगे। यह पुले सरात दुनियाँ के सराते मुस्तक़ीम का नमूना है , जो हज़रत अमुीरूल मोमनीन (अ 0स 0) औऱ आइम्मए ताहरीन (अ 0स 0) की अताअत और पैरवी है। जो शख़्स दुनियाँ में सराते मस्तक़ीम (अहले बैते रसूल) (स 0अ 0) से गुफ़तार व किरदार के ज़रिए उदूल करते हुए बातिल की तरफ़ मायल था , वह क़यामत के रोज़ बतौर सज़ा पुले सरात से फ़िसल कर जहन्नुम में गिर पड़ेगा। सूरए हम्द में सराते मुस्तक़ीम से दोनों की तरफ़ इशारा है। (अहले बैत का रास्ता और पुले सरात) अल्लामा मजलिसी (र 0) अपनी किताब हक्कुल यक़ीन में शेख़ सद्दूक़ (र 0) के हवाले से नक़्ल करते हैं , कि उन्होंने फ़रमाया कि रोज़े क़यामत के मुत्तालिक़ अक़ीदा और नज़रिया यह है कि हर उक़बा अपने नाम अलाहिदा एक फ़र्ज़ औऱ वाजिब रखता है जो अल्लाह के अवामिर व नवाही में से एक है। बस जो शख़्स क़यामत के रोज़ इस उक़बा में पहुंचेगा , जो इस वाजिब के नाम से मौसूम है। अगर उस शख़्स से इस वाजिब में तक़सीर वाक़ये हुई होगी , तो उसको उक़बा में हज़ार साल नज़र बन्द रखा जाएगा , फ़िर वह इस वाजिब को हक्के खुदा से तलब करेगा। अगर वह शख़्स अपने साबिक़ा नेक आमाल की बदौलत या खुदा की रहमत औऱ बख़शीश के सहारे नजात और छुटकारा पा लेगा तो फ़िर दूसरे उक़बा में पहुंचेगा।

इसी तरह एक के बाद दूसरे उक़बात पार करता रहेगा और हर अक़बा से उस मुत्तालिक़ा वाजिब के मुत्तालिक़ा सवाल होगा। बस अगर तमाम से सलामती के साथ पूरा उतरेगा तो वह आख़िरकार दारुल बक़ा में पहुंच जाएगा और इस जगह उसे एक ऐसी ज़िन्दगी नसीब होगी , जिसमें उसे कभी मौत न आएगी और इसमें बग़ैर मेहनत और तकलीफ़ के आराम और सुकून पाएगा और अलालहतआला के जवारे रहमत में अम्बिया सिद्दिक़ीन , हजजुल्लाह और बन्दगाने खुदा में सालहीन के साथ रहेगा , लेकिन अगर कोई शख़्स किसी उक़बा में उसके मुत्तालिक़ा वाजिब में कोताहि के बायस बन्द कर दिया गया तो उसको साबिक़ा नेकियां अगर अपने हक़ के ज़रिए नजात न दिला सकीं तो वह अल्लाह की रहमत से भी महरूम रहेगा और उसके पांव फ़िसलेंगे और जहन्नुम में गिर पड़ेगा।

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ 0स 0) से रवायत (कथन) की गयी है कि जब यह आएत नाज़िल की गयी।

“ यानी उस रोज़ जहन्नुम को लाया जाएगा ” इस आयत के मानी रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) से मालूम किया गया तो आपने फ़रमाया कि जिबरईल ने मुझे बतलाया है कि जब अल्लाहतआला अव्वल से लेकर आख़िर तक हर चीज़ को क़यामत के दिन इकट्ठा करेगा , तो एक लाख , फ़रिश्ते बड़ी तकलीफ़ औऱ मुसीबत के साथ हज़ार डोरियों के साथ जहन्नुम को लाएंगे और जहन्नुम के अन्दर बड़ा जोश-ख़रोश , तोड़ने-फो़ड़ने की सख़्त आवाज़ होगी बस उस वक़्त उससे एक ऐसी हौलनाक आवाज़ निकलेगी कि , जिस आवाज़ को अल्लाहतआला ने लोगों का हिसाब लेने के लिए रोक रखा है और तमाम हलाक हो जाएंगे। हर इन्सान फ़रिश्ता औऱ पैग़म्बर फ़रियाद कर रहे होंगे। रब्बे नफ़सी , नफ़सी यानी ऐ अल्लाह मुझे अपनी पनाह दे और हर पैग़म्बर अपनी उम्मत के बारे में दुआ करेगा रब्बे उम्मती उम्मती बस वह पैग़म्बर अपनी उम्मत को लेकर उश पुल पर गुज़ारेगा , जो उस पर रखा जाएगा। किसी को उस पर से गुज़रने के सिवा चारा न होगा। कुर्आन मजीद में हैः-

“ तुममें से ऐसा कोई भी नहीं जो जहन्नुम पर से होकर न गुज़रे (क्योंकि पुले सिरात इसी पर है) यह तुम्हारे परवरदिगार पर हतमी और लाज़मी (वादा) है , फिर हम परहेज़गारों को बचाएंगे और गुनाहगारों को घुटनों के बल उसमें छोडेंगे। ”

फ़िर फ़रमाया इस रास्ते पर सात उक़बात हैं , हर उक़बा के लिए मौकिफ़ है और हर मौक़िफ़ सत्तर हज़ार फ़रसख़ (फ़सल) का है और हर उक़बा पर सत्तर हज़ार फ़रिश्ते मामूर (मुक़र्रर) हैं तमाम लोग उन सातों उक़बात से गुज़रेंगे।

उक़बा अव्वल (पहला)

सिला रहमी , अमानत औऱ विलायत है

जिस शख़्स ने दुनिया में वाल्दैन (माता-पिता) से रहमत क़ता की होगी , वह दुनियां में कम उम्र होगा। उसके माल में बरकत न होगी और आख़िरत में उसे पुले सिरात पर पहले मौक़िफ़ पर रोक लिया जाएगा औऱ क़ता रहमी हायल होगी। कुर्आन में इसकी तबीह वारिद है-

“ और उस खुदा से डरो जिसके वसीले से आपस में एक दूसरे से सवाल करते हो और क़त रहम से भी डरो। ”

बस अगर तुम्हारा कोई रिश्तेदार बीमार हो तो उसकी अयादत करो। अगर मोहताज है तो उसकी दस्तगिरी करो। उसकी हाजतरवाई करो और ख़ास दिनों में जैसे ईद वग़ैरा में उससे मुलाक़ात करो।

दूसरा मौक़िफ़ अमानत है अलबत्ता अमानत माल के साथ हुी मुख़तस नहीं बल्कि अगर किसी ने यह कहा कि यह बात तेरे पास अमानत है किसी से न कहना। अगर उसने किसी शख़्स को बतला दी तो उसने ख़्यानत की (अलजालिसे बिल अमानत) अगर किसी को रुसवा किया तो उसके साथ ख़्यानत की। या अगर किसी ने तुम्हारे घर माल गिरवीं रखा और वायदे पर तुमने वापस न किया तो यह भी ख़्यानत है और यही इजारह का हाल है कि अगर मुद्दते इजारह ख़त्म होने के बाद उसको वापस न किया तो ख़्यानत है।

सक़तलुल इस्लाम हुसैन बिने सईद एहवाज़ी हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ 0स 0) से रवायत करते हैं कि एक शख़्स ने हज़रत अबुज़र (र 0) को खुशख़बरी दी की तेरे बेटे बहुत से गोसफ़न्द लाए हैं और तेरे माल में अब अज़ाफ़ा हो गया है , तो अबूज़र (र 0) ने कहा कि उनकी ज़्यादती मेरे लिए खुशी का बायस नहीं है और न ही मैं उसे अच्छा समझता हूँ क्योंकि मैं तो बक़द्रे कि़फ़ायत औऱ कम चीज़े को पसन्द करता हूं ताकि ज़्यादा की हिफ़ाज़त की फ़िक्र मुझे मशगूल न रखे और मैं ग़ाफ़िल (लापरवाह) न हो जाऊँ , क्योंकि मैंने पैग़म्बरे खुदा से सुन रखा है कि क़यामत के दिन पुले सिरात के दोनों तरफ़ रहम और अमानत होगी। जब सिला रहमी करने वाला और अमानतो का अदा करने वाला शख़्स पुल सिरात से गुज़रेगा तो उसे उनकी तरफ़ न गुज़ारा जाएगा ताकि वह आतिश (आग) में न गिर पड़े।

दूसरी रिवायत (कथन) में है कि अगर ख़्यानत करने वाला। क़त रहमी करने वाला गुज़रेगा तो उन दोनों ख़सलतों की मौजूदगी में कोई दूसरा अमले सालेह उसे फ़ायदा न देगा और पुल सिरात से जहन्नुम में गिर पड़ेगा।

विलायत

इसी उक़बा में तीसरा मौक़िफ़ विलायत है। उसी के बारे में सुन्नी , शिया की कितबों में बेशुमार रवायात मौजूद हैं कि विलायत से मुराद विलायते अली (अ 0स 0) है। तफ़सीर सालबी वग़ैरा में है आयत “ वाक़िफ हूँ हुम इन्नाहुम मसऊलून ” इनको ठहराव अभी इनसे कुछ पूछना है “ मसऊलूना अन विलायते अली इब्ने अबी तालिब ” उससे विलायते अली (अ 0स 0) के बारे में न पूछ लिया जाए कि दुनिया में दिल व ज़बान से अली वलीउल्लाह का इक़रार व एतक़ाद रखते थे या नहीं।

अल्लामा हमोयनी और तबरी जो कि दोनों अहले सुन्नत के अजल आलिमों में से है। रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से रवायत (कथन) करते हैं कि आप (स 0अ 0) ने फ़रमाया ऐ अली (अ 0स 0) जो शख़्स तेरी विलायत का मु्ंकिर (इन्कार) होगा वह सिरात से रद्द किया जाएगा और सवायक़े मोहरिक़ा में है कि जिसके पास विलायते अली (अ 0स 0) का पासपोर्ट होगा , वह गुज़र जाएगा। इस बारे में रवायत (कथन) बेशुमार हैं , जिनको ऐख़्तसार की वजह से ज़िक्र नहीं किया जा रहा है।

उक़बए दोम (दो)

नमाज़

इस उक़बा में नमाज़े वाजिब यौमिया व नमाज़े आयात व क़ज़ा के लिए ठहराया जाएगा , जिसके लिए पहले हिसाब के बाब में ज़िक्र गुज़र चुका है-

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) की आख़िरी वसीयत यह है-

“ जिसने नमाज़ को सबुक समझा उसको हमारी शफ़ाअत नसीब न होगी। ”

कुर्आन मजीद में इरशादे कुदरत है-

“ उन नमाज़ियों की तबाही है , जो अपनी नमाज़ से ग़ाफ़िल हैं और दिखावा करते हैं। ”

तारिके नमाज़ प्यासा मरता है , प्यासा क़ब्र से उठता है। तमाम लोगों को चाहिए कि वह खुद अमल करें और दूसरों को ताकीद करें। अपने बच्चों को बालिग होने से पहले आदी बनाए , क्योंकि उस अमल का फ़ल बच्चे के वाल्दैन को भी मिलेगा , जो बच्चा वालदैन की कोशिश से आमाल बजा लाता है। बालिग होने से पहले के आमाल का सवाब वाल्दैन को मिलता है। बालिग होने के बाद उनके अपने नामए आमाल में दर्ज होता है। एक पैग़म्बर अपने असहाब के साथ एक़ क़ब्र के पास से गुज़रे तो आपने फ़रमाया , जल्दी गुज़र जाओ , क्योंकि सहाबे क़ब्र पर अज़ाब हो रहा है। एक साल के बाद जब दोबारा गुज़र हुआ तो वहां अज़ाब ख़त्म हो चुका था। अर्ज़ किया परवरदिगार! क्या हुआ ? अब यह मैय्यत अज़ब मे नहीं है। निदा (आवाज़) आई। इस शख़्स का एक नाबालिग़ बच्चा था। उसको मक़तब में भेजा गया औऱ उस्तादने उसको बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम पढ़ाई। जिस वक़्त उसके बेटे ने मुझे रहमान व रहीम की सिफ़ात से याद किया तो मैंने उसके वाल्दैन से अज़ाब ख़त्म कर दिया क्योंकि वह बच्चे की ख़िलक़त के लिए वास्ता थे। मुझे हया आयी कि वह मुझे रहमान व रहीम की सिफ़ात से याद करे और मैं उसके वाल्दैन पर अज़ाब करूँ।

“ ऐ ईमान वालों! अपने नफ़सों को और अहलो अयाल को आग से बचाओ , जिसका ईँधन इन्सान और पत्थर हैं। ”

फ़िर उसके बाद अपने क़रीबी रिश्तेदारों को अमर बिल मारुफ़ और नहीं अनल मुन्किर के ज़रिए डराओ।

उक़बा सोम (तीसरा)

ज़कात

अगर किसी शख़्स ने एक दरहम के बराबर खुम्स या ज़कात मुस्तहक़ीन को अदा न की होगी तो उसको इस उक़बा में रोक लेंगे और मानउज़्ज़कात के बारे में रवायत (कथन) है कि हुज़ूर (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया उसकी गर्दन में “ अक़रा ” अज़दहा लिपटा हुआ होगा। (अक़रा उस अज़दहा को कहते हैं , जिसके बाल ज़हर की ज़्यादती की वजह से गिर गए हों) दूसरी रवायत में है कि जो शख्स खेती की ज़कात न देता होगा , उसकी गर्दन में उम ज़मीन के सातों तबक़ात का तौक़ होगा और इसी तरह वलीउल असर्र अज्जल्लाहो फ़राजह का जब ज़हूर होगा तो ज़कात अदा न करने वाले को क़त्ल कर देंगे और जो सोना , चांदी मसकूक का ज़ख़ीरा होगा तो क़यामत के रोज़ उन दरहम व दीनार को आग में सुर्ख़ करके उसकी पेशानी और पहलू को दागा जाएगा , जैसा कि कुर्आन मजीद में इऱशाद खुदा वन्दी है-

“ जिस दिन वह (सोना , चांदी) जहन्नुम की आग में गरम किया जाएगा , फ़िर उससे उनकी पेशानियां और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएंगी , (और उनसे कहा जाएगा) यह वह है जिसे तुमने (दुनियाँ) में जमा करके रखा था तो अपने जमा किए का मज़ा चखों। ”

ज़काते माल और ज़काते बदन (फ़ितरह) में कोई फ़र्क़ नहीं है। खु़म्स के बारे में अहकाम बहुत सख़्त हैं और बेशुमार रवायतें मौजूद हैं , सिर्फ़ एक रवायत जो काफ़ी वग़ैरह में हज़रत सादिक़ (अ 0स 0) से मर्वी है पर संतोष करता हूं। आपने फ़रमाया उस रोज़ सख़्त तरीन वक़्त वह होगा , जब कि मुस्तहक़ीन ख़ुम्स उस शख़्स के दामन को पकड़ कर अपने हक़ का मुतालिब करेंगे और उस मौक़िफ़ में उसे रोक लेंगे , जब तक कि वह शख़्स मुतालिबा को पूरा न कर देगा। ऐसे शख़्स के लिए किस क़द्र तक़लीफ़ देह वह हालात होंगे , जबकि शफ़ाअत करने वाले भी उसेस ख़ुम्स का मुतालिबा करेंगे और उसके ख़िलाफ़ होंगे।

उक़बए चहारुम (चार)

रोज़ा

चौथ उक़बा मे रोज़ा हायल होगा अगर उस फ़रीज़ा (कर्तव्य) को अदा करता रहा तो आसानी से गुज़र जाएगा। वरना रोक लिया जाएगा। “ अस्सौमो जुन्नतह ” रोज़ा आग के लिए ढ़ाल है। “ हुज़ूर (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया रोज़ादार के लिए दो खुशियां हैं , एक इफ़तार के वक़्त औऱ दूसरे इन्दा लक़ाइल्लाहे ” खुदा से मुलक़ात के वक़्त ” और वह पुल सिरात पर से आसानी के साथ गुज़र जाएगा और अल्लाह की बारगाह में पहुंच जाएगा।

उक़बा पंजुम (पांच)

हज

अगर किसी शख़्स के लिए उसकी उम्र में हज वाजिब हो जाय और तमाम शरायत भी पूरी हो जाएं और हज अदा न करे तो उसे इस मौकि़फ़ में रोक दिया जाएगा , बल्कि हदीस में है कि मौत के वक़्त उसे कहा जाता है-

तू यहदूी मर या नसरानी तेरा इस्लाम से कोई वास्ता नहीं।

कुर्आन मजीद में तारीके हज को काफ़िर (नास्तिक) कहा गया है-

“ और लोगों पर वाजिब है कि मेहज़ खुदा के लिए ख़ानए कआबा का हज करें , जिन्हें वहां तक पहुंचने की इस्तआत है। (कुदरत हो) औऱ जिसने बावजूद कुदरत हज से इन्कार किया तो याद रखो खुदा सारे जहां से बे परवाह है। ”

उक़बा शश्शुम (छः)

तहारत

हज़रत इब्ने अब्बास की रवायत के मुताबिक़ तहारत तीन हैं इससे मुराद वजु , गुस्ल और तयम्मुम हैं और बाज़ इससे मुराद मुतलक़ तहारत लेते हैं , अगर कोई शख़्स तहारत का लिहाज़ नहीं रखता , ख़ास तौर पर मर्द और औरतें जो जनाबत का गुस्ल मुकम्मल शरायत के साथ वक़्त पर अंजाम नहीं देते , उनको इस मौक़िफ़ पर रोका जाएगा। औरतों को चाहिए कि बाक़ी गुस्लों को भी अपने वक़्त पर अंजाम दें और गफ़लत से काम न लें , जैसा कि जुहला मे रवाज हो चुका है , बल्कि नजासात से परहेज़ न करने वाले को क़ब्र में भी फ़िशार होता है , जैसा कि इस बाब में रवायत (कथन) नक़ल की गयी है।

उक़बा हफ़तुम (सात)

मज़ालिम

इसको कभी उक़बा अदल के साथ और कभी हुकूकुन्नास के साथ ताबीर किया जाता है और कुर्आन मजीद में इसी उक़बा के बारे में कहा गया है-

“ बेशक तेरा रब तेरी घात में है। ” इसकी तफ़सीर में कहा गया है कि लोग पुल सिरात पर से इस तरह गुज़रेंगे कि बाज़ हाथों से पकड़ रहें होंगे। बाज़ का एक पांव फ़िसल रहा होगा और वह दूसरे पांव का सहारा लेते होंगे औऱ उन लोगों के इर्द गिर्द फ़रिश्तें खड़े होंगे। खुदावन्द तू बड़ा हलीम और बुर्दबार है। अपने फज़लों करम से इन्हें माफ़ फ़रमा और सलामती के साथ गुज़ार दे। उस वक़्त लोग चिमगादड़ों की तरह जहुन्नुम में गिर रहे होंगे , जो शख़्स अल्लाहतआला की रहमत के ज़रिए नजात पा गया। वह पुले सिरात से पार हो जाएगा और कहेगा अल्हम्दो लिल्लाह अल्लाहतआला ने अपनी नेमात को मेरे आमाले सालेह के ज़रिए पूरा किया औऱ इन नेकियों में इज़ाफ़ा फ़रमाया , मैं शुक्र अदा करता हूँ कि उसने अपने फ़ज़लों करम से मुझे नजात दी , जबकि मैं मायूस हो चुका था , इसमें शक नहीं की परवरदिगारे आलम अपने बन्दों के गुनाह माफ़ करने वाला है और नेक आमाल को सराहने वाला है।

अगर किसी ने किसी शख़्स को बेजा तकलीफ़ दी होगी तो वह पांच सौ साल तक उस मौक़िफ़ में बन्द रहेगा और उसकी हड्डिया गल जाएंगी।

जिसने किसी का माल खाया होगी , चालीस साल तक इसी जगह क़ैद रहेगा , फिर उसे जहन्नुम मे फ़ेंक दिया जाएगा। बाज़ रवायात मे है कि एक दरहम के मुक़ाबिले मे ज़ालिम की सात हज़ार रकअ़त मक़बूल नमाज़ें मज़लूम को दी जाएंगी और दूसरी तफ़सीलात (विवरण) फ़सल हिसाब में गुज़र चुकी हैं।

हिकायत

अल्लामा बहाउद्दीन सैय्यद अली बिन सैय्यद अब्दुल करीम नीली नजफ़ी जिनकी तारीफ़ जिस क़द्र हो कम है और जो फख़रुल मोहक़्क़ीन शेख़ शहीद के शागिर्द हैं अपनी किताब अनवारुल मज़िया के फ़ज़ायल अमीरुल मोमनीन में यह हिकायत अफने वालिद से नक़ल करते हैं कि उनके आबाई गांव नीला में एक आदमी रहता था जो वहां की मस्जिद का मुतवल्ली था। एक दिन वह घर से बाहर न निकला , जब उसे बाहर बुलाया गया तो उसने उज़्र ख़्वाही की। जब उसके उज़्र की तहक़ीक़ की गयी तो मालूम हुआ कि उसका बदन आग से जब गया। सिवाय रानों के जो ज़ानूओं तक महफूज़ हैं और वह दर्दों अलम की वजह से बेक़रार है। उससे जलने की वजह पूछा गया तो उसने कहा , मैंने ख़्वाब में देखा कि क़यामत बरपा है और लोग सख़्त तकलीफ़ में हैं , क्योंकि ज़्यादा लोग जहन्नुम की तरफ़ और बहुत थोड़े जन्नत की तरप़ जा रहे हैं और मैं उन लोगों में से था जिन्हें जन्नत की तरफ़ भेजा गया। ज्योंहि मैं बेहिश्त की तरफ़ जाने लगा तो मैं एक लम्बे चौड़े पुल की तरफ़ पहुंचा जिसे लोग पुल सिरात कहते थे। बस मैं उस पर से गुज़रने लगा , जिनता पार करता गया , उसका अर्ज़ कम और लम्बाई ज़्यादा होती गयी , यहां तक की मैं ऐसी जगह पर पहुंच गया , जहां से वह तलवार से ज़्यादा तेज़ थी और उसके नीचे एक अज़ीम वादी है , जिसमें सियाह (काली) आग है और आग से चिनगारियां पहाड़ों की तरह निकल रहीं थीं और बाज़ लोग बच निकलते थे और बाज़ लोग आग मे गिर जाते थे और मैं एक से दूसरी तरफ़ उस शख़्स की तरह मायल होता जिस की ख़्वाहिश यह हो कि जल्दी से अपने-अपने आप को पुल सिरात के आख़िर तक पहुँचाए और आख़िर में पुल की उस जगह पर पहुंचा , जहां मैं अपनी हिफ़ाज़त न कर सका और आचानक आग में गिर पड़ा , यहां तक की आग की इन्तेहाई गहराई में पहुंच गया। वहां आग की एक ऐसी वादी थी कि मेरा हाथ नीचे नहीं लगता था और आग मुझे नीचे से नीचे ले जा रही थी , मैंने इस्तेग़ासा न किया और मेरी अक़्ल मुझसे ख़त्म हो रही थी और सत्तर साल की राह के बराबर नीचे चला गया। बस मुझे इलहाम हुआ और मैंने या अली बिने अबी तालिब अग़िसनी या मौलाई या अमीरुल मोमनीन कहा तो वादी के किनारे एक शख़्स को खड़ा देखा। मेरे दिल में ख़्याल पैदा हुआ कि यही अली इब्ने अबी तालिब है। मैंने कहा ऐ मेरे आक़ा अमीरुल मोमनीन (अ 0स 0) तो आपने फ़रमाया , अपना हाथ इधर ला। बस मैंने अपना हाथ हज़रत अली (अ 0स 0) की तरफ़ किया। आपने मुझे खींच कर बाहर वादी के किनारे पर निकाल लिया। फ़िर आपने अपने मुबारक हाथों से इन दोनों रानों से आग को अलग किया और मैं ख़ौफ़ से बेदार हो गया और अपने आपको ऐसा पाया , जैसा अब तुम भी देख रहे हो , और मेरा बदन सिवाए उस जगह के जहां इमाम (अ 0स 0) ने हाथ फ़ेरा था , आतशज़दा है। बस उसने तीन माह तक मरहम पट्टी की , तब कीहं जाकर जली हुई जगह अच्छी हुई , इसके बाद जिससे भी इस हिकायत को नक़ल करता वह बुख़ार में मुबतिला हो जाता और बहुत कम महफूज़ रहते।

पुल सिरात से गुज़रने में आसानी पैदा

करने वाले चन्द आमाल

अव्वल (पहला)- सिला रहमी और अमानत के अलावा जो गुज़रा , सैय्यद इब्ने ताऊस किताबे इक़बाल में रवायत (कथन) करते है कि जो शख़्स माहे रजब की पहली रात मग़रिब की नमाज़ के बाद हम्द औऱ तौहीद के साथ बीस रकत नमाज़ व दो सलाम पढ़े तो वह शख़्स और उसके अहले आयाल अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रहेंगे और वह बग़ैर हिसाब के बिजली की तरह पहुल सिरात पर से गुज़र जाएगा।

दोम (दूसरा)- मर्वी है कि जो शख़्स माहे रजब में छः रोज़े रखे , वह रोज़े कयामत अमान में होगा और बग़ैर हिसाब के बिजली की तरपह पुल सिरात से गुज़र जाएगा।

सोम (तीसरा)- मर्वी है कि जो शख़्स 29 शाबान की शब को दस रकत नमाज़ बा दो सलाम इस तरह पढ़े कि हर रकत मे एक दफ़ा सूरए हम्द और दस दफ़ा अलहाकोमुत्तकासुरो दस मर्तबा माऊज़ , तीन और दस मर्बा सुरए तौहीद पढ़े तो हक़तआला उसे मुजदहदीन का सवाब अता करेगा और उसकी नेकियां वज़नी होंगी और हिसाब को उसके लिए आसान फ़रामएगा और वह पुल सिरात पर से बिजली की चमक की तरह गुज़र जाएगा।

चहारुम (चार)- फ़सले साबिक़ में गुज़र है कि जो शख़्स हज़रत इमाम रज़ा (अ 0स 0) की ज़ियारत दूर दराज़ से करेगा तो इमाम अलैहिस्सलाम तीन जगहों पर उसके पास तशरीफ़ लाएंगे और रोज़े क़यामत की हौलनाकियों से उसे नजात दिलाएंगे , जिनमें से एक पुल सिरात भी है।

फसल याज़दहुम (ग्यारह)

दोज़ख़

दोज़ख़ (नरक) वह वादी है , जिसकी तह का पता नहीं और उसकें गज़बे इलाही की आग भड़क रही है , जिसे उख़रवी क़ैदख़ाना कहा जा सकता है। उसमें तरह-तरह के सख़्त अज़ाब और बलाए हैं जो हमारी समझ से बालातर हैं। हक़ीक़तन यह जन्नत की जि़द हैं , क्योंकि उसमें तरह-तरह की न्यामतें , लज़्ज़तें औऱ आराम व सुकून हैं , लेकिन जहन्नुम में बे आरामी और सख़्ती मौजूद है। राहत और सुकून का नाम तक नहीं ।

हम इस जगह कुर्आन की रौशनी में उसूले अज़ाब का तज़किरा करते हैं मश्ते नमूना अज़ ख़रदारे।

जहन्नुमियों का तआम (खाना) और शराब

सूरए वाक़या में ख़ल्लाक़े आलम का इरशाद है-

“ फिर तुमको ऐ गुमराहों , क़यामत की तकज़ीब करने वालों , यक़ीनन तुम्हे जहन्नुम में थूहर के पेड़ों में से खुराक खाना होगी। ” यह वह पेड़ है जो जहन्नुम की तह से उगता है , इसके फ़ल इतने तल्ख़ (कड़वे) और बदनुमा हैं , गोया सांग के फ़न , जिनको हाथ लगाने से दिल ख़ौफ़ज़दा हो। यह जहन्नुमियों का खाना है।

“ पस वह इसी से खा-खाकर पेट भरेंगे , फ़िर उसके ऊपर खौलता हुआ पानी पीना होगा। ”

एक रवायत (कथन) में है कि ख़ल्लाक़े आलम दोज़खियों पर प्यास को मुसल्लत करेगा और काफ़ी देर के बाद उनको गरम पानी जो पीप में मिला हुआ होगा , पीने को दिया जाएगा और प्यास की वजह से ज़्यादा पी जाएंगे। दूसरी जगह इरशाद है-

मर्वी है कि अगर उस पानी में से एक क़तरा (बूंद) पहाड़ पर डाला जाए तो उसकी ख़ाक़ (मिट्टी) तक नज़र न आए फशारेबून शोरबलहीम वह इस गर्म पानी को इस तरह पिएंगे , जैसे मुद्दत का प्यासा ऊँट बड़े-बड़े घूंट भरता है (डगड़गा के) हीम अहीम की जमा (बहुवचन) है वह ऊँट जो दर्दे हयाम में मुबतिला हो। यह मर्ज़ इस्तेसक़ा से मिलता-जुलता है , जो ऊँटों को होती है और उसकी वजह से वह जिस क़द्र भी पानी पीता है , सेराब नहीं होता। यहं तक की हलाक हो जाता है , यही हाल जहन्नुमियों का होगा।

“ हाज़ा नुजुलहुम यौमद्दीन ” यह ज़कूम औऱ हमीम क़यामत के दिन उनके लिए पेशकश होगी। यानी इब्तेदाई और अज़ाब का मुक़द्दमा होगा , लेकिन जो कुछ उनके लिए जहन्नुम में तैयार किया गया है , वह इससे भी ज़्यादा सख़्त है , जो शरह व ब्यान के क़ाबिल नहीं है।

“ थूहर का दरख़्त ज़रुर गुनहगारों को खाना होगा (यानी कुफ़्फ़ार औऱ मुर्शकीन को खाने के लिए दिया जाएगा) और वह पिघले हुए तांबे की तरह पेटों में उबाल खाएगा , जैसा कि खौलता हुआ पानी उबाल खाता है। ”

और उससे अतड़ियां और ओझड़ियां गल जाएंगी , इसी पानी को उनके सिरों पर गिराया जाएगा , जिसकी वजह से उनका तमाम जिस्म गल जाएगा।

ऐसी हालत में उनसे अजाब कम नहीं किया जाएगा , जैसा कि कुर्आन मजीद मैं है-

“ न तो उनसे अज़ाब कम किया जाएगा और न ही उनको मोहलत दी जाएगी। ” और सूरए निसां में इरशादे कुदरत है-

“ जब उनकी खालें गल जाएंगी तो हम उनके लिए नयी खालें बदल कर पैदा कर देंगे , ताकि वह अच्छी तरह अज़ाब का मज़ा चखें ” सूरए मुज़म्मिल में इरशादे कुदरत है-

“ बेशक हमारे पास बेडियां भी हैं और जलाने वाली आग भी और गले में फ़ंसने वाला खाना (जो नीचे न उतरेगा) और दर्दनाक अज़ाब भी है। ”

जहन्नुम के खानों में से एक ग़िसलीन है , जैसा कि कुर्आन में है “ वलातआमुन इल्ला मन ग़िसलीना ” मजमअल बहरैन में है , दोज़खियों के पेटों से जो खाना बाहर निकलेगा , वही खाना उनको दुबारा दिया जाएगा। सूरए ग़ाशिया में इरशादे कुदरत है-

“ उन्हें एक खौलते हुए चश्में से पानी दिया जाएगा , उनको ख़ारदार झाड़ी जो हन्जुल से ज़्यादा कड़वी और मुरदार से ज़्यादा बदबूदार होगी , खाने को दी जाएगी जो न मोटा करेगी और ने भूख ख़त्म करेगी। ”

“ सूरए इब्राहिम में है किः-

“ इनको सदीद पिलाया जाएगा। ” यह वह ख़ून और गंदगी है , जो ज़िनाकार औरतों की शर्मगाह से ख़ारिज होगी। जहन्नुमियों को पानी के लिए दी जाएगी। सूरए नबा में है बाज़ मुफ़सरीन फ़रमाते हैं ग़स्साक़ , वह चश्मा (कुआ) है , जो दोज़ख में है , जिसमें ज़हरीले जानवरों की ज़हर घुल रही है , उसमें से पीने के लिए दिया जाएगा।

जहुन्नुमियों का लिबास (कपड़ा)

सूरए जह में ख़ल्लाके़ आलम का इरशाद है-

“ इनके लिए आग के कपड़े क़ता किए जाएंगे जो इन्हें पहनाए जाएंगे , औऱ इनके सरों पर खौलता हुआ बदबूदार पानी डाला जाएगा , जो इनके बतनों और खालों को गला देगा। ” सूरए इब्राहिम में इरशादे कुदरत है-

“ उनके लिबास क़तरान के होंगे और उनके चेहरों को आग से ढंका जाएगा। ”

क़तरान सियाह और बदबूदार चीज़ है , बाज़ उससे मुराद तारकोल लेते हैं। यह वह चीज़ें हैं जिनकी दुनियाँ की किसी चीज़ से तशबीह नहीं दी जा सकती।

मर्वी है कि अगर जहन्नुमियों के लिबास में से एक ज़मीन और आसमान के दर्मियान लटका दिया जाए तो तमाम अहले ज़मीन उन की बदबू और गर्मी की वजह से झुलस कर मर जाएंगे।

जहन्नुमियों की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ

कुर्आन मजीद में है-

“ गुनाहगार निशानियों से पहचाने जाएंगे (उनकी आंखें कबूदी और चेहरे स्याह होंगे। पस उनको पेशानी के बालों से पकड़ा जायगा और बाज़ पांव से गिरफ़्तार किये जायेंगे ” यानी बाज़ लोगों को पेशानी के बासों से गिरफ़्तार दोज़ख मे डाला जाएगा और बाज़ लोगों को पांव से आग के ज़रिए खींचा जाएगा।

आग जहन्नुमियों को देखकर जोश में आ जाएगी और वह उनको पकड़ने के लिए आगे बढ़ेगी।

“ इतने बड़े-बड़े अंगारे बरसते होंगे , जैसे बड़े बज़े महल गोया ज़र्द रंग के ऊँट हैं। ” इरशादे कुदरत है-

“ फञिर एक ज़ंजीर में जिसका तूल सत्तर गज़ का होगा , जकड़े जाएंगे। ”

एक और जगह सूरए मोमिन में इरशादे कुदरत है-

“ उनको भारी-भारी तौक़ और वज़नी ज़ंजीरों में जकड़ कर जहन्नुम में भड़कती हुई आग के अन्दर डाला जाएगा। ”

“ वह लोग जिन्होंने ख़ुदा के बारे में दरोग़गोई की (झूठ बोला) , उनके चेहरे स्याह होंगे , आग उनके चेहरों को जला कर बदशक्ल बना देगी , जैसा कि गोसफ़न्द की भुनी हुई बुरी दांत ज़ाहिर होंगे और होंठ लटक रहे होंगे। ”

जहन्नुमियों का बिस्तर

कुर्आन मजीद में इरशादे कुदरत है-

“ उनके लिए जहन्नुम की आग का बिछौना होगा और उनके ऊपर से आग ही का ओढ़ना होगा और हम ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं। ”

आग उनका तख़्त होगी , जिस पह वह बैठेंगे और आग ही को पियेंगे।

मुवक्कलीने जहन्नुम

सूरए तहरीम में ख़ल्लाक़े आलम का इरशाद है-

“ जहन्नुम पर तुरशरी और तुन्द मिज़ाज फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं , जो जहनुम्मियों पर ज़र्रा बराबर रहम नहीं करते और ख़ुदा के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते। ”

“ ख़ाजि़ने जहन्नुम के पास लोहे के गुर्ज़ हैं , जो जहन्नुमियों के सरों पर बरसाते हैं ”

जन्नती दोज़ख़ियों को आवाज़ देकर कहते हैं कि परवरदिगारे आलम ने जो कुछ हमारे साथ वायदा किया था , उसको पूरा कर दिया है और हमने अपने आमाल का सवाब हासिल कर लिया है , क्या तुमने भी वह चीज़ें मुकम्मल देख ली हैं , जिन तकालीफ़ का वादा परवरदिगारे आलम ने गुनहगारों के साथ किया था। उश वक़्त दोज़ख़ी आवाज़ देंगे , हां! हमने उस वादे को हक़ पाया। परवरदिगारे आलम की तरफ़ से एक निदा देने वाला निदा देगा कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की लानत है और सूरा अलमुतक़फ़्फ़ीन में है-

आज मोमिन (धर्मनिष्ठ) काफ़िरों (नास्तिकों) की हंसी उड़ाएंगे , जैसा कि यह लोग दुनियां में मोमनीन (धर्मनिष्ठ) का मज़ाक़ उड़ाया करते थे।

दोज़ख़ियों को शैतान की मुसाहिबत हासिल होगी , जैसा की जन्नती एक दूसरे के साथ एक दूसरे से मुलाक़ात करते हैं , और एक दूसरे से मिलकर लुत्फ़ उठाते हैं दोज़ख़ी एक दूसरे के दुश्मन हैं और एक दूसरे से नफ़रत करते हैं। परवरदिगारे आलम ने कुर्आन में इसका तज़किरा फ़रमाया है।

“ जो शख़्स परवरदिगारे आलम की याद से ग़ाफ़िल और अंधा है हम उशके लिए शैतान को उस पर मुसल्लत करेंगे , जो उस का साथी होगा जो उन्हें राहे हक़ से भटकाते थे और वह गुमान करते थे कि वह उनको हिदायत कर रहे हैं , जब हम उस शैतान को जहन्नुम में उसके साथ लाएंगे जो कि उसकी सज़ा की जगह है , तो उस वक़्त वह शख़्स कहेगा , काश! तेरे और मेरे दर्मियान मशरिख़ और मग़रिब के बराबर दूरी होती। तू मेरा कितना बुरा साथी है कि तेरे कुर्ब की वजह से मेरा अज़ाब और सख़्त हो गया और मुझे ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है। ”

मर्वी है कि दोनों एक ही ज़ंजीर में जकड़ कर दोज़ख में डाले जाएंगे , सूरए बकर में खल्लाक़े आलम का इरशाद है-

“ (कितना सख़्त वह वक़्त होगा) जब पेशवा लोग अपने पैरवों से पीछा छुड़ाएंगे और (बचश्म खुद) अज़ाब के देखेंगे और उनके बाहमी ताअल्लुक़ात टूट जाएंगे और पैरवो कहने लगेंगे कि अगर हमें फ़िर दुनियां में पलटने को मिले तो हम भी उन पर इसी तरह तबर्रा (अलग हो जाया) करें जिस तरह ऐन वक़्त पर यह लोग हमसे तबर्रा करने लगे हैं। ”

दोज़ख़ियों की एक दूसरे के साथ दुश्मनी के बारे में सूरए अनकबूत के अन्दर इरशादे कुदरत है-

“ फ़िर क़यामत के रोज़ तुममें से हर कोई एक दूसरे से बेज़ारी करेगा और एक दूसरे पर लानत करेगा। ”

सूरए जख़रफ़ में इरशाद होता है-

“ दोस्त उस दिन बाहम एक दूसरे के दुश्मन होंगे , सिवाय परहेज़गारों के। ” मर्वी है कि हर वह दोस्ती जो तक़र्रुबे खुदा की बिना पर न होगी तो वह आख़िरत मे दुश्मनी में तब्दील हो जाएगी। जब गुनाहगार अज़ाब से तंग आ जाएंगे और नाउम्मीद हो जाएंगे तो वह ख़ाज़िने जहन्नुम से कहेंगे जैसा कि सूरए जख़रफ़ में हैं-

“ ऐ मालिक (दरोग़ए जहन्नुम कोई तरकीब करो) कि तुम्हारा परवरदिगार हमें मौत ही देदे। वह जवाब देगा कि तुमको इसी हाल में रहना है। हम तो तुम्हारे पास हक़ लेकर आए हैं। अगर तुममें सो बहुतेरे हक़ बात से चिढ़ते हैं। ”

जहन्नुम के दरवाज़े

कुतबे मोतबरा अनवारे नामानियों औऱ बहारुल अनवार वग़ैरा में रवायत (कथऩ) है कि जिस वक़्त ज़िबरईले अमीन इस आयत मुबारिका को लेकर नाज़िल हुआ , तो जनाबे सरवरे क़ायनात ने फ़रमाया , ऐ भाई जिबरईल! मेरे लिए जहन्नुम के अवसाफ़ (गुण) ब्यान कर। जिबरईल ने ब्यान किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. ) जहन्नुम के सात दरवाज़े हैं। एक दरवाज़े से दूसरे दरवाज़े तक सत्तर साल की राह का फ़ासला है और हर दरवाज़े की गर्मी से सत्तर गुना ज़्यादा उसके अन्दर गर्मी है।

1- हवाया- मुनाफ़िकीन (विरोधी) और कुफ़्फ़ार (नास्तिकों) और फ़राअना के लिए है।

2- जहन्नुम व जहीम- यह मुश्रकीन की जगह है।

3- सक़र- यह साबियों का ठिकाना है।

4- लज्ज़ी- यह इब्लीस (शैतान) और उसके पैरोकारों और मजूसियों की जगह है।

5- हतमा- यह यहूदियों की जगह है।

6- सयीर- यह नसारा की जगह है।

7- जिस वक़्त जिबरईल सातवें पर पहुंचा तो ख़ामोश हो गया। हज़रत रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया ब्यान करो कि सातवां किन के लिए है अर्ज़ किया की यह आपकी उम्मत के मुतकब्बिरों के लिए है जो बग़ैर तौबा कर मर जाएंगे।

हज़रत ने सर ऊपर बलन्द फ़रमाया और ग़श तारी हो गया , जब होश में आए फ़रमाया। ऐ जिबरईल मेरी मुसीबत को दोबाला कर दिया। क्या मेरी उम्मत भी जहन्नुम में दाख़िल होगी ? औऱ रोने लगे जिबरईल भी आपके साथ रोने लगा। हुज़ूर ने कुछ दिन किसी से बात न की और जब नमाज़ शुरु फ़रमाते तो रोना शुरु कर देते। आप (स 0अ 0) के असहाब भी रोनो लगते और आप से रोने की वजह दरयाफ़्त करते , लेकिन किसी को रोने की वजह न मालूम हो सकी। जनाब अमीरुल मोमनीन (स 0अ 0) के दरवाज़े पर इकट्ठा हुए। मासूमा (स 0अ 0) चक्की पीस रहीं थीं और इस आयत की तिलावत फ़रमा रहीं थीं- “ वल आख़िरतो ख़ैरूँ व अबक़ा ” (और आख़िरत (की ज़िन्दगी) बेहतरीन और बाक़ी रहने वाली है।) बस उन्होंने जनाबे सैय्यदा के वालिदे बुर्ज़ुगवार रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व. ) के रोने की कैफ़ियत आप से ब्यान की। जिस वक़्त जनाबे सैय्यदा (स 0अ 0) ने क़िस्सा सुना। चादर ओढ़ी , जिसमें बाहर जगहों पर खजूर के पत्तों से टांके लगे हुए थे। आपने रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व. ) और असहाब की हालत देखकर रोना शुरू किया सलमान जो इन असहाब में मौजूद थे। जनाबे सैय्यदा (स 0अ 0) की उस पुरानी और फ़टी हुई चादर को देखकर मत्ताअजुब हुए और कहा-

“ हाय अफसोस! कैसरो कसरा की बेटियां तो सुनहरी कुर्सियों पर बैठी हैं , लेकिन रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. ) की बेटी के पास कपड़े नहीं है। ”

जब जनाबे सैय्यदा (स 0अ 0) अपने बाबा की ख़िदमते अक़दस में हाज़िर हुई , सलाम अर्ज़ किया और अर्ज़ किया बाबा। सलमान ने मेरी चादर देखकर ताअज्जुब किया है। मुझे उस ख़ुदा की क़सम जिसने आपको हक़ के साथ माबऊस किया। पांच साल से हमारे घर में सिर्फ़ एक बिछौना है। दिन में उस पर ऊँट को चारा डालते हैं और रात में हम उसको अपना बिछौना बनाते हैं और हमारे बच्चों के लिए खजूरों के पत्तों से भरा हुआ खाल का गद्दा है। बस हज़रत (स.अ.व.व. ) ने सलमान की तरफ़ रुख़ फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया-

जनाबे सैय्यदा (स 0अ 0) ने हुज़ूर को देखा कि शिद्दते गिरया की वजह से आपके चेहरे का रंग ज़र्द हो चुका था , और आपके रुख़सारों का गोश्त गल चुका था और ब रवायते काशफ़ी सजदे में रोने की वजह से ज़मीन आंसूओं से तर हो चुकी थी सिद्दीक़ए ताहिरा ने अर्ज़ किया कि मेरी जान आप पर कुर्बान हो। यह गिरया किस वजह से है ? आप (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया!ऐ फ़ातिमा! गिरया क्यों न करुं। जिबरईल जहन्नुम के औसाफ़ के मुत्तालिक़ आयत लेकर आया है और उसने बताया कि जहन्नुम का एक दरवाज़ा , जिसमें सत्तर हज़ार आग के शागाफ़ (छेद) हैं और हर शिगाफ़ में सत्तर हज़ार आग के ताबूत हैं और हर ताबूत में सत्तर हज़ार किस्म का अज़ाब है , ज्योंही जनाबे सैय्यदा ने यह अवसाफ़ जनाबे रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से सुने बेहोश होकर गिर पड़ीं , और यह कहा , जो इस आग में दाख़िल हुआ हलाक हुआ। जब होश में आयीं तो अर्ज़ किया कि ऐर बेहतरीन ख़लायक़! यह अज़ाब किनके लिए है ? आपने इरशाद फ़रमाया , जो ख़्वाहिशे नफ़स की पैरवी करते हुआ नमाज़ को ज़ाए (नष्ट) कर दें और फ़रमाया यह जहन्नुम का कमतरीन अज़ाब है।

बस हुज़ूर के सहाबा वहां से निकले और हर एक नौहा व फ़रियाद करता था , हाय सफ़र दूर है , और ज़ादे राह बहुत कम और कुछ लोग यह कह रहे थे कि काश मेरी वालिदा मुझे न जानती और मैं जहन्नुम का तज़किरा न सुनता और अम्मारे यासर कह रहे थे कि काश! मैं परिन्दा होता और मुझ पर हिसाब और अक़ाब न होता। बिलाल सलमान के पास हाज़िर हुए और पूछा क्या ख़बर है ? सलमान ने कहा तुझ पर औऱ मुझ पर वाय हो। मेरा और तेरा इस कतान के लिबास के बाद आग का लिबास होगा और हमें ज़क्कूम का खाना दिया जाएगा। (ख़ज़ीनतुल जवाहर)

जहन्नुम के अज़ाब की सख़्ती से मुत्तालिक़

चन्द रवायात (कथन)

1- बसन्दे मोत्तबर अबु बसीर से मनक़ूल है कि मैंने इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) की ख़िदमत में अर्ज़ किया कि या बिने रसूल अल्लाह (स 0अ 0)! आप मुझे अज़ाबे खुदा वन्दी से डराएं क्योंकि मेरा दिल बहुत सख़्त हो गया है। आपने फ़रमाया ऐ अबु मोहम्मद! तैयार हो जा , लम्बी ज़िन्दगी के वास्ते , जिसे आख़िरत की ज़िन्दगी कहते हैं , और जिसकी कोई इन्तेहा नहीं है , तू उस जि़न्दगी की फ़िक्र कर और तैयारी कर क्योंकि एक रोज़ जिबरईल हज़रत रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) की ख़िदमत में ग़मगीन और रंजीदा हाज़िर हुए , हालांकि इससे पहले वह खुशो-खुर्रम आया करते थे। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने उसे देखकर फ़रमाया! ऐ जिबरईल! तुझे क्या हो गया है कि आज तू ग़मगीन और नाराज़ दिखायी देता है तो जिबरईल ने अर्ज़ किया कि वह धौंकनी जो जहन्नुम के आग को भड़काने के लिए धोंकी जाती थी आज उसे हटा कर रख दिया गया है। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) फ़रमाने लगे कि जहन्नुम की धौंकनी क्या है ? जिबरईल ने अर्ज़ किया या मोहम्मद (स.अ.व.व. ) अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ हज़ार साल तक इस धौंकनी के साथ जहन्नुम की आग को हवा दी गयी। यहां तक की सफ़ेद हो गयी। फ़िर हज़ार साल तक उसे फूंका गया। यहां तक की वह स्याह (काली) हो गयी और अब वह बिल्कुल स्याह और तारीक है , अगर एक क़तरा ज़रीह (जो जहन्नुमियों के पसीना और ज़िनाकारों की फुरूज की आलाइश है , जिसको जहन्नुम की आग से बड़ी-बड़ी डेगों में पकाया और जोश दिया गया और जहन्नुमियों को पानी के बदले दिया जाता है) का इस दुनियाँ के समुन्द्रों में डाला जाय , तो यह तमाम दुनियाँ इस एक क़तरे की ग़न्दगी से ख़त्म हो जाय और अगर सत्तर गज़ लम्बी ज़ंजीर जो जहन्नुमियों के गले में डाली जाती है का एक हल्क़ा इस दुनियाँ पर रख दिया जाये तो इस हल्क़े की गर्मी से यह तमाम दुनियाँ पिघल जाए और अगर दोज़खियों के कुर्तों में से एक कुर्ता ज़मीन व आसमान के दर्मियान लटका दिया जाए तो यह तमाम दुनियाँ इस क़नीज़ से निकलने वाली बदबू से हलाक हो जाएगी। जब जिबरईल ने यह ब्यान किया तो जिबरईल और रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) दोनों ने गरिया किया। बस हक़तआला ने यह देखकर एक फ़रिश्ता आपके पास भेजा। इस फ़रिश्ते ने कहा कि अल्ललाहतआला बाद तोहफ़ए दुरुदो सलाम के फ़रमाता है कि मैंने आप को इस अज़ाब से महफूज़ रखा है। इसके बाद जब भी जिबरईल आप के पास हाजि़र होते खुश व खुर्रम आते।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) फ़रमाते हैं कि उस दिन अहले जहन्नुम आतिशे जहन्नुम और अज़ाबे इलाही की अज़मत को जान लेंगे और अहले बेहश्त उसकी अज़मत और न्यामतों को जान लेंगे। जब अहले जहन्नुम को जहन्नुम में दाख़िल किया जाएगा , तो वह सत्तर साल की कोशिश के बाद कहीं दोबारा जहन्नुम के किनारे पहुंचेगे तो फ़रिश्ते लोहे की गुर्ज़ उनके सिरों पर मारेंगे। यहां तक की वह जहन्नुम की तह में पहुंच जाएंगे और उनके बदन की ख़ाल फ़िर नयी हो जाएगी ताकि अज़ाब उन पर ज़्यादा असर अन्दाज़ हो। फिर आपने अबु बसीर से फ़रमाया क्या अब तेरे लिए काफ़ी है , तो उसने अर्ज़ किया , बस अब मुझे काफ़ी है।

2- एख हदीस में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मनकूल (उद्धृत) है कि हज़रत रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया कि जब मैं शबे मेराज आसमाने अव्वल पहुंचा तो मैंने जिस फ़रिश्ते को भी देखा वह खुशो-खुर्रम नज़र आया। मगर एक फ़रिश्ता ऐसा देखा कि मैंने उससे अज़ीमतर फ़रिश्ता कोई न देखा था , उसकी शक्ल से बैबत और गैज़ो ग़ज़ब के आसार ज़ाहिर थे उसने दैसरे फ़रिश्तों की तरह मेरी ताज़ीम व तकरीम की , लेकिन वह फ़रिश्ता मुझे देखकर दूसरे फरिश्तों की तरह न मुस्कुराया और न ही हंसा। मैंने जिबरईल से पूछा यह फ़रिश्ता कौन है ? कि मैं उसे देखकर सख़्त खौफ़ज़दा हूं। जिबरईल ने अर्ज़ किया सचमुच आपको इससे डरना चाहिए क्योंकि हम भी इसे देखकर डरते हैं। यह फ़रिश्ता ख़ाज़िने (खंजांची) जहन्नुम है। जिस दिन से अल्लाहतआला ने उसे ख़ाज़िने जहन्नुम बनाया है। अब तक यह मुसलसल अल्लाहतआला के दुश्मनों के ख़िलाफ़ ज़्यादा ग़ज़बनाक और रंजीदा हो रहा है और जिस वक़्त अल्लाहतआला इस फ़रिश्ते को अपने दुश्मनों से इन्तिक़ाम लेने का हुक्म देगा तो यह बड़ी सख़्ती के साथ उनसे इन्तिक़ाम लेगा। अगर उसने किसी से हंस कर मुलाक़ात की होती तो आज यह ज़रुर आपके साथ भी हंस कर मुलाक़ात करता और ख़ुशी व मसर्रत का इज़हार करता। बस मैंने उस फ़रिश्ते को सलाम कहा औऱ उसने मेरे सलाम का जवाब दिया और मुझे जन्नत की ख़ुशख़बरी दी। बस मैंने जिबरईल से कहा कि उन की शानो शौकत और रोबो दबदबा की वजह से जो कि आसमानों में है तमाम अहले समावात इसकी अताअत करते हैं। ऐ जिबरईल! उस ख़ाज़िने जहन्नुम से अर्ज़ करो कि वह मुझे दोज़ख़ दिखा। बस ख़ाज़िने जहन्नुम ने पर्दा हटाया और जहन्नुम के दरवाज़ों में से एक दरवाज़े को खोला तो आग के शोले आसमान की तरफ़ बलन्द हुए और तमाम आसमान पर छा गए और भड़कने लगे और वहशत तारी हो गयी। बस मैंने जिबरईल से कहा कि ख़ाजिन से कहो कि वह दोबारा पर्दा डाल दे। बस खजि़न ने उन शोलों को जो कि आसमान की तरफ़ बुलन्द हुए थे , वापस अपनी जगह पर लौटने को कहा तो वह दोबारा वापस लौट आए।

3- बासन्दे मोअ़तबर हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ 0स 0) से मनकूल है कि अल्लाहतआला ने कोई शख़्स ऐसा पैदा नहीं किया कि उसका एक ठिकाना जन्नत और एक दोज़ख में न हो। जब अहले जन्नत , जन्नत में और अहले दोज़ख , जहन्नुम में पहुंच जाएंगे तो उस वक़्त मुनादी अहले जन्नत से पुकार कर कहेगा कि जहन्नुम की तरफञ देखो बस वह उसे देखेंगे। उन्हे जहन्नुम के अन्दर अपना वह मुक़ान नज़र आएगा कि अगर वह गुनहगार होते तो यह उनकी मंजिल होती। बस वह उसे देखकर इतने खुश होंगे कि अगर बेहश्त में मौत होती तो वह खुशी से मर जाते और यह खुशी इस वजह से होगी की अलहम्दो लिल्लाह व शुकरन लिल्लाह , इसने हमें दोज़ख़ से नजात दी। इशी तरह अहले जहन्नुम से कहा जाएगा की ऊपर नज़रें उठा कर देखो। यह तुम्हारी जन्नत के अन्दर मंजि़ल है। अगर तुम अल्लाह की अताअत और फ़रमाबरदारी करते तो तुम इस मुक़ाम पर होते। बस वह ग़म की वजह से इस क़्द्र निढ़ाल हो जाएंगे कि अगर दोज़ख़ में मौत होती तो वह ग़म के मार मर जाते। इसलिए दोज़खियों के बेहिश्त वाले मुक़ामात जन्नतियों को दे दिए जाएंगे। यहीं इस आयत (सूत्र) की तफ़सीर हैं , जिसमें अहले बेहश्त की शान में कहा गया है कि यही उनके वारिस हैं , जोकि बेहश्त को बतौर मीरास हासिल करेंगे और वह उसमें हमेशा रहेंगे।

4- आं हज़रत (स.अ.व.व. ) से मर्वी है कि जब जन्नती जन्नत और दोज़खी दोज़ख़ में दाख़िल होंगे तो उस वक़्त अल्लाहतआला की तरफ़ से एक मुनादी निदा (आवाज़) देगा कि “ ऐ अहले जन्नत व अहले दोज़ख! अगर मौत किसी शक्ल में तुम्हारे सामने आए तो क्या तुम उसको पहचान लोगे ?” वह कहेगा हम नहीं पहचान सकते। बस मौत को जन्नत और दोज़ख़ के दर्मियान गोसफ़्नद की शक्ल में लाया जाएगा और उन तमाम लोगों से कहा जाएगा कि देखो यह मौत है। बस उस वक़्त अल्लाहतआला उसके ज़िबह कर देगा और अहले जन्नत से मुख़ातिब होकर कहेगा कि अब तुम हमेशा लिए जन्नत में रहोगे और तुम पर मौत वाक़य नहीं होगी। फ़िर अहले दोज़ख़ से मुख़ातिब होकर फ़रमाएगा कि तुम हमेशा जहन्नुम में रहोगे और तुम पर भी मौत वाक़य नहीं होगी और अल्लाहताला का वह फ़रमान जो कि उसने अपने बन्दों से इरशाद फ़रमाया है- “ वा अनज़रहुम यौमल हसरते इज़ कुज़ियल अमरे ” (सूरए मरयम आएत- 39) ऐ रसूल (स 0अ 0स) आप इन लोगों को उस हसरत वाले दिन से डराएं , जबकि हर शख़्स के काम का आख़िरी फ़ैसला हो जाएगा और यह लोग उस दिन से ग़ाफ़िल और सुस्त हैं। ” अल्लाहतआला अहले बेहिश्त और अहले दोज़ख़ को हुक्म देगा कि तुम हमेशा-हमेशा के लिए अपनी-अपनी जगहों पर रहो और उनके लिए कभी मौत नहीं होगी और उस दिन अहले जहन्नुम हसरत और अफ़सोस करेंगे और उनकी तमाम उम्मीदें ख़त्म हो जाएंगी।

5- हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ 0स 0) से मर्वी है। आपने फ़रमाया , कि गुनहगारों के लिए आग के दर्मियान नक़ब लगायी गयी है। उनके पांव में ज़ंज़ीर (कपड़े) तांबे के होंगे और जुब्बे आग के पहनाए जाएंगे औऱ वह सख़्त अज़ाब में मुबतिला होंगे , जिसमें सख़्त गर्मी होगी और उन पर जहन्नुम के दरवाज़े बन्द कर दिए जाएंगे और इन दरवाज़ों को हरगिज़ नहीं खोला जाएगा और उन पर कभी बादे नसीम दाख़िल न होगी और न ही उनका रंजो ग़म दूर होगा। उनका अज़ाब शदीदतर और ताज़ा होता रहेगा। न उनका घर ख़त्म होगा और न ही उम्र ख़त्म होगी , और वह अल्लाहतआला से अपनी मौत की ख़्वाहिश करेंगे और अल्लाहतआला उनके जवाब में इरशाद फ़रमाएगा कि तुम हमेशा के लिए इस अज़ाब में रहो।

6- बसन्दे मोअ़तबर हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मर्वी है कि जहन्नुम के अन्दर एक कुआं है , जिससे अहले जहन्नुम इस्तेफ़ादा करेंगे और यह जगह हर मुतकब्बिर और मग़रुर (घमण्डी) के लिए मख़सूस होगी और हर शैतान मुतमर्रिद के लिए और उस मुतकब्बिर के लिए जो कि रोज़े क़यामत पर ईमान रखता था , और हर दुश्मने अहले बैत के लिए होगा और आपने फ़रमाया जिस शख़्स का अज़ाब कमतरीन (छोटा) होगा , वह आग के समन्दर में होगा और उसके जूते आग के और बन्दे नालैन भी आग के होंगे , जिसकी गर्मी की शिद्दत की वजह से उसके दिमाग़ का मग़ज़ देग़ की तरह जोश खाने लगेगा। वह गुमान (शक) करेगा कि तमाम अहले जहन्नुम से बदतरीन अज़ाब उसका है। हालांकि उसका अज़ाब तमाम अहले जहन्नुम से आसान तर होगा।

फसल दोवाज़ दाहुम (बारह)

जन्न (स्वर्ग)

जन्नत के लुग़वी माने (शाब्दिक अर्थ) दरख़्तों से हरा भरा बाग़ है। ज़मीन पर हो या आसमान पर (मुंजिद)। इस्तेलाहे शरीयत में वह जगह , जो परवरदिगारे आलम नें आख़िरत में मोमनीन (धर्मनिष्ठों) और नेक लोगों के लिए बनायी है , जिसमें वह हमेशा रहेंगे। सिफ़ात अलशिया में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मर्वी है कि , आप (स 0अ 0) ने फ़रमाया-

“ जो शख़्स चार चीज़ों का इन्कार करे , वह हमारे शिया में से नहीं है। ( 1) मेराजे जिस्मानी ( 2) क़ब्र में सवाल व जवाब का होना। ( 3) जन्नत व जहन्नुम का मख़लूक़ होना ( 4) शफ़ाअत। ”

कुर्आन मजीद की आयत वाज़ेह (स्पष्ट) तौर पर जन्नत व दोजख़ के मख़लूक़ होने पर दाल है-

जैसे ओहद्दतलिल मुत्तकत़ीना। “ जन्नत मुत्ताक़ियों के लिए मोहय्या की गयी है। ” उज़ लिफ़तिल जन्नतो लिल मुत्तक़ीना “ जन्नत की तफ़सील का समझना इस दुनियाँ वालों के लिए मुहाल है। ” बस इजमाली अक़ीदा रखना चाहिए और बारीकियों में जाने की ज़रुरत नहीं की वह कहां है ? कैसी है ? उसकी मिसाल ऐसी है जैसा कि रहमेमादर (मां के पेट में) में बच्चे के लिए इस दुनियाँ की इत्तिला , कुर्आन मजीद में है-

“ उन लोगों की कार गुज़ारियों के बदले में कैसी-कैसी आंखों की ठंडक उनके लिए ढकी छुपी रखी है , उसको तो कोई शख़्स जानता ही नहीं। कुर्आन मजीद में जन्नत की न्यामतों के मुत्तअलिक़ इरशाद है- ”

“ जन्नतियों के लिए हर वह चीज़ वहां मौजूद होगी , जिसकी वह ख़्वाहिश करेंगे , और हमारे पास इससे ज़्यादा हैं। ” दूसरी जगह इरशाद फ़रमायाः-

“ जन्नती लोगों को जिस चीज़ की ख़्वाहिश होगी , उनके पास हमेशा होगी। ”

मुख़्तसर यह है कि जन्नत वह जगह है , जहां नाकामी और तकलीफ़ नहीं है। कमज़ोरी , मर्ज़ और बुढ़ापा नहीं है। सुस्ती और बेआरामी का वजूद नहीं है। वहां हर हैसियत से मुतलक़न सलामती और सुकून है , इसी वजह से इसका दूसरा नाम दारुस्सलाम है।

जन्नतियों की सल्तनत (राज्य)

जन्नत उनकी हक़ीक़ी सल्तनत है जिस पर उनको पूरी कुदरत और एख़्तियार होगा और जो कुछ वह चाहेंगे हो जाएगा नाफ़रमानी न होगी “ इन्ना अहलल जन्नते मुलूकन ” बेशक जन्नती लोग दर हकीक़त बादशाह हैं , सूरए दहर में इरशाद कुदरत है-

“ और जब तुम वहां निगाह उठाओगे तो हर तरह की न्यामतें और अज़ीमुश्शान सल्तनत पाओगे। ”

बाज़ रवायात (कथन) में है कि अदना (साधारण) बेहश्ती जब अपनी जन्नत की मिलकियत को देखेगा तो वह हज़ार वर्ष की राह के मुताबिक़ पाऐगा , जिसमें मलायका भी उस मोमीन की इजाज़त के बग़ैर न जा सकेंगे।

जन्नत का तूलो अर्ज़ (क्शेत्रफल)

जन्नत की चौड़ाई ज़मीन व आसमान के अन्दाज़े के बराबर है। मनकूल है कि जिबरईल ने एक दिन इरादा किया कि जन्नत का तूल (दूरी) मालूम करें। तीस हज़ार साल उड़ा आखि़र थक गया और अल्लाहतआला से मदद मांगी और कुव्वत (शक्ति) तलब की। तीस हज़ार बार और हर बार तीस हज़ार उड़ा आख़िर थक गया। बस मुनाजात की कि ख़ुदा वन्दा ज़्यादा तै किया है या ज़्यादा बाक़ी है। एक हूर हुराने बेहश्त में से एक ख़ेमा से बाहर निकली और आवाज़ देकर कहा , ऐ रुहुल्लाह! किस लिए इतनी तकलीफ़ उठाता है। अभी तो सिर्फ़ इतना उड़ा है कि मेरे सहेन से बाहर नहीं निकला। जिबरईल ने पूछा तू कौन है ? उसने कहा मैं एख हूर हूँ जो एक-एक मोमिन (धर्मनिष्ठ) के लिए पैदा की गयी हूं। (सूरए हदीद , तफसीर उम्दतुल ब्यान-)

जन्नतियों के खाने

जन्नती लोगों के लिए हर वह खाना मौजूद होगा , जिसकी वह ख़्वाहिश करेंगे। कुर्आन मजीद में इरशादे कुदरत है-

“ और हर किस्म का मेवा जन्नत में मौजूद होगा और हर मौसम में होगा , कोई रोकने वाला न होगा , जिस मौसम में जो मेवा चाहे खा ले। ” एक जगह इरशादे कुदरत है-

“ और जिस मेवा को चाहेंगे खायेंगे और जिस परिन्दे के गोश्त की ख़्वाहिश करेंगे हर क़िस्म का गोश्त मौजूद होगा। (भुना हुया या जोश हुआ)। ”

अबु सईद ख़दरी ने रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से रवायत की है कि आपने फ़रमाया , बेहश्त में परिन्दे उड़ते फ़िरते हैं और हर परिन्दे के सत्तर हज़ार पर हैं। जिस वक़्त मोमिन खाने का इरादा करेगा तो उनमें से एक परिन्दा उसके दस्तरख़्वान पर आ बैठेगा और अपने पैरों को झाड़ेगा। हर पर से एक खाना निकलेगा , जो बर्फ़ से ज़्यादा सफ़ेद , शहद से ज़्यादा लज़ीज़ , मुश्क से ज़्यादा खुशबूदार , जो दूसरे खानों के मुशाबे न होगा , उसके बाद परिन्दा उड़ जाएगा।

“ जन्नत में फ़ल , खजूरें और अनार होंगे। एक और जगह इरशाद फ़रमाया-

“ बग़ैर कांटे की बेरियां और गुथे हुए केले और लम्बी-लम्बी छांव होगी। “ अंगूरों के बाग होंगे। ”

जन्नत के मशरुबात (पेय जल)

इरशाद कुदरत है-

“ इसमें पानी की नहरें जिनमें ज़रा भी बू नहीं और दूध की नहरें , जिनका मज़ा बदला नहीं , और शराब की नहरें जो पीने वालों को लज्ज़त देती हैं और साफ़ व शफ्फ़ाफ़ शहद की नहरें जारी हैं। ” एक और जगह इरशा कुदरत है-

“ उनको मुहर बन्द ख़ालिस शराब पिलायी जाएगी , जिसमें महरे मुश्क होंगी , और उसकी तरफ़ शायक़ीन को रग़बत करनी चाहिए और उसमें तसनीम की आमेजि़श होगी। वह एक चश्मा है , जिससे मुक़र्रबीन पीयेंगे। ” सूरए दहर में इरशादे कुदरत है-

“ वहां इनको एक ऐसी शराब पिलायी जाएगी , जिसमें ज़ंजबील की आमेज़िश होगी , यह एक जन्नत में चश्मा है जिसका नाम सलसबील है। ” दूसरी जगह इरशादे कुदरत है-

“ वहां शराब के साग़र पीएंगे , जिसमें काफूर की आमेज़िश होगी। ”

जन्नत के अन्दर यह मुख़तलिफ़ क़िस्म के चश्में है , जिनकी लज़्ज़त (स्वाद) और ख़ासियत (विशेषता) दूसरे से जुदा है , जिनकी मुनासिबत की वजह से इसका नाम रखा गया है और वह तमाम चश्में कौसर से अहम तरीन हैं जो कि अर्श के नीचे से जारी है , इनकी ज़मीन घी से ज़्यादा नर्म और कंकरियां , ज़बरजद , याकूत व मरजान हैं और घास , ज़ाफ़रान और मिट्टी मुश्क से ज़्यादा खुशबूदार और बेहश्त में नहर की सूरत में जारी है , और अर्सए महशर में हौज़ के नाम से मौसूम है।

जन्नतियों का लिबास (कपड़ा)

और ज़ेवरात (आभूषण)

सूरए कहफ़ में ख़ल्लाक़े आलम का इरशाद है-

“ जन्नत में दमकते हुए सोने के कंगन से संवारे जाएंगे और उन्हें बारीक रेशम (करेब) और मोटे रेशम (बाफ़त) और अतलस की पोशाकें पहनायी जाएंगी। ” एक और जगह सूरतुल हज में इरशादे कुदरत है-

“ वहां सोने के कंगन और मोतियों के हार और रेशम का लिबास होगा। ”

हज़रत रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) से मर्वी है कि जिस वक़्त मोमिन (धर्मनिष्ठ) जन्नत के अन्दर अपने महल में दाख़िल होगा , उसके सिर पर करामत का ताज होगा। सत्तर बेहश्ती हुलले जो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जवाहरात और मोतियों से मुरस्सा होंगे , पहनाए जाएंगे। अगर उनमें से एक लिबास को इस आलमे दुनियां के लिए फ़ैलाया जाए तो देख न सकें।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मर्वी है कि ख़ल्लाक़े आलम हर जुमा को मोमिनों के लिए जन्नत में एक फ़रिश्ते को हुल्लए जन्नती (जन्नत का लिबास) बतौरे ख़िलअत करामत फ़रमाता है। बम मोमिन उनमें से एक को कमर के साथ बांधता है औऱ दूसरे को कांधे पर रखकर जिस तरफ से गुज़रता है , उस हुल्ले के नूर से गिर्द व नवाह रौशन हो जाते हैं।

जन्नत के महलात और उनका मसलिहा

कुर्आन मजीद में ख़ल्लाक़े आलम का इरशाद है-

“ और परवरदिगारे आलम तुम्हें ऐसे बाग़ात में दाख़िल करेगा , जिनमें नहरें जारी हैं और महलात पाको पाकीज़ा है , जिनमें तुम हमेशा रहोगे और यह बहुत बड़ी कामयाबी है। ”

मसाकिने तैय्यबा की तफ़सीर में रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) से मर्वी है कि आपने फ़रमाया जन्नत में मोतियों से बना हुआ एक महल है , जिसमें सत्तर घर याकूते सुर्ख़ के हैं और हर घर में सत्तर कमरे सब्ज़ ज़र्मरुद के और हर कमरे में सत्तर तख़्त हैं और हर तख़्त पर रंगा रंग के सत्तर फ़र्श और हर फ़र्श पर एक हुरूल एैन बैठी है और हर कमरे में सत्तर दस्तरख़्वान हैं और हर दस्तरख़्वान पर सत्तर क़िस्म का खाना है और हर कमरे में एक गुलाम और कनीज़ हैं। खुदा मोमिन को इस क़द्र ताक़त देगा कि सब औरतों से ख़लवत करे और सब खाना खाने कि ताक़त देगा यह आख़िरत में बड़ी न्यामत है। सूरए ज़मर में इरशाद कुदरत है-

“ उनके लिए ऊंचे-ऊंचे महल और बाला ख़ाने होंगे , जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। ”

“ मिन फ़ौक़हा गोरफुन ” की तफ़सीर में इमाम मोहम्मद बाक़र (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया कि हज़रत अली (अ 0स 0) ने रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से इसकी तफ़सीर पूछी कि यह बाला ख़ाने किस चीज़ से बने हुए हैं। फ़रमाया ऐ अली! अल्लाहतआला ने इन बाला ख़ानों की दीवारें मोती , याकीत और ज़बरजद से तैयार की हैं। इनकी छत सोने की है , जो चांदी के तारों से आरास्ता हैं। हर बाला ख़ाने के हज़ार दरवाज़े हैं और दरवाज़े पर एक हज़ार फ़रिश्ते हैं और इनमें बड़े-बड़े बलन्द और नर्म रेशमी फ़र्श , रंगा-रंग के बिछे हुए हैं , जिनमें मुश्क़ अम्बर और काफूर भरा हुआ है।

जन्नत के कमरों का सामाने ज़ीनत

कुर्आन मजीद में इरशादे कुदरत है-

“ वह जन्नती तख़्तों पर बैठे हुए तकया लगाए हुए होंगे और यह उसकी नेकी की जज़ा और सवाब है। ” सूरए ग़ासिया में है-

“ उनमें ऊँचे-ऊँचे तख़्त होंगे और उनके किनारे गिलास रखें होंगे , गाव तकिए क़तारों में रखे और मसनदे बिछी होंगी। ” सूरए वाक़या में ख़ल्लाक़े आलम का इरशाद है।

“ वह तख़्तों पर बैठे होंगे , औऱ यह तख़्त तीन सौ हाथ ऊँचा है , जिस वक्त उस पर बैठना जाहेंगे वह नीचा हो जाएगा , वह उन पर तकिया लगाए हुए बैठे होंगे , सूरए रहमान में इरशादे कुदरत है- ”

“ वह ऐसे फ़रशों पर बैठे होंगे , जिनके अन्दर अतलस होगा और उनके ऊपर अबहर होंगे जिनकी हक़ीक़त का खु़दा को इल्म है , इस्तबरक़ , ज़फञज़पफ , नमारक और ज़राबी की हकी़क़त देखने से मालूम होती है समझाने के लिए वुसअत कहां ?”

जन्नत के बर्तन

“ उनके सामने चांदी के साग़र और शीशे के नेहायत साफ़ गिलासों में दौर चल रहा होगा और उनका शीशा कांच का नहीं बल्कि चांदी के होंगे , जो ठीक अन्दाज़े के मुताबिक़ बनाए गंए हैं , उनमें सफ़ेदी चांदी की और सफ़ाई शीशे की होगी। ”

“ जन्नतियों के लिए ऐसे लडक़े जिनके कानों में गोशवारे लटक रहे होंगे , आबख़ोरे और अबरीक़ और प्याले जो मुख़तलिफ़ क़िस्म के जवाहरात और सोने-चांदी के बने हुए होंगे , लेकर शराबे तहूर का दौर चलाएंगे। ”

जन्नती (अपसराएं) और औरतें (स्त्रियाँ)

चूंकि जन्नत में सबसे बड़ी न्याम जिस्मानी हूरें हैं , इसलिए कुर्आन मजीद में इनका ज़िक्र भी ज़यादा है। उनको इस नाम से याद करने की इल्लत और वजह .यह है कि हूर के माने है गोरे रंग वाली और ऐन के मानी हैं बड़ी और काली आंख , क्योंकि उनकी आंख की स्याही निहायत सियाह (काली) और सफ़ेदी निहायत सफ़ेद। सुरए वाक़या में इरशाद कुदरत है-

“ हूराने जन्नत मिस्ल मोती के जो कि सदफ़ में पोशीदा और (गर्द व गुबार से साफ़ जोकि लोगों के हाथ न लगे) महफूज़ हैं। ”

सूरए रहमान के अन्दर इरशादे कुदरत है-

“ इनमें पाकदामन ग़ैर की तरफ़ आंख़ उठाकर न देखने वाली हूंरे होंगी , जिनको किसी जिन और इन्सान ने न छुआ होगा। ”

“ गोया वह याकूत और मरजान हैं। ”

यानी याकूत की सी सुर्ख़ी और सफ़ेदी और रौशनी मरजान जैसी “ उनकी गोरी-गोरी रंगतो में हल्की-हल्की सुर्खी , ऐसी मालूम होती होगी , गोया वह छिपाए हुए अण्डे हैं।

मर्वी है कि हूर सत्तर हुल्ले (कपड़े) पहने होगी , तब भी उनकी पिंडलियों का मग़ज़ उनके अन्दर से नज़र आ रहा होगा। जैसे सफ़ेदी याकूत में इस क़द्र नर्म व नाज़ुक बदन होंगे।

अब्दुल्ला बिने मसूद से रवायत (कथन) है कि रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से सुना , आप फ़रमाते थे कि बेहश्त में नूर पैदा होगा और बेहश्ती कहेंगे , यह नूर कैसा है ? कहा जाएगा यह नूर हूर के दातों का है , जो अपने शौहर के रुबरू हंसी है।

दूसरी जगह कुर्आन मजीद में इरशादे कुदरत है-

“ हमने हूरों को बग़ैर मां-बाप के पैदा किया और हमने उनको बाकरह (कुआंरी) ” नाज़ करने वाली और शौहरों की आशिक़ बनाया , जो हम उम्रे हैं।

सब की सब सोलह साल की होंगी और जन्नती मर्दों की उम्रें तैंतीस साल होगी। बाल घुंघराले , बदल गोरे , चेहरे बालों से साफ़ होंगे। सूरए बक़्र में इरशादे खुदावन्दी है-

“ और जन्नत में मोननीन के लिए पाक व पाकीज़ा औरतें होंगी जो हर कसाफ़ते हैज़ वग़ैरा से पाक होंगी और वह (मोमीन) इस (जन्नत) में हमेशा रहेंगे। ”

यह हूरें मुतकब्बिर व मग़रूर (घमण्डी) न होंगी और एक दूसरे की ग़ैरत न करेंगी।

मर्वी है कि हूर के दायीं बाज़ू पर नूरानी हरफ़ों में “ अलह्मदो लिल्लाहिललज़ी सदक़ना वादहु ” और बायें बाज़ू पर अलहम्दो लिल्लाहे अज़हबा अन्नल हुज़ाना ” लिखा हुआ होगा।

रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) से एक मुफ़स्सल हदीस के ज़िम्न में मर्वी है कि आपने फ़रमाया कि जब ख़ल्लाक़े आलम ने हूर को ख़ल्क़ फरमाया तो उसके दायें शाने पर मोहम्मदन रसूल अल्लाहे और बायें शाने पर अलीउन वली उल्लाहे , पेशानी पर अल हसन ओर ठुड्डी पर अल हुसैन और दोनों लंबे बालों पर बिसमिल्ललाहिर्रहमानिर्रहीम नूरानी हरफ़ में लिखा हुआ था। इब्ने मसूद ने पूछा आक़ा! यह क़रामत किस शख़्स के लिए हैं। आप (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया जो शख़्स हुरमत और ताज़ीम का लिहाज़ रखते हुए बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहे तो-

जो औरतें दुनियाँ से बाईमान जाएंगी , जन्नत में उनका जमाल हुरों से ज़्यादा होगा। ” कुर्आन मजीद में है-

“ जन्नत में औरतें होंगी और हुस्ने खुल्क़ से आरास्ता और हुस्ने ख़िलक़त से पैरास्ता हैं। ”

दुनियाँ की औरतों में से जो जन्नत में जाएंगी वह मुराद है। अल्लामा मजलिसी (र 0) हज़रत सादिक़ (अ 0स 0) से रवायत (कथन) फ़रमाते हैं कि ख़ैरातुन हेसान से वह औऱतें मुराद हैं जो मोमिन , आरिफ़ और शिया हैं , वह दाख़िले जन्नत होंगी और उनका अक़्द मोमिन के साथ होगा।

मर्वी है कि जिस औरत ने दुनियाँ में शादी न की होगी , या उनके शौहर जन्नत में न होंगे , तो वह जन्नत में जिस जन्नती की तरफ़ मायल होंगी , उसके साथ उसका निकाह होगा और अगर उसके शौहर जन्नत में हैं , तो उनका अक़्द उनकी ख़्वाहिश के मुताबिक़ उनके साथ कर दिया जाएगा। अगर दुनियां में ज़्यादा शौहर थे तो जिसकी ख़िलक़त उम्दा और नेकियां ज़्यादा होंगी उसके साथ उसका अक़द कर दिया जाएगा।

इतरियाते जन्नत (जन्नत की ख़ुशबू)

सूरए रहमान में मौक़िफ़े हिसाब में परवरदिगारे आलम के सामने हाज़िर होने से डरने और गुनाहों से बचने के बारे में परवदिगारे आलम का इरशाद है-

“ और उसके लिए जो परवरदिगारे आलम के सामने (मौक़िफ़े हिसाब में) क़याम से डरे उसके लिए दो बाग होंगे ” (जो हर क़िस्म के मेवों , घास और फूलों से सजे हुए होंगे)

अल्लामा मजलिसी (र 0) ने रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से नक़ल किया है कि अगर जन्नती हूरों में से एक हूर तारीक रात में असमाने अव्वल पर से ज़मीन की तरफ़ देखे तो खुशबू से तमाम ज़मीन मोअत्तर हो जाय।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मर्वी है कि इत्तरे जन्नत की खुशबू हज़ार साल की राह से पहुंच जाएगी। बेहश्त की मिट्टी मुश्क से बनी हुई है।

रवायाते कसीरा (अति कथन) से मालूम होता है कि जन्नत के दरों दीवार और ज़मीन जिस पर ज़ाफ़रान जैसी उगी हुई घास है। तमाम मोअत्तर हैं और जन्नत की खुशबू का असर यह है कि अभी जन्नत में पहुंचने के लिए कई हज़ार साल की राह बाक़ी होगी और बूढ़ा जन्नती जवान हो जाएगा।