फसल चहारुम
क़यामत प्रलय
आख़िरत की हौलनाक मंज़िलों में से एक क़यामत है जिसकी हौलनाक़ी और ख़ौफ़ हर ख़ौफ़ से सख़्त है। उसी के औसाफ़ में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया-
“ क़यामत ज़मीन व आसमान पर रहने वाले मलायका , जिन व इन्स के लिए अपने शदाएद और हौलनाकियों के ऐतबार से संगीन और गरां और वह अचानक आ जाएगी। ”
कुतुब रावन्दी ने हज़रत जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत (कथन) की है कि हज़रत ईसा ने जिबरईल से पूछा , क़यामत कब बरपा होगी , ज्योंही जिबरईल ने क़यामत (प्रलय) का नाम सुना उसके जिस्म में इस क़द्र बरज़ातारी हुई कि वह गिर कर बेहोश हो गया , जब ठीक हुआ तो कहने लगा। ऐ रुहुल्लाह! क़यामत (प्रलय) के बारे में मसऊले मसायल से ज़्यादा इल्म नहीं और मज़कूरा बाला (उपरोक्त) आयत की तिलावत की।
शेख़ जलील अली बिने इब्राहिम कुम्मी (र 0) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत करते हैं कि एक बार रसूले अकरम (स 0 अ 0) के पास जिबरईल तशरीफ़ फ़रमा थे। जिबरईल ने अचानक आसमान की तरफ़ देखा डर की वजह से उनका रंग जाफ़रान की तरह ज़र्द हो गया और रसूले अकरम (स 0 अ 0) की पनाह लेने लगा। रसूले अकरम (स 0 अ 0) ने उस जगह निगाह की जहां जिबरईल ने देखा था। आपने एक फ़रिश्ता को देखा , जो कि मशरिक़ व मग़रिब में पर फैलाए हुए है , गोया कि वह ज़मीन का गिलाफ़ है। वह फ़रिश्ता रसूले अकरम (स 0 अ 0) की तरफञ मुतवज्जेह हुआ और कहा ऐ मोहम्मद (स 0 अ 0)! मैं अल्लाहतआला का पैगा़म लेकर आया हूँ कि तुझे एख़्तियार है तू बादशाही औऱ रिसालत पसन्द करे या बन्दगी औऱ रिसालत। हज़रत जिबरईल की तरपञ मुतवज्जेह हुए देखा तो उसकी रंगत बहाल थी और बाहोश था। जिबरईल ने बन्दगी और रिसालत पसन्द करने को कहा! हज़रत (स 0) ने बन्दगी और रिसालत पसन्द फ़रमाई! उस फ़रिश्ते ने अपना दायां पांव उठाकर आसमाने अव्वल पर रखा और बायां पैर उठाकर आसमाने दोयम पर। इसी तरह आसमाने हफ़तुम (सातवें) तक गया और हर आसमान को एक क़दम बनाया और जितना बलन्द (ऊंचा) होता गया , छोटा होता गया। फ़िर आं हज़रत (स 0 अ 0) जिबरईल की तरफ़ मुतवज्जेह हुए और फ़रमाया मैंने तेरे ख़ौफ़ और तब्दीलिए रंग से ज़्यादा ख़ौफ़नाक चीज़ कभी नहीं देखी। जिबरईल ने अर्ज़ किया कि आप मुझे मलामत न करें। क्या आप जानते हैं कि यह फ़रिश्ता कौन है ? यह हाजल रब्बिल आलमीन इसराफ़ील था। जबसे अल्लाह तआला ने ज़मीन आसमान को पैदा किया , यह फ़रिश्ता इस हालत में नीचे नहीं उतरा। जब मैंने उसे ज़मीन की तरफ़ आते हुए देखा तो मैंने गुमान किया कि यह क़यामत (प्रलय) बरपा करने के लिए आ रहा है , और क़यामत के डर से मेरा रंग तब्दील हो गया , जैसा कि आपने मुशाहिदा फ़रमाया , ज्योंहि मुझे मालूम हुआ कि यह क़यामत बरपा करने के लिए नहीं आया , बल्कि आपको बरगुज़ीदह होने की खुशी सुनाने के लिए आया है तो मेरा रंग असली हालत पर आ गया और मेरे हवास दुरुस्त हो गये।
एक रवायत में है कि कोई फ़रिश्त आसमान व ज़मीन फ़िज़ा व पहाड़ , सहरा व दरिया में से ऐसा नहीं जो हर जुमा से इसलिए न डरता हो कि कहीं इस जुमा को क़यामत न बरपा हो जाय।
शायद आसमान , ज़मीन और तमाम चीज़ों के डरने से मुराद उनमें रहने वालों और उनके मुवक्कलीन का ख़ौफ़ हो। चुनान्चे मुफ़स्सरीन ने आयत (सूत्र) “ सक़ोलतफ़िस्समावाते वल अर्ज़े ” की तफ़सीर में यही ज़िक्र फ़रमाया है।
मर्वी है कि रसूले अकरम (स 0 अ 0) जिस वक़्त क़यामत (प्रलय) का तज़कीरा (वर्णन) फ़रमाते तो आपकी आवाज़ में सख़्ती औऱ रुख़सारों (गालों) पर सुर्ख़ी आ जाती थी।
शेख़ मुफ़ीद इरशाद में नक़ल फ़रमाते हैं कि जब रसूले अकरम (स 0 अ 0) गज़वए तबूक से मदीना की तरफ़ मराजअत फ़रमायी तो अमरू बिन मअदी कर्ब आप की ख़िदमत में हाजि़र हुआ। आं हज़रत (स 0 अ 0) ने उससे फ़रमाया , ऐ अमरू! इस्लाम कुबूल कर ताकि हक़तआला तुझे क़यामत के ख़ौफ़ से महफूज़ रखे। अमरू ने कहा , ऐ मोहम्मद! क़यामत क्या है ? मैं ऐसा शख़्स हूं कि मुझे खौफ़ आता ही नहीं।
इस रवायत से अमरू की शुजाअत व बहादुरी और ताक़ते क़ल्ब का अन्दाज़ा होता है मनकूल है कि वह अपने ज़माने के मशहूर बहादुरों में से था और बहुत से अजमी इलाकों की जीत उसी के हाथ से हुई और उसकी शमशीर समसाम मशहूर थी बयक वक़्त उसकी एक ज़रबत ऊँट के क़वायम को जुदा कर देती थी। उमर बिने ख़त्ताब ने अपने ज़माने में उससे ख़्वाहिश की कि वह अपनी तलवार उसे बतौर हदिया दे दे। अमरु ने तलवार पेश की। उमर बिने ख़त्ताब ने उसे इस ज़ोर के साथ एक जगह पर मारा ताकि उसका इम्तिहान ले। उस तलवार ने बिल्कुल कोई असर न किया। उमर ने उसे दूर फ़ेंक दिया और कहा कि यह तो कोई चीज़ नहीं। अमरू ने कहा ऐ बादशाह! तूने मुझसे तलवार तलब की थी न कि शमशीर ज़नी के लिए बाज़ू। उमर बिने ख़त्ताब अमरु के कलाम से गुस्से में आ गया और उससे नाराज़ हुआ , और बक़ौले उसे क़त्ल कर दिया।
जह अमरू ने कहा कि मैं क़यामत से ख़ौफ़ नहीं खाता तो हज़रत रसूले अकरम (स 0 अ 0) ने फ़रमाया , ऐ अमरू! वह खौफ़ ऐसा नहीं , जैसा कि तू उसे गुमान करता है। मुर्दो के लिए एक सूर फूंका जाएगा कि तमाम मुर्दे ज़िन्दा हो जाएंगे और कोई ज़िन्दा ऐसा न होगा जो कि मर न जाएगा (सिवाए उन लोगों के जिसे खुदा न मारना चाहे) फ़िर दूसरी बार सूर फूंका जाएगा , जिससे तमाम मुर्दे ज़िन्दा हो जाएंगे और सफ़ (क़तार) बाँध कर खड़े हो जाएंगे। जहन्नुम के शोले पहाड़ों की तरह होंगे और ज़मीन पर गिर रहे होंगे। हर ज़ी रूह का दिल बस्ता हो जाएगा और अपने-अपने माबूद को याद करेगा। नफ़सी-नफ़सी का आलम होगा। सिवाए उन लोगों के जिन्हें खुदा चाहेगा महफूज़ रखेगा। ऐ अमरू तू कहां भटक रहा है। अमरू ने अर्ज़ किया मैं इम अमरे अज़ीम के बारे में तमाम बातें सुन रहा हूँ और वह उसी वक़्त अनी क़ौम सहित ख़ुदा व रसूल पर ईमान लाया।
इस सिलसिले में बेहद रवायात वारिद है , जो क़यामत के अज़ीम ख़ौफ़ पर दलालत करती है। क़यामत की घड़ी इस क़द्र ख़ौफ़नाक और हौलनाक है कि आलमे बरज़ख़ और क़ब्र मे भी मुर्दे कांपते और डरते हैं , क्ंयोंकि जब बाज़ मुर्दे औलिया अल्लाह की दुआ से जि़न्दा हुए तो उनके बाल सफ़ेद थे , जब क़यामत के बारे में उनसे पूछा गया तो कहने लगहे कि जब हमें ज़िन्दा होने का हुक्म दिया गया तो हमने गुमान किया कि शायद क़यामत बरपा हो गयी और उसके ख़ौफ़ से हमारे बाल सफ़ेद हो गए।
क़यामत की सख़्ती से महफूज़ रखने वाले आमाल
अब मैं यहां पर चन्द ऐसे आमाल का वर्णन करता हूं जो क़यामत के शदाएद और सख़्तियों से महुफूज़ रखते हैं और वह दस उमूर हैं-
अव्वल- मर्वी है कि जो शख़्स सूरए युसूफ़ को हर रोज़ या हर शब (रात) तिलावत करेगा , वह शख़्स रोज़े कयामत (प्रलय) क़ब्र से इस तरह उठेगा कि वह हज़रत युसूफ़ की तरह हसीन होगा और क़यामत के ख़ौफ़ से महफूज़ रहेगा।
इमाम मोहम्मद बाक़र (अ 0 स 0) से मर्वी है कि जो शख़्स सुरए दुख़ान को नमाज़े नाफ़िला और फ़रीज़ा में पढ़े , वह क़यामत के रोज़ हर क़िस्म के ख़ौफ़ से महफूज़ रहेगा।
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से मर्वी है कि जो शख़्स शब या जुमा का दिन सुरए अहक़ाफ़ की तिलावत करेगा तो वह शख़्स हर दीनवी व उख़रवी ख़ौफ़ से महफूज़ रहेगा और उन्ही लोगों से मनकूल है जो शख़्स सूरए वलअस्र की नमाज़े नाफ़िला में पढ़ेगा वह आख़िरत के दिन खुश व ख़ुर्रम होगा औऱ उसका चेहरा नूरानी और रौशन होगा , उसकी आंखे रोशन होंगी , यहां तक की वह जन्नत में दाखिल होगा।
दोम- शेख़ कुलैनी (र 0) इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से नक़्ल करते हैं कि हज़रत रसूले अकरम (स 0 अ 0) ने फ़रमाया जो शख़्स सफ़ेद रीश बैढ़े का एहतराम करे। अल्लाह तआला उसे क़यामत के ख़ौफ़ से महफूज़ रखेगा।
सोम- आं हज़रत ने फ़रमाया जो शख़्स मक्का मोअज्जमा जाते या आते हुए फ़ौत हो जाय। अल्लाह तआला उसे क़यामत के ख़ौफ़ से महफूज़ रखेगा। शेख़ सद्दूक़ (र 0) आँ हज़रत (स 0) से रवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया जो शख़्स हरमे मक्का या हरमे मदीना में फ़ौत हे जाय “ ज़ादहुमल्लाहो शरफ़न व ताज़ीमन अल्लाह तआला उसे जुमला ख़ौफ़नाकियो से महफूज़ और बेख़तर उठाएगा। ”
चहारुम-
शेख़ कुलैनी (र 0) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ 0 स 0) से रवायत (कथन) करते हैं कि आपने फ़रमाया कि जो शख़्स हरमें मक्का में दफ़्न हो वह क़यामत के ख़ौफ़ से महफूज़ रहेगा।
पंजुम- शेख़ सद्दूक़ (र 0) हज़रत रसूले अकरम (स 0 अ 0) से नक़्ल फ़रमाते हैं कि जो शख़्स किसी बुराई या ग़लबए शहवत से सिर्फ़ अल्लाह तआला के ख़ौफ़ की वजह से इजतेनाब करे हक़तआला उस पर आतशे (आग) दोज़ख़ हराम कर देता है और उसे ख़ौफ़ क़यामत से महफूज़ रखता है।
शश्शुम (छठा)- आं हज़रत से मर्वी है कि आपने फ़रमाया कि जो शख़्स मर्द होते हुए ख़्वाहशाते नफ़सानी की मुख़ालिफत करता है अल्लाह तआला उसे क़यामत के ख़ौफ़ से महफूज़ रखता है।
हफ़तुम (सात)- शेख़ अजब अली बिने इब्राहिम कुम्मी (र 0) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रिवायत करते है जो शख़्स बावजूद कुदरत के अपने गुस्से को पी जाय अल्लाह तआला उसके दिल को ईमान से पुर करता है और ख़ौफ़े क़यामत से महफूज़ रखता है।
हशतुम (आठ)- अम्न मुतलक़ जिसके होते हुए कोई ख़ौफ़ नहीं , वह विलायते अली (अ 0 स 0) का इक़रार है। यह वह हसना (भलाई) है कि नब्ज़े कुर्आन में कोई नेकी इससे बड़ी नहीं है और इसका हामिल ख़ौफ़े क़यामत से महफूज़ रहेगा।
“ इन्नललज़ीना सबक़त लहुम मिन्नल हुस्ना ऊलाइका अन्हा मुबअदून , ला यसमऊना हसीसहा , वहुम फ़ी मश्तहत अनफुसूहुम ख़ालिदून , ला यह ज़नू हुमूल फ़ाज़उल अक़बरो वत्तलक़ाहुमुल मलाइकतो हाज़ा यौमे कुमुललज़ी कुन्तुम तूअदून। ”
( सूरए अम्बिया आयात 101 ता 103)
“ अलबत्ता जिन लोगों के वास्ते हमारी तरफ़ से पहले ही से भलाई (तक़दीर में लिखी जा चुकी) है वह लोग दोज़ख़ दूर रखे जाएंगे। यह लोग उसकी भनक भी नहीं सुनेंगे और यह लोग हमेशा अपनी मन मांगी मुरादों मे चैन से रहेंगे औऱ उन्हें क़यामत का बड़े से बड़ा ख़ौफ़ भी दहशत में न लाएगा , औऱ फ़रिश्ते उनसे कहेंगे कि यही वह दिन है , जिसका तुमसे वायदा किया गया था। ”
रसूले अकरम (स 0 अ 0) से मर्वी है कि आपने फ़रमाया या अली (अ 0 स 0) तू और तेरे शिया नज़अए अकबर के दिन अमान में होंगे और यह आयत (सूत्र) तुम्हारी तरफ़ राज़ेअ है और हसना से मुराद विलायत अली (अ 0 स 0) व आले अली (अ 0 स 0) है और कुर्आन में जैसा कि वायदा किया गया है।
“ जो शख़्स नेक काम करेगा , उसके लिए उसकी जज़ा , इससे कहीं बेहतर है और यह लोग उस दिन ख़ौफ़ व ख़तरे से महफूज़ (सुरक्शित) रहेंगे। ”
तफ़ासीर आम्मा कशाफ़ , सअलबी और कबीर में है कि जो शख़्स हसना के साथ वारिद होगा वह बरोज़ क़यामत अमन में होगा और हसना से मुराद अली अलैहिस्सलाम हैं , जो शख़्स आले मोहम्मद (स 0 अ 0) के साथ मर गया और तौबा के ज़रिए पाक हो गया , तो जब वह क़ब्र से निकलेगा तो उसके सिर पर बादल का साया होगा और क़यामत के दिन ख़ौफ़ से महफूज़ रहेगा और जन्नत में दाखिल होगा।
नहुम (नौ)- शेख़ सद्दूक (र 0) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया जो शख़्स परेशान और प्यासे मोमिन (धर्मनिष्ठ) भाई की अपनी कुव्वत औऱ ताक़त के ज़रिए अआनत करे और उसे ग़म से आसाइश मोहैया करे , या उसकी हाजत पूरी करने के लिए कोशिश करे तो हक़तआला उसे बहत्तर क़िस्म की न्यामतें अता करेगा। उनमें से एक तो यह कि दुनियाँ में उसके अम्र मआश की अपनी रहमत के ज़रिए इस्लाह फ़रमाएगा और बाक़ी इकहत्तर रहमतंह क़यामत की हौलनाकियों और ख़ौफ़ के लिए ज़ख़ीरा रखेगा।
बरादराने मोमनीन के कज़ाये हवायेज के बारे में बहुत सी रवायात मनकूल हैं अजां जुमला हज़रत इमाम मोहम्मद बाकि़र (अ 0 स 0) से मर्वी है कि अगर कोई शख़्स अपने मोमिन भाई की हाजत पूरी करने के लिए निकले तो हक़तआला उसके लिए पांच हज़ार सत्तर फ़रिश्तों को उस पर साया करने का हुक्म देता है और उसके बाहर क़दम रखने से पहले अल्लाह तआला उसके नामए आमाल में नेकियां दर्ज फ़रमाया है। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से मनकूल है कि मोमिन भाई की हाजत पूरी करना अफ़ज़ल है। हज , हज , हज से यहां तक की आपने दस तक शुमार किया (यानी दस हज से अफज़ल है।)
मलकूल (उद्धृत) है कि बनी इसराइल में एक इबादत गुज़ार आबिद था , जिसने दूसरो की हाजात में कोशिश करना अपना फ़रीज़ा (कर्तव्य) समझ रखा था। शेख़ जलील शाज़ान बिने जिबरईल कुम्मी (र 0) ने हज़रत रसूले अकरम (स 0 अ 0) से रवायत की है कि आपने बेहश्त दोम के दरवाज़े पर लिखा हुआ “ लाइलाहा इल्लललाह मोहम्मदन रसूल अल्लाह अली अन वली अल्लाह ” हर चीज़ का हुलिया होता है और सरवरे क़ायनात का क़यामत का हुलिया चार ख़सलतें हैं-
1- यतीमों के सिरों पर दस्ते शफ़क़त फ़ेरना।
2- बेवा औरतों पर मेहरबानी करना।
3- मोमिन की हाजत पूरी करने के लिए जाना।
4- फुक़रा व मसाकीन की ख़बरगिरी वग़ैरा।
ओलमा व बुर्जगाने दीननन मोमनीन के कज़ाये हाजात के बारे में बहुत ऐहतिमाम किया करते थे और इस बाब में उनसे बहुत सी हिकायात मनकूल है , जिन के नक़ल करने की यहां कोई ख़ास आवश्यकता नहीं है।
दहुम (दसवां)- शेख़ कुलैनी (र 0) हज़रत इमाम रज़ा (अ 0 स 0) से नक़ल फ़रमाते हैं कि जो शख़्स मोमिन भाई की क़ब्र पर जाएगा और उस पर हाथ रखकर सात बार “ इन्ना अनज़लना फी लयलतिल क़दरे ” पढ़े हक़ ताला उसे महशर की सख़्ती से महफूज़ रखेगा।
दूसरी रवायत में है कि रूब क़िबला होकर हाथों को क़ब्र पर गाड़ना रोज़े क़यामत की हौलनाकियों के ख़ौफ़ से महफूज़ रखता है मुमकिन है कि पढ़ने वाले के लिए हो। चूनांचे रवायत (कथन) से ज़ाहिर है और मय्यत के लिए मुतहम्मिल है और बाज़ रवायत से इसी तरह ज़ाहिर होता है। बन्दा ने ख़ुद मजमूआ में देखा है कि शेख़ अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिने मक्की आमली जो शेख़ शहीद मशहूर हैं अपने उस्ताद फक़रुल मोहक़्क़ीन आयतउल्ला अल्लामा हिल्ली की क़ब्र की ज़ियारत को गए और फ़रमाया कि मैं उस क़ब्र वाले से और उन्होंने अपने वालिद से और उन्होंने इमाम रज़ा (अ 0 स 0) से नक़ल किया है कि जो शख़्स अपने मोमिन भाई की क़ब्र की ज़ियारत करे और सूरए क़द्र पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़ेः-
“ अल्लाहुम्मा जाफ़िल अर्ज़ा अनजुनूबिहिम वसाइद इलैका अरवाहहुम वज़िदहुम मिनका रिज़वान वअसकिन इलैहिम मिन रहमतिका मा तसेलो बिही वहदतहुम वतूनिस वहश्ताहुम इन्नका अला कुल्ली शैइन क़दीर। ”
वह शख़्स और मय्यत दोनों फ़जए अकबर से महफूज़ रहेंगे।
अल्लामा मजलिसी की शरह फ़कीहा में तहरीर करदा ब्यान के मुताबिक फख़रुल मोहक़्क़ीन की क़ब्र नजफ़ अशरफ़ में है और शायद उनके वालिद की क़ब्र के नज़दीक़ रिवाने मुतहर में है।
सूरे इसराफ़ील
ख़ल्लाक़े आलम जब दुनियाँ को ख़त्म करके क़यामत बरपा करने का इरादा करेगा , तो इसराफ़ील को हुक्म देगा कि वह सूर फूंके। सूर बहुत बड़ा और नूरानी है , जिसका एक सर और दो शाख़ें है। चूनांचे इसराफ़ील बैतुल मुक़द्दस में पहुंचकर कि़बलारु (पश्चिम की ओर मुंह करके) होकर सूर फूंकेगें , जब ज़मीन की तरफ़ वाली शाख़ से आवाज़ बरामद होगी तो ज़मीन वाले मर जाएंगे औऱ जब आसमान की तरफ़ वाली शाख़ से आवाज़ निकलेगी तो आसमान को हुक्म होगा “ मू तू ” तो वह भी मर जाएगा। नफ़ेह सूर के वक़्त इस दुनियाँ की तबाही का जो नक्शा कुर्आन ने पैश किया है वह यह है-
“ रहमान व रहीम के नाम से शुरु करता हूं जबकि क़यामत वाक़ेए हो जाए , जिसके वाकेए होने में कोई झूठ नहीं , वह पस्त करने वाली भी है और बुलन्द करने वाली भी जिस वक़्त ज़मीन हिलायी जाएगी , जैसा कि हिलाने का हक़ है और पहाड़ ऐसे उख़ाड़ दिए जाएंगे , जैसा कि उख़ाड़ने का हक़ है और वह इस तरह हो जाएंगे जैसे कि बिख़रे हुए ख़ाकी ज़रार्त। ” ( सूरह “ वाक़या आयत 1-16) ”
“ जिस रोज़ ज़मीन दूसरी ज़मीन से बदल दी जाएगी और आसमान (दूसरे आसमानों से) और सब ज़बरदस्त व यकता खुदा के हुज़ूर ख़डे होंगे। ” ( सू 0 “ इब्राहीम आयत 48) ”
“ जबकि आसमान फट जाएंगे औऱ तारे गिर कर तितर बितर हो जाएंगे और जबकि दरिया बहकर मिल जायेंगे और जबकि क़ब्रे उलट-पलट कर दी जाएंगी और हर नफ़स जान लेगा कि उसने आगे क्या भेजा है और पीछे क्या छोड़ा है। ”
( सू 0 अन्फ़तार , आ 0 1)
“ जबकि सूरज की रौशनी लपेट ली जाएगी और तारों की रोशनी जाती रहेगी और जबकि पहाड़ चलाये जाएंगे। ”
( सू 0 तकवीर , आ 0 1-3)
“ पस जब आंखे चौंधियां जाएंगी और चांद को गहन लग जाएगा ,
सूरज और चांद जमा कर दिए जाएंगे। ”
( सू 0 क़याम , आ 0 7-9)
“ यानी क़यामत अचानक आ जाएगी। ”
( सू 0 आराफ़ , आ 0 187)
लोग अपने-अपने कारोबार में मशगूल होंगे। कोई मवेशियों (जानवरों) को पानी पिला रहा होगा। कोई फैक्ट्री में मसरुफ़े कार होगा। कोई तराज़ू को ऊँचा-नीचा कर रहा होगा और कोई गुनाहों का इरतेकाब कर रहा होगा। सूर फूंके जाने से सब मर जाएंगे।
“ वसीयत करने की भी मोहलत न मिलेगी औऱ न ही अपने घरों की तरफ़ पलट कर जा सकेंगे। ”
( सू 0 यासीन , आ 0 50)
फ़िर निदा (आवाज़) क़हरे इलाही बलन्द होगी , ऐ अकड़ कर चलने वालों! औऱ सल्तनत व हुकूमत पर गुरुर करने वालों ऐ खुदाई के दावेदारों! आज वह तुम्हारी हुकूमतें और सल्तनतें कहां हैं ? लेमनिल मुलकुल यौम “ आज किसकी हुकूमत है। ” किसी को जवाब की ताक़त कहां। आवाज़े कुदरत आएगी “ लिल्लहिल वाहेदिल क़हहार “ आज क़हहार व जब्बार की हुकूमत है। ” ( अहसनुल , फ़वायद)।
दोबारा ज़िन्दगी- तमाम दुनियाँ जब तक खुदा चाहेगा इसी तरह तबाह रहेगी। किसी ने मासूम (अ 0 स 0) से सवाल किया कि इन दो नफ़ख़ात में कितनी मुद्दत का फ़ासला होगा , तो मासूम ने फ़रमाया चालीस साल औऱ दूसरी रवायत (कथन) के मुताबिक़ चार सौ साल का अर्सा। यही हालत रहेगी। उसके बाद चालीस दिन तक बारिश (वर्षा) होती रहेगी और हर ज़ी नफ़्स के ज़र्रात जमा हो जाएंगे और सबसे पहले इसराफ़ील अल्लाह तआला के हुक्म से ज़िन्दा होगा और उसे हुक्म होगा वह सूर फूंके औऱ मुर्दे ज़िन्दा होंगे। निदा (आवाज) आएगी।
“ ऐ बदनों से निकली हुई रुहों (आत्माओं) औऱ बिखरे हुए गोश्तों (मांसों) और बोसीदा हड्डियों और बिखरे हुए बालों वापस आकर जमा हो जाओ और हिसाब देने के लिए बढ़ो। ”
ज़मीन खुदा के हुक्म से अपने अन्दर की चीज़ों को उगल देगी “ व अख़रजतिल अरज़ो असक़ालहा ” और जो कुछ ज़मीन के अन्दर अब्दान प आश्या होंगी ज़लज़लए शदीदः के ज़रिए बाहर आ जायेगी औऱ एक ही दफ़ा तमाम लोग उठ खड़े होंगे , लेकिन तमाम लोगों का मंज़र (दृश्य) जुदा और कलाम जुदा होगा , नेक लोग खुदा का शुक्र अदा करते हुए निकलेंगे। अलहमदो लिल्लाहिललज़ी सद्दक़ना वआदहू। “ तमाम तारुफ़ें उसक ज़ात के लिए हैं , जिसने अपना वादा सच कर दिखाया , और कुछ वा हसरताह की फ़रियाद करते हुए क़ब्रों से निकलेंगे। ” कि हाय अफ़सोस! हमें किसने क़ब्रों से उठा दिया। ”
एक रवायत (कथन) में है कि एक पांव क़ब्र से बाहर और एक अन्दर होगा औऱ इसी तरह हैरत में ख़डे होंगे। तीस सौ साल गुज़र जाएंगे , और यह क़यामत के अज़ाब का मुक़द्दमा होगा। मोमनीन कहेंगे , परवर दिगार! जल्द असल जगह तक पहुंचा , ताकि जन्नत की लज़्ज़तों , से लुत्फ़ अन्दोज़ हों और कुफ़्फार कहेंगे , परवर दिगार यहीं रहने दे , क्योंकि यहां अज़ाब कुछ कम है। (मआद)।