फ़स्ल पंजुम (पांच)
कुबूर (क़ब्रों से निकलना)
यह हौलनाक वक़्त जब इन्सान अपनी क़ब्र से बाहर आएगा औऱ यह सख़्ततरीन और वहशतनाक घड़ियों में से है। हक़ तआला कुर्आन मजीद में इरशाद फ़रमाता है-
“ पस तू उनको छोड़ दे कि वह झगड़ते औऱ खेलते रहें यहां तक कि वह उस दिन से मुलाक़ात करे , जिनका उनसे वायदा किया गया है। उस दिन वह क़ब्रों से इस तरह जल्दी निकल पड़ेंगे , गोया वह झुण्ड़ों की तरफ़ दौड़ते जाते हैं , उनकी आंखें आजज़ी करने वाली होंगी , उन पर ज़िल्लत छायी हुई होगी , यही वह दिन है जिसका उनसे वायदा किया गया था। ”
( सू 0 मआरिज़ , आ 0 42-43)
इब्ने मसूद से रवायत (कथन) है कि उसने कहा कि मैं हज़रत अमीरूल मोमनीन (अ 0 स 0) की ख़िदमत में हाज़िर था कि आपने इरशाद फ़रमाया कि हर शख़्स के लिए क़यामत में पचास मौक़िफ़ हैं और हर मौक़िफ़ हज़ार साल का है।
यहां पहला मौक़िफ़ क़ब्र से खुरूज़ का है। इसमें इन्सान हज़ार साल नंगे पावद उरयां (नंगा) रुका रहेगा। भूख और प्यास की शिद्दत (तेज़ी) होगी , जो शख़्स वहदानियत , जन्नत व दोज़ख , बैसत हिसाब और क़यामत का इक़रार करता होगा और अपने पैग़म्बर का मिसद्दक़ होगा और उन पर खुदाए ताला की तरफ़ से नाज़िल किए हुए अहकामात पर ईमान रखता होगा। वह भूख और प्यास से महफूज़ (सुरक्शित) रहेगा। हज़रत अमीरुल मोमनीन नहजुल बलगा में इरशाद फ़रमाते हैं-
“ क़यामत का दिन वह दिन है जब ख़ुदा हिसाब और जज़ाए आमाल के लिए गज़िश्ता व आइन्दा में से तमाम ख़लाएक़ को जमा करेगा। यह तमाम लोग निहायत अजिज़ व ख़ाकसर बनकर हाजि़र होंगे और पसीना उनके मुँह तक पहुंच गया होगा और ज़लज़लए ज़मीन ने उनमें थरथरी पैदा कर दी होगी , उममें से नेक तरीन और खुशहाल तरीन वह शख़्स होगा , ( जिसने दुनिया मे किरदार (चरित्र) पसन्दीदा के बायस) (कारण) क़दम जमाने के लिए कोई जगह बना ली होगी और अपनी आसाइश (आराम) के लिए कोई फराख़ जगह बना लिया होगा। ”
शेख़ कुलैनी (र 0) हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत (कथन) करते हैं कि रोज़े क़यामत लोग परवर दिगारे आलम के हुज़ूर में इस तरह ख़ड़े होंगे जैसे तरकश का तीर यानी जैसा कि तीर को तरकश में रख देने से उममें कोई जगह बाक़ी नहीं रहती , उसी तरह आदमी के खड़े होने में उस दिन जगह तंग होगी कि सिवाय क़दम रखने के कोई जगह न होगी और वह अपनी जगह से हरकत न कर सकेगा। मुजरिम शकलों से पहचाने जाएंगे , बल्कि यह मुक़ाम ज़्यादा अच्छा और मुनासिब है कि यहां पर कुछ लोगों के उन हालात का वर्णन किया जाय , जिन हालात में वह क़ब्रों से बाहर आयेंगे।
अव्वल- शेख़ सद्दूक़ (र 0) रवायत करते हैं कि इब्ने अब्बास ने हज़रत रसूले अकरम (स 0 अ 0) से रवायत की है कि आं हज़रत ने फ़रमाया कि हज़रत अली (अ 0 स 0) इब्ने अबी तालिब की फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) मे शक करने वाला क़यामत के दिन अपने क़ब्र से इस तरह बाहर निकलेगा कि उसकी गर्दन में तीन सौ शोबे (कांटे) वाला तौक़ होगा , जिसके हर हिस्से पर एक शैतान होगा , जिसके चेहरे से गुस्से की अलामत ज़ाहिर होगी और वह उसके चेहरे पर थूक रहा होगा।
दोम- शेख़ कुलैनी (र 0) हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ 0 स 0) से रवायत करते हैं कि हक़ तआला कुछ लोगों को उनकी कब्रों से इस तरह बरामद करेगा कि उनके हाथ और गर्दन इस क़द्र सख़्त बंधे होंगे कि वह उन को ज़र्रा बराबर भी हरकत न दे सकेगे , औऱ उन पर फरिश्ते मुक़र्रर होंगे जो उनको जज़र व तौबीख़ करते होंगे और उनको झिड़क कर यह कहते होंगे कि यह वह लोग हैं , जिन्हें अल्लाह तआला ने माल अता किया औऱ उसमें से अल्लाह ताला , का हक़़ अदा नहीं करते।
सोम- शेख़ सद्दूक़ (र 0) हज़रत रसूले अकरम (स 0 अ 0) से एक तूलानी (लम्बी) हदीस में ब्यान करते हैं कि जो शख़्स दो आदमियों के बीच चुग़लख़ोरी औऱ नुक़ताचीनी करता है , अल्लाह ताला उस पर क़ब्र में आग का अज़ाब मुसल्लत करता है , जो उसे क़यामत तक जलाता रहेगा। ज्योंही वह क़ब्र से बाहर आएगा। अल्लाह तआला उस पर बहुत बड़ा सांप मुसल्लत करेगा , जो उसके गोश्त को जहन्नुम में दाख़िल होने तक दांतो से काटता रहेगा।
चहारुम (चार)- आं हज़रत से मर्वी है कि जो शख़्स ग़ैर महरम औरत को देख़कर लुत्फ़ अन्दोज़ होता है। अल्लाह ताला उसे रोज़े क़यामत आतशी सलाखों में जकड़ा हुआ उठाएगा और अहले महशर के दर्मियान लाकर उसे दोज़ख में दाख़िल करने का हुक्म देगा।
पंजुम (पांच)- आं हज़रत से मर्वी है कि आपने फ़रमाया , शराबख़ोर रोज़े क़यामत में इस तरह उठेंगे कि उनके चेहरे स्याह (काले) आंखे दबी हुई , मुंह सिकुड़े और उनसे पानी बहता हुआ होगा। उनकी ज़बान को गुद्दी से निकाला जाएगा। इलमुल यक़ीन में मोहद्दिसे फ़ैज़ से मोतबर (विश्वसनीय) हदीस में वारिद है कि , शराबख़ोर रोज़े क़यामत इस तरह उठाए जाएंगे कि शराब का कूज़ा उनकी गरदन में और प्याला हाथ में और ज़मीन पर पड़े मुरदार से भी ज़्यादा गंदी बदबू आती होगी और उनके पास से हर गुज़रने वाला उन पर लानत करेगा।
शश्शुम (छठा)- शेख़ सद्दूक़ (र 0) आं हज़रत से रवायत (कथन) करते हैं कि दो ज़बानों वाला शख़्स बरोज़े क़यामत इस तरह मशहूर होगा कि उसकी एक ज़बान गुद्दी से और दूसरी ज़बान सामने से खींची गयी होगी और जबकि उससे आग का गोला भड़क कर उसके तमाम जिस्म को जला रहा होगा और कहा जाएगा कि यह वह शख़्स है जो दुनिया में दो ज़बाने रखता था औऱ वह रोज़े क़यामत इसी ज़रिया से पहचाना जाएगा।
हफ़्तुम (सात)- मर्वी है कि जब सूदख़ोर क़ब्र से निकलेगा तो उसका पेट इतना बड़ा होगा कि ज़मीन पर पड़ा हुआ होगा , वह इसको उठाने के लिए नीचे झकना चाहेगा , मगर न झुक सकेगा। इस निशानी को देखकर अहले महशर समझ लेंगे कि यह सूद ख़ाने वाला है।
हशतुम (आठ)- अनवारे नामानियां में रसूले खुदा (स 0 अ 0) से रवायत (कथन) है कि तम्बूरा (बीन वग़ैरा) बजाने वाले का चेहरा स्याह (काला) होगा और उसके हाथ में आग का तम्बूरा होगा , जो सिर में मार रहा होगा और सत्तर हज़ार अज़ाब देने वाले फ़रिश्ते (दूत) उसके सर और चेहरे पर आग के हरबे मार रहे होंगे और साहबे ग़िना (आवाज़ ख्वां) और गवैया और ढ़ोल बाजे वाले अंधे और गूंगे महशूर होंगे।
“ गुनाहगार लोग अपने चेहरों ही से पहचान लिए जाएंगे , तो पेशान के पट्टे और पांव पकड़े (जहन्नुम में) डाल दिए जाएंगे। ” ( मआद)
( सू 0 रहमान , आ 0 41)
अहवाले क़यामत के लिए मुफ़ीद आमाल
इस मौक़े के लिए बेशुमार मुफ़ीद चीज़ें हैं मैं यहां पर कुछ चीज़ों की तरफ़ इशारा करुंगा।
अव्वल (पहला)- एक हदीस में है कि जो शख़्स जनाज़ा (अर्थी) के साथ चलता है हक़ ताला उसके लिए कई फ़रिश्ते मुव्वकिल फ़रमाता है , जो क़ब्र से लेकर महशर तक उसका साथ देते हैं।
दोम (दूसरा)- शेख़ सद्दूक़ (र 0) हज़रत जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत करते हैं कि जो शख़्स किसी मोमिन के दुःख या दर्द को दूर करता है। अल्लाह तआला उसके आख़िरत के ग़मों को दूर करेगा और वह क़ब्र से खुश ख़ुर्रम उठेगा।
सोम (तीसरा)- शेख़ कुलैनी (र 0) और शेख़ सद्दूक (र 0) सुदीर सैरनी से तूलानी रवायत करते हैं और कहते हैं कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादकि़ (अ 0 स 0) ने फ़रमाया , जब अल्लाह तआला किसी मोमिन को उसकी क़ब्र से उठायेगा तो उसके आगे-आगे एक जिस्म मिसाली भी होगा , जब भी वह कोई तकलीफ़ या रंज देखेगा , तो वह मिसाली जिस्म कहेगा कि तू ग़मगीन व रंजीदा न हो। तुझे अल्लाह की तरफ़ से बख़शीश और ख़ुशनूदी की बशारत हो और मुक़ामे हिसाब किताब तक वह मिसाली जिस्म उसे बराबर खुशखबरी फ़रमाएगा , और उसे जन्नत में दाख़िल किए जाने का हुक्म सुनाएगा , वह मिसाली जिस्म उसे बराबर खुशख़बरी सुनाता रहेगा। बस अल्लाह तआला उसका हिसाब आसान फ़रमाएगा , और उसे जन्नत में दाख़िल किए जाने का हुक्म सुनाएगा , वह मिसाली जिस्म उसके आगे-आगे होगा।
वह मोमिन उससे कहेगा , खुदा तुझ पर रहमत करे। तू मुझे मेरी क़ब्र से बाहर लाया और बराबर अल्लाह ताला की रहमत व खुशनूदी की बशारत देता रहा। तू कितना ही अच्छा रफ़ीक़ है और अब मैं उन बशारतों को अपनी आंखों से देख चुका हूं। मुझे इतना तो बता दे कि तू कौन है ? वह कहेगा मैं वह खुशी और मुरुर हूं जो दुनिया में तो अपने मोमिन भाई के दिल के लिए मुहैया करता था। बस अल्लाह तआला ने उसके बदले मुझे पैदा किया ताकि तुझे इस मुश्किल वक़्त में बशारत खुशख़बरी सुनाता रहूं।
चहारुम (चार)- शेख़ कुलैनी (र 0) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया जो शख़्स सर्दी या गर्मी में अपने मोमिन (धर्मनिष्ठ) भाई को लिबास (कपड़ा) पहनाता है , हक़ तआला पर वाजिब हो जाता है कि वह उसे जन्नत का लिबास पहनाए और उसकी मौत और क़ब्र की तकलीफ़ को दूर करे और जब वह क़ब्र से बाहर आएगा तो उससे फ़रिश्ते मुलाक़ात करेंगे और उसे खुशनुदिए ख़ुदा की बशारत देंगे। अल्लाह ताला ने इस आयऐ शरीफा में इसकी तरफ़ इशारा फ़रमाया है।
“ और फ़रिश्ते उनसे मुलाक़ात करेंगे (और कहेंगे) यही वह तुम्हारा दिन है , जिसका तुमसे वायदा किया गया था। ”
( सू 0 अम्बिया , आ 0 103)
पंजुम (पांच)- सैय्यद इब्ने ताऊस किताबे इक़बाल में रसूले अकरम (स 0 अ 0) से रवायत करते हैं कि जो शख़्स माहे शअबान मे एक हज़ार बार “ लाइलाहा इल्ललाहो वला नअबुदो इल्ला इय्याहो मुख़लिसीन लहुद्दीना वलव करिहल मुशरिकून। ” पढ़े , हक़ तआला उसके नामए आमाल में हज़ार साल की इबादत दर्ज फ़रमाता है और उसके हज़ार साल के गुनाहों को मिटा देता है और जब वह क़यामत के दिन अपनी क़ब्र से बाहर आएगा तो उसका चेहरा चौहदवीं के चांद की तरह रोशन और उसका नाम सिद्दीक़ीन में होगा।
शश्शुम (छठा)- दोआए ज़ौशान कबीरा का माह रमज़ान के अव्वल में पढ़ना मुफ़ीद है।
हफ़तुम (सात)- तक़वा और परहेज़गारी क़यामत का लिबास है। “ व लिबासुतक़वा ज़ालिका ख़ैर ” मुत्तक़ी और पहरहेज़गारी ख़ुदायी लिबास के साथ वारिदे महशर होंगे और यह वही लोग हैं जिनसे खुदा ने वायदा किया है कि वह बरोज़े क़यामत नगे महशूर न होंगे।
क़ैफ़ियते हशर व नशर
मैं इस मुक़ाम पर एक रवायत (कथन) नक़ल करता हूं जो ज़्यादा मुनासिब और ठीक है , शेख़ अमीनुद्दीन तब्रसी मजमउल ब्यान में बर्रा बिन आज़िब से नक़ल फ़रमाते हैं , उन्होंने कहा कि एक रोज़ मआज़ बिने जबल रसूले अकरम (स 0 अ 0) के पास अबू अय्यूब अन्सारी के घर बैठा हुआ था कि इस आयत “ युनफ़ख़ो फ़िस्सूरे फ़तातूना अफ़वाजन ” के बारे में दरयाफ़्त किया। यानी जिस दिन सूर फूंका जाएगा। लोग गिरोह दर गिरोह इकट्ठा होंगे। आं हज़रत ने फ़रमाया , ऐ मआज ! तूने मुझसे एक सख्त सवाल किया है। बस आं हज़रत की आंखों से आंसू जारी हुए और फ़रमाया मेरी उम्मत के लोग दस कि़स्मों पर मुश्तमिल अलग-अलग शक्लों में उठेंगे-
1- कुछ बन्दर की शक्ल में।
2- कुछ खंज़ीर (सुअर) की शक्ल में।
3- कुछ सिर के बल चलते हुए महशर में आयंगे।
4- कुछ अंधे होंगे चो चल फ़िर न सकेंगे।
5- कुछ बहरे और गूंगे होंगे जो कोई चीज़ समझ न सकेंगे।
6- कुछ की ज़बाने बाहर निकली हुई होंगी और मुंह से नापाक पानी बह रहा होगी , जिसको चूसते होंगे।
7- क़यामत के रोज़ जमा होने वाले कुछ लोगों के हाथ-पांव कटे हुए होंगे।
8- कुछ आतशी (आग) के पेड़ों की टहनियों के साथ लटक रहे होंगे।
9- कुछ मुरदार से भी ज़्यादा गंदे और बदबूदार होंगे।
10- कुछ क़तरान के लम्बे-लम्बे चोंगे पहने होंगे , जो तमाम जिस्म और खाल के साथ चस्पां होंगे।
वह लोग जो खंज़ीर (सूअर) की शक्ल में होंगे , हरामख़ोर होंगे। जैसे रिश्वत वग़ैरा , जो लोग सिर के लब खड़े होंगे और जो लोग अन्दे होंगे। यह वह लोग होंगे जो सख़्ती और जुल्म के साथ हुक्मरानी किया करते थे। बहरे और गूंगे वह लोग होंगे जो अपने इल्मो फ़ज़ल और आमाल पर तकब्बुर किया करते थे। अपनी ज़बानों को चूसने वाले उल्मा और काज़ी होंगे , जिनके आमाल , अक़वाल के मुख़ालिफ़ थे। जिनके हाथ-पांव कटे हुए होंगे यह वह लोग होंगे , जिन्होंने दुनिया में अपने हमसायों (पड़ोसियों) को तकलीफ़ें दी थीं। जो लोग आतशी (आग) तख़्तएदार पर लटकाए जाएंगे। यह वह लोग होंगे , जो बादशाहों और हाकिमों के पास नुक़ताचीनी और चुग़लख़ोरी किया करते थे। जो लोग मुरदार से ज़्यादा बदबूदार होंगे। यह वह लोग होंगे जो शहवत व लज्ज़त से लुत्फ़ अन्दाज़ होते थे औऱ हुक़ूक़ अल्लाह अदा न करते थे। जो लोग क़तरान के जुब्बों में जकड़े हुए होंगे , यह वही लोग हैं जो दुनिया में फ़ख़्र (गर्व) तकब्बुर किया करते थे।
मुहद्दिस फ़ैज़ एनुलयक़ीन में नक़ल फ़रमाते हैं कि कुछ लोग ऐसी शक्लों में महशूर होंगे कि बन्दर और खंज़ीर (सुअर) की शक्लें उनसे अच्छी होंगी।
और रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व. ) से रवायत है कि आपने फ़रमायाः-
“ बरोज़े महशर लोग तीन क़िस्मों में मशहूर होंगे। कुछ सवार होंगे कुछ पैदल चल रहे होंगे और कुछ चेहरों के लब। रावी ने पूछा या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. ) वह चेहरों के लब कैसे चलेंगे। तो आपने फ़रमाया जिस खुदा ने उनको पांव पर चलना सिखाया , वही उनको चेहरे के लब चलाने पर भी क़ादिर है। ”
वह दिन पचास हज़ार साल के बराबर होगा
“ (वह एक दिन) जिसका अन्दाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा। ”
बहारुल अनवार जिल्द सोम में कुछ रवायत में मासूम (अ 0 स 0) से मनकूल है कि आपने फ़रमाया , क़यामत के पचास मौक़्क़िफ़ हैं , जिनमें से हर एक हज़ार साल का है और हर एक में मुजरिमों को एक हज़ार साल तक रोका जाएगा। इस मक़दार से मुराद ज़माने का हिस्सा है। वरना वह दिन ऐसा है , जिस दिन न सूरज होगा ना चांद।
यहां सिर्फ़ दुनियां के दिन के बराबर मक़दार ज़ाहिर की गयी है और इन्सान की आंख हर वह चीज़ देख लेगी , जो वह रात की तारीकी में नहीं देख सकती , जो आमाल दुनियां मे एक दूसरे से पोशीदा थे। वह तमाम ज़ाहिर और आशकारा हो जाएंगे।
एक दूसरी जगह इरशादे कुदरत है।
“ और हर वह चीज़ ज़ाहिर हो जाएगी , जिसका उन्हें गुमान (अन्दाज़) भी न था। ”
दुनिया जुल्म का घर है किसी को दूसरे के बातिन की ख़बर नहीं है , बल्कि अपने बातिन से भी बेख़बर है , लेकिन क़यामत हक़ीक़ी दिन है इसमें आफ़ताबे हक़ीक़त , रोज़े क़यामत पचास हज़ार साल के बराबर चमकता रहेगा ताकि हम समझ लें कि मैं क्या था और मेरे दूसरे साथी क्या थे ? इसमें पहला मौक़िफ़ हैरत है। जैसा गुज़रा है कि इन्सान कई साल तक क़ब्र के किनारे हैरान खड़ा रहेगा। उस हालत में ख़ौफ़ की वजह से सिवाय हमहमा के कोई आवाज़ नहीं सुनेंगे।
औऱ आवाज़ देना चाहेंगे मगर उनके दिल ख़ौफ़ के मारे गले को आ चुके होंगे।
किसी के गले से आवाज़ न निकल सकेगी फ़िर मौक़िफ़े सोहबत होगा कि एक दूसरे से अहवाल पुरसी करेंगे।
इसी तरह एक के बाद दूसरा मौक़िफ़ गुज़रता रहेगा तमाम लोग पतंगों की तरह बिखरे हुए होंगे।
उसके भाई-भाई से मां-बाप और अहले अयाल से भागेगा यह वह दिन है कि कोई शख़्स भाग नहीं सकेगा और फ़रिश्ते हर तरफ़ से उसका अहाता किए हुए होंगे।
“ ऐ जिन्न व इन्स अगर तुम ताक़त रखते हो भागने की भाग जाओ , आसमान व ज़मीन से ” इन्सान कहेगा ऐनल मफ़्फ़रो कहां भाग सकता हूँ।
हरगिज़ कोई नहीं भाग सकता। सिवाय परवर दिगारे आलम के हुज़ूर खड़ा होने के कोई ठिकाना नहीं। फ़िर सवाल का मौक़िफ़ आएगा। हर शख़्स अपने दोस्तों , रिश्तेदारों से सवाल करेगा कि कुछ नेकियां मुझे दे दो। बाप औलाद पर एहसान जताएगा कि तेरे लिए कितनी तकलीफ़ों के साथ सहूलियतें मुहैय्या की। खुद न खाता था , तुझे देता था , अब एक नेकी तो दे दो बेटा कहेगा बाबा मैं इस वक़्त आपसा ज़्यादा मोहताज हूँ। कोई किसी की फ़रियाद की तरफ़ ध्यान न देगा। (मआद)।