(सन् 4 हिजरी)
सरिया अबु सलमा
मुहर्रम सन् 4 हिजरी में पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) को मालूम हुआ कि तलहा और खुलीद मदीने पर हमला की ग़र्ज़ से पेश क़दमी कर रहे हैं। आपने अबु सलमा की क़दायत में एक सौ पचास मुहाजिरीन व अन्सार की एक जमीअत मदाफ़ियत के लिये रवाना की। मुश्रकेीन मरऊब होकर इधर उधऱ मुन्तशिर होगये और मुसलमानों को कोई न मिल सका। आख़िरकार ये लोग मदीने वापस आ गये।
सरिया इब्ने अनीस
सफ़र सन् 4 हिजरी में सुफ़ियान बिन ख़ालिद जो कोहिस्तानी क़बीले ग़िज़्ज़त का रईस आज़म था मुश्रेकीन के इशारों पर हमले की तैयारी में मसरूफ़ हुआ। आन हज़रत (स.अ.व.व.) को पता चला तो आपने अब्दुल्लाह इब्ने अनीस को एक फौजी दस्ते के साथ उसकी तनबीह को भेजा। इब्ने अनीस ने वहाँ पहुँच कर किसी तरकीब से सुफ़ियान इब्ने ख़ालिद को क़त्ल कर दिया और वापस चले आये।
रजीय का अलमिया
इस अलमिया का इजमाल यह है कि क़बाएले अज़ल और फ़ारा ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) के पास अपना एक वफ़द भेजा और कहलवाया कि हम लोग इस्लाम लाना चाहते हैं लेहाज़ा चन्द मुबलेग़ीन को आप हमारे यहाँ भेज दें ताकि वह हमें कुरान व इस्लाम की तालीम दें। चुनानचे आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने मुरसिद इब्ने अबी मुरसिद ग़नवी की ख़्यादत में छः अफ़राद को अपने असहाब में से रवाना किया। जब यह लोग बतन रजीय में 1 पहुँचे तो मेज़बानों ने उनके साथ ग़द्दारी की और क़बीले हज़ील के लोगों को उनके ख़िलाफ़ उभार दिया और उन्होंने हमला करके सभी को क़त्ल कर दिया। 2
दूसरी रवायत यह है कि जब बनि हुज़ील के लोगों ने उन मुसलमानों पर हमला किया तो यह लोग भी मुक़ाबले पर आमादा हुए जिसके नतीजे में मुरसिद और उनके दो साथी मौक़े ही पर क़त्ल हो गये। बाक़ी तीन को उन्होंनें क़ैदी बना लिया और मक्के की तरफ़ ले चले , उनमें से भी एक सहाबी ने रास्ते में लड़कर जान दे दी बाक़ी दो को उन मलऊनों ने कुरैश के एक शख़्स के हाथ फ़रोख़्त कर दिया। जिसने जान लेवा ईज़ा रसानी के बाद फाँसी पर लटका दिया।
वाक़िया बैरे मऊना
माहे सफ़र सन् 4 हिजरी में क़बीले बनि आमिर का एक सरदार अबुबरा आमिर बिन मालिक , नज्द से मदीने आया और आन हज़रत (स.अ.व.व.) की ख़िदमत में बारयाब हुआ। आप ने उसे इस्लाम की दावत दी। उसने कहा कि मुझे कोई पसोपेश नहीं है इस से क़बल यह होगी कि आप तबलीग़ के लिये एक जमाअत मेरे साथ रवाना करें जो वहाँ के लोगों को इस्लाम की दावत दें और उन्हें हमवार करें। आपने फ़रमाया कि अहले नज्द से अन्देशा है कि वह कहीं मेरे आदमियों को गुज़िन्द न पहुँचाये। अबुबरा ने कहा कि वह मेरी पनाह में होंगे और में उनके तहाफुज़ का ज़िम्मेदार हूँगा। इस अहद व पैमाने के बाद आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने अपने असहाब से सत्तर सहाबियों को अपने एक मकतूब के साथ नज़्द रवाना कर दिया। उन लोगों ने नज़्द पहुँच कर बर मऊना में क़्याम किया और एक सहाबी हिराम बिन मुल्जान को आन हज़रत (स.अ.व.व.) का वह मकतूब देकर अबुबरा के भतीजे आमिर बिन तुफ़ैल के पास भेजा जो सरदारे क़बीला था। आन हज़रत (स.अ.व.व.) का नाम सुनकर वह मलऊन इस क़दर आग बगूला हुआ कि उसने हिराम को क़त्ल करा दिया और अपने क़बीले वालों को मरमऊना में क़्याम पज़ीर मुसलमानों पर हमले के लिये उकसाया मगर उन लोगों ने अबुबर्रा के अहद व पैमान कि बिना पर इन्कार कर दिया चुनानचे उसने दूसरे क़बायल की मदद से मुसलमानों पर हमला किया और उन्हें तहे तेग़ कर दिया। सिर्फ़ दो सहाबी बचे जिन में से एक काअब इब्ने ज़ैद थे जो मक़तूल समझकर ग़लती से छोड़ दिये गये थे दूसरे अम्र बिन उमय्या थे जो कै़द कर लिये गये थे मगर बाद में आमिर ने उन्हें अपनी माँ की एक मिन्नत के सिलसिले में आज़ाद कर दिया। रेहाई के बाद अम्र बिन उमय्या की तरफ़ वापस पलटते हुए जब क़राक़तुल कदर के मुक़ाम पर पहुँचे तो उन्हें बनि आमिर के दो आदमी नज़र आये। वह उनकी ताक मे लग गये। ग़र्ज़ वह दोनों जब एक दरख़्त के साये में आराम करने की ग़र्ज से लेटे और उनकी आँख लगी तो अम्र ने अपने साथियों के क़सास में उन्हें क़त्ल कर दिया और मदीने आ गये।
ग़ज़वा बनी नज़ीर
मदीने पहुँचने पर उम्र बिन उमय्या को मालूम हुआ कि उसने बनी आमिर के दो आदमियों को क़त्ल किया है उन्हे पैगम़्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) तहरीरी अमान नामा दे चुके थे और जब आन हज़रत (स.अ.व.व.) इस वाक़िये से मुत्तला हुए तो आपने फ़रमाया कि हमें उन दोनों मक़तूलीन का खून बहा देना चाहिये। और चूँकि आप क़बायले यहूद , बनि क़नीक़ा , बनि कुरैज़ा और बनि नज़ीर से बाहमी तआउन व साज़गारी कामुहादयिदा किये हुए थे लेहाज़ा आपने चाहा कि उन दोनों मक़तूलों के खूनबहा के सिलसिले में बनि नज़ीर से कुछ रक़म बतरे क़र्ज़ या बतौरे एआनत हासिल करें चुनानचे इस ज़रेदेयत के मुतालिक़ उन्हें पैग़ाम भिजवाया , उन्होंने कहलवाया कि आप हमारे यहाँ तशरीफ लायें जैसा फ़रमायेंगे उस पर अमल किया जायेगा। पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.व.) चन्द सहाबा के हमराह बनि नजीर की आबादी में जो मदीने से मुत्तासिल थी , तशरीफ़ ले गये और काब बिन अशरफ़ नामी एक शख़्स के मकान की दीवार से टेक लगा कर बैठ गये। शायद क़ातलाना मन्सूबा पहले ही से तैयार था इसलिये बनि नज़ीर के कुछ लोगों ने एक शख़्स अम्र इब्ने हिजाश यहूदी को इस अमर पर मामूर किया कि वह इस दीवार पर चढ़कर जिसके नीचे आन हज़रत (स.अ.व.व.) तशरीफ़ फ़रमां हैं एक भारी पत्थर ऊपर से गिरा दें ताकि मुहम्मद (स.अ.व.व.) का काम तमाम हो जाये। लेकिन चूँकि ख़ुदा हबीब का ख़ुद मुहाफिज़ था इसलिये बदतरीन फेल के इरतेकाब से पहले ही जिबरईल के ज़रिये पैग़म्बर (स.अ.व.व.) को आगाह कर दिया। जैसा कि इब्ने ख़लदून ने लिखा है कि अल्लाह ने बज़रिये वही अपने पैग़म्बर (स.अ.व.व.) को इस वाक़िये की इत्तेला दी।
अब इस वही इलाही के बाद ज़ाहिर है कि पैगम़्बर (स.अ.व.व.) का वहाँ रूकना ख़तरे से ख़ाली न था चुनानचे आप तेज़ी से उठे और मदीने वापस आ गये। और मुहम्मद इब्ने मुसलमा के ज़रिये उन्हें पैग़ाम भेजा कि तुम लोगों ने मुहायिदा की ख़िलाफ़वर्ज़ी करते हुए मेरे क़त्ल का इक़दाम किया है लेहाजा़ दस दिन के अन्दर अपना तमाम जमा जत्था समेट कर यहाँ से निकल जाओ और किसी दूसरी जगह सुकूनत इख़तियार करो। बनि नज़ीर ने जब पैग़म्बर (स.अ.व.व.) का यह तहदीदी हुक्म सुना तो वह ख़ाएफ हुए और मदीना छोड़ने पर तैयार हो गये मगर रईसुल मुनाफ़ेक़ीन अब्दुल्लाह इब्ने अबी के भड़काने से कि दो हज़ार की जमीयत से तुम्हारी मदद करूँगा , उन्होंने मदीना छोड़ने का अपना इरादा तर्क कर दिया और आन हज़रत (स.अ.व.व.) के पास कहलवा दिया कि हम अपने घरों को नहीं छोड़ेंगे आपसे जो करते बन पड़े वह कर लीजिये।
यह एक तरह से दावते जंग व क़ताल थी। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने एक मुख़तसर सा लश्कर तरतीब दिया इसका अलम हज़रत अली (अ.स.) के सुपुर्द फ़रमाया 2 और उनके क़िलों की तरफ़ पेश क़दमी के लिये उठ खड़े हुए।
बनि नज़ीर ने जब इस्लामी लश्कर को आते देखा तो वह क़िला बन्द हो गये। मुसलमानों के क़िले को चारों तरफ़ से घेर लिया। बनि नज़ीर ने मुहासिरा देखा तो अन्दर से पत्थर और तीर बरसाने लगे मगर मुहासिरा तोड़ने में कामयाब न हुए चन्द चहूदी निकले ताकि तीरों की जद पर लेकर मुसलमानों को घेरा उठा लेने पर मजबूर करें। उनमें से एक शख़्स ने पैगम़्बर (स.अ.व.व.) का ख़ेमा तक कर तीरमारा। उधर पैग़म्बर (स.अ.व.व.) ने अपना ख़ेमा वहाँ से हटाकर एक पहा़ड़ी के दामन में नसब करने का हुक्म दिया और इधर हज़रत अली (अ.स.) उस तीर अन्दाज़ का पता लगाने के लिये उठ खड़े हुए। और एक तरफ़ चल दिये। सहाबा ने पैग़म्बर (स.अ.व.व.) से पूछा कि अली (अ.स.) किधर गये ? फ़रमाया , कहीं गये होंगे अभी वापस आ जायेंगे , इतने में हज़रत अली (अ.स.) एक यहूदी का सर लिये हुए तशरीफ़ लाये और उसे पैग़म्बर (स.अ.व.व.) के क़दमों में डाल दिया। और फ़रमाया , यही वह बदबख़्त है जिसने आपके ख़ेमे पर तीर मारा था। यह यहूदियों का मशहूर तीर अन्दाज़ ग़लूल है और अभी इसके नौ साथी क़िले के बाहर घूम रहे हैं अगर चन्द आदमी मेरे साथ चलें तो उन्हें भी पकड़ा जा सकता है। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने अबुदजना , सुहैल इब्ने हनीफ़ और दो चार आदमी आपके साथ कर दिये और आप उनके साथ निकल खड़े हुए। अभी थोड़ी ही दूर गये होंगे कि वह यहूदी नज़र आये आपने उन्हें घेकर कर वही सबको मौत के घाट उतार दिया।
बनि नज़ीर ने जब देखा कि उनके आठ दस आदमी मारे गये और अब्दुल्लाह इब्ने अबी के दो हज़ार आदमियों का कहीं पता नही है तो उन्हें सिकस्त व हज़ीमत का एतराफ़ करते हुए आन हज़रत (स.अ.व.व.) को पैग़ाम भिजवाया कि अगर आप हमारी जान बख़्शी करें तो हम इस सरज़मीन को छोड़ने पर तैयार हैं। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने अपनी रज़ मन्दी ज़ाहिर करते हुए फ़रमाया , कि उन्हें असलहा साथ ले जाने की इजाज़त नही दी जा सकती बाक़ी अपनी तमाम चीज़ों वह अपने साथ ले जा सकते हैं। चुनानचे यहूदियों ने अपने हाथों से अपने घरों को मिसमार किया मकानों के दरवाज़े और ख़ि़ड़कियाँ जो कुछ वह लाद सकते थे छ- सौ ऊँटों पर लादा और गाते बजाते हुए चल दिये उनमें से कुछ लोग शाम के इलाक़ें की तरफ़ चले गये और एक गिरोह जिसमें सलाम इब्ने अबुल हक़ीक़ , कुनान इब्ने रबीय और हई इब्ने अख़तब भी शामिल थे ख़ैबर में आकर आबाद हो गया बनि नज़ीर की ज़मीनें और बाग़ात माले ही फ़ी होने की बिना पर पैग़म्बर (स.अ.व.व.) की मिलकियत क़रार पाये जैसा कि हज़रत उमर का कहना है कि बनि नज़ीर के अमवाल जो अल्लाह ने अपने रसूल (स.अ.व.व.) को दिलवाये वह आन हज़रत (स.अ.व.व.) की ख़ास मिलकियत थी। यह वाक़िया रबीउलअव्वल सन् 4 हिजरी में ग़ज़वा ओहद के छः माह बाद हुआ.
मुख़तलिफ़ वाक़ियात
• हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की विलादत हुई
• आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने हज़रत उम्मे सलमा से अक़द फरमाया।
• हज़रत अली इब्ने अबुतालिब (अ.स.) की मादरे गिरामी हज़रत फ़ात्मा बिन्ते असद ने रेहलत फ़रमायी।
ग़ज़वा ज़ातुर जेक़ा
क़ौमें यहूद और कुफ़्फ़ारे कुरैश की मुश्तरका साज़िश ने अरब के तमाम क़बायल को इस्लाम के इस्तेसाल और मुख़ालेफ़त पर आमादा और हमवार कर लिया था जिसके नतीजे में छोटे बड़े क़बीले रोज़ अफजडूं सर उठा करते और मदीने पर फ़ौज कशी के ख़्वाब देखा करते थे। चुनानचे मुहर्रम सन् 5 हिजरी में क़बाएले इ्न्नमा रूसालेबा ने भी मदीने पर चढ़ाई का मन्सूबा बनाया और फौज़ें जमा करने लगे। आन हज़रत (स.अ.व.व.) को ख़बर हुई तो आप चार सौ सहाबा की एक जमीअत के साथ वहाँ पहुँचे। हजूर (स.अ.व.व.) की आमद का हाल सुन कर इधर उधऱ से आय़े हुए लोग भाग खड़े हुए और उन दोनों क़बीलों के अफ़राद भी पहाड़ों के दामन में मुन्तशिर हो गये। आन हज़रत (स.अ.व.व.) वहाँ एक हफ्ते मुक़ीम रहे मगर जब सामने कोई नहीं आया तो आपने मराजियत इख़्तेयार की और मदीने वापस आ गये।
ग़ज़वा दूमतुलजन्दल
दो मुतुलजन्दल के नसरानी सरदार इकीदर बिन अब्दुल मलिक ने भी इसी साल मदीने पर हलमा करने की ग़र्ज़ से मुख़तलिफ क़बाएल को जमा किया। आन हज़रत (स.अ.व.व.) भी एक हज़ार का लश्कर लेकर उसकी सर कूबी को रवाना हुए मगर जब आप वहाँ पहुँचे तो वह अपनी अपनी भेड़ें और बकरियाँ छोड़ कर फ़रार हो चुके थे जो मुसमलानों के क़बज़े मे आये। आन हज़रत (स.अ.व.व.) वापस हुए और 25 रबीउस्सानी को वारिदे मदीना हुये।
ग़ज़वा बनि मुसतलिक़
इसको ग़ज़वा मुरयसी भी कहा जाता है। यह दूसरी शाबान सन् 5 हिजरी में वकू पज़ीर हुआ। इसका मुख़तसर क़िस्सा यह है कि अरब के अबीज़रार की क़यादत में मदीने पर हलमा आवर होना चाहा। आन हज़रत (स.अ.व.व.) कने मुरयसी के पास उसका मुक़ाबला किया। 2 दीगर क़बाएल के अफ़राद जो बनि मुसतालिक़ की मदद के लिये इकट्ठा हुए थे सर पर पाँव रख कर भाग खड़े हुए। हारिस और उसके क़बीले के दस अफ़राद मौत के घाट उतार दिये गये दो सौ आदमियों की तादाद असीर हुयी। पाँच हज़ार भेड़ें और एक हज़ार ऊँट मुसलमानों के हाथ आये। हारिस की बेटी जूवेरिया मुसलमान होकर आन हज़रत (स.अ.व.व.) की ज़ौजियत में आयी। इस मौक़े पर सहाबा ने कहा कि हरमे रसूल (स.अ.व.व.) के अइज़्ज़ा व अक़रूबा क़ैद नीहं रह सकते चुनानचे तमाम क़ैदियों को छोड दिया जाये।
इफ़क का वाक़िया
इस ग़जवा (बनि मुसतालिक़) के सफ़र में आन हज़रत (स.अ.व.व.) की ज़ौजा हज़रत अयशा भी आपके साथ थीं चुनानचे वापसी में एक मुक़ाम पर मंजिल के दौरान उनकी हैकल कहीं गिर गयी जिसकी तलाश मे वह इस क़दर मसरूफ व सरगर्दा हुई कि आन हज़रत (स.अ.व.व.) का काफ़िला आगे बढ़ गया। आपके सारबान ने भी यह ख़्याल न किया कि आप महमिल से ग़ायब हैं चुनानचे वह भी ऊँट की मेहार थाम कर चलता बना और मोहतर्मा जंगल व बियांबान में तन्हा रह गयीं। आपने भी सोचा कि जब सारबान को महमिल के ख़ाली होने का एहसास होगा तो वह खुद ही पलट कर आयेगा इसलिए मुतमईन हो कर एक मुक़ाम पर सो गयी। क़ाफ़िले के पीछे सफ़वान बिन मुआतिल नामी एक नौजवान शख़्स गिरी पड़ी चीज़ों की देख भाल पर मामूर था। उसने हज़रत आयशा को जब तन्हा सोते हुए देखा तो अपने साथ ऊँट पर बिठा कर ले आया।
जो लोग आसतीन पैग़म्बर के साँप थे वह कब चूकने वाले थे ? उन्होंने हज़रत आयशा की इस परेशानी और सरगरदानी को उनीक बदनियती पर मामूल किया और उन पर तोहमतें आयद करके उनका मज़ाख़ उड़ाया। इस इल्ज़ाम व इस्तेहज़ा में जो लोग ज़्यादा नुमाया और पेश पेश थे उनमें हज़रत अबुबकर की ख़ाला ज़ाद बहन के साहबज़ादे , मुस्तह बिन असासा , अब्दुल्लाह बिन अभी मुनाफिक़ , ज़ैद बिन रफ़ाआ , हिसान बिन साबित , और हमना बिन्ते हजअश वग़ैरा के नाम ख़ास तौर पर क़ाबिले ज़िक्र हैं।
मुँह से नुकली हुई बात कोठे चढ़ी और तमाम लश्कर में शोहरा हो गया। आन हज़रत (स.अ.व.व.) को भी सख़्त सदमा हुआ यहाँ तक कि आपने आयशा के बारे में हज़रत अली 0 से मशविरा तलब किया उन्होंने फरमाया तलाक़ दे कर अलग कीजिये आपके लिये औरतों की कमी नहीं हैं। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने एक माह तक आयशा को मुँह नहीं लगाया। जब कुरान की आयत नाज़िल हुई तो आप को भी इत्मेनान हुआ और हज़रत अली (अ.स.) भी मुतमईन हुए और उसके साथ ही इत्तेहाम कुनिन्दा अफ़राद को अस्सी अस्सी कोड़े लगाये गये। इस वाक़िये के बाद हज़रत आयशा ने हज़रत अली (अ.स.) को कभी माफ़ नहीं किया। हमेशा नफ़रत करती रहीं और आपकी तरफ़ से उम्र भर बत्तारीन दुश्मनी के मुज़ाहेरे होते रहे। 1