तारीखे इस्लाम 2

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तारीखे इस्लाम 2 लेखक:
कैटिगिरी: इतिहासिक कथाऐ

तारीखे इस्लाम 2

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: जनाब फरोग़ काज़मी साहब
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तारीखे इस्लाम 2

तारीखे इस्लाम 2

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

जंग औतास

हुनैन का मारका सर होने के बाद वहां क़याम के दौरान पैगम़्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) ने अबुआमिर अशरी की क़यादत में एक लश्कर बनि हवाज़िन की सरकूबी के लिये ऊतास रवाना किया जो हुनैन और ताएफ़ के दरमियान वाक़े है। क़बीलये हवाजि़न से जंग हुई और उनके नौ आदमियों को मौत के घाट उतार कर अबुआमिर शहीद हुए। उनकी शहादत के बाद उनके भतीजे अबुमूसा अशरी ने फौज़ की कमान संभाली। सैकड़ों हवाज़िन मारे गये और लश्करे इस्लाम फ़तहायाब हुआ। तबरी , कामिल , अबुलफ़िदा , रौज़तुल हयाब और हबीबुल सैर वग़ैरा में है कि इस जंग में चौबीस हज़ार ऊँट छः हज़ार गुलाम , चालीस हज़ार से ज़्यादा गौसफ़िन्द और चार हज़ार औखिया 1 चाँदी मुसलमान को बतौर माले ग़नीमत हासिल हुआ जिसे अबुमूसा अशरी आन हज़रत (स.अ.व.व.) कि ख़िदमत में हाज़िर हुए। हुज़ूर (स.अ.व.व.) ने हुक्म दिया कि जितना भी माले ग़नीमत है आबाद बिन बशीर अन्सारी के ज़ेरे निगरानी मुक़ाम जाराना 1 में जमां रखा जाये।

ताएफ़ का मुहासिरा

बनि सक़िफ़ और उनके सरदार मालिक इब्ने औफ़ नसरी ने हुनैन से भाग कर ताएफ़ ले ली थी और साल भर का सामाने रसद और आलाते जंग जमा करके क़िला बन्द हो गये थे क्योंकि उन्हें मुसलमानों से यह धड़का था कि वह उनकी सरकूबी ज़रूर करेंगे। चुनाचने लश्करे इस्लाम ने आन हज़रत (स.अ.व.व.) की क़यादत व सरबराही में ताएफ़ का रूख़ किया और क़िले के सामने पड़ाव डालकर उन्हें मुहासिरे में ले लिया। दौनों तरफ़ तीरों का तबादला होता रहा मगर चूँकि मुसलमान खुले हुए मैदान मे और बनि सक़ीफ़ क़िला बन्द थे इसलय वह मुसलमानों की बानिस्बत ज़्यादा महफूज़ थे. एक दिन बनि सकी़फ़ ने क़िले की फ़ैसल से मुसलमानों पर इस क़दर तीर बरसाये कि कई मुसलमान शहीद और मुतादिद ज़ख़्मी हो गये। जब दुश्मन को ज़ेर करने की कोई सूरत नज़र न आई तो सलमान फ़ारसी ने मिनजनीक़ के ज़रिये किले की दीवार पर संगबाज़ी का मशविरा दिया। चुनानचे मिनज़नीक़ के ज़रिये बड़े बडे पत्थर फेंके गये और क़िले की दीवार में सिगाफ़ डाल दिया गया। जब मुसलमानों ने इस शिगाफ़ के रास्ते से क़िले के अन्दर दाख़िल होना चाहा तो बनि सक़ीफ़ ने लोहे की दहकती हुई सलाखें ऊपर से फेंकी जिसकी वजह से मुसलमान मजबूर होकर पीछे हटे और क़िले को सर करने में कामयाब न हो सके।

इसी मुहासिरे के दौरान पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) ने हज़रत अली (अ.स.) को इस अमर पर मामूर किया कि वह एक दस्ते के हमराह ताएफ़ के गिर्द व नवाह में जायें और जहां कहीं बुतख़ाना नज़र आये उसे मिस्मार कर दें। हज़रत अली (अ.स.) रवाना हए। अभी रात की तारीकी छटने भी ने पाई थी कि क़बीलये बनि शसम की तरफ़ आपका गुज़र हुआ उन्होंने मुज़ाहेमत की और उनमें से एक नामवर जंगजू आगे बढ़कर मुबारिज़ तलब हुआ हज़रत अली (अ.स.) ने एक ही वार में उसे ठिकाने लगा दिया। बनि शासम ने उसे क़त्ल होते देखा तो वह पीछे हट गये और फिर किसी को मुक़ाबिले में आने की हिम्मत न हो सकी। अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने क़दम आगे बढ़ाया और बनि हवाज़िन व बनि सक़ीफ़ का जो भी बुतख़ाना नज़र आया उसे तोड़ फ़ोड़ कर बराबर कर दिया जब तमाम इलाक़ा बुतों से पाक हो गया तो वापस पलटे। पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.व.) ने उन्हें कामयाब व कामरान वापस आने पर मुबारकबाद दी और गोशों मे खड़े होकर बड़ी देर तक राज़ व नियाज़ की बातें की। कुछ लोगों को यह राज़दाराना अन्दाज़े गुफ्तगू नागवार हुआ कहने लगे कि आज तो इब्ने अम से सरगोशियों का सिलसिला दराज़ हो गया है। हज़रत उमर बरदाशत न कर सके उन्होंनें आख़िरकार रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) से कह दे कि आप अली (अ.स.) से देर तक ख़लवत में बाते करते हैं और हमें क़रीब फटकने भी नहीं देते इस पर आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने फ़रमाया कि मैने अली (अ.स.) से बाते नहीं की बल्कि अल्लाह ताला ने की है। 1

उन्हें अय्यामे मुहासिरे में नाफ़े इब्ने ग़ीलान बनि सक़ीफ़ के चन्द सवारों को लेकर क़िले से बाहर निकला , हज़रत अली (अ.स.) ने उसका ताअक्कुब किया और विज नाम की एक वादी में उसे क़त्ल कर दिया उसके क़त्ल होते ही उसके साथी भाग खड़े हुए और फिर महसूरीन को बाहर निकलने की जुराअत न हो सकती। इस अरसे में ताएफ़ के इतराफ़ में रहने वालों ने इस्लाम कुबूल कर लिया और बनि सक़ीफ़ के कुछ गुलाम भी क़िले से बाहर निकल कर आज़ादी के वादे पर मुसलमान हो गये।

मुसलमानों को मुहासिरा किये हुए बीस दिन हो चुके थे मगर क़िला फ़तेह होता हुआ नज़र न आता था चुनानचे आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने बनि सक़ीफ़ को उनकी हालत पर छोड़ कर मुहासिरा उठा लेना मुनासिब समझा और यह ऐलान फ़रमाया कि कल हम यहां से वापस चलेंगे। चुनानचे दूसरे दिन सुबह के वक़्त सहाबा ने मुहासिरा उठा लिया। कुछ लोगों ने आन हज़रत (स.अ.व.व.) से कहा कि या रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ने बद दुआ के बजाये फ़रमाया। परवर दिगार। बनि सक़ीफ़ को हिदायत फरमा और उन्हें मेरे पास हाज़िर कर। 2

सरकारे दो आलम (स.अ.व.व.) की दुआ का नतीज़ा थोड़े ही अरसे के बाद ज़ाहिर हुआ और बनि सक़ीफ़ का एक नुमाइन्दा वफ़द मदीने में आकर रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) की ख़िदमत में हाज़िर हो गया और कहा या रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) , हम इस्लाम कुबूल करेत हैं मगर हमारी इस्तेदुआ है कि बनि सक़ीफ़ के बुत लात को तीन बरस तक तोड़ा न जाये मगर पैगम़्बर (स.अ.व.व.) ने उनकी यह बात माने से इन्कार कर दिया तो उन लोगों ने कहा कि अगर आप नहीं मानते तो उसे तोड़ने के लिए किसी और को मामूर फ़रमायें हम लोग उसे अपने हाथों ने नहीं तोड़ेंगे। आन हज़रत ने उनकी यह बात मान ली। इस वफ़द ने पलट कर अपने क़बीले वालों से सारी गुफ़्तगू नक़ल की और उन्हें समझाया तो वह सबके सब गै़र मुशरूत तौर पर मुसलमान हो गये।

ग़नाएम की तक़सीम

पांचवी ज़ीक़ाद को ताएफ़ के सफ़र से पलट कर पैगम़्बरे इस्लाम जब जाराना में क़याम फ़रमा हुए तो बहुत से मुसलमानों ने माने ग़नीमत की तक़सीम पर इसरार किया और कहा या रसूल उल्लाह ऊँटों भेडों बकरियों को यही बांट दीजिए चुनाचने आपने इजाज़त दी और तक़सीम शुरू हो गई आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने अपने खुमुस में से नौ मुस्लिमों को उनकी दिलजूई और तालिफ़े कलब के लिये सौ ऊँट दिये। उनमें अबुसुफ़ियान और उसके दोनों बेटे यज़ीद व माबिया भी शामिल थे और आम तौर से हर शख़्स को चार ऊँट पर उन्होने कहना शुरू किया कि आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने अपने रिश्तेदारों और क़बिले वालों के साथ इम्तियाज़ी सुलूक दिया है हालाँकि हमने उस वक़्त दस्ते ताउन बढ़ाया जब कोई मुआविन मददगार नहीं था। उनका यह शिकवा आन हज़रत (स.अ.व.व.) के कानों तक पहुँचा तो आपने उन्हें जमा किया और इरशाद फरमाया कि मैनें उन लोगों के साथ यह बरताव महज़ इस बिना पर किया है कि वह साबित क़दम रहें और बददिल होकर इस्लाम से बरगश्ता न हों। क्या तुम लोग इस पर खुश नहीं हो कि उनके साथ भेड़ बकरियां और तुम्हारे साथ ख़ुदा का रसूल है ? यह सुना था कि अन्सार की आँखों में आँसू आ गये और वह कहने लगे या रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) हम इस तक़सीम पर दिल व जान से राज़ी हैं।

अब्बास इब्ने मरदास असलमी शायर भी आम हिस्से से ज़्यादा का ख़्वाहिश मन्द था चुनानचे उसने शिकवा आमेज़ अशआर कह कर इस तक़सीम पर अपनी नाराज़गी का इज़हार किया। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने फ़रमाया , उसकी ज़बान काट दो। पैग़म्बर (स.अ.व.व.) का मक़सद था कि उसे कुछ और दे दिलाकर उसकी ज़ुबान पर मोहरे ख़मोशी लगा दो मगर वह यही समझा कि उसकी ज़बान काटने का हुक्म हुआ है। यह सज़ा सुनकर वह कांप उठा और जब हज़रत अली (अ.स.) ने उसेस आपने साथ चलने को कहा तो ग़िड़ग़िड़ाने लगा और कहा आप कहां ले जायेंगे ? फरमाया रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ने जो हुक्म दिया उस पर अमल करने के लिये। चुनानचे आप उस को लिये हुए उस जगह आये जहां ग़नीमत के ऊँट चर रहे थे आपने फ़रमाया कि इन ऊँटों में से और ऊँट ले कर सौ की तादाद पूरी कर लो और तुम भी मौअल्लेफ़तुल कुलूब लोगों की सफ़ में शामिल हो जाओ या फिर उन्हीं चार ऊँटों पर क़ेनाअत करो। उसने कहा , या अली (अ.स.) ! यो चार ऊँट मुझे गवारा हैं मगर यह गवारा नहीं है कि मेरा शुमार मोअल्लेफ़तुल कुलूब में हो।

इस तक़सीम के बाद आन हज़रत (स.अ.व.व.) मक्के मोअज़्जमा में मुक़ीम हुए वहां मुनासिके उमरा वग़ैरा बजा लाये और अताब इब्ने असीद को आमिले मक्का मुक़र्रर किया मआज़ इब्ने जबल को कुरान व एहकामे शरीआ की तालीम पर मामूर फ़रमाया। फिर मक्के से रवाना होकर ज़िलहिज़ की इब्तेदा में वारिदे मदीना हुए।