इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में

इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में0%

इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाह सादिक़ शीराज़ी साहब
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 15872
डाउनलोड: 4065

कमेन्टस:

इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 3 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 15872 / डाउनलोड: 4065
आकार आकार आकार
इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में

इमाम मेहदी (अ)हदीसे रसूल की रौशनी में

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

बिलस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम

मुक़द्दमा

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का नामे नामी तमाम आसमानी किताबों तौरैत ,ज़बूर ,इन्जील में मौजूद है।

क़ुरआने करीम की कई आयात में आपके बारे में तफ़्सीर व तावील की गई है।

पैगम्बरे इस्लाम (स.) की ज़बाने मुबारक से मक्के ,मदीने में ,मेराज के मौक़े पर और दूसरी मुनासेबतों पर तमाम ही आइम्मा-ए मासूमीन के बारे मुख़तलिफ़ हदीसे जारी हुई हैं।

अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी अपने बेटे महदी का ज़िक्र किया और हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने भी इमाम महदी का तज़केरा फ़रमाया है। इसी तरह हज़रत इमाम हसन और हज़रत इमाम हुसैन हज़रत इमाम सज्जाद हज़रतिमाम बाक़िर हज़रत इमाम सादिक़ हज़रत इमाम रिज़ा हज़रत इमाम मुहम्द तक़ी हज़रत इमाम अली नक़ी व हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिमु अस्सलाम ने भी अपने बेटे इमाम महदी का ज़िक्र किया है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के असहाब में से अबू बकर ,उमर ,उस्मान ,अब्दुल्लाह इब्ने उमर ,अबू हुरैरा ,समरा बिन जुन्दब ,सलमान ,अबुज़र ,अम्मार और इनके अलावा भी बहुत से असहाब ने हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ज़िक्र किया है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बीवियों में से आइशा ,हफ़सा ,उम्मे सलमा और कई दूसरी बीवियों ने हज़रत इमाम महदी का ज़िक्र किया है।

ताबेईन में औन बिन हुजैफ़ा ,इबादियः बिन रबी और क़ुतादा जैसे अफ़राद ने इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ज़िक्र किया है।

ख़ुदावन्दे आलम महदी (अ.) के ज़रिये दीन कामिल फ़रमायेगा।

बयान उल कंजी(शाफ़ेई) में अली बिन जोशब से रिवायत की है ,अली बिन जोशब बयान करता है अली इब्ने अबी तालिब फ़रमाते हैं कि मैने रसूलल्लाह (स.) से सवाल किया कि क्या आले मुहम्मद के महदी हम में से हैं या हमारे अलावा हैं ?हज़रत ने फ़रमाया: ऐसा नही है ,बल्कि ख़ुदावन्दे आलम हम अहले बैत के सबब दीन (इस्लाम) को इख़्तेताम तक पहुँचायेगा। जिस तरह उसने हमारे ही नबी (स.) के ज़रिये उसको कामयाब बनाया है और हमारे ही ज़रिये लोग फ़ितने से महफ़ूज़ रहेगें। जिस तरह वह शिर्क से महफ़ूज़ रहे और हमारी ही मुहब्बत के सबब अदावत के बाद उनके दिलों में मेल मुहब्बत और भाईचारगी पैदा कर देगा। जिस तरह वह शिर्क की अदावत के बाद एक दूसरे के भाई क़रार पाये।

मुन्तख़ब कन्ज़ुल उम्माल: रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: अगर दुनिया में सिर्फ़ एक रोज़ बाक़ी रह जायेगा तो ख़ुदा वंदे आलम उस रोज़ को इतना तूलानी कर देगा कि मेरे अहले बैत से एक शख़्स क़ुस्तुन्तुन्या और दैलम के पहाड़ों का हाकिम क़रार पायेगा।[7][7]

हाफ़िज़ अलक़न्दुज़ी अलहनफ़ी अबू सईद ख़िदरी से बतौरे मरफ़ूअ रिवायत करते हैं ,हुज़ूर (स.) में फ़रमाया: महदी हम अहले बैत में से हैं और बलंद सर का हामिल है। वह ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह भर देगा ,जिस तरह वह पहले ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।

अलफ़ुसूलुल मुहिम्मा अल्लामा मालिकी बिन सबाग़ में अबू दाऊद और तिरमीज़ी अपनी सुनन में अब्दुल्लाह बिन मसऊद से (बतौरे मरफ़ूअ) रिवायत करते हैं कि अब्दुल्लाह बिन मसऊद बयान करते हैं कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: अगर दुनिया से एक रोज़ भी बाक़ी रह जायेगा तो ख़ुदावन्दे आलम उस रोज़ को इतना तूलानी कर देगा कि मेरे अहले बैत से एक शख़्स ज़ाहिर होगा ,जिसका नाम मेरे नाम पर होगा। जो ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भर चुकी होगी।

अलकंजी ( शाफ़ेई ) अबूसईद ख़िदरी से रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: आख़री ज़माने में फ़ितनों का ज़हूर होगा। (जिसके दरमियान) महदी (अ.) नामी एक शख़्स ज़ाहिर होगा जिसकी अता व बख़्शिश मुबारक होगी।

यनाबी उल मवद्दत में इब्ने अब्बास से रिवायत की गई है कि इब्ने अब्बास बयान करते हैं कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: इस दीन की कामयाबी अली (अ.) से हुई। अली (अ.) की शहादत के बाद दीन में फ़साद बरपा होगा ,जिसकी इस्लाह फ़क़त महदी (अ.) के ज़रिये होगी।

यनाबी उल मवद्दत में अली इब्ने अबी तालिब से रिवायत की गई है कि हज़रत ने फ़रमाया: दुनिया ख़त्म न होगी यहा तक कि मेरी उम्मत से एक शख़्स हुसैन (अ.) के फ़रज़न्द से ज़ाहिर होगा और ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगा ,जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भर चुकी होगी।

हाशिया: हदीस शरीफ़ में बयान हुआ है कि इस दुनिया की कामयाबी अली इब्ने अबी तालिब (अ.) के सबब हुई। मौजूदा हदीस में रसूलल्लाह (स.) ने उन कलेमात की तरफ़ इशारा फ़रमाया जो आपने अली इब्ने अबी तालिब की फ़ज़ीलत में इब्तेदाए इस्लाम में इरशाद फ़रमाये थे। मसलन:

रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: इस्लाम अली बिन अबी तालिब की तलवार और ख़दीजा के माल से कामयाब हुआ।

ख़ंदक़ के रोज़ अली की ज़रबत दोनों जहान की इबादत से अफ़ज़ल है।

मैं और अली इस उम्मत के बाप हैं।

जिस वक़्त अली इब्ने अबी तालिब अम्र इब्ने अब्दे वुद से जंग करने के लिए निकले तो रसूलल्लाह (स.) ने फऱमाया: कुल्ले ईमान कुल्ले कुफ़्र के मुक़ाबले में जा रहा है।

हुज़ूर ने जंगे ख़ंदक़ के वक़्त दुआ करते हुए ख़ुदावन्दे आलम के हुज़ूर में इस तरह अर्ज़ किया ,परवरदिगार !अगर तू चाहता है कि तेरी इबादत न की जाये तो फिर तेरी इबादत कभी न होगी। (मुअल्लिफ़)

यनाबी उल मवद्दत में अली इब्ने अबी तालिब से रिवायत की गई है कि हज़रत ने फ़रमाया: दुनिया ख़त्म न होगी यहाँ तक कि मेरी उम्मत से एक शख़्स हुसैन के फ़रज़न्द से ज़ाहिर होगा और ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगा जिस तरह से वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।

यनाबी उल मवद्दत में हुज़ैफ़ा बिन यमान से रिवायत की गई है कि हुज़ैफ़ा बयान करते हैं कि हमसे रसूलल्लाह (स.) ने ख़िताब करते हुए क़ियामत तक होने वाले हालात की ख़बर दी और इस तरह इरशाद फ़रमाया: अगर दुनिया से सिर्फ़ एक रोज़ बाक़ी रह जायेगा तो भी ख़ुदावन्दे आलम उस रोज़ को इतना तूलानी कर देगा कि उसमे मेरी औलाद से एक शख़्स को मबऊस फ़रमायेगा ,जिसका नाम मेरे नाम पर होगा। सलमान ने अर्ज़ की ,या रसूलल्लाह ! आप का वह कौन सा फ़रज़न्द होगा ?हुज़ूर ने इमाम हुसैन की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाया: मेरा वह फ़रज़न्द इसकी औलाद से होगा।

यनाबी उल मवद्दत में क़ुर्रतुज़ ज़नी के वास्ते से रसूलल्लाह (स.) से रिवायत की गई है कि हुज़ूर ने फ़रमाया: जिस वक़्त ज़मीन ज़ुल्म व जौर से भर जायेगी तो मेरे अहलेबैत से एक शख़्स ज़ाहिर होगा और वह ज़मीन को अदल व इंसाफ़ सेइस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भर चुकी होगी।

यनाबी उल मवद्दत में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत की गई है कि हुज़ूर (स.) ने अली इब्ने अबी तालिब (अ.) से फ़रमाया: ऐ अली! लोगों के हसद से परहेज़ करना जो मेरी वफ़ात के बाद ज़ाहिर होगा। ऐसे लोगों पर ख़ुदावन्दे आलम लानत करता है और लानत करने वाले लानत करते हैं। (इसके बाद रोते हुए फ़रमाया) मुझे जिबरईल ने ख़बर दी है कि यह लोग अली पर मेरे बाद ज़ुल्म करेगें और यह ज़ुल्म क़ाइम के ज़हूर होने तक बाक़ी रहेगा। उन लोगों की मक्कारी व अय्यारी ऊरूज पर होगी और उम्मत उन की मुहब्बत पर जमा न होगी। उनकी शान कम होगी उनका इंकार करने वाला ज़लील होगा। उनकी तारीफ़ व मदह करने वालों की कसरत होगी और यह उस वक़्त होगा जब शहर मुतग़य्यर हो जायेगें। बंदे कमज़ोर हो जायेगें और नाउम्मीदी बढ़ जायेगी। उस वक़्त मेरी औलाद से क़ायम अल महदी (अ.) ज़हूर करेगा। ख़ुदावन्दे आलम उनकी तलवार के ज़रिये हक़ को ज़ाहिर फ़रमायेगा और लोग उसकी रग़बत और ख़ौफ़ से पैरवी करेगें। फिर हज़रत (अ.) ने फ़रमाया:

''ऐ लोगो ,मैं तुमको बशारत देता हूँ ,ख़ुदा का वादा हक़ है। वह अपने वादे के ख़िलाफ़ हरगिज़ नही करता और उसका फ़ैसला कभी तबदील नही होता क्योंकि वह हकीम व ख़बीर है। यक़ीनन अल्लाह की तरफ़ से कामयाबी क़रीब है। परवरदिगार यह मेरे अहलेबैत हैं इन से हर तरह की कसाफ़त को दूर फ़रमा और उनकी नुसरत फ़रमा और उनको इज़्ज़त अता कर ज़िल्लत से महफ़ूज़ रख और मुझे उनके दरमियान बाक़ी रख इसलिए कि तू जो करना चाहता है उस पर क़ुदरत रखता है। ''

इब्ने असाकर की तारीख़े दमिश्क में इब्ने अब्बास की रिवायत है कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: वह उम्मत किस तरह हलाक हो सकती है ,जिसकी इब्तेदा में मैं और आख़िर में ईसा और दरमियान में महदी हों।

हाशिया: मज़कूरा हदीस में रसूलल्लाह (स.) ने इरशाद फ़रमाया: ईसा उम्मत के आख़िर में होगें। मुमकिन है हदीस का मतलब यह हो कि चूँकि हज़रत ईसा (अ.) महदी (अ.) के ज़हूर के बाद आसमान से नाज़िल होगें ,पस इस तरह ईसा (अ.) महदी (अ.) से बाद में होगें। लिहाज़ा यह कहना सही है कि अव्वल रसूलल्लाह (स.) (स.) हैं और वसत में महदी (अ.) और आख़िर में ईसा (अ.) हैं।

सुनने निसाई में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत की गई है कि हुज़ूर ने फ़रमाया वह उम्मत कैसे हलाक हो सकती है जिसके अव्वल में मैं हूँ ,दरमियान में महदी (अ.) और आख़िरी में ईसा (अ.) हैं।

यनाबी उल मवद्दत में अबू सईद ख़िदरी से रिवायत की गई है कि वह बयान करते हैं मैं फ़ातिमा (अ.) की ख़िदमत में उस वक़्त हाज़िर हुआ ,जबकि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) बीमार थे। शहज़ादी ने रोते हुए अर्ज़ किया बाबा जान मैं आपके बाद ज़ाहिर होने वाले हालात से डरती हूँ। हुज़ूर (स.) ने इरशाद फ़रमाया: ऐ फ़ातिमा ! ख़ुदावन्दे आलम ज़मीन वालों पर नज़र की तो उसने तुम्हारे बाप को मुन्तख़ब किया और रसूल बनाया ,फिर दूसरी मर्तबा नज़र की तो उसने तुम्हारे शौहर को मुन्तखब किया और मुझे हुक्म दिया कि मैं तुम्हारी शादी अली से कर दूँ ,इस पर मैने तुम्हारी शादी अली से की ,जो मुसलमानों के दरमियान हिल्म के एतेबार से बुज़ुर्ग हैं ,इल्म में सबसे ज़्यादा हैं और इस्लाम में सबसे मुक़द्दम है। (यहा तक हुज़ूर (स.) ने फ़रमाया) इस उम्मत में मेरे दो नवासे (हसन व हुसैन) तुम्हारे फ़रज़न्द हैं और इस उम्मत में मेरा एक (फ़रज़ंद) महदी (अ.) होगा।

अबू हारूने अबदी कहता है वहब इब्ने मनिया ने बयान किया है कि जब मूसा की आज़माइश इनकी क़ौम के ज़रिये हुई तो उनकी क़ौम ने बछड़े को अपना ख़ुदा क़रार दिया। यह अम्र मूसा पर बहुत गराँ गुज़रा। ख़ुदा वन्दे आलम ने फ़रमाया: ऐ मूसा तुम से क़ब्ल जितने भी अम्बिया हुए उन सबकी आज़माइश उनकी क़ौम के ज़रिये हुई और मुहम्मद (स.) के बाद उनकी क़ौम एक बड़ी आज़माईश में मुब्तला होगी। यहाँ तक कि वह एक दूसरे पर लानत करेगें। फिर ख़ुदावन्दे आलम उनकी मुहम्मद (स.) की औलाद से एक शख़्स से इस्लाह फ़रमायेगा ,जिसका नाम महदी होगा।

इब्ने अब्दुल बर अपनी किताब अल इसतिआब फ़ी असमाइल असहाब में जाबिर सदफ़ी के वास्ते से पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत करते हैं कि हज़रत मुहम्मद (स.) ने फ़रमाया: मेरी उम्मत से एक शख़्स ज़ाहिर होगा जो ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगा।

यनाबी उल मवद्दत मवद्दत में अली इब्ने अबी तालिब (अ.) से रिवायत की गई है कि हज़रत ने फ़रमाया अनक़रीब ख़ुदावन्दे आलम ऐसी क़ौम को लायेगा जिन्हे ख़ुदा दोस्त रखता होगा और वह लोग भी ख़ुदा को दोस्त रखते होगें और ख़ुदा वन्द उनमें से एक ग़रीब अजनबी को हुकुमत अता करेगा ,पस वह महदी हैं ,जिनका चेहरा सुर्ख़ और बाल ज़र्द होगें ,वह ज़मीन को बग़ैर किसी मशक़्क़त के अदल व इंसाफ़ से भर देगें। वह अपने वालेदैन से बचपने में जुदा हो जायेगें।(लोगों) के नज़दीक अज़ीज़ होगें। मुसलमानों के शहरों पर अमन व अमान के साथ हुकुमत करेगें। लोग उनकी बात तवज्जोह से सुनेगें। जवान और बुढ़े इताअत करेगें। वह ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह से भर देगें ,जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। उस वक़्त इमामत कामिल हो जायेगी। महदी की ख़िलाफ़त मुक़र्रर हो जायेगी और ख़ुदा लोगों को उनकी क़ब्रों से ज़िन्दा उठायेगा। ज़मीन आबाद हो जायेगी ,और नहरें जारी होगीं ,फ़ितना व ग़ारतगरी ख़त्म हो जायेगी और ख़ैर व बरकत में इज़ाफ़ा होगा।

महदी(अ) की बैअत काबे से क़रीब वाक़े होगी अलकंजी(शाफ़ेई) बरिवायते होज़ैफ़ा बयान करते हैं ,आँ हज़रत(स) ने फ़रमाया: अगर दुनिया से सिर्फ़ एक रोज़ भी बाक़ी रह जायेगा ख़ुदावंदे आलम उस दिन में एक शख्स को मबऊस फऱमायेगा जिसका नाम मेरे नाम पर होगा और अख़लाक़ मेरे अख़लाक़ जैसा होगा लोग उसकी रुक्न व मक़ामे इब्राहीम के दरमियान बैअत करेगें। महदी के ज़रीये ख़ुदावंदे आलम दीन की हक़्क़ानीयत को बाक़ी रखेगा और फ़ुतुहात अता करेगा। तमाम रुए ज़मीन पर ला इलाहा इल्लललाह के कहने वाले लोग ही बाक़ी रहेंगें। सलमान ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह(महदी) आपकी कौन सी औलाद से होंगें ?आपने इमाम हुसैन की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाया: मेरे मेरे इस फ़रज़न्द की औलाद से होगा।

किताबुल महदी में अबी वायल से रिवायत की गयी वह बयान करता है अली बिन अबी तालिब ने हुसैन की जानिब नज़र करते हुए फ़रमाया मेरा यह फ़रज़ंद सैय्यद है और उसी तरह का नाम रसूलल्लाह(स) ने रखा है। अनक़रीब इसके सुल्ब से एक शख़्स ज़ाहिर होगा जिसका नाम तुम्हारे नबी पर होगा। यह उस वक़्त ज़हूर करेगा जबकि लोग ग़फ़लत में पड़े होंगें। हक़ मुर्दा हो चुका होगा ज़ुल्म व जौर ज़ाहिर होगा। उसके ज़हूर से साकिनाने आसमान मसरूर होंगें। यह क़ुशादा पेशानी ,बुलंद नाक ,कुशादा शिकम होगा। दायें रुख़सार पर तिल और दाँत मुरत्तब होंगें। ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से उसी तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।

महदी ख़ान ए काबा के ख़ज़ाने की तक़सीम फ़रमायेगें मुन्तख़ब कन्ज़ुल उम्माल में उमर इब्ने ख़त्ताब से रिवायत है ,जब उन्होने ख़ान ए काबा के तमाम माल व असबाब को राहे ख़ुदा में तक़सीम करना चाहा तो हज़रत अली(अ) ने फ़रमाया: तुम यह इरादा तर्क कर दो इसलिये कि तुम इसके अहल नही हो इसका मालिक हम क़ुरैश में से है जो इस माल को राहे ख़ुदा में तक़सीम फ़रमायेगा और आख़िरी ज़माने में होगा।

मक़ातिलुत तालिबीन में अबील फ़रज इसफ़हानी से रिवायत की गयी अज़हरी बयान करता है मुझसे अली बिन हुसैन ने अपने वालिद के वास्ते से फ़ातिमा(अ) से रिवायत की आँ हज़रत ने फ़ातिमा से फ़रमाया महदी तुम्हारी औलाद से होगा।

अलबुरहान ,मुत्तक़ी हिन्दी की किताब में अबु हुरैरा से रिवायत की गयी कि रसूलल्लाह(स) ने फ़रमाया: अगर दुनिया सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह जायेगी ख़ुदावंदे आलम मेरे अहले बैत से एक शख़्स को मालिक क़रार देगा।

अबु हुरैरा के वास्ते से रसूलल्लाह(स) से रिवायत की गयी है कि आँ हज़रत ने फ़रमाया क़ियामत उस वक़्त तक नही आयेगी जब तक कि उन लोगो पर मेरे अहले बैत से एक शख़्स ख़ुरूज करेगा पस उनसे जंग करेगा यहाँ तक कि वह हक़ की तरफ़ पलट आयेगें।(रावी कहता है) मैने अर्ज़ की उसकी हुकुमत का ज़माना कितना होगा तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि पाँच साल या दो साल।

हाफ़िज़ अलकंदूज़ी (अलहनफ़ी) यनीबीऊल मवद्दत में रिवायत करते हैं कि इमामे जाफ़रे सादिक़(अ) ने सुरये युनुस की इस आयत

وَيَقُولُونَ لَوْلاَ أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ فَقُلْ إِنَّمَا الْغَيْبُ لِلّهِ فَانْتَظِرُواْ إِنِّي مَعَكُم مِّنَ الْمُنتَظِرِينَ

तफ़सीर में फ़रमाते हैं कि आयते करीमा में ग़ैब से मुराद हुज्जतुल क़ाइम(अ) हैं।

यनाबीऊल मवाद्दत में आएशा के वास्ते से आँ हज़रत से रिवायत की है कि हुज़ुर ने फ़रमाया: महदी मेरी औलाद से होगा जो मेरी सून्नत पर लोगों से जंग करेगा। जिस तरह मैने वहयी पर लोगों से जंग की।

सबान की असआबुर राग़ेबीन में आँ हज़रत से रिवायत की गयी हज़रत ने फ़रमाया: महदी हम(अहले बैत) से है ,दीन ख़ुदा का उस पर ख़त्म होगा जिस तरह उसकी इब्तेदा हमारे ज़राये क़रार पायी।

मुत्तक़ी हिन्दी की किताब अलबुरहान फ़ी अलामाते महदी आख़िरूज़ ज़मान में अली(अ) से रिवायत की गयी है ,हज़रत अलीअ(अ) ने आँ हज़रत से अर्ज़ किया महदी हममे से होगा या हमारे ग़ैर से हज़रत ने फ़रमाया: हममे से होगा। ख़ुदावंदे आलम उस पर दीन का ख़ातेमा फ़रमायेगा। जिस तरह हमारे ज़रीये उसने इब्तेदा फऱमाई फिर हमारे ही सबब ख़ुदा लोगों को फ़ितने से निजात बख़्शेगा। जिस तरह उनको शिर्क से निजात बख़्शी। और हमारे ही सबब अदावत के बाद उनके दिलों में मुहब्बत पैदा करेगा। जिस तरह इनके दिलों में शिर्क की अदावत के बाद मुहब्बत की जोत जगाई।

इब्ने जौज़ी की तज़किरा तुल ख़वास में इब्ने उमर से रिवायत की गयी वह बयान करता है रसूलल्लाह(स) ने फ़रमाया: आख़िरी ज़माने में मेरे अहले बैत से एक शख़्स ज़ाहिर होगा उसका नाम मेरे नाम पर होगा ,उसकी कुनीयत मेरी कुनीयत पर होगी ,ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से उसी तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी ,और वह महदी है।

अबू सईद ख़िदरी के वास्ते से रसूलल्लाह(स) से रिवायत की गयी है कि हुज़ूर ने फ़रमाया: महदी का नाम मेरे नाम पर है।

मुत्तक़ी हिन्दी ने हज़रते अली(अ) से रिवायत की कि आपने फ़रमाया: महदी का इस्मे गिरामी मुहम्मद है।

सबान की असआबुर राग़ेबीन में वारिद हुआ है कि महदी की रीशे मुबारक जवानों की तरह होगी ,आँख़ें सुरमई और हाजिब तूलानी और नाक बुलंद ,रीश घनी होगी। दाये रुख़सार और बायें हाथ पर तिल होगा।

यनाबीऊल मवद्दत में इब्ने अब्बास से रिवायत बयान की गयी वह बयान करते हैं रसूलल्लाह(स) ने फ़रमाया: अली(अ) मेरे बाद मेरी उम्मत के इमाम हैं और उनके फ़रज़न्द से क़ाइम अल मुनतज़र जिस वक़्त ज़हूर करेगा ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। उस ज़ात की क़सम जिसने जिसने मुझे बरहक़ बशीर और नज़ीर बनाकर भेजा महदी के ज़माना ए ग़ैबत में उसकी इमामत पर साबित क़दम रहने वाले मेरे नज़दीक किमीया से ज़्यादा अज़ीज़ होगें। जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी नें अर्ज़ की या रसूलल्लाह क्या आपके फ़रज़न्द क़ाइम को ग़ैबत होगी ?हज़रत ने फ़रमाया हाँ ख़ुदा की क़सम

وَلِيُمَحِّصَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَيَمْحَقَ الْكَافِرِينَ

ऐ जाबिर यह ख़ुदा के अम्र से है और ख़ुदा की जानिब से एक राज़ है जो बंदगाने ख़ुदा से पोशीदा है। पस तुम उसमें कभी शक न करना और ख़ुदा वंदे आलम के अम्र में शक करना कुफ़्र है।

नेशापुरी की मुस्तदरक अलस सहीहैन में रिवायत की गयी है ,उम्मे सलमा बयान करती हैं ,मैने पैग़म्बरे इस्लाम(स) को महदी का तज़किरा फ़रमाते सुना आप ने फ़रमाया: यह हक़ है वह फ़तिमा की औलाद से है।

महदी हम अहले बैत से है।

यनाबीऊल मवद्दत में अबू अय्यूब अंसारी से रिवायत है ,वह बयान करते हैं रसूलल्लाह(स) ने फ़ातिमा(अ) से फ़रमाया: मैं अंबीया से अफ़ज़ल और तुम्हारा बाप हूँ और अली अवसीया में बेहतर है जो तुम्हारा शौहर है हमारे दरमियान जो शौहदा में अफ़ज़ल है वह तुम्हारे बाप के चचा हमज़ा हैं और तुम्हारे बाप के चचा का फ़रज़नंद जाफ़र है जिसके... दो पर हैं जिनके ज़रीये जन्नत में जहाँ चाहते हैं परवाज़ करते हैं और हमारे दरमियान इस उम्मत के दो नवासे हसन व हुसैन जवानाने जन्नत के सरदार हैं ,यह दोनो तुम्हारे फ़रज़न्द हैं और हम ही में से महदी है जो तुम्हारी औलाद से है।

अल्लामा मनावी की कंज़ुल हक़ाएक़ में आँ हज़रत से रिवायत की गयी है ,आपने फ़रमाया: ऐ फ़ातिमा ,मैं बशारत देता हूँ कि महदी तुम्हारी नस्ल से है।

मुन्तख़ब कंज़ुल उम्माल में रिवायत की गयी है महदी(अ) हम( अहलेबैत) से औलादे फ़ातिमा की फ़र्द है।

अली हिलाली ने अपने बाप से रिवायत की वह बयान करता है कि मैं हज़रत के मर्ज़े मौत में आप की ख़िदमत में हाज़िर हुआ फ़ातिमा अपने बाप के सरहाने बैठी हुई थी। पस फ़तिमा ने रोना शुरु किया ,यहाँ तक कि आपकी आवाज़ बुलंद हुई ,रसूलल्लाह(स) ने फ़ातिमा से फ़रमाया: मेरी पारा ए जिगर तुझे किस बात में रूलाया ?शाहज़ादी ने फ़रमाया: मैं आपके बाद रुनुमा होने वाले फ़ितने से डरती हूँ। हज़रत नें फ़रमाया: मेरी पारा ए जिगर क्या तुम्हे मालूम है ख़ुदा वंदे आलम ज़मीन पर मुत्तला हुआ पस उसने तु्म्हारे बाबा को मुन्तख़ब किया और रिसालत अता की फिर मुत्तला हुआ तो तुम्हारे शौहर को मुन्तख़ब किया और मुझ पर वहयी फ़रमाई कि तुम्हारा अक़्द अली से कर दूँ ,ऐ फ़ातिमा हम अहले बैत को ख़ुदा वंदे आलम ने सात ऐसी फ़ज़ीलतें अती कीं जो किसी एक को भी न हमसे क़ब्ल अता की गयीं और न बाद में अता की जायेगीं। मैं तुम्हारा बाबा ख़ातमुन नबीयीन और नबीयों में अल्लाह के नज़दीक बुज़ुर्ग तरीन हूँ और अली तुम्हारे शौहर मेरे वसी और अवसीया में सबसे बेहतर हैं। और अल्लाह के नज़दीक सबसे महबूब हैं और हममे से तु्म्हारे चचा को ख़ुदा वंदे आलम ने दो सब्ज़ पर अता किये जिसके ज़रीये वह जन्नत में मलाएका के साथ जहाँ चाहते हैं परवाज़ करते हैं। और हम ही में से इस उम्मत के दो नवासे हसन व हुसैन हैं तुम्हारे फ़रज़न्द और जवानाने जन्नत के सरदार हैं। उस ज़ात की क़सम जिसने मुझे मबऊस फ़रमाया उन दोनो के माँ बाप उनसे अफ़ज़ल हैं ,उस परवरदिगार की क़सम जिसने मुझे बरहक़ मबऊस फ़रमाया(अली व फ़ातिमा) दोनो से इस उम्मत में महदी होगा। जबकि फ़ितने ज़ाहिर होंगें राहें मसदूद हो जायेगीं ,लूट मार और ग़ारतग़री होगी ,बुज़ुर्ग छोटो पर रहम न करेगा और न छोटा बड़े की ईज़्ज़त करेगा। उस वक़्त ख़ुदा वंदे आलम महदी को मबऊस फ़रमायेगा जो गुमराही के क़िलों और पौशीदा दिलों को फ़तह करेगा। आख़िरी ज़माने में दीन के साथ क़याम करेगा जिस तरह मैने दीन के साथ अव्वल ज़माने में क़याम किया था ,दुनिया को अदल व इंसाफ़ से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।

>अलकंजी ने अलबयान में अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत की ,वह बयान करता है हुसैन के फ़रज़न्द महदी ज़हूर करेगें ,अगर उनके सामने पहाड़ हाएल होगा वह मिसमार हो जायेगा और उसमे से अपना रास्ता बनायेंगें।

यनाबीऊल मवद्दत में देबल बिन अली ख़ुज़ाई से रिवायत है ,वह बयान करते हैं मैंने अपने आक़ा व मौला इमाम रिज़ा(अ) के मक़बरे के लिये कुछ शेअर कहे: इमाम महदी(अ) का ज़हूर हतमी है v

आप ख़ुदा के नाम के साथ और उसकी बरकतों के साथ क़याम फ़रमायेगें।

महदी) हमारे दरमियान हक़ व बातिल का तमीज़ फ़रमायेगें। नेकूकारों पर नेमत और बदकारों पर अज़ाब करेगें।

देबल बयान करता है: जिस वक़्त इमाम ने यह अशआर सुने आपने शिद्दत से गिरया फ़रमाया और फ़रमाया: ऐ देबल यह अशआर तुम्हारी ज़बान पर रूहूल क़ुदुल ने जारी फ़रमाये हैं क्या तुम उस इमाम के बारे में जानते हो ,मैने अर्ज़ की नही ,मगर सिर्फ़ इस क़दर जानता हूँ मैने सुना है कि ज़हूर करने वाला इमाम आपकी नस्ल से होगा जो ज़मीन को अदल व इंसाफ़ भर देगा। पस इमाम ने फ़रमाया: मेरे बाद मेरा फ़रज़न्द मुहम्मद होगा और मुहम्मद के बाद उनका फ़रज़न्द अली होगा और अली के बाद उनका फ़रज़न्द हसन होगा और हसन के बाद उनका फ़रज़न्द हुज्जतुल क़ाएम होगा। उसकी ग़ैबत में उसका इन्तेज़ार किया जायेगा और ज़हूर के वक़्त इताअत का मर्क़ज़ क़रार पायेगा पस ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह भर देगी जिस तरह वह पहले ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। अलबत्ता यह ख़बर कि उसका ज़हूर कब होगा ,बिला शुब्हा मुझ से मेरे बाबा ने अपने अजदाद के वास्ते से रसूलल्लाह(स) से ख़बर दी कि आँ हज़रत ने फ़रमाया: जिस महदी का ज़हूर क़ियामत की तरह अचानक होगा।

أُوْلَئِكَ حِزْبُ اللَّهِ

यही सब लोग गिरोहे ख़ुदा हैं।

यनाबीऊल मवद्दत में जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी से इस हदीस की रिवायत की गयी है जिसमें जुन्दल बिन जबीर के रसूलल्लाह(स) की ख़िदमत में हाज़िर होने और उसके ख़ुदा व रसूल पर ईमान लाने का तज़किरा है।

जुन्दल बयान करता है (मैं रसूलल्लाह की खिदमत में हाज़िर हुआ) और अर्ज़ की या रसूलल्लाह मैने ख़्वाब में मूसा बिन इमरान को देखा पस उन्होने मुझे हुक्म फ़रमाया ऐ जुन्दल मुहम्मद(स) पर ईमान ले आओ जो ख़ातमुन नबीयीन हैं और मुहम्मद के बाद आने वाले अवसीया से मुतमस्सिक हो जाओ ,मैने ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूँ कि इस्लाम लाया और ख़ुदा ने मुझे आपके ज़रीये हिदायत दी। या रसूलल्लाह आप मुझे अपने अवसीया के बारे में ख़बर दीजीये। आँ हज़रत ने फ़रमाया: मेरे अवसीया बारह हैं। v

जुन्दल: या रसूलल्लाह हमने तौरेत में इसी तरह देखा है ,आप मुझे उनके नाम बताईये।

रसूलल्लाह ने फ़रमाया: सबसे पहले मेरे वसी अली हैं। फिर उनके दो फ़रज़ंद हसन और हुसैन हैं। पस उन्ही से तुम वाबस्ता रहना और जाहिलों की जिहालत तुम्हे ग़ुरूर में मुब्तला न कर दे और जब ज़ैनुल आबिदीन की विलादत तुम्हारी वफ़ात वाक़े होगी और इस दुनिया से तुम्हारा आख़िरी रिज़्क़ दूध होगा।

जुन्दल ने अर्ज़ की हमने तौरेत में और अंबीया की दूसरी कुतुब में ऐलिया ,शब्बर ,शब्बीर के असमाँ देखे हैं जो कि अली व हसन व हुसैन के असमाँ हैं। हुसैन के बाद कौन होगें ?और उनके असमाँ क्या हैं ?

रसूलल्लाह: और जब हुसैन की मुद्दते इमामत होगी पस उनका फ़रज़ंद अली इमाम होगा। लक़्ब ज़ैनुल आबेदीन होगा और उसके बाद उनका फ़रज़ंद मुहम्मद बाक़िर होगा और उसके बाद उसका फ़रज़ंद जाफ़रे सादिक़ होगा और उसके बाद उनका फ़रज़ंद मूसा काज़िम होगा और उसके बाद उसका फ़रज़ंद अली रेज़ा होगा और उसके बाद उसका फ़रजंद मुहम्मद तक़ी होगा और उसके बाद उसका फ़रजंद अली नक़ी और हादी होगा और उसके बाद उसका फ़रज़ंद हसन असकरी होगा। उसके बाद उसका फ़रज़ंद मुहम्मद महदी अलक़ायम वल हुज्जत होगा जो कि ग़ैबत इख़्तियार करेगा फिर उसके बाद ज़ाहिर होगा और ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी उसकी ग़ैबत में सब्र करने वालों के लिये मुबारक बाद है और उसकी मुहब्बत में मुत्तक़ीन के लिये मुबारक बाद है। यही वह लोग हैं ख़ुदावंदेआलम ने अपनी किताब में जिनकी तारीफ़ इस तरह फरमाई है: هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ क़ुरआन जिसके मोजिज़ा होने में किसी शुब्ह की गुन्जाईश नही है उन परहेज़गारों के लिये अज़ सर ता पा हिदायत है जो ग़ैब पर ईमान रखते हैं।

फिर फ़रमाता है:

أُوْلَئِكَ حِزْبُ اللَّهِ أَلَا إِنَّ حِزْبَ اللَّهِ هُمُ الْمُفْلِحُونَ [8 ]

यही लोग ख़ुदा का गिरोह हैं। आगाह हो जाओ ख़ुदा का गिरोह ही कामयाब होने वाला है।

यनाबीऊल मवद्दत में अली बिन अबी तालिब ने जंगे नहरवान के बाज़ ऐसे अज़ीम वाक़ेआत का ज़िक्र फ़रमाया जिसमें शदीद क़िताल की ख़बर दी गयी थी और फ़रमाया यह अम्रे ख़ुदा से है और यह हालात ज़रूर पेश आने वाले हैं। तुम कब तक इन्तेज़ार करोगे ,मैं तुम्हे परवरदिगार की जानिब से अन्क़रीब कामयाबी की बशारत देता हूँ ,मैं अपने माँ बाप की क़सम खाकर कहता हूँ उनकी तादाद कम होगी और उनकी असमाँ ज़मीन पर मजहूल होगें।

दो ग़ैबतें ------यनाबीऊल मवद्दत

अली बिन अबी तालिब(अ) फ़रमाते हैं: हमारे क़ायम की दो ग़ैबतें हैं ,जिनमें से एक तूलानी होगी। उसकी इमामत पर सिर्फ़ मोहकम और सही मारेफ़त का हामिल ही साबित क़दम रह सकेगा।[9][9]

अलबुरहान फ़ी अलामाते महदी आख़िरुज़्ज़मान में अबु अब्दुल हुसैन बिन अली से रिवायत की गयी है। आप ने फ़रमाया: महदी(अ) के लिये दो ग़ैबतें होगीं। जिनमें से एक इस क़दर तूलानी होगी कि बाज़ लोग कहेगें कि महदी ने इन्तेक़ाल किया और बाज़ कहेंगें कि महदी चले गये और आपके जाए क़याम के बारे में आपके ख़ादिम के सिवा किसी को ख़बर न होगी।[10][10]

यनाबीऊल मवद्दत में अली बिन अबी तालिब से रिवायत की गयी है कि हज़रत ने महदी की सीरत के बारे में फऱमाया: महदी हम अहले बैत से होगा जो दुनिया में रौशन चिराग़ की मानिन्द होगा जिसकी ज़िन्दगी सालेहीन जैसी होगी। मुश्किलात को हल करेगा और मुश्किल में गिरफ़तार इँसान को उससे निजात दिलाएगा। ज़ालिमों और काफ़िरों का इज्तेमा ख़त्म कर डालेगा और मुसलमानों में इसलाह करेगा।

लव ला हुज्जतो लसाख़तिल अर्ज़

(अगर हुज्जते ख़ुदा न हो तो ज़मीन धंस जायेगी)

हाफ़िज़ अल क़ंदूज़ी ने यनाबीऊल मवद्दत में जाफ़र सादिक़(अ) से और उन्होने अपने वालिदे के वास्ते से अपने दादा अली बिन हुसैन से रिवायत की इमाम ने फ़रमाया: हम मुसलमानों के इमाम हैं तमाम दुनिया के मोमीनों पर ख़ुदा की जानिब से उसकी हुज्जत हैं। और मुसलमानों के मौला हैं और हम अहले ज़मीन के लिये उसी तरह अमान हैं जिस तरह सितारे आसमान वालों के लिये अमान हैं। और हमारे ही सबब से आसमान ज़मीन पर गिरने से टिका हुआ है। हमारे ही सबब बारिश होती है ,रहमतें तक़सीम होती हैं। और ज़मीन अपनी बरकतों को ज़ाहिर करती है अगर ज़मीन पर हम अहले बैत में से कोई न हो तो ज़मीन अपने बसने वालों के साथ धंस जायेगी और जब से ख़ुदा वंदे आलम ने आदम को ख़ल्क़ फ़रमाया है उस वक़्त से ज़मीन हुज्जते ख़ुदा से ख़ाली नही रही।

1-या तो वह हुज्जत ज़ाहिर हो।

2-या पौशीदा और ग़ायब हो।

क़ियामत तक ज़मीन हुज्जते ख़ुदा से ख़ाली नही रह सकती। अगर ख़ुदा की हुज्जत न हो तो ख़ुदा की इबादत किस तरह होगी।

सुलेमान रावी ने इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) से अर्ज़ की आक़ा पौशीदा और ग़ायब हुज्जत से लोग किस तरह फायदा हासिल करेंगें इमाम ने फ़रमाया: जिस तरह लोग आफ़ताब से फ़ायदा हासिल करते हैं जबकि वह बादलों में पोशीदा होता है।[11][11]

यनाबीऊल मवद्दत में हसन बिन अली(अ) से रिवायत की गयी आपने फ़रमाया: जिस वक़्त क़ायम ज़हूर फ़रमायेंगें लोग आपका इँकार करेंगें इसलिये कि जब ज़हूर फ़रमायेंगें नौजवान होंगें हालाँकि लोगों को गुमान यह होगा कि आप बुढ़े हो चुके हैं।

यनाबीऊल मवद्दत में मुहम्मद बिन मुसलिम से रिवायत की गयी वह बयान करता है मैने हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से अर्ज़ की आक़ा इस आयत की तावील क्या है:

وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّى لاَ تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ كُلُّهُ لِلّه [12][12 ]

हज़रत ने फ़रमाया: जब इस आयत की तावील आयेगी तो मुशरेकीन से क़ेताल किया जायेगा यहाँ तक कि वह ख़ुदा वंदे आलम की वहदानीयत का इक़रार करें ताकि शिर्क बाक़ी न रहे और यह अमल क़ायम के ज़हूर के वक़्त होगा।

रिफ़ाआ बिन मूसा बयान करता है मैने इमाम सादिक़(अ) को इस आयत का तिलावत फ़रमाते हुए सुना:

وَلَهُ أَسْلَمَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَإِلَيْهِ يُرْجَعُونَ [13 ]

हालाँकि आसमान जो फ़रिश्ते और ज़मीन में जो लोग हैं वह सब उसके सामने खुशी से या नाख़ुशी से सरे तसलीम झुका चुके हैं।

उसके बाद हज़रत ने फ़रमाया जब क़ायम ज़हूर करेगा उस वक़्त ज़मीन के हर ख़ित्ते पर कलेमा ए ला इलाहा इल्ललाहा व अन्ना मुहम्मदन रसूलुल्लाह की सदा बुलंद होगी।

यनाबीऊल मवद्दत में इमाम बाक़िर(अ) से रिवायत की गयी हज़रत ने फ़रमाया: ख़ुदा वंदे आलम क़ायम के ज़हूर के वक़्त इस्लाम को तमाम अदयान पर कामयाबी अता फ़रमायेगा।

यनाबीऊल मवद्दत में इमाम जाफ़र सादिक़(अ) से रिवायत की गयी ,हज़रत नें फ़रमाया: क़ायम के ज़हूर के वक़्त मोमिनीन ख़ुदा की नुसरत से ख़ुश व ख़ुर्रम होंगें।

महदी (अ) के अंसार

सुनने इब्ने माजा ,रसूलल्लाह(स) इरशाद फ़रमाया: मशरिक़ से लोग ज़ाहिर होंगें और महदी की हुकुमत तसलीम करेंगें[14][14]

सबान ने इसआफ़ूर राग़ेबीन में बयान किया है कि रिवायत में वारिद हुआ है इमाम महदी(अ) के ज़हूर के वक़्त एक मलक आवाज़ देगा। यह महदी ख़ुदा का ख़लीफ़ा है पस तुम लोग इसकी इत्तेबा करो और महदी इनताकिया के ग़ार से ताबूते सकीना निकालेंगें। और शाम के पहाड़ से तौरेत की किताबों को निकालेंगें जिस की वजह से यहूदीयों पर आपकी हुज्जत क़ायम हो जायेगी। और उनमें से अकसर लोग ईमान ले आयेगें।

बग़वी की किताब मसाबीहुस सुन्ना में अबू सईद के वास्ते से पैग़म्बरे इस्लाम(स) से महदी के बारे में रिवायत की गयी हुज़ूर ने फ़रमाया: एक शख़्स सवाल करेगा या महदी मुझे कुछ अता करें चुनाँचे आप इस क़दर अता करेंगें जिस को वह संभालने रक क़ादिर नही होगा। और मुन्तख़बे कंज़ुल उम्माल में इस तरह है। हज़रत में फ़रमाया: मेरी उम्मत से महदी ज़हूर करेगा जो पाँच या सात या नौ साल ज़िन्दगी गुज़ारेगा उसके पास एक शख़्स आयेगा और कहेगा ऐ महदी मुझे अता कीजीये आप उसको अपने लिबास से इस क़दर अता करेंगें जिसको वह उठा नही सकेगा।

यनाबीऊल मवद्दत में अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब से रिवायत की गयी हज़रत ने फ़रमाया नुसरते ख़ुदा उस वक़्त तक नही आयेगी जब तक कि वह मौत से ज़्यादा आसान न हो जाये और उसी बारे में परवरदिगारे आलम का क़ौल है:

حَتَّى إِذَا اسْتَيْأَسَ الرُّسُلُ وَظَنُّواْ أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُواْ جَاءَهُمْ نَصْرُنَا [15 ]

ताकि जब वह पैग़म्बर अपनी इम्मत वालों के ईमान लाने से मायूस हो गये और उम्मत वालों ने यह गुमान कर लिया कि उनके झूट बोला गया है कि ख़ुदा उनकी मदद करेगा तो उस वक़्त हमारी मदद उनके पास आयेगी। और यह उसी वक़्त होगा जब हमारा क़ायम ज़हूर करेगा।

मुन्तख़ब कंज़ुल उम्माल में आँ हज़रत(स) से रिवायत की गयी हज़रत ने फ़रमाया: हम अहले बैत ही की वह फ़र्द होगा जिसकी इमामत में ईसा नमाज़ अदा करेंगें।

आँ हज़रत(स) ने इरशाद फ़रमाया: जब महदी मुतवज्जेह होगें और ईसा बिन मरियम नाज़िल होगें और उनके बालों से पानी के क़तरात टपक रहें होंगें ,उस वक़्त इमाम महदी(अ) ईसा(अ) से फ़रमायेगें आप लोगों को नमाज़ पढ़ाईये ,ईसा फ़रमायेगें नमाज़ का क़याम आपके ज़रीये होगा। चुनाँचे ईसा मेरे फ़रज़ंद महदी की इमामत में नमाज़ अदा करेगें।

(ग़ायतुल मामूल)

अनवारूत तंज़ील में इस आयत

وَإِنَّهُ لَعِلْمٌ لِّلسَّاعَةِ [16 ]

की तफ़सीर इस तरह बयान की गयी कि ईसा ज़मीन के पाक व पाकीज़ा मक़ाम(अफ़ीक़) पर नाज़िल होंगें। आपके हाथों में ख़ंजर होगा जिससे आप दज्जाल को क़त्ल करेंगें उसके बाद आप बैतुल मुक़द्दस तशरीफ़ लायेगें। जबकि लोग नमाज़ सुबह पढ़ रहे होगें पस इमाम पीछे रहेंगें और ईसा इमाम को आगे बढ़ायेगें और उनके पीछे नमाज़ अदा करेगें ,ईसा की नमाज़ शरीअते मुहम्मदी पर होगी।

महदी(अ.) का परचम

हाफ़िज़ क़ंदूज़ी की यनाबीऊल मवद्दत में नौफ़ से रिवायत है वह बयान करता है इमाम महदी के परचम पर लिखा होगा البیعة لله यानी बैअत सिर्फ़ अल्लाह के लिये मख़्सूस है।[17][17]

मुत्तक़ी हिन्दी इब्ने उमर से रिवायत से करते हैं कि आँ हज़रत ने अली का हाथ अपने हाथों में लिया और फ़रमाया अली के सुल्ब से एक जवान ज़ाहिर होगा जो दुनिया को अदल व इंसाफ़ से भर देगा पस जिस वक़्त तुम यह देखो तो तुम तमीमी जवान के साथ हो जाना इसलिये कि यह शख़्स मशरिक़ वारिद होगा और महदी का अलमबरदार होगा।

रिवायत की गयी है कि इमाम हसन असकरी(अ) के यहाँ एक बच्चे की विलादत हुई पस उन्होने उस बच्चे का नाम मुहम्मद रखा और तीसरे रोज़ अपने असहाब के सामने लाये और फ़रमाया यह मेरे बाद तुम्हारा इमाम और तुम पर मेरा ख़लीफ़ा है। यह वह क़ायम है जिसके इन्तेज़ार में गर्दने लंबा हो जायेगीं पस जिस वक़्त ज़मीन ज़ुल्म व जौर से भर जायेगी उस वक़्त ज़हूर करेगा और उसको अदल व इंसाफ़ से भर देगा।

महदी से हर चीज़ ख़ुश होगी

आँ हज़रत से महदी के रुक्न और मक़ाम के दरमियान बैअत और आपके शाम की जानिब से ज़हूर फ़रमाने की रिवायत की गयी हज़रत ने फ़रमाया जिबरईल महदी के आगे और मीकाईल पीछे होगें। महदी से अहले आसमान व ज़मीन ,परिंदे ,दरिंदे और समंदर की मछलीयाँ ख़ुश होगीं।

(अलबुरहान फ़ी अलामात महदी आख़िरुज़्ज़मान)

अलामते ज़हूर

शबलंजी का नूरूल अबसार में अबू जाफ़र(अ) से इमाम महदी के ज़हूर की अलामात से रिवायत की गयी है हज़रत ने फ़रमाया:

1-मर्द औरतों से मुशाबेहत इख़्तियार करेंगें और औरतें मर्दों से।

2-औरतें जानवरों पर सवार होगीं।

3-लोग नमाज़ पढ़ना छोड़ देगें।

4-ख़्वाहिशे नफ़्स की पैरवी करेंगें।

5-खून बहाना मामूली बात समझी जायेगी।

6-सूदख़ोरी आम होगी और उसके ज़रीये कारोबार होगा।

7-ज़ेना खुल्लमखुल्ला किया जायेगा।

8-मकानों को मज़बूत बनाया जायेगा।

9-रिश्वत का बाज़ार गर्म होगा।

10-लोग झूट को हलाल क़रार देंगें।

11-ख़्वाहिशाते नफ़्सानी की पैरवी करेंगें।

12-दीन को दुनिया के बदले फ़रोख़्त कर देंगें।

13-क़त ए रहम करेगें।

14-हिल्म व बुर्दबारी को कमज़ोर समझा जायेगा।

15-ज़ुल्म पर फ़ख्र किया जायेगा।

16-उमारा फ़ासिक़ होगें।

17-वोज़ारा झुटे होगें और अमीन ख़्यानतकार।

18-मददगार ज़ालिम होगें और क़ारी फ़ासिक़।

19-ज़ुल्म ज़्यादा होगा।

20-तलाक़ें ज़्यादा होगीं।

21-ज़ालिम की शहादत को क़बूल किया जायेगा।

22-शराब आम होगी।

23-मुज़क्कर मुज़क्कर पर सवार होगा।

24-औरतें औरतों को काफ़ी समझेगीं।

25-फ़ोक़ारा के माल को दूसरे लोग ख़ायेगें।

26-सदक़ा देने को नुक़सान ख़्याल किया जायेगा।

27-शरीर लोगों की ज़बानों से लोग डरेगें।

28-सुफ़यानी शाम से ख़ुरूज़ करेगा।

29-मक्के व मदीने के दरमियान मक़ामे बैदा में तबाही वाक़े होगी।

रुक्न व मक़ाम के दरमियान आले मुहम्मद का एक जवान क़त्ल किया जायेगा। और आसमान से निदा देने वाला निदा देगा कि हक़(महदी) और उनके चाहने वालो के साथ है और जब महदी ज़हूर करेगें तो अपनी पुश्त को काबा से टेक लगाये हुए होगें। और आप के चाहने वालो में से 313 अफ़राद आपके गिर्द जमा हो जायेगें। सबसे पहले आप इस आयत की तिलावत फ़रमायेगें:

بَقِيَّةُ اللّهِ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

फिर आप फ़रमायेगें मैं بَقِيَّةُ اللّهِ और उसका ख़लीफ़ा और तुम लोगों पर ख़ुदा की हुज्जत हूँ। जो शख़्स भी आप पर सलाम करेगा इस तरह कहेगा।

السلام علیک یا بقیة الله فی الارض

और जब आपके पास दस हज़ार अफ़राद जमा हो जायेगें तो कोई यहूदी और नसरानी बाक़ी न रहेगा। और न कोई काफ़िर ही बचेगा। और सबके सब आप पर ईमान लायेगें और तसदीक़ करेगें और सिर्फ़ मिल्लते इस्लाम होगी और जो शख़्स भी रूए ज़मीन पर ख़ुदा वंदे आलम के सिवा मअबूद होगा उस पर आसमान से आग नाज़िल होगी और जलायेगी।

मुत्तक़ी हिन्दी ने अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से रिवायत की है वह बयान करते हैं आपने फ़रमाया: महदी उस वक़्त ज़हूर फ़रमायेंगें जब आफ़ताब से निशानी ज़ाहिर होगी।

मुहम्मद इब्ने अली ने फ़रमाया: हमारे महदी के लिये दो ऐसी निशानीयों का ज़हूर होगा। जिसका ज़मीन व आसमान की ख़िलक़त से पहले कभी ज़हूर न हुआ होगा।

यानी रमज़ानुल मुबारक की पहली रात में माहताब को गहन लगे और आफ़ताब को दरमीयाने माह में गहन लगेगा यह दोनो अम्र ज़मीन व आसमान की ख़िलक़त के बाद से कभी पेश न आये होगें।[18][18]

मुत्तक़ी हिन्दी हनफ़ी ,हकम बिन अतबा से रिवायत करते हैं ,मैने मुहम्मद बिन अली से कहा ,सुना है कि अनक़रीब आपके दरमियान से एक शख़्स ज़ाहिर होगा जो इस उम्मत को अदल व इंसाफ़ से भर देगा। इमाम ने फ़रमाया: अगर दुनिया से सिर्फ़ एक रोज़ भी बाक़ी रह जायेगा ख़ुदा वंदे आलम उस रोज़ को इस क़दर तूलानी कर देगा यहाँ तक कि वही सब होगा जो इस उम्मत की ख़्वाहिश होगी लेकिन इससे क़ब्ल शदीदतरीन फ़ितने वुजूद में आयेंगें ,लोग रात के वक़्त हालत इतमीनान में गुज़ारेगें ,और सुबह हालते कुफ़्र में। पस तुम में से जिस को भी यह हालात पेश आये उसे अपने परवरदिगार से डरना चाहिये। और अपने अपने घरों में रहना चाहिये।[19][19]

हाफ़िज़ क़ंदूज़ी की किताब यनाबीऊल मवद्दत में इस आयते करीमा وَاسْتَمِعْ يَوْمَ يُنَادِ الْمُنَادِ مِن مَّكَانٍ قَرِيبٍ ......[20 ]और कान लगाकर सुन रखो कि दिन पुकारने वाला नज़दीक ही की जगह से आवाज़ देगा जिस दिन लोग एक सख़्त चीज़ को बख़ूबी सुन लेगें वही ख़ुरूज का दिन होगा। आयते करीमा के बारे में इमाम सादिक़(अ) ने फ़रमाया मुनादिए क़ायम और उनके वालिद के नाम से निदा करेगा और आयते मज़कूरा में निदा से निदाए आसमानी मुराद है और उसी रोज़ इमाम महदी(अ) ज़हूर फ़रमायेगें।

रिवायत की गयी है कि जिस वक़्त इमाम महदी(अ) ज़हूर फ़रमायेगें ,तो बुलंदी से एक मलक इस तरह आवाज़ देगा: यह ख़लीफ़ा ए ख़ुदा महदी(अ) है पस तुम लोग उसकी पैरवी करो।

अबी अब्दिल्लाहिल हुसैन इब्ने अली(अ) से रिवायत की गयी है ,आपने फ़रमाया कि जिस वक़्त तुम आसमान की निशानी देखो यानी मशरिक़ की जानिब से अज़ीम आग बुलंद होते हुए देखो जबकि चंद रातें बाक़ी रहेगीं वह वक़्त आले मुहम्मद(अ) और लोगों की आसानी का वक़्त होगा।

यनाबीऊल मवद्दत में अल्लाह के इस क़ौल: अगर हम चाहें तो उन लोगों पर आसमान से आयत का नुज़ूल हो।

इस आयत के बारे में अबू बसीर और इब्ने जारूद के वास्ते से इमाम बाक़िर(अ) से रिवायत की गयी है इमाम ने फ़रमाया: यह आयत क़ायम के बारे में नाज़िल हुई है। एक मुनादी आसमान से क़ायम(अ) और आपके वालिद के नाम की निदा करेगा।

कंजी अलबयान में अब्दुल्लाह इब्ने उमर से रिवायत बयान की गयी है वह करता हैं आँ हज़रत(स) ने फ़रमाया: जिस वक़्त महदी ज़हूर करेगा उनके सर पर अब्र होगा जिससे निदा करने वाला निदा करेगा यह ख़ुदा का ख़लीफ़ा महदी(अ) है. पस तुम लोग उसका इत्तेबा करो।

बुरहान और अक़्दुद दोरर में बयान किया गया है कि यह निदा तमाम अहले ज़मीन के लिये आम होगी। जिसको हर शख़्स अपनी अपनी ज़बान और लुग़त में सुनेगा।[21][21]

इमाम महदी की अलामते ज़हूर के बारे में अबू नईम ने हज़रत अली(अ) से रिवायत की है आपने फ़रमाया: महदी का ज़हूर उसी वक़्त होगा जबकि दुनिया का एक तिहाई हिस्सा क़त्ल हो जायेगा एक तिहाई दुनिया मर जाये और एक बाक़ी रहेगी।

सुफ़यानी यनाबीऊल मवद्दत में हुज्जत के वास्ते से अली से अल्लाह ताला के इस क़ौल

ولو تری اذ فزعوا فلا فوت .

के बारे में रिवायत की गयी हज़रत नें फ़रमाया: हमारे क़ायम का ज़हूर से क़ब्ल सुफ़यानी ख़ुरूज करेगा जो एक औरत के हम्ल के बराबर मुद्दत(9 माह) हुकुमत करेगा इसका लश्कर मदीने आयेगा और जैसे ही मक़ामे बैदा पहुचेगा ख़ुदा उसको बर्बाद कर देगा।[22][22]

इमाम महदी ( ) के ज़हूर के अलामात से मुतअल्लिक़ अमीरूल मोमीनीन अली(अ) से रिवायत की गयी हज़रत ने फ़रमाया: सुफ़यानी ख़ालिद इब्ने यज़ीद इब्ने अबी सुफ़यान की औलाद से होगा जिसका पेट बड़ा और चेहरे पर चेचक के निशान और आँख में सफ़ेद दाग़ होगा। दमिश्क़ से ख़ुरूज करेगा औरतों के शिकमों को चाक कर के बच्चो को भी क़त्ल कर डालेगा और मेरे अहले बैत से एक शख़्स काबे में ज़हूर करेगा जिसके साथ ख़ुदाई लश्कर होगा जो सुफ़ायान के लश्कर को शिकस्त देगा। बस सुफ़यान अपने लश्कर के साथ वापस जायेगा जैसे ही उसका लश्कर मक़ामे बैदा में पहुचेगा तबाह हो जायेगा और कोई एक भी बाक़ी नही बच सकेगा।

पाँच अलामतें

महदी(अ.) के ज़हूर के बारे में अबू अब्दिल्लाह हुसैन इब्ने अली(अ.) से रिवायत की गयी ,इमाम ने फ़रमाया: महदी के ज़हूर की पाँच अलामतें हैं :

1-सुफ़यानी का ख़ुरुज

2-यमानी

3-आसमान से आवाज़ आना।

4-मक़ामे बैदा में तबाही।

5-नफ़्से ज़किय्या का क़त्ल होना।[23][23]

यनाबीउल मवद्दत में क़ंदूज़ी ने अबू अमामा से रिवायत की वह बयान करता है कि आँ हज़रत(स) ने हमसे ख़िताब करते हुए दज्जाल का तज़किरा किया और फ़रमाया: मदीने से गंदगी को इस तरह दूर करेगा जिस तरह माद्दा लोहे की खोट को दूर करता है। पस उम्मे शरीक ने रसूलल्लाह(स) से अर्ज़ की या रसूलल्लाह उस रोज अरब कहाँ होगें ¿ आपने इरशाद फ़रमाया: उस रोज़ अरब बहुत कम होगें ,और सबके सब बैतुल मुक़द्दस में होगें। और उनका इमाम महदी(अ) होगा।

आख़री ज़माने में इमाम महदी की अलामत के बारे में अबी जाफ़र से रिवायत की गयी इमाम ने फ़रमाया: इमाम महदी रोज़े आशूरा ज़हूर फरमायेगें और यह वहीरोज़ है जिस दिन इमाम हुसैन(अ) शहीद हुए ,दसवीं मुहर्रम थी और हफ़्ते का दिन था ,महदी रुक्न व मक़ाम के दरमियान खड़े होगें दाहिनी जानिब जिबरईल(अ) और बाँये जानिब मीकाईल होगें। ज़मीन के हर गोशे से आपके शिया बैअत के लिये जमा हो जायेगें। आपके शियों के लिये ज़मीन सिमट जायेगी। आप ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगें जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।

महदी(अ)के शियों के लिये ज़मीन की तनाबें सिमट जायेंगी। क़ुदरते ख़ुदा से ज़मीन के गोशे गोशे से लोग चंद लम्हात के अंदर मक्के में जमा हो जायेगें।[24][24]

हाकिम नेशापुरी की मुस्तदरक अलस सहीहैन में अबू सईद ख़िदरी बयान करते हैं रसूलल्लाह(स) ने इरशाद फऱमाया: मेरी उम्म्त के आख़री(ज़माने) में महदी ज़हूर करेगा। ख़ुदा वंदे आलम उसको बारिशों से सैराब फ़रमायेगा। और ज़मीन अपने नबातात को ज़ाहिर कर देगी ,अमवाल की सहीह तक़सीम करेगा ,जानवरों की कसरत होगी और उम्मते इस्लामिया साहिबे अज़मत होगी।

हाकिम नेशापुरी की मुस्तदरक अलस सहीहैन में पैग़म्बरे इस्लाम(स) से रिवायत की गयी है ,हज़रत ने फ़रमाया: मेरी उम्मत से महदी होगा , (जिस की हुकुमत) कम अज़ सात(साल) वर्ना नौ(साल) होगी। उसके ज़माने में मेरी उम्मत पर इस क़दर नेमतें नाज़िल होगीं जिस से कब्ल इस तरह नेमतों का नुज़ूल न हुआ होगा। ज़मीन खाने की तमाम चीज़ें अता करेगी जिसकी लोगों से ज़ख़ीरा अंदोज़ी न की जायेगी। उस रोज़ माल जमा होगा एक शख़्स खड़ा होगा और कहेगा इस माल को ले लो।

यनाबीउल मवद्दत में अबी ख़ालिद अलकाहिल ने इमाम जाफ़र सादिक़(अ) से अल्लाह तआला के इस क़ौल

فَاسْتَبِقُواْ الْخَيْرَاتِ أَيْنَ مَا تَكُونُواْ يَأْتِ بِكُمُ اللّهُ جَمِيعًا

(पस नेकीयों में जल्दी करो ,तुम जहाँ भी होगे अल्लाह तुम सब को ले आयेगा।) की रिवायत की गयी है आपने फ़रमाया: आयत से क़ायम(अ) के असहाब मुराद हैं। जिनकी तादाद 313 होगी। ख़ुदा की क़सम उम्मते मअदूदह से यही लोग मुराद हैं यह सब लोग मौसमे ख़रीफ़ की तेज़ व तुन्द बारिश की तरह एक लम्हे में जमा हो जायेगें।

यनाबीउल मवद्दत में अल्लाह के इस क़ौल

ولئن اخرنا عنهم العزاب الی امةمعدودة

के बारे में रिवायत बयान की गयी रावी बयान करता है उम्मते मअदूदह से महदी के असहाब मुराद हैं जो आख़री ज़माने में होगें जिनकी तादाद 313 होगी। जिस तरह बद्र में रसूलल्लाह (स) के असहाब की तादाद 313 थी। सबके सब एक लम्हे में ख़रीफ़ की तेज़ व तुन्द बारिश की तरह जमा हो जायेगें।

तारिख़े इब्ने असाकर (शाफ़ेई) में इस तरह रिवायत की गयी है जिस वक़्त क़ायमें आले मुहम्मद(अ) ज़हूर फ़रमायेगें पस ख़ुदा वंदे आलम मशरिक़ व मग़रिब वालों को इस तरह जमा फ़रमायेगा जिस तरह मौसमे ख़रीफ़ की तेज़ व तुन्द बारिश होती है। चुनाँचे महदी के रोफ़क़ा अहले कूफ़ा से और अबदाल अहले शाम से होगें।[25][25]

यनाबीऊल मवद्दत में अल्लाह तआला के इस क़ौल

اعلموا ان الله یحی الارض بعد موتها

समझ लो कि ख़ुदा ज़मीन को ज़िन्दा करता है बाद इसके कि उसकी मौत वाक़े हो चुकी हो। ,के बारे में सलाम बिन मुसतनीर के वास्ते से इमाम बाक़िर(अ) से रिवायत की गयी ,इमाम ने फ़रमाया: (ख़ुदावंदे आलम) क़ायम के सबब ज़मीन को ज़िन्दा फ़रमायेगा जो कि ज़ुल्म के सबब से मुर्दा हो चुकी होगी और आप अपने अदल के ज़रीये उसको ज़िन्दा फ़रमायेगें।

यनाबीऊल मवद्दत में अल्लाह तआला के इस क़ौल

وَإِن مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلاَّ لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا

और अहले किताब में यक़ीनन उस पर ईमान लायेगें अपनी मौत से क़ब्ल और क़ियामत के दिन उन पर गवाह होगा।

(सूरह निसा आयत 159)

रावी बयान करता है क़ियामत से क़ब्ल ईसा(अ) नाज़िल होगें ,उस वक़्त यहूदी और ग़ैर यहूदी कोई बाक़ी न रहेगा मगर सबके सब अपने इन्तेक़ाल से क़ब्ल(महदी) पर ईमान ले आयेगें। और ईसा(अ) इमाम महदी(अ) की इमामत में नमाज़ अदा करेगें।

तज़किरातुल ख़वास में सिब्ते इब्ने जौज़ी(अलहनफ़ी) बयान करता है कि सदयी बयान करता है कि महदी(अ) और ईसा(अ)(एक मक़ाम पर) जमा होगें। पस जब नमाज़ का वक़्त होगा ,इमाम ईसा से फ़रमायेगें आप नमाज़ पढ़ायें लेकिन ईसा फ़रमायेंगें आप नमाज़ के लिये ज़्यादा बेहतर हैं पस ईसा इमाम महदी के साथ मामूम की हैसियत से नमाज़ पढ़ेंगें।

इमाम का क़िताल हक़ पर होगा।

सही मुस्लिम में जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी बयान करते हैं कि मैंने आँ हज़रत (स) को फ़रमाते सुना: मेरी उम्मत का एक गिरोह इज़हारे हक़ के लिये क़ियामत तक जंग करता रहेगा ,पस ईसा(अ) तशरीफ़ लायेगें उनका हाकिम ईसा से कहेगा आईये हमें नमाज़ पढ़ाईये वह कहेंगें तुम में बअज़ बअज़ पर इस उम्मत की अता करदा बुज़ुर्गी के सबब हाकिम है।[26][26]

असआफ़ूर राग़ेबीन में सबान(अलहनफ़ी) बयान करता है कि बअज़ रिवायत में वारिद हुआ है कि इमाम के ज़हूर के वक़्त बुलंदी से एक फ़रिश्ता इस तरह आवाज़ देगा यह महदी ख़ुदा की ख़लीफ़ा है ,पस तुम लोग इसकी पैरवी करो।

लोगों के दिलों में आपकी मुहब्बत भर जायेगी। मशरिक़ व मग़रिब की हुकुमत आपके हाथों में होगी। रुक्न और मक़ामे इब्राहीम के दरमियान आपसे बैअक करने वालों की तादाद अहले बद्र(313) के बराबर होगी। फिर आपकी ख़िदमत में शाम के अबदाल हाज़िर होगें। ख़ुदावंदे आलम आपकी हिमायत में ख़ुरासान से लश्कर रवाना फ़रमाएगा जिनके परचम स्याह होगें ,फिर आप शाम की जानिब मुतवज्जेह होगें और दूसरी रिवायत में है कि आप कूफ़े की जानिब मुतवज्जेह होगें। ख़ुदावंदे आलम आपकी नुसरत तीन हज़ार फ़रिश्तों से फ़रमाएगा। और असहाबे कहफ़ आपके मददगार होगें।

सुयूती का बयान है कि असहाबे कहफ़ के इस मुद्दत तक ताख़ीर करने की वजह यही है कि वह इस उम्मत में दाख़िल हों और ख़लीफ़ा ए हक़ से मुलाक़ात करें। और इमाम के लश्कर के आगे क़बीला ए तमीम का एक शख़्स होगा ,जिसकी दाढ़ी ख़फ़ीफ़ होगी और नाम शुऐब इब्ने सालेह होगा जिबरईल आपके लश्कर के सामने और मीकाईल पुश्त पर होगें। सुफ़यानी अपने लश्कर के साथ ख़ुरूज करेगा। और मक़ामे बैदा में पहुच कर बर्बाद हो जायेगा। जिनमें से मुख़्बिर के सिवा कोई और न बचेगा। कामयाबी महदी(अ) की होगी और सुफ़यानी को क़त्ल कर दिया जायेगा।

असआफ़ुर राग़ेबीन में महदी (अ) के बअज़ आसार के बारे में इस तरह बयान किया गया है:

· आपका ज़ुहूर ताक़ सालों में होगा।

· आपकी हुकुमत मग़रिब व मशरिक़ पर मुहीत होगी।

· आपके लिये ख़ज़ाने ज़ाहिर होगें।

· ज़मीन में किसी क़िस्म की तबाहकारी न होगी।

मुन्तख़बे कंज़ुल उम्माल में अली(अ) से रिवायत की गयी है ,आपने फ़रमाया: तालेक़ान के लिये मुबारकबाद है। इसलिये कि तालेक़ान में ख़ुदावंदे आलम के खज़ाने हैं जिनका तअल्लुक़ न सोने से है न चाँदी से ,बल्कि उसमें ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्हे ख़ुदावंदे आलम की कामिल मारेफ़त हासिल है। और वह लोग इमाम महदी(अ) के अंसार होगें।

महदी(अ) रुक्ने शदीद हैं

यनाबीउल मवद्दत में महज्जह की किताब से इस तरह रिवायत की गई है रावी बयान करता है कि हज़रत लूत अपनी क़ौम से इस क़ौल का मतलब

لَوْ أَنَّ لِي بِكُمْ قُوَّةً أَوْ آوِي إِلَى رُكْنٍ شَدِيدٍ

(सूरह हूद आयत 80)

इसके अलावा कुछ और नही था कि उन्होने महदी की क़ुव्वत और आपके अंसार की शुजाअत की तमन्ना की थी और यही लोग रुक्ने शदीद हैं। क़ायम के असहाब से एक मर्द की ताक़त चालीस लोगों के बराबर होगी और उनके मर्दों का दिल फ़ौलाद से ज़्यादा सख़्त होगा। पहाड़ों से गुज़रेगें ,पहाड़ टुकड़े टुकड़े हो जायेगा। और वह अपनी तलवारों को उस वक़्त तक म्यान में नही रखेगें जब तक कि ख़ुदावंदे आलम राज़ी न हो जाये।

यनाबीउल मवद्दत में हाफ़िज़ अलकंदूज़ी अलहन्फ़ी ,अबू जाफ़र(अ) से रिवायत करते हैं कि इमाम ने फ़रमाया: कि ख़ुदावंदे आलम हमारे चाहने वालों के दिलों में रोअब पैदा कर देगा लेकिन जब हमारा क़ायम ज़हूर करेगा उस वक़्त हमारे चाहने वाले शेर से ज़्यादा बहादुर होगें और तलवारों से गुज़र जायेगें।

सबान ने असआफ़ुर राग़ेबीन में महदी(अ) के ज़हूर से मुतअल्लिक़ बअज़ आसार का तज़किरा इस तरह किया: आपका ज़हूर ताक़ सालों मसलन एक या तीन ,पाँच या सात में होगा। मक्के में आपकी बैअत करने के बाद आपका लश्कर कूफ़े की जानिब रवाना होगा। उसके बाद मुख़्तलिफ़ शहरों में तीतर बीतर हो जायेगा।

यनाबीउल मवद्दत में अल्लाह के इस क़ौल

یا یها الذین آمنوا اصبروا و صابروا و رابطوا

की तफ़सीर इस तरह की गई है:

اصبروا و صابروا यानी अपने दुश्मन की अज़ीय्यत पर सब्र करो ,

و رابطوا और अपने इमाम महदी(अ) से वाबस्ता रहो।

(सलमा शाफ़ेई) अक़्दुद दुरर में अबी अब्दिल्लाहिल हुसैन इब्ने अली(अ) से रिवायत करता है ,आपने इरशाद फ़रमाया: जब मशरिक़ का जानिब में तीन रोज़ या सात रोज़ आग देखो पस समझ लेना कि वही आले मुहम्मद (अ) के ज़हूर का ज़माना है। इन्शाँ अल्लाह।

फिर एक मुनादी आसमान से महदी के नाम से नेदा करेगा जिसको मशरिक़ व मग़रिब के तमाम लोग सुनेगें। यहाँ तक कि गहरी नींद और नीम बेदारी की हालत में सोने वाले भी उस आवाज़ को सुन लेगें। गहरी नींद में सोने वाला आवाज़ सुनते ही बेदार हो जायेगा और नीम ख़्वाबी में मुब्तला शख़्स उठकर बैठ जायेगा और बैठा हुआ खड़ा हो जायेगा और दौड़ पड़ेगा। ख़ुदा वंदे आलम उस आवाज़ को सुनकर जवाब देने पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमाएगा क्यो कि यह आवाज़ रुहुल अमीन जिबरईल (अ) की होगी।

महदी (अ) की हुकूमत पाँचवी होगी

इब्ने हजर शाफ़ेई की सवाएक़े मोहरेक़ा में अबिल क़ासिम तबरानी के वास्ते से आँ हज़रत(स) से रिवायत करता है आँ हज़रत ने फ़रमाया: मेरे बाद अंक़रीब मेरे ख़ुलाफ़ा होगें ,फिर उमारा होगें फिर मुलूक होगें ,फिर जबाबेरह (यानी ज़ालिम बादशाह होगें) फिर मेरे अहले बैत से एक शख़्स ज़हूर करेगा जो ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।[27][27]

दज्जाल के मअना

सलमा की अक़दुद दुरर में अबी अब्बास अहमद इब्ने यहिया इब्ने तग़लिब से इस तरह बयान किया गया अबुल अब्बास बयान करता है दज्जाल का नाम उसके धोके और फ़रेबकारी की वजह से है। मसलन

و جلت العبیر اذا طلبة بالفطران

यानी जब ऊंट की मालिश रोग़नी माद्दे से करते हो ,उस वक़्त इस जुमले का इस्तेमाल[28][28] करते हैं।

इब्ने सबाग़(अलमालिकी) की फ़ुसुलुल मुहिम्मा में अबी जाफ़र से रिवायत की जिसमें आपने फ़रमाया: जिस वक़्त ज़हूर करेगें कूफ़े की जानिब रवाना होगें वहाँ मसाजिद को वसीअ और रास्तों में निकले हुए परनालों को बंद कर देगें। कोई बिदअत ऐसी होगी मगर आप उसका क़िला क़मअ फ़रमायेगें और कोई भी सुन्नत ऐसी बाक़ी न रह जायेगी मगर उसको क़ायम फ़रमायेगें ,क़ुस्तुन्तुन्या ,चीन और दैलम के पहाड़ों को फ़तह करेगें।[29][29]

यनाबीउल मवद्दत में हाफ़िज़ क़ंदूज़ी(अलहनफ़ी) ने अमीरुल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब(अ) से रिवायत की ,अमीरुल मोमेनीन फ़रमाते हैं: आँ हज़रत(स) ने फ़रमाया: अफ़ज़ल तरीन इबादत क़शाइश का इन्तेज़ार है।

मुअल्लिफ़े किताब हाफ़िज़ अलक़ंदूज़ी बयान करते हैं हदीस से महदी(अ) के ज़हूर की कशाकश मुराद है।[30][30]

महदी का ज़िक्र तमाम किताबों में मौजूद है

सलमा की अक़दुद दुरर में उमर बिन मुक़री की सुनन से और हाफ़िज़ नईम बिन हम्माद ने राहिबों की किताब से इस तरह रिवायत की है ,वह बयान करता है: मैंने महदी का तज़किरा अम्बिया की कुतुब में देखा है ,आपके हुक्म में किसी क़िस्म का ज़ुल्म और तशद्दुद नही है।)[31][31]

सुकून व इतमीनान:

अक़दुद दुरर में हरस बिन मुग़ीरा नज़री से रिवायत की गयी वह बयान करता है मैंने अबी अब्दिल्ला बिन अली से अर्ज़ की आक़ा ए महदी को किस तरह से पहचाना जायेगा ?हज़रत ने फ़रमाया:

بالسکینة والوقار

सुकून और इतमीनाने नफ़्स के ज़रीये पहचाना जायेगा।[32][32]

अक़दुद दुरर में ताऊस की सनद से इस तरह रिवायत की गयी: महदी (अ) मज़दूरों की सख़्त निगरानी करेगें ,माल की सख़ावत फ़रमायेगें और मिसकीनों पर रहम करेगें।

अक़दुद दुरर में नईम बिन हम्माद के वास्ते से अबी रुमीयतः से इस तरह रिवायत की गयी अबी रुमीयतः बयान करता है कि महदी(अ) मिसकीनों को अमवाल का बेहतरीन हिस्सा अता करेंगें। [33][33]

अक़दुद दुरर में हुसैन बिन अली की सनद से इस तरह रिवायत की गयी जिस वक़्त इमाम महदी (अ) ज़हूर फ़रमायेगें उस वक़्त आपके और अरब व क़ुरैश के दरमियान सिर्फ़ तलवार होगी ,और उन लोगों को आपके ज़हूर की जल्दी न होगी।(ख़ुदा बेहतर जानता है)

आपका लिबास बहुत सादा और खाना जौ पर मुन्हसिर और जहा कहीं आप मौजूद होगें मौत आपकी तलवार के साये में होगी।[34][34]

यहूदीयत फ़ना हो जायेगी

अक़दुद दुरर में सुलेमान बिन ईसा की सनद से इस तरह रिवायत की गयी सुलेमान बिन ईसा बयान करता है मुझ से लोगों ने बयान किया कि महदी(अ) के हाथों पर बुहैरा ए तीबरीत से ताबूते सकीना ज़ाहिर होगा। आप उसको बुलंद फ़रमा कर बैतुल मुक़द्दस के सामने रख देगें। यह देख कर यहूदी आप पर ईमान ले आयेगें।

अक़दुद दुरर में इस तरह वारिद हुआ है कि बअज़ रिवायात में बयान किया गया है कि आपका नाम(महदी) इस वजह से क़रार पाया कि आप तौरेत की जानिब हिदायत फ़रमायेगें और उसको मुल्के शाम के पहाड़ो पर बरामद फ़रमायेगें। और यहूदीयों की उसकी जानिब हिदायत करेगें। चुनाँचे उस वक़्त यहूदीयों की एक बड़ी जमाअत इस्लाम क़बूल कर लेगी।

और मदाएनी अपनी किताब सुनन में बयान किया है कि आपकी नाम महदी इस सबब से क़रार पाया कि आप मुल्के शाम की पहाड़ीयों की जानिब लोगों को हिदायत फ़रमायेगें ताकि उससे अहले तौरेत को निकाला जाये तो जिसके ज़रीये आप यहूदीयों पर इतमामे हुज्जत तमाम फ़रमायेगें ,चुनाँचे आप के ज़रीये बहुत से यहूदी इस्लाम क़बूल करेगें।

सबान असअफ़ुर राग़ेबीन में इस तरह बयान करता है कि महदी(अ) इनताकिया के ग़ार से ताबूते सकीना और तौरेत की किताबें मुल्के शाम के पहाड़ों से निकालेगें जिसके ज़रीये यहूदीयों पर इतमामे हुज्जत फ़रमायेगें ,जिनमें से बहुत से यहूदी इस्लाम क़बूल करेगें।

दुनिया में मसीहीयत बाक़ी न रहेगी

यनाबीउल मवद्दत में हाफ़िज़ कंदूज़ी अबू हुरैरा से रिवायत करते हैं ,वह बयान करता है रसूलल्लाह(स) ने फ़रमाया:

ولله لینزلن بمریم حکما عادلا فلیکسرن الصلیب و لیقتلن الخنزیر و الیصعن الجزیة و لیترکن الفلاس فلا سعی الیها ولتذهن الشحنا ء و تلتباغض و التحسد

तर्जुमा व हाशिया: ऐन मुमकिन है कि हदीसे मज़कूरा का तर्जुमा इस तरह हो कि ईसा बिन मरियम नाज़िल होगें। (इसलिये कि हज़रत ईसा की जानिब मंसूब शुदा शरीयत के ज़वाल के बयान में हदीस मज़कूर वारिद है।)

(فلیکسرن الصلیب )ईसा(अ) सलीब को तोड़ डालेगें इस तरह ईसाईयों पर सलीब का बेबुनियाद होना साबित हो जायेगा। और ख़िन्ज़ीर को क़त्ल करेंगें। इसलिये कि ख़िन्ज़ीर इस्लाम में हराम है। और मसीही उसी वक़्त इस्लाम क़बूल करे लेगें और उस रोज़ के बाद ख़िन्ज़ीर का इस्तेमाल नही होगा। इस लिये कि यहूद व नसारा में से कोई भी अपने दीन पर बाक़ी न रहेगा। कनीसा से नाच गाने का सिलसिला ख़त्म हो जायेगा और कोई भी उसकी जानिब मुतवज्जे न होगा और कोई शख़्स किसी दूसरे से बुग़्ज़ व हसद नही करेगा इसलिये कि उस वक़्त तमाम दुनिया(ईमान के) एक ही रास्ते पर गामज़न होगी। जैसा कि क़ुरआने मजीद में ख़ुदा वंदे आलम ने इरशाद फ़रमाया:

لیظهره علی الدین کله

सलमा शाफ़ेई की अक़्दुद दुरर में अली बिन अबीतालिब(अ) की सनद से इस तरह रिवायत की गयी हज़रत ने इरशाद फ़रमाया: महदी(अ) तमाम मुल्कों में अपने अहकाम रवाना फ़रमायेगें। जो लोगों के दरमियान अदल व इंसाफ़ करेगें। आपके दौरे हुकुमत में बकरी और भेड़िया एक चरागाह में खायेगें ,बच्चे साँप और बिच्छू से खेलेगें जिनसे ज़रा भी नुक़सान न होगा। एक मुद बोया जायेगा और सात मुद पैदावार होगी।

ज़नाकारी ,शराबखोरी और सूदख़ोरी ख़त्म हो जायेगी। लोगों का रुजहान शरीअत ,दीन ,इबादात ,तवाफ़ व जमाअत की तरफ़ होगा। और लोग बहुत ज़्यादा उमरे बजा लायेगें। अमानतदारी का हक़ अदा करेगें। दरख़्तों के भलों में इज़ाफ़ा और बरकतो की ज़्यादती होगी। बुरे लोग ख़त्म हो जायेगें और नेकूकार बाक़ी रहेगें।

इस मक़ाम पर मुनासिब है कि गुज़श्ता जुमलों की किसी हद तक वज़ाहत कर दी जाये ।

रिवायत में वारिद हुआ है कि हज़रत के जम़ाने में भेड़िये और बकरी एक मक़ाम पर चरेगें ,हाँलाकि कि बकरी की तबीयत में भेड़िये से ख़ौफ़ खाना है। और भेड़िये की तबीयत में बकरी को फाड़ खाना है ,चुनाँचे न तो भेड़िया ही बकरी के साथ रह सकता है और न ही बकरी ही भेड़िये के साथ रह सकती है। क़ाबिले गौर अम्र यह है कि हज़रत महदी ( ) के ज़माने में भेड़िया और बकरी किस तरह से साथ रह सकते हैं ?

इसके दो जवाब हैं:

पहला जवाब

भेड़िये का फाड़ खाना उसकी असली फ़ितरत नही है बल्कि आरेज़ी है ,जो भूक के सबब या भूक की तवील मुद्दत हो जाने से उस पर आरिज़ होता है और जब उसकी हिर्स व तमअ में इज़ाफ़ा होता है वह फाड़ खाने पर आमादा हो जाता है।

और भेड़िये के मुक़ाबले में बकरी का ख़ौफ़ भी उसके ग़रीज़ा ए असली के सबब नही है बल्कि वह उसकी साबेक़ा मारेफ़त और तजरिबे के सबब उससे ख़ौफ़ करती है।

चुँकि इमाम महदी(अ) के ज़माने में आसमान और ज़मीन की बरकतें बख़ूबी मयस्सर होगीं इस लिये न तो भेड़िया भूका होगा और न बकरी।

दूसरा जवाब

यह अम्र ख़ुदा वंदे आलम के मोजेज़ात से होगा ,जिस तरह वह मोजेज़ात अंबीया व अवलिया के बारे में होते रहते हैं।

और यह भी मुमकिन है कि महदी की पाकीज़ा सीरत और आपके ज़माने के लोगों का पाकीज़ा किरदार इस हद तक मोवस्सिर हो कि हैवानात और दरिन्दे भी एक दूसरे पर ज़ुल्म करने से बाज़ आ जायें जैसा कि जदीद ऊलूम ने इस अम्र का इंकेशाफ़ किया है। इसके अलावा दीगर एहतेमालात का भी इमकान है।

मज़कूरा वुजुहात की रौशनी में रिवायत में वारिद दूसरा जुमला यह कि

महदी(अ) के ज़माना ए इमामत में बच्चे साँप और बिच्छुओ से खेलेगें। बख़ूबी समझा जा सकता है।

यानी एक मुद बोया जायेगा और सात सौ मुद उगेगा। रिवायत में वारिद शुदा जुमला दर हक़ीक़त क़ुरआने करीम की इस आयत की जानिब इशारा है:

तर्जमा: जो लोग अपने मालों को ख़ुदा की राह में सर्फ़ करते हैं ,उनके सर्फ़ किये हुए मालों की मिसाल उस दाने की सी है जिसने सात बालीयाँ उगाई हों(और) हर बाली में से सौ(सौ) दाने हों और अल्लाह जिसे चाहता है(इसी तरह की ज़्यादती अता फ़रमाता है।)

सूरः ए बक़रः

महदी(अ) के ज़माने में इस क़दर पैदावार होने का सबब बिल्कुल ज़ाहिर है वह यह कि आसमान से मुसलसल बारिश होगी और ज़मीन अपनी तमामतर बरकतों तो ज़ाहिर कर देगी उस वक़्त हर एक किलो ज़राअत करने पर उसकी नतीजा सात सौ किलो पैदावार होना यक़ीनी है।

सवाल: इस तरह की पैदावार क्यो कर मुमकिन है ?

जवाब: आज तक किसी वक़्त और किसी भी मक़ाम पर यह अम्र साबित नही हुआ है कि हर दाने से सात बालीयाँ निकली हों। और हर बाली में सौ दाने हों।

पस यह खबर क़ुरआने हकीम ने किस ज़माने से मुतअल्लिक़ दी है ?

क्या क़ुरआने मजीद ने किसी ऐसे अम्र की ख़बर दी है जो कभी वुजूद में न आयेगा ?

क्या क़ुरआने मजीद कोई ऐसी मिसाल भी पेश करता है जिसकी कोई वाक़ेईयत और हक़ीक़त न हो। हरगिज़ हरगिज़ नही।

पस साबेक़ा मिसाल कब सादिक़ आयेगी ?

क़ुरआने हकीम की साबेक़ा मिसाल महदी(अ) के ज़माना ए इमामत में पूरी होगी।

तूलुल आमार

महदी(अ) के ज़माने में लोगों की उमरें तवील होगीं।

सवाल:

उमरें किस लिये तूलानी होगीं ?

जवाब:

इसलिये कि कोताह उम्र के असबाब :

1-हिफ़ज़ाने सेहत का फ़िक़दान

2-रंज व ग़म ,नफ़सीयाती बीमारीयाँ वग़ैरह हैं।

और जदीद इल्मे तिब ने इस अम्र की वज़ाहतकर दी है कि इंसानी मशीनरी के लिये अगर ऐसे हालात पेश न आयें जो उसको सुस्ती और काहिली की तरफ़ मायल करते हैं तो इंसान के एक तवील मुद्दत तक ज़िन्दा रहने में कोई अम्र मानेअ नही है।

पस जब इमाम महदी के ज़माने में दुनिया और ईमान की नेमतें आम होगीं ,उसूले हिफ़ज़ाने सेहत पर अमल होगा और लोगों की ज़िन्दगी सुकून व इतमीनान से गुज़रेगी तो लोग कोताही ए उम्र के अमराज़ में मुब्तला न होगें।

अमानतों की अदाएगी

हज़रत के ज़माने अमानतों की अदाएगी होगी:

हदीस में वारिद हुआ है कि लोग अपने बादशाह के दीन पर होगें।

पस जब उम्मत का इमाम ,महदी अलक़ायम (अ) मुजस्समा ए ईमान हो ,फ़लाह व बहबूदी की बुनियाद हो ,ऐसे इमाम के ज़माने में लोगों को नेक और सालेह होना ही चाहिये। चुनाँचे ऐसे लोग अमानत में ख़यानत हरगिज़ न करेगें। और अमानतदारी और उसकी अदाएगी लोगों के दरमियान आम होगी।

शरीर हलाक होंगे

शरीर लोग हलाक हो जायेगें

शरीर लोगों की दो क़िस्में हैं:

1-वह लोग हैं जिनको किसी तरह की ख़ैर व ख़ूबी और नसीहत से फ़ायदा न होगा। चुँकि यह लोग फ़साद और शक़ावत के मर्कज़ होगें। लिहाज़ा ऐसे लोगों को इमाम क़त्ल फ़रमा देगें।

2-दुसरे वह लोग हैं जिन पर नेक माहौल और ईमानी फ़ज़ा का असर होगा। चुनाँचे महदी(अ) के ज़माना ए इमामत में सालेह और मोमिन बंदे हो जायेगें।

इमाम के परचम के नीचे कोई भी दुशमन बाक़ी नही रहेगा।

(इमाम(अ) के परचम तले अहले बैत(अ) का कोई भी दुश्मन बाक़ी न रहेगा।)

दुश्मनाने अहले बैत की दो क़िस्में हैं:

1-यह वह लोग हैं जो अहले बैत के हक़ और आपके फ़ज़्ल से जाहिल हैं। ऐसे लोग महदी(अ) के ज़माना ए इमामत में अहले बैत के फ़ज़्ल और हक़ से बख़ूबी वाक़िफ़ हो जायेगें। और आपकी विलायत से दोस्ती और मुहब्बत करेगें।

2-यह लोग ऐसे दुश्मनाने अहले बैत हैं जिनके लिये अमीरुल मोमीनीन हज़रत अली (अ) ने इस तरह से फ़रमाया:

तर्जुमा: यक़ीनन कुछ हमारे दुश्मन ऐसे भी हैं जिनको हम पाक व पाकीज़ा शहद भी खिलाएगें फिर भी उनकी दुश्मनी में इज़ाफ़ा होता रहेगा।

यही वह लोग हैं जिनके वुजूद से ज़मीन को पाक करने के लिये इमाम महदी (अ) उनको क़त्ल करेगें। चुनाँचे इस तरह के दुश्मनाने अहले बैत के वुजूद से दुनिया ख़ाली हो जायेगी।

मज़कूरा नुकात के तहत बहल बहुत तूलानी है और उससे मुतअल्लिक़ बहुत सी मिसालें मौजूद हैं। लेकिन हम इख़्तसार के पेशे नज़र कलाम को तूल देना नही चाहते।

और नेकी करो ताकि तुम फ़लाह पा जाओ। और ख़ुदा की राह में जो जिहाद करने का हक़ हैं उस तरह जिहाद करो ,वही है जिसने तुमको अपने दीन की पैरवी के लिए मुन्तख़ब किया। और दीन के (मुआमलात में) तुम पर किसी तरह की तंगी (सख़्ती) रवा नही रखी ,तुम अपने बाप इब्राहीम की मिल्लत पर (हमेशा कारबंद) उसने तुम्हारा नाम (लक़्ब) मुसलमान रखा (उन किताबों में जो क़ुरआन से) पहले ही (नाज़िल हो चुकी हैं) और (ख़ुद) इस क़ुरआन में भी ताकि (हमारा) रसूल तुम्हारे (आमाल व अफ़आल) पर गवाही दे और तुम (दूसरे) लोगों के (आमाल व अफ़आल) पर गवाही दो तो (देखो) तुम लोग पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और ख़ुदा (के दीन) से मज़बूती के साथ मुतमस्सिक रहो वही तुम्हारा सरपरस्त है ,वह कैसा अच्छा सरपरस्त और कैसा अच्छा मददगार है।

[2]-यनाबी उल मवद्दत ,हाफ़िज़ अलक़न्दूज़ी

[3]-मुस्नदे अहमद बिन हम्बल

[4]-सहीहे तिरमीज़ी

[5]-हदीस शरीफ़ में मेहदी की तशबीह ताऊस (मोर) से देना ख़ूबसूरती और हुस्न व जमाल के सबब हो सकती है। जिस तरह मोर का हुस्न व जमाल ज़मीन के परिंदों के दरमियान बेनज़ीर है ,उसी तरह इमाम मेहदी का जमाल भी अहले जन्नत के दरमियान बेमिसाल है। (मोअल्लिफ़)

[6]-कुफ़्र के तीन दर्जे हैं:1- ख़ुदावंदे आलम की ज़ाते गिरामी का इंकार करना। 2- ख़ुदावंदे आलम की नाज़िल शुदा चीज़ों का इंकार करना। 3- नेमते ख़ुदावंदी का इंकार करना। हदीसे मज़कूरा में इसी कुफ़्र का बयान किया गया है। इस लिए इमाम मेहदी (अ.) को ख़ुदा ने हक़ क़रार दिया है। मेहदी (अ.) का इंकार करना रसूलल्लाह (स) के इंकार के मुतारादिफ़ है। इसलिए कि मेहदी (अ) के ज़हूर की ख़बर हज़रत (स.) ने दी है। (मुअल्लिफ़)

[7]-रिवायत में दैलम के पहाड़ से मुराद वह मक़ाम है जहाँ पर रसूलल्लाह (स) के ज़माने में यहूदीयों का मर्कज़ था और कुस्तुन्तुनया नसारा का मर्कज़ था और बमुल्के जबलुद दैलम व कुस्तुन्तुनया से इमाम मेहदी (अ) का तमाम दुनिया और दीगर मज़ाहिब पर कामयाबी मुराद है। (मुअल्लिफ़)

[8]-सूरह मुजादिला आयत 22

[9]-ग़ैबत की दो क़िसमें :

ग़ैबते सुग़रा: उसकी जमाना क़ायम के वालिद इमाम हसन असकरी की वफ़ात ( 260हिजरी) से शुरु होकर आपके चौथे नायब की वफ़ात(329हिजरी) पर ख़त्म हुआ।

ग़ैबते कुबरा: इस ग़ैबत का ज़माना 329 हिजरी से शुरु हुआ जो आज तक जारी है। ख़ुदावंदे आलम हज़रत के ज़हूर में ताजील फ़रमाये और हमें हक़ीक़ी मारेफ़त की तौफ़ीक़ इनायत फ़रमाए।

[10]-1-रिवायत में बयान किया गया है कि आपके जाए क़याम पर कोई शख़्स भी मुत्तला न होगा मज़कूरा इत्तेला से आपकी सुकुनत की मुस्तक़िल जगह मुराद है।

2-दूसरी रिवायत यह बयान की गयी है कि आपकी जगह और सुकुनत की इल्म आपके ग़ुनाम को होगा। यहाँ पर आप का वह ख़िदमतगुज़ार मुराद है जो ख़ुद भी अवलिया ए ख़ुदा से होगा व गर ना एक या चंद मर्तबा मुतअद्दिद मक़ामात पर बहुत से साहिलीन और मुत्तक़ीन हज़रात को आपकी मुलाक़ात का शरफ़ हासिल हुआ। जिसमें किसा क़िस्म का भी शक नही किया जा सकता और यही वह मक़ाम है जहाँ हर दो रिवायात की जमा किया जा सकता है।

1-बाज़ रिवायात यह कहती है कि जो शख़्स भी इमाम से मुलाक़ात का दावा करे उसकी तकज़ीब करो।

2-और बाज़ रिवायात से यह भी मालूम होता है कि मुख़लिस और सालेह मोमीनीन हज़रत से मुलाक़ात का शरफ़ हासिल करने में कामयाब हुए हैं। उनमें से चंद यह हैं: सैय्यद बहरूल ऊलूम ,मुक़द्द्स अरदबेली ,शेख़ अंसारी ,हाज अली बग़दादी। इनके अलावा वह हजरात जिनका तज़किरा अलहाज मिर्ज़ा हुसैन नूरी ने अपना किताब नजमुस्साक़िब में और शेख़ महमूद इराक़ी ने अपनी किताब दारुस सलाम में और अल्लामा मजलिसी ने बेहारुल अनवार में और बक़ीया हज़रात ने भी अपनी अपनी कुतुब में किया है। ख़ुदावंदे आलम हमें भी इसकी तौफ़ीक़ दे।(मुअल्लिफ़)

[11]-इस मक़ाम पर इमाम जाफर सादिक़(अ) ने एक लतीफ़ मिसाल बयान फ़रमाई है। आफ़ताब से हयात मोजूदा के तमाम फवाएद मुतअल्लिक़ हैं। अगरचे वह बादलों के अंदर ही पोशीदा हो ,अलबत्ता लोह आफ़ताब की धूप से महरूम रहते हैं ,इसी तरह इमाम मेहदी(अ) के वुजूद से एक अज़ीम फ़ायदा उनकी ग़ैबत में होते हुए भी लोगों को पहूच रहा है। जो कायमात की हिफ़ाज़त है। चुनाँचे आपके सदक़े में तमाम दुनिया तबाह व बर्बाद होने से महफ़ूज़ है अलबत्ता आपकी ग़ैबत से सबब लोग फ़वायद से महरूम हैं।(मुअल्लिफ़)

[12]-सूरह अनफ़ाल आयत 39

[13]-सूरह आले इमरान आयत 83

[14]-यानी मोमीनीन की एक जमाअत इस्लाम की नश्र व इशाअत दींन की तबलीग़ करेंगी। नेकीयों का हुक्म देगी और बुराईयों से मना करेगी। शहरों को दीन और ईमान से भरे देगी। यह तमाम बातें इमाम के ज़हूर का मुकद्दमा हैं। हदीसे मज़कूरा और इसी क़िस्म की साबेक़ा अहादीस से उन लोगों को बखूबी जवाब दिया जा सकता है जो यह कहते हैं कि कुफ़्र व गुमराही को हतमी तौर पर मुन्तशिर होना चाहिये ताकि इमाम के ज़हूर में ताजील हो हालाँ कि यह उनका क़ौल बग़ैर दलील के है। इसलिये हदीस में कुफ़्र व ज़लालत का ज़िक्र नही है बल्कि ज़ुल्म व जौर के बारे में कहा गया है।

और ज़ुल्म व जौर में वह गुनाह भी शामिल है जो इंसान ख़ुद से बजा लाते हैं। और ऐसे गुनाह पर भी जुल्म व जौर सादिक़ आता है जो एक शख़्स दूसरे पर करता है।

लिहाज़ा हदीस शरीफ़ के ज़ाहिरी मफ़हूम से यह नही मालूम होता है कि शहरों में कुफ़्र व इलहाद का फ़ैलना ज़रूरी व लाज़मी हो। और न ही हदीसे शरीफ़ का मफ़ाद यह है कि अम्र बिलमारूफ़ और नहयी अनिल मुन्कर को तर्क किया जाये।(मुअल्लिफ़)

[15]-सूरह युसुफ़ आयत 110

[16]-सूरह ज़ुख़रुफ़ आयत 61

[17]-बैअत बैअ के मानी में है जिसके मायना फ़रोख़्त करने के हैं ,बैअत को बैअत इसलिये कहा गया है कि बैअत करने वाला अपने नफ़्स और जान को फ़रोख़्त करता है और जंग व सुल्ह और क़ज़ा के लिये और हर एक हुक्म और नबी के लिये हर वक़्त आमादा रहता है। इमाम मेहदी के परचम पर البیعة لله यानी बैअत फ़कत अल्लाह के लिये है ,इसका मतलब यह है कि मेहदी ख़ुदा की जानिब से उसके नायब हैं। और जिनकी बैअत करना ख़ुदा से बैअत करने के मुतारादिफ़ है और यह बैअक उसी बैअक की ताकीद है जो मोमीनीन की जानिब से क़ुरआने हकीम में वारिद हुई है। मसलन ख़ुदा वंदे आलम इरशाद फ़रमाता है:

اللّهَ اشْتَرَى مِنَ الْمُؤْمِنِينَ أَنفُسَهُمْ وَأَمْوَالَهُم بِأَنَّ لَهُمُ الجَنَّة إِنَّ

ख़ुदा ने ख़रीद लिया है बाज़ मोमीनीन की जान और अमवाल को जन्नत के बदले ।

[18]-माहिरे फ़लकीयात के मुताबिक़ नामुमकिनात से हैं कि अव्व्ले माह में माहताब को गहन लगे इसलिये कि यह अम्र महताब की ख़िलक़त से आज तक वुजूद में नही आया और इसी तरह इल्मे फ़लक़ के ऐतबार से नामुमकिन है कि आफ़ताब का गहन महीने के दरमीयान में वाक़े हो ,यह अम्र भी आफ़ताब की ख़िलक़त से आज तक वुजूद में नही आया और आफ़ताब का मग़रिब से तुलू करना भी नामुमकिनात में से है ,इस तरह निज़ामे शम्सी में ख़लल वाक़े होगा। और यह भी नामुमकिन है ,लेकिन जो ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है उन तमाम उमूर को अपने वली(मेहदी) के ज़हूर के वक़्त अंजाम देगा।

चाँद और सूरज के गहन की ख़बर मौजूदा रिवायत से मज़कूर हुई और आफ़ताब के मग़रिब से तुलू होने से मुतअल्लिक़ भी बाज़ रिवायत में वारिद हुआ है।

[19]-रिवायत में एक जुमला वारिद हुआ है इस जुमले का इस्तेमाल उस शख़्स के लिये होता है जो अपनी घर नही छोड़ता और यह यहाँ पर इस अम्र से किनाया इस्तेमाल किया गया है कि लोग उन हालात मज़कूरा में दूसरे मज़हब की तरफ़ न जायें ,इसके माना यह हरगिज़ नही हैं कि लोग अम्र बिल मारुफ़ और नहयी अज़मुन्कर को तर्क़ कर दें इसलिये कि यह दोनो अम्र वाजिब हैं और उनके तर्क करने से वाजिबात मुअत्तल हो जायेगें।

अलबत्ता मेरा ख़याल यह है कि हदीसे मड़कूर में इस जुमले के माना एक दूसरी हदीस में इस तरह मौजूद हैं लोगों के साथ रहो लेकिन उनमें घुल मिल न जाओ) हदीस का मतलब यह है कि लोगों के दरमीयान अम्र बिल मारुफ़ अंजाम दे सकते हो उस वक़्त तक उनके साथ रहो ताकि इनके अच्छाई का हुक्म दो और बुरी बातों से रोको।

[20]-सूरह क़ाफ़ आयत 41-42

[21]-हदीस में ज़िक्र शुदा मायनी यानी एक ही आवाज़ का तमाम लोगों को सुनना और समझना। ग़ैब पर ईमान रखने वालों के लिये बहुत ज़्यादा सक़ील है हालाँकि ख़ुदा वंदे आलम की क़ुदरते आम्मा से मुतअल्लिक़ हैं। और आज का दुनिया और माहौल में चीज़ बहुत आसान हो चुकी है कि इंसान ने जब एक ऐसी मशीन ईजाद की जिसको मुख़्तलिफ़ मुमालिक में आम मजालिस में इस्तेमाल किया जाता है जिनमें मुख़्तलिफ़ ज़बानों से तअल्लुक़ रखने वाले लोह मौजूद होते हैं। कलाम करने वाला अरबी में कलाम करता है लेकिन यह मशीन उसी ख़िताब का तर्जुमा फ़ारसी ,उर्दू ,फ्रांसीसी वग़ैरह ज़बानों में करती है।

इस्लाम मुजस्समा ए मोजिज़ात है और टेक्नालाँजी चाहे जिस क़दर तरक़्क़ी कर जाये लेकिन इस्लाम से निशानीयों और मोजीज़ातत का ज़हूर होता रहेगा।(मुअल्लिफ़)

[22]-हदीसे शरीफ़ में पहला इशारा क़त्ल और हादिसात की जानिब है जो आज की दुनिया में हर रोज़ कहीं न कहीं वाक़े हो रहें हैं। कभी को आलमी जंग और कभी ख़ाना जंगी की सूरत में हमारे सामने हैं जिसकी वजह से लाखो जानें जा रही हैं। हदीस में दूसरा इशारा आम अमवात की जानिब है जो कि वबाई अमराज़ भूक और ज़लज़लों के सबब वाक़े होती हैं।

2-बैदा मदीने और मक्के के दरमीयान एक सहरा है जहाँ पर शदीद तरीन ज़लज़ले आयेगें जिसके सबब शाम से आने वाला सुफ़यानी लश्कर तबाह हो जायेगा जिसकी मज़ीद तफ़सील दूसरी हदीस में बयान की जायेगी।

[23] -रिवायत में नफ़्से ज़कीय्या से मुराद सैयदे हुसैनी है जो इमाम के ज़हूर से क़ब्ल ख़ुरुज करेगा। लोगों को हक़ का जानिब दावत देगा और इमाम के ज़हूर से क़ब्ल शहीद कर दिया जायेगा। (मुअल्लिफ़)

[24] -यह अम्र तअज्जुब ख़ेज़ नही है इसलिये कि ख़ुद क़ुरआने करीम ने जनाबे सुलैमान के वसी आसिफ़ बिन बरख़िया के लिये हज़ारों मील की मसाफ़त वाली ज़मीन की तनाबें सिमट गयीं थीं ,और उन्होने एक लम्हे के अंदर फ़लस्तीन से यमन में तख़्ते बिलक़ीस मंगवा लिया था। इरशाद होता है:

قَالَ الَّذِي عِندَهُ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُ

(सूरह नमल आयत 40)

[25] -हदीसे मज़कूर में मशरिक़ व मग़रिब वालों के जमा होने का मतलब यह है कि तमाम आलम यह देखेगा कि इमाम सारी दुनिया से ज़ुल्म व जौर का बदला ले रहे हैं और जब तमाम दुनिया पर यह रौशन और वाज़ेह हो जायेगा कि निजात आपके दामन से वाबस्ता है और उस वक़्त सारे लोग आप पर ईमान ले आयेगें।

हदीस में रोफ़क़ा ए इमाम से मुमकिन है आपके दरजा ए अव्वल के अंसार मुराद हों और इसी सबब से उन हज़रात को आपके रोफ़क़ा का नाम दिया गया हो।

अबदाल: लफ़्ज़े अबदाल ऐसे मुत्तक़ीन और सालेहीन लोगों से किनाया है जब भी उनमें से कोई ग़ायब होता है या इन्तेक़ाल करता है ख़ुदावंदे आलम उसका बदल दूसरे से शख़्स को क़रार देता है।

रिवायत में शाम जो वारिद हुआ है उससे मुराद मौजूदा शाम नही है बल्कि वह मुल्के शाम है जो सिरिया ,लेबनान ,फ़लिस्तीन ,जार्डन और तर्की के बअज़ हिस्सों पर मुशतमिल है और यह भी मुमकिन है कि अबदाल(जबले आमिल) कि जहाँ पर सदरे इस्लाम से आज तक हक़ की हिमायत की जा रही है और हज़ारों ऊलामा ,फ़ोक़ाहा और मुत्तक़ीन वहाँ पर पैदा हुए हैं यहाँ तक कि ऊलामा ए जबल आमिल की बअज़ शख़सियात के बारे में ख़ास कुतुब भी तहरीर फ़रमाई गयी है। जिनमें से बुज़ुर्ग आलिमे दीन शेख मुहम्मद अलहुर्र अलआमिली की किताब(अमलुल अमल फ़ी ऊलामा ए जबलिल आमिल) है ,यही ऊलामा मुराद हैं।(मुअल्लिफ़)

[26] -हदीसे मज़कूरा इस अम्र पर दलालत करती है कि इमाम मेहदी(अ) के ज़हूर तक ख़ुदा की तरफ़ दावत और दुनिया में हक़ पर जंग जारी रहेगी। औक यही हदीस उस गिरोहे मुसब्बीन के लिये जबाव भी है जिनका कहना है कि दुनिया का कुफ्र व ज़लालत से भर जाना ज़रूरी है ताकि इमाम ज़हूर फ़रमायें और हमें कुछ इसलाह नही करना चाहिये व गर्ना अमल इमाम के ज़हूर में ताख़ीर का बाईस होगा। इस क़िस्म का ख़्याल क़ायम करना कई वुजूह से ग़लत है ,जिनमे से बअज़ का ज़िक्र हम कर चुके हैं।(मुअल्लिफ़)

[27] -इमाम मेहदी (अ) के ज़हूर से क़ब्ल चार क़िस्म के लोग हुकुमत करेंगें:

1.ख़ुलाफ़ा- यह लोग पैग़म्बरे इस्लाम(स) की ख़िलाफ़त के मुद्दई हैं।

2.उमारा- यह लोग ख़िलाफ़त के मुद्दई नही होगें ,अलबत्ता लोगों की इसलाह के लिये अमारत (यानी हुकुमत) के मुद्दई होगें।

3.मुलूक- यह लोग न तो ख़िलाफ़त का दावा करेगें और न अमारत का ,अलबत्ता ग़ुलामों और अमवाल पर हुकुमत करेगें।

4.जबाबेरह- यह लोग ज़ुल्म व जौर के अलावा और कुछ अंजाम न देगें।

मज़कूरा तमाम हुकुमतों के बाद इमाम मेहदी(अ) हक़ और ख़ैर व सलामती के साथ ज़ाहिर हो कर हुकुमत फ़रमायेगें।(मुअल्लिफ़)

[28] -दज्ल: हर उस चीड़ को कहते हैं जो झूट और बेहक़ीक़त हो ,मसलन इस्तेमाल किया जाता है दज्लुस सैफ़ यानी तलवार पर इस तरह ज़ंग चढ़ जाना कि वह लोगों को फ़ौलाद नज़र न आये या बेहतरीन क़िस्म का लोहा महसूस हो इसी तरह दज्जाल उस शख़्स को कहते हैं जिससे झूट और फ़रेबकारी के अलावा और कुछ ज़ाहिर न हो।(मुअल्लिफ़)

[29] -जिस हुकुमत की तासीस इमाम मेहदी(अ) फ़रमायेगें वह तहज़ीब व तमद्दुन के ऐतबार से आला तरीन हुकुमत होगी। तमद्दुन की मुतअद्दिद अनवाए हैं। मसलन इमाम मसाजिद में वुसएत फ़रमायेगें ,ताकि तमाम दुनिया परचमे इस्लाम व ईमान के तहत दाख़िल हो जाये। मसलन रास्तों में निकले हुए परनालों को बंद करेगें ताकि गुज़रने वालों को किसी क़िस्म की ज़हमत न हो ,और वसाइल के नक़्ल में किसी क़िस्म की दुशवारी पेश न आये ,शहरों को हुस्न व जमाल बख़्शेगें। क़ुस्तुन्तुन्या(जो कि ईसाईयों का मर्क़ज़ है।) उसको फ़तह फ़रमायेगें। चीन ,बौध और कुफ़्र व इलहाद का मर्क़ज़ है उसको भी फ़तह फ़रमायेगें। दैलम ,यहूदीयों और उन जैसे दूसरे दीगर लोगों का मर्कज़ है इसी तरह उसको भी आप ही फ़तह फ़रमायेगें। इस तरह तमाम दुनिया फ़िकरी ,अमली ,सियासी और अख़लाक़ी तरक़्क़ीयों के साथ मेहदी(अ) के परचम तले जमा हो जायेगें।(मुअल्लिफ़)

[30] -मेहदी(अ) के ज़ुहूर के सबब इसलाह का इंतेज़ार करने में रुहानी और अमली दो बड़े फ़ायदे हैं।

रुहानी फ़ायदा: रुही फ़ायदा इस तरह है जब हम मेहदी का इंतेज़ार करेगें तो उनसे मुहब्बत व मुरव्वत में इज़ाफ़ा होगा। जो मुहब्बत खुदा वंदे आलम की जानिब से इमाम की निस्बत लोगों पर वाजिब क़रार दी गयी है। (ऐ रसूल(उन लोगों से) कह दो कि मैं तुम से अपनी तबलीग़ें रिसालत की उजरत अपने अहले बैत की मवद्दत के अलावा कुछ नही चाहता।) इसी तरह उसके अलावा दीगर रुहानी फ़वाइद भी मुज़मर हैं।

अमली फ़ायदा:

[31] -असफ़ार ,सफ़र की जमा है ,जिसके मायना बड़ी किताब के हैं। यानी मेहदी का ज़िक्र अंबीया पर नाजिल शुदा कुतुब में मौजूद है।

कलमा ए(असफ़ारुल अँबीया) के मायना हैं कि रिवायत में तमाम अंबीया की कुतुब मुराद हैं ,इसलिये कि मज़कूरा कलमा जमा है और मुज़ाफ़ भी है जो उमूम का फ़ायदा देता है ,जैसा कि इल्मे अदब में मौजूद है।

(मुअल्लिफ़)

[32] -سکینة के मायना इतमीनाने क़लबी और बातेनी सुकून के हैं।

الوقار ज़ाहिरी इतमीनान को कहते हैं जिसका इज़हार आज़ा के ज़रीये होता है ,यानी इमाम मेहदी का क़ल्ब सुकून और इतमीनान से भरा होगा और आज़ा व जवारेह से जलालत व वक़ार का इज़हार हो रहा होगा। चुनाँचे आप ख़ुदा वंदे आलम के हुज़ूर में ख़ुज़ू व ख़ुशू की हालत में होगें और मज़कूरा तमाम हालात ईमान के ताबे हैं।(मुअल्लिफ़)

[33] -तमाम दुनिया में जहाँ कहीं मसावात का नारा बुलंद किया जाता है वहाँ पर दौलतमंदों को फ़कीर बनाने की कोशिश और उनसे फ़ुक़रा के नाम पर माल हासिल किया जाता है(लेकिन उनके दरमीयान सही तक़सीम नही हुई। आज की दुनिया में फ़क़ीरी पर मसावात क़ायम का जाती है लेकिन इमाम मालदार के सबब मसावात फ़रमायेगें और मिसकीन को माल का बेहतरीन हिस्सा अता करेगें। पस तुम आसमानी निज़ाम और इंसानी निज़ाम पर ग़ौर करो कि दोनो में कितना फ़र्क़ है।)

(मुअल्लिफ़)

[34] –मेहदी (अ) और अरब व कुरैश के दरमीयान तलवार और जंग का मतलब यह है कि अरब के बअज़ लोग तकब्बुर के सबब आपसे मुक़ाबला करेगें ,क़िताल करेगें और आप भी क़िताल करेंगें । मेहदी (अ) की ग़ेज़ा अपने बक़ीया अजदाद की मानिन्द जौ की रोटी होगी। और आपको मौत का ज़रा भी ख़ौफ़ दामनगीर न होगा। लिहाज़ा आपकी तलवार ख़ुदा की राह में बुलंद रहेगी। आप अपने एक हाथ से क़ुरआन की ततबीक़ और दूसरे हाथ से तलवार लेकर क़ुरआन की हिफ़ाज़त फ़रमायेगें।

(मुअल्लिफ़)