चौदह मासूमीन अलैहिमुस्सलाम

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चौदह मासूमीन अलैहिमुस्सलाम

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चौदह मासूमीन अलैहिमुस्सलाम
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चौदह मासूमीन अलैहिमुस्सलाम

चौदह मासूमीन अलैहिमुस्सलाम

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

हज़रत इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय

नाम व अलक़ाब (उपाधियां)

हज़रत इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम का नाम मुहम्मद व आपकी मुख्य उपाधियाँ तक़ी व जवाद है।

जन्म व जन्म स्थान

हज़रत इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 195 हिजरी क़मरी मे रजब मास की दसवी (10) तिथि को हुआ था।

माता पिता

हज़रत इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत सबीका थीं। जिनको ख़ीज़रान भी कहा जाता है।

इमामत

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के शहीद हो जाने के बाद बहुत कम आयु में ही इस्लामी जगत के आध्यात्मिक नेता और मार्गदर्शक बन गए। उस समय इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की आयु मात्रा 17 साल थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन इस्लामी ज्ञान और शिक्षाओं को सही रूप में प्रचारित करने में लगा दिया। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने यह बताया कि लोगों से मिलने जुलने और बात करने लिए क्या शैली अपनाई जाए।

इमाम तक़ी अ.स. का एक मुनाज़ेरा

इमाम रज़ा अ.स. को शहीद करने के बाद मामून चाहता था कि किसी तरह से इमाम तक़ी अ.स. पर भी नज़र रखे और इस काम के लिये उसने अपनी बेटी उम्मे फ़ज़्ल का निकाह इमाम तक़ी से करना चाहा ,इस बात पर तमाम अब्बासी मामून पर ऐतेराज़ करने गले और कहने लगे कि अब जबकि अ़ली इब्ने मूसा रिज़ा अ.स. इस दुनिया से चले गये और खि़लाफ़त दुबारा हमारी तरफ़ लौटी है तो तू चाहता है कि फिर से खि़लाफ़त को अ़ली की औलाद को दे दे हम किसी भी हाल में यह शादी नहीं होने देगें। मामून ने पूछाः तुम क्या चाहते हो ?उन लोगों ने कहा ये लड़का नौजवान है और न ही इसके पास कोई इल्मो हिक्मत है तो मामून ने जवाब मे कहा तुम इस ख़ानदान को नहीं पहचानते अगर तुम चाहो तो आज़मा कर देख लो और किसी आलिम को बुला लाओ और इन से बहस करा लो ताकि मेरी बात की सच्चाई रौशन हो जाये।

अब्बासी लोगों ने यह्या बिन अक़सम नामक व्यक्ति को उसके इल्म की शोहरत की वजह से इमाम तक़ी अ.स. से मुनाज़रे के लिये चुना।

मामून ने एक जल्सा रखा कि जिस में इमाम तक़ी अ.स. के इल्म और समझ को तौला जा सकता है। जब सब लोग हाज़िर हो गये तो यह्या ने मामून से पूछाः

क्या आपकी इजाज़त है कि मैं इस लड़के से सवाल करूं ?

मामून ने कहा ख़ुद इन से इजाज़त लो ,यह्या ने इमाम से इजाज़त ली तो इमाम ने फ़रमायाः जो कुछ भी पूछना चाहता है पूछ ले।

यह्या ने कहाः उस शख़्स के बारे में आप की क्या नज़र है कि जिसने अहराम की हालत में शिकार किया हो ?

इमाम ने फ़रमायाः इस शख़्स ने शिकार को हिल मे मारा है या हरम में ?

वो शख़्स अहराम की हालत में शिकार करने की मनाही को जानता था या नहीं जानता था ??

उसने जानवर को जान के मारा है या ग़लती से ??

ख़ुद वो शख़्स आज़ाद था या ग़ुलाम ?

वह शख़्स छोटा था या बड़ा ?

पहली बार यह काम किया था या पहले भी कर चुका था ?

शिकार परिन्दा था या ज़मीनी जानवर ?

छोटा जानवर था या बड़ा ?

फिर से इस काम को करना चाहता है या अपनी ग़लती पर शरमिंदा है ?

शिकार दिन में किया था या रात में ?

अहराम उमरे का था या हज का ?

यह्या बिन अक़सम अपने सवाल के अंदर होने वाले इतने सारे सवालों को सुन कर सकते में आ गया ,उसकी कम इल्मी और कम हैसियती उसके चेहरे से दिखाई दे रही थी उसकी ज़बान ने काम करना बंद कर दिया था और तमाम मौजूदा लोगों ने उसकी हार को मान लिया था।

मामून ने कहा कि ख़ुदा का शुक्र कि जो मैं ने सोचा था वही हुआ है ओर फिर अपने रिश्तेदारों और ख़ानदान वालों से कहाः क्या अब उस बात को जान गये हो कि जिसे नहीं मान रहे थे ?

कुछ देर बाद जलसा ख़त्म हो गया और सिवाये ख़लीफ़ा के ख़ास लोगों के सब लोग चले गये मामून ने इमाम तक़ी अ.स. की तरफ मुंह किया और इमाम के बयान किये हुवे हर एक मसले का जवाब इमाम से मालूम किया।

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के कथन

१. आपस में इत्तेहाद (मेल जोल) क़ायम करने के लिये झूठ भी नापसन्दीदा नहीं है।

२. ख़ुशकिस्मत वह है जो बुज़ुर्गों (अपने से बढ़ों) और नेक लोगों से मेल मिलाप रखे।

३. क्या कहना उस शख़्स का जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी बर्ते और बुरे वक़्तो में काम आए।

४. वायदे का वफ़ा करना (पूरा करना) और मुआहदे (समझौते) का एहतेराम (सम्मान) करना ईमान का जुज़ (टुकड़ा) है।

५. अगर किसी को कोई चीज़ नहीं मालूम तो मालूम करने में शर्म महसूस न करे क्योंकि हर इन्सान की क़ीमत उसकी मालूमात (ज्ञान) पर है।

६. जो शख़्स इस हाल में सुबह करे कि किसी पर ज़ुल्म का ख़्याल भी दिल में न लाये ख़ुदा उसके गुनाहों को दरगुज़र करेगा।

७. कभी भी ओमूरे ख़ैर (अच्छे कार्य) को मिन्नत (अहसान) जता कर ज़ाया मत करो।

८. अपनी ज़िन्दगी के दौरान हमेशा ओमूरे ख़ैर में मशग़ूल (वयस्त) रहो और दरियाए रहमते ख़ुदा से सेराब होते रहो।

९. पस्त अफ़राद के पास सिवाये यावा सराई (अपनी बड़ाई करना) और नासज़ा कल्मात (बुरे शब्द) के कोइ और हर्बा नहीं है।

१०. आज़ाद वह है जो अपने को ख़्वाहिशाते नफ़्स (आत्मइच्छाओं) से आज़ाद रखे।

११. अपने दुश्मनों से अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) का बर्ताव (व्यवहार) करो जल्दी कामयाब (सफ़ल 0होगे।

१२. जो कोई अपने भाई के लिये कुआँ खोदेगा ख़ुद उसका शिकार होता है।

१३. ग़ौर व फ़िक्र (सोच विचार) नूरानियत का बायस (कारण) और ग़फ़लत व बेख़बरी तारीकी लाती है।

१४. सबसे ख़तरनांक मर्ज़ हवा व हवस (इच्छापूर्ति) की पैरवी है।

१५. नेकी (अच्छाई) करो ताकि दूसरे तुमसे नेकी करें दूसरों पर रहम करो ताकि तुम पर रहम किया जाये।

१६. अल्लाह की राह (राह) में काम करते वक़्त (समय) लोगों की सरज़निश (ऐतेराज़) की परवाह मत करो।

१७. जो शख़्स (मनुष्य) दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) पर से परदा उठायेगा नागाह (अचानक) ख़ुद उसके ओयूब बे परदा हो जायेगें।

१८. तहसीले इल्म (ज्ञान प्राप्ती) में अगर कोई लुक़्मा ए अजल (मर जाये) हो जाये तो गोया वह शहीद है।

१९. मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो इससे दिल के कीने (द्वेष ,वह शत्रुता जो मन में रहे) दूर हो जाते हैं।

२०. इल्म (ज्ञान) बेहतरीन मीरास (नानकार) है और अख़लाक़ (शिष्टाचार) बेहतरीन ज़ेवर है।

२१. नेक अख़लाक़ (सुशीलता) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की हमनशीनी (संगत) से हासिल होता है।

२२. बुरी आदतें जाहिलों (अज्ञानियों) की हमनशीनी (संगत) की देन है।

२३. सितमगर के लिये हिसाब का दिन (महाप्रलय) ज़्यादा सख़्त (कठोर) होता है मुक़ाबले में मज़लूम (जिसके साथ अन्याय किया गया हो) पर सितम करने के दिन से।

२४. जो अपनी ख़्वाहेशात (इच्छाओं) का ग़ुलाम हुआ गोया उसने अपने दुश्मन की ख़्वाहेशात (इच्छाओं) को पूरा कर दिया।

२५. जिस शख़्स में जितना अदब होगा ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक़ वह उतना ही मोहतरम होगा।

२६. जिस दस्तरख़ान पर शराब हो उस पर खाना खाना हराम है।

२७. पाकदामनी हवस को कम करती है और सदाक़त रहमते ख़ुदावन्दी का बायस (कारण) होते हैं।

२८. दूसरों की लग़्ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करना बेहतरीन नेकी है और उससे तुम्हारे बुज़र्गी (बड़ापन) भी ज़ाहिर होती है।

२९. ईमान वाला हमेशा कीना (द्वेष) और शक़ावत (ज़ुल्म) से दूर रहता है।

३०. ख़ुद पसन्दी (ख़ुद को अच्छा समझना) हिमाक़त (बेवक़ूफ़ी) व नादानी की अलामत है।

३१. यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी (दायित्व) है के हमेशा हक़ गो (सही बात कहो) रहो अहद व पैमान को पूरा करो अमानत (धरोहर) को अदा करो ख़्यानत (दूसरें के धरोहर के प्रति बेईमानी का विचार) तर्क (छोड़ दो) करो।

३२. हरगिज़ लोगों की ख़ुशनूदी के लिये अल्लाह को ग़ज़बनांक न करना और लोगों से क़ुरबत (क़रीबी) के लिये अल्लाह से दूर मत होना।

३३. एक दूसरे को तोहफ़ा (उपहार) देकर मोहब्बत बढ़ाओ और जो तुम्हें तोहफ़ा (उपहार) दे तुम भी उसे हदिया दो।

३४. कितना बद बख़्त है वह इन्सान जो दुनिया में फ़क़ीर रहे और आख़ेरत (परलोक) में अज़ाबे इलाही (ईश्वरीय प्रकोप) में गिरफ़्तार रहे।

३५. सबसे बड़ा ज़ुल्म व सितम वह है जो इन्सान अपने आइज़्ज़ा (रिश्तेदारों) पर करे।

३६. जब मुस्तहब (जिसके करने में सवाब हो) काम वाजिब ओमूर (जिनके न करने में अज़ाब हो) में रूकावट (बाधा) का बायस (कारण) हों तो उन्हें तर्क (छोड़) कर दो।

३७. सहर (प्रातः) के वक़्त सफ़र शुरू करो बहुत फ़वायद (फ़ायदे का बहु) हासिल होते हैं।

३८. मुश्किलात पर सब्र (सहनशीलता) के ज़रिये क़ाबू हासिल करो क्योंकि बेताबी से अज्र (इनाम) भी ज़ाया (चला जाता) होता है और मुसीबत भी बढ़ जाती है।

३९. जो शख़्स ऐसा काम करे जिससे ज़न व शौहर (मियाँ बीवी) में जुदाई हो जाये उस पर दुनिया व आख़ेरत (परलोक) में ग़ज़बे ख़ुदावन्द (इश्वरीय प्रकोप) रहेगा।

४०. अल्लाह से नज़दीक होने की अलामत है के हमेशा उससे मागें और लोगों से नज़दीक होने के लिये ज़रूरी है के उनसे मागें।

शहादत (स्वर्गवास)

हज़रत इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 220 हिजरी क़मरी मे ज़ीक़ादाह मास की अन्तिम तिथि को हुई। आपको अब्बासी शासक मोतासिम के आदेश पर आपकी पत्नि उम्मे फ़ज़्ल ने विष दिया। उम्मे फ़ज़्ल अब्बासी शासक मोतासिम के भाई मामून की पुत्री थी।

समाधि

इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम की समाधि बग़दाद के समीप काज़मैन नामक स्थान पर है। जहाँ पर हर समय हज़ारों श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन हेतू उपस्थित रहते हैं।

।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद।।

हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय

नाम व अलक़ाब (उपाधियाँ)

हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधियाँ हादी व नक़ी हैं।

माता पिता

आपके पिता हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत समाना थीं।

जन्म तिथि व जन्म स्थान

हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 212 हिजरी क़मरी मे ज़िल- हिज्जाह मास की (15) वी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।

इमामत

जब वर्ष २२० में उनके पिता इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की शहादत हुई तो इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन जैसे महान कार्य का दायित्व उनके कांधों पर आ गया।

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) के कथन

१. ख़ुदपसन्दी इन्सान की बदबख़्ती और हलाकत का सबब है।

२. जो शख़्स नेमाते इलाही (ईश्वरीय ईनाम) का शुक्रगुज़ार करता है उस पर नेमाते इलाही का इज़ाफ़ होता (बढ़ जाता) है।

३. मैं तुम लोगों को वसियत करता हूँ के हमेशा रास्त गो रहना अहद को वफ़ा करना अमानत (धरोहर) को अदा करना और यतीमों ( जिसका पिता न हो) की सरपरस्ती करना।

४. नेक काम मर्गे मफ़ाजात से बचाते हैं।

५. दूसरो के अमवाल (माल का बहु वचन) में लालच न करो ताकि लोग तुम्हें पसन्द करें।

६. नादानी से ज़्यादा कोई फ़ख़्र नहीं और अक़्ल (बुध्दि) से ज़्यादा फ़ायदा रसाँ (लाभ पहुँचाने वाला) कोई माल नहीं।

७. अल्लाह से डरो ताकि दूसरों से भी अमान (सुरक्षा) में रहो।

८. तीन चीज़ें मोहब्बत पैदा करती हैं- 1.मुआशेरत (समाज) में इन्साफ़ ,2.सख़्तियों में हमदर्दी और 3.खुले दिल से लोगों से मोहब्बत ।

९. ख़्वाहिशे नफ़्स (आत्म इच्छा) पर क़ाबू पा लेना दीनदारी की अलामत (चिन्ह) है।

१०. दो रूई (दोहरी बातें) और चुग़लख़ोरी से परहेज़ करो क्योंकि उसी से लोगों के दिलों में किना (द्वेष) पैदा होता है और तुम्हारी शख़्सियत (व्यक्तित्व) घटती जाती है।

११. कभी भी अपने बरादरे दीनि से इन्तेक़ाम (बदला) लेने की कोशिश (प्रयास) न करो अगरचे उसने बदी की हो।

१२. जो शख़्स (मनुष्य) सिर्फ़ अपनी अक़्ल पर भरोसा करे और मशविरा (परामर्श) न करे उससे लग़्ज़िश (त्रुटि) हो सकती है।

१३. जो सच्चा मुसलमान हो परहेज़गार (बुराई से बचने वाला) रहेगा।

१४. ख़ुदा की रहमत है उस पर जिसे जब नेक काम की दावत दी जाये तो क़बूल (स्वीकार) कर ले।

१५. जब तुम से कोई मशविरा (राय) करे तो उसे सही रहनुमाई (उचित मार्गदर्शन) करो।

१६. बेहतरीन सदक़ा यह है कि जो दोस्त जुदाई (प्रथकता) का शिकार हो गये हैं उनमें इस्लाह (शुध्दि) कर दो।

१७. अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) से रहनुमाई हासिल करो और उनके मशविरे से सरताबी न करो वरना पशेमान होना पड़ेगा।

१८. लोगों से इज़्हारे मोहब्बत (प्रेम प्रकट) करो ताकि तुमको भी दोस्त रखें।

१९. क्या कहना उस शख़्स का जो अक़्लमन्दों और दानिशमन्दों (बुध्दिमानों) का हमनशीं (साथी) है।

२०. जो ज़माने से तजुर्बा हासिल करता है वह दुनिया वालों के फ़रेब (धोके) में नहीं आता।

२१. ख़ुशख़ल्की (अच्छा तरीक़ा) और कुशादा रूई (सत्य व्यवहार) दोस्ती का बायस (कारण) और मोहब्बत हासिल करने का ज़रिया है।

२२. जो चीज़ें यहाँ हलाल ज़रिये से हासिल की गईं उसका भी वहाँ हिसाब होगा।

२३. हर चीज़ का एक सुतून (खम्भा) होता है दीन का सुतून इल्म व दानिश (बुध्दि) है।

२४. जो शख़्स ख़ुदपसन्दी और ख़ुदखाँ (अपनी प्रशंसा चाहने वाला) होता है उस पर ग़ुस्सा करने वाले भी ज़्यादा होगें।

२५. छुप कर गुनाह करने से डरो क्योंकि उस वक़्त का देखने वाला ही फ़ैसला करने वाला है।

२६. दूर अन्देश वह है जो फ़ुज़ूल ख़र्ची से बचे और इसराफ़ (दुरूपयोग) से दूर रहे।

२७. जिसके पास अमानत हो वह उसके मालिक तक पहुँचायें।

२८. इलाही नेमात पर ग़ौर करना एक अच्छी इबादत है।

२९. सख़ावत मोहब्बत पैदा करती है और अख़लाक (शिष्टाचार) इन्सान को भी आरास्ता करती है।

३०. कीना परवरी (मन में शत्रुता) पस्ती की अलामत है और इन्सान की अज़मत (बड़ापन) कम करती है।

३१. औलाद जब अपने माँ बाप को मोहब्बत की नज़रों से देखे तो यह इबादत है।

३२. इज़्ज़त के बाद ज़िल्लत उतनी सख़्त है जितना इक़्तेदार मसर्रत आवर।

३३. गुनाहगारों (पापियों) के लिये तौबा (प्रायश्चित) कर लो।

३४. जिसकी निगाहें दूसरे के माल की तरफ़ होती हैं उसका ग़म ज़्यादा और अफ़सोस फ़रावां रहता है।

३५. जब दो मुसलमान आपस में मुलाक़ात करके मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करते हैं तो उनके गुनाह ख़ुश्क पत्तों की तरह गिरते है।

३६. हमेशा दूसरोंक की कामयाबी (सफ़लता) और आक़बत ब-ख़ैर होने की दुआ करो ताकि वह चीज़ें तुम अपने में पाओ।

३७. मेज़ाह (मज़ाक़) वेक़ार (सम्मान) व हैयबत को कम कर देता है जबकि सुकूत (ख़ामोशी) वेक़ार (सम्मान) में इज़ाफ़े (बढ़ाने) का बायस (कारण) है।

३८. जवानों में से जो क़ुदरत रखता हो अज़्दवाज (विवाह) करे क्योंकि अज़्दवाज पाकदामनी का मोजिब (कारण) है।

३९. मालियात (माल का बहु वचन) के ज़मन में हमेशा अपने से नीचे लोगों से मवाज़ना (मुक़ाबला) करो न के बलन्द लोगों से।

४०. आख़ेरत (परलोक) का महसूल अमले सालेह (अच्छा कार्य) हैं और दुनिया का महसूल माल व औलाद।

शहादत (स्वर्गवास)

तत्कालीन अब्बासी शासक मोतज़ के आदेश पर एक षडयंत्र के अन्तर्गत ३ रजब २५४ हिजरी क़मरी को इमाम को शहीद कर दिया गया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के समाचार ने अत्याचारग्रस्त जनता को बहुत दुखी किया।

उनकी शहादत का समाचार मिलते ही बड़ी संख्या में लोग उनके घर पर एकत्रित हुए और पूरा नगर उनकी शहादत के शोक में डूब गया।

समाधि

हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम की समाधि बग़दाद के समीप सामर्रा नामक स्थान पर है। जहाँ लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन कर आपको सलाम करते हैं।

।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद।।