शियों के हौजे इल्मिया

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शियों के हौजे इल्मिया लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

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शियों के हौजे इल्मिया

शियों के हौजे इल्मिया

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हिंदी

शियों के हौजे इल्मिया

अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क

होज़ा - ए - इल्मिया अंदिलिस

अंदिलिस पर मुस्लमानों के क़बज़े के बाद शियों ने भी इस क्षेत्र की ओर प्रस्थान किया।लेकिन होज़ा ए शिया की स्थापना अंदिलिस मे उस समय हुई जब मिस्र मे शियाए फ़ातिमियो के शासन की स्थापना हुई और शिया विद्वानो ने मकतबे अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के प्रचार के लिए अंदिलिस की यात्रा की। वह शिया विद्वान जिनका नाम होज़ा ए अंदिलिस मे मुख्य रूप से आता है वह अबुल अब्बास अहमद (ज.440 हिजरी क़मरी) हैं। उनके पिता अमाद महदवी तमीमी अंदिलिस मे शियो के महान मुफ़स्सिर ,नहवी (अर्बी भाषा के व्याकरण के ज्ञाता) व महान क़ारी थे।वह वास्तव मे मिस्र के महदवीया शहर के रहने वाले थे। यह शहर उस समय इस्माइलया शियो का गढ़ समझा जाता था। वह उन शिया विद्वानों मे से एक हैं जिन्होने अंदिलिस जाकर मकतबे अहलेबैत का प्रचार व प्रसार किया।उनके शिक्षण की पद्धति ,बोलने के अंदाज़ ,व समझाने के सुन्दर ढंग के कारण इल्मे कलाम व कुऑने करीम की तफ़्सीर के दर्स मे उनके शिषयो मे प्रति दिन वृद्धि होती गयी।शिया होने के कारण उनके मुखालीफ़ीन(विरोधीयो)ने अंदिलिस के शासक से शिकायत की कि यह जो तफ़्सीर का दर्स देते हैं वह तफ़्सीर इनकी स्वंय की नही है। वह किसी दूसरे की तफ़्सीर है और यह उसको अपनी कह कर ब्यान करते हैं। अंदिलिस के शासक ने वह तफ़्सीर उनसे लेली और कहा कि दूसरी तफ़्सीर लिख कर लाओ।उन्होने अत्तहसील फ़ी मुखतसःरूत्तफ़सील नामक एक नई तफ़्सीर लिखी जिसकी अनेकों इतिहासकारो ने प्रशंसा की है। इस होज़े के दूसरे विद्वान अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद हैं जो इब्नुल अबार बलनसी अंदिलिसी के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह अंदिलिस के बलंसा नामक शहर मे पैदा हुए और वहीं पर शिक्षा प्राप्त करके इज्तिहाद किया।और होज़े मे शिक्षण की ज़िम्मेदारी को संभाला। होज़े इल्मिया अंदिलिस के एक अन्य विद्वान शेख अबुल खत्ताब उमर (ज.633 हिजरी क़मरी) हैं।उनके पिता मुहम्मद जो कि इब्ने दहिया के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह होज़ इल्मिया अंदिलिस के एक महान शिक्षक थे। चूँकि वहपिता की ओर से रसूल स. के सहाबी फ़रवा से और माता की ओर से जाफ़रे कज़्ज़ाब से सम्बंधित थे इस लिए अपने आपको ज़ुन्नस्बैन (अर्थात दो नस्बों वाला) लिखते थे। इन्होने हदीस को सुनने व प्राप्त करने के लिए खुरासान की यात्रा की। वह कई वर्षों तक क़ाहिरा के दारूल हदीस कामिलया मे शेखथुल हदीस रहे। इब्ने इमाद हंबली ने लिखा है कि वह हदीस के विद्वानो व अहले सुन्नत के बुज़ुर्गों को समंजस्य मे डाल देते थे।

(शज़रातुज़ ज़हब जिल्द 5 पेज 160)

इसी प्रकार एक अन्य विद्वान शेख अब्दुल्लाह (ज. 619 हिजरी क़मरी) इनके पिता अबू बकर बलंसी अंदलिसी पुत्र इब्नुल अबार हैं। शेख मुहम्मद एक शिया विद्वान व महान शिक्षक थे। वह बलंसिया की मस्जिदे सैय्यिदा मे क़ाज़ी अबुल हसन के उत्तराधिकारी के रूप मे नमाज़े जमाअत पढ़ाते थे। शिक्षण तथा फ़तवा देने के उत्तर दायित्व के साथ साथ बलंसिया के शियों का नेतृत्व भी उन्ही के काँधों पर था। सलीबी जंगों मे उन्होने एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भूमिका निभाई जिसका वर्णन मुस्लमानो व ईसाइयों की किताबों मे उल्लेखित है।