शिओं के बुज़ुर्ग उलमा

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शिओं के बुज़ुर्ग उलमा लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

शिओं के बुज़ुर्ग उलमा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
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शिओं के बुज़ुर्ग उलमा

शिओं के बुज़ुर्ग उलमा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

मुहम्मद पुत्र मसूद अयाशी समर क़न्दी अलैहिर्रहमा

आयतुल्लाह मुतह्हरी का कथन ”

एक अन्य फ़कीह जो अली पुत्र बाबवे क़ुम्मी से थोड़ा पूर्व थे अयाशी समरक़न्दी हैं। जो अपनी तफ़सीर के कारण प्रसिद्ध हैं। इब्ने नदीम अपनी किताब अलफहरिस्त मे लिखते हैं कि “उनकी किताबे खुरासान मे प्रचलित थीं। मगर हमने अभी तक फ़िक्ह मे उनके नज़रयात( दृष्टिकोण) नही देखे।शायद उनकी फ़िक्ह की किताबे लुप्त हो चुकी हैं। ”

अयाशी पहले सुन्नी थे और बाद मे शिया हुए। उनको अपने पिता से विरसे मे अत्याधिक सम्पत्ति मिली थी। उन्होने वह सम्पत्ति किताबों को जमा करने व अपने शिष्यों को प्रशिक्षित करने मे व्यय की।

मुहम्द पुत्र मसूद पुत्र मुहम्मद पुत्र अयाशी समरक़न्दी कूफ़ी जिनकी कुन्नियत अबूनस्र हैं। वह अयाशी के नाम से प्रसिद्ध हुए। वह एक़ महान फ़कीह व विद्वान थे। अर्बी साहित्य ,फ़िक्ह ,हदीस व तफ़्सीर मे पूर्ण रूप से दक्ष थे। वह शेख कुलैनी के समय मे शियों के बड़े फ़कीहों व विद्वानों मे गिने जाते थे।

मरहूम मुदर्रिस का कथन

रिहानतुल अदब नामक किताब का लेखक लिखता है कि “क्योंकि अयाशी समरकन्द के रहने वाले थे। और क्योंकि समरकन्द व बुखारे के आस पास सुन्नी सम्प्रदाय के अनुयायी रहते थे। अतः अयाशी भी सुन्नी फ़िक्ह का अनुसरण करते थे। बाद मे वह शिया हुए और फ़िक्हे जाफ़री पर आमिल (क्रियान्वित) हो गये। उन्होने अपने पिता से विरसे मे मिले तीस हज़ार दीनार को शिक्षा प्रसार व हदीस के प्रकाशन पर व्यय किया। उनका घर सदैव मस्जिद की तरह लोगों से भरा रहता था। जिनमे क़ारीयाने कुऑन ,मुहद्दिस (पैगम्बर व इमामो के कथन का उल्लेख करने वाले) ज्ञानी ,मुफ़स्सिर (कुऑन की व्याख्या करने वाले) की अधिकता होती थी। उनके घर मे विभिन्न समूह शिक्षा के विभिन्न कार्यों मे व्यस्त रहते थे। ”

मरहूम हाज आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी का कथन

“ अयाशी तफ़सीर के लेखक अयाशी ने इस्लामी विष्यों पर विभिन्न 200 किताबे लिखी हैँ। वह सिक़्क़ातुल इस्लाम शेख कुलैनी के समकालीन थे तथा इल्मे रिजाल के प्रसिद्ध विद्वान कुशी के गुरू थे। उनके पुत्र जाफ़र ने उनकी जिन किताबों के बारे मे वर्णन किया है उनमे से एक तफ़सीरे अयाशी मौजूद है। जिसका आधा भाग सूराए कहफ़ तक आस्तानाए क़ुदसे रज़वी मशहद ,किताब खने खियाबानी तबरेज़ ,किताब खाने शेखुल इस्लाम ज़नजान ,किताब खाना ए सैय्यद हसन सदरूद्दीन काज़मैन मे मौजूद है। ”

अल्लामा मजलिसी का कथन

“ अल्लामा मजलिसी बिहारूल अनवार के शुरू मे लिखते हैं कि तफ़सीरे अयाशी के दो क़दीम नुस्खे (पुरातन प्रति लिपी) देखे गये हैं। परन्तु इखतेसार (संक्षिप्ता) की वजह से उनकी सनद नही लिखी गई थी। ”

आयतुल्लाह सैय्यद हसन सद्र का कथन

“ तासीसुश- शिया लि उलूमिल इस्लाम किताब के लेखक ने दो स्थानो पर अयाशी का उल्लेख किया है। एक स्थान पर मुफ़स्सेरीन का उल्लेख करते हुए तथा दूसरे स्थान पर इतिहासकारो व सीरत के लेखकों का उल्लेख करते हुए। ”

वह पहले स्थान पर लिखते हैं कि अयाशी पुत्र मुहम्मद मस्ऊदी हमारे बुज़ुर्गों मे से एक हैं और वह अपनी तसनीफ़ात( रचनाओं) व तालीफ़ात( संकलनो) के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होने सीरत व इतिहास से सम्बन्धित जो किताबें लिखी हैं उनमे से मक्कातुल हराम ,अलमआरीज़ ,अन्बिया व ओलिया ,सीरते अबुबकर ,सीरते उमर ,सीरते उस्मान व सीरते मुआविया मुख्य हैं। शेख कुलैनी के अनुसार वह तीसरी शताब्दी हिजरी के विद्वानो मे थे।

दूसरे स्थान पर लिखते हैं कि अयाशी एक मुफ़स्सिर थे और उन्होने बहुत सी किताबे लिखी हैँ। उनके द्वारा लिखी गई तफ़सीर दो भागों पर आधारित थी परन्तु वर्तमान समय मे उनकी तफ़सीर का केवल प्रथम भाग ही हमारे पास है। उन्होने 200 के लग भग महत्वपूर्ण किताबें लिखी है। शेख कुलैनी के अनुसार वह तीसरी शताब्दी हिजरी के विद्वानों मे थे।

1380हिजरी क़मरी मे अल्लामा तबा तबाई ने तफ़सीरे अयाशी पर जो मुक़द्दमा( प्रारम्भिक नोट) लिखा है उसमे उन्होने अयाशी को एक महान व आदरनीय विद्वान के रूप मे याद किया है। और ईरान के कुछ पुस्तकाल्यों मे उनकी तफ़सीर के दूसरे भाग के मौजूद होने की आशंका व्यक्त की है।

मरहूम शेख अब्बास क़ुम्मी का कथन

शेख अब्बास क़ुम्मी अपनी किताब सफ़ीने मे लिखते हैं कि “अयाशी हमारे बुज़ुर्गो मे से एक है। वह जवानी मे शिया हुए और अली पुत्र हसन फ़त्ताल के शिष्यों मे से है। उन्होने कूफ़े बग़दाद व क़ुम के अन्य बुज़ुर्गों से भी ज्ञान लाभ प्राप्त किया। उन्होने अपने पिता से मिलने वाली समस्त सम्पत्ति को शिक्षा और हदीस के प्रचार प्रसार के लिए व्यय किया। ”

अयाशी की रचनाऐं

इब्ने नदीम ने अयाशी की 208 रचनाओं व संकलनो का उल्लेख किया है। जिनमे से 27 किताबे वर्तमान समय मे लुप्त हो गईं है। उनकी महत्वपूर्ण किताबो मे से एक तफ़सीरे अयाशी है जिसका केवल प्रथम भाग ही वर्तमान समय मे मौजूद है और द्वितीय भाग लुप्त हो चुका है। उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओ का इब्ने नदीम ने इस प्रकार उल्लेख किया है--- अस्सलात ,अत्तहारत ,मुख्तसरूस्सलात ,मुख्तसरूल हैज़ ,अल जनाइज़ ,मुख्तसरूल जनाइज़ ,अल-मनासिक ,अल आलिम वल मुताल्लिम ,अद्दावात ,अज़्ज़कात ,अल अशरबाह ,हद्दुश- शारूल अज़ाही इत्यादि।

स्वर्गवास

विद्वान ज़रकली ने अपनी किताब अल ऐलाम मे लिखा है कि अयाशी सन् 320 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। इनके अतिरिक्त किसी अन्य लेखक ने अयाशी के स्वर्गवास के बारे मे नही लिखा।

अयाशी की संतान

अयाशी ने जाफ़र नामक अपने एक पुत्र को छोड़ा जो अपने समय के ज्ञानीयों व विद्वानो मे विशिष्ठ स्थान रखते थे। उन्होने अपने पिता की बहुतसी बाते उल्लेख की हैं।

अयाशी एक नेक व्यक्ति थे अल्लाह उन पर रहमत करे।

शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा

मुहम्मद पुत्र मुहम्मद पुत्र नोमान जो शेख मुफ़ीद के नाम से प्रसिद्ध हैं उनका जन्म सन् 338 हिजरी क़मरी मे बग़दाद के निकट एक स्थान पर हुआ था। उन का परिवार शिया विचार धारा से सम्बन्धित था तथा उनके परिजन आले रसूल के प्रेम से फली भूत थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई। तथा उच्च शिक्षा के लिए उन्होने बग़दाद की ओर प्रस्थान किया।

आयतुल्लाह मुतह्हरी का कथन

“ शेख मुफ़ीद का नाम मुहम्मद था और उनके पिता का नाम भी मुहम्मद था जो नोमान के पुत्र थे। शेख मुफ़ीद फ़कीह और मुतकल्लिम थे। इब्ने नदीम ने अपनी किताब अलफ़हरिस्त के दूसरे फ़न के पाँचवे मक़ाले मे शिया मुतः कल्लेमीन का उल्लेख करते हुए शेख मुफ़ीद को इब्ने मुअल्लिम लिखा है तथा उनकी बडी प्रशंसा की है। वह 338 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए तथा 413 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हो गये। उन्होने फ़िक़्ह मे मक़ना नामक किताब लिखी जो बहुत प्रसिद्ध हुई। यह किताब वर्तमान समय मे भी प्रचलित है।शेख मुफ़ीद इस्लामिक संसार मे बहुत प्रसिद्ध हैं। अबु अली जाफ़री उनके सम्बन्ध मे कहते हैं कि शेख मुफ़ीद रात मे बहुत कम सोते थे तथा अपने समय को नमाज़ पढ़ने ,अध्ययन करने ,कुऑन की तिलावत करने व शिक्षण कार्य मे व्यतीत करते थे।शेख मुफ़ीद इब्ने अबी अक़ील के शिष्य थे। ”

शेख मुफ़ीद से पूर्व भी इल्मे कलाम शिया विचार धारा मे प्रचलित था। परन्तु क्योँकि शिया राजनीतिक दृष्टि से स्वतन्त्र नही थे और संकटमय परस्थितियों मे जीवन यापन कर रहे थे अतः इस कारण इल्मे कलाम की किताबे प्रकाशित न हो सकी थी। शेख मुफ़ीद से पूर्व शेख सदूक़ जो कि शिया सम्प्रदाय के सर्वे सर्वा थे उन्होने एक छोटी सतह पर इस कार्य को आरम्भ किया। आगे चलकर शेख मुफ़ीद ने अपने गुरू (शेख सदूक़) के मार्ग पर कार्य किया तथा इल्मे कलाम व उसूले फ़िक़्ह के आधारिक नियमो पर तर्क वितर्क करने की नीव डाली। तथा अपने से पूर्व के विद्वानो द्वारा किये गये प्रयासों को सफल बनाया व उसूले फ़िक्ह पर एक छोटी सी किताब लिखी जिसमे उसूले फ़िक़्ह के समस्त नियमो का वर्णन किया।

शेख मुफ़ीद शिया विद्वानो की दृष्टि मे

नजाशी की दृष्टि मे

“ मुहम्मद पुत्र मुहम्मद पुत्र नोमान पुत्र अब्दुस्सलाम पुत्र जाबिर पुत्र नोमान पुत्र सईद पुत्र जबीर (शेख मुफ़ीद) अलैहिर्रहमा की फ़िक़ह व उसूल मे प्रतिष्ठा तथा हदीस मे उनका सिक़ा होना इतना प्रसिद्ध है कि उनके परिचय की अवश्यक्ता नही है। ”

उन्होने बहुत सी किताबें लिखी उनकी मुख्य किताबें इस प्रकार हैँ-- अल मक़ना ,अल अरकान फ़ी दआईमुद्दीन ,अल ईज़ाह वल अफ़साह ,अल इरशाद ,अल अयून वल महासिन इत्यादि।

शेख तूसी की दृष्टि मे

“ मुहम्मद पुत्र मुहम्मद पुत्र नोमान जो इब्ने मुअल्लिम के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह शिया इमामिया सम्प्रदाय के मुतःकल्लिम थे। वह अपने समय मे शियों का नेतृत्व करते थे और फ़िक़्ह व कलाम मे उनसे बड़ा कोई विद्वान नही था। उनकी बुद्धि व स्मरण शक्ति बहुत अधिक थी। वह सवालो का फ़ौरन जवाब देने मे माहिर( निपुण) थे। उन्होने छोटी बड़ी 200 से अधिक किताबे लिखी हैं। ”

शेख मुफ़ीद सुन्नी विद्वानो की दृष्टि मे

इब्ने हज्रे अस्क़लानी

“ शेख मुफ़ीद बहुत बड़े आबिद ,ज़ाहिद ,अहले ख़ुशु व तहज्जुद थे। वह सदैव ज्ञान से सम्बन्धित कार्यों मे व्यस्त रहते थे। उनसे बहुत से लोगों ने ज्ञान लाभ प्राप्त किया। समस्त शिया ज्ञान के क्षेत्र मे उनके ऋणी हैं। उनके पिता वासित नामक शहर मे रहते थे और वहीँ पर शिक्षण कार्य करते थे। वह अकबरी नामक स्थान पर स्वर्गवासी हुए कहा जाता है कि अज़दुद्दोलाह उनसे भेंट करने गया था। ”

इब्ने उम्माद हंबली

“ शेख मुफ़ीद शिया सम्प्रदाय के एक बुज़ुर्ग थे तथा फ़िक़्ह उसूल व कलाम के विशेष ज्ञाता थे। उन्होने समस्त फ़िरक़ो(सम्प्रदायों) के अनुयाईयों के साथ विचार विमर्श व तर्क वितर्क किया। आले बोया के शासन काल मे उनका विशेष स्थान था। वह बहुत नमाज़े पढ़ते ,रोज़ा रखते व दान देते थे।वह गेहूँवे रँग व दुबले शरीर वाले व्यक्ति थे तथा अच्छे वस्त्र धारण करते थे। 76 वर्ष जीवित रह कर उन्होने 200 से अधिक किताबे लिखीं। अज़दुद्दोलाह उनसे भेंट के लिए गया था। वह रमज़ान मास मे स्वर्गवासी हुए उनके अन्तिम संस्कार मे 80000 से अधिक लोग सम्मिलित हुए। उन पर अल्लाह की रहमत हो। ”

याफ़ई की दृष्टि मे

“ शेख मुफ़ीद शिया इमामिया सम्प्रदाय के शेख थे और वह इब्ने मुअल्लिम के नाम से प्रसिद्ध थे । उन्होने बहुतसी किताबें लिखी हैं। वह इल्मे कलाम ,फ़िक़्ह व मनाज़रे मे निपुण थे।वह समस्त विचार धाराओं के व्यक्तियो से मनाज़रा(तर्क वितर्क) करते थे। आले बोया के शासन काल मे उन्होने आदरपूर्वक जीवन व्यतीत किया। वह सन् 413 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। ”

शेख मुफ़ीद के उस्ताद (गुरू जन)

शेख मुफ़ीद ने अनेको विद्वानो से ज्ञान लाभ प्राप्त किया है अतः सबका उल्लेख कठिन है। इनके मुख्य गुरू जन इस प्रकार है---

1-इब्ने क़ुलवीय क़ुम्मी

2-शेख सदूक़

3-इब्ने वलीद क़ुम्मी

4-अबु ग़ालिब

5-इब्ने जुनैद इस्काफ़ी

6-अबु अली सूली बसरी

7-अबु अब्दुल्लाह सफ़वानी इत्यादि

शेख मुफ़ीद के शागिर्द (शिष्यगण) शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा के मुख्य शिष्य इस प्रकार हैं---

1-सैय़्यद मुर्तज़ा इल्मुल हुदा

2-सैय्यद रज़ी

3-शेख तूसी

4-नजाशी

5-अबुल फ़तहे कराचकी

6-अबु अली जाफ़र

7-अब्दुल ग़नी इत्यादि

शेख मुफ़ीद की रचनाऐं

शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा ने 200 से अधिक किताबे लिखी हैं जिनमे से मुख्य इस प्रकार हैं---

1-फ़िक़्ह विषय से सम्बन्धित किताबे — अलमक़ना ,अल फ़राइज़ुश शरिया वा अहकामुन निसा

2-इल्मे कुऑन से सम्बन्धित किताबें — अल कलाम फ़ी दलाइलिल कुऑन ,वुजूहे ऐजाज़े कुऑन ,अन्नुसरतो फ़ी फ़ज़लिल कुऑन ,अल बयान फ़ी तालीफ़िल कुऑन ,

3-इल्मे कलाम व अक़ाइद से सम्बन्धित किताबें –अवाइलुल मक़ालात ,नक़्ज़े फ़ज़ीलःतुल मोतःज़लेह ,अल अफ़साह ,अल ईज़ाह ,अल अरकान इत्यादि।

स्वर्गवास

शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा 75 वर्ष जीवित रहे तथा अपनी महान सेवाऐं प्रदान कर के 413 हिजरी क़मरी मे बग़दाद मे स्वर्गवासी हुए। सैय्यद मुर्तुज़ा इल्मुल हुदा ने उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। शिया सुन्नी सम्प्रदाय के लग भग 80000 व्यक्ति आपकी नमाज़े जनाज़ा मे सम्मिलित हुए। उनको हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के हरम मे उनके गुरू इब्ने क़ुलवीय की कब्र के बराबर मे दफ़्न किया गया।

वह एक महान व पवित्र विद्वान थे अल्लाह उन पर रहमत करे।

सैय्यिद मुर्तज़ा अलमुल हुदा अलैहिर्रहमा

सैय्यिद मुर्तज़ा अलमुल हुदा का नाम अली था। वह 355 हिजरी क़मरी मे बग़दाद के एक सम्मानित सैय्यिद परिवार मे पैदा हुए। उनके माता पिता दोनो सैय्यिद थे तथा पाँच पीढीयों के अन्तर से उनका सम्बन्ध हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मिलता है। इस प्रकार कि अली पुत्र हुसैन पुत्र मूसा पुत्र मुहम्मद पुत्र मूसा पुत्र इब्राहीम पुत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पुत्र हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम।

अल्लामा हिल्ली ने उनको शिया इमामिया समुदाय का मुअल्लिम कहा है। वह एक महान फ़क़ीह ,मुतःकल्लिम ,अदीब थे। फ़िक़्ह के क्षेत्र मे उनके मत अब भी विद्वानो की दृष्टि का केन्द्र बिन्दु हैँ।फ़िक़्ह विषय पर लिखी गयी उन की "इन्तेसार" व "जमलुल इल्म वल अमल" नामक दोनो किताबें बहुत प्रसिद्ध हैँ। वह अपने समय मे उच्च कोटी के अद्वितीय विद्वान थे उनकी विद्वत्ता के कारण उनको चौथी शताब्दी हिजरी का मरूजुज़ जहब या मुजद्दिदे मज़हब कहा जाता है। वह तीस वर्षों तक हज व हरमैन के सर्वे सर्वा व उच्चतम न्यायधीश के पद पर कार्यरत रहे। उन्होने तथा उनके भाई सैय्यिद शरीफ़ ने शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा से ज्ञान प्राप्त किया। तथा शेख मुफ़ीद के स्वर्ग वास के बाद वह शिया सम्प्रदाय के मरजा बने।

अल्लामा हिल्लि ने उनके सम्बन्ध मे लिखा है “कि वह शिय़ा सम्प्रदाय के मुअल्लिम थे तथा शिया सम्प्रदाय का एक स्तम्भ समझे जाते थे।आज तक(सन्693 हिजरी क़मरी) उनके द्वारा लिखी गईं किताबों से ज्ञान लाभ प्राप्त किया जा रहा है। ”

शेख इज़्ज़ुद्दीन अहमद उनके अर्बी व्याकरण के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “अगर कोई सौगन्ध खाकर यह बात कहे कि अलमुल हुदा अर्बी मे अरबो से अधिक ज्ञान रखते थे ,तो न उसने कोई झूट बोला और न कोई गुनाह किया। ”

सैय्यिद मुर्तुज़ा सुन्नी विद्वानो की दृष्टि में

सैय्यिद मुर्तज़ा का इल्मी वजूद( विद्वानी स्तित्व) सुन्नी विद्वानो की दृष्टि का भी केन्द्र बना। उनकी अत्याधिक रचनाओं ने सभी को अपनी ओर आकृषित किया।

प्रसिद्ध सुन्नी विद्वान खलकान उनके सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। दीन व मुसलमानो के अहकाम से सम्बन्धित उनकी अनेकानेक पुस्तकें इस बात की साक्षी हैं कि वह पैगम्बर के महान तथा प्रतिष्ठित परिवार की एक कड़ी थे। ”

एक मिस्री विद्वान उन के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “मैनें सैय्यिद मुर्तज़ा की किताब -ग़रर व दरर- से नह्व के क्षेत्र मे (अर्बी व्याकरण) जो ज्ञान लाभ प्राप्त किया वह अन्य किसी भी लेखक की किताब से प्राप्त न कर सका। ”

सैय्यिद मुर्तज़ा की शिक्षा का आरम्भ

इस दुनिया मे कुछ खवाब (सपने) अवश्य रूप से सत्य व साकार होते हैं। ऐसे ही सपनो मे से एक सपना वह था जो शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा ने देखा था। एक रात्री शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा ने सपने मे देखा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हसन व हुसैन सलामुल्लाह अलैहिमा को लेकर आईं व कहा कि ऐ शेख तू इन दोनो बच्चों को फ़िक्ह का ज्ञान प्रादान कर। शेख मुफ़ीद जागने पर बहुत अच्मभित हुए। उसी दिन सुबह सवेरे फ़ातिमा नाम की एक सैय्यिद स्त्री अपने साथ दो छोटे बच्चो को लेकर आई व शेख से कहा कि मै इन दोनो बच्चों को आपके पास इस लिए लाई हूँ कि आप इनको फ़िक़्ह का ज्ञान प्रदान करें और यह कह कर दोनो बच्चों को शेख के सपुर्द कर दिया। शेख को अपने रात्री के सपने का फल मिल गया था। अतः उन्होने अपना सपना इस महान स्त्री को सुनाया तथा बच्चो के शिक्षण कार्य को स्वीकार कर लिया।यह स्त्री सैय्यिद मुर्तज़ा व सैय्यिद रज़ी की माता थी। शेख ने परिश्रम के साथ दोनो भाईयो को ज्ञान प्रदान किया जिसके फल स्वरूप दोनो भाई आगे चलकर महान विद्वान बने।

सैय्यिद मुर्तज़ा के गुरू जन

शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा के अतिरिक्त सैय्यिद मुर्तज़ा ने इब्ने नबाता व शेख हसन बाबवे से भी ज्ञान लाभ प्राप्त किया।

सैय्यिद मुर्तज़ा के शिष्यगण

सैय्यिद मुर्तज़ा ने अनेका नेक शिष्यो को प्रशिक्षित किया इनमे से मुख्य शिष्य इस प्रकार हैं---शेख तूसी ,क़ाज़ी पुत्र बिराज ,अबु सलाह हलबी ,अबुल फ़ताह कराजकी ,सालार पुत्र अब्दुल अज़ीज़ देलमी इत्यादि।

सैय्यिद मुर्तज़ा की रचनाऐं

सैय्यिद मुर्तज़ा ने बहुतसी किताबे लिखीं जो उनकी महानता व विद्वत्ता का परिचय कराती है। परन्तु मरहूम मुदर्रिस ने अपनी किताब रिहानःतुल अदब मे उनकी लग भग 72 किताबो का नाम के साथ उल्लेख किया है। इनमे से मुख्य किताबें इस प्रकार हैं---

1-अल इन्तेसार

2-जमःलुल इल्मे वल अमल

3-अज़ ज़रिया फ़ी उसूलिश शरिया

4-अल मोहकम वल मुताशाबेह

5-अल मुखतःसर

6-मा तफ़र्रदता बेहिल इमामिया मिन मसाइलिल फ़िक़्हिया

7-अल मिस्बाह

8-अन्नासिरयात

9-अल आमाली

10-दुरारुल फ़वाइद इत्यादि।

अलमुल हुदा लक़ब (उपाधि) का कारण

अधिकतर इतिहास कारो ने आप की इस उपाधि का कारण यह लिखा है कि अबू सईद मुहम्मद पुत्र हुसैन जो खलीफ़ा क़ादिर बिल्लाह का वज़ीर था। वह सन् 420 हिजरी क़मरी मे बीमार हुआ तथा उसने सपने मे देखा कि अमीरूल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम ने उससे कहा कि अलमुल हुदा से कहो कि वह तुम्हारे स्वास्थय के लिए दुआ करे। मैने उन से प्रश्न किया कि अलमुल हुदा कौन हैं ?उन्होने उत्तर दिया कि अली पुत्र हुसैन मूसवी अलमुल हुदा हैं। जब वह जागे तो उन्होने सैय्यिद मुर्तज़ा के पास एक पत्र लिखा जिसमे उनसे दरख्वास्त(विनती) की कि आप मेरे स्वास्थय के लिए दुआ करने का कष्ट करें तथा इस पत्र मे उन्होने सैय्यिद मुर्तज़ा को अलमुल हुदा की उपाधि से सम्बोधित किया । सैय्यिद ने वज़ीर से कहा कि आप मुझे अलमुल हुदा जैसी उपाधि के साथ पत्र न लिखा करें । वज़ीर ने कहा कि अल्लाह की सौगन्ध मुझे अमीरूल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम ने आदेश दिया है कि आप को अलमुल हुदा की उपाधि से सम्बोधित करू। जब वज़ीर सैय्यिद मुर्तज़ा की दुआ से स्वस्थ हो गये तो उन्होने खलीफ़ा के सम्मुख अपने सपने का वर्णन किया। तथा कहा कि सैय्यिद मुर्तज़ा यह उपाधि धारण नही करना चाहते हैं। खलीफ़ा ने सैय्यिद मुर्तज़ा के पास संदेश भेजा कि जो उपाधि आपको आपके पूर्वज की ओर से प्रदान की गई है उसका धारण करना आपके लिए श्रेष्ठ है। आप इसको धारण करे व इससे मना न करेँ। इसके पश्चात आदेश दिया कि समस्त लोग सैय्यिद मुर्तज़ा को अलमुल हुदा की उपाधि से सम्बोधित करें। इस प्रकार आप इस उपाधि से प्रसिद्ध हो गये।

स्वर्गवास

सैय्यिद मुर्तज़ा अलमुल हुदा सन् 436 हिजरी क़मरी मे बग़दाद मे स्वर्गवीसी हुए। अबु अली जाफ़री व सालार पुत्र अब्दुल अज़ीज़ ने उनको ग़ुस्ल दिया और उनके बेटे ने उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। तथा उनको उनके ही घर मे दफ़्न कर दिया गया। कुछ समय बाद उनके जनाज़े को कर्बला परिवर्तित किया गया तथा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हरम मे उनको दफ़्न किया गया।

वह एक महान व पवित्र विद्वान थे अल्लाह उन पर रहमत करे।