प्रस्तावना
संकलनकर्ता
नासेहुद्दीन अबुल फ़तह अब्दुल वाहिद पुत्र मुहम्मद तमीमी आमदी , पाँचवी हिजरी शताब्दी के अंतिम चरण व छठी हिजरी शताब्दी के प्रथम पाँच दशकों में एक बड़े शिआ आलिम रहे हैं। उन्होंने ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम नामक किताब लिख कर अपना नाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बुद्धिमत्ता पर आधारित कथनों का संकलन करने वालों में अमर कर लिया है। परन्तु जीवन परिचय कराने वाली किताबों में उनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है और जो जानकारी उपलब्ध है भी उसमें आशंकाएं पाई जाती हैं।
जीवन परिचयों से संबंधित किताबों में मिलता है कि इब्ने शहरे आशोब माज़न्दरानी उनके ही शिष्य थे। कुछ लोगों ने अहमद ग़ज़्ज़ाली को उनका उस्ताद उल्लेख किया है। आमदी की मृत्यु छठी हिजरी शताब्दी के मध्य में हुई।
रचनाएं
आमदी के जीवन का एक अप्रत्यक्ष पहलु उनकी रचनाओं की गणना है। ग़ु-ररुल हिकम के अतिरिक्त उनकी अन्य किताबों में जवाहेरुल कलाम फ़िल हुक्मे व अल-अहकाम का नाम लिया जाता है।
किताब की विशेषताएं
यह किताब ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम हज़रत अली अलैहिस्साम के 11050 छोटे व महत्वपूर्ण कथनों पर आधारित है। इन कथनों का विषय नसीहत , उत्साह व भय का वर्णन करते हुए सदाचारिक विशेषताओं को अपनाने व सदाचारिक बुराईयों से दूर रहने का उपदेश हैं।
आमदी ने अपनी इस किताब की प्रस्तावना में इस किताब को लिखने का कारण यह उल्लेख किया है कि जाहिज़ द्वारा लिखी गई किताब मिअतु कलमतिन (सौ कथन) में बहुत कम कथनों को चुना गया था। उन्होंने जाहिज़ पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि "चूँकि उसको अच्छी परख नही थी इस लिए उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों के समुन्द्र से नसीहत के असंख्य मोतियों में से बहुत कम को चुना और उन्हें ही अधिक समझा।" जाहिज़ के काम में इस कमी को देखने के बाद उन्होंने अपनी कमर को कसा और हिम्मत करके यह महत्वपूर्ण किताब लिखी।
उन्होंने इन कथनों को इकठ्ठा करने में साहित्यिक विशेषताओं व सौन्दर्यों को दृष्टिगत रखते हुए कथनों की सनद (अर्थात इन कथनों का क्रमशः किन लोगों ने उल्लेख किया है) को छोड़ दिया और कथनों को ढूँढने में सरलता के लिए कथनों को अरबी वर्ण माला के क्रमानुसार व्यवस्थित किया।
किताब का महत्व
आमदी , हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों को एकत्रित करने वाले प्रथम व अंतिम व्यक्ति नही हैं , बल्कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बुद्धिमत्ता पर आधारित इन कथनों को एकत्रित करने का काम इस्लाम के प्रारम्भिक दशको में आरम्भ हो गया था। परन्तु आमदी द्वारा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों को सुव्यवस्थित करके उन्हें एक नये रूप में प्रस्तुत करने के कारण इस किताब को विशेष ख्याति प्राप्त हुई।
अल्लामा मजलिसी , इस किताब को अपनी किताब बिहारुल अनवार के स्रोतों में उल्लेख करते हुए इसके बारे में लिखते हैं कि यह किताब बहुत मशहूर है और एक से दूसरे हाथ में घूमती रहती है। इसी तरह मुस्तदरकुल वसाइल नामक किताब के लेखक मिर्ज़ा हुसैन नूरी , इस किताब के लेखक के शिआ होने की दलीलों का उलेलेख करते हुए लिखते हैं कि "अगर कोई शिआ आलिमों की हदीसों की किताबों से परिचित आदमी इस किताब को ध्यान पूर्वक पढ़े तो वह समझ जायेगा कि आमदी ने इस किताब में उल्लेखित हदीसों को शिआ किताबों से ही चुना है।"
मरहूम मुहद्दिस उरमवी , इस किताब की आध्यात्मिक महत्ता और इसके एक नस्ल से दूसरी नस्ल की ओर हस्तान्त्रित होने और एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमने का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि
"इस आशय पर सबसे बड़ा तर्क , इस किताब की लिपियों का अधिक संख्या में पाया जाना है : क्योंकि जब हम दुनिया के बड़े पुस्तकालयों विशेष रूप से उन इस्लामिक पुस्तकालयों को देखते हैं जो विभिन्न घटनाओं व परिस्थितियों से अपने अस्तित्व को बचाते हुए नई नस्ल तक पहुँचे हैं , तो पाते हैं कि इस किताब की बहुत सी लिपियाँ या कम से कम एक लिपि वहाँ मौजूद हैं।"
किताब का परिचय
ग़ु-ररुल हिकम उन किताबों में से है , जो बहुत से लोगों की रिसर्च का विषय बन चुकी है। इस किताब के निम्न लिखित पहलुओं की ओर इशारा किया जा रहा है।
अ- अनुवाद
1- ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , अनुवाद व व्याख्या जमालुद्दीन मुहम्मद खुवानसारी , प्रस्तावना , शुद्धीकरण: मीर जलालुद्दीन हुसैनी उरमवी (मुहद्दिस)
प्रकाशक: तेहरान विश्वविद्यालय , तेहरान , सन् 1998 ई. , 7 जिल्द।
2- ग़ु-ररुल हिकम मजमुआ ए कलमाते क़िसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम , अनुवाद: मुहम्मद अली अंसारी क़ुम्मी , 2 जिल्द ,
3- गुफ़्तारे अमीरुल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम , अनुवाद: सैयद हुसैन शेखुल इस्लामी ,
प्रकाशक: अंसारियान पब्लिकेशन , क़ुम , सन् 1995 ई. , 2 जिल्द।
4- ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , अनुवाद: सैयद हाशिम रसूली महल्लाती ,
प्रकाशक: फरहंगे इस्लामी पब्लिकेशन तेहरान , सन् 1999 ई. , 2 जिल्द।
आ- संकलन
5- मुन्तख़ब उल ग़ु-रर: हज़रत अली अलैहिस्सलाम की 2400 हदीसें , संकलनकर्ता: फ़ज़लुल्लाह कम्पनी ,
प्रकाशक: मुफ़ीद पब्लिकेशन , तेहरान , सन् 1983 ई. ,1 जिल्द 471 पेज पर आधारित।
इ- विषय सूचियाँ
6- शरहे फार्सी ग़ु-रर व दु-ररे आमदी , विषय सूची , सैयद जलालुद्दीन मुहद्दिस ,
प्रकाशक: तेहरान विश्वविद्यालय पब्लिकेशन , तेहरान , सन् 1981 ई. , 1 जिल्द 434 पेज पर आधारित।
7- हिदायतुल अलम फ़ी तनज़ीमे ग़ु-ररुल हिकम , सैयद हुसैन शेखुल इस्लामी ,
प्रकाशक: अंसारियान पब्लिकेशन , क़ुम , सन् 1992 ई. , 1 जिल्द 704 पेज पर आधारित।
8- तस्नीफ़े ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , मुस्तफ़ा दरायती।
प्रकाशक: तबलीग़ाते इस्लामी पब्लिकेशन , क़ुम , 1 जिल्द 562 पेज पर आधारित।
ई- शाब्दिक सूचियाँ
9- अल-मोजमुल मुफ़हरस लिअलफ़ाज़ि ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , अली रिज़ा बराज़िश।
प्रकाशक: अमीरे कबीर पब्लिकेशन , तेहरान , सन् 1992 ई. , 3 जिल्द।
10-मो-जमु अलफ़ाज़ि ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , मुस्तफ़ा दरायती ,
प्रकाशक:तबलीग़ाते इस्लामी पब्लिकेशन , क़ुम , सन् 1992 ई. , 1 जिल्द 1533 पेज पर आधारित।
इस संकलन के बारे में
यह संकलन , मीर जलालुद्दीन मुहद्दिल उरमवी द्वारा परिमार्जित लिपी (जिसका वर्णन "किताब का परिचय" नामक शीर्षक में हुआ है) के आधार पर व्यवस्थित किया गया है। उस किताब में मौजूद 11050 हदीसों में से 600 हदीसों को उन आधारों पर चुना गया है जिनका वर्णन दो शब्द नामक शीर्षक में हो चुका है। समस्त हदीसों को अरबी वर्ण माला के अक्षरों के क्रमानुसार 14 भागों में विभाजित करके व्यवस्थित किया गया है।
हदीस के असली न. को उसके सामने कोष्ठक में लिख दिया गया है।