मासूमीन की अनमोल हदीसें

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मासूमीन की अनमोल हदीसें लेखक:
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: हदीस

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मासूमीन की अनमोल हदीसें

मासूमीन की अनमोल हदीसें

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

नसीहत के मोती

ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम की 600 हदीसें

संकलनकर्ता : अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद तमीमी आमदी

अनुवादक: सैयद क़मर ग़ाज़ी

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

विषय सूची

नसीहत के मोती 1

विषय सूची 2

इस संकलन के बारे में 4

प्रस्तावना 9

किताब की विशेषताएं 10

किताब का महत्व 11

किताब का परिचय 12

इस संकलन के बारे में 14

अनुवादक के शब्द 16

पहला भाग 19

दूसरा भाग 32

तीसरा भाग 49

चौथा भाग 54

पाँचवां भाग 59

छटा भाग 60

सातवां भाग 62

आठवां भाग 67

नौवां भाग 70

दसवां भाग 74

ग्यारहवां भाग 77

बारहवां भाग 86

तेरहवां भाग 102

चौदहवां भाग 103

हदीसों के विषयों की सूची 113

इस संकलन के बारे में

मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की पाक सुन्नत , वास्तविक्ता को जानने वाले इंसानों के लिए ईमान व श्रेष्ठता की एक ऐसी विरासत है जो उनके दिलो को आध्यात्म और बुद्धी को बुद्धिमत्ता से भर देती है। हक़ीक़त को जानने और अल्लाह तक पहुँचने की उत्सुकता रखने वाले लोग , हमेशा ही मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों की रौशनी में अमर रहने वाली नेकी व पाकी के रास्ते पर चलते रहे हैं। मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों से जहाँ होशियार लोगों ने पूर्ण रूप से बुद्धिमत्ता प्राप्त की , वहीं अन्य लोगों ने ज्ञान लाभ प्राप्त किया है। इसी लिए हम देखते हैं कि "सुन्नत" क़ुरआन के बाद मुसलमानों के दीन का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत है और दीन की वास्तविक्ता को व्यक्त करने तथा इस्लामिक ज्ञान को उच्चता व महत्ता प्रदान करने में इसका विशेष योगदान रहा है।

वर्तमान समय में इंसानों में आध्यात्म व अख़लाक की आवश्यक्ता बढ़ी है और यह भी स्वीकार कर लिया गया है कि हदीसें दीन का आधार भूत अंग है , लेकिन इन सब बातों के होते हुए भी हदीस के क्षेत्र में बहुत कम काम हुआ है। हदीसों को जिस प्रकार आगे बढ़ाना चाहिए था नही बढ़ाया गया है , नई नस्ल में इसका उचित रूप से प्रचार व प्रसार नही हुआ है।

दूसरी ओर रिवायतों व हदीसों की अधिकता और उनमें पाये जाने वाले झूठे व समय से ताल मेल न खाने वाले आश्य तथा वर्तमान समय में प्रयोग होने वाली भाषा में उनके अनुवाद का अभाव आदि इस बात का कारण बनें हैं कि जो लोग इस विषय पर कोई संक्षिप्त व संकलित किताब पढ़ना चाहते हैं , वह नही पढ़ पाते।

इस बात में कोई संदेह नही है कि अगर उपरोक्त वर्णित कमियों को दूर कर दिया जाये और हदीसों को एक नये रूप व एक नई शैली में प्रस्तुत किया जाये तो यह कार्य जनता में हदीस के प्रचार व प्रसार में सहायक सिद्ध होगा। अतः इन्हीँ बातों को नज़र में रखते हुए हदीसों के इस संकलन में एक विशेष शैली को अपनाया गया है। चूँकि इस शैली का प्रयोग साहित्य जैसे अन्य विषयों में भी लाभ प्रद रहा है , अतः उम्मीद की जाती है कि हदीसों के प्रकाशन में भी उचित ही रहेगा। अभी तक जनता के लिए धार्मिक किताबों में इस शैली को बहुत कम प्रयोग किया गया है।

यह शैली , अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हदीसों से जनता को पूर्ण रूप से परिचित कराने के लिए अधिक उपयुक्त है। इस शैली के द्वारा प्रथम चरण में अध्ययनकर्ताओं में इन हदीसों को समझने की उत्सुक्ता पैदा करके बाद के चरण में हदीसों के संदर्भ में उनका व्यापक स्तर पर मार्ग दर्शन किया जा सकता है। अतः इस संकलन को इसी उद्देशय से इस शैली में व्यवस्थित किया गया है। उम्मीद है कि हदीसों को सही करने व उन्हें जीवित रखने की अन्य अनेकों कोशिशों के साथ , हदीसों का यह संकलन भी जनता को हदीसों से परिचित कराने के लिए एक ऐसा दरवाज़ा बनेगा जिससे लोग हदीसों के शहर में प्रवेश करेंगे।

इस संकलन की विशेषताएं

इस संकलन की महत्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है।

1- इस संकलन के लिए महत्वपूर्ण हदीसों को ही चुना गया है।

2- हदीसों के चुनाव में उनके ऐतिहासिक क्रम को दृष्टि में नही रखा गया है बल्कि हदीसों की पुरानी व नई सभी महत्वपूर्ण किताबों से इन हदीसों को चुना गया है।

3- इस श्रृंख्ला की हर किताब अनुवाद के साथ एक सौ से दो सौ पेज तक है।

4- इस श्रृंख्ला की हर किताब एक ही साईज़ व डिज़ाईन में प्रस्तुत की जायेगी।

5- प्रत्येक संकलन प्रस्तावना , मूल लेख व विषय बोध पर आधारित होगा। प्रस्तावना में किताब के लेखक के जीवन परिचय के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी , उसकी शैक्षिक योग्यताएं , किताब की विषय सामग्री और हदीस की किताबों के मध्य उस किताब के स्थान आदि का उल्लेख किया जायेगा। मूल लेख में अरबी की मूल हदीसें , उनकी मात्राएं , अनुवाद व आवश्यक्तानुसार उनकी व्याख्या का उल्लेख होगा। विषय बोध में प्रत्येक संकलन के अंत में उसमें वर्णित हदीसों के विषयों की पूर्ण सूची दी जायेगी , जिसके द्वारा विभिन्न विषयों पर आधारित हदीसों को आसानी से ढूँढा जा सकेगा।

6- हदीस के स्रोतों का यथा संभव उल्लेख किया गया है और उन्हें प्रत्येक पेज पर रेफ़रैंस में लिख दिया गया है , उन हदीसों की किताबों के अतिरिक्त जिनकी गनणा प्राथमिक स्रोतों में होती है।

7- प्रत्येक संकलन में विषयों को क्रमबद्ध वर्णन करने की यथासंभव कोशिश की जायेगी है। अगर किसी अवसर पर किसी विशेष शैली को अपनाया जायेगा तो उस संकलन की प्रस्तावना में उसका व्याख्यात्मक वर्णन कर दिया जायेगा।

8- हदीसों के चुनाव में निम्न लिखित बातों को आधार बनाया गया है।

अ- ऐसे विषय जिनकी सब लोगों को आवश्यक्ता हो।

आ- हदीस छोटी , स्पष्ट व अधिक काम आने वाली हो।

इ- एतेक़ाद (आस्था) , इबादत , अखलाक़ , तरबियत एवं समाजिक व आर्थिक व पहलुओं से संबंधित हो , जिंदगी की उम्मीदों को बढ़ाती हो और अखलाक़ व इंसान की ज़िन्दगी के आधारों को मज़बूत बनाने वाली हो।

9- हदीसों के अनुवाद में गद्य के नियमों का पालन करने की कोशिश की गई है।

10- प्रत्येक संकलन , सामूहिक कार्य का फल है और यह एक संचीव के निर्देशन में व्यवस्थित होता है। प्रत्येक संकलन में उसको व्यवस्थित करने वालों के नामों का उल्लेख किया जाता है।

उम्मीद की जाती है कि विभिन्न संकलनों पर आधारित यह श्रृंख्ला मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों की परिचायक बन कर चाहने वालों को उनकी हदीसों से परिचित करायेगी।

इस किताब को व्यवस्थित करने में जिन लोगों ने सहायता प्रदान की है हम उनका शुक्रिया करते हुए यहाँ पर उनके नामों का उल्लेख कर रहे हैं , जनाब मुहम्मद अली सुलतानी , सैयद काज़िम तबातबाई , क़ासिम जवादी , मुहम्मद हादी खालक़ी इन्होंने इस किताब को छपने से पहले पढ़ा और अपनी लाक्षप्रद राय से अवगत कराया। हम इन सबका एक बार फिर शुक्रिया करते है।

हादी रब्बानी

प्रचार संचिव

तहक़ीक़ाते दारुल हदीस

प्रस्तावना

संकलनकर्ता

नासेहुद्दीन अबुल फ़तह अब्दुल वाहिद पुत्र मुहम्मद तमीमी आमदी , पाँचवी हिजरी शताब्दी के अंतिम चरण व छठी हिजरी शताब्दी के प्रथम पाँच दशकों में एक बड़े शिआ आलिम रहे हैं। उन्होंने ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम नामक किताब लिख कर अपना नाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बुद्धिमत्ता पर आधारित कथनों का संकलन करने वालों में अमर कर लिया है। परन्तु जीवन परिचय कराने वाली किताबों में उनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है और जो जानकारी उपलब्ध है भी उसमें आशंकाएं पाई जाती हैं।

जीवन परिचयों से संबंधित किताबों में मिलता है कि इब्ने शहरे आशोब माज़न्दरानी उनके ही शिष्य थे। कुछ लोगों ने अहमद ग़ज़्ज़ाली को उनका उस्ताद उल्लेख किया है। आमदी की मृत्यु छठी हिजरी शताब्दी के मध्य में हुई।

रचनाएं

आमदी के जीवन का एक अप्रत्यक्ष पहलु उनकी रचनाओं की गणना है। ग़ु-ररुल हिकम के अतिरिक्त उनकी अन्य किताबों में जवाहेरुल कलाम फ़िल हुक्मे व अल-अहकाम का नाम लिया जाता है।

किताब की विशेषताएं

यह किताब ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम हज़रत अली अलैहिस्साम के 11050 छोटे व महत्वपूर्ण कथनों पर आधारित है। इन कथनों का विषय नसीहत , उत्साह व भय का वर्णन करते हुए सदाचारिक विशेषताओं को अपनाने व सदाचारिक बुराईयों से दूर रहने का उपदेश हैं।

आमदी ने अपनी इस किताब की प्रस्तावना में इस किताब को लिखने का कारण यह उल्लेख किया है कि जाहिज़ द्वारा लिखी गई किताब मिअतु कलमतिन (सौ कथन) में बहुत कम कथनों को चुना गया था। उन्होंने जाहिज़ पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि "चूँकि उसको अच्छी परख नही थी इस लिए उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों के समुन्द्र से नसीहत के असंख्य मोतियों में से बहुत कम को चुना और उन्हें ही अधिक समझा।" जाहिज़ के काम में इस कमी को देखने के बाद उन्होंने अपनी कमर को कसा और हिम्मत करके यह महत्वपूर्ण किताब लिखी।

उन्होंने इन कथनों को इकठ्ठा करने में साहित्यिक विशेषताओं व सौन्दर्यों को दृष्टिगत रखते हुए कथनों की सनद (अर्थात इन कथनों का क्रमशः किन लोगों ने उल्लेख किया है) को छोड़ दिया और कथनों को ढूँढने में सरलता के लिए कथनों को अरबी वर्ण माला के क्रमानुसार व्यवस्थित किया।

किताब का महत्व

आमदी , हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों को एकत्रित करने वाले प्रथम व अंतिम व्यक्ति नही हैं , बल्कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बुद्धिमत्ता पर आधारित इन कथनों को एकत्रित करने का काम इस्लाम के प्रारम्भिक दशको में आरम्भ हो गया था। परन्तु आमदी द्वारा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों को सुव्यवस्थित करके उन्हें एक नये रूप में प्रस्तुत करने के कारण इस किताब को विशेष ख्याति प्राप्त हुई।

अल्लामा मजलिसी , इस किताब को अपनी किताब बिहारुल अनवार के स्रोतों में उल्लेख करते हुए इसके बारे में लिखते हैं कि यह किताब बहुत मशहूर है और एक से दूसरे हाथ में घूमती रहती है। इसी तरह मुस्तदरकुल वसाइल नामक किताब के लेखक मिर्ज़ा हुसैन नूरी , इस किताब के लेखक के शिआ होने की दलीलों का उलेलेख करते हुए लिखते हैं कि "अगर कोई शिआ आलिमों की हदीसों की किताबों से परिचित आदमी इस किताब को ध्यान पूर्वक पढ़े तो वह समझ जायेगा कि आमदी ने इस किताब में उल्लेखित हदीसों को शिआ किताबों से ही चुना है।"

मरहूम मुहद्दिस उरमवी , इस किताब की आध्यात्मिक महत्ता और इसके एक नस्ल से दूसरी नस्ल की ओर हस्तान्त्रित होने और एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमने का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि

"इस आशय पर सबसे बड़ा तर्क , इस किताब की लिपियों का अधिक संख्या में पाया जाना है : क्योंकि जब हम दुनिया के बड़े पुस्तकालयों विशेष रूप से उन इस्लामिक पुस्तकालयों को देखते हैं जो विभिन्न घटनाओं व परिस्थितियों से अपने अस्तित्व को बचाते हुए नई नस्ल तक पहुँचे हैं , तो पाते हैं कि इस किताब की बहुत सी लिपियाँ या कम से कम एक लिपि वहाँ मौजूद हैं।"

किताब का परिचय

ग़ु-ररुल हिकम उन किताबों में से है , जो बहुत से लोगों की रिसर्च का विषय बन चुकी है। इस किताब के निम्न लिखित पहलुओं की ओर इशारा किया जा रहा है।

अ- अनुवाद

1- ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , अनुवाद व व्याख्या जमालुद्दीन मुहम्मद खुवानसारी , प्रस्तावना , शुद्धीकरण: मीर जलालुद्दीन हुसैनी उरमवी (मुहद्दिस)

प्रकाशक: तेहरान विश्वविद्यालय , तेहरान , सन् 1998 ई. , 7 जिल्द।

2- ग़ु-ररुल हिकम मजमुआ ए कलमाते क़िसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम , अनुवाद: मुहम्मद अली अंसारी क़ुम्मी , 2 जिल्द ,

3- गुफ़्तारे अमीरुल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम , अनुवाद: सैयद हुसैन शेखुल इस्लामी ,

प्रकाशक: अंसारियान पब्लिकेशन , क़ुम , सन् 1995 ई. , 2 जिल्द।

4- ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , अनुवाद: सैयद हाशिम रसूली महल्लाती ,

प्रकाशक: फरहंगे इस्लामी पब्लिकेशन तेहरान , सन् 1999 ई. , 2 जिल्द।

आ- संकलन

5- मुन्तख़ब उल ग़ु-रर: हज़रत अली अलैहिस्सलाम की 2400 हदीसें , संकलनकर्ता: फ़ज़लुल्लाह कम्पनी ,

प्रकाशक: मुफ़ीद पब्लिकेशन , तेहरान , सन् 1983 ई. ,1 जिल्द 471 पेज पर आधारित।

इ- विषय सूचियाँ

6- शरहे फार्सी ग़ु-रर व दु-ररे आमदी , विषय सूची , सैयद जलालुद्दीन मुहद्दिस ,

प्रकाशक: तेहरान विश्वविद्यालय पब्लिकेशन , तेहरान , सन् 1981 ई. , 1 जिल्द 434 पेज पर आधारित।

7- हिदायतुल अलम फ़ी तनज़ीमे ग़ु-ररुल हिकम , सैयद हुसैन शेखुल इस्लामी ,

प्रकाशक: अंसारियान पब्लिकेशन , क़ुम , सन् 1992 ई. , 1 जिल्द 704 पेज पर आधारित।

8- तस्नीफ़े ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , मुस्तफ़ा दरायती।

प्रकाशक: तबलीग़ाते इस्लामी पब्लिकेशन , क़ुम , 1 जिल्द 562 पेज पर आधारित।

ई- शाब्दिक सूचियाँ

9- अल-मोजमुल मुफ़हरस लिअलफ़ाज़ि ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , अली रिज़ा बराज़िश।

प्रकाशक: अमीरे कबीर पब्लिकेशन , तेहरान , सन् 1992 ई. , 3 जिल्द।

10-मो-जमु अलफ़ाज़ि ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम , मुस्तफ़ा दरायती ,

प्रकाशक:तबलीग़ाते इस्लामी पब्लिकेशन , क़ुम , सन् 1992 ई. , 1 जिल्द 1533 पेज पर आधारित।

इस संकलन के बारे में

यह संकलन , मीर जलालुद्दीन मुहद्दिल उरमवी द्वारा परिमार्जित लिपी (जिसका वर्णन "किताब का परिचय" नामक शीर्षक में हुआ है) के आधार पर व्यवस्थित किया गया है। उस किताब में मौजूद 11050 हदीसों में से 600 हदीसों को उन आधारों पर चुना गया है जिनका वर्णन दो शब्द नामक शीर्षक में हो चुका है। समस्त हदीसों को अरबी वर्ण माला के अक्षरों के क्रमानुसार 14 भागों में विभाजित करके व्यवस्थित किया गया है।

हदीस के असली न. को उसके सामने कोष्ठक में लिख दिया गया है।

अनुवादक के शब्द

प्रियः पाठको ! हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ हदीसों के अनुवाद के साथ हम एक बार फिर आपकी सेवा में हैं।

इस भौतिकता के युग में इंसान निरन्तर सदाचारिक पतन की ओर बढ़ रहा है। अगर इस पतन को न रोका गया तो हमारी आने वाली नस्लें सदाचार से बहुत दूर हो जायेगी। आज विज्ञान के वर्दानों का खुल कर दुरूपयोग हो रहा है जिसके नतीजे में हमारे चारों ओर अश्लीलता फैलती जा रही है। विभिन्न टी. वी. चैनलों और इन्टरनेट साईटों ने मानवीय मर्यादाओं को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया है। इस स्थिति में आध्यात्मिक्ता का ज्ञान ही हमें सदाचारिक पतन से रोक कर मानवीय उच्चताओं तक पहुँचा सकता है। अल्लाह ने इंसान के लिए जो विधान निश्चित किया है अगर उस पर चला जाये तो इंसानी समाज निश्चित रूप से विघटन से बचेगा और विकास की ओर अग्रसर होगा। क़ुरआने करीम अल्लाह के विधान का सबसे महत्वपूर्ण व अन्तिम स्रोत है। क़ुरआन की शिक्षाएं इंसान को उसकी वास्तविक्ता का बोध कराते हुए उसे उसकी उत्पत्ति के उद्देश्यों से परिचित कराती हैं और उसे सही मार्ग पर चलने का निर्देश देती हैं। अतः अगर इंसान क़ुरआने करीम की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए अल्लाह के आदेशों का पालन करे तो वह उच्च सदाचारी बन जायेगा। सदाचारिक मार्गदर्शन का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत पैग़म्बर (स.) और उनके अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के वह महत्वपूर्ण कथन हैं , जिनको इस्लामिक भाषा में हदीस कहा जाता है। इन कथनों में उच्च कोटि के सदाचारिक उपदेश निहित हैं। उन्होंने इंसान की ज़िन्दगी से संबंधित हर पहलु पर अपने विचार प्रकट किये हैं और जीवन के हर क्षेत्र में इंसानों का मार्गदर्शन किया है। चूँकि वह सब मासूम हैं और उन्हें क़ुरआन पर आथारिटी है इस लिए उनकी हर बात क़ुरआन पर आधारित है और उनके कथनों में कोई संदेह व संशय नही पाया जाता है। चूँकि वह स्वयं उच्च सदाचारिक गुणों के मालिक थे इस लिए उनकी जीवन शैली सदाचार का उच्चतम नमूना है। अतः अगर उनका अनुसरण किया जाये और उनके बताये मार्ग पर चला जाये तो इंसान का जीवन उज्वल बन जायेगा है।

इस किताब के अनुवाद का उद्देश्य अपने जवान भईयों को मासूम (अ.) के कथनों से परिचित कराना है ताकि वह इन कथनों को पढ़ने के बाद इन्हें अपने दैनिक जीवन में अपनाये तथा अपने जीवन को उनके अनुरूप ढाल कर वास्तविक जीवन का आनंद लें और समाज में फैली हुई बुराईयों से स्वयं भी दूर रहे और दूसरों को भी दूर रखने की कोशिश करे।

इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमने तहक़ीक़ाते दारुल हदीस नामक संस्था द्वारा संकलित इस किताब का अनुवाद कर इसे अपने जवान भाईयों तक पहुँचाने की कोशिश की है

हमें उम्मीद है कि अगर कोई इन स्वर्णिम हदीसों व कथनों को पढ़ने के बाद इन पर क्रियान्वित होगा तो उसका सांसारिक जीवन ख़ुशियों से भर जायेगा और परलोकीय जीवन भी सफलता से परिपूर्ण होगा।

इस किताब में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जिन हदीसों को चुना गया है वह इस दुनिया व आख़ेरत की सफ़लता के रहस्यों की ओर इशारा करती है और सदाचारिक उपदेशों से परिपूर्ण हैं। इन कथनों में बुद्धिमत्ता पाई जाती और इन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के वह तजुर्बे भी निहित हैं जो उन्होंने अपने उतार चढ़ाव वाले जीवन में किये हैं। इसी लिए उन्होंने समस्त इंसानों को इस सांसारिक जीवन की वास्तविक्ता से परिचित कराते हुए परलोक के लिए कार्य करने की नसीहत की है।

सैय्यद क़मर ग़ाज़ी