मासूमीन की अनमोल हदीसें

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मासूमीन की अनमोल हदीसें लेखक:
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: हदीस

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मासूमीन की अनमोल हदीसें

मासूमीन की अनमोल हदीसें

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

दूसरा भाग

94. اِنسَ رِفدَكَ اُذكُر وَعدَك : (2249 )

94. दी हुई चीज़ों को भूल जाओं और अपने वादों को याद करो।

95. أعِن أخاكَ عَلى هِدايَتِهِ : (2281 )

95. (नेकी के) मार्गदर्शन में अपने भाई की मदद करो।

96. أحسِن إلى مَن أساءَ إِلَيكَ وَاعفُ عَمَّن جَنى عَلَيكَ : (2287 )

96. जिसने तुम्हारे साथ बुराई की उसके साथ भलाई करो और जिसने तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया उसे क्षमा कर दो।

97. أصلِحِ المُسيءَ بِحُسنِ فِعالِكَ وَدُلَّ عَلَى الخَيرِ بِجَميلِ مَقالِكَ : (2304 )

97. बुरे इन्सान को अपने अच्छे व्यवहार से सुधारो और अपनी अच्छी बातों के द्वारा उसका नेकी की ओर मार्गदर्शन करो।

98. اِحفَظ أمرَكَ وَلا تُنكِح خاطِباً سِرَّكَ : (2305 )

98. अपने कार्यों को छुपाओ और अपने राज़ों को हर चाहने वाले की दुल्हन न बनाओ। अर्थात हर किसी से अपने रहस्यों का वर्णन न करो।

99. اِرضَ لِلنّاسِ بِما تَرضاهُ لِنَفسِكَ تَكُن مُسلِماً : (2329 )

99. जो अपने लिये पसन्द करते हो , वही दूसरों के लिये भी पसंद करो , ताकि मुसलमान रहो।

100. اِرضَ مِنَ الرِّزقِ بِما قُسِمَ لَكَ تَعِش غَنِيّاً : (2332 )

100. जो धन तुम्हारे हिस्से में आया है उस पर खुश रहो (और) मालदारी में जीवन व्यतीत करो।

101. أكرِم ضَيفَكَ وَإن كانَ حَقيراً وَقُم عَن مَجلِسِكَ لاَِبِيكَ وَمُعَلِّمِكَ وَإن كُنتَ أميراً : (2341 )

101. अपने मेहमान की इज़्ज़त करो चाहे वह नीच ही हो और अपने बाप व उस्ताद के आदर में अपनी जगह से खड़े हो जाओ चाहे तुम शासक ही क्यों न हो।

102. اِغتَنِم مَنِ استَقرَضَكَ في حالِ غِناكَ لِيَجعَلَ قَضاءَهُ في يَومِ عُسرَتِكَ : (2370 )

102. (अगर) कोई तुम्हारे मालदार होने की स्थिति में तुम से कर्ज़ माँगे तो उसे अच्छा समझो , वह तुम्हारी आवश्यक्ता के समय तुम्हें उसका बदला देगा।

103. أكثِرِ النَّظرَ إلى مَن فُضِّلتَ عَلَيهِ فَإنَّ ذلِكَ مِن أبوابِ الشُّكرِ : (2375 )

103. तुम्हें जिन लोगों पर श्रेष्ठता दी गई है उनकी ओर अधिक देखो , (अर्थात उनका अधिक ध्यान रखो) क्योंकि यह , शुक्र करने का एक तरीका है।

104. أشعِر قَلبَكَ الرَّحمَةَ لِجَميعِ النّاسِ وَالإحسانِ إلَيهِمَ وَلا تُنِلهُم حَيفاً وَلا تَكُن عَلَيهِم سَيفاً : (2392 )

104. समस्त लोगों के साथ मोहब्बत और भलाई करने को अपने दिल का नारा बना लो और न उन्हें नुक्सान पहुंचाओ और न ही उन पर तलवार खींचो।

105. اِستَفرغ جُهدَكَ لِمَعادِكَ تُصلِح مَثواكَ وَلا تَبع آخِرَتَكَ بِدُنياكَ : (2411 )

105. अपनी पूरी मेहनत व कोशिश को आख़ेरत के लिये खर्च करो ताकि तुम्हारा ठिकाना अच्छा बने और अपनी आख़ेरत को दुनिया के बदले न बेचो।

106. اِجعَل لِكُلِّ إنسان مِن خَدَمِكَ عَمَلاً تَأخُذهُ بِهِ فَإنَّ ذلِكَ أحرى أن لا يَتَواكَلُوا فِي خِدمَتِكَ : (2432 )

106. अपने तमाम मातहतों को काम पर लगाओ और उनसे , उनके कार्यों के बारे में पूछ ताछ करो , (ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारियों का जवाब दें) यह काम (इस लिए) अच्छा है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी को एक दूसरे के कांधे पर न डाल सकें।

107. اُبذل لِصَديقِكَ كُلَّ المَوَدَّةِ وَلا تَبذُل لَهُ كُلَّ الطُّمَأنينَةِ وأَعطِهِ مِن نَفسِكَ كُلَّ المُواساةِ وَلا تَقُصَّ اِلَيهِ بِكُلِّ أسرارِكَ : (2463 )

107. अपनी पूरी मोहब्बत को अपने दोस्त पर निछावर कर दो , लेकिन उस पर आँख बन्द कर के भरोसा न करो , दिल से उसके साथ रहो लेकिन अपने सारे राज़ उसे न बताओ।

108. اِصبِر عَلى مَرارَةِ الحَقِّ وَإيّاكَ أن تَنخَدِعَ لِحَلاوَةِ الباطِلِ : (2472 )

108. हक़ (सच्चाई) की कडवाहट पर सब्र करो और खबरदार बातिल (झूठ) की मिठास से धोखा न खाना।

109. أطِع مَن فَوقَكَ يُطِعكَ مَن دُونَكَ : (2475 )

109. अपने बड़ों का कहना मानों ताकि तुम्हारे छोटे तुम्हारा कहना मानें।

110. اِكتَسِبُوا العِلمَ يَكسِبكُمُ الحَياةَ : (2486 )

110. ज्ञान प्राप्त करो ताकि वह तुम्हें ज़िन्दगी दें।

111. اِلزَمُوا الجَماعَةَ وَاجتَنِبُوا الفُرقَةَ : (2488 )

111. सब के साथ मिल कर रहो और अलग रहने से बचो।

112. اِنتَهِزُوا فُصَ الخَيرِ فَإنَّها تَمُرُّ مَرَّ السَّحابِ : (2501 )

112. सुअवसर से फ़ायदा उठाओ क्यों कि वह बादलों की तरह गुज़र जाती है।

113. اِتَّقُوا مَعاصِيَ الخَلَواتِ فَإنَّ الشّاهِدَ هُوَ الحاكِمُ : (2524 )

113. तन्हाई के गुनाहों से बचो , क्योंकि उन्हें देखने वाला हाकिम है।

114. اُطلُبُوا العِلمَ تُعرَفُوا بِهِ وَاعمَلُوا بِه تَكُونُوا مِن أهلِهِ : (2531 )

114. ज्ञान प्राप्त करो ताकि उसके द्वारा पहचाने जाओ और उस पर क्रियान्वित रहो ताकि उसके योग्य बने रहो।

115. اِضرِبُوا بَعضَ الرَّأيِ بِبَعض يَتَوَلَّد مِنهُ الصَّوابُ : (2567 )

115. अपनी राय को एक दूसरे के सामने रखो ताकि उस से एक अच्छा नतीजा निकले।

116. أجمِلُوا فِي الخِطابِ تَسمَعُوا جَميلَ الجَوابِ : (2568 )

116. अपनी बात चीत को सुन्दर बनाओ ताकि अच्छा जवाब सुनो।

117. اِتَّهِمُوا عُقُولَكُم فَإنَّهُ مِنَ الثِّقَةِ بِها يَكُونُ الخَطاءُ : (2570 )

117. अपनी बुद्धी को ग़लती करने वाली मान कर चलो , क्योंकि उस पर अधिक भरोसा करना ग़लती हो सकती है।

118. اِحذَر كُلَّ عَمَل يَرضاهُ عامِلُهُ لِنَفسِهِ وَيَكرَهُهُ لِعامَّةِ المُسلِمينَ : (2596 )

118. हर उस काम से बचो जिस का करने वाला उसे अपने लिये तो पसंद करता हो लेकिन आम मुसलमानों के लिये पसंद न करता हो।

119. اِحذَر كُلَّ قَول وَفِعل يُؤدِّي إلى فَسادِ الآخِرَةِ وَالدِّينِ : (2597 )

119. हर उस बात व काम से बचो , जो आख़ेरत व दीन को बर्बादी की ओर ले जायें।

120. اِحذَر مُجالَسَةَ قَرينِ السُّوءِ فَإنَّهُ يُهلِكُ مُقارِنَهُ وَيُردي مُصاحِبَهُ : (2599 )

120. बुरे दोस्त के पास बैठने से बचो , क्योंकि वह अपने दोस्त को बर्बाद और अपने साथी को ज़लील करता है।

121. اِحذَرُوا ضِياعَ الأعمارِ فِيما لا يَبقى لَكُم فَفائِتُها لايَعُودُ : (2618 )

121. जो चीज़ें तुम्हारे पास बाक़ी रहने वाली नहीं हैं , उनमें अपनी उम्र बर्बाद करने से बचो , क्योंकि जो उम्र बीत जाती है , वह वापस नहीं आती।

122. إيّاكَ وَالهَذَرَ فَمَن كَثُرَ كَلامُهُ كَثُرَت آثامُهُ : (2637 )

122. अधिक बोलने से बचो क्योंकि अधिक बोलने वाले के गुनाह भी अधिक होते हैं।

123. إيّاكَ وَالنَّميمَةَ فَإنَّها تَزرَعُ الضَّغينَةَ وَتُبَعِّدُ عَنِ اللهِ وَالنّاسِ : (2663 )

123. चुग़ल खोरी से बचो , क्योंकि यह दुश्मनी का बीज बोती है और अल्लाह व इन्सानों से दूर करती है।

124. إيّاكَ وَالمَنَّ بِالمَعرِّوفِ فَإنَّ الاِمتِنانَ يُكَدِّرُ الإحسانَ : (2673 )

124. भलाई करने के बाद उसका एहसान जताने से बचो , क्योंकि एहसान जताना नेकी को बर्बाद कर देता है।

125. إيّاكَ وَالنِّفاقَ فَإنَّ ذَا الوَجهَينِ لا يَكُونُ وَجيهاً عِندَ اللهِ : (2694 )

125. निफ़ाक से बचो , क्योंकि अल्लाह (की नज़र में) मुनाफिक की कोई इज़्ज़त नहीं है।

126. إيّاكَ أن تَجعَلَ مَركَبَكَ لِسانَكَ في غِيبَةِ إخوانِكَ أو تَقُولَ ما يَصيرُ عَلَيكَ حُجَّةً وَفِي الإساءَةِ إِلَيكَ عِلَّةً : (2724 )

126. अपनी ज़बान को अपने भाई की चुग़ली की सवारी बनाने से बचओ और ऐसी बात कहने से भी दूर रहो जो तुम्हारे लिये दलील और तुम्हारे साथ बुराई करने का कारण व बहाना बने।

127. إيّاكُم وَالبِطنَةَ فَإنَّها مَقساةٌ لِلقَلبِ مَكسَلَةٌ عَنِ الصَّلاةِ وَمَفسَدَةٌ لِلجَسَدِ : (2742 )

127. पेट भर कर भोजन करने से बचो , क्योंकि इस से दिल सख़्त होता है , नमाज़ में सुस्ती पैदा होती है और यह शरीर के लिये भी हानिकारक है।

128. إيّاكُمِ وَالفُرقَةَ فَإنَّ الشّاذَّ عَن أهلِ الحَقِّ لِلشَّيطانِ كَما أنَّ الشّاذَّ مِنَ الغَنَمِ لِلذِّئبِ : (2747 )

128. अलग होने से बचो , क्योंकि हक़ से अलग होने वाला शैतान का (शिकार बन जाता है) जिस तरह रेवड़ से अलग होने वाली भेड़ , भेड़िये का शिकार बन जाती है।

129. ألا مُستَيقِظٌ مِن غَفلَتِهِ قَبلَ نَفادِ مُدَّتِهِ : (2752 )

129. क्या कोई नहीं है , जो उम्र पूरी होने से पहले ग़फ़लत से जाग जाए।

130. ألا وَإنَّ مِنَ البَلاءِ الفاقَةَ وَأشَدُّ مِنَ الفاقَةِ مَرَضُ البَدَنِ وَأشَدُّ مِن مَرَضِ البَدَنِ مَرَضُ القَلبِ : (2775 )

130. जान लो कि भुखमरी एक विपत्ति है और शारीरिक बीमारी भुखमरी से भयंकर है और दिल की बीमारी (अर्थात कुफ़्र , निफ़ाक़ व शिर्क) शारीरिक बीमारी से भी भंयकर है।

131. ألا لايَستَحيِيَنَّ مَن لا يَعلَمُ أن يَتَعَلَّمَ فَإنَّ قِيمَةَ كُلِّ امرِئ مَا يَعلَمُ : (2787 )

131. समझ लो कि तुम जिस चीज़ के बारे में नहीं जानते हो उसे सीखने में शर्म न करो , क्योंकि हर इन्सान का महत्व उस चीज़ में है जिसे वह जानता है।

132. ألا لا يَستَقبِحَنَّ مَن سُئِلَ عَمَا لا يَعلَمُ أن يَقُولَ لا أعلَمُ : (2788 )

132. जान लो कि जब किसी से कोई सवाल पूछा जाये और वह उसका जवाब न जानता हो तो यह कहने में कोई बुराई नही है कि मैं नहीं जानता हूँ।

133. أفضَلُ العِبادَةِ غَلَبَةُ العادَةِ : (2873 )

133. सब से अच्छी इबादत आदतों पर क़ाबू पाना है।

134. أفضَلُ الإِيمانِ الأمانَةُ : (2905 )

134. सब से अच्छा ईमान आमानतदारी है।

135. اَسوَءُ النّاسِ عَيشاً الحَسُودُ : (2931 )

135. इंसानों में सब से बुरा जीवन ईर्ष्यालु का होता है।

136. أَشَدُّ القُلُوبِ غِلاًّ قَلبُ الحَقُودِ : (2932 )

136. दिलों में सब से बुरा दिल , कीनः (ईर्ष्या) रखने वाले का होता है।

137. أَفضَلُ العَمَلِ ما اُرِيدَ بِهِ وَجهُ اللهِ : (2958 )

137. सब से अच्छा काम वह है जिस के द्वारा अल्लाह की ख़ुशी को प्राप्त करने की इच्छा की जाये।

138. أَفضَلُ المَعرُوفِ إغاثَةُ المَلهُوفِ : (2959 )

138. सब से श्रेष्ठ भलाई , पीड़ित की फ़रियाद सुनना है।

139. أَكبَرُ الحُمقِ الإغراقُ فِي المَدحِ وَالذَّمِ : (2985 )

139. सब से बड़ी मूर्खता , (किसी की) बुराई या प्रशंसा में अधिक्ता से काम लेना है।

140. أَفضَلُ النّاسِ أنفَعُهُمِ لِلنّاسِ : (2989 )

140. सब से अच्छा इन्सान वह है , जिस से इन्सानों को सबसे अधिक फ़ायदा पहुंचता है।

141. أَقبَحُ الغَدرِ إذاغَةُ السِّرِّ : (3005 )

141. सब से बड़ी गद्दारी (किसी के) रहस्यों को खोलना है।

142. أَفضَلُ الوَرَعِ حُسنُ الظَّنِّ : (3027 )

142. सब से अच्छी पारसाई , खुश गुमान रहना है।

143. أَسرَعُ شَيء عُقُوبَةً اليَمينُ الفاجِرَةُ : (3041 )

143. जिस चीज़ की सज़ा बहुत जल्दी मिलती है , वह झूठी क़सम है।

144. أَكثَرُ النّاسِ أمَلأ أقَلُّهُم لِلمَوتِ ذِكراً : (3053 )

144. सब से अधिक इच्छायें उन लोगों की होती है , जो मौत को बहुत कम याद करते हैं।

145. أَبصَرُ النّاسِ مَن أبصَرَ عُيُوبَهُ وَأقلَعَ عَن ذُنُوبِهِ : (3061 )

145. सब से अधिक दृष्टिवान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और गुनाहों से रुक जाये।

146. أَقوَى النّاسِ مَن غَلَبَ هَواهُ : (3074 )

146. सब से अधिक शक्तिशाली इन्सान वह है जो अपनी हवस पर काबू पा ले।

147. أَصلُ المُرُوءَةِ الحَياءُ وَثَمَرَتُهَا العِفَّةُ : (3101 )

147. मर्दांगी की जड़ शर्म है , और उसका फल पारसाई है।

148. أَفضَلُ النّاسِ مَن كَظَمَ غَيظَهُ وَحَلُمَ عَن قُدرَة : (3104 )

148. सब से अच्छा इन्सान वह है जो अपने गुस्से को पी जाए और ताक़त के होते हुए संयम से काम ले।

149. أَغبَطُ النّاسِ المُسارِعُ إلَى الخَيراتِ : (3122 )

149. सब से खुश हाल इन्सान वह है जो नेकियों की तरफ़ दौड़े।

150. أَعظَمُ الذُّنُوبِ عِندَ اللهِ ذَنبٌ اَصَرَّ عَلَيهِ عامِلُهُ : (3131 )

150. अल्लाह के नज़दीक सब से बड़ा गुनाह वह है , जिसे गुनहगार बार बार करे।

151. أَدَلُّ شَيء عَلى غَزارَةِ العَقلِ حُسنُ التَدبيرِ : (3151 )

151. बुद्धिमान होने की सब से बड़ी दलील , अच्छी तदबीर व उपाय है।

152. أَفضَلُ النّاسِ رَأياً مَن لا يَستَغنِي عَن رَأي مُشير : (3152 )

152. सब से अच्छी राय उस इन्सान की है जो स्वयं को मशवरा देने वाले की राय से मुक्त न समझता हो।

153. أَفضَلُ الجُودِ اِيصالُ الحُقُوقِ إلى اَهلِها : (3153 )

153. सब से बड़ा दान व सखावत , हकदारों तक उनके हक पहुंचाना है।

154. أَكبَرُ الكُلفَةِ تَعَنُيكَ فِيما لا يَعنيكَ : (3166 )

154. सब से बड़ा दुख व तकलीफ़ , उस चीज़ में मेहनत करना है जिस से तुम्हें कोई फ़ायदा न हो।

155. أَكبَرُ العَيبِ أن تَعيبَ غَيرَكَ بِما هُوَ فيكَ : (3167 )

155. सब से बड़ी बुराई , दूसरों की उस बुराई को पकड़ना है जो स्वयं में भी पाई जाती है।

156. أَخسَرُ النّاسِ مَن قَدَرَ عَلى اَن يَقُولَ الحَقَّ وَلَم يَقُل : (3178 )

156. सब से अधिक नुक़्सान में वह लोग हैं जो हक़ बात कहने की ताक़त रखते हुए , हक़ बात न कहें।

157. أَبخَلُ النّاسِ مَن بَخِلَ بِالسَّلامِ : (3200 )

157. सब से अधिक कंजूस वह लोग हैं जो सलाम करने में कंजूसी करें।

158. أَشَدُّ مِنَ المَوتِ طَلَبُ الحاجَةِ مِن غَيرِ أَهلِها : (3213 )

158. नीच से कोई चीज़ माँगना , मौत से भी अधिक कठिन है।

159. أَعقَلُ النّاسِ مَن كانَ بِعَيبِهِ بَصيراً وَعَن عَيبِ غَيرِهِ ضَريراً : (3233 )

159. सब से अधिक बुद्धिमान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और दूसरों की बुराइयों को न देखे।

160. أَفضَلُ الأدَبِ أن يَقِفُ الإنسانُ عِندَ حَدِّهِ وَلا يَتَعدَّى قَدرَهُ : (3241 )

160. सब से अच्छा सदाचार यह है कि इन्सान अपनी हद में रहे और उस से बाहर न निकले।

161. إِنَّ أهنَأَ النّاسِ عَيشاً مَن كانَ بِما قَسَمَ اللهُ لَهُ راضِياً : (3397 )

161. सब से अच्छा जीवन उसका है जो उस पर प्रसन्न रहे , जो उसे अल्लाह ने दिया है।

162. اِنَّ مِنَ العِبادَةِ لِينَ الكَلامِ وَإفشاءَ السَّلامِ : (3421 )

162. नर्मी के साथ बात करना और ऊँची आवाज़ में सलाम करना इबादतों में से है।

163. إِنَّ هذِهِ القُلُوبَ اَوعِيَةٌ فَخَيرُها اَوعاها لِلخَيرِ : (3449 )

163. यह दिल बर्तन (के समान) हैं और इन में सब से अच्छा बर्तन वह है जिस में नेकियां अधिक आयें।

164. إِنَّ بِشرَ المُؤمِنِ فِي وَجهِهِ، وَقُوَّتَهُ فِي دينِهِ وَحُزنَهُ فِي قَلبِهِ : (3454 )

164. मोमिन की खुशी उसके चेहरे पर , उसकी ताक़त उसके दीन में और उसका ग़म उसके दिल में होता है।

165. إنَّ هذِهِ القُلُوبَ تَمِلُّ کما تمل الأبدانُ فَابتَغُوا لَها طَرائِفَ الحِكَمِ : (3549 )

165. दिल , बदन की तरह थक जाते हैं , उन्हें खुश करने के लिये नया ज्ञान व बुद्धिमत्ता तलाश करो।

166. إنَّ أفضَلَ الخَيرِ صَدَقَةُ السِّرِّ وَبِرُّ الوالِدَينِ وَصِلَةُ الرَّحِمِ : (3550 )

166. सब से अच्छी नेकी छिपा कर सदका देना , माँ बाप के साथ भलाई करना और सिला –ए- रहम (रिश्तेदारों के साथ मेल जोल से रहना) करना है।

167. إنَّ النّاسَ إلى صالِحِ الأدَبِ أحوَجُ مِنهُم إلَى الفِضَّةِ وَالذَّهَبِ : (3590 )

167. लोगों को सदाचार की ज़रुरत , सोने चांदी से अधिक है।

168. إنَّ حَوائِجَ النّاسِ إلَيكُم نِعمَةً مِنَ اللهِ عَلَيكُم فَاغتَنِمُوها وَلا تَمَلُّوها فَتَتَحَوَّلَ نَقَماً : (3599 )

168. तुम से लोगों की ज़रुरतों का जुडा होना , तुम्हारे लिए अल्लाह की नेमत है , उसे अच्छा समझो और उस से दुखी न हो वर्ना वह निक़मत में बदल जायेगी। (निक़मत शब्द हर प्रकार की बुराई को सम्मिलित है)

169. اِن كُنتُم تُحِبُّونَ اللهَ فَأخِرِجُوا مِن قُلُوبِكُم حُبَّ الدُّنيا : (3747 )

169. अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो अपने दिल से दुनिया की मोहब्बत निकाल दो।

170. إن تَنَزَّهُوا عَنِ المَعاصِي يُحبِبكُمُ اللهُ : (3759 )

170. अगर तुम गुनाहों से पाक हो जाओ तो अल्लाह तुम से मोहब्बत करेगा।

171. إنَّكَ إن أطَعتَ اللهَ نَجّاكَ وأصلَحَ مَثواكَ : (3806 )

171. अगर तुम अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हें निजात (मुक्ति) देगा और तुम्हारे ठिकाने को अच्छा बना देगा।

172. إنَّكَ لَن يُغنِي عَنَكَ بَعدَ المَوتِ إلاّ صالِحُ عَمَل قَدَّمتَهُ فَتَزَوَّد مِن صالِحِ العَمَلِ : (3815 )

172. मरने के बाद , तुम्हें तुम्हारे उन कार्यों के अलावा कोई चीज़ फायदा नहीं पहुंचायेगी जो तुम ने आगे भेज दिये हैं अतः नेक कामों को तुम अपना तोशा बना लो। (यात्रा के दौरान काम आने वाली हर चीज़ को तोशा कहते हैं , यहाँ पर इस बात की ओर इशारा किया गया है कि परेलोक की यात्रा के लिए अच्छे कार्यों को इकठ्ठा करो ताकि वह इस यात्रा में तुम्हारे काम आयें।)

173. اِنَّمَا العاقِلُ مَن وَعَظَتَهُ التَّجارِبُ : (3863 )

173. बुद्धिमान वह है जो अपने तजुर्बों से शिक्षा ले।

174. إنَّما سُمِّيَ العَدُوُّ عَدُوّاً لاَِنَّهُ يَعدُو عَلَيكَ فَمَن داهَنَكَ فِي مَعايِبِكَ فَهُوَ العَدُوُّ العادي عَلَيَكَ : (3876 )

174. दुश्मन को दुश्मन इस लिये कहा जाता है , क्योंकि वह तुम्हारे ऊपर अत्याचार करता है , अतः जो तुम्हें तुम्हारी बुराइयाँ बाताने से बचे , वह तुम्हारा दुश्मन है क्योंकि उसने तुम पर अत्याचार किया है।

175. إنَّما زُهدَ النّاسِ في طَلَبِ العِلمِ كَثرَةُ ما يَرَونَ مِن قِلَّةِ مَن عَمِلَ بِما عَلِمَ : (3895 )

175. जिस चीज़ ने इंसानों को ज्ञान प्राप्ति से रोका है , वह यह है कि बहुतसे देखते हैं कि अपने अपने इल्म पर अमल करने वाले अर्थात अपने ज्ञान पर क्रियान्वित होने वाले कम हैं।

176. إنَّما قَلبُ الحَدَثِ كَالأرضِ الخالِيَةِ مَهما أُلقِيَ فيها مِن كُلِّ شَيء قَبِلَتهُ : (3901 )

176. नौजवान का दिल उस ज़मीन के समान है जिस में अभी खेती न की गई हो अतः उस में जो कुछ डाला जायेगा वह उसे ही स्वीकार कर लेगा।

177. إذا صَنَعتَ مَعرُوفاً فَاستُرهُ : (3981 )

177. जब कोई नेकी करो तो उसे छिपा लो।

178. إذا صُنِعَ اِلَيكَ مَعرُوفٌ فَاذكُر : (4000 )

178. जब तुम से कोई भलाई करे तो उसे याद रखो।

179. إذا تَمَّ العَقلُ نَقَصَ الكَلامُ : (4011 )

179. जब बुद्धी पूर्ण हो जाती है तो बातें कम हो जाती हैं।

180. إذا أَضَرَّتِ النَّوافِلُ بِالفَرائِضِ فَارفُضُوها : (4015 )

180. जब मुस्तहब चीज़ें , वाजिब चीज़ों को नुक्सान पहुंचाने लगें तो उन्हें छोड़ दो।

181. إذا ظَهَرَتِ الجِناياتُ ارتَفَعَتِ البَرَكاتُ : (4030 )

181. जब बुरे काम व गुनाह खुले आम होने लगते हैं तो बरकत ख़त्म हो जाती है।

182. إذا رَأيتَ عالِماً فَكُن لَهُ خادِماً : (4044 )

182. जब आलिम को देखो तो उसकी सेवा करो।

183. إذا قامَ أحَدُكُم إِلَى الصَّلاةِ فَليُصَلِّ صَلاةَ مُوَدِّع : (4050 )

183. जब तुम में से कोई नमाज़ के लिये खड़ा हो तो इस तरह नमाज़ पढ़े जैसे वह उसकी आखरी नमाज़ है।

184. إذا أبصَرَتِ العَينُ الشَّهوَة عَمِيَ القَلبُ عَنِ العاقِبَةِ : (4063 )

184. जब आँख हवस की तरफ़ देखती है तो दिल उसके नतीजे को देखने से अंधा हो जाता हैं।

185. إذا رَاَيتَ مَظُلوماً فَاَعِنهُ عَلَى الظّالِمِ : (4068 )

185. जब किसी मज़लूम को देखो तो ज़ालिम के मुक़ाबले में उसकी मदद करो।

186. اِذا رَغِبتَ فِي المَكارِمِ فَاجتَنِبِ المَحارِمَ : (4069 )

186. अगर बुज़ुर्गी व सम्मान चाहतें हो तो हराम काम से दूर हो जाओ।

187. إذا أكرَمَ اللهُ عَبداً شَغَلَهُ بِمَحَبَّتِهِ : (4080 )

187. जब अल्लाह किसी बन्दे का आदर करता है तो उसे अपनी मोहब्बत में व्यस्त कर देता है।

188. إذا عَلَوتَ فَلا تُفَكِّر فِيمَن دُونَكَ مِنَ الجُهّالِ ولكِنِ اقتَدِ بِمَن فَوقَكَ مِنَ العُلَماءِ : (4092 )

188. जब किसी उच्चता पर पहुंचो तो अपने से नीचे के जाहिलों के बारे में न सोचो , बल्कि अपने से ऊपर वाले आलिमों का अनुसरण करो।

189. إذا رَأيتَ في غَيرِكَ خُلقاً ذَمياً فَتَجَنَّب مِن نَفسِكَ اَمثالَهُ : (4098 )

189. जब तुम किसी में कोई अख़लाकी बुराई देखो तो स्वयं को उस जैसी बुराईयों से दूर रखो।

190. إذا أرادَ اللهُ بِعَبد خَيراً ألهَمَهُ القَناعَةُ وأصَلَحَ لَه زَوجَهُ : (4115 )

190. जब अल्लाह किसी बन्दे की भलाई चाहता है तो उसके दिल में क़िनाअत (कम को अधिक समझना) डाल देता है और उसकी बीवी को नेक बना देता है।

191. إذا أرادَ اللهُ سُبحانَهُ صَلاحَ عَبد ألهَمَهُ قِلَّةَ الكَلامِ وَقِلَّةَ الطَّعامِ وَقِلَّةَ المَنامِ : (4117 )

191. जब अल्लाह किसी बन्दे का सुधार व भलाई चाहता है तो उसके दिल में कम बोलने , कम खाने , कम सोने की बात डाल देता है।

192. اِذا هَمَمتَ بِآمر فَاجتَنِب ذَميمَ العَواقِبِ فِيهِ : (4119 )

192. जब किसी काम का इरादा करो तो उसके बुरे नतीजे से बचो।

193. إذا سَأَلتَ فَاسأل تَفَقُّهاً وَلا تَسأَل تَعَنُّتاً : (4147 )

193. जब कोई सवाल पूछो तो समझने व जानने के लिये पूछो , दूसरों का इम्तेहान लेने के लिये नहीं।

194. إذا كَتَبتَ كِتاباً فَأَعِد فيهِ النَّظَرَ قَبلَ خَتمِهِ فَإنَّما تَختِمُ عَلى عَقِلِكَ : (4167 )

194. जब तुम कोई चीज़ लिखो तो उस पर मोहर लगाने से पहले उसे एक बार फिर पढ़ कर देख लो क्योंकि तुम अपनी बुद्धी पर मोहर लगा रहे हो।

195. إذا رَغِبتَ في صَلاحِ نَفسِكَ فَعَلَيكَ بِالاِقتِصادِ وَالقُنُوعِ وَالتَّقَلُّلِ : (4172 )

195. अगर स्वयं को सुधारना चाहते हो तो मयानारवी (न कम न अधिक) से खर्च करो , जो मिले उस पर खुश रहो और इच्छाओं को कम कर दो।