मासूमीन की अनमोल हदीसें

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मासूमीन की अनमोल हदीसें लेखक:
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: हदीस

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मासूमीन की अनमोल हदीसें

मासूमीन की अनमोल हदीसें

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

तीसरा भाग

196. بِحُسنِ العِشرَةِ تَدوُمُ المَوَدَّةُ : (4200 )

196. अच्छे व्यवहार से मोहब्ब्त मज़बूत होती है।

197. بِالعَدلِ تَتَضاعَفُ البَرَكاتُ : (4211 )

197. इन्साफ से बरकतें दोगुनी हो जाती हैं।

198. بِالدُّعاءِ يُستَدفَعُ البَلاءُ : (4240 )

198. दुआ से , विपत्तियाँ दूर होती हैं।

199. بِحُسنِ الاَخلاقِ يَطيبُ العَيشُ : (4263 )

199. अच्छे अखलाक से जीवन आनंन्दायक बनता है।

200. بِصِحَّةِ المِزاجِ تُوجَدُ لَذَّةُ الطَّعمِ : (4289 )

200. स्वास्थ सही होता है जो खाने के मज़े का एहसास होता है।

201. بِحُسنِ العَمَلِ تُجنى ثَمَرَةُ العِلمِ لا بِحُسنِ القَولِ : (4296 )

201. इल्म का फल , अच्छे अमल से मिलता है , अच्छी बातों से नहीं।

202. بِالتَّوبَةِ تُمَحَّصُ السَّيِّئاتُ : (4324 )

202. तौबा से गुनाह धुल जाते हैं।

203. بِالتَّعَبِ الشَّديدِ تُدرَكُ الدَّرَجاتُ الرَّفيعَةُ وَالرّاحَةُ الدّائِمَةُ : (4345 )

203. कठिन परिश्रम के द्वारा ऊँचे पद और सदैव का आराम प्राप्त करो।

204. بِادرِ الفُرصَةَ قَبلَ اَن تَكُونَ غُصَّةَ : (4362 )

204. अवसर से फ़ायदा उठाओ , इससे पहले कि उसके हाथ से निकल जाने के बाद अफ़सोस करो।

205. بِادِرُوا قَبلَ قُدُومِ الغائِبِ المُنتَظَرِ : (4368 )

205. जल्दी करो , उस ग़ायब के आने से पहले जिसका इन्तेज़ार हो रहा है।

206. بادِر شَبابَكَ قَبلَ هَرَمِكَ وَصِحَّتَكَ قَبلَ سُقمِكَ : (4381 )

206. अपनी जवानी से , बुढ़ापे से पहले और अपनी सेहत से , बीमारी से पहले फायदा उठाओ।

207. بِرُّ الرَّجُلِ ذَوَيَ رَحِمِهِ صَدَقَةٌ : (4427 )

207. मर्द का , अपने रिशतेदारों के साथ भलाई करना , (एक प्रकार का) सदका हैं।

208. بُكاءُ العَبدِ مِن خَشيَةِ اللهِ يُمَحِّصُ ذُنُوبَهُ : (4432 )

208. बंदे का अल्लाह से डर कर रोना , गुनाहों को खत्म कर देता है।

209. باكِرُوا فَالبَرَكَةُ فِي المُباكَرَةِ وَشاوِرُوا فَالنُّجحُ فِي المُشاوَرَةِ : (4441 )

209. सुबह सवेरे कमाने खाने के लिये निकलो , सुबह के काम में बरकत होती है और मशवरा करो क्योंकि मशवरे में सफलता है।

210. بَرُّوا آباءَكُم يَبَرَّكُم أبناؤُكُم : (4448 )

210. अपने माँ बाप के साथ भलाई करो ताकि तुम्हारी औलाद तुम्हारे साथ भलाई करे।

211. بَينَكُم وَبَينَ المَوعِظَةِ حِجابٌ مِنَ الغَفلَةِ وَالغِرَّةِ : (4450 )

211. तुम्हारे और नसीहत के बीच ग़फ़लत व अचेतना के पर्दे हैं।

212. تَضييعُ المَعرُوفِ وَضعُهُ فِي غَيرِ عَرُوف : (4470 )

212. किसी ऐसे (इंसान) के साथ भलाई करना जो उस भलाई के महत्व को न जानता हो , उस भलाई को बर्बाद करना है।

213. تَقَرُّبُ العَبدِ إلَى اللهِ سُبحانَهُ بِإخلاصِ نِيَّتِهِ : (4477 )

213. बन्दा अल्लाह से ख़ालिस नीयत के साथ क़रीब होता है।

214. تَمامُ العِلمِ العَمَلُ بِمُوجَبِهِ : (4482 )

214. ज्ञान की पूर्णता , उसके अनुसार कार्य करना है।

215. تَهويِنُ الذَّنبِ اَعظَمُ مِن رُكُوبِ الذِّنبِ : (4490 )

215. गुनाह को छोटा समझना , गुनाह करने से भी बड़ा (गुनाह) है।

216. تَدَبَّرُوا آياتِ القُرآنِ وَاعتَبِرُوا بِهِ فَإنَّهُ أبلَغُ العِبَرِ : (4493 )

216. कुरआन की आयतों पर चिंतन करो और उससे शिक्षा (नसीहत) लो क्योंकि वह बहुत अधिक शिक्षाएं देने वाला हैं।

217. تَركُ جَوابِ السَّفيهِ أبلَغُ جَوابِهِ : (4498 )

217. मुर्ख की बात का जवाब न देना ही उसका सब से अच्छा जवाब है।

218. تَمَسَّك بِكُلِّ صَدِيق أفادَتكَهُ الشِّدَّةُ : (4508 )

218. सब से दोस्ती करो , वह कठिन समय में तुम्हारे काम आयेंगे।

219. تَفَكَّر قَبلَ أن تَعزِمُ وَشاور قَبلَ أن تُقدِمَ وَتَدَبَّر قَبلَ أن تَهجُمَ : (4545 )

219. (किसी काम का) इरादा करने से पहले अच्छी तरह विचार करो , उसे शुरु करने से पहले मशवरा करो और काम में हाथ डालने से पहले उसके परिणाम पर ध्यान दो।

220. تَوقَّوا البَردَ في أوَّلِهِ وَتَلَقَّوهُ فِي آخِرِهِ، فَإنَّهُ يَفعَلُ فِي الأبدانِ كَما يَفعَلُ فِي الأغصانِ أوَّلُهُ يُحرِقُ وَآخِرُهُ يُورِقُ : (4551 )

220. आती हुई सर्दी से बचो और जाती हुई सर्दी को गले से लगाओ , क्योंकि सर्दी शरीर के साथ वही करती है जो पेड़ की डालियों के साथ करती है , शुरु में उन्हें सुखा देती है और अंतिम समय में उन्हें हरा भरा बना देती है।

221. تَجاوَز عَنِ الزَّلَلِ وَأقِلِ العَثَراتِ تُرفَع لَكَ الدَّرَجاتُ : (4566 )

221. ग़लती देख कर आँख बन्द कर लो और दूसरे की ग़लती को अनदेखा कर दो ताकि तुम्हारा मान सम्मान बढ़े।

222. تَعجيِلُ البِرِّ زِيادَةٌ فِي البِرِّ : (4568 )

222. अच्छे काम में जल्दी करना , अच्छाई को बढ़ाना है।

223. تَدارَك في آخِرِ عُمرِكَ ما أضَعتَهُ فِي أوَّلِهِ تَسعَد بِمُنقَلَبِكَ : (4572 )

223. जिस चीज़ को अपनी उम्र के पहले हिस्से में बर्बाद किया है उसे आखरी हिस्से में पूरा कर लो ताकि लौटते समय (अर्थात मौत के वक्त) सफल बन सको।

224. ثَمَرَةُ الحَزْمِ السَّلامَةُ : (4590 )

224. दूर दर्शिता का परिणाम , सुरक्षित रहना है।

225. ثَمَرَةُ العِفَّةِ الصِّيانَةُ : (4593 )

225. पाक दामन रहने का नतीजा , सुरक्षा है।

226. ثَمَرَةُ التَّواضُعِ المَحَبَّةُ : (4613 )

226. इन्केसारी (दूसरों के सम्मुख स्वयं को छोटा समझना) का नतीजा , मोहब्बत है।

227. ثَمَرَةُ التَّجرِبَةِ حُسنُ الاِختِيارِ : (4617 )

227. अनुभव का परिणाम , उचित चुनाव है।

228. ثَمَرَةُ القَناعَةِ الإجمالُ فِي المُكتَسَبِ وَالعُزُوفُ عَنِ الطَّلَبِ : (4634 )

228. क़िनाअत (निस्पृहता) का परिणाम , कमाने खाने में मध्य क्रम को अपनाना और माँगने को बुरा समझना है।

229. ثَلاثٌ لايُستَحيى مِنهُنَّ : خِدمَةُ الرَّجُلِ ضَيفَهُ وَقِيامُهُ عَن مَجلِسِهِ لاَِبيهِ وَمُعَلِّمِهِ وَطَلَبُ الحَقِّ وَإن قَلَّ : (4666 )

229. तीन चीज़ों से नहीं शर्माना चाहिये: मेहमान की आव भगत से , बाप और उस्ताद के आदर में अपनी जगह से खड़े होने से और अपना अधिकार माँगने से चाहे वह कम ही हो।

230. ثَلاثَةٌ تَدُلُّ عَلى عُقُولِ أربابِها : الرَّسُولُ وَالكِتابُ وَالهَدِيَّةُ : (4681 )

230. तीन चीज़े अपने मालिक की बुद्धिमत्ता पर तर्क करती हैं: दूत , पत्र और उपहार।

231. ثَلاثٌ يُوجِبنَ المَحَبَّةَ : حُسنُ الخُلقِ وَحُسنُ الرِّفقِ وَالتَّواضُعُ : (4684 )

231. तीन चीज़ें मोहब्बत का कारण बनती हैं: अच्छा अख़लाक़ , विनम्रता और दूसरों के सामने स्वयं को छोटा समझना।

232. ثابِرُوا عَلى صَلاحِ المُؤمِنِينَ وَالمُتَّقِينَ : (4703 )

232. मोमिन व मुत्तकीन की भलाई को हमेशा नज़र में रखो।

चौथा भाग

233. جالِسِ العُلَماءَ تَزدَد عِلماً : (4721 )

233. ज्ञानियों के पास बैठो ताकि तुम्हारा ज्ञान बढ़े।

234. جُودُوا بِما يَفنى تَعتاضُوا عَنهُ بِما يَبقى : (4732 )

234. (इस दुनिया में) ख़त्म होने वाली चीज़ों को दान कर दो (ताकि आख़ेरत में) उनके बदले में कभी खत्म न होने वाली चीज़े पाओ।

235. جاوِر مَن تَأمَنُ شَرَّهُ، وَلا يَعدُوكَ خَيرُه : (4737 )

235. तुम उसके पड़ोस में रहो , जिसकी भलाई तो तुम तक पहुँचे परन्तु उसकी बुराई तुम से दूर रहे।

236. جَمالُ العِلمِ نَشرُهُ وَثَمَرَتُهُ العَمَلُ بِهِ، وَصِيانَتُهُ وَضعُهُ فِي أهلِهِ : (4754 )

236. ज्ञान की सुन्दरता उसका प्रसारण और उसका फल उस पर क्रियान्वित होना है , उसकी सुरक्षा उसे किसी योग्य के हवाले करना है।

237. جِماعُ المُرُؤَةِ أن لا تَعمَلَ فِي السِّرِّ ما تَستَحيي مِنهُ فِي العَلانِيَةِ : (4785 )

237. सारी मर्दांगी इस में है कि जिसे खुले आम करने में शर्माते हों उसे छुप कर भी न करो।

238. حُسنُ الظَّنِّ راحَةُ القَلبِ وَسَلامَةُ الدِّينِ : (4816 )

238. अच्छा गुमान , दिल का चैन और दीन की सलामती है।

239. حُسنُ اللِّقاءِ يَزيِدُ فِي تَأَكُّدِ الإخاءِ : (4827 )

239. अच्छा व्यवहार , भाई चारे को बढ़ाता है।

240. حُسنُ الاِستِدراكِ عُنوانُ الصَّلاحِ : (4867 )

240. अच्छाई की ओर बढ़ना , सुधार की निशानी है।

241. حُبُّ الاِطراءِ وَالمَدحِ مِن اَوثَقِ فُرَصِ الشَّيطانِ : (4877 )

241. अतिशयोक्ति व प्रशंसा को पसंद करने की स्थिति , शैतान के लिए सब से अच्छा मौक़ा है।

242. حَلاوَةُ الظَّفَرِ تَمحُو مَرارَةَ الصَّبرِ : (4882 )

242. सफलता की मिठास , सब्र की कड़वाहट को मिटा देती है।

243. حِراسَةُ النِّعَمِ فِي صِلَةِ الرَّحِمَ : (4929 )

243. नेमतों का बाक़ी रहना , सिला ए रहम में (निहित) है।

244. حَياءُ الرِّجُلِ مِن نَفسِهِ ثَمَرَةُ الاِيمانِ : (4944 )

244. मर्द का अपनी आत्मा से शर्माना , ईमान का नतीजा है।

245. خَيرُ اَموالِكَ ما وَقى عِرضَكَ : (4958 )

245. तुम्हारा सब से अच्छा माल वह है जो तुम्हारे मान सम्मान की रक्षा करे।

246. خَيرُ الضِّحكِ التَّبسُّمُ : (4964 )

246. सब से अच्छी हँसी , मुस्कुराहट है।

247. خَيرُ مَن شاوَرتَ ذَوُو النُّهى وَالعِلمِ، وَاُولُوا التَّجارِبِ وَالحَزمِ : (4990 )

247. मशवरा करने के लिये सब से अच्छे लोग: बुद्धिमान , ज्ञानी , अनुभवी और दूरदर्शी लोग हैं।

248. خَيرُ الإخوانِ مَن لَم يَكُن عَلى إخوانِهِ مُستَقصِياً : (4997 )

248. सब से अच्छे भाई वह हैं जो अपने भाईयों से अधिक उम्मीदें न रखते हों और कामों में सख्ती न करते हों।

249. خَيرُ إخوانِكَ مَن سارَعَ إلَى الخَيرِ وَجَذَبَكَ إلَيهِ وَأمَرَكَ بِالبِّرِ وَأعانَكَ عَلَيهِ : (5021 )

249. तुम्हारा सब से अच्छा भाई वह है जो नेक कामों की तरफ़ दौडता हो और तुम्हें भी उन की तरफ़ खैंचता हो और नेक कामों का हुक्म देता हो और उनको करने में तुम्हारी मदद करता हो।

250. خزيرُ ما وَرَّثَ الآباءُ الابناءَ الأدَبَ : (5036 )

250. सब से अच्छी चीज़ जो बाप औलाद के लिये विरसे में छोड़ते हैं , अदब है।

251. خُذِ القَصدَ فِي الاُمُورِ، فَمَن اَخَذَ القَصدَ خَفَّت عَلَيهِ المُؤَنَ : (5042 )

251. कामों में बीच का रास्ता अपनाओ , जो बीच का रास्ता अपनाता है , उसका खर्च कम हो जाता है।

252. خُذِ الحِكمَةَ مِمَّن أتاكَ بِهِا، وَانظُر إلى ما قالَ وَلا تَنظُر إلى مَن قالَ : (5048 )

252. तुम्हें जो कोई भी बुद्घिमत्ता दे , ले लो , यह देखो कि क्या कह रहा है यह न देखो कि कौन कह रहा है।

253. خَيرُ الاَعمالِ إعتِدالُ الرَّجاءِ وَالخَوفِ : (5055 )

253. सब से अच्छे काम , उम्मीद और डर का बराबर (एहसास) है।

254. خالِف مَن خالَفَ الحَقَّ اِلى غَيرِهِ، وَدَعهُ وَما رَضِىَ لِنَفسِهِ : (5057 )

254. जो हक़ का विरोध करे उसका विरोध करो और वह जिस पर राज़ी हो , उसे उसी पर छोड़ दो।

255. خالِطُوا النّاسَ مُخالَطَةُ إن مِتُّم بَكَوا عَلَيكُم وَإن غِبتُم حَنُّوا إلَيكُم : (5070 )

255. लोगों से इस प्रकार व्यवहार करो कि अगर तुम मर जाओ तो वह तुम पर रोयें और अगर तुम ग़ायब हो जाओ तो वह तुम से मिलने की इच्छा करें।

256. خُلُوُّ الصَّدرِ مِنَ الغِلِّ وَالحَسَدِ مِن سَعادَةِ العَبدِ : (5083 )

256. सीने का ईर्ष्या व कीनेः से खाली होना , बन्दे की भाग्यशालिता है।

257. خَوافِي الأخلاقِ تَكشِفُهَا المُعاشَرَةُ : (5099 )

257. एक साथ रहने से छुपी हुई आदतें सामने आ जाती है।

पाँचवां भाग

258. دارِ النّاسَ تَأمَن غَوائِلُهُم، وَتَسلَم مِن مَكائِدِهِم : (5128 )

258. लोगों से मोहब्बत करो ताकि उनके उपद्रव से सुरक्षित और उनकी बुराइयों से बचे रहो।

259. دَع ما لايَعنِيكَ، وَاشتَغِل بِمُهِمِّكَ الَّذي يُنجِيَكَ : (5133 )

259. जो चीज़ तुम्हारे काम न आये , उसे छोड़ दो और जो चीज़ तुम्हें मुक्ति दे उस में व्यस्त हो जाओ।

260. ذِكرُ اللهِ مَطرَدَةُ الشَّيطانِ : (5162 )

260. अल्लाह की याद , शैतान को दूर करती है।

261. ذُروَةُ الغاياتِ لا يَنالُها إلاّ ذَوُوا التَّهذيبِ وَالمُجاهَداتِ : (5190 )

261. सदाचारी और कोशिश करने वाले के अतिरिक्त कोई भी अपने उद्देश्य की चोटी को नहीं छू पाता।

262. ذُو الكَرَمِ جَميلُ الشِّيَمِ مُسد لِلنِّعَمِ وَصُولٌ لِلرَّحِمِ : (5196 )

262. करीम , वह है जिस का अखलाक अच्छा हो , हर नेमत के लिये उचित हो और सिल ए रहम करता हो।

263. ذَوُوا العُيُوبِ يُحِبُّونَ إشاعَةَ مَعايِبِ النّاسِ لِيَتّسِعَ لَهُمُ العُذرُ فِي مَعايِبِهِم : (5198 )

263. बुरे लोग यह चाहते हैं कि लोगों की बुराइयां आम हो जायें ताकि उन्हें अपनी बुराइयों के बारे में और अधिक बहाना मिले।

छटा भाग

264. رَحِمَ اللهُ امرَءٌ عَرَفَ قَدرَهُ وَلَم يَتَعَدَّ طَورَهُ : (5204 )

264. अल्लाह रहमत करे उस मर्द पर जो अपने महत्व को पहचाने और अपनी हद से आगे न बढ़े।

265. رَحِمَ اللهُ امرءً أحيا حَقَّاً وَأماتَ باطِلاً وَأدحَضَ الجَورَ وَأقامَ العَدلَ : (5217 )

265. अल्लाह रहमत करे उस इंसान पर जो हक़ (सत्यता) को ज़िन्दा करे और बातिल (असत्य) को मौत के घाट उतार दे , अत्यचार को मिटाये और न्याय को फैलाये।

266. رَأسُ الفَضائِلِ مِلكُ الغَضَبِ وَاِماتَةُ الشَّهوَةِ : (5237 )

266. श्रेष्ठता की जड़ गुस्से पर कंट्रोल करना और हवस को मारना है।

267. رَأسُ الجَهلِ مُعاداةُ النّاسِ : (5247 )

267. लोगों से दुश्मनी करना , मूर्खता की जड़ है।

268. رَأسُ السِّياسَةِ استِعمالُ الرِّفقِ : (5266 )

268. मोहब्बत से काम लेना , सियासत की जड़ है।

269. رُبَّ مُتَوَدِّد مُتَصَنِّع : (5277 )

269. बहुत सी दोस्तियाँ दिखावटी होती है।

270. رُبَّ كَلِمَة سزلَبَت نِعمَةً : (5282 )

270. बहुत सी बातें , नेमत को रोक देती हैं।

271. رُبَّ كَلام جَوابُهُ السُّكُوتُ : (5303 )

271. बहुत सी बातों का जवाब , चुप रहना है।

272. رُبَّ واعِظِ غَيرُ مُرتَدِع : (5361 )

272. बहुत से नसीहत करने वाले ऐसे हैं जो खुद को गुनाहों से नहीं रोकते।

273. رَغبَتُكَ فِي زاهِد فيِكَ ذُلٌّ : (5383 )

273. जो तुम से दूर रहना चाहता है , उस से मिलना अपमान है।

274. رَدعُ النَّفسِ عَن زَخارِفِ الدُّنيا ثَمَرَةُ العَقلِ : (5399 )

274. अपनी आत्मा को इस दुनिया की शोभाओं से दूर रखना , बुद्धी का परिणाम है।

275. رَوِّ قَبلَ العَمَلِ تَنجُ مِنَ الزَّلَلِ : (5401 )

275. काम करने से पहले सोचो , ताकि गलतियों से बच सको।

276. رَضِيَ بِالذُّلِ مَن كَشَفَ ضُرَّهُ لِغَيرِهِ : (5414 )

276. वह इंसान अपमानित होने पर राज़ी हो गया , जिसने अपनी परेशानियों को दूसरों पर प्रकट कर दिया।

277. رَأيُ الرَّجُلِ عَلى قَدرِ تَجرِبَتِهِ : (5426 )

277. हर इंसान की राय उसके अनुभव के अनुसार होती है।

278. رِضَا المَرءِ عَن نَفسِهِ بُرهانُ سَخافَةِ عَقلِهِ : (5441 )

278. आदमी का स्वयं से राज़ी होना , कम बुद्धी की दलील है।

279. زَكاةُ الجَمالِ العَفافُ : (5449 )

279. खूब सूरती की ज़कात , पाक दामन रहना है।

280. زِلَّةُ العالِمِ كَانكِسارِ السَّفينَةِ، تَغرَقُ وَتُغَرَّقُ مَعَها غَيرَها : (5474 )

280. ज्ञानी की ग़लती , किश्ती के टूटने के समान है , वह स्वयं भी डूबती है और दूसरों को भी डुबाती है।

281. زِيادَةُ الشُّحِّ تَشينُ الفُتُوَّةَ وَتُفسِدُ الأُخُوَّةَ : (5508 )

281. अधिक कंजूसी , बहादुरी को ख़त्म और भाई चारे को ख़राब कर देती है।

सातवां भाग

282. سَبَبُ الاِئتِلافِ الوَفاءُ : (5511 )

282. वफा , मोहब्बत का कारण बनती है।

283. سَبَبُ المَحَبَّةِ البِشرُ : (546 )

283. प्रफुल्लता , मोहब्बत का कारण बनती है।

284. سِلاحُ المُؤمِنِ الدُّعاءُ : (5559 )

284. दुआ , मोमिन का हथियार है।

285. سُوسُوا أنفُسَكُمِ بِالوَرَعِ وَداوُوا مَرضاكُمِ بِالصَّدَقَةِ : (5588 )

285. पाक दामनी के द्वारा अपनी जान की रक्षा करो और अपने बीमारों का सदक़े से इलाज करो।

286. سِياسَةُ العَدلِ ثَلاثٌ : لِينٌ في حَزم، وَاستِقصاءٌ في عَدل، وَإفضالٌ في قَصد : (5592 )

286. न्याय पर आधारित सियासत के तीन स्तम्भ हैं , दूर दर्शिता के साथ नर्मी , न्याय को अंतिम सीमा तक पहुंचाना , और मध्य क्रम में लोगों को धन देना अर्थात न बहुत कम न अत्याधित।

287. سَل عَنِ الجارِ قَبلَ الدّارِ : (5598 )

287. घर (खरीदने) से पहले पड़ोसी के बारे में पूछ ताछ करो।

288. سالِمِ النّاسَ تَسلَم، وَاعمَل لِلآخِرَةِ تَغنَم : (5605 )

288. लोगों के साथ मोहब्बत से रहो ताकि सुरक्षित रहो और आख़ेरत के लिये काम करो ताकि तुम्हें ग़नीमत मिले।

289. سَلامَةُ العَيشِ فِي المُداراةِ : (5607 )

289. ज़िन्दगी का आराम , प्यार मोहब्बत में है।

290. سَيِّئَةُ تَسُوؤُكَ خَيرٌ مِن حَسَنَة تُعجِبُكَ : (5615 )

290. जो गुनाह तुम्हें ग़मगीन कर दे , वह उस नेकी से अच्छा है जो तुम में घमंड पैदा कर दे।

291. سَمعُ الاُذُنِ لايَنفَعُ مَعَ غَفَلَةِ القَلبِ : (5618 )

291. दिल के ग़ाफ़िल होते हुए , कानों से सुनने का कोई फ़ायदा नहीं है।

292. سِرُّكَ اَسيِرُكَ فَإن اَفشَيتَهُ صِرتَ اَسيرَهُ : (5630 )

292. तुम्हारा राज़ , तुम्हारा कैदी है , अगर तुम ने उसे खोला तो तुम उसके कैदी बन जाओगे।

293. سُوءُ الخُلقِ نَكَدُ العَيشِ وَعَذابُ النَّفسِ : (5639 )

293. बुरा अखलाक ज़िन्दगी के लिए कठिनाई और जान के लिए अज़ाब है।

294. سَلُوا القُلُوبَ عَنِ المَوَدّاتِ فَإنَّها شَواهِدُ لا تَقبَلُ الرُّشا : (5641 )

294. दोस्ती व मोहब्बत को दिलों से पूछो , क्योंकि दिल ऐसा गवाह हैं जो रिशवत नहीं लेते।

295. شُكرُ المُؤمِنِ يَظهَرُ فِي عَمَلِهِ : (5661 )

295. मोमिन का शुक्र , उसके कार्यों से प्रकट होता है।

296. شَرُّ النّاسِ مَن لا يَقبَلُ العُذرَ، وَلا يُقيِلُ الذَّنبَ : (5685 )

296. सब से बुरा इंसान वह हैं जो किसी मजबूरी को क़बूल नही करता और गलतियों को माफ नहीं करता।

297. شَرُّ العَمَلِ ما أفسَدتَ بِهِ مَعادَكَ : (5695 )

297. सब से बुरा काम वह है , जिस से तुम अपनी आख़ेरत बर्बाद कर लो।

298. شَرُّ النّاسِ مَن يَرى أَنَّهُ خَيرُهُم : (5701 )

298. सब से बुरा इंसान वह है , जो स्वयं को दूसरों से अच्छा समझे।

299. شَرُّ النّاسِ مَن لا يُبالِي أن يَراهُ النّاسُ مُسِيئاً : (5702 )

299. सब से बुरा इंसान वह हैं , जो इस बात की परवाह न करें कि लोग उसे गुनाहगार के रूप में देखें।

300. شَرُّ اَصدِقائِكَ مَن تَتَكَلَّفُ لَهُ : (5706 )

300. तुम्हारा सब से बुरा दोस्त वह है , जिसकी वजह से तुम किसी मुसिबत में फँस जाओ।

301. شَرُّ الاَوطانِ مالَم يَأمَن فيهِ القُطّانُ : (5712 )

301. सब से बुरा वतन वह है , जिसमें रहने वाले लोग सुरक्षित न हों।

302. شَرُّ النّاسِ مَن لا يُرجى خَيرُهُ وَلا يُؤمَنُ شَرُّهُ : (5732 )

302. सब से बुरे लोग वह है जिन से किसी भलाई की उम्मीद न हो और उनकी बुराई से न बचा जा सकता हो।

303. شَرُّ الاَصحابِ السَّريعُ الاِنقِلابِ : (5742 )

303. सब से बुरे साथी वह हैं जो जल्दी ही रंग बदल दें।

304. شاوِر قَبلَ أن تَعزِمُ، وَفَكِّر اَن تُقدِمَ : (5754 )

304. इरादा करने से पहले मशवरा करो और काम शुरु करने से पहले सोचो।

305. شَيئانِ لاَيعرِفُ فَضلَهُما اِلاَّ مَن فَقَدَهُما : الشَّبابُ وَالعافِيَةُ : (5764 )

305. दो चीज़ें ऐसी हैं जिनके महत्व को केवल वही जानता है , जिसके पास से वह चली जाती है: जवानी और स्वास्थ।

306. شَيئانِ لا يُوزَنُ ثَوابُهُما : اَلعَفوُ وَالعَدلُ : (5769 )

306. दो चीज़ें ऐसी हैं जिनके सवाब (पुणय) का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है: क्षमा और न्याय।

307. شارِكُوا الَّذِي قَد أقبَلَ الرِّزقُ فَإنَّهُ أجدَرُ بِالحَظِّ وَأخلَقُ بِالغِنى : (5790 )

307. जिसकी ओर धन बढ़ जाये , उसके साझीदार बन जाओ , क्योंकि वह लाभान्वित होने के लिए योग्य व मालदारी के लिए उपयुक्त है।