मासूमीन की अनमोल हदीसें

मासूमीन की अनमोल हदीसें28%

मासूमीन की अनमोल हदीसें लेखक:
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: हदीस

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मासूमीन की अनमोल हदीसें

मासूमीन की अनमोल हदीसें

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


1

बारहवां भाग

430. مَن أنصَفَ أُنصِفَ : (7692 )

430. जो इंसाफ़ करता है , उसके साथ इंसाफ़ होता है।

431. مَن أحسَنَ المَسأَلَةَ أُسعِفَ : (7693 )

431. जो अच्छे ढंग से माँगता है , उसे मिलता है।

432. مَن مَدَحَكَ فَقَد ذَبَحَكَ : (7766 )

432. जिसने तुम्हारी प्रशंसा की , उसने तुम्हें क़त्ल कर दिया।

433. مَن دَخَلَ مَداخِلَ السُّوءِ اتُّهِمَ : (7778 )

433. जो बुरी जगह जाता है , उस पर आरोप लगते हैं।

434. مَن نَسِيَ اللهَ أنساهُ نَفسَهُ : (7797 )

434. जो अल्लाह को भूल जाता है , अल्लाह उसे ख़ुद उससे भुला देता है।

435. مَن أساءَ خُلقَهُ عَذَّبَ نَفسَهُ : (7798 )

435. जो स्वयं को दुष्ट बना लेता है , वह कठिनाईयाँ झेलता है।

436. مَن عَجِلَ كَثُرَ عِثارُهُ : (7838 )

436. जो जल्दी करता है , उसकी ग़लतियाँ अधिक होती हैं।

437. مَن أحَبَّ شَيئاً لِهِجَ بِذِكرِهِ : (7851 )

437. जो जिस चीज़ से मोहब्बत करता , उसकी ज़बान पर उसका नाम रहता है।

438. مَن قَبَضَ يَدَهُ مَخافَةَ الفَقرِ فَقَد تَعَجَّلَ الفَقرَ : (7877 )

438. जो निर्धनता के डर से अपने हाथ को (दान देने से) रोक ले , समझो वह तेज़ी के साथ निर्धनता की ओर बढ़ रहा है।

439. مَن نَظَرَ فِي العَواقِبِ سَلِمَ : (7921 )

439. जो (किसी काम के) परिणाम पर विचार करता है , वह सुरक्षित रहता है।

440. مَن جَهِلَ مَوضِعَ قَدَمِهِ زَلَّ : (7920 )

440. जो अपने रास्ते को न जानता हो , वह भटक जाता है।

441. مَن وَعَظَكَ أحسَنَ إلَيكَ : (7924 )

441. जिसने तुम्हें नसीहत की , उसने तुम्हारे साथ भलाई की।

442. مَن وافَقَ هَواهُ خالَفَ رُشدَهُ : (7957 )

442. जिसने अपनी इच्छाओं का समर्थन किया , उसने अपने विकास को अवरुद्ध किया।

443. مَن أحسَنَ إلى جِيرانِهِ كَثُرَ خَدَمُهُ : (7967 )

443. जो अपने पड़ौसियों के साथ भलाई करता है , उसके सेवक ज़्यादा हो जाते हैं।

444. مَن أظهَرَ عَزمَهُ بَطَلَ حَزمُهُ : (7980 )

444. जो अपने इरादे को प्रकट कर देता है , उसकी दूरदर्शिता समाप्त हो जाती है।

445. مَن غَشَّ نَفسَهُ لَم يَنصَح غَيرَهُ : (8008 )

445. जो स्वयं को धोखा देता है , वह दूसरों को नसीहत नही कर सकता।

446. مَن عُرِفَ بِالكِذبِ لَم يُقبَل صِدقُهُ : (8010 )

446. जो झूठा मशहूर हो जाता है , उसकी सच्ची बात भी स्वीकार नही की जाती।

447. مَن أعمَلَ اجتِهادَهُ بَلَغَ مُرادَهُ : (8058 )

447. जो कोशिश व मेहनत करता है , वह अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है।

448. مَن ظَنَّ بِكَ خَيراً فَصَدِّق ظَنَّهُ : (8066 )

448. जो तुम्हारे बारे में अच्छा विचार रखता है , (तुम अपने व्यवहार से) उसके विचार को सत्य कर दिखाओ।

449. مَن رَجاكَ فَلا تُخَيِّب أمَلَهُ : (8067 )

449. जो तुम से कोई उम्मीद रखता हो , उसे ना उम्मीद न करो।

450. مَن عَلِمَ أنَّهُ مُؤاخَذٌ بِقَولِهِ فَليُقَصِّر فِي المَقالِ : (8124 )

450. जिसे यह पता हो कि उससे उसकी बात चीत के बारे में पूछ ताछ की जायेगी , उसे कम बोलना चाहिए।

451. مَن خَلا بِالعِلمِ لَم تُوحِشهُ خَلوَةٌ : (8125 )

451. जो ज्ञान के साथ रहता है , उसे कोई तन्हाई नही डरा सकती।

452. مَن تَسَلَّى بِالكُتُبِ لَم تَفُتهُ سَلَوةٌ : (8126 )

452. जिसे किताबों से आराम मिलता है , समझो उसने आराम का कोई साधन नही खोया है।

453. مَن أُعطِىَ الدُّعاءَ لَم يُحرَمِ الإجِابَةَ : (8143 )

453. जिसे दुआ की तौफ़ीक़ दी जाती है , उसे दुआ के क़बूल होने से महरूम (वंचित) नही रखा जाता।

454. مَن جانَبَ الإخوانَ عَلى كُلِّ ذَنبِ قَلَّ أصدِقاؤُهُ : (8166 )

454. जो अपने दोस्तों से , उनकी ग़लतियों की वजह से अलग हो जाता है , उसके दोस्त कम हो जाते हैं।

455. مَن أبانَ لَكَ عَيبَكَ فَهُوَ وَدُودُكَ : (8210 )

455. जो तुम्हें , तुम्हारी बुराइयों के बारे में बताये , वह तुम्हारा दोस्त है।

456. مَن عَرَفَ النّاسَ لَم يَعتَمِد عَلَيهِم : (8232 )

456. जो लोगों को जान जाता है , उन पर भरोसा नहीं करता।

457. مَن سَألَ فِي صِغَرِهِ أجابَ فِي كِبَرِهِ : (8273 )

457. जो बचपन में पूछता है , वह बड़े होकर जवाब देता है। अर्थात जो बचपन में ज्ञान प्राप्त करता है , वह बड़ा होने पर लोगों के प्रश्नों के उत्तर देता है।

458. مَن قَرَعَ بابَ اللهِ فُتِحَ لَهُ : (8292 )

458. जो अल्लाह के दरवाज़े को खटखटाता है , उसके लिए दरवाज़ा खुल जाता है।

459. مَن شَرُفَت هِمَّتُهُ عَظُمَت قِيمَتُهُ : (8320 )

459. जिसमें जितनी अधिक हिम्मत होती है , उसका उतना ही अधिक महत्व होता है।

460. مَن أطاعَ هَواهُ باعَ آخِرَتَهُ بِدُنياهُ : (8354 )

460. जिसने अपनी हवस व इच्छाओं का अनुसरण किया , उसने अपनी आख़ेरत को दुनिया के बदले बेंच दिया।

461. مَن حُسُنَت عِشرَتُهُ كَثُرَ إخوانُهُ : (8392 )

461. जिसका व्यवहार अच्छा होता है , उसके भाई (दोस्त) अधिक होते हैं।

462. مَنِ اتَّجَرَ بِغَيرِ عِلم فَقَدِ ارتَطَمَ فِي الرِّبا : (8401 )

462. जो ज्ञान (फ़िक़्ह) को जाने बिना व्यापार करता है , वह सूद में डूब जाता है।

463. مَن قالَ مالا يَنبَغي سَمِعَ مالا يَشتَهِي : (8417 )

463. जो अनुचित बात कहता है , वह बुरी भली सुनता है।

464. مَن كَظَّتهُ البِطنَةُ حَجَبَتهُ عَنِ الفِطنَةِ : (8459 )

464. जो अधिक खाने के दुख में घिर जाता है , वह बुद्धिमत्ता से दूर रह जाता है।

465. مَن دارَى النّاسَ أمِنَ مَكرَهُم : (8465 )

465. जो लोगों का मान सम्मान करता है , वह उनकी धोखे धड़ी से सुरक्षित रहता है।

466. مَن أحَبَّنا فَليَعمَل بِعَمَلِنا وَليَتَجَلبَبِ الوَرَعَ : (8483 )

466. जो हम (अहलेबैत) से मोहब्बत करता है , उसे चाहिए कि वह हमारी तरह व्यवहार करे और मुत्तक़ी बन जाये।

467. مَن طَلَبَ شَيئاً نالَهُ أو بَعضَهُ : (8490 )

467. जो किसी चीज़ को चाहता है , वह उसे पूर्ण रूप से या उसके कुछ हिस्से को प्राप्त कर लेता है।

468. مَن يَطلُبِ الهِدايَةَ مِن غَيرِ أهلِها يَضِلُّ : (8501 )

468. जो किसी अयोग्य व्यक्ति से मार्गदर्शन चाहता है , वह भटक जाता है।

469. مَن جالَسَ الجُهّالَ فَليَستَعِدَّ لِلقيلِ وَالقالِ : (8505 )

469. मूर्खों के साथ उठने बैठने लाले को , व्यर्थ की बातें सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।

470. مَن رَقى دَرَجاتِ الهِمَمِ عَظَّمَتهُ الأُمَمُ : (8526 )

470. जो हिम्मत के द्वारा उन्नति करता है , लोग उसे बड़ा मानते हैं।

471. مَن كَشَفَ ضُرَّهُ لِلنّاسِ عَذَّبَ نَفسَهُ : (8542 )

471. जिसने अपनी कठिनाई को लोगों पर प्रकट कर दिया , उसने स्वयं को अज़ाब में डाल लिया।

472. مَن أظهَرَ فَقرَهُ أذَلَّ قَدرَهُ : (8555 )

472. जिसने अपनी निर्धनता को दूसरों के सामने प्रकट कर दिया , उसने अपना महत्व घटा लिया।

473. مَن كَثُرَ فِكرُهُ فِي المَعاصِيَ دَعَتهُ إلَيها : (8561 )

473. जो गुनाहों के बारे में अधिक विचार करता है , उसे गुनाह अपनी तरफ़ खीँच लेते हैं।

474. مَنِ استَنكَفَ مِن أبَوَيهِ فَقَد خالَفَ الرُّشدَ : (8623 )

474. जिसने घमंड के कारण अपने माँ बाप की अवज्ञा की , उसने अपने विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया।

475. مَن بَخِلَ عَلى نَفسِهِ كانَ عَلى غَيرِهِ أبخَلَ : (8625 )

475. जो स्वयं अपने बारे में कंजूसी करता है , वह दूसरों के बारे में अधिक कंजूसी करता है।

476. مَن ظَلَمَ العِبادَ كانَ اللهُ خَصمَهُ : (8637 )

476. जो अल्लाह के बंदों पर अत्याचार करता है , अल्लाह उसका दुश्मन है।

477. مَن أسرَعَ فِي الجَوابِ لَم يُدرِكِ الصَّوابَ : (8640 )

477. जो जवाब देने में जल्दी करता है , वह सही जवाब नही दे पाता।

478. مَن عَمِلَ بِالحَقِّ مالَ إلَيهِ الخَلقُ : (8646 )

478. जो हक़ (सच्चाई) के साथ काम करता है , लोग उसकी तरफ़ झुकते हैं।

479. مَن مَدَحَكَ بِما لَيسَ فيكَ فَهُوَ خَليقٌ أن يَذُمَّكَ بِما لَيسَ فِيكَ : (8658 )

479. जो तुम्हारी उस बारे में प्रशंसा करे जो बात तुम्हारे अन्दर नहीं पाई जाती है , उसे अधिकार है कि वह तुम्हारी उस बारे में बुराई भी करे जो तुम्हारे अन्दर नही पाई जाती है।

480. مَن كافَأَ الإحسانَ بِالإساءَةِ فَقَد بَرِيءَ مِنَ المُرُوَّةِ : (8674 )

480. जो भलाई का बदला बुराई से देता है , उसमें मर्दानगी नही पाई जाती।

481. مَن كَرُمَت عَلَيهِ نَفسُهُ لَم يُهِنها بِالمَعصِيَةِ : (8730 )

481. जो इज़्ज़तदार होता है , वह स्वयं को गुनाहों के द्वारा अपमानित नही करता।

482. مَن ضَعُفَ عَن سِرِّهِ فَهُوَ عَن سِرِّ غَيرِهِ أضعَفُ : (8757 )

482. जो अपने राज़ छिपाने में कमज़ोर होता है , वह दूसरों के राज़ को छिपाने में अधिक कमज़ोर होता है।

483. مَن أسهَرَ عَينَ فِكرَتِهِ بَلَغَ كُنهَ هِمَّتِهِ : (8784 )

483. जो अपने विचार की आँखों को खुला रखता है , वह अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।

484. مَن تَطَلَّعَ عَلى أسرارِ جارِهِ انهَتَكَت أستارُهُ : (8798 )

484. जो अपने पड़ोसी के रहस्यों को जानने की कोशिश करता है , उसका पर्दा फट जाता है , अर्थात उसके स्वयं के राज़ खुल जाते हैं।

485. مَن كَثُرَ في لَيلِهِ نَومُهُ فاتَهُ مِنَ العَمَلِ مالا يَستَدرِكُهُ في يَومِهِ : (8827 )

485. जो रात में अधिक सोता है , उसके कुछ ऐसे काम छुट जाते हैं , जिन्हें वह दिन में पूरा नही कर सकता।

486. مَن كانَت هِمَّتُهُ ما يَدخُلُ بَطنَهُ كانَت قيمَتُهُ ما يَخرُجُ مِنهُ : (8830 )

486. जिस इंसान की पूरी ताक़त उस चीज़ में ख़र्च होती है , जो उसके पेट में जाती है , उसका महत्व उस चीज़ के बराबर है जो पेट से बाहर निकलती है।

487. مَن أصلَحَ أمرَ آخِرَتِهِ أصلَحَ اللهُ لَهُ أمرَ دُنياهُ : (8857 )

487. जो अपने आख़ेरत के कामों को सुधारता है , अल्लाह उसके दुनिया के कामों को सुधार देता है।

488. مَن يَكتَسِب مالاً مِن غَيرِ حِلِّهِ يَصرِفهُ في غَيرِ حَقَّهِ : (8883 )

488. जो हराम तरीक़े से माल कमाता है , वह उसे ग़लत कामों में ख़र्च करता है।

489. مَنِ استَعانَ بِذَوِي الألبابِ سَلَكَ سَبيلَ الرَّشادِ : (8912 )

489. जो बुद्धिमान लोगों से सहायता माँगता है , वह उन्नती के मार्ग पर चलता है।

490. مَن لَم يَتَعَلَّم فِي الصِّغَرِ لَم يَتَقَدَّم فِي الكِبَرِ : (8937 )

490. जो बचपन में नही पढ़ता , वह बड़ा होने पर आगे नही बढ़ता।

491. مَن لَم تَسكُنِ الرَّحمَةُ قَلبَهُ قَلَّ لِقاؤُها لَهُ عِندَ حاجَتِهِ : (8974 )

491. जिसके दिल में मुहब्बत नही होती , उसके पास ज़रूरत के वक़्त कम लोग आते हैं।

492. مَن طَلَبَ رِضَى اللهِ بِسَخَطِ النّاسِ رَدَّ اللهُ ذامَّهُ مِنَ النّاسِ حامِداً : (9035 )

492. जो लोगों की नाराज़गी के साथ भी अल्लाह की खुशी चाहता है , अल्लाह बुराई करने वाले लोगों को भी उसका प्रशंसक बना देता है।

493. مَنِ اقتَصَدَ فِي الغِنى وَالفَقرِ فَقَدِ استَعَدَّ لِنَوائِبِ الدَّهرِ : (9048 )

493. जो मालदारी व ग़रीबी दोनों में मध्य मार्ग को अपनाता है , वह सांसारिक कठिनाईयों का सामना करने के लिए तैयार रहता है।

494. مَنِ افتَخَرَ بِالتَّبذيرِ احتُقِرَ بِالإفلاسِ : (9057 )

494. जो व्यर्थ ख़र्च पर गर्व करता है , वह निर्धनता के हाथों अपमानित होता है।

495. مَن دَنَت هِمَّتُهُ فَلا تَصحَبهُ : (9086 )

495. कम हिम्मत लोगों के साथी न बनों।

496. مَن هانَت عَلَيهِ نَفسُهُ فَلا تَرجُ خَيرَهُ : (9087 )

496. जो स्वयं को ज़लील समझता हो , उससे किसी भलाई की उम्मीद न रखो।

497. مَن نَقَلَ إلَيكَ نَقَلَ عَنكَ : (9133 )

497. जो दूसरों की बातें तुम्हें बताता है , वह तुम्हारी बातें दूसरों को बताता है।

498. مَن بَرَّ والِدَيهِ بَرَّهُ وَلَدُهُ : (9145 )

498. जो अपने माँ बाप के साथ भलाई करता है , उसकी संतान उसके साथ भलाई करती है।

499. مَن لَم يَتَغافَل وَلا يَغُضَّ عَن كَثير مِنَ الأُمُورِ تَنَغَّصَت عِيشَتُهُ : (9149 )

499. जो बहुत से कार्यों से अचेत न बने और बहुत से कार्यों को अनदेखा न करे उसकी ज़िन्दगी अंधेरी हो जाती है।

500. مَن شَبَّ نارَ الفِتنَةِ كانَ وَقُوداً لَها : (9163 )

500. जो उपद्रव की आग भड़काता है , वह स्वयं उसका ईंधन बनता है।

501. مَنِ ادَّعى مِنَ العِلمِ غايَتَهُ فَقَد أظهَرَ مِن جَهلِهِ نِهايَتَهُ : (9193 )

501. जिसने यह दावा किया कि मैं ज्ञान की अंतिम सीमा तक पहुंच गया हूँ , उसने अपनी मूर्खता की अंतिम सीमा को प्रकट कर दिया।

502. مِن شَرائِطِ الإيمانِ حُسنُ مُصاحَبَةِ الإخوانِ : (9282 )

502. ईमान की शर्तों में से एक शर्त भईयों के साथ सद्व्यवहार भी है।

503. مِن أحسَنِ الفَضلِ قَبُولُ عُذرِ الجانِي : (9294 )

503. उच्च श्रेष्ठताओं में से एक श्रेष्ठता ग़लती करने वाले की मजबूरी को स्वीकार करना भी है।

504. مِن أشرَفِ أفعالِ الكَريمِ تَغافُلُهُ عَمّا يَعلَمُ : (9321 )

504. करीम इंसान के श्रेष्ठ कार्यों में से एक काम किसी बात को जानते हुए उसे अनदेखा करना है।

505. مِن أماراتِ الخَيرِ الكَفُّ عَنِ الأذى : (9330 )

505. (लोगों को) पीड़ा पहुँचाने से दूर रहना , नेकी व भलाई की एक निशानी है।

506. مِن أماراتِ الدَّولَةِ اليَقَظَةُ لِحِراسَةِ الأُمُورِ : (9360 )

506. हुकूमत की (मज़बूती) की एक निशानी , कामों की देख रेख के लिए जागना है।

507. مِن كَمالِ السَّعادَةِ السَّعِيُ في إصلاحِ الجُمهُورِ : (9361 )

507. साधारण जनता के सुधार की कोशिश करना सबसे बड़ी भाग्यशालिता है।

508. مِن أعظَمِ الشَّقاوَةِ القَساوَةُ : (9376 )

508. हृदय की कठोरता सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

509. مِنَ الاِقتِصادِ سَخاءٌ بَغَيرِ سَرَفِ، وَمُرُوَّةٌ مِن غَيرِ تَلَف : (9419 )

509. व्यर्थ खर्च किये बिना दान देना और तोड़ फोड़ के बिना मर्दानगी दिखाना , मध्यक्रम की निशानी है।

510. مِن كَمالِ الإنسان وَوُفُورِ فَضلِهِ استِشعارُهُ بِنَفسِهِ النُقصانَ : (9442 )

510. अपने नफ़्स के नुक़्सान के बारे में जानकारी लेना , इंसान के कमाल व अत्याधिक श्रेष्ठ होने की निशानी है।

511. ما عَزَّ مَن ذَلَّ جيرانَهُ : (9486 )

511. अपने पड़ोसी को ज़लील करने वाला , इज़्ज़त नही पा सकता।

512. ما تَزَيَّنَ مُتَزَيِّنٌ بِمِثلِ طاعَةِ اللهِ : (9489 )

512. कोई भी श्रृंगार करने वाला , अल्लाह की आज्ञा का पालन करने वाले के समान सुशौभित नही है।

513. ما أكثَرَ العِبَرَ وَأقَلَّ الاِعتِبارَ : (9542 )

513. नसीहतें कितनी अधिक हैं और नसीहत लेना कितना कम।

514. مَا اتَّقى أحَدٌ إلاّ سَهَّلَ اللهُ مَخرَجَهُ : (9565 )

514. कोई मुत्तक़ी ऐसा नही है , जिसके कठिनाईयों से बाहर निकलने के रास्ते को अल्लाह ने आसान न बनाया हो।

515. ما حُفِظَتِ الأُخُوَّةُ بِمِثلِ المُواساةِ : (9578 )

515. जिस प्रकार जान व माल के द्वारा सहायता , दोस्ती व भाईचारे को रक्षा करती है , उस तरह कोई भी चीज़ दोस्ती को बाक़ी नही रखती।

516. مَا اختَلَفَت دَعوَتانِ إلاّ كانَت إحداهُما ضَلالَةً : (9592 )

516. दो निमन्त्रण परसपर विरोधी नही हो सकते , जब तक उनमें से एक भ्रमित करने वाला न हो।

517. لا يَنبَغي أن تَفعَلَهُ فِي الجَهرِ فَلا تَفعَلهُ فِي السِّرِّ : (9636 )

517. जिस काम को तुम खुले आम नही कर सकते हो , उसे छुपकर करना भी उचित नही है।

518. ما أكثَرَ الإخوانَ عِندَ الجِفانِ، وَأقَلَّهُم عِندَ حادِثاتِ الزَّمانِ : (9657 )

518. जब इंसान के पास प्याला (भरा) होता है अर्थात उसके पास दुनिया का माल होता है तो उसके दोस्त अत्याधिक होते हैं और जब वह कठिनाईयों में घिरता हैं तो दोस्त बहुत कम दिखाई देते हैं !!।

519. ما تَزَيَّنَ الإنسانُ بِزينَةِ أجمَلَ مِنَ الفُتُوَّةِ : (9659 )

519. इंसान बहादुरी से ज़्यादा किसी भी आभूषण से सुसज्जित नही हुआ है।

520. ما لُمتُ أحَداً عَلى إذاعَةِ سِرِّي اِذ كُنتُ بِهِ أضيَقَ مِنهُ : (9706 )

520. जिसने मेरा राज़ खोला , मैंने उसे बुरा भला नही कहा , क्योंकि उसे छिपा कर रखने में मैं उससे भी अधिक तंग था।

521. مِلاكُ الأُمُورِ حُسنُ الخَواتِمِ : (9729 )

521. कार्यों की अच्छाई का आधार , उनके अच्छे समापन पर है।

522. مُذيعُ الفاحِشَةِ كَفاعِلِها : (9759 )

522. बुरी बातों को फैलाने वाला , बुरे काम करने वाले के समान है।

523. مَرارَةُ اليَأسِ خَيرٌ مِنَ التَّضَرُّعِ إلَى النّاسِ : (9795 )

523. नाउम्मीदी की कड़वाहट को (बर्दाश्त करना) लोगों के सामने रोने से अच्छा है।

524. مَجالِسُ اللَّهوِ تُفسِدُ الإيمانَ : (9815 )

524. व्यर्थ सभायें ईमान को ख़राब करती हैं।

525. مَثَلُ الدُّنيا كَظِلِّكَ إن وَقَفتَ وَقَفَ وَإن طَلَبتَهُ بَعُدَ : (9818 )

525. दुनिया की मिसाल तुम्हारी स्वयं की परछाई जैसी है , जब तुम खड़े होते हो तो वह रुक जाती है और जब तुम उसके पीछे चलते हो तो वह तुम से दूर हो जाती है।

526. نِعمَ زادُ المَعادِ الإحسانُ إلَى العِبادِ : (9912 )

526. लोगों के साथ भलाई करना , क़ियामत के लिए कितना अच्छा तौशा है। (इंसान किसी यात्रा पर जाते समय जो आवश्यक चीज़े अपने साथ ले जाता है उन्हें तौशा कहते हैं।)

527. نِعمَ عَونُ الدُّعاءِ الخُشُوعُ : (9945 )

527. ख़ुशू-उ , (स्वयं को बहुत छोटा समझना व रोना) दुआ के लिए कितना अच्छा मददगार है। !

528. نَفَسُ المَرءِ خُطاهُ إلى أجَلِهِ : (9955 )

528. इंसान की साँस , उसके मौत की तरफ़ बढ़ते हुए क़दम हैं।

529. نِعمَةٌ لا تُشكَرُ كَسَيِّئَةِ لا تُغفَرُ : (9959 )

529. नेमत पर शुक्र न करना , माफ़ न होने वाले गुनाह जैसा है।

530. نُصحُكَ بَينَ المَلاَِ تَقريعٌ : (9966 )

530. लोगों के बीच (किसी को) नसीहत करना , उसकी निंदा है।

531. نِظامُ الدِّينِ خَصلَتانِ : إنصافُكَ مِن نَفسِكَ، وَمُواساةُ إخوانِكَ : (9983 )

531. धार्मिक व्यवस्था की दो विशेषताएं हैं , स्वयं अपने साथ इंसाफ़ करना और अपने भाईयों की जान व माल से सहायता करना।

532. نَزِّل نَفسَكَ دُونَ مَنزِلَتِها تُنَزِّلكَ النّاسُ فَوقَ مَنزِلَتِكَ : (9985 )

532. अपने मान सम्मान से नीची जगह पर बैठो ताकि लोग तुम्हें तुम्हारे मान सम्मान से भी ऊँची जगह पर बैठायें।

533. نِفاقُ المَرءِ مِن ذُلٍّ يَجِدُهُ في نَفسِهِ : (9988 )

533. इंसान का निफ़ाक़ (द्विवादिता) एक ऐसी नीचता है , जिसे वह अपने अन्दर पाता है।

तेरहवां भाग

534. هُدِيَى مَن تَجَلبَبَ جِلبابَ الدّينِ : (10012 )

534. जिसने दीन की पोशाक पहन ली , वह हिदायत पा गया। अर्थात जिसने दीन को अपना लिया वह सफल हो गया।

535. هَلَكَ مَن لَم يَعرِف قَدرَهُ : (10020 )

535. जिसने अपने महत्व को न समझा , वह बर्बाद हो गया।

536. وَلَدُ السُّوءِ يَهدِمُ الشَّرَفَ، وَيَشينُ السَّلَفَ : (10065 )

536. बुरी संतान , प्रतिष्ठा को मिटा देती है और बुज़ुर्गों के अपमान का कारण बनती है।

537. وَقِّروا كِبارَكُم يُوَقِّركُم صِغارُكُم : (10069 )

537. तुम अपने से बड़ों का आदर करो ताकि तुम से छोटे तुम्हारा आदर करें।

538. وَيلٌ لِمَن غَلَبَت عَلَيهِ الغَفلَةُ فَنَسِيَ الرِّحلَةَ وَلَم يَستَعِدَّ : (10088 )

538. धिक्कार है उस पर जो इतना लापरवाह हो जाये कि अपने कूच (प्रस्थान) को भूल जाये और तैयार न हो।

539. وَحدَةُ المَرءِ خَيرٌ لَهُ مِن قَرينِ السُّوءِ : (10136 )

539. बुरे इंसान के पास बैठने से , आदमी का तन्हा रहना अच्छा है।

चौदहवां भाग

540. لا تَأسَ عَلى ما فاتَ : (10153 )

540. जो खो दिया , उस पर अफ़सोस न करो।

541. لا تَطمَع فِيما لا تَستَحِقُّ : (10157 )

541. जिसके तुम हक़दार नही हो , उसका लालच न करो।

542. لا تَثِقَنَّ بِعَهدِ مَن لا دينَ لَهُ : (10163 )

542. किसी बेदीन के साथ किये हुए समझौते पर भरोसा न करो।

543. لا تُحَدِّث بِما تَخافُ تَكذيبَهُ : (10173 )

543. जिस बात के झुठलाये जाने का डर हो , उसे न कहो।

544. لا تَعِد بِما تَعجِزُ عَنِ الوَفاءِ بِهِ : (10177 )

544. तुम में जिस बात को पूरा करने की ताक़त न हो , उसके बारे में वादा न करो।

545. لا تَعزِم عَلى ما لَم تَستبِنِ الرَّشدَ فيهِ : (10183 )

545. उस काम को करने का संकल्प न करो , जिसकी उन्नति व विकास के बारे में तुम्हें जानकारी न हो।

546. لا تُمسِك عَن إظهارِ الحَقِّ اِذا وَجَدتَ لَهُ أهلاً : (10188 )

546. हक़ बात कहने से न रुको , जब तुम्हें कोई हक़ बात सुनने योग्य मिल जाये।

547. لا تُمارِيَنَّ اللَّجُوجَ في مَحفِل : (10203 )

547. झगड़ालु स्वभव वाले आदमी से भरी सभा में न उलझो।

548. لا تُعاتِبِ الجاهِلَ فَيَمقُتَكَ، وَعاتِبِ العاقِلَ يُحبِبِكَ : (10215 )

548. मूर्ख की निंदा न करो क्योंकि वह तुम्हारा दुश्मन बन जायेगा और बुद्धिमान की निंदा करो वह तुम से मोहब्बत करेगा।

549. لا تَستَصغِرَنَّ عَدُوّاً وَاِن ضَعُفَ : (10216 )

549. किसी भी दुश्मन को छोटा न समझो चाहे वह कमज़ोर ही क्यों न हो।

550. لا تُلاحِ الدَّنِيَّ فَيَجتَرِىءَ عَلَيكَ : (10221 )

550. नीच इंसान से मत झगड़ो , वह तुम्हारे साथ दुष्टता करेगा।

551. لا تُؤيِسِ الضُّعَفاءَ مِن عَدلِكَ : (10225 )

551. कमज़ोर लोगों को अपने न्याय से नाउम्मीद न करो।

552. لا تَعمَل شَيئاً مِنَ الخَيرِ رِياءُ وَلا تَترُكهُ حَياءً : (10254 )

552. किसी भी नेक काम को दिखावे के लिए न करो और न शर्म की वजह से उसे छोड़ो।

553. لا تَثِقِ بِالصَّديقِ قَبلَ الخُبرَةِ : (10257 )

553. परखे बिना दोस्त पर भरोसा न करो।

554. لا تَستَحيِ مِن إعطاءِ القَليلِ : فَإنَّ الحِرمانَ أقَلُّ مِنهُ : (10263 )

554. कम (दान) देने में शर्म न करो , क्योंकि उससे वंचित रखना तो उससे भी कम है।

555. لا تَظلِمَنَّ مَن لا يَجِدُ ناصِراً إلاَّ اللهَ : (10284 )

555. जिसका अल्लाह के अलावा कोई सहायक न हो उस पर अत्याचार न करो।

556. لا يَشغَلَنَّكَ عَنِ العَمَلِ لِلآخِرَةِ شُغلٌ : فَإنَّ المُدَّةَ قَصيرَةٌ : (10286 )

556. (याद रखो) आख़ेरत के कामों से (रोकने के लिए) कोई काम तुम्हें स्वयं में व्यस्त न कर ले , क्योंकि समय बहुत कम है।

557. لا تَفرِحَنَّ بِسَقطَةِ غَيرِكَ لا تَدري ما يُحدِثُ بِكَ الزَّمانُ : (10290 )

557. किसी के हारने या गिरने से खुश न हो , क्योंकि तुम्हें नही पता कि आने वाले समय में तुम्हारे साथ क्या घटित होने वाला है।

558. لا تَجعَل عِرضَكَ غَرَضاً لِقَولِ كُلِّ قائِلِ : (10304 )

558. अपनी इज़्ज़त को हर बोलने वाले के तीर का निशाना न बनने दो।

559. لا تَستَبِدَّ بِرَأيِكَ، فَمَنِ استَبَدَّ بِرَأيِهِ هَلَكَ : (10311 )

559. स्वेच्छाचारी न बनों , क्योंकि स्वेच्छाचारी मौत के घाट उतर जाता है।

560. لا تُسِيءِ الخِطابَ فَيَسُوءَكَ نَكيرُ الجَوابِ : (10324 )

560. किसी को बुरी बात न कहो कि बुरा जवाब सुनने को मिले।

561. لا تَستَبطِيء اِجابَةَ دُعائِكَ وَقد سَدَدتَ طَريقَهُ بِالذُّنُوبِ : (10329 )

561. अपनी दुआ के देर से क़बूल होने की (उम्मीद में न रहो) जब गुनाहों के द्वारा उसके क़बूल होने के रास्ते को बंद कर दिया हो।

562. لا تُدخِلَنَّ في مَشوَرَتِكَ بِخيلاً فَيَعدِلَ بِكَ عَنِ القصدِ، وَيَعِدَكَ الفَقرَ : (10348 )

562. कभी भी कंजूस से मशवरा न करो , क्योंकि वह तुम्हें मध्य मार्ग से दूर कर देगा और निर्धनता से डरायेगा।

563. لا تُشرِكَنَّ في رَأيِكَ جَباناً يُضَعِّفُكَ عَنِ الأمرِ وَيُعَظِّمُ عَلَيكَ ما لَيسَ بِعَظيمِ : (10349 )

563. किसी भी डरपोक से मशवरा न करना , क्योंकि वह तुम्हारी काम करने की शक्ति को कमज़ोर बना देगा और जो काम बड़ा नही है उसे तुम्हारे सामने बड़ा बनाकर पेश करेगा।

564. لا تَستَشِرِ الكَذّابَ : فَإنَّهُ كَالسَّرابِ يُقَرِّبُ عَلَيكَ البَعيدَ : وَيُبَعِّدُ عَلَيكَ القَريبَ : (10351 )

564. झूठे से मशवरा न करना , वह सराब (मरीचिका) के समान होता है , वह दूर को तुम्हारे लिए समीप व समीप को दूर कर देगा।

565. لا تُشرِكَنَّ في مَشوَرَتِكَ حَريصاً يُهَوِّنُ عَلَيكَ الشَّرَّ وَيُزَيِّنُ لَكَ الشَّرَهَ : (10353 )

565. किसी भी लालची से मशवरा न करना , वह तुम्हारे सामने बुराई को आसान और लालच को सुसज्जित कर के पेश करेगा।

566. لا تُؤَخِّر إنالَةَ المُحتاجِ إلى غَد : فَإنَّكَ لا تَدري ما يَعرِضُ لَكَ وَلَهُ في غَد : (10364 )

566. निर्धन की आवश्क्ताओं की पूर्ति को कल पर मत टालो , क्योंकि तुम्हें नही पता कि आने वाले कल में तुम्हारे या उसके साथ क्या होने वाला है।

567. لا تَنقُضَنَّ سُنَّةً صالِحَةٌ عُمِلَ بِها وَاجتَمَعَتِ الأُلفَةُ لَها وَصَلَحَتِ الرَّعِيَّةُ عَلَيها : (10377 )

567. उस अच्छी सुन्नत को न मिटाओ जिसे लोग अपनाये हुए हों और जिसके द्वारा आपस में एक दूसरे से मिलते हों और जिसमें उनके लिए भलाई हो।

568. لا تَصحَب مَن يَحفَظُ مَساوِيَكَ، وَيَنسى فَضائِلَكَ وَمَعالِيَكَ : (10419 )

568. जो तुम्हारी बुराईयों को याद रखे और तुम्हारी विशेषताओं व उच्चताओं को भुला दे , उसे दोस्त न बनाओ।

569. لا تَقُل مالا تَعلَمُ فَتُتَّهَمَ بِإِخبِارِكَ بِما تَعلَمُ : (10426 )

569. तुम जिस चीज़ के बारे में नही जानते हो , उसके बारे में कुछ न कहो , ताकि तुम्हारी उन बातों के बारे में शक न हो जिनके बारे में तुम अच्छी तरह जानते हो।

570. لا فِطنَةَ مَعَ بِطنَةِ : (10528 )

570. भरा हुआ पेट व बुद्धिमत्ता एक साथ इकठ्ठा नही होते है।

571. لا جِهادَ كَجِهادِ النَّفسِ : (10551 )

571. कोई जिहाद , नफ़्स से जिहाद करने के समान नही है , अर्थात अपनी इच्छाओं से लड़ी जाने वाली जंग जैसी कोई जंग नही है।

572. لا يَجِتَمِعُ الباطِلُ وَالحَقُّ : (10584 )

572. हक़ व बातिल , झूठ व सच एक साथ इकठ्ठा नही होते है।

573. لا لِباسَ أجمَلُ مِنَ السَّلامَةِ : (10635 )

573. स्वास्थ से सुन्दर कोई वेश नही है।

574. لا دِينَ لِمُسَوِّف بِتَوبَتِهِ : (10660 )

574. जो तौबा करने में आज कल करता है , वह दीनदार नही है।

575. لا عَيشَ لِمَن فارَقَ أحِبَّتَهُ : (10661 )

575. जो अपने दोस्तों से अलग हो जाये उसके लिए आराम नही है।

576. لا يُدرَكُ العِلمُ بِراحَةِ الجِسمِ : (10684 )

576. शारीरिक आराम के साथ ज्ञान प्राप्त नही होता।

577. لا يَشبَعُ المُؤمِنُ وَأخُوهُ جائِعٌ : (10691 )

577. मोमिन खाना नही खाता , (अगर) उसका भाई भूखा हो।

578. لا يَستَغنِي العاقِلُ عَنِ المُشاوَرَةِ : (10693 )

578. बुद्धिमान यह नही सोचता कि उसे परामर्श व मशवरे की ज़रूरत नही है।

579. لا خَيرَ في لَذَّة لا تَبقى : (10707 )

579. जो मज़ा बाक़ी रहने वाला न हो , उसमें भलाई नही है।

580. لا عَيشَ أهنَأُ مِنَ العافِيَةِ : (10728 )

580. सेहत व स्वस्थता से अच्छा कोई आनंद नही है।

581. لا خَيرَ فيمَن يَهجُرُ أخاهُ مِن غَيرِ جُرمِ : (10741 )

581. उसके लिए भलाई नही है जो अपने दोस्तों से उनकी किसी ग़लती के बिना ही अलग हो जाये।

582. لا تَكمُلُ المَكارِمُ إلاّ بِالعَفافِ وَالإيثارِ : (10745 )

582. पारसाई व त्याग के बिना अख़लाक़ पूरा नही होता।

583. لا عَدُوَّ أعدى عَلَى المَرءِ مِن نَفسِهِ : (10760 )

583. आदमी का उसके नफ़्स से बड़ा कोई दुश्मन नही है।

584. لا يُغتَبَطُ بِمَوَدَّةِ مَن لا دينَ لَهُ : (10803 )

584. बेदीन से दोस्ती पर ख़ुश नही होते।

585. لا يَرضَى الحَسُودُ عَمَّن يَحسُدُهُ إلاّ بِالمَوتِ أو بِزَوالِ النِّعمَةِ : (10812 )

585. ईर्ष्यालु उस समय तक खुश नही होता जब तक जिससे वह ईर्ष्या करता है वह मर न जाये या उसका धन दौलत न छिन जाये।

586. لا يَكُونُ الصَّديقُ صَديقاً حَتَّى يَحفَظَ أخاهُ في غَيبَتِهِ وَنَكبَتِهِ وَوَفاتِهِ : (10821 )

586. दोस्त उस समय तक दोस्त (कहलाने के योग्य) नही है , जब तक अपने दोस्त की उनुपस्थिति में , उसकी परेशानी में और उसकी मौत पर दोस्ती का हक़ अदा न करे।

587. لا طاعَةَ لِمَخلوق في مَعصِيَةِ الخالِقِ : (10839 )

587. पैदा करने वाले की अवज्ञा करने के लिए किसी की भी आज्ञा का पालन आवश्यक नही है।

588. لا يَفوزُ بِالجَنَّةِ اِلاّ مَن حَسُنَت سَريرَتُهُ وَخَلُصَت نِيَّتُهُ : (10868 )

588. जिनकी आत्मा अन्दर से पाक व नीयत साफ़ है उनके अतिरिक्त कोई जन्नत में नही जा सकता।

589. لا خَيرَ في قَوم لَيسُوا بِناصِحينَ وَلا يُحِبُّونَ النّاصِحينَ : (10884 )

589. जो क़ौम नसीहत करने वाली न हो और जो नसीहत करने वालों से मोहब्बत न करती हो , उसके लिए भलाई नही है।

590. لا خَيرَ في أخ لا يُوجِبُ لَكَ مِثلَ الَّذي يُوجِبُ لِنَفسِهِ : (10891 )

590. उस भाई व दोस्त से कोई फ़ायदा नही है , जो जिस चीज़ को अपने लिए ज़रूरी समझता है , उसे तुम्हारे लिए ज़रूरी न समझे।

591. لا نِعمَةَ أهنَأُ مِنَ الأمنِ : (10911 )

591. शांति से बढ़कर कोई भी नेमत सुख देने वाली नही है।

592. لا خَيرَ في قَلب لا يَخشَعُ، وَعَين لا تَدمَعُ، وَعِلم لا يَنفَعُ : (10913 )

592. जो दिल अल्लाह से न डरता हो , जो आँख न रोती हो और जो ज्ञान फ़ायदा न पहुँचाता हो , उसमें कोई भलाई नही है।

593. يُستَدَلُّ عَلى عَقلِ كُلِّ امرِء بِما يَجرِي عَلى لِسانِهِ : (10957 )

593. जो बात इंसान की ज़बान पर आती है , वह उसकी बुद्धी पर तर्क बनती है।

594. يُستَدَلُّ عَلى كَرَمِ الرَّجُلِ بِحُسنِ بِشرِهِ، وَبَذلِ بِرِّهِ : (10963 )

594. मर्द का सदव्यवहार और उसकी भलाई व नेकी , उसकी श्रेष्ठता का तर्क है।

595. يَسيرُ الرِّياءُ شِركٌ : (10976 )

595. लोगों को दिखाने के लिए किया जाने वाला थोड़ा काम भी शिर्क है।

596. يَسيرُ العَطاءِ خَيرٌ مِنَ التَّعَلُّلِ بِالاِعتِذارِ : (10991 )

596. थोड़ा दान दे देना , बहाना बनाने व माफ़ी माँगने से अच्छा है।

597. يَبلُغُ الصّادِقُ بِصِدقِهِ مالا يَبلُغُهُ الكاذِبُ بِاحتِيالِهِ : (11006 )

597. सच बोलने वाला , अपनी सच्चाई से उस चीज़ तक पहुँच जाता है , जिस तक झूठ बोलने वाला धोखे बाज़ी के द्वारा नही पहुँच पाता।

598. يُمتَحَنُ الرَّجُلُ بِفِعلِهِ لا بِقَولِهِ : (11026 )

598. मर्दों को उनके कामों से परखो , उनकी बातों से नही।

599. يَومُ المَظلومِ عَلَى الظّالِمِ أشَدُّ مِن يَومِ الظّالِمِ عَلَى المَظلومِ : (11029 )

599. ज़ालिम पर मज़लूम का दिन , मज़लूम पर ज़ालिम के दिन से कठिन है। अर्थात अत्याचारी के लिए अत्याचार की सज़ा पाने का दिन , अत्याचार करने के दिन से कठिन है।

600. يَكتَسِبُ الصّادِقُ بِصِدقِهِ ثَلاثاً : حُسنَ الثِّقَةِ بِهِ، وَالمَحَبَّةَ لَهُ، وَالمَهابَةَ عَنهُ : (11038 )

600. सच बोलने वाले को अपने सच से तीन फ़ायदे होते हैं: (लोग) उस पर भरोसा करते हैं , उसके लिए दिलों में मोहब्बत पैदा होती है और उसको बड़ा मानते हुए उससे डरते हैं।

दूसरा भाग

94. اِنسَ رِفدَكَ اُذكُر وَعدَك : (2249 )

94. दी हुई चीज़ों को भूल जाओं और अपने वादों को याद करो।

95. أعِن أخاكَ عَلى هِدايَتِهِ : (2281 )

95. (नेकी के) मार्गदर्शन में अपने भाई की मदद करो।

96. أحسِن إلى مَن أساءَ إِلَيكَ وَاعفُ عَمَّن جَنى عَلَيكَ : (2287 )

96. जिसने तुम्हारे साथ बुराई की उसके साथ भलाई करो और जिसने तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया उसे क्षमा कर दो।

97. أصلِحِ المُسيءَ بِحُسنِ فِعالِكَ وَدُلَّ عَلَى الخَيرِ بِجَميلِ مَقالِكَ : (2304 )

97. बुरे इन्सान को अपने अच्छे व्यवहार से सुधारो और अपनी अच्छी बातों के द्वारा उसका नेकी की ओर मार्गदर्शन करो।

98. اِحفَظ أمرَكَ وَلا تُنكِح خاطِباً سِرَّكَ : (2305 )

98. अपने कार्यों को छुपाओ और अपने राज़ों को हर चाहने वाले की दुल्हन न बनाओ। अर्थात हर किसी से अपने रहस्यों का वर्णन न करो।

99. اِرضَ لِلنّاسِ بِما تَرضاهُ لِنَفسِكَ تَكُن مُسلِماً : (2329 )

99. जो अपने लिये पसन्द करते हो , वही दूसरों के लिये भी पसंद करो , ताकि मुसलमान रहो।

100. اِرضَ مِنَ الرِّزقِ بِما قُسِمَ لَكَ تَعِش غَنِيّاً : (2332 )

100. जो धन तुम्हारे हिस्से में आया है उस पर खुश रहो (और) मालदारी में जीवन व्यतीत करो।

101. أكرِم ضَيفَكَ وَإن كانَ حَقيراً وَقُم عَن مَجلِسِكَ لاَِبِيكَ وَمُعَلِّمِكَ وَإن كُنتَ أميراً : (2341 )

101. अपने मेहमान की इज़्ज़त करो चाहे वह नीच ही हो और अपने बाप व उस्ताद के आदर में अपनी जगह से खड़े हो जाओ चाहे तुम शासक ही क्यों न हो।

102. اِغتَنِم مَنِ استَقرَضَكَ في حالِ غِناكَ لِيَجعَلَ قَضاءَهُ في يَومِ عُسرَتِكَ : (2370 )

102. (अगर) कोई तुम्हारे मालदार होने की स्थिति में तुम से कर्ज़ माँगे तो उसे अच्छा समझो , वह तुम्हारी आवश्यक्ता के समय तुम्हें उसका बदला देगा।

103. أكثِرِ النَّظرَ إلى مَن فُضِّلتَ عَلَيهِ فَإنَّ ذلِكَ مِن أبوابِ الشُّكرِ : (2375 )

103. तुम्हें जिन लोगों पर श्रेष्ठता दी गई है उनकी ओर अधिक देखो , (अर्थात उनका अधिक ध्यान रखो) क्योंकि यह , शुक्र करने का एक तरीका है।

104. أشعِر قَلبَكَ الرَّحمَةَ لِجَميعِ النّاسِ وَالإحسانِ إلَيهِمَ وَلا تُنِلهُم حَيفاً وَلا تَكُن عَلَيهِم سَيفاً : (2392 )

104. समस्त लोगों के साथ मोहब्बत और भलाई करने को अपने दिल का नारा बना लो और न उन्हें नुक्सान पहुंचाओ और न ही उन पर तलवार खींचो।

105. اِستَفرغ جُهدَكَ لِمَعادِكَ تُصلِح مَثواكَ وَلا تَبع آخِرَتَكَ بِدُنياكَ : (2411 )

105. अपनी पूरी मेहनत व कोशिश को आख़ेरत के लिये खर्च करो ताकि तुम्हारा ठिकाना अच्छा बने और अपनी आख़ेरत को दुनिया के बदले न बेचो।

106. اِجعَل لِكُلِّ إنسان مِن خَدَمِكَ عَمَلاً تَأخُذهُ بِهِ فَإنَّ ذلِكَ أحرى أن لا يَتَواكَلُوا فِي خِدمَتِكَ : (2432 )

106. अपने तमाम मातहतों को काम पर लगाओ और उनसे , उनके कार्यों के बारे में पूछ ताछ करो , (ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारियों का जवाब दें) यह काम (इस लिए) अच्छा है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी को एक दूसरे के कांधे पर न डाल सकें।

107. اُبذل لِصَديقِكَ كُلَّ المَوَدَّةِ وَلا تَبذُل لَهُ كُلَّ الطُّمَأنينَةِ وأَعطِهِ مِن نَفسِكَ كُلَّ المُواساةِ وَلا تَقُصَّ اِلَيهِ بِكُلِّ أسرارِكَ : (2463 )

107. अपनी पूरी मोहब्बत को अपने दोस्त पर निछावर कर दो , लेकिन उस पर आँख बन्द कर के भरोसा न करो , दिल से उसके साथ रहो लेकिन अपने सारे राज़ उसे न बताओ।

108. اِصبِر عَلى مَرارَةِ الحَقِّ وَإيّاكَ أن تَنخَدِعَ لِحَلاوَةِ الباطِلِ : (2472 )

108. हक़ (सच्चाई) की कडवाहट पर सब्र करो और खबरदार बातिल (झूठ) की मिठास से धोखा न खाना।

109. أطِع مَن فَوقَكَ يُطِعكَ مَن دُونَكَ : (2475 )

109. अपने बड़ों का कहना मानों ताकि तुम्हारे छोटे तुम्हारा कहना मानें।

110. اِكتَسِبُوا العِلمَ يَكسِبكُمُ الحَياةَ : (2486 )

110. ज्ञान प्राप्त करो ताकि वह तुम्हें ज़िन्दगी दें।

111. اِلزَمُوا الجَماعَةَ وَاجتَنِبُوا الفُرقَةَ : (2488 )

111. सब के साथ मिल कर रहो और अलग रहने से बचो।

112. اِنتَهِزُوا فُصَ الخَيرِ فَإنَّها تَمُرُّ مَرَّ السَّحابِ : (2501 )

112. सुअवसर से फ़ायदा उठाओ क्यों कि वह बादलों की तरह गुज़र जाती है।

113. اِتَّقُوا مَعاصِيَ الخَلَواتِ فَإنَّ الشّاهِدَ هُوَ الحاكِمُ : (2524 )

113. तन्हाई के गुनाहों से बचो , क्योंकि उन्हें देखने वाला हाकिम है।

114. اُطلُبُوا العِلمَ تُعرَفُوا بِهِ وَاعمَلُوا بِه تَكُونُوا مِن أهلِهِ : (2531 )

114. ज्ञान प्राप्त करो ताकि उसके द्वारा पहचाने जाओ और उस पर क्रियान्वित रहो ताकि उसके योग्य बने रहो।

115. اِضرِبُوا بَعضَ الرَّأيِ بِبَعض يَتَوَلَّد مِنهُ الصَّوابُ : (2567 )

115. अपनी राय को एक दूसरे के सामने रखो ताकि उस से एक अच्छा नतीजा निकले।

116. أجمِلُوا فِي الخِطابِ تَسمَعُوا جَميلَ الجَوابِ : (2568 )

116. अपनी बात चीत को सुन्दर बनाओ ताकि अच्छा जवाब सुनो।

117. اِتَّهِمُوا عُقُولَكُم فَإنَّهُ مِنَ الثِّقَةِ بِها يَكُونُ الخَطاءُ : (2570 )

117. अपनी बुद्धी को ग़लती करने वाली मान कर चलो , क्योंकि उस पर अधिक भरोसा करना ग़लती हो सकती है।

118. اِحذَر كُلَّ عَمَل يَرضاهُ عامِلُهُ لِنَفسِهِ وَيَكرَهُهُ لِعامَّةِ المُسلِمينَ : (2596 )

118. हर उस काम से बचो जिस का करने वाला उसे अपने लिये तो पसंद करता हो लेकिन आम मुसलमानों के लिये पसंद न करता हो।

119. اِحذَر كُلَّ قَول وَفِعل يُؤدِّي إلى فَسادِ الآخِرَةِ وَالدِّينِ : (2597 )

119. हर उस बात व काम से बचो , जो आख़ेरत व दीन को बर्बादी की ओर ले जायें।

120. اِحذَر مُجالَسَةَ قَرينِ السُّوءِ فَإنَّهُ يُهلِكُ مُقارِنَهُ وَيُردي مُصاحِبَهُ : (2599 )

120. बुरे दोस्त के पास बैठने से बचो , क्योंकि वह अपने दोस्त को बर्बाद और अपने साथी को ज़लील करता है।

121. اِحذَرُوا ضِياعَ الأعمارِ فِيما لا يَبقى لَكُم فَفائِتُها لايَعُودُ : (2618 )

121. जो चीज़ें तुम्हारे पास बाक़ी रहने वाली नहीं हैं , उनमें अपनी उम्र बर्बाद करने से बचो , क्योंकि जो उम्र बीत जाती है , वह वापस नहीं आती।

122. إيّاكَ وَالهَذَرَ فَمَن كَثُرَ كَلامُهُ كَثُرَت آثامُهُ : (2637 )

122. अधिक बोलने से बचो क्योंकि अधिक बोलने वाले के गुनाह भी अधिक होते हैं।

123. إيّاكَ وَالنَّميمَةَ فَإنَّها تَزرَعُ الضَّغينَةَ وَتُبَعِّدُ عَنِ اللهِ وَالنّاسِ : (2663 )

123. चुग़ल खोरी से बचो , क्योंकि यह दुश्मनी का बीज बोती है और अल्लाह व इन्सानों से दूर करती है।

124. إيّاكَ وَالمَنَّ بِالمَعرِّوفِ فَإنَّ الاِمتِنانَ يُكَدِّرُ الإحسانَ : (2673 )

124. भलाई करने के बाद उसका एहसान जताने से बचो , क्योंकि एहसान जताना नेकी को बर्बाद कर देता है।

125. إيّاكَ وَالنِّفاقَ فَإنَّ ذَا الوَجهَينِ لا يَكُونُ وَجيهاً عِندَ اللهِ : (2694 )

125. निफ़ाक से बचो , क्योंकि अल्लाह (की नज़र में) मुनाफिक की कोई इज़्ज़त नहीं है।

126. إيّاكَ أن تَجعَلَ مَركَبَكَ لِسانَكَ في غِيبَةِ إخوانِكَ أو تَقُولَ ما يَصيرُ عَلَيكَ حُجَّةً وَفِي الإساءَةِ إِلَيكَ عِلَّةً : (2724 )

126. अपनी ज़बान को अपने भाई की चुग़ली की सवारी बनाने से बचओ और ऐसी बात कहने से भी दूर रहो जो तुम्हारे लिये दलील और तुम्हारे साथ बुराई करने का कारण व बहाना बने।

127. إيّاكُم وَالبِطنَةَ فَإنَّها مَقساةٌ لِلقَلبِ مَكسَلَةٌ عَنِ الصَّلاةِ وَمَفسَدَةٌ لِلجَسَدِ : (2742 )

127. पेट भर कर भोजन करने से बचो , क्योंकि इस से दिल सख़्त होता है , नमाज़ में सुस्ती पैदा होती है और यह शरीर के लिये भी हानिकारक है।

128. إيّاكُمِ وَالفُرقَةَ فَإنَّ الشّاذَّ عَن أهلِ الحَقِّ لِلشَّيطانِ كَما أنَّ الشّاذَّ مِنَ الغَنَمِ لِلذِّئبِ : (2747 )

128. अलग होने से बचो , क्योंकि हक़ से अलग होने वाला शैतान का (शिकार बन जाता है) जिस तरह रेवड़ से अलग होने वाली भेड़ , भेड़िये का शिकार बन जाती है।

129. ألا مُستَيقِظٌ مِن غَفلَتِهِ قَبلَ نَفادِ مُدَّتِهِ : (2752 )

129. क्या कोई नहीं है , जो उम्र पूरी होने से पहले ग़फ़लत से जाग जाए।

130. ألا وَإنَّ مِنَ البَلاءِ الفاقَةَ وَأشَدُّ مِنَ الفاقَةِ مَرَضُ البَدَنِ وَأشَدُّ مِن مَرَضِ البَدَنِ مَرَضُ القَلبِ : (2775 )

130. जान लो कि भुखमरी एक विपत्ति है और शारीरिक बीमारी भुखमरी से भयंकर है और दिल की बीमारी (अर्थात कुफ़्र , निफ़ाक़ व शिर्क) शारीरिक बीमारी से भी भंयकर है।

131. ألا لايَستَحيِيَنَّ مَن لا يَعلَمُ أن يَتَعَلَّمَ فَإنَّ قِيمَةَ كُلِّ امرِئ مَا يَعلَمُ : (2787 )

131. समझ लो कि तुम जिस चीज़ के बारे में नहीं जानते हो उसे सीखने में शर्म न करो , क्योंकि हर इन्सान का महत्व उस चीज़ में है जिसे वह जानता है।

132. ألا لا يَستَقبِحَنَّ مَن سُئِلَ عَمَا لا يَعلَمُ أن يَقُولَ لا أعلَمُ : (2788 )

132. जान लो कि जब किसी से कोई सवाल पूछा जाये और वह उसका जवाब न जानता हो तो यह कहने में कोई बुराई नही है कि मैं नहीं जानता हूँ।

133. أفضَلُ العِبادَةِ غَلَبَةُ العادَةِ : (2873 )

133. सब से अच्छी इबादत आदतों पर क़ाबू पाना है।

134. أفضَلُ الإِيمانِ الأمانَةُ : (2905 )

134. सब से अच्छा ईमान आमानतदारी है।

135. اَسوَءُ النّاسِ عَيشاً الحَسُودُ : (2931 )

135. इंसानों में सब से बुरा जीवन ईर्ष्यालु का होता है।

136. أَشَدُّ القُلُوبِ غِلاًّ قَلبُ الحَقُودِ : (2932 )

136. दिलों में सब से बुरा दिल , कीनः (ईर्ष्या) रखने वाले का होता है।

137. أَفضَلُ العَمَلِ ما اُرِيدَ بِهِ وَجهُ اللهِ : (2958 )

137. सब से अच्छा काम वह है जिस के द्वारा अल्लाह की ख़ुशी को प्राप्त करने की इच्छा की जाये।

138. أَفضَلُ المَعرُوفِ إغاثَةُ المَلهُوفِ : (2959 )

138. सब से श्रेष्ठ भलाई , पीड़ित की फ़रियाद सुनना है।

139. أَكبَرُ الحُمقِ الإغراقُ فِي المَدحِ وَالذَّمِ : (2985 )

139. सब से बड़ी मूर्खता , (किसी की) बुराई या प्रशंसा में अधिक्ता से काम लेना है।

140. أَفضَلُ النّاسِ أنفَعُهُمِ لِلنّاسِ : (2989 )

140. सब से अच्छा इन्सान वह है , जिस से इन्सानों को सबसे अधिक फ़ायदा पहुंचता है।

141. أَقبَحُ الغَدرِ إذاغَةُ السِّرِّ : (3005 )

141. सब से बड़ी गद्दारी (किसी के) रहस्यों को खोलना है।

142. أَفضَلُ الوَرَعِ حُسنُ الظَّنِّ : (3027 )

142. सब से अच्छी पारसाई , खुश गुमान रहना है।

143. أَسرَعُ شَيء عُقُوبَةً اليَمينُ الفاجِرَةُ : (3041 )

143. जिस चीज़ की सज़ा बहुत जल्दी मिलती है , वह झूठी क़सम है।

144. أَكثَرُ النّاسِ أمَلأ أقَلُّهُم لِلمَوتِ ذِكراً : (3053 )

144. सब से अधिक इच्छायें उन लोगों की होती है , जो मौत को बहुत कम याद करते हैं।

145. أَبصَرُ النّاسِ مَن أبصَرَ عُيُوبَهُ وَأقلَعَ عَن ذُنُوبِهِ : (3061 )

145. सब से अधिक दृष्टिवान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और गुनाहों से रुक जाये।

146. أَقوَى النّاسِ مَن غَلَبَ هَواهُ : (3074 )

146. सब से अधिक शक्तिशाली इन्सान वह है जो अपनी हवस पर काबू पा ले।

147. أَصلُ المُرُوءَةِ الحَياءُ وَثَمَرَتُهَا العِفَّةُ : (3101 )

147. मर्दांगी की जड़ शर्म है , और उसका फल पारसाई है।

148. أَفضَلُ النّاسِ مَن كَظَمَ غَيظَهُ وَحَلُمَ عَن قُدرَة : (3104 )

148. सब से अच्छा इन्सान वह है जो अपने गुस्से को पी जाए और ताक़त के होते हुए संयम से काम ले।

149. أَغبَطُ النّاسِ المُسارِعُ إلَى الخَيراتِ : (3122 )

149. सब से खुश हाल इन्सान वह है जो नेकियों की तरफ़ दौड़े।

150. أَعظَمُ الذُّنُوبِ عِندَ اللهِ ذَنبٌ اَصَرَّ عَلَيهِ عامِلُهُ : (3131 )

150. अल्लाह के नज़दीक सब से बड़ा गुनाह वह है , जिसे गुनहगार बार बार करे।

151. أَدَلُّ شَيء عَلى غَزارَةِ العَقلِ حُسنُ التَدبيرِ : (3151 )

151. बुद्धिमान होने की सब से बड़ी दलील , अच्छी तदबीर व उपाय है।

152. أَفضَلُ النّاسِ رَأياً مَن لا يَستَغنِي عَن رَأي مُشير : (3152 )

152. सब से अच्छी राय उस इन्सान की है जो स्वयं को मशवरा देने वाले की राय से मुक्त न समझता हो।

153. أَفضَلُ الجُودِ اِيصالُ الحُقُوقِ إلى اَهلِها : (3153 )

153. सब से बड़ा दान व सखावत , हकदारों तक उनके हक पहुंचाना है।

154. أَكبَرُ الكُلفَةِ تَعَنُيكَ فِيما لا يَعنيكَ : (3166 )

154. सब से बड़ा दुख व तकलीफ़ , उस चीज़ में मेहनत करना है जिस से तुम्हें कोई फ़ायदा न हो।

155. أَكبَرُ العَيبِ أن تَعيبَ غَيرَكَ بِما هُوَ فيكَ : (3167 )

155. सब से बड़ी बुराई , दूसरों की उस बुराई को पकड़ना है जो स्वयं में भी पाई जाती है।

156. أَخسَرُ النّاسِ مَن قَدَرَ عَلى اَن يَقُولَ الحَقَّ وَلَم يَقُل : (3178 )

156. सब से अधिक नुक़्सान में वह लोग हैं जो हक़ बात कहने की ताक़त रखते हुए , हक़ बात न कहें।

157. أَبخَلُ النّاسِ مَن بَخِلَ بِالسَّلامِ : (3200 )

157. सब से अधिक कंजूस वह लोग हैं जो सलाम करने में कंजूसी करें।

158. أَشَدُّ مِنَ المَوتِ طَلَبُ الحاجَةِ مِن غَيرِ أَهلِها : (3213 )

158. नीच से कोई चीज़ माँगना , मौत से भी अधिक कठिन है।

159. أَعقَلُ النّاسِ مَن كانَ بِعَيبِهِ بَصيراً وَعَن عَيبِ غَيرِهِ ضَريراً : (3233 )

159. सब से अधिक बुद्धिमान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और दूसरों की बुराइयों को न देखे।

160. أَفضَلُ الأدَبِ أن يَقِفُ الإنسانُ عِندَ حَدِّهِ وَلا يَتَعدَّى قَدرَهُ : (3241 )

160. सब से अच्छा सदाचार यह है कि इन्सान अपनी हद में रहे और उस से बाहर न निकले।

161. إِنَّ أهنَأَ النّاسِ عَيشاً مَن كانَ بِما قَسَمَ اللهُ لَهُ راضِياً : (3397 )

161. सब से अच्छा जीवन उसका है जो उस पर प्रसन्न रहे , जो उसे अल्लाह ने दिया है।

162. اِنَّ مِنَ العِبادَةِ لِينَ الكَلامِ وَإفشاءَ السَّلامِ : (3421 )

162. नर्मी के साथ बात करना और ऊँची आवाज़ में सलाम करना इबादतों में से है।

163. إِنَّ هذِهِ القُلُوبَ اَوعِيَةٌ فَخَيرُها اَوعاها لِلخَيرِ : (3449 )

163. यह दिल बर्तन (के समान) हैं और इन में सब से अच्छा बर्तन वह है जिस में नेकियां अधिक आयें।

164. إِنَّ بِشرَ المُؤمِنِ فِي وَجهِهِ، وَقُوَّتَهُ فِي دينِهِ وَحُزنَهُ فِي قَلبِهِ : (3454 )

164. मोमिन की खुशी उसके चेहरे पर , उसकी ताक़त उसके दीन में और उसका ग़म उसके दिल में होता है।

165. إنَّ هذِهِ القُلُوبَ تَمِلُّ کما تمل الأبدانُ فَابتَغُوا لَها طَرائِفَ الحِكَمِ : (3549 )

165. दिल , बदन की तरह थक जाते हैं , उन्हें खुश करने के लिये नया ज्ञान व बुद्धिमत्ता तलाश करो।

166. إنَّ أفضَلَ الخَيرِ صَدَقَةُ السِّرِّ وَبِرُّ الوالِدَينِ وَصِلَةُ الرَّحِمِ : (3550 )

166. सब से अच्छी नेकी छिपा कर सदका देना , माँ बाप के साथ भलाई करना और सिला –ए- रहम (रिश्तेदारों के साथ मेल जोल से रहना) करना है।

167. إنَّ النّاسَ إلى صالِحِ الأدَبِ أحوَجُ مِنهُم إلَى الفِضَّةِ وَالذَّهَبِ : (3590 )

167. लोगों को सदाचार की ज़रुरत , सोने चांदी से अधिक है।

168. إنَّ حَوائِجَ النّاسِ إلَيكُم نِعمَةً مِنَ اللهِ عَلَيكُم فَاغتَنِمُوها وَلا تَمَلُّوها فَتَتَحَوَّلَ نَقَماً : (3599 )

168. तुम से लोगों की ज़रुरतों का जुडा होना , तुम्हारे लिए अल्लाह की नेमत है , उसे अच्छा समझो और उस से दुखी न हो वर्ना वह निक़मत में बदल जायेगी। (निक़मत शब्द हर प्रकार की बुराई को सम्मिलित है)

169. اِن كُنتُم تُحِبُّونَ اللهَ فَأخِرِجُوا مِن قُلُوبِكُم حُبَّ الدُّنيا : (3747 )

169. अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो अपने दिल से दुनिया की मोहब्बत निकाल दो।

170. إن تَنَزَّهُوا عَنِ المَعاصِي يُحبِبكُمُ اللهُ : (3759 )

170. अगर तुम गुनाहों से पाक हो जाओ तो अल्लाह तुम से मोहब्बत करेगा।

171. إنَّكَ إن أطَعتَ اللهَ نَجّاكَ وأصلَحَ مَثواكَ : (3806 )

171. अगर तुम अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हें निजात (मुक्ति) देगा और तुम्हारे ठिकाने को अच्छा बना देगा।

172. إنَّكَ لَن يُغنِي عَنَكَ بَعدَ المَوتِ إلاّ صالِحُ عَمَل قَدَّمتَهُ فَتَزَوَّد مِن صالِحِ العَمَلِ : (3815 )

172. मरने के बाद , तुम्हें तुम्हारे उन कार्यों के अलावा कोई चीज़ फायदा नहीं पहुंचायेगी जो तुम ने आगे भेज दिये हैं अतः नेक कामों को तुम अपना तोशा बना लो। (यात्रा के दौरान काम आने वाली हर चीज़ को तोशा कहते हैं , यहाँ पर इस बात की ओर इशारा किया गया है कि परेलोक की यात्रा के लिए अच्छे कार्यों को इकठ्ठा करो ताकि वह इस यात्रा में तुम्हारे काम आयें।)

173. اِنَّمَا العاقِلُ مَن وَعَظَتَهُ التَّجارِبُ : (3863 )

173. बुद्धिमान वह है जो अपने तजुर्बों से शिक्षा ले।

174. إنَّما سُمِّيَ العَدُوُّ عَدُوّاً لاَِنَّهُ يَعدُو عَلَيكَ فَمَن داهَنَكَ فِي مَعايِبِكَ فَهُوَ العَدُوُّ العادي عَلَيَكَ : (3876 )

174. दुश्मन को दुश्मन इस लिये कहा जाता है , क्योंकि वह तुम्हारे ऊपर अत्याचार करता है , अतः जो तुम्हें तुम्हारी बुराइयाँ बाताने से बचे , वह तुम्हारा दुश्मन है क्योंकि उसने तुम पर अत्याचार किया है।

175. إنَّما زُهدَ النّاسِ في طَلَبِ العِلمِ كَثرَةُ ما يَرَونَ مِن قِلَّةِ مَن عَمِلَ بِما عَلِمَ : (3895 )

175. जिस चीज़ ने इंसानों को ज्ञान प्राप्ति से रोका है , वह यह है कि बहुतसे देखते हैं कि अपने अपने इल्म पर अमल करने वाले अर्थात अपने ज्ञान पर क्रियान्वित होने वाले कम हैं।

176. إنَّما قَلبُ الحَدَثِ كَالأرضِ الخالِيَةِ مَهما أُلقِيَ فيها مِن كُلِّ شَيء قَبِلَتهُ : (3901 )

176. नौजवान का दिल उस ज़मीन के समान है जिस में अभी खेती न की गई हो अतः उस में जो कुछ डाला जायेगा वह उसे ही स्वीकार कर लेगा।

177. إذا صَنَعتَ مَعرُوفاً فَاستُرهُ : (3981 )

177. जब कोई नेकी करो तो उसे छिपा लो।

178. إذا صُنِعَ اِلَيكَ مَعرُوفٌ فَاذكُر : (4000 )

178. जब तुम से कोई भलाई करे तो उसे याद रखो।

179. إذا تَمَّ العَقلُ نَقَصَ الكَلامُ : (4011 )

179. जब बुद्धी पूर्ण हो जाती है तो बातें कम हो जाती हैं।

180. إذا أَضَرَّتِ النَّوافِلُ بِالفَرائِضِ فَارفُضُوها : (4015 )

180. जब मुस्तहब चीज़ें , वाजिब चीज़ों को नुक्सान पहुंचाने लगें तो उन्हें छोड़ दो।

181. إذا ظَهَرَتِ الجِناياتُ ارتَفَعَتِ البَرَكاتُ : (4030 )

181. जब बुरे काम व गुनाह खुले आम होने लगते हैं तो बरकत ख़त्म हो जाती है।

182. إذا رَأيتَ عالِماً فَكُن لَهُ خادِماً : (4044 )

182. जब आलिम को देखो तो उसकी सेवा करो।

183. إذا قامَ أحَدُكُم إِلَى الصَّلاةِ فَليُصَلِّ صَلاةَ مُوَدِّع : (4050 )

183. जब तुम में से कोई नमाज़ के लिये खड़ा हो तो इस तरह नमाज़ पढ़े जैसे वह उसकी आखरी नमाज़ है।

184. إذا أبصَرَتِ العَينُ الشَّهوَة عَمِيَ القَلبُ عَنِ العاقِبَةِ : (4063 )

184. जब आँख हवस की तरफ़ देखती है तो दिल उसके नतीजे को देखने से अंधा हो जाता हैं।

185. إذا رَاَيتَ مَظُلوماً فَاَعِنهُ عَلَى الظّالِمِ : (4068 )

185. जब किसी मज़लूम को देखो तो ज़ालिम के मुक़ाबले में उसकी मदद करो।

186. اِذا رَغِبتَ فِي المَكارِمِ فَاجتَنِبِ المَحارِمَ : (4069 )

186. अगर बुज़ुर्गी व सम्मान चाहतें हो तो हराम काम से दूर हो जाओ।

187. إذا أكرَمَ اللهُ عَبداً شَغَلَهُ بِمَحَبَّتِهِ : (4080 )

187. जब अल्लाह किसी बन्दे का आदर करता है तो उसे अपनी मोहब्बत में व्यस्त कर देता है।

188. إذا عَلَوتَ فَلا تُفَكِّر فِيمَن دُونَكَ مِنَ الجُهّالِ ولكِنِ اقتَدِ بِمَن فَوقَكَ مِنَ العُلَماءِ : (4092 )

188. जब किसी उच्चता पर पहुंचो तो अपने से नीचे के जाहिलों के बारे में न सोचो , बल्कि अपने से ऊपर वाले आलिमों का अनुसरण करो।

189. إذا رَأيتَ في غَيرِكَ خُلقاً ذَمياً فَتَجَنَّب مِن نَفسِكَ اَمثالَهُ : (4098 )

189. जब तुम किसी में कोई अख़लाकी बुराई देखो तो स्वयं को उस जैसी बुराईयों से दूर रखो।

190. إذا أرادَ اللهُ بِعَبد خَيراً ألهَمَهُ القَناعَةُ وأصَلَحَ لَه زَوجَهُ : (4115 )

190. जब अल्लाह किसी बन्दे की भलाई चाहता है तो उसके दिल में क़िनाअत (कम को अधिक समझना) डाल देता है और उसकी बीवी को नेक बना देता है।

191. إذا أرادَ اللهُ سُبحانَهُ صَلاحَ عَبد ألهَمَهُ قِلَّةَ الكَلامِ وَقِلَّةَ الطَّعامِ وَقِلَّةَ المَنامِ : (4117 )

191. जब अल्लाह किसी बन्दे का सुधार व भलाई चाहता है तो उसके दिल में कम बोलने , कम खाने , कम सोने की बात डाल देता है।

192. اِذا هَمَمتَ بِآمر فَاجتَنِب ذَميمَ العَواقِبِ فِيهِ : (4119 )

192. जब किसी काम का इरादा करो तो उसके बुरे नतीजे से बचो।

193. إذا سَأَلتَ فَاسأل تَفَقُّهاً وَلا تَسأَل تَعَنُّتاً : (4147 )

193. जब कोई सवाल पूछो तो समझने व जानने के लिये पूछो , दूसरों का इम्तेहान लेने के लिये नहीं।

194. إذا كَتَبتَ كِتاباً فَأَعِد فيهِ النَّظَرَ قَبلَ خَتمِهِ فَإنَّما تَختِمُ عَلى عَقِلِكَ : (4167 )

194. जब तुम कोई चीज़ लिखो तो उस पर मोहर लगाने से पहले उसे एक बार फिर पढ़ कर देख लो क्योंकि तुम अपनी बुद्धी पर मोहर लगा रहे हो।

195. إذا رَغِبتَ في صَلاحِ نَفسِكَ فَعَلَيكَ بِالاِقتِصادِ وَالقُنُوعِ وَالتَّقَلُّلِ : (4172 )

195. अगर स्वयं को सुधारना चाहते हो तो मयानारवी (न कम न अधिक) से खर्च करो , जो मिले उस पर खुश रहो और इच्छाओं को कम कर दो।


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