सृष्टि का मोती

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सृष्टि का मोती : मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

सृष्टि का मोती

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
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सृष्टि का मोती

सृष्टि का मोती

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

दूसरा हिस्सा

जन्म के समय से हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) की शहादत तक

हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) की ज़न्दगी का यह ज़माना बहुत से महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर आधारित है जिन में से कुछ की तरफ यहाँ पर इशारा किया जाता है।

इमाम महदी (अ.स.) से शिओं का परिचय

चूँकि हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) का जन्म बहुत ही गुप्त रूप से हुआ था , इस वजह से यह डर था कि शिया आखरी इमाम की पहचान में ग़लत फ़हमी या भटकाव का शिकार हो सकतें हैं। इस लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह बुज़ुर्ग और भरोसेमंद शिया लोगों को अपने बेटे के जन्म के बारे में बतायें और उनकी पहचान करायें ताकि वह इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) के जन्म की खबर को अहलेबैत (अ.स.) के शियों तक पहुँचा दें। इस सूरत में इमाम की शिनाख्त और पहचान भी हो जायेगी और उनके सामने कोई खतरा भी नहीं आयेगा।

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के एक खास शिया , अहमद इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि :

मैं एक बार हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास गया। मैं उन से यह सवाल पूछना चाहता था कि आपके बाद इमाम कौन होगा ? लेकिन मेरे कहने से पहले ही इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ अहमद ! बेशक ख़ुदा वन्दे आलम ने जिस वक़्त से हज़रत आदम (अ.स.) को पैदा किया उस वक़्त से आज तक ज़मीन को कभी भी अपनी हुज्जत से खाली नहीं रखा और यह सिलसिला कयामत तक जारी रहेगा। अल्लाह अपनी हुज्जत के ज़रिये ज़मीन से बलाओं को दूर करता है और उसी के वजूद की बरकत से)रहमत की बारिश करता रहता है।

मैं ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल के बेटे आपके बाद आपका जानशीन व इमाम कौन है ?

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) फौरन अपने घर के अन्दर तशरीफ़ ले गए और एक तीन साल के बच्चे को अपनी गोद में ले कर वापस आये। उस बच्चे की सूरत चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रही थी। इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ अहमद बिन इस्हाक़ ! अगर तुम ख़ुदा वन्दे आलम और उसकी हुज्जतों के नज़दीक़ मोहतरम व आदरनीय न होते तो मैं अपको अपने इस बेटे को कभी न दिखाता। बेशक इस का नाम और कुन्नियत , पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है और यह वही है जो ज़मीन को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जिस तरह वह इस से पहले ज़ुल्म व सितम से भरी होगी।

मैं ने अर्ज़ किया : ऐ मेरे मौला व आक़ा क्या कोई ऐसी निशानी है जिस से मेरे दिल को सकून हो जाये ?

इस मौक़े पर उस बच्चे ने अपनी ज़बान को खोला और बेहतरीन अरबी में इस तरह बात की:

” اٴنَا بَقِیَّةُ اللهِ فِی اٴرْضِہِ وَ المُنتَقِمُ مِنْ اٴعْدَائِہِ۔۔۔ “

मैं ज़मीन पर बक़ीयतुल्लाह हूँ और अल्लाह के दुश्मनों से बदला लेने वाला हूँ। ऐ अहमद इब्ने इस्हाक़ ! तुम ने अपनी आँखों से सब कुछ देख लिया है अतः अब किसी निशानी की ज़रुरत नहीं है।

अहमद इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि : मैं (यह बात सुनने के बाद) खुशी खुशी हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के मकान से बाहर आ गया...

इसी तरह मोहम्द इब्ने उस्मान और कुछ बुज़ुर्ग शिया नक्ल करते हैं कि :

हम चालीस लोग मिल कर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की खिदमत में गये। हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने बेटे की ज़ियारत कराई और फरमाया : मेरे बाद यही बच्चा , मेरा जानशीन और तुम्हारा इमाम होगा। तुम लोग इसकी इताअत (आज्ञा पालन) करना , और मेरे बाद अपने दीन में बिखर न जाना वर्ना हलाक़ हो जाओगे और (जान लो कि) आज के बाद तुम इन को नहीं देख पाओगे...।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जन्म के बाद बच्चे का अक़ीका सुन्नत है और इसकी बहुत ताकीद भी की गई है। दीन के इस हुक्म के बारे में कहा गया है कि भेड़ बकरी ज़िब्ह कर के कुछ मोमेनीन को खाना खिलाये , इस की बरकत से बच्चे की उम्र लंबी होती है। अतः हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने इस बेटे ( हज़रत इमाम महदी (अ. स).) के लिए अक़ीक़ा किया.. ताकि नबी (स.) की इस इबेहतरीन सुन्नत पर अमल करते हुए बहुत से शियों को बारहवें इमाम के जन्म से अवगत करायें।

मुहम्मद इब्ने इब्राहीम कहते हैं कि :

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अक़ीक़े में ज़िब्ह की गई भेड़ अपने एक शिया के पास भेजी और फरमाया : यह मेरे बेटे (मुहम्मद) के अक़ीक़े का गोश्त है....

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मोजज़ें और करामतें

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी का एक हिस्सा , उनके बचपन का ज़माना है जिस में उनके ज़रिये बहुत से मोजज़ें और करामतें देखने को मिलीं हैं , जब कि अल्लाह की इस आख़री हुज्जत की ज़िन्दगी का यह हिस्सा हमारी ग़फ़लत का शिकार हुआ है। हम यहाँ पर उनकी करामतों में से सिर्फ़ एक नमूना पेश कर रहे हैं।

इब्राहीम इब्ने अहमद निशा पूरी कहते हैं कि :

जिस वक़्त अम्र बिन औफ़ ने (वह एक ज़ालिम और सितमगर बादशाह था और उसे शियों को क़त्ल करने का बहुत ज़्यादा शौक़ था) मुझे क़त्ल करने का इरादा किया , उस वक़्त मैं बहुत ज़्यादा डरा हुआ था। मेरा पूरा जिस्म डर से काँप रहा था। मैं अपने दोस्तों और परिवार वालों से ख़ुदा हाफ़िज़ी कर के हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के घर की तरफ़ रवाना हुआ ताकि उन से भी ख़ुदा हाफिज़ी कर लूँ। मेरा इरादा था कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) से मुलाक़ात के बाद कहीँ भाग जाऊँगा। जब मैं हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के मकान पर पहुँचा तो हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास एक बच्चे को देखा उसका चेहरा चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रहा था। मैं उस का नूर देख कर हैरान रह गया , और क़रीब था कि अपने इरादे (क़त्ल के डर से भागने का इरादा) को भूल जाऊँ।

उस मौक़े पर उस बच्चे ने मुझ से कहा कि ऐ इब्राहीम भागने की ज़रूरत नही है। अल्लाह बहुत जल्दी तुम्हें उसके ज़ुल्म से बचा लेगा।

यह सुन कर मेरी हैरानी और बढ़ गई , मैं ने हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) से कहा : मैं आप पर कुर्बान ये बच्चा कौन है , जो मेरे इरादों से जानता है ? हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) ने फ़रमाया : ये मेरा बेटा है और मेरे बाद मेरा जानशीन है।

इब्राहीम कहते हैं कि : मैं हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के मकान से इस हालत में बाहर निकला कि मुझे ख़ुदा के लुत्फ़ व करम की उम्मीदवार थी और मैं ने जो बारहवें इमाम (अ.स.) से सुना था उस पर यक़ीन रखता था। अतः कुछ दिनों के बाद ही मेरे चचा ने मुझे अम्र बिन औफ़ के क़त्ल होने की खुश खबरी दी...

सवालों के जवाब

आसमाने इमामत के आख़री रौशन सितारे हज़रत इमाम महदी (अ.स.) अपनी ज़िन्दगी के शुरू से शियों को उनके सवालों के सही , ठोस और संतुष्ट करने वाले जवाब देते थे। उनके जवाबों को सुन कर शियों के दिलों में सकून व इत्मिनान पैदा होता था। हम यहाँ पर ऐसे ही सवालों व जवाबों से संबंधित एक रिवायत नमूने को तौर पर लिख रहे हैं।

सअद इब्ने अब्दुल्लाह क़ुम्मी (यह शियों में एक बहुत बड़ी शख्सीयत थे।) , अहमद इब्ने इस्हाक़ क़ुम्मी (यह हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के वकील थे।) के साथ कुछ सवालों के जवाब मालूम करने के लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास गये , वापस आकर उन्होंने इस मुलाक़ात का विवरण इस तरह बताया :

जब मैं ने सवाल करना चाहा तो हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने बेटे की तरफ़ इशारा करते हुए फरमाया : मेरे इस बेटे से सवाल करो। यह सुन कर बच्चे ने मेरी तरफ़ मुँह करके फरमाया : तुम जो सवाल भी पूछना चाहते हो पूछ सकते हो। मैं ने सवाल किया कुरआन के हुरुफ़ मुकत्तेआत में से ”کھیعص “ का क्या मक़सद है ? इमाम (अ.स.) ने फरमाया : य u हुरुफ़ ग़ैब के मसाइल में से हैं। ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने बन्दे और पैग़म्बर जनाब ज़करिया को उनके बारे में बताया और फिर उनके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को दो बारा बताया।

वाक़िया यूं है कि हज़रत ज़करिया (अ.स.) ने ख़ुदा वन्दे आलम से दुआ की कि मुझे पंजतन (आले एबा) के नाम बता दे , ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे जिब्रईल को नाज़िल किया और उन्होंने उनको पंजतन के नाम बताये। जैसे ही जनाबे ज़करीया ने इन मुकद्दस नामों हज़रत मुहम्मद (स.) हज़रत अली (अ.स.) , हज़रत फातिमा (स. अ.) और हज़रत हसन (अ.स.) को अपनी ज़बान से लिया तो उनकी मुशकिलें दूर हो गईं और जब उनकी ज़बान पर हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का नाम आया तो उनका दिल भर आया और वह चकित हो कर रह गये। उन्होंने एक दिन अल्लाह की बारगाह में दुआ की कि ऐ अल्लाह ! जिस वक़्त मैं इन चार इंसानों के नामों को लेता हूँ तो मेरी परेशानियाँ और मुश्किलें दूर हो जाती हैं और दिल को सकून मिलता है , लेकिन जब मैं हुसैन (अ.स.) का नाम लेता हूँ तो मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं और मेरे रोने की आवाज़ बुलन्द हो जाती है ! पालने वाले इस की क्या वजह है ? ख़ुदा वन्दे आलम ने उनको हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का वाकिया सुनाया और फरमाया : ”کھیعص “ इसी वाकिये की तरफ़ इशारा है। इन हरफ़ों में ”کاف “ से मुराद वाकिया ए करबला , और ”ھا “ से उनके खानदान की हलाकत (शहादत) मुराद है और ”یا “ से यज़ीद के नाम की तरफ़ इशारा है , जो इमाम हुसैन (अ.स.) पर ज़ुल्मो सितम करने वाला है , और ”ع “ से इमाम हसन (अ.स.) की अतश और प्यास मुराद है , और ”صاد “ से हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का सब्र व मुराद है।

मैं ने सवाल किया : मेरे मौला व आक़ा लोगों को अपने लिए ख़ुद इमाम बनाने से क्यों रोका गया है ?

इमाम (अ.स.) ने फरमाया : इमाम से तुम्हारा अभिप्रायः कौनसा इमाम है , बुराईयाँ फैलाने वाला इमाम या समाज को सुधारने वाला इमाम ? मैं ने कहा : समाज को सुधारने वाला इमाम , इमाम (अ.स.) ने फरमाया : क्योंकि कोई भी किसी दूसरे के दिल की बातें नहीं जानता हैं कि वह नेकी व भलाई के बारे में सोचता है या बुराई के बारे में , इस सूरत में क्या इस बात की शंका नहीं पाई जाती कि जनता जिसे अपना इमाम चुने वह बुराईयाँ फैलाने वाला हो। मैं ने कहा : जी हाँ इस बात की शंका तो पाई जाती है। मेरे इस जवाब को सुनकर इमाम (अ.स.) ने फरमाया : बस यही वजह है...

उल्लेखनीय है कि इस रिवायत के अन्त में इमामे ज़माना (अ.स.) ने दूसरे कारणो का भी वर्णन किया हैं और दूसरे सवालों के जवाब भी दिये हैं , हम ने संक्षेप की वजह से पूरी रिवायत का उल्लेख नहीं किया है।

तोहफ़ें क़बूल करना

शिया लोग मासूम इमामों (अ.स.) के लिए तोहफे और माली वाजेबात (ख़ुम्स) ले जाया करते थे और मासूम इमाम इन को क़बूल कर के ग़रीब और मुहताज लोगों में बाँट दिया करते थे।

इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के वकील इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि :

मैं ने शियों की भेजी हुई कुछ रक़म हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की सेवा में प्रस्तुत की , उस समय इमाम (अ.स.) का एक छोटा बच्चा जिस का चेहरा चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रहा था , इमाम के पास मौजूद था। इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने उसकी तरफ़ मुँह कर के फरमाया : ऐ मेरे बेटे ! अपने शियों और दोस्तों के तोहफ़ों को खोलो , यह सुन कर उस बच्चे ने कहा : ऐ मेरे मौला व आक़ा , क्या यह बात उचित है कि मैं उन नापाक़ और तुच्छ तोहफ़ों की तरफ़ अपने पाक व पाक़ीज़ा हाथों को बढ़ाऊँ जो हलाल व हराम से मिले हुए हैं।

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : ऐ इब्ने इस्हाक़ ! इन सब तोहफ़ों व उपहारों को बाहर निकालो ताकि इन में से हलाल व हराम को अलग अलग किया जाये। इमाम के हुक्म पर मैं ने एक थैली बाहर निकाली तो उस बच्चे ने कहा : यह थैली क़ुम से उस मुहल्ले और उस इंसान की है (जिस इंसान ने वह थैली भेजी थी इमाम ने उस इंसान और उसके मुहल्ले का नाम लिया) इस थैली में 62 दीनार हैं इस में से 45 दीनार एक बंजर ज़मीन को बेच कर के कमाये गये है , और उसके मालिक को वह ज़मीन मीरास में मिली थी और इस में 14 दीनार 9 जोड़ी कपड़ो को बेच करके कमाये गये हैं , और बाक़ी तीन दीनार दुकान के किराये के हैं।

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : ऐ मेरे प्यारे बेटे आप ने सही फरमाया , अब इस मर्द की रहनुमाई (मार्गदर्शन) करो कि इस माल में कौन सा माल हराम है। यह सुन कर उस बच्चे ने भर पूर दिक्कत के साथ हराम सिक्कों को निश्चित किया और उनके हराम होने की वजह को स्पष्ट रूप में बताया।

मैं ने दूसरी थैली निकाली तो उस बच्चे ने उस के मालिक का नाम और पता बताने के बाद फरमाया : इस थैली में 50 दीनार हैं और उनको हाथ लगाना हमारे लिए जायज़ नहीं है। इस के बाद उस माल में से हर एक के हराम होने की वजह बताई।

उस मौके पर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : ऐ मेरे बेटे आप ने सही फरमाया। फिर इमाम (अ.स.) ने अहमद इब्ने इस्हाक़ की तरफ़ चेहरा करके फरमाया : इन सब को इन के मालिकों को वापस कर दो , और उन से कहना कि वह इन्हें उन के मालिकों को वापस कर दें , हमें इस माल की कोई ज़रुरत नहीं है....

अपने पिता की नमाज़े मैय्यत पढ़ाना

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत से पहले और मख्फ़ी (छुप कर) रहने के ज़माने का आखरी हिस्सा अपने पिता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना है।

इस बारे में हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के ग़ुलाम अबुल अदियान का कहना है कि :

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपनी उम्र के आखरी दिनों में मुझे कुछ ख़त दिये और फरमाया : इन को मदाइन नामक शहर में पहुँचा दो , जब तुम इनको पहुँचा कर 15 दिन के बाद सामर्रा वापस पलटोगे तो मेरे घर से रोने पीटने की आवाज़ें सुनोगे और (मेरे बदन को) गुस्ल के तख्ते पर देखोगे। मैं ने इमाम अ. स. से पूछा ऐ मेरे मौला व आक़ा ! इस घटना के घटित होने के बाद आप का जानशीन और हमारा इमाम कौन होगा ? इमाम (अ.स.) ने फरमाया : जो भी तुम से इन ख़त के जवाब माँगेगा वही मेरे बाद तुम्हारा इमाम होगा। मैं ने कहा उसकी कोई दूसरी निशानी बताईये , हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : जो इंसान मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़ायेगा वही मेरे बाद तुम्हारा इमाम होगा। मैं ने कहा कुछ और निशानी बताईये , हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : जो इंसान यह बता दे कि इस थैली में क्या है , वही तुम्हारा इमाम होगा। उस वक़्त मुझ पर इमाम (अ.स.) का ऐसा रोब छाया कि मैं यह सवाल न कर सका कि इस थैली में क्या है।

मैं इमाम (अ.स.) के उन खतों को ले कर मदाइन गया और उनका जवाब ले कर वापस आया। इमाम (अ.स.) ने जो फरमाया था वह सच हुआ , जब मैं 15 दिन के बाद सामर्रा वापस पलटा तो देखा कि हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) के घर से रोने पीटने की आवाज़ें आ रही हैं और हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) के मुबारक बदन को गुस्ल के लिए तख़्ते पर लिटा रखा है। मैं ने देखा कि इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के भाई जाफ़र दरवाज़े पर खड़े हैं और कुछ शिया उनको भाई की शहादत पर दिलासा दे रहे हैं और साथ ही साथ उन्हें इमामत की मुबारक बाद भी पेश कर रहे हैं। मैं ने अपने दिल में कहा कि अगर यह (जाफ़र) इमाम हो गए तो इमामत तबाह व बर्बाद हो जायेगी , क्यों कि मैं उसको पहचानता था व शराबी और जुवारी इंसान था। लेकिन चूँकि मैं निशानियों की तलाश में था इस लिए मैं भी आगे बढ़ा और मैं ने भी दूसरों की तरह दिलासा देते हुए मुबारक़ बाद पेश की , लेकिन उसने मुझ से किसी भी चीज़ (अर्थात खतों के जवाबों व अन्य चीज़ों) के बारे में सवाल नही किया। उसी वक़्त इमाम के घर का नौकर अक़ीद घर से बाहर आया और उसने जाफ़र को संबोधित करते हुए कहा : ऐ मेरे मौला व आक़ा ! आप के भाई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) को कफ़न दिया जा चुका है , अब चल कर उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ा दीजिये। जब मैं दूसरे शियों के साथ इमाम के घर में दाखिल हुआ तो मैं ने देखा कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के जनाज़े को क़फ़न दे कर ताबूत में रखा जा चुका है। जाफ़र अपने भाई की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के लिए आगे बढ़े , लेकिन जैसे ही उन्होंने तक़बीर कहनी चाही तभी एक गेहूँवे रंग , घुंघराले बाल और चमकदार व आपस में मिले हुए दाँतों वाला बच्चा आगे बढ़ा और जाफ़र का दामन पकड़ कर कहा : ऐ चचा आप पीछे हटें , मैं अपने बाप के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ने का ज़्यादा हक़दार हूँ। जाफ़र के चेहरे का रंग बदल गया और वह शर्मिन्दा हो कर पीछे हट गये। वह बच्चा आगे बढ़ा और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ी। उस के बाद मुझ से फरमाया : तुम्हारे पास खतों के जो जवाब हैं वह मुझे दे दो। मैं ने वह खत उनको दिये और अपने दिल ही दिल में कहा कि मुझे इस बच्चे की इमामत पर दो निशानियाँ मिल गई हैं और अब सिर्फ़ थैली वाली बात बाक़ी रह गई है। मैं जाफ़र के पास गया तो देखा कि वह आहे भर रहे हैं , किसी शिया ने उन से सवाल किया यह बच्चा कौन है ?

जाफ़र ने कहा : ख़ुदा की क़सम मैं ने इस को अभी तक नहीं देखा था और न ही मैं इस को पहचानता हूँ।

अबूल अदियान कहते हैं कि हम बैठे हुए थे कि कुछ लोग क़ुम से आये और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के बारे में सवाल करने लगे। जब उनको मालूम हुआ कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत हो चुकी है तो कहने लगे कि अब हम किस के पास अफ़सोस के लिए जायें तो लोगों ने जाफ़र की तरफ़ इशारा किया , वह आगे बढ़े और उन्होंने जाफ़र को सलाम करने के बाद इमाम की शहादत पर दिलासा देते हुए इमामत की मुबारकबाद पेश की और फिर उन्होंने जाफ़र को संबोधित कर के कहा : हमारे पास कुछ ख़त और कुछ रक़म हैं , आप सिर्फ़ यह बता दीजिये कि यह ख़त किस के हैं और रक़म कितनी है।

जाफ़र नाराज़ हो कर अपनी जगह से उठे और कहने लगे : क्या हमारे पास गैब का इल्म हैं। इसी वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का एक ग़ुलाम बाहर निकला और उसने कहा : यह ख़त उस उस इंसान के हैं (ख़त भेजने वालों के नाम व पते बताये) और तुम्हारे पास एक थैली है जिस में एक हज़ार दिनार है उस में से दस दिनारों की तस्वीर मिट चुकी है। यह सुनकर उन लोगों ने वह ख़त और रक़म उसको दे दी और कहा : जिस ने तुम्हें यह चीज़ें लेने के लिए भेजा है वही इमाम हैं.....।

तीसरा हिस्सा

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) कुरआन व हदीस की रौशनी में

कुरआने क़रीम की रौशनी में

कुरआने करीम अल्लाह को पहचनवाने वाला , हमेशा बाकी रहने वाला और इंसानों के लिए ज़रुरी इल्म का बहता हुआ दरिया है। यह एक ऐसी किताब है जिस में पूरी सच्चाई पाई जाती है। इस में पूर्व में घटित घटनाओ और आगे घटित होने वाली घटनाओं आदि का उल्लेख मिलता है। अल्लाह ने इस किताब में किसी भी हक़ीक़त को वर्णन किये बग़ैर नहीं छोड़ा है। यह बात स्पष्ट है कि दुनिया की बहुत सी हक़ीक़तें अल्लाह की इन आयतों में छुपी हुई हैं और उन हक़ीक़तों तक सिर्फ़ वही लोग पहुँच पाते हैं जो कुरआन की गहराई तक पहुँच जाते हैं। कुरआने करीम के सच्चे मुफ़स्सिर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और उनकी पाक औलाद है।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का कियाम (आन्दोलन) और इन्क़ेलाब (क्रान्ति) इस दुनिया की सब से बड़ी हक़ीक़त है जिस के बारे में कुरआने करीम की कुछ आयतों और उन आयतों की तफ़्सीर से संबंधित बहुत सी रिवायत में इशारा हुआ है। हम यहाँ पर इसके कुछ नमूने पेश कर रहे हैं।

सूरः ए नबियों की आयत न. 105 में वर्णन होता है :

<وَلَقَدْ کَتَبْنَا فِی الزَّبُورِ مِنْ بَعْدِ الذِّکْرِ اٴَنَّ الْاٴَرْضَ یَرِثُہَا عِبَادِی الصَّالِحُونَ۔ >

और हम ने ज़िक्र के बाद ज़बूर में भी लिख दिया है कि हमारी ज़मीन के वारीस हमारे नेक बन्दे ही होंगे।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :

ज़मीन को विरासत में लेने वालों से अभिप्रायः अल्लाह के वह नेक बन्दे हैं जो हज़रत इमाम महदी (अ.स.) मददगार हैं....

इसी तरह सूरः ए क़िसस में वर्णन होता है :

وَنُرِیدُ اٴَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ اسْتُضْعِفُوا فِی الْاٴَرْضِ وَنَجْعَلَہُمْ اٴَئِمَّةً وَنَجْعَلَہُمْ الْوَارِثِینَ

और हम यह चाहते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर बना दिया गया है ( अर्थात जिनका शोषण किया गया) हम उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का इमाम बनाये और उन्हीँ को ज़मीन के वारिस भी बनायें।

हज़रत इमाम अली (अ.स.) फरमाते हैं कि :

यहाँ पर शोषित वर्ग से अभिप्रायः पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की औलाद है , ख़ुदा वन्दे आलम इस खानदान की परेशानियों के बाद (महदी) के ज़रिये एक इन्क़ेलाब को कामयाब बनायेगा और उनकी हुकूमत को आख़िरी हद तक पहुँचा देगा और उनके दुशमनों को ज़लील कर देगा....

इसी तरह सूरः ए हूद आयत 86 में वर्णन हुआ है :

بَقِیَّةُ اللهِ خَیْرٌ لَکُمْ إِنْ کُنتُمْ مُؤْمِنِینَ

अगर तुम मोमिन हो तो अल्लाह की तरफ़ का ज़ख़ीरा तुम्हारे हक़ में बहुत बेहतर है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :

जिस वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे खाना ए काबा की दीवार से टेक लगायेंगे और सब से पहले इसी आयत की तिलावत करेंगे और उस के बाद कहेंगे : اَنَا بَقِیَّةُ اللهِ فی اٴَرْضِہِ وَ خَلِیفَتُہُ وَ حُجَّتُہُ عَلَیکُمْ “ मैं ज़मीन पर बक़ीयतुल्लाह , अल्लाह का ख़लीफ़ा और तुम पर उस की हुज्जत हूँ।

इसके बाद जो इंसान भी इमाम (अ.स.) को सलाम करेगा वह इस तरह कहेगा :

اَلسّلامُ عَلَیکَ یَا بَقِیَّةَ اللهِ فی اٴَرْضِہِ “ .

और सूरः ए हदीद की आयत न. 17 में वर्णन होता है :

اعْلَمُوا اٴَنَّ اللهَ یُحْیِ الْاٴَرْضَ بَعْدَ مَوْتِہَا قَدْ بَیَّنَّا لَکُمْ الْآیَاتِ لَعَلَّکُمْ تَعْقِلُونَ۔

याद रखो कि ख़ुदा मुर्दा ज़मीनों को ज़िन्दा करने वाला है और हम ने तमाम निशानियों का स्पष्ट रूप में वर्णन कर दिया है ताकि तुम अक्ल से काम ले सको।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :

अभिप्रायः यह है कि ख़ुदा वन्दे आलम ज़मीन को हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के वक़्त उनकी अदालत के ज़रिये ज़िन्दा करेगा जो ज़ालिम बादशाहों के ज़ुल्मो सितम की वजह से मुर्दा हो चुकी होगी....

रिवायत की रौशनी में

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के बारे में हमारे पास बहुत सी रिवायतें मौजूद हैं और इन रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं को मासूम इमामों (अ.स.) ने अलग अलग बयान किया है , जैसे इमाम का जन्म , बच्पन का ज़माना , ग़ैबते सुग़रा , ग़ैबते कुबरा , ज़हूर की निशानियां , ज़हूर का ज़माना , विश्व व्यापी हुकूमत आदि आदि। अतः इमाम महदी (अ.स.) की ज़ाहिरी और अख़लाक़ी विशेषताओं , ग़ैबत के ज़माने और उन के ज़हूर के मुन्तज़िरों (प्रतिक्षा करने वालों) के सवाब के बारे में बहुत महत्वपूर्ण रिवायतें मौजूद हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि उन में से कुछ रिवायतें ऐसी हैं जो शिया और अहले सुन्नत दोनों की क़िताबों में मौजूद हैं। इमाम महदी (अ.स.) के बारे में बहुत ज़्यादा रिवायत मुतावातिर हैं।

यह बात भी उल्लेखनीय है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि सब ही मासूम इमामों (अ.स.) ने उनके बारे में बेहतरीन हदीसें बयान की हैं जो वास्तव में इल्म पर ही आधारित हैं। उन में समानता व न्याय फैलाने वाले इस इमाम के क़ियाम व इंकिलाब (आन्दोलन) का वर्णन है। हम यहाँ पर हर मासूम से एक एक हदीस बयान करना बेहतर समझते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

खुश नसीब हैं वह लोग जो महदी (अ.स.) की ज़ियारत करेंगे और खुश नसीब है वह इंसान जो उन से मुहब्बत करता होगा , और खुश नसीब है वह इंसान जो उन की इमामत को मानता होगा....

हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :

(आले मुहम्मद) के ज़हूर के मुंतज़िर रहो , और ख़ुदा की रहमत से मायूस न होना , बेशक ख़ुदा वन्दे आलम के नज़दीक सब से अच्छा काम ज़हूर का इन्तेज़ार करना है..

हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के लोह.. में वर्णन हुआ है :

इस के बाद अपनी रहमत की वजह से वसी का सिलसिला इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के बेटे पर पूरा कर दूंगा , जो मूसा का कमाल , ईसा का शिकोह , और जनाबे अय्यूब का सब्र रखाता होगा...

हज़रत इमाम हसन मुजतबा (अ.स.) एक रिवायत में रसूले ख़ुदा (स.) के बाद घटित होने वाली घटनाओं का वर्णन करते हुए फरमाते हैं कि :

ख़ुदा वन्दे आलम अख़िरी ज़माने में एक क़ाइम को भेजेगा...और अपने फ़रिश्तों के ज़रिये उनकी मदद करेगा , और उनके मददगारों की हिफ़ाज़त करेगा...और उनको तमाम ज़मीन पर रहने वालों पर विजयी बनायेगा...वह ज़मीन को अदालत , नूर और स्पष्ट दलीलों से भर देंगे...खुश नसीब हैं वह इंसान जो उस ज़माने में होंगे और उन की इताअत (आज्ञा पालन) करेंगे...

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फरमाया :

ख़ुदा वन्दे आलम उनके ( हज़रत इमाम महदी अ. स.) ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा और आबाद कर देगा , और उनके ज़रिये दीने हक़ को अन्य सब दीनों पर गालिब कर देगा , चाहे यह बात मुशरिकों को अच्छी न लगे , वह ग़ैबत को अपनायेंगे जिसकी वजह से एक गिरोह दीन से गुमराह हो जायेगा और एक गिरोह दीने हक़ पर क़ायम रहेगा...बेशक जो इंसान उनकी ग़ैबत के ज़माने में परेशानियों और झुटलाये जाने पर सब्र करेगा वह उस इंसान की तरह होगा जिस ने रसूले ख़ुदा (स.) के साथ रह कर तलवार से जिहाद किया हो....

हज़रत इमाम सज्जाद (अ.स.) ने फरमाया :

जो इंसान क़ाइमे आले मुहम्मद के ज़माने में हमारी मुहब्बत और दोस्ती पर साबित क़दम रहेगा ख़ुदा वन्दे आलम उसे बदर व ओहद के हज़ार शहीदों के बराबर सवाब देगा...

इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया:

एक ज़माना वह आयेगा कि जब लोगों का इमाम ग़ायब होगा , ख़ुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी दोस्ती पर साबित क़दम रहे...

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फरमाया:

काइमे आले मुहम्मद के लिए दो ग़ैबतें होंगी एक ग़ैबते सुग़रा दूसरी ग़ैबते कुबरा होगी...

हज़रत मूसा क़ाज़िम (अ.स.) ने फरमाया :

इमाम महदी अ. स. लोगों की नज़रों से छिपे रहेंगे , लेकिन मोमिनों के दिलों में उन की याद ताज़ा रहेगी...

हज़रत इमामे रिज़ा (अ.स.) ने फरमाया :

जब (इमाम महदी अ. स.) क़ियाम करेंगे उस वक़्त उनके वजूद के नूर से ज़मीन रौशन हो जायेगी और वह लोगों के बीच हक़ व अदालत की तराज़ू स्थापित करेंगे और उस ज़माने में कोई किसी पर ज़ुल्म व सितम नहीं करेगा...

हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ.स.) ने फरमाया :

क़ाइमे आले मुहम्मद की ग़ैबत के ज़माने में मोमिनों को उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करना चाहिए और जब उनका ज़हूर हो जाये और वह क़ियाम करें तो उनकी इताअत (आज्ञा पालन) करनी चाहिए...

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने फरमाया :

मेरे बाद मेरा बेटा हसन (अस्करी) इमाम होगा और उनके बाद उनका बेटा (क़ाइम) इमाम होगा , वह ज़मीन को अदल व इन्साफ़ (न्याय व समानता) से उसी तरह भर देंगे जैसे वह ज़ुल्म व जौर (अत्याचार व भेद भाव) से भरी होगी....

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया :

उस अल्लाह का शुक्र है जिसका कोई शरीक नही है , जिस ने मेरी ज़िन्दगी में मुझे जानशीन (उत्तराधिकारी) दे दिया है , वह शक्ल , सूरत और अख़लाक़ में रसूले ख़ुदा (स.) से सब से ज़्यादा मिलता है...

चौथा हिस्सा

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ग़ैरों की नज़र में

خوشتر آن باشد کہ سرّ دلبران -- گفتہ آید در حدیث دیگران

अर्थात सच्चाई वह है जिसका इक़रार दुशमन भी करे।

इमाम महदी (अ.स.) के विश्वव्यापी आंदोलन का उल्लेख सिर्फ़ शिया किताबों में ही नही बल्कि दूसरे इस्लामी फिरकों की एतेक़ादी किताबों में भी मिलता है और इन किताबों में उनके बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है। वह लोग भी मानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल और हज़रत फातिमा ज़हरा (स. अ.) की औलाद से महदी ज़हूर करेंगे। इमाम महदी (अ.स.) के बारे में अहले सुन्नत के अक़ीदे को जानने के लिए अहले सुन्नत के बड़े आलिमों की किताबों को पढ़ना चाहिए। सुन्नी मुफ़स्सिरों ने अपनी तफ़सीरों में इस बात को स्पष्ट किया है कि क़ुरआने मजीद की कुछ आयतें , आखरी ज़माने में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर की तरफ़ इशारा करती हैं , जैसे फख़रुद्दीन राज़ी.. और अल्लामा क़ुरतुबी..

इसी तरह अहले सुन्नत के अधिकतर मुहद्दिसों (हदीस का वर्णन करने वालों व लिखने वालों को मुहद्दिस कहते हैं) ने इमाम महदी (अ.स.) के संबंध में वर्णित हदीसों को अपनी किताबों में नक्ल किया है और इन में अहले सुन्नत की मोतबर किताबें भी शामिल हैं , जैसे सहाहे सित्ता.. और मुसनदे अहमद इब्ने हंबल (हंबली फिरक़े के स्संथापक))

अहले सुन्नत के कुछ इस ज़माने और कुछ पिछले ज़माने के आलिमों ने इमाम महदी (अ.स.) के बारे में किताबें भी लिखी हैं , जैसे अबू नईम इस्फ़हानी ने (मजमूअतुल अरबईन) चालीस हदीस और सुयूती ने किताब (अलउरफ़ुल वरदी फि अखबारिल महदी (अ.स.)।

यह बात भी उल्लेखनीय है कि अहले सुन्नत के कुछ आलिमों ने महदवीयत के अक़ीदे के पक्ष में और इस अक़ीदे को न मानने वालों की रद में भी किताबें और लेख लिखे हैं। उन्होंने इल्मी बयानों और हदीसों की रौशनी में इमाम महदी (अ.स.) के वाकिये को यक़ीनी माना है और इस वाक़िये को उन मसाइल में रखा है जिनसे इंकार नही किया जा सकता , जैसे मुहम्मद सिद्दीक मग़रिबी इन्हों ने इब्ने ख़ल्दून की रद में एक किताब लिखी है और उसकी बातों का मुँह तोड़ जवाब दिया है...

प्रियः पाठकों हम यहाँ पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के बारे में अहले सुन्नत के अक़ीदे के बारे में कुछ नमूने पेश कर रहे हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया :

अगर दुनिया की उम्र का सिर्फ़ एक दिन भी बाक़ी रह जायेगा तो बेशक ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना लंबा बना देगा कि मेरी नस्ल से मेरा हम नाम एक इंसान क़ियाम करेगा...

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

मेरी नस्ल से एक इंसान क़ियाम करेगा , जिस का नाम और सीरत मुझसे मिलती जुलती होगी , वह दुनिया को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जैसा कि वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी...

यह बात भी उल्लेखनीय है कि यह सब लोग मानते हैं कि आख़िरी ज़माने में इंसानों को निजात दिलाने और इस दुनिया में अदल व इन्साफ़ फैलाने वाला एक इंसान ज़रूर आयेगा। यह अक़ीदा विश्वव्यापी है और इसे सभी लोग क़बूल करते हैं। यह बात भी सच है कि आसमानी धर्मों के मानने वाले सभी लोग अपनी अपनी किताबों की शिक्षाओं के आधार पर उस क़ाइम का इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुकद्दस किताब ज़बूर , तौरैत , इनजील और हिन्दुओं व पारसियों की किताबों में भी मानवता को मुक्ति देने वाले एक इंसान के ज़हूर की तरफ़ इशारा हुआ है। यह बात अलग है कि हर क़ौम ने उसे अलग अलग नामों से याद किया है। पारसियों ने उसे सोशियान्स यानी दुनिया को नेजात देने वाला , और ईसाईयों ने उसे मसीहे मौऊद और यहूदीयों ने सरुरे मीकाइली के नाम से याद किया है।

पारसियों की मुकद्दस किताब "जामा सब नामे" में इस तरह उल्लेख हुआ है।

अरब का पैग़म्बर आखरी पैग़म्बर होगा , जो मक्का के पहाड़ों के बीच पैदा होगा , वह गुलामों के साथ मुहब्बत करेगा और गुलामों की तरह रहे सहेगा , उसका दीन सभी दीनों से बेहतर होगा , उसकी किताब तमाम किताबों को बातिल (निष्क्रिय) करने वाली होगी। उस पैग़म्बर की बेटी जिसका नाम खुरशीद जहां और शाहे ज़मां होगा उसकी नस्ल से ख़ुदा के हुक्म से इस दुनिया में एक ऐसा बादशाह होगा जो इस पैग़म्बर का आखरी जानशीन (उत्तराधिकारी) होगा और उसकी हुकूमत क़ियामत से मिल जायेगी...