चौथा अध्याय
ज़हूर का ज़माना
पहला हिस्सा
ज़हूर से पहले दुनिया की हालत
प्रियः पाठकों ! हम ने पिछले अध्यायों में इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहू शरीफ़) की ग़ैबत और उसके कारणों का उल्लेख किया है। हम ने बताया कि अल्लाह की वह आख़िरी हुज्जत ग़ायब हो गये हैं और जब उनके ज़हूर का रास्ता हमवार हो जायेगा तो वह ज़ाहिर हो कर दुनिया को अपनी हिदायत व मार्गदर्शन से लाभान्वित करेंगे। ग़ैबत के ज़माने में लोग ऐसे काम कर सकते हैं जिनसे इमाम (अ.स.) के ज़हूर का रास्ता जल्दी से जल्दी हमवार हो जाये। लेकिन वह , शैतान , इच्छाओं के अनुसरण , कुरआन की सही तरबियत से दूरी और मासूम इमामों (अ.स.) की विलायत और इमामत को क़बूल न करने की वजह से ग़लत रास्ते पर चल पड़े है। आज इस दुनिया में हर दिन नये ज़ुल्म व अत्याचार की बुनियादें रखी जाती हैं। पूरी दुनिया में ज़ुल्म व सितम बढ़ता जा रहा है और इंसानियत इस रास्ते के चुनाव से एक बहुत भयंकर नतीजे की तरफ़ बढ़ रही है। आज दुनिया की हालत यह है कि चारों तरफ़ ज़ुल्म व अत्याचार फैला हुआ है , बुराईयों का बोल बाला है , अखलाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं का अंत हो चुका है , शाँति व सुरक्षा का दूर दूर तक भी कहीँ पता नहीं है , ज़िन्दगी आध्यात्म व पवित्रता से खाली है , समाज में मातहत लोगों के हक़ों को पैरों तले रौंदा जा रहा है , यह सब चीज़ें ग़ैबत के ज़माने में इंसान का नाम ए आमाल है। यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिस के बारे में मासूमीन (अ.स.) ने शताब्दियों पहले भविषय वाणी कर के इसकी काली तस्वीर पेश कर दी थी।
इमाम सादिक (अ.स.) अपने एक सहाबी से फरमाते हैं कि
"जब तुम देखो कि ज़ुल्म व सितम आम हो रहा है , कुरआन को एक तरफ़ रख दिया गया है , हवा व हवस के आधार पर क़ुरआन की तफ्सीर की जा रही है , अहले बातिल (झूठे) हक़ परस्तों (सच्चों) से आगे बढ़ रहे हैं , ईमानदार लोग ख़ामोश बैठे हुए हैं , रिश्तेदारी के बंधन टूट रहे हैं , चापलूसी बढ़ रही है , नेकियों का रास्ता खाली हो रहा है और बुराइयों के रास्तों पर भीड़ दिखाई दे रही है , हलाल हराम हो रहा है और हराम हलाल शुमार किया जाने लगा है , माल व दौलत गुनाहों और बुराइयों में खर्च किया जा रहा है , हुकूमत के कर्मचारियों में रिशवत का बाज़ार गर्म है , बुरे खेल इतने अधिक चलने लगे कि कोई भी उनकी रोक थाम की हिम्मत नही करता है , लोग कुरआन की हक़ीक़तों को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं , लेकिन बातिल और फुज़ूल चीज़ें सुनना उनके लिए आसान है , अल्लाह के गर का हज दिखावे के लिए किया जा रहा है , लोग संग दिल होने लगें हैं , मोहब्बत का जनाज़ा निकल चुका है , अगर कोई अम्र बिल मअरुफ़ और नेही अनिल मुन्कर करे तो उस से कहा जाये कि यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है , हर साल एक नई बुराई और नई बिदअत पैदा हो रही है , तो ख़ुद को सुरक्षित रखना और इस खतरनाक माहौल से बचने के लिए अल्लाह से पनाह माँगना और समझना कि अब ज़हूर का ज़माना नज़दीक है...।
लेकिन याद रहे कि ज़हूर से पहले की यह काली तस्वीर सब लोगों की नही होगी बल्कि अधिकाँश लोगों की होगी , क्योंकि उस ज़माने में भी कुछ मोमेमीन ऐसे होंगे जो अल्लाह से किये हुए अपने वादों पर बाक़ी रहेंगे और अपने दीन व अक़ीदों की हिफ़ाज़त करेंगे। वह ज़माने के रंग में नहीं रंगे जायेंगे और अपनी ज़िन्दगी का अंजाम बुरा नहीं करेंगे। यह लोग ख़ुदा वन्दे आलम के बेहतरीन बन्दे और मासूम इमामों (अ.स.) के सच्चे शिया होंगे। यही वह लोग होंगे जिनकी रिवायतों में तारीफ़ व प्रशंसा हुई है। यह लोग ख़ुद भी नेक होंगे और दूसरों को भी नेकी की तरफ़ बुलायेंगे , क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि नेकियों और अच्छाईयों को फैलाने और ईमान के इत्र से माहौल को सुगंधित करने से नेकियों के इमाम का ज़हूर जल्दी हो सकता है और उनके क़ियाम व हुकूमत का रास्ता हमवार किया जा सकता है। वह अच्छी तरह समझते हैं कि बुराईयों का मुक़ाबला उसी वक़्त किया जा सकता है जब उस महान सुधारक (इमाम) के मददगार मौजूद हों।
हमारा यह नज़रिया उस नज़रिये के बिल्कुल मुख़ालिफ़ है जिस में कहा गया है कि बुराईयों का फैलाना ज़हूर में जल्दी का सबब बनेगा। क्या यह बात स्वीकारीय है कि मोमेनीन बुराईयों के मुक़ाबले में खामोश बैठे रहें और समाज में बुराईयां फैलती रहें ताकि इस तरह इमाम (अ.स.) के ज़हूर का रास्ता हमवार हो जाये ?! क्या नेकियों और अच्छाईयों का विस्तार इमाम (अ.स.) के ज़हूर में जल्दी का कारण नहीं बन पायेगा।
अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर ऐसा फर्ज़ है जो हर मुसलमान पर वाजिब है और इसको किसी भी ज़माने में नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता है। अतः बुराईयों और ज़ुल्म व सितम का फैलाना इमाम ज़माना (अ.स.) के ज़हूर में जल्दी का कारण किस तरह बन सकता है ?
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
उस उम्मत के आखिर में एक ऐसी क़ौम आयेगी जिसका सवाब व ईनाम इस्लाम के प्रथम चरण के मुसलमानों के बराबर होगा , वह लोग अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर करते हुए बुराईयों का मुक़ाबला करेंगे।
अनेकों रिवायतों में जो यह वर्णन हुआ है कि दुनिया ज़ुल्म व सितम से भर जायेगी , इसका मतलब यह नहीं है कि सभी इंसान ज़ालिम बन जायेंगे !। बल्कि अल्लाह के रास्ते पर चलने वाले कुछ लोग मौजूद होंगे और उस माहौल में भी अखलाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं की खुशबू दिलों को सुगंधित करती हुई नज़र आयेगी।
अतः ज़हूर से पहले का ज़माना वैसे तो बड़ी कड़वाहट ज़माना होगा लेकिन वह ज़हूर के मिठास पर खत्म होगा। वह ज़माना ज़ुल्म , अत्याचार और बुराईयों से तो भरा होगा , लेकिन उस ज़माने में ख़ुद पाक रहना और दूसरों को अच्छाईयों व नेकियों की तरफ़ बुलाना , इन्तेज़ार करने वालों की अत्यावश्यक ज़िम्मेदारी होगी और यह क़ाइम आले मुहम्मद (अ.स.) के ज़हूर में प्रभावी होगी।
अब हम इस हिस्से को हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की इस निम्न लिखित हदीस पर खत्म करते हैं।
"हमें अपने शिओं से कोई चीज़ दूर नहीं करती , मगर हम तक पहुँचने वाले , उनके वह क्रिया कलाप जो हमें पसन्द नहीं हैं और न हम उनसे उनको करने की उम्मीद रखते हैं...
दूसरा हिस्सा
ज़हूर का रास्ता हमवार होना और ज़हूर की निशानियां
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर की कुछ निशानियाँ और शर्तें हैं , उन्हीं को ज़हूर का रास्ता हमवार होना व ज़हूर की निशानियों के शीर्षक से याद किया जाता है। इन दोनों में फ़र्क यह है कि रास्ते का हमवार होना ज़हूर में प्रभावित है , अर्थात अगर रास्ता हमवार हो गया तो इमाम (अ.स.) का ज़हूर हो जायेगा और अगर रास्ता हमवार न हुआ तो ज़हूर नहीं हो होगा। इसके विपरीत निशानियाँ ज़हूर में प्रभावी नहीं हैं बल्कि सिर्फ़ ज़हूर की निशानी हैं और उनके द्वारा सिर्फ़ ज़हूर के ज़माने या ज़हूर के ज़माने के क़रीब होने का पहचाना जा सकता है।
इस फ़र्क को मद्दे नज़र रखते हुए अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना , ज़हूर की निशानियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अतः निशानियों को तलाश करने से पहले उन शर्तों पर ध्यान दें और अपनी ताक़त के अनुसार उन शर्तों को पैदा करने की कोशिश करें। इसी वजह से हम पहले ज़हूर के रास्तों के हमवार होने और ज़हूर की शर्तों की व्याख्या करते हैं और आख़िर में ज़हूर की निशानियों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे।
ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना
संसार की हर चीज़ अपनी शर्तों के पूर्ण व रास्ते के हमवार होने से ही अस्तित्व व वजूद में आ जाती है। इन के बग़ैर कोई भी चीज़ वजूद में नहीं आती। हर ज़मीन दाने को उगाने व उसे परवान चढ़ाने की योग्यता नहीं रखती। प्रत्येक जल वायु हर फूल , फल के फलने व फूलने के लिए उचित नहीं होती है। एक किसान ज़मीन से अच्छी फसल काटने का उसी वक़्त उम्मीदवार हो सकता है जब उसने फसल काटने की ज़रूरी शर्तों को पूरा कर लिया हो।
इसी प्रकार कोई परिवर्तन और सामाजिक सुधार भी शर्तों के पूर्ण होने और रास्ते के हमवार होने पर ही आधारित होता है। जिस तरह ईरान का इस्लामी इन्केलाब शर्तों के पूरा होने और रास्तों के हमवार होने के बाद सफल हुआ है , इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का विश्वव्यापी इन्क़ेलाब , जो कि दुनिया का सब से बड़ा इन्किलाब होगा , भी उसी क़ानून के अन्तर्गत आता है और जब तक उसका रास्ता हमवार न होगा और शर्तें पूरी न होंगी , उस वक़्त तक घटित नही हो सकता।
इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है कि हमारे दिमाग़ में यह ख़्याल न रहे कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के क़ियाम (आन्दोलन) व हुकूमत का मसला इस क़ानून से अलग है , और उनका यह समाज सुधार आन्दोलन किसी मोजज़े (चमत्कार) के आधार पर शर्तों व कारकों के बिना घटित हो जायेगा। बल्कि कुरआन व अहले बैत (अ.स.) की शिक्षाएं और अल्लाह की सुन्नत ये है कि संसार के तमाम काम साधारण रूप से और साधारण शर्तों व कारकों के आधार पर ही क्रियान्वित होते हैं।
हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फरमाया :
ख़ुदा वन्दे आलम सब कामों को उनके कारकों के आधार पर ही पूरा करता है...
एक रिवायत में मिलता है कि किसी इंसान ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) से कहा कि मैंने सुना है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का ज़हूर होगा तो सारे काम उनकी मर्ज़ी के अनुसार होंगे।
इमाम (अ.स.) ने फरमाया : हरग़िज़ ऐसा नहीं है , उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्जें में मेरी जान है , अगर यह तय होता कि हर किसी का काम ख़ुद बख़ुद हो जायेगा तो फिर ऐसा रसूले इस्लाम (स.) के लिए होता...।
अलबत्ता इस बात का यह अर्थ नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के वक़्त ग़ैबी और आसमानी मदद नहीं होगी , बल्कि मक़सद यह है कि उस सहायता के साथ साथ आम शर्तों और रास्तों का हमवार होना ज़रुरी है।
इस बात के सेपष्ट हो जाने के बाद हमें चाहिए कि पहले ज़हूर की शर्तों को पहचाने और फिर उनके लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करें।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के आन्दोलन और विश्वव्यापी सुधार व परिवर्तन की शर्तों और भूमिकाओं में से निम्न लिखित चार चीज़ें महत्वपूर्ण हैं , हम इन के बारे में अलग अलग वार्तालाप व बहस करते हैं।
योजना व प्लान
यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि प्रत्येक सुधार आन्दोलन के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती हैः
अ- समाज में मौजूद बुराईयों का मुक़ाबेला करने के लिए एक पूर्ण योजना।
आ- समाज की ज़रुरतों के अनुरूप ऐसे पूर्ण और उचित क़ानून जो हुकूमत की न्याय व्यवस्था में समस्त व्यक्तिगत व सामाजिक अधिकारों के रक्षक हो और जिनके आधार पर समाज तरक्की कर के अपने उद्देश्यों तक पहुँच सके।
सच्चा इस्लाम अर्थात कुरआने करीम की शिक्षाएं और मासूमों (अ.स.) की सुन्नत बेहतरीन कानून के रूप में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के पास होगी और वह अल्लाह के इसी अमर संविधान के आधार पर काम करेंगे...। कुरआन ऐसी किताब है जिसकी आयतों का ख़ज़ाना उस ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल हुआ जो इंसान के तमाम पहलुओं और उसकी समस्त भैतिक व आध्यात्मिक ज़रुरतों को जानता है। अतः इमामे ज़माना (अ.स.) का विश्वव्यापी आन्दोलन हुकूमत के क़ानून के लिहाज़ से बेमिसाल तथ्यों पर आधारित होगा और किसी भी दूसरे अन्दोलन से उसका मुक़ाबेला व उसकी तुलना करना संभव नही है। इस दावे की दलील यह है कि आज की दुनिया ने बहुत से तजर्बे करने के बाद इस बात को क़बूल किया है कि इंसानों द्वारा बनाये गये क़ानूनों में कमज़ोरियाँ पाई जाती हैं। इस लिए आज इंसान आहिस्ता आहिस्ता आसमानी क़ानूनों को क़बूल करने के लिए तैयार होता जा रहा है।
अमेरीकी का राजनीतिक सलाहकार आलवीन टाफलर , इंसानी समाज को गंभीर हालत से निकालने और इसमें सुधार लाने के लिए तीसरी लहर... ...का नज़रिया पेश करता है , लेकिन वह इस बारे में आश्चर्यजनक बातों का इकरार करता है।
हमारे पश्चिमी समाज में मुशकिलों और परेशानियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसका कोई अन्त नहीं है। औद्योगिक अस्थिरता और अनियमित्ता के कारण अखलाक़ी व सदाचारिक बुराईयाँ इतनी बढ़ गई हैं कि उनकी दुर्गंध से परेशान हो कर इंसान अपने गुस्से को ज़ाहिर करने और समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश में और उस पर इसके लिए हर वक़्त दबाव बढ़ रहा है। इस दबाव के जवाब में हज़ारों ऐसी योजनायें पेश की जा चुकी हैं , जिनके बारे में यह दावा किया जाता है कि यह आधारभूत व नई हैं , लेकिन बार बार देखने में आता है कि जो क़ानून और संविधान हमारी मुशकिलों के हल के लिए पेश किये जाते हैं वह हमारी परेशानियों को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं। इस कारण इंसान में मायूसी और ना उम्मीदी का एहसास पैदा होता जा रहा है। इसी वजह से इंसान सोचता है कि इनका कोई फायेदा नहीं है किसी क़ानून का कोई असर नहीं होता है। चूँकि यह एहसास हर डिमोक्रेटिक निज़ाम व व्यवस्था के लिए खतरनाक है , इसी लिए मिसालों में बयान होने वाले सफेद घोड़े पर सवार मर्द , की ज़रुरत का बड़ी बेचैनी से इन्तेज़ार से किया जा रहा है...।
रहबरी व नेतृत्व
हर इंकेलाब व आन्दोलन में एक रहबर व नेतृत्व करने वाले की ज़रूरत आधारभूत ज़रूरतों में गिनी जाती है। इंन्केलाब का स्तर जितना अधिक व्यापक होगा और उसके उद्देश्य जितने अधिक उच्चय होंगे , उसी के अनुरूप उसके रहबर को भी ताक़तवर व उन उद्देश्यों को प्रप्त करने में समक्ष होना चाहिए।
विश्व स्तर पर ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने वाला , न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने वाला और पूरी ज़मीन पर समानता फैलाने की ताक़त रखने वाला , हर इल्म का जानने वाला और अपने दिल में इंसानियत का दर्द रखने वाला रहबर , उस इंकेलाब का असली स्तंभ है। ऐसा रहबर जो वास्तव में उस इंकेलाब का सही नेतृत्व कर सके। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) जो सब नबियों व वलियों (अ.स.) का सार हैं , वह उस महान रहबर के रूप में ज़िन्दा और हाज़िर हैं। सिर्फ वही एक ऐसे रहबर हैं जो आलमे ग़ैब (अल्लाह , फ़रिश्तें व ......) से संबंध के आधार पर संसार की हर चीज़ के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी रखते हैं और अपने ज़माने के सब से बड़े व महान आलिम व ज्ञानी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
जान लो कि महदी (अ.स.) सारे इल्मों के वारिस होंगे , और सारे इल्मों पर उनका वर्चस्प होगा...।
वह ऐसे रहबर हैं जो हर तरह की पाबन्दियों से आज़ाद होंगे और सिर्फ़ उनका दिल अल्लाह की मर्ज़ी के तहत होगा।
अतः वह विश्वव्यापी इंकेलाब और हुकूमत के रहबर के लिहाज़ से भी बेहतरीन होंगे।
मददगार
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर की ज़रुरी शर्तों मे से उन के अच्छे , उचित और ऐसे लायक मददगारों का वजूद भी है , जो इस इन्केलाब और हुकूमत के ओहदो पर रह कर इमाम (अ.स.) की मदद करें। ज़ाहिर सी बात है कि जब वह विश्वव्यापी इन्केलाब एक महान आसमानी रहबर के ज़रिये बर्पा होगा तो फिर उनके मददगार भी उसी स्तर के होंगे , ऐसा नहीं है कि जिस ने भी मदद करने का वादा कर लिया वही उन की मददगारों में शामिल हो जाये।
इस बारे में निम्न लिखित घटना पर ध्यान देने की ज़रूरत है :
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) का सुहैल पुत्र हसन खुरासानी नामक शिया इमाम (अ.स.) की खिदमत में अर्ज़ करता है :
आपके रास्ते में क्या चीज़ रुकावट है कि आप अपने हक़ (हुकूमत) के लिए क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते जबकि आपके एक लाख़ तलवार चलाने वाले घुड़सवार शिया मौजूद हैं ? इमाम (अ.स.) ने हुक्म दिया कि तन्दूर दहकाया जाये। इमाम के हुक्म से तन्दूर दहकाया गया और जब उसमें से आग के शोले बाहर निकलने लगे तो इमाम (अ.स.) ने सुहैल से फरमाया : ऐ खुरासानी ! उठो और इस तन्दूर में कूद जाओ। सुहैल समझे कि इमाम (अ.स.) उसकी बातों से नाराज़ हो गए हैं , अतः उन्हों ने इमाम से माफ़ी माँगते हुए कहा कि : मौला मुझे माफ़ कर दीजिये , मुझे आग में डाल कर सज़ा न दें। इमाम (अ.स.) ने फरमाया: मैं तुम्हें छोड़ता हूँ।
उसी वक़्त वहाँ पर इमाम (अ.स.) के एक सच्चे शिया हारुने मक्की आ गये , उन्होंने इमाम (अ.स.) को सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब देने के बाद कुछ कहे सुने व बताये बग़ैर उन्हें हुक्म दिया कि इस तन्दूर में कूद जाओ।
हारुने मक्की यह सुनते ही फौरन उस तन्दूर में कूद गये और इमाम (अ.स.) उस खुरासानी से बात चीत करने में व्यस्त हो गये और उसे खुरासान की घटनाएं इस तरह सुनाने लगे जैसे इमाम (अ.स.) वहाँ ख़ुद मौजूद हों। कुछ देर के बाद इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ खुरासानी उठो और तन्दूर के अन्दर झाँक कर देखो ! जब सुहैल ने उठ कर तन्दूर के अन्दर झाँका तो देखा कि हारुने मक्की आग के शोलों के के बीच पलोथी मारे बैठे हुए हैं।
उस वक़्त इमाम (अ.स.) ने उस ख़ुरासानी से सवाल किया कि बताओ तुम खुरासान में हारुने मक्की जैसे कितने लोगों को पहचानते हो ? खुरासानी ने जवाब दिया : मैं तो ऐसे किसी इंसान को नहीं जानता !। इमाम (अ.स.) ने फरमाया : जान लो कि जब तक हमें पाँच मददगार नहीं मिलते , हम उस वक़्त तक क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते , हम बेहतर जानते हैं कि क़ियाम और इंकेलाब का कब वक़्त है... ?
अतः उचित है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगारों की सिफ़तों व विशेषताओं को रिवायतों के आधार पर पहचानें ताकि हम उनके अनुरूप ख़ुद को परखें और अपने अन्दर पाई जाने वाली कमियों को पूरा करने की कोशिश करें।
क- इमामत की शनाख़्त व आज्ञापालन
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगारों को ख़ुदा वन्दे आलम और इमाम की गहरी शनाख्त है और वह पूरी जानकारी के साथ हक़ के मैदान में हाज़िर होते हैं।
हज़रत अली (अ.स.) उनके बारे में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे इंसान हैं जो ख़ुदा को इस तरह पहचानते हैं कि जो उसे पहचानने का हक़ है।
इमाम की शनाख्त और इमामत का अक़ीदा भी उनके दिल की गहराइयों में अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका है और उनके पूरे वजूद पर अपना वर्चस्व जमाये हुए है। उनकी इमामत के प्रति यह शनाख्त , इमाम (अ.स.) का नाम व नस्ब जानने से उच्च है। इमामत की शनाख़्त की वास्तविक्ता यह है कि इंसान इमाम के विलायत के हक़ और संसार में उनके बुलन्द मर्तबे को पहचानें। यही वह शनाख़्त है जिससे उनके दिल मुहब्बत से भर जाते हैं , और फिर वह उनकी आज्ञा पालन के लिए हर वक़्त और हर तरह से तैयार रहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि इमाम (अ.स.) का हुक्म ख़ुदा का हुक्म है और उनकी इताअत (आज्ञा पालन) ख़ुदा की इताअत है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया कि
वह लोग अपने इमाम की आज्ञा पालन की पूरी कोशिश करते हैं...।
ख- इबादत और दृढ़ता
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगार इबादत में अपने इमाम को नमून ए अमल बनाते हैं और अपना हर दिन व हर रात अल्लाह के ज़िक्र में ग़ुज़ारते हैं।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने उन के बारे में फरमाया :
वह रात भर इबादत करते हैं , और दिन में रोज़ा रखते हैं...।
और एक दूसरी हदीस में फरमाते हैं कि
वह घोड़ों पर सवारी की हालत में भी अल्लाह की तस्बीह करते हैं...।
यही अल्लाह का ज़िक्र है जिस से वह फ़ौलादी मर्द बनते हैं , अतः उनकी दृढ़ता और मज़बूती को कोई भी चीज़ खत्म नहीं कर सकती।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते हैं कि
वह ऐसे मर्द होंगे कि उनके दिल लोहे के टुक्ड़े जैसे होंगे...।
ग- शहादत की तमन्ना
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगारों की मअरेफ़त उन के दिलों को अपने इमाम की मुहब्बत से भर देती है , अतः वह जंग के मैदान में इमाम को अपने बीच में लेकर कर अपनी जान को इमाम की ढाल बना देंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगार जंग के मैदान में उनके चारों तरफ़ हल्का बनाए होंगें और अपनी जान को उनकी ढाल बना कर अपने इमाम की हिफ़ाज़त करेंगे...।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ही ने दूसरी जगह फरमाया :
वह अल्लाह की राह में शहादत पाने की तमन्ना करेंगे...।
घ- बहादुरी और दिलेरी
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगार अपने मौला की तरह बहादुर और लोहपुरूष होंगे।
हज़रत अली (अ.स.) उनकी तारीफ़ में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे शेर हैं जो अपने वन से बाहर निकल आये हैं और अगर चाहें तो पहाड़ों को भी हिला सकते हैं...।
ङ- सब्र और बुर्दबारी
स्पष्ट है कि विश्वव्यापी ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने और विश्व स्तर पर न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत की स्थापना करने में बहुत से मुशकिलों व परेशानियों का सामना होगा और इमाम (अ.स.) के मददगार अपने इमाम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुशकिलों व परेशानियों को बर्दाश्त करेंगे , लेकिन इखलास व निस्वर्थता के आधार पर अपने काम को साधारण व बहुत छोटा मानेंगे।
हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :
वह ऐसा गिरोह है जो अल्लाह की राह में काम करने पर अपनी बुर्दबारी और सब्र की वजह से अल्लाह पर एहसान नहीं जतायेंगे , और अपनी जान को हज़रते हक़ के सामने पेश करने पर अपने ऊपर गर्व नहीं करेंगे और उस चीज़ को महत्व नहीं देंगे...।
च- एकता
हज़रत अली (अ.स.) हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगारों की एकता के बारे में फरमाते हैं कि
"वह लोग एक दिल और एक सूत्र में बंधे होंगे...।
उस एकता का कारण यह है कि उनके अन्दर स्वार्थता नहीं पाई जायेगी , वह सही अक़ीदे के साथ एक परचम के नीचे और एक मकसद को पाने के लिए क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे , और यह दुशमन के मुक़ाबले में उनकी कामयाबी का एक राज़ है।
छ- ज़ोह्द व तक़वा
हज़रत अली (अ.स.) इमाम महदी (अ.स.) के यारो मददगारों के बारे में फरमाते हैं कि
वह अपने मददगारों से बैअत लेंगे कि सोना व चाँदी जमा न करें और गेहूँ व जौ का भण्डार इकठ्ठा न करें...
उनके उद्देश्य महान हैं और वह एक महान उद्देश्य के लिए ही क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे। दुनिया का माल व धन उनको उस महान मक़सद से पीछे नहीं हटा सकता। अतः जिन लोगों की आँखें दुनिया की चमक दमक देख कर चौंधियां जाती हैं और जिनका दिल धन दौलत देख कर पानी पानी हो जाता है , उन लोगों को इमाम महदी (अ.स.) के ख़ास मददगारों में कोई जगह नहीं मिलेगी।
प्रियः पाठकों ! हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगारों की जिन सिफ़तों व विशेषताओं का वर्णन हुआ है , इन्हीँ सिफ़तों व विशेषताओं की वजह से उन्हें रिवायतों में आदर व एहतेराम के साथ याद किया गया है और सभी मासूम इमामों (अ.स.) की ज़बानों पर उनकी तारीफ़ व प्रशंसा रही हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया :
”اُوْلَئِکَ ہُمْ خِیَارُ الاٴمَّةِ “
अर्थात वह लोग मेरी उम्मत के सब से अच्छे इंसान हैं।
हज़रत अली (अ.स.) फरमाते हैं कि
فَبِاَبِی وَ اُمّی مِنْ عِدّةٍ قَلِیْلَةٍ اَسْمَائُہُمْ فِی الاٴرْضِ مَجْہُولَة “
मेरे माँ बाप उस छोटे से गिरोह पर कुर्बान जो ज़मीन पर गुमनाम हैं।
अलबत्ता हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगार अपनी योग्यता व सलाहियत के आधार पर विभिन्न दर्जों व श्रेणियों में बटे होंगे। रिवायतों में उल्लेख हुआ है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के उन ख़ास 313 मददगारो (जिन के हाथों में क़ियाम का नक्शा होगा) के अलावा दस हज़ार लोगों की एक फ़ौज भी होगी और उनके अतिरिक्त इन्तेज़ार करने वाले मोमिनों की एक बहुत बड़ी संख्या उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ेगी।
आम तैयारियाँ
मासूम इमामों (अ.स.) की ज़िन्दगी में विभिन्न अवसरों पर यह बात देखने में आई है कि लोग इमाम को मौजूद होने की सूरत में उनसे बेहतर फ़ायदा उठाने के लिए ज़रूरी तैयारी नहीं रखते थे। किसी भी ज़माने में मासूम इमाम (अ.स.) के मौजूद होने की क़दर नहीं की गई और उनकी हिदायत से उचित लाभ नहीं उठाया गया। अतः ख़ुदा वन्दे आलम ने अपनी आखरी हुज्जत को ग़ैबत में भेज दिया , ताकि जब सब लोग उनको क़बूल करने के लिए तैयार हो जायेंगे तो इमाम (अ.स.) को ज़ाहिर कर दिया जायेगा और तब सभी उनसे लाभान्वित होंगे।
इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है , क्योंकि इस तैयारी की वजह से इमाम (अ.स.) का समाज सुधार आन्दोलन अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।
कुरआने क़रीम में बनी इस्राईल के एक गिरोह का वर्णन हुआ है , उस गिरोह के लोग अपने ज़माने के ज़ालिम व आत्याचारी शासक जालूत के ज़ुल्म व अत्याचारों से बहुत ज़्यादा परेशान हो चुके थे , उन्होंने अपने ज़माने के नबी से निवेदन किया कि आप हमारे लिए एक ताक़तवर सरदार निश्चित कर दीजिये ताकि हम उसके आधीन रह कर जालूत से जंग कर सकें।
इस घटना का वर्णन कुरआने मजीद में इस प्रकार हुआ है :
< اٴَلَمْ تَرَ إِلَی الْمَلَإِ مِنْ بَنِی إِسْرَائِیلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَی إِذْ قَالُوا لِنَبِیٍّ لَہُمْ ابْعَثْ لَنَا مَلِکًا نُقَاتِلْ فِی سَبِیلِ اللهِ قَالَ ہَلْ عَسَیْتُمْ إِنْ کُتِبَ عَلَیْکُمْ الْقِتَالُ اٴَلاَّ تُقَاتِلُوا قَالُوا وَمَا لَنَا اٴَلاَّ نُقَاتِلَ فِی سَبِیلِ اللهِ وَقَدْ اٴُخْرِجْنَا مِنْ دِیَارِنَا وَاٴَبْنَائِنَا فَلَمَّا کُتِبَ عَلَیْہِمْ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلاَّ قَلِیلًا مِنْہُمْ وَاللهُ عَلِیمٌ بِالظَّالِمِینَ >
क्या तुम ने मूसा के बाद बनी इस्राईल के उस गिरोह को नहीं देखा जिस ने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह निश्चित कर दीजिये ताकि हम अल्लाह की राह में जिहाद करें , नबी ने फरमाया कि मुझे यह अंदेशा है कि तुम पर जिहाद वाजिब हो जायेगा और तुम जिहाद नहीं करोगे , उन लोगों ने कहा कि हम क्यों जिहाद नहीं करेंगे जबकि हमें हमारे घरों बाहर निकाल दिया गया है और बाल बच्चों से अलग कर दिया गया है , इसके बाद जब उन पर जिहाद वाजिब कर दिया गया तो थोड़े से लोगों के अलावा सब अपनी बात से फिर गये और अल्लाह ज़ालमीन को अच्छी तरह जानता है।
जंग के लिए सरदार निश्चित करने का आवेदन एक तरह से इस बात को स्पष्ट करता था कि वह जंग के लिए तैयार हैं , जबकि रास्ते में एक बहुत बड़ी संख्या में लोग सुस्त पड़ गये और बहुत कम लोग जंग मैदान में हाज़िर हुए।
अतः इमाम महदी (अ.स.) का ज़हूर भी उसी वक़्त होगा जब सभी लोगों में समाजिक न्याय , अखलाक़ी व सदाचारिक स्वच्छता और आत्मीय शाँति के प्रति जागरूकता पैदा हो जायेंगी। जब लोग अनयाय और क़बीला परस्ती से थक जायेंगे , जब कमज़ोर लोगों के अधिकार मालदारों व ताक़तवरों के पैरों तले कुचले जायेंगे , जब माल व दौलत सिर्फ़ कुछ ख़ास लोगों के क़ब्ज़े में होगी और कुछ लोगों के पास रात में खाने के लिए रोटी भी न होगी , एक गिरोह अपने लिए महल बनाता हुआ दिखाई देगा और अपने परोग्रामों में बहुत ज़्यादा खर्च करेगा और उनके लिए ऐसे ऐसे खाने व ऐशो आराम के ऐसे ऐसे सामान उपलब्ध होंगे कि उन्हें देख कर आँखें चका चौंध होंगी , तो ऐसे मौक़े पर न्याय व समानता की प्यास अपने चरम बिन्दु पर पहुँच जायेगी।
जब समाज में विभिन्न बुराईयाँ फैलती जा रही हों और लोग बुरे काम करने में एक दूसरे से आगे बढ़ रहे हों , बल्कि अपने बुरे कामों पर गर्व कर रहे हो , इंसानी और इलाही उसूल से दूर भागा जा रहा हो , पवित्रता व पाकीज़गी के विपरीत कामों को कानूनी शक्ल दी जा रही हो जिसके नतीजे में पारिवारिक व्यवस्था चर मरा रही हो , लावारिस बच्चों को समाज के हवाले किया जा रहा हो , तो इस अवसर पर ऐसे रहबर के ज़हूर की अभिलाषा बहुत ज़्यादा की जायेगी जिसकी हुकूमत अखलाकी व आत्मीय सुख व शाँति का पैगाम ले कर आये। जिस वक़्त इंसान के पास मोज मस्ती के समस्त भौतिक साधन मौजूद हों लेकिन वह अपनी ज़िन्दगी से खुश न हो और उसे किसी ऐसी दुनिया की तलाश हो जो आध्यात्म से भरी हो तो उस मौक़े पर इंसान को उस महान इमाम की ज़रूरत का एहसास होगा।
स्पष्ट है कि इमाम (अ.स.) के हाज़िर होने को समझने का शौक़ उस वक़्त अपनी चरम सीमा पर होगा जब आदमी अपने व्यक्तिगत तजर्बे से इंसानी बुद्धिमत्ता के विभिन्न कारनामों को देख कर यह समझ जायेगा कि दुनिया को ज़ुलम व सितम और बुराईयों से छुटकारा दिलाने वाला ज़मीन पर अल्लाह के खलीफ़ा हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ही हैं और इंसानों के लिए पाक व साफ और बेहतरीन ज़िन्दगी प्रदान करने वाला विधान सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह का क़ानून हैं। अतः उस मौक़े पर इंसान अपने पूरे वजूद से इमाम (अ.स.) की ज़रुरत का एहसास करेगा और इस एहसास की वजह से उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करते हुए उस राह में मौजूद रुकावटों को दूर करेगा। यह उसी वक़्त होगा जब फरज और ज़हूर का वक़्त पहुँच जायेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) आख़िरी ज़माने अर्थात ज़हूर से पहले के ज़माने के बारे में फरमाते हैं कि
एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिन को पनाह लेने की जगह नहीं मिलेगी ताकि ज़ुल्म व सितम और बर्बादी से छुटकारा मिल सके , अतः उस वक़्त ख़ुदा वन्दे आलम मेरी नस्ल से एक इंसान को भेजेगा...
ज़हूर की निशानियाँ
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के विश्वव्यापी इंकेलाब और क़ियाम व आन्दोलन के लिए कुछ निशानियों का वर्णन हुआ हैं और उन निशानियों की पहचान बहुत से सकारात्मक प्रभाव रखती हैं। चूँकि यह महदी ए आले मुहम्मद स. के ज़हूर कि निशानियाँ है अतः इनमें से हर एक के प्रकट होने से इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में उम्मीद की किरणों में वृद्धी होगी और दुश्मनों व भटके हुए लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी बजेगी ताकि वह बुराईयों से दूर हो जायें। इसी तरह इन तरह निशानियों के ज़ाहिर होने से इन्तेज़ार करने वालों में अपने अन्दर इमाम (अ.स.) के साथ रहने और उनकी मदद करने की क्षमता प्राप्त करने का शौक पैदा होगा। इस के अलावा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का परिचय इंसान को भविष्य के लिए योजना बनाने में सहायक सिद्ध होगा और यह निशानियाँ महदवियत के सच्चे और झूटे दावेदारों को परखने की सबसे अच्छी कसौटी हैं। अतः अगर कोई महदवियत का दावा करे और उसके क़ियाम (आन्दोलन) में यह ख़ास निशानियाँ न पाई जाती हों तो उसके झूठे होने का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
हमारे मासूम इमामों (अ.स.) की रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर की बहुत सी निशानियों का वर्णन हुआ हैं. उनमें से कुछ साधारण व प्रकृतिक हैं और कुछ असाधारण व चमत्कारिक हैं।
हम इन निशानियों में से पहले उन स्पष्ट और उच्च निशानियों का उल्लेख करते हैं जिनका वर्णन विश्वसनीय किताबों और विश्वसनीय रिवायतों में हुआ हैं और आखिर में कुछ अन्य निशानियों का संक्षेप में वर्णन करेंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने एक रिवायत के अन्तर्गत फरमाया :
क़ाइम (अ.स.) के ज़हूर की पाँच निशानियां है , सुफ़यानी का ख़रुज , यमनी का क़ियाम , आसमानी आवाज़ , नफ्से ज़किय्या का क़तल और खस्फे बैदा... ।
प्रयः पाठकों ! अब हम उपरोक्त वर्णित इन पाँचो निशानियों के बारे में व्याख्या करते हैं इनका वर्णन अन्य बहुत रिवायतों में भी हुआ हैं , लेकिन इन घटनाओं से संबंधित समस्त व्याख्या हमारे लिए यक़ीनी नहीं है।
सुफ़यानी का ख़रुज (आक्रमण)
सुफ़यानी का आक्रमण उन निशानियों में से एक है जिनका वर्णन अनेकों रिवायतों में हुआ है। सुफ़यानी अबू सुफ़यान की नस्ल से होगा और ज़हूर से कुछ समय पहले शाम नामक स्थान से आक्रमण करेगा। वह ज़ालिम व अत्याचारी होगा और क़त्ल व ग़ारत में किसी तरह की कोई पर्वा नहीं करेगा। वह अपने दुशमनों से बहुत ही बुरा व्यवहार करेगा।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) उसके बारे में फरमाते हैं कि
“ अगर तुमने सुफयानी को देख लिया तो ऐसा है जैसे तुमने सब से नीच और बुरे इंसान को देख लिया हो... ”
उसका आक्रमण रजब के महीने से शुरु होगा , वह शाम और उसके आस पास के इलाकों पर क़ब्ज़ा करने के बाद इराक़ पर हमला करेगा और वहाँ बड़े पैमाने पर कत्ल व ग़ारत करेगा।
कुछ रिवायतों में वर्णन मिलता है कि उसके आक्रमण और उसके क़त्ल होने तक की मुद्दत 15 महीने होगी...।
खस्फ़े बैदा
खस्फ़ का अर्थ फटना व गिरना हैं और बैदा मक्के व मदीने के बीच एक जगह का नाम है।
खस्फ़ बैदा से यह अभिप्रायः है कि सुफ़यानी इमाम महदी (अ.स.) से मुक़ाबले के लिए एक फ़ौज को मक्के की तरफ़ भेजेगा और जब उसकी यह फ़ौज बैदा नामक स्थान पर पहुँचेगी तो चमत्कारिक रूप से ज़मीन फट जायेगी और वह फ़ौज वहीँ ज़मीन में धँस जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने इस बारे में फरमाया कि
“ सुफ़यानी की फ़ौज के सरदार को खबर मिलेगी कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) मक्के की तरफ़ रवाना हो चुके हैं अतः वह उनके पीछे एक फ़ौज रवाना करेगा , लेकिन वह फ़ौज उनको नहीं पा सकेगी और जब सुफ़यानी की फ़ौज बैदा नामक ज़मीन पर पहुंचेगी तो एक आसमानी आवाज़ आयेगी कि ऐ बैदा की ज़मीन इनको भस्म कर दे। यह सुनने के बाद वह ज़मीन सुफ़यानी की फौज को अपने अन्दर खींच लेगी...।
यमनी का क़ियाम (आन्दोलन)
यमन नामक जगह का एक सरदार का आन्दोलन इमाम (अ.स.) के ज़हूर की निशानी है। यह निशानी इमाम के ज़हूर से कुछ ही दिनों पहले ज़ाहिर होगी। वह एक ऐसा नेक और मोमिन इंसान होगा , जो बुराइयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेगा और अपनी पूरी ताक़त से बुराइयों व अश्लीलता का मुक़ाबला करेगा , परन्तु उसके आन्दोलन का पूर्ण विवरण हमारे लिए स्पष्ट नहीं है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) उस बारे में फरमाते हैं कि
“ हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के क़ियाम से पहले बुलन्द होने वाले झंड़ो के बीच यमनी का झंडा हिदायत करने वालों में सब से बेहतर होगा , क्यों कि वह लोगों को तुम्हारे मौला हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की तरफ़ बुलायेगा...। ”
आसमान से आवाज़ का आना
इमाम (अ.स.) के ज़हूर की निशानियों में से एक निशानी आसमान से चीख़ की आवाज़ आना है। कुछ रिवायत के आधार पर यह आसमानी आवाज़ जनाबे जिब्रइल की आवाज़ होगी , जो रमज़ान के महीने में सुनाई देगी...।
और चूँकि पूर्ण समाज सुधारक का इंकेलाब एक विश्वव्यापी इंकेलाब होगा और सभी को उसका इंतेज़ार होगा , अतः दुनिया भर के लोगों को उसी आसमानी आवाज़ के ज़रिये खबर दी जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :
“ क़ाइम आले मुहम्मद (अ.स.) का ज़हूर उस वक़्त तक नहीं होगा जब तक आसमान से आवाज़ न दी जाये और उस आवाज़ को पूरब व पश्चिम के सभी निवासी सुनेंगे...। ”
यह आवाज़ जिस तरह मोमिनों के लिए खुशी का पैग़ाम बनेगी उसी तरह बुरे लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी होगी ताकि वह अपने बुरे कामों से दूर हो कर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मददगारों में शामिल हो जायें।
उस आवाज़ की व्याख्या का विभिन्न रिवायतों में वर्णन हुआ हैं , इसके बारे में हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फरमाया :
आसमान से आवाज़ देने वाला हज़रत इमाम महदी (अ.स.) को उनके और उनके पिता के नाम के साथ पुकारेगा...।
नफ़्से ज़किया का क़त्ल
नफ्से ज़किया का अर्थ ऐसा इंसान हैं जो कमाल के बुलन्द दर्जे पर पहुँचा हुआ हो या ऐसा पाक , पाक़ीज़ा व बेगुनाह इंसान जिसने किसी को क़त्ल न किया हो। नफ्से ज़किय्या के क़त्ल से यह अभिप्रायः है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर से कुछ पहले एक उच्च और बेगुनाह इंसान को इमाम (अ.स.) के मुखालिफ़ो के द्वारा क़त्ल किया जायेगा।
कुछ रिवायतों के आधार पर यह घटना इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर से 15 दिन पहले घटित होगी।
इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद (स.) के ज़हूर और नफ्से ज़किय्या के क़त्ल में सिर्फ़ 15 दिन का फ़ासला होगा...।
प्रियः पाठकों ! उपरोक्त वर्णित निशानियों के अलावा भी कुछ अन्य निशानियों का वर्णन हुआ हैं उनमें से कुछ ख़ास निशानियाँ निम्न लिखित है :
दज्जाल का ख़रुज , दज्जाल एक ऐसा धोकेबाज़ और मक्कार आदमी होगा जिसने बहुत से लोगों को गुमराह किया होगा , रमज़ान के मुबारक़ महीने में सूरज ग्रहण होना , चाँद ग्रहण होना , उपद्रवों का फैलना और खुरासानी का आन्दोलन।
उल्लेखनीय है कि इन निशानियों का सविस्तार वर्णन बड़ी किताबों में मौजूद हैं।