खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

183-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(क़ुदरते ख़ुदा फ़ज़ीलते क़ुरान और वसीयते तक़वा के बारे में)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जो बग़ैर देखे भी पहचाना हुआ है और बग़ैर किसी तकान के भी ख़ल्क़ करने वाला है। उसने मख़लूक़ात को अपनी क़ुदरत से पैदा किया और अपनी इज्ज़त की बिना पर उनसे मुतालेबा-ए-अबदीयत किया। वह अपने जूद व करम में तमाम अज़माए आलम से बालातर है। उसी ने इस दुनिया में अपनी मख़लूक़ात को आबाद किया है और जिन व इन्स की तरफ़ अपने रसूल भेजे हैं ताके वह निगाहों से परदा उठा दें और नुक़सानात से आगाह कर दें , मिसालें बयान कर दें और उयूब से बाख़बर कर दें। सेहत व बीमारी के तग़य्युरात से इबरत दिलाने का सामान करें और हलाल व हराम और इताअत करने वालों के लिये मुहय्या शुदा अज्र और नाफ़रमानों के लिये अज़ाब से आगाह कर दें। मैं उसकी ज़ाते अक़दस की इसी तरह हम्द करता हूं जिस तरह उसने बन्दों से मुतालबा किया है और हर “ शै की एक मिक़दार मुअय्यन है और हर क़द्र की एक मोहलत रखी है और हर तहरीर की एक मेयार मुअय्यन की है। देखो क़ुरान अम्र करने वाला भी है और रोकने वाला भी। वह ख़ामोशभी है और गोया भी , वह मख़लूक़ात पर परवरदिगार की हुज्जत है।

लोगों से अहद लिया गया है और उनके नफ़्सों को उसका पाबन्द बना दिया गया है। मालिक ने उसके नूर को तमाम बनाया है और उसके दीन को कामिल क़रार दिया है। अपने पैग़म्बर को उस वक़्त अपने पास बुलाया है ज बवह उसके एहकाम के ज़रिये लोगों को हिदायत कर चुके थे लेहाज़ा परवरदिगार की अज़मत का एतराफ़ इस तरह करो जिस तरह उसने अपनी अज़मत का ऐलान किया है के उसने दीन की किसी बात को मख़फ़ी नहीं रखा है और कोई ऐसी पसन्दीदा या न पसन्दीदा बात नहीं छोड़ी है जिसके लिये वाज़ेअ निशाने हिदायत न बता दिया हो या कोई मोहकम आयत न नाज़िल कर दी हो जिसके ज़रिये रोका जाए या दावत दी जाए। उसकी रिज़ा और नाराज़गी मुस्तक़बिल में भी वैसी ही रहेगी जिस तरह वक़्ते नुज़ूल थी। और यह याद रखो के वह तुमसे किसी ऐसी बात पर राज़ी न होगा जिस पर पहले वालों से नाराज़ हो चुका है और न किसी ऐसी बात से नाराज़ होगा जिस पर पहले वालों से राज़ी रह चुका है। तुम बिल्कुल वाज़ेअ निशाने क़दम पर चल रहे हो और उन्हीं बातों को दोहरा रहे हो जो पहले वाले कह चुके हैं। उसने तुम्हें दुनिया की ज़हमतों से बचा लिया है और तुम्हें शुक्रे खुदा पर आमादा किया है और तुम्हारी ज़बानों से ज़िक्र का मुतालबा किया है।

तुम्हें तक़वा की नसीहत की है और उसे अपनी मर्ज़ी की हद आखि़र क़रार दिया है और यही मख़लूक़ात से उसका मुतालेबा है लेहाज़ा उससे डरो जिसकी निगाह के सामने हो और जिसके हाथों में तुम्हारी पेशानी है और जिसके क़ब्ज़ए क़ुदरत में करवटें बदल रहे हो। और अगर किसी बात पर पर्दा डालना चाहो तो वह जानता है और अगर एलान करना चाहो तो वह लिख लेता है और तुम्हारे ऊपर मोहतरम कातिबे आमाल मुक़र्रर कर दिये हैं जो किसी हक़ को साक़ित नहीं कर सकते हैं और किसी बातिल को सब्त नहीं कर सकते हैं। और याद रखो के जो शख़्स भी तक़वाए इलाही इख़्तेयार करता है परवरदिगार उसके लिये फ़ित्नों से बाहर निकल जाने का रास्ता बना देता है और उसे तारीकियों में नूर अता कर देता है। उसके नफ़्स के तमाम मुतालबात के दरम्यान दाएमी ज़िन्दगी अता करता है और करामत की मन्ज़िल में नाज़िल करता है। उस घर में जिसको अपने लिये पसन्द फ़रमाया है। जिसका साया उसका अर्श है और जिसका नूर इसकी ज़िया है। इसके ज़ायेरीने मक्का हैं और इसके रफ़क़ाए। अब अपनी बाज़गश्त की तरफ़ सबक़त करो और मौत से पहले सामान मुहैया कर लो के अनक़रीब लोगों की उम्मीदें खत्म हो जाने वाली हैं और मौत का फन्दा गले में पड़ जाने वाला है जब तौबा का दरवाज़ा भी बन्द हो जाएगा , अभी तुम उस मन्ज़िल में हो जिसकी तरफ़ पहले वाले लौट कर आने की आरज़ू कर रहे हैं और तुम मुसाफ़िर हो और इस घर से सफ़र करने वाले हो जो तुम्हारा वाक़ेई घर नहीं है। तुम्हें कूच की इत्तेलाअ दी जा चुकी है और सामाने सफर इकट्ठा करने का हुक्म दिया जा चुका है और यह याद रखो के यह ज़म नाज़ूक जिल्द आतिशे जहन्नुम को बरदाश्त नहीं कर सकती है। लेहाज़ा ख़ुदारा अपने नफ़्सों पर रहम करो के तुम इसे दुनिया के मसाएब में आज़मा चूके हो। क्या तुमने नहीं देखा है के तुम्हारा क्या आलम होता है जब एक कांटा चुभ जाता है या एक ठोकर लगने से ख़ून निकल आता है , या जलती हुई रेत तपने लगती है (तपिश से जलने पर किस तरह बेचैन होकर चीख़ता है) तो फिर उस वक़्त क्या होगा जब तुम जहन्नुम के दो तबक़ों के दरम्यान होगे। दहकते हुए पत्थरों के दहकते तबक़ों में और शयातीन के हमसाये में। क्या तुम्हें यह मालूम है के मालिक (दारोग़ाए जहन्नम) जब आग पर ग़ज़बनाक होता है तो उसके अजज़ा एक दूसरे से टकराने लगते हैं और जब इसे झिड़कता है तो वह घबराकर (तिलमिलाकर) दरवाज़ों के दरम्यान उछलने लगती है।

ऐ पीरे कुहन साल (बूढ़े) के जिस पर बढ़ापा छा चुका है। उस वक़्त तेरा क्या आलम होगा जब आग के तौक़ गरदन की हड्डियों में ग़ुस जाएंगे और हथकड़ियां हाथों में गड़कर कलाइयों का गोश्त तक खा जाएंगी।

अल्लाह के बन्दों! अल्लाह को याद करो उस वक़्त जबके तुम सेहत के आलम में हो क़ब्ल इसके के बीमार हो जाओ और वुसअत के आलम में क़ब्ल इसके के तंगी का शिकार हो जाओ अपनी गर्दनों को आतिशे जहन्नम से आज़ाद कराने की फ़िक्र करो क़ब्ल इसके के वह इस तरह गिरवीदा हो जाएं के फिर चढ़ाई न जा सकें। अपनी आंखों को बेदार रखो अपने शिकम को लाग़र बनाओ और अपने पैरों को राहे अमल में इस्तेमाल करो। अपने माल को ख़र्च करो और अपने जिस्म को अपनी रूह पर क़ुरबार कर दो। ख़बरदार इस राह में कंजूसी न करना के परवरदिगार ने साफ़ साफ़ फ़रमा दिया है के “ अगर तुम अल्लाह की नुसरत करोगे तो अल्लाह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दमों को सिबात इनायत फ़रमाएगा ” उसने यह भी फ़रमा दिया है के “ कौन है जो परवरदिगार को बेहतरीन क़र्ज़ दे ताके वह उसे दुनिया में चैगुना बना दे और इसके लिये बेहतरीन जज़ा है ” तो उसने तुमसे कमज़ोरी की बिना पर नुसरत का मुतालबा नहीं किया है और न ग़ुरबत की बिना पर क़र्ज़ मांगा है। जबके ज़मीन व आसमान के सारे ख़ज़ाने उसी की मिल्कियत हैं और वह ग़नी हमीद है ” । वह चाहता है के तुम्हारा इम्तेहान ले के तुम में हसन अमल के एतबार से सबसे बेहतरीन कौन है। अब अपने आमाल के साथ सबक़त करो ताके अल्लाह के घर में उसके हमसाये के साथ ज़िन्दगी गुज़ारो। जहां मुरसलीन की रिफ़ाक़त होगी और मलाएका ज़ियारत करेंगे और कान जहन्नुम की आवाज़ सुनने से भी महफ़ूज़ रहेंगे और बदन किसी तरह की तकान और ताब से भी दो-चार न होंगे। “ यही वह फ़ज़्ले ख़ुदा है के जिसको चाहता है इनायत कर देता है और अल्लाह बेहतरीन फ़ज़्ल करने वाला है। ” मैं वह कह रहा हूं जो तुम सुन रहे हो। इसके बाद अल्लाह ही मददगार है मेरा भी और तुम्हारा भी और वही हमारे लिये काफ़ी है और वही बेहतरीन कारसाज़ है।

184-आपका इरशादे गिरामी

( जो आपने बुर्ज में मसहरे ताई ख़ारेजी से फ़रमाया जब यह सुना के वह कह रहा है के ख़ुदा के अलावा किसी को फ़ैसले का हक़ नहीं है)

ख़ामोशहो जा। ख़ुदा तेरा बुरा करे ऐ टूटे हुए दांतों वाले। ख़ुदा शाहिद है के जब हक़ का ज़हूर हुआ था उस वक़्त तेरी शख़्सियत कमज़ोर और तेरी आवाज़ बेजान थी। लेकिन जब बातिल की आवाज़ बलन्द हुई तो तू बकरी की सींग की तरह उभर कर मन्ज़रे आम पर आ गया।

(((- यह एक ख़ारेजी शाएर था जिसने मौलाए कायनात के खि़लाफ़ यह आवाज़ बलन्द की के आपने तहकीम को क़ुबूल करके ग़ैरे ख़ुदा को हकम बना दिया है और इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की हाकमीयत का कोई तसव्वुर नहीं है

हज़रत इमाम आलीमक़ाम (अ 0) ने इस फ़ित्ने के दूररस असरात का लेहाज़ करके सख़्त तरीन लहजे में जवाब दिया और क़ाएल की औक़ात का एलान कर दिया के शख़्स बातिल परस्त और हक़ बेज़ार है। वरना उसे इस अम्र का अन्दाज़ा होता के किताबे ख़ुदा से फ़ैसला कराना ख़ुदा की हाकमीयत का इक़रार है इन्कार नहीं है। हाकमीयते ख़ुदा के मुन्किर अम्र व आस जैसे अफ़राद हैं जिन्होंने किताबे ख़ुदा को नज़र अन्दाज़ करके सियासी चालों से फ़ैसला कर दिया और दीने ख़ुदा को यकसर नाक़ाबिले तवज्जो क़रार दे दिया -)))

185-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें हम्दे ख़ुदा , सनाए रसूल (स 0) और बाज़ मख़लूक़ात का तज़किरा है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसे न हवास पा सकते हैं और न मकान घेर सकते हैं , न आंखे उसे देख सकती हैं और न परदे उसे छिपा सकते हैं उसने अपने क़दीम होने की तरफ़ मख़लूक़ात के हादिस होने से रहनुमाई की है और उनके वजूद बाद अज़ अदम को अपने वजूदे अज़ल का सबूत बना दिया है और इनकी बाहेमी मुशाबेहत से अपने बेमिसाल होने का इज़हार किया है। वह अपने वादे में सच्चा है और अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने से अजल व अरफ़ा है। उसने लोगो में अद्ल का क़याम किया है और फ़ैसलों पर मुकम्मल इन्साफ़ से काम लिया है। अशयाअ के हदूस से अपनी अज़लीयत पर इस्तेदलाल किया है और इन पर आजिज़ी का निशान लगाकर अपनी क़ुदरते कामेला का असबात किया है। अशयाअ के जबदी फ़ना व अदम से अपने दवाम का पता दिया है। वह एक है लेकिन अदद के एतबार से नहीं , दाएमी है लेकिन मुद्दत के एतबार से नहीं और क़ाएम है लेकिन किसी के सहारे नहीं। ज़ेहन उसे क़ुबूल करते हैं लेकिन हवास की बिना पर नहीं और शाहदात उसकी गवाही देते हैं लेकिन इसकी बारगाह में पहुंचने के बाद नही। औहाम इसका अहाता नहीं कर सकते हैं बल्कि वह उनके लिये उन्ही के ज़रिये रौशन हुआ है और उन्हीं के ज़रिये इनके क़ब्ज़े में आने से इन्कार कर दिया है और इसका हकम भी उन्हीं को ठहराया है। वह एतबार से बड़ा नहीं है के उसके एतराफ़ ने फैल कर इसके जिस्म को बड़ा बना दिया है और न ऐसा अज़ीम है के उसकी जसामत ज़्यादा हो और उसने उसके जसद को अज़ीम बना दिया हो , वह अपनी शान में कबीर और अपनी सल्तनत में अज़ीम है।

और मैं गवाही देता हूं के हज़रत मोहम्मद उसके बन्दे और मुख़लिस रसूल और पसन्दीदा अमीन हैं। अल्लाह उन पर रहमत नाज़िल करे। उसने उन्हें नाक़ाबिले इन्कार दलाएल , वाज़ेअ कामयाबी और नुमायां रास्ते के साथ भेजा है और उन्होंने उसके पैग़ाम को वाशगाफ़ अन्दाज़ में पेशकर दिया है और लोगों को सीधे रास्ते की रहनुमाई कर दी है। हिदायत के निशानात क़ायम कर दिये हैं और रोशनी के मिनारे इस्तेवार कर दिये है। इस्लाम की रस्सियों को मज़बूत बना दिया है और ईमान के बन्धनों को मुस्तहकम कर दिया है।

अगर यह लोग इसकी अज़ीम क़ुदरत और वसीअ नेमत में ग़ौर व फ़िक्रर करते तो रास्ते की तरफ़ वापस आ जाते और जहन्नम के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हो जाते। लेकिन मुश्किल यह है के इनके दिल मरीज़ हैं और इनकी आंखें कमज़ोर हैं। क्या यह एक छोटी सी मख़लूक़ को भी नहीं देख रहे हैं के उसने किस तरह उसकी तख़लीक़ को मुस्तहकम और इसकी तरकीब को मज़बूत बनाया है। इस छोटे से जिस्म में कान और आंखें सब बना दी हैं और इसमें हड्डियां और खाल भी दुरूस्त कर दी है।

ज़रा इस च्यूंटी के छोटे से जिस्म और उसकी लतीफ़ शक्ल व सूरत की बारीकी की तरफ़ नज़र करो जिसका गोशाए चश्म से देखना भी मुश्किल है और फ़िक्रों की गिरफ़्त में आना भी दुशवार है , किस तरह ज़मीन पर रेंगती है और किस तरह अपने रिज़्क़ की तरफ़ लपकती है , दाने को अपने सूराख़ की तरफ़ ले जाती है और फिर वहां मरकज़ पर महफ़ूज़ कर देती है। गर्मी में सर्दी का इन्तेज़ाम करती है और तवानाई के दौर में कमज़ोरी के ज़माने का बन्दोबस्त करती है। इसके रिज़्क़ की कफ़ालत की जा चुकी है और इसी के मुताबिक़ उसे बराबर रिज़्क़ मिल रहा है।

(((- एक छोटी सी मख़लूक़ च्यूंटी में यह दूरअन्देशी और इस क़द्र तन्ज़ीम व तरतीब और एक अशरफ़ुल मख़लूक़ात में इस क़द्र ग़फ़लत और तग़ाफ़िल किस क़द्र हैरत अंगेज़ है और उससे ज़्यादा हैरत अंगेज़ क़िस्साए जनाबे सुलेमान है जहां च्यूंटी ने लशकरे सुलेमान को देखकर आवाज़ दी के फ़ौरन अपने अपने सूराख़ों में दाखि़ल हो जाओ के कहीं लशकरे सुलेमान तुम्हें पामाल न कर दे और उसे एहसास भी न हो। गोया के एक च्यूंटी के दिल में क़ौम का इस क़द्र दर्द है और उसे सरदारे क़ौम होने के एतबार से इस क़द्र ज़िम्मेदारी का एहसास है के क़ौम तबाह न होने पाए और आज आलम इस्लाम व इन्सानियत इस क़द्र तग़ाफ़ुल का शिकार हो गया है के किसी के दिल में क़ौम का दर्द नहीं है बल्कि हक्काम क़ौम के कान्धों पर अपने जनाज़े उठा रहे हैं और उनकी क़ब्रों पर अपने ताजमहल तामीर कर रहे हैं।-)))

न एहसान करने वाला ख़ुदा उसे नज़र अन्दाज़ करता है और न साहेबे जज़ा व अता उसे महरूम रखता है चाहे वह ख़ुश्क पत्थर के अन्दर हो या जमे हुए संगे ख़ारा के अन्दर। अगर तुम उसकी ग़िज़ा को पस्त व बलन्द नालियों और उसके जिस्म के अन्दर शिकम की तरफ़ झुके हुए पस्लियों के किनारों और सर में जगह पाने वाले आंख और कान को देखोगे तो तुम्हें वाक़ेअन इसकी तख़लीक़ पर ताअज्जुब होगा और इसकी तौसीफ़ से आजिज़ हो जाओगे। बलन्द व बरतर है वह ख़ुदा जिसने इस जिस्म को उसके पैरों पर क़ायम किया है और उसकी तामीर इन्हीं सुतूनों पर खड़ी की है। न इसकी फ़ितरत (बनाने में) में किसी ख़ालिक़ ने हिस्सा लिया है और न इसके तख़लीक़ में किसी क़ादिर ने कोई मदद की है। और अगर तुम फ़िक्रर के तमाम रास्तों को तय करके इसकी इन्तेहा तक पहुंचना चाहोगे तो एक ही नतीजा हासिल होगा के जो च्यूंटी का ख़ालिक़ है वही दरख़्त का भी परवरदिगार है। इसलिये के हर एक तख़लीक़ में यही बारीकी है और हर जानदार का दूसरे से निहायत दरजाए बारीक ही इख़तेलाफ़ है। इसकी बारगाह में अज़ीम व लतीफ़ , सक़ील व ख़फ़ीफ़ , क़वी व ज़ईफ़ सब एक ही जैसे हैं।

यही हाल आसमान और फ़िज़ा और हवा और पानी का है , के चाहो शम्स व क़मर को देखो या नबातात व शजर को , पानी और पत्थर पर निगाह करो या शबो रोज़ की आमद व रफ़्त पर , दरयाओं के बहाव को देखो या पहाड़ों की कसरत और च्यूंटियों के तूलवार तफ़ाअ को , लुग़ात के इख़तेलाफ़ को देखो या ज़बानों के इफ़तेराक़ को , सब उसकी क़ुदरते कामेला के बेहतरीन दलाएल हैं। हैफ़ है उन लोगों पर जिन्होंने तक़दीर साज़ से इन्कार किया है और तदबीर करने वाले से मुकर गए। उनका ख़याल है के सब घास फूस की तरह हैं के बग़ैर खेती करने वाले के उग आए हैं और बग़ैर सानेअ के मुख़तलिफ़ शक्लें इख़्तेयार कर ली हैं। हालांके इन्होने इस दावा में न किसी दलील का सहारा लिया है और न ही अपने अक़ाएद की कोई तहक़ीक़ की है वरना यह समझ लेते के न बग़ैर बानी के इमारत हो सकती है और न बग़ैर मुजरिम के जुर्म हो सकता है।

और अगर तुम चाहो तो यही बातें टिड्डी के बारे में कही जा सकती हैं के इसके अन्दर दो सुर्ख़ सुर्ख़ आंखें पैदा की हैं और चान्द जैसे दो हलक़ों में आंखों के चिराग़ रौशन कर दिये हैं। छोटे-छोटे कान बना दिये हैं और मुनासिब सा दहाना खोल दिया है लेकिन इसके लिबास को क़वी बना दिया है। इसके दो तेज़ दांत हैं जिनसे पत्तियों को काटती है और दो पैर दनदानावार हैं जिनसे घास वग़ैरा को काटती है। काष्तकार अपनी काष्त के लिये इनसे ख़ौफ़ज़दा रहते हैं लेकिन इन्हें हंका नहीं सकते हैं चाहे किसी क़द्र ताक़त क्यों न जमा कर लें। यहां तक के वह खेतियों पर जस्त व ख़ेज़ करते हुए हमलावर हो जाती हैं और अपनी ख़्वाहिशपूरी कर लेती हैं। जबके उस का कुल वजूद एक बारीक उंगली से ज़्यादा नहीं है।

पस बा-बरकत है वह ज़ाते अक़दस जिसके सामने ज़मीन व आसमान की तमाम मख़लूक़ात परग़बत या नजबदराकराह सर-ब ’ सुजूद रहती हैं।

उसके लिये चेहरा और रुख़सार को ख़ाक पर रखे हुए हैं और अज्ज़ व इन्केसार के साथ इसकी बारगाह में सरापा इताअत हैं और ख़ौफ़ व दहशत से अपनी ज़माम इख़्तेयार उन्हीं के हवाले किये हुए हैं। परिन्दे उसके अम्र के ताबे हैं के वह उनके परों और सांसों का शुमार रखता है और उनके परों को तरी या ख़ुश्की में जमा दिया करता है , इनका फ़ौत मुक़र्रर कर दिया है और इनकी जिन्स का एहसा कर लिया है के यह कव्वा है वह अक़ाब है यह कबूतर है वह शुतरमुर्ग़ है , हर परिन्दे को उसके नाम से क़याम वजूद में दावत दी है और हर एक की रोज़ी की केफ़ालत की है। संगीन क़िस्म के बादल पैदा किये तो उनसे मूसलाधार पानी बरसा दिया और इसकी तक़सीमात का हिसाब भी रखा। ज़मीन को ख़ुश्की के बाद तर कर दिया और इसके नबातात को बन्जर हो जाने के बाद दोबारा उगा दिया।

(((- दरहक़ीक़त घास फूस के बारे में भी यह तसव्वुर खि़लाफ़े अक़्ल है के इसकी तख़लीक़ बग़ैर किसी ख़ालिक़ के हो गई है , लेकिन यह तसव्वुर सिर्फ़ इस लिये पैदा कर लेता है के इसकी हिकमत और मसलहत से बाख़बर नहीं है और यह ख़याल करता है के इस बरसात ने पानी के बग़ैर किसी तरतीब व तन्ज़ीम के उगा दिया है और इसके बाद इस तख़लीक़ पर सारी कायनात का क़यास करने लगता है। हालांके उसे कायनात की हिकमत व मसलहत को देखकर यह फ़ैसला करना चाहिये था के तख़लीक़े कायनात के बाज़ इसरार तो वाज़ेह भी हो गए हैं लेकिन तख़लीक़े नबातात का तो कोई राज़ वाज़ेअ नहीं हो सका है और यह इन्सान की इन्तेहाई जेहालत है के वह इस क़द्र हक़ीर और मामूली मख़लूक़ात की हिकमत व मसलेहत से भी बाख़बर नहीं है और हौसला इस क़दर बलन्द है के मालिके कायनात से टक्कर लेना चाहता है। और एक लफ़्ज़ में इसके वजूद का ख़ात्मा कर देना चाहता है-)))