खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

193-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें साहेबाने तक़वा की तारीफ़ की गई है)

कहा जाता है के अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के एक आबिद व ज़ाहिद सहाबी जिनका नाम हमाम था , एक दिन हज़रत से अर्ज़ करने लगे के हुज़ूर मुझसे मुत्तक़ीन के सिफ़ात कुछ इस तरह बयान फ़रमाएं के गोया मैं उनको देख रहा हूँ , आपने जवाब से गुरेज़ करते हुए फ़रमाया के हमाम अल्लाह से डरो और नेक अमल करो के अल्लाह तक़वा और हुस्ने अमल वालों को दोस्त रखता है (अल्लाह उन लोगों के साथ है जो मुत्तक़ी और नेक किरदार हैं)। हमाम इस मुख़्तसर बयान से मुतमईन न हुए तो हज़रत ने हम्द व सनाए परवरदिगार और सलवात व सलाम के बाद इरशाद फ़रमाया-

अम्माबाद! परवरदिगार ने तमाम मख़लूक़ात को इस आलम में पैदा किया है के वह उनकी इताअत से मुस्तग़नी और उनकी नाफ़रमानी से महफ़ूज़ था , न उसे किसी नाफ़रमान की मासीयत नुक़सान पहुंचा सकती थी और न किसी इताअत गुज़ार की इताअत फ़ायदा दे सकती थी। उसने सबकी माशियत को तक़सीम कर दिया , और सबकी दुनिया में एक मन्ज़िल क़रार दे दी , इस दुनिया में मुत्तक़ी अफ़राद वह हैं जो साहेबाने फ़ज़ाएल व कमालात होते हैं के उनकी गुफ़्तगू हक़ व सवाब , उनका लिबास मोतदिल , उनकी रफ़्तार मुतवाज़ेअ होती है। जिन चीज़ों को परवरदिगार ने हराम क़रार दे दिया है उनसे नज़रों को नीचा रखते हैं और अपने कानों को उन उलूम के लिये वक़्फ़ रखते हैं जो फ़ायदा पहुंचाने वाले हैं। उनके नुफ़ूस बला व आज़माइशमें ऐसे ही रहते हैं जैसे राहत व आराम में , अगर परवरदिगार ने हर शख़्स की हयात की मुद्दत मुक़र्रर न कर दी होती तो इनकी रूहें इनके जिस्म में पलक झपकने के बराबर भी ठहर नहीं सकती थीं के उन्हें सवाब का शौक़ है और अज़ाब का ख़ौफ़। ख़ालिक़ इनकी निगाह में इस क़द्र अज़ीम है के सारी दुनिया निगाहों से गिर गई है। जन्नत उनकी निगाह के सामने इस तरह है जैसे इसकी नेमतों से लुत्फ़ अन्दोज़ हो रहे हों और जहन्नुम को इस तरह देख रहे हैं जैसे इसके अज़ाब को महसूस कर रहे हों। उनके दिल नेकियों के ख़ज़ाने हैं और इनसे शर का कोई ख़तरा नहीं है। इनके जिस्म नहीफ़ और लाग़र हैं और इनके ज़रूरियात निहायत दर्जए मुख़्तसर और इनके नुफ़ूस भी तय्यबो ताहिर हैं। इन्होंने दुनिया में चन्द दिन तकलीफ़ उठाकर अबदी राहत का इन्तेज़ाम कर लिया है और ऐसी फ़ायदा बख़्श तिजारत की है जिसका इन्तेज़ाम इनके परवरदिगार ने कर दिया था। दुनिया ने उन्हें बहुत चाहा लेकिन उन्होंने इसे नहीं चाहा और इसने उन्हें बहुत गिरफ़्तार करना चाहा लेकिन उन्होंने फ़िदया देकर अपने को छुड़ा लिया।

रातों के वक़्त मुसल्ला पर खड़े रहते हैं , ख़ुशअलहानी के साथ (ठहर-ठहर कर) तिलावते क़ुरान करते रहते हैं। अपने नफ़्स को ग़मज़दा रखते हैं और इसी तरह अपनी बीमारीए दिल का इलाज करते हैं। जब किसी आयत तरग़ीब से गुज़रते हैं तो इसकी तरफ़ मुतवज्जो हो जाते हैं और जब किसी आयते तरहीब व तख़वीफ़ से गुज़रते हैं तो दिल के कानों को इसकी तरफ़ यूं मसरूफ़ कर देते हैं जैसे जहन्नुम के शोलों की आवाज़ और वहां की चीख़ पुकार मुसलसल इनके कानों तक पहुंच रही हो , यह रूकूअ में कमर ख़मीदा और सजदे में पेशानी , हथेली , अंगूठों और घुटनों को फ़र्षे ख़ाक किये रहते हैं। परवरदिगार से एक ही सवाल करते हैं के इनकी गर्दनों को आतिशे जहन्नुम से आज़ाद कर दे। इसके बाद दिन के वक़्त यह ओलमा और दानिशमन्द , नेक किरदार और परहेज़गार होते हैं जैसे उन्हें तीरअन्दाज़ के तीर की तरह ख़ौफ़े ख़ुदा ने तराशा हो।

(((- यूँ तो तिलावते क़ुरान का सिलसिला घरों से लेकर मस्जिदों तक और गुलदस्तए अज़ान से लेकर टीवी स्टेशन तक हर जगह हावी है और जुस्ने क़राअत के मुक़ाबलों में “ अल्लाह-अल्लाह ” की आवाज़ भी सुनाई देती है लेकिन कहां हैं वह तिलावत करने वाले जिनकी शान मौलाए कायनात ने बयान की है के हर आयत उनके किरदार का एक हिस्सा बन जाए और हर फ़िक़रा दर्दे ज़िन्दगी के एक इलाज की हैसियत पैदा कर ले। आयते नेमत पढ़ें तो जन्नत का नक़्षा निगाहों में खिंच जाए और तमन्नाए मौत में बेक़रार हो जाएं और आयत ग़ज़ब की तिलावत करें तो जहन्नुम के शोलों की आवाज़ कानों में गूंजने लगे और सारा वजूद थरथरा जाए। दरहक़ीक़त यह अमीरूलमोमेनीन (अ 0) ही की ज़िन्दगी का नक़्षा है जिसे हज़रत ने मुत्तक़ीन के नाम से बयान किया है वरना दीदा तारीख़ ऐसे मुत्तक़ीन की ज़ियारत के लिये सरापा इश्तियाक़ है-)))

देखने वाला इन्हें देखकर बीमार तसव्वुर करता है हालांके यह बीमार नहीं हैं और इनकी बातों को सुनकर कहता है के इनकी अक़्लों में फ़ितूर है हालांके ऐसा क़तई नहीं है। बात सिर्फ़ यह है के इन्हें एक बहुत बड़ी बात ने मदहोशबना रखा है के यह न क़लीले अमल से राज़ी होते हैं और न कसीर अमल को हक़ीर समझते हैं। हमेशा अपने नफ़्स ही को मुतहम करते रहते हैं (कोताहियों का इलज़ाम रखते हैं) और अपने आमाल से ख़ौफ़ ज़दा रहते हैं जब इनमें से किसी एक को (सलाह व तक़वा की बिना पर) सरापा जाना जाता है (तारीफ़ की जाती है) तो वह अपने हक़ में कही हुई बात से ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं और कहते हैं के मैं ख़ुद अपने नफ़्स को दूसरों से बेहतर पहचानता हूँ और मेरा परवरदिगार तो मुझसे भी बेहतर जानता है।

ख़ुदाया! मुझसे उनके अक़वाल का मुहासेबा न करना और मुझे उनके हुस्ने ज़न से भी बेहतर क़रार दे दुनिया और फिर उन गुनाहों को माफ़ भी कर देना जिन्हें यह सब नहीं जानते हैं।

उनकी एक अलामत यह भी है के इनके पास दीन में क़ुवत , नर्मी में शिद्दते एहतियात , यक़ीन में ईमान , इल्म के बारे में लालच , हिल्म की मंज़िल में इल्म , मालदारी में मयानारवी , इबादत में खुशु-ए-क़ल्ब , फ़ाक़े में ख़ुद्दारी , सख्तियो में सब्र , हलाल की तलब , हिदायत में निशात , लालच से परहेज़ जैसी तमाम बातें पाई जाती हैं। वह नेक आमाल भी अन्जाम देते हैं तो लरज़ते हुए अन्जाम देते हैं। शाम के वक़्त इनकी फ़िक्र शुक्रे परवरदिगार होती है और सुबह के वक़्त ज़िक्रे इलाही। ख़ौफ़ज़दा आलम में रात करते हैं और फ़रह व सुरूर में सुबह , जिस ग़फ़लत से डराया गया है उससे मोहतात रहते हैं और जिस फ़ज़्ल व रहमत का वादा किया गया है उससे ख़ुशरहते हैं। अगर नफ़्स नागवार अम्र के लिये सख़्ती भी करे तो इसके मुतालबे को पूरा नहीं करते हैं इनकी आंखों की ठण्डक लाज़वाल नेमतों में है और इनका परहेज़ फ़ानी अष्यिा के बारे में है। यह हिल्म को इल्म से और क़ौल को अमल से मिलाए हुए हैं। तुम हमेशा इनकी उम्मीदों को मुख़्तसर , दिल को ख़ाशा (मुतवाज़ेअ) , नफ़्स को क़ानेअ , खाने को मामूली , मुआमलात को आसान , दीन को महफ़ूज़ , ख़्वाहिशात को मुर्दा और ग़ुस्से को पिया हुआ देखोगे।

उनसे हमेशा नेकियों की उम्मीद रहती है और इन्सान इनके शर की तरफ़ से महफ़ूज़ रहता है। यह ग़ाफ़िलों में नज़र आएं तो भी यादे ख़ुदा करने वालों में कहे जाते हैं और याद करने वालों में नज़र आए तो भी ग़ाफ़िलों में शुमार नहीं होते हैं। ज़ुल्म करने वाले को माफ़ कर देते हैं , महरूम रखने वाले को अता कर देते हैं , क़तए रहम करने वालों से ताल्लुक़ात रखते हैं , लगवियात से दूर , नर्म कलाम , मुनकिरात ग़ाएब , नेकियां हाज़िर , ख़ैर आता हुआ , शर जाता हुआ , ज़लज़्लों में बावक़ार , दुष्वारियों में साबिर , आसानियों में शुक्रगुज़ार , दुशमन पर ज़ुल्म नहीं करते हैं चाहने वालों की ख़ातिर गुनाह नहीं करते हैं। गवाही तलब किये जाने से पहले हक़ का एतराफ़ करते हैं , अमानतों को ज़ाया नहीं करते हैं , जो बात याद दिलाई जाए उसे भूलते नहीं हैं और अलक़ाब के ज़रिये एक-दूसरे को चिढ़ाते नहीं हैं और हमसाये को नुक़सान नहीं पहुंचाते हैं।

(((- ख़ुदा गवाह है के एक-एक लफ़्ज़ आबे ज़र से लिखने के क़ाबिल है और इन्सानी ज़िन्दगी में इन्क़ेलाब पैदा करने के लिये काफ़ी है। साहेबाने तक़वा की वाक़ेई निशान यही है के इनसे हर ख़ैर की उम्मीद की जाए और इनके बारे में किसी शर का तसव्वुर न किया जाए। वह ग़ाफ़िलों के दरम्यान भी रहें तो ज़िक्रे ख़ुदा में मशग़ूल रहें और बेईमानों की बस्ती में भी आबाद हों तो ईमान व किरदार में फ़र्क़ न आए। नफ़्स इतना पाकीज़ा हो के हर बुराई का जवाब नेकी से दें और हर ग़लती को माफ़ करने का हौसला रखते हों , गुफ़्तगू , आमाल , रफ़्तार , किरदार हर एतबार से तय्यब व ताहिर हों और कोई एक लम्हा भी ख़ौफ़े ख़ुदा से ख़ाली न हो। तलाशकीजिये आज के दौर के साहेबाने तक़वा और मदअयाने परहेज़गारी की बस्ती में , कोई एक शख़्स भी ऐसा जामेअ सिफ़ात नज़र आता है और किसी इन्सान के किरदार में भी मौलाए कायनात के इरशाद की झलक नज़र आती है , और अगर ऐसा नहीं है तो समझिये के हम ख़यालात की दुनिया में आबाद हैं और हमारा वाक़ेयात से कोई ताल्लुक़ नहीं है-)))

जो मसाएब में किसी को ताने नहीं देते हैं , हर्फ़े बातिल में दाखि़ल नहीं होते हैं और कलमए हक़ से बाहर नहीं आते हैं , यह चुप रहें तो उनकी ख़ामोशी हम व ग़म की बिना पर नहीं है और यह हंसते हैं तो आवाज़ बलन्द नहीं करते हैं , इन पर ज़ुल्म किया जाए तो सब्र कर लेते हैं ताके ख़ुदा इसका इन्तेक़ाम ले। इनका अपना नफ़्स हमेशा रन्ज में रहता है और लोग इनकी तरफ़ से हमेशा मुमतईन रहते हैं इन्होंने अपने नफ़्स को आखि़रत के लिये थका डाला है और लोग इनके नफ़्स की तरफ़ से आज़ाद हो गए हैं। दूर रहने वालों से इनकी दूरी ज़ोहद और पाकीज़गी की बिना पर है और क़रीब रहने वालों से इनकी क़ुरबत नर्मी और मरहमत की बिना पर है , न दूरी तकब्बुर व बरतरी का नतीजा है और न क़ुरबत मकरो फ़़रेब का नतीजा।

रावी कहता है के यह सुनकर हमाम ने एक चीख़ मारी और दुनिया से रूख़सत हो गए।

तो अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने फ़रमाया के मैं इसी वक़्त से डर रहा था के मैं जानता था के साहेबाने तक़वा के दिलों पर नसीहत का असर इसी तरह हुवा करता है। यह सुनना था के एक शख़्स बोल पड़ा के फिर आप पर ऐसा असर क्यों नहीं ?

तो आपने फ़रमाया के ख़ुदा तेरा बुरा करे , हर अजल के लिये एक वक़्त मुअय्यन है जिससे आगे बढ़ना नामुमकिन है और हर “ शै के लिये एक सबब है जिससे तजावुज़ करना नामुमकिन है , ख़बरदार अब ऐसी गुफ़्तगू न करना , यह “ शैतान ने तेरी ज़बान पर अपना जादू फूंक दिया है।

194-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मुनाफ़ेक़ीन के औसाफ़ बयान किये गए हैं)

हम उस परवरदिगार का शुक्र अदा करते हैं के उसने इताअत की तौफ़ीक़ अता फ़रमाई और मासीयत से दूर रखा और फिर उससे एहसानात के मुकम्मल करने और उसकी रीसमाने हिदायत से वाबस्ता रहने की दुआ भी करते हैं। और इस बात की शहादत देते हैं के मोहम्मद (स 0) उसके बन्दे और रसूल हैं। उन्होंने उसकी रिज़ा की ख़ातिर हर मुसीबत में अपने को डाल दिया और हर ग़ुस्से के घूंट को पी लिया। क़रीब वालों ने उनके सामने रंग बदल दिया और दूर वालों ने उन पर लशकर कशी कर दी। अरबों ने अपनी ज़माम का रूख़ उनकी तरफ़ मोड़ दिया और अपनी सवारियों को उनसे जंग करने के लिये महमीज़ कर दिया यहां तक के अपनी औरतों को दूर दराज़ इलाक़ों और दूर इफ़तादा सरहदों से लाकर उनके सहन में उतार दिया।

बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही की वसीयत करता हूं और तुम्हें मुनाफ़ेक़ीन से होशियार कर रहा हूँ के यह गुमराह भी हैं और गुमराह कुन भी , मुनहरिफ़ भी हैं और मुनहरिफ़साज़ भी , यह मुसलसल रंग बदलते रहते हैं और तरह-तरह के फ़ितने उठाते रहते हैं , हर मक्रो फ़रेब के ज़रिये तुम्हारा ही क़स्द करते हैं और हर घात में तुम्हारी ही ताक में बैठते हैं। इनके दिल बीमार हैं और इनके चेहरे पाक व साफ़ , अन्दर ही अन्दर चाल चलते हैं और नुक़सानात की ख़ातिर रेंगते हुए क़दम बढ़ाते हैं। इनका तरीक़ा दवा जैसा और इनका कलाम शिफ़ा जैसा है लेकिन इनका किरदार नाक़ाबिले इलाज मर्ज़ है , यह राहतों में हसद करने वाले , मुसीबतों में मुब्तिला कर देने वाले और उम्मीदों को नाउम्मीद बना देने वाले हैं। जिस राह पर देखो इनका मारा हुआ पड़ा है और जिस दिल को देखो वहाँ तक पहुंचने का एक सिफ़ारिशी ढूंढ रखा है।

(((- अगर सारी दुनिया के जराएम की फ़ेहरिस्त तैयार की जाए तो इसमें सरे फेहरिस्त निफ़ाक़ ही का नाम होगा जिसमें हर तरह की बुराई और हर तरह का ऐब पाया जाता है। निफ़ाक़ अन्दर से कुफ्ऱ व शिर्क की ख़बासत रखता है और बाहर से झूठ और ग़लत बयानी की कसाफ़त रखता है और इन दोनों से बदतरीन दुनिया का कोई जुर्म और कोई ऐब नहीं है। दौरे हाज़िर का दक़ीक़तरीन जाएज़ा लिया जाए तो अन्दाज़ा होगा के इस दौर में आलमी सतह पर निफ़ाक़ के अलावा कुछ नहीं रह गया है। हर शख़्स जो कुछ कर रहा है उसका बातिन उसके खि़लाफ़ है और हर हुकूमत जिस बात का दावा कर रही है उसकी कोई वाक़ईयत नहीं है। तहज़ीब के नाम पर फ़साद , मवासलात के नाम पर तबाहकारी , अमने आलम के नाम पर असलहों की दौड़ , तालीम के नाम पर बद एख़लाक़ी और मज़हब के नाम पर लामज़हबीयत ही इस दौर का का तरहे इम्तेयाज़ है और इसी को ज़बाने शरीअत में निफ़ाक़ कहा जाता है-)))

हर रन्ज व ग़म के लिये आंसू तैयार रखे हुए हैं , एक दूसरे की तारीफ़ में हिस्सा लेते हैं और इसके बदले के मुन्तज़िर रहते हैं। सवाल करते हैं तो चिपक जाते हैं और बुराई करते हैं तो रूसवा करके ही छोड़ते हैं और फ़ैसला करते हैं तो हद से बढ़ जाते हैं।

हर हक़ के लिये एक बातिल तैयार कर रखा है और हर सीधे के लिये एक कजी का इन्तेज़ाम कर रखा है। हर ज़िन्दा के लिये एक क़ातिल मौजूद है और हर दरवाज़े के लिये एक कुन्जी बना रखी है और हर रात के लिये एक चिराग़ मुहैया कर रखा है। लालच के लिये नामूस को ज़रिया बनाते हैं ताके अपने बाज़ार को रवाज दे सकें और अपने माल को राएज कर सकें। जब बात करते हैं तो मुश्तबा क़िस्म की और जब तारीफ़ करते हैं तो बातिल को हक़ का रंग देकर। उन्होंने अपने लिये रास्ते को आसान बना लिया है और दूसरों के लिये तंगी पैदा कर दी है। यह “ शैतान के गिरोह हैं और जहन्नुम के शोले , यही हिज़्बुष्षैतान के मिसदाक़ हैं और हिज़्बुष्षैतान का मुक़द्दर सिवाए ख़सारे के कुछ नहीं है।

(((- हक़ीक़ते अम्र यह है के मुनाफ़िक़ीन का कोई अम्र क़ाबिले एतबार नहीं होता और इनकी ज़िन्दगी सरापा ग़लत बयानी होती है। तारीफ़ करने पर आ जाते हैं तो ज़मीन व आसमान के क़लाबे मिला देते हैं और बुराई करने पर तुल जाते हैं तो आदमी को आलमी सतह पर ज़लील करके छोड़ते हैं। इसलिये के इनका न कोई ज़मीर होता है और न कोई मेयार , इन्हें सिर्फ़ मौक़े परस्ती से काम लेना है और इसी के एतबार से ज़बान खोलना है।

ख़ुतबे के उनवान से यह अन्दाज़ा हुआ था के यह समाज के चन्द अफ़राद का एक गिरोह है जिसके किरदार वाज़ेह किया जा रहा है ताके लोग इस किरदार से होशियार रहें और अपनी ज़िन्दगी को निफ़ाक़ से बचाकर ईमान व तक़वा के रास्ते पर लगा दें , लेकिन तफ़सीलात को देखने के बाद महसूस होता है के यह पूरे समाज का नक़्षा है और सारा आलमे इन्सानियत इसी रंग में रंगा हुआ है। ज़िन्दगी का कोई शोबा ऐसा नहीं है जिसमें निफ़ाक़ की हुकमरानी न हो और इन्सान के किरदार का कोई रूख़ ऐसा नहीं है जिसमें वाक़ईयत और हक़ीक़त पाई जाती हो और जिसे निफ़ाक़ से पाक व पाकीज़ा क़रार दिया जा सके।

ऐसे हालात में तो हर शख़्स को अपने नफ़्स का जाएज़ा लेना चाहिये और मुनाफ़ेक़ीन के बारे में बयान किये हुए सिफ़ात से इबरत हासिल करनी चाहिये।-)))

195-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये जिसने अपनी सल्तनत के आसार और किबरियाई के जलाल को इस तरह नुमायां किया है के अक़्लों की निगाहें अजायबे क़ुदरत से हैरान हो गई हैं और नुफ़ूस के तसव्वुरात व इफ़्कार उसके सिफ़ात की हक़ीक़त के इरफ़ान से रूक गए हैं।

मैं गवाही देता हूँ के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और यह गवाही सिर्फ़ ईमान व यक़ीन , इख़लास व एतेक़ाद की बिना पर है और फिर मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद (स 0) उसके बन्दे और रसूल हैं , उसने इन्हें उस वक़्त भेजा है जब हिदायत के निशानात मिट चुके थे और दीन के रास्ते बेनिशान हो चुके थे। उन्होंने हक़ का वाशिगाफ़ अन्दाज़ से इज़हार किया। लोगों को हिदायत दी और सीधे रास्ते पर लगाकर मयानारवी का क़ानून बना दिया।

बन्दगाने ख़ुदा , याद रखो परवरदिगार ने तुमको बेकार नहीं पैदा किया है और न तुमको बेलगाम छोड़ दिया है। तुमको दी जाने वाली नेमतों के हुदूद को जानता है और तुम पर किये जाने वाले एहसानात का शुमार रखता है लेहाज़ा उससे कामरानी और कामयाबी का तक़ाज़ा करो , उसकी तरफ़ दस्ते तलब बढ़ाओ और उससे अताया का मुतालेबा करो , कोई हेजाब तुम्हें इससे जुदा नहीं कर सकता है और कोई दरवाज़ा उसका तुम्हारे लिये बन्द नहीं हो सकता है , वह हर जगह और हर आन मौजूद है , हर इन्सान और हर जिन के साथ है , न अता उसके करम में रख़ना डाल सकती है और न हिदाया उसके ख़ज़ाने में कमी पैदा कर सकते हैं। कोई साएल इसके ख़ज़ाने को ख़ाली नहीं कर सकता है और कोई अतिया उसके करम की इन्तेहा को नहीं पहुंच सकता है। एक शख़्स की तरफ़ तवज्जो दूसरे की तरफ़ से रूख़ मोड़ नहीं सकती है और आवाज़ दूसरी आवाज़ से ग़ाफ़िल नहीं बना सकती है। इसका अतिया छीन लेने से मानेअ नहीं होता है और इसका ग़ज़ब रहमत से मशग़ूल नहीं करता है। रहमते इताब से ग़फ़लत में नहीं डाल देती है और हस्ती का पोशीदा होना ज़हूर से मानेअ नहीं होता है और आसार का ज़हूर हस्ती की परदावारी को नहीं रोक सकता है , वह क़रीब होके भी दूर है और बलन्द होकर भी नज़दीक है , वह ज़ाहिर होकर भी पोशीदा है और पोशीदा होकर भी ज़ाहिर है। वह जज़ा देता है लेकिन उसे जज़ा नहीं दी जाती है , उसने मख़लूक़ात को सोच बिचार करके नहीं बनाया है और न ख़स्तगी (तकान) की बिना पर उनसे मदद ली है।

बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही की वसीयत करता हूँ के यही हर ख़ैर की ज़माम और हर नेकी की बुनियाद है , इसके बन्धनों से वाबस्ता रहो और इसके हक़ाएक़ से मुतमस्सिक रहो , यह तुमको राहत की महफ़ूज़ मन्ज़िलों और वुसअत के बेहतरीन इलाक़ों तक पहुंचा देगा , तुम्हारे लिये महफ़ूज़ मुक़ामात होंगे और बाइज़्ज़त मनाज़िल , उस दिन जिस दिन आंखें फटी की फटी रह जाएंगी और एतराफ़ अन्धेरा छा जाएगा। बोटियां मोअत्तल कर दी जाएंगी (दस-दस महीने की गाभिन ऊंटनियां बेकार कर दी जाएंगी) और सूर फूंक दिया जाएगा। उस वक़्त सबका दम निकल जाएगा और हर ज़बान गूंगी हो जाएगी। बलन्दतरीन पहाड़ और मज़बूत तरीन चट्टानें रेज़ा रेज़ा हो जाएंगी , पत्थरों की चट्टानें चमकदार सराब की शक्ल में तब्दील हो जाएंगी और उनकी मन्ज़िल एक साफ़ चटियल मैदान हो जाएगी , न कोई शफ़ीअ शिफ़ाअत करने वाला होगा और न कोई दोस्त काम आने वाला होगा , और न कोई माज़ेरत व दिफ़ाअ करने वाली होगी।

(((- जिन लोगों के सिफ़ात व कमालात पर मिज़ाज या आदात की हुकमरानी होती है , इनके कमालात में इस तरह की यकसानियत पाई जाती है के मेहरबान होते हैं और मेहरबान ही होते हैं और ग़ुस्सावर ही होते हैं। लेकिन मालिके कायनात के औसाफ़ व कमालात इससे बिलकुल मुख़्तलिफ़ हैं उसके औसाफ़ व कमालात का सरचश्मा इसका मिज़ाज या उसकी तबीअत नहीं है। बल्कि उनका वाक़ेई सरचश्मा इसकी हिकमत और मसलेहत है , लेहाज़ा उसके बारे में ऐन मुमकिन है के एक ही वक़्त में मेहरबान भी हो और ग़ज़बनाक भी , नेमतें अता भी कर रहा हो और सल्ब भी कर रहा हो , उसके कमाल का ज़हूर भी हो और पर्दा भी हो , वह दूर भी नज़र आए और क़रीब भी , इसलिये के मसालेह का तक़ाज़ा हमेशा अफ़राद के एतबार से मुख़्तलिफ़ होता है। एक शख़्स का किरदार रहमत चाहता है और दूसरे का ग़ज़ब , एक के हक़ में मसलेहत अता कर देना है और दूसरे के हक़ में छीन लेना , एक जज़ा और ईनाम का सज़ावार है और दूसरा सज़ा व इताब का हक़दार। तू हकीम अललइतलाक़ का फ़र्ज़ है के एक ही वक़्त में हर शख़्स के साथ वैसा ही बरताव करे जिसका वह अहल है और एक बरताव उसे दूसरे बरताव से ग़ाफ़िल न बना सके-)))

196-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें सरकारे दो आलम (स 0) की मद्हा की गई है)

प्रवरदिगार ने आपको उस वक़्त मबऊस किया जब न कोई निशाने हिदायत क़ायम रह गया था और न कोई मिनारए दीन रौशन था और न कोई रास्ता वाज़ेह था। बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही की वसीयत करता हूँ और दुनिया से होशियार कर रहा हूँ के यह कूच का घर और बदमज़गी का इलाक़ा है , इसका बाशिन्दा हर हाल सफ़र करने वाला है और इसका मुक़ीम बहरहाल जुदा होने वाला है। यह अपने अहल को लेकर इस तरह लरज़ती है जिस तरह गहरे समन्दरों में तन्द व तेज़ हवाओं की ज़द पर किष्तियां , कुछ लोग ग़र्क़ और हलाक हो जाते हैं और कुछ मौजों के सहारे पर बाक़ी रह जाते हैं। तेज़ हवाएं उन्हें अपने दामन में लिये फ़िरती रहती हैं और अपनी हौलनाक मन्ज़िलों की तरफ़ ले जाती रहती हैं। जो ग़र्क़ हो गया वह दोबारा पाया नहीं जा सकता (हाथ नहीं आ सकता) और जो बच गया है उसका रास्ता हलाकत की ही तरफ़ जा रहा है।

बन्दगाने ख़ुदा! अभी बात को समझ लो और जबके ज़बानें आज़ाद हैं और बदन सही व सालिम हैं। आज़ा में लचक बाक़ी है और आने-जाने की जगह वसीअ और काम का मैदान तवील व अरीज़ है। क़ब्ल इसके के मौत नाज़िल हो जाए और अजल का फन्दा गले में पड़ जाए , अपने लिये मौत की आमद को यक़ीनी समझ लो और उसके आने का इन्तेज़ार न करो।

197-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स 0) के अम्र व नहीं और तालीमात को क़ुबूल करने के ज़ैल में फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया गया है)

असहाबे पैग़म्बर (स 0) में शरीअत के अमानतदार अफ़राद इस हक़ीक़त हैं के मैंने एक लम्हे के लिये भी ख़ुदा और रसूल (स 0) की बात को रद नहीं किया और मैंने पैग़म्बरे अकरम (स 0) पर अपनी जान उन मुक़ामात पर क़ुरबान की है जहां बड़े-बड़े बहादुर भाग खड़े होते हैं और उनके क़दम पीछे हट जाते हैं , सिर्फ़ इस बहादुरी की बुनियाद पर जिससे परवरदिगार ने जुझे सरफ़राज़ फ़रमाया था।

रसूले अकरम (स 0) उस वक़्त दुनिया से रूख़सत हुए हैं जब उनका सर मेरे सीने पर था और उनकी रूहे अक़दस मेरे हाथों पर जुदा हुई है तो मैंने अपने हाथों को चेहरे पर मल लिया , मैंने ही आपको ग़ुस्ल दिया है जब मलाएका मेरी इमदाद कर रहे थे और घर के अन्दर और बाहर एक कोहराम बरपा था , एक गिरोह नाज़िल हो रहा था और एक वापस जा रहा था। सब नमाज़े जनाज़ा पढ़ रहे थे और मैं मुसलसल उनकी आवाज़ें सुन रहा था , यहां तक के मैंने ही हज़रत को सुपुर्दे लहद किया है। तो अब बताओ के ज़िन्दगी और मौत में मुझसे ज़्यादा उनसे क़रीबतर कौन है ? अपनी बसीरतों के साथ और सिद्क़े नीयत के एतमाद पर आगे बढ़ो , अपने दुशमन से जेहाद करो , क़सम है उस परवरदिगार की जिसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है के मैं हक़ के रास्ते पर पर हूँ और वह लोग बातिल की लग़्ज़िशो की मन्ज़िल में , मैं जो कह रहा हूँ वह तुम सुन रहे हो और मैं अपने और तुम्हारे दोनों के लिये ख़ुदा की बारगाह में अस्तग़फ़ार कर रहा हूँ।

(((- मौलाए कायनात (अ 0) की पूरी हयात इस इरशादे गिरामी का बेहतरीन मुरक़्क़ा है जहां हिजरत की रात से लेकर फ़तहे मक्का तक और उसके बाद तबलीग़े बराअत तक कोई मौक़ा ऐसा नहीं था जहां आपने सरकारे दो आलम (स 0) और उनके मक़सद की ख़ातिर अपनी जान को ख़तरे में न डाल दिया हो और उस वहदत ज़ात व इताअत का सुबूत न दिया हो जिसकी तरफ़ ख़ुद हज़रत ने मैदाने ओहद में इशारा किया था जब जिबराईले अमीन (अ 0) ने अज़ की के हुज़ूर अली (अ 0) की मवासात को देख रहे हैं ? तो आपने फ़रमाया के इसमें हैरत की बात क्या है “ अली (अ 0) मुझसे है और मैं अली (अ 0) से हूँ ” ।

इसके बाद इन्तेक़ाल से लेकर दफ़्न के आखि़री मरहले तक हर क़दम पर हुज़ूर के उमूर के ज़िम्मेदार रहे जबके मोअर्रेख़ीन के बयान की बिना पर बड़े बड़े सहाबाए कराम दफ़न में शिरकत की सआदत हासिल न कर सके और खि़लाफ़त साज़ी की मुहिम में मसरूफ़ रह गए।-)))

198-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें ख़ुदा के आलिमे जुजि़्यात होने पर ताकीद की गई है और फिर तक़वा पर आमादा किया गया है)

वह परवरदिगार सहराओं में जानवरों की फ़रयाद को भी जानता है और तनहाइयों में बन्दों के गुनाहों को भी , वह गहरे समन्दरों में मछलियों के रफ़्त व आमद से भी बाख़बर है और तेज़ व तन्द हवाओं से पैदा होने वाले तलातुम से भी। और मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद (स 0) ख़ुदा के मुन्तख़ब बन्दे , उसकी वही के सफ़ीर और उसकी रहमत के रसूल हैं।

अम्माबाद! मैं तुम सबको उसी ख़ुदा से डरने की नसीहत कर रहा हूँ जिसने तुम्हारी खि़लक़त की इब्तेदा की है और उसी की बारगाह में तुम्हें पलट कर जाना है , उसी के ज़रिये तुम्हारे मक़ासिद की कामयाबी है और उसी की तरफ़ तुम्हारी रग़बतों की इन्तेहा है। उसी की सिम्त तुम्हारा सीधा रास्ता है और उसी की तरफ़ तुम्हारी फ़रयादों का निशाना है।

यह तक़वाए इलाही तुम्हारे दिलों की बीमारी की दवा है और तुम्हारे क़ुलूब के अन्धेपन की बसारत , यह तुम्हारे जिस्मों की बीमारी की शिफ़ा का सामान है और तुम्हारे सीनों के फ़साद की इस्लाह , यही तुम्हारे नुफ़ूस की गन्दगी की तहारत है और यही तुम्हारी आंखों के चुन्धियाने की जला , इसी में तुम्हारे दिल के इज़्तेराब का सुकून है और यही ज़िन्दगी की तारीकियों की ज़िया है , इताअते ख़ुदा को अन्दर का शोआर बनाओ सिर्फ़ बाहर का नहीं , और उसे बातिन में हासिल करो सिर्फ़ ज़ाहिर में नहीं। अपनी पस्लियों के दरम्यान समो लो और अपने जुमला उमूर का हाकिम क़रार दो , तष्नगी में विरूद के लिये चश्मा तसव्वुर करो और मन्ज़िले मक़सूद तक पहुंचने के लिये वसीला क़रार दो। अपने रोज़े फ़ुरूअ के लिये सिपर बनाओ और अपनी तारीक क़ब्रों के लिये चिराग़ , अपनी तूलानी वहशते क़ब्र के लिये मोनिस बनाओ और अपने रन्ज व ग़म के मराहेल के लिये सहारा , इताअते इलाही तमाम घेरने वाले बरबादी के असबाब , आने वाले ख़ौफ़नाक मराहेल और भड़कती हुई आग के शोले के लिये हरज़बान है। जिसने तक़वा को इख़्तेयार कर लिया उसके लिये सख्तियां क़रीब आकर दूर चली जाती हैं और उमूरे ज़िन्दगी तल्ख़ (बदमज़ा) होने के बाद शीरीं हो जाते हैं। मौजें तह ब तह हो जाने के बाद भी हट जाती हैं और दुशवारीया मशक़्क़तों में मुब्तिला कर देने के बाद भी आसान हो जाती हैं। क़हत के बाद करामतों की बारिश शुरू हो जाती है और सहाबे रहमत हट जाने के बाद फिर बरसने लगता है और नेमतों के चश्मे जारी जो जाते हैं , फ़ुवार की कमी के बाद बरकत की बरसात शुरू हो जाती है।

(((- इस मुक़ाम पर मौलाए कायनात ने इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो करना चाहा है के तक़वा का फ़ायदा सिर्फ़ आखि़रत तक महदूद नहीं है के तुम यहाँ गुनाहों से परहेज़ करो , मालिक वहां तुम्हें आतिशे जहन्नम से महफ़ूज़ कर देगा बल्कि यह तक़वा आखि़रत के साथ दुनिया के हर मरहले पर काम आने वाला है और किसी मरहले पर इन्सान को नज़रअन्दाज़ करने वाला नहीं है। मुश्किलात से निजात दिलाना इसी तक़वा का कारनामा है और तूफ़ान का मुक़ाबला इसी तक़वा की ताक़त से होता है , रहमत के चश्मे इसी से जारी होते हैं और फ़़ल व करम के बादल इसी की बरकत से बरसते हैं और शायद यह इस नुक्ते की तरफ़ इशारा ह के इन्सानी ज़िन्दगी की सारी परेशानियां उसके आमाल की कमज़ोरियों से पैदा होती हैं , जब इन्सान तक़वा के ज़रिये किरदार को मज़बूत करेगा तो हर परेशानी से मुक़ाबला आसान हो जाएगा। इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं है के मुत्तक़ीन की ज़िन्दगी में परेशानी नहीं होती है और वह चैन और सुकून की ज़िन्दगी गुज़ारते हैं , ऐसा होता तो सब्र का कोई काम न होता और मुत्तक़ीन का सिलसिला साबेरीन से अलग हो जाता , बल्कि इसका मतलब सिर्फ़ यह है के तक़वा सब्र का हौसला पैदा करता है और तक़वा के ज़रिये मसाएब से मुक़ाबला करने का हौसला पैदा हो जाता है और उसकी बरकत से रहमतों का नुज़ूल शुरू हो जाता है-)))

अल्लाह से डरो जिसने तुम्हें नसीहत से फ़ायदा पहुंचाया है और अपने पैग़ाम के ज़रिये नसीहत की है और अपनी नेमत से तुम पर एहसान किया है , अपने नफ़्स को उसकी इबादत के लिये हमवार करो और उसके हक़ की इताअत से ओहदा बरआ होने की कोशिश करो , और इसके बाद याद रखो के यह इस्लाम वह दीन है जिसे मालिक ने अपने लिये पसन्द फ़रमाया है और अपनी निगाहों में इसकी देख भाल की है और इसे बेहतरीन ख़लाएक़ के हवाले किया है और अपनी मोहब्बत पर इसके सुतूनों को क़ायम किया है। इसकी इज़्ज़त के ज़रिये अदयान को सरनिगों किया है और इसकी बलन्दी के ज़रिये मिल्लतों की पस्ती का इज़हार किया है। इसके दुश्मनों को इसकी करामत के ज़रिये ज़लील किया है और इससे मुक़ाबला करने वालों को इसकी नुसरत के ज़रिये रूसवा किया है इसके रूकन के ज़रिये ज़लालत के अरकान को मुनहदिम किया है और इसके हौज़ से प्यासों को सेराब किया है और फ़िर पानी उलचने वालों के ज़रिये इन हौज़ों को भर दिया है। इसके बाद इस दीन को ऐसा बना दिया है के इसके बन्धन टूट नहीं सकते हैं , इसकी कड़ियां खुल नहीं सकती हैं , इसकी बुनियाद मुनहदिम नहीं हो सकती है , इसके सुतून गिर नहीं सकते हैं , इसका दरख़्त उखड़ नहीं सकता है , उसकी मुद्दत तमाम नहीं हो सकती है , उसके आसार मिट नहीं सकते हैं (न उसके क़वानीन महो होते हैं) उसकी शाख़ें कट नहीं सकती हैं उसके रास्ते तंग नहीं हो सकते हैं। उसकी आसानियां दुशवार नहीं हो सकती हैं , उसकी सफ़ेदी में स्याही नहीं है और उसकी इस्तेक़ामत में कजी नहीं है , इसकी लकड़ी टेढ़ी नहीं है और इसकी वुसअत में दुशवारी नहीं है। इसका चिराग़ बुझ नहीं सकता है और इसकी हिलावत में तल्ख़ी नहीं आ सकती है। इसके सुतून ऐसे हैं जिनके पाये हक़ की ज़मीन में नस्ब किये गये हैं और फिर इसकी असास को पाएदार बनाया गया है। इसके चश्मों का पानी कम नहीं हो सकता है और इसके चिराग़ों की लौ मद्धम नहीं हो सकती है। इसके मिनारों से राहगीर हिदायत पाते हैं और इसके निशानात को राहों में निशाने मन्ज़िल बनाया जाता है। इसके चश्मों से प्यासे सेराब होते है और परवरदिगार ने इसके अन्दर अपनी रिज़ा की इन्तेहाई रखी , अपने बलन्दतरीन अरान और अपनी इताअत का उरूज क़रार दिया है। यह दीन उसके नज़दीक मुस्तहकम अरकान वाला बलन्दतरीन बुनियादों वाला हक़ीक़ी (बलन्द) दलाएल वाला , रौशन ज़ियाओं वाला , ग़ालिब सलतनत वाला , बलन्द बुनियाद वाला और नामुमकिन तबाही वाला है। इसके शरफ़ का तहफ़्फ़ुज़ करो , इसके एहकाम का इत्तेबाअ करो , उसके हुक़ूक़ को अदा करो और उसे उसकी वाक़ई मन्ज़िल पर क़रार दो।

(((- दीने इस्लाम का सबसे बड़ा इम्तेयाज़ यह है के इसके क़वानीन ख़ालिक़े कायनात ने बनाए हैं और हर क़ानून को फ़ितरते बशर से हमआहंग बनाया है उसने इसकी तशरीह में अपने महबूबतरीन बन्दे को भी दख़ील नहीं किया है और न किसी को इसके क़वानीन में तरमीम करने का हक़ दिया है। ज़ाहिर है के जो क़ानूने ख़ालिक़ व मालिक के कलाम के नतीजे में मन्ज़रे आम पर आएगा उसकी बक़ा की ज़मानत उसके दफ़आत के अन्दर ही होगी और जब तक यह कायनात बाक़ी रहेगी इसके मामलात में तग़य्युर व तबद्दुल की ज़रूरत न होगी। इस्लाम के दीने पसन्दीदा होने का असर है के इसके सामने तमाम अदयाने आलम हक़ीर इसके मुक़ाबले में तमाम दुश्मनाने मज़हब ज़लील हैं। मालिक ने इसकी बुनियाद मोहब्बत पर रखी है और इसकी असास रहमत और रूबूबीयत को क़रार दिया है। इसका तसलसुल नाक़ाबिले इख़्तेताम है और इसके हलक़े नाक़ाबिले इन्फ़ेसाम। इसी में इन्सानियत की प्यास बुझाने का सामान है और इसी में हिदायत के तलबगारों के लिये बेहतरीन वसीलाए रहनुमाई है। रिज़ाए इलाही का सामन यही है इसके बग़ैर हिदायत का तसव्वुर मोहमिल है और इसके अलावा हर दीन नाक़ाबिले क़ुबूल है।-)))

इसके बाद मालिक ने हज़रत मोहम्मद (स 0) को हक़ के साथ मबऊस किया जब दुनिया फ़ना की मन्ज़िल से क़रीबतर हो गई और आखि़रत सर पर मण्डलाने लगी , जब उजाला अन्धेरों में तबदील होने लगा और वह अपने चाहने वालों के लिये एक मुसीबत बनकर खड़ी हो गई , इसका फर्श खुरदुरा हो गया और फ़ना के हाथों में अपनी मेहार देने के लिये तैयार हो गई। इस तरह के इसकी मुद्दत ख़ातमे के क़रीब पहुंच गई। इसकी फ़ना के आसार क़रीब आ गए। इसके अहल ख़त्म होने लगे , इसके हलक़े टूटने लगे , इसके असबाब मुन्तशिर होने लगे , इसके निशानात मिटने लगे , इसके ऐब खुलने लगे और इसके दामन सिमटने लगे।

अल्लाह ने इन्हें पैग़ाम रसानी का वसीला , उम्मत की करामत , अहले ज़माना की बहार , आवान व अन्सार की बलन्दी का ज़रिया और मददगार व अन्सार अफ़राद की इज़्ज़त व शराफ़त का वास्ता क़रार दिया है।

इसके बाद इन पर उस किताब को नाज़िल किया जिसकी कन्दील बुझ नहीं सकती है और जिसके चिराग़ की लौ मद्धम नहीं पड़ सकती है वह ऐसा समन्दर है जिसकी थाह मिल नहीं सकती है और ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वाला भटक नहीं सकता है। ऐसी शुआअ जिसकी ज़ौ तारीक नहीं हो सकती है और ऐसा हक़ व बातिल का इम्तियाज़ जिसका बरहान कमज़ोर नहीं हो सकता है। ऐसी वज़ाहत जिसके अरकान मुनहदिम नहीं हो सकते हैं और ऐसी शिफ़ा जिसमें बीमारी का कोई ख़ौफ़ नहीं है। ऐसी इज़्ज़त जिसके अन्सार पस्पा नहीं हो सकते हैं और ऐसा हक़ किसके आवान बेयार व मददगार नहीं छोड़े जा सकते हैं।

यह ईमान का मअदन व मरकज़ , इल्म का चश्मा और समन्दर , अदालत का बाग़ और हौज़ , इस्लाम का संगे बुनियाद और असास , हक़ की वादी और इसका हमवार मैदान है। यह वह समन्दर है जिसे पानी निकालने वाले ख़त्म नहीं कर सकते हैं और वह चश्मा है जिसे उलचने वाले ख़ुश्क नहीं कर सकते हैं। वह घाट है जिस पर वारिद होने वाले इसका पानी कम नहीं कर सकते हैं और वह मन्ज़िल है जिसकी राह पर चलने वाले मुसाफ़िर भटक नहीं सकते हैं। वह निशाने मन्ज़िल है जो राहगीरों की नज़रों से ओझल नहीं हो सकता है और वह टीला है जिसका तसव्वुर करने वाले आगे नहीं जा सकते हैं।

परवरदिगार ने इसे ओलमा की सेराबी का ज़रिया , फ़ोक़हा के दिलों की बहार , सालेहीन के रास्तों के लिये शाहेराह क़रार दिया है।

(((- कितना हसीन दौर था जब अम्बियाए कराम का सिलसिला क़ायम था , किताबें और सहीफ़े नाज़िल हो रहे थे , मुबल्लिग़ीने दीन व मज़हब अपने किरदार से इन्सानियत की रहनुमाई कर रहे थे और ज़मीन व आसमान के रिश्ते जुड़े हुए थे फिर यकबारगी क़ेरत का ज़माना आ गया और यह सारे सिलसिले टूट गए , दुनिया पर जाहेलियत का अन्धेरा छा गया और इन्सानियत ने अपनी ज़माम क़यादत जेहल व जाहेलीयत के हवाले कर दी।

ऐसे हालात में अगर सरकारे दो आलम (स 0) का विरूद न होता तो यह दुनिया घटाटोप अन्धेरों ही की नज़र हो जाती और इन्सानियत को कोई रास्ता नज़र न आता। लेकिन यह मालिक का करम था के उसने रहमतुल लिलआलमीन को भेज दिया और अन्धेरी दुनिया को फिर दोबारा नूरे रिसालत से मुनव्वर कर दिया और आप के साथ एक नूर और नाज़िल कर दिया जिसका नाम क़ुराने मजीद था और जिसकी रौशनी नाक़ाबिले इख़्तेताम थी। यह बयकवक़्त दस्तूर भी था और एजाज़ भी , समन्दर भी था और चिराग़ भी। हक़ व बातिल का फ़ुरक़ान भी था और दीन व ईमान का बरहान भी , इसमें हर मर्ज़ का इलाज भी था और हर बीमारी का मदावा भी। इसे मालिक ने सेराबी का ज़रिया भी बनाया था और दिलों की बहार भी। निशाने राह भी क़रार दिया और मन्ज़िले मक़सूद भी , जो शख़्स जिस नुक़्तए निगाह से देखे उसकी तस्कीन का सामान क़ुराने हकीम में मौजूद है और एक किताब सारी कायनात जिन व इन्स की हिदायत के लिये काफ़ी है बशर्ते के इसके मतालिब उन लोगों से उख़ज़ किये जाएं जिन्हें रासख़ोन फ़िल इल्म बनाया गया है और जिनके इल्मे क़ुरान की ज़िम्मेदारी मालिके कायनात ने ली है-)))

वह सरासर शिफ़ा है जिसके बाद कोई मर्ज़ नहीं रह सकता और वह नूर है जिसके बाद किसी ज़ुल्मत का इमकान नहीं है। वह रीसमान है जिसके हलक़े मुस्तहकम हैं और वह पनाहगाह है जिसकी बलन्दी महफ़ूज़ है। चाहने वालों के लिये इज़्ज़त , दाखि़ल होने वालों के लिये सलामती , इक़्तेदा करने वालों के लिये हिदायत , निस्बत करने वालों (जो इसे अपनी तरफ़ निस्बत दे उस) के लिये हुज्जत , बोलने वालों के लिये बुरहान (जो इसकी रू से बात करे उसके लिये दलील) और मनाज़िरा करने वालों के लिये शाहिद है। बहस करने वालों की कामयाबी का ज़रिया है इसका बार उठाने वालों के लिये बोझ बटाने वाला , अमल करने वालों के लिये बेहतरीन सवारी , हक़ीक़त शिनासों के लिये बेहतरीन निशानी और असलहे सजने वालों के लिये सिपर है। फ़िक्र करने वालों के लिये इल्म और रिवायत करने वालों के लिये हदीस और क़ज़ावत करने वालों के लिये क़तई हुक्म और फ़ैसला है।

199-आपका इरशादे गिरामी

(जिसकी असहाब को वसीयत फ़रमाया करते थे)

देखो नमाज़ की पाबन्दी और उसकी निगेहदाश्त करो , ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ें पढ़ो और उसे तक़र्रुबे इलाही का ज़रिया क़रार दो के यह साहेबाने ईमान के लिये वक़्त की पाबन्दी के साथ वाजिब की गई है। क्या तुमने अहले जहन्नम का जवाब नहीं सुना है के जब उनसे सवाल किया जाएगा के तुम्हें किस चीज़ ने यहां तक पहुंचा दिया है तो कहेंगे के हम नमाज़ी नहीं थे। यह नमाज़ गुनाहों को इस तरह झाड़ती है जिस तरह दरख़्त के पत्ते झड़ जाते हैं और इसी तरह गुनाहों से आज़ादी दिलाती है जिस तरह जानवर आज़ाद किये जाते हैं। रसूले अकरम (स 0) ने इसे उस गर्म चश्मे से तश्बीह दी है जो इन्सान के दरवाज़े पर हो और वह रोज़ाना उसमें पांच मरतबा ग़ुस्ल करे। ज़ाहिर है के इसपर किसी कसाफ़त के बाक़ी रह जाने का इमकान नहीं रह जाता है।

इसके हक़ को वाक़ेअन उन साहेबाने ईमान ने पहचाना है जिन्हें ज़ीनते मुताअे दुनिया या तिजारत और कारोबार कोई शै भी यादे ख़ुदा आौर नमाज़ व ज़कात से ग़ाफ़िल नहीं कर सकते है। रसूले अकरम (स 0) इस नमाज़ के लिये अपने को ज़हमत में डालते थे हालांके उन्हें जन्नत की बशारत दी जा चुकी थी इसलिये के परवरदिगार ने फ़रमा दिया था के अपने अहल (घर वालों) को नमाज़ का हुक्म दो और ख़ुद भी इसकी पाबन्दी करो तो आप अपने अहल को हुक्म भी देते थे और ख़ुद ज़हमत भी बरदाश्त करते थे।

इसके बाद ज़कात को नमाज़ के साथ मुसलमानों के लिये वसीलाए मुक़र्रब क़रार दिया गया है , जो इसे तय्यब ख़ातिर से अदा करेगा उसके गुनाहों के लिये यह कफ़्फ़ारा बन जाएगी और उसे जहन्नम से बचा लेगी , ख़बरदार कोई शख़्स इसे अदा करन के बाद इसके बारे में फ़िक्र न करे और न अफ़सोस करे के जो शख़्स दिली लगन के बग़ैर इसे अदा करता है और फ़िर इससे बेहतर अज्र व सवाब की उम्मीद करता है (उससे बेहतर चीज़ के लिये चश्मे बराह रहता है) वह सुन्नत से बेख़बर और अज्र व सवाब के एतबार से ख़सारे में है और उसका आमाल बरबाद है और उसकी निदामत दाएमी है।

(((- इसमें कोई शक नहीं है के सरकारे दो आलम (स 0) ने नमाज़ क़ायम करने की राह में बेपनाह ज़हमतों का सामना किया है। रात रात भर मुसल्ले पर क़याम किया है और तरह-तरह की दुश्मनों की अज़ीयतों को बरदाश्त किया है लेकिन मालिके कायनात ने इसका अज्र भी बेहिसाब इनायत किया है के नमाज़ सरकार की याद का बेहतरीन ज़रिया बन गई है और इसके ज़रिये सरकार की शख़्सीयत और रिसालत को अबदी हैसियत हासिल हो गई है। नमाज़ी अज़ान व अक़ामत ही से सरकार का कलमा पढ़ना शुरू का देता है आौर फ़िर तशहुद व सलाम तक यह सिलसिला जारी रहता है और इस तरह तमाम उम्मतों का रिश्ता इनके पैग़म्बरों से टूट चुका है लेकिन उम्मते इस्लामिया का रिश्ता सरकारे दो आलम (स 0) से नहीं टूट सकता है और यह नमाज़ बराबर आपकी याद को ज़िन्दा रखेगी और मुसलमानों को हुस्ने किरदार की दावत देती रहेगी। ज़कात को नमाज़ के साथ बयान करने का ज़ाहेरी फ़लसफ़ा यह है के नमाज़ अब्द व माबूद के दरम्यान का रिश्ता है और ज़कात बन्दों और बन्दों के दरम्यान का ताल्लुक़ है आौर इस तरह इस्लाम का निसाब मुकम्मल हो जाता है के मुसलमान अपने मालिक की इताअत भी करता है और अपने बनी नौअ के कमज़ोर अफ़राद का ख़याल भी रखता है और उनकी शिरकत के बग़ैर ज़िन्दा नहीं रहना चाहता है।)))

इसके बाद अमानतों की अदायगी का ख़याल रखो के अमानतदारी न करने वाला नाकाम होता है। अमानत को बलन्दतरीन आसमानों , फ़र्श शुदा ज़मीनों और बलन्द व बाला पहाड़ों के सामने पेश किया गया है जिनसे बज़ाहिर तवील व अरीज़ और आला व अरफ़ा कोई शै नहीं है और अगर कोई शै अपने तूल व अर्ज़ (लम्बाई , चैड़ाई या क़ूवत और ग़लबे) और ताक़त की बिना पर अपने को बचा सकती है तो यही चीज़ है। लेकिन यह सब ख़यानतत के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हो गए और इस नुक्ते को समझ लिया है जिसको इनसे ज़ईफ़तर इन्सान ने नहीं पहचाना के वह अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करने वाला और नावाक़िफ़ था। परवरदिगार पर बन्दों के दिन व रात के आमाल में से कोई शै मख़फ़ी नहीं है। वह लताफ़त की बिना पर ख़बर रखता है और इल्म के एतबार से अहाता रखता है। तुम्हारे आज़ा ही उसके गवाह हैं और तुम्हारे हाथ पांव ही उसके लशकर हैं। तुम्हारे ज़मीर उसके जासूस हैं और तुम्हारी तन्हाइयां भी उसकी निगाह के सामने हैं।

200-आपका इरशादे गिरामी

(माविया के बारे में)

ख़ुदा की क़सम माविया मुझसे ज़्यादा होशियार नहीं है लेकिन क्या करूं के वह मक्रो फ़रेब और फ़िस्क़ व फ़ुजूर भी कर लेता है और अगर यह चीज़ मुझे नापसन्द नहीं होती तो मुझसे ज़्यादा होशियार कौन होता लेकिन मेरा नज़रिया यह है के हर मक्रो फ़रेब गुनाह है आौर हर गुनाह परवरदिगार के एहकाम की नाफ़रमानी है। हर ग़द्दार के हाथ में क़यामत के दिन एक झण्डा दे दिया जाएगा जिससे उसे अरसए महशर में पहचान लिया जाएगा। ख़ुदा की क़सम मुझे न इन मक्कारियों से ग़फ़लत में डाला जा सकता है और न इन सख़्तीयो से दबाया जा सकता है।

201-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें वाज़ेह रास्तों पर चलने की नसीहत फ़रमाई गई है)

ऐ लोगो! देखो हिदायत के रास्ते पर चलने वालों की क़िल्लत की बिना पर चलने से मत घबराओ के लोगों ने एक ऐसे दस्तरख़्वान पर इज्तेमाअ कर लिया है जिसमें सेर होने की मुद्दत बहुत कम है और भूक की मुद्दत बहुत तवील है।

लोगों! याद रखो के रज़ामन्दी और नाराज़गी ही सारे इन्सानों को एक नुक्ते पर जमा कर देती है , नाक़ाए स्वालेह के पैर एक ही इन्सान ने काटे थे लेकिन अल्लाह ने अज़ाब सब पर नाज़िल कर दिया के बाक़ी लोग इसके अमल से राज़ी थे और फ़रमाया के इन लोगों ने नाक़े के पैर काट डाले और आखि़र में मज़ामत का शिकार हो गए। इनका अज़ाब यह था के ज़मीन झिटके से घड़घड़ाने लगी जिस तरह के ज़म ज़मीन में लोहे की तपती हुई फाली चलाई जाती है।

लोगों! देखो जो रौशन रास्ते पर चलता है वह सरचश्मे तक पहुंच जाता है और जो इसके खि़लाफ़ करता है वह गुमराही में पड़ जाता है।

(((- खुली हुई बात है के जिसे परवरदिगार ने नफ़्से रसूल (स 0) क़रार दिया हो और ख़ुद सरकारे दो आलम (स 0) ने बाबे मदीनतुल इल्म क़रार दिया हो उससे ज़्यादा होशियार , होशमन्द और साहेबे इल्म व हुनर कौन हो सकता है। लेकिन इसके बावजूद बाज़ नादान अफ़राद का ख़याल है के माविया ज्यादा होशियार और ज़ीरक था और इसीलिये उसकी सियासत ज़्यादा कामयाब थी , हालांके इसका राज़ होशियारी और होशमन्दी नहीं है , बल्कि इसका राज़ मक्कारी और ग़द्दारी है के माविया मक़सद के हुसूल के लिये हर वसीले को जाएज़ क़रार देता था और इसका मक़सद भी सिर्फ़ हुसूले इक़्तेदार और तख़्ते हुकूमत था और मौलाए कायनात की निगाह में न मक़सद वसीले के जवाज़ का ज़रिया था और न आपका मक़सद इक़तेदारे दुनिया का हुसूल था। आपका मक़सद दीने ख़ुदा का क़याम था और इस राह में इन्सान को हर क़दम फूंक-फूंक कर उठाना पड़ता है और हर सांस में मर्ज़ीए परवरदिगार का ख़याल रखना पड़ता है।))).

202-आप का इरशादे गिरामी

कहा जाता है के यह कलेमाते सय्येदतुल निसाइल आलमीन फ़ातेमा ज़हरा (स 0) के दफ़्न के मौक़े पर पैग़म्बरे इस्लाम (स 0) से राज़दाराना गुफ़्तगू के अन्दाज़ से कहे गये थे।

सलाम हो आप पर ऐ ख़ुदा के रसूल (स 0) ! मेरी तरफ़ से और आपकी उस दुख़्तर की तरफ़ से जो आपके जवार में नाज़िल हो रही है और बहुत जल्दी आप से मुलहक़ हो रही है। या रसूलल्लाह! मेरी क़ूवते सब्र आपकी मुन्तख़ब रोज़गार (बरगुज़ीदा) दुख़्तर के बारे में ख़त्म हुई जा रही है और मेरी हिम्मत साथ छोड़े दे रही है सिर्फ़ सहारा यह है के मैंने आपके फ़िराक़ के अज़ीम सदमे और जानकाह हादसे पर सब्र कर लिया है तो अब भी सब्र करूंगा के मैंने ही आपको क़ब्र में उतारा था और मेरे ही सीने पर सर रखकर आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया था। बहरहाल मैं अल्लाह ही के लिये हूँ और मुझे भी उसी की बारगाह में वापस जाना है। आज अमानत वापस चली गई और जो चीज़ मेरी तहवील में थी वह मुझसे छुड़ा ली गई। अब मेरा रंज व ग़म दाएमी है और मेरी रातें नज़रबेदारी हैं जब तक मुझे भी परवरदिगार उस घर तक न पहुंचा दे जहाँ आपका क़याम है। अनक़रीब आपकी दुख़्तरे नेक अख़्तर उन हालात की इत्तेलाअ देगी के किस तरह आपकी उम्मत ने उस पर ज़ुल्म ढाने के लिये इत्तेफ़ाक़ कर लिया था। आप उससे मुफ़स्सिल सवाल फ़रमाएं और जुमला हालात दरयाफ़्त करें।

अफ़सोस के यह सब उस वक़्त हुआ है जब आपका ज़माना गुज़रे देर नहीं हुई है और अभी आपका तज़किरा बाक़ी है। मेरा सलाम हो आप दोनों पर , उस शख़्स का सलाम जो रूख़सत करने वाला है और दिले तंग व मलोल नहीं है। मैं अगर इस क़ब्र से वापस चला जाऊं तो यह किसी दिले तंगी का नतीजा नहीं है और अगर यहीं ठहर जाऊं तो यह उस वादे के बेएतबारी नहीं है जो परवरदिगार ने सब्र करने वालों से किया है।

203-आपका इरशादे गिरामी

(दुनिया से परहेज़ और आख़ेरत की तरग़ीब के बारे में)

लोगों! यह दुनिया एक गुज़रगाह है क़रार की मन्ज़िल आखि़रत ही है लेहाज़ा इस गुज़रगाह से वहाँ का सामान लेकर आगे बढ़ो और उसके सामने अपने परदए राज़ को चाक मत करो जो तुम्हारे इसरार से बाख़बर है। दुनिया से अपने दिलों को बाहर निकाल लो क़ब्ल इसके के तुम्हारे बदन को यहाँ से निकाला जाए , यहाँ सिर्फ़ तुम्हारा इम्तेहान लिया जा रहा है वरना तुम्हारी खि़लक़त किसी और जगह के लिये है। कोई भी शख़्स जब मरता है तो इधर वाले यह सवाल करते हैं के क्या छोड़कर गया है और उधर के फ़रिश्ते यह सवाल करते हैं के क्या लेकर आया है ? अल्लाह तुम्हारा भला करे। कुछ वहां भेज दो जो मालिक के पास तुम्हारे क़र्ज़े के तौर पर रहेगा और सब यहीं छोड़कर मत जाओ के तुम्हारे ज़िम्मे एक बोझ बन जाए।