एक
अन्य
स्थान पर मदीने का राज्यपाल वलीद अपने शासन के केन्द्र या दारुल इमारह में अपनी गद्दी पर बैठा हुआ ऊंचे पद के सपने देख रहा है।
तभी यज़ीद की ओर से आने वाला पत्र उसे चौंका देता है। वह पत्र खोलता है। पत्र में लिखा हैः मुआविया के पुत्र यज़ीद की ओर से
मदीने के राज्यपाल अत्बा के पुत्र वलीद के नाम! जान लो कि मुआविया इस संसार में नही रहे। उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
हे वलीद! तुम्हारा सबसे पहला कर्तव्य यह है कि मदीना वासियों विशेषकर अली के पुत्र हुसैन से स्वेच्छा से यह बलपूर्वक मेरी आज्ञापालन का वचन लो और यदि कोई इससे इंकार करे तो
उसका सिर काटकर मेरे पास भेज दो।
वलीद जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पहचानता था
,बड़े दुख से बोलाः काश मैं मर गया होता ताकि यह दृष्य न देखता।
परंतु दुख की यह भावना अधिक देर न रही।
इमाम
हुसैन
अलैहिस्सलाम
वलीद के बुलाने पर दारुल इमारह जाते हैं। वलीद उन्हें मुआविया की मृत्यु की सूचना देता है तथा यज़ीद की बैअत अर्थात आज्ञापालन का विषय छेड़ देता है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम स्थिति की गहराई को समझते हुए कहते हैं कि मेरे विचार में तुम गुप्त रूप से बैअत से संतुष्ट नहीं होगे और यही चाहोगे कि मैं लोगों के सामने बैअत करूं।
वलीद ने जो यह सोचने लगा था कि अपने उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हो गया है
,बड़ी प्रसन्नता से कहाः जी हां
,ऐसा ही है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहाः कल मेरी प्रतीक्षा करना ताकि लोगों को लेकर तुम्हारे पास आऊं।
मदीने के पूर्व राज्यपाल मरवान बिन हकम ने जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से अत्यधिक शत्रुता रखता था
,
ऊंची आवाज़ में वलीद से कहाः हुसैन को यहां से जाने न दो
,यहीं पर उनका सिर काट लो नहीं तो वो फिर तुम्हारे हाथ नहीं लगेंगे।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यह सुनकर क्रोधित हो उठे। उन्होंने मरवान से कहाः तू किसे डराता है
?
कान खोलकर सुन ले! पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों में से एक व्यक्ति भी तुझे ऐसा नहीं मिलेगा जो यज़ीद जैसे भ्रष्ट और पापी की आज्ञापालन का वचन दे।
यज़ीद के विषय में मैंने जो कुछ कहा है कल प्रातः लोगों के समक्ष उसको दोहरा दूंगा।
इसके पश्चात बड़े संवेदनशील वातावरण में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बड़े साहस और वैभव के साथ दारुल इमारह से बाहर निकल आए।
रात हो गई थी। वातावरण का अंधकार लोगों को अपने घर की ओर जाने पर विवश कर रहा था। हर ओर सन्नाटे का राज था।
परंतु आध्यात्मिक प्रकाश में डूबे हुए एक पवित्र स्थान पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का प्रकाशमय चेहरा चांद की भांति दमक रहा था।
वे अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मज़ार के निकट बड़े शांत मन के साथ बैठे हुए थे। वह कह रहे थेः हे मेरे प्रिय नाना!
हे पैग़म्बरे इस्लाम! मैं आपका हुसैन हूं। आपकी प्रिय व महान सुपुत्री फ़ातेमा ज़हरा का बेटा। इस समय शासन से संबंधित लोग मुझसे चाहते हैं कि
आपकी शिक्षाओं के विपरीत मैं एक भ्रष्ट और नीच अत्याचारी के हाथ पर बैअत कर लूं। यह वही काम है जो मैं किसी भी स्थिति में नहीं करूंगा।
रात
बीत
जाती है और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने नाना की क़ब्र के निकट भोर के समय नमाज़ पढ़ते थे। जैसे-
2सूर्य उदय होता है
,
मदीना नगर पर फैलता हुआ उजाला इमाम हुसैन के मन में उनकी यादें जगा देता है।
उन्हें याद आता है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम उन्हें और उनके भाई इमाम हसन अलैहिस्सलाम को देखकर प्रसन्न हो जाते थे
और अपने भाषणों में कहते थेः हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं। उन्होंने अपनी अंतिम दृष्टि मदीना नगर पर डाली और एक ठंडी आह भरी।
28
रजब
सन
60
हिजरी क़मरी को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने बच्चों और परिवार के साथ मदीने से मक्के की ओर चल पड़े।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने भाई मोहम्मद बिन हनफ़िया को अपने वसीयत नामे में इस प्रकार संबोधित किया हैः ईश्वर के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यंत दयावान है।
यह अली के पुत्र हुसैन का वसीयत नामा है।
अब मैं मदीने से निकल रहा हूं।
मेरा निकलना न आराम और एश्वर्य के लिए है और न ही किसी भय के कारण।
मेरा उद्देश्य अपने नाना हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मानने वालों का सुधार करना है।
मैं जहां भी रहूं लोगों को भलाई का निमंत्रण दूंगा और बुराइयों से रोकूंगा।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सपरिवार मक्का पहुंचने का समाचार बड़ी तेज़ी से नगर में फैल गया। मक्का वासी बड़े-बड़े गुट बनाकर इमाम हुसैन से मिलने के लिए जाने लगे।
वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहरे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के दर्शन कर लेते थे और उनकी बातों में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की वाणी की मिठास का आभास करते थे।
लोग यह सुनकर कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद की बैअत करने से इंकार कर दिया है
,उनकी ओर और अधिक आकर्षित होते थे।
क्योंकि लोग जानते थे कि यज़ीद एक भ्रष्ट शासक है और ईश्वरीय धर्म और शिक्षाओं से उसका कोई नाता नहीं है।
उधर कूफ़े से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास निरंतर पत्र चले आ रहे थे। कूफ़े के लोग सुलैमान बिन सुरद के घर में एकत्रित हुए।
सुलैमान ने सबसे वचन लिया कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता पर दृढ़ संकल्पित रहेंगे।
वहां एकत्रित लोगों ने वचन दिया कि हम हुसैन बिन अली की
,जो इमाम हैं और इमाम के पुत्र हैं
,हर प्रकार से सहायता करेंगे।
इमाम
हुसैन
अलैहिस्सलाम
आरंभ में पत्रों का उत्तर नहीं दिया किंतु पत्रों की संख्या हज़ारों तक पहुंच गई।
इन पत्रों में लोग यज़ीद के अत्याचारों और भ्रष्टाचार की शिकायत करते और उनसे कुछ करने का अनुरोध करते थे।
इस स्थिति को देखकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस बात का आभास करते हैं कि लोगों की सहायता करना अनिवार्य है।
सबसे पहले उन्होंने अपने चचेरे भाई मुस्लिम बिन अक़ील को अपना प्रतिनिधि बनाकर कूफ़ा भेजा ताकि स्थिति का ठीक प्रकार से मूल्यांकन किया जा सके।
कूफ़े में अट्ठारह हज़ार लोग मुस्लिम बिन अक़ील के हाथ पर बैअत करते हैं।
यज़ीद बहुत जल्दी स्थिति को भांप लेता है। वह उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद को जो बड़ा निर्दयी व क्रूर और मक्कार व्यक्ति था
,कूफ़े का शासन संभालने के लिए भेजता है।
उबैदुल्लाह इब्ने ज़्याद की क्रूरता कारण बनती है कि कूफ़े पर भय का वातावरण छा जाए। नगर की स्थिति बिल्कुल बदल गई और लोग अपना वचन तोड़ने के बारे में सोचने लगे।
लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफ़ादार और साहसी प्रतिनिधि मुस्लिम इब्ने अक़ील का साथ छोड़ दिया और वो अकेले रह गए यहां तक कि उन्हें शहीद कर दिया गया।
भोर का समय एक अन्य सूर्योदय की प्रतीक्षा में था। संसार पर सन्नाटा छाया हुआ था
,मानो किसी आने वाले तूफ़ान से पहले का मौन छाया हुआ हो।
हुसैन अलैहिस्सलाम एक अनोखी शौर्यगाथा रचने के विचार में डूबे हुए थे।
वो
हज
को
उमरे
से
बदलकर मक्का से रवाना होने वाले थे क्योंकि उन्होंने ईश्वरीय आदेश को व्यवहारिक बनाने के लिए मुसलमानों को एक अत्याचारी और
अयोग्य शासक से मुक्ति दिलाने का संकल्प किया था। कूफ़े के मार्ग में वो लोगों से कहते थेः हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कथन है कि जो कोई
अत्याचारी शासक के बारे में यह जान ले कि वो ईश्वर द्वारा वर्जित किए गए कार्यों को वैध समझता है और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की परम्परा के
विरुद्ध व्यवहार करता है तथा लोगों में पाप और अत्याचार का प्रचलन करता है और इसके बाद भी वह व्यक्ति शब्दों और अपने
व्यवहार से उस अत्याचारी शासक से संघर्ष न करे तो उसे याद रखना चाहिए कि ईश्वर उसे उस स्थान पर पहुंच देगा जिसके वो योग्य है।
अर्थात दुर्भाग्यपूर्ण अंजाम उसकी प्रतीक्षा में है।
ज़ुहैर इब्ने क़ैन जो रास्ते में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवां में शामिल हुए थे
,अपने स्थान से उठे और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को विश्वास दिलाया कि उनके
श्रद्धालु सांसारिक जीवन पर अपने इमाम की सहायता को प्राथमिकता देते हैं।
उसी समय कुछ घुड़सवार दूर से आते दिखाई दिए। यह लोग कौन थे
?
सवार निकट आए।
इमाम
हुसैन
अलैहिस्सलाम
ने पूछाः कूफ़े का समाचार क्या है
?
एक सवार ने उत्तर दियाः पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नाती पर हमारा सलाम हो।
कूफ़े में धनवानों और क़बीले के सरदारों को धन दौलत देकर ख़रीद लिया गया है।
उनकी जेबें भर दी गई हैं और उनसे सांठ-गांठ कर ली गई है। हे इमाम! वे आपके विरुद्ध एकजुट हो गए हैं।
एक अन्य सवार ने कहाः आम जनता के हृदय आज भी आपके साथ हैं किंतु उनकी तलवारें कल आपके विरुद्ध उठेंगी।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने प्रश्न कियाः क्या मेरा दूत तुम्हारे पास पहुंचा था
?
एक ने उत्तर दियाः हां पहुंचे थे।
किंतु इब्ने ज़्याद के साथियों ने उन्हें पकड़ लिया था और उन्हें इस बात पर विवश किया जा रहा था कि लोगों के सामने आपको बुरा भला कहें
किंतु उन्होंने निर्भीकता के साथ आपकी और आप के महान पिता की सराहना की और इब्ने ज़्याद की आलोचना की।
इसके बाद इब्ने ज़्याद के आदेश पर उन्हें शहीद कर दिया गया।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों ने बड़ी चिंता के साथ कहाः हे पैग़म्बरे इस्लाम के नाती! आप जिस मार्ग से आए हैं उसी से लौट जाइए।
अब यह स्पष्ट हो चुका है कि कूफ़े वाले आपकी सहायता नहीं करेंगे।
परंतु ऐसा लग रहा था कि आने वाले घुड़सवारों के शब्दों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को और भी दृढ़ संकल्पित कर दिया।
उन्होंने क़ुरआन की वह आयत पढ़कर अपने दूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिसका अर्थ हैः ईमान लाने वालों के बीच ऐसे लोग हैं जो ईश्वर को दिए अपने वचन पर सच्चाई के साथ कटिबद्ध रहते हैं।
उनमें से कुछ अपने वचन को पूरा कर चुके हैं और कुछ अन्य
,प्रतीक्षा में हैं और वो बिल्कुल नहीं बदले हैं।
इसके पश्चात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आदेश दिया कि घोड़ों को पानी पिलाया जाए और एक महान शौर्यगाथा रखने की तैयारियां पूरी कर ली जाएं।
रेगिस्तान में सरपट दौड़ रहे थे और उनकी टापों से उठने वाली धूल से आकाश पर बादल से बन गये थे।
करबला
की धरती ने इससे पहले इतने लोगों को एकत्रित होते हुए नहीं देखा था। दिन के हर कुछ घंटों बाद ताज़ा दम सेना इस धरती पर भेजी जा रही थी।
उमर इब्ने साद अबी वक़्क़ास चार हज़ार सैनिकों के साथ करबला में प्रविष्ट होता है और इमाम हुसैन से कहता है कि वे यज़ीद के आज्ञा पालन को स्वीकार करें।
कुछ ही घंटों बाद शिम्र ज़िल जौशन मुरादी के नेतृत्व में भारी संख्या में ताज़ा दम सैनिक करबला में प्रवेश करते हैं। शिम्र सिर से पैर तक लोहे और फ़ैलाद में डूबा हुआ घोड़े से नीचे उतरता है।
निर्दयता और हृदय की कठोरता उसकी आंखों में साफ़ तौर पर दिखाई दे रही थी। वह बड़े ही घमंड से कूफ़े के राज्यपाल ओबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद का पत्र उमरे साद के हवाले करता है।
पत्र में लिखा था कि हे साद के पुत्र मैंने तुम्हें इस लिए नहीं भेजा था कि हुसैन के साथ नर्म व्यवहार करो
,
यदि हुसैन नहीं मानते हैं तो उन पर और उनके साथियों पर आक्रमण कर दो और उनको मार डालो तथा उनके शवों को घोड़ों की टापों से कुचल दो।
तुम यह काम कर दोगे तो मैं तुम्हें बेहतरीन पारितोषिक दूंगा किन्तु यदि तुम यह कार्य नहीं कर सकते तो सेना का नेतृत्व शिम्र के हवाले कर दो।
उमरे साद ने शिम्र की ओर मुंह करके कहा कि धिक्कार हो तुझ पर लानत करे तूने अपनी चाल चल ही दी।
शिम्र ने ऊंची आवाज़ में चिल्लाकर कहा कि जब तक यज़ीद का आदेश पूरा न कर लूंगा चैन से नहीं बैठूंगा।
अंततः मोहर्रम की छठी तारीख़ तक
20हज़ार से अधिक सशस्त्र सैनिक पैग़म्बरे इस्लाम के जिगर के टुकड़े और स्वर्ग के युवाओं के सरदार हज़रत हमाम हुसैन से युद्ध करने करबला आ गये।
करबला दो मोर्चों में विभाजित है। एक ओर जहां तक नज़र जाती तंबू
,घोड़े
,भाले व तलवारें और सैनिक ही सैनिक नज़र आते हैं और दूसरी ओर कुछ छोटे छोटे तंबू थे
जिनके बीच एक बड़ा तंबू है जिसका ऊपरी भाग हरे रंग का है।
एक ओर सांसरिक मायामोह में ग्रस्त घमंड और अहंकार में चूर सैनिक शराब पी रहे हैं तो दूसरी ओर थोड़े से लोग जो प्रेम
,
ईश्वर की उपासना और रसूले इस्लाम (स) के नाती हज़रत इमाम हुसैन की रक्षा के उत्साह में भरे हुए हैं और समस्त सांसरिक दिखावट उनके निकट मूल्यहीन है।
वे ईश्वर की यादों में लीन थे और क़ुरआन पढ़ रहे हैं।
सैन्य कमान्डरों को थोड़े थोड़े अंतराल से कूफ़े के राज्यपाल के संदेश मिल रहे हैं कि हुसैन इब्ने अली से कहो कि अपने साथियों के साथ
यज़ीद की आज्ञा पालन की प्रतिज्ञा कर लें नहीं तो उनकी गर्दन उड़ा दो। दूसरे पत्र में संदेश आया कि हुसैन के साथ कड़ाई करो
,उन पर और उनके साथियों पर पानी बंद कर दो।
इमाम हुसैन के प्रकाशमयी चेहरे पर मनुष्यों के मार्गदर्शन और वास्तविकता का प्रेम साफ़ नज़र आ रहा है किन्तु कूफ़े वासियों की पथभ्रष्टता और बर्बादी से उनका दिल दुखा हुआ है।
वे विरोधियों के मोर्चे के सैनिकों के लिए यथावत भाषण दे रहे हैं कि लोग संसार के दास होते हैं और धर्म केवल उनकी ज़बान पर होता है
और वह भी तब तक जब तक जीवन उनकी इच्छानुसार चलता रहता है किन्तु जैसे ही लोग कठिनाईयों में ग्रस्त होंगे
,धार्मिक लोगों की संख्या बहुत कम हो जाएगी।
हज़रत
इमाम
हुसैन
अलैहिस्सलाम का कारवां मरुस्थल पर छाये घोर सन्नाटे में आगे बढ़ रहा था। ऊंटों की गर्दनों में बंधी घंटियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
अचानक कारवां के एक व्यक्ति के मुंह से निकली अल्लाहो अकबर की आवाज़ से मरूस्थल में छाया सन्नाटा टूट गया।
उस व्यक्ति ने कहा हे इमाम मैं खजूरों का बाग़ देख रहा हूं जो इससे पहले यहां नहीं था।
उसके बाद कई लोग साथ मिलकर देखते और कहते हैं" यह खजूर के बाग़ की कालिमा नहीं है।
ये सवार हैं जिनके हाथों में भाले हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवां के आगे बढ़ने के साथ सवार लोगों का कारवां भी धीरे- धीरे निकट हो रहा था।
उस कारवां का सेनापति अपने सैनिकों के प्यासे होने की सूचना देते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहता है
:आपके पास अवश्य पानी होगा। हमारे सैनिक और घोड़े बहुत प्यासे हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जानते थे कि ये शत्रु के सैनिक हैं परंतु अपनी कृपालु प्रवृत्ति के कारण समस्त प्यासे लोगों यहां तक कि उनके घोड़ों को पानी पिलाने का आदेश देते हैं।
उसके पश्चात आप सेनापति से पूछते हैं तुम कौन हो
?सेनापति उत्तर देता है मैं हुर बिन यज़ीद रियाही हूं। उसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पूछते हैं हमारे साथ हो या हमारे विरुद्ध
?
सेनापति कहता है हम आपका रास्ता बंद करने के लिए आये हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सैनिकों के चेहरों को देखते हैं।
जब आप समझ जाते हैं कि ये कूफा के सैनिक हैं तो उन्हें संबोधित करते हुए कहते हैं क्या तुम लोग वही नहीं थे जिन्होंने मुझे हज़ारों पत्र लिखे और अपने यहां आने का निमंत्रण दिया
?
उसी समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवां में से एक व्यक्ति अज़ान देता है और सबको नमाज़ के लिए बुलाता है। दोनों कारवां के लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पीछे नमाज़ पढ़ते हैं।
उसके पश्चात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कारवां को आगे बढ़ने का आदेश देते हैं परंतु हुर अपने सैनिकों के साथ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का रास्ता बंद कर देता है।
उस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं हे हुर तू हमसे क्या चाहता है
?हुर कहता है हमें आपका रास्ता रोकना है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम फिर भाषण देते और अपनी बात कहते हैं" हे लोगो! तुम लोगों ने मुझे अपनी सहायता के लिए बुलाया और जब मैंने तुम्हारी मांग स्वीकार कर ली तो
मेरे विरुद्ध अपनी तलवारें उठा ली। यह सोचना भी नहीं कि हम अपमान को स्वीकार करेंगे। ईश्वर
,उसके पैग़म्बर और मोमिनों अर्थात ईश्वर पर आस्था
रखने वालों ने मुझे इस कार्य से रोक रखा है और वे इस बात को वैध व उचित नहीं समझते कि मैं इन भ्रष्ठ व्यक्तियों के अनुसरण को सम्मानीय मृत्यु पर प्राथमिकता दूं।
हुर और उसकी सेना कदम- कदम पर इमाम का पीछा करती रही जबकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के भाषण से उसके हृदय में अवर्णिय तूफान उठ रहा था।
रात हो गयी थी। पूरे मरुस्थल में रहस्यमई मौन छाया हुआ था। शत्रु की सेना की कौतूहल भरी आवाज़ आ रही थी।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों ने अपने तंबुओं को एक दूसरे के तंबुओं से निकट किया और खाई खोदकर शत्रु के रास्ते को बंद कर दिया।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम नमाज़ के बाद अपने साथियों के मध्य खड़े हुए। उन सब पर गहरी दृष्टि डाली। उस समय आपकी आवाज़ ने रात में छाये मौन को तोड़ दिया।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा मैंने तुमसे बेहतर साथी और अपने परिवार से बेहतर व उत्तम परिवार नहीं देखा।
फिर आपने कहा" तुम लोगों ने मेरी आज्ञापालन का जो वचन दिया है मैं उसकी अनदेखी करता हूं और तुम लोगों की गर्दन से उसकी ज़िम्मेदारी हटा लेता हूं।
अब मैं तुम सबको इस बात की अनुमति देता हूं कि तुम जिस रास्ते से आये हैं उसी रास्ते से वापस चले जाओ। रात के अंधेरे से
,जो हर जगह फैला हुआ है
,लाभ उठाओ और यहां से दूर चले जाओ। जो सैनिक एकत्रित हुए हैं वे केवल मेरे ख़ून के प्यासे हैं।
वे बहादुर
,जिनकी संख्या कम और महत्व एवं मूल्य बहुत अधिक था
,पहाड़ की भांति डट गये।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के भाई हज़रत अब्बास सबसे पहले उठे और बोले ईश्वर ऐसा दिन न लाये कि हम आपको अकेले छोड़ दें और अपने नगर लौट जायें।
उनके बाद मुस्लिम बिन औसजा खड़े हुए और बोले हे पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हम आपको छोड़ दें जबकि शत्रु चारों ओर से आपको घेरे हुए हैं ऐसी स्थिति में हम ईश्वर को क्या उत्तर देंगे
?
हम तब तक आपकी रक्षा करेंगे और शत्रुओं से लड़ेंगे जब तक आपके साथ शहीद न हो जायें" मुस्लिम बिन औसजा के बाद साद बिन अब्दुल्लाह हनफी खड़े हुए और बोले हे
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हम आपको अकेले नहीं छोड़ेंगे ताकि ईश्वर यह जान ले कि उसके पैग़म्बर के बाद हमने आपकी सहायता करके उनके धर्म की सहायता की है"
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एक अन्य साथी ज़ुहैर बिन क़ैन ने कहा " ईश्वर की सौगन्ध हम चाहते हैं कि हमारी हत्या कर दी जाये उसके पश्चात हमें पुनः जीवित किया जाये फिर हमारी हत्या कर दी जाये यहां तक कि हज़ार बार हमारी हत्या की जाये ताकि हम आप को शहीद होने से बचा सकें। इन युवाओं और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से विपत्ति दूर रहे।
हज़रत
इमाम
हसन
अलैहिस्सलाम के तेरह वर्ष के बेटे हज़रत क़ासिम इमाम हुसैन के पास खड़े होकर बोले हे चाचा क्या मैं भी इस मार्ग में शहीद हूंगा
?
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सिर झुका कर बोले" हे बेटे मैं जानना चाहता हूं कि मृत्यु तुम्हारे निकट कैसी है
?
हज़रत क़ासिम ने उत्तर दिया हे चाचा अत्याचार को मिटाने और ईश्वर की धर्म की रक्षा के मार्ग में आने वाली मृत्यु मेरे निकट मधु से भी अधिक मीठी है।
उस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ठंडी सांस ली और कहा हां बेटे तुम भी शहीद होगे।
हज़रत क़ासिम उठे और प्रसन्न व दृढ़ संकल्पित चेहरे के साथ हथियार तैयार करने में जुट गये और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने रात के उस अंधेरे में अपने वफादार साथियों के लिए दुआ की।
उस समय आपने शत्रु के तंबुओं की ओर देखकर पवित्र क़ुरआन की यह आयत पढ़ी "काफिर व नास्तिक यह न समझें कि यदि उन्हें अवसर दिया गया है तो यह उनके हित में है हम उन्हें ढील व अवसर देते हैं ताकि वे अपने पापों को अधिक कर लें और उनके लिए अपमानजनक दंड है।
ऐसा नहीं था कि जिस तरह तुम लोग थे ईश्वर ने उसी तरह मोमिनों को उनके हाल पर छोड़ दिया है बल्कि ऐसा इसलिए था कि ईश्वर पवित्र को अपवित्र से अलग करे।
अगला
दिन
आ गया। इब्ने साद के सैनिकों को जल्दी मची है कि समय के सर्वोत्तम एवं पवित्र क़ुरआन के सबसे बड़े ज्ञानी व्यक्ति को शहीद करके अपने काम का पारितोषिक लें।
शत्रु
का एक सैनिक हुर बिन यज़ीद रियाही अविश्वसनीय दृष्टि से इधर- उधर देख रहा है। हुर बहुत व्याकुल व परेशान है उसे एक क्षण के लिए भी चैन नहीं है।
वह गहन सोच में है। उसे आशा थी कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ मामला बात चीत से सुलझ जायेगा परंतु स्थिति अब युद्ध तक आ पहुंची है।
संदेह समाप्त हो गया है वह ख़तरनाक दो राहे पर खड़ा है।
एक ओर सत्य व न्याय के ध्वजवाहक और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हैं
जो लोगों को मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए बुला रहे हैं जबकि दूसरी ओर धोखा देने वाला आकर्षक सांसारिक जीवन उसके समक्ष है
जिसे प्राप्त करने के लिए उसे पवित्रतम लोगों के विरुद्ध तलवार चलानी पड़ेगी तथा वास्तविकता की उपेक्षा करनी होगी।
उसका हृदय धड़क रहा है वह चिंतित है वह जल्दी से कूफा के सेनापति उमर बिन साद के पास जाता और कहता है हे उमर क्या तू वास्तव में हुसैन से युद्ध करेगा
?उमर बिन साद कहता है
हां ईश्वर की सौगन्ध ऐसा युद्ध करूंगा जिसका कम से कम परिमाण यह होगा कि उसमें हाथ और सिर काटे जायेंगे। यह सुनकर हुर कांप उठा उसके चेहरे का रंग परिवर्तित हो गया।
उसके पास जो व्यक्ति था वह कहता है हे हुर तुम्हें क्या हो रहा है
?मैंने अब तक तुमको इतना परेशान नहीं देखा था। मैं तुमको सदैव दूसरों से अधिक बहादुर समझता था।
हुर ने उत्तर दिया स्वर्ग और नरक में से हमें एक को चुनना होगा। यहां पर उसके जीवन की सबसे संवेदनशील घड़ी आ पहुंची थी।
हुर अचानक उठता है और चिल्ला कर बोलता है ईश्वर की सौगन्ध स्वर्ग के अतिरिक्त किसी और चीज़ का चयन नहीं करूंगा। चाहे मुझे टुकड़े-२ कर दें और आग में जला दें।
कुछ क्षणों के बाद कूफे का निडर
,साहसी और बहादुर व्यक्ति सिर झुकाये धीरे-धीरे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तंबू की ओर बढ़ता है
जबकि वह अपनी ढाल को उल्टा किये हुए था और अपने सजल नेत्रों से यह वाक्य कह रहा था" मैं आपकी ओर आ रहा हूं आशा है कि मेरा प्रायश्चित स्वीकार कर लेंगे।
हे ईश्वर मैंने तेरे चाहने वालों और तेरे पैग़म्बर के परिजनों को भयभीत किया
,उनका दिल दुखाया है मेरे इस महापाप को क्षमा कर दे" यज़ीद की राक्षसी सेना से मुंह मोड़ चुका सैनिक सिर झुकाये इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंच कर कहता है" हे पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र! मेरा प्राण आप पर न्योछावर हो जाये।
मैं हुर हूं वही जिसने आपका रास्ता रोका। ईश्वर की सौगन्ध मुझे विश्वास नहीं था कि शत्रु आपके साथ इस प्रकार का व्यवहार करेंगे।
अब मैं अपने किये पर पछता रहा हूं शर्मिन्दा हूं मैं आप के मार्ग में अपना प्राण न्योछावर करने के लिए तैयार हूं क्या ईश्वर मेरा प्रायश्चित स्वीकार करेगा
?
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम प्रेम व कृपा के साथ उत्तर देते हैं हां ईश्वर प्रायश्चित स्वीकार करने वाला है।
ईश्वर अपनी दया-दृष्टि से तुम्हें क्षमा करेगा और वह तुम्हें अपनी दया प्रदान करेगा।
उस समय हुर कहता है" आप मुझे रणक्षेत्र में जाने की अनुमति दें ताकि रणक्षेत्र में जाने वाला मैं पहला व्यक्ति हो जाऊं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसे स्वतंत्र व्यक्ति कहा और रणक्षेत्र में जाने की अनुमति दे दी।
हुर अवर्णीय साहस व उत्साह के साथ यज़ीद की राक्षसी सेना से युद्ध करता है और अपने जीवन की अंतिम सांस तक इमाम हुसैन तथा उनके साथियों की ओर से लड़ते है।
अंततः हुर शहीद होकर परलोक सिधार जाते हैं।
कर्बला की घटना श्रद्धा और बलिदान की प्रदर्शनी है। बलिदान की चरम सीमा है। कर्बला का मरुस्थल बहत्तर जागरुक व दूरदर्शी हस्तियों के साथ महाशौर्यगाथा की रचना के लिए तैयार है।
वे ऐसे वीर हैं जिनकी ईश्वर पर अटूट आस्था और न्यायप्रेम की हर ओर चर्चा है।
उबैदुल्लाह
इब्ने ज़ियाद का कमांडर उमर इब्ने साद
,इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमे की ओर पहला तीर फेंकता है और अपने सिपाहियों से कहता है कि वे कूफ़े के शासक उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद के सामने इस बात की गवाही दें कि उसी ने युद्ध आरंभ किया था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कम संख्या में साथी जो हर चिंता से स्वतंत्र थे
,
एक
के
बाद
एक रणक्षेत्र की ओर जाते हैं और वीरता व बलिदान का अद्वितीय नमूना पेश करते हैं। इन्हीं वीरों में आबिस बिन शबीब शाकिरी भी हैं।
वह इमाम हुसनै अलैहिस्सलाम के निकट आते हैं और कहते हैः ईश्वर की सौगंध आज पूरी सृष्टि में मेरे निकट आपसे अधिक कोई प्रिय नहीं है।
हे सदाचारियों के सरदार के पुत्र! गवाह रहिये कि मैंने आप और आपके नाना के धर्म के लिए पूरी निष्ठा के साथ अपनी जान हथेली पर रखी है।
इमाम हुसैन एक दयालु पिता की भांति आबिस बिन शबीब शाकेरी से व्यवहार करते हैं। आबिस रणक्षेत्र में जाते हैं और शत्रु को ललकारते हैं।
उमर इब्ने साद के सिपाहियों में से एक आबिस इबने शबीब शाकेरी को पहचानता था
,वह चिल्ला कर कहता है जिसका अपने जीवन से जी भर गया हो वह उनसे लड़ने जाए।
मैंने युद्धों में आबिस की वीरता देखी है। वह वीरों का वीर है। यह सुनकर उमर इबने साद चिंतित हो जाता है और आदेश देता है कि बड़ी संख्या में सिपाही आबिस को घेर कर उन पर पत्थर फेंके।
कर्बला की घटना श्रद्धा और बलिदान की प्रदर्शनी है। बलिदान की चरम सीमा है। कर्बला का मरुस्थल बहत्तर जागरुक व दूरदर्शी हस्तियों के साथ महाशौर्यगाथा की रचना के लिए तैयार है।
वे ऐसे वीर हैं जिनकी ईश्वर पर अटूट आस्था और न्यायप्रेम की हर ओर चर्चा है।
यह लोग दृढ़ता व ईश्वर पर आस्था की अमर शौर्यगाथा की रचना कर रहे हैं।
आबिस की वीरता सबको आश्चर्यचकित कर देती है। कुछ समय पश्चात आबिस भालों और पत्थरों से घायल होकर शहीद हो जाते हैं।
कुछ लोग आबिस के चारों ओर इकट्ठा हो जाते हैं और स्वंय को उनका हत्यारा दर्शाना चाहते हैं। इबने साद कहता हैः आपस में झगड़ो नहीं!
तुममें से कोई भी अकेले आबिस को नहीं मार सकता था। पूरी सेना उन्हें मारने में भागीदार है।
इस
बीच एक वीर तेज़ी से इमाम हुसैन के निकट आता है और उन्हें सलाम करते हुए कहता हैः मेरे मां बाप आप पर न्योछावर हो जाएं। मैं हाशिम बिन अतबा हूं।
यदि मेरे चचेरे भाई उमर इबने साद ने आप और आपके नाना के आज्ञापालन का वचन तोड़ा है
,किंतु मैं जान हथेली पर रख कर आपकी सहायता को आया हूं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उस पर कृपा दृष्टि डालते हैं। उसकी सराहना करते हुए उसके लिए दुआ करते हैं।
हाशिम रणक्षेत्र में जाते हैं और ललकारते हुए कहते हैं कि मैं अपने चचेरे भाई उमर इब्ने साद के सिवा किसी से नहीं लड़ूंगा।
हे उमर! तुम क्यों धर्म के मार्गदर्शक की हत्या पर उतारू हो। वह मार्गदर्शक जो पैग़म्बर का पुत्र है।
विचित्र बात यह है कि फ़ुरात का पानी पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार को छोड़ सबके लिए है।
उमर इबने साद इस बहाने से कि वह अपने चचेरे भाई से नहीं लड़ सकता
,रणक्षेत्र में जाने से बचता है और अपनी सेना के शमआन नामक एक बड़े लड़ाकू को भेजता है।
जब हाशिम बिन अतबा उसका अंत कर देते हैं तो एक हज़ार घुड़सवार हाशिम को घेर लेते हैं और उन्हें शहीद कर देते हैं।
वहब
बिन
अब्दुल्लाह
अपनी माता व पत्नी के साथ कर्बला पहुंचते हैं।
उनकी पत्नी रोते हुए उन्हें रणक्षेत्र में जाने से रोकती हैं किन्तु उनकी मां उन्हें प्रेरित करते हुए कहती हैः मेरे बेटे! किस बात की प्रतीक्षा में हो!
उठो और पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की रक्षा करो! वहब श्रद्धा और भौतिकता के बीच जारी द्वंद्व के बीच घोड़े पर सवार होकर रणक्षेत्र की ओर बढ़ते हैं।
उनकी मां अपने जिगर के टुकड़े के शौर्य को देखती हैं और जब वहब के दोनों हाथ कट जाते हैं तो दौड़ कर आगे बढ़ती हैं और कहती हैः मेने बेटे! उठो!
जब तक हो सके पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की रक्षा करो! इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम निकट होकर कहते हैः हे मा! अपने ख़ैमे की ओर पलट जाइये। ईश्वर आपको पारितोषिक दे।
इस प्रकार उदारता के पवित्र फूलों की सुगंध कर्बला के मरुस्थल में फैल जाती है और इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अमर शौर्यगाथा लिख जाती है।
कर्बला का मैदान है। जो साथी रणक्षेत्र की ओर बढ़ते और शहीद हो जाते वह इमाम हुसैन के मन पर अपनी जुदाई के गहरे दुख की छाप छोड़ जाते हैं।
अब
बनी
हाशिम
से पहला व्यक्ति रणक्षेत्र में जाने की अनुमति मांगता है। एक सुंदर युवा जिसकी दृष्टि इमाम हुसैन के मन में पैग़म्बरे इस्लाम की याद ताज़ा कर देती थी।
यह युवा अली अकबर हैं जो इमाम हुसैन के पुत्र हैं। इमाम हुसैन उनके सुंदर व खिले चेहरे को देखते हैं और अपना हाथ आकाश की ओर उठाते हुए कहते हैः हे ईश्वर!
मैं तेरे प्रेम में वो सब कुछ न्योछावर करने आया हूं जो मेरे पास है। प्रभुवर! साक्षी रहना मैं उस युवा को उन लोगों की ओर भेज रहा हूं जो तेरे पैग़म्बर से सबसे अधिक मिलता है।
मुझे जब भी पैग़म्बर की याद आती तो उसे देख लेता था।
वह युवा जाने के लिए व्याकुल है किन्तु पिता किस दिल से उसे जाने की अनुमति दे। हज़रत अली अकबर तेज़ी से रणक्षेत्र में जाते हैं और कहते हैः मैं अली
,अली के पुत्र हुसैन का बेटा हूं।
ईश्वर की सौगंध यह तुच्छ व्यक्ति यज़ीद हम पर शासन के लिए योग्य नहीं है। किन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कान बहरे हो हैं जो वास्तविकता को नहीं समझ पा रहे हैं।
कोई स्वंय से यह नहीं पूछता कि किससे युद्ध कर रहे हैं
?क्या यह युवा
,पैग़म्बरे इस्लाम के हृदय की धड़कन नहीं है।
हज़रत अली अकबर अत्यधिक प्यास से बेहाल होने के बावजूद पूरी वीरता से लड़ रहे थे।
वे शत्रु के बहुत से सिपाहियों को मौत के घाट उतार रहे थे।
अंततः वह भी एक कायर द्वारा पीछे से घोपे गए ख़जर से भूमि पर गिर पड़ते हैं और शहीद हो जाते हैं।
अभी
इमाम
हुसैन के हृदय से अली अकबर का दुख कम भी न हुआ था कि वे अपने सामने प्रिय भाई हज़रत अब्बास को पाते हैं।
इमाम हुसैन हज़रत अब्बास को संबोधित करते हुए कहते हैः अब्बास! यदि तुम्हें खो दिया तो मेरी सेना बिखर जाएगी।
हज़रत अब्बास की वीरता और इमाम हुसैन से उनकी श्रद्धा उन्हें हर क्षण ईश्वर के मार्ग में बलिदान के लिए प्रोत्साहित कर रही थी।
वे सोच रहे थे कि इतनी लंबी अवधि तक किस प्रकार धैर्य किए रहे। वे कैसे किसी को अपने भाई व सरदार इमाम हुसैन का अपमान करने देते।
अब्बास एक बुद्धिमान और शूरवीर का नाम है। यह जागरुक व परिज्ञान से समृद्ध पुरुष
,इमाम हुसैन की छोटी सी सेना का कमांडर है और अब तक अपनी अद्वितीय वीरता से सत्य के रक्त में डूबे हुए ध्वज को ऊपर उठाए हुए हैं।
जिस समय इमाम हुसैन हज़रत अब्बास को रणक्षेत्र में जाने की अनुमति देते हैं वह इमाम हुसैन के अनुरोध पर उस नहर की ओर बढते हैं
जो शत्रु के नियंत्रण में है ताकि कारवां के प्यासे बच्चे और महिलाओं के लिए पानी ले आयें।
वह अपनी अदम्य वीरता से शत्रु की घेराबंदी को तोड़ते हुए नहर के किनारे पहुंचते हैं।
उनके होंठ कई दिन की प्यास और प्रचंड गर्मी से सूखे हुए हैं।
चुल्लू में स्वच्छ पानी को उठाकर मुंह के निकट लाते हैं और तुरंत ही उसे फेंक देते हैं। उनका पुरुषार्थ इस बात की अनुमति नहीं देता कि वह इमाम हुसैन के प्यासे बच्चों से पहले अपनी प्यास बुझा लें। खैमे की ओर बढते हैं किन्तु शत्रु की निर्दयी सेना उनका मार्ग रोक लेती है
और उन्हें जान से मारने की धमकी देती है। हज़रत अब्बास शत्रु के जवाब में कहते हैं कि मैं मौत से भयभीत नहीं हूं मैं अली का पुत्र हूं।
जान लो कि जिसे ईश्वर पर विश्वास होता है वह मौत से नहीं डरता। हज़रत अब्बास और शत्रु के सैनिको के बीच भीषण युद्ध होता है इस दौरान शत्रु अपनी घेराबंदी को और कड़ा कर देता है।
एक शत्रु घात लगाकर हज़रत अब्बास का दाहिना हाथ शरीर से अलग कर देता है।
उस समय हज़रत अब्बास कहते हैं कि यदि तुमने मेरा दाहिना हाथ काट डाला है फिर भी मैं अपने धर्म का पालन नहीं छोड़ूगां। अचानक शत्रु हज़रत अब्बास का बांया हाथ भी काट देता है
उसके बाद फिर हज़रत अब्बास के शरीर पर बड़ी तेज़ी से तलवार के वार होने लगते हैं।
अंततः वीरता और पुरुषार्थ के प्रतीक हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम परलोक सिधार जाते हैं।
इसी
तरह से तमाम खानदाने अहलैबैत और आपके चाहने वाले एक के बाद एक शहीद हो जाते है यहा तक की नन्हा अली असगर भी जामे शहादत को नोश करता है।
और जब शहादते इमाम हुसैन का समय आया तो इमाम खेमे के दर पर आकर सब से विदा होते है चार साला नन्ही सकीना बाप के पाँव की ज़ंजीर बन जाती है न जाने किस तरह इमाम हुसैन ने सकीना को समझाया और मैदान मे आऐ।
मैदान मे आकर इमाम हुसैन अ.स. ने पहले जालिमो को समझाने की कोशिश की लेकिन जिस के पेट मे हराम माल हो वो कभी अच्छी बात को स्वीकार नही करता।
अंतः इमाम हुसैन ने जंग शूरू की और बहुत से ज़ालिमो को नर्क के दरवाज़े पर पहुचा दिया।
तभी एक सदाऐ गैब आई और इमाम हुसैन ने अपनी तलवार को नियाम मे रख लिया ये देख कर भागी हुई फोजे सिमट आई और इमाम हुसैन पर हमला करने लगी हद ये थी कि कोई तीर मारता था कोई तलवार मारता था जिसके पास कुछ न था वो करबला की गर्म रेत उठा कर इमाम के ज़ख्मो पर छिड़कता था।
इमाम ज़ख्मो से निढ़ाल होकर जमीन पर तशरीफ लाऐ और शिम्रे लईन ने सजदा ऐ खालिक मे आपको कुंद खंजर से शहीद कर दिया।
लेकिन आज भी दुनिया इमाम हुसैन की शौर्य गाथा सुना रही है और यज़ीद पर लानत भेज रही है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।