उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

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उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ. लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: हुज्जतुल इस्लाम अली अकबर मेहदी पुर
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.
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उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

सर चश्म ए कौसर उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा (अ )

लेखक

हुज्जतुल इस्लाम अली अकबर मेहदी पुर

हज़रत ख़दीजा (अ) का सिलसिल ए नसब

हज़रत ख़दीजा (अ) बिन्ते ख़ुवैलद , बिन असद , बिन अब्दुल उज़्ज़ा बिन कलाब , बिन मर्रा , बिन कअब , बिन लोएज , बिन ग़ालिब , बिन फ़हर।[ 1] आपके वालिदे मोहतरम (ख़ुवैलद) ने जबरदस्त बहादुरी के साथ ख़ान ए काबा की हुरमत का दिफ़ाअ किया जिसे आज भी याद किया जाता है। जब यमन के मग़रूर बादशाह (तुब्बअ) ने हजरे असवद को यमन में एक इबादतगाह में मुन्तक़िल करने का इरादा किया तो हज़रत ख़ुवैलद ने शमशीर को हाथ में ले लिया और कुरैश के बक़िया अफ़राद की मदद से दुश्मन को ज़िल्लत व ख़्वारी से ख़ान ए काबा की चार दिवारी से दूर भगा दिया।[ 2]

ख़ुवैलद बिन असद बहुत बड़ी शख़्सियत के हामिल थे। आप आमुल फ़िल के दूसरे साल क़ुरैश की जानिब से हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के साथ सैफ़ बिन यज़न के तख़्ते हुकूमत पर बैठने के मौक़े पर मुबारक बाद पेश करने के लिये मक्क ए मुअज़्ज़मा से यमन की राजधानी सनआ तशरीफ़ ले गये और ग़मदान के महल में मुलाक़ात का शरफ़ हासिल किया।[ 3] उसके अलावा जंगे फ़ुज्जार में भी शरीक हो कर अपने रिश्तेदारों के लिये जंगी सामान हासिल करने का सम्मान प्राप्त किया। जिस में रसूले इस्लाम (स) भी अपनी जवानी के आग़ाज़ में शरीक थे।[ 4] हज़रत खुवैलद के वालिद मोहतरम हज़रत असद एक ज़माने में पेश कदम और मर्द मैदान रहे। जिसे अब्दुल्लाह बिन जुदआन के घर मज़लूमीन के दिफ़ाअ और हक़ दिलवाने की ख़ातिर मोअतक़िद किया गया। इस पैमान में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने नुमाया किरदार अदा किया। आप उसके बाद हमेशा उसे याद किया करते थे।[ 5] हज़रत असद उस दौर में भी मर्दे मैदान रहे जिसे तारीख़ हलफ़ुल फ़ुसूल के नाम से याद करती है।[ 6]

आपकी वालिदा मोहतरमा फ़ातेमा बिन्ते ज़ायदा बिन असम , बिन रवाहा , बिन हज़र , बिन अब्द , बिन मईस , बिन आमिर , बिन लूई , बिन ग़ालिब , बिन फ़हर।[ 7] एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून और हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं।

इस बेना पर हज़रत ख़दीजा क़बील ए क़ुरैश से हैं वालिद की जानिब से तीसरी और वालिदा की तरफ़ से आठवी पुश्त से आपका सिलसिला पैग़म्बरे अकरम (स) के ख़ानदान से मिलता है।

हज़रत ख़दीजा (अ) के अलक़ाब

हज़रत खदीजा (अ) के बहुत से लक़ब हैं जो आपकी अज़मत और क़दासत को बयान करते हैं लेकिन यहाँ उन में से सिर्फ़ कुछ का ज़िक्र कर रहे हैं:

सिद्दिक़ा:

पैग़म्बरे अकरम (स) के ज़ियारत नामे में अज़वाज पर दुरुद व सलाम के वक़्त हज़रत ख़दीजा (स) को अल सिद्दिक़ा के लक़ब से याद किया गया है।[ 8] यह ऐसा लफ़्ज़ है जो क़ुरआन मजीद में सिर्फ़ एक बार हज़रत मरियम के लिये इस्तेमाल हुआ है।[ 9] सादिक़े आले मुहम्मद इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने लफ़्ज़े सिद्दिक़ा के मअना मासूम के बताये हैं।[ 10]

मुबारका

ख़ुदा वंदे आलम ने हज़रत ईसा (अ) की कि आख़िरी पैग़म्बर (स) की मुबारक नस्ल एक मुबारका ख़ातून से होगी।[ 11] अब्दुल्लाह बिन सुलैमान ने भी इस मतलब को इंजील से नक़्ल किया है।[ 12]

उम्मुल मोमिनीन

अज़वाजे पैग़म्बरे इस्लाम (स) क़ुरआने मजीद में उम्मुल मोमिनीन के लक़ब से याद की गई हैं।[ 13] जिनकी सरदार हज़रत ख़दीजा हैं। पैग़म्बरे अकरम (स) के क़ौल के मुताबिक़ उनकी बीवियों में सबसे अफ़जल व बेहतर आप ही को शुमार किया गया है।[ 14]

ताहिरा

हज़रत ख़दीजा (स) का सबसे मशहूर लक़ब जाहिलियत के दौर में ताहिरा था।[ 15] चूँकि जाहिलियत के ज़माने की सबसे अफ़ीफ़ और पाक दामन ख़ातून आप ही थीं।[ 16]

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

ख़वातीन की शहज़ादी (मलिका)

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली (अ) ने एक क़सीदे में आपको सैयदतुन निसवा के नाम से ताबीर किया है जिसे सोगनाम ए हज़रत ख़दीजा (स) का उनवान दिया गया है।[ 17] हज़रत इमाम सादिक़ (अ) ने भी आपको सैयदतुल क़ुरैश के नाम से याद किया है।[ 18]

असमा बिन्ते उमैस भी आपको सैयदतुन निसाइल आलमीन कह कर पुकारती थीं।[ 19]

जाहिलियत के दौर में आपको सैयदतुन निसाइल क़ुरैश कहा जाता था।[ 20]

मज़ीद अलक़ाब

पैग़म्बरे अकरम (स) के ज़ियारत नामें में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा को राज़िया , मरज़िया और ज़किय्या के नाम से भी याद किया गया है।[ 21] यतीम आपको उम्मुल यतामा (यतीमों की माँ) , बे कस व नाचार आपको उम्मुस सआलिक (ग़रीबों की माँ) मोमिनीन , उम्मुल मोंमिनीन और इस कायनात की नहरे जारी उम्मुज़ ज़हरा (स) यानी चश्म ए कौसर कह कर पुकारते थे।

हज़रत ख़दीजा (स) वहयी के आईने में

पैग़म्बरे अकरम (स) शबे मेराज बेसत के दो साल बाद माहे रबीउल अव्वल में जो हज़रत ख़दीजा (स) के घर से शुरु हुई। जब वापस ज़मीन पर लौट रहे थे तो क़ासिदे वहयी ने पैग़म्बर (स) से मुख़ातब हो कर फ़रमाया: ……………..।[ 22]

(मेरी ख़्वाहिश है कि ख़ुदा वंदे आलम और मुझ जिबरईल की तरफ़ से हज़रत ख़दीजा (स) को सलाम अर्ज़ करें।)[ 23] जब पैग़म्बरे अकरम (स) ने ख़ुदा वंदे आलम का सलाम ख़दीजा (स) की ख़िदमत में पहुचाया तो आपने जवाब में यूँ कहा: ख़ुदा वंद सलामती का मालिक है उसकी सलामती उसे मुझे मुबारक हो।[ 24] क़ासिदे वहयी दोबारा पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ख़िदमत में अर्ज़ करता है। ऐ मुहम्मद , हज़रत ख़दीजा को ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से सलाम अर्ज़ किया जा रहा है। हज़रत ख़दीजा (स) ने फ़रमाया: ख़ुदा वंदे आलम ख़ुद सलामती का मालिक है , सलामती उसकी जानिब से है और जिबरईले अमीन (अ) पर भी सलाम अर्ज़ हो।[ 25] क़ुरैश के वहशियाना हमले में जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शहीद होने की अफ़वाह हज़रत ख़दीजा के कानों में पहुची तो आपने मक्के के अतराफ़ की वादी और घाटी में अपने हबीब को तलाश करते हुए अशकों का सैलाब जारी कर दिया। (यह हालत देख कर) क़ासिदे वहयी पैग़म्बरे अकरम (स) पर नाज़िल हुआ और पैग़ाम पहुचाया कि आसमान के फ़रिश्ते हज़रत ख़दीजा (स) के अशकों पर अश्क बहा रहे हैं उन्हे अपने पास बुला कर मेरा सलाम अर्ज़ करें और बशारत दें कि ख़ुदा वंदे आलम भी सलाम अर्ज़ कर रहा है और बहिश्त में हज़रत ख़दीजा (स) से मख़सूस ऐसा महल है जिस में कोई ग़म व अंदोह न होगा।[ 26]

हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे अकरम (स) की नज़र में

पैग़म्बरे अकरम (स) से मुतअद्दिद हदीसें हज़रते ख़दीजा (स) की शान में ज़िक्र हुई हैं लेकिन हम यहाँ उस समुन्दर में से सिर्फ़ एक गोशे की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।

ख़ुदा वंदे आलम हर रोज़ हज़रत ख़दीजा (स) के वुजूद मुबारक से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता है।[ 27]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: हज़रत ख़दीजा (स) मुझ पर उस वक़्त ईमान लायीं जब सब वादी ए कुफ़्र में ख़ोतावर थे उन्होने उस वक़्त मेरी तसदीक़ फ़रमाई जब सब इंकार कर रहे थे।

उन्होने उस वक़्त अपना तमाम माल मेरे हवाले किया जब सब फ़रार कर रहे थे और उन्ही के तुफ़ैल ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे साहिब औलाद बनाया।[ 28]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: मरियम बिन्ते इमरान , आसिया बिन्ते मुज़ाहिम , ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद और फ़ातेमा बिन्ते मुहम्मद (स) दुनिया की बेहतरीन ख़्वातीन शुमार होती है।[ 29]

जन्नत की अफ़ज़ल ख़्वातीन , ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद , फ़ातेमा बिन्ते मुहम्मद (स) , मरियम बिन्ते इमरान और आसिया बिन्ते (फ़िरऔन की बीवी) हैं।[ 30]

मरियम , ख़दीजा , आसिया और फ़ातिमा (अ) ऐसी चार ख़्वातीन हैं जो जन्नत की ख़्वातीन की सरदार हैं।[ 31]

हज़रत मरियम , ख़दीजा , आसिया और फ़ातेमा दुनिया की ऐसी चार ख़्वातीन हैं जो कमाल की आख़िरी मंज़िल पर फ़ायज़ है।[ 32]

हज़रत ख़दीजा (स) ने ख़ुदा और उसके रसूल (स) पर ईमान लाने में तमाम ख़्वातीने आलम पर सबक़त हासिल की।[ 33]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: कौन हज़रत ख़दीजा की तरह हो सकता है उन्होने मेरी उस वक़्त तसदीक़ की जब सब तकज़ीब कर रहे थे। दीन की तरक़्क़ी में मेरी मददगार रहीं और अपना सारा माल अल्लाह की राह में क़ुर्बान कर दिया।[ 34]

जन्नत चार शहज़ादियों की मुश्ताक़ है , मरियम , ख़दीजा , आसिया और फ़ातेमा (अ)।[ 35]

हज़रत ख़दीजा उम्महातुल मोमिनीन में से सबसे बेहतर और अफ़ज़ल और दुनिया की औरतों की सरदार हैं।[ 36]

ख़दीजा (स) की मुहब्बत मेरे लिये ख़ुदा वंदे आलम की मरहूने मिन्नत हैं।[ 37]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: ख़दीजा (स) आमाक़े दिल से मेरी मुहिब हैं।[ 38]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: मैं ख़दीजा (स) के चाहने वालों को चाहता हूँ।[ 39]

ख़ुदा वंदे आलम ने अज़वाज (बीवियों) में हज़रत ख़दीजा (स) को सबसे बेहतर क़रार दिया है।[ 40]

ख़ुदा वंदे आलम ने किसी को हज़रत ख़दीजा (स) का हम रुतबा क़रार नही दिया है।[ 41]

मैंने ख़िदमत के लिये हज़रत ख़दीजा (स) से बेहतर व हक़ शिनास किसी को नही पाया।[ 42]

हज़रत ख़दीजा (स) के माल से बढ़ कर कोई माल मेरे लिये फ़ायदेमंद साबित नही हुआ।[ 43]

ख़ुदा वंदे आलम ने चार औरतों का इंतेख़ाब किया है। मरियम , आसिया , ख़दीजा और फ़ातेमा (अलैहुन्नस सलाम)।[ 44] हज़रत मरियम अपने ज़माने की और हज़रत ख़दीजा (स) अपने ज़माने की सबसे अफ़ज़ल ख़ातून हैं।[ 45]

ख़ुदा वंदे आलम ने अली , हसन , हुसैन , हमज़ा , जाफ़र , फ़ातेमा और ख़दीजा (अलैहिमुस सलाम) को दोनो आलम में मुन्तख़ब क़रार दिया है।[ 46]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने आयशा से मुख़ातब हो कर फ़रमाया: हज़रत ख़दीजा (स) के बारे में ऐसी बातें मत करो वह सबसे पहली ख़ातून हैं जो मुझ पर ईमान लायीं और उन्ही के ज़रिये ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे साहिबे औलाद बनाया लेकिन तुम इस से महरूम रहीं।[ 47]

हज़रत ख़दीजा (स) बुज़ुर्गों की ज़बानी

अगर हम बुज़ुर्गाने इस्लाम के अक़वाल हज़रत ख़दीजा (स) के बारे में नक़्ल करने की कोशिश करें तो यह बात इस किताब की गुंजाईश से बाहर है। अलबत्ता बाज़ असहाबे सीरत और सवानेहे निगारों के अक़वाल की तरफ़ इशारा करना ज़रुरी है।

इब्ने हेशाम अपनी मशहूर किताब अस सीरतुन नबविया में लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) सिलसिल ए नसब में सबसे आली , शराफ़त में सबसे शरीफ़ , माल व दौलत के ऐतेबार से दूसरों से ज़्यादा दौलत मंद , क़ुरैश की औरतों में सबसे ज़्यादा अमानतदार , हुस्ने ख़ुल्क़ में सबसे ज़्यादा ख़ुश अख़लाक़ , इफ़्फ़त व करामत में सबसे ज़्यादा अफ़ीफ़ थीं , लिहाज़ा शराफ़त की उन बुलंदियों की मालिका हैं। जहाँ तक दूसरों की रसाई नही।

अहले सुन्नत के उलामा ए रेजाल में से ज़हबी लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) जन्नत की ख़्वातीन की सरदार , अक़ील ए क़ुरैश , क़बील ए असद की फ़र्द , निहायत जलीलुल क़द्र , दीनदार , पाक दामन व बुज़ुर्ग शख़्सियत की हामिल थीं और कमाल की आख़िरी मंज़िल पर फ़ायज़ थीं।[ 48]

इब्ने हजरे असक़लानी लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) ने बेसत के आग़ाज़ में ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत की गवाही देकर दुनिया वालों के लिये अपने सबाते क़दम , यक़ीने कामिल , अक़्ल सलीम और अज़मे रासिख़ को नमूना क़रार दिया है।[ 49]

सुहैली इस सिलसिले में लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) ख़्वातीने क़ुरैश की सरदार थी। दौरे जाहिलियत व इस्लाम दोनों में आपको ताहिरा के लक़ब से याद किया जाता था।[ 50]

हज़रत ख़दीजा (स) तारीख़ के अदवार में

पूरी तारीख़ में तारीख़ लिखने वाले (इतिहासकार) ज़ोर ज़बरदस्ती और चापलूसी का शिकार रहे हैं। इसी वजह से तारीख़ के मुसल्लम हक़ायक़ तहरीफ़ से दोचार हुए और इस तरह उन्होने अपना असली रुप खो दिया या अब अगर कोई मुहक़्क़िक़ तारीख़ की असली हक़ीक़त को बयान करने की कोशिश करे तो सब के लिये ताज्जुब का मक़ाम बन जाता है। दौरे हाज़िर में एक मुहक़्क़िक़ ने क़ातेअ (मज़बूत) दलीलों के ज़रिये ग़ारे सौर में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथी , अब्दुल्लाह बिन ओरैयकज़ बिन बकर को साबित किया है। उसने हक़ीक़त को यूँ बयान किया है कि मुआविया के दौर में पैसे के लालच में दास्ताने ग़ार को जअल किया गया है और अब्दुल्लाह की जगह दूसरे शख़्स का नाम लिख दिया गया है।[ 51] उसने साबित किया है कि इस जुमले को मुआविया के मानने वालों ने जअल किया है।[ 52] लिहाज़ा अगर क़ुरैश की दोशिज़ा , हज़रत ख़दीजा (स) को चालीस साला ख़ातून और साहिबे औलाद बताया जाये तो ताज्जुब नही करना चाहिये। इसी तरह अगर हज़रत अली (अ) को बक़िया ख़ुलफ़ा की शक्ल में सियासी रक़ीब बनाया जाये तो भी ताज्जुब का मक़ाम नही है बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत अली (अ) की ख़ुसूसियात को शुमार करते हुए फ़रमाया है कि ऐ अली , आप ऐसी तीन ख़ुसूसियात के मालिक हैं जो दूसरे किसी के पास नही है , यहाँ तक कि मैं भी उन से महरुम हूँ।

तुम्हे मुझ जैसा ससुर मिला है जिससे में महरुम हूँ।

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

तुम्हे फ़ातेमा जैसी हम रुतबा बीवी मिली है जिससे मैं महरुम हूँ।

हसन व हुसैन (अ) जैसे बेटे तुम्हारे सुल्ब से हैं जिससे मैं महरुम हूँ।[ 53]

अब अगर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के यहाँ फ़ातेमा (स) के अलावा कोई और बेटी तो उसका शौहर भी अली (अ) के मानिन्द होता जबकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ख़ुद इस बात की नहयी की है। मुहद्देसीन (हदीसकारों) के मुताबिक़ हज़रत ख़दीजा (स) की शादी जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) से हुई तो आप कुँवारी थीं , बाज़ का हम यहाँ पर ज़िक्र लाज़िम समझते हैं:

सैयद मुर्तज़ा अलमुल हुदा ने अपनी किताब अश शाफ़ी फ़िल इमामह में इस बात का ज़िक्र किया है।

शेख़ तूसी ने अपनी किताब तलख़ीशुश शाफ़ी में इसे लिखा है।

बलाज़री ने अपनी किताब अनसाबुल अशराफ़ में इस का तज़किरा किया है।[ 54]

अबुल क़ासिम कूफ़ी ने अपनी किताब अलइसतेग़ासा फ़ी बदइस सलासा में इसे लिखा है। बहुत से इतिहासकारों और हदीसकारों ने इस बात को इन किताबों से नक़्ल किया है[ 55] और इस नुक्ते पर ताकीद की है कि हज़रत ख़दीजा (स) की उमरे मुबारक शादी के वक़्त 25 या 28 साल थी और वह क़ुँवारी थी। ज़ैनब , रुक़य्या और उम्मे कुलसूम हज़रत ख़दीजा की बहन हाला की बेटियाँ थी जो आप की सर परस्ती और किफ़ालत में ज़िन्दगी बसर कर रही थीं। इब्ने अब्बास से बहुत से इतिहासकारों और हदीसकारों ने नक़्ल किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) की शादी जब पैग़म्बरे अकरम (स) से हुई तो उस वक़्त आप की उम्र 28 साल थी।[ 56]

अख़तब ख़्वारिज़्म ने सिलसिल ए सनद को बयान करते हुए मुहम्मद बिन इसलाक़ से नक़्ल किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) की उम्र पैग़म्बरे इस्लाम (स) से शादी के वक़्त 28 साल थी। बाज़ इतिहासकार और जीवनी लेखकों के मुताबिक़ हज़रत ख़दीजा (स) की उमरे मुबारक , पैग़म्बरे अकरम (स) से शादी के वक़्त 25 या 28 साल थी।[ 57] मरहूम आयतुल्लाह शिराज़ी लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) दोशिज़ा (कुँवारी) थीं और हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा (स) से अक़्द के शौक़ में तमाम अशराफ़े क़ुरैश को ना में जबाव दे चुकी थी।[ 58]

दौरे हाज़िर के मुहक़्क़ेकीन में से अल्लामा दख़ील ने इस बात की ताईद करते हुए बयान किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) के दोशिज़ा (कुँवारी) होने की ताईद किताब अल अनवार वल बिदअ ने भी की है वह लिखते हैं कि रुक़य्या व ज़ैनब हज़रत ख़दीजा (स) की बहन हाला की बेटियाँ थीं।[ 59]

मरहूम अल्लामा मोहसिन अमीन आमुली ने भी अपनी किताब आयानुश शिया में वाज़ेह तारीख़ी दलीलों के ज़रिये से साबित किया है कि ज़ैनब व रुक़य्या पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटियाँ नही थीं। दौरे हाज़िर के मुहक़्क़िक़ जनाब जाफ़र मुर्तज़ा आमुली ने मुतअद्दिद शवाहिद से साबित किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे अकरम (स) के साथ शादी से क़ब्ल दोशिया (कुँवारी) थीं।[ 60] हैरत अंगेज़ बात यह है कि वह मुजरिम हाथ जिन्होने हज़रत ख़दीजा (स) के लिये जाली फ़रज़ंद और शौहर बनाने की कोशिश की वहीं दूसरे अफ़राद के लिये जो किसी तरह की कोई फ़ज़ीलत नही रखते हैं उन के लिये तहरीफ़ व मन घढ़त फ़ज़ालय में वहाँ तक पहुच गये कि तमाम हुस्न व जमाल को उन के लिये जअल करके उन्हे कल्लिम्नी या हुमैरा की मंज़िल तक पहुचा दिया जबकि इतिहासकारों ने इब्ने अब्बास के जुमले को जो उन्होने जंगे जमल में आयशा से मुख़ातब हो कर फ़रमाया था। जिसे तारीख़ ने इस तरह लिखा है कि ''लसता बे अजमलेहिन्ना ''। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अज़वाज (बीवियाँ) में तुम सबसे बेहतर व हसीन व जमील न थीं और वसी ए पैग़म्बर (स) के ख़िलाफ़ ग़ज़ब की आग भड़का कर जंग के लिये आमादा हो गई हो।

सारे इतिहासकारों की नज़र में हज़रत ख़दीजा (स) हिजाज़ की सबसे हसीन मलिका थीं , हज़रत इमाम हसन (अ) मज़हरे जमाल होने के बावजूद अपने आप को अहले बैत (अ) में हज़रत ख़दीजा (स) की शबीह समझते थे। नफ़्से ज़किय्या के वालिदे माजिद हज़रत अब्दुल्लाह से सवाल किया गया कि हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) दंदाने (दाँत) मुबारक ख़ूबसूरत और चमकदार क्यों थे ? आपके दाँतों की चमक से लोग आपके गिरविदा बन जाते थे। अब्दुल्लाह ने जवाब दिया कि इस की वजह मालूम नही लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) के बारे में जानता हूँ कि वह ऐसे हुस्न की मालिका थीं और हज़रत ज़हरा (स) ने उसको अपनी वालिदा से विरासत में हासिल किया था।[ 61]