उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.0%

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ. लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: विभिन्न

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: हुज्जतुल इस्लाम अली अकबर मेहदी पुर
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 6577
डाउनलोड: 3519

कमेन्टस:

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 10 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 6577 / डाउनलोड: 3519
आकार आकार आकार
उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

सबसे पहली मुस्लिम ख़ातून

हर दौर में अब तक सैंकड़ों की तादाद में ख़्वातीन दीने इस्लाम से मुशर्रफ़ होकर फ़ज़ायल व मनाक़िब के बाब खोलने में कामयाब हुई हैं और जहाने इस्लाम के लिये बाइसे इफ़्तेख़ार बनी हैं लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) का नाम सरे फेहरिस्त , सबसे पहली ख़ातून के उनवान से तारीख़ के सफ़हात पर सुनहरे क़लम से लिखा नज़र आता है।[ 62] बेसते पैग़म्बरे इस्लाम (स) से क़ब्ल हज़रत ख़दीजा (स) अपने जद्दे बुज़ुर्गवार हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं दूसरे लफ़्ज़ों में कहा जा सकता है कि दीने हनीफ़ की पैरों थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेसत के पहले दिन आपने आपके दीन के सामने तसलीम होने का ऐलान कर दिया जैसा कि एक हदीस में मिलता है कि मर्दों में सबसे पहले पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर ईमान लाने वाले हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत खदीजा (स) थीं।[ 63] एक मरतबा एक यहूदी आलिम ने अमीने क़ुरैश (पैग़म्बर (स)) को हज़रत ख़दीजा (स) के घर देखा तो हज़रत खदीजा (स) से अर्ज़ करने लगा कि ऐ ख़दीजा , यह वही पैग़म्बरे मौऊद है जिसकी ख़ुसूसियात को मैंने तौरेत में पढ़ा है कि क़ुरैश की ख़्वातीन की सरदार उससे शादी करेगी। शायद यह शरफ़ आपको नसीब हो।[ 64]

शाम के एक तिजारती सफ़र में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मुतअद्दिद गै़र मामूली उमूर मुशाहेदे में आए। उस की एक एक ख़बर हज़रत ख़दीजा (स) के ख़िदमत में पहुचाई गई जिसके नतीजे में आप पैग़म्बर (स) पर फ़िदा हो गई।[ 65] हज़रत खदीजा (स) के चचाज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल ने भी इस काम में आपकी रहनुमाई की और कहने लगें कि ख़ुदा की क़सम वह ऐसा नबी है जिसकी बेसत के हम सब मुन्तज़िर हैं।[ 66] वरक़ा बिन नौफ़ल ऐसी शख़्सियत थीं जो बुत परस्ती से बर सरे पैकार रही।[ 67] और हज़रत ख़दीजा (स) के लिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) की मुहब्बत का बाइस बनी।[ 68] जब पैग़म्बर अकरम (स) ग़ारे हिरा से बेसत के पहले दिन मंसबे रिसालत के साथ आ रहे थे तो ख़्वातीन क़ुरैश की सरदार हज़रत ख़दीजा (स) आपके इस्तिक़बाल में बढ़ीं और अर्ज़ करने लगीं कि यह नूर कैसा है जो आपकी पेशानी ए मुबारक पर नज़र आ रहा है ? आप (स) ने फ़रमाया कि यह नूर नबुव्वत का है। फिर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अरकाने इस्लाम हज़रत ख़दीजा (स) के ख़िदमत में बयान किये तो हज़रत ख़दीजा (स) बे साख़्ता कहने लगीं: ''आमनतो व सद्दक़तो व रज़ियतो व सल्लमतो '' मैं ईमान ले आई आपके नबी होने की तसदीक़ कर रही हूँ , इस्लाम के आईन से राज़ी हूँ और उसके सामने तसलीम हूँ।[ 69]

सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून

हज़रत ख़दीजा (स) इस्लाम की सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून हैं। कई सालों तक दीने इस्लाम की पाबंद सिर्फ़ दो शख़्सियते थीं एक हज़रत अली (अ) दूसरे हज़रत ख़दीजा (स)। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हर रोज़ पाँच मरतबा मस्जिदुल हराम में शरफ़याब हो कर काबे की जानिब रुख़ करके खड़े होते थे हज़रत अली (अ) आपके दायें जानिब और हज़रत ख़दीजा आपके पीछे खड़ी होती थी। यह तीन शख़्सियतें ख़ान ए तौहीद में अपने मअबूद की इबादत में उम्मते इस्लामी को तशकील दे रही थीं।[ 70]

अब्दुल्लाह बिन मसऊद ने सबसे पहले जब ऐसा मन्ज़र देखा तो अब्बास से इस मन्ज़र की वज़ाहत तलब की , अब्बास ने जवाब दिया: यह शख़्स मेरा भतीजा है (मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह) है , वह नौजवान अली बिन अबी ताबिल है और वह ख़ातून हज़रत ख़दीजा हैं , मज़कूरा तीन अफ़राद के अलावा पूरी ज़मीन पर इस दीन का मानने वाला और कोई शख़्स नही मिलेगा। अब्बास ने यही जवाब अफ़ीफ़ कंदी को भी दिया।[ 71] मर्दों में सबसे पहले नमाज़ गुज़ार हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत ख़दीजा (स) थीं , बाद में जाफ़रे तय्यार हज़रत अली (अ) के भाई अपने वालिदे गिरामी हज़रत अबु तालिब के हुक्म के मुताबिक़ इस सफ़ में शामिल हुए।[ 72] उस के दिन के बाद यह इबादत चार आदमियों के ज़रिये अंजाम पाने लगी आख़िरकार क़ुरैश की मुहासरा मुसलमानों पर रफ़ता रफ़ता सख़्त होता गया और वह शेअबे अबी तालिब में ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर हो गये।

सबसे पहली विलायत की पैरव ख़ातून

अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) अपनी उम्र के छठे साल से पैग़म्बरे अकरम (स) तहते किफ़ालत थे लिहाज़ा हज़रत ख़दीजा (स) आपकी परवरिश करने में माँ का हक़ रखती थी। पैग़म्बरे अकरम (स) ने विलायत के बुलंद मक़ाम को जब हज़रत ख़दीजा (स) के सामने बयान किया तो हज़रत अली (अ) विलायत का इक़रार चाहा। हज़रत ख़दीजा (स) ने वाज़ेह तौर पर अर्ज़ की: मैं अली (अ) की विलायत का इक़रार करती हूँ और उन से बैअत का ऐलान करती हूँ।[ 73] हज़रत ख़दीजा (स) को हज़रत अली (अ) से इस क़दर उलफ़त व मुहब्बत थी कि इतिहासकारों ने लिखा है कि अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम (स) के भाई , पैग़म्बर (स) के नज़दीक सबसे नज़दीक और हज़रत ख़दीजा (स) की आँखों का नूर हैं।[ 74]

सबसे पहली शहज़ादी जिसने जन्नत का मेवा खाया

हज़रत खदीजा (स) सबसे पहली ख़ातून हैं जिन्होने पैग़म्बरे अकरम (स) के दस्ते मुबारक से जन्नत का अंगूर तनावुल फ़रमाया।[ 75]

बेनज़ीर बीवी

हज़रत ख़दीजा (स) ऐसी बेनज़ीर शहज़ादी हैं जिन के ज़रिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) की नस्ले पाक अभी तक बाक़ी है सिर्फ़ आप ही ऐसी ख़ातून हैं जिन्होने ख़ुदा वंदे इमामत के दरख़्शाँ अनवार के लिये ज़र्फ़ क़रार दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत ख़दीजा (स) के मक़ाम व मंज़िलत को हज़रत ज़हरा (स) से यूँ बयान करते हैं: ऐ बेटी , तुम्हारी माँ ख़दीजा (स) को ख़ुदा वंदे आलम ने नुरे इमामत के लिये ज़र्फ़ क़रार दिया है।[ 76] एक दूसरी हदीस में पैग़म्बरे अकरम (स) फ़रमाते हैं: जिबरईले अमीन (अ) ने मुझे बशारत दी है कि मेरी नस्ल की बक़ा हज़रत ख़दीजा (स) से होगी और मेरी उम्मत के इमाम व ख़ुलाफ़ा भी उसी से होंगें।[ 77] पैग़म्बरे इस्लाम (स) हमेंशा जनाबे ख़दीजा (स) की सबसे बड़ी फ़ज़ीलत (उम्मुल फ़ज़ायल) की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाते थे: ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे हज़रत खदीजा (स) के ज़रिये साहिबे औलाद बनाया जब कि बक़िया बीवियाँ इससे महरुम रहीं।[ 78] हज़रते ख़दीजा (स) की हयाते तय्यबा में पैग़म्बरे अकरम (स) में पैग़म्बरे अकरम (स) ने किसी से शादी नही की। हज़रत ख़दीजा (स) नबुव्वत की नहरे जारी का सर चश्मा हैं कि जिन की बदौलत आज अस्सी लाख से ज़ायद सादात पैग़म्बरे इस्लाम (स) की नस्ल से पाये जाते हैं। यह ख़ैरे कसीर , ख़ैरुल बशर , हज़रत पैग़म्बर अकरम (स) को ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से अता किया गया है। पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत ख़दीजा (स) को ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में बशारत दी कि जन्नत में भी आप में मेरी बीवी रहेगीं।[ 79]

अक़ील ए क़ुरैश

हज़रत ख़दीजा (स) जमाल व कमाल , माल व दौलत और ख़ानदानी शराफ़त के बावजूद अक़्ल , इल्म , बसीरत , सालिम फ़िक्र , मजबूत इरादा , दिक़्क़ते नज़र और सही राय व...... की मालिका थीं। आप किन किन सिफ़ात फ़ायज़ थीं इसका अंदाज़ा यूँ लगाया जा सकता है कि बनी हाशिम के सरदार , यमन के बादशाह और तायफ़ के बुज़ुर्ग तमाम माल व दौलत लिये हुए आपसे शादी करने की ख़्वाहिश से आते थे और आपके इंकार के बाद ख़ाली हाथ लौटते थे। इससे साबित होता है कि आप अमीने क़ुरैश पर फ़िदा थीं।

शादी का मक़सद

फ़ितरी तौर पर हर ख़ातून के लिये शादी का मक़सद , माल व दौलत और जाह व हशमत व जमाल हुआ करता है लेकिन अक़ील ए क़ुरैश की नज़र में आद्दी व माद्दी अहदाफ़ की कोई अहमियत नही थी। ख़ुद हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे इस्लाम (स) से अपनी शादी के मक़सद को बयान करते हुए फ़रमाती हैं

ऐ मेरे चचा के बेटे मैं आपकी शैदाई हूँ इसकी कई वजहें हैं:

1. आप मेरे रिश्तेदारों में से हैं।

2. आप शराफ़त की बुलंदियों पर फ़ायज़ है।

3. आपको आपकी क़ौम अमीन के नाम से पुकारती है।

4. आप एक सच्चे इंसान हैं।

5. आप का अख़लाक अच्छा है।[ 80]

हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की फूफी सफ़िया की ख़िदमत में तोहफ़े भेजे और अर्ज़ किया: ऐ सफ़िया , ख़ुदा के लिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) के विसाल तक पहुचने में मेरी रहनुमाई करें।[ 81] हज़रत ख़दीजा (स) अपने राज़ को सफ़िया से बयान करती हैं...........................

मैं यक़ीनन जानती हूँ कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से ताईद शुदा हैं।[ 82] जब हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को तिजारती काफ़िले की सर परस्ती के लिये इंतेख़ाब किया तो अर्ज़ किया: मैंने गुफ़तार में सदाक़त , किरदार में अमानत और रफ़तार में हुस्ने ख़ुल्क़ की ख़ातिर आपको अपने काफ़िले का सर परस्त बनाया है। हज़रत ख़दीजा (स) के ग़ुलाम मैयसरा ने तिजारती सफ़र से वापस लौट कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के किरदार व रफ़तार को चश्मदीद गवाह के तौर पर हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमत में बयान किया और नसतूर नामी राहिब से भी जो कुछ सुना था। अक़ील ए क़ुरैश के सामने पेश किया जिसका कहना था कि वही पैग़म्बरे मौऊद हैं।

हज़रत ख़दीजा (स) ने सारी गुफ़तुगू अपने चचा ज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल को बताई और कहने लगीं कि जब मुहम्मद अमीन (स) आ रहे थें तो बादल आपके सर पर साया फ़िगन थे। वरक़ा बिन नौफ़ल ऐसी शख़्सियत थे जिसे गुज़श्ता अंबिया की किताबों का इल्म था उन्होने जवाब में कहा: मज़कूरा ख़ुसूसियात की बेना पर यह वही पैग़म्बरे मौऊद (स) हैं जिसका हम इंतेज़ार करत रहे थे अब उसकी बेसत का वक़्त आ पहुचा है।[ 83] लिहाज़ा अक़ील ए क़ुरैश चाहती थीं कि अमीने क़ुरैश की बीवी बनने का शरफ़ हासिल करें इसी लिये आप इस रास्ते में तमाम बा असर अफ़राद की मदद से इस मुक़द्दस अम्र के मुक़द्देमात की फ़राहमी के लिये कोशिश कर रही थीं। आपने अपनी बहन हाला को अम्मार के पास भेजा ता कि इस मुक़द्दस बंधन की तमाम रुकावटों को दूर करें।[ 84] इसी तरह आप सफ़िया नामी एक ख़ातून के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ख़िदमत में हाज़िर हुईं और अर्ज़ किया: मैंने अपने ख़ानदान से आपके लिये एक ख़ातून का इंतेख़ाब किया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने पूछा वह कौन है ? हज़रत ख़दीजा (स) ने अर्ज़ किया: वह तुम्हारी कनीज़ ख़दीजा है।[ 85]

[1] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 2 पेज 8

[2] सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 9

[3] अरज़क़ी , अखबारे मक्का जिल्द 1 पेज 149

[4] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 168

[5] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 266

[6] पिछला हवाला पेज 265

[7] पिछला हवाला जिल्द 2 पेज 8

[8] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 100 पेज 189

[9] सूर ए मायदा आयत 75

[10] शेख कुलैनी , उसूले काफ़ी

[11]. शेख़ अब्बास क़ुम्मी , कुहलुल बसर पेज 70

[12] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 22,

[13]. सूर ए अहज़ाब आयत 6

[14] सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 226

[15] इब्ने हजर , अल इसाबा जिल्द 4 पेज 273। मजमउज ज़वायद जिल्द 9 पेज 218

[16] ज़रक़ानी , शरहुल मवाहिबिल लदुन्निया जिल्द 1 पेज 99, मामक़ानी , तसहीहुल मक़ाल जिल्द 3 पेज 77

[17] इब्ने शहरे आशोब , मनाक़िबे आले अबी तालिब जिल्द पेज 70

[18] हिमयरी , क़ौसुल असनाद पेज 325

[19] क़ज़वीनी , फ़ातेमातुज़ ज़हरा (स) मिनल महदे एलल लहद पेज 145

[20] ज़रक़ानी , शरहुल मवाहिबिल लदन्निया जिल्द 1 पेज 199

[21] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 100 पेज 189

[22] इब्ने शहर आशोब , मनाकि़बे आले अबी तालिब जिल्द 1 पेज 228

[23] तफ़सीरे अयाशी जिल्द 2 पेज 279, सही बुख़ारी जिल्द 5 पेज 112

[24] शेख़ तूसी , अल अमाली पेज 75 मजलिस 6 हदीस 46

[25] ज़हबी , सीरए आलामुन नुबला जिल्द 2 पेज 85

[26] सही बुख़ारी जिल्द 5 पेज 112, गंजी , किफ़ायतुत तालिब पेज 359

[27] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 18 पेज 243, अरबेली , क़शफ़ुल ग़ुम्मह जिल्द 2 पेज 72

[28] ज़हबी , सीरए आलामुन नबला जिल्द 2 पेज 82, इब्ने हजर , अल एसाबा जिल्द 4 पेज 275

[29] इब्ने असीर , उस्दुल ग़ाबा जिल्द 5 पेज 537

[30] इब्ने अब्दुल बर , अल इसतिआब जिल्द 2 पेज 720

[31] तबरी , ज़ख़ायरुल उक़बा पेज 44

[32] इब्ने सब्बाग़ मालिकी , अल फ़ुसूलुल मुहिम्मह पेज 129

[33] हाकिम , मुसतदरके सहीहैन जिल्द 2 पेज 720

[34] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 25

[35] बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 53

[36] सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 7

[37] गंजी शाफ़ेई , किफ़ायतुत तालिब पेज 359

[38] बहरानी , अल अवालिम जिल्द 11 पेज 32

[39] महल्लाती , रियाहिनुश शरीयह जिल्द 2 पेज 206

[40] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 80

[41] इब्ने अब्दुल बर , अल इसतीआब जिल्द 2 पेज 721

[42] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 10

[43] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 19 पेज 63

[44] इब्ने अबिल हदीद , शरहे नहजुल बलाग़ा जिल्द 10 पेज 266

[45] सही बुख़ारी जिल्द 4 पेज 200

[46] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 37 पेज 63

[47] क़ाज़ी नोमान , शरहुल अख़बार जिल्द 3 पेज 20

[48] ज़हबी , सीर ए आलामुन नुबला जिल्द 2 पेज 109

[49] इब्ने हजर , फ़तहुल बारी जिल्द 7 पेज 134

[50] सुहैली , अर रौज़ुल अन्फ़ जिल्द 1 पेज 215

[51] नजाह ताई , यारे ग़ार पेज 61, नजाह ताई साहिबुल ग़ार पेज 79

[52] नजाह ताई , सीरतुल इमाम अमीरिल मोमिनीन जिल्द 7 पेज 173

[53] काज़ी शूसतरी , अहक़ाक़ुल हक़ जिल्द 5 पेज 74

[54] बलाज़री , अनसाबुल अशराफ जिल्द 1 पेज 98

[55] शहरे इब्ने आशोब मनाक़िबे आले अबी तालिब जिल्द 1 पेज 160, अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 22 पेज 191, रियाहिनुश शरीयह जिल्द 2 पेज 269

[56] इब्ने सअद , अत तबक़ातुल कुबरा जिल्द 8 पेज 17, ज़हबी सीरए आलामुन नुबला जिल्द 2 पेज 111

[57] बलाज़री , अनसाबुल अशराफ़ जिल्द 1 पेज 108, दयार बकरी , तारीख़ुल ख़मीस जिल्द 2 पेज 264, इब्ने कसीर , अल बिदाया वन निहाया जिल्द 2 पेज 295, हलबी , अनसानुस उयून जिल्द 1 पेज 140

[58] सैयद मुहम्मद शीराज़ी , उम्माहातुल मोमिनीन पेज 90

[59] अल्लामा मुहम्मद अली दख़ील , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) बिनते ख़ुवैलद पेज 11

[60] आमोली , बनातुन नबी अम रबायबोह पेज 75

[61] तबरी , दलायलुल इमामह पेज 151

[62] आयशा बिन्तुश शाती , मौसूआतो आलिन नबी (स) पेज 230

[63] शेख़ तूसी , अल अमाली , पेज 259, मजलिस 10 हदीस 467

[64] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 20

[65] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 35, 50

[66] दख़ील , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 41

[67] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 222

[68] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 21

[69] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 18 पेज 232

[70] निसाई , ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन पेज 45

[71] इब्ने अबिल हदीद , शरहे नहजुल बलाग़ा जिल्द 13 पेज 226

[72] इब्ने असीर , उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 414

[73] मुहद्दिस नूरी , मुसतदरकुल वसायल जिल्द 6 पेज 455

[74] फ़ातेमा बिनते असद के इक़रार से मालूम होता है कि रिसालत के दौर के लोगों से भी विलायते अली (अ) के बारे सवाल होगा।

[75] मसऊदी , इसबातुल वसीयह पेज 144

[76] हैसमी , मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 225

[77] मसऊदी , इसबातुल विलायह पेज 144

[78] इब्ने शहर आशोब , मनाकि़बे आले अबी तालिब जिल्द 3 पेज 383

[79] तबरी , दलायलुल इमामह पेज 77

[80] याक़ूबी , अत तारीख़ जिल्द 2 पेज 28, तबरानी , मोजमुल कबीर जिल्द 22 पेज 276

[81] तबरी , दलायलुल इमामह पेज 77

[82] अरबेली , कशफ़ुल ग़ुम्मह जिल्द 1 पेज 509

[83] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 57

[84] अब्दुल मुनईम , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 33

[85] अब्दुल मुनईम , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 52