आख़िरकार बुज़ुर्गाने बनी हाशिम और अशराफ़े कु़रैश के हुज़ूर में जश्ने शादी बरपा किया गया। हज़रत अबू ताबिल (अलैहिस्सलाम ) ने पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ) की अज़मत व शराफ़त में फ़सीह व बलीग़ ख़ुतबा पढ़ा और फ़रमाया : मेरा भतीजा और ख़दीजा एक दूसरे से शादी पर राज़ी हैं। हम हज़रत ख़दीजा (सलामुल्लाहि अलैहा ) की दरख़्वास्त पर आये हैं और उनका महर मैं ख़ुद अदा करूँगा। रब्बे काबा की क़सम वह बहुत बड़ी शख़्सियत की मालिका है और इल्म व दिरायत में भी किसी से कम नही है। [ 1] हज़रत ख़दीजा (स ) के पिदरे बुज़ुर्गवार ने जवाब दिया कि आप हमारे दरमियान सब से अज़ीज़ हैं फिर हज़रत खदीजा (स ) के बारे में कहा कि वह मुझ से ज़्यादा अक़्लमंद और साहिबे इख़्तियार हैं। [ 2] हज़रत ख़दीजा (स ) ने अपने चचा अम्र बिन असद से इजाज़त तलब की और अपनी रिज़ायत का ऐलान करते हुए कहा कि मेरा मेहर मेरे माल से होगा। उसके बाद अम्र बिन असद ने बेहतरीन अंदाज़ में ख़ुतबा पढ़ कर कहा : व ज़व्वजनाहा व रज़ीना बिही , हम ने ख़दीजा (स ) को पैग़म्बर (स ) की ज़ौजा बनने का शरफ़ दिया है और इस मुक़द्दस बंदिश से राज़ी हैं। [ 3] फ़िर वाज़ेह तौर पर ऐलान किया मन ज़ल लज़ी फ़िन मिसला मुहम्मद , लोगों में कौन है जो मुहम्मद (स ) का हम रुतबा बन सके ?[4]
अक़ील ए क़ुरैश का मेहर
जब जश्ने शादी इख़्तेताम पज़ीर हुआ तो हज़रत खदीजा (स) के चचा ज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल ने कहा: ख़दीजा का मेहर चार हज़ार दीनार है। हज़रत अबू तालिब (अ) ने शादमानी से उसे क़बूल किया लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) ने मेहर की रक़्म अपने ज़िम्मे ली और चार हज़ार दीनार की शक्ल में पूरी रक़्म पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चचा हज़रत अब्बास के पास भेज दी ताकि उस रक़्म को जश्न में आपके पिदरे बुज़ुर्गवार ख़ुवैलद को अता किया जाये।[ 5] जब मेहर की रक़्म हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमत में पहुची तो आपने वरक़ा को हुक्म दिया कि इसे पैग़म्बर (स) की ख़िदमत में पेश किया जाये और यह भी अर्ज़ किया जाये कि मेरा सारा माल आप से मुतअल्लिक़ हैं। वरक़ा बिन नौफ़ल ने आबे ज़मज़म व मक़ामे इब्राहीम के दरमियान खड़ो होकर बुलंद आवाज़ से ऐलान किया: ऐ उम्मते अरब हज़रत ख़दीजा (स) मेहर की रक़्म समेत तमाम अमवाल ग़ुलाम और कनीज़ों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ख़िदमत में पेश कर रही हैं और इस सिलसिले में आप को गवाह बना रही है।[ 6] तब हज़रत ख़दीजा (स) ने अपने तमाम माल व मनाल , सरवत व दौलत यहाँ तक कि इत्र व लिबास को भी हज़रत अबू तालिब (अ) के हवाले कर दिया ता कि वलीमे की शक्ल में इस शादी की रुसूम अंजाम दीं। हज़रत अबू तालिब (अ) ने तीन दिन के लिये दस्तर ख्वान बिछा दिया। जिस मे मक्का और अतराफ़े मक्का के सब लोगों को दावत दी गई।[ 7] यह सब से पहला वलीमा था जिस का बंदोबस्त पैग़म्बर (स) की जानिब से अंजाम पाया।[ 8] सीर ए हलबिया में लिखा है कि हज़रत अबू तालिब (अ) ने मज़कूरा मेहर की रक़्म के अलावा बीस अदद ऊँट को अपने माल से हज़रत खदीजा (स) के मेहर मं इज़ाफ़ा किया लेकिन तबरसी अर्ज़ करते हैं कि हज़रत खदीजा (स) का मेहर बक़िया अज़वाज की तरह साढ़े बारह सिक़्ल था। (जो सुन्नती मेहर है।)[ 9]
हज़रत खदीजा की दौलत
कई सालों से क़ुरैश का सब से बड़ा तिजारती कारवाँ हज़रत ख़दीजा (स) के इख़्तियार में था जिस की वजह से आप मालामाल हो गई। आपने वह सब सरवत व दौलत पैग़म्बरे इस्लाम (स) के हवाले कर दिया ताकि आप अपनी मर्ज़ी से उसे ख़र्च करें। उसके बाद भी जो कुछ दुनियावी माल में से आप के पास आता था उसे पैग़म्बर (स) के हवाले कर देती थीं लिहाज़ा जब आपका भतीजा हकीम बिन हिज़ाम आपसे मिलने आया तो ज़ैद बिन हारेसा को ग़ुलाम की शक्ल में उसे बख़्श दिया उसने फ़ौरन पैग़म्बर (स) को बख़्श दिया। पैग़म्बर (स) ने उसे आज़ाद करना चाहा लेकिन उसने ख़ानदाने वही का ख़िदमत गुज़ार बन कर रहने तरजीह दी।[ 10] ज़ोहरी कहता है कि हज़रत खदीजा (स) अपने अमवाल को चालीस हज़ार , चालीस हज़ार में तक़सीम करके पैग़म्बर (स) की ख़िदमत में पेश किया करती थीं।[ 11] अल्लामा मामक़ानी लिखते हैं कि तारीख़ के मुतावातिरात में से हैं कि इस्लाम का मुक़द्दस आईन हज़रत अली (अ) की तलवार और हज़रत खदीजा (स) की दौलत का मरहूने मिन्नत हैं।[ 12]
हज़रत खदीजा (स) की अक़्ल व ज़िहानत
हज़रत खदीजा (स) की फिक्रे सालिम व अक़्लमंदी के बारे में सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है कि मुवर्रेख़ीन ने लिखा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने तमाम उमूर में हज़रत ख़दीजा (स) से मशविरा करते थे।[ 13] हज़रत ख़दीजा (स) ब उनवाने मुशाविरे पैग़म्बर (स) ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलात में पैग़म्बर (स) के साथ रहें और ज़िन्दगी के नागवार हवादिस में आपको तसल्ली बख़्शती थीं , इस्लाम की दावत के दौरान आपकी ज़िन्दगी में जो मुश्किलात और मशक़्क़तें पेश आ रही थीं। हज़रत खदीजा (स) ने आप की ख़ातिर उन्हे तहम्मुल किया।[ 14] पैग़म्बरे इस्लाम (स) चाहते थे कि क़ुरैश इस्लाम को तसलीम कर लें और ख़ुदा वंदे आलम के ग़ज़ब से महफ़ूज़ हो जायें लेकिन जब उनकी दुश्मनी और हट धर्मी का मुशाहिदा करते थे तो आप के क़ल्ब पर ग़म व अंदोह तारी हो जाता था ऐसी हालत में जब घर तशरीफ़ लाते थे और अपने दिल का राज़ हज़रत ख़दीजा (स) से बयान करते थे तो हज़रत ख़दीजा (स) अपनी हकीमाना बातों और आराम बख़्श निगाहों से आप के दिल को तसकीन पहुचाती थीं।[ 15] शेअबे अबी तालिब (अ) में माली व इक़्तेसादी मुहासरे में सख़्ती व मशक़्क़त से ज़िन्दगी बसर करने में हज़रत ख़दीजा (स) का माल था जिसने उस इक़्तेसादी मुहासरे को तोड़ा , उस दौरान ग़म व अंदोह से मुक़ाबिला करने में आप का बहुत हिस्सा रहा है। अगरचे ख़ुदा वंदे आलम अपनी बे पायाँ इनायात के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) की हिफ़ाज़त कर रहा था लेकिन हज़रत खदीजा (स) ने अपने शादाब चेहरे और निशात बख़्श निगाहों के ज़रिये आप की ज़िन्दगी के सख़्त लम्हात में आप के इरादे को पुख़्ता करने में नुमायाँ किरदार अदा किया है।
कौसर का सदफ़
दुनिया की सैक़ड़ों बा फ़ज़ीलत ख़्वातीन में सिर्फ़ एक ऐसी ख़ातून मिलती हैं जिस ने इस दुनिया के नफ़ीस मोती , ख़ुदावंदे आलम के बे मिसाल मोती के एक दाने , दुनिया की शहज़ादियों की शहज़ादी , पैग़म्बरे ख़ातम (स) की आली मर्तबा बेटी , ख़्वातीने बनी आदम की सरदार , हज़रते ज़हरा ए अतहर (स) को अपनी गोद में परवरिश दी , उस ख़ातून का नाम हज़रत खदीजा (स) है। हज़रत ख़दीजा (स) के ज़रिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) साहिबे औलाद बने। जिन में दो बेटे और एक बेटी थी। बेटे तो बचपने में इस दुनिया से रुख़सत हो गये लेकिन बेटी इस कायनात का चश्म ए जारी , गयारह इमामों की माँ , हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) हैं। तमाम मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि पैग़म्बरे अकरम (स) सिर्फ़ अपनी दो बीबियों से साहिबे औलाद हुए। जिन में एक हज़रत खदीजा (स) और दूसरी मारिया थीं। मारिया क़िबतिया से पैग़म्बर इस्लाम (स) के यहाँ इब्राहीम जैसा बेटा पैदा हुआ। जो सिर्फ़ तीन साल की उम्र में दुनिया से चला गया। हज़रत खदीजा (स) से दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई।
1. क़ासिम , जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सबसे बड़े बेटे हैं। जिनकी विलादत बेसत से पहले हुई थी।
2. अब्दुल्लाह , जो बेसत के बाद पैदा हुए। इसी वजह से उन्हे तैय्यब व ताहिर के लक़्ब से याद किया जाता है।[ 16] क़ासिल चार साला ज़िन्दगी में दुनिया से रुख़्सत हो गये और अब्दुल्लाह भी एक महीने के बाद शीर ख़्वारगी के दौरान इस दुनिया से रुख़सत हो गये।[ 17] चूँकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दोनो बेटे मुख़्तसर से अरसे में दुनिया से रुख़सत हो गये। लिहाज़ा आस बिन वायल ने आप को अबतर कह कर पुकारा। क़ासिदे वही पैग़म्बर पर नाज़िल हुआ और सूर ए मुबारक ए कौसर की पैग़म्बर (स) के क़ल्बे मुबारक पर वही के उनवान से तिलावत की कि ख़ुदा वंदे आलम हज़रत फ़ातेमा (स) जैसी शख़्सियत को चश्म ए जारी बना कर अता कर रहा है। इस तरह से पैग़म्बरे अकरम (स) की पाक व ताहीर नस्ल सफ़ह ए गेती पर जारी हुई।
(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
अभी हज़रत ज़हरा (स) शिकमे मादर में थीं कि पैग़म्बरे रहमत ने फ़रमाया: ऐ ख़दीजा (स) , तुझे तेरी बेटी मुबारक हो। ख़ुदा वंदे आलम उसे मेरे गयारह जानशीनों की माँ क़रार देगा जो मेरे और अली (अ) के बाद मंसबे इमामत पर फ़ायज़ होगें।[ 18]
हज़रत ख़दीजा (स) की सीरत पर एक नज़र
हज़रत खदीजा (स) की सीरत को उनको उन चंद सफ़हात में नही समेटा जा सकता , आपकी सीरते मुबारका के एक पहलू को पैग़म्बरे अकरम (स) की ज़बानी , पहले हमने यहाँ बयान किया है अब हम आपकी ज़िन्दगी के क़ीमती सफ़हात में कुछ की तरफ़ इशारा कर रहे हैं। जब अक़ील ए क़ुरैश और अमीने क़ुरैश की मुशतरक ज़िन्दगी का आग़ाज़ हुआ तो हज़रत अबू तालिब (स) अपने भतीजे की सर नविश्त से परेशान नज़र आ रहे थे। लिहाज़ा जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत ख़दीजा (स) के घर की जानिब तशरीफ़ ले जा रहे थे तो हज़रत अबू तालिब (अ ने एक कनीज़ को भेजा ता कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हज़रत खदीजा (स) की मुशतरका ज़िन्दगी का मुशाहिदा करे। उस कनीज़ का नाम नबआ था वह जब हज़रत अबू तालिब (अ) की ख़िदमत में आई तो यूँ अर्ज़ किया: जब मुहम्मद अमीन (स) घर की चौखट पर पहुचे तो हज़रत ख़दीजा (स) आप के इस्तिक़बाल के लिये चौखट पर तशरीफ़ लायीं। पैग़म्बर (स) का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रखा और अर्ज़ करने लगीं: मेरे माँ बाप आप पर क़ुरबान जायें। मैंने यह अमल इस लिये अंजाम दिया है कि उम्मीद रखती हूँ कि आप वही पैग़म्बरे मौऊद हैं जो इस सर ज़मीन के लिये इंतेख़ाब होगा , बस अगर ऐसा ही हुआ तो मेरे तवाज़ो और ख़ुलूस की बेना पर मेरे हक़ में दुआ ए ख़ैर कीजियेगा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने भी जवाब में फ़रमाया: अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारा यह अमल हरगिज़ बर्बाद न होगा और मैं उसे हरगिज़ न भूलूँगा।[ 19]
हज़रत खदीजा (स) ज़िन्दगी के तमाम तल्ख़ व शीरीं हवादिस में बेसत के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) की शरीके ग़म रहीं , हमेशा आपकी सलामती की ख़्वाहाँ थी , अपने ग़ुलामों व ख़िदमतगारों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) की तलाश में भेजा करती थीं। यहाँ तक कि बाज़ मवारिद में ख़ुद पैग़म्बर (स) की तलाश में निकल पड़ती थीं और कभी कभी ग़ारे हिरा तक पैग़म्बर (स) के हमराह रहा करती थीं।[ 20] एक मर्तब आप गज़ा की शक्ल में ज़ादे सफ़र लिये हुए जबलुन नूर के मुश्किल रास्ते तय करती हुईं पहाड़ की चोटी पर ग़ारे हिरा में पैग़म्बर (स) की ख़िदमत में शरफ़याब हुईं , पैग़म्बरे इस्लाम (स) को सही सालिम पाकर बहुत ख़ुश हुईं और अपनी थकावट को भूल गई , क़ासिदे वही नाज़िल हुआ और आपकी ज़हमात का शुक्रिया अदा करते हुए गोया हुआ: ऐ अल्लाह के रसूल , ख़ुदावंदे आलम और मुझ जिबरईल का सलाम हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमत में पहुचाईये और उन्हे जन्नत में मोतियों के महल की बशारत दीजिये। जिस में किसी क़िस्म का रन्ज व अंदोह न होगा।[ 21] एक मरतबा जब कुछ अरसे तक क़ासिदे वही पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर नाज़िल न हुआ हो तो आप का क़ल्बे मुबारक परेशान हो रहा था कि हज़रत खदीजा (स) ने पैग़म्बर (स) को तसल्ली दी और कहने लगीं: ख़ुदा की क़सम , ख़ुदावंदे आलम हरगिज़ आपको ख़्वार न करेगा , आप सिल ए रहम के पाबंद हैं , आप लोगों की मुश्किलात को बर तरफ़ किया है , बेकसों और लाचारों की मदद की है लोगों के ग़मख़्वार रहे हैं , गुफ़तार में सच्चे और किरदार में पाक रहे हैं।[ 22] अबू लहब और उस की ज़ौजा उम्मे जंगल से काँटे उठा कर पैग़म्बर (स) के रास्ते में डाल देते थे , हज़रत ख़दीजा (स) अपने ग़ुलामों को हुक्म देती थीं कि रास्ते से काँटों को हटा कर दूर फेका जाये।[ 23] शेअबे अबी तालिब में तीन साल तक माली व इक़्तेसादी मुहासरे में ज़िन्दगी बसर हो रही है जिसमें किसी को रफ़्त व आमद की इजाज़त न थी। अगर हज़रत ख़दीजा (स) का माल व दौलत न होता तो शायद सब के सब भूखे मर गये होते। आप खाने पीने का सामान अपने भतीजे हकीम बिन हेज़ाम के ज़रिये कई गुना क़ीमत पर मुहय्या करती थीं और ज़हमात बर्दाश्त करके शेबे में पहुचाती थीं ताकि भूख व प्यास दूर की जा सके।[ 24] हज़रत ख़दीजा (स) पूरे 25 साल रिसालत के घर का चमकता हुआ सितारा रहीं। आप की दिलकश और निशात बख़्श निगाहें पैग़म्बरे रहमत (स) के लिये घर में तसल्ली बख़्श थीं लेकिन सद अफ़सोस कि आप की रेहलत से रंज व ग़म के दरिया अपनी मौजें लिये हुए पैग़म्बर (स) के दिल पर टूट पड़े। यह जान लेवा वाक़ेया हिजरत से तीन साल पहले बेसत के दसवें साल दस रमज़ान को पेश आया।[ 25]
हज़रत ख़दीजा (स) की तारीख़े वफ़ात
ज़ाहिरी तौर पर इस में कोई इख़्तिलाफ़ नही है कि हज़रत खदीजा (स) की वफ़ात माहे रमज़ान हुई।[ 26] तबरी ने हज़ार साल क़ब्ल हज़रत खदीजा (स) के वफ़ात की दक़ीक़ तारीख़ बेसत के दसवें साल दस रमज़ानुल मुबारक बताई है।[ 27] अहले सुन्नत की बरजस्ता शख़्सियत सबरावी और शेख़ुल अज़हर बारहवीं सदी में इस बारे में लिखते हैं: हज़रत ख़दीजा (स) दसवीं रमज़ान को बेसत के दसवें साल हिजरत से (तीन साल) पहले इस दारे फ़ानी से रुख़सत हुईं और हजून में मदफ़ून हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप की क़ब्र में उतरे और अपने हाथों से आप के जिस्मे मुबारक को क़ब्र में रखा। उस वक़्त तक नमाज़े मय्यत शरीयत में नही थी। हज़रत ख़दीजा की वफ़ात हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात के तीन माह बाद वाक़े हुई। जिसकी वजह से पैग़म्बर (स) बहुत ज़्यादा महज़ून हुए।[ 28] हज़रत खदीजा (स) की तारीख़े वफ़ात जिस किताब में भी ज़िक्र हुई है दस रमज़ान बताई गई है।[ 29]
हज़रत अबू तालिब (अ) व हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात का फ़ासला
तारीख़ के मुसल्लमात में से है कि हज़रत अबू तालिब (अ) व हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात बेसत के दसवें साल शेबे अबी तालिब से निकलने के कुछ अरसे बाद हुई लेकिन आप दोनो की वफ़ात का फ़ासला 3 दिन ,[30] 35 दिन ,[31] 55 दिन ,[32] और तीन माह[ 33] तक का बताया गया है , हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात के बारे में मशहूर क़ौल 26 रजब बेसत का दसवाँ साल बताया गया है।[ 34] इस वजह से बाज़ ने आप की वफात और हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात में सिर्फ़ तीन दिन का फ़ासला बताया है और हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात को 29 रजब तसव्वुर किया है जब कि तारीख़े के मनाबे दस रमज़ान पर इत्तेफ़ाक़ रखते हैं , जैसा कि आपने मज़कूरा सुतूर में मुलाहिज़ा किया है , इन दो ग़म अंगेज़ वाक़ेयात का फ़ासला तीन दिन से तीन माह तक बताया गया है। अगर हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात 26 रजब और हज़रत ख़दीजा (स) की दस रमज़ान मानी जाये तो दोनो की वफ़ात का फ़ासला 45 दिन होगा।
मुसीबत के पहाड़
हज़रत ख़दीजा (स) की रेहलत का जानलेवा वाक़ेया इतना सख़्त था कि मुसलमान पैग़म्बर (स) की सलामती के बारे में फ़िक्र मंद हो गये। सारे मुसलमान पैकरे सब्र व इस्तेक़ामत को इस वाक़ेया के बारे में तसल्ली देने की कोशिश कर रहे थे।[ 35] हकीम बिन हेज़ाम की बेटी हौला ने जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) को तसलीयत पेश की तो आपने जवाब में फ़रमाया: ख़दीजा (स) मेरे लिये माय ए सुकून थीं , वह मेरी औलाद की माँ और मेरे ख़ानदान की सर परस्त थीं। सब से बड़ा आमिल जो इस मुसीबत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सब्र व इस्तेक़ामत के सामने हायल था वह हज़रत ख़दीजा (स) की यादगार , ग़मों और मुसीबतों से भरा हज़रत ज़हरा (स) का चेहरा था , आप अश्कबार आँखों से अर्ज़ कर रही थीं बाबा , मेरी माँ कहाँ है ? बाबा , मेरी माँ कहाँ हैं ? यहाँ तक क़ासिदे वही नाज़िल हुआ और कहने लगा: फ़ातेमा से कह दीजिये कि ख़ुदा वंदे आलम ने तुम्हारी माँ ख़दीजा (स) के लिये जन्नत में ऐसा महल तैयार किया है जिस में किसी क़िस्म का रंज व ग़म न होगा।[ 36]
चूँ कि हज़रत ख़दीजा (स) की रेहलत हज़रत अबू तालिब (अ) की ग़म अंग़ेज़ रेहलत के कुछ अरसे बाद वाक़े हुई लिहाज़ा पैग़म्बरे अकरम (स) ने इस साल को आमुल हुज़्न (ग़म व अंदोह का साल) का नाम दिया। गोया हक़ीक़त में एक साल अज़ा ए उमूमी का ऐलान किया।[ 37]
पैग़म्बरे अकरम (स) फ़रमाया करते थे कि जब तक अबू तालिब (अ) व ख़दीजा (स) ज़िन्दा थे तो मुझ पर कभी भी ग़म व अंदोह तारी व हुआ।[ 38] पैग़म्बरे अकरम (स) जनाबे ख़दीजा (स) के साथ मुशतरेका ज़िन्दगी के तल्ख़ व शीरीं लम्हात कभी न भूले। यहाँ तक कि जब घर से निकलते थे तो हज़रत खदीजा (स) को याद करते थे। जिस के नतीजे में कभी कभी अपनी बक़िया अज़वाज के लिये पैग़म्बर (स) का यह तरीक़ा रश्क व हसद का सबब बन जाता था और ऐतेराज़ात का अंबार लग जाता था लेकिन आप तहे दिल से हज़रत खदीजा (स) की हिमायत करते हुए फ़रमाते थे: हाँ , ख़दीजा (स) ऐसी ही थीं और ख़ुदा वंदे आलम ने मेरी नस्ल की बक़ा का ज़रिया उन्हे बनाया है।[ 39] जब कभी पैग़म्बर (स) के घर भेड़ , बकरी ज़िब्ह की जाती थी तो हज़रत ख़दीजा (स) के चाहने वालों में ज़रुर तक़सीम करते थे।[ 40]
हज़रत ख़दीजा (स) की वसीयतें
हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में कुछ वसीयतें कीं जिन की तरफ़ हम इशारा कर रहे हैं:
1. मेरे लिये दुआ ए ख़ैर करना।
2. मुझे अपने हाथों से क़ब्र में दफ़्न करना।
3. दफ़्न से क़ब्ल क़ब्र में दाख़िल होना।
4. वह अबा जो नुज़ूले वही के वक़्त आप के कंधों पर रहती थी उसे मेरे कफ़न पर डाल देना।[ 41]
हज़रत खदीजा (स) ने अपना सारा माल व मनाल पैग़म्बरे इस्लाम (स) को बख़्श दिया लेकिन उसके एवज़ में सिर्फ़ एक अबा का मुतालेबा किया वह भी हज़रत ज़हरा (स) के तुफ़ैल।[ 42] यह हालत देखते ही फ़रिश्त ए वही नाज़िल हुआ और जन्नत से परवरदिगार की जानिब से जन्नती कफ़न ले कर आया , उम्मे ऐमन और उम्मुल फ़ज़्ल (अब्बास की ज़ौजा) ने हज़रत ख़दीजा (स) क पैकरे मुतह्हर को ग़ुस्ल दे कर विदा कर दिया।[ 43] पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने पहले अपनी अबा से आप को कफ़न पहनाया फिर जन्नती कफ़न को उस के ऊपर डाला। हज़रत ख़दीजा (स) ने अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में हज़रत ज़हरा (स) के बारे में फ़िक्र मंदी का इज़हार किया लेकिन असमा बिन्ते उमैस ने वादा किया कि मैं आप की जगह हक़्क़े मादरी अदा करुँगी।[ 44]
हज़रत खदीजा (स) की तदफ़ीन
हज़रत ख़दीजा (स) के पाक मुक़द्दस पैकर को कफ़न पहनाने के बाद हजून नामी पहाड़ी के दामन में ले जा कर हज़रत अबू तालिब (अ) के मरक़दे मुतह्हर के पास दफ़्न किया गया। पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत खदीजा (स) की वसीयत के मुताबिक़ क़ब्र में उतर कर आप के पैकरे मुतह्हर को अपने हाथों से ख़ाक के सुपुर्द कर दिया।[ 45] चौदह सदियाँ गुज़रने के बाद भी सैकड़ों की तादाद में ज़ायरीन , हज़रत ख़दीजा (स) की कब्र की ज़ियारत के लिये हज व उमरे के अय्याम में जाते हैं। शियों के बाज़ बुज़ुर्ग मराजे ए तक़लीद ने आपकी क़ब्रे मुतह्हर की ज़ियारत के मुसतहब होने का फ़तवा दिया है।[ 46] आप की क़ब्रे मुतहहर के ऊपर एक पुर शिकोह गुँबद हमेशा रहा है लेकिन 1344 हिजरी में वहाबियों के हाथों वह गुँबद ख़ाक में मिल गया।
हज़रत ख़दीजा (स) की रेहलत के बाद हज़रत ज़हरा (स) परवाने की तरह पैग़म्बर (स) के वुजूद के गिर्द घूमती थीं और आप से सवाल किया करती थीं: ऐ बाबा , मेरी माँ कहाँ हैं ? पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत ख़दीजा (स) के जन्नत में बुलंद मक़ाम को बयान करते हुए अपनी लख़ते जीगर को तसल्ली देते थे।[ 47]
पेशवाओं के पेशवा , अमीरे बयान , हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत ख़दीजा (स) के ग़म में एक क़सीदा पढ़ा है जिस में आप के फ़ज़ायल व मनाक़िब पर रौशनी डाली है।[ 48]
हज़रत ख़दीजा (स) का मैदाने महशर में तशरीफ़ लाना
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत खदीजा (स) के मैदाने महशर में तशरीफ़ आवरी को यूँ बयान किया है: सत्तर हज़ार फ़रिश्ते आप के इस्तिक़बाल में दौड़ते हुए आयेगें। इस हाल में कि हाथों में परचम लिये हुए होगें और उन परचमों पर अल्लाहो अकबर लिखा हुआ होगा।[ 49]
हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमात की क़द्रदानी
पैग़म्बरे अकरम (स) हमेशा हज़रत ख़दीजा (स) की बेनज़ीर ख़िदमात को याद करते थे और हज़रत ख़दीजा (स) को बक़िया अज़वाज पर तरजीह देते थे।[ 50] जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) दस हज़ार जंगी लश्कर लेकर मक्क ए मुअज़्ज़ा में दाख़िल हुए और उसे फ़तह कर लिया तो अशराफ़े मक्का गिरोह दर गिरोह आप की ख़िदमत में आये और बहुत ज़्यादा इसरार करने लगे कि हमारे घर तशरीफ़ लायें लेकिन पैग़म्बर (स) ने उन की बातों की मुवाफ़िक़त न की और सीधे जन्नतुल मुअल्ला आ गये। वहाँ पहुच कर हज़रत ख़दीजा (स) के मरक़दे मुतह्हर के क़रीब ख़ैमा लगाया और जितने दिन मक्के मे रहे अपनी गुमशुदा अज़ीज़ा के पास रहे और उस दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ज़ुबैर बिन अवाम को हुक्म दिया कि जो परचम तुम्हारे हाथ में है उसे हज़रत ख़दीजा (स) की क़ब्रे मुतह्हर के पास नस्ब करो और उसे वहाँ से न उठाना।
फिर हुक्म दिया कि लश्कर के कमान्डर का ख़ैमा हज़रत ख़दीजा (स) के मरक़दे मुतह्हर के क़रीब लगाया जाये जब ख़ैमा लग गया तो आप ख़ैमे तशरीफ़ लाये और वहाँ से अहकाम सादिर किये और वाक़ेयात का जायज़ा लिया और आख़िरकार उसी मक़ाम से शहर में दाख़िल हुए।[ 51] पैग़म्बर (स) का यह अहम काम एक तो हज़रत ख़दीजा (स) के ईसार व क़ुर्बानियों की हक़ीक़ी पहचान था और दूसरे हज़रत ख़दीजा (स) के नाम अहम पैग़ाम था कि ऐ ख़दीजा , ऐ सब्र की पैकर , ऐ मेरी वा वफ़ा ज़ौजा , चूँ कि ज़िन्दगी के सख़्त दिनों में , कुरैश की जान लेवा घबराहट के दौर में , इक़्तेसादी मुहासरों के दौरान और पुर आशोब दिनों में तुम ने मेरा साथ दिया और तमाम क़िस्म के रंज व मशक़्क़त को तहम्मुल किया लिहाज़ा अब मैं निफ़ाक़ व कुफ़्र के तमाम क़िलों को फ़तह करते हुए फ़तहे मक्का के बाद तुम्हारी पाक तुरबत के पास इसलिये आया हूँ कि ता कि ख़ुशी के दिनों को हम आपस में बाँट लें।
हसद व किनह की इंतेहा
इस तरह पैग़म्बर (स) की तंहा हम रुतबा , ताहा की ज़ौजा , हज़रत ज़हरा (स) की वालिदा , इसस दुनिया से रुख़सत हो गई और हमेशा के लिये हासेदीन की नज़रों से ओझल हो गयीं। हज़रत खदीजा (स) तो इस दारे फ़ानी से रुख़सत हो गयीं और ख़ुदा वंदे आलम के जवार में अपना ठिकाना बना लिया लेकिन आप की रेहलत से हासेदीन के हसद में कोई कमी नही आई। जिस तरह ज़िन्दगी में हसद था वैसे ही मौत के बाद भी बाक़ी रहा।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) पैग़म्बर (स) की अज़वाज में से एक के बारे में कहती हैं कि उसने जब भी मुझे देखा मेरी वालिद ए मोहतरमा को बुरा भला कहना शुरु कर दिया। बहुत सी हदीसों में नक़्ल हुआ है कि जब हज़रत बक़ीय्यतुल्लाह (अ) का ज़हूर होगा तो ख़ुदा वंदे आलम उस को ज़िन्दा करेगा और हज़रत मेहदी (अ) उस पर हद्दे क़ज़फ़ जारी करेगें। चूँ कि उसने हज़रत मारिया क़िबतिया , इब्राहीम की वालिदा पर नाजायज़ तोहमत लगाई थी और इसी तरह हज़रत बक़ीय्यतुल्लाह (अ) अपनी माँ हज़रत ज़हरा (स) का इंतेक़ाम भी लेगें।[ 52] सही बुख़ारी में आयशा से रिवायत नक़्ल हुई है कि मैं ने अज़वाजे पैग़म्बर (स) में हज़रत ख़दीजा (स) से जितना हसद किया उतना किसी से नही किया। जब कि मैं ने उसे देखा नही था लेकिन जब भी पैग़म्बर (स) उसे याद करते थे तो मैं कहती थी गोया ख़दीजा (स) के अलावा इस कायनात में कोई ख़ातून नही है ?। पैग़म्बर (स) फ़रमाते थे: हाँ , खदीजा (स) ऐसी ख़ातून थीं जिन से मैं साहिबे औलाद बना लेकिन बक़िया अज़वाज इस से महरुम रहीं।
आयशा कहती हैं: एक दिन मैं ने ख़दीजा (स) के बारे में हद से बढ़ कर हसद किया , मैं ने पैग़म्बर (स) से कहा कि खदीजा (स) के बारे में कितना कहियेगा , क्या ख़ुदा वंदे आलम ने उससे बेहतर आप को अता नही किया ? पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: ख़ुदा की क़सम ख़ुदा वंदे आलम ने उन से बेहतर मुझे अता नही किया। वह उस वक़्त मुझ पर ईमान लायीं जब सब कुफ़्र में ग़ोतावर थे , उन्होने उस वक़्त अपनी तमाम सरवत व दौलत को मेरे क़दमों में डाल दिया जब सब इंकार कर रहे थे और ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे उन के तुफ़ैल साहिबे औलाद बनाया लेकिन दूसरी अज़वाज को उस से महरुम रखा।[ 53]
हज़रत ख़दीजा (स) का घर
हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात के बाद आप का घर मशाहिदे मुशर्रफ़ा के उनवान से ख़ान ए काबा के हुज्जाज में से हज़ारों चाहने वाले ज़ायरीन के लिये पूरे साल ज़ियारत गाह बन गया।
इब्ने बतूता लिखते हैं कि मशाहिदे मुशर्रफ़ा में मस्जिदुल हराम के नज़दीक एक जगह है जिसे क़ुब्बतुल वही कहते हैं और वह हज़रत ख़दीजा (स) का घर है।[ 54]
शेख अंसारी मनासिके हज में लिखते हैं कि मक्क ए मुअज़्ज़ा में सब हाजियों के मुसतहब है कि हज़रत ख़दीजा (स) के घर तशरीफ़ ले जाये।[ 55]
(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
सद अफ़सोस कि आले सऊद के मुजरिम हाथों ने क़ुब्बतुल वही को भी बाक़ी इस्लामी इमारतों की तरह ख़ाक में मिला दिया। इंशा अल्लाह एक दिन ऐसा आयेगा कि जब हज़रत क़ायम का ज़हूर होगा और ग़ैबत की आस्तीन से इलाही हाथ बाहर आयेगा जो आले मुहम्मद (अ) के पामाल शुदा हुक़ूक़ को पलटायेगा और ख़ानदाने वही के बुलंद मरतबे व मक़ाम को दुनिया के सामने आशकार करेगा। इंशा अल्लाह।