चौवालीसवीं दुआ
दुआए इस्तेक़बाले माहे रमज़ान
तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने अपनी हम्द व सेपास की तरफ़ हमारी रहनुमाई की और हमें हम्दगुज़ारों में से क़रार दिया ताके हम उसके एहसानात पर शुक्र करने वालों में महसूब हों और हमें इस शुक्र के बदले में नेकोकारों का अज्र दे। उस अल्लाह तआला के लिये हम्द व सताइश है जिसने हमें अपना दीन अता किया और अपनी मिल्लत में से क़रार देकर इम्तियाज़ बख़्शा और अपने लुत्फ़ व एहसान की राहों पर चलाया। ताके हम उसके फ़ज़्ल व करम से उन रास्तों पर चल कर उसकी ख़ुशनूदी तक पहुंचें। ऐसी हम्द जिसे वह क़ुबूल फ़रमाए और जिसकी वजह से हम से वह राज़ी हो जाएं। तमाम तारीफ़ें उस अल्लाह के लिये है जिसने अपने लुत्फ़ व एहसान के रास्तों में से एक रास्ता अपने महीने को क़रार दिया। यानी रमज़ान का महीना , सेयाम का महीना , इस्लाम का महीना , पाकीज़गी का महीना , तसफ़ीह और ततहीर का महीना , इबादत व क़याम का महीना , वह महीना जिसमें क़ुरान नाज़िल हुआ। जो लोगों के लिये रहनुमा है। हिदायत और हक़ व बातिल के इम्तियाज़ की रौशन सदाक़तें रखता है। चुनांचे तमाम महीनों पर इसकी फ़ज़ीलत व बरतरी को आशकारा किया। इन फ़रावां इज़्ज़तों और नुमायां फ़ज़ीलतों की वजह से जो इसके लिये क़रार दीं। और इसकी अज़मत के इज़हार के लिये जो चीज़ें दूसरे महीनों में जाएज़ की थें इसमें हराम कर दी और इसके एहतेराम के पेशे नज़र खाने-पीने की चीज़ों से मना कर दिया और एक वाज़ेअ ज़माना इसके लिये मुअय्यन कर दिया। ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर यह इजाज़त नहीं देता के इसे उसके मुअय्यना वक़्त से आगे बढ़ाया जाए और न क़ुबूल करता है के इससे मोहर कर दिया जाए। फिर यह के इसकी रातों में से एक रात को हज़ार महीनों की रातों नी फज़ीलत दी और इसका नाम शबे क़द्र रखा। इस रात में फ़रिश्ते और रूह अलक़ुद्स हर उस अम्र के साथ जो उसका क़तई फ़ैसला होता है। इसके बन्दों में से जिसपर वह चाहता है नाज़िल होते हैं। वोह रात सरासर सलामती की रात है जिसकी बरकते तुलूए फ़ज्र तक दाएम व बरक़रार है। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें हिदायत फ़रमा के हम इस महीने के फ़ज़्ल व शरफ़ को पहचानें , इसकी इज़्ज़त व हुरमत को बलन्द जानें और इसमें इन चीज़ों से जिनसे तूने मना किया है इज्तेनाब करें और इसके रोज़े रखने में हमारे आज़ा को नाफ़रमानियों से रोकने और कामों में मसरूफ रखने से जो तेरी ख़ुशनूदी का बाएस हों हमारी एआनत फ़रमा , ताके हम न बेहूदा बातों की तरफ़ कान लगाएं न फ़िज़ूल ख़र्ची की तरफ़ बे महाबा निगाहें उठाएं , न हराम की तरफ़ हाथ बढ़ाएं न अम्रे ममनूअ की तरफ़ पेश क़दमी करें न तेरी हलाल की हुई चीज़ों के अलावा किसी चीज़ को हमारे शिकम क़ुबूल करें और न तेरी बयान की हुई बातों के सिवा हमारी ज़बानें गोया हों। सिर्फ़ उन चीज़ों के बजा लाने का बार उठाएं जो तेरे सवाब से क़रीब करें और सिर्फ़ उन कामों को अन्जाम दें जो तेरे अज़ाब से बचा ले जाएं फिर उन तमाम आमाल को रियाकारों की रियाकारी और शोहरत पसन्दों की शोहरत पसन्दी से पाक कर दे इस तरह के तेरे अलावा किसी को इनमें शरीक न करें और तेरे सिवा किसी से कोई मतलब न रखें। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें इसमें नमाज़हाए पन्जगाना के औक़ात से इन हुदूद के साथ जो तूने मुअय्यन किये हैं और उन वाजेबात के साथ जो तूने क़रार दिये हैं और उन लम्हात के साथ जो तूने मुक़र्रर किये हैं आगाह फ़रमा और हमें उन नमाज़ों में उन लोगों के मरतबे पर फ़ाएज़ कर जो इन नमाज़ों के दरजाते आलिया हासिल करने वाले , इनके वाजेबात की निगेहदाश्त करने वाले और उन्हें इनके औक़ात में इसी तरीक़े पर जो तेरे अब्दे ख़ास और रसूल सल्लल्लाहो अलैह वालेही वसल्लम ने रूकूअ व सुजूद और उनके तमाम फ़ज़ीलत व बरतरी के पहलुओं में जारी किया था , कामिल और पूरी पाकीज़गी और नुमायां व मुकम्मल ख़ुशू व फ़रवतनी के साथ अदा करने वाले हैं। और हमें इस महीने में तौफ़ीक़ दे के नेकी व एहसान के ज़रिये अज़ीज़ों के साथ सिलाए रहमी और इनआम व बख़्शिश से हमसायों की ख़बरगीरी करें और अपने अमवाल को मज़लूमों से पाक व साफ़ करें और ज़कात देकर उन्हें पाकीज़ा तय्यब बना लें और यह के जो हमसे अलाहेदगी इख़्तियार करे उसकी तरफ़ दस्ते मसालेहत बढ़ाएं , जो हम पर ज़ुल्म करे उस से इन्साफ़ बरतें जो हमसे दुश्मनी करे उससे सुलह व सफ़ाई करें सिवाए उसके जिससे तेरे लिये और तेरी ख़ातिर दुश्मनी की गयी हो। क्योंके वह ऐसा दुश्मन है जिसे हम दोस्त नहीं रख सकते और ऐसे गिरोह का (फ़र्द) है जिससे हम साफ़ नहीं हो सकते। और हमें इस महीने में ऐसे पाक व पाकीज़ा आमाल के वसीले से तक़र्रूब हासिल करने की तौफ़ीक़ दे जिनके ज़रिये तू हमें गुनाहों से पाक कर दे और अज़ सरे नौ बुराइयों के इरतेकाब से बचा ले जाए। यहां तक के फ़रिश्ते तेरे तेरी बारगाह में जो आमाल नामे पेश करें वह हमारी हर क़िस्म की इताअतों और हर नौअ की इबादत के मुक़ाबले में सुबुक हों। ऐ अल्लाह मैं तुझसे इस महीने के हक़ व हुरमत और नीज़ उन लोगों का वास्ता देकर सवाल करता हूं जिन्होंने इस महीने में शुरू से लेकर इसके ख़त्म होने तक तेरी इबादत की हो वह मुक़र्रब बारगाह फ़रिश्ता हो या नबी मुरसल या कोई मर्द सालेह व बरगुज़ीदा के तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमाए और जिस इज़्ज़त व करामत का तूने अपने दोस्तों से वादा किया है उसका हमें अहल बना और जो इन्तेहाई इताअत करने वालों के लिये तूने अज्र मुक़र्रर किया है वह हमारे लिये मुक़र्रर फ़रमा और हमें अपनी रहमत से उन लोगों में शामिल कर जिन्होंने बलन्दतरीन मर्तबे का इस्तेहक़ाक़ पैदा किया। ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें इस चीज़ से बचाए रख के हम तौहीद में कज अन्देशी तेरी तमजीद व बुज़ुर्गी में कोताही , तेरे दीन में शक , तेरे रास्ते से बे राहरवी और तेरी हुरमत से लापरवाही करें और तेरे दुश्मन शैतान मरदूद से फ़रेबख़ोर्दगी का शिकार हों। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जब के इस महीने की रातों में हर रात में तेरे कुछ ऐसे बन्दे होते हैं जिन्हें तेरा अफ़ो व करम आज़ाद करता है या तेरी बख़्शिश व दरगुज़र उन्हें बख़्श देती है। तू हमें भी उन्हीं बन्दों में दाखि़ल कर और इस महीने के बेहतरीन एहल व असहाब में क़रार दे। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस चान्द के घटने के साथ हमारे गुनाहों को भी महो कर दे और जब इसके दिन ख़त्म होने पर आएं तो हमारे गुनाहों का वबाल हमसे दूर कर दे ताके यह महीना इस तरह तमाम हो के तू हमें ख़ताओं से पाक और गुनाहों से बरी कर चुका हो। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस महीने में अगर हम हक़ से मुंह मोड़े तो हमें सीधा रास्ते पर लगा दे और कजरवी इख़्तियार करें तो हमारी इस्लाह व दुरूस्तगी फ़रमा और अगर तेरा दुश्मन शैतान हमारे गिर्द एहाता करे तो उसके पन्जे से छुड़ा ले। बारे इलाहा! इस महीने का दामन हमारी इबादतों से जो तेरे लिये बजा लाई गई हों , भर दे और इसके लम्हात को हमारी इताअतों से सजा दे और इसके दिनों में रोज़े रखने और इसकी रातों में नमाज़ें पढ़ने , तेरे हुज़ूर गिड़गिड़ाने तेरे सामने अज्ज़ व इलहाह करने और तेरे रू बरू ज़िल्लत व ख़्वारी का मुज़ाहेरा करने , इन सबमें हमारी मदद फ़रमा। ताके इसके दिन हमारे खि़लाफ़ ग़फ़लत की और इसकी रातें कोताही व तक़स्बर की गवाही न दें। ऐ अल्लाह! तमाम महीनों और दिनों में जब तक तू हमें ज़िन्दा रखे , ऐसा ही क़रार दे। और हमें उन बन्दों में शामिल फ़रमा जो फ़िरदौसे बरीं की ज़िन्दगी के हमेशा हमेशा के लिये वारिस होंगे। और व हके जो कुछ वह ख़ुदा की राह में दे सकते हैं , देते हैं। फिर भी उनके दिलों को यह खटका लगा रहता है के उन्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ पलट कर जाना है। और उन लोगों में से जो नेकियों में जल्दी करते हैं और वोही तो वह लोग हैं जो भलाइयों में आगे निकल जाने वाले हैं। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर हर वक़्त और हर घड़ी और हर हाल में इस क़द्र रहमत नाज़िल फ़रमा जितनी तूने किसी पर नाज़िल की हो और उन सब रहमतों से दोगुनी चौगनी के जिसे तेरे अलावा कोई शुमार न कर सके। बेशक तू जो चाहता है वही करने वाला है।
(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
पैंतालीसवीं दुआ
दुआए विदाए माहे रमज़ान
ऐ अल्लाह! ऐ वह जो (अपने एहसानात) का बदला नहीं चाहता। ऐ वह जो अता व बख़्शिश पर पशेमान नहीं होता। ऐ वह जो अपने बन्दों को (उनके अमल के मुक़ाबले में) नपा तुला अज्र नहीं देता। तेरी नेमतें बग़ैर किसी साबेक़ा इस्तेहक़ाक़ के हैं और तेरा अफ़ो व दरगुज़र तफ़ज़्ज़ुल व एहसान है। तेरा सज़ा देना ऐने अद्ल और तेरा फ़ैसला ख़ैर व बहबूदी का हामिल है। तू अगर देता है तो अपनी अता को मन्नत गुज़ारी से आलूदा नहीं करता और अगर मना कर देता है तो यह ज़ुल्म व ज़्यादती की बिना पर नहीं होता। जो तेरा षुक्र अदा करता है तू उसके षुक्र की जज़ा देता है। हालांके तू ही ने उसके दिल में शुक्रगुज़ारी का अलक़ा किया है और जो तेरी हम्द करता है उसे बदला देता है। हालांके तू ही ने उसे हम्द की तालीम दी है और ऐसे शख़्स की पर्दापोशी करता है के अगर चाहता तो उसे रूसवा कर देता , और ऐसे शख़्स को देता है के अगर चाहता तो उसे न देता। हालांके वह दोनों तेरी बारगाहे अदालत में रूसवा व महरूम किये जाने ही के क़ाबिल थे मगर तूने अपने अफ़आल की बुनियाद व तफ़ज़्ज़ुल व एहसान पर रखी है और अपने इक़्तेदार को अफ़ो व दरगुज़र की राह पर लगाया है। और जिस किसी ने तेरी नाफ़रमानी की तूने उससे बुर्दबारी का रवैया इख़्तेयार किया। और जिस किसी ने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म का इरादा किया तूने उसे मोहलत दी , तू उनके रूजूअ होने तक अपने हिल्म की बिना पर मोहलत देता है और तौबा करने तक उन्हें सज़ा देने में जल्दी नहीं करता ताके तेरी मन्शा के खि़लाफ़ तबाह होने वाला तबाह न हो और तेरी नेमत की वजह से बदबख़्त होने वाला बदबख़्त न हो मगर उस वक़्त के जब उस पर पूरी उज़्रदारी और एतमामे हुज्जत हो जाए। ऐ करीम! यह (एतमामे हुज्जत) तेरे अफ़ो व दरगुज़र का करम और ऐ बुर्दबार तेरी शफ़क़्क़त व मेहरबानी का फ़ैज़ है तू ही है वह जिसने अपने बन्दों के लिये अफ़ो व बख़्शिश का दरवाज़ा खोला है और उसका नाम तौबा रखा है और तूने इस दरवाज़े की निशानदेही के लिये अपनी वही को रहबर क़रार दिया है ताके वह उस दरवाज़े से भटक न जाएं। चुनांचे ऐ मुबारक नाम वाले तूने फ़रमाया है के ख़ुदा की बारगाह में सच्चे दिल से तौबा करो। उम्मीद है के तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे गुनाहों को महो कर दे और तुम्हें उस बेहिश्त में दाखि़ल करे जिसके (मोहल्लात व बाग़ात के) नीचे नहरें बहती हैं। उस दिन जब ख़ुदा अपने रसूल स 0 और उन लोगों को जो उस पर ईमान लाए हैं रूसवा नहीं करेगा बल्कि उनका नूर उनके आगे आगे और उनकी दाई जानिब चलता होगा और वह लोग यह कहते होंगे के ऐ हमारे परवरदिगार! हमारे लिये हमारे नूर को कामिल फ़रमा और हमें बख़्श दें इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ादिर है। तो अब जो इस घर में दाखि़ल होने से ग़फ़लत करे जबके दरवाज़ा खोला और रहबर मुक़र्रर किया जा चुका है तो इसका उज्ऱ व बहाना क्या हो सकता है ? तू वह है जिसने अपने बन्दों के लिये लेन देन में ऊंचे नरख़ों का ज़िम्मा ले लिया है और यह चाहा है के वह जो सौदा तुझसे करें उसमें उन्हें नफ़ा हो और तेरी तरफ़ बढ़ने और ज़्यादा हासिल करने में कामयाब हों। चुनांचे तूने के जो मुबारक नाम वाला और बलन्द मक़ाम वाला है। फ़रमाया है- ‘‘जो मेरे पास नेकी लेकर आएगा उसे उसका दस गुना अज्र मिलेगा और जो बुराई का मुरतकिब होगा तो उसको बुराई का बदला बस उतना ही मिलेगा जितनी बुराई है। ’’ और तेरा इरशाद है के ‘‘जो लोग अल्लाह तआला की राह में अपना माल ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस बीज की सी है जिससे सात बालियां निकलें और हर बाली में सौ सौ दाने हों और ख़ुदा जिसके लिये चाहता है दुगना कर देता है ’’ और तेरा इरशाद है के - कौन है जो अल्लाह तआला को क़र्ज़े हसना दे ताके ख़ुदा उसके माल को कई गुना ज़्यादा करके अदा करे ’’ और ऐसी ही अफ़ज़ाइश इसनात के वादे पर मुश्तमिल दूसरी आयतें के जो तूने क़ुरान मजीद में नाज़िल की हैं और तू ही वह है जिसने वही व ग़ैब के कलाम और ऐसी तरग़ीब के ज़रिये के जो उनके फ़ायदे पर मुश्तमिल है ऐसे उमूर की तरफ़ उनकी रहनुमाई की के अगर उनसे पोशीदा रखता तो न उनकी आंखें देख सकतीं न उनके कान सुन सकते और न उनके तसव्वुरात वहां तक पहुंच सकते। चुनांचे तेरा इरशाद है के तुम मुझे याद रखो मैं भी तुम्हारी तरफ़ से ग़ाफ़िल नहीं होंगा और मेरा शुक्र अदा करते रहो और नाशुक्री न करो। और तेरा इरशाद है के ‘‘अगर नाशुक्री की तो याद रखो के मेरा अज़ाब सख़्त अज़ाब है ’’ और तेरा इरशाद है के ‘‘मुझसे दुआ मांगो तो मैं क़ुबूल करूंगा , वह लोग जो ग़ुरूर की बिना पर मेरी इबादत से मुंह मोड़ लेते हैं वह अनक़रीब ज़लील होकर जहन्नुम में दाखि़ल होंगे। ’’ चुनांचे तूने दुआ का नाम इबादत रखा और उसके तर्क को ग़ुरूर से ताबीर किया और उसके तर्क पर जहन्नुम में ज़लील होकर दाखि़ल होने से डराया। इसलिये उन्होंने तेरी नेमतों की वजह से तुझे याद किया। तेरे फ़ज़्ल व करम की बिना पर तेरा शुक्रिया अदा किया और तेरे हुक्म से तुझे पुकारा और (नेमतों में) तलबे अफ़ज़ाइश के लिये तेरी राह में सदक़ा दिया और तेरी यह रहनुमाई ही उनके लिये तेरे ग़ज़ब से बचाव और तेरी ख़ुशनूदी तक रसाई की सूरत थी। और जिन बातों की तूने अपनी जानिब से अपने बन्दों की राहनुमाई की है अगर कोई मख़लूक़ अपनी तरफ़ से दूसरे मख़लूक़ की ऐसी ही चीज़ों की तरफ़ राहनुमाई करता तो वह क़ाबिले वहसील होता। तो फिर तेरे ही लिये हम्द व सताइश है। जब तक तेरी हम्द के लिये राह पैदा होती रहे और जब तक हम्द के वह अल्फ़ाज़ जिनसे तेरी तहमीद की जा सके और हम्द के वह मानी जो तेरी हम्द की तरफ़ पलट सकें बाक़ी रहें। ऐ वह जो अपने फ़ज़्ल व एहसान से बन्दों की हम्द का सज़ावार हुआ है और उन्हें अपनी नेमत व बख़्शिश से ढांप लिया है। हम पर तेरी नेमतें कितनी आशकारा हैं और तेरा इनआम कितना फ़रावां है और किस क़द्र हम तेरे इनआम व एहसान से मख़सूस हैं। तूने उस दीन की जिसे मुन्तखि़ब फ़रमाया और उस तरीक़े की जिसे पसन्द फ़रमाया और उस रास्ते की जिसे आसान कर दिया हमें हिदायत की और अपने हां क़रीब हासिल करने और इज़्ज़त व बुज़ुर्गी तक पहुंचने के लिये बसीरत दी। बारे इलाहा! तूने इन मुन्तख़ब फ़राएज़ और मख़सूस वाजेबात में से माहे रमज़ान को क़रार दिया है। जिसे तूने तमाम महीनों में इम्तियाज़ बख़्श और तमाम वक़्तों और ज़बानों में उसे मुन्तख़ब फ़रमाया है। और इसमें क़ुरान और नूर को नाज़िल फ़रमाकर और ईमान को फ़रोग़ व तरक़्क़ी बख़्श कर उसे साल के तमाम औक़ात पर फ़ज़ीलत दी और इसमें रोज़े वाजिब किये और नमाज़ों की तरग़ीब दी और उसमें शबे क़द्र को बुज़ुर्गी बख़्शी जो ख़ुद हज़ार महीनों से बेहतर है। फिर इस महीने की वजह से तूने हमें तमाम उम्मतों पर तरजीह दी , और दूसरी उम्मतों के बजाए हमें इसकी फ़ज़ीलत के बाएस मुन्तख़ब किया। चुनान्चे हमने तेरे हुक्म से इसके दिनों में रोज़े रखे और तेरी मदद से इसकी रातें इबादत में बसर कीं। इस हालत में के हम इस रोज़ा नमाज़ के ज़रिये तेरी उस रहमत के ख़्वास्तगार थे जिसका दामन तूने हमारे लिये फैलाया है और उसे तेरे अज्र व सवाब का वसीला क़रार दिया और तू हर उस चीज़ के अता करने पर क़ादिर है जिसकी तुझसे ख़्वाहिश की जाए और हर उस चीज़ का बख़्शने वाला है जिसका तेरे फ़ज़्ल से सवाल किया जाए तू हर उस शख़्स से क़रीब है जो तुझसे क़ुर्ब हासिल करना चाहे। इस महीने ने हमारे दरम्यान क़ाबिले सताइश दिन गुज़ारे और अच्छी तरह हक़्क़े रफ़ाक़त अदा किया और दुनिया जहान के बेहतरीन फ़ायदों से हमें मालामाल किया फिर जब उसका ज़माना ख़त्म हो गया मुद्दत बीत गई और गिनती तमाम हो गई तो वह हमसे जुदा हो गया। अब हम उसे रूख़सत करते हैं उस शख़्स के रूख़सत करने की तरह जिसकी जुदाई हम पर शाक़ हो और जिसका जाना हमारे लिये ग़मअफ़ज़ा और वहशतअंगेज़ हुआ और जिसके अहद व पैमान की निगेहदाश्त इज़्ज़त व हुरमत का पास और उसके वाजिबुल अदा हक़ से सुबुकदोशी अज़ बस ज़रूरी हो। इसलिये हम कहते हैं ऐ अल्लाह के बुज़ुर्गतरीन महीने , तुझ पर सलाम। ऐ दोस्ताने ख़ुदा की ईद तुझ पर सलाम। ऐ औक़ात में बेहतरीन रफ़ीक़ और दिनों और साअतों में बेहतरीन महीने तुझ पर सलाम। ऐ वह महीने जिसमें उम्मीद बर आती हैं और आमाल की फ़रावानी होती है , तुझ पर सलाम , ऐ वह हम नशीन के जो मौजूद हो तो उसकी बड़ी क़द्र व मन्ज़िलत होती है और न होने पर बड़ा दुख होता है और ऐ वह सरश्माए उम्मीद दरजा जिसकी जुदाई अलम अंगेज़ है , तुझ पर सलाम। ऐ वह हमदम जो उन्स व दिलबस्तगी का सामान लिये हुए आया तो शादमानी का सबब हुआ और वापस गया तो वहशत बढ़ाकर ग़मगीन बना गया। तुझ पर सलाम। ऐ वह हमसाये जिसकी हमसायगी में दिल नर्म और गुनाह कम हो गए , तुझ पर सलाम। ऐ वह मददगार जिसने शैतान के मुक़ाबले में मदद व एआनत की , ऐ वह साथी जिसने हुस्ने अमल की राहें हमवार कीं तुझ पर सलाम। (ऐ माहे रमज़ान) तुझमें अल्लाह तआला के आज़ाद किये हुए बन्दे किस क़द्र ज़्यादा हैं और जिन्होंने तेरी हुरमत व इज़्ज़त का पास व लेहाज़ रखा वह कितने ख़ुश नसीब हैं , तुझ पर सलाम , तू किस क़द्र गुनाहों को महो करने वाला और क़िस्म क़िस्म के ऐबों को छिपाने वाला है। तुझ पर सलाम। तू गुनहगारों के लिये कितना तवील और मोमिनों के दिलों में कितना पुर हैबत है। तुझ पर सलाम। ऐ वह महीने जिससे दूसरे अय्याम हमसरी का दावा नहीं कर सकते , तुझ पर सलाम। ऐ वह महीने जो हर अम्र से सलामती का बाएस है तुझ पर सलाम। ऐ वह जिसकी हम नशीनी बारे ख़ातिर और मआशेरत नागवार नहीं , तुझ पर सलाम जबके तू बरकतों के साथ हमारे पास आया और गुनाहों की आलूदगियों को धो दिया , तुझ पर सलाम। ऐ वह जिसे दिल तंगी की वजह से रूख़सत नहीं किया गया और न ख़स्तगी की वजह से उसके रोज़े छोड़े गये तुझ पर सलाम। ऐ व हके जिसके आने की पहले से ख़्वाहिश थी और जिसके ख़त्म होने से क़ब्ल ही दिल रंजीदा हैं तुझ पर सलाम। तेरी वजह से कितनी बुराईयां हमसे दूर हो गईं और कितनी भलाइयों के सरचश्मे हमारे लिये जारी हो गये। तुझ पर सलाम (ऐ माहे रमज़ान) तुझ पर और उस शबे क़द्र पर जो हज़ार महीनों से बेहतर है। सलाम हो , अभी कल हम कितने तुझ पर वारफ़ता थे और आने वाले कल में हमारे शौक़ की कितनी फ़रावानी होगी। तुझ पर सलाम। (ऐ माहे मुबारक तुझ पर) और तेरी उन फ़ज़ीलतों पर जिनसे हम महरूम हो गए और तेरी गुज़िश्ता बरकतों पर जो हमारे हाथ से जाती रहीं। सलाम हो ऐ अल्लाह हम उस महीने से मख़सूस हैं जिसकी वजह से तूने हमें शरफ़ बख़्शा और अपने लुत्फ़ व एहसान से इसकी हक़शिनासी की तौफ़ीक़ दी जबके बदनसीब लोग इसके वक़्त की (क़द्र व क़ीमत) से बेख़बर थे और अपनी बदबख़्ती की वजह से इसके फ़ज़्ल से महरूम रह गए। और तू ही वली व साहेबे इख़्तेयार है। के हमें इसकी हक़शिनासी के लिये मुन्तख़ब किया और इसके एहकाम की हिदायत फ़रमाई। बेशक तेरी तौफ़ीक़ से हमने इस माह में रोज़े रखे , इबादत के लिये क़याम किया मगर कमी व कोताही के साथ और मुश्ते अज़ ख़रवार से ज़्यादा न बजा ला सके। ऐ अल्लाह! हम अपनी बदआमाली का इक़रार और सहलअंगारी का एतराफ़ करते हुए तेरी हम्द करते हैं और अब तेरे लिये कुछ है तो वह हमारे दिलों की वाक़ेई शर्मसारी और हमारी ज़बानों की सच्ची माज़ेरत है , लेहाज़ा इस कमी व कोताही के बावजूद जो हमसे हमसे हुई है हमें ऐसा अज्र अता कर के हम उसके ज़रिये दिलख़्वाह फ़ज़ीलत व सआदत को पा सकें और तरह तरह के अज्र व सवाब के ज़ख़ीरे जिसके हम आरज़ूमन्द थे उसके एवज़ हासिल कर सकें। और हम ने तेरे हक़ में जो कमी व कोताही की है उसमें हमारे उज्ऱ को क़ुबूल फ़रमा और हमारी उम्रे आईन्दा का रिश्ता आने वाले माहे रमज़ान से जोड़ दे। और जब उस तक पहुंचा दे तो जो इबादत तेरे शायाने शान हो उसके बजा लाने पर हमारी एआनत फ़रमाना और इस इताअत पर जिसका वह महीना सज़ावार है अमल पैरा होने तौफ़ीक़ देना और हमारे लिये ऐसे नेक आमाल का सिलसिला जारी रखना के जो ज़मानाए ज़ीस्त के महीनों में एक के बाद दूसरे माह माहे रमज़ान में तेरे हक़ अदायगी का बाएस हों।
ऐ अल्लाह! हमने इस महीने में जो सग़ीरा या कबीरा मासीयत की हो , या किसी गुनाह से आलूदा और किसी ख़ता के मुरतकिब हुए हों जान बूझकर या भूले चौके , ख़ुद अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया हो या दूसरे का दामने हुरमत चाक किया हो। तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपने पर्दे में ढांप ले , और अपने अफ़ो व दरगुज़र से काम लेते हुए मुआफ़ कर दे। और ऐसा न हो के इस गुनाह की वजह से तन्ज़ करने वालों की आंखें हमें घूरें और तानाज़नी करने वालों की ज़बानें हम पर खुलें। और अपनी शफ़क़्क़ते बेपायां और मरहमत रोज़अफ़ज़ों से हमें इन आमाल पर कारबन्द कर के जो उन चीज़ों को बरतरफ़ करें और उन बातों की तलाफ़ी करें जिन्हें तु इस माह में हमारे लिये नापसन्द करता है।
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस महीने के रूख़सत होने से जो क़लक़ हमें हुआ है उसका चारा कर और ईद और रोज़ा छोड़ने के दिल हमारे लिये मुबारक क़रार दे और उसे हमारे गुज़रे हुए दिनों में बेहतरीन दिन क़रार दे जो अफ़ो व दरगुज़र को समेटने वाला और गुनाहों को महो करने वाला हो और तू हमारे ज़ाहिर व पोशीदा गुनाहों को बख़्श दे। बारे इलाहा! इस महीने के अलग होने के साथ तू हमें गुनाहों से अलग कर दे और इसके निकलने के साथ तू हमें बुराइयों से निकाल ले। और इस महीने की बदौलत उसको आबाद करने वालों में हमें सबसे बढ़कर ख़ुश बख़्त बानसीब और बहरामन्द क़रार दे। ऐ अल्लाह! जिस किसी ने जैसा चाहिये इस महीने का पास व लेहाज़ किया हो और कमा हक़्क़हू इसका एहतेराम मलहूज़ रखा हो और इसके एहकाम पर पूरी तरह अमलपैरा रहा हो। और गुनाहों से जिस तरह बचना चाहिये उस तरह बचा हो या ब नीयते तक़रूब ऐसा अमले ख़ैर बजा लाया हो जिसने तेरी ख़ुशनूदी उसके लिये ज़रूरी क़रार दी हो और तेरी रहमत को उसकी तरफ़ मुतवज्जेह कर दिया हो तो जो उसे बख़्शे वैसा ही हमें भी अपनी दौलते बेपायां में से बख़्श और अपने फ़ज़्ल व करम से इससे भी कई गुना ज़ाएद अता कर। इस लिये के तेरे फ़ज़्ल के सोते ख़ुश्क नहीं होते और तेरे ख़ज़ाने कम होने में नहीं आते बल्कि बढ़ते ही जाते हैं। और न तेरे एहसानात की कानें फ़ना होती है और तेरी बख़्शिश व अता तो हर लेहाज़ से ख़ुशगवारबख़्शिश व अता है।
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जो लोग रोज़े क़यामत तक इस माह के रोज़े रखें या तेरी इबादत करें उनके अज्र व सवाब के मानिन्द हमारे लिये अज्र व सवाब सब्त फ़रमा। ऐ अल्लाह! हम उस रोज़े फ़ित्र में जिसे तूने अहले ईमान के लिये ईद व मसर्रत का रोज़ और अहले इस्लाम के लिये इज्तेमाअ व तआवुन का दिन क़रार दिया है हर उस गुनाह से जिसके हम मुरतकिब हुए हों और हर उस बुराई से जिसे पहले कर चुके हों और हर बुरी नीयत से जिसे दिल में लिये हुए हों उस शख़्स की तरह तौबा करते हैं जो गुनाहों की तरफ़ दोबारा पलटने का इरादा न रखता हो और न तौबा के बाद ख़ता का मुरतकिब होता हो। ऐसी सच्ची तौबा जो हर शक व शुबह से पाक हो। तो अब हमारी तौबा को क़ुबूल फ़रमा हमसे राज़ी व ख़ुशनूद हो जा और हमें इस पर साबित क़दम रख। ऐ अल्लाह! गुनाहों की सज़ा का ख़ौफ़ और जिस सवाब का तूने वादा किया है उसका शौक़ हमें नसीब फ़रमा ताके जिस सवाब के तुझसे ख़्वाहिशमन्द हैं उसकी लज़्ज़त और जिस अज़ाब से पनाह मांग रहे हैं उसकी तकलीफ़ व अज़ीयत पूरी तरह जान सकें। और हमें अपने नज़दीक उन तौबा गुज़ारों में से क़रार दे जिनके लिये तूने अपनी मोहब्बत को लाज़िम कर दिया है और जिनसे फ़रमाबरदारी व इताअत की तरफ़ रूजू होने को तूने क़ुबूल फ़रमाया है। ऐ अद्ल करने वालों में सबसे ज़्यादा अद्ल करने वाले।
ऐ अल्लाह! हमारे मां बाप और हमारे तमाम अहले मज़हब व मिल्लत ख़्वाह वह गुज़र चुके हों या क़यामत के दिन तक आईन्दा आने वाले हों सबसे दरगुज़र फ़रमा। ऐ अल्लाह! हमारे नबी मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जैसी रहमत तूने अपने मुक़र्रब फ़रिश्तों पर की है। और उन पर उनकी आल पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जैसी तूने अपने फ़रस्तादा नबीयों पर नाज़िल फ़रमाई है। और उन पर और उनकी आल(अ 0) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जैसी तूने अपने नेकोकार बन्दों पर नाज़िल की है। (बल्कि) इससे बेहतर व बरतर। ऐ तमाम जहान के परवरदिगार ऐसी रहमत जिसकी बरकत हम तक पहुंचे , जिसकी मनफ़अत हमें हासिल हो और जिसकी वजह से हमारी दुआएं क़ुबूल हों। इसलिये के तू उन लोगों से जिनकी तरफ़ रूजू हुआ जाता है , ज़्यादा करीम और उन लोगों से जिन पर भरोसा किया जाता है , ज़्यादा बेनियाज़ करने वाला है और उन लोगों से जिनके फ़ज़्ल की बिना पर सवाल किया जाता है , ज़्यादा अता करने वाला है और तू हर चीज़ पर क़ादिर व तवाना है।
छेयालीसवीं दुआ
जब नमाज़े ईदुल फ़ित्र से फ़ारिग़ होकर पलटते तो यह दुआ पढ़ते और जुमे के दिन भी यह दुआ पढ़ते
ऐ वह जो ऐसे शख़्स पर रहम करता है जिस पर बन्दे रहम नहीं करते। ऐ वह जो ऐसे (गुनहगार) को क़ुबूल करता है जिसे कोई क़ितअए ज़मीन (उसके गुनाहों के बाएस) क़ुबूल नहीं करता। ऐ वह जो अपने हाजतमन्द को हक़ीर नहीं समझता। ऐ वह जो गिड़गिड़ाने वालों को नाकाम नहीं फेरता। ऐ वह जो नाज़िश बेजा करने वालों को ठुकराता नहीं। ऐ वह जो छोटे से छोटे तोहफ़े को भी पसन्दीदगी की नज़रों से देखता है और जो मामूली से मामूली अमल उसके लिये बजा लाया गया हो उसकी जज़ा देता है। ऐ वह जो इससे क़रीब हो वह उससे क़रीब होता है। ऐ वह के जो इससे रूगर्दानी करे उसे अपनी तरफ़ बुलाता है। और वह जो नेमत को बदलता नहीं और न सज़ा देने में जल्दी करता है। ऐ वह जो नेकी के नेहाल को बारआवर करता है ताके उसे बढ़ा दे और गुनाहों से दरगुज़र करता है ताके उन्हें नापैद कर दे। उम्मीदें तेरी सरहदे करम को छूने से पहले कामरान होकर पलट आएं और तलब व आरज़ू के मसाग़ेर तेरे फ़ैज़ाने जूद से छलक उठे और सिफ़तें तेरे कमाले ज़ात की मन्ज़िल तक पहुंचने से दरमान्दा होकर मुन्तशिर हो गईं इसलिये के बलन्दतरीन रफ़अत जो हर कंगरह बलन्द से बालातर है , और बुज़ुर्गतरीन अज़मत जो हर अज़मत से बलन्दतर है , तेरे लिये मख़सूस है। हर बुज़ुर्ग तेरी बुज़ुर्गी के सामने छोटा और हर ज़ीशरफ़ तेरे शरफ़ के मुक़ाबले में हक़ीर है। जिन्होंने तेरे ग़ैर का रूख़ किया वह नाकाम हुए। जिन्होंने तेरे सिवा दूसरों से तलब किया वह नुक़सान में रहे , जिन्होंने तेरे सिवा दूसरों के हाँ मन्ज़िल की वह तबाह हुए। जो तेरे फ़ज़्ल के बजाए दूसरों से रिज़्क़ व नेमत के तलबगार हुए वह क़हत व मुसीबत से दो-चार हुए तेरा दरवाज़ा तलबगारों के लिये वा है और तेरा जूद व करम साएलों के लिये आम है। तेरी फ़रयादरसी दादख़्वाहों से नज़दीक है। उम्मीदवार तुझसे महरूम नहीं रहते और तलबगार तेरी अता व बख़्शिश से मायूस नहीं होते , और मग़फ़ेरत चाहने वाले पर तेरे अज़ाब की बदबख़्ती नहीं आती। तेरा ख़्वाने नेमत उनके लिये भी बिछा हुआ है जो तेरी नाफ़रमानी करते हैं। और तेरी बुर्दबारी उनके भी आड़े आती है जो तुझसे दुश्मनी रखते हैं। बुरों से नेकी करना तेरी रोश और सरकशों पर मेहरबानी करना तेरा तरीक़ा है। यहां तक के नर्मी व हिल्म ने उन्हें (हक़ की तरफ़) रूजू होने से ग़ाफ़िल कर दिया और तेरी दी हुई मोहलत ने उन्हें इज्तेनाब मआसी से रोक दिया। हालांके तूने उनसे नर्मी इसलिये की थी के वह तेरे फ़रमान की तरफ़ पलट आएं और मोहलत इसलिये दी थी के तुझे अपने तसल्लुत व इक़्तेदार के दवाम पर एतमाद था (के जब चाहे उन्हें अपनी गिरफ़्त में ले सकता है) अब जो ख़ुश नसीब था उसका ख़ात्मा भी ख़ुश नसीबी पर किया और जो बदनसीब था , उसे नाकाम रखा। (वह ख़ुशनसीब हूँ या बदनसीब) सबके सब तेरे हुक्म की तरफ़ पलटने वाले हैं और उनका माल तेरे अम्र से वाबस्ता है। उनकी तवील मुद्दते मोहलत से तेरी दलील हुज्जत में कमज़ोरी रूनुमा नहीं होती (जैसे उस शख़्स की दलील कमज़ोर हो जाती है जो अपने हक़ के हासिल करने में ताख़ीर करे) और फ़ौरी गिरफ़्त को नज़रअन्दाज़ करने से तेरी हुज्जत व बुरहान बातिल नहीं क़रार पाई (के यह कहा जाए के अगर उसके पास उनके खि़लाफ़ दलील व बुरहान होती तो वह मोहलत क्यों देता) तेरी हुज्जत बरक़रार है जो बातिल नहीं हो सकती , और तेरी दलील मोहकम है जो ज़ाएल नहीं हो सकती। लेहाज़ा दाएमी हसरत व अन्दोह उसी शख़्स के लिये है जो तुझसे रूगर्दां हुआ और रूसवाकुन नामुरादी उसके लिये है जो तेरे हां से महरूम रहा और बदतरीन बदबख़्ती उसी के लिये है जिसने तेरी (चश्मपोशी से) फ़रेब खाया। ऐसा शख़्स किस क़द्र तेरे अज़ाब में उलटे-पलटे खाता और कितना तवील ज़माना तेरे एक़ाब में गर्दिश करता रहेगा और उसकी रेहाई का मरहला कितनी दूर और बा-आसानी निजात हासिल करने से कितना मायूस होगा। यह तेरा फ़ैसला अज़रूए अद्ल है जिसमें ज़रा भी ज़ुल्म नहीं करता। और तेरा यह हुक्म मबनी बर इन्साफ़ है जिसमें इस पर ज़्यादती नहीं करता। इसलिये के तूने पै दरपै दलीलें क़ायम और क़ाबिले क़ुबूल हुज्जतें आश्कारा कर दी हैं और पहले से डराने वाली चीज़ों के ज़रिये आगाह कर दिया है और लुत्फ़ व मेहरबानी से (आख़ेरत की) तरग़ीब दिलाई है और तरह-तरह की मिसालें बयान की हैं। मोहलत की मुद्दत बढ़ा दी है और (अज़ाब में) ताख़ीर से काम लिया है। हालांके तू फ़ौरी गिरफ़्त पर इख़्तियार रखता था और नर्मी व मुदारात से काम लिया है। बावजूद यके तू ताजील करने पर क़ादिर था , यह नर्मरवी , आजिज़ी की बिना पर और मोहलत देही कमज़ोरी की वजह से न थी और न अज़ाब में तौक़फ़ करना ग़फ़लत व बेख़बरी के बाएस और न ताख़ीर करना नर्मी व मुलातेफ़त की बिना पर था। बल्कि यह इसलिये था के तेरी हुज्जत हर तरह से पूरी हो। तेरा करम कामिलतर , तेरा एहसान फ़रावां और तेरी नेमत तमामतर हो। यह तमाम चीज़ें थीं और रहेंगी दरआँ हालिया के तू हमेशा से है और हमेशा रहेगा। तेरी हुज्जत इससे बालातर है के इसके तमाम गोशों को पूरी तरह बयान किया जा सके और तेरी इज़्ज़त व बुज़ुर्गी इससे बलन्दतर है के इसकी कुन्ह व हक़ीक़त की हदें क़ायम की जाएं और तेरी नेमतें इससे फ़ज़ोंतर है के इन सबका शुमार हो सके और तेरे एहसानात इससे कहीं ज़्यादातर हैं के उनमें अदना एहसान पर भी तेरा शुक्रिया अदा किया जा सके। (मैं तेरी हम्द व सिपास से आजिज़ और दरमान्दा हूँ , गोया) ख़ामोशी ने तेरी पै दर पै हम्द व सिपास से मुझे नातवां कर दिया है और क़ौक़फ़ ने तेरी तमजीद व सताइश से मुझे गंग कर दिया है और इस सिलसिले में मेरी तवानाई की हद यह है के अपनी दरमान्दगी का एतराफ़ करूं यह बे रग़बती की वजह से नहीं है। ऐ मेरे माबूद! बल्कि अज्ज़ व नातवानी की बिना पर है। अच्छा तो मैं अब तेरी बारगाह में हाज़िर होने का क़स्द करता हूं और तुझसे हुस्ने एआनत का ख़्वास्तगार हूं। तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी राज़ व नियाज़ की बातों को सुन और मेरी दुआ को शरफ़े क़ुबूलियत बख़्श और मेरे दिन को नाकामी के साथ ख़त्म न कर और मेरे सवाल में मुझे ठुकरा न दे , और अपनी बारगाह से पलटने और फिर पलटकर आने को इज़्ज़त व एहतेराम से हमकिनार फ़रमा। इसलिये के तुझे तेरे इरादे में कोई दुश्वारी हाएल नहीं होती और जो चीज़ तुझ से तलब की जाए उसके देने से आजिज़ नहीं होता , और तू हर चीज़ पर क़ादिर है और क़ूवत व ताक़त नहीं सिवा अल्लाह के सहारे के जो बलन्द मरतबा व अज़ीम है।
सैंतालीसवीं दुआ
दुआए रोज़े अरफ़ा
सब तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जो तमाम जहानों का परवरदिगार है। बारे इलाहा! तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ें हैं ऐ आसमान व ज़मीन के पैदा करने वाले , ऐ बुज़ुर्गी व एज़ाज़ वाले! ऐ पालने वालों के पालने वाले। ऐ हर परस्तार के माबूद! ऐ हर मख़लूक़ के ख़ालिक़ और हर चीज़ के मालिक व वारिस। उसके मिस्ल कोई चीज़ नहीं है और न कोई चीज़ इसके इल्म से पोषीदा है। वह हर चीज़ पर हावी और हर षै पर निगरां है। तू ही वह अल्लाह है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं जो एक अकेला और यकता व यगाना है। और तू ही वह अल्लाह है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं जो बख़्षने वाला और इन्तेहाई बख़्षने वाला अज़मत वाला और इन्तेहाई अज़मत वाला और बड़ा और इन्तेहाई बड़ा है। और तू ही वह अल्लाह है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं जो बलन्द व बरतर और बड़ी क़ूवत व तदबीर वाला है और तू ही वह अल्लाह है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं जो फ़ैज़े रसां , मेहरबान और इल्म व हिकमत वाला है और तू ही वह माबूद है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं , जो करीम और सबसे बढ़कर करीम और दाएम व जावेद है। और तू ही वह माबूद है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। जो हर षै से पहले और हर षुमार में आने वाली षै के बाद है। और तू ही वह माबूद है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। जो हर षै से पहले और हर षुमार में आने वाली षै के बाद है। और तू ही वह माबूद है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं जो (कायनात के दस्तेरस) से बाला होने के बावजूद नज़दीक और नज़दीक होने के बावजूद (फ़हम और इदराक से) बलन्द है। और तू ही वह माबूद है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं जो जमाल व बुज़ुर्गी और अज़मत व सताइष वाला है और तू ही वह अल्लाह (ज 0) है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं। जिसन बग़ैर मवाद के तमाम चीज़ों को पैदा किया और बगैर किसी नमूना व मिसाल के सूरतों की नक़्ष आराई की और बग़ैर किसी की पैरवी के मौजूदात को ख़लअते वजूद बख़्षा। तू ही वह है जिसने हर चीज़ का एक अन्दाज़ा ठहराया है और हर चीज़ को उसके वज़ाएफ़ की अन्जाम देही पर आमादा किया है और कायनाते आलम में से हर चीज़ की तद्बीर व कारसाज़ी की है। तो वह है के आफ़रीन्ष आलम में किसी षरीके कार ने तेरा हाथ नहीं बटाया और न किसी मआवुन ने तेरे काम में तुझे मदद दी है और न कोई तेरा देखने वाला और न कोई तेरा मिस्ल व नज़ीर था और तूने जो इरादा किया वह हतमी व लाज़मी और जो फ़ैसला किया वह अद्ल के तक़ाज़ों के ऐन मुताबिक़ और जो हुक्म दिया वह इन्साफ़ पर मबनी था। तू वह है जिसे कोई जगह घेरे हुए नहीं है और न तेरे इक़्तेदार का कोई इक़्तेदार मुक़ाबेला कर सकता है। और न तू दलील व बुरहान और किसी चीज़ को वाज़ेअ तौर पर पेश करने से आजिज़ है। तू वह है जिसने एक एक चीज़ को षुमार कर रखा है और हर चीज़ की एक मुद्दत मुक़र्रर कर दी है और हर शै का एक अन्दाज़ा ठहरा दिया है। तू वह है के तेरी कन्ह ज़ात को समझने से वाहमे क़ासिर और तेरी कैफ़ियत को जानने से अक़्लें आजिज़ हैं। और तेरी कोई जगह नहीं है के आंखें उसका खोज लगा सकें। तू वह है के तेरी कोई हद व नेहायत नहीं है के तू महदूद क़रार पाए और न तेरा तसव्वुर किया जा सकता है के तू तसव्वुर की हुई सूरत के साथ ज़ेहन में मौजूद हो सके और न तेरे कोई औलाद है के तेरे मुताल्लिक़ किसी की औलाद होने का एहतेमाल हो। तू वह है के तेरा कोई मद्दे मुक़ाबिल नहीं है के तुझसे टकराए और न तेरा कोई हमसर है के तुझ पर ग़ालिब आए और न तेरा कोई मिस्ल व नज़ीर है के तुझसे बराबरी करे। तू वह है जिसने ख़ल्के कायनात की इब्तिदा की आलम को ईजाद किया और उसकी बुनियाद क़ायम की। और बग़ैर किसी मादा व अस्ल के उसे वजूद में लाया और जो बनाया उसे अपने हुस्ने सनअत का नमूना बनाया। तू हर ऐब से मुनज़्ज़ह है। तेरी शान किस क़द्र बुज़ुर्ग और तमाम जगहों में तेरा पाया कितना बलन्द और तेरी हक़ व बातिल में इम्तियाज़ करने वाली किताब किस क़द्र हक़ को आशकारा करने वाली है। तू मुनज़्ज़ह है ऐ साहेबे लुत्फ़ व एहसान तू किस क़द्र लुत्फ़ फ़रमाने वाला है। ऐ मेहरबान तू किस क़द्र मेहरबानी करने वाला है। ऐ हिकमत वाले तू कितना जानने वाला है। पाक है तेरी ज़ात ऐ साहबे इक़्तेदार! तू किस क़द्र क़वी व तवाना है। ऐ करीम! तेरा दामने करम कितना वसीअ है। ऐ बलन्द मरतबा तेरा मरतबा कितना बलन्द है तू हुस्न व ख़ूबी , शरफ़ व बुज़ुर्गी , अज़मत व किबरियाई और हम्द व सताइश का मालिक है। पाक है तेरी ज़ात तूने भलाइयों के लिये अपना हाथ बढ़ाया है तुझ ही से हिदायत का इरफ़ान हासिल हुआ है। लेहाज़ा जो तुझे दीन या दुनिया के लिये तलब करे तुझे पा लेगा। तू मुनज़ज़ह व पाक है। जो भी तेरे इल्म में है वह तेरे सामने सरनिगूं और जो कुछ अर्श के नीचे है वह तेरी अज़मत के आगे सर ब ख़म और जुमला मख़लूक़ात तेरी इताअत का जुवा अपनी गर्दन में डाले हुए है। पाक है तेरी ज़ात के न हवास से तुझे जाना जा सकता है न तुझे टटोला और छुआ जा सकता है। न तुझ पर किसी का हीला चल सकता है न तुझे दूर किया जा सकता है। न तुझसे निज़ाअ हो सकती है न मुक़ाबला , न तुझसे झगड़ा किया जा सकता है और न तुझे धोका और फ़रेब दिया जा सकता है। पाक है तेरी ज़ात , तेरा रास्ता सीधा और हमवार , तेरा फ़रमान सरासर हक़ व सवाब और तू ज़िन्दा व बेनियाज़ है। पाक है तू , तेरी गुफ़तार हिकमत आमेज़ , तेरा फै़सला क़तई और तेरा इरादा हतमी है। पाक है तू , न तो कोई तेरी मषीयत को रद्द कर सकता है और न कोई तेरी बातों को बदल सकता है। पाक है तू ऐ दरख़शिन्दा निशानियों वाले। ऐ आसमानों के ख़ल्क़ फ़रमाने वाले और ज़ी रूह चीज़ों के पैदा करने वाले तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ें हैं। ऐसी तारीफ़ें जिनकी हमेशगी तेरी हमेशगी से वाबस्ता है और तेरे ही लिये सताइष है। ऐसी सताइष जो तेरी नेमतों के साथ हमेषा बाक़ी रहे और तेरे ही लिये हम्द व सना है। ऐसी जो तेरे करम व एहसान के बराबर हो और तेरे ही लिये हम्द है ऐसी जो तेरी रज़ामन्दी से बढ़ जाए। और तेरे ही लिये हम्द व सिपास है ऐसी जो हर हम्दगुज़ारी की हम्द पर मुश्तमिल हो और जिसके मुक़ाबले में हर शुक्रगुज़ार का शुक्र पीछे रह जाए। ऐसी हम्द जो तेरे अलावा किसी के लिये सज़ावार न हो और न तेरे सिवा किसी के तक़र्रूब का वसीला बने। ऐसी हम्द जो पहली हम्द के दवाम का सबब क़रार पाए और उसके ज़रिये आखि़री हम्द के दवाम की इल्तिजा की जाए ऐसी हम्द जो ज़माने की गर्दिशों के साथ बढ़ती जाए और पै दरपै इज़ाफ़ों से ज़्यादा होती रहे। ऐसी हम्द के निगेहबानी करने वाले फ़रिश्ते उसके शुमार से आजिज़ आ जाएं। ऐसी हम्द जो कातिबाने आमाल ने तेरी किताब में लिख दिया है इससे बढ़ जाए। ऐसी हम्द जो तेरे अर्शे बुज़ुर्ग को हमवज़न और तेरी बलन्द पाया कुर्सी के बराबर हो। ऐसी हम्द जिसका अज्र व सवाब तेरी तरफ़ से कामिल और जिस की जज़ा तमाम जज़ाओं को शामिल हो। ऐसी हम्द जिसका ज़ाहिर बातिन से हमनवा और बातिन सिद्क़े नीयत से हमआहंग हो। ऐसी हम्द के किसी मख़लूक़ ने वैसी तेरी हम्द न की हो और तेरे सिवा कोई उसकी फ़ज़ीलत व बरतरी से आषना न हो। ऐसी हम्द के जो उसंे बकसरत बजा लाने के लिये कोशां हो उसे (तेरी तरफ़ से) मदद हासिल हो और जो उसे अन्जाम तक पहुंचाने के लिये सई बलीग़ करे। उसे तौफ़ीक़ व ताईद नसीब हो। ऐसी हम्द जो तमाम इक़सामे हम्द की जामेअ हो जिन्हें तू मौजूद कर चुका है और उन इक़साम को भी शामिल हो जिन्हें तू बाद में मौजूद करेगा। सरगर्मे अमल , उनके ज़मानाए इक़्तेदार के मुन्तज़िर और उनके लिये चश्मे बराह हैं। ऐसी रहमत जो बाबरकत , पाकीज़ा और बढ़ने वाली और हर सुबह व शाम नाज़िल होने वाली हो और उन पर और उनके अरवाहे (तय्यबा) पर सलामती नाज़िल फ़रमा और उनके कामों को सलाह व तक़वा की बुनियादों पर क़ायम कर और उनके हालात की इस्लाह फ़रमा और उनकी तौबा क़ुबूल फ़रमा बेशक तू तौबा क़ुबूल करने वाला , रहम करने वाला और सबसे बेहतर बख़्शने वाला है। और हमें अपनी रहमत के वसीले से उनके साथ दारूस्सलाम (जन्नत) में जगह दे , ऐ सब रहीमों से ज़्यादा रहीम , परवरदिगारा! यह रोज़े अरफ़ा वह दिन है जिसे तूने शरफ़ , इज़्ज़त और अज़मत बख़्शी है जिसमें अपनी रहमतें फैला दीं और अपने अफ़ो व दरगुज़र से एहसान फ़रमाया। अपने अतियों को फ़रावां किया और उसके वसीले से अपने बन्दों पर तफ़ज़्ज़ुल फ़रमाया है। ऐ अल्लाह! मैं तेरा वह बन्दा हूं जिसपर तूने उसकी खि़लक़त से पहले और खि़लक़त के बाद इनाम व एहसान फ़रमाया है। इस तरह के उसे उन लोगों में से क़रार दिया जिन्हें तूने अपने दीन की हिदायत की , अपने अदाए हक़ की तौफ़ीक़ बख़्शी जिनकी अपनी रीसमां के ज़रिये हिफ़ाज़त की जिन्हें अपनी जमाअत में दाखि़ल किया और अपने दोस्तों की दोस्ती और दुश्मनों की दुश्मनी की हिदायत फ़रमाई है। बाई हमह तूने उसे हुक्म दिया तो उसने हुक्म न माना , और मना किया तो वह बाज़ न आया और अपनी मासियत से रोका तो वह तेरे हुक्म के खि़लाफ़ अम्रे ममनूअ का मुरतकब हुआ। यह तुझसे अनाद और तेरे मुक़ाबले में तकब्बुर की रू से न था बल्कि ख़्वाहिशे नफ़्स ने उसे ऐसे कामों की दावत दी जिनसे तूने रोका और डराया था। और तेरे दुश्मन और उसके दुश्मन (शैतान मलऊन) ने उन कामों में उसकी मदद की। चुनांचे उसने तेरी धमकी से आगाह होने के बावजूद तेरे अफ़ो की उम्मीद करते हुए और तेरे दरगुज़र पर भरोसा रखते हुए गुनाह की तरफ़ इक़दाम किया। हालांके उन एहसानात की वजह से जो तूने उस पर किये थे। तमाम बन्दों में वह उसका सज़ावार था के ऐसा न करता। अच्छा फिर मैं तेरे सामने खड़ा हूं बिल्कुल ख़्वार व ज़लील , सरापा अज्ज़ व नियाज़ और लरज़ां व तरसां। इन इज़ीम गुनाहों का जिनका बोझ अपने सर उठाया है और उन बड़ी ख़ताओं का जिनका इरतेकाब किया है एतराफ़ करता हुआ तेरे दामने अफ़ो में पनाह चाहता हुआ और तेरी रहमत का सहारा ढूंढता हुआ और यह यक़ीन रखता हुआ के कोई पनाह देने वाला (तेरे अज़ाब से) मुझे पनाह नहीं दे सकता और कोई बचाने वाला (तेरे ग़ज़ब से) मुझे बचा नहीं सकता। लेहाज़ा (इस एतराफ़े गुनाह व इज़हारे निदामत के बाद) तू मेरी पर्दापोशी फ़रमा जिस तरह गुनाहगारों की पर्दापोशी फ़रमाता है और मुझे माफ़ी अता कर जिस तरह उन लोगों को माफ़ी अता करता है। जिन्होंने अपने आप को तेरे हवाले कर दिया हो और मुझ पर इस बख़्शिश व आमज़िश के साथ एहसान फ़रमा के जिस बख़्शिश व आमज़िश से तू अपने उम्मीदवार पर एहसान करता है तो तुझे बड़ी नही मालूम होती। और मेरे लिये आज के दिन ऐसा हिज़ व नसीब क़रार दे के जिसके ज़रिये तेरी रज़ामन्दी का कुछ हिस्सा पा सकूं और तेरे इबादतगुज़ार बन्दे जो (अज्र व सवाब के) तहाएफ़ ले कर पलटे हैं मुझे उनसे ख़ाली हाथ न फेर। अगरचे वह नेक आमाल जो उन्होंने आगे भेजे हैं मैंने आगे नहीं भेजे लेकिन मैंने तेरी वहदत व यकताई का अक़ीदा और यह के तेरा कोई हरीफ़ शरीक और मिस्ल व नज़ीर नहीं है पेश किया है और इन्हीं दरवाज़ों से जिन दरवाज़ों से तूने आने का हुक्म दिया है आया हूं और ऐसी चीज़ के ज़रिये जिसके बग़ैर कोई तुझसे तक़र्रूब हासिल नहीं कर सकता तक़र्रूब चाहा है। फिर तेरी तरफ़ रूजू व बाज़गश्त , तेरी बारगाह में तज़ल्लुल व आजिज़ी और तुझसे नेकगुमान और तेरी रहमत पर एतमाद को तलब तक़र्रूब के हमराह रखा है और उसके साथ ऐसी उम्मीद का ज़मीमा भी लगा दिया है जिसके होते हुए तुझसे उम्मीद रखने वाला महरूम नहीं रहता और तुझसे उसी तरह सवाल किया है जिस तरह कोई बेक़द्र ज़लील षिकस्ता हाल तही दस्त ख़ौफ़ ज़दा और तलबगारे पनाह सवाल करता है और इस हालत के बावजूद मेरा यह सवाल ख़ौफ़ , अज्ज़ व नियाज़मन्दी , पनाहतलबी और अमानख़्वाही की रू से है न मुतकब्बिरों के तकब्बुर के साथ बरतरी जतलाते , न इताअतगुज़ारों के (अपनी इबादत पर) फ़ख्ऱ व एतमाद की बिना पर इतराते और न सिफ़ारिश करने करने वालों की सिफ़ारिश पर सर बलन्दी दिखाते हुए। और मैं इस एतराफ़ के साथ तमाम कमतरों से कमतर , ख़्वार व ज़लील लोगों से ज़लीलतर और एक च्यूंटी के मानिन्द बल्कि उससे भी पस्ततर हूं। ऐ वह जो गुनाहगारों पर अज़ाब करने में जल्दी नहीं करता और न सरकशों को (अपनी नेमतों से) रोकता है।
(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
ऐ वह जो लग़्िज़श करने वालों से दरगुज़र फ़रमाकर एहसान करता है और गुनहगारों को मोहलत देकर तफ़ज़्ज़ुल फ़रमाता है। मैं वह हूं जो गुनहगार गुनाह का मोतरफ़ , ख़ताकार और लग्ज़िश करने वाला हूं मैं वह हूं जिसने तेरे मुक़ाबले में जराअत से काम लेते हुए पेश क़दमी की। मैं वह हूं जिसने दीदा दानिस्ता गुनाह किये मैं वह हूं जिसने (अपने गुनाहों को) तेरे बन्दों से छुपाया और तेरे सामने खुल्लम खुल्ला मुख़ालफ़त की। मैं वह हूं जो तेरे बन्दों से डरता रहा और तुझसे बेख़ौफ़ रहा। मैं वह हूं जो तेरी हैबत से हरासां और तेरे अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा न हुआ। मैं ख़ुद ही अपने हक़ में मुजरिम और बला व मुसीबत के हाथों में गिरवीं हूं मैं ही शर्म व हया से आरी और तवील रंज व तकलीफ़ में मुब्तिला हूं। मैं तुझे उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसे तूने मख़लूक़ात में से मुन्तख़ब किया। उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसे तूने अपने लिये पसन्द फ़रमाया , उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसे तूने कायनात में से बरगुज़ीदा किया और जिसे अपने एहकाम (की तबलीग़) के लिये चुन लिया। उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसकी इताअत को अपनी इताअत से मिला दिया और जिसकी नाफ़रमानी को अपनी नाफ़रमानी के मानिन्द क़रार दिया। उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसकी मोहब्बत को अपनी मोहब्बत से मक़रून और जिसकी दुश्मनी को अपनी दुश्मनी से वाबस्ता किया है। मुझे आज के दिन इस दामने रहमत में ढांप ले जिससे ऐसे शख़्स को ढांपता है जो गुनाहों से दस्तबरदार होकर तुझसे नाला व फ़रियाद करे और ताएब होकर तेरे दामने मग़फ़ेरत में पनाह चाहे और जिस तरह अपने इताअत गुज़ारों और और क़ुर्ब व मन्ज़िलत वालों की सरपरस्ती फ़रमाता है इसी तरह मेरी सरपरस्ती फ़रमा और जिस तरह उन लोगों पर जिन्होंने तेरे अहद को पूरा किया तेरी ख़ातिर अपने को ताब व मशक़्क़त में डाला और तेरी रज़ामन्दियों के लिये सख़्तियों को झेला। ख़ुद तनो तन्हा एहसान करता है उसी तरह मुझ पर भी तनो तन्हा एहसान फ़रमा और तेरे हक़ में कोताही करने तेरे हुदूद से मुतजावज़ होने और तेरे एहकाम के पसे पुश्त डालने पर मेरा मोवाख़ेज़ह न कर और मुझे उस शख़्स के मोहलत देने की तरह मोहलत देकर रफ़ता रफ़ता अपने अज़ाब का मुस्तहक़ न बना जिसने अपनी भलाई को मुझसे रोक लिया और समझता यह है के बस वही नेमत का देने वाला है यहां तक के तुझे भी उन नेमतों के देने में षरीक न समझा हो। मुझे ग़फ़लत शआरों की नीन्द , बेराहरवों के ख़्वाब और हरमां नसीबों की ग़फ़लत से होशियार कर दे और मेरे दिल को इस राहे अमल पर लगा जिस पर तूने इताअत गुज़ारों को लगाया है और इस इबादत की तरफ़ माएल फ़रमा जो इबादत गुज़ारों से तूने चाही है। और उन चीज़ों की हिदायत कर जिनके वसीले से सहल अंगारों को रिहाई बख़्शी है। और जो बातें तेरी बारगाह से दूर कर दीं और मेरे और तेरे हां के हज़ व नसीब के दरम्यान हाएल और तेरे हां के मक़सद व मुराद से मानेअ हो जाएं उनसे महफ़ूज़ रख और नेकियों की राह पैमाई और उनकी तरफ़ सबक़त जिस तरह तूने हुक्म दिया है और उनकी बढ़ चढ़ कर ख़्वाहिश जैसा के तूने चाहा है मेरे लिये सहल व आसान कर और अपने अज़ाब व वईद को सुबुक समझने वालों के साथ के जिन्हें तू तबाह करेगा , मुझे तबाह न करना और जिन्हें दुश्मनी पर आमादा होने की वजह से हलाक करेगा , उनके साथ मुझे हलाक न करना और अपनी सीधी राहों से इन्हेराफ़ करने वालों के ज़मरह में के जिन्हें तू बरबाद करेगा मुझे बरबाद न करना और फ़ित्ना व फ़साद के भंवर से मुझे निजात दे और बला के मुंह से छुड़ा ले और ज़मानाए मोहलत (की बदआमालियों) पर गिरफ़्त से पनाह दे और उस दुश्मन के दरम्यान जो मुझे बहकाए , और उस ख़्वाहिशे नफ़्स के दरम्यान जो मुझे तबाह व बरबाद करे , और उस नक़्स व ऐब के दरम्यान जो मुझे घेर ले , हाएल हो जा। और जैसे उस शख़्स से के जिस पर ग़ज़बनाक होने के बाद तू राज़ी न हो रूख़ फेर लेता है इसी तरह मुझ से रूख़ न फ़ेर और जो उम्मीदें तेरे दामन से वाबस्ता किये हुए हों उनमें मुझे बे आस न कर के तेरी रहमत से यास व नाउम्मीदी मुझ पर ग़ालिब आ जाए और मुझे इतनी नेमतें भी न बख़्श के जिनके उठाने की मैं ताक़त नहीं रखता के तू फ़रावानी , मोहब्बत से मुझ पर वह बार लाद दे जो मुझे गरां बार कर दें और मुझे इस तरह अपने हाथ से न छोड़ दे जिस तरह उसे छोड़ देता है जिसमें कोई भलाई न हो और न मुझे उससे कोई मतलब हो और न उसके लिये तौबा व बाज़गश्त हो। और मुझे इस तरह न फेंक दे जिस तरह उसे फेंक देता है जो तेरी नज़र तवज्जो से गिर चुका हो। और तेरी तरफ़ से ज़िल्लत व रूसवाई उस पर छाई हुई हो बल्कि गिरने वालों के गिरने से और कजरूओं ख़ौफ़ व हेरास से और फ़रेबख़ोर्दा लोगों के लग्ज़िश खाने से और हलाक होने वालों के वरतए हलाकत में गिरने से मेरा हाथ थाम ले और अपने बन्दों और कनीज़ों के मुख़तलिफ़ तबक़ों को जिन चीज़ों में मुब्तिला किया है उन से मुझे आफ़ियत व सलामती बख़्श। और जिन्हें तूने मूरिदे इनायत क़रार दिया , जिन्हें नेमतें अता कीं , जिनसे राज़ी व ख़ुशनूद हुआ। जिन्हें क़ाबिले सताइश ज़िन्दगी बख़्शी। और सआदत व कामरानी के साथ मौत दी उनके मरातब व दरजात पर मुझे फ़ाएज़ कर और वह चीज़ें जो नेकियों को महो और बरकतों को ज़ाएल कर दें उनसे किनाराकशी उस तरह मेरे लिये लाज़िम कर दे जिस तरह गर्दन में पड़ा हुआ तौक़। और बुरे गुनाहों और रूसवा करने वाली मासियतों से अलाहेदगी व नफ़रत को मेरे दिल के लिये इस तरह ज़रूरी क़रार दे जिस तरह बदन से चिमटा हुआ लिबास और मुझे दुनिया में मसरूफ़ करके के जिसे तेरी मदद के बग़ैर हासिल नही कर सकता उन आमाल से के जिनके अलावा तुझे कोई और चीज़ मुझसे ख़ुश नहीं कर सकती , रोक न दे और इस पस्त दुनिया की मोहब्बत के जो तेरे हां की सआदते अबदी की तरफ़ मुतवज्जो होने से मानेअ और तेरी तरफ़ वसीला तलब करने से सद्दे राह और तेरा तक़र्रूब हासिल करने से ग़ाफ़िल करने वाली है मेरे दिल से निकाल दे। आौर मुझे वह मुल्के इस्मत अता फ़रमा जो मुझे तेरे ख़ौफ़ से क़रीब , इरतेकाबे मोहर्रमात से अलग और कबीरा गुनाहों के बन्धनों से रिहा कर दे। और मुझे गुनाहों की आलूदगी से पाकीज़गी अता फ़रमा और मासियत की कसाफ़तों को मुझसे दूर कर दे और अपनी आफ़ियत का जामा मुझे पहना दे और अपनी सलामती की चादर उढ़ा दे और अपनी वसीअ नेमतों से मुझे ढांप ले और मेरे लिये अपने अताया व इनआमात का सिलसिला पैहम जारी रख और अपनी तौफ़ीक़ व राहे हक़ की राहनुमाई से मुझे तक़वीयत दे और पाकीज़ा नीयत , पसन्दीदा गुफ़तार और शाइस्ता किरदार के सिलसिले में मेरी मदद फ़रमा। और अपनी क़ूवत व ताक़त के बजाए मुझे मेरी क़ूवत व ताक़त के हवाले न कर और जिस दिन मुझे अपनी मुलाक़ात के लिये उठाए मुझे ज़लील व ख़्वार और अपने दोस्तों के सामने रूसवा न करना , और अपनी याद मेरे दिल से फ़रामोश न होने दे और अपना शुक्र व सिपास मुझसे ज़ाएल न कर , बल्कि जब तेरी नेमतों से बेख़बर , सहो व ग़फ़लत के आलम में हूं , मेरे लिये अदाए शुक्र लाज़िम क़रार दे। और मेरे दिल में यह बात डाल दे के जो नेमतें तूने बख़्शी हैं उन पर हम्द व तौसीफ़ और जो एहसानात मुझ पर किये हैं उनका एतराफ़ करूं और अपनी तरफ़ मेरी तवज्जो को तमाम तवज्जो करने वालों से बालातर और मेरी हम्द सराई को तमाम हम्द करने वालों से बलन्दतर क़रार दे और जब मुझे तेरी एहतियाज हो तो मुझे अपनी नुसरत से महरूम न करना और जिन आमाल को तेरी बारगाह में पेश किया है उन को मेरे लिये वजहे हलाकत न क़रार देना। और जिस अमल व किरदार के पेशे नज़र तूने अपने नाफ़रमानों को ध्ुात्कारा है यूं मुझे अपनी बारगाह से धुत्कार न देना। इसलिये के मैं तेरा मुतीअ व फ़रमाबरदार हूं और यह जानता हूं के हुज्जत व बुरहान तेरे ही लिये है और तू फ़ज़्ल व बख़्शिश का ज़्यादा सज़ावार और लुत्फ़ व एहसान के साथ फ़ायदा रसां और इस लाएक़ है के तुझसे डरा जाए और इसका अहल है के मग़फ़ेरत से काम ले और इसका ज़्यादा सज़ावार है के सज़ा देने के बजाय माफ़ कर दे और तशहीर करने के बजाए पर्दापोशी तेरी रोश से क़रीबतर है तो फिर मुझे ऐसी पाकीज़ा ज़िन्दगी दे जो मेरे हस्बे दिल ख़्वाह उमूर पर मुश्तमिल और मेरी और मेरी दिलपसन्द चीज़ों पर मुन्तही हो। उस तरह के जिस काम को तू नापसन्द करे उसे बजा न लाउं और जिससे मना करे उसका इरतेकाब न करूं। और मुझे उस शख़्स की सी मौत दे जिसका नूर उसके आगे और उसके दाहेनी तरफ़ चलता हो और मुझे अपनी बारगाह में आजिज़ व निगोंसार और लोगों के नज़दीक बावेक़ार बना दे और जब तुझसे तख़लिया में राज़ व नियाज़ करूं , तू मुझे पस्त और सराफ़गन्दा और अपने बन्दों में बलन्द मरतबा क़रार दे और जो मुझसे बेनियाज़ हो उससे मुझे बेनियाज़ कर दे और मेरे फ़क्ऱ व एहतियाज को अपनी तरफ़ बढ़ा दे और दुश्मनों के ख़ज़ाए (वीरलब) बलाओं के दुरूद और ज़िल्लत व सख़्ती से पनाह दे और मेरे उन गुनाहों के बारे में के जिन पर तू मुतलाअ है उस शख़्स के मानिन्द मेरी परदापोशी फ़रमा के अगर उसका हिल्म मानेअ न होता तो वह सख़्त गिरफ़्त पर क़ादिर होता और अगर उसकी रविश में नर्मी न होती तो वह गुनाहो पर मुवाख़ेज़ा करता। और जब किसी जमाअत को तू मुसीत में गिरफ़्तार या बला व नकहत से दो-चार करना चाहे तो दरसूरती के मैं तुझसे पनाह तलब हूं इस मुसीबत से निजात दे और जबके तूने मुझे दुनिया में रूसवाई के मौक़फ़ में खड़ा नहीं किया तो इसी तरह आख़ेरत में भी रूसवाई के मक़ाम पर खड़ा न करना और मेरे लिये दुनयवी नेमतों को अख़रवी नेमतों से और क़दीम फ़ायदों को जदीद फ़ाययदों से मिला दे और मुझे इतनी मोहलत न दे के उसके नतीजे में मेरा दिल सख़्त हो जाए और ऐसी मुसीबत में मुब्तिला न कर जिससे मेरी इज़्ज़त व आबरू जाती रहे और ऐसी ज़िल्लत से दोचार न कर जिससे मेरी क़द्र व मन्ज़िलत कम हो जाए और ऐसी ऐब में गिरफ़्तार न कर जिससे मेरा मरतबा व मक़ाम जाना न जा सके। और मुझे इतना ख़ौफ़ज़दा न कर के मैं मायूस हो जाउं और ऐसा ख़ौफ़ न दिला के हरासां हो जाऊं।
मेरे ख़ौफ़ को अपनी वईद व सरज़न्श में और मेरी अन्देशे को तेरे उज़्र तमाम करने और डराने में मुनहसिर कर दे और मेरे ख़ौफ़ व हेरास को आयाते (क़ुरानी) की तिलावत के वक़्त क़रार दे और मुझे अपनी इबादत के लिये बेदार रखने , ख़लवत व तन्हाई में दुआ व मुनाजात के लिये जागने सबसे अलग रहकर तुझसे लौ लगाने , तेरे सामने अपनी हाजतें पेश करने , दोज़ख़ से गुलू ख़लासी के लिये बार बार इल्तिजा करने और तेरे उस अज़ाब से जिसमें अहले दोज़ख़ गिरफ़्तार हैं पनाह मांगने के वसीले से मेरी रातों को आबाद कर और मुझे सरकशी में सरगरदां छोड़ न दे और न ग़फ़लत में एक ख़ास वक़्त तक ग़ाफ़िल व बेख़बर पड़ा रहने दे और मुझे नसीहत हासिल करने वालों के लिये नसीहत इबरत हासिल करने वालों के लिये इबरत और देखने वालों के लिये फ़ित्ना व गुमराही का सबब न क़रार दे और मुझे उन लोगों में जिनसे तू (उनके मक्र की पादाश में) मक्र करेगा शुमार न कर और (इनआम व बख़्शिश के लिये) मेरे एवज़ दूसरे को इनतेख़ाब न कर। मेरे नाम में तग़य्युर और जिस्म में तब्दीली न फ़रमा और मुझे मख़लूक़ात के लिये मज़हका और अपनी बारगाह में लाएक़े इस्तेहज़ा न क़रार दे। मुझे सिर्फ़ उन चीज़ों का पाबन्द बना जिनसे तेरी रज़ामन्दी वाबस्ता है और सिर्फ़ उस ज़हमत से दो चार कर जो (तेरे दुश्मनों से) इन्तेक़ाम लेने के सिलसिले में हो और अपने अफ़ो व दरगुज़र की लज़्ज़त और रहमत , राहत व आसाइश गुल व रैहान और जन्नते नईम की शीरीनी से आशना कर और अपनी वुसअत व तवंगरी की बदौलत ऐसी फ़राग़त से रूशिनास कर जिसमें तेरे पसन्दीदा कामों को बजा ला सकूं , और ऐसी सई व कोशिश की तौफ़ीक़ दे जो तेरी बारगाह में तक़र्रूब का बाएस हो और अपने तोहफ़ों में से मुझे नित नया तोहफ़ा दे और मेरी अख़रवी तिजारत को नफ़ाबख़्श और मेरी बाज़गश्त को बेज़रर क़रार दे और मुझे अपने मक़ाम व मौक़फ़ से डरा और अपनी मुलाक़ात का मुश्ताक़ बना और ऐसी सच्ची तौबा की तौफ़ीक़ अता फ़रमा के जिसके साथ मेरे छोटे और बड़े गुनाहों को बाक़ी न रखे और खुली और ढकी मासियतों को महो कर दे और अहले ईमान की तरफ़ से मेरे दिल से कीना व बुग़्ज़ को निकाल दे और इन्केसार व फ़रवतनी करने वालों पर मेरे दिल को मेहरबान बना दे और मेरे लिये तू ऐसा हो जा जैसा नेकोकारों के लिये है और परहेज़गारों के ज़ेवर से मुझे आरास्ता कर दे और आईन्दा आने वालों में मेरा ज़िक्रे ख़ैर और बाद में आने वाली नस्लों में मेरा ज़िक्र रोज़े अफ़ज़ों बरक़रार रख और साबिकूनल अव्वलून के महल व मक़ाम में मुझे पहुंचा दे और फ़राख़ी नेमत को मुझ पर तमाम कर और उसकी मनफ़अतों का सिलसिला पैहम जारी रख। अपनी नेमतों से मेरे हाथों को भर दे। और अपनी गरां क़द्र बखि़शशों को मेरी तरफ़ बढ़ा दे और जन्नत में जिसे तूने अपने बरगुज़ीदा बन्दों के लिये सजाया है मुझे अपने पाकीज़ा दोस्तों का हमसाया क़रार दे और उन जगहों में जिन्हें अपने दोस्तदारों के लिये मुहय्या किया है , मुझे उम्दा व नफ़ीस अतियों के ख़लअत ओढ़ा दे और मेरे लिये वह आरामगाह के जहां मैं इत्मीनान से बेखटके रहूं और वह मन्ज़िल के जहां मैं ठहरूं और वह मन्ज़िल के जहां मैं ठहरूं और अपनी आंखों को ठण्डा करूं , अपने नज़दीक क़रार दे। और मुझे मेरे अज़ीम गुनाहों के लेहाज़ से सज़ा न देना और जिस दिन दिलों के भेद जांचे जाएंगे , मुझे हलाक न करना हर शक व शुबह को मुझसे दूर कर दे और मेरे लिये हर सिम्त से हक़ पहुंचने की राह पैदा कर दे और अपनी अता व बख़्शिश के हिस्से मेरे लिये ज़्यादा कर दे और अपने फ़ज़्ल से नेकी व एहसान से हिज़ फ़रावां अता कर। और अपने हां की चीज़ों पर मेरा दिल मुतमईन और अपने कामों के लिये मेरी फ़िक्र को यक सू कर दे और मुझसे वही काम ले जो अपने मख़सूस बन्दों से लेता है। और जब अक़्लें ग़फ़लत में पड़ जाएं उस वक़्त मेरे दिल में इताअत का वलवला समो दे और मेेरे लिये तवंगरी , पाक दामनी , आसाइश , सलामती , तन्दरूस्ती , फ़िराख़ी , इत्मीनान और आफ़ियत को जमा कर दे और मेरी नेकियों को गुनाहों की आमेज़िश की वजह से और मेरी तन्हाइयों को उन मफ़सदों के बाएस जो अज़ राहे इम्तेहान पेश आते हैं , तबाह न कर , और अहले आलम में से किसी एक के आगे हाथ फैलाने से मेरी इज़्ज़त व आबरू को बचाए रख और उन चीज़ों की तलब व ख़्वाहिश से जो बद किरदारों के पास हैं मुझे रोक दे और मुझे ज़ालिमों का पुश्त पनाह न बना और न (एहकामे) किताब के महो करने पर उनका नासिर व मददगार क़रार दे और मेरी उस तरह निगेहदाश्त कर के मुझे ख़बर भी न होने पाए ऐसी निगेहदाश्त के जिसके ज़रिये तू मुझे (हलाकत व तबाही) से बचा ले जाए और मेरे लिये तौबा व रहमत , लुत्फ़ व राफ़त और कुशादा रोज़ी के दरवाज़े खोल दे। इसलिये के मैं तेरी जानिब रग़बत व ख़्वाहिश करने वालों में से हूं , और मेरे लिये अपनी नेमतों को पायाए तकमील तक पहुंचा दे इसलिये के इन्आम व बख़्शिश करने वालों में सबसे बेहतर है और मेरी बक़िया उम्र को हज व उमरा और अपनी रज़ाजोई के लिये क़रार दे ऐ तमाम जहानों के पालने वाले! रहमत करे अल्लाह तआला मोहम्मद (स 0) और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ 0) पर और उन पर और उनकी औलाद पर हमेशा हमेशा दुरूद व सलाम हो।
अढ़तालीसवीं दुआ
ईदुल अज़हा और रोज़े जुमा की दुआ
बारे इलाहा! यह मुबारक व मसऊद दिन है जिसमें मुसलमान मामूरा ज़मीन के हर गोशे में मुज्तमअ हैं। उनमें साएल भी हैं और तलबगार भी। मुलतजी भी हैं और ख़ौफ़ज़दा भी वह सब ही तेरी बारगाह में हाज़िर हैं और तू ही उनकी हाजतों पर निगाह रखने वाला है। लेहाज़ा तेरे जूद व करम को देखते हुए और इस ख़याल से के मेरी हाजत बरआरी तेरे लिये आसान है तुझसे सवाल करता हूं के तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर। ऐ अल्लाह! ऐ हम सबके परवरदिगार! जबके तेरे ही लिये बादशाही और तेरे ही लिये हम्द व सताइश है और कोई माबूद नहीं तेरे अलावा , जो बुर्दबार , करीम , मेहरबानी करने वाला , नेमत बख़्शने वाला , बुज़ुर्गी व अज़मत वाला और ज़मीन व आसमान का पैदा करने वाला। तो मैं तुझसे सवाल करता हूं के जब भी तू अपने ईमान वाले बन्दों में नेकी या आफ़ियत या ख़ैर व बरकत या अपनी इताअत पर अमल पैरा होने की तौफ़ीक़ तक़सीम फ़रमाए या ऐसी भलाई जिससे तू उन पर एहसान करे और उन्हें अपनी तरफ़ रहनुमाई फ़रमाए या अपने हां उनका दरजा बलन्द करे या दुनिया व आख़ेरत की भलाई में से कोई भलाई उन्हें अता करे तो इसमें मेरा हिस्सा व नसीब फ़रावां कर। ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये जहांदारी और तेरे ही लिये हम्द व सताइश है और कोई माबूद नहीं तेरे सिवा। लेहाज़ा मैं तुझसे सवाल करता हूं के तू रहमत नाज़िल फ़रमा अपने अब्द , रसूल (स 0), हबीब , मुन्तख़ब और बरगुज़ीदा ख़लाएक़ मोहम्मद (स 0) पर और उनके अहलेबैत (अ 0) पर जो नेकोकार , पाक व पाकीज़ा और बेहतरीन ख़ल्क़ हैं। ऐसी रहमत जिसके शुमार पर तेरे अलावा कोई क़ादिर न हो और आज के दिन तेरे ईमान लाने वाले बन्दों में से जो भी तुझसे कोई नेक दुआ मांगे तो हमें उसमें शरीक कर दे ऐ तमाम जहानों के परवरदिगार , और हमें और उन सबको बख़्श दे इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ादिर है।
ऐ अल्लाह! मैं अपनी हाजतें तेरी तरफ़ लाया हूं और अपने फ़क्ऱ व फ़ाक़ा व एहतियाज का बारे गरां तेरे दर पर ला उतारा है और मैं अपने अमल से कहीं ज़्यादा तेरी आमरज़िश व रहमत पर मुतमईन हूं और बेशक तेरी मग़फ़ेरत व रहमत का दामन मेरे गुनाहों से कहीं ज़्यादा वसीअ है। लेहाज़ा तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी हर हाजत तू ही बर ला। अपनी उस क़ुदरत की बदौलत जो तुझे उस पर हासिल है और यह तेरे लिये सहल व आसान है और इस लिये के मैं तेरा मोहताज और तू मुझसे बे नियाज़ है। और इसलिये के मैं किसी भलाई को हासिल नहीं कर सकता मगर तेरी जानिब से और तेरे सिवा कोई मुझ से दुख दर्द दूर नहीं कर सका। और मैं दुनिया व आख़ेरत के कामों में तेरे अलावा किसी से उम्मीद नहीं रखता।
ऐ अल्लाह! जो कोई सिला व अता की उम्मीद और बख़्शिश व इनआम की ख़्वाहिश लेकर किसी मख़लूक़ के पास जाने के लिये कमरबस्ता व आमादा और तैयार व मुस्तअद हो तो ऐ मेरे मौला व आक़ा! आज के दिन मेरी आमादगी व तैयारी और सरो सामान की फ़राहेमी व मुस्तअदी तेरे अफ़ो व अता की उम्मीद और बख़्शिश व इनआम की तलब के लिये है। लेहाज़ा ऐ मेरे माबूद! तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आज के दिन मेरी उम्मीदों में मुझे नाकाम न कर। ऐ वह जो मांगने वाले के हाथों तंग नहीं होता और न बख़्शिश व अता से जिसके हां कमी होती है। मैं अपने किसी अमले ख़ैर पर जिसे आगे भेजा हो और सिवाए मोहम्मद (स 0) और उनके अहलेबैत सलवातुल्लाह अलैह व अलैहिम की शिफ़ाअत के किसी मख़लूक़ की सिफ़ारिश पर जिसकी उम्मीद रखी हो इत्मीनान करते हुए तेरी बारगाह में हाज़िर नहीं हुआ। मैं तो अपने गुनह और अपने हक़ में बुराई का इक़रार करते हुए तेरे पास हाज़िर हुआ हूं। दरआंहालियाके मैं तेरे इस अफ़वे अज़ीम का उम्मीदवार हूं जिसके ज़रिये तूने ख़ताकारों को बख़्श दिया। फिर यह के उनका बड़े बड़े गुनाहों पर अरसे तक जमे रहना तुझे उन पर मग़फ़ैरत व रहमत की अहसान फ़रमाई से मानेअ न हुआ। ऐ वह जिसकी रहमत वसीअ और अफ़ो व बख़्शिश अज़ीम है , ऐ बुज़ुर्ग! ऐ अज़ीम!! ऐ बख़शन्दा! ऐ करीम!! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी रहमत से मुझ पर एहसान और अपने फ़ज़्ल व करम के ज़रिये मुझ पर मेहरबानी फ़रमा और मेरे हक़ में दामने मग़फ़ेरत को वसीअ कर। बारे इलाहा! यह मक़ाम (ख़ुत्बा व इमामते नमाज़े जुमा) तेरे जानशीनों और बरगुज़ीदा बन्दों के लिये था और तेरे अमानतदारों का महल था दरआंहालियाके तूने इस बलन्द मन्सब के साथ उन्हें मख़सूस किया था। (ग़स्ब करने वालों ने) उसे छीन लिया। और तू ही रोज़े अज़ल से उस चीज़ का मुक़द्दर करने वाला है। न तेरा अम्रो फ़रमान मग़लूब हो सकता है और न तेरी क़तई तदबीर (क़ज़ा व क़द्र) से जिस तरह तूने चाहा हो और जिस वक़्त चाहा हो तजावुज़ मुमकिन है। इस मसलेहत की वजह से जिसे तू ही बेहतर जानता है। बहरहाल तेरी तक़दीर और तेरे इरादे व मशीयत की निस्बत तुझ पर इल्ज़ाम आयद नहीं हो सकता। यहां तक के (इस ग़स्ब के नतीजे में) तेरे बरगुज़ीदा और जानशीन मग़लूब व मक़हूर हो गए , और उनका हक़ उनके हाथ से जाता रहा। वह देख रहे हैं के तेरे एहकाम बदल दिये गए। तेरी किताब पसे पुश्त डाल दी गयी। तेरे फ़राएज़ व वाजेबात तेरे वाज़ेह मक़ासिद से हटा दिये गये और तेरे नबी (स 0) के तौर व तरीक़े मतरूक हो गए। बारे इलाहा! तू इन बरगुज़ीदा बन्दों के अगले और पिछले दुश्मनों पर और उन पर जो उन दुश्मनों के अमल व किरदार पर राज़ी व ख़ुशनूद हों और जो उनके ताबेअ और पैरोकार हों लानत फ़रमा।
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा ‘‘बेशक तू क़ाबिले हम्द व सना बुज़ुर्गी वाला है। ’’ जैसी रहमतें बरकतें और सलाम तूने अपने मुन्तख़ब व बरगुज़ीदा इबराहीम (अ 0) और आले इबराहीम पर नाज़िल किये हैं और उन के लिये कशाइश राहत , नुसरत , ग़लबा और ताईद में ताजील फ़रमा। बारे इलाहा! मुझे तौहीद का अक़ीदा रखने वालों , तुझ पर ईमान लाने वालों और तेरे रसूल (स 0) और आईम्मा (अ 0) की तस्दीक़ करने वालों में से क़रार दे जिनकी इताअत को तूने वाजिब किया है। इन लोगों में से जिनके वसीले और जिनके हाथों से (तौहीद , ईमान और तस्दीक़) यह सब चीज़ें जारी करें। मेरी दुआ को क़ुबूल फ़रमा ऐ तमाम जहानों के परवरदिगार! बारे इलाहा! तेरे हिल्म के सिवा कोई चीज़ तेरे ग़ज़ब को टाल नहीं सकती और तेरे अफ़ो व दरगुज़र के सिवा कोई चीज़ तेरी नाराज़गी को पलटा नहीं सकती और तेरी रहमत के सिवा कोई चीज़ तेरे अज़ाब से पनाह नहीं दे सकती और तेरी बारगाह में गिड़गिड़ाहट के अलावा कोई चीज़ तुझसे रिहाई नहीं दे सकती है। लेहाज़ा तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी इस क़ुदरत से जिससे तू मुर्दों को ज़िन्दा और बन्जर ज़मीनों को शादाब करता है। मुझे अपनी जानिब से ग़मो अन्दोह से छुटकारा दे। बारे इलाहा! जब तक तू मेरी दुआ क़ुबूल न फ़रमाए और उसकी क़ुबूलियत से आगाह न कर दे मुझे ग़म व अन्दोह से हलाक न करना , और ज़िन्दगी के आख़री लम्हों तक मुझे सेहत व आफ़ियत की लज़्ज़त से शाद काम रखना। और दुश्मनों को (मेरी हालत पर) ख़ुश होने और मेरी गर्दन पर सवार और मुझ पर मुसल्लत होने का मौक़ा न देना। बारे इलाहा! अगर तू मुझे बलन्द करे तो कौन पस्त कर सकता है और तू पस्त करे तो कौन बलन्द कर सकता है और तू इज़्ज़त बख़्शे तो कौन ज़लील कर सकता है , और तू ज़लील करे तो कौन इज़्ज़त दे सकता है। और तू मुझ पर अज़ाब करे तो कौन मुझ पर तरस खा सकता है और अगर तू हलाक करे तो कौन तेरे बन्दे के बारे में तुझ पर मोतरज़ हो सकता है या इसके मुताल्लिक़ तुझसे कुछ पूछ सकता है। और मुझे ख़ूब इल्म है के तेरे फ़ैसले में न ज़ुल्म का शाएबा होता है और न सज़ा देने में जल्दी होती है। जल्दी तो वह करता है जिसे मौक़े के हाथ से निकल जाने का अन्देशा हो और ज़ुल्म की उसे हाजत होती है जो कमज़ोर व नातवां हो , और तू ऐ मेरे माबूद! इन चीज़ों से बहुत बलन्द व बरतर है। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे बलाओं का निशाना और अपनी उक़ूबतों का हदफ़ न क़रार दे , मुझे मोहलत दे और मेरे रंज व ग़म को दूर कर , मेरी लग़्िज़शों को माफ़ कर दे और मुझे एक मुसीबत के बाद दूसरी मुसीबत में मुब्तिला न कर , क्योंके तू मेरी नातवानी , बेचारगी और अपने हुज़ूर मेरी गिड़गिड़ाहट को देख रहा है। बारे इलाहा! मैं आज के दिन तेरे ग़ज़ब से तेरे ही दामन में पनाह मांगता हूं। तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे पनाह दे और मैं आज के दिन तेरी नाराज़गी से अमान चाहता हूं। तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे अमान दे और तेरे अज़ाब से अमन तलबगार हूं। तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझे (अज़ाब से) मुतमईन कर दे। और तुझसे हिदायत का ख़्वास्तगार हूं , तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझे हिदायत फ़रमा। और तुझसे मदद चाहता हूं। तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मेरी मदद फ़रमा। और तुझसे रहम की दरख़्वास्त करता हूं , तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझ पर रहम कर। और तुझसे बेनियाज़ी का सवाल करता हूं , तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझे बेनियाज़ कर दे और तुझसे रोज़ी का सवाल करता हूं , तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझे रोज़ी दे , और तुझसे कमंग का तालिब हूं तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मेरी कमंग फ़रमा। और गुज़िश्ता गुनाहों की आमर्ज़िश का ख़्वास्तगार हूं तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझे बख़्श दे , और तुझसे (गुनाहों के बारे में) बचाव का ख़्वाहा हूं , तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और मुझे (गुनाहों से) बचाए रख। इसलिये के अगर तेरी मशीयत शामिले हाल रही तो किसी ऐसी काम का जिसे तू मुझसे नापसन्द करता हो , मुरतकिब न हूंगा , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार! ऐ मेहरबान , ऐ नेमतों के बख़्शने वाले ऐ जलालत व बुज़ुर्गी के मालिक तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर और जो कुछ मैंने मांगा और जो कुछ तलब किया है और जिन चीज़ों के हुसूल के लिये तेरी बारगाह का रूख़ किया है। उनसे अपना इरादा , हुक्म और फैसला मुताल्लिक़ कर और उन्हें जारी कर दे। और जो भी फ़ैसले करे उसमें मेरे लिये भलाई क़रार दे और मुझे उसमें बरकत अता कर और इसके ज़रिये मुझ पर एहसान फ़रमा और जो अता फ़रमाए उसके वसीले से मुझे ख़ुशबख़्त बना दे और मेरे लिये अपने फ़ज़्ल व कशाइश को जो तेरे पास है , ज़्यादा कर दे इसलिये के तू तवंगर व करीम है। और इसका सिलसिला आख़ेरत की ख़ैर व नेकी और वहां की नेमते फ़रावां से मिला दे। ऐ तमाम रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले।
उनचासवीं दुआ
दुश्मनों के मक्रो फ़रेब के दफ़ीया और उनकी शिद्दत व सख़्ती को दूर करने के लिये हज़रत की दुआ
ऐ मेरे माबूद! तूने मेरी रहनुमाई की मगर मैं ग़ाफ़िल रहा , तूने पन्द व नसीहत की मगर मैं सख़्तदिली के बाएस मुतास्सिर न हुआ। तूने मुझे उमदा नेमतें बख़्शीं , मगर मैंने नाफ़रमानी की। फिर यह के जिन गुनाहों से तूने मेरा रूख़ मोड़ा जबके तूने मुझे इसकी मारेफ़त अता की तो मैं ने (गुनाहों की बुराई को) पहचानकर तौबा व अस्तग़फ़ार की जिस पर तूने मुझे माफ़ कर दिया और फिर गुनाहों का मुरतकिब हुआ तो तूने पर्दापोशी से काम लिया ऐ मेरे माबूद! तेरे ही लिये हम्द व सना है। मैं हलाकत की वादियों में फान्दा और तबाही व बरबादी की घाटियों में उतरा। इन हलाकतख़ेज़ घाटियों में तेरी क़हर मानी सख़्तगीरियों और उनमें वर आने से तेरी उक़ूबतों का सामना किया तेरी बारगाह में मेरा ववसीला तेरी वहदत वव यकताई का इक़रार है। और मेरा ज़रिया सिर्फ़ यह है के मैंने किसी चीज़ को तेरा शरीक नहीं जाना और तेरे साथ किसी को माबूद नहीं ठहराया। और मैं अपनी जान को लिये तेरी रहमत व मग़फ़ेरत की जानिब गुरीज़ां हूं। और एक गुनहगार तेरी ही तरफ़ भागकर आता है और एक इल्तेजा करने वाला जो अपने ख़त व नसीब को ज़ाया कर चुका हो तेरे ही दामन में पनाह लेता है कितने ही ऐसे दुश्मन थे जिन्होंने शमशीरे अदावत को मुझ पर बेनियाम किया और मेरे लिये अपनी छुरी की धार को बारीक और अपनी तन्दी व सख़्ती की बाड़ को तेज़ किया और पानी में मेरे लिये मोहलक ज़हरों की आमेज़िश की और कमानों में तीरों को जोड़ कर मुझे निशाने की ज़द पर रख लिया और उनकी तआक़ुब करने वाली निगाहें मुझसे ज़रा ग़ाफ़िल न हुईं और दिल में मेरी ईन्दारसानी के मन्सूबे बान्धने और तल्ख़ जरओं की तल्ख़ी से मुझे पैहम तल्ख़ काम बनाते रहे। तो ऐ मेरे माबूद! इन रन्ज व आलाम की बरदाश्त से मेरी कमज़ोरी और मुझसे आमादा पैकार होने वालों के मुक़ाबले में इन्तेक़ाम से मेरी आजिज़ी और कसीरूततादाद दुश्मनों और ईन्दारसानी के लिये घात लगाने वालों के मुक़ाबले में मेरी तन्हाई तेरी नज़र में थी जिसकी तरफ़ से मैं ग़ाफ़िल और बेफ़िक्र था के तूने मेरी मदद में पहल और अपनी क़ूवत और ताक़त से मेरी कमर मज़बूत की। फिर यह के इसकी तेज़ी को तोड़ दिया और उसके कसीर साथियों (को मुन्तशिर करने) के बाद उसे यको तन्हा कर दिया और मुझे उस पर ग़लबा व सरबलन्दी अता की और जो तीर उसने अपनी कमान में जोड़े थे वह उसी की तरफ़ पलटा दिये। चुनांचे इस हालत में तूने उसे पलटा दिया के न तो वह अपना ग़ुस्सा ठण्डा कर सका और न उसके दिल की पेश फ़रो हो सकी , उसने अपनी बोटियां काटीं और पीठ फिराकर चला गयाा और उसके लश्करवालों ने भी इसे दुनिया दी और कितने ही ऐसे सितमगर थे जिन्होंने अपने मक्रो फ़रेब से मुझ पर ज़ुल्म व तादी की और अपने शिकार के जाल मेरे लिये बिछाए और अपनी निगाहे जुस्तजू का मुझ पर पहरा लगा दिया और इस तरह घात लगाकर बैठ गए जिस तरह दरन्दह अपने शिकार के इन्तेज़ार में मौक़े की ताक में घात लगाकर बैठता है। दरआंहालिया के वह मेरे सामने ख़ुशामदाना तौर पर ख़न्दह पेशानी से पेश आते और (दर पर्दा) इन्तेहाई कीनातोज़ नज़रों से मुझे देखते तो जब ऐ ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर उनकी बद बातेनी व बदसरिश्ती को देखा तो उन्हें सर के बल उन्हीं के गढ़े में उलट दिया और उन्हें उन्हीं के ग़ार के गहराव में फेंक दिया , और जिस हाल में मुझे गिरफ्तार देखना चाहते थे ख़ुद ही ग़ुरूर व सरबलन्दी का मुज़ाहेरा करने के बाद ज़लील होकर उसके फन्दों में जा पड़े अैर सच तो यह है के अगर तेरी रहमत शरीके हाल न होती तो क्या बईद था के जो बला व मुसीबत उन पर टूट पड़ी है वह मुझ पर टूट पड़ती और कितने ही ऐसे हासिद थे जिन्हें मेरी वजह से ग़म व ग़ुस्से के उच्छू और ग़ैज़ व ग़ज़ब के गुलूगीर फन्दे लगे और अपनी तेज़ ज़बानी से मुझे अज़ीयत देते रहे और अपने उयूब के साथ मुझे मोतहिम करके तैश दिलाते रहे और मेरी आबरू को अपने तीरों का निशाना बनाया और जिन बुरी आदतों में वह ख़ुद हमेशा मुब्तिला रहे वह मेरे सर मण्ढ दें और अपनी फ़रेबकारियों से मुझे मुश्तअल करते और अपनी दग़ाबाज़ियों के साथ मेरी तरफ़ पर तोलते रहे तो मैंने ऐ मेरे अल्लाह तुझसे फ़रयादरसी चाहते हुए और तेरी जल्द हाजत रवाई पर भरोसा करते हुए तुझे पुकारा दरआंहालिया के यह जानता था के जो तेरे सायाए हिमायत में पनाह लेगा वह शिकस्त ख़ोरदा न होगा और जो तेरे इन्तेक़ाम की पनाहगाहे मोहकम में पनाहगुज़ीं होगा , वह हरासां नहीं होगा , चुनांचे तूने अपनी क़ुदरत से उनकी शिद्दत व शर अंगेज़ी से मुझे महफ़ूज़ कर दिया और कितने ही मुसीबतों के अब्र (जो मेरे अफ़क़े ज़िन्दगी पर छाए हुए) थे तूने छांट दिये और कितने ही नेमतों के बादल बरसा दिये और कितनी ही रहमत की नहरें बहा दीं और कितने ही सेहत व आफ़ियत के जामे पहन दिये , और कितनी ही आलाम व हवादिस की आंखें (जो मेरी तरफ़ निगरान थीं) तूने बेनूर कर दीं और कितने ही ग़मों के तारीक पर्दे (मेरे दिल पर से) उठा दिये और कितने ही अच्छे गुमानें को तूने सच कर दिया और कितने ही तही वसीयतों का तूने चारा किया और कितनी ही ठोकरों को तूने संभाला और कितनी ही नादारियों को तूने (सरवत से) बदल दिया। (बारे इलाहा! ) यह सब तेरी तरफ़ से इनआम व एहसान है और मैं इन तमाम वाक़ेयात के बावजूद तेरी मासीयतों में हमहतन मुनहमिक रहा। (लेकिन) मेरी बदआमालियों ने तुझे अपने एहसानात की तकमील से रोका नहीं और न तेरा फ़ज़्ल व एहसान मुझे उन कामों से जो तेरी नाराज़गी का बाएस हैं बाज़ रख सका और जो कुछ तू करे उसकी बाबत तुझसे पूछगछ नहीं हो सकती। तेरी ज़ात की क़सम! जब भी तुझसे मांगा गया तूने अता किया और जब न मांगा गया तो तूने अज़ख़ुद दिया। और जब तेरे फ़ज़्ल व करम के लिये झोली फैलाई गई तो तूने बुख़ल से काम नहीं लिया। ऐ मेरे मौला व आक़ा! तूने कभी एहसान व बख़्शिश और तफ़ज़्ज़ुल व इनआम से दरीग़ नहीं किया और मैं तेरे मोहर्रमात में फान्दता तेरे हुदूद व एहकाम से मुतजाविज़ होता और तेरी तहदीद व सरज़न्श से हमेशा ग़फ़लत करता रहा। ऐ मेरे माबूद! तेरे ही लिये हम्द व सताइश है जो ऐसा साहबे इक़्तेदार है जो मग़लूब नहीं हो सकता। और ऐसा बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता। यह उस शख़्स का मौक़फ़ है जिसने तेरी नेमतों की फ़रावानी का एतराफ़ किया है और उन नेमतों के मुक़ाबले में कोताही की है और अपने खि़लाफ़ अपनी ज़ियांकारी की गवाही दी है। ऐ मेरे माबूद! मैं मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम) की मन्ज़िलत बलन्द पाया और अली (अलैहिस्सलाम) के मरतबए रौशन व दरख़्शां के वास्ते से तुझसे तक़र्रूब का ख़्वास्तगार हूं और उन दोनों के वसीली से तेरी तरफ़ मुतवज्जो हूं। ताके मुझे उन चीज़ों की बुराई से पनाह दे जिनसे पनाह तलब की जाती है। इसलिये के यह तेरी तवंगरी व वुसअत के मुक़ाबले में दुश्वार और तेरी क़ुदरत के आगे कोई मुश्किल काम नहीं है और तू हर चीज़ पर क़ादिर है। लेहाज़ा तू अपनी रहमत और दाएमी तौफ़ीक़ से मुझे बहरामन्द फ़रमा के जिसे ज़ीना क़रार देकर तेरी रज़ामन्दी की सतह पर बलन्द हो सकूं और उसके ज़रिये तेरे अज़ाब से महफ़ूज़ रहूं। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे बढ़कर रहम करने वाले।
पचासवीं दुआ
ख़ौफ़े ख़ुदा के सिलसिले में हज़रत की दुआ
बारे इलाहा! तूने मुझे इस तरह पैदा किया के मेरा आज़ा बिल्कुल सही व सालिम थे , और जब कमसिन था , तो मेरी परवरिश का सामान किया और बे रन्ज व काविश रिज़्क़ दिया। बारे इलाहा! तूने जिस किताब को नाज़िल किया और जिसके ज़रिये अपने बन्दों को नवेद व बशारत दी , उसमें तेरे इस इरशाद को देखा है के ‘‘ऐ मेरे बन्दों! जिन्होंने अपनी जानों पर ज़्यादती की है , तुम अल्लाह तआला की रहमत से ना उम्मीद न होना। यक़ीनन अल्लाह तुम्हारे तमाम गुनाह मुआफ़ कर देगा ’’ इससे पेशतर मुझसे ऐसे गुनाह सरज़द हो चुके हैं जिनसे तू वाक़िफ़ है और जिन्हें तू मुझसे ज़्यादा जानता है। वाए बदबख़्ती व रूसवाई उन गुनाहों के हाथों जिन्हें तेरी किताब क़लमबन्द किये हुए है अगर तेरे हमहगीर अफ़ो व दरगुज़र के वह मवाक़ेअ न होते जिनका मैं उम्मीदवार हूं तो मैं अपने हाथों अपनी हलाकत का सामान कर चुका था। अगर कोई एक भी अपने परवरदिगार से निकल भागने पर क़ादिर होता तो मैं तुझसे भागने का ज़्यादा सज़ावार था। और तू वह है जिससे ज़मीन व आसमान के अन्दर कोई राज़ मख़फ़ी नहीं है मगर यह के तू (क़यामत के दिन) उसे ला हाज़िर करेगा। तू जज़ा देने और हिसाब करने के लिये बहुत काफ़ी है। ऐ अल्लाह! मैं अगर भागना चाहूं तो तू मुझे ढूंढ लेगा , अगर राहे गुरेज़ इख़्तियार करूं , तो तू मुझे पा लेगा। ले देख मैं आजिज़ , ज़लील और शिकस्ता हाल तेरे सामने खड़ा हूं , अगर तू अज़ाब करे तो मैं उसका सज़ावार हूं। ऐ मेरे परवरदिगार! यह तेरी जानिब से ऐन अद्ल है और अगर तू मुआफ़ कर दे तो तेरा अफ़ो व दरगुज़र हमेशा मेरे शामिले हाल रहा है। और तूने सेहत व सलामती के लिबास मुझे पहनाए हैं। बारे इलाहा! मैं तेरे उन पोशीदा नामों के वसीले से और तेरी उस बुज़ुर्गी के वास्ते से जो (जलाल व अज़मत के) पर्दों में मख़फ़ी है तुझसे यह सवाल करता हूं के इस बेताब नफ़्स और बेक़रार हड्डियों के ढांचे पर तरस खा (इसलिये के) जो तेरे सूरज की तपिश को बरदाश्त नहीं कर सकता वह तेरे जहन्नुम की तेज़ी को कैसे बरदाश्त करेगा और जो तेरे बादल की गरज से कांप उठता है तो वह तेरे ग़ज़ब की आवाज़ को कैसे सुन सकता है। लेहाज़ा मेरे हाले ज़ार पर रहम फ़रमा इसलिये के ऐ मेरे माबूद! मैं एक हक़ीर फ़र्द हूं जिसका मरतबा पस्ततर है और मुझ पर अज़ाब करना तेरी सल्तनत में ज़र्रा भर इज़ाफ़ा नहीं कर सकता और अगर मुझे अज़ाब करना तेरी सल्तनत को बढ़ा देता तो मैं तुझसे अज़ाब पर सब्र व शिकेबाई का सवाल करता और यह चाहता के वह इज़ाफ़ा तुझे हासिल हो। लेकिन ऐ मेरे माबूद! तेरी सल्तनत इससे ज़्यादा अज़ीम और इससे ज़्यादा दवाम पज़ीद है के फ़रमांबरदारों की इताअत इसमें कुछ इज़ाफ़ा कर सके या गुनहगारों की मासियत इसमें से कुछ घटा सके। तो फिर ऐ तमाम रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले मुझ पर रहम फ़रमा और ऐ जलाल व बुज़ुर्गी वाले मुझसे दरगुज़र कर और मेरी तौबा क़ुबूल फ़रमा। बेशक तू तौबा क़ुबूल करने वाला और रहम करने वाला है।
इक्यावनवी दुआ
तज़रूअ व फ़रवतनी के सिलसिले में हज़रत (अ 0) की दुआ
ऐ मेरे माबूद! मैं तेरी हम्द व सताइश करता हूं और तू हम्द व सताइश का सज़ावार है इस बात पर के तूने मेरे साथ अच्छा सुलूक किया। मुझ पर अपनी नेमतों का कामिल और अपने अतीयों को फ़रावां किया और इस बात पर के तूने अपनी रहमत के ज़रिये मुझे ज़्यादा से ज़्यादा और अपनी नेमतों को मुझ पर तमाम किया। चुनांचे तूने मुझ पर वह एहसानात किये हैं जिनके शुक्रिया से क़ासिर हूं और अगर तेरे एहसानात मुझ पर न होते और तेरी नेमतें मुझ पर फ़रावां न होतीं तो मैं न अपना हिज्ज़ व नसीब फ़राहम कर सकता था और न नफ़्स की इस्लाह व दुरूस्ती की हद तक पहुंच सकता था लेकिन तूने मेरे हक़ में अपने एहसानात का आग़ाज़ फ़रमाया और मेरे तमाम कामों में मुझे (दूसरों से) बेनियाज़ी अता की। रंज व बला की सख़्ती भी मुझसे हटा दी और जिस हुक्मे क़ज़ा का अन्देशा था उसे मुझसे रोक दिया। ऐ मेरे माबूद! कितनी बलाख़ेज़ मुसीबतें थीं जिन्हें तूने मुझसे दूर कर दिया और कितनी ही कामिल नेमतें थीं जिनसे तूने मेरी आंखों की ख़नकी व सरवर का सामान किया और कितने ही तूने मुझ पर बढ़े एहसानात फ़रमाए हैं। तू वह है जिसने हालते इज़्तेरार में दुआ क़ुबूल की और (गुनाहों में) गिरने के मौक़े पर मेरी लग़्िज़श से दरगुज़र किया और दुश्मनों से मेरे ज़ुल्म व सितम से छने हुए हक़ को ले लिया। बारे इलाहा! मैंने जब भी तुझसे सवाल किया तुझे बख़ील और जब भी तेरी बारगाह का क़स्द किया तुझे रन्जीदा नहीं पाया। बल्कि तुझे अपनी दुआ की निस्बत सुनने वाला और अपने मक़ासिद का बर लाने वाला ही पाया। और मैंने अपने अहवाल में से हर हाल में और अपने ज़मानाए (हयात) के हर लम्हे में तेरी नेमतों को अपने लिये फ़रावां पाया। लेहाज़ा तू मेरे नज़दीक क़ाबिले तारीफ़ और तेरा एहसान लाएक़े शुक्रिया है। मेरा जिस्म (अमलन) मेरी ज़बान (क़ौलन) और मेरी अक़्ल (एतेक़ादन) तेरी हम्द व सिपास करती है। ऐसी हम्द जो हद्दे कमाल और इन्तेहाए शुक्र पर फ़ाएज़ हो। ऐसी हम्द जो मेरे लिये तेरी ख़ुशनूदी के बराबर हो। लेहाज़ा मुझे अपनी नाराज़गी से बचा। ऐ मेरे पनाहगाह जबके (मुतज़र्क़) रास्ते मुझे ख़स्ता व परेशान कर दें। ऐ मेरी लग़्िज़शों के माफ़ करने वाले अगर तू मेरी पर्दापोशी न करता तो मैं यक़ीनन रूसवा होने वालों में से होता। ऐ अपनी मदद से मुझे तक़वीयत देने वाले अगर तेरी मदद शरीके हाल न होती तो मैं मग़ावब व शिकस्त ख़ोरदा लोगों में से होता। ऐ वह जिसकी बारगाह में शाहों ने ज़िल्लत व ख़्वारी का जोवा अपनी गर्दन में डाल लिया है और वह उसके ग़लबे व इक़्तेदार से ख़ौफ़ज़दा हैं। ऐ वह जो तक़वा का सज़ावार है ऐ वह के हुस्न व ख़ूबी वाले नाम बस उसी के लिये हैं , मैं तुझसे ख़्वास्तगार हूं के मुझसे दरगुज़र फ़रमा और मुझे बख़्श दे , क्योंके मैं बेगुनाह नहीं हूं के उज़्र ख़्वाही करूं और न ताक़तवर हूं के ग़लबा पा सकूं और न गुरेज़ की कोई जगह है के भाग सकूं। मैं तुझसे अपनी लग्ज़िशों की माफ़ी चाहता हूं और उन गुनाहों से जिन्होंने मुझे हलाक कर दिया है और मुझे इस तरह घेर लिया है के मुझे तबाह कर दिया है , तौबा व माज़ेरत करता हूं मैं ऐ मेरे परवरदिगार! उन गुनाहों से तौबा करते हुए तेरी तरफ़ भाग खड़ा हूं तो अब मेरी तौबा क़ुबूल फ़रमा , तुझसे पनाह चाहता हूं। मुझे पनाह दे , तुझसे अमान मांगता हूं मुझे ख़्वार न कर तुझसे सवाल करता हूं मुझे महरूम न कर , तेरे दामन से वाबस्ता हूं मुझे मेरे हाल पर छोड़ न दे , और तुझसे दुआ मांगता हूं लेहाज़ा मुझे नाकाम न फेर। ऐ मेरे परवरदिगार! मैंने ऐसे हाल में के मैं बिल्कुल मिस्कीन आजिज़ , ख़ौफ़ज़दा , तरसां , हरासां , बेसरो सामान और लाचार हूं , तुझे पुकारा है। ऐ मेरे माबूद! मैं इस अज्र व सवाब की जानिब जिसका तूने अपने दोस्तों से वादा किया है जल्दी करने और उस अज़ाब से जिससे तूने अपने दुश्मनों को डराया है दूरी इख़्तियार करने से अपनी कमज़ोरी और नातवानी का गिला करता हूं तेज़ अफ़कार की ज़ियादती और नफ़्स की परेशान ख़याली का शिकवा करता हूं। ऐ मेरे माबूद! तू मेरी बातेनी हालत की वजह से मुझे रूसवा न करना। और मेरे गुनाहों के बाएस मुझे तबाह व बरबाद न होने देना। मैं तुझे पुकारता हूं तो तू मुझे जवाब देता है और जब तू मुझे बुलाता है तो मैं सुस्ती करता हूं और मैं जो हाजत रखता हूं तुझसे तलब करता हूं और जहां कहीं होता हूं अपने राज़े दिली तेरे सामने आश्कारा करता हूं और तेरे सिवा किसी को नहीं पुकारता और न तेरे अलावा किसी से आस रखता हूं। हाज़िर हूं! मैं हाज़िर हूं! जो तुझसे शिकवा करे तू उसका शिकवा सुनता है और जो तुझ पर भरोसा करे उसकी तरफ़ मुतवज्जो होता है। और जो तेरा दामन थाम ले उसे (ग़म व फ़िक्र) से रेहाई देता है। और जो तुझसे पनाह चाहे उससे ग़म व अन्दोह को दूर कर देता है। ऐ मेरे माबूद! मेरे नाशुक्रेपन की वजह से मुझे दुनिया व आख़ेरत की भलाई से महरूम न कर और मेरे जो गुनाह जो तेरे इल्म में हैं बख़्श दे। और अगर तू सज़ा दे तो इसलिये के मैं ही हद से तजावुज़ करने वाला सुस्त क़दम , ज़ियांकार , आसी , तक़सीर पेशा , ग़फ़लत शुआर और अपने हज़ा व नसीब में लापरवाही करने वाला हूं और अगर तू बख़्शे तो इसलिये के तू सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है।
बावनवीं दुआ
अल्लाह तआला से तलब व इलहाह के सिलसिले में हज़रत (अ 0) की दुआ
ऐ वह माबूद जिससे केई चीज़ पोशीदा नहीं है चाहे ज़मीन में हो चाहे आसमान में। और ऐ मेरे माबूद वह चीज़ें जिन्हें तूने पैदा किया है वह तुझसे क्योंकर पोशीदा रह सकती हैं। और जिन चीज़ों को तूने बनाया है उन पर किस तरह तेरा इल्म मोहीत न होगा और जिन चीज़ों की तू तदबीर व कारसाज़ी करता है वह तेरी नज़रों से किस तरह ओझल रह सकती हैं और जिसकी ज़िन्दगी तेरे रिज़्क़ से वाबस्ता हो वह तुझसे क्योंकर राहे गुरेज़ इख़्तेयार कर सकता है या जिसे तेरे मुल्क के अलावा कहीं रास्ता न मिले वह किस तरह तुझसे आज़ाद हो सकता है। पाक है तू , जो तुझे ज़्यादा जानने वाला है वोही सब मख़लूक़ात से ज़्यादा तुझसे डरने वाला है और जो तेरे सामने सरअफ़गन्दह है वही सबसे ज़्यादा तेरे फ़रमान पर कारबन्द है और तेरी नज़रों में सबसे ज़्यादा ज़लील व ख़्वार वह है जिसे तू रोज़ी देता है और वह तेरे अलावा दूसरे की परस्तिश करता है। पाक है तू , जो तेरा शरीक ठहराए और तेरे रसूलों को झुठलाए वह तेरी सल्तनतमें कमी नहीं कर सकता और जो तेरे हुक्मे क़ज़ा व क़द्र को नापसन्द करे वह तेरे फ़रमान को पलटा नहीं सकता। और जो तेरी क़ुदरत का इनकार करे वह तुझसे अपना बचाव नहीं कर सकता और जो तेरे अलावा किसी और की इबादत करे वह तुझसे बच नहीं सकता और जो तेरी मुलाक़ात को नागवार समझे वह दुनिया में ज़िन्दगी जावेद हासिल नहीं कर सकता। पाक है तू , तेरी शान कितनी अज़ीम , तेरा इक़्तेदार कितना ग़ालिब , तेरी क़ूवत कितनी मज़बूत और तेरा फ़रमान कितना नाफ़िज़ है। तू पाक व मुनज़्ज़ह है तूने तमाम ख़ल्क़ के लिये मौत का फ़ैसला किया है। क्या कोई तुझे यकता जाने और क्या कोई तेरा इन्कार करे। सब ही मौत की तल्ख़ी चखने वाले और सब ही तेरी तरफ़ पलटने वाले हैं। तू बा बरकत और बलन्द व बरतर है। कोई माबूद नहीं मगर तू , तू एक अकेला है और तेरा कोई शरीक नहीं है। मैं तुझ पर ईमान लाया हूं , तेरे रसूलों की तस्दीक़ की है। तेरी किताब को माना है , तेरे अलावा हर माबूद का इन्कार किया है और जो तेरे अलावा दूसरे की परस्तिश करे उससे बेज़ारी इख़्तेयार की है। बारे इलाहा! मैं इस आलम में सुबह व शाम करता हूं के अपने आमाल को कम तसव्वुर करता , अपने गुनाहों का एतराफ़ और अपनी ख़ताओं का इक़रार करता हूं , मैं अपने नफ़्स पर ज़ुल्म व ज़्यादती के बाएस ज़लील व ख़्वार हूं। मेरे किरदार ने मुझे हलाक और हवाए नफ़्स ने तबाह कर दिया है और ख़्वाहिशात ने (नेकी व सआदत से) बे बहरा कर दिया है। ऐ मेरे मालिक! मैं तुझसे ऐसे शख़्स की तरह सवाल करता हूं जिसका नफ़्स तूलानी उम्मीदों के बाएस ग़ाफ़िल , जिस्म सेहत व तन आसानी की वजह से बे ख़बर , दिल नेमत की फ़रावानी के सबब ख़्वाहिशों पर वारफ़ता और फ़िक्र अन्जामकार की निस्बत कम हो। मेरा सवाल उस शख़्स के मानिन्द है जिस पर आरज़ूओं ने ग़लबा पा लिया हो। जिसे ख़्वाहिशाते नफ़्स ने वरग़लाया हो , जिस पर दुनिया मुसल्लत हो चुकी हो और जिसके सर पर मौत ने साया डाल दिया हो। मेरा सवाल उस शख़्स के सवाल के मानिन्द है जो अपने गुनाहों को ज़्यादा समझता और अपनी ख़ताओं का एतराफ़ करता हो , मेरा सवाल उस शख़्स का सा सवाल है जिसका तेरे अलावा कोई परवरदिगार और तेरे सिवा कोई वली व सरपरस्त न हो और जिसका तुझसे कोई बचाने वाला और न उसके लिये तुझसे सिवा तेरी तरफ़ रूजू होने के कोई पनाहगाह हो। बारे इलाहा! मैं तेरे उस हक़ के वास्ते से जो तेरे मख़लूक़ात पर लाज़िम व वाजिब है और तेरे उस बुज़ुर्ग नाम के वास्ते से जिसके साथ तूने अपने रसूल (स 0) को तस्बीह करने का हुक्म दिया और तेरी उस ज़ाते बुज़ुर्गवार की बुज़ुर्गी व जलालत के वसीले से के जो न कहनह होती है न मुतग़य्यिर , न तबदील होती है न फ़ना। तुझसे यह सवाल करता हूं के तू मोहम्मद (अ 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे अपनी इबादत के ज़रिये हर चीज़ से बेनियाज़ कर दे। और अपने ख़ौफ़ की वजह से दुनिया से दिल बरदाश्ता बना दे और अपनी रहमत से बख़्शिश व करामत की फ़रावानी के साथ मुझे वापस कर इसलिये के मैं तेरी ही तरफ़ गुरीज़ां और तुझ ही से डरता हूं और तुझ ही से फ़रयादरसी चाहता हूं और तुझ ही से उम्मीद रखता हूं और तुझे ही पुकारता हूं और तुझ ही से पनाह चाहता हूं और तुझ ही पर भरोसा करता हूं और तुझ ही से मदद चाहता हूं और तुझ ही पर ईमान लाया हूं और तुझ ही पर तवक्कल रखता हूं और तेरे ही जूद व करम पर एतमाद करता हूं।
तिरपनवीं दुआ
अल्लाह तआला के हुज़ूर तज़ल्लुल व आजिज़ी के सिलसिले में हज़रत (अ 0) की दुआ
ऐ मेरे परवरदिगार! मेरे गुनाहों ने मुझे (उज़्र ख़्वाही से) चुप कर दिया है , मेरी गुफ़्तगू भी दम तोड़ चुकी है। तो अब मैं कोई उज़्र व हुज्जत नहीं रखता। इस तरह मैं अपने रन्ज व मुसीबत में गिरफ़्तार अपने आमाल के हाथों में गिरवी अपने गुनाहों में हैरान व परेशान , मक़सद से सरगर्दान और मन्ज़िल से दूर उफ़तादा हूँ। मैंने अपने के ज़लील गुनहगारों के मौक़ुफ़ पर ला खड़ा किया है। इन बदबख़्तों के मौक़ुफ़ पर जो तेरे मुक़ाबले में जराएत दिखाने वाले और तेरे वादे को सरसरी समझने वाले हैं , पाक है तेरी ज़ात। मैंने किस जराअत व दिलेरी के साथ तेरे मुक़ाबले में जराअत की है और किस तबाही व बरबादी के साथ अपनी हलाकत का सामान किया है। ऐ मेरे मालिक , मेरे मुंह के बल गिरने और क़दमों के ठोकर खाने पर रहम फ़रमा और अपने हिल्म से मेरी जेहालत व नादानी को और अपने एहसान से मेरी ख़ता व बदआमाली को बख़्श दे इसलिये के मैं अपने गुनाहों का मोक़िर और अपनी ख़ताओं का मोतरफ़ हूं यह मेरा हाथ और यह मेरी पेशानी के बाल (तेरे क़ब्ज़ए क़ुदरत में) हैं। मैंने अज्ज़ व सराफ़गन्दगी के साथ अपने को क़ेसास के लिये पेश कर दिया है। बारे इलाहा! मेरे बुढ़ापे , ज़िन्दगी के दिनों के बीत जाने , मौत के सर पर मण्डलाने और मेरी नातवान , आजिज़ी और बेचारगी पर रहम फ़रमा। ऐ मेरे मालिक , जब दुनिया से मेरा नाम व निशान मिट जाए और लोगों (के दिलों) से मेरी याद महो हो जाए और उन लोगों की तरह जिन्हें भुला दिया जाता है मैं भी भुला दिये जाने वालों में से हो जाऊं तो मुझ पर रहम फ़रमाना। ऐ मेरे मालिक! मेरी सूरत व हालत के बदल जाने के वक़्त जब मेरा जिस्म कोहनहू आज़ा दरहम बरहम और जोड़ व बन्द अलग अलग हो जाएं तो मुझ पर तरस खाना। हाए मेरी ग़फ़लत व बेख़बरी उससे जो अब मेरे लिये चाहा जा रहा है और ऐ मेरे मौला! हश्र व नशरत के हंगाम मुझ पर रहम करना और उस दिन मेरा क़याम अपने दोस्तों के साथ और (मौक़फ़े हिसाब से महले जज़ा की तरफ़) मेरी वापसी अपने दोस्तदारों के हमराह और मेरी मन्ज़िल अपनी हमसायगी में क़रार देना। ऐ तमाम जहानों के परवरदिगार।
चौवनवीं दुआ
ग़म व अन्दोह से निजात हासिल करने के लिये हज़रत (अ 0) की दुआ
इस रन्ज व अन्दोह के बरतरफ़ करने वाले और ग़म व अलम के दूर करने वाले , ऐ दुनिया व आख़ेरत में रहम करने वाले और दोनों जहानों में मेहरबानी फ़रमाने वाले तू मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी बेचैनी को दूर और मेरे ग़म को बरतरफ़ कर दे ऐ अकेले , ऐ यकता! ऐ बेनियाज़! ऐ वह जिसकी कोई औलाद नहीं और न वह किसी की औलाद है और न उसका कोई हमसर है मेरी हिफ़ाज़त फ़रमा और मुझे (गुनाहों से) पाक रख और मेरे रन्ज व अलम को दूर कर दे (इस मुक़ाम पर आयतलकुर्सी , क़ुल आउज़ो बेरब्बिन्नास , क़ुल आउज़ो बेरब्बिल फ़लक़ और क़ुल हो वल्लाहो अहद पढ़ो और यह कहो) बारे इलाहा! मैं तुझसे सवाल करता हूं , उस शख़्स का सवाल जिसकी एहतियाज शदीद क़ूवत व तवानाई ज़ईफ़ और गुनाह फ़रावां हों , उस शख़्स का सा सवाल जिसे अपनी हाजत के मौक़े पर कोई फ़रयादरस , जिसे अपनी कमज़ोरी के आलम में कोई पुश्तपनाह और जिसे तेरे अलावा ऐ जलालत व बुज़ुर्गी वाले। कोई गुनाहों का बख़्शने वाला दस्तयाब न हो। बारे इलाहा! मैं तुझसे इस अमल (की तौफ़ीक़) का सवाल करता हूं के जो उस पर अमलपैरा हो तू उसे दोस्त रखे और ऐसे यक़ीन का के जो उसके ज़रिये तेरे फ़रमाने क़ज़ा पर पूरी तरह मुतयक़्क़न हो तो उसके बाएस तू फ़ाएदा व मनफ़अत पहुंचाए। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे हक़ व सेदाक़त पर मौत दे और दुनिया से मेरी हाजत व ज़रूरत का सिलसिला ख़त्म कर दे और अपनी मुलाक़ात के जज़्बए इश्तियाक़ की बिना पर अपने हां की चीज़ों की तरफ़ मेरी ख़्वाहिश व रग़बत क़रार दे और मुझे अपनी ज़ात पर सही एतमाद व तवक्कल की तौफ़ीक़ अता फ़रमा। मैं तुझसे साबेक़ा नौश्ते तक़दीर की भलाई का तालिब हूं और साबेक़ा सरनौश्ते तक़दीर की बुराई से पनाह मांगता हूं। मैं तेरे इबादतगुज़ार बन्दों के ख़ौफ़ , अज्ज़ व फ़रवतनी करने वालों की इबादत , तवक्कल करने वालों के यक़ीन और ईमानदारों के एतमाद व तवक्कल का तुझसे ख़्वास्तगार हूं। बारे इलाहा! तलब व सवाल में मेरी ख़्वाहिश व रग़बत को ऐसा ही क़रार दे जैसी तलब व सवाल मैं तेरे दोस्तों की तमन्ना व ख़्वाहिश होती है। और मेरे ख़ौफ़ को भी अपनी दोस्तों के ख़ौफ़ के मानिन्द क़रार दे और मुझे अपनी रेज़ा व ख़ुशनूदी में इस तरह बरसरे अमल रख के मैं तेरे मख़लूक़ात में से किसी एक के ख़ौफ़ से तेरे दीन की किसी बात को तर्क न करूं। ऐ अल्लाह! यह मेरी हाजत है इसमें मेरी तवज्जो व रग़बत को अज़ीम कर दे। मेरे उज़्र को आश्कारा कर और उसके बारे में मुझे दलील व हुज्जत की तालीम कर और इसमें मेरे जिस्म को सेहत व सलामती बख़्श। ऐ अल्लाह! जिसे भी तेरे सिवा दूसरे पर भरोसा या उम्मीद हो तो मैं इस आलम में सुबह करता हूं के तमाम उमूर में तू ही एतमाद व उम्मीद का मरकज़ होता है। लेहाज़ा जो उमूर बलेहाज़ अन्जाम बेहतर हों वह मेरे लिये नाफ़िज़ फ़रमा और मुझे अपनी रहमत के वसीले से गुमराह करने वाले फ़ित्नों से छुटकारा दे। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले। और अल्लाह रहमत नाज़िल करे हमारे सययद व सरदार फ़र्सतादहे ख़ुदा मोहम्मद (स 0) मुस्तफ़ा पर और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ 0) पर।
पचपनवीं दुआ
यह वह दुआएं हैं जो सहीफ़ाए कामेला के बाज़ नुस्ख़ों में दर्ज की गई हैं-
मिनजुमला उनके हज़रत (अ 0) की एक दुआ यह है जो तस्बीह व तक़दीस के सिलसिले में
ऐ मेरे माबूद! मैं तेरी तस्बीह करता हूं तू मुझ पर करम बालाए करम फ़रमा। बारे इलाहा! मैं तेरी तस्बीह करता हूं और तू बलन्द व बरतर है। ख़ुदाया! मैं तेरी तस्बीह करता हूं और इज़्ज़त तेरा ही जामअ है। बारे इलाहा! मैं तेरी तस्बीह करता हूं और अज़मत तेरी ही रिदा है। ऐ परवरदिगार! मैं तेरी तस्बीह करता हूं और किबरियाई तेरी दलील व हुज्जत है , पाक है तू ऐ अज़ीम व बरबर तू कितना अज़मत वाला है। पाक है तू ऐ वह के मलाए आला के रहने वालों में तेरी तस्बीह की गयी है जो कुछ तहे ख़ाक है तू उसे सुनता और देखता है। पाक है तेरी ज़ात तू हर राज़दाराना गुफ़्तगू पर मुतलअ है। पाक है तू ऐ वह जो हर रन्ज व शिकवा के पेश करने की जगह है। पाक है तू ऐ वह जो हर इज्तेमाअ में मौजूद है। पाक है तू ऐ वह जिससे बड़ी से बड़ी उम्मीदें बान्धी जाती हैं। पाक है तू जो कुछ पानी की गहराई में है उसे तू देखता है। पाक है तेरी ज़ात तू समन्दरों की गहराइयों में मछलियों के सांस लेने की आवाज़ सुनता है। पाक है तेरी ज़ात तू आसमानों का वज़न जानता है , पाक है तेरी ज़ात तू ज़मीनों के वज़न से बाख़बर है। पाक है तेरी ज़ात तू सूरज और चान्द के वज़न से वाक़िफ़ है। पाक है तेरी ज़ात तू तारीकी और रोशनी के वज़न से आगाह है पाक है तेरी ज़ात तू साया और हवा का वज़न जानता है। पाक है तेरी ज़ात तू हवा के (हर झोंके के) वज़न से आगाह है के वह वज़न में कितने ज़र्रों के बराबर है। पाक है तेरी ज़ात तू (तसव्वुर व ख़याल व वहम में आने से) पाक , मुनज़्ज़ह और बरी है मैं तेरी तस्बीह करता हूं। ताज्जुब है के जिसने तुझे पहचाना वह क्योंकर तुझसे ख़ौफ़ नहीं खाता। ऐ अल्लाह! मैं हम्द व सना के साथ तेरी पाकीज़गी बयान करता हूं। पाक है वह परवरदिगार जो उलू व अज़मत वाला है।
(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
छप्पनवीं दुआ
बुज़ुर्गी व अज़मते इलाही के बयान में हज़रत (अ 0) की दुआ
तमाम तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जो अपनी अज़मत के साथ दिलों पर रोशन व दरख़शां है और अपनी इज़्ज़त के साथ आंखों से पिनहां है। और तमाम चीज़ों पर अपने इक़्तेदार से क़ाबू रखता है। न आंखें उसके दीदार की ताब ला सकती हैं और न अक़्लें उसकी अज़मत की हद तक पहुंच सकती हैं। वह अपनी अज़मत व बुज़ुर्गी के साथ हर चीज़ पर ग़ालिब है और इज़्ज़त व एहसान व जलालत की रिदा ओढ़े हूए है हुस्न व जमाल के साथ नक़ाएस से बुरी है और फ़ख़्रव सरबलन्दी के साथ शरफ़ व बुज़ुर्गी का मालिक है और ख़ैर व बख़्शिश की फ़रावानी और (अताए) नेमात से ख़ुश होता है और नूर व रोशनी के साथ (तमाम आलम से) इम्तियाज़ रखता है। वह ऐसा ख़ालिक़ है जिससका कोई नज़ीर नहीं। वह ऐसा यकता है जिसका कोई मिस्ल नहीं। वह ऐसा यगाना है जिसका कोई मद्दे मुक़ाबिल नहीं। वह ऐसा बेनियाज़ है जिसका कोई हमसर नहीं। वह ख़ुदा जिसका कोई दूसरा नहीं। वह पैदा करने वाला है जिसका कोई शरीकेकार नहीं। वह रिज़्क़ देने वाला है जिसका कोई मददगार नहीं। वह ऐसा अव्वल है जिसे ज़वाल नहीं। वह ऐसा बाक़ी व जावेद है जिसे फ़ना नहीं। वह दाएम व क़ायम है बग़ैर किसी रन्ज व मशक़्क़त के वह अम्न व अमान का बख़्शने वाला है। बगै़र किसी हद व निहायत के वह ईजाद करने वाला है। बगै़र किसी मुद्दत की हदबन्दी के वह सानेअ व मौजूद है। बगै़र किसी एक (की एआनत) के वह परवरदिगार है । बगै़र किसी शरीक के वह पैदा करने वाला है । बगै़र किसी ज़हमत व दुश्वारी के वह काम करने वाला है। बग़ैर अज्ज़ व दरमान्दगी के उसकी कोई हद नहीं। मकान में और न उसकी कोई इन्तेहा है ज़माने में। वह हमेशा से है , हमेशा रहेगा। यूंही हमेशा हमेशा उसे कभी ज़वाल न होगा। वही ख़ुदा है जो ज़िन्दा व क़ायम व दायम , क़दीम क़ादिर और इल्म व हिकमत वाला है। बारे इलाहा! तेरा एक बन्दाए हक़ीर तेरे साहते क़ुद्स में हाज़िर है। तेरा साएल तेरे आस्ताने पर हाज़िर है। तेरा मोहताज व दस्तंगर तेरी बारगाह में हाज़िर है (इन तीनों जुमलों को तीन मरतबा दोहराए) ऐ मेरे अल्लाह (ज 0) तुझ ही से इबादतगुज़ार डरते हैं और तेरे ख़ौफ़ और उम्मीद व अफ़ो व बख़्शिश के पेशे नज़र आजिज़ी से इल्तिजा करने वाले तुझसे लौ लगाते हैं। ऐ सच्चे माबूद! इस्तेग़ासा व फ़रयाद करने वालों की पुकार पर रहम फ़रमा और ग़फ़लत में गिरफ़्तार होने वालों के गुनाहों से दरगुज़र फ़रमा और ऐ करीम अपनी बारगाह में तौबा करने वालों के साथ उस दिन के ज बवह तेरे सामने पेश हों , नेकी और एहसान में इज़ाफ़ा फ़रमा।
सत्तावनवीं दुआ
तज़ल्लुल व आजेज़ी के सिलसिले में हज़रत (अ 0) की दुआ
ऐ मेरे आक़ा ऐ मेरे मालिक! तू आक़ा है , और मैं बन्दा , और बन्दे पर आक़ा के सिवा कौन रहम खाएगा। मेरे मौला , मेरे आक़ा! तू इज़्ज़त वाला है और मैं ज़लील और ज़लील पर इज़्ज़तदार के अलावा और कौन रहम करेगा। मेरे मालिक , मेरे मालिक! तू ख़ालिक़ है और मैं मख़लूक़ और मख़लूक़ पर ख़ालिक़ के सिवा कौन तरस खाएगा। मेरे मौला! मेरे मौला! तू अता करने वाला है और मैं सवाली और साएल पर अता करने वाले के अलावा कौन मेहरबानी करेगा। मेरे आक़ा! मेरे आक़ा तू फ़रयाद रस है और मैं फ़रियादी और फ़रियादी पर फ़रयादरस के अलावा कौन रहम करेगा। मेरे मालिक! मेरे मालिक! तू बाक़ी है और मैं फ़ानी और फ़ानी पर दाएम व जावेद के अलावा कौन रहम करेगा। मेरे मौला! मेरे मौला! तू ज़िन्दा है और मैं मुर्दा और मुर्दा पर ज़िन्दा के सिवा कौन तरस खाएगा। मेरे मालिक मेरे मालिक! तू ताक़तवर है है और मैं कमज़ोर और कमज़ोर पर ताक़तवर के अलावा कौन रहम करेगा। मेरे मौला! मेरे मालिक! तू ग़नी है और मैं तही दस्त। और तही दस्त पर ग़नी के अलावा कौन रहम खाएगा। मेरे आक़ा! मेरे आक़ा! तू बड़ा है और मैं छोटा और छोटे पर बड़े के सिवा कौन नज़रे शफ़क़्क़त करेगा। मेरे मौला! मेरे मौला! तू मालिक है और मैं ग़ुलाम और ग़ुलाम पर मालिक के सिवा कौन मेहरबानी करेगा।
अट्ठावनवीं दुआ
हज़रत (अ 0) की दुआ जो ज़िक्रे आले मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम) पर मुश्तमिल है
ऐ अल्लाह! ऐ वह जिसने मोहम्मद (स 0) और उनकी आल (अ 0) को इज़्ज़त व बुज़ुर्गी के साथ मख़सूस किया और जिन्हें मन्सबे रिसालत अता किया और वसीला बनाकर इम्तियाज़े ख़ास बख़्शा। जिन्हें अम्बिया का वारिस क़रार दिया और जिनके ज़रिये औसिया और आइम्मा का सिलसिला ख़त्म किया। जिन्हें गुज़िश्ता व आइन्दा का इल्म सिखया और लोगों के दिलों को जिनकी तरफ़ माएल किया। बारे इलाहा! मोहम्मद (स 0) और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे साथ दीन , दुनिया और आख़ेरत में वह बरताव कर जिसका तू सज़ावार है। यक़ीनन तू हर चीज़ पर क़ादिर है।
उनसठवीं दुआ
हज़रते आदम (अ 0) पर दुरूदो सलवात के सिलसिले में हज़रत (अ 0) की दुआ
बारे इलाहा! वह आदम (अ 0) जो तेरी आफ़ज़ीन्श के नक़्शे बदीअ और ख़ाक से पैदा होने वालों में तेरी रुबूबीयत के पहले मोतरफ़ और तेरे बन्दों और तेरी मख़लूक़ात पर तेरी पहली हुज्जत और तेरे अज़ाब से तेरे दामने अफ़ो में पनाह मांगने की राह दिखाने वाले और तेरी बारगाह में तौबा की राहें आश्कारा करने वाले और तेरी मारेफ़त और तेरे मख़लूक़ात के दरमियान वसीला बनने वाले हैं। व हके जिन पर ख़ुसूसी करम व एहसान और मेहरबानी करते हुए उन्हें वह तमाम बातें बतला दीं जिनके ज़रिये तू उनसे राज़ी व ख़ुशनूद हुआ व हके जो तौबा व अनाबत करने वाले हैं। जिन्होंने तेरी मासियत पर इसरार नहीं किया। जो तेरे हरम में सर मुन्डवा कर अज्ज़ व फ़रवतनी करने वालों में साबिक़ हैं। वह जो मुख़ालेफ़त के बाद इताअत के वसीले से तेरे अफ़ो व करमम के ख़्वाहिशमन्द हुए और उन तमाम अम्बिया के बाप हैं जिन्होंने तेरी राह में अज़ीयतें उठाईं। और ज़मीन पर बसने वालों में सबसे ज़्यादा तेरी इताअत व बन्दगी में सई व कोशिश करने वाले हैं। उन पर ऐ मेहरबानी करने वाले तू अपनी जानिब से और अपने फ़रिश्तों और ज़मीन व आसमान में बसने वालों की तरफ़ से रहमत नाज़िल फ़रमा। जिस तरह उन्होंने तेरी क़ाबिले एहतेराम चीज़ों की अज़मत मलहूज रखी और तेरी ख़ुशनूदी व रज़ामन्दी की तरफ़ हमारी रहनुमाई की। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।
साठवीं दुआ
कर्ब व मुसीबत से तहफ़्फ़ुज़ और लग़्िज़श व ख़ता से मुआफ़ी के लिये हज़रत (अ 0) की दुआ
ऐ मेरे माबूद! मेरे दुश्मनों के मेरी हालत पर दिल में ख़ुश होने का मौक़ा न दे और मेरी वजह से मेरे किसी मुख़लिस व दोस्त को रन्जीदा ख़ातिर न कर। बारे इलाहा! अपनी नज़रे इनायात में से ऐसी नज़रे तवज्जो मेरे शामिले हाल फ़रमा जिससे तू इन मुसीबतों को मुझसे टाल दे जिनमें मुझे मुब्तिला किया है और उन एहसानात की तरफ़ मुझे पलटा दे जिनका मुझे ख़ूगर बनाया है और मेरी दुआ और हर उस शख़्स की दुआ को जो सिद्क़े नीयत से तुझे पुकारे क़ुबूल फ़रमा। क्योंके मेरी क़ूवत कमज़ोर , चाराजोई की सूरत नापैद , और हालत सख़्त से सख़्त तर हो गई है और जो कुछ तेरे मख़लूक़ात के पास है उससे मैं बिलकुल ना उम्मीद हूं। अब तो तेरी पहली नेमतों के दोबारा हासिल होने में तेरी उम्मीद के अलावा कोई सूरत बाक़ी नहीं रही। ऐ मेरे माबूद! जिन रन्ज व आलाम में गिरफ़्तार हूं उनके छुटकारा दिलाने पर तू ऐसा ही क़ादिर है जैसा उन चीज़ों पर क़ुदरत रखता है जिनमें मुझे मुब्तिला किया है। बेशक तेरे एहसानात की याद मेरा दिल बहलाती और तेरे इनआम व तफ़ज़्ज़ुल की उम्मीद मेरी हिम्मत बन्धाती है। इसलिये के जबसे तूने मुझे पैदा किया है मैं तेरी नेमतों से महरूम नहीं रहा। और तू ही मेरे माबूद! मेरी पनाहगाह , मेरा मुलजा , मेरा मुहाफ़िज़ व पुश्त पनाह , मेरे हाल पर शफ़ीक़ व मेहरबान और मेरे रिज़्क़ का ज़िम्मादार है , जो मुसीबत मुझ पर वारिद हुई है वह तेरे फ़ैसलए क़ज़ा व क़द्र में और जो मेरी मौजूदा हालत है वह तेरे इल्म में गुज़र चुकी थी। तो ऐ मेरे मालिम व सरदार! जिन चीज़ों को तेरे फ़ैसलए क़ज़ा व क़द्र ने मेरे हक़ में तै किया और लाज़िम व ज़रूरी क़रार दिया है उन चीज़ों में से मेरी इताअत और वह चीज़ जिससे मेरी बहबूदी और जिस हालत में हूं उस से रिहाई वाबस्ता है क़रार दे। क्योंके मैं इस मुसीबत के टालने में किसी से उम्मीद नहीं रखता और न इस सिलसिले में तेरे अलावा किसी पर भरोसा करता हूं तो ऐ जलालत व बुज़ुर्गी के मालिक मेरे इस हुस्ने ज़न के मुताबिक़ साबित हो जो मुझे तेरे बारे में है और मेरी कमज़ोरी व बेचारगी पर रहम फ़रमा। मेरी बेचैनी को दूर कर। मेरी दुआ क़ुबूल फ़रमाा। मेरी ख़ता व लग़्िज़श को माफ़ कर दे और मुझ पर और जो कुछ भी तुझसे दुआा मांगे अफ़ो व दरगुज़र करके एहसान फ़रमा। ऐ मेरे मालिक! तूने मुझे दुआ का हुक्म दिया और क़ुबूलियते दुआा का ज़िम्मा लिया , और तेरा वादा ऐसा सच्चा है जिसमें खि़लाफ़वर्ज़ी व तबदीली की गुन्जाइश नहीं है। तू अपने नबी (स 0) और अब्दे ख़ास मोहम्मद (स 0) और उनके अहले बैते अतहार (अ 0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा। और मेरी फ़रयाद को पहुंच क्योंके तू उनका फ़रयादरस है जिनका कोई फ़रयादरस न हो। और उनके लिये पनाह है जिनके लिये कोई पनाह न हो। मैं ही वह मुज़तर व लाचार हूं जिसकी दुआ क़ुबूल करने और उसके दुख दर्द दूर करने का तूने इलतेज़ाम किया है। लेहाज़ा मेरी दुआ को क़ुबूल फ़रमा , मेरे ग़म को दूर और मेरे रन्ज व अन्दोह को बरतरफ़ फ़रमा और मेरी हालत को पहली हालत से भी बेहतर हालत की तरफ़ पलटा दे और मुझे इस्तेहक़ाक़ के बक़द्र अज्र न दे बल्कि अपनी उस रहमत के लेहाज़ से जज़ा दे जो तमाम चीज़ों पर छाई हुई है। ऐ जलालत व बुज़ुर्गी के मालिक तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स 0) और आले मोहम्मद (स 0) पर और मेरी दुआ को सुन और उसे क़ुबूल फ़रमा। ऐ ग़ालिब! ऐ साहेबे इक़्तेदार।