उसकी दीवानगी
उसकी दीवानगी के बारे में रवायत मशहूर है। यह भी मारूफ है के उसने इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) की हिदायत पर दीवानगी का लिबादा ओढ़ लिया था।
इस तरह उसने अपनी जान भी बचा ली और उस दौर के शाही दरबार के लिये एक ऐसा नक़्क़ाद बन गया। जो हँसी ही हँसी में उन्हे आईना दिखाता रहता था।
इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) से हारून रशीद अब्बासी का मुरवासमत कोई ढ़की छुपी बात नहीं है। तारिख़ ने इमाम आली मक़ाम की चौदह साल की क़ैदे सख़्त और ज़हर से शाहादत का ज़िम्मेदार हारून को ही ठहराया है।
एक रवायत के मुताबिक। हारून ने दीगर मुत्तक़ी और नामूर लोगो के साथ बोहलोल से भी इमाम मासूम (अ.स.) के क़त्ल का फ़त्वा तलब किया था। बोहलोल इन्कार के नताएज से ख़ूब वाक़िफ था। इस लिये उसने इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) से रहनुमाई की दरख़ास्त की और उनकी हिदायत पर दीवाना बन कर अपनी जान बचा ली
उसके बारे में दूसरी रवायत ये है। के बोहलोल का जुर्म आले मौहम्मद (स 0अ 0) से अक़ीदत और एरादत मन्दी था। जब बोहलोल को पता चला के उसे अनक़रीब गिरफ़्तार करके क़त्ल कर दिया जायेगा। तो उसने अपने दो साथियों के हमराह इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) से क़ैदखाने में राब्ता किया।
हालाते ज़माना के पेशेनज़र इमामे मूसा काज़िम (अ.स.) ने उसके सवाल का जवाब सिर्ऱ एक हर्फ (ज) कि सूरत में दिया जिससे बोहलोल पर जुनून के माना मुन्कशिफ़ हुए वक़्त और हालात के तक़ाज़े को समझते हुए उसने एक ऐसी पुर-अज़-हिकमत दीवानगी इख़तेयार कर ली। जिसे उस दौर की चलती फ़िरती अपोजिशन ( Opposition) कहा जाये तो बेजा न होगा।
बोहलोल जुर्अत व बेबाकी , हक़गोई और मज़लूमों की हिमायत का अलमबर्दार था। वह उस दौर में बादशाह पर खुले बन्दो तनक़ीद करता था।
जब कोई बादशाह के ख़िलाफ़ ज़बान खोलने का तसव्वुर भी नहीं करता सकता था। उसकी दानिशमन्दी और ज़ेहानत ने कभी इसका मौक़ा नहीं दिया के उसके किसी लफ़्ज़ की गिरफ़्त की जा सकती।
बोहलोल की हालाते ज़िन्दगी तो दस्तियाब नहीं हैं। लेकिन उसकी हिक़ायत के मुताले से उसके जो खद्दो ख़ाल उभरते हैं। वह एक ग़ैरे मामूली ज़ेहीन , दानिशमन्द और तब्बाअ शख़्स की निशानदेही करते हैं। वह हक़ीकीं मानो में एक ख़ुदा रसीदा आलिम और नाबग़-ए-रोज़गार था। वह बेहतरीन हिस्से मेज़ाह रखता था। उस दौर के हालात और मुआशेरत पर उसकी निगाह गहरी थी।
वह एक हैरत अंगेंज़ शुगुफ़्ता बर्जस्तगी के साथ अपनी दीवानगी का भरम भी रखता था। उसने दीवानगी और फर्ज़ानगी को कुछ ऐसे मोजेज़ाना अन्दाज़ में हम आहंग किया था के वह न सिर्फ उसकी जान की ज़मानत थी बल्कि मज़लूमों की हिमायत का एक मोअस्सर ज़रिया और हुकूमते वक़्त पर एक खुली तन्क़ीद भी थी।
उसकी शग़ुफ्तगी , ज़िन्दादिली और बज़्लासनजी ने उसे हर दौर का हर दिल अज़ीज़ किरदार बना दिया है। तारिख़ के सफ़हात में वह एक ऐसा मोहरूयेरूल ओक़ूल किरदार है। जो दीवाना भी है और लोग उसके फज़्ल व कमाल के क़ायल भी हैं। वह पागल भी कहलाता है और मुश्किल मसलो में उसकी राय को अहमियत भी दी जाती है इस सब के बावजूद कोई यह साबित नहीं कर पाता के वह दीवाना नहीं है। यही उसका कमाल है के वह दर हक़ीक़त आले मोहम्मद (स 0 अ 0) का दीवाना है।
इस किताब की तालीफ में किरमान महमूद हिम्मद की जमा करदा हिक़ायत से मदद ली गयी है और हम इसका एअतेराफ शुक्रिया के साथ करते हैं।
(सैय्यदा आबेदा नरजिस)
शहरो के शहर बग़दाद की पुर रौनक़ शहराहो पर ज़िन्दगी अपनी मख़सूस गहमागहमी मे रवां दवां थी। लोग अपनी रोज़ मर्रह के मामूलात में मसरूफ थे। बाज़ारो में खरीद फरोख्त हो रही थी और गलीकूचों में लड़के बाले खेल कूद मे मगन थे। अचानक एक शोर उठा। चाहार जानिब एक हलचल सी मच गयी। लोगो ने वहब को देख कर उँगलियाँ दाँतों मे दाब लीं और हैरत व इस्तेजाब से नौ-रंग्गिये दौरां का करिश्मा देखने लगे।
बग़दाद का मशहूर सखतमन्द वहब बिन अमरौ जो अब्बासी खलीफा हारून रशीद के क़रीबी रिश्तेदारो में था , अपने घर से इस हाल में निकला था उस के बाल परेशान थे। दाढ़ी बेतरबीब और लिबास परागन्धा था। हाथ में पकड़े हुए असा को उसने घोड़ा बना रखा था। जिसे बच्चो की तरह खटखटाता बेमाना अल्फाज़ कहता । न जाने किस सिम्त चला जाता था।
जिसने भी आगे बढ़कर उसे रोकना चाहा वहब ने उसे धुत्कार दिया। दूर हो जाओ हटो। मुझे रास्ता दो। नहीं तो मेरा घोड़ा लाते मार देगा।
लोग उसकी यह हालत देख कर दम-ब-खुद रह गये। बच्चो के हाथ एक नया तमाशा आ गया वह पहले तो दूर-दूर से उसकी तरफ देखते रहे। फ़िर आहिस्ता आहिस्ता नज़दीक आये। किसी ने उसकी अबा खीचीं-किसी ने उसकी रिदा गसीट ली। कोई उसके साथ-साथ दौड़ने लगा। और कोई उसके असा पर सवार होने की ज़िद करने लगा। जिसे वह घोड़े की तरह चला रहा था।
लेकिन वहब ने बच्चो को न डाँटा न डराया न धमकाया। बल्कि वह खुद भी उनमे से एक मालूम होने लगा और के साथ बचकाना हरकतें करता , आबादीयों से दूर वीराने की तरफ़ भाग गया।
सारे शहर में सन्नाटा छा गया। हैरत व इबरत ने लोगो को शुश्दर कर दिया। कुछ लम्हे गुज़रे और उनके हवास पलटे। वह इबरत की उस गुंग कर देने वाली कैफियत से निकले तो हर तरफ उसी के तज़किरे होने लगे। जहाँ चन्द लोग इकठठे होते , वहब बिन अमरौ की ज़हनी हालत ही ज़ेरे बहस आती। लोग गलियों और चौराहो में खड़े इसी वाक़िये पर तबसिरा करते नज़र आते।
कोई कहता ''खुदा की शान है- ''
यह वहब बिन अमरौ शहर के दानिशमन्दो में शुमार होता था। मगर आज इसकी हालत देखकर इबरत होती है।
कोई दूसरा कहता। लगता है। इसकी कोई बात बारगाहे ख़ुदावन्दी में नापसन्द ठहरी है। शायद इसी लिये उसने वहब से अक़्ल व दानिश छीन ली है।
''बुरे वक़्त से पनाह माँगनी चाहिये। ऐसो की हालत से इबरत हासिल करनी चाहिये ''। कोई खौफे ख़ुदा से काँप कर बोला।
''खाह-म-खाह क़यास आराइयों से इज्तेनाब बर्तो। न मालूम उसकी इस हालत में कौन-सी हिकमत पोशीदा है ''
एक मर्दे बुज़ुर्ग ने गहरी साँस लेकर कहा और एक जानिब चल दिया। उसका लहजा माना खेज़ था और उसके लफ्ज़ो में असरार बोल रहे थे
उसके बराबर में खड़ा एक शख़्स बड़े ग़ैर महसूस अन्दाज़ मे मजमे से अलहैदा हुआ और उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। कुछ दूर दोनो इसी तरह चलते रहे। फिर पहले शख़्स ने अपने क़दमो की चाप से किसी और की मौजूदगी का अन्दाज़ा लगाया और ग़ैरेइरादी तौर पर पीछे मुड़कर देखा। दूसरे शख़्स ने अपने क़दमो को तेज़ किया और उसके बराबर आ गया।
उसना खन्कार कर गला साफ किया और मोहतात लहजे में बोला ऐ मर्दे बुज़ुर्ग आपकी बातों में असरार को बोलते सुना है। ऐसा लगता है जैसे वहब की दीवानगी में जो हिकमत पोशीदा है आप उससे वाकिफ हैं। आप मुझे खुदा रसीदा मालूम होते हैं। मैं आप जैसे लोगो की गुफ्तुगु में अपने लिए हिदायत व रहनुमाई तलाश करता हूँ।
क्या ऐसा मुमकिन है के आप मुझे वहब की हालत की कुछ ख़बर दें दें
उस मर्दे बुज़ुर्ग ने तेज़ निगाह उसपर डाली। और बेनियाज़ी से कहा।
ऐ बन्दे-ए। ख़ुदा तू किसी अज़ीम ग़लत फहमी का शिकार मालूम होता है जा और अपनी राह ले मुझे भला वहब से क्या सरोकार
उस शख़्स ने बुज़ुर्ग का दामन पकड़ लिया। ब-ख़ुदा मैं किसी ग़लत फहमी का शिकार नहीं हूँ। मैने आलिमो और बुर्गज़ीदा लोगो की सोहबत में वक़्त गुज़ारा है। आप जैसे लोग तो हिकमत व दानिश के सरचश्मे हैं।
अगर आप इसलिये मुझसे कलाम नही करना चाहते के हालाते ज़माना दिगर-गू है और ख़लीफा हारून के जासूसो और आम लोगो में तमीज़ करना मुश्किल हो गया है। तो मैं ख़ुदा की क़सम खा कर आपको यक़ीन दिलाता हूँ कि आप जो कुछ भी फरमाये वह मेरे पास अमानत की तरह महफूज़ रहेगा। अगर मैं उसे ख़यानत करू तो अल्लाह मुझे वही सज़ा दें जो ख़ाइन की है
उस मर्दे बुज़ुर्ग ने इसकी तरफ घूर कर देखा और बेज़ारी से कहने लगा। ऐ शख़्स। तू किस क़द्र बातूनी और गुफतूगु का शायक है। मैंने तुझसे कह जो दिया कि मैं इसस बारे मे कुछ नहीं जानता वह इतना कह कर आगे बढ़ गया।
मगर उस शख़्स ने पीछा नहीं छोड़ा और उसके साथ-साथ चलता हुआ बोला। मैं ख़ुदा की क़सम खाकर कहता हूँ के मेरा हारून रशीद और उसके हवारियों से कोई ताल्लुक़ नहीं मैं जानता हूँ के आप उन अश्ख़ास में से एक हैं जिन्होने इमाम मूसा बिन जाफर (अ.स) (मेरे माँ-बाप उन पर फिदा हों-) से क़ैदख़ाने में राबिता किया था और वहब भी उस वक़्त आपके साथ था
वह मर्दे बुज़ुर्ग ठिठक कर रूक गया और ख़श्मगीन लहजे में बोला। ''अगर तू इतना कुछ जानता है तो फिर मेरे पीछे क्यो पड़ा है। तुझे मेरे बयान की क्या हाजत है
मैं अहलेबैत (अ.स) का दोस्तदार हूँ। मैँ उस कठिन वक़्त की सख़्तियों से वाक़िफ हूँ जो आले मौहम्मद (अ.स) के भीहि-ख़ाहो को दरपेश हैं। ज़िनदान के दरबानो की उन पर सख़्तियाँ देखकर दिल खुन के आँसू रोता हैं। मगर अफसोस के हम बेकस हैं और शायद बुज़दिल भी यक़ीनन ख़ुदा के यहाँ हम इसके लिए जवाब देह होगें। उनसे राबिते का कोई ज़रिया भी नहीं है। मुझे मालूम हुआ था कि आपने किसी तरह उनसे राबिता किया है। तो मैंने सोचा आपसे हिदायत और बसीरत हासील करूँ ''
वह मर्दे बुज़ुर्ग गो-म-गो की-सी कैफियत में कुछ सोचता रहा फिर इधर उधर देख कर बोला
अगर तुम सच कह रहे हो। तो इसे साबित करो। ब-सर-व-चश्म। आप मेरे हमराह तशरीफ ले चलिये। मेरी ज़ोजा मदीने की है और आले मोहम्मद(अ.स) की आज़ादकरदा कनीज़ है। हमारी दौलत मोवददते अहलेबैत (अ.स) है। आप जैसी चाहे मुझसे क़सम लें लें। जैसा चाहे इतमिनान कर लें। उसने पूरी सच्चाई से कहा। मर्दे बुज़ुर्ग ने उसकी आँखो में देखा जो उसके लफ़्ज़ो की ताईद कर रही थीं। और कुछ सोच कर उसके साथ रवाना हो गया। उसके घर पहुँच कर जब उसने अच्छी तरह से इत्मीनान कर लिया के इसकी गुफ्तुगू ग़ैरे महफ़ूज़ नही होगी। तो बोला। सुन ऐ बन्दा-ए-खुदा। तू हालाते ज़माना को जानता है और तुझसे यह भी पोशीदा नहीं के हमदर्दीयाँ अब्बासियों को इस लिये हासिल हुई थीं के उन्होने आले मौहम्मद (अ.स) की हिमायत और एआनत का नारा लगाया था। उनका हक़ उन तक पहुँचाने का वायदा किया था। मगर अफसोस के उन्होने न सिर्फ आले मौहम्मद (अ.स) का हक़ नही पहचाना। बल्कि लोगो की उनके साथ अक़ीदत और मोहब्बत देखकर उन्हे अपनी सल्तनत के लिये ख़तरा तसव्वुर करने लगें।
उनके दिन-रात इसी कोशीश में सर्फ होते हैं के किस तरह इमाम मूसा बिन जाफर (अ.स) से लोगो की तवज्जोह हटा सकें। इस लिये ये हर उस शक़्स की जान के दुश्मन हो जाते हैं जो आले मौहम्मद से अक़ीदत रखता हैं। हमें यह ख़बरे बराबर मिल रही थीं के हम मोहब्बते आले मौहम्मद के जुर्म में अनक़रीब हारून के ज़ेरे इताब आने वाले हैं।
इस लिये हम ने बाहम मशविरा किया लेकिन कुछ समझ नही आया
बिल आख़िर यही फैसला किया के इमाम मूसा बिन जाफर (अ.स) से रहनुमाई हासिल की जाये उनको क़ैद खाने के अहवाल से तो तुम वाक़िफ हो के उन के दरबान चुन चुनकर शक़िय्युल क़ल्ब और दश्मनाने अहलेबैत रखे जाते हैं। उन से मिलने पर सख़्त पाबंदी है। लेकिन किसी न किसी तरह हमने अपना मसला उनकी ख़िदमत में पहुँचा ही दिया।
अगले रोज़ सुबह सादिक़ के वक़्त ज़िन्दान से एक ठेकरी गिरी। हम पहले इस ताक में थे। हमने बड़ी राज़दारी से ठेकरी उठा ली। मैं क़ुर्बान जाऊ अपने इमाम (अ.स) पर उसका चहरा गुलगार हो गया और वह रूक कर आँसू पोछनें लगा। दसरे शख़्स की आँखों से भी आँसू गिरने लगे।
उस मर्दे बुज़ुर्ग ने सर्द-आह भरी। इमाम पर क़ैदख़ाने में इस क़द्र सख़्ती है के उन्होने मिट्टी की इस ठेकरी पर हुरूफ़े तहैज्जी में से सिर्फ एक हर्फ लिखा खा।
वह क्या उस शख़्स ने बेताब होकर सवाल किया।
उस ठेकरी पर हर्फे (जीम) लिखा हुआ था। फ़रज़न्दे रसूल (अ.स) के अता करदा इस एक लफ़्ज़ ने हमपर हिकतम के दरवाज़े ख़ोल दिये।
हमे अपनी मुश्कील का हल अज़-ख़ुद मिल गया जो हमारे हालात के साथ मेल ख़ाता है।
हमारा तीसरा साथी , जिसका नाम ज़ाहिर करना ज़रूरी नही ,। उसने (जीम) से जिलावतनी मुराद लिया। वह आज रात यह शहर छोड़ देगा। मेरे विजदान में (जीम) से जबल का इन्केशाफ़ हुआ है। मैं पहाड़ो पर अपने आबाई मकान में पनाह लूँगा। और हमारे दोस्त वहब बिन अमरौ हैं। और तुम देख़ोगे के आले मोहम्मद (अ.स) के इस दीवाने की दीवानगी फर्ज़ानो को शर्मा देगी।
वहब बिन अमरौ बच्चो के हुजूम में बच्चा बना हुआ दीवानो की सी हरकतें करता बिल आख़िर एक वीराने में आ उतरा। वह बच्चो के साथ दौड़-दौड़ कर हाँप गया था और कुछ थकावट भी महसूस कर रहा था। वह अपने असा के फर्ज़ी घोड़े पर से उतरा और बच्चो से बोला।
मेरा घोड़ा थक गया है। इसे भूक भी लगी है अब यह आराम करना चाहता है उसने असा को घोड़े की तकह चुमकार कर खन्डर की शिकस्ता दीवार के साथ खड़ा कर दिया। बच्चे खिलखिला कर हँस पड़े
ऐ वहब। क्या तुम्हारा घोड़ा घास खाता है हाँ-हाँ। यह तुम्हारी अक़्ल के साथ रोज़ घास चरने जाता है वहब ने शोख़ी से जवाब दिया। अच्छा। और यह पानी भी पीता है। एक और शरीर बच्चे ने सवाल किया।
हाँ। यह पानी भी पीता है। मगर तुम्हारे ख़लीफा के पैमाने में वहब हँसा।
बच्चे भी उसकी हँसी में शरीक हो गये और मचल मचल कर बोले। ऐ वहब हमें भी अपने घोड़े की सवारी कराओ वहब ने उन्हे परे ढकेला ख़बरदार कोई क़रीब न आये। मेरे घोड़े का मेज़ाज शाहाना है किसी को लात मार दी तो मुझे न कहना।
बच्चे हँसने और तालियाँ बजाने लगे। वहब ने हीवार से टेक लगा ली और गहरी साँस लेकर बोला। अच्छा दोस्तो। अब मुझे कमर सीधी करने दो और तुम अपने-अपने घर जाओ
बच्चे कुछ देर उसके साथ छेड़ख़ानी करते रहे। जब वहब ने उन की तरफ कोई तवज्जोह नही दी तो वह एक-एक कर अपने-अपने घरो को लौट गये। वहब ने उसी खण्डर में डेरा जमा लिया। उसके घर वाले परेशान हुए उसके अज़ीज़ रिश्तेदार इकटठे हुए और लोगो से पूछते , मालूम करते उसी खण्डर तक आ पहुँचे जहाँ वहब ने बसेरा किया था। देखा की वह नंगी ज़मीन पर अपने बाज़ू का तकिया बनाये चैन की नींद सो रहा है-उसकी यह हालत देख कर उसके अज़ीज़ो की आँखों में आँसू आ गये। कुछ इज़्हारे अफसोस करने लगे। एक ने झुक कर उसका शाना हिलाया वहब-वहब। उठो। जुनून की इस नींद से जागो। आँखें खोलो।
वहब होशियार हुआ और उसने नींद से भरी आँखें खोलकर अपने चारो तरफ जमा शनासा चेहरो को देखा जिन पर दुख और तफ़क्कुर की लकीरें थी। वह हमदर्दी से उसकी तरफ देख़ रहे थे।
क्या बात है। वहब ने उठकर बैठते हुए कहा।
वहब उठो। घर चलो। एक अज़ीज़ ने क़रीब बैठकर उसकी अबा से गर्द झाड़ते हुए कहा।
यह भी तो घर है वहब ने ख़ण्डर की टूटी दीवारो की तरफ इशारा किया। भला इसमें क्या कमी है। न हमसाये का झगड़ा। न मालिक मकान का ख़ौफ़। न दरबान की मुसीबत। न चोर का डर।
कैसी बाते कर रहे हो वहब। कोई उनसीयत से बोला।
मैं तुम्हारी ज़बान ही तो बोल रहा हूँ। वहब ने जवाब दिया।
तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। कोई बोला। मेरी तबियत बिल्कुल ठीक है। मैं बहुत मज़े में हूँ।
वहब ने कमाले बे नियाज़ी से जवाब दिया
नही। तुम बिमार हो। तुम्हे इलाज की ज़रूरत है। किसी अज़ीज़ ने उसे समझाने की कोशीश की।
बीमार तो सब ही हैं। इलाज की किस को ज़रूरत नहीं वहब हँसा और राज़दारी से बोला। तुम ख़ुद ही कहो। क्या ख़लीफा क्या वज़ीर , क्या कोतवाल क्या दरोग़ा। इनमें से कौन है। जिसे इलाज की ज़रूरत नहीं।
हमारी बात समझने की कोशीश करो। यह जगह तुम्हारे शायाने शान नहीं। उसके रिश्तेदार परेशान हो गये।
भला यह मेरे शायाने शान क्यों नहीं। यह ख़लीफा के महल से तो बेहतर है कि रोज़े हश्र मुझसे इसके बारे में कोई बाज़ पुर्स तो नहीं होगी।
उसके रिश्तेदार ज़िच हो गये। उन्होने बहुत कोशिश की कि उसे घर ले जायें और उसके जुनून का कुछ इलाज हो जाये। लेकिन वह क़तअन रज़ामन्द नही हुआ।
अब वह फ़र्शे ख़ाक , शिकस्ता दीवारें और ख़ुला आसमान ही उसका घर था। वह आराम व अशाएस से बे-नियाज़ हो गया था नेमतहाय दुनिया से उसने मुह मोड़ लिया था। वह रूखे सूखे टुकडो पर गुज़र बसर करता था और नगीं ज़मीन पर अपने बाज़ू के तकिये पर चैन की नींद सोता था।
वह बच्चो का सबसे ज़्यादा दोस्त था। उनकी मासूमियत और मनचलापन उसे भाते थे। वह पहरो उनके साथ बचकाना हरकते करने में मसरूफ रहता और खेल कूद मे उन्हे काम की बाते बताता।
कोई राहगीर उसे मुख़ातब कर लेता था कोई जानने वाला उससे पूछताः।
वहब तुमने यह क्या हालत बना ली है तो वह बढ़ी शेगुफ्तगी से कोई ऐसी पहलदार बात कह देता जो मुख़ातब को महजूज़ करती लेकिन बे माना नही होती थी ग़ौर करने पर उसमे कोई हिकमत पोशीदा नज़र आती थी।
इस आलमे दीवानगी में पूरा शहर उसकी दस्तरस में था। वह अपने मन की मौज में जहाँ चाहता पहुँच जाता और जिसको चाहता अपने शुगूफ्ता लफ्ज़ो में आईना दिखा देता। आवाम मुश्किल में होते तो हँसी-हँसी में उनका मसला हल कर देता और अगर ख़ास हुदूद मे तजाव्वुज़ करते तो बातो-बातो में उन्हे लगाम दे देता उसकी बज़्लासन्जी में छीपी हुई ज़ेहानत और दानिशमन्दि आहिस्ता-आहिस्ता लोगो को क़ायल करने लगी।
एक बदकिरदार
एक बदकिरदार शख़्स ने उसका मज़ाक उड़ाने की शरारत से कहा।
ऐ वहब क्या तुने कभी शैतान को देखा है। मेरा बहुत जी चाहता है कि मैं शैतान को देखूँ।
तेरी यह ख़्वाहिश तो बड़ी आसानी से पूरी हो सकती है। वहब ने सन्जीदगी से जवाब दिया।
वह किस तरह उस शख़्स ने पूछा।
तेरे घर में आईना तो होगा। अगर नहीं तो साफ पानी में देख लेना। तुझे शैतान की ज़ियारत हो जायेगी। उस शख़्स को भागते ही बन पड़ी।
लड़की की विलादत
उन ही दिनो अमीरे कूफा इस्हाक़ बिन मोहम्मद सबाह , के यहाँ लड़की की विलादत हुई। पता चला के वह लड़की की पैदाइश पर बहुत रंजीदा है। किसी से नहीं मिलता। न ही मुबारक बाद वुसूल करता है। वहब को जो ख़बर हुई तो वह अपनी गुदड़ी शाने पे डाले उसके यहाँ पहुँचा और बोला
ऐ इस्हाक़ मैंने सुना है के तू लड़की की पैदाइश पर बहुत अफ़सुर्दा है। खाता है। न पीता है।
क्या करूँ। दिल ही नहीं चाहता।
वह ठन्डी साँस भर कर बोला। मुझे बेटे की बड़ी आरज़ू थी। मगर अफसोस के अल्लाह ताला ने मुझे लड़की दे दी।
कमाल है वहब ने बे-साख़्ता काहा तू इस पर राज़ी नहीं के अल्लाह ने तुझे सही व सालिम बेटी दी है अगर वह तुझे मुझ जैसा पागल बेटा दे देता तो फिर
इस्हाक़ को उसकी बे-साख़्तगी पर हँसी आ गई। लेकिन वह इसकी तह में छिपी हुई हिकमत को जान गया और ख़ुदा का शुक्र बजा लाया। अपना सोग तोड़ा और लोगो को इजाज़त दि के वह उसके पास तबरीक पेश करने के लिये आयें।
जूते
वह अपनी दीवानगी के बावजूद नमाज़ के वक़्त मस्जिद में पहुँच जाता था। एक रोज़ अभी उसने जूते नहीँ उतारे थे के उसने एक शख़्स को देखा के वह इस ताक में है के उसके जूते चुराये। वहब बहुत देर इस इन्तेज़ार में रहा के वह शख़्स इधर उधर हो। तो वह अपने जूते उतार कर नमाज़ मे शामिल हो। मगर वह नहीं टला और नमाज़ के लिये सफे दुरूस्त हो गयीं।
वहब ने आव देखा न ताव। दौड़कर आगे बढ़ा और जूतों समैत ही नमाज़ के लिये खड़ा हो गया। उस शख़्स ने मायूस होकर उसे टोका। औ दीवाने यह क्या कर रहे हो जूतों समैत नमाज़ नहीं होती
नमाज़ नही होती तो न हो। मगर जूते तो होते हैं वहब ने जवाब देकर नियत बाँध ली।
वह गलियों और बाज़ारो में अपने मासुम साथियों के साथ चोहले करता फ़िरता। कहीं कोई ग़ैरे मामूली बात देखता – तो वहीं रूक जाता अपनी बज़्लासन्ज़ी से लोगो को हँसने और मुस्कुराने पर मजबूर कर देता।
शहर का दरोग़ा
एक रोज़ वह अपने शरीर साथीयों के साथ भागा जा रहा था के उसने सरे बाज़ार एक मजमा लगा हुआ देखा। उसने अपनी छड़ी खटखटाई। लोगो के कंधे दबाये। किसी की बग़ल में झांका। किसी का पैर हटाया और हुजूम के दरमियान् सर जा निकाला।
लोगो ने उसे धक्के दिये। बुरा-भला कहा। लेकिन उसने परवाह नहीं की देखा के शहर का दरोग़ा एक अजीब दावा कर रहा है।
ऐ लोगो मेरी बात ग़ैर से सुनो। मैं एक ऐसा होशियार आदमी हूँ के मुझे कोई धोका नहीं दे सकता।
बेशक बेशक। दरोग़ा जी आप बिल्कुल दुरूस्त फ़रमाते हैं।
मर्हबा-मर्हबा। क्या कहने। दरोग़ा का दावा बिल्कुल हक़ है
किसी क्या मजाल के दराग़ा साहब को कोई धोका दे सके। मजमे में से उसके ख़ुशाम्दी तरह-तरह की बोलियाँ बोलने लगे। हर तरफ से दाद-व-तहसीन के नारे बुलन्द हो रहे थे
वहब ने अपनी छड़ी ज़मीन पर ज़ोर से मार कर उन्हे अपनी तरफ मुतावज्जेह किया और बोला। दरोग़ा जी मुझे भी कुछ कहने की इजाज़त है।
अच्छा। तुम भी बोलोगे। बोलो क्या कहते हो उसने निख़्वत से कहा
वहब ने सन्जीदगी से कहा। दरोग़ा जी ग़ुस्ताख़ी माफ़ यह दीवाना आपके इस दावे को चुटकियों में बातिल कर सकता है। मगर यह कोई ऐसा मुफीद काम नहीं , जिस पर वक़्त ज़ाया किया जाये।
इसकी सूरत देखो ज़रा। और इसका दावा देखो। किसी ने मज़ाक से कहा।
ओ दीवाने। दरोग़ा साहब की अक़्ल के सामने भला तेरी क्या हक़ीकत है किसी और ने आवाज़ कसी।
दरोग़ा ने मुछो को ताव दिया। हाँ-हाँ तुम जैसा पागल तो मुझे ज़रूर धोका दे सकता है।
मैं पागल हुँ या कुछ। अगर मुझे इस वक़्त एक ज़रूरी काम ना होता तो मैं आपको इसी वक़्त ऐसा झाँसा देता के आप और आपके यह चमचे हमेशा याद रखते
बड़ी ऊँची हवाओं में हो मियाँ दीवाने। मुझे कुछ जल्दी नहीं है। मैं यहीं बैठा हूँ। तुम अपना काम करके वापिस आओ और अपने दावे को साबित करो। दरोग़ा ने डाँट कर कहा ।
वहब ने अपनी छड़ी सँभाली और उजलत में यह कहता हुआ मुड़ा। दरोग़ा साहब अब अपने वायदे से फिर मत जाइयेगा। यहीं मेरा इन्तेज़ार कीजियेगा बस गया और आया। वह जिस तरह मज्मे मे आया था उसी तरह बाहर निकल गया।
दरोग़ा फिर अपनी शेख़ी बघारने में मसरूफ हो गया। उसके खुशाम्दी बढ़ चढ़कर दाद देने लगे। काफी देर हो गई और वह दीवाना पलट कर नहीं आया। लोगो ने भी महसूस किया के वक़्त गुज़रता जा रहा है और वहब का दूर-दूर तक पता नहीं। मगर उन्होने दरोग़ा को तसल्ली देने की कोशिश की। दरोग़ा जी वह है भी तो दीवाना। राह में कहीं बच्चो के साथ कहीं खेल में लग गया होगा।
कुछ और वक़्त गुज़रा। लेकिन वहब वापिस नही आया। मजमे में चेमि-गोइयाँ होने लगीं। आँखों में इशारे होने लगे। कुछ होठो पर मुस्कुराहठ भी नमुदार हुई। बाज़ लोग उक्ता कर घरो को जाने लगे।
दरोग़ा को भी अन्दाज़ा हो गया के पागल वहब उसे पागल बना के चला गया और अब वह वापिस नहीं आयेगा-वह बेचेन होकर बड़बड़ाया।
यह पहली बार है कि मुझे किसी ने धोका दिया है। और वह भी एक दीवाने ने मजमे में से किसी ने बे-साख्ता कहा तो कहकहों से फिज़ा गूँज उठी
जल्दी ही वहब की इस बज़्लासन्जी , शोर , ज़ेहानत और शग़ुफ्ता दानिश मन्दी का सारे शहर , में शोहरा हो गया। उसकी दीवानगी में छिपी हुई फर्ज़ानगी और उसके पागलपन में पोशीदा होश रूबा हक़ायक़ ने अवाम को उसके क़रीब कर दिया वह न किसी को सताता था , न परेशान करता था और न नुकसान पहुँचाता था , अलबत्ता अपने जुनून में अपनी दानिशमन्दी को छुपाये हर वक़्त लोगो की मदद करने को तैयार रहता था।
जल्द ही वह बग़दाद का एक ऐसा पसंदीदा किरदार बन गया के लोग उसके गिर्वीदा बन गये और मोहब्बत से लोग उसे बोहलोल कहने लगे। जिसके माना हैं हँसमुख , ख़ूबसूरत और नेकियों का मजमुआ।
बोहलोल का लफ्ज़ उमूमन चुटकुले बाज़ और हाज़िर जवाब और सच्चे लोगो के लिए इस्तेमाल किया जाता है। रफ़्ता-रफ़्ता यह नाम यूँ ज़बान ज़दे आम हो गया के उस्का अस्ल नाम फरामोश हो गया। अब कोई भी उसे वहब नहीं कहता था। वह सब के लिए बोहलोल था और सबका बोहलोल था। उसकी दानाई और हिकमत ने उसे एक पागल और दीवाने से बढ़कर आक़िल व दाना मशहूर कर दिया था।
हारून रशीद तक यह ख़बरें मुतावातिर पहुँच रही थीं के उसका रिश्तेदार वहब बिन अमरौ दीवाना हो गया है।
उसने दुनिया की शान व शौकत से मुहँ मोड़ कर ख़ाक नशीनी इख़्तेयार कर ली है। वह अपनी गुदड़ी में मस्त वीराने में बैठा रूखी-सूखी पर गुज़ारा कर रहा है। मगर हारून को यक़ीन नहीं आया। उसने सही सुरते हाल जानने के लिये अपने मुक़र्रबों को बुलाया।
कुछ वहब बिन अमरौ का हाल कहो। हमने सुना है वह दीवाना हो गया है।
आली जाह। अब तो उसे वहब कोई भी नहीं कहता। अब तो बच्चा-बच्चा उसे बोहलोल कहता है एक अमीर ने इत्तेलअ दी।
अच्छा। हारून ने दिलचस्पी से पूछा यह नया ख़िताब उसे किसने दिया
ज़िल्ले-इलाही। वह हसँमुख तो पहले ही था। दिवानगी ने उसे कुछ और भी ख़ुश तबअ बना दिया है। अब तो वह बाज़ औक़ात मसखरो की सी हरकते करने लगता है। लोगो को हँसाता और ख़ुश करता है। इस लिये सब उसे बोहलोल कहने लगे है अमीर ने वज़ाहत की।
हारून ने ग़ौर करते हुए कहा उसे किसी तबीब को दिखाया है ताकि उसका कुछ इलाज हो जायें।
आली जाह। उसके घर वालो ने बहुत कोशीश की है लेकिन वह किसी तरह रज़ामन्द नहीं होता। वज़ीर ने जवाब दिया खाता पीता कहाँ से है और दिन भर क्या करता फ़िरता है। हारून ने इस्तफसार किया।
उसके अज़ीज़ उसे खाना पहुँचाते तो हैं। लेकिन वह सिर्फ रूखी-सूखी पर ही गुज़ारा करता है बाज़ औक़ात ख़ुद मज़दूरी भी कर लेता है। उसने एक खण्डर में डेरा जमा रखा है। दिन भर लड़के बालो के साथ दौड़ता फिरता है। कभी कभी खूब मस्ख़रापन करता है। जिससे महज़ एक पागल नज़र आता है। मगर बाज़ औक़ात ऐसी पते की बात कह जाता है कि सुनने वाले दंग रह जाते है। वज़ीर ने तफ्सील से जवाब दिया।
हुज़ूर अगर इजाज़त दें तो मैं तफसील से अर्ज़ करूँ के उसने कल क्या किया है एक दरबारी ने मोअद्दब लहजे में पूछा।
इजाज़त है हारून ने इजाज़त दी।