जन्नत मे घर
हारून की चहीती मल्का , ज़ुबैदा अपने शानदार महल की ख़िड़की में से बाहर का नज़ारा कर रहीं थी। के उसने नहर के किनारे बोहलोल को बैठे हुए देखा। वह बच्चो की तरह रेत से खेल रहा था। कभी वह उसकी छोटी-छोटी ढेरियाँ बनाता। कभी उन्हे क्यारियों की शक्ल देता। कभी उन घरौदों में खिड़कियाँ और दरवाज़े बनाता। ज़ुबैदा कुछ देर उसका यह खेल दिलचस्पी से देखती रही फिर अपनी चन्द कनीज़ो के साथ बाहर आयी और बोहलोल के पास आ खड़ी हुई और उसे मुतावज्जेह किया। बोहलोल यह क्या कर रहे हो
बोहलोल ने सर उठाकर देखा। यह मैं जन्नत के महल बना रहा हूँ।
इतना कहकर वह फिर अपने काम में मसरूफ़ हो गया।
अच्छा। ज़ुबैदा ने मसनूई हैरत से कहा। फिर कुछ सोच कर बोली। बोहलोल। तुम बेहिश्त के ये महल बेचते हो
हाँ बेचता हूँ। बोहलोल ने जवाब दिया। कितने दीनार में। ज़ुबैदा ने मेज़ाहन पूछा।
सिर्फ़ सौ दीनार में। बोहलोल ने बताया ज़ुबैदा ने सोचा के इस तरह मज़ाक ही मज़ाक में बोहलोल की मदद भी हो जायेगी। उसने कनीज़ों को हुक्म दिया के बोहलोल को सौ दीनार अदा कर दिये जायें और बोहलोल से बोली। बोहलोल मैं भी एक बेहिश्त ख़रीदना चाहती हूँ।
कौन सी। बोहलोल ने इस्तफ्सार किया ज़ुबैदा ने यूँ ही रेत की एक क्यारी की जानिब इशारा कर दिया। तुमने क़ीमत अदा कर दी है। ठहरो। मैं इसका क़बाला तुम्हारे नाम लिख देता हूँ।
ज़ुबैदा हँसी। मैं इस वक़्त जल्दी में हूँ बोहलोल तुम इसका क़बाला लिखकर महल में ले आना।
वह इतना कहकर आगे बढ़ गई। बोहलोल भी अपनी मिट्टी की ढेरियाँ हटा कर उठ खड़ा हुआ और वह सब दीनार अपनी झोली में डालकर ज़रूरत मन्दो और नादारों की तलाश में निकल गया
ज़ुबैदा सब कुछ भूल कर अपने मामूलात में मसरूफ़ हो गई। रात को अपने बिस्तर पर गई। आँख लगी। तो उसने देखा के वह एक ऐसे ख़ुशनुमा बाग़ में है। जिसको तसव्वुर भी करना मोहाल है के वह रू-ए-ज़मीन पर उसकी कोई मिसाल हो सकती है। वह हैरान नज़रो से उसे देखती रह गयी , उसने आहिस्ता। आहिस्ता क़दम उठाये और हर लहज़ा हैरत में डूबती चली गई।
उसके चारों तरफ़ अज़ीमुश्शान महल्लात थे। जिन के दर व दीवार में जड़े सतरंग जवाहरात निगाहों को ख़िरा कर रहे थे। चमन में बहती हुई नहरों का पानी मोतियों जैसा शफ़्फ़ाफ़ था। गुलिस्तान की बहार क़ाबिले दीद थी। कलियाँ चटक रहीं थी। फूल खिल रहे थे। फ़िज़ायें मोअत्तर थीं और हवाओं में ताज़गी और ख़ुश-गवारी थी। रूशें फूलों से भरी थीं और उनकी महक निराली थी।
इतनी ख़ूबसुरती। इतना हुस्न और दिलकशी यक्जा देखकर ज़ुबैदा हैरान हो रही थी के कुछ ग़ुलाम और कनीज़ें सफ़े बाँधे क़रीब आये। ज़रनिगार कुर्सी बैठने के लिये पेश की और मोअद्देबाना लहजे में बोले तशरिफ़ रखिये
ज़ुबैदा तसवीरे हैरत बनी उस ज़र्री कुर्सी पर बैठ गई। एक कनीज़ आगे बढ़ी और उसने एक दस्तावेज़ चाँदी की तश्तरी में रख़ कर ज़ुबैदा को पेश की। ज़ुबैदा ने कुछ मुताज़बज़िब सी होकर दस्तावेज़ उठाई और डरते-डरते उस पर निगाह डाली उसमें सोने के हर्फ़ो से लिखा था:। यह क़बाला है उस बेहिश्त का जो बोहलोल ने ज़ुबैदा के हाथ फरोख़्त की है।
इसके साथ ही उसकी आँख खुल गयी वह बहुत देर तक ख़ाब के सहर(जादू) में खोई रही। उसकी आँखों में वह तमाम फ़िरदौसी मनाज़िर रक़्स करने लगे। उसने सोचा। ग़ौर किया और उसे यक़ीन हो गया के उसने जो कुछ देखा है। वह ख़ाब की सूरत में एक बशारत है। बोहलोल का वायदा सच था। क़्योंकि उसने बेहिश्त का क़बाला लिख कर देने का वायदा किया था और जैसे नज़ारे उसने ख़ाब में देखे थे। वे रू-ए-ज़मीन पर कहीं नहीं थे।
उसका रोवाँ-रोवाँ मसर्रत व शादमानी से नाच उठा उसने बे ख़ुदी में हारून को जगाया और फ़ूले हुए साँसों के दरमियान बोली। ज़िल्ले इलाही। आज मैंने सौ दीनार में बोहलोल से एक बेहिश्त ख़रीदी थी। मेरा ख़याल था के वह एक मज़ाक़ है। दीवाने की बड़ है। मगर वह अभी-अभी मुझे ख़ाब में दीखला दी गई है। उसका क़बाला मेरे नाम है। मैंने अभी उसे अपनी आँखों से देखा है।
तुम्हारा दिमाग़ तो दुरूस्त है। अहमक़। के तुम्हें भी उस दीवाने ने पागल बना दिया है। हारून ने अपनी नींद ख़राब होने की ख़फ़्गी से कहा।
नहीं। मैं सच कह रही हूँ। मैंने ख़ाब में जो कुछ देखा है। उसका दीदार किसी इन्सानी आँख ने नहीं किया होगा। वह वह बेहिश्त मेरे नाम है। ख़ुदा की क़सम मैंने उसकी दस्तावेज़ देखी है ज़ुबैदा ने जोश से बताया।
ओ हो यह वक़्त ऐसे उल्टे सीधे खाब सुनाने का है। ख़ामोश हो जाओ और मेरी नींद ख़राब मत करो। हारून ने ग़ुस्से से कहा और करवट बदल ली।
लेकिन ज़ुबैदा की आँखों से नींद ग़ायब थी। वह तमाम रात उसने इसी तसव्वुर में गुज़ार दी। सुबह क़समें खाकर अपना ख़ाब सुनाया और उसे यक़ीन दिलाया के उसका ख़ाब सच्चा है और बोहलोल से ख़रीदी हुई जन्नत हक़ीक्त है।
हारून ने बोहलोल को बुला भेजा। वह अपनी गुदड़ी में लिपटा शहनशाहो की सी शान से आया और मानाख़ेज़ लहजे में हारून से बोला।
तुझ जैसे बादशाह को मुझ फक़ीर की ज़रूरत क्यों आ पड़ी हैं।
सुना है। तूने बेहिश्त बेचने का कारोबार शुरू कर दिया है। हारून ने मज़ाक़ ऊड़ाया।
महा-बदौलत तो यह कारोबार कब से कर रहे हैं। बोहलोल ने बेनियाज़ी से जवाब दिया।
सुना है तूने मल्का को भी कोई बेहिश्त बेची है। हारून ने सवाल किया।
हाँ । बोहलोल ने इस्बात में सर हिलाया। कितने में, हारून ने पूछा।
सौ दीनार में वह बोला।
बहुत ख़ूब। मैं भी तुझे सौ दीनार से कुछ ज़्यादा ही दे दूँगा। एक बेहिश्त मेरे हाथ भी फ़रोख़्त कर दे। हारून ने कहा।
बोहलोल ने क़हक़हा लगाया। हारून तेरी मल्का ने तो अनदेखे यह सौदा किया था तूने तो उससे सब कुछ सुन लिया है। अब उसकी क़ीमत अदा करना तेरे बस में नहीं
बोहलोल की इस करामत ने हारून को फ़िक्रमन्द कर दिया। वह नहीं चाहता था के कोई ऐसी बात लोगों को अपनी तरफ़ मुतावज्जेह करे और वह उसके मोअतक़िद बन जायें। क्योंकि उसे यह भी बदगुमानी थी कि इमाम मूसा बिन जाफ़र (अ.स.) जिन्हें उसने क़ैद कर रखा था वह उनसे ख़ुफ़िया राब्ता रख़ता है और उसके ख़िलाफ़ प्रोपेगण्डा करता है। उसने उन जासूस को बुलवाया। जो बोहलोल के बारे में तमाम ख़बरें पहुँचाते थे और उनसे बोला तुम लोगो ने बोहलोल के बारे में क्या पता लगाया है –
जान की अमान पाऊँ तो कुछ अर्ज़ करूँ – एक शख़्स ने जुर्अत की। अमान है हारून ने कहा।
आली-जाह। उसे दीवाना नहीं दाना कहना चाहिये। ऐसा मालूम होता है। जैसे उसने ख़ुद पर दीवानगी का एक ख़ोल सा चढ़ा रखा है वह दानिशमन्दी में अच्छे भले होशमन्दों को मात दे देता है। मैंने उसकी बहुत निगरानी की है। मगर कोई ऐसी बात नहीं देखी जिसपर गिरफ़्त की जा सके एक वज़ीर ने जवाब दिया।
हमें ख़बर मिली है के उसने अवाम को आशिक बना रखा है। लोग अपनी मुश्किले लेकर उसके पास जाते हैं हारून ने ना-गवारी से कहा। आपने बजा फ़रमाया। ज़िल्ले सुबहानी। यह हक़ीकत है के वह लोगों के काम आता है और बड़े अजीब अन्दाज़ में उनकी मुश्किलें हल करता है। अगर इजाज़त हो तो मैं बग़दाद के सौदागर का क़िस्सा बयान करूँ। जिसकी मुश्किल बोहलोल ने हल की है। दूसरे मुशीर ने गुफ़्तुगु में हिस्सा लिया। इजाज़त है – हारून ने इजाज़त दी।
बग़दाद का सौदागर
इस बात को ज़्यादा अर्सा नहीं हुआ। बग़दाद का एक शरीफ़ सौदगर अजीब मुश्किल में गिरफ़्तार हो गया था। वह बहुत कम मुनाफ़े पर माल बेचता है।
इसलिए शहर में हर दिल अज़ीज है उसका एक कारोबारी रक़ीब जो यहूदी है उससे हसद करता था और मौक़े की ताक में था के सौदागर को कोई नुकसान पहुँचा सके। वह शहर में सूद पर रूपया भी चलाता है
कुछ मुद्दत गुज़री उस शरीफ़ सौदागर को रूपये की ज़रूरत पड़ी। उसने यहूदी से क़र्ज़ माँगा। वह रूपये देने पर तैयार तो हो गया। लेकिन उसने एक निराली शर्त रखी के अगर सौदागर वक़्ते मुक़र्ररह पर उसका क़र्ज़ अदा न कर सका। तो वह उसके बदले जिस्म के जिस हिस्से से चाहेगा। एक सेर गोश्त काट लेगा। सौदागर मजबूर था। उसकी इज़्ज़त पर बनी थी। उसने मजबूरन शर्त मान ली और पक्की दस्तावेज़ लिखकर यहूदी के हवाले कर दी
इत्तेफ़ाक ऐसा हुआ के वह सौदागर वक़्ते मुक़र्ररह पर क़र्ज़ अदा नहीं कर सका। तो यहूदी ने फ़ौरन मुक़द्दमा दायर कर दिया क्योंकि उसके पास सौदागर के हाथ की लिखी हुई दस्तावेज़ मौजूद थी।
इसलिये क़ाज़ी को फ़ैसला यहूदी के हक़ में ही देना था। मगर वह आजकल पर टालता रहा।
क्योंकि उसे मालूम था के यहूदी सौदागर का सख़्त तरीन दुश्मन है। वह उसका ऐसा अज़ों काटना चाहता है जो उसकी मौत का बायस बन जाये।
यहूदी हर रोज़ क़ाज़ी से हुक्म जारी करने का तक़ाजा करने लगा। क़ाज़ी के पास भी सौदागर के बचाओ की कोई तदबीर नहीं थी। लोग भी उसके हाल पर कुढ़ते थे। किसी ने बोहलोल से भी यह क़िस्सा जा कहा। उसने आव देखा न ताव अपनी गुदड़ी उठा कर कंधे पर डाली और क़ाज़ी की अदालत में जा पहुँचा। और क़ाज़ी से बोला।
क़ाज़ी-जी। क्या आप मुझे इजाज़त देते हैं के मैं इन्सानियत के नाते इस सौदागर की वकालत करूँ
क़ाज़ी ने उसे इजाज़त दे दी। तो वह अपना असा खटखटाता आगे बढा और बड़े इत्मीनान से सौदागर और यहूदी के दरमियान जा बैठा। और सौदागर से बोला। भाई सौदागर क्या तूने इसको दस्तावेज़ लिखकर दी है कि अगर तू क़र्ज़ अदा न कर सके तो उसे इख़्तेयार है के यह तेरे जिस्म का एक सेर गोश्त जिस जगह से चाहे उतार ले।
मुझे इससे इन्कार नहीं है। वह ठण्डी साँस भर कर बोला।
फिर बोहलोल यहूदी की तरफ़ मुतावज्जेह हुआ। क्यों भाई क्या यही दस्तावेज़ लिखी गई है के तुम उसके जिस्म के एक सेर गोश्त जहाँ से चाहोगे काट लोगे।
बिल्कुल यही इक़रार हुआ था। मेरे पास दस्तावेज़ मौजूद है यहूदी ने बड़े फ़ख्र से बताया।
तो फिर ठीक है भाई। तुम्हें पूरा हक़ हासिल है के तुम सौदागर के जिस्म से एक सेर गोश्त काट लो जहाँ से जी चाहे काटो। लेकिन इतना ख़याल रखना के शर्त सिर्फ़ गोश्त की है और वह भी पूरा एक सेर-न कम न ज़्यादा। और ख़ून का एक क़तरा न निकले। अगर तुमने एक सेर से ज़्यादा या कम काटा या सौदागर का ख़ून ज़ाया हुआ तो तुम्हे इक़दामे क़त्ल की सज़ा मिलेगी। बोहलोल ने बहुत मज़े में कहा।
यहूदी का मुँह खुला का खुला रह गया। लोग अश-अश कर उठे और क़ाज़ी ने हुक्म दिया के यहूदी को सिर्फ़ रक़म अदा कर दी जाये।
बहुत ख़ूब। हारून ने तौसीफ़ी अन्दाज़ में कहा बहुत दूर की कौड़ी लाया बोहलोल।
आली-जहा। उसका दीवाना दिमाग़ अक्सर दूर की कौड़ी लाता है। अगर मुझे इजाज़त हो तो मैं बताऊँ के उसने एक बेवकूफ़ ग़ुलाम को क्या ख़ूब सबक़ सिखाया। कोई दूसरा मुक़र्रब बोला। बयान करो। हारून ने इजाज़त दी।
बेवकूफ़ ग़ुलाम
चन्द रोज़ हुए यह ख़ाकसार कश्ती में बसरे गया। उसमें और लोगो के साथ बोहलोल भी सवार था। अचानक एक सौदागर का ग़ुलाम रोने और चिल्लाने लगा। ख़ुदा के लिये मुझे कश्ती से उतारो। नहीं तो मैं मर जाऊगाँ। ख़ुदा के लिये इस कश्ती को वापिस ले चलो। समन्दर की लहरे इसे उल्टा देंगीं हम सब डूब जायेंगें। तुम्हें ख़ुदा-व। रसूल का वास्ता कश्ती रोको।
उसे एक लम्हा भी क़रार नहीं आ रहा था। और उसकी चीख़ व पुकार से कश्ती में बैठे लोग बहुत परेशान हो रहे थे। कुछ मुसाफ़िरों ने उसे तसल्ली देने की कोशिश की। हर तरह से उसे समझाया बुझाया। लेकिन उसे किसी पल चैन नहीं था।
बोहलोल ने ग़ुलाम के मालिक से कहा। जनाब अगर आप इजाज़त दें तो मैं आपके ग़ुलाम का ख़ौफ़ दूर कर दूँ। बेचारा बहुत परेशान है।
नेकी और पूछ-पूछ। भला इससे बहतर और क्या बात होगी।
इसकी चीख़ पुकार हमारे दीमाग़ पर भी हथौड़े की तरह बरस रही है। अल्लाह तुम्हें जज़ा-ए-ख़ैर दे। इसे पूर-सुकून कर दो। सौदगर ने जल्दी से कहा।
बाक़ी लोगो ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलायी। बोहलोल ने क़रीब बैठे हुए लोगों से कहा। भाईयों। तुम्हे ज़हमत तो होगी। ज़रा इस बेचारे ग़ुलाम को उठाकर समन्दर में तीन-चार डुबकियाँ तो दिलवा दो।
लोग हँस पड़े। कुछ ने हैरान होकर उसकी तरफ देखा। ग़ुलाम और ज़्यादा चीख़ पुकार करने लगा बोहलोल बोला। भाईयों। जब इसके मालिक ने इजाज़त दे दी है तो तुम्हे क्या ताम्मुल है। शाबाश उठो। इसको समन्दर में दो-चार ग़ोते दिनवा दो। चलो बिस्मिल्लाह करो।
सौदगर ने उसकी ताईद की। तो ग़ुलाम के क़रीब बैठे हुए लोगों ने उसे पकड़ लिया ग़ुलाम ने वा-वयला मचा कर आसमान सर पर उठा लिया। बहुत हाथ पैर मारे मगर उसकी एक न चली। कुछ आदमियों ने उसे मज़बूती से पकड़ लिया और समुंद्र में ग़ोते देने लगे। वह बचाओ। बचाओ का शोर मचाने लगा।
चन्द लम्हो बाद बोहलोल ने कहा। यार इस बेचारे पर तरस खाओ और अब बस करो। इसका इलाज हो गया।
मुसाफ़िरों ने उसे वापिस खींच लिया। उसने हाँपते-काँपते अपने नाक और मुँह से पानी निकाला। बाल पोछे और एक किनारे पर बिल्कुल चुपचाप बैठ गया। बाक़ी मुसाफ़िरों ने हैरत से उसकी ख़ामोशी को देखा और बोहलोल से सवाल किया के उसने यह नुस्ख़ा क्योंकर ईजाद किया जो इस क़द्र कारगर साबित हुआ।
बोहलोल ने हँस कर जवाब दिया। इस बेचारे को कश्ती के आराम की क़द्र व क़ीमत का अन्दाज़ा ही नहीं था। समुंद्र में ग़ोते खाकर उसे यह नुक्ता समझ में आ गया है के कश्ती समुंद्र के मुक़ाबले में कितनी महफ़ूज़ है।
हारून मुस्कुराया। इस मसख़रे का भी कोई ऐसा ही इलाज करना पड़ेगा। जो दीवाना बन कर दूसरो को दीवाना बनाता फ़िरता है।
ज़िल्ले-इलाही ने बजा फ़रमाया। हमारा अन्दाज़ा भी यही है के वह दीवाना नहीं है। बल्कि दूसरो को बेवकूफ़ बनाने के लिये ऐसी हरकतें करता है। कुछ रोज़ पहले तो हमें इसका सबूत भी मिल गया के वह दीवाना। पागल और दानिशमन्द में तमीज़ करने की सलाहियत रखता है। एक शख़्स ने कहा।
वह किस तरह। बयान करो। हारून ने मुताजस्सिस लहजे में कहा।
व्यापारी
जब बोहलोल को पागलपन का दौरा पड़ा था तो एक ताजिर ने ग़ालेबन फ़ाल लेने की ग़र्ज़ से बोहलोल से पूछा। हज़रत शेख़ बोहलोल साहब मेहरबानी फ़रमाकर मुझे मशाविरा दें कि मैं कौन सा माल ख़रीदूँ जो नफ़ा बख़्श हो।
बोहलोल ने बड़े इत्मीनान से कह दिया। भाई तुम लोहा और रूई ख़रीद लो। अल्लाहताला बरकत देगा।
दीवानों और दुवेंशों की बातो में अक्सर लोग फ़ाल लेते ही है , उसने भी बोहलोल की बात पर अमल किया। इत्तेफाक़न उसे बहुत ज़्यादा मुनाफ़ा हुआ।
दो ढाई माह बाद , उसने फिर माल ख़रीदने का इरादा किया तो सोचा के फिर बोहलोल की बातों से फ़ाल ली जाये। वह उसके पास आया। यह अपनी उन दीवानी हरकतों में लगा हुआ था। ताजिर ने उसे बुलाया। तो वह असा पर सवार होकर ठख़-ठख़ करता आया। उसने उसकी हालत देखकर कहीं कह दिया।
ओ , पागल बोहलोल। ज़रा यह तो बता इस बार तिजारत के लिये कौन सा माल ख़रीदूँ।
बोहलोल फ़ौरन बोला। जा भाई प्याज़ और तर्बूज़ ख़रीद ले।
उस अहमक़ ने बग़ैर सोचे समझे अपना तमाम सर्माया प्याज़ तर्बूज़ ख़रीदने में लगा दिया।
फ़सल के दिनों में तो वैसे ही उनकी माँग नहीं थी। कुछ दिन ज़ख़ीरा किये। तो वह सड़ गये और उसे ख़सारा उठाना पड़ा। वह ग़ुस्सा में भरा हुआ बोहलोल के पास आया और बोला। औ बोहलोल। तूने मुझे यह कैसा मशविरा दिया था। मेरा सारा सर्माया डूब गया। हालांकि पिछली बार तेरे मशविरे से मुझे बहुत मुनाफ़ा हुआ था।
बोहलोल बोला। हज़रत पहले रोज़ जब आपने मुझसे मशविरा माँगा था। तो जनाब शेख़ बोहलोल कहकर मुझे आवाज़ दी थी। गोया आपने मुझे दानिशमन्द समझकर मेरे वेक़ार का ख़याल रखा। मैंने भी दानिशमन्दी से मशविरा दिया।
लेकिन दूसरी बार आपको याद है के आपने क्या गौहर अफ़शानी फ़रमायी थी।
नहीं। ताजिर को याद नहीं था।
आपने फ़रमाया था। ओ पागल बोहलोल , चूँकि आपने मुझे पागल समझकर मुख़ातब किया था। इसलिये मैंने आपको पागलपन में ही मशविरा दिया था।
बहुत ख़ूब। हारून महजूज़ हुआ। यह तो होशमन्द दीवाना है। इसका कोई बन्दोबस्त करना पड़ेगा।
आपका फ़रमान बजा। लेकिन हुज़ूर उसकी इस दीवानगी ने उसे आवाम के बहुत क़रीब कर दिया है। यह मुफ़्त में उनकी मुश्किलें हल करता है। उस पर ज़रा एहतियात के साथ हाथ डालना होगा। हर ग़रीब के साथ उठकर चल पड़ता है। वज़ीर ने इज़्हारे ख़याल किया।
हूँ। तो फिर तुम ही बताओ के उस पर कौन सी फ़र्दे-जुर्म आयद् कि जाए के आवाम में कोई रद्दे अमल न हो। हारून ने पूछा।
जान की आमान पाऊँ तो एक तजवीज़ पेश करूँ। एक मुशीर ने मोहतात् लहजे में कहा।
अमान है। हारून ने शाहाना निख़्वत से गोया अहसान किया हो कहा।
उसपर इल्ज़ाम लगाया जा सकता है के वह अंबिया-ए-सलफ़ की तौहीन करता है। इसलिये इस्लाम से ख़ारिज है और वाजिबुल क़त्ल है। उसने बताया।
कोई सुबूत। हारून ने रोबे शाही से कहा। इसका सुबूत भी मौजूद है और गवाह भी। मुशीर बोला।
बयान करो। हारून ने तहक्कुमाना शान से कहा।
लूत नबी
कुछ लोगों ने बोहलोल से हज़रत लूत (अ.स.) के बारे में पूछा के वह किस क़ौम के पैग़म्बर थे तो वह कहने लगा। के उनके नाम से ज़ाहिर है के वह ऊबाशों और अय्याशों के पैग़म्बर थे। लोग उसके पीछे पड़ गये के पैग़म्बरे ख़ुदा की शान में ग़ुस्ताख़ी करता है। तो उसने यह कहकर अपनी जान बचाई के मैंने पैग़म्बरे ख़ुदा की शान में तो ग़ुस्ताख़ी नहीं की।
मैंने तो उनकी क़ौम की बात की है। इसकी ताईद क़ुर्आने पाक में मौजूद है।
हारून ज़ेरे लब मुस्कुराया। और बोला। नहीं। नहीं उस पर यह इल्ज़ाम साबित नहीं किया जा सकता यह दीवाना बड़ा हाज़िर जवाब है और दूसरों को ला जवाब करने का हुनर ख़ूब जानता है।
आली-जहा। ऐसा वेसा हाज़िर जवाब। उसने तो आपके वज़ीरे ममलेकत का ऐसा नातेक़ा बन्द किया था के मौसूफ़ बग़ले झाँकने लगे थे।
हालांकि वह ख़ुद को बहुत हाज़िर दिमाग़ समझते हैं।
एक मुशीर ने वज़ीर ममलेकत का तज़किरा किया जो उस वक़्त महफ़िल में मौजूद नहीं था।
वह क़िस्सा क्या है , बयान किया जाये। हारून ने इजाज़त दी।
आली-जहा।
वज़ीर
हुआ यूँ कि एक रोज़ बोहलोल यहाँ आया तो इत्तेफ़कन वज़ीरे ममलेकत से मुलाक़ात हो गई। उन्होने मेज़ाहन बोहलोल से कहा। बोहलोल। मुबारक हो। अभी-अभी हुक्म आया है के ख़लीफ़ा ने तुझे कुत्तो , मुर्ग़ो और सुअरों का अमीर और हाकिम बना दिया है।
बोहलोल ने एक लम्हा तवक्क़ुफ़ नहीं किया और बड़े रोब से बोला। ख़बरदार। अब हमारे हुक्म से सरताबी की जुर्अत न करना इस हुक्म से तू भी मेरी रय्यत हो गया है। उसने यह बात इतनी बेसाख़्तगी से कही के वहाँ मौजूद कोई भी अपनी हँसी पर क़ाबू नहीं पा सका और वज़ीरे ममलेकत को वहाँ से टलते ही बनी।
हारून हँसने लगा। तो उसके ख़ुश-गवार मेज़ाज से पाकर मुशीर के किसी हासिद ने मौक़ा ग़नीमत जानकर कहा। आली-जहा , मुशीर साहब ने वज़ीरे ममलेकत का वाक़ेआ तो बयान कर दिया। लेकिन ज़रा उनसे भी तो पूछये के पिछले हफ़्ते हज़रत बोहलोल ने उनके साथ क्या किया है ।
हारून ने उसकी जानिब देखा। बोलो क्या हुआ था ।
वह ख़फ़ीफ़-सा हो गया और उस शख़्स पर क़हर आलूद निगाह डाल कर बोला। ज़िल्ले इलाही हासिदों का काम दूसरों को नीचा दिखाना है।
तुमने वज़ीरे ममलेकत के साथ जो कुछ किया है उसका निशाना तुम्हारी अपनी ज़ात भी बन गयी है फ़ौरन वह क़िस्सा बयान करो। हारून ने सरज़निश की।
सरताबी की मजाल किसमें थी वह ख़ज़िल सा होकर अपना क़िस्सा आप ही कहने लगा। आली-जहा।
कबूतर की बीट
उस रोज़ मैंने खाने साथ पनीर भी खाया था। शायद उसका कोई रेज़ा मेरी दाढ़ी में भी अटका रह गया। लेकिन मुझे इसकी ख़बर नहीं थी।
बदकिस्मती कि बोहलोल उस तरफ़ आ निकला और मुझसे पूछने लगा। मुशीर साहब। आज आपने नाश्ते में क्या तनाव्वुल फ़रमाया है।
मैंने हँसी-हँसी में कह दिया। मैंने कबूतर खाया है।
तो वह कहने लगा। तब ही उसकी बीट आपकी रीशे मुबारक में अटकी हुई नज़र आ रही है।
हारून बे साख़्ता हँस पड़ा। वल्लाह कैसा मसख़रा है यह बोहलोल , कल उसे दरबार में तलब करो। हम ख़ुद उससे बात करेंगें ।
हारून के दरबार मे हाज़री
अगले रोज़ बोहलोल दरबार में हाज़िर था। हारून अपने ज़र-निगार तख़्त पर शाही लिबास पहने बड़ी तमकेनत से बैठा हुआ था। बोहलोल अपनी बोसीदा पापोश और पेवंद लगी गुदड़ी के साथ उसके उसके हुज़ूर में पेश किया गया। हारून ने एक क़हर आलूद निगाह उसपर डाली और ख़श्मगीन लहजे में बोला। बोहलोल। तू बहुत होशियार बनता है। लेकिन हमें पता चला के तू हुकूमत के बाग़ी मूसा बिन जाफ़र (अ.स.) के दोस्तदारों में से है। उन्हीं के हुक्म पर तू दीवाना बना हुआ है। ताकि अवाम को उनकी तरफ़ मुतावज्जेह करके हमारी हुकूमत का तख़्ता उलट दे। तू समझता है के पागल होने की वजह से तेरी कोई पूछ-ताछ नहीं होगी। लेकिन याद रख़ हुकूमत तेरी तरफ़ से ग़ाफ़िल नहीं है। तेरी सब सर-गर्मियों की ख़बर हमें बराबर मिलती है।
बोहलोल ने मज़हक़ा-ख़ेज़ सूरत बनाई ज़ाहिर है के तुम्हारे नमक हलाल शिकारी कुत्ते सही इत्तेलाअ ही लेकर आये होगें। तो अब ख़लीफ़ा मुझसे कैसा सुलूक करेंगें।
भरे दरबार में मज़ाक़ उड़ाने पर हारून और तेश में आया। तुम्हे ऐसा सबक़ सिखाया यायेगा के तुम दूसरो के लिए नमूना-ए-इबरत बन जाओगे।
उसने ग़ुस्से से कहा और अपने ग़ुलाम को पुकारा। मसरूर ले जाओ इस ग़ुस्ताख़ को। इसके कपड़े उतार लो और इस पर गधे का पालान डाल दो। इसके मुँह में लगाम दो। इसे महल और हरम-सरा में फिराओ और उसके बाद मेरे सामने इसका सिरे पुर ग़ुरूर उड़ा दो।
दरबार में सन्नाटा छा गया। दरबारी हैबते शाही से काँप गये। लेकिन बोहलोल शाने बेनियाज़ी से ख़ड़ा मुस्कुराता रहा। मसरूर आगे बढ़ा और उसने बोहलोल की गुदड़ी घसीट कर परे उछाली। उसका बोसीदा लिबास नोचकर उस-पे-गधे का पालान कस दिया। उसके मुँह में लगाम दी और उसे ख़ींचता हुआ महल और हरम-सरा की तरफ़ ले गया।
शाही दरबारों और महल सराओं में इन्सानियत की तज़लील रोज़ का मामूल है। इसलिये बोहलोल की इस हैबते कज़ाई पर किसी को ताज्जुब नहीं हुआ। महल और हरम-सरा के मकीन , इन्सानियत की इस तौहीन को तमाशे की तरह देखते रहे। किसी ने सोचा के बोहलोल तो दीवाना है। इसलिये सज़ा का मुस्तौजब नहीं लेकिन जान के ख़ौफ़ ने ज़बान को बन्द कर रखा था। कोई कुछ न कह सका।
मसरूर उसकी लगाम खींचता हुआ उसे दरबार में वापिस ले आया। और हारून के सामने अदब से झुक कर बोला। आली-जहा आपके हुक्म की तामिल हुई। क्या इसकी गर्दन उड़ा दी जाये।
हारून ने अभी जवाब नहीं दिया था कि नागाह उसका वज़ीर जाफ़र बर-मक्की दरबार में दाख़िल हुआ। उसने हैरत से बोहलोल की यह हालत देखी और बोला।
बोहलोल ख़ैरियत तो है। ऐसा क्या कुसूर हो गया तुझसे जो यह हालत बनी है।
बोहलोल हँसा। जनाबे आली। यह तो कुछ भी नहीं अभी तो मेरी गर्दन भी मारी जायेगी।
मगर किस जुर्म में। जाफ़र बर-मक्की ने पूछा
मैने एक सच्ची बात कह दी थी। जिसके इनाम में ख़लीफ़ा ने मुझे ख़ुल-अते फाख़ेरा अता की है और जामे मर्ग मेरा इन्तेज़ार कर रहा है।
हारून को बे साख़्ता हँसी आ गयी। ख़लीफ़ा को हँसते देखकर दरबारी और जाफ़र बर-मक्की जो अपनी हँसी ज़ब्त कर रहे थे। वह भी हँस पड़े। हारून का ग़ुस्सा काफ़ूर हो गया और उसने शाही हुक्म जारी किया। जैसा बोहलोल ने कहा है उसे वैसा ही ख़ुल्अते फ़ाखरा अता किया जाये।
ख़लीफ़ा के इस करम का शुक्रिया। मुझे अपनी पेवंद लगी गुदड़ी ही ग़नीमत है। बोहलोल ने अपनी गुदड़ी शाने-पे डाली।
बोहलोल को दरहम व दीनार अता किये जायें – शाही फ़रमान जारी हुआ।
नहीं। मुझे अहले जहन्नम की पेशानियों और पुश्तो पर लगने वाली मोंहरों की ज़रूरत नहीं। बोहलोल चलने पर तैयार हो गया।
हारून ने उसे रोका। बोहलोल तुम अगर इस इनाम व इकराम को अपने इस्तेमाल में नहीं लाना चाहते तो ग़रीबो और मोहताजो में बाँट देना। उनका भला हो जायेगा।
बोहलोल रूक गया और उसने रक़म की थैलियाँ ग़ुलाम से ले लीं। चन्द क़दम चला और रूक गया। कुछ सोचने लगा। फिर आगे बढ़ा और रूक गया। फिर कुछ सोचा और वापिस पलट आया।
उसने रक़म की थैलियाँ हारून के सामने ढेर कर दीं। और बोला हारून। मैंने बहुत सोचा है के इन अशर्फ़ियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत किसको है लेकिन मुझे तुझसे ज़्यादा मुस्तहक़ कोई और नज़र नहीं आया। तुझसे ज़्यादा नादार और ज़रूरतमन्द शायद और कोई नहीं। क्योंकि में रोज़ देखता हूँ के तेरे कारिन्दे हर जगह लोगो को कोड़े मार मारकर उनसे टैक्स वुसूल करते हैं। ताकि तेरे ख़ज़ाने पुर हों। सारे शहर में सबसे बड़ा ज़रूरतमन्द तो तू ख़ुद है। इस लिये यह रक़म तू ही रख ले।
ख़लीफ़ा दम-ब-ख़ुद रह गया। अहले दरबार सन्नाटे में आ गये। बोहलोल के अन्जाम को सोचकर उनके रोंगटे ख़ड़े हो गये। लेकिन बोहलोल इत्मीनान से चल ख़ड़ा हुआ।
रोको। इस दीवाने को रोको।
अचानक ख़लीफ़ा हारून की आवाज़ गूँजी।
अहले दरबार इस तसव्वुर से ही काँप गये के अब बोहलोल का इताबे शाही से बचना मुहाल है।
दो ग़ुलाम तेज़ी से आगे बढ़े और बोहलोल को घसीट कर हारून के सामने ले आये।
हारून की आँखे नम थी और पशेमानी ने उसकी आवाज़ को पस्त कर दिया था। वह गहरी साँस लेकर बोला। बोहलोल। तेरी दीवानगी हम जैसे होशमन्दों के लिये एक नेमत है।
तेरी इस बात ने मेरे दिल को नर्म कर दिया है मेरा जी चाहता है के तुझसे कुछ पंद व नसीहत की फ़रमाइश करूँ।
ग़ुलामों ने फ़ौरन ही बोहलोल को छोड़ दिया। वह अपनी मख़सूस शाने बेनियाज़ी से गोया हुआ। हारून। पिछले ख़लीफ़ाओं के महलों और उनकी क़ब्रों को देखकर इबरत हासिल कर। तू ख़ूब जानता है कि यह लोग अर्स-ए-दराज़ तक उन महलों में ऐश व इशरत की ज़िन्दगी ग़ुज़ारते रहे। और अब क़ब्रों में पड़े पछताते और अफ़सोस करते हैं के काश। उन्होने अपनी आख़ेरत के लिये कुछ नेक आमाल अपने साथ ले लिये होते। मगर अब उन्हे इस पछतावे से कुछ हासिल नहीं हो सकता। हम सब भी जल्द-या-ब-देर इसी अन्जाम को पहुँचने वाले हैं। जब यह शाही रोब व दबदबा और व शौकत कोई काम नहीं देगी। हारून पर कपकपी सी तारी हो गई। मुतास्सिफ़ लहजे में बोला। बोहलोल कुछ ऐसे आमाल बता जिनके बजा लाने से अल्लाह मुझसे राज़ी हो जाये।
उसकी मख़लूक़ को ख़ुश कर। वह तुझसे राज़ी हो जायेगा। बोहलोल ने जवाब दिया।
अब इसकी तदबीर भी बता दो के ख़ल्के ख़ुदा को किस तरह ख़ुश रखा जा सकता है। हारून ने पूछा
अदल व इन्साफ़ में सबको बराबर का दरजा दो जो अपने लिये मुनासिब नहीं समझते। दूसरो को भी उसका मुस्तहक़ न समझ। मज़लूम की फ़रियाद तवज्जोह से सुनो और इन्साफ़ से फ़ैसला करो। बोहलोल ने बुर्दबारी से कहा
आफ़रीन सद आफ़रीन बोहलोल-मरहबा। तुमने कैसी हक़ बात कही है। मरहबा हारून ने तौसीफ़ी लहजे में कहा। उसकी हाँ में हाँ मिलाने वाले दरबारियों ने भी नारा-हाय-तहसीन बलन्द किये
हारून ने हुक्मे शाही जारी किया। हुक्म दिया जाता है के शाही ख़ज़ाने से बोहलोल के तमाम क़र्ज़ अदा कर दिये जायें।
हारून क़र्ज़ से भी कभी क़र्ज़ अदा हुआ है।
बोहलोल ने उसे मुख़ातब करके कहा। शाही ख़ज़ाने में जो कुछ है वह अवाम का माल है और ख़लीफ़ा पर क़र्ज़ है। तुम्हारे लिये यही मुनासिब है के अवाम का क़र्ज़ उन्हे लौटा दो। मुझे तुम्हारा यह एहसान नही चाहिये।
तो फिर बोहलोल कोई तो ख़्वाहिश करो। मैं दिल से चाहता हूँ के तुम्हारी कोई आरज़ू पूरी करूँ। हारून ने ज़ोर देकर कहा।
तो फिर मेरी ख़्वाहिश और आरज़ू यही है के मेरी नसीहतों पर अमल करो। लेकिन अफ़सोस के दुनिया की शान शौकत और इक़्तेदार का नशा बहुत जल्द मेरी इन नसीहतों को फ़रामोश कर देगा।
यह कहता हुआ वह दरबार से बाहर निकल गया। हारून और अहलेदरबार झुके हुए सरों के साथ ख़ामोश बैठे रह गये ।