बहलोल दाना

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बहलोल दाना लेखक:
कैटिगिरी: मुसलमान बुध्दिजीवी

बहलोल दाना

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यदा आबेदा नरजिस
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बहलोल दाना
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बहलोल दाना

बहलोल दाना

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

नूजुमी

एक रोज़ बोहलोल दरबार में आया। तो देखा इल्मे नुजूम पर गुफ़्तुगु हो रही है और एक शख़्स इल्मे नुजूम का माहिर होने का दावा कर रहा है। बोहलोल सलाम करके ख़ामोशी से उसके पास जा बैठा और उसकी बातें सुनने लगा। जब वह अपने बारे में सब कुछ कह चुका। तो बोहलोल ने कहा।

हज़रत। माशाल्लाह आपकी महारत के क्या कहने। लेकिन क्या आप बता सकते हैं के आपके पास कौन बैठा हुआ है।

नुजूमी बोहलोल से वाक़िफ़ नहीं था। इसलिये उसने ला इल्मी का इज़हार किया। नहीं मैं नहीं जानता।

बोहलोल मुस्कुराया। अगर अपने बराबर में बैठने वाले को नहीं जानते। तो फिर आसमान के सितारों के बारे में सब कुछ जानने का दावा किस तरह कर सकते हैं।

वह शख़्स ला जवाब सा हो गया और थोड़ी देर बाद उठकर चला गया।

हिन्दुस्तान

दरबार अभी मुनक़्क़िद था के हाजिब ने सदा दी के कोई सय्याह हाज़िरे ख़िदमत होना चाहता है। हारून ने इजाज़त दी।

वह आया और हारून को ताज़ीम दी।

हारून ने उससे मुख़्तलिफ़ मुल्को के बारे में सवालात किये जहाँ-जहाँ वह जा चुका था। वह गुफ़्तुगु के फ़न में माहिर था। उसने मुख़्तलिफ़ मुल्को की पैदावार जवाहरात और मसनूआत के बारे में तफ़सीली तौर पर बताया और हिन्दुस्तान का तज़किरा करते हुए बोला।

आली-जाह। हिन्दुस्तान एक अजीब जादूनगरी है। वहाँ इल्म और हिकमत का बड़ा शोहरा है। शायद मेरी बात पर आपको यक़ीन न आये के हिन्दुस्तान में एक ऐसी माजून बनायी जाती है। जिसके बा-क़ायदा इस्तेमाल से इन्सान में जवानी की क़ुव्वत अज़सरे नौ बहाल होती है। अगर साठ साल का बूढ़ा वह माजून इस्तेमाल करे। तो ख़ुद को बीस बरस का जवान पायेगा।

कमाल है। उस इलाक़े में तिब के ऐसे मोअजिज़े भी मिलते हैं। हारून ने ताज्जुब से कहा।

हुज़ूर अगर पसन्द फ़रमायें। तो मैं हिन्दुस्तान से वह माजून तैयार करवा कर ला सकता हूँ। सय्याह मोअद्दब लेहजे में बोला।

हारून के दिल में पहले ही इश्तेयाक़ पैदा हो चुका था। उसने सय्याह से पूछा।

वह माजून तैयार करने पर कितना ख़र्च उठेगा।

ज़िल्ले सुबहानी। इसमें बहुत सी क़ीमती जड़ी बूटीयाँ और जवाहरात के कुश्ते शामिल किये जाते हैं। इसकी तैयारी पर इख़राजात कुछ ज़्यादा ही उठते हैं। सय्याह ने बताया।

तुम्हारा क्या ख़्याल है के हम वे इख़राजात अदा नहीं कर सकेंगें हारून ने दुरूश्ती से कहा।

नाऊज़ो-बिल्लाह। आली-जाह यह हक़ीर तो यह ख़्याल भी दिल में नहीं ला सकता। मैंने तो इसलिये कहा है के कहीं अहलेदरबार में से कोई इसे झूठ या ग़लत न समझे। उसने घबराकर जवाब दिया।

अहलेदरबार में ऐसी हरकत करने की जुर्अत नहीं है अल्लाह ताला ने हर हाल में जान बचाने का हुक्म दिया है।

बोहलोल ने चुपके से कहा।

बताओ इस पर कितना ख़र्च उठेगा हारून ने इस्तेफ़सार किया।

आली जाह। इसके लिये पचास हज़ार दीनार दरकार होंगे। सय्याह ने बताया।

रक़म दे दी जाये। हारून ने खज़ांची को हुक्म दिया।

खज़ांची ने उसको रक़म दे दी और वह रवाना हो गया।

इस वाक़ेये को एक अर्सा हो गया। मगर वह लौट कर नहीं आया। हारून को भी अन्दाज़ा हो गया था के वह कोई धोकेबाज़ था। जो उसे फ़रेब देकर रक़म हथिया ले गया। एक रोज़ दरबार में फिर उस शख़्स का तज़किरा हुआ। हारून ने मुताअस्सिफ़ लहजे में कहा।

उस शख़्स ने कैसे हमारी आँखों में धूल झोंकी है। अगर वह कहीं हाथ लग जाये। तो उससे कई गुना ज़्यादा रक़म वुसूल की जायेगी और उस कमबख़्त का सर काट कर बग़दाद के दरवाज़े पर आवेज़ा किया जायेगा ताकि दूसरे लोग इबरत हासिल करें।

बोहलोल भी दरबार में मौजूद था। वह बेसाख़्ता हँस रहा दिया। हारून ने ख़श्मगीन नज़रों से बोहलोल की तरफ़ देखा। बोहलोल इस बेमौक़ा हँसी का सबब क्या है। क्या तुम इस ग़ुस्ताख़ी की वजह बयान कर सकते हो।

बोहलोल की हँसी न रूकी। हुज़ूर मुझे एक क़िस्सा याद आ गया है।

कौन सा क़िस्सा। हारून ने इस्तेफ़्सार किया।

बोहलोल ने हँसी रोककर कहा। इस धोके बाज़ सय्याह का क़िस्सा बिल्कुल ऐसा ही है। जैसा मुर्ग़ बुढ़िया और लोमड़ी का क़िस्सा है।

बयान करो हारून ने तहक्कुम से कहा। बोहलोल बोला। क़िस्सा कुछ यूँ है के एक जगंली बिल्ली ने एक बुढ़िया का पालतू मुर्ग़ झपट लिया। बुढ़िया उसके पीछे दुहाई देती दौड़ी। अरे-अरे। पकड़ो। इस चोट्टी बिल्ली को पकड़ो। ज़ालिम मेरा दो मन का मुर्ग़ लकर भागी जाती है और कोई मेरी मद्द करो। इस बिल्ली को पकड़ो। हाय मेरा नाज़ो का पाला। मुर्ग़। अरे यह पूरे दो मन का है।

इत्तेफ़ाक़न एक लोमड़ी क़रीब से गुज़र रही थी। वह बिल्ली से बोली। बहिन तुम क्यों परेशान होती हो। ज़रा मुर्ग़े को मुझे दो। मैं अभी तोलकर बता देती हूँ के यह दो मन का है या नहीं।

बिल्ली ने मुर्ग़ लोमड़ी को दे दिया। उसने मुर्ग़ दबोचा और यह कहकर ग़ायब हो गई के बहिन बिल्ली। बुढ़िया से कह देना के उसका मुर्ग़ तीन मन का है।

हारून अपनी हँसी नहीं रोक सका। अहलेदरबार भी मुस्कुराने लगे। हारून बोला

बोहलोल तुम्हारे इस क़िस्से ने हमारी अफ़्सुरद्गी को ज़ायल कर दिया है।

शिकारी

ख़लीफ़ा हारून रशीद अपनी मल्का ज़ुबैदा के हमराह शतरंज खेल रहा था। बोहलोल भी क़रीब बैठा था उसी वक़्त चोबदार ने सदा दी। एक शिकारी बारयाबी की इजाज़त चाहता है।

इजाज़त है। हारून ने इजाज़त दी।

शिकारी अन्दर आया और ज़मीन चूम कर बोला।

मैं ख़लीफ़ा के लिए एक बहुत उम्दा मछली लेकर आया हूँ।

हारून ने ज़ुबैदा से कहा। यह इनाम की आस में मेरे पास यह हदिया लाया है। इसे इनाम में चार हज़ार दरहम दे दिये जायें तो क्या मुनासिब रहेगा।

ज़ुबैदा बोली नहीं आली-जाह। शिकारी का यह मनसब नहीं के उसे इतना ज़्यादा इनाम दे दिया जाये। आप फौजियों और मोअज़्ज़ज़ शहरियों को भी इनाम व इकराम अता करते हैं। अगर आप उन्हे इससे कम देंगें तो वे शिकवा करेंगें के हम शिकारी के बराबर भी नहीं हैं। अगर ज़्यादा देने की रस्म पड़ गई। तो ख़ज़ाना ख़ाली हो जायेगा।

यह बात हारून के दिल को लगी और वह बोला मगर इसको कुछ तो देना है।

तो आप इस तरह करें के शिकारी से पूछे के यह मछली नर है या मादा अगर वह कहे मादा है। तो कहें हमें यह पसन्द नहीं। और अगर वह कहे के नर है। तो भी आप कह दें के यह हमें नहीं चाहिये इस तरह वह मछली वापिस ले जायेगा और इनाम भी नहीं देना पड़ागा। ज़ुबैदा ने तजवीज़ पेश की।

बोहलोल ने आहिस्तगी से कहा। शिकारी इतनी दूर से बड़ी आस लेकर आया है। यह मुनासिब नहीं के मल्का की बातों में आकर आप उसे नामुराद लौटा दें और वह रंजीदा हो।

हारून ने बोहलोल की बात पर तवज्जोह नहीं दी और चौबदार से बोला।

शिकारी को हमारी खिदमत में पेश करो।

शिकारी क़रीब आया तो हारून ने सवाल किया।

ऐ शिकारी क्या तू बता सकता है के यह मछली नर है या मादा।

शिकारी ताज़ीमन झुका और बोला। आली जाह न यह नर है न मादा। यह मछली तो मोख़न्नस है।

हारून बेसाख़्ता हँसा और बोला। तुम्हारी हाज़ीर जवाबी हमें पसन्द आयी। तुम्हे चार हज़ार दरहम इनाम में दिये जायेंगें।

हुज़ूर का इक़बाल बुलन्द हो। शिकारी दरहम लेकर दुआएं देता हुआ रूख़्सत हुआ।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

जब वह महल की सीढ़ियाँ उतर रहा था। तो एक दरहम ज़मीन पर गिर पड़ा। शिकारी रूक गया और उसने दरहम उठाकर जेब में रख लिया।

हारून और ज़ुबैदा भी उसे देख रहे थे। ज़ुबैदा जो इतनी रक़म जाने पर अफ़्सुरदा थी।

हारून से बोली। आली जाह। आपने मुलाहीज़ा फ़रमाया के यह शिकारी किस क़द्र लालची और कमीना है।

इसने एक दरहम भी नहीं छोड़ा। क्या हर्ज था अगर उसे महल का कोई और मुलाज़िम ही उठा लेता।

हारून को भी मल्का की बात लायक़े तवज्जोह महसूस हुई। उसने पुकार कर कहा।

शिकारी को बुलाया जाये।

क़रीब बैठे हुए बोहलोल ने दबी ज़बान में कहा। आलीजाह। मल्का कहने पर शिकारी को न रोकिये।

हारून ने तवज्जोह नहीं दी। तब तक चोबदार शिकारी को बुला लाया और हारून की ख़िदमत में पेश किया।

हारून बोला। ऐ शिकारी हमें तेरी यह हरकत बहुत ना-गवार गुज़री है। के तेरे पास चार हज़ार दरहम मौजूद हैं। अगर इनमें से एक गिर गया था। तो तूने यह भी गवारा नहीं किया के उसे छोड़ दे। शायद वह किसी ग़रीब को मिल जाये और वह उससे अपना काम निकाल ले।

शिकारी ताज़ीमन झुका और बोला। जान की अमान पाऊँ तो कुछ अर्ज़ करूँ।

अमान है। हारून ने अमान दी।

शिकारी मोअद्दब लेहजे में बोला। हुज़ूर यह नाचीज़ पस्त फ़ितरत नहीं है। बल्कि नमक की क़द्र करना जानता है। मैंने इस लिये वह दरहम उठा लिया था के उसके एक तरफ़ आयाते क़ुर्आनी कन्दा है और दूसरी जानिब आपका इस्में गिरामी। मैं नहीं चाहता था के यह ज़मीन पर पड़ा रहे और किसी के पाँव तले आ जाये। और बे अदबी हो।

ख़लीफ़ा को उसकी हाज़िर जवाबी ने महज़ूज़ किया। उसने ख़ुश होकर हुक्म दिया।

शिकारी को चार हज़ार दरहम और दिये जायें।

शिकारी रूख़्सत हो गया तो बोहलोल ने कहा। आलीजाह क्या मैंने आपको नहीं रोका था के शिकारी को वापिस न बुलाये।

हारून हँसा। बोहलोल आज तो मैंने तुझसे भी ज़्यादा दीवानगी का मुज़ाहेरा किया है। तुमने मुझे दोनो बार रोका। लेकिन मैंने तवज्जोह नहीं दी। और मल्का की बात पर कान धरने का यह नुकसान हुआ के चार हज़ार के बजाये आठ हज़ार दरहम ख़ज़ाने से गये ।

हकीम

कहते है कि एक बार हारून ने यूनान से किसी हकीम को बुलवाया जब वह बग़दाद पहुँचा। तो हर तरफ़ उसका शोहरा हो गया। हारून ने उसे दरबार में बड़ी इज़्ज़त दी। जिसकी वजह से उसके ओमरा और मोअज़्ज़ेज़ीन शहर हकीम से ख़ास तौर से मिलने गये। बोहलोल को भी ख़बर हुई। वह भी अपनी दीवानगी का लिबास पहने दरबार में पहुँचा। देखा के हकीम दरबार में बड़ी शान से बैठा है। वज़ीर , अमीर उसकी तारिफ़ो के पुल बाँध रहें हैं।

बोहलोल कुछ देर चुपका बैठा रहा। फिर हकीम से बोला। आप क्या काम करते हैं।

हकीम उसकी हैबते कज़ाई देखकर उसे पागल समझा और उसकी हँसी उड़ाने को बोला। जनाब। मैं हकीम हूँ और मेरा काम मुर्दो को ज़िन्दा करना है।

दरबार में दबी-दबी हँसी की आवाज़ सुनाई देने लगी। बोहलोल ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ़ देखा और बड़े मज़े से बोला। जनाब हकीम साहब क़िब्ला बरा-ए-करम आप ज़िन्दों के हाल पर रहम करें। उनकी जान बख़्शी कर दें। बाक़ी रहे मुर्दे। तो उनका ज़िन्दा करना आपका हदिया है।

दबी-दबी हँसी क़हक़हों में बदल गई। हारून भी उनमें शामील था। हकीम इतना ख़जिल हुआ के वापिस यूनान चला गया ।

हारून ने महफ़िल में नौशी सजा रखी थी वज़ीर अमीर बैठे थे मुसलमानों का ख़लीफ़ा कनीज़ो के हाथों से जाम में (शराब के जाम) लेकर ख़म के ख़म लुँढा रहा था के बोहलोल भी वहाँ पहुँचा। उसने ख़लीफ़ा की हरकतों को ख़ामोश निगाहों से देखा तो हारून को उसकी नसीहतें याद आयीं। नशे के तरंग में उसने सोचा के इससे पहले के बोहलोल कोई ऐसी बात कह दे। जो उसका सर झुका दे। वह पहल करे। उसने बोहलोल को देखा और बोला।

बोहलोल। मेरे एक सवाल का जवाब दोगे। मैं तैयार हूँ। बोहलोल ने जवाब दिया।

बोहलोल। यह बताओ के अगर कोई शख़्स अंगूर खा रहा हो तो क्या हराम है। हारून ने सवाल किया।

नहीं। बिल्कुल नहीं। बोहलोल ने कहा।

अगर वह अगूंर खाकर पानी पी ले। तो हारून बोला। कोई हर्ज नहीं। बोहलोल ने बताया।

अब यही शख़्स अगूंर खाने और पानी पीने के बाद धूप में बैठ जायें तो फिर

कोई मुज़ाएक़ा नहीं। जितनी देर चाहे बैठे। बोहलोल ने जवाब दिया।

तो फिर बोहलोल। तुम ख़ुद ही बताओं के यही अगूंर और पानी। कुछ अरसा धूप में रख दिये जायें तो हराम क्यों हो जाते हैं। हारून ने बड़े फ़ख़्र से अपना फ़लसफ़ा बयान किया।

अगर इजाज़त हो तो मैं भी ख़लीफ़ा से चन्द सवाल कर लूँ। उम्मीद है इन्हीं सवालात में ख़लीफ़ा को अपने सवाल का जवाब मिल जायेगा। बोहलोल ने इत्मीनान से कहा।

इजाज़त है। हारून झुमता हुआ बोला।

बोहलोल बोला। क्या आलीजाह बतायेंगें के अगर किसी आदमी के सर पर थोड़ी सी मिट्टी डाल दी जाये तो क्या उसे कोई नुकसान पहुँचेगा।

नहीं। ख़लीफ़ा ने फ़ौरन जवाब दिया।

इसके बाद उसके सर पर थोड़ा सा पानी डाल दें। तो क्या उस शख़्स को कोई तकलीफ़ होगी

नहीं। बिल्कुल नहीं। हारून बोला।

लेकिन बोहलोल ने उसे मुतावज्जेह किया अगर इस मिट्टी और पानी को मिलाकर ईंट बना ली जाये और वह उस शख़्स के सर पर मारी जाये। तो क्या कोई नुकसान होगा।

तुम भी अजीब बातें करते हो बोहलोल। ख़लीफ़ा हँसा। उसका तो सर फट जायेगा।

तो फिर आलीजाह ग़ौर फ़रमायें तो उन्हें मालूम होगा के जिस तरह मिट्टी और पानी मिलकर इन्सान का सर फोड़ सकते हैं। उसी तरह अगूंर और पानी मिलकर भी ऐसी चीज़ बना देतें है जो हराम और नापाक है। जिसके पीने से इन्सान की अक़्ल मारी जाती है। उसे बुरे भले की तमिज़ नहीं रहती। इसलिये इस्लाम ने उसके पीने वाले पर सज़ा वाजिब की है।

हारून का नशा हिरन हो गया। वह मुज़तरिब होकर उठा और पशेमानी से बोला।

शराब की यह महफ़िल बर्ख़ास्त की जाती है।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

एक रोज़ हारून हमाम गया। तो बोहलोल भी हमराह था। हारून को मज़ाक़ सूझा। तो बोहलोल से बोला। बोहलोल। अगर मैं ग़ुलाम होता। तो मेरी क्या क़ीमत लगती।

बोहलोल ने बहुत मज़े से कहा। आलीजाह। सिर्फ पचास दीनार।

ख़लीफ़ा को इसकी उम्मीद नहीं थी। उसका नाज़ुक शाही मेज़ाज बिगड़ा। हो न तुम दीवाने। इन्सान की क़द्र व क़ीमत का तुम्हें अन्दाज़ा ही नहीं। अहमक़ जानते हो के यह तहमद् जो मैंने पहन रखी है। पचास दीनार तो सिर्फ़ इसकी क़ीमत है।

मैंने भी तो सिर्फ़ तहमद् की ही क़ीमत लगाई है सरकार वरना ख़लीफ़ा की कोई क़ीमत नहीं है। बोहलोल ने हँस कर कहा।

शिकार

ख़लीफ़ा बड़े तुज़ुक व एहतेशाम से शिकार पर पवाना हुआ। अमीर वज़ीर हमराह थे। ग़ुलाम तीकमान उठाये साथ-साथ चल रहे थे।

बोहलोल भी मौजूद था। अचानक एक हिरन नज़र आया। ख़लीफ़ा ने फ़ौरन कमान उठाई और हिरन का निशाना लेकर तीर छोड़ा। लेकिन निशाना ख़ता कर गया। हिरन चौकड़ियाँ भरता निगाहों से ओझल हो गया।

बहुत ख़ूब। बहुत ख़ूब। सुब्हानल्लाह। बोहलोल ने बे साख़्ता दाद् दी।

ख़लीफ़ा को ना-गवार गुज़रा। ग़ुस्से से बोला। बोहलोल। तू मेरा मज़ाक़ उड़ा रहा है।

नहीं आलीजाह। यह नाचीज़ तो ऐसी जसारत करने का तसव्वुर भी नहीं कर सकता। बोहलोल ने आजिज़ी से कहा।

तो फिर यह दाद् किसको दे रहे थे। हारून ने सख्ती से पूछा।

जहाँपनाह। मैंने हिरन को दाद् दी है के वह आप के तीर से कितनी ख़ूबसूरती से बचा है।

पुले सिरात

बोहलोल अक्सर क़ब्रिस्तान में बैठा रहता था। एक रोज़ हारून का इसी तरफ़ से गुज़र हुआ। बोहलोल पर निगाह पड़ी। तो सवारी ठहाराई और बोला। बोहलोल यहाँ क्या कर रहे हो।

मैं ऐसे लोगों की मुलाक़ात को आया हूँ। जो न लोगो की ग़ीबत करते हैं। न मुझसे कोई उम्मीद या तवक़्क़ो रखते है और न किसी को कोई तकलीफ़ देते हैं। बोहलोल ने वज़ाहत की।

हारून ने गहरी साँस ली। बोहलोल क्या तुम मुझे पुले सिरात से गुज़रने और उस दुनिया में सवाल व जवाब की कुछ ख़बर दे सकते हो।

यक़ीनन। लेकिन इसके लिये थोड़ा एहतेमाम करना होगा। क्या आलीजाह उसका इन्तेज़ाम कर देंगें। बोहलोल ने कहा

हाँ-हाँ-तुम बताओ। मैं अभी हुक्म देता हूँ। हारून ने जवाब दिया।

फिर आलीजाह। अपने मुलाज़िम को हुक्म दें के यहाँ आग जलायें। उसपर एक बड़ा तवा रखें उस तवे को गर्म होकर सुर्ख़ हो जाने दें।

बोहलोल ने बताया।

बोहलोल की फ़रमाईश पूरी की जायें। हारून ने फ़रमाने शाही जारी किया।

मुलाज़िमों ने फ़ौरन आग जलायी तवा लाया गया और गर्म होने के लिये आग पर रख दिया गया। लोगो की नज़रे उसी जानिब थीं और हैरत में सोच रहे थे के इससे बोहलोल का क्या मक़सद है। यहाँ तक कि तवा ख़ूब गर्म हो गया।

बोहलोल ने कहा। आलीजाह। पहले मैं इस तवे पर नंगे पाँव खड़ा हूँगा और अपना तआर्रूफ़ तआरिफ़ कराऊँगा यानि मेरा नाम क्या है। मेरा लिबास क्या है और मेरी ख़ूराक क्या है इसके बाद इसी तरह आप भी तवे पर खड़े होकर अपना तआर्रूफ़ कराये।

हारून को तम्मुल तो हुआ। लेकिन उसने मन्ज़ूर कर लिया और बोहलोल से बोला। चलो। तुम पहल करो।

बोहलोल तेज़ी से तवे पर खड़ा हो गया और जल्दी से बोला। बोहलोल खिर्क़ा , जौ की रोटी और सिरका यह तीन लफ़्ज़ कहकर वह झट तवे से नीचे उतर आया। इन चन्द लम्हों में उसके पैर जलने से महफ़ूज़ रहे।

अब हारून की बारी आयी। वह तवे पर चढ़ा और शाही अल्क़ाब के साथ अभी अपना नाम भी नहीं बता पाया था के उसके पैर जलने लगे। वह गिरता पड़ता तवे से नीचे उतर आया और बोला।

बोहलोल। तुमने मुझे किस अज़ाब में डाल दिया था।

बोहलोल मुस्कुराया। आपने ही तो फ़रमाईश की थी के आपको क़यामत के सवाल व जवाब के बारे में बताया जाये। तो आपने देखा के गर्म तवे पर क़दम रखना कितना मुश्किल है इसी तरह जो लोग ख़ुदा परस्त है। दुनिया के जा-व-हशम से दूर हैं। लालच और तमअ नहीं रखते। तो पुले सिरात पर से आराम से गुज़र जायेंगे। और जो दुनियावी शान व शौकत में डूबे हुए हैं उन्हे इसी तरह अज़ाब से गुज़रना होगा। जिस तरह अभी आपको महसूस हुआ।

फज़ल बिन रबी

बयान किया जाता है के एक रोज़ हारून का वज़ीर फज़ल बिन रबी एक रास्ते से गुज़र रहा था। उसने देखा के बोहलोल एक तरफ़ बैठा है। कुछ सोच रहा है। फ़ज़ल ने उसका नाम लेकर उसे पुकारा। बोहलोल। क्या सोच रहे हो।

बोहलोल ने चौंक कर सर उठाया देखा के फज़ल बिन रबी खड़ा है। बोला। तेरे अन्जाम के बारे में सोच रहा हूँ।

फ़ज़ल चौंक गया। क्यों। ख़ैरियत तो है बोहलोल।

सारे वज़ीर एक जैसे ही होते हैं। इसलिये उनका अन्जाम भी मिलता झुलता ही होता है। मुझे अन्देशा है के कहीं तेरा भी अन्जाम जाफ़र बर-मक्की का सा न हो।

फ़ज़ल काँप गया और बोला। बोहलोल मैंने जाफ़र बर-मक्की के बारे में सुना तो है। लेकिन दूसरे लोगो की ज़बानी। न जाने इसमें कितना झूठ है और कितना सच। मैं चाहता हूँ कि तू मुझे उसके बारे में बता के आख़िर हारून ने उसके क़त्ल का हुक्म क्यों दिया था।

बोहलोल ने कहा। तो फिर बैठ जा और कान धर कर सुन। फ़ज़ल बैठ गया और बोहलोल ने कहना शुरू किया। तुम जानते हो-ना के मन्सूर के बेटे महदी के ज़माने में ख़ालिद बर-मक्की का बेटा यहिया बर-मक्की हारून रशीद का कातिब मुक़र्रर हुआ था।

फ़ज़ल ने हुंकार भरी। हाँ। मैंने यह भी सुना है कि हारून यहिया और उसके बेटे ज़फ़र की लियाक़त देखकर उन्हें बहुत पसन्द करने लगा था।

बादशाह की पसन्द व ना-पसन्द हमेशा ज़वाल का बायस बनती है। हारून का ज़ाफ़र बर-मक्की के साथ इतनी मोहब्बत हो गयी के उसने अपनी हमशीरा अब्बासा का निकाह ज़ाफ़र बरमक्की से कर दिया। लेकिन उसे यह भी ताकीद कर दी कि वह अब्बासा को अपनी बीवी न बनाये और ख़लीफा की बहन समझकर उसपर दस्तदराज़ी न करे। जाफ़र बर-मक्की ने क़ौल तो दे दिया। लेकिन उस पर पूरा न उतर सका। इसकी इत्तेलाअ हारून को भी हो गई और उसकी मोहब्बत दुश्मनी में बदल गई।

उसने अपने ग़ुलाम मसरूर से कहा। आज तुम्हारे सुपुर्द एक अहम् काम है। जिसकी तकमील हर सूरत में होनी चाहिये।

मसरूर ने सरे तसलीम ख़म किया तो हारून बोला। आज रात जाफ़र बर-मक्की का सर काट कर हमारी ख़िदमत में पेश करो।

मसरूर हक-बक रह गया। उसकी ज़बान गुँग हो गई और उसका सर झुक गया। उसके चेहरे पर तशवीश के आसार देखकर हारून ने कड़े लहजे में कहा। मसरूर तू परेशान क्यों हो गया है। किस सोच में पड़ गया है।

मसरूर ने डरते-डरते कहा। हुज़ूर। यह अम्रे अज़ीम है सोचता हूँ कि काश आपने इस काम के लिये मुझे मुनतख़ब न किया होता।

तो गोया तू अपनी मौत को आवाज़ देना चाहता है और ऐसी मौत जिसपर परिन्दे भी आँसू बहायें। हारून ने ग़ज़्बनाक लहजे में कहा।

तो मसरूर के पास इसके सिवा चार-ए-कार नहीं था कि उसके हुक्म की तामील करे। वह सर झुकाये हुए जाफ़र बर-मक्की के यहाँ पहुँचा और उसे तमाम माजरा कह सुनाया।

जाफ़र बर-मक्की बेहद परेशान हुआ। उसके पैरो तले ज़मीन निकल गई। लेकिन उसने उम्मीद का सहारा लिया और मसरूर से बोला। मसरूर। क्या ख़बर कि ख़लीफ़ा ने यह हुक्म शराब के नशे में दिया हो और जब वह होश में आये तो उसे पछतावा हो इसलिये मेरी मान और ख़लीफ़ा के पास जा। और उसे इत्तेलाअ दे दे कि तूने मुझे क़त्ल कर दिया है। अगर वह अफ़सोस का इज़्हार न करे तो तुझे इख़्तेयार है। शौक से आकर मेरा सर काट ले।

मसरूर ख़लीफ़ा की तबीयत से वाक़िफ़ था वह उसके हुक्म की सरताबी करके ख़ुद मुसीबत में गिरफ़्तार नहीं होना चाहता था। वह जाफ़र से बोला। आप मेरे साथ हारून के महल तक चलें। हो सकता है आपकी मोहब्बत ख़लीफ़ा को अपना फ़ैसला बदलने पर मजबूर कर दें।

जाफ़र को मजबूरन उसकी बात माननी पड़ी। उसके दिल में उम्मीद की थोड़ी-सी जो रमक़ बाक़ी थी। वह उसके सहारे मसरूर के साथ चल पड़ा। मसरूर ने जाफ़र को पर्दे के पीछे ख़ड़ा किया और ख़ुद लरज़्ता काँपता ख़लीफा की ख़िदमत में हाज़िर हुआ।

उसे देखते ही हारून ने कहा। मसरूर क्या तुमने मेरे हुक्म की तामील की है।

मसरूर घबरा गया और जल्दी से बोला आलीजाह। जाफ़र बर-मक्की मेरे साथ आया है वह पर्दे के पीछे खड़ा है।

मसरूर याद रख कि अगर तूने मेरे हुक्म की तामील में ज़र्रा बराबर भी सुस्ती की तो जाफ़र से पहले तेरा सर उड़ता हुआ नज़र आयेगा।

मसरूर को अपनी जान प्यारी थी। उसने लपक कर पर्दा उठाया और तलवार का ऐसा हाथ मारा के वजी व हसीन नौजवान का सर तन से जुदा हो गया फिर उसने उस जवाने रअना का सर हाथ में लिया। जो शराफ़त और दानिशमन्दी की तसवीर था। जिसकी फ़य्याज़ी और सख़ावत सबसे बढ़ी हुई थी। उसे अपने सर पर रखा और हारून के सामने पेश कर दिया। बे रहम ख़लीफ़ा को इस पर भी तसल्ली नहीं हुई और उसने हुक्म दिया के बर-मक्कियों के पूरे खानदान का नाम व निशान मिटा दिया जाये। उनका माल व असबाब क़ुर्क़ कर लिया जाये।

जाफ़र की लाश बग़दाद के क़िले पर लटका दी गई और चन्द दिन बाद उसे जला दिया गया।

ऐ फ़ज़ल वज़ारत का यही अन्जाम होता है। इसलिये मोहतात् रहो और अवाम् की भलाई को हमेशा पेशे नज़र रखो।

फ़ज़ल काँप गया और परेशान से बोला। बोहलोल मुझे सलामती की दुआ दो।

ख़ुदा का घर

फज़ल बिन रबी ने बग़दाद में एक मस्जिद की बुनियाद डाली। वह अपने ख़र्च पर उसे बनवाता रहा। जब तामीर मुकम्मल हो गई। तो मस्जिद के दरवाज़े पर कत्बा लगाने की बारी आयी। फ़ज़ल भी इस मौक़े पर आया। उससे पूछा गया के इस कत्बे पर कौन सी इबारत लिखाई जाये।

ज़ाहिर है इस पर तो मेरा ही नाम लिखा जायेगा। फ़ज़ल ने बड़े फ़ख़्र से कहा।

बोहलोल क़रीब ही खड़ा था। वहीं से पुकार कर बोला। हज़रत फज़ल बिन रबी। क्या आप इस दीवाने को यह बताने की ज़हमत गवारा फ़रमायेंगें के आपने यह मस्जिद किस के लिये बनवाई है।

यह ख़ुदा का घर है। इसे मैंने अल्लाह की ख़ातिर बनाया है। फ़ज़ल ने जवाब दिया।

बोहलोल मुस्कुराया आपका फ़रमान बजा है। के यह आपने अल्लाह के लिये बनवाई है तो फिर इस पर अपना नाम क्यों लिखवा रहें है।

फ़ज़ल ने ग़ुस्से से उसकी तरफ़ देखा। क्यों। मैं अपना नाम इस कत्बे पर क़यों न लिखवाऊँ।

आख़िर लोगों को भी तो मालूम होना चाहिये के इस मस्जिद को बनवाने वाला कौन है।

तो फ़िर मेरा नाम लिखवा दो। लिखवा दो के इस मस्जिद का बानी बोहलोल है। बोहलोल ने हँसकर कहा।

अजीब दीवाने हो तुम। भला तुम्हारा नाम लिखवाने की क्या तुक है। उसने ना-गवारी से कहा।

चलो न सही। मेरा नाम न लिखवाओ अपना ही नाम लिखवा लो ताकि तुम्हारी शौहरत और नेकनामी हो। लेकिन फिर सवाब का ख़्याल अपने दिल में न लाना। बोहलोल यह कहता हुआ आगे बढ़ गया।

फ़ज़ल का सर झुक गया। वह निदामत से बोला। बुलाओ बोहलोल को। और जो कुछ वह कहता है कत्बे पर वही लिख दो।

लोग बोहलोल के पीछे दौड़े और उस से पूछने लगे के कत्बे पर क्या लिखा जाये तो वह बोला। क़ुर्आन पाक की आयत से बेहतर कुछ नहीं। जो इस कत्बे पर कंदा की जाये।

फ़ज़ल ने भी उसकी ताईद की और मस्जिद के कत्बे पर आयते क़ुर्आनी लिखवाई गई।

ऊँट की खुजली

एक ऐराबी के ऊँट को खुजली लाहक़ हो गई। लोगो ने मशविरा दिया के इस पर अरण्डी के तेल की मालिश करें। एअराब ऊँट पर सवार हुआ और शहर की जानिब रवाना हो गया ताकि अरण्डी का तेल ख़रीद लाये।

राह में बोहलोल को देखा। तो उसने अपना ऊँट ठहरा लिया। नीचे उतरा और उसे सलाम करके बोला। मै अजीब मुसीबत में गिरफ़्तार हो गया हूँ। मेरे ऊंट को ख़ारिश हो गई है। लोगो ने तो अरण्डी के तेल की मालिश करने का मशविरा दिया है मैं अरण्डी का तेल लेने ही जा रहा था। तुम्हें देखा। तो मुझे ख़्याल आया के तुम्हारी दुआ में तो बड़ा असर है। अगर तुम मेरे ऊँट पर दमकर दो। तो इसे शिफ़ा हो जायेगी।

बोहलोल मुस्कुराया। सिर्फ़ मेरी दुआ में तो इतनी तासीर नहीं है कि इतना बड़ा ऊँट उससे शिफ़ायाब हो जाये। हाँ अगर तुम अरण्डी का तेल ले आओ। तो मैं उस पर दुआ दम कर दूँगा। तुम वह तेल इस्तेमाल करना। तो उम्मीद है कि काम बन जायेगा।

बात उस शख़्स के समझ में आ गई। वह शहर से तेल ख़रीद लाया। बोहलोल ने उस पर दुआ दम कर दी। कुछ रोज़ की मालिश से उसका ऊँट तन्दरूस्त हो गया।

गधे की बात पर भरोसा

बोहलोल का एक दोस्त गेहूँ पिसवा कर वापिस आ रहा था के उसका गधा लगंड़ाने लगा। उसने गधे को दो तीन छड़ियाँ लगाकर आगे ढकेलना चाहा। लेकिन वह टस से मस न हुआ और बिल-आख़िर ज़मीन पर गिर पड़ा। क़रीब ही वह ख़स्ता हाल मकान था। जहाँ बोहलोल उन दिनों मुक़ीम था। उस शख़्स ने दरवाज़ा खटखटाया और आवाज़ दी।

बोहलोल भाई। बोहलोल भाई।

ज़रा मुझे अपना गधा तो दे दो। मेरा गधा तो आधे रास्ते में जवाब दे गया और मुझे यह आटा घर पहुँचाना है।

बोहलोल उसकी आवाज़ पहचानता था वह उसकी आदत से भी वाक़िफ़ था के वह जानवर की सही निगेहदाश्त नहीं करता था और उनसे बेरहमी का सुलूक करता था।

इसलिये वह उसे अपना गधा देना नहीं चाहता था। वह बाहर निकला और उस शख़्स से बोला। यार। बड़ा अफ़सोस है के मेरा गधा। कोई माँग कर ले गया है। इसलिये इस वक़्त तो तुम्हारे काम नहीं आ सकता।

अभी बोहलोल के अल्फ़ाज़ उसके मुँह में ही थे के घर के अन्दर से गधे की ढीचूँ-ढीचूँ की आवाज़ सुनाई देने लगी।

वह शख़्स होशियार हुआ और शिकवे के अन्दाज़ में बोला। अच्छा बोहलोल भाई तुम भी अच्छे दोस्त हो। तुम्हारा गधा तो घर में मौजूद है और तुम कहते हो के उसे कोई माँग कर ले गया है।

और तुम भी अच्छे दोस्त हो। बोहलोल ने उसी के लहजे में कहा। मेरा तुम्हारी पचास साल का साथ है और तुम मेरी बात पर यक़ीन नहीं कर रहे। और गधे की बात मानने पर तैयार हो ।

हम्माम

बोहलोल हमाम करने गया। तो वह अपनी गुदड़ी लपेटे हुए था। उसकी पापोश भी बोसीदा थी और लिबास भी उमदा नहीं था। हमाम के हम्मामियों ने उसकी तरफ़ बिल्कुल भी तवज्जोह नहीं दी। काफ़ि देर बाद उसकी बारी आयी। तो भी उन्होने बोहलोल की कोई ख़ास परवाह नहीं की। और उसके हस्बेमंशा नहाने का कीसा उसके बदन पर नहीं रगड़ा। बोहलोल फ़ारिग़ हो चुका। तो बाहर आया। उसने अपनी जेब में हाथ डाला और दस दीनार निकाल कर हमाम के मालिक की हथेली पर रख दिये।

हमाम का मालिक उजरत से बहुत ज़्यादा रक़म देखकर क़द्रे नादिम हुआ के उसने बोहलोल के साथ लापरवाही बर्ती। बोहलोल कुछ कहे बग़ैर हमाम से बाहर निकल आया।

अगले हफ़्ते फिर वह हमाम करने आया। तो उसे देखते ही हमामी दौड़े हुए आये और उसे हाथों-हाथ अन्दर ले गये और बड़े अदब से उसे ग़ुस्ल करने में मद्द दी।

बोहलोल फ़ारिग़ होकर बाहर आया तो उसने जेब में हाथ डाला और एक दीनार मालिक की हथेली पर रख दिया। वह ग़ुस्से से लाल भभुका हो गया। उसने दीनार दूर फेंक दिया और दुरूश्ती से बोला।

हज़रत आप होश में तो हैं। हमाम करने की यह उजरत।

क़िब्ला। इस मर्तबा हमाम करने की उजरत तो मैं पिछले हफ़्ते ही आपकी ख़िदमत में अदा कर चुका हूँ। यह तो पिछले हफ़्ते की उजरत है। जो मैंने अब अदा की है। ताकि आपको अहसास हो के ग्राहकों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये।

अजनबी की अमानत

बग़दाद के आवारा लड़के पागल-पागल का शोर मचाते एक शख़्स के पीछे दौड़े जा रहे थे। वह परेशान हाल शख़्स बार-बार मुड़कर उन्हें मना करने की कोशिश करता। लेकिन वह किसी तौर पर नहीं मानते थे। कोई उसे पत्थर मारता था। कोई उसके कपड़े खींचता था।

कोई पागल-पागल कह कर उसे छेड़ता था। वह उन्हें मना करकर के थक गया। तो उसने हाथ जोड़ दिये और उन नन्हें शैतानों से बोला। ख़ुदा के लिये मेरा पीछा छोड़ दो। मैं पागल नहीं हूँ। मैं पागल नहीं हूँ। उसकी आवाज़ रूंध गयी थी और उसकी आँखों में आँसू आ गये थे।

लड़के खिलखिलाकर हँस पड़े। उनमें से एक शरीर बोला। सारे ही पागल इसी तरह कहते हैं।

दूसरे ने लुक़्मा दिया। तुम तो शक्ल से ही पागल नज़र आते हो और फिर भी कहते हो के मैं पागल नहीं।

पागलों के सर पर सींग तो नहीं होते। कोई और बोला और सब उसे छेड़ने और तंग करने लगे।

ठहर जाओ। शैतान के चेलों। मैं अभी तुम्हें सीधा करता हूँ। एक कड़कदार आवाज़ सुनाई दी तो लड़को ने मुड़कर देखा।

बोहलोल अपना असा लहराता चला आ रहा था। तुम लोगों को शर्म नहीं आती एक शरीफ़ आदमी को तंग करते हो। वह ग़ुस्से से बोला। तुम्हें ज़रा ख़ौफ़े ख़ुदा नहीं है। बेचारे अजनबी को परेशान करके रख दिया। चलो भागो। यहाँ से वरना।

उसने दाँत पीसकर लाठी उठाई। तो लड़के सर पर पैर रख कर भागे।

उस शख़्स की जान में जान आयी। उसने अपना लिबास दुरूस्त किया और हाँपता हुआ बोला। आपकी बहुत मेहरबानी। अगर आप न आते तो ये शरीर लड़के सचमुच मुझे पागल ही कर देते। उसकी आँखें भीग गयी।

बोहलोल ने उसकी जानिब देखा। वह शक्ल व सूरत और लिबास से अजनबी मालूम होता था। उसके चेहरे पर परेशानी और हरास था। बोहलोल ने हमद्रदी से पूछा।

भाई। तुम अजनबी मालूम होते हो। हमारे इस शहर ने तुम पर जो ज़ुल्म किया है कुछ तो मैंने अपनी आँखों से देख लिया है। और कुछ तुम सुना दो के जिसने तुम्हारी आँखों में आँसू भर दिये हैं।

उस शख़्स ने एक आह भरी। आप दुरूस्त फ़रमाते हैं। इस शहर ने तो मुझे पागल बनाने में कसर नहीं छोड़ी है। मैं चन्द रोज़ पहले ही यहाँ वारिद हुआ हूँ। मेरे पास कुछ जवाहरात और सोने के सिक्के थे। वही मेरी पूँजी थी और वही ज़ादे सफ़र मैंने इस ख़ौफ़ से कि कहीं अजनबी शहर में लुट न जाऊँ। वह जवाहरात एक अत्तार के पास ज़मानत रखवा दिये थे। मगर अफ़सोस आज जब मैंने अपनी अमानत का मुताल्बा किया तो वह मुकर गया। उसने मुझे बुरा भला कहा और शरीर लड़को को यह कहकर मेरे पीछे लगा दिया के मैं पागल हूँ। उसके आँसू बह निकले।

बोहलोल ने उसे तसल्ली दी। भाई। मुझे बहुत अफ़सोस है के इस शहर में तुम्हारे साथ ऐसा सुलूक हुआ है। लेकिन तुम फ़िक्र न करो। तुम्हारी अमानत तुम्हें ज़रूर मिलेगी।

मुझे यक़ीन तो नहीं आता। वह अत्तार हद दर्जा चालाक और मक्कार है लेकिन उम्मीद पर दुनिया क़ायम है। मायूसी कुफ़्र है। इसलिये मैं भी अपनी टूटी आस फिर जोड़ लेता हूँ। अगर आप मेरी जमा पूँजी मुझे दिलवा दें। तो मैं उम्र भर आपको दुआएं दूँगा। अजनबी ने कहा।

भाई तुमने सच कहा के मायूसी कुफ़्र है। तुम फ़िक्र न करो। तुम्हारी अमानत तुम्हें ज़रूर मिलेगी। बोहलोल ने बड़े यक़ीन से कहा।

ख़ुदा आपका भला करे। अजनबी बोला।

अच्छा अब तुम इस तरह करो के मुझे उस अत्तार का पता बता दो कल उसी वक़्त तुम फिर उस अत्तार की दुकान पर आना और उससे अपनी अमानत का मुताल्बा करना। बोहलोल ने उसे हिदायत दी।

नहीं जनाब। अब मैं उस मक्कार की दुकान पर नहीं जाऊँगा पहले ही उसने मेरे साथ क्या कुछ नहीं किया। अजनबी ने घबराकर कहा।

पूरी बात तो सुन लो यार। तुम्हें इस क़द्र घबराने की ज़रूरत नहीं है। मैं उसकी दुकान पर पहले से ही मौजूद हूँगा। यह मेरा ज़िम्मा के वह तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। बोहलोल ने ज़ोर देकर कहा।

अगले रोज़ बोहलोल उस अत्तार की दुकान पर पहुँचा उसके हाथ में एक थैली थी। वह उसे सलाम करके बाला। जनाब मैं कुछ अर्से के लिये ख़ुरासान जा रहा हूँ। दूर का सफ़र है। ख़ुदा मालूम वापिस आऊँ या न आऊँ राह में चोर डाकुओं का भी ख़तरा है। यह मेरी जमा पूँजी है। कुछ जवाहरात और तीस हज़ार अशर्फ़ियाँ हैं। आप इन्हें मेरी अमानत समझकर रख लें। अगर मैं तीन माह बाद वापिस आ गया तो अपनी अमानत ले लूँगा। अगर मुझे वापिस आना नसीब न हुआ। तो आप इस रक़म से कोई मस्जिद बनवा दें। बोहलोल ने निहायत संजीदगी से कहा।

अत्तार ने थैली हाथ में ली। उसका बोझ महसूस करके वह दिल ही दिल में ख़ुश हुआ और बोला। जनाब। आपका कहा सर आँखों पर आप बद्-शुगूनी की बातें न करें। इन्शाल्लाह आप ज़रूर वापिस आयेंगे और अपनी अमानत इसी तरह महफ़ूज़ पायेंगे।

मैं आपका बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। आपने मेरी परेशानी दूर कर दी है।

बोहलोल ने थैली उसके हवाले कर दी। उसी वक़्त वह अजनबी भी दुकान पर पहुँच गया और बड़ी लजाजत से बोला। जनाब। मैंने जो अमानत आपके पास रखवाई थी।

बरा-ए-करम उसे एनायत फ़रमा दीजिये।

अत्तार सोचने लगा के उसे क्या जवाब दे। अगर वह इन्कार करता है तो बोहलोल मश्कूक हो सकता है। क्या ख़बर वह अपनी अमानत वापिस ले जाये और किसी दूसरे के पास रखवा दे। बोहलोल की थैली उसकी थैली से काफ़ी वज़नी है। बोहलोल ख़लीफ़ा का रिश्तेदार भी है। उसको अक्सर व बेश्तर ख़लीफ़ा से नज़राने मिलते रहते है। यक़ीनन इसके जवाहरात ज़्यादा क़ीमती होंगे। यह सोचकर उसने अपने मुलाज़िम से कहा के वह अजनबी की थैली लाकर उसे दे दें।

उस शख़्स ने थैली ली और दुआएं देता हुआ चला गया। बोहलोल भी अत्तार को ख़ुदा हाफ़िज़ कहकर रूखसत हुआ। अत्तार ने बेक़रारी से वह थैली खोली ताकि उसकी मालियत का अन्दाज़ा कर सके। यह देखकर उसकी आँखें खुली की खुली रह गयीं के थैली में लौहे और काँच का टुकड़े भरे हुए थे ।