ईसाइयों का ख़िराजे अक़ीदत
मिस्टर जान लिविन्ग
इमाम हुसैन (अ
0)दीनदार ख़ुदा परस्त
,फ़रोतन और बेमिस्ल बहादुर थे। वो सल्तनत और हुकूमत के लिये नहीं लङे बल्कि ख़ुदा परस्ती के जोश में यज़ीद से इसलिये बेज़ार थे कि वो इस्लाम और दीने मोहम्मदी के ख़िलाफ़ था।
मिस्टर वाशिंगटन औरंग
10मोहर्रमुल हराम
61हि
0मुताबिक़
3अक्तूबर
685ई
0इस लाजवाब लङाई की तारीख़ है। कई हज़ार फ़ौज के साथ लङने में बहत्तर आदमियों का ज़िन्दा रहना मुहाल था। ज़िन्दगी तलफ हो जाने का यक़ीने कामिल था। निहायत आसानी से मुमकिन था कि हज़रत इमाम हुसैन (अ
0)यज़ीद से उसकी तमन्ना के मोआफ़िक़ बैअत करके अपनी जान बचा लेते मगर इस ज़िम्मेदारी के ख़्याल ने जो एक मज़हबी मुस्लेह की तबियत में होती है इस बात का असर न होने दिया और आपको निहायत सख़्त मुसीबत और तकलीफ पर भी एक बेमिस्ल सब्र व इस्तेक़लाल के साथ क़ायम रक्खा। छोटे-छोटे बच्चे का क़त्ल
,ज़ख़्मों की तकलीफ़
,अरब की धूप
,उस धूप में ज़ख़्म और प्यास ये ऐसी तकलीफ़े न थीं जो सल्तनत के शौक़ में किसी आदमी को सब्र के साथ अपने इरादे पर क़ायम रहने दे। (अंजाम कराची)
मिस्टर कारलायल
(मुसन्निफ़ हीरोज़ एण्ड हीरो वरशिप)
आओ
हम
देखें
कि
वाक़ेए
करबला
से
हमें
क्या
सबक़
मिलता
है।
सबसे
बङा
सबक़
यह
है
कि
शुहदा
-
ए
-
करबला
को
ख़ुदा
का
कामिल
यक़ीन
था।
इसके
अलावा
उनसे
क़ौमी
ग़ैरत
और
हमीयत
का
बेहतरीन
सबक़
मिलता
है
जो
किसी
और
तारीख़
में
नहीं
मिलता।
वो अपनी आँखों से इस दुनिया से अच्छी दुनिया देख रहे थे। एक नतीजा यह भी हासिल होता है कि जब दुनिया में मुसीबत और ग़ज़ब वग़ैरह बहुत होता है तो ख़ुदा का क़ानून क़ुर्बानी मांगता है। इसके बाद तमाम राहें साफ़ हो जाती हैं। (अंजाम कराची)
मिस्टर जेम्स काकरन
(मुसन्निफ़ तारीख़े चीन)
दुनिया में रूस्तम का नाम बहादुरी में मश्हूर है लेकिन कई शख़्स ऐसे गुज़रें हैं जिनके सामने रूस्तम का नाम लेने के क़ाबिल नहीं।
बहादुरी में अव्वल दरजा हुसैन इब्ने अली (अ
0)का है। क्योंकि मैदाने करबला में रेत पर तशनगी और भूक की हालत में जिस शख़्स ने ऐसा काम किया हो उसके सामने रूस्तम का नाम वही शख़्स लेगा जो तारीख़ से वाक़िफ़ न हो। (अंजाम कराची)
मिस्टर आरथर एन-विस्टन
(सी-आई-ए)
इमाम हुसैन अ
0सब्र व इस्तेक़लाल और अख़लाख़ के वो आला जौहर और कमालात मौजूद थे जो आम इन्सानो में नहीं पाये जाते हैं। इस लिये इमाम हुसैन अ
0की ज़ात ख़ुद एक मौजिज़ा है। इमाम हुसैन अ
0की बहादुरी और शुजाअत की मिसाल शायद ही दुनिया कभी पेश कर सके। अक़वामें आलम की तारीख़ कभी कोई ऐसा सूरमा न पेश कर सकी जो हज़ारों से यक्को तन्हा लङा हो और ब-रज़ा-व-रग़बत मरने पर तैयार हो गया हो। (हुसैनी पैग़ाम)
मिस्टर परमेल पीटर प्रेग
इमाम हुसैन अ
0की तारीख़ी हैसियत हम पर एक बार और ये अम्र ज़ाहिर करती है के कोई न कोई ख़ुदाई आवाज़ मौजूद है जिसके मुताबिक़ हर मुल्क के फ़र्द और क़ौम की रहबरी होती रहती है और उसका असर उन पर पङता है।
इमाम हुसैन अ
0ने कामिल इंसानियत के नमूने को दुनिया में पेश करने में कामिल तरीन हिस्सा लिया है। सबसे बालातर उनकी इस्लाही कोशीश है और वह जुर्अत है जिससे उन्होने इस काम का पूरा करने में मसायब का मुक़ाबला किया। वो समझते थे के रूहानी दुरूस्ती व सिदाक़त को बाला तर रखने में जो क़ुर्बानी झेली जाती है उसकी अज़मत से इंसानी ज़िन्दगी की क़ीमत और बढ़ जाती है। इस बात में ख़ास माअनी है कि अगरचे ख़ुदा के ये सिपाही अपने मक़ासिद के हुसूल के वास्ते माददी दुनिया में जंग करते हैं लेकिन चूंकि एख़लाख़ी व रूहानी दुनिया माददी दुनिया की असास या बुनियाद है और एख़लाख़ी व रूहानी दुनिया माददी दुनिया की रहबरी कर सकती है। इस लिये इन अज़ीमुश्शान इंसानो की शिकस्त भी कुछ दिनों के बाद माददी दुनिया में फ़तह की शक्ल में तब्दील हो जाती है।
इमाम हुसैन अ
0हमें हक़ व सदाक़त के लिये जंग करना सिखाते हैं और यह भी सिखाते हैं कि इंसानो को ख़ुदगरज़ी और जात-पात की वजह से नहीं बल्कि मज़लूमों के हुक़ूक़ कि हिफ़ाज़त के लिये लङना चाहिये जो बेइंसाफ़ी का शिकार हैं।
इमाम हुसैन अ
0की सीरत से हमको यह दर्स भी हासिल होता है कि हमें सदाक़त की हिमायत के वास्ते जंग करना चाहिये
,ख़्वाह ऐसा करने से हमको शिकस्त ही क्यों न हो
,हमको क़ुर्बानी ही क्यों न देनी पङी।
(इंसाने कामिल)
सर फ़्रेडरिक जे-गोल्ड
(मशहूर युरोपी मुसन्निफ़)
लोग नये निज़ाम का ज़िक्र करते हैं लेकिन सिर्फ़ वही निज़ाम बाक़ी रहने के क़ाबिल है जिसकी बुनियाद रूहानियत पर हो। उन उसूलों पर जिनकी तालीम ख़ुद इमाम हुसैन अ
0ने दी थी। यानी इन्फ़ेरादी
,जमाअती
,क़ौमी और बैनुलअक़वामी ज़िन्दगी में रवादारी
,आज़ादी तहफ़्फ़ुज़ और इंसाफ़ की तालीम। इस क़िस्म के नये निज़ाम में सल्तनत के ग़ल्बे और जबरो ज़ुल्म का इमकान नहीं रहेगा बल्कि एक मुश्तरक ज़िन्दगी होगी जो एक इंसानी और क़ौमी उख़ुवत क़ायम करेगी। दर हक़ीक़त इमाम हुसैन अ
0एक इंसानी फ़हम व ज़क़ावत का आला नमूना हैं जो तनफ़्फ़ुर
,जंग और ज़ुल्म की तारीक दीवारों में से होती हुई रेगिस्तानों और समुन्दरों को अबूर करती हुयी अम्न व अमान का पैग़ाम देती हैं। इमाम हुसैन अ
0की ज़िन्दगी हमारे लिये एक मुफ़ीद और नसीहत आमेज़ सबक़ है। पैग़म्बरे इस्लाम स
0का नवासा और हज़रत अली अ
0का फ़रज़न्द जिन्होंने कुस्तुनतुनियां में बहैसियत एक बहादुर सिपाही के काम सर अंजाम दिया था और बहैसियत एक आदिल हाकिम के हुकूमत की थी। इमाम हुसैन अ
0ने अपने अमल में दिखा दिया कि किस तरह नौजवानों को अपने आबाओ अजदाद के कारनामों का एहतेराम और उनके औसाफ़े हमीदा और जज़्बा-ए-ख़िदमते ख़ल्क़ को जारी रखना चाहिये। (हुसैन दी मार्टर)
सर जार्ज टामस
कौन है जो इमाम हुसैन अ
0की हक़ व सदाक़त को बलन्द करने वाली इस लङाई की तारीफ़ किये बग़ैर रह सकेगा। दूसरो को लिये जीने का उसूल
,कमज़ोरो और दुखयारों की इमदाद को अपना मक़सदे हयात बनाने की बेनज़ीर मिसाल इमाम हुसैन अ
0की बेलौस शख़्सियत से ज़्यादा रौशन और कहीं नहीं मिल सकती। जिन्होनें अपनी और अपने महबूब तरीन अज़ीज़ो और साथियों की जान की बाज़ी लगा दी लेकिन एक ज़ालिम और ताक़तवर बादशाह के सामने सर झुकाने से इन्कार कर दिया।
हुसैन अ
0ने आज से तेरह सौ साल पहले अपनी जान दी थी
,लेकिन उनकी लाफ़ानी रूह आज भी दुनिया में मौजूद है और उनकी शहादत की पाकीज़ा याद हर सान मोहर्रम में ताज़ा कि जाती है। (हुसैन डे रिपोर्ट)
डा
0क्रिसटोफ़र डी विक्टर
(मिशन अस्पताल बम्बई)
मैंने हज़रत इमाम हुसैन अ
0की ज़िन्दगी और उनके कारनामों का मुतालेआ बहुत गहरी नज़र से किया है। मैंने उनमें ख़ुदावन्दे यसूमसीह की सी मोहब्बत पायी है।
अगर हज़रत मसीह को सलीब पर चढ़ाया गया तो हज़रत इमाम हुसैन अ
0का सर ज़ेबे नेज़ा किया गया। मसीह को हक़ व सदाक़त के लिये सूली पर लटकाया गया और हुसैन अ
0ने भी हक़ और सच्चाई कि मुदाफ़ेअत के लिये अपनी और अपने बच्चों की जान क़ुर्बान की। इस लिये ईसाई फ़िरक़ा हुसैन अ
0से जितनी भी मोहब्बत करे कम है। वो दुनिया में हक़ का बोलबाला करने के लिये पैदा हुए थे और उनके हाथ से हक़ का बोलबाला हो गया। अब जब भी किसी कि ज़ुबान पर हक़ और शुजाअत
,ये दोनो नाम आयेंगे तो ना मुमकिन है कि हुसैन अ
0का नाम न आये। हुसैन अ
0की क़ुर्बानी की अज़मत का यह एक ज़िन्दा सबूत है।
काश दुनिया इमाम हुसैन अ
0के पैग़ाम
,उनकी तालीम और मक़सद को समझे और उनके नक़्शे क़दम पर चल कर अपनी इस्लाह करे। (बम्बई क्रानिकल)
डा- एच-डब्लू-बी-मोरनीऊ
इमाम हुसैन अ
0उसूने सदाक़त के सख़्ती से पाबंद रहे और और अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात तक मुस्तिक़िल मिजाज़ और ग़ैर मुताज़लज़िल रहे।
उन्होंने ज़िल्लत पर मौत को तरजीह दी। ऐसी रूहे कभी फ़ना नहीं होती और इमाम हुसैन अ
0आज भी रहनुमायाने इंसानियत की फ़ेहरिस्त में बुलन्द मक़ाम के मालिक है। वो तमाम मुसलमानों के लिये रूहानी पैग़ामे अमल पहुँचाने वाले है। और दूसरे मज़हब के पीरों के वास्ते नमुन-ए-कामिल हैं। वो निडर थे और ख़ुदा परस्ती की मंज़िल में कोई ताक़त उनको ख़ौफ़ नहीं दिला सकती थी। वो अपने नस्बुल ऐन के हासिल करने में सच्चाई के साथ कोशं रहे। (हुसैन दी मार्टर)
लार्ड हेडले
(लन्दन)
हज़रत इमामे हुसैन अ
0ने मैदाने करबला में अनथक जद्दो जहद के साथ लोगों को अहकामे रसूल स
0अ
0की तरफ़ मुतावज्जेह किया और यह बताया कि हक़ पर साबित क़दम रहने की सई इन्सान का फ़र्ज़े अव्वलीन है। अगर हुसैन अ
0में सच्चा जज़्बा कारफ़रमा न होता तो अपनी ज़िन्दगी के आख़री लम्हात में उनसे रहमों करम
,सब्रो इस्तेक़लाल और हिम्मत व जवां मरदी हरगिज़ अमल में आ ही नहीं सकती थी जो आज सफ़ह-ए-हस्ती पर सब्त है। अगर वो दुनियादार इन्सान होते तो बिला शुब्हा दुश्मन के सामने सरे तसलीम ख़म कर देते। मगर जज़्बे इलाही वा तालीमाते मोहम्मदी का असर ये था कि वो मए तमाम रोफ़क़ा के मौत के घाट उतर गये। लेकिन फिस्क़ो फिज़ूर और ग़ैर इस्लामी उसूल की हिमायत न करना थी न की जब इन्सान उनके कारनामों और शहादत का हाल तारीख़ में पढ़ता है तो उसे हुसैन अ
0की अज़मत और उनकी सीरत का अन्दाज़ा होता है।
मालूम होता है कि हुसैन अ
0ने अपने रोफ़क़ा में भी वही अपना वाला जज़्बा पैदा कर दिया था कि इसका कहीं भी पता नहीं मिलता कि उनके असहाबे ख़ास में से किसी एक ने भी मसायब में उनका साथ छोङा हो।
ये एक दास्ताने ग़म है जिसका ख़ात्मा रूह फ़रसा है। इससे मालूम होता है कि किस तरह एक बलन्द सूरत का हामिल
,एक बलन्दो अज़ीम मक़सद के लिये अपनी जान की परवाह नहीं करता
,अपने नफ़्स को क़ुर्बान कर देता है मगर उसूल की क़ुर्बानी किसी तौर गवारा नहीं करता। (हुसैन अ
0दी मार्टर)
मिस्टर जे-आर-राबिन्सन
मेरी ज़िन्दगी का बेशतर हिस्सा तारिख़ के मुताअले में गुज़रा है मगर जो कशीश और मज़लूमीयत मुझे तारीख़े इस्लाम के इस बाब में नज़र आई जो हुसैन अ
0और करबला से मुताल्लिख़ है वह कहीं नहीं देखी। मुसलमानो के पाक नबी स
0के विसाल के बाद उनके नवासे ने जो अज़ीमुश्शान कारनामा अन्जाम दिया वह इस्लामी तालीम की सदाक़त और हुसैन अ
0की अज़मत की बहुत बङी दलील है। इमाम हुसैन अ
0ने सैकङो मुश्किलात के बावजूद अपने उसूलों और इस्लामी निज़ामें हुकूमत कि हिफ़ाज़त की। एक जाबिर ताक़त के सामने सफ़आरा होने की ज़र्रा बराबर झिझक महसूस नहीं की। बङी बहादरी
,उलुल अज़मी और ख़न्दा पेशानी के साथ मसायब का मुक़ाबला किया और अपने जांनिसारो के साथ शहीद हो गये।
बिला शुब्हा तारीख़े आलम में ऐसी मिसालें कामयाब हैं बल्कि नायाब हैं और जब हम इस वाक़ेऐ को इस नुक़तए निगाह से देखते हैं तो हुसैन अ
0की अज़मत और भी बढ़ जाती है। कि उन्होंने जितनी तकलीफ़े उठाईं और जिस शदीद मुसीबत के आलम में शहीद हुए इसमें उनका ज़ाती मफ़ाद न था। उन्होने जो कुछ किया ख़ुदा के लिये किया। तस्लीम करना पङता है कि उनसे पहले और उनके बाद अब तक शहीदों में कोई उनके हम पल्ला नहीं गुज़रा। (इत्तेहाद लाहौर)
मिस्टर डब्लू-सी-टेलर
ज़ालिमो ! बताओ ख़ौफ़नांक क़यामत के दिन तुम क्या जवाब दोगे जब मोहम्मद स
0अ
0तुम से सवाल करेंगें। कहाँ है वह साहेबाने क़राबत जिनकी मवद्दत मैंने तुम पर फ़र्ज़ की थी
?जिनमें कि हर फ़र्द की जान मुझे हज़ारों जानों से ज़्यादा अज़ीज़ थी।(यही न) कि बाज़ को भारी भारी ज़ंजीरों में जकङ कर तारीक क़ैदख़ानों में असीर किया और कुछ करबला के बे आबो गयाह सहरा में ज़ख़्मों से चूर खाक में लिथङे पङे है।
जब तख़्ते अदालत के रू-ब-रू तुम्हारा रसूल स
0अ
0से सामना होगा तो वो तुमसे इस्तेफ़सार करेंगे। क्या उस शख़्स के ऐहसानात का तरीक़ा-ए-इज़हारे शुक्रगुज़ारी यही है
?जिसका चश्माये फ़ैज़ तुम्हारे लिये निहायत आज़ादी से जारी रहा। (मुस्लिम रिविव्व)
जस्टिस आरनाल्ड
(बम्बई हाईकोर्ट)
रसूले इस्लाम स
0अ
0की नस्ल में महज़ तन्हा एक इमाम हुसैन अ
0ही रह गये थे जो अली अ
0और फ़ातेमा स
0के छोटे बेटे थे
,उनमें बाप की शुजाअत और बहादुरी कूट कूट कर भरी थी
,वह बेहद बहादुर और शरीफ़ ख़्याल इंसान थे। इमाम हुसैन अ
0कूफ़ियों के बार बार तलब करने पर (जिन्होंने इताअत के वादे किये थे) आप एक मुख़्तसर जमाअत के साथ रवाना हुए। इस जमात में उनकी बीवी
,उनके बेटे
,उनकी बहने और रोफ़ाक़ा में चन्द सवार थे। आप जब अरब के रेगिस्तानों को तय कर गये तो फ़रात के किनारे जो कूफ़े से चंदां दूरी नहीं है दुश्मनों के नरग़े में घिर गये।
हज़रत अली अ
0और हज़रत फ़ातेमा स
0अ
0का शरीफ़ ख़्याल फ़रज़न्द रसूले ख़ुदा का प्यारा नवासा शुजाअत और बहादुरी के जौहर दिखाकर नामरदों के दूर के हमलों से ज़ख़्मी होकर शहीद हो गये। दुश्मन उनके नज़दीक जाने जुर्अत नहीं करते थे कि मुबादा इस शेर के पंजे में गिरफ़्तार होकर मौत के सिपुर्द कर दिये जायें।
इमाम हुसैन अ
0का सर तन से जुदा कर लिया गया और कूफ़े में कूचा-ब-कूचा फिराया गया और मुशतहर किया गया। इस जां ग़ुस्ल वाक़ेये ने मेरे दिल को इंतेहा दर्जा तहो बाला कर डाला है। (हुसैनी दुनिया)
डाक्टर एडवर्ड सील
(मुसन्निफ़-ख़िलाफ़ते बनी उमय्या व बनी अब्बास)
इस मुख़्तसर जमाअत का हर फ़र्द यके बाद दीगरे मैदाने कारज़ार में शहीद कर दिया गया। यहा तक कि सिर्फ़ हुसैन अ
0और आपका ख़ुर्द साल फ़रज़न्द जो बहुत कमसिन था बक़ैदे हयात थे। ये बच्चा कौन था
?वही मज़लूमें करबला का शशमाहा बच्चा अली असग़र था। जिसकी माँ का दूध ख़ुश्क हो चुका था। सख़्त गरमी में उस पर पानी बन्द था। करबला का रेगिस्तान लू उगल रहा था। बेज़बान मासूम की ज़बान मारे तशनगी के ख़ुश्क थी और नन्हा सा कलेजा कबाब हो रहा था। इधर नरग़ा-ए-आदा में घिरे हुए बाप ने इस आलमें बेकसी में "है कोई जो मेरी मदद करे" कि आवाज़ बुलन्द की। उधर शशमाहे बच्चे ने अपने आप को झूले से गिरा दिया। हाँ! ज़रा देखना भेङियों की टिडडी दिल फ़ौज में बेचैनी पैदा हो गयी
,पत्थरों के दिल पसीज गये
,ज़ालिम जल्लादों के जिस्मों में रहम व करम की लहरें पैदा हो गयीं और सब ने यक ज़बान होकर कहा
,इसे क्यों न पानी दिया जाये।
इधर मज़लूम ने कहा कि अगर तुमको ये ख़्याल पैदा होता है कि इस बहाने से मैं ख़ुद पानी माँग रहा हूँ तो देख लो मैं इसे यहाँ छोङ कर हट जाता हूँ तुम ख़ुद आकर इसे पानी पिला दो।
शिम्र मलऊन को फ़ौज की तब्दीलिए मिजाज़ का इल्म हो गया। उसने हुरमुला को हुक्म दिया कि कलामें हुसैन को क़ता कर दे। हुक्म सुनने की देर थी हुरमुला ने तीन भाल का तीर ऐसा रिहा किया कि मासूम की हल्क़े नाज़ुक़ को चीर कर बाज़ुए हुसैन अ
0में दर आया और बच्चा बाप के हाथों पर मुंक़लिब हो गया। (हुसैनी पैग़ाम)
जर्मन डाक्टर मीऊर मांबैन
(मुसन्निफ़ सियासते इस्लामिया)
इमाम हुसैन अ
0अपने ज़माने की सियासत में आला दर्जा रखते थे बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि अरबाबे दयानत में से किसी शख़्स ने ऐसी मोअस्सर सियासत इख़्तियार नहीं की। आप में सिफ़ते सख़ावत और दीगर महबूब तरीन सिफ़ात थी। उनका मक़सद सल्तनत और सियासत हासिल करना न था। साफ़-साफ़ अपने साथियों से फ़रमाते जाते थे कि जो जाह व जलाल कि हिर्स व तमा में मेंरे साथ जाना चाहता है हो वो मुझसे अलग हो जाये।
आपने बेकसी और मज़लूमियत को इख़्तेयार फ़रमाया। इमाम हुसैन अ
0ने अपनी ज़िन्दगी के आख़री वक़्त में अपने तिफ़ले शीरख़ार के बाब में वो काम किया कि ज़माने के फ़िलास्फ़रों को मुताहय्यर कर दिया।
इमाम हुसैन अ
0के वाक़ेऐ पर बरतरी हासिल कर ली। इमाम हुसैन अ
0का वाक़ेआ आलेमाना
,हकीमाना और सियासी हैसियत का था। जिसकी नज़ीर दुनिया ती तारीख़ में नहीं मिल सकती. (हुसैनी दुनिया)
मिस्टर औसीवर्न
(इस्लाम एंड दी अरब्ज़)
सन्
60हिजरी में बदबख़्त मोआविया मर गया और उसका लङका यज़ीद तख़्त नशीन हुआ। अपनी तख़्त नशीनी से क़ब्ल ही यज़ीद ने मोमनीन को बदनाम कर रखा था। वो एलानिया शराब नोशी करता था। शिकारी कुत्तों
,बाज़ और दीगर नजीस जानवरों का बेहद शायख़ था। इस रिंद मशरब और ज़ालिम की तख़्त नशीनी में बहुत सी ऐसी रस्में जारी हो गयी जो कूफ़े के अरबाबे दयानत के लिये न क़ाबिले बर्दाश्त थीं। अहले दमिश्क़ अपने इस पेशवा के इत्तेबाअ में सङको पर एलानिया शराब पीते थे और मिस्ल उसके सभी अपने वक़्त को महबूबाने शीरीं अदा की मोहब्बत में सर्फ़ करते थे।
क्या ये मज़हब की सरीह तौहीन न थी
?ये सल्तनत और ख़लीफ़ाए वक़्त से तसादुम का मौक़ा न था
?इमाम हुसैन अ
0की पाक रूह को ज़रूर सदाक़त के जज़्बात से मुतास्सिर होना चाहिये था जबकि आपने देखा के ज़ुल्म के एक ख़ौफ़नाक देवता ने ग़ुस्ताख़ी के साथ मज़हबी जामे को ज़ेबे तन किया है। (हुसैनी पैग़ाम)
फ़ादर पलामिश एस-जे
(पी-एच-डी डी-सी बम्बई)
बुलन्द मरतबा इन्सानों के बुलन्द मरतबा कारनामें हमें अरफ़ा व आला ज़िन्दगी बसर करने कि तलक़ीन करते हैं कि किसी बुज़ुर्ग की याद मनाना ख़ुद हमारे लिये सूद मंद है। वो मिसालें जो शोहदा ने अपनी हयात में अपना सब कुछ क़ुर्बान करके पेश फ़रमायीं हैं हमारे लिये ऐसा नमूना है जिनको पेशेनज़र रख कर हम दुनियां में क़ौमो को बेहतर और क़ाबिले फ़ख़्र ज़िन्दगी गुज़ारने की तलख़ीन कर सकते हैं।
इमाम हुसैन अ
0की क़ुर्बानी यक़ीनन तारीख़ का एक अज़ीमुश्शान वाक़ेआ है जिसने सदाक़त को किज़्ब पर फ़तह हासिल करने में मदद पहुँचायी। (हुसैनी पैग़ाम)
कैप्टन एल-एच-नेबलेट जे-पी
(डिप्टी कलेक्टर)
हुसैन अ
0ने जामे शहादत पीकर इस्लाम को सफ़हा-ए-हस्ती से महो होने से बचा लिया। मोहर्रम की अहमियत समझने के लिये वाक़ेआते मा सबक़ पर नज़र डालनी ज़रूरी है।
सदियां गुज़र गई के सरदारे कुफ़्फ़ार के पोते यज़ीद पलीद ने इमाम हुसैन अ
0से तलबे बैअत की। आपने इन्कार किया और फ़रमाया कि मैं ख़ुदाऐ बुज़ुर्ग व बरतर के सिवा किसी के सामने सर नहीं झुका सकता। इस दौरान में यज़ीद की ज़्यादतियों से आजिज़ आकर अहले कूफ़ा ने इमाम हुसैन अ
0को बुलावा भेजा कि वहाँ आकर उसके मज़ालिम से गुलू ख़लासी करें। आपने मन्ज़ूर फ़रमाया और मय अन्सार व रोफ़ाक़ा के रवाना हो गये।
जब आप करबला के मैदान में पहुँचे तो एक फ़ौजे कसीर ने आपको बढ़ने से रोका। इस फ़ौज का सरदार हुर था और फ़ौज में तेतिस हज़ार आदमी थे। यकुम से हफ़्तुम मोहर्रम तक आप बराबर अफवाजे आदा को समझाते रहे ज़ुल्म व सितम और नाहक़ कुशतो ख़ून से बाज़ आये लेकिन उन्होंने एक ना सुनी। उन पर आपके दलाएल का असर नहीं हुआ। जब आप हर तरह से ऐहतमामे हुज्जत फ़रमा चुके और आपको यक़ीने कामिल हो गया कि लङाई होना लाज़मी है और एक फ़ौजे कसीर के मुक़ाबले में आपको फ़तह नहीं हो सकती और आप मय अन्सार व अइज़्ज़ा के शहीद हो जायेंगे। ख़ुसूसन इस वजह से के यज़ीद का हुक्म जारी हो चुका था कि सरे हुसैन अ
0उसके सामने हाज़िर किया जाये आपने चौदह घण्टे की मोहलत माँगी जोकि मिल गई।
शबे आशूर आपने तमाम अन्सार व रोफ़क़ा का जमा किया और एक पुरदर्द लहजे में एक तुलानी तक़रीर फ़रमाई जिसमें बाद अज़ पन्दो नासाएह आपने फ़रमाया कि कल सख़्त से सख़्त मुसीबत का सामना है। मैं तुम सब को मुतानब्बे कर देता हूँ। बाद ख़त्में तक़रीर आपने वह काम किया जिसकी मिसाल सफ़हा-ए-आलम में मिलना नामुमकिन है। और जिससे ज़ाहिर होता है कि आपको इन्सानी कमज़ोरी का किस क़द्र एहसास था और किस दर्जा आप सख़ी और रफ़ीक़-उल-क़ल्ब थे। जज़्बाए ईसार आप में किस हद तक मौजूद था। आप ने फ़रमाया के ख़ेमों के तमाम चिराग़ गुल कर दिये जायें और जिसका जहाँ भी चाहे वह उस दरवाज़े से चला जाये। मैंने अपनी बैअत तुम से उठा ली है। दूसरे दिन जब सफ़ेदी-ए-सहर आसमान पर हवैदा हुआ तो सब के सब
72जाँनिसार जामे शहादत पीने पर कमर बस्ता नज़र आये।
आपकी ख़लील फ़ौज का ज़िक्र ही क्या। एक एक करके आपके तमाम अन्सार मैदाने जंग में काम आये। तमाज़ते आफ़ताब तेज़ तर हो रही थी
,प्यास का ग़ल्बा ज़्यादा हो रहा था। लेकिन ख़ेमों में पानी का एक क़तरा भी मय्यसर न था। आपके शीर ख़्वार बच्चे ने सूखी ज़बान दिखाकर तलबे आब की। उसको हाथों पर लिये हुए आप मैदाने जंग में आए और अशक़िया से पानी तलब किया मगर जवाब में एक तीर हल्क़े असग़र को छेदता हुआ गुज़र गया और वह बच्चा तङप कर इमाम के हाथों में राही मुल्के बक़ा हुआ। आप क़ल्बे लश्कर में आये बहुत से अश्क़िया को फ़ना-फिन-नार किया। सैकङों लाशे मैदान में पङे हुए और सैकङों ज़ख़्मी मैदान में एङियाँ रगङ रहे थे
,इमामे मज़लूम ज़ख़्मों से चूर-चूर थे। आख़िर कार नरग़ा-ए-आदा में घिर गये। ज़ख़्मों की कसरत से घोङे पर से गिरकर फ़रशे ज़मीन पर आ गये और जामे शहादत नोश फ़रमाया।
आपकी शहादत के बाद आपके हरम क़ैद कर लिये गये। ख़ेमों में आग लगा दी गई और तरह-तरह की मुसीबतें उठाना पङी। उस शहादते उज़मा की याद हर साल माहे मोहर्रम मे मनाई जाती है। (सरफ़राज़ लखनऊ)
मिस्टर जे-ऐ-सिम्सन
(स्पेशल मजिस्ट्रेट आगरा आनरेरी सिक्रेट्री इंडियन क्रिश्चयन एसोसिएशन)
आज तेरह सौ साल बाद भी हम क़ुर्बानि-ए-इमाम हुसैन अ
0को उतना ही मोअस्सिर पाते हैं जितना कि किसी ज़बरदस्त जंग के ख़ात्मे पर मैदाने कारज़ार में ख़ूने शोहदा की सुर्ख़ी इन्सानी दिलों को लरज़ा देती है।
तारिख़े इस्लाम की यह जंग तमाम जंगो पर फ़ौक़ियत रखती है। जंगे नैनवा बज़ाहिर आले रसूल स
0की शहादत पर ख़त्म हुई। इन्सानी ख़ून के क़ीमती जौहर पानी से ज़्यादा अरज़ाँ हुए। सग़ीर व कबीर
,तिफ़ले शीरख़्वार और परदा नशीन मस्तूरात तीन यौम तक भूख
,प्यास और सहरीई तकलीफ़ का शिकार रहीं। बेरहमी
,दरंदगी और सफ़्फ़ाक़ी की तमाम हदें
,ज़ुल्म व सितम की तमाम रस्में मैदाने करबला में तमाम हुई। इमामे आली मक़ाम सब्रे अय्यूब को भी शर्मसार कर देने वाले सब्र के साथ सीना सिपर होकर उन तमाम मज़ालिम का मुक़ाबला करते रहे। लेकिन जब बातिल सर चढ़ने लगा
,इन्सानियत की जगह दरिन्दगी ने ले ली और इस्लाम के हरे भरे बाग़ में फ़िस्क़ो फ़िज़ूर की आंधियां चलने लगीं तो हुसैन अ
0ने महसूस किया की अब इस बाग़ को सींचने की ज़रूरत है। दीने मुस्तफ़वी की तकमील एक ज़बरदस्त क़ुर्बानी की मोहताज है। जुर्अत व बहादुरी
,सब्र व रज़ा इस्तेक़लाल और हिम्मते मर्दाना लेकर हुसैन अ
0मैदाने कारज़ार में आये अपनी मुट्ठी भर फ़ौज के साथ हज़ारो की फ़ौज के सामने डट गये और इन्सानो के रूप में छिपे हुए दरिन्दों को बता दिया कि हक़ और इन्साफ़ को कभी शिकस्त नहीं होती
,मर्द ज़िल्लत की ज़िन्दगी पर मौत को तरजीह देता है और आज़ादी को जान से प्यारा रखता है और सबसे बहादुर वह है जो ख़ुद हँसता हुआ मरकर अपनी क़ौम और जमाअत को तबाही से बचा ले जो हक़ परस्ती की राह में अपने ख़ून की क़ीमत न समझे
,अपने ज़मीर और अपनी आज़ादी को दुनियां की किसी भी क़ीमत पर न बेचे।
वाक़ेऐ करबला आज भी दुनिया के हर इन्सान को बिला लेहाज़ क़ौमो मिल्लत यह दर्स देता है कि ज़िल्लत की ज़िन्दगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर है। जो हक़ व सदाक़त में क़ुर्बान हुआ वो ज़िन्दा-ए-जावेद हो गया। बक़ा सिर्फ़ सच्चाई को हासिल है।
हुसैन अ
0की क़ुर्बानी क़ौमो की बक़ा और जेहादे आज़ादी के लिये एक मिशअल है जो अबदुलआबाद तक रौशन रहेगी। हुसैन अ
0की शहादत शिकस्त नहीं बल्कि इस्लाम की न मिटने वाली फ़तह है। इस्लाम इस गेरां क़द्र क़ुर्बानी पर फ़ख़्र करता रहेगा। ख़ुशबख़्त है वो क़ौम जिस में इमाम हुसैन अ
0जैसा जांबाज़ मुजाहिद पैदा हुआ।
कर दिया ख़ूने शहादत से ज़मी को लाल रंग
यूँ ही मिलती आयी हैं इस्लाम को आज़ादीयाँ
(हुसैनी पैग़ाम)
स्वामी कलजुगा नन्द मुसाफ़िर
हज़रत इमाम हुसैन अ
0की तरफ़ दुनिया के इस जज़्बे व कशिश का सबब क्या है
?बात यह है कि कशिश दो चीज़ों से पैदा होती है। एक हुस्न दूसरा एहसान। हज़रत इमाम हुसैन अ
0में यह दोनो चीज़े पायी जाती हैं। हुस्न से मुराद यहाँ हुस्ने अख़लाख है जो हुस्ने सूरत से ज़्यादा जाज़िब है आपके अख़लाख का यह आलम था कि दुश्मनों को भी आप में कोई बुराई दिखाई नहीं देती।
आपका एहसान! उसका क्या पूछना। हज़रत इमाम हुसैन अ
0ग़रीब न थे मगर उनका पैसा ग़रीबों पर सर्फ़ होता था। वह ख़ुद फ़ाक़ा करते थे। रानियाँ घर में चक्की पीसती थीं और बच्चे भूखे सोते थे मगर पब्लिक के मफ़ाद का पैसा वो अपने ज़ाती मफ़रद में नहीं लाते थे। उन्होंने मैदाने करबला में चार सबक़ दिये।
(1)ऐ लोगो! तुम सब भाई भाई हो!
(2)ऊँच नीच की कोई तफ़रीक़ नहीं
,इन तफ़रीक़ों को मिटा दो।
(3)सच्चाई के रास्ते पर मरते दम तक क़ायम रहो।
(4)ज़ालिम के ज़ुल्म का मुक़ाबला करो यहाँ तक कि उसके तख़्त को उलट दो।
दुनिया अगर आपकी इन तालीमात पर अमल करे तो कोई वजह नहीं कि तमाम झगङे बखेङे ख़त्म न हो जायें।
तमाम मुसीबतें इस लिये हैं कि एक दूसरे को पस्त और हक़ीर समझा जाता है
,छूत छात का ख़्याल छाया हुआ है। (हुसैन अ
0डे रिपोर्ट)
गिबन
इमाम हुसैन अ
0ने अपने असहाब पर ज़ोर दिया कि वो (मैदाने करबला से) फ़ौरन हटकर अपनी (जानों की) हिफ़ाज़त करें। लेकिन तमाम (आइज़्ज़ा और असहाब) ने अपने प्यारे और जान से ज़्यादा अज़ीज़ इमाम को तन्हा छोङने से इन्कार कर दिया। इमाम हुसैन अ
0को दुआ करके और जन्नत का यक़ीन दिलाकर उनकी हिम्मत अफ़्ज़ाई की। रोज़े आशूर की हौलनाक सुबह को इमाम हुसैन अ
0घोङे पर सवार हुए आपके एक हाथ में तलवार और दूसरे में क़ूराने मजीद था। आपके साथ शोहदा का बहादुर और सख़ी गिरोह सिर्फ़ बत्तीस सवार और चालिस प्यादों पर मुशतमिल था।
(डिकलाइन एण्ड फ़ाल आफ रोमन अम्पायर। सफ़्हा
287)
यही मुसन्निफ़ एक दूसरे मुक़ाम पर लिखता है:
हज़रत इमाम हुसैन अ
0का पुरदर्द वाक़ेआ एक दूर दराज़ मुल्क में रूनुमां हुआ
,यह वाक़ेआ और संगदिल अफ़राद को भी मुत्तासिर कर देता है। अगरचे कोई कितना ही बेरहम हो मगर इमाम हुसैन अ
0का नाम सुनते ही उसके दिल में एक जोश और हमदर्दी पैदा हो जायेगी।
शिल्डर
(एक मशहूर मग़रिबी मुफ़क्किर)
इमाम हुसैन अ
0अपनी छोटी सी जमात के साथ रवाना हुए। आपका मक़सद शानों शौक़त और ताक़त व दौलत हासिल करना न था। आप एक बुलन्द और अज़ीमुश्शान क़ुर्बानी पेश कि दुश्मनों से मुक़ाबला करना ( दुश्मन की तादात की कसरत की वजह से) बहुत दुशवार है और यह कि वह सिर्फ़ उनसे ही लङने ही के लिये नहीं बल्कि उनको शहीद करने के लिये जमा हुए है। बावजूद ये कि (हुसैन अ
0और हुसैन अ
0के) बच्चो पर पानी बन्द कर दिया गया। लेकिन वह दहक़ते हुए आफ़ताब के नीचे
,तपते हुए रेगिस्तान पर अज़म व इस्तेक़लाल का पहाङ बने हुए क़ायम रहे। उनमें से कोई एक लम्हे के लिये भी न घबराया बल्कि निहायत बहादुरी से सख़्त और शदीद मुसीबतों का बग़ैर हिचकिचाहट के मुक़ाबला करता रहा।
डा
0क्रिस्टोफ़र
काश दुनिया इमाम हुसैन अ
0के पैग़ाम
,उनकी तालीम और मक़सद को समझे और उनके नक़्शे क़दम पर चलकर अपनी इस्लाह करे।
के-सी-जान
(अमेरीकी इतिहासकार)
इमाम हुसैन अ
0को क़ुदरत ने इतना बेपनाह सब्र अता कर दिया था कि उनके इस्तेक़लाल की मिसाल किसी दूसरे इन्सान में नहीं मिल सकती। आपका अज़्म व इरादा पहाङ की तरह मज़बूत था और आप जो कुछ कहते थे वह करके दिखाते थे और जो कुछ करते थे उसे पाऐ तकमील तक पहुँचाते थे। आपकी पामरदी बहादुरी रहती दुनिया तक तारीख़ में सुनहरे हरफ़ों से तहरीर होगी मगर आपकी तकालीफ़ व मुश्किलात मसाएब व आलाम ख़ून से लिखे जायेंगे।
के-एल-रलियाराम
(हिन्दुस्तानी ईसाई रहनुमा)
उस शख़्स की ज़िन्दगी के बारे में
,मैं क्या कहुँ जो रूऐ ज़मीन पर हक़ व सदाक़त का अलम बुलन्द करने वाला पहला फ़र्द है। इमाम हुसैन अ
0की शहादत का वाक़ेआ किसी एक क़ौम से मुताल्लिक़ नहीं है। इमाम अ
0अपनी बुलन्द सीरत का इज़हार फ़रमाकर आने वाली क़ौमो के सामनें साबित व इस्तेक़लाल
,.सब्र व सुकून और हक़ पसन्दी का एक कामिल नमूना रख गये हैं ताकि आने वाने लोग उनकी क़ुर्बानी को सामने रख कर ज़ालिमों और जफ़ाकारों के सामने सरे तस्लीम ख़म न करें। करबला के मैंदान में इमाम हुसैन अ
0की सीरत के वो-वो जौहर खुले हैं जिन पर ग़ौर करके इन्सान अंगुशबदंदां रह जाता है। इस चौहदवीं सदी में जबकि दुनिया इन्सानियत और सदाक़त से सैकङों कोस दूर हट गई है
,आपकी बुलन्द सीरत क़ौमों के लिये मिसअले हिदायत का काम दे सकती है। इमाम अ
0ने चूंकि हक़ व सदाक़त के एक आफ़ाक़ी उसूल के लिये जान दी इस लिये हर क़ौम व मज़हब के लोग आपकी मज़लूमियत और फ़िदाकारी पर आँसू बहाते हैं। दुनिया से सैकङों सल्तनतें मिट गयी
,हज़ारों बङे बङे इन्सान पैवंदे ज़मीन हो गये कि आज कोई उनका नाम भी नहीं लेता। लेकिन इमाम हुसैन अ
0ने अपनी क़ुर्बानी से तारीख़ पर ऐसा नक़्श छोङा जो अपनी पाएदारी से जरीदाऐ आलम पर हमेशा के लिये सबत हो गया है। दुनिया बदल जायेगी
,इल्म ज़ाहिर के आबो रंग में तग़य्युर आ जायेगा लेकिन ज़ालिम व मज़लूम बाक़ी रहेंगे और जहाँ भी हक़ व सदाक़त जब्र और ज़ुल्म के बरसरे पैकार होगी वहाँ हुसैन अ
0और यज़ीद को याद किया जायेगा। हर दौर में यज़ीद पैदा होते रहेंगे लेकिन इमाम हुसैन अ
0जैसा सदाक़त पसन्द
,बुलन्द सीरत इन्सान अब पैदा न होगा। इमाम हुसैन अ
0के उसूल की हमागीरी एक ऐसा वाक़ेआ है जिस पर तमाम क़ौमो के इत्तेहाद की बुनियाद रखी जा सकती है।
(मुल्तान में एक जलसे के ख़ेताब का ऐख़तेबास)
डब्लू-डच-बरन
(सद्र इंडियन इंस्टीटयूट आफ़ आरकीटेक्टस)
उन लोगों के साथ शमूलियत मेरे लिये बाएसे फ़ख़्र व इंबेसात है जो इमाम हुसैन अ
0डे की सूरत में दुनिया के अज़ीम तरीन हीरो और सदाक़त के अलमबरदार शहीद की तेरह सौ साला याद मना रहे हैं। दुनिया रफ़्ता-रफ़्ता उन अक़दार का इरफ़ान हासिल करेगी जो बेलौस क़ुर्बानी और सच्चाई के उसूलों को बुलन्द रखते हुए हज़रत इमाम हुसैन अ
0के जान देने में मुज़मर है। वक़्त के साथ दुनिया वालों को इमाम हुसैन अ
0की मारेफ़त का शऊर हासिल होता रहेगा और इन्सानियत की बक़ा के लिये उनकी क़ुर्बानी की अहमियत रोज़ बरोज़ बढ़ती चली जायेगी।
रिवर एंड फ़ादर पेले
(प्रिंस्पल ज़ेवियर कालेज बम्बई)
अज़ीम लोगों के अज़ीम कारनामें हम सब को अपनी ज़िन्दगी बेहतर से बेहतर और ज़्यादा बामक़सद तरीक़े से गुज़ारने पर माएल करते हैं। उन शहीदों की सीरत की मिसालें जिन्होंने सच्चाई के रास्ते में अपनी जानें क़ुर्बान कर दी इस लिये पेश की जाती हैं ताकि दुनिया के लोग बेहतर और बामक़सद ज़िन्दगी गुज़ारने का तरीक़ा सीख लें। हज़रत इमाम हुसैन अ
0बिला शक व शुब्हा तारीख़े आलम में अपनी क़ुर्बानी के ज़रीऐ वह मुक़ाम हासिल कर चुके हैं जहाँ उनके नक़्शे क़दम पर चलने वाले बातिल के मुक़ाबले में हक़ की दायमी फतह की ज़मानत बन सकते हैं।
जी-बी- एडवर्ड
तारीख़े इस्लाम में एक बाकमाल हीरो का नाम आता है जिसको हुसैन अ
0कहा जाता है। यह मोहम्मद स
0अ
0का नवासा
,अली और फ़ातमां स
0अ
0का बेटा हुसैन अ
0लातादाद सिफ़ात और औसाफ़ का मालिक है जिसके अज़ीम व आला किरदार ने इस्लाम को ज़िन्दा किया और दीने ख़ुदा में नई रूह डाली। हक़ तो यह है कि अगर इस्लाम का यह बहादुर मैदाने करबला में अपनी शुजाअत के जौहर न दिखाता और एक पलीद व लईन की हुक्मरान की इताअत क़बूल कर लेता तो आज मौहम्मद स
0अ
0के दीन का नक़्शा कुछ और ही नज़र आता
,न तो क़ुर्आन होता न ईमान
,न रहम व इंसाफ़
,न करम न वफ़ा बल्कि यूँ कहना चाहिये कि इन्सानियत का निशान तक ना दिखाई देता। हर जगह वहशत व बरबरीयत व दरिंदगी नज़र आती।
(इख़तेबास अज़ हिस्ट्री आफ़ इस्लाम)
एफ़-सी- बेन्जामिन
(बरतानवी ईसाई मोअर्रिख़ व मुसन्निफ़)
इस्लाम के जांबाज़ हीरो और मोहम्मदे अरबी के महबूब तरीन नवासे इमाम हुसैन इब्ने अली अ
0के नामे पाक में इतना तक़द्दुस है कि उनका इस्मे मुबारक सुन कर मुख़ालेफ़ीने इस्लाम के सर एक दफ़ा तो ज़रूर ख़म हो जाते है और ये शहीदे आज़म हुसैन अ
0का एक ऐसा एजाज़ है जिससे किसी को इन्कार की मजाल नहीं।
एस गिलबर्ट
पैग़म्बरे अरबी हज़रत मौहम्मद स
0अ
0के लाडले नवासे और ख़लीफ़ा-ए-बरहक़ जनाबे अली अ
0के साहबज़ादे हुसैन अ
0को करबला के जंगल में जिस बेदर्दी से मारा गया
,इनके अज़ीज़ों
,इनके बेटों और इनके साथियों को जिस बेरहमी से ज़ुल्म व जफ़ा की कुन्द छुरी से ज़िब्हा किया गया वो इस्लामी तारीख़ का इतना बङा स्याह दाग़ है जो क़यामत तक नहीं मिट सकता। किस क़द्र अफ़सोस का मक़ाम है वो हुसैन अ
0जिसके नाज़ रसूल स
0अ
0ने उठाये और जिसको जन्नत की बादशाहत सौंपी गई
,उसको काफ़िरों और मुशरिक़ो ने नहीं बल्कि कलमा गो मुसलमानों ने तहे तेग़ करके उसका सर नैज़े पर चढ़ाया। यज़ीदियों के ज़ुल्मों सितम कि ऐसी मिसाल तारीख़े आलम में बहुत कम मिलेगी।
प्रोफ़ेसर ब्राऊन
(मुसन्निफ़ तारीख़े अदबियाते ईरान)
इमाम हुसैन अ
0का क़त्ल
,मदीने की ताराजी और मक्के का मुहासिरा
,इन तीन तारीख़ी चीरा दस्तीयों में से पहली चीरादस्ती ऐसी थी जिसने तमाम दुनिया को लरज़ा बरअंदाम कर दिया और कोई भी शख़्स जिसके सीने में जज़्बात हैं उस दर्दनांक कहानी को सुन कर बेचैन हुए बग़ैर न रह सकेगा।
प्रोफ़ेसर एन-व्हाईट
(जर्मन मोअर्रिख़)
इमाम हुसैन अ
0की शहादत न मिटने वाला लाफ़ानी कमाल है और इतनी तारीफ़ के लायक़ है कि ख़ुदा के फ़रिश्ते भी उनकी सताइश नहीं कर सकते। ख़ुदा ने अपने कलाम में जा ब जा आपकी मदद की है।
(पावर आफ़ इस्लाम)
परसी साटिक्स
(मुसन्निफ़ तारीख़-ए-परेशिया)
माहे मोहर्रम
61हि
0की दसवीं को इमाम हुसैन अ
0की मुख़्तसर जमाअत मरते दम तक जंग करने पर आमादा रही। उनकी बहादुरी के मुक़ाबले पर कोई बहादुर नज़र में नहीं समाता।
नतशे
(मशहूर जर्मन फलसफ़ी)
तख़लीख़ की मेराज ज़ोहद व तक़वे की बुज़ुर्गी में हैं पर शुजाअत तख़लीख़ का ताज है। ज़ोहद
,तक़वा और शुजाअत का संगम ख़ाकी इन्सान के उरूज की इंतेहा है जिसका ज़वाल कभी नहीं आयेगा। उस कसौटी पर परखा जाये तो इमामे आली मक़ाम ने बा मक़सद और अज़ीमुश्शान क़ुर्बानी देकर ऐसी मिसाल पेश की जो दुनिया की क़ौमो के लिये हमेशा रहनुमा रहेगी।
वाल्टर फ्रिंन्ज
करबला वाले हुसैन अ
0के सिवा तारीख़ में ऐसी कोई भी हस्ती नज़र नहीं आती जिसने बनीनवे इन्सान पर ऐसे माफ़ौक़ल फितरत असारात छोङे हो। ज़गो में फ़तह हासिल करने का तरीक़ा जो इमामे आली मक़ाम ने कायनात के मज़लूमों को सिखाया है कि ख़ुदा पर कामिल यक़ीन रक्खो
,हक़ की ख़ातिर बातिल से टकराने के लिये सीसा पिलाई हुई दीवार बन जाओ तो फ़तह तुम्हारे साथ है। आने वाने दिन तुम्हारे इस अमल को ज़मीन से निकलने वाले कभी न ख़त्म होने वाले ख़ज़ाने की मानिन्द देखते रहेंगे।
प्रिंसपल सीन
वाक़ेआए करबला में इन्सानी तारीख़ पर नाक़ाबिले महो आसार छोङे हैं। इस्लाम में सेहत बख़्श इस्लाहात और पाकीज़ा तरीक़ए हयात इससे आये है और अइम्म-ए-अहलेबैत अ
0स
0ने सक़ाफ़ते इस्लामियां को बनाने में क़ुर्बानी दी है और इस के ज़रिये से मशरिक़ व मग़रिब की तहज़ीब पर ताक़तवर आसार डाले हैं।
मारकोटस
(मशहूर युरोपी मुसन्निफ़)
वो इमाम बनकर आया। वह इसकी सवारी कर रहा था जो रिसालत ज़ेबे सर करके तशरीफ़ लाया और रिसालत यह कह रही है "मै हुसैन से हूँ और हुसैन मुझसे है"। हुसैन जन्नत के सरदार हैं और जन्नत में सिर्फ़ वही शख़्स दाखिल होगा जो हुसैन अ
0का आशिक़ और मुहिब होगा। बहरक़ैफ़ ईसाई होने के बावजूद हमें यह मानना पङेगा कि जिस इमामत से इश्क़ किये बग़ैर कोई मुसलमान जन्नत में दाख़िल नहीं हो सकता वो अपने मरतबे की फ़ज़ीलत के बारे में कुछ ऐसे राज़ अपने अन्दर रखती है जिनको रिसालत ही ख़ूब समझ सकती है।
डाक्टर मुरकुस
(मशहूर मुसन्निफ़ व मोअर्रिख़)
मुसलमानों को इमाम हुसैन अ
0और उनकी तालीमात की पूरी पैरवी करनी चाहिये और उनके मिशन को ज़िन्दा रखना चाहिये। हुसैन अ
0की यादगार जिस क़द्र ऐहतेमाम और कररो फ़र से मनाई जाये कम है। यह वह हुसैन अ
0है जिसने दीने ख़ुदा को अ-बदी ज़िन्दगी बख़्शी। ये वह हुसैन अ
0है जिसने हर मज़हब व मिल्लत पर अज़ीम एहसान किया। ये वह हुसैन अ
0है जिसने इन्सानियत को हैवानियत में तब्दील होने से बचा लिया। इस लिये एहले इस्लाम का फ़र्ज़ है कि बिला इम्तियाज़ गरोह व फ़िरक़ा हुसैन अ
0के नाम को अबद तक ज़िन्दा रक्खें। और यह बात कभी न भूलें कि जो क़ौम अपने पेशवा और रहनुमा के नाम और काम को ज़िन्दा नहीं रखती वो एक दिन दुनिया से मिट जाती है।
आर-जे-विल्सन
(मशहूर युरोपी दानिशवर)
मैं इस्लाम की अज़ीमतरीन शख़सीयत हुसैन इब्ने अली अ
0का इसी तरह एहतेराम करता हूँ जिस तरह मसीह इब्ने मरियम का। हुसैन अ
0ने करबला के तपते हुए रेगज़ार में जिस शुजाअत व बसालत का इज़हार किया उसकी नज़ीर मशहीर शुजाआने आलम में तो दरकिनार अंबिया व मुरसलीन की पाकीज़ा ज़िन्दगियों में भी नहीं मिलती। मैदाने नैनवा में उन्होंने ख़ुदादाद क़ूवत व बहादुरी का जो लोहा मनवाया है उसकी मिसाल दुनिया कभी न उससे पेशतर देखी और न कभी सुनी। इससे साफ़ मालूर होता है कि हुसैन अ
0में एक ऐसा जौहर था जो ख़ुदा तआला के सिवा कोई किसी को अता नहीं कर सकता और आपके किरदार से साफ़ वाज़ेह होता है कि आपकी तख़लीक़ उसी नूरे ख़ुदा वन्दी से हुई थी जिस नूर से मोहम्मद स
0और अली अ
0को ख़ल्क़ फ़रमाया गया था और इसलिये मोहम्मद रसूल अल्लाह स
0अ
0ने आपकी शान में फ़रमाया कि "हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूँ"।
यान-बेची-हान
दुनिया के बेशुमार मशहूर पहलवानों
,ताक़तवरों और बहादुरों की शुजाअत व जवांमर्दी के क़िस्से अहले आलम की नोके ज़बान पर हैं। लेकिन सातवीं सदी में एहले अरब में एक ऐसा बहाहुर हीरो भी गुज़रा है जिसके शुजाआना कारनामों ने जरी से जरी और दिलावर से दिलावर इन्सानो को भी हैरत से उँगलियाँ चबाने पर मजबूर कर दिया। इस जुर्अत मन्द दिलावर का नामेनामी हुसैन इब्ने अली अ
0है। हक़ीकत यह है कि अरब के इस हीरो ने घर बार लुटा दिया
,अपने बच्चे अज़ीज़ व अक़ारिब ज़िब्हा करवा डाले और अपना सर भी कट वा दिया लेकिन न तो शैतान की इताअत क़ुबूल की और न अपने दीन पर आँच आने दी।
वान क्रोहा
दर ह़कीक़त हुसैन अ
0के क़ूवते बाज़ू में ख़ुदा की क़ूवत काम कर रही थीं इस लिये की वो ख़ुदा का था और ख़ुदा उसका था। उसने करबला में जान देकर अपने दीन ही की हिफ़ाज़त नहीं की बल्कि इन्सानियत की हिफ़ाज़त की
,ख़ुदा की बेइन्तेहा रहमतें नाज़िल हों उस शुजा इन्सान पर जिसने इन्सानियत के मरतबे को फ़र्श से उठा कर अर्श तक पहुँचा दिया और ज़ुल्म व सितम को हमेंशा के लिये ख़त्म कर दिया।
एफ़-सी-ओडोनिल
अगरचे यह कहा जाता है कि वो अपने मक़सद की हिफ़ाज़त के लिये ख़ुदा-ए-ताअला के रास्ते में क़ुर्बान हो गये। यह ठीक है कि उन्होंने अल्लाह के दीन को बचाते हुए सर धङ की बाज़ी लगा दी और ऐसी फ़िदाकारी दिख़ाई जिसका नमूना दुनिया की किसी तारीख़ में नहीं मिलता। अगर आप मज़हब और इन्सानियत को महफ़ूज़ रखने और सरबुलन्द करने के लिये जान न देते तो आज न तो कहीं दीने हक़ का निशान नज़र आता न कहीं इन्सानियत का सुराग़ मिलता।
कर्नल हैरीसन
क्या दुनिया में कोई ऐसी हस्ती भी गुज़री है जो हक़ व सदाक़त की हिमायत में अपने मुटठी भर साथियों को लेकर हज़ारों बातिल परस्तों के मुक़ाबले में निकल ख़ङी हुयी हो और इसी ने अपने ने अपने दीन की नामूस बचाने के लिये हर चीज़ क़ुर्बान कर दी हो। यक़ीनन दुनिया ऐसी मिसाल पेश करने से आजिज़ व क़ासिर है। ये बुज़ुर्ग हस्ती हुसैन इब्ने अली अ
0की है जिसने अपना सब कुछ लुटा कर
,अपने बच्चे कटवा कर और अपना सर देकर अपने नाना का और अपने दीन का नाम अर्श पर उछाला।
कोशां फ़ोहू
ये अज़ीम तरीन इन्सान है "उसका किरदार मुहरयरूल उकूल है" उसकी सीरत लासानी है। वो नैनवा का शहीद है
,वो करबला का मज़लूम है
,उसकी दास्ताने मज़लूमियत सुनी नहीं जा सकती। वो भूका प्यासा मारा गया
,उसने दुनिया वालों को दिखाया की तसलीम व रज़ा इसका नाम है
,ईसार व क़ुर्बानी इसे कहते हैं। तमाम आलमे कौनो मकां का यह इमाम अपने अन्दर बेपनाह ख़ुदाई क़ुव्वत रखता है। यही वजह है कि आज हुसैन इब्ने अली अ
0का नाम सारी दुनिया के लोग अदब व ऐहतेराम से लेते हैं और उसका इस्मेगिरामी सुन कर ताज़ीम से सर झ़ुका देते हैं।