आग़ाज़े कार (शुरूआत)
मुख़्तार ख़ुद को क्यों कि मोहम्मदे हनफ़िया का नुमायन्दा ज़ाहिर करता था अहले कूफ़ा ने साथ देने से इन्कार कर दिया। इस तरफ़ अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर से भी मायूस हो चुका था लिहाज़ा तन्हा अपने हुसूले मक़सद के लिये तैयार हुआ। मुख़्तार की सुलेमान का साथ न देने की वजह सिर्फ़ यह थी कि मुख़्तार और सुलेमान के नज़रिये में ज़रा इख़्तेलाफ़ था। मुख़्तार जाबिर हुकूमत के ख़िलाफ़ खड़ा हो कर मज़लूमों की दादरसी चाहता था और अभी वह इन्तेक़ामे शोहदा को छिपाये रखना चाहता था।
इसके बर- अक्स (विपरीत) सुलेमान और उसके साथी सिर्फ़ क़ातेलीने शोहदा- ए- कर्बला से इन्तेक़ाम लेना चाहते थे। मुख़्तार ने तव्वाबीन की जमाअत में इख़्तेलाफ़ और इन्तेशार पैदा कर दिया और ख़ुद को नुमायन्दा- ए- मो 0 हनफ़िया ज़ाहिर करता था। बहुत से अहले कूफ़ा उनके हम ख़्याल बन गये , यहाँ तक की तव्वाबीन की जमाअत जो सोलह हज़ार थी सिर्फ़ चार हज़ार रह गई।
सौगन्दे वफ़ादारी
सुलेमान अपनी क़िल्लत (कमी) के बावजूद मायूस न हुआ और सबसे पहला इक़दाम शोहदा की क़ब्रों पर जाकर यह अहद (वचन) करना और क़सम खाना था लिहाज़ा यह सब कर्बला की तरफ़ चल पड़े। कूफ़े से निकलने के वक़्त उनकी तादाद चार हज़ार थी कर्बला पहुँच कर एक हज़ार अफ़राद और शामील हो गये और एक रात क़ब्रे इमाम हुसैन (अ.स) पर मुतावातिर (निरन्तर) रोते रहे और तौबा व अस्तग़फार के बाद दरगाहे अहादीस में यह दुआ करते थे कि ख़ुदा क़ातिलाने शोहदा से इन्तेक़ाम लेने की तौफ़ीक़ अता फ़रमायें मगर अफ़सोस ग़ुर्बत व बेकसि- ए –हुसैन (अ.स) और ज़ैनबे कुबरा की दरबदरी पर एक आँसू भी उस वक़्त न बहा सके। अब अश्कों का ख़ूनी सेलाब जबकि वे मुजाहेदीन ज़ेरे ख़ाक हैं बहाया जा रहा है। इसी दौरान सुलेमान को मालूम हुआ कि इब्ने ज़्याद एक भारी लश्कर के साथ उनकी सर- कूबी को आ रहा है। इस ख़बर के मालूम होते ही सुलेमान ने एक पुरज़ोश तक़रीर की और एलान किया कि मेरे क़त्ल के बाद सरदारे लश्कर मुसय्यब फिर अब्दुल्लाह इब्ने साद फिर अब्दुल्लाह इब्ने वाल होंगे। इस पुर असर (प्रभावपूर्ण) तक़रीर के बाद सुलेमान और मुसय्यब दूसरें सरदारों के साथ शाम के लश्कर पर हमलावर हुए। कुछ देर रद्दो- बदल के बाद शामी लश्कर भाग खड़ा हुआ। शामी लश्कर की शिकस्त का हाल इब्ने ज़्याद को मालूम हुआ। इस ख़बर को पहुँचते ही बारह हज़ार शामी फ़ौज और रवाना हुई। तीन रोज़ मुतावातिर (निरन्तर) जंग होती रही। शामी घबरा उठे मगर शामी सरदार हसीन बिन नमीर की एक चाल कामयाब हुई और तव्वाबीन को मुहासिरे में ले लिया और शहादत की आरज़ू रखने वाला सुलेमान दर्जा- ए –शहादत पर फ़ायज़ हुआ।
इसके बाद हर सरदार बित- तरतीब शहादत पाता रहा और बाक़ी- मान्दा (बचा हुआ) लश्कर ने ख़ुद को बग़ैर सरदार के पाकर कूफ़े का रूख़ किया इस तरह जिन लोगों ने इमाम हुसैन (अ.स) का साथ न दिया था और सुकूत इख़्तेयार किया था सब के सब शहीद हो गये।
आग़ाज़े जंगे मुख़्तार (जंगे मुख़्तार की शुरूआत)
तव्वाबीन के कूफ़े से रवाना होने पर मुख़्तार ने अपने काम का आग़ाज़ (शुरूआत) किया और तव्वाबीन की कसीर जमाअत को अपनी तरफ़ माएल कर लिया अक्सर आलाते जंग के न होने का उज्र करके सुलेमान के हमराह कर्बला न गये। मुख़्तार की पुर असर और पुर जोश तक़रीर अहले कूफ़ा को अपनी तरफ़ माएल कर रही थी। उमर बिन साद और सीस इब्ने रबई जो क़त्ले हुसैन (अ.स) में शरीक थे यह देखकर कि मुख़्तार क़ातिलाने हुसैन (अ.स) से बदला लेगा और एक को भी बाक़ी न छोड़ेगा तो अब्दुल्लाह बिन यज़ीद , वालिये इब्ने ज़ुबैर के पास गये और मुख़्तार को क़ैद करने का मशविरा दिया और कामयाब हुए मुख़्तार को दुबारा क़ैद कर लिया गया।
नया क़ैद ख़ाना
इस मर्तबा मुख़्तार क़ैद ख़ाने में बे-इन्तेहा परेशान था क्योंकि मुख़्तार आग़ाज़ कर चुका था। लोग उसका साथ देने पर आमादा हो चुके थे , ऐसी हालत में क़ैद हो जाना उसके मक़सद के लिये सख़्त नुकसान देने वाला था। मगर मुख़्तार फिर भी अपनी कोशीशों से बाज़ न रहा बाक़ी बचे तव्वाबीन की वापसी की ख़बर सुन कर मुख़्तार ने उनको ख़ुतूत (पत्रों) लिखे कि क़ैद से रिहा होकर वह शोहदा- ए- कर्बला का बदला लेगा और ख़ुदा से दुआ करता हूँ और तुम से वायदा करता हूँ कि ख़ुदा मुझे तौफ़िक़ अता फ़रमायें के मैं तुम्हारे साथ मय्यत इस काम को अन्जाम दूँ इस ख़त के पहुँचने पर गरोहे तव्वाबीन ने मुख़्तार को लिखा के वे बिल्कुल तैयार हैं और इजाज़त हो तो क़ैद से रिहाई की कोशीश की जाये। मुख़्तार ने इजाज़त न दी बल्कि यह लिखा कि मैं इन्शाल्लाह अनक़रीब क़ैद से आज़ाद हो जाऊँगा।
इसके बाद मुख़्तार ने अब्दुल्लाह बिन उमर को ख़त लिखा कि मुझे बिला वजह दो बार क़ैद किया गया है जल्द मेरी रिहाई की कोशिश की जाये। अब्दुल्लाह बिन उमर ने अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर को ख़त लिखा कि मुख़्तार को जल्द आज़ाद किया जाये ख़त को देखते ही इब्ने ज़ुबैर ने मुख़्तार को रिहा कर दिया। और मुख़्तार ने कूफ़ा पहुँच कर बुज़ुर्गाने कूफ़ा से मुशावेरती सर- गर्मियाँ शुरू कर दीं। लोगों ने इन शरायत पर मुख़्तार से बैअत की के वे क़ुर्आन और सुन्नत पर कार- बन्द रहेंगें ख़ूने हुसैन (अ.स) व शोहदा का बदला लें और आवाम को ज़ालिम हुकूमत के पंजे से निजात दिलायें लेकिन बाज़ लोगों ने कहा कि मुख़्तार क्योंकि ख़ुद को नुमायन्दा- ए –हज़रत मो 0 हनफ़िया ज़ाहिर करता है लिहाज़ा कुछ मोअतबर मख़सूस लोगों को मो 0 हनफ़िया की ख़िदमत में तसदीक़ को भेजा जाये। चुनाँचे इसी मजलीस में तय पाया की कुछ आदमी मख़सूस मदीने भेजें जायें।
मदीना की तरफ
कुछ मख़सूस बुज़ूर्ग हज़रत मो 0 हनफ़िया की ख़िदमत में मदीने पहुँचे और अर्ज़ किया कि मुख़्तार यह इरादा रखता है और ख़ुद को आपका नुमायन्दा ज़ाहिर करता है लाहज़ा आप हुक्म दें तो हम सब भी उसके शरीके कार हो जायें।
मो 0हनफ़िया का जवाब
यह अज़ीम मुसीबत जो हम अहलेबैत पर गुज़री हम सब मरमूम हैं ख़ुदा-ए- बुज़ूर्ग व बरतर ने इस शहादत को हज़रत इमाम हुसैन (अ.स) के लिये मक़दूर फ़रमाया। बेशक शहादत हमारे लिये फ़ख़्र है और उस हकीमे मुतलक़ का कोई फ़ेल ख़ाली अज़ हिकमत नहीं होता मुख़्तार के बारे में सिर्फ़ इतना कहुँगा कि ख़ुदा की क़सम मैं दोस्त रख़ता हूँ उसको की ख़ुदा हमें तौफ़ीक़ दे कि हम दुश्मनाने हज़रत इमाम हुसैन (अ.स) से इन्तेक़ाम लें सकें और ख़ुदायें बुज़ुर्ग की दरगाह में उन सब के लिये मग़फ़ेरत की दुआ करता हूँ। उसके बाद मो 0 हनफ़िया उन लोगों को हज़रत अली बिन हुसैन (अ.स) की ख़िदमत में ले गये आपने कूफ़ियों का बयान सुन कर फ़रमाया ,
हज़रत सज्जाद (अ.स) का जवाब
अगर कोई हबशी ग़ुलाम भी हम अहलेबैत के हक़ के दिफ़ाअ के लिये आमादा हो जाये और हक़्क़े क़ुर्आन और अहलेबैत को ज़ालिमों के पंजों से निकाले तो हर शख़्स पर वाजिब है कि उसका साथ दे।
इसके बाद मो 0 हनफ़िया से फ़रमाया कि तुम इनके मामले में वकील हो जो मुनासिब समझो हुक्म दो।
इस तरह कूफ़ी मुख़्तार के शरीके कार होने का तहय्या करके मदीने से कूफ़े की तरफ़ रवाना हुए।
हालांकि ख़ुशनूदी और ख़ल्क़ की बहबूदी के लिये किसी इस्तेख़ारे और मशविरे की ज़रूरत नहीं होती।
हज़रत सज्जाद (अ.स) के इस जवाब से मालूम हुआ कि हुक़ुक़ूल्लाह और हुक़ूक़ल इबाद की हक़ रसी के लिये ख़ड़ा होना और जंग करना वह इस्लामी फ़रीज़ा है कि हर मुसलमान को बावजूद ख़तरात के शरीके कार होना चाहिये और यह बहाना बाज़ी कि हमें पेशवा का हुक्म नहीं है लिहाज़ा सुकूत इख़्तेयार करना चाहिये। हक़ीक़त में आज़ादी चाहने वाले मुजाहिद को अकेला छोड़ने और हार का सामान फ़राहम (उपलब्ध) करने का बायस है। ये लोग मदीने से लौट कर मुख़्तार की ख़िदमत में हाज़िर हुए और जो कुछ हुआ था मुख़्तार को बतलाया मुख़्तार ने अपनी ज़्यादातर तक़रीरों (भाषड़ों) में नुमायन्दगी की तसदीक़ करते हुए अहले कूफ़ा को हम कारी की दावत दी। लोग जोक़ दर जोक़ मुख़्तार के शरीके कार होते रहे जो इन्क़ेलाबी इरादों के लिये मज़बूती का बायस (कारण) बने।
जमा- आवरिये- ताक़त (ताक़त का जमा होना) कूफ़ा अब्दुल्लाह इब्ने यज़ीद वाली- ए –इब्ने ज़ुबैर की सर-कर्दिगी में था और मुख़्तार ताक़त और असलहा की जमअ आवरी में मसरूफ़ था कि इब्ने ज़ुबैर ने अब्दुल्लाह बिन यज़ीद की सादा लौही देख कर उसको हटा दिया और इब्ने मुतीअ को कूफ़े का हाकिम बना कर मक्के से कूफ़े रवाना किया इब्ने मुतीअ ने आते ही लोगों को कूफ़े की मस्जिद में जमा करके यूँ ख़िताब किया कि अमीरूल मोमेनीन अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने तुम्हारे शहरे कूफ़ा का मुझे हाकिम बना कर भेजा है तुम्हारे हर फ़ायदे में ख़याल रख़ूगाँ तुम पर भी फ़रमाबरदारी और इताअते अमीर लाज़ीम है मेरे जुम्ला अहकामात सीरते उमर और सुन्नते उस्मान के मुताबिक़ होंगे जाहिलों का साथ देना छोड़ दो वरना हुकूमत के नाफ़रमान और बाग़ी को सज़ा दी जायेगी। मजमें में से एक शख़्स उठा और अपनी बलन्द आवाज़ से जिससे पूरी मस्जिद गूँज उठी कहा कि हमें सुन्नते उमर व उस्मान से कोई ग़रज़ नहीं अगर तू हुकूमत करना चाहता है तो सुन्नते अमीरूल- मोमेनीन (अ.स) पर चलना पड़ेगा।
इब्ने मुतीअ यह ख़िलाफ़े उम्मीद आवाज़ सुनकर और मस्जिद के बहुत से लोगों की हामेकारी देखकर डर गया और एअतेराज़ करने वालों के साथ हो गया।
बाद में मालूम हुआ कि वह शख़्स मुख़्तार के ख़ास लोगों में से था। फ़ौरन मुख़्तार के हाज़िर होने का हुक्म सादिर हुआ। मुख़्तार ने बीमारी का बहाना करके जाने से इन्कार कर दिया। मुख़्तार ने यह हालात देखकर मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर शियों को शिरकत के वास्ते ख़ुफ़िया तौर पर ख़त लिखे सबसे अहम ख़त इब्राहीम बिन मालिके अश्तर के नाम था , क्योंकि उसका बाप मालिके अश्तर हज़रत अली (अ.स) के लश्कर के ख़ास सरदारों में और दोस्तदारे अहलेबैते अतहार (अ.स) और अरब के एक बड़े मारूफ़ क़बीले का सरदार था। बाक़ी ख़त व किताबत के बाद तय यह पाया कि मुख़्तार ख़ुद इब्राहीम से जाकर इस सिलसिले में ज़बानी गुफ़्तुगू करें।
मुख़्तार आदमियों को लेकर इब्राहीम से मिलने गया और मो 0 हनफ़िया का एक ख़त जिसमें इब्राहीम को लिखा था कि फ़ौरन मुख़्तार के साथ शामिल होकर दुशमन से मुक़ाबला करें , इब्राहीम को दिखाया , इब्राहीम ख़त के सही होने पर मुताद्दुद ( सही है या नहीं) था मगर साथियों की ताईद और मुख़्तार की पुर असर गुफ़्तुगू असर अन्दाज़ हुई और आख़िरकार इब्राहीम ने दोस्ती करते हुए मुख़्तार की बैअत करली इस मुजाहिद के शामील होने से मुख़्तार के इन्क़ेलाबी मुहीम में और जान पड़ गई और शुरूआत का ऐलान हो गया और वह वक़्त आ गया कि क़ातिलों से इन्तेक़ाम लिया जाये।
जज़्बाते इन्तेक़ाम हर साँस में उभर रहे थे बहादुरों के हथियार जंग के लिये तैयार थे जान से खेलने और जान को क़ुर्बान करने का शौक उछल रहा था। हर आदमी असलहे से लैस नज़र आता था। राहे हक़ में ख़ूं रेज़ी सीनों में मचल रही थी और तौफ़ीक़े इलाही उनसे कह रही थी कि कामयाबी हासिल करने के लिये दुश्मन से ज़्यादा मुसल्लह और तैयार रहना चाहिये।
वे ख़ूब जानते थे कि सुलाह (संधि) और मुसालेहत से कोई मज़लूम और सितम- रसीदा क़ौम मसायब और ज़ुल्म के पंजे से निजात नहीं पा सकती। बग़ैर फ़िदाकारी और ख़ूं-ख़ारी के , ख़ू-ख़ार ताक़तवर दुश्मन पर ग़ल्बा नहीं पा सकती अब वक़्त वह आ गया है कि अपने तमाम पिछले मसायब को फ़रामोश करके दुश्मन के ख़िलाफ़ एलाने जंग बेदरंग कर दिया जाये। हर फ़र्द के हाथों में अब तेज़ धार हथियार और साफ़ व बेकीना दिलों में अब कीना और अदावत की आग भड़क रही थी वही लोग जो हुकूमत की ग़ैरे मामूली ताक़त से डरे हुए थे अब हाथों में हथियार लिये अबरूओं पर बल डाले फड़कती हुई नब्ज़ों से दुश्मन का ख़ून पीने को तैयार थे।
पहला मुक़ाबला
गुफ़्तुगू और मशविरों के बाद यह तय पाया कि जुमेरात के दिन 14 रबी-उल- अव्वल 66 हिजरी मुक़ाबले का दिन क़रार दिया जाये और उसके आने तक मुशावेरती मजलिसें मख़्फ़ी तौर (गुप्त रूप से) पर होती रहें और नक़्ल व हरकत से बा-ख़बर रहा जाये- शबे चहार 28 शंबा।
इब्राहीम 100 हथियारों से लैस सवारों के साथ मुख़्तार की तरफ़ रवाना हुआ उस रात इब्राहीम की मुलाक़ात कूफ़े की राहों (मार्गो) और 38 मैदानों के मुहाफ़िज़ (रक्षक) अयास इब्ने मज़ारिब से हुई। अयाज़ इब्ने मज़ारिब ने इब्राहीम से पूछा तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो ? इब्राहीम ने अपना तार्रूफ़ कराते हुए कहा एक ज़रूरी काम से जा रहें हैं , इब्ने मज़ारिब ने कहा कि अच्छा मैं तुम्हें अमीरे शहर के पास ले चलता हूँ , यह क्या ज़रूरी काम है जो इस वक़्त रात को पेश आया है।
इब्राहीम ने कहा अच्छा रास्ता दो ताकि हम रवाना हो जायें और तुम अपना काम करो। अयास बिन मज़ारिब आगे बढ़ा ताकि इब्राहीम को गिरफ़्तार करके दारूल अमारा ले जाये , इब्राहीम ने उसके साथियों में से एक का नेज़ा छीन कर अयास को क़त्ल कर दिया। दुश्मन के हथियार से ही दुश्मन को क़त्ल कर दिया। अयास के साथी अपने सरदार के क़त्ल होने को दखकर भाग खड़े हुए। इब्राहीम अयास का सर लेकर मुख़्तार के पास पहुँचा और पूरा वाक़ेआ बयान किया सबने इस वाकेआ को नेक फ़ाल समझ कर तय किया कि इसी रात जंग की शुरूआत कर दी जाये।