हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) सय्यदुश्शोहदा
इस्मे मुबारक ------------- हुसैन (अ.स.)
लक़ब -------------------- सय्यदुश्शोहदा
कुन्नियत ---------------- अबु अब्दुल्लाह
वालिदे बुज़ुर्गवार --------- हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.)
वालदा ए माजिदा -------- हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स0)
विलादत ----------------- 3 शाबान 4 हिजरी 626 ई0
शहादत ------------------ 10 मोर्रम 61 हिजरी
मदफ़न ------------------ कर्बला
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जो शख़्स किसी मोमिन को खाना खिलाता है ख़ुदावन्दे आलम उसे जन्नत के मेवों से नवाज़ेगा।
२. किसी नेक काम को ख़ुदनुमाई (दिखलाना) के लिये अन्जाम मत दो और किसी नेक काम को ख़ेजालत (शर्मिन्दगी) की बिना पर तर्क न करो।
३. जिसे कोई नेमत (अच्छी वस्तु) मिले उसे शुक्र करना चाहिये।
४. किसी इमारत में हराम चीज़ों का इस्तेमाल न करो के वह वीरानी का बायस (कारण) है।
५. जो शख़्स अमानतदार नहीं वह ईमानदार नहीं और जिसे अपने अहद व पैमान का ख़्याल नहीं तो वह दीनदार नहीं।
६. नेक बातें तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) और ख़ानदान में महबूबियत (जनप्रिय) और जन्नत में दाख़िले का मोजिब (ज़रिया) है।
७. जिस तरह तुम्हें अपने ऊपर ज़ुल्म पसन्द नहीं दूसरों पर ज़ुल्म मत करो।
८. दो चीज़ों की क़ीमत का अन्दाज़ा नहीं किया जाता मगर उनके गुज़र जाने के बाद, एक जवानी दूसरे तन्दरूस्ती।
९. कितने ग़ैर हैं जो अपनों से बेहतर हैं (और बुरे वक़्त काम आते हैं) ।
१०. बख़ील (कंजूस) लोगों से मशविरा (परामर्श) मत करो वरना वह तुमको भी सख़ावत (दान) व बख़्शिश से रोक देंगे।
११. नेक लोगों की लग़ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करो क्योंकि ख़ुदावन्दे आलम उनका नासिर व मददगार (सहायक) है।
१२. झूठ से बचो क्योंकि झूठ और ईमान में तज़ाद (टकराव) है।
१३. बड़ी अज़ीम है वह मुसीबत जो इन्सान के दीन पर आये।
१४. जो शख़्स अल्लाह के दोस्तों को दोस्त रखता है, क़यामत (महाप्रलय) के दिन उन्हीं के साथ महशूर होगा (उठाया जायेगा) ।
१५. मुसलमान जब किसी से वायदा करता है तो फिर वायदा ख़िलाफ़ी नहीं करता।
१६. बदख़्वाही (बुरा चाहना) बदगुमानी (बुरा सोचना) चुग़लख़ोरी, ज़ुल्म व सितम और फ़ालेबद (अभिशाप) कहने से इज्तेनाब (बचो) करो।
१७. तोहफ़ा दोस्ती को परवान चढ़ाता है भाई चारगी में इज़ाफ़ा करता है और कीने (मन में शत्रुता) को ख़त्म करता है।
१८. कितनी ही ऐसी जल्द ख़त्म हो जाने वाली लज़्ज़ात (मज़े) हैं जिनके नतीजे में एक तुलानी (दीर्घकालीन) रन्ज व अफ़सोस हैं।
१९. लोगों से उन मौज़ूआत (विषयों) पर बात करो जिसे वह समझ सकें।
२०. लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता), दुरूस्तकारी से मिलो और उन पर ग़ुस्सा करने से बचो।
२१. ईमान वाला ख़ुदावन्दे आलम से दो चीज़ें तलब करता है, दुनिया में आसूदगी (संतोष) और आख़ेरत में नेमात (परलोक में मनपसन्द वस्तु) ।
२२. मोमिन तमलक़ (चापलूसी) और चापलूसी नहीं करता।
२३. जब तुम्हारा दामन ख़ुद ही गुनाहों (पापों) से और बुराईयों से आलूदा है तो नही अनिल मुन्कर (बुराई से रोकना) तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं।
२४. हक़ की पैरवी किये पग़ैर इन्सान की अक़्ल (बुध्दि) कामिल (पूर्ण) नहीं होती।
२५. जिस चीज़ तक पहुँचना मोहाल (दुशवार) है उसकी आरज़ू (इच्छा) मत करो।
२६. डरपोक और गुनाहगार (पापी) हमेशा परेशान रहते हैं।
२७. इज़्ज़त व मसर्रत परहेज़गारी (बुराईयों से बचना) में है।
२८. ईमान वाला इन्सान न ग़लत काम करता है न ही उसे माज़ेरत (पश्चाताप) करना पड़ती है।
२९. इन्सान की इज़्ज़त इसमें है कि वह दूसरों का मोहताज न रहे।
३०. जो तुम्हारा दोस्त (मित्र) होगा वह तुम्हें बुरे कामों से बचायेगा।
३१. मुसलमान से मुजादला (झगड़ा करना) नादानी की अलामत (जिन्ह) है।
३२. जितना काम किया हो उससे ज़्यादा के सिले (बदले या मज़दूरी) की उम्मीद (आशा) मत रखो।
३३. बख़ील (कंजूस) वह है जो सलाम में बुख़्ल (कंजूसी) करे।
३४. मुनाफ़िक़ (जिसका बाहरी व आन्तरिक एक न हो) रोज़ ग़लती करता है और रोज़ उसे माज़ेरत करना पड़ती है। मोमिन न ग़लती करता है न उसे माज़ेरत (क्षमायाचना) की ज़रूरत होती है।
३५. सलाम में सत्तर (70) हस्ना (अच्छाईयाँ) उन्हत्तर (69) सलाम करने वाले को और एक जवाब देने वाले को।
३६. जब तक कोई सलाम से इब्तेदा (शुरूआत) न करे उसकी बात का जवाब न दो।
३७. लोगों का अपनी ज़रूरेयात में तुम्हारी तरफ़ रूख़ करना अल्लाह की नेमतों में से एक नेमत है उसे ठुकराओ नहीं।
३८. ज़िन्दगी अक़ीदा (विशवास) और अमले पैयहम (निरन्तर कार्य करना) का नाम है।
३९. मोमिन का क़ौल (कथन) उसकी शख़्सियत (व्यक्तित्व) का आइना होता है।
४०. अपनी ज़रूरत सिर्फ़ तीन तरह के लोगों से बयान करो।
(1). दीनदार, (2). साहिबे मुरव्वत, (3). शराफ़तमन्द।
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हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)
इस्मे मुबारक -------------------- अली इब्नुल हुसैन (अ.स.)
लक़ब --------------------------- ज़ैनुल आबेदीन
कुन्नियत --------------------- अबु मोहम्मद
वालिदे बुज़ुर्गवार -------------- हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------ शहर बानो
विलादत --------------------- 15 जमादिउल ऊला 38 हिजरी 658 ई0
शहादत ---------------------- 25 मोहर्रम 95 हिजरी 714 ई0
मदफ़न ---------------------- जन्नतु बक़ीअ, मदीना
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. तन्दरूस्ती के वक़्त (समय) बीमारी के लिए और ज़िन्दगी में आख़ेरत (परलोक) के लिए तूशा (सामाग्री) फ़राहम करो।
२. मुस्कर (नशे वाली चीज़ें) चीज़ों से परहेज़ करो क्योंकि यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।
३. जो कम रोज़ी पर ख़ुदा से राज़ी होगा ख़ुदावन्दे आलम भी उसके अमले क़लील (कम अमल) पर राज़ी रहेगा।
४. झूठी क़सम माल की नाबूदी (बर्बाद) और तेजारत में अदमे बरकत (बरकत का ख़त्म होना) का बायस (कारण) है।
५. सबसे बेहतर वह शख़्स है जिसकी बातें तुम्हारे इल्म (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करें और तुमको ख़ैर की दावत दें।
६. अपनी औलाद का एहतेराम (इज़्ज़त) करो और उनकी अच्छी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो।
७. किसी को उस वक़्त तक परहेज़गार न समझा जायेगा जब तक वह शक व शुबाह (संदिग्ध) वाले कामों से इज्तेनाब (बचना) और हराम से बचेगा नहीं।
८. ज़्यादा माल व दौलत से बहुत ख़ुश न हो और किसी हाल में ख़ुदा को न भूलो।
९. हक़ीक़ी मोमिन वह है जो अपने माल में हाजतमन्दो को शरीक करे और लोगों से इन्साफ़ करे।
१०. जिसने तुम पर एहसान किया उसका हक़ तुम पर यह है कि उसका शुक्रिया अदा करो उसके एहसान को भूलो नहीं और उसके नाम को नेक चीज़ों से शोहरत दो।
११. दुनिया की लालच में मुबतला की मिसाल रेशम के उस कीड़े की सी है के जो जितना घूमता है उतना ही अपने को जाल में उलझा लेता है।
१२. अगर तुमसे कोई गुनाह (पाप) सरज़द हो जाये तो फ़ौरन ख़ुदा से तौबा (प्रायश्चित) करो।
१३. जब तुमसे फ़ैसले की तवक़्क़ो (आशा) की जाए तो बहुत होशियार होकर अदालत (न्याय) का ख़्याल रखो।
१४. जो शख़्स अपने और अपने ख़ुदा के दरमियान मामला साफ़ रखता है ख़ुदावन्दे आलम उसके और दूसरें लोगों के दरमियान मामला साफ़ रखता है।
१५. हर शख़्स की क़द्र उसकी ख़ूबियों के बराबर है।
१६. अपने ख़ुदा के अलावा किसी और से उम्मीदवार मत रहो।
१७. ख़ुदावन्दे आलम बेकार आदमी को पसन्द नहीं करता।
१८. जो शख़्स तुमको बुलाये उसकी दावत क़ुबूल (स्वीकार) करो और मरीज़ो की अयादत (बीमार की हालत पूछना) करो।
१९. क़र्ज़ लेने से इज्तेनाब (बचो) करो (क्योंकि) वह रात में अफ़सोस का बायस (कारण) और दिन में ज़िल्लत का बायस है।
२०. जिससे मिलों उसे सलाम करो ताकि ख़ुदावन्दे आलम तुम्हारे अज्र (इनाम) में इज़ाफ़ा करे।
२१. बदबख़्त वह शख़्स है जो तजुर्बा और अक़्ल के फ़वाएद (फ़ायदा का बहु वचन) से महरूम रहे।
२२. तुम चाहे जितना ताक़त व क़ुव्वत, माल व दौलत में ज़्यादा रहो फिर भी अपने ख़ानदान व क़ौम के मोहताज रहोगे।
२३. दोस्तों का छूट जाना बेकसी है।
२४. छुप कर सदक़ा (गुप्त दान से) देने से ख़ुदावन्दे आलम का ग़ज़ब (ईशवरीय प्रकोप) ज़ाएल (टल जाता है) हो जाता है।
२५. सब्र व रज़ा तमाम ताक़तों से बलन्द है।
२६. बच्चों की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो जो कल मुआशरे (समाज) में उसकी ख़ुबसूरती का बायस (कारण) है।
२७. अल्लाह से नाउम्मीदी (निराशा) का गुनाह बे गुनाहों का ख़ून बहाने से ज़्यादा है।
२८. अपनी औलाद की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो के ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ शोबों में आबरूमन्द और बाइज़्ज़त ज़िन्दगी गुज़ार सकें और तुम्हारे फ़ख़्र (गर्व) का बायस हों।
२९. जो शख़्स अपने घर वालों पर ज़्यादा फ़ेराख़ दिली दिखाता है ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी उनके शामिल हाल रहती है।
३०. यतिमों पर माँ बाप की तरह रहम करो और यह ख़्याल रहे कि आज जो अमल करोगे कल उसी की जज़ा मिलेगी।
३१. जो शख़्स लोगों पर बहुत मिन्नत (ख़ुशामद) रखता है वह लईम व पस्त है।
३२. ख़ुदावन्दे आलम उस जवान को पसन्द करता है जो अपने नापसन्दीदा आमाल पर नादिम (शर्मिन्दा) हो और तौबा (प्रायश्चित) कर ले।
३३. मोमिन की रातों की इबादत उसका शरफ़ है लोगों में बेनियाज़ी (बेपरवाही) उसकी इज़्ज़त।
३४. क्या कहना उस शख़्स का जो हाज़िर लज़्ज़तों को ग़ाएब नेमतों के हुसूल के लिए छोड़ दे।
३५. ग़रीब वह शख़्स है जिसे मुआशरे (समाज) में अपने साथी न मिल सकें।
३६. आख़री ज़माने में जो चीज़ सबसे कम मिलेगी वह मोरिदे इत्मिनान (विश्वसनीय) दोस्त और हलाल आमदनी है।
३७. ख़ुदावन्दे आलम इस्लाम की उन लोगों से ताईद कराता है जो उसके दाएरे में न भी हों।
३८. उन चीज़ों में मश्ग़ूल रहना जो इन्सान के काम न आने वाली हों सख़्त तरीन ग़लती है।
३९. हासिद (ईर्ष्यालु) कभी बा-इज़्ज़त नहीं हो पाता और कीना परवर (मन में बुराई रखने वाला) अपने ग़ुस्से से मरा करता है।
४०. अज़मत (बढ़ाई) उसी को हासिल है जो लोगों को मेज़ाह (मज़ाक़) का ज़रिया न बनाये उनको धोका न दे और उनकी इज़्ज़त में कमी न करे।
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
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हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.)
इस्मे मुबारक --------------------- मोहम्मद बिन अली (अ.स.)
लक़ब ---------------------------- बाक़िर
कुन्नियत ------------------------ अबु जाफ़र
वालिदे बुज़ुर्गवार ----------------- हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)
वालदा ए माजिदा --------------- फ़ातिमा बिन्ते हसन (अ.स.)
विलादत ------------------------ 1 रजब 57 हिजरी 733 ई0
शहादत ------------------------- 7 ज़िलहिज्जा 104 हिजरी 733 ई0
मदफ़न ------------------------- जन्नतुल बक़ीअ, मदीना
हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।
२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।
३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।
४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।
५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।
६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।
७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।
८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे, दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।
९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।
१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।
११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।
१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।
१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।
१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।
१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।
१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।
१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।
१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।
१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।
२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।
२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।
२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।
२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।
२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।
२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।
२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।
२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।
२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।
३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।
३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।
३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।
३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।
३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा?
३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।
३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।
३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।
३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।
३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।
४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।
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हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.)
इस्मे मुबारक ------------------------ जाफ़र बिन मोहम्मद (अ.स.)
लक़ब ------------------------------- सादिक़
कुन्नियत --------------------------- अबु अब्दुल्लाह
वालिदे बुज़ुर्गवार -------------------- हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------------ उम्मे फ़रवा
विलादत --------------------------- 17 रबी उल अव्वल 83 हिजरी 702 ई0
शहादत ---------------------------- 15 शव्वाल 184 हिजरी 765 ई0
मदफ़न ---------------------------- जन्नतुल बक़ीअ, मदीना
हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. हर बुज़ुर्गी और शरफ़ की अस्ल तवाज़ो है।
२. जिन कामों के लिये बाद में माज़ेरत करना पड़े उनसे परहेज़ (बचो) करो।
३. अपने दिलों (मन का बहु) को क़ुराने मजीद की तिलावत और अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) से नूरानी रखो।
४. अगर कोई तुम पर एहसान करे तो तुम उसके एहसान को चुकाओ और अगर यह न कर सकते हो तो उसके लिये दुआ करो।
५. जिस तरह तुम यह चाहते हो की लोग तुमसे नेकी करें तुम भी दूसरों से नेकी करो।
६. सफ़र (यात्रा) से पहले हमसफ़र (जिसके साथ सफ़र कर रहा है) को और घर लेने से पहले हमसाया (पड़ोसी) को ख़ूब परख लो।
७. किसी फ़क़ीर को ख़ाली वापिस न करो कुछ न कुछ ज़रूर दे दो ।
८. अव्वल वक़्त नमाज़ अदा (पढ़ो) करो अपने दीन के सुतून (खम्भो) को मज़बूत करो।
९. लोगों को ख़ुश करने के लिये ऐसा काम न करो जो ख़ुदावन्दे आलम को नापसन्द हो।
१०. दोस्तों (मित्रों) को हज़र (मौजूदगी) में एक दूसरे से मिलते रहना चाहिये और सफ़र में ख़ुतूत (ख़त का बहु वचन) के ज़रिये राबता (सम्बन्ध) रखना चाहिये।
११. शराबियों से दोस्ती मत करो।
१२. अच्छे काम इन्सान को बूरे वक़्त में बचाते है।
१३. (अगर) आज तुम अपने किसी भाई की मदद करोगे तो कल हज़ारों लोग तुम्हारी मदद करेगें।
१४. मौत की याद बुरी ख़्वाहिशों (इच्छाओं) को दिल से (मन से) ज़ाएल (दूर) करती है।
१५. माँ बाप की फ़रमांबरदारी ख़ुदावन्दे आलम की इताअत (आज्ञा का पालन) है।
१६. हसद, कीना और ख़ुद पसन्दी (स्वार्थ) दीन के लिये आफ़त हैं।
१७. सिल्हे रहम आमाल को पाकीज़ा (पवित्र) करता है।
१८. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स पर रहमत करे जो इल्म (ज्ञान) को ज़िन्दा रखे।
१९. ग़ुस्सा हर बुराई का पेशख़ेमा है।
२०. जिसकी ज़बान सच बोलती है उसका अमल भी पाक होता है।
२१. अपने वालदैन (माता पिता) से नेकी करो ताकि तुम्हारी औलाद (बच्चे) तुम से नेकी करें।
२२. ख़ामोंशी से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।
२३. कुफ़्र की बुनियाद तीन चीज़ हैं 1. लालच, 2. तकब्बुर (घमण्ड), 3. हसद।
२४. नेक बातें तहरीर (लिखावट) में लाओ और उसे अपने भाईयों में तक़सीम करो।
२५. मुझे वह शख़्स नापसन्द है जो अपने काम में सुस्ती करे।
२६. हरीस (लालची) मत बनो क्योंकि उससे इन्सान की आबरू चली जाती है और वह दाग़दार हो जाता है।
२७. बदतरीन लग़्ज़िश यह है के इन्सान अपने उयूब (ऐब का बहु वचन) की तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान) न दे।
२८. शराबियों से कोई राबता (सम्बन्ध) न रखो।
२९. जिस घर या जिस नशिस्त में मोहम्मद (स0) का नाम मौजूद हो वह बा बरकत व मुबारक है।
३०. लिखे हुए कागज़ात को नज़्रे आतिश (जलाओ नहीं) न करो अगर जलाना है तो पहले नविश्त ए जात (लिखे हुए को) को महो (मिटा) कर दो।
३१. कभी गुनाह को कम न समझो मगर गुनाह से इज्तेनाब (बचो) करो।
३२. जिसने लालच को अपना पेशा बनाया उसने ख़ुद को रूसवा (ज़लील) कर लिया।
३३. जल्दबाज़ी हमेशा पशेमानी (पश्चाताप) का बायस (कारण) होती है।
३४. मौत की याद बेतुकी ख़्वाहिशों (व्यर्थ इच्छाओं) को दिल से निकाल देती है।
३५. निजात व सलामती हमेशा (सदैव) ग़ौर व फ़िक्र (सोचविचार) से हासिल (प्राप्त) होती है।
३६. ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी (ख़ुशी) माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है।
३७. जो शख़्स कम अक़्लों और बेवकूफ़ों से दोस्ती करता है वह अपनी आबरू ख़ुद कम करता है।
३८. शराब से बचो के यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।
३९. मेदा तमाम बुराईयों का ख़ज़ाना है और परहेज़ हर इलाज का पेशख़ेमा है।
४०. जिस तरह ज़्यादा पानी से सब्ज़ा पज़मुर्दा हो जाता है उसी तरह ज़्यादा खाने से दिल मुर्दा हो जाता है।
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हज़रत इमाम मुसा काज़िम (अ.स.)
इस्मे मुबारक ----------------------- मूसा बिन जाफ़र (अ.स.)
लक़ब ------------------------------ काज़िम
कुन्नियत -------------------------- अबु इब्राहीम
वालिदे बुज़ुर्गवार ------------------- हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ----------------- हमीदा मुस्तफ़ा
विलादत -------------------------- 7 सफ़र 129 हिजरी 745 ई0
शहादत --------------------------- 25 रजब 183 हिजरी 799 ई0
मदफ़न --------------------------- काज़मैन, बग़दाद
हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. ग़ाफ़िल तरीन (बेपरवाह) शख़्स वह है जो ज़माने (समय) की गर्दिश और हादसात से इबरत हासिल न करे।
२. जो शख़्स बद अख़लाक़ है (गोया) उसने अपने एक दाएमी (सदैव) अज़ाब में मुबतला कर रखा है।
३. बहादुर वह है जो ग़ुस्से के वक़्त भी बुर्दबार रहे।
४. इल्म तमाम ख़ूबियों का बायस (कारण ) और जेहेल (जिहालत) तमाम बुराईयों का मोजिब (कारण) है।
५. माल ख़ुदावन्दे आलम की एक नेमत है और माल से बेहतर बदन की सलामती है और उससे बेहतर तक़्वा ए क़ल्ब है।
६. ज़कात के ज़रिये अपने माल की हिफ़ाज़त (रक्षा) करो सदक़े (ईश्वर के मार्ग में कुछ देना) के ज़रिये बीमारी का इलाज।
७. बुरे लोगों से भी नेकी करो ताकि उनकी बदी (बुराई) से महफ़ूज़ (बचे) रहो (क्योंकि) नेकी से आज़ाद भी बन्दाए बे दाम हो जाता है।
८. दुनिया ख़्वाब है और आख़ेरत (परलोक) बेदारी और उस दरमियान (बीच) ज़िन्दगी एक ख़्वाबे परेशां।
९. बहादुर इन्सान हमेशा ख़ुश व मसरूर रहता है और अपना ज़ेहेन और आसाब पर आक़ेलाना क़ाबू रखता है।
१०. कभी किसी को धोका मत दो क्योंकि यह काम बहुत पस्त लोगों का है।
११. झूठ बदतरीन बीमारी है।
१२. हमेशा हक़ बात कहो और परहेज़गारों (बुराई से बचने वाला) के नासिर व मददगार (सहायक) बनो।
१३. अहमक़ (बेवकूफ़) लोगों से दोस्ती मत करो क्योंकि वह ग़ैरे शऊरी तौर (बेवकूफ़ी से) से तुमको नुक़सान पहुँचायेंगे।
१४. जो अल्लाह से डरता है वह किसी पर ज़ुल्म नहीं करता।
१५. अल्लाह की राह (मार्ग) में अपने जान व माल से जेहाद करो और दुनिया में (आख़ेरत के लिये) ज़ख़ीरा (जमा) कर लो।
१६. सितमगर पर सख़्ती करके मज़लूम के हक़ को उससे दिलवाओ।
१७. दोस्त की लग़्ज़िशों (त्रुटियों) से चश्म पोशी करो और उसे दुश्मनों के हमलों के वक़्त के लिए महफ़ूज़ (बचाये) रखो।
१८. जिसका ईमान अल्लाह पर है वह उस दस्तरख़ान पर नहीं बैठता जहाँ शराब हो।
१९. अगर तुम में से कोई बरादरे मोमिन को दोस्त रखे तो उसे आगाह कर दो।
२०. कारे ख़ैर में जल्दी करो (वरना) किसी दूसरे काम में लग जाओगे।
२१. क्या कहना उस शख़्स का जो अपने हलाल माल से बख़्शिश व इन्फ़ाक़ (व्यय करे) करे।
२२. लोगों से बदगोई (अपशब्द) मत करो (वरना) इस तरह तुम अपने लिये अदावत को दावत दोगे।
२३. जो शख़्स मौक़ा बे मौक़ा अपनी परेशानियों को लोगों से सुनाता है वह अपने को ज़लील करता है।
२४. हरग़िज़ अपने अज़ीज़ों से चश्मपोशी न करो और बेगाने (जिससे जान पहचान न हो) को आश्ना (जानने वाले) पर तरजीह मत दो।
२५. जिसने मियाना रवी और क़नाअत (आत्मसंतोष) को अपनाया उसके लिये नेमत हमेशा बाक़ी रहती है।
२६. हमेशा हक़ गो (सच बोलो) रहो और हक़ को सरीह अन्दाज़ से बयान करो और ख़ुदावन्दे आलम के सिवा किसी और की ख़ुशनूदी के तलबगार न हो।
२७. ख़ुदावन्दे आलम काहिल और सुस्त बन्दे को पसन्द नहीं करता।
२८. सब्र (सहनशीलता) करोगे तो फ़ायदे में रहोगे।
२९. जो इसराफ़ और फ़ुज़ूल ख़र्ची करता है उसके यहाँ नेमत पर ज़वाल आ जाता है।
३०. परहेज़ हर मुसीबत का इलाज है।
३१. सात साल की उम्र के बच्चों को नमाज़ के लिये तैयार करो और उनके बिस्तर जुदा (अलग- अलग) कर दो।
३२. अज़ीम इन्सान (अच्छा मनुष्य) क़ुदरत पाकर अफ़ो (क्षमा) कर देता है अपनी ज़बान को नासज़ा (अपशब्द) कहने से रोकता है और इन्साफ़ (न्याय) का रास्ता इख़्तेयार (ग्रहण) करता है।
३३. कुशादा रवी (अच्छा अख़लाक़) ऐसा नेक काम है जिसमें न कोई ख़र्च है न कोई ज़हमत।
३४. अच्छे दोस्त हासिल करने से इन्सान की इज़्ज़त बढ़ जाती है।
३५. नेकी वह चीज़ है जो सिवाय शुक्राने और ऐवज़ देने के ख़त्म नहीं होती।
३६. वह इज़्ज़त जो तकब्बुर (घमण्ड) से हासिल हो वह ज़िल्लत है।
३७. लोगों से हाजत तलब करना (माँगना) बे-इज़्ज़ती भी है और रिज़्क़ में कमी का बायस (कारण) भी।
३८. जब बाद करो तो झूठ मत बोलो और जब वायदा करो तो वायदा ख़िलाफ़ी न करो।
३९. जब तुम किसी दूसरे के ऐब का ज़िक्र करना चाहो तो पहले अपने ऐब को सोच लो।
४०. मौत आने से पहले उसके लिये तैयार हो जाओ।
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