अनवार

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अनवार लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

अनवार
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अनवार

अनवार

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


1

2

3

हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.)

इस्मे मुबारक ------------------------- अली बिन मूसा (अ.स.)

लक़ब --------------------------------- रज़ा (अ.स.)

कुन्नियत ----------------------------- अबुल हसन

वालिदे बुज़िर्गवार ---------------------- हज़रते इमाम मूसा काज़िम (अ.स.)

वालदा ए माजिदा --------------------- उम्मुल बनीन नजमा

विलादत ------------------------------ 11 ज़िक़ादा 148 हिजरी 766 ई0

शहादत ------------------------------- आख़िर सफ़र 203 हिजरी 816 ई0

मदफ़न ------------------------------- मशहदे मुक़द्दस

हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-

१. जब लोग नये नये गुनाहों का इरतेकाब (करना) शुरू कर देंगे तो ख़ुदावन्दे आलम (ईशवर) भी उन्हें नई नई बलाओं (आपत्तियों) में मुबतला करेगा (डालेगा) ।

२. माँ बाप को मोहब्बत भरी निगाहों से देखना इबादत (तपस्या) है।

३. ख़ुशबख़्त वह शख़्स है जो दूसरों की सरगुज़श्त (गुज़रा हुआ) से इब्रत (वह मानसिक खेद जो किसी आदमी को बुरी अवस्था में देखकर होता है) हासिल करे।

४. तुम्हारे अच्छे काम वह हैं जो आख़ेरत (परलोक) को सँवारें।

५. बेहतरीन कारे ख़ैर (अच्छा कार्य) वह है जो दाएमी (हमेशा) हो अगरचे कम हो।

६. जो किसी हाजत मन्द (माँगने वालों) की हाजत रवा (पूरा) करे ख़ुदावन्दे आलम उसके दुनिया व आख़ेरत (परलोक) दोनों आसान करेगा।

७. नेक ओमूर (अच्छे काम) में जल्दी करो ताकि कामयाब रहो (याद रखो) नेक कामों से उम्र (आयु) में बरकत होती है।

८. जो बुज़ुर्गों का एहतेराम (आदर) और ख़ुर्दों (छोटो) पर रहम न करे वह मुझ से नहीं।

९. बख़ील (कंजूस) लोगों की हमनशीनी (संगत) मत इख़्तेयार (ग्रहण) करो क्योंकि जब तुम उनके मोहताज होगे (तो) वह तुम से दूर भागेगा।

१०. जो तकब्बुर (घमण्ड) करेगा वह बेतुका फ़ख़्र करेगा उसे ज़िल्लत के सिवा कुछ और हासिल न होगा।

११. अपने राज़ को सिर्फ़ क़ाबिले ऐतमाद (भरोसेमन्द) लोगों से बताओ।

१२. इल्म से बेहतर कोई ख़ज़ाना नहीं और बुर्दबारी से बेहतर कोई इज़्ज़त नहीं।

१३. अपने दोस्तों और दुश्मनों सबके मामेलात में इन्साफ़ (न्याय) का ख़्याल ज़रूर रखना।

१४. नेक काम अन्जाम दो ताकि क़यामत के दिन नेक जज़ा (इनाम) मिले ।

१५. दुनिया की गुज़रगाह से अपने दाएमी घर (आख़ेरत)के लिए तोशा (सामग्री) लेते चलो ।

१६. किसी भी काम के लिए अव्वले वक़्त नमाज़ तर्क ना करो।

१७. जो अक़्लमन्दों से मश्विरा (परामर्श) करता है गुमराह (ईश्वरीय मार्ग से भटकना) नहीं होता।

१८. ख़ुदावन्दे आलम (ईश्वर) नें गुनाहों (पापों) और बुराईयों पर क़ुफ़्ल (तालें) लगा दिये हैं और उनकी कुँजी शराब और झूट उससे भी बदतर है ।

१९. ख़ानदान वालों से राब्ता (सम्बन्ध) हमेशा (सदैव) ताज़ा रख़ो अगरचे सिर्फ़ सलाम ही से हो ।

२०. माँ बाप को नाराज़ करने से उम्र (आयु) कोताह (कम) हो जाती है ।

२१. कभी अपने दीनी भाई से जेदाल (लड़ाई) या (हद से ज़्यादा) मेज़ाह (मज़ाक़) न करो और उनसे झूठे वादे मत करो ।

२२. नियाज़ मन्दी और हाजत (ऐसी बला है कि) होशियार से होशियार आदमी को भी दलील व बुर्हान (सुबूत) से रोक देती है ।

२३. अमानत (धरोहर) को अपने मालिक की तरफ़ वापिस करो चाहे वो नेक हो या बद ।

२४. हमेंशा अपनी ज़बान और अपनें हाथों से अम्र बिल मारूफ़ (अच्छाई का आदेश) व नहीं अनिल मुन्कर (बुराई से रोकना) करते रहो और अपने छोटे से छोटे गुनाह (पाप) कम ना समझो ।

२५. आज जबकि तुम्हारा क़द व क़ामत सलामत, ख़ून गर्म और दिल बेदार हे तो आने वाली सख़्तियों के लिए ख़ूब फ़िक्र (सोच विचार) कर लो ।

२६. अच्छे अख़्लाक़ वाला इन्सान वह है जिससे किसी का दिल न दुखा हो ।

२७. हर शख़्स का दोस्त उसका इल्म (ज्ञान) है दुश्मन उसकी जेहालत (अज्ञानता) ।

२८. मुझे वह दस्तरख़्वान पसन्द नहीं जिस पर सब्ज़ी न हो ।

२९. जो ज़ुबान से अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) करे और दिल से अपने गुनाहों से पशेमान (शर्मिन्दगी) न हो वह गोया अपने साथ मज़ाक़ कर रहा है ।

३०. ज़रुरी है कि तुम हमेशा मोहज़्जब (सभ्य) लोगों से इरतेबात (सम्बन्ध) रखो ।

३१. ज़माना तुम्हारी ज़िन्दगी की डायरी है इसलिए इसमें नेक आमाल (अच्छे कार्य) दर्ज करो (लिखो)।

३२. आलिम (ज्ञानी) मरने के बाद (म्रत्यु पश्चात) भी ज़िन्दा (जिवित) रहता है जाहिल (अज्ञानी) ज़िन्दगी ही में मुर्दा है।

३३. बुरे कामों से बचना नेक कामों की अन्जाम देही (के करने) से बेहतर है।

३४. जब तक भूक न हो दस्तरख़ान पर मत बैठो और शिकम (पेट) सेर होने (भरने) से पहले दस्तरख़ान छोड़ दो।

३५. बीमारों को जब उनका दिल माएल (मन न चाहे) न हो ज़बर्दस्ती ग़िज़ा (खाना) मत दो।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

३६. मसर्रत (ख़ुशी) व शादमानी तीन चीज़ों से हासिल होती है, 1. मुवाफ़िक़ शरीके हयात (अपने मिजाज़ की पत्नि), 2. नेक औलाद, 3.अच्छे दोस्त।

३७. आरज़ू (इच्छा) ख़त्म होने वाली चीज़ नहीं और मौत को भी भुलाये रखती है।

३८. सूद बदतरीन महसूल (जो प्राप्त हुआ हो) है और माले यतीम (जिसके पिता न हों) खाना बदतरीन ग़िज़ा है।

३९. ख़ुदावन्दे आलम सख़ी (बाँटने वाला) है और सख़ी (ईशवरीय इच्छा हेतु बाँटना) को पसन्द करता है।

४०. वाजेबात (जो कार्य ईशवर हेतु अवश्य करना होता है) के बाद ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक़ बेहतरीन काम लोगों को मसर्रत (ख़ुश करना) पहुँचाना है।

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हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.)

इस्मे मुबारक ------------------------- मोहम्मद बिन अली (अ.स.)

लक़ब -------------------------------- जवाद

कुन्नियत ---------------------------- अबु जाफ़र

वालिदे बुज़ुर्गवार --------------------- हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.)

वालदा ए माजिदा ------------------- ख़ैज़रान

विलादत ---------------------------- 10 रजब 195 हिजरी 899 ई0

शहादत ----------------------------- 29 ज़ीकादा 220 हिजरी 835 ई0

मदफ़न ----------------------------- काज़मैन, बग़दाद

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-

१. आपस में इत्तेहाद (मेल जोल) क़ायम करने के लिये झूठ भी नापसन्दीदा नहीं है।

२. ख़ुशकिस्मत वह है जो बुज़ुर्गों (अपने से बढ़ों) और नेक लोगों से मेल मिलाप रखे।

३. क्या कहना उस शख़्स का जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी बर्ते और बुरे वक़्तो में काम आए।

४. वायदे का वफ़ा करना (पूरा करना) और मुआहदे (समझौते) का एहतेराम (सम्मान) करना ईमान का जुज़ (टुकड़ा) है।

५. अगर किसी को कोई चीज़ नहीं मालूम तो मालूम करने में शर्म महसूस न करे क्योंकि हर इन्सान की क़ीमत उसकी मालूमात (ज्ञान) पर है।

६. जो शख़्स इस हाल में सुबह करे कि किसी पर ज़ुल्म का ख़्याल भी दिल में न लाये ख़ुदा उसके गुनाहों को दरगुज़र करेगा।

७. कभी भी ओमूरे ख़ैर (अच्छे कार्य) को मिन्नत (अहसान) जता कर ज़ाया मत करो।

८. अपनी ज़िन्दगी के दौरान हमेशा ओमूरे ख़ैर में मशग़ूल (वयस्त) रहो और दरियाए रहमते ख़ुदा से सेराब होते रहो।

९. पस्त अफ़राद के पास सिवाये यावा सराई (अपनी बड़ाई करना) और नासज़ा कल्मात (बुरे शब्द) के कोइ और हर्बा नहीं है।

१०. आज़ाद वह है जो अपने को ख़्वाहिशाते नफ़्स (आत्मइच्छाओं) से आज़ाद रखे।

११. अपने दुश्मनों से अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) का बर्ताव (व्यवहार) करो जल्दी कामयाब (सफ़ल0 होगे।

१२. जो कोई अपने भाई के लिये कुआँ खोदेगा ख़ुद उसका शिकार होता है।

१३. ग़ौर व फ़िक्र (सोच विचार) नूरानियत का बायस (कारण) और ग़फ़लत व बेख़बरी तारीकी लाती है।

१४. सबसे ख़तरनांक मर्ज़ हवा व हवस (इच्छापूर्ति) की पैरवी है।

१५. नेकी (अच्छाई) करो ताकि दूसरे तुमसे नेकी करें दूसरों पर रहम करो ताकि तुम पर रहम किया जाये।

१६. अल्लाह की राह (राह) में काम करते वक़्त (समय) लोगों की सरज़निश (ऐतेराज़) की परवाह मत करो।

१७. जो शख़्स (मनुष्य) दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) पर से परदा उठायेगा नागाह (अचानक) ख़ुद उसके ओयूब बे परदा हो जायेगें।

१८. तहसीले इल्म (ज्ञान प्राप्ती) में अगर कोई लुक़्मा ए अजल (मर जाये) हो जाये तो गोया वह शहीद है।

१९. मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो इससे दिल के कीने (द्वेष, वह शत्रुता जो मन में रहे) दूर हो जाते हैं।

२०. इल्म (ज्ञान) बेहतरीन मीरास (नानकार) है और अख़लाक़ (शिष्टाचार) बेहतरीन ज़ेवर है।

२१. नेक अख़लाक़ (सुशीलता) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की हमनशीनी (संगत) से हासिल होता है।

२२. बुरी आदतें जाहिलों (अज्ञानियों) की हमनशीनी (संगत) की देन है।

२३. सितमगर के लिये हिसाब का दिन (महाप्रलय) ज़्यादा सख़्त (कठोर) होता है मुक़ाबले में मज़लूम (जिसके साथ अन्याय किया गया हो) पर सितम करने के दिन से।

२४. जो अपनी ख़्वाहेशात (इच्छाओं) का ग़ुलाम हुआ गोया उसने अपने दुश्मन की ख़्वाहेशात (इच्छाओं) को पूरा कर दिया।

२५. जिस शख़्स में जितना अदब होगा ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक़ वह उतना ही मोहतरम होगा।

२६. जिस दस्तरख़ान पर शराब हो उस पर खाना खाना हराम है।

२७. पाकदामनी हवस को कम करती है और सदाक़त रहमते ख़ुदावन्दी का बायस (कारण) होते हैं।

२८. दूसरों की लग़्ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करना बेहतरीन नेकी है और उससे तुम्हारे बुज़र्गी (बड़ापन) भी ज़ाहिर होती है।

२९. ईमान वाला हमेशा कीना (द्वेष) और शक़ावत (ज़ुल्म) से दूर रहता है।

३०. ख़ुद पसन्दी (ख़ुद को अच्छा समझना) हिमाक़त (बेवक़ूफ़ी) व नादानी की अलामत है।

३१. यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी (दायित्व) है के हमेशा हक़ गो (सही बात कहो) रहो अहद व पैमान को पूरा करो अमानत (धरोहर) को अदा करो ख़्यानत (दूसरें के धरोहर के प्रति बेईमानी का विचार) तर्क (छोड़ दो) करो।

३२. हरगिज़ लोगों की ख़ुशनूदी के लिये अल्लाह को ग़ज़बनांक न करना और लोगों से क़ुरबत (क़रीबी) के लिये अल्लाह से दूर मत होना।

३३. एक दूसरे को तोहफ़ा (उपहार) देकर मोहब्बत बढ़ाओ और जो तुम्हें तोहफ़ा (उपहार) दे तुम भी उसे हदिया दो।

३४. कितना बद बख़्त है वह इन्सान जो दुनिया में फ़क़ीर रहे और आख़ेरत (परलोक) में अज़ाबे इलाही (ईश्वरीय प्रकोप) में गिरफ़्तार रहे।

३५. सबसे बड़ा ज़ुल्म व सितम वह है जो इन्सान अपने आइज़्ज़ा (रिश्तेदारों) पर करे।

३६. जब मुस्तहब (जिसके करने में सवाब हो) काम वाजिब ओमूर (जिनके न करने में अज़ाब हो) में रूकावट (बाधा) का बायस (कारण) हों तो उन्हें तर्क (छोड़) कर दो।

३७. सहर (प्रातः) के वक़्त सफ़र शुरू करो बहुत फ़वायद (फ़ायदे का बहु) हासिल होते हैं।

३८. मुश्किलात पर सब्र (सहनशीलता) के ज़रिये क़ाबू हासिल करो क्योंकि बेताबी से अज्र (इनाम) भी ज़ाया (चला जाता) होता है और मुसीबत भी बढ़ जाती है।

३९. जो शख़्स ऐसा काम करे जिससे ज़न व शौहर (मियाँ बीवी) में जुदाई हो जाये उस पर दुनिया व आख़ेरत (परलोक) में ग़ज़बे ख़ुदावन्द (इश्वरीय प्रकोप) रहेगा।

४०. अल्लाह से नज़दीक होने की अलामत है के हमेशा उससे मागें और लोगों से नज़दीक होने के लिये ज़रूरी है के उनसे मागें।

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हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.)

इस्मे मुबारक ------------------ अली बिन मोहम्मद (अ.स.)

लक़ब ------------------------- नक़ी

कुन्नियत --------------------- अबुल हसन

वालिदे बुज़ुर्गवार -------------- हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.)

वालदा ए माजिदा ------------ समाना

विलादत --------------------- 15 ज़िलहिज्जा 214 हिजरी 829 ई0

शहादत ---------------------- 3 रजब 254 हिजरी 868 ई0

मदफ़न ---------------------- सामरा, इराक़

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-

१. ख़ुदपसन्दी इन्सान की बदबख़्ती और हलाकत का सबब है।

२. जो शख़्स नेमाते इलाही (ईश्वरीय ईनाम) का शुक्रगुज़ार करता है उस पर नेमाते इलाही का इज़ाफ़ होता (बढ़ जाता) है।

३. मैं तुम लोगों को वसियत करता हूँ के हमेशा रास्त गो रहना अहद को वफ़ा करना अमानत (धरोहर) को अदा करना और यतीमों ( जिसका पिता न हो) की सरपरस्ती करना।

४. नेक काम मर्गे मफ़ाजात से बचाते हैं।

५. दूसरो के अमवाल (माल का बहु वचन) में लालच न करो ताकि लोग तुम्हें पसन्द करें।

६. नादानी से ज़्यादा कोई फ़ख़्र नहीं और अक़्ल (बुध्दि) से ज़्यादा फ़ायदा रसाँ (लाभ पहुँचाने वाला) कोई माल नहीं।

७. अल्लाह से डरो ताकि दूसरों से भी अमान (सुरक्षा) में रहो।

८. तीन चीज़ें मोहब्बत पैदा करती हैं- 1. मुआशेरत (समाज) में इन्साफ़, 2. सख़्तियों में हमदर्दी और 3.खुले दिल से लोगों से मोहब्बत ।

९. ख़्वाहिशे नफ़्स (आत्म इच्छा) पर क़ाबू पा लेना दीनदारी की अलामत (चिन्ह) है।

१०. दो रूई (दोहरी बातें) और चुग़लख़ोरी से परहेज़ करो क्योंकि उसी से लोगों के दिलों में किना (द्वेष) पैदा होता है और तुम्हारी शख़्सियत (व्यक्तित्व) घटती जाती है।

११. कभी भी अपने बरादरे दीनि से इन्तेक़ाम (बदला) लेने की कोशिश (प्रयास) न करो अगरचे उसने बदी की हो।

१२. जो शख़्स (मनुष्य) सिर्फ़ अपनी अक़्ल पर भरोसा करे और मशविरा (परामर्श) न करे उससे लग़्ज़िश (त्रुटि) हो सकती है।

१३. जो सच्चा मुसलमान हो परहेज़गार (बुराई से बचने वाला) रहेगा।

१४. ख़ुदा की रहमत है उस पर जिसे जब नेक काम की दावत दी जाये तो क़बूल (स्वीकार) कर ले।

१५. जब तुम से कोई मशविरा (राय) करे तो उसे सही रहनुमाई (उचित मार्गदर्शन) करो।

१६. बेहतरीन सदक़ा यह है कि जो दोस्त जुदाई (प्रथकता) का शिकार हो गये हैं उनमें इस्लाह (शुध्दि) कर दो।

१७. अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) से रहनुमाई हासिल करो और उनके मशविरे से सरताबी न करो वरना पशेमान होना पड़ेगा।

१८. लोगों से इज़्हारे मोहब्बत (प्रेम प्रकट) करो ताकि तुमको भी दोस्त रखें।

१९. क्या कहना उस शख़्स का जो अक़्लमन्दों और दानिशमन्दों (बुध्दिमानों) का हमनशीं (साथी) है।

२०. जो ज़माने से तजुर्बा हासिल करता है वह दुनिया वालों के फ़रेब (धोके) में नहीं आता।

२१. ख़ुशख़ल्की (अच्छा तरीक़ा) और कुशादा रूई (सत्य व्यवहार) दोस्ती का बायस (कारण) और मोहब्बत हासिल करने का ज़रिया है।

२२. जो चीज़ें यहाँ हलाल ज़रिये से हासिल की गईं उसका भी वहाँ हिसाब होगा।

२३. हर चीज़ का एक सुतून (खम्भा) होता है दीन का सुतून इल्म व दानिश (बुध्दि) है।

२४. जो शख़्स ख़ुदपसन्दी और ख़ुदखाँ (अपनी प्रशंसा चाहने वाला) होता है उस पर ग़ुस्सा करने वाले भी ज़्यादा होगें।

२५. छुप कर गुनाह करने से डरो क्योंकि उस वक़्त का देखने वाला ही फ़ैसला करने वाला है।

२६. दूर अन्देश वह है जो फ़ुज़ूल ख़र्ची से बचे और इसराफ़ (दुरूपयोग) से दूर रहे।

२७. जिसके पास अमानत हो वह उसके मालिक तक पहुँचायें।

२८. इलाही नेमात पर ग़ौर करना एक अच्छी इबादत है।

२९. सख़ावत मोहब्बत पैदा करती है और अख़लाक (शिष्टाचार) इन्सान को भी आरास्ता करती है।

३०. कीना परवरी (मन में शत्रुता) पस्ती की अलामत है और इन्सान की अज़मत (बड़ापन) कम करती है।

३१. औलाद जब अपने माँ बाप को मोहब्बत की नज़रों से देखे तो यह इबादत है।

३२. इज़्ज़त के बाद ज़िल्लत उतनी सख़्त है जितना इक़्तेदार मसर्रत आवर।

३३. गुनाहगारों (पापियों) के लिये तौबा (प्रायश्चित) कर लो।

३४. जिसकी निगाहें दूसरे के माल की तरफ़ होती हैं उसका ग़म ज़्यादा और अफ़सोस फ़रावां रहता है।

३५. जब दो मुसलमान आपस में मुलाक़ात करके मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करते हैं तो उनके गुनाह ख़ुश्क पत्तों की तरह गिरते है।

३६. हमेशा दूसरोंक की कामयाबी (सफ़लता) और आक़बत ब-ख़ैर होने की दुआ करो ताकि वह चीज़ें तुम अपने में पाओ।

३७. मेज़ाह (मज़ाक़) वेक़ार (सम्मान) व हैयबत को कम कर देता है जबकि सुकूत (ख़ामोशी) वेक़ार (सम्मान) में इज़ाफ़े (बढ़ाने) का बायस (कारण) है।

३८. जवानों में से जो क़ुदरत रखता हो अज़्दवाज (विवाह) करे क्योंकि अज़्दवाज पाकदामनी का मोजिब (कारण) है।

३९. मालियात (माल का बहु वचन) के ज़मन में हमेशा अपने से नीचे लोगों से मवाज़ना (मुक़ाबला) करो न के बलन्द लोगों से।

४०. आख़ेरत (परलोक) का महसूल अमले सालेह (अच्छा कार्य) हैं और दुनिया का महसूल माल व औलाद।

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हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.)

इस्मे मुबारक ----------------------- हसन बिन अली (अ.स.)

लक़ब ------------------------------ असकरी

कुन्नियत -------------------------- अबु मोहम्मद

वालिदे बुज़ुर्गवार ------------------- हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.)

वालदा ए माजिदा ------------------ सलील

विलादत --------------------------- 10 रबी उस सानी 232 हिजरी 846 ई0

शहादत ---------------------------- 8 रबी उल अव्वल 260 हिजरी 874 ई0

मदफ़न ---------------------------- सामरा, इराक़

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-

१. मुसलमान वह शख़्स है जिसकी ज़बान और जिसके हाथों से मुसलमान महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहें।

२. हर रंज व ग़म और ख़ुशी व मसर्रत की इन्तेहा (हद) है सिवाय जहन्नमियों के रंज व ग़म की जिसकी कोई इन्तेहा (हद) नहीं।

३. जब किसी काम का इरादा करो उसके नताएज (नतीजे का बहु वचन) को सोच लो अगर अच्छा है तो इक़दाम (क़दम बढ़ाओ) करो वरना इज्तेनाब (बचो) करो।

४. मुसलमान वह है जिससे लोगों की जान व माल महफ़ूज़ रहे।

५. सबसे होशियार वह शख़्स है जो अल्लाह से ज़्यादा डरे और उसकी इताअत (आदेशानुपालन) ज़्यादा करे।

६. जो दूसरों की ख़ताओं (त्रुटियों) से दरगुज़र करता है अल्लाह उसके गुनाहों से दरगुज़र करेगा।

७. जो शख़्स ईमान के मज़े को चखना चाहता है वह लोगों से सिर्फ़ अल्लाह के लिये मोहब्बत (प्रेम) करे।

८. किसी मुसलमान के लिये यह रवा नहीं के वह अपने बरादरे इमानी से 3 दिन से ज़्यादा (ग़ुस्से की वजह से) मेल मिलाप न रखे।

९. सबसे अहम ज़ख़ीरा मुसीबत से दिनों में सब्र (सहनशीलता) है जो शख़्स सब्र को अपना शआर बना ले फिर उसे हादसे (घटनाओं) का ख़ौफ़ (भय) नहीं।

१०. सब्र (सहनशीलता) और नेकी, बुर्दबारी और ख़ुश अख़लाकी (सुशीलता) पैग़म्बरों (ईश्वरीय दूत, अवतार) की सीरत है।

११. इन्सान की यह कितनी बड़ी कमज़ोरी है के दूसरो के ऐब को शुमार करता है और वही चीज़ अपने बारे में भूल जाता है।

१२. किसी कमज़ोर पर ज़ुल्म (अन्याय) करना ज़ुल्म की सबसे बड़ी क़िस्म है।

१३. ख़ुदग़र्ज़ी और ख़ुदपसन्दी नादानी की अलामत है।

१४. अपने माल से अपनी आबरू की हिफ़ाज़त करो यह एक अच्छा काम है।

१५. अक़्लमन्द वह शख़्स है जो आख़ेरत और उक़बा (यमलोक) की फ़लाह (अच्छाई) के लिये कोशां (प्रयत्नशील) रहे।

१६. परहेज़गार (बुराई से बचने वाले) बनों क्योंकि तक़वा (आन्तरिक संयम , ईशवर से भय) बेहतरीन ख़ज़ाना है और ज़बरदस्त मुहाफ़िज़ है।

१७. क्या कहना उस शख़्स का जो अपने नफ़्स (आत्मा) की इस्लाह (शुध्दि, त्रुटियों का सुधार) करे और जायज़ जराय (उचित तरीक़े से) से रोज़ी हासिल करे।

१८. झूठों की दोस्ती से बचो क्योंकि उनकी दोस्ती (मित्रता) ऐसा सराब (धोका) है जो दूर की चीज़ को नज़दीक और नज़दीक की चीज़ को दूर दिखाती है।

१९. अपने माल और अपनी रविश (तरीके) में हमआहंगी (मेल मिलाप) रखो यह बुज़ुर्गवारी (बड़ापन) की अलामत है.

२०. (इसका ख़्याल रखो के) तुम्हारें हमनशीं (साथ उठने बैठने वाला) नेक लोग हों और तुम्हारे दोस्त परहेज़गार (बुराई से बचने वाला) हो।

२१. ख़ुदपसन्द शख़्स अपने मलामत करने वालों में इज़ाफ़ा करता रहता है।

२२. पड़ोसियों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) का बर्ताव (व्यवहार) करो।

२३. हर चीज़ का एक मअदन (खान) होता है तक़वे (आन्तरिक संयम) का मअदन (खान) ख़ुदाशुनास (न्यायवान) लोगों का दिल है।

२४. तमाम बुराईयों की कुंजी गुस्सा (क्रोध) है।

२५. इबादतगुज़ार (तपस्या करने वाला) वह शख़्स है जो वाजेबात (जिसके न करने में पाप हो) को पूरा करे।

२६. अहमक़ (बेवकूफ़) का दिल उसकी ज़बान पर है अक़्लमन्द (बुध्दिमान) की ज़बान उसके दिल में है।

२७. जो शख़्स हक़ से किनारा कशी (दूरी) करता है ज़लील हो जाता है।

२८. हसद और कीना (मन में शत्रुता) इन्सान की मसर्रतों (ख़ुशियों) को ख़त्म करने में सबसे ज़्यादा मोस्सर (प्रभावपूर्ण) है।

२९. तमाम बुराईयों की किलीद (कुंजी) झूठ है झूठ के ज़रिये इन्सान फ़क़्र (ग़रीबी) में मुबतला होता है।

३०. अक़्लमन्द वह है जो इलाही अहकामात (ईशवरीय आदेश) के आगे सर झुकाये, ऐहतियात और दूरअन्देशी को अपनाये।

३१. होशियार वह है जिसका आज कल से बेहतर हो और बुराईयों के दरवाज़े अपने ऊपर बन्द कर ले।

३२. ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक शराफ़त व बुज़ुर्गी आमाल के ज़रिये है ज़बानी नहीं।

३३. बदतरीन शख़्स वह है जिससे किसी ख़ैर की उम्मीद (आशा) नहीं और उसके शर (बुराई) से अमान (रक्षा) नहीं।

३४. सख़ावत (ईशवरीय मार्ग में धन वितरित करना) बुज़ुर्गी (बड़ापन) की अलामत (चिन्ह) है और पाकदामनी (नेकचलनी, सदाचार) तमाम ख़ूबियों (अच्छाईयों) का सरचश्मा (स्त्रोत) है।

३५. बेकार व बेतुकी बातों से इज्तेनाब (बचने) करो क्योंकि बात चीत उसी क़द्र काफ़ी है जिससे मफ़हूम (मतलब) अदा हो जाये।

३६. नेक काम बुरी मौत से बचाते है और हर नेक काम सदक़ा (दान) है।

३७. ख़ुदावन्दे आलम ने बदज़बानों पर जन्नत हराम कर दी है और बदख़ुल्क़ी (दुर्व्यवहार) बदबख़्ती की अलामत है।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

३८. किसी नादान से अगर नेक काम हो तो उसे क़ुबूल (स्वीकार) कर लो अगर किसी दानिशमन्द (बुध्दिमान) की लग़्ज़िश (त्रुटि) ज़बान पर देखो तो माफ़ कर दो।

३९. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स को पसन्द नहीं करता जो अपने दुनयावी मामेलात में बड़ाई करे और आख़ेरत (परलोक) के मसाएल में जाहिल हो।

४०. अगर कोई बाइज़्ज़त ज़लील और कोई सरवतमन्द (धनी) ग़रीब हो जाये तो उस पर रहम करो।

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हज़रत इमाम साहेबुज़्ज़मान अज्जलल्लाहो फ़राजह

इस्मे मुबारक ------------------------ मोहम्मद (अ.स.)

लक़ब ------------------------------- महदी (अ0 ज0)

कुन्नियत --------------------------- अबुल क़ासिम

वालिदे बुज़ुर्गवार -------------------- हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.)

वालदा ए माजिदा ------------------ नरजिस ख़ातून

विलादत --------------------------- 15 शाबान 256 हिजरी 870 ई0

ब हुक्मे ख़ुदा ज़िन्दा है और ब हुक्मे ख़ुदा ज़ुहूर फ़रमायेंगे।

हज़रत हुज्जत (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-

१. मेरा वुजूद (अस्तित्व) ग़ैबत में भी लोगों के लिए ऐसा ही मुफ़ीद (लाभकारी) है जैसे आफ़ताब (सूर्य) बादलों के ओट (पीछे) से।

२. मैं ही महदी हूँ मैं ही क़ायमे ज़माना हूँ।

३. मैं ज़मीन को अद्ल (न्याय) व इन्साफ़ से इस तरह भर दूँगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौरर से भर गई है।

४. जो चीज़ तुम्हारे लिये मुफ़िद (लाभकारी) न हो उसके लिये सवाल (प्रशन) मत करो।

५. ज़ुहूर (प्रकटता) में ताजील (शिघ्रता) के लिये दुआ (प्रथना) माँगों क्योंकि उसी में तुम्हारी भलाई है।

६. जो लोग हमारे अमवाल (अमल का बहु वचन) को मुशतबा और मख़लूत (मिलाये हुए) किये हुए हैं जो कोई भी उसमें से ज़र्रा बराबर बिला इस्तहक़ाक (बग़ैर हक़ के) खोयेगा गोया उसने आग से अपना शिकम पुर किया ( पेट भर लिया) ।

७. मैं अहले ज़मीन (धरती पर रहने वालों) के लिये उसी तरह बायसे अमान (शान्ति का कारण) हूँ जिस तरह सितारे अहले आसमान (आसमान पर रहने वालों) के लिये।

८. हमारा इल्म तुम्हारे सारे हालात पर मोहीत (घेरे हुए) है और तुम्हारी कोई चीज़ हम से पोशीदा (छीपी) हुई नहीं।

९. हम तुम्हारी ख़बरगीरी (देखरेख) से ग़ाफ़िल (बेपरवाह) नहीं और न तुम्हारी याद को अपने दिल से निकाल सकते हैं।

१०. हर वह काम करो जो तुम्हें हम से नज़दीक (क़रीब) करे और हर उस अमल से परहेज़ करो (बचो) जो हमारे लिये बारे ख़ातिर और नाराज़गी का सबब हो।

११. तुममे से जो कोई तक़वा ए इलाही (ईशवर का भय) इख़्तेयार (अपनायेगा) करेगा और मुस्तहक़ (हक़दार) तक उसके हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) पहुँचायेगा वह आने वाले फ़ित्नों (झगड़ों) से महफ़ूज़ रहेगा (बचा रहेगा) ।

१२. अगर हमारे चाहने वाले अपने अहद व पैमान की वफ़ा करते तो हमारी मुलाक़ात में ताख़ीर (देर) न होती और हमारी ज़ियारत उन्हें जल्द नसीब होती.

१३. हमें तुमसे कोई चीज़ दूर नहीं करती मगर वह जो हमें नागवार और नापसन्द है।

१४. हम तुम्हारे अमवाल (माल का बहु वचन, यह ख़ुम्स की ओर इशारा है) को सिर्फ़ इसलिए क़ुबूल (स्वीकार) करते हैं के तुम पाक हो जाओ हमें जिसका जो चाहे अदा करे जो चाहे अदा न करे क्योंकि जो कुछ ख़ुदावन्दे आलम ने हमें अता फ़रमाया (दिया) है वह उससे बेहतर है जो तुम्हें दिया है।

१५. नमाज़ शैतान को रूसवा (निंदित) कर देती है। नमाज़ पढ़ो और शैतान को रूसवा करो।

१६. जो मेरा इन्कार करे वह मुझसे नहीं और उसका अन्जाम पिसरे नूह (नूह जो नबी थे उनका पुत्र) का अन्जाम है।

१७. मसाएल में हमारे रावियों की तरफ़ रूजु करो क्योंकि वह मेरी तरफ़ से तुम पर हुज्जत (तर्क, दलील) हैं।

१८. ताज्जुब है उन लोगों की नमाज़ कैसे क़ुबूल होती है जो इन्ना अन्ज़ल्ना की तिलावत नहीं करते (नहीं पढ़ते)।

१९. नमाज़ के लिये जिन सूरतों के फ़ज़ाएल बयान किये गये हैं वह अपनी जगह पर अलबत्ता अगर कोई शख़्स सूरा ए इन्ना अन्ज़लना और सुरा ए क़ुल हो वल्लाह की तिलावत करे तो उसे इन सूरतों का सवाब भी मिलेगा और जिन सूरतों के बदले पढ़ेगा उसका भी।

२०. मलऊन है मलऊन है वह शख़्स जो नमाज़े मग़रिब में इतनी ताख़ीर (देर) करे के तारे ख़ूब खिल जायें।

२१. हमारे अलावा जिसने अपनी हक़्क़ानियत (सच्चाई) का दावा किया वह झूठा है।

२२. क्या लोग यह बात नहीं जानते के नबी (अ.स.) के बाद उनकी हिदायत (मार्ग दर्शन) के लिये आइम्मा (अ.स.) का इन्तेज़ाम (प्रबन्ध) किया गया है।

२३. यह लोग कैसे फ़ित्ने (झगड़े) में घिर गये हैं क्या उन्होंने अपने दीन को छोड़ दिया है।

२४. यह लोग हक़ से क्यों अनाद (दुश्मनी) रखते हैं क्या हक़ को पहचानने के बाद उसे भुला दिया है।

२५. क्या तुम नहीं जानते के ज़मीन कभी हुज्जते ख़ुदा (ईशवरीय तर्क, दलील) से ख़ाली नहीं रहती।

२६. तमाम (सभी) लोग यह बात समझ लें के हक़ हमारे साथ है और हम में है।

२७. मैं रूए ज़मीन पर बक़िय्यतुल्लाह (ईशवरीय चिन्ह) हूँ और दुश्मनाने ख़ुदा (ईशवर के शत्रु) से इन्तेक़ाम (बदला) लूँगा।

२८. जो लोग मेरे ज़ुहूर (प्रकटता) के लिये वक़्त (समय) मोअय्यन (निर्धारित) करते हैं वह झूठे हैं.

२९. छींक का आना मौत से कम से कम 3 दिन की ज़मानत है।

३०. मैं ख़ातिमुल औलिया हूँ और मेरे ज़रिये ख़ुदावन्दे आलम मेरे चाहने वालों को बलाओं से निजात (मुक्ति) देगा।

३१. ख़ुदावन्दे आलम ने यह दुनिया बेकार नहीं पैदा की है।

३२. ख़ुदावन्दे आलम ने जिन्हें हिदायत (निर्देश) का ज़रिया बनाया है उनको फ़ज़ीलत भी दी है।

३३. ख़ालिके कायनात (संसार को पैदा करने वाला) ने अपने औलिया (वली का बहु वचन) के ज़रिये दीन को ज़िन्दा किया।

३४. आइम्मा (अ.स.) को हर गुनाह (प्रत्येक पाप) से पाक और हर बुराई से दूर रखा है।

३५. औलिया इल्म के ख़ज़ाने और हिकमत (दानाई) का मअदन (खान) हैं।

३६. जो इमामत के झूठे दावेदार होंगे उनका नक़्स (कीना) बहुत जल्द मालूम हो जायेगा।

३७. जब हुक्मे ख़ुदा होगा हक़ ज़ाहिर होगा और बातिल मिट जायेगा।

३८. (दादी) फ़ातिमा ज़हरा (स0) की ज़िन्दगी हमारे लिये नमूना है।

३९. ख़ुदा हम सब का वली (सहायक) है।

४०. जिसने हमारे नुमायन्दे को रद किया उसने गोया मुझे रद्द किया।

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अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मादिन वा आले मोहम्मद वा अज्जिल फ़राजाहुम

[[अलहम्दो लिल्लाह किताबे अनवार पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.स.) फाउनडेशन को को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (alhassanain.org/hindi) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी]]

21-5-2015

फेहरिस्त

Contents

अनवार1

मुक़द्दमा 2

क़ुराने करीम 3

हदीस 4

अनवारे क़ुरआन 5

क़ुराने करीम 5

अनवारे हदीस 10

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.)10

हज़रत रिसालतमॉब ने इरशाद फ़रमायाः- 11

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलवातुल्लाह अलैयहा 15

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा ने इरशाद फ़रमायाः- 16

हज़रत अली इब्ने अबीतालिब (अ.स.)20

हज़रत अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने इरशाद फ़रमायाः- 21

हज़रत इमाम हसन ए मुजतबा (अ.स.)26

हज़रत इमामे हसन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 27

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) सय्यदुश्शोहदा 32

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 33

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)37

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 38

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.)42

हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 43

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.)48

हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 49

हज़रत इमाम मुसा काज़िम (अ.स.)52

हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 54

हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.)59

हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 60

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.)64

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 65

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.)70

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 71

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.)76

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 77

हज़रत इमाम साहेबुज़्ज़मान अज्जलल्लाहो फ़राजह81

हज़रत हुज्जत (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः- 82

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