नाम व अलक़ाब (उपाधियां)
आपका नाम मुहम्मद व आपके अलक़ाब मुस्तफ़ा , अमीन , सादिक़ ,इत्यादि हैं।
माता पिता
हज़रत पैगम्बर के पिता का नाम अब्दुल्लाह था जो ;हज़रत अबदुल मुत्तलिब के पुत्र थे। तथा पैगम्बर (स) की माता का नाम आमिना था , जो हज़रत वहाब की पुत्री थीं।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत पैगम्बर का जन्म मक्का नामक शहर मे सन्( 1) आमुल फील मे रबी उल अव्वल मास की 17वी तारीख को हुआ था।
पालन पोषण
हज़रत पैगम्बर के पिता का स्वर्गवास पैगम्बर के जन्म से पूर्व ही हो गया था। और जब आप 6 वर्ष के हुए तो आपकी माता का भी स्वर्गवास हो गया। अतः 8 वर्ष की आयु तक आप का पलन पोषण आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने किया।दादा के स्वर्गवास के बाद आप अपने प्रियः चचा हज़रत अबुतालिब के साथ रहने लगे। हज़रत आबुतालिब के घर मे आप का व्यवहार सबकी दृष्टि का केन्द्र रहा। आपने शीघ्र ही सबके हृदयों मे अपना स्थान बना लिया।
हज़रत पैगम्बर बचपन से ही दूसरे बच्चों से भिन्न थे। उनकी आयु के अन्य बच्चे गदें रहते , उनकी आँखों मे गन्दगी भरी रहती तथा बाल उलझे रहते थे। परन्तु पैगम्बर बचपन मे ही व्यस्कों की भाँति अपने को स्वच्छ रखते थे। वह खाने पीने मे भी दूसरे बच्चों की हिर्स नही करते थे। वह किसी से कोई वस्तु छीन कर नही खाते थे। तथा सदैव कम खाते थे कभी कभी ऐसा होता कि सोकर उठने के बाद आबे ज़मज़म(मक्के मे एक पवित्र कुआ) पर जाते तथा कुछ घूंट पानी पीलेते व जब उनसे नाश्ते के लिए कहा जाता तो कहते कि मुझे भूख नही है । उन्होने कभी भी यह नही कहा कि मैं भूखा हूं। वह सभी अवस्थाओं मे अपनी आयु से अधिक गंभीरता का परिचय देते थे। उनके चचा हज़रत अबुतालिब सदैव उनको अपनी शय्या के पास सुलाते थे। वह कहते हैं कि मैने कभी भी पैगम्बर को झूट बोलते , अनुचित कार्य करते व व्यर्थ हंसते हुए नही देखा। वह बच्चों के खेलों की ओर भी आकर्षित नही थे। सदैव तंन्हा रहना पसंद करते तथा मेहमान से बहुत प्रसन्न होते थे।
विवाह
जब आपकी आयु 25 वर्ष की हुई तो अरब की एक धनी व्यापारी महिला जिनका नाम खदीजा था उन्होने पैगम्बर के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा। पैगम्बर ने इसको स्वीकार किया तथा कहा कि इस सम्बन्ध मे मेरे चचा से बात की जाये। जब हज़रत अबुतालिब के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा गया तो उन्होने अपनी स्वीकृति दे दी। तथा इस प्रकार पैगम्बर(स) का विवाह हज़रत खदीजा पुत्री हज़रत ख़ोलद के साथ हुआ। निकाह स्वयं हज़रत अबुतालिब ने पढ़ा। हज़रत खदीजा वह महान महिला हैं जिन्होने अपनी समस्त सम्पत्ति इस्लाम प्रचार हेतू पैगम्बर को सौंप दी थी।
पैगम्बरी की घोषणा
हज़रत मुहम्मद (स) जब चालीस वर्ष के हुए तो उन्होने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की। तथा जब कुरऑन की यह आयत नाज़िल हुई कि ,,वनज़िर अशीरतःकल अक़राबीन(अर्थात ऐ पैगम्बर अपने निकटतम परिजनो को डराओ) तो पैगम्बर ने एक रात्री भोज का प्रबन्ध किया। तथा अपने निकटतम परिजनो को भोज पर बुलाया.। भोजन के बाद कहा कि मै तुम्हारी ओर पैगम्बर बनाकर भेजा गया हूँ ताकि तुम लोगो को बुराईयो से निकाल कर अच्छाइयों की ओर अग्रसरित करू। इस अवसर पर पैगम्बर (स) ने अपने परिजनो से मूर्ति पूजा को त्यागने तथा एकीश्वरवादी बनने की अपील की। और इस महान् कार्य मे साहयता का निवेदन भी किया परन्तु हज़रत अली (अ) के अलावा किसी ने भी साहयता का वचन नही दिया। इसी समय से मक्के के सरदार आपके विरोधी हो गये तथा आपको यातनाऐं देने लगे।
आर्थिक प्रतिबन्ध
मक्के के मूर्ति पूजकों का विरोध बढ़ता गया । परन्तु पैगम्बर अपने मार्ग से नही हटे तथा मूर्ति पूजा का खंण्डन करते रहे। मूर्ति पूजको ने पैगम्बर तथा आपके सहयोगियो पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये। इस समय आप का साथ केवल आप के चचा अबुतालिब ने दिया। वह आपको लेकर एक पहाड़ी पर चले गये । तथा कई वर्षो तक वहीं पर रहकर पैगम्बर की सुरक्षा करते रहे। पैगम्बर को सदैव अपने पास रखते थे। रात्रि मे बार बार आपके स्थान को बदलते रहते थे।
हिजरत
आर्थिक प्रतिबन्धो से छुटने के बाद पैगम्बर ने फिर से इस्लाम प्रचार आरम्भ कर दिया। इस बार मूर्ति पूजकों का विरोध अधिक बढ़ गया ।तथा वह पैगम्बर की हत्या का षड़यंत्र रचने लगे। इसी बीच पैगम्बर के दो बड़े सहयोगियों हज़रत अबुतालिब तथा हज़रत खदीजा का स्वर्गवास हो गया। यह पैगम्बर के लिए अत्यन्त दुखः दे हुआ। जब पैगम्बर मक्के मे अकेले रह गये तो अल्लाह की ओर से संदेश मिला कि मक्का छोड़ कर मदीने चले जाओ। पैगम्बर ने इस आदेश का पालन किया और रात्रि के समय मक्के से मदीने की ओर प्रस्थान किया। मक्के से मदीने की यह यात्रा हिजरत कहलाती है। तथा इसी यात्रा से हिजरी सन् आरम्भ हुआ। पैगम्बरी की घोषणा के बाद पैगम्बर 13 वर्षों तक मक्के मे रहे।
मदीने मे पैगम्बर को नये सहयोगी प्राप्त हुए तथा उनकी साहयता से पैगम्बर ने इस्लाम प्रचार को अधिक तीव्र कर दिया। दूसरी ओर मक्के के मूर्ति पूजको की चिंता बढ़ती गयी तथा वह पैगम्बर से मूर्तियो के अपमान का बदला लेने के लिये युद्ध की तैयारियां करने लगे। इस प्रकार पैगम्बर को मक्का वासियों से कई युद्ध करने पड़े जिनमे मूर्ति पूजकों को पराजय का सामना करना पड़ा। अन्त मे पैगम्बर ने मक्के जाकर हज करना चाहा परन्तु मक्कावासी इस से सहमत नही हुए। तथा पैगमबर ने शक्ति के होते हुए भी युद्ध नही किया तथा सन्धि कर के मानव मित्रता का परिचय दिया। तथा सन्धि की शर्तानुसार हज को अगले वर्ष तक के लिए स्थगित कर दिया। सन् 10 हिजरी मे पैगम्बर ने 125000 मुस्लमानो के साथ हज किया। तथा मुस्लमानो को हज करने का प्रशिक्षण दिया।
उत्तराधिकारी की घोषणा
जब पैगम्बर हज करके मक्के से मदीने की ओर लौट रहे थे , तो ग़दीर नामक स्थान पर आपको अल्लाह की ओर से आदेश प्राप्त हुआ , कि हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करो। पैगम्बर ने पूरे क़ाफिले को रुकने का आदेश दिया। तथा एक व्यापक भाषण देते हुए कहा कि मैं जल्दी ही तुम लोगों के मध्य से जाने वाला हूँ। अतः मैं अल्लाह के आदेश से हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता हूँ। पैगम्बर का प्रसिद्ध कथन कि जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उस के अली मौला हैं। इसी अवसर पर कहा गया था।
हज़रत पैगम्बर(स. की चारित्रिक विशेषताऐं
हज़रत पैगम्बर को अल्लाह ने समस्त मानवता के लिए आदर्श बना कर भेजा था। इस सम्बन्ध मे कुरआन इस प्रकार वर्णन करता-लक़द काना लकुम फ़ी रसूलिल्लाहि उसवःतुन हसनः अर्थात पैगम्बर का चरित्र आप लोगो के लिए आदर्श है। अतः आप के व्यक्तित्व मे मानवता के सभी गुण विद्यमान थे। आप के जीवन की मुख्य विशेषताऐं निम्ण लिखित हैं।
सत्यता
सत्यता पैगम्बर के जीवन की विशेष शोभा थी। पैगम्बर (स) ने अपने पूरे जीवन मे कभी भी झूट नही बोला। पैगम्बरी की घोषणा से पूर्व ही पूरा मक्का आप की सत्यता से प्रभावित था। आप ने कभी व्यापार मे भी झूट नही बोला। वह लोग जो आप को पैगम्बर नही मानते थे वह भी आपकी सत्यता के गुण गाते थे। इसी कारण लोग आपको सादिक़(अर्थात सच्चा) कहकर पुकारते थे।
अमानतदारी(धरोहरिता)
पैगम्बर के जीवन मे अमानतदारी इस प्रकार विद्यमान थी कि समस्त मक्कावासी अपनी अमानते आप के पास रखाते थे। उन्होने कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नही किया। जब भी कोई अपनी अमानत मांगता आप तुरंत वापिस कर देते थे। जो व्यक्ति आपके विरोधि थे वह भी अपनी अमानते आपके पास रखाते थे। क्योंकि आप के पास एक बड़ी मात्रा मे अमानते रखी रहती थीं , इस कारण मक्के मे आप का एक नाम अमीन पड़ गया था। अमीन (धरोहर)
सदाचारिता
पैगम्बर के सदाचार की अल्लाह ने इस प्रकार प्रसंशा की है इन्नका लअला ख़ुलक़िन अज़ीम अर्थात पैगम्बर आप अति श्रेष्ठ सदाचारी हैं। एक दूसरे स्थान पर पैगम्बर की सदाचारिता को इस रूप मे प्रकट किया कि व लव कानत फ़ज़्ज़न ग़लीज़ल क़लबे ला नग़ज़्ज़ु मिन हवालीका अर्थात ऐ पैगम्बर अगर आप क्रोधी स्वभव वाले खिन्न व्यक्ति होते , तो मनुष्य आपके पास से भागते। इस प्रकार इस्लाम के विकास मे एक मूलभूत तत्व हज़रत पैगम्बर का सद्व्यवहार रहा है।
समय का सदुपयोग
हज़रत पैगम्बर की पूरी आयु मे कहीं भी यह दृष्टिगोचर नही होता कि उन्होने अपने समय को व्यर्थ मे व्यतीत किया हो । वह समय का बहुत अधिक ध्यान रखते थे। तथा सदैव अल्लाह से दुआ करते थे , कि ऐ अल्लाह बेकारी , आलस्य व निकृष्टता से बचने के लिए मैं तेरी शरण चाहता हूँ। वह सदैव मसलमानो को कार्य करने के लिए प्रेरित करते थे।
अत्याचार विरोधी
हज़रत पैगम्बर अत्याचार के घोर विरोधि थे। उनका मानना था कि अत्याचार के विरूद्ध लड़ना संसार के समस्त प्राणियों का कर्तव्य है। मनुष्य को अत्याचार के सम्मुख केवल तमाशाई बनकर नही खड़ा होना चाहिए। वह कहते थे कि अपने भाई की सहायता करो चाहे वह अत्याचारी ही कयों न हो। उनके साथियों ने प्रश्न किया कि अत्याचारी की सहायता किस प्रकार करें ? आपने उत्तर दिया कि उसकी साहयता इस प्रकार करो कि उसको अत्याचार करने से रोक दो।
बुराई के बदले भलाई की भावना
आदरनीय पैगम्बर की एक विशेषता बुराई का बदला भलाई से देना थी। जो उन को यातनाऐं देते थे , वह उन के साथ उनके जैसा व्यवहार नही करते थे। उनकी बुराई के बदले मे इस प्रकार प्रेम पूर्वक व्यवहार करते थे , कि वह लज्जित हो जाते थे।
यहाँ पर उदाहरण स्वरूप केवल एक घटना का उल्लेख करते हैं। एक यहूदी जो पैगम्बर का विरोधी था। वह प्रतिदिन अपने घर की छत पर बैठ जाता , व जब पैगम्बर उस गली से जाते तो उन के सर पर राख डाल देता। परन्तु पैगम्बर इससे क्रोधित नही होते थे। तथा एक स्थान पर खड़े होकर अपने सर व कपड़ों को साफ कर के आगे बढ़ जाते थे। अगले दिन यह जानते हुए भी कि आज फिर ऐसा ही होगा। वह अपना मार्ग नही बदलते थे। एक दिन जब वह उस गली से जा रहे थे , तो इनके ऊपर राख नही फेंकी गयी। पैगम्बर रुक गये तथा प्रश्न किया कि आज वह राख डालने वाला कहाँ हैं ? लोगों ने बताया कि आज वह बीमार है। पैगम्बर ने कहा कि मैं उस को देखने जाऊगां। जब पैगम्बर उस यहूदी के सम्मुख गये , तथा उस से प्रेम पूर्वक बातें की तो उस व्यक्ति को ऐसा लगा , कि जैसे यह कई वर्षों से मेरे मित्र हैं। आप के इस व्यवहार से प्रभावित होकर उसने ऐसा अनुभव किया , कि उस की आत्मा से कायर्ता दूर हो गयी तथा उस का हृदय पवित्र हो गया। उनके साधारन जीवन तथा नम्र स्वभव ने उनके व्यक्तितव मे कमी नही आने दी , उनके लिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय मे स्थान था।
दया की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर मे दया की प्रबल भावना विद्यमान थी। वह अपने से छोटों के साथ प्रेमपूर्वक तथा अपने से बड़ो के साथ आदर पूर्वक व्यवहार करते थे ।वह अनाथों व भिखारियों का विशेष ध्यान रखते थे उनको को प्रसन्नता प्रदान करते व अपने यहाँ शरण देते थे। वह पशुओं पर भी दया करते थे तथा उन को यातना देने से मना करते थे।
जब वह किसी सेना को युद्ध के लिए भेजते तो रात्री मे आक्रमण करने से मना करते , तथा जनता से प्रेमपूर्वक व्यवहार करने का निर्देश देते थे । वह शत्रु के साथ सन्धि करने को अधिक महत्व देते थे। तथा इस बात को पसंद नही करते थे कि लोगों की हत्याऐं की जाये। वह सेना को निर्देश देते थे कि बूढ़े व्यक्तियों , बच्चों तथा स्त्रीयों की हत्या न की जाये तथा मृत्कों के शरीर को खराब न किया जाये
स्वच्छता
पैगम्बर स्वच्छता मे अत्याधिक रूचि रखते थे। उन के शरीर व वस्त्रों की स्वच्छता देखने योग्य होती थी। वह वज़ू के अतिरिक्त दिन मे कई बार अपना हाथ मुँह धोते थे।वह अधिकाँश दिनो मे स्नान करते थे। उनके कथनानुसार वज़ु व स्नान इबादत है। वह अपने सर के बालों को बेरी के पत्तों से धोते और उनमे कंघा करते और अपने शरीर को मुश्क व अंबर नामक पदार्थों से सुगन्धित करते थे। वह दिन मे कई बार तथा सोने से पहले व सोने के बाद अपने दाँतों को साफ़ करते थे। भोजन से पहले व बाद मे अपने मुँह व हाथों को धोते थे तथा दुर्गन्ध देने वाली सब्ज़ियों को नही खाते थे।
हाथी दाँत का बना कंघा सुरमेदानी कैंची आईना व मिस्वाक उनके यात्रा के सामान मे सम्मिलित रहते थे। उनका घर बिना साज सज्जा के स्वच्छ रहता था। उन्होने चेताया कि कूड़े कचरे को दिन मे उठा कर बाहर फेंक देना चाहिए। वह रात आने तक घर मे नही पड़ा रहना चाहिए। उनके शरीर की पवित्रता उनकी आत्मा की पवित्रता से सम्बन्धित रहती थी। वह अपने अनुयाईयों को भी चेताते रहते थे कि अपने शरीरो वस्त्रों व घरों को स्वच्छ रखा करो। तथा जुमे (शुक्रवार) को विशेष रूप से स्नान किया करो। दुर्गन्ध को दूर करने हेतू शरीर व वस्त्रो को सुगन्धित करके जुमे की नमाज़ मे सम्मिलित हुआ करो ।
दृढनिश्चयता
पैगम्बर मे दृढनिश्चयता चरम सीमा तक पाई जाती थी।वह निराशावादी न होकर आशावादी थे। वह पराजय से भी निराश नही होते थे। यही कारण है कि ओहद नामक युद्ध की पराजय ने उनको थोड़ा भी प्रभावित नही किया। तथा बनी क़ुरैज़ा(अरब के एक कबीले का नाम) द्वारा अनुबन्ध तोड़कर विपक्ष मे सम्मिलित हो जाने से भी उन पर कोई प्रभाव नही पड़ा।बल्कि वह शीघ्रता पूर्वक हमराउल असद नामक युद्ध के लिए तैयार होकर मैदान मे आगये।
सावधानी व सतर्कता
पैगम्बर(स.) सदैव सावधानी व सतर्कता बरतते थे। वह शत्रु की सेना का अंकन इस प्रकार करते कि उससे युद्ध करने के लिए कितने व किस प्रकार के हथियारों की आवश्यक्ता है। वह नमाज़ के समय मे भी सतर्क व सवधान रहते थे।
मानवता के प्रति प्रेम
पैगम्बर(स.) के हृदय मे समस्त मानवजाति के प्रति प्रेम था। वह रंग या नस्ल के कारण किसी से भेद भाव नही करते थे । उनकी दृष्टि मे सभी मनुष्य समान थे। वह कहते थे कि सभी मनुष्य अल्लाह से जीविका प्राप्त करते हैं। उन्होने जो युद्धों किये उनके पीछे भी महान लक्ष्य विद्यमान थे।वह सदैवे मानवता के कल्याण के लिए ही युद्ध करते थे। पैगम्बर सदैव अपने अनुयाईयों को मानव प्रेम का उपदेश देते थे। पैगम्बर ने मनुष्यों को निम्ण लिखित संदेश दिया
1- मानवता की सफलता का संदेश
2- युद्ध से पूर्व शान्ति वार्ता का संदेश
3- बदले से पहले क्षमा का संदेश
4- दण्ड से पूर्व विन्रमता या क्षमा का संदेश
उच्चयतम कोटी की नेतृत्व क्षमता।
आदरनीय पैगम्बर को अल्लाह ने नेतृत्व की उच्चय क्षमता प्रदान की थी। उनकी इस क्षमता को अरब जाती की स्थिति को देखकर आंका जा सकता है। उन्होने उस अरब जाती का नेतृत्व किया , जो अपनी मूर्खता व अज्ञानता के कारण किसी को भी अपने से बड़ा नही समझते थे। जो सदैव रक्त पात करते रहते थे। सदाचार उनको छूकर भी नही निकला था। ऐसे लोगों को अपने नेतृत्व मे लेना बहुत कठिन कार्य था। परन्तु इन सब अवगुणो के होते हुए भी पैगम्बर ने अपने कौशल से उनको इस प्रकार प्रशिक्षित किया कि सब आपके समर्थक बन गये। तथा अपने प्राणो की आहुती देने के लिए धर्म युद्ध के लिए निकल पड़े।
आदरनीय पैगम्बर युद्ध के लिए एक से अधिक सेना नायकों का चयन करते तथा गंभीरता पूर्वक उनके मध्य कार्यों व शक्तियों का विभाजन कर नियम बनाते थे।वह राजनीतिक तथा शासकीय सिधान्तों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते थे।उन्होने विभिन्न विभागों की नीव डाली। वह सेनापतियों का चुनाव सुचरित्र को आधार बनाकर करते थे
क्षमा दान की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर(स.) मे क्षमादान की भावना बहुत प्रबल थी।बदले की भावना उनके अन्दर बिल्कुल भी विद्यमान नही थी। उन्होने अपनी क्षमा भावना का पूर्ण परिचय मक्के की विजय के समय कराया। जब उनके शत्रुओं को बंदी बनाकर उनके सम्मुख लाया गया तो उन्होने यातनाऐं देनेवाले सभी शत्रुओं को क्षमा कर दिया। अगर पैगम्बर(स.) चाहते तो उनसे बदला ले सकते थे परन्तु उन्होने शक्ति होते हुए भी ऐसा नही किया। अपितु सबको क्षमा करके कहा कि जाओ तुम सब स्वतन्त्र हो।
उनकी शक्ति शाली आत्मा सदैव क्षमादान को वरीयता देती थी। ओहद नामक युद्ध मे जो पाश्विक व्यवहार उनके चचा श्री हमज़ा पुत्र श्री अब्दुल मुत्तलिब के साथ किया गया(अबु सुफियान की पत्नि व मुआविया की माँ हिन्दा ने उनके मृत्य शरीर से उनका कलेजा निकाल कर खाने की चेष्टा की) उस को देख कर वह बहुत दुखीः हुए। परन्तु पैगम्बर ने उसके परिवार के मृत्य लोगों के साथ ऐसा व्यवहार नही किया। यहाँ तक कि जब वह स्त्री बंदी बनाकर लाई गई , तो आपने उससे बदला न लेकर उसे क्षमा कर दिया। यही नही अपितु पैगम्बर ने अबुक़ुतादा नामक उस व्यक्ति को भी चुप रहने का आदेश दिया जो उसको अपशब्द कह रहा था।
खैबर नामक युद्ध मे जब यहूदियों ने मुसलमानो के सम्मुख हथियार डाल दिये व युद्ध समाप्त हो गया तो यहूदियों ने भोजन मे विष मिलाकर पैगम्बर के लिए भेजा । पैगम्बर को उनके इस षड़यन्त्र का ज्ञान हो गया। परन्तु उन्होने इसके उपरान्त भी यहूदियों को कोई दण्ड नही दिया तथा क्षमा करके स्वतन्त्र छोड़ दिया।
तबूक नामक युद्ध से लौटते समय मुनाफिकों के एक संगठन ने पैगम्बर की हत्या का षड़यन्त्र रचा। जब पैगम्बर एक पहाड़ी दर्रे को पार कर रहे थे तो मुनाफिक़ीन ने योजनानुसार आप के ऊँट को भड़का दिया। ताकि पैगम्बर ऊँट से गिर कर मर जाऐं , परन्तु वह विफल रहे। और पैगम्बर ने सब को पहचान लिया परन्तु उनसे बदला नही लिय । तथा अपने दोस्तों के आग्रह पर भी उन के नाम नही बताये।