हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत लेखक:
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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: जनाब फरोग़ काज़मी साहब
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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत
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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

आयशा की छलांग

रसूल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का ये दस्तूर था कि आप (स.अ.व.व) जब किसी सफ़र या मुहिम से पलट कर वापस आते तो सबसे पहले मस्जिद में जा कर दो रकअत नमाज़ अदा करते थे , फिर उसके फ़ौरन बाद अपनी ग़मगुसार बेटी हज़रत फातेमा ज़हरा सल्वातुल्लाहे अलैहा के दौलत सरा पर तशरीफ़ ले जाते उनका हाल मालूम करते , ख़ैरियत दर्याफ़्त करते और उनसे अपने सफ़र की सरगुज़श्त बयान फ़रमाते। उसके बाद नवासों से दिल बहलाते , उन्हें प्यार करते और कुछ देर वहां आराम फ़रमाते। इन तमाम बातों से फ़राग़त के बाद फिर आप (स.अ.व.व) उम्मुहातुल मोमिनीन की तरफ़ मुतवज्जे होते और एक एक के घर जाकर उनकी ख़ैरियत से आगाह होते।

हज़रत आयशा के लिए सरकारे दो आलम सल्लल्लाहे अलैहे व आले ही वसल्लम का ये तौरो तरीक़ा इन्तेहाई तकलीफ़ हद , अज़ीयत , आमेज़ और क़र्बो इज़तिराब का बाइस होता चुनान्चे आप (स.अ.व.व) अकसरो बेशतर इस नाक़ाबिले बर्दाश्त तौरो तरीक़े के बारे में पैग़म्बर (स.अ.व.व) से शिकवा शिकायत और झक झक बक बक करती रहती थीं और कभी कभी तक़रार की नौबत भी आ जाती थी।

ये भी इत्तेफ़ाक़ था कि शहज़ादिये कौनेन (स.अ) और आयशा के घर एक दूसरे से मुत्तसिल थे , दर्मियान में सिर्फ़ एक दीवार हायल थी , और उस दीवार में एक मुख़तसर सी खिड़की थी जिसका नाम ख़ोफ़ा था। आं हज़रत (स.अ.व.व) कभी कभी उसी खिड़की से आयशा के घर से हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) के घर में चले जाते थे और कभी मासूमा (स.अ) के घर से आयशा की तरफ़ आ जाते थे।

निस्फ़े शब से कुछ पहले , एक मरतबा पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) कहीं से तशरीफ़ लाए और हस्बे दस्तूर अपनी बेटी के घर गये। जनाबे फातेमा (स.अ) से गुफ़्तुगू के दौरान हुज़ूर (स.अ.व.व) की आवाज़ आयशा के कानों से टकराई बस फिर क्या था ? जवानी की उमंगे करवटें लेने लगी , बिस्तर से उठ कर बैठ गयीं....... ग़ालेबन वो शब आपकी बारी थी इस लिए कुछ देर तक हुज़ूर (स.अ.व.व) के आने का इन्तिज़ार करती रहीं फिर न जाने क्यों आप पर यक़ बारगी ऐसी जुनूनी कैफ़ियत तारी हो गयी कि आप झपट कर उठीं और दर्मियानी खिड़की खोल कर आपने मासूमा (स.अ) के घर में छलांग लगा दी और आस्तीने समेट समेट कर फातेमा ज़हरा (स.अ) और रसूले अकरम (स.अ.व.व) से लड़ने लगीं।

आयशा की इस नाशइस्ता हरकत पर सैय्यद फातेमा (स.अ) बेहद रंजीदाह व मुलूल हुई और पैग़म्बर के दिल को भी इन्तेहाई सदमा हुआ। शहज़ादी फातेमा (स.अ) की ख़्वाहिश पर दूसरे ही दिन आं हज़रत (स.अ.व.व) ने वो खिड़की बन्द करा दी( 1) ताकि आयशा की अचानक छलांग का ख़तरा आइन्दा न रहे।

1.जज़बुल क़ुलूबः- पेज न. 157, कलकत्ता

रसूल (स.अ.व.व) का पीछा करना

पैग़म्बर (स.अ.व.व) का ये उसूल मुअय्यन था कि आप अपनी अज़्वाज में हर ज़ौजा के यहां उसकी बारी की शब इस्तेराहत फ़रमाते थे , कभी कभी ऐसा भी होता था कि किसी ज़रूरत के तहत या इबादत की ग़रज़ से आपको कुछ देर के लिए बाहर भी जाना पड़ता था और किसी बीवी की ये मजाल न थी कि वो रसूल (स.अ.व.व) के इस फ़ेल पर लबकुशाई कर सके लेकिन आयशा की बारी में जब आप कहीं गये तो वो ये समझीं कि आं हज़रत (स.अ.व.व) मुझे छोड़ कर किसी दूसरी बीवी के पास चले गये हैं।

फिर आयशा ने क्या तर्ज़े अमल इख़्तियार किया इस ज़िम्न में ख़ुद मौसूफ़ा ने मुख़तलिफ़ लोगों से जो मुख़तलिफ़ बातें की हैं उन्हें हम उन की ज़बान में नक़ल कर रहे हैं फ़रमाती हैं किः-

मैंने (अपने बिस्तर पर) एक मरतबा पैग़म्बर (स.अ.व.व) को न पाया मैं समझी कि आप किसी कनीज़ के यहां तशरीफ़ ले गये हैं मैं आपकी जुस्तुजू में निकल पड़ी देखा कि आप मस्जिद में हैं और फ़रमा रहे हैं कि परवरदिगार मुझे बख़्श दे।( 1)

ये आपने हेलाल बिन यसाफ़ से फ़रमाया। फिर आपने अबू मलीका से फ़रमाया किः-

एक रात मैंने पैग़म्बर (स.अ.व.व) को अपने बिस्तर पर न पाया , मैं समझी कि वो अपनी किसी बीवी के पास चले गये हैं तलाश में निकली तो देखा कि आप हालते रूकू में हैं।( 2)

अबू हुरैरा से बयान फ़रमाया किः-

मैंने एक मरतबा पैग़म्बर (स.अ.व.व) को अपने बिस्तर पर न पाया तो इधर उधर ढूंढा मेरा हाथ आपकी तलवार पर पड़ा आप सजदे में थे और इस्तिग़फ़ार फ़रमा रहे थे।( 3)

मज़कूरा तीनों बयानात में हर बयान की नौइय्यत मुख़तलिफ़ है जिससे आयशा की सदाक़त का पता चलता है। अब आप मुअज़्ज़मा की ज़बानी पूरी हिकायत समाअत फ़रमायेः-

जब मेरी बारी की वो रात आई जिस रात पैग़म्बर (स.अ.व.व) को मेरे पास होना चाहिये था आप तशरीफ़ ले आये रिदा उतार कर रखी जूतियां पैरों के पास ही उतारी , बिस्तर पर अपनी चादर डाली और लेट गये थोड़ी देर बाद आपको यक़ीन हो गया कि मैं सो रही हूं तो चुपके से उठे दोश पर रिदा डाली , नालैन पहली आहिस्ता से दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गये और मैं ख़ामोश सब कुछ देखती रही। फिर मैं भी तेज़ी से उठी और चादर औढ़ कर पैग़म्बर (स.अ.व.व) के तअक़्क़ुब मैं पीछे पीछे चल पड़ी आं हज़रत (स.अ.व.व) बक़ीअ के क़ब्रस्तान तक गये और कुछ देर वहां खड़े रहे फिर आपने तीन मरतबा अपने हाथ को बुलन्द किया और पलट पड़े मैं भी वापस हुई पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने तेज़ क़दम उठाये ये भी तेज़ क़दमों से चलने लगीं। फिर आप दौड़ने लगे मैं भी दौड़ने लगी और इस क़दर तेज़ दौड़ी कि उन से पहले पहुंच कर अपने बिस्तर पर चुपचाप लेट गयी।

मेरे बाद जब आं हज़रत (स.अ.व.व) तशरीफ़ लाये तो उन्होंने मुझ से पूछाः- ऐ आयशा तुम्हारी सांसे क्यों फूल रहीं हैं ? मैंने कहा नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं , उस पर आपने फ़रमाया कि तुम सच सच पताओगी , कि ख़ुदा को बताना पड़ेगा।

फिर मैंने तअक़्क़ुब का सारा क़िस्सा पैग़म्बर (स.अ.व.व) से बयान कर दिया तो आपने फ़रमायाः-

अच्छा मेरे आगे जो साया था वह तुम थीं ?

मैंने कहा हां , उस पर हुज़ूर (स.अ.व.व) ने मेरी पीठ पर एक हाथ मारा और फ़रमाया किः-

क्या तुम्हे ये गुमान था कि ख़ुदा और उसका रसूल तुम्हारी हक़ तल्फ़ी करेंगे।( 4)

हज़रत आयशा के इन मुख़तलिफ़ बयानात पर ग़ौर करने से हस्बे ज़ेल उमूर का पता चलता हैः-

1. हेलाल बिन यसाफ़ , अबूमली का और अबू हुरैरा से बयान कर्दह रवायतों में रसूल का अमल तज़ाद की मन्ज़िल में हैं , आं हज़रत (स.अ.व.व) रूकू में थे , सजदे में थे या इस्तिग़फ़ार फ़रमा रहे थे ? वल्लाहो आलम , इसकी ज़िम्मेदारी आयशा पर आइद होती है।

2. आयशा को पैग़म्बर पर भरोसा और इत्मीनान नहीं था इस लिए आप आं हज़रत (स.अ.व.व) की ख़ुफ़िया निगरानी किया करती थी।

3. आयशा किसी उलझन का शिकार रहती थीं जिसकी वजह से आपको नींद नहीं आती थी।

4. आयशा इस तअक़्क़ुब में रसूल के नज़दीक एक सियाह साया थीं।

1. मसनद इमाम अहमद बिन हम्बलः- जिल्द 6 पेज न. 147

2. मसनद अहमद बिन हम्बलः- जिल्द 6, पेज न. 151

3. मसनद अहमद बिन हम्बलः- जिल्द 6, पेज न. 201

4. मसनद अहमद बिन हम्बलः- जिल्द 6 पेज न. 221

आयशा पर शैतान

ख़ुद आयशा का बयान है किः-

रसूलल्लाह (स.अ.व.व) एक रात मेरे पास से उठ कर कहीं चले गये तो मुझ पर जुनून तारी हो गया थोड़ी देर बाद आप वापस आये और मेरे जुनून को देखा तो फ़रमाया , ऐ आयशा , तुम्हे क्या हो गया है ? ये बदगुमानी , मैंने कहा , मैं आप जैसे इन्सान की तलाश क्यों न करूं ? रसूल ने फ़रमायाः-

क्या तुम पर शैतान सवार हो गया है ?(1)

हज़रत आयशा पर तसकीने नफ़्स का भूत सवार था या किसी और बात का इसकी सराहत नहीं है। लेकिन इस अम्र में कोई शको शुबहे नहीं है कि जब उन पर शैतान होता था बल्कि उनके अन्दर हुलूल कर जाता था तो मोहतर्मा से अजीबो ग़रीब हरकते सरज़द होती थीं जैसे बरतनों को तोड़ना , लिबास का फ़ाड़ना वग़ैरह।

1.मसनद अहमद बिन हम्बल जिल्द 6 पेज न. 115

तोड़ फोड़

हज़रत आयशा पर जब हसद का इब्लीस सवार होना था तो आप जुनून की हद से गुज़र कर तोड़ फोड़ पर भी उबर आती थीं। चुनांचे आपकी बारी के दिन अज़्वाजे रसूल (स.अ.व.व) में किसी ने अगर कोई अच्छी चीज़ पकाई और रसूल (स.अ.व.व) की ख़िदमत में भेजी तो आपने कभी उसके बरतन तोड़ दिये और कभी वो खाना रसूल के सामने से उठा कर फ़िकवा दिया। इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह में जनाबे उम्मे सलमा से रवायत की है किः-

उम्मे सलमा पैग़म्बर (स.अ.व.व) के पास एक प्याले में खाने की कोई चीज़ ले कर हाज़िर हुई , हज़रत आयशा की नज़र पड़ी उनके हाथ में पत्थर था उस पत्थर से उन्होंने उस प्याले को तोड़ दिया। पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने आयशा का प्याला उम्मे सलमा के हवाले कर दिया। ( 1)

तोड़ फोड़ के बारे में खुद हज़रत आयशा का बयान है किः-

मेरी बारी थी , मैंने रसूलल्लाह (स.अ.व.व) के लिए खाना पकाया और हफ़सा ने भी उनके लिए माहज़र का इन्तिज़ाम किया। मुझे जब यह मालूम हुआ कि हफ़सा ने भी खाना पकाया है तो मैं खौलने लगी कनीज़ को बुलाया और उससे कहा कि अगर हफ़सा ने रसूल (स.अ.व.व) के सामने खाना ला कर रख दिया है तो जाओ और उसे उठा कर फेंक दो। चुनान्चे कनीज़ ने ऐसा ही किया और वो खाना उठा कर फेंका तो बरतन टूट गया। उस पर पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने हफ़सा से फ़रमाया कि तुम अपने बरतन के बदले में दूसरा बरतन आयशा से वसूल कर लो।( 2)

ऐसा ही वाक़िआ उम्मुल मोमिनीन सफ़ीया के साथ भी पेश आया। आयशा बयान फ़रमाती हैं किः-

रसूलल्लाह (स.अ.व.व) मेरे यहां हमपाश थे कि सफ़ीया ने उनके लिए खाना भेजा। मैंने जब कनीज़ को खाना लाते देखा तो मुझ पर लर्ज़ा तारी हो गया। मैंने हाथ मार कर प्याला इस तरह उछाला कि वो टूट गया और सारा खाना गिर कर बरबाद हो गया। रसूलल्लाह (स.अ.व.व) ने मुझे घूर कर ग़ज़बनाक निगाहों से देखा तो मैंने ख़ुशामद की और कहा कि मैं ख़ुदा के रसूल से पनाह मांगती हूं कि आज आप मुझ पर लानत फ़रमायें। पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने गुस्से की नज़रों से मेरी तरफ़ देखा और फ़रमाया कि इस (कुसूर) का तवान अदा कर दो। मैंने पूछा इसका कफ़्फ़ारा क्या होगा ? आपने फ़रमायाः- वैसा ही खाना और वैसा ही बरतन। ( 3)

मज़कूरा तीनों ख़्याले हज़रत आयशा के तख़रीबकार मिजाज़ की अक्कासी करती हैं और उनमें तख़रीबकारी का हर पहलू साफ़ और नुमायां है इस लिए मज़ीद किसी वज़ाहत की ज़रूरत नहीं है।

1. सहीह मुस्लिम बाबुल ग़ैरत किताबुल इशरत

2. मसनद अहमद जिल्द 6, पेज न. 111, कन्ज़ुल आमाल जिल्द 3, पेज न. 44

3. मसनद अहमद जिल्द 6, पेज न. 277, सोनन निसाई जिल्द 2, पेज न. 148, हाशिया सिरते हलबीया पेज न. 183- 284

गालम गलौज

तारीख़ ये बताती है कि हज़रत आयशा वक़्ते ज़रूरत गालम गलौज पर भी उतर आती थी। तबक़ात इब्ने सअद में है किः-

हज़रत आयशा और सफ़ीया में गालम गलौज हुई इसकी वजह यह थी कि आयशा ने सफ़ीया पर अपनी बरतरी जतायी थी और इस क़दर उन्हें गालियां दी थीं कि वो बैठी रो रहीं थीं। इतने में हज़रत रसूल (स.अ.व.व) तशरीफ़ लाये और आपने सफ़ीया से रोने की वजह दरयाफ़्त की तो सफ़ीया ने कहा कि आयशा और हफ़सा मुझे गालियां देती हैं और बुरा भला कहती हैं पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने फ़रमाया कि तुमने आयशा और हफ़सा के मुक़ाबले में ये क्यों नहीं कहा कि हारून (अ.स) मेरे बाप और जनाबे मूसा (अ.स) मेरे चचा हैं( 1)

तिर्मिज़ी में हज़रत आयशा का बयान है कि मैंने रसूले ख़ुदा से कहा कि सफ़ीया ऐसी है सफ़ीया वैसी है तो पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने फ़रमाया कि तुमने ऐसी गंदी बात कही है कि अगर समन्दर के पानी में मिला दिया जाये तो सारा पानी गन्दा हो जायेगा।( 2)

गुत्थम गुत्था

हज़रत आयशा ने हज़रत सौदा को एक बार ये गुनगुनाते हुए सुनाः-

आयशा ने इसका मतलब ये समझा कि सौदा कह रही हैं कि आयशा क़बीला ए तैम और हफ़सा क़बीला ए बनी अदी से है। चुनान्चे आप आपे से बाहर हो गयीं और हफ़सा को भी उभारा कि सौदा हम दोनों को ऐसा ऐसा कह रही थीं। हफ़सा ने पूछा........ फिर क्या होना चाहिए आयशा ने कहा चलो चलें जब मैं सौदा का सर पकड़ू तो मेरी मदद करना और तमाशा देखना। वो दोनों सौदा के पास आयीं , आयशा ने उनका सर पकड़ा और हफ़सा ने मदद की। इतने में उम्मे सलमा पहुंच गई उन्होंने सौदा की मदद की। बस फिर क्या था , बाज़ाब्ता गुत्थम गुत्था शुरू हो गयी। किसी ने पैग़म्बर (स.अ.व.व) को जा कर ख़बर की कि जल्दी जाइये और अज़्वाज की ख़बर लीजिए। जब पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने ये हाल देखा तो फ़रमायाः-

वाय हो तुम पर , ये सब क्या हो रहा है ? आयशा ने कहा या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व) क्या आपने इन्हें ये कहते नहीं सुना किः-

आपने फ़रमाया , वाय हो तुम पर ! इस से मुराद तुम्हारे अदी और तैम नहीं है बल्कि इनकी मुराद तमीम के अदी और तमीम के तैम से है।( 3)

1. तबक़ात जिल्द 8 पेज न. 127, मुस्तरक हाकिम जिल्द 4, पेज न. 29.

2. तिर्मिज़ी बेनाबर रवायत ज़रकशी , इजाबा पेज न. 73, मदारेजुन्नुबवा जिल्द 2, पेज न. 616

3. इजाबाः- ज़रकशी पेज न. 18

आयशा की पिटाई

आयशा और रसूले ख़ुदा सल्लाल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम में एक मरतबा किसी बात पर लड़ाई हो रही थी , और आप इस नोक झोक से परेशान हो चुके थे कि इतने में अबू बकर वारिद हुए। हुज़ूर (स.अ.व.व) ने अबू बकर से फ़रमाया कि मैं तंग आ चुका हूं , मुझे आयशा से बचाओ।

पैग़म्बर (स.अ.व.व) की ये फ़रियाद सुन कर अबू बकर ग़ैज़ के आलम में आयशा की तरफ़ बेइख़तियार बढ़े और एक ऐसा हाथ रसीद किया कि वो लहू लोहान हो गयी। ( 1)

आप (स.अ.व.व) ने फ़रमाया कि मेरा मक़सद ये नहीं था कि तुम इन्हें इस तरह से मारो।

बुख़ारी बाबुत्तमीम और मुस्लिम बाबुल क़सम बैनज़ ज़ौजात में है कि कई मरतबा अबूबकर ने उनको अदब सिखाया है।

आयशा पर हज़रत उमर की लानत मलामत

जंगे खंन्दक के मौक़े पर आयशा के दिल में मरदान्गी का जज़्बा बेदार हुआ और उन्हें यह शौक पैदा हुआ कि मैं भी लड़ाई देखूं। चुनान्चे आप रसूल से इजाज़त हासिल किये बग़ैर घर से निकल खड़ी हुई , और मैदाने जंग के क़रीब पहुंच गयीं। रास्ते में देखा कि असहाब आलाते जंग से आरास्ता जोशो ख़रोश में रज्ज पढ़ते हुए जा रहे हैं। इतने में आपकी नज़र एक बाग़ पर पड़ी और आप उसके अन्दर चली गयीं। वहां बहुत से असहाब खड़े थे जिन में हज़रत उमर भी थे। उमर की नज़र जब आयशा पर पड़ी तो हवास बाख़्ता हो गये और डांट कर कहने लगे , तुम यहां क्यों चली आयीं ? अगर कोई बला नाज़िल हो गई तो (तुम्हे बचाने में) हम सब कट मर जायेंगे। आयशा फ़रमाती हैं कि उस वक़्त उमर ने मुझ पर इतनी लानत मलामत की कि मेरा जी चाहा कि ज़मीन फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं। ( 2)

बुख़ारी कहते हैं कि एक मरतबा और भी आं हज़रत (स.अ.व.व) से जंग में शिरकत की इजाज़त चाही थी मगर हुज़ूर (स.अ.व.व) ने ये कह कर उन्हें रोक दिया था कि औरतों का जिहाद सिर्फ़ हज है। ( 3)

ताज्जुब , बालाए ताज्जुब ये अम्र है कि जिस बेटी का बाप हमेशा मैदाने जंग से फ़रार इख़तियार रहा हो , उसमें ये हौसला कहां से पैदा हो गया कि वो मैदाने जंग के ख़ूनी धमाकों से लुत्फ़ अन्दोज़ होने की ख़्वाहिश करें और हैरत बालाए हैरत इस बात पर है कि जब रसूल (स.अ.व.व) ने जो आयशा के शौहर भी थे इससे क़ब्ल मैदाने जंग में जाने से ये कह कर मना कर दिया था कि औरतों का जिहाद हज है तो पैग़म्बर (स.अ.व.व) की इजाज़त के बग़ैर इस मौक़े पर उन्होंने घर से बाहर क़दम क्यों निकाला ? कि अम्र को रसूल (स.अ.व.व) की एक ज़ौजा पर लानत मलामत करना पड़ी। फिर ये सवाल भी पैदा होता है कि हज़रत उमर जिन्हें मैदाने जंग में होना चाहिए , चन्द असहाब को लिए बाग़ में क्या कर रहे थे ? इसका जवाब हर वो तारीख़ दे सकती है जिसमें मैदान जन्म से हज़रत उमर के फ़रार की दास्ताने मरक़ूम हैं।

1. तबक़ात इबने सअद जिल्द 8, पेज न. 56

2. मसनद अहमदः- पेज न. 99 -141

3. सहीह बुख़ारीः- बाबे हज्जुन निसा

पैग़म्बर (स.अ.व.व) की दीगर अज़्वाज से आयशा की हसद

मोवर्रेख़ीन ने तहरीर किया है कि आयशा का रवय्या मारिया क़ब्तिया , ज़ैनब बिन्ते हजश , सफ़ीया बिन्ते हई और मलीका बिन्ते क़अब वग़ैरा से बेहद हासेदाना था क्यों कि ये सब औरतें आयशा से कहीं ज़्यादा ख़ूब सूरत और हसीन थीं। जिन्होंने अपना नफ़्स पैग़म्बर (स.अ.व.व) को हेबा कर दिया था चुनान्चे आप खुद फ़रमाती हैं किः-

मैं उन औरतों से बहुत जलती थी जिन्होंने पैग़म्बर को अपना नफ़्स हेबा कर दिया था और मैं कहा करती थी कि कहीं कोई शरीफ़ औरत अपना नफ़्स किसी को हेबा करती हैं ? (1)

(इस किताब को आप “अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क ” पर पढ़ रहे है।)

इब्ने सअदे वाक़दी ने तबक़ात ( 2) में बसिलसिला ए हालाते उम्मे शरीक इस रवायत को तफ़सील से बयान किया है और लिखा है कि वो मोअज़्ज़मा जिन्होंने अपना नफ़्स पैग़म्बर (स.अ.व.व) को हेबा कर दिया था उनका नाम ग़ज़ीया था। और ये रवायत असाबा( 3) में तफ़सील से बयान हुई है। लेकिन उन मोअज़्ज़मा के नामो नसब और कुन्नियत में उलमा ने इख़्तेलाफ़ किया है। उसकी वजह ये मालूम होती है कि ऐसी कई औरतें थी जिन्होंने अपना नफ़्स पैग़म्बर (स.अ.व.व) को हेबा कर दिया था और जिन से आयशा को बेज़ारी थी आयशा ने भी अपने बयान में औरतों कह कर जमा का सीग़ा इस्तेमाल किया है नीज़ मसनद अहमद में है कि आयशा उन औरतों को ताना दिया करती थीं जिन्होंने अपना नफ़्स पैग़म्बर (स.अ.व.व) को हेबा किया था।( 4)

सहीह मुस्लिम में हिशाम से रवायत है कि ख़ूला बिन्ते हकीम भी उन औरतों में शामिल है जिन्होंने अपना नफ़्स हेबा किया था और आयशा उनके मुताल्लिफ़ फ़रमाती थीं कि इस औरत को शर्म नहीं आती कि इसने अपना नफ़्स हेबा कर दिया।( 5)

1. बुख़ारीः- जिल्द 3, पेज न. 118, मुस्लिम बाबे जवाज़े हिबाः- जिल्द 4, पेज न. 374

2. तबक़ातः- जिल्द 8, पेज न. 154

3. असाबाः- जिल्द 4, पेज न. 362, 784

4. मसनद अहमदः- जिल्द 4, पेज न. 198

5. सहीह मुस्लिमः- जिल्द 2, पेज न. 164

आऊज़ो बिल्लाहे मिनक

तबक़ात इब्ने सअद में इब्ने अब्बास से मरवी है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने असमा बिन्ते नोमान (जौनिया) से अक़्द फ़रमाया , ये अपने वक़्त की इन्ताहाई हसीनों जमील और ख़ूब सूरत ख़ातून थी। पैग़म्बर की दीगर अज़्वाज ने जब अस्मा को देखा तो उन पर रश्को हसद तारी हुआ आयशा इस मामले में सब से आगे थीं लिहाज़ा उन्होंने फ़रेबकारी का एक मुनज़्ज़म मन्सूबा तैय्यार किया और असमा से ये कहा कि रसूलल्लाह उस औरत से बहुत ख़ुश होते हैं जो दुख़ूल के वक़्त उनसे आऊज़ो बिल्लाहे मिनक (यानी मैं आप से ख़ुदा की पनाह चाहती हूं) कहे। आयशा की ये बात भोली भाली असमा पर असर अन्दाज़ हुई। चुनान्चे जब पैग़म्बर (स.अ.व.व) तशरीफ़ लाए और उन्होंने असमा की तरफ़ हाथ बढ़ाना चाहा तो असमा ने कहा आऊज़ो बिल्लाहे मिनक , पैग़म्बर ने उसकी तरफ़ से हाथ ख़ींच लिया और फ़रमाया तुम ने बहुत बड़ी पनाह मांगी है लिहाज़ा मैं तुम्हे आज़ाद करता हूं तुम अपने घर जा सकती हो। ( 1)

हमज़ा बिन सईदे सायदी ने अपने बाप से रवायत की है कि वो फ़रमाते थेः-

पैग़म्बर (स.अ.व.व) ने असमा बिन्ते नोमान (जौनिया) से अक़्द फ़रमाया और मुझसे लाने को कहा मैं उसे लेकर हाज़िरे ख़िदमत हुआ। हफ़सा ने आयशा से या आयशा ने हफ़सा से कहा कि तुम इसके हाथों में मेंहदी लगाओ मैं बालों में कंघी करती हूं। दोनों ने मिल कर मेंहदी लगाई और बाल संवारे। उसके बाद उन दोनों में से किसी एक ने असमा से कहा कि पैग़म्बर उस औरत को बहुत महबूब रखते हैं जो जिमा (संभोग) के वक़्त आऊज़ो बिल्लाहे मिनक कहती है। चुनान्चे जब पैग़म्बर (स.अ.व.व) उसके ख़लवत कदे में तशरीफ़ लाये और आपने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाना चाहा तो उसकी ज़बान से आऊज़ो बिल्लाहे मिनक...... निकला। हुज़ूर (स.अ.व.व) ने अपना हाथ समेट लिया और अपनी आस्तीनों से अपना चेहरा ढक लिया और तीन मरतबा इरशाद फ़रमाया कि तूने बड़ी पनाह मांगी है लिहाज़ा अपने घर चली जा। ( 2)

अबू सईद कहते हैं थोड़ी देर बाद हज़रत अली (अ.स) तशरीफ़ लाये और उन्होंने मुझसे कहा कि इसे इसके घर वालों के पास पहुंचा दो और दो जोड़े कपड़े दे दो।

इस वाक़िये के बाद असमा कहा करती थी कि मैं बद बख़्त हूं। ( 3)

तहज़ीबे इब्ने असाकर में है कि जब असमा को ग़ैरे मामूली तौर पर हसीनों जमील पाया गया तो अज़्वाज की तरफ़ से उसे धोखा दिया गया। जब रसूल को ये ख़बर हुई कि ये आयशा और हफ़सा की हरकत थी तो आपने फ़रमायाः-

ये सब युसूफ़ वालियां है और उन्हीं की तरफ़ मक्कारो फ़रेबकार भी। ( 4)

1.तबक़ात इब्ने सादः- जिल्द 8, पेज न. 145

2. तबरीः- जिल्द 3, पेज न. 79, मुसतदरकः- जिल्द 4, पेज न. 37, इस्तेयाबः- जिल्द 2, पेज न. 73

3. असाबाः- जिल्द 3, पेज न. 350

4. तहज़ीबः- इब्ने असाकरः- जिल्द 1, पेज न. 309

मलीका पर आयशा का जादू

इब्ने सअद ने तबक़ात में और इब्ने क़सीर ने अपनी तारीख़ में ये वाक़िआ नक़ल किया है कि रसूल (स.अ.व.व) ने मलीका बिन्ते काब से अक़्द किया जो हुस्नो जमाल में यकता थीं। हज़रत आयशा को ये बात नागवार गुज़री क्यों कि मलीका का ग़ैरे मामूली हुस्न उनके लिए नाक़ाबिले बर्दाश्त था।

मलीका का बाप फ़त्हे मक्का के मौक़े पर ख़ालिद बिन वलीद के हाथों क़त्ल हो चुका था चूंकि वो अपने बाप के क़ातिल के नाम से आशना थी इस लिए आयशा से जब उसका सामना हुआ तो मोहतर्मा ने उस पर अपना नफ़सियाती हर्बा इस्तेमाल किया और उससे कहा कि तुम्हें अपने बाप के क़ातिल से निकाह करते शर्म नहीं आयी। ( 1)

मलीका ने आयशा से कहाः-

अब क्या हो सकता है मुझे तो ये गुमान भी नहीं था कि रसूल (स.अ.व.व) मेरे बाप के क़ातिल है।

आयशा ने कहाः- ये सूरत हो सकती है कि जब आं हज़रत (स.अ.व.व) तुम्हारे साथ ख़लवत नशीन हों तो उनसे कहना कि मैं आप से ख़ुदा की पनाह मांगती हूं। मुम्किन है पनाह मिल जाये। चुनान्चे आयशा के भड़काने पर मलीका ने ऐसा ही किया और रसूल अल्लाह (स.अ.व.व) ने उसे तलाक़ दे दी। तलाक़ के बाद मलीका के ख़ानदान वाले रसूल के पास आये और आप से कहाः

या रसूलल्लाह (स.अ.व.व) , ये नासमझ और कमसिन है , बहकावे और बरग़लाने में आ गयी है आप उससे दोबारा रूजूअ फ़रमा लें लेकिन रसूल (स.अ.व.व) ने इन्कार कर दिया। ( 2)

ये रवायत इस बात पर दलालत करती है कि रसूलल्लाह (स.अ.व.व) को कमसिन हसीन और ख़ूब सूरत लड़कियों से निकाह करने का कोई शौक़ नहीं था वरना वो मलीका बिन्ते काब को तलाक़ न देते क्यों कि वो कमसिन भी थीं और हुस्नों जमाल का मुजस्समा भी।

नीज़ असमा बिन्ते नोमान पर गुज़रने वाले और इस वाक़ेए की नौइयत भी तक़रीबन एक सी है जो ज़ाहिर करती है कि आयशा ने नेक और शरीफ़ औरतों को धोखे दिये और उन्हें नबी (स.अ.व.व) की ज़ौजियत से महरूम कर दिया। चुनान्चे उन्होंने असमा को फ़रेब दिया कि पैग़म्बर (स.अ.व.व) उस औरत से बहुत ख़ुश होते हैं जो आऊज़ो बिल्लाहे मिनक कहती है और मलीका को ये बावर कराया कि तुम्हारे बाप के क़ातिल रसूल (स.अ.व.व) हैं ये वो जादू था कि जिसने उन दोनों सादा लौह औरतों का मुस्तक़बिल तबाहो बरबाद कर दिया जिसकी मुजरिम आयशा और सिर्फ़ आयशा है ये और बात है कि इस काम के लिए हफ़सा को भी इस्तेमाल किया।

1. तबक़ात इब्ने सअदः- जिल्द 8, पेज न. 148, तारीख़ इब्ने क़सीरः- जिल्द 5, पेज न. 299

2. असाबाः- जिल्द 4, पेज न. 392, तारीख़ इब्ने असाकरः- जिल्द 1, पेज न. 309, ज़हबीः- जिल्द 1, पेज न. 325

मारिया क़िब्तिया की सरगुज़श्त

तबक़ात इब्ने साद की रवायत है कि असकन्दर्या के शाह ने सात हिजरी में मारिया क़ब्तिया और उनकी बहन सीरीन को एक हज़ार मिस्क़ाल सोना बीस उम्दा नफ़ीस और बेशक़ीमत कपड़े अफ़ीर या बाफ़ूर नामी गधे और दुल्दुल नामी खच्चर दे कर हातिब बिन बल्का के हमराह पैग़म्बरे इस्लाम की ख़िदमत में रवाना किया और उसके साथ ही और उसके साथ ही मर्दे ख़सी जिसका नाम माबूर* था , को भी भेजा जो मारिया का भाई और एक सिन रसीदा शख़्स था। हातिब ने मारिया और सीरीन के सामने इस्सलाम क़ुबूल किया और इन्हें भी रंगबत दिलायी। चुनान्चे वो दोनों बहनें भी मुसलमान हो गयीं मगर वो मर्दे ख़सी अपने आबाई दीन पर क़ायम रहा और कुछ दिनों बाद पैग़म्बर (स.अ.व.व) की ज़िन्दगी ही में मुसलमान हो गया।

रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व) इन मारिया को जो आगे चल कर इब्राहीम की मां हुई बेहद चाहते थे। ये इन्ताहाई हसीनों ख़ूबसूरत भी थी और इनके बाल भी काफ़ी लम्बे और दिल कश थे। रसूल ने इन्हें परदे में रखा और मक़ामें आलिया में ठहराया। आप उनके पास बराबर आते जाते रहे यहां तक कि ये हाम्ला हुई और वहीं उनका वज़ैहम्ल हुआ। पैग़म्बर (स.अ.व.व) की कनीज़ सलमा ने दाया की ख़िदमत अन्जाम दी और सलमा के शौहर अबूराफ़े ने पैग़म्बर (स.अ.व.व) को इब्राहीम की विलादत की ख़ुशख़बरी सुनाई। आपने उन्हें एक ग़ुलाम इनाम दिया। ये वाक़ेआ माहे ज़िल्हिज आठ हिजरी का है। ( 1)

अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती की तसनीफ़ हुस्नुल मोहाज़ेरा के मुतालिए से पता चलता है कि शाह मक़ूक़स ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की ख़िदमत में एक ख़त इरसाल किया था जिसका खुलासा ये है किः-

जिन बातों की तरफ़ आप ने मेरी तवज्जो मबज़ूल कराई है और जिस अम्र की दावत दी है उस पर मैंने सन्जीदगी और मतानत से ग़ौर किया। मुझे मालूम था कि एक नबी आने वाले हैं मगर मैं समझता था कि वो मुल्के शाम में मबऊस होंगे। बहरहाल मुख़तसर तहाएफ़ के साथ दो लड़कियां ऐसी आपकी ख़िदमत में रवाना कर रहा हूं जो क़ब्तियों में बड़ी इज़्ज़तो शरफ़ और अज़मतों एहतराम की मालिक हैं। ( 2)

आयशा का बयान है किः-

जो हसद और जलन मुझे मारिया से थी वो किसी औरत से नहीं थी क्यों कि ये इन्तेहाई हसीनों जमील होने के साथ साथ बड़े लम्बे और ख़ूब सूरत बालों वाली थी। पैग़म्बर ने उन्हें ख़ुद पसन्द किया था और जब उन्हें ले आये तो पहले हारिस बिन नोमान के घर उतारा , फिर वो हम से घबराई और परेशान हुईं तो आं हज़रत ने उन्हें मक़ामे आलिया में मुन्तक़िल कर दिया और आप बराबर वहां आते जाते रहे। पैग़म्बर (स.अ.व.व) का मारिया के पास आना जाना मुझ पर शाक गुज़रता था और मैं हसद की आग में जलती रहती थी। यहां तक कि मारिया के बत्न से ख़ुदा ने उन्हें फ़रज़न्द अता किया और मैं महरूम रही। ( 3)

तबक़ात इब्ने सअद की रवायत हुस्नुल मोहज़रा से माख़ूज़ खुलासा ए मक़तूब और खुद आयशा के बयान से उनके हसदो जलन की मुनदर्जा ज़ैल वुजूहात का पता चलता हैः-

1. मारिया क़ाब्तिया के हुस्नों जमाल के सामने आयशा एहसासे कमतरो का शिकार थीं।

2. मारिया , शहज़ादी और अज़मतों एहतराम की मालिक थी नीज़ काफ़ी साज़ो समान के साथ बावेक़ार तौर पर रसूल (स.अ.व.व) के घर आयी थीं जब कि आयशा को अपने वाल्दैन की तरफ़ से कुछ भी न मिल सका था।

3. पैग़म्बर ने मारिया को खुद पसन्द फ़रमाया था और वो उन्हें बेहद चाहते थे।

4. मारिया के बाल लम्बे और ख़ूब सूरत थे जब कि आयशा गंजी थी और आपके बाल बीमारी की नज़्र हो चुके थे।

5. ख़ुदा ने पैग़म्बर को मारिया से औलाद अता की जब कि आयशा इस नेमत से महरूम थीं।

ये तमाम बातें ऐसी हैं जिनका तसव्वुर आयशा के लिए यक़ीनन अंगारों का बिस्तर था जिस पर आपका मजरूह पिन्दांरे ख़ुदी करवटें लिया करता था। और आप दिल ही दिल में कुढ़ती और जलती रहती थीं। फिर इब्राहीम की विलादत ने आपके वुगज़ों एनाद में और इज़ाफ़ा किया जैसा कि ख़ुद आपका बयान है कि ख़ुदा ने मारिया के बत्न से रसूल को फ़रज़न्द अता किया और मैं यूं ही रह गयी।

अब आप सोंचे समझें और ख़ुद फ़ैसला करें कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) ऐसी किसी बीवी को क्यों कर अज़ीज़ रख सकते थे जो आपकी दिगर अज़्वाज से बेपनाह रश्को हसद रखती हो। उन्हें बुरा भला कहतीं हो , उनके बरतन तोड़ती हो , लड़ाई , झगड़ा और मारपीट करती हो , उन्हें बरग़लाती और बहकाती हों , फ़रेब देती हों , झूठ बोलती हो , ग़ीबत करती हो और ऐब जुई उसका शआर हो। पैग़म्बर (स.अ.व.व) ऐसी किसी बीवी को क्यों कर मुहब्बत दे सकते थे जो आपके मासूम बच्चे इब्राहीम से नफ़रत करती हो , आपकी क़ुदसी सिफ़ात बेटी फातेमा (स.अ) से अदावत रखती हो। अपने नवासों से परदा करती हों और आपके इब्ने अम (चचा के बेटे) हज़रत अली इब्ने अबी तालीब (अ.स) की ऐसी दुशमन हों कि उनका नाम लेना भी गवारा न करती हों। पैग़म्बर (स.अ.व.व) ऐसी किसी बीवी को क्यों कर मुंह लगा सकते थे जो आपकी दूसरी बीवी को ये बावर कर दे कि उसके बाप का क़ातिल ख़ुद रसूल है।

इन्ही वजूहात की बिना पर अक़्ल ये तस्लीम करने पर तैयार नहीं होती कि पैग़म्बर (स.अ.व.व) आयशा को अपनी तमाम बीवियों से ज़्यादा चाहते रहे होंगे बल्कि अक़्ल का फ़ैसला यह है कि पैग़म्बर (स.अ.व.व) आयशा से नफ़रत करते थे और आपने उम्मत को भी इन के शर से बचने की तलक़ीन फ़रमाई है। ( 4)

नीज़ बुख़ारी की यह रवायत भी इस अम्र पर दलालत करती है कि हुज़ूरे अकरम (स.अ.व.व) आयशा से कतई ख़ुश नहीं थे। तहरीर फ़रमाते हैः-

मैंने क़ासिम इब्ने मोहम्मद से सुना कि उन्होंने कहाः-

आयशा ने कहा हाय मेरा सर फटा तो रसूल (स.अ.व.व) ने कहा अगर ऐसा होता तो मैं तुम्हारे लिए ख़ुदा से दुआ करता। आयशा ने कहा , बामुसीबता , ख़ुदा की क़सम आप चाहते हैं कि मैं मर जाऊं ताकि आप अपनी आख़री उम्र तक दूसरी अज़्वाज से लुत्फ़ उठाते रहें। ( 5)

1. तबक़ातः- जिल्द 8, पेज न. 212 व जिल्द 1, पेज न. 134, हालाते इब्राहीम फ़रज़न्दे नबी (स.अ.)

2. हुस्नुल मुहाज़राः- जिल्द 1 पेज न. 47 (मिस्र)

3. तबक़ात इब्ने सादः- जिल्द 8, पेज न. 150, 202

4. तबक़ात इब्ने सादः- जिल्द 2, पेज न. 29

5. बुख़ारीः- जिल्द 7, पेज न. 8

हज़रते आयशा और अज़मते रसूल (स.अ.व.व)

तारीख़ पुकार पुकार कर कहती है कि आयशा ख़ाना ए रसूल (स.अ.व.व) में एक आफ़त बनकर नाज़िल हुई थी। रसूले करीम (स.अ.व.व) से बात-बात पर तू-तू मैं-मैं , लड़ाई झगड़ा , बहसो मुबाहेसा और गुफ़्तारो तक़रार आपका मामूल था। आपकी नज़र में न तो मनसबे नुबूवत की कोई अहमियत थी और न ही रसूले पाक की अज़मतों का कोई पासो लिहाज़ था। जिसकी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) हमेशा आप पर नराज़ो ग़ज़बनाक रहा करते थे जैसा कि ख़ुद आपका बयान है। आप फ़रमाती हैः-

(इस किताब को आप “अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

पैग़म्बर (स.अ.व.व) अकसर मुझ से नाराज़ो ग़ज़बनाक रहते थे...... एक बार किसी मस्अले पर मुझ से और हुज़ूर (स.अ.व.व) से बहसो तकरार हो गयी। हुज़ूर ने फ़रमाया कि तुम इस पर राज़ी हो कि उमर बिन ख़त्ताब मेरे और तुम्हारे बीच फ़ैसला करे ? मैंने कहा नहीं वो बद मिजाज़ और संगदिल इन्सान है। फ़रमाया , फिर किस को सालिस बनाना चाहती हो ? मैंने कहा अपने वालिद अबू बकर को। चुनान्चे उन्हें तलब किया गया और जब वो आये तो हुज़ूर ने सारा माजरा बयान किया। मैंने कहा ख़ुदा से डरिये और हक़ के ख़िलाफ़ कुछ न कहिये। मेरी ज़बान से ये कलमात सुन कर मेरे वालिद ने मेरे मुंह पर ऐस थप्पड़ मारा कि मेरी नाक से ख़ून जारी हो गया। ( 1)

मिस्री मोवर्रिख़ मोहक्किक़ अब्बास महमूद ओक़ाद अपनी किताब आयशा में रक़म तराज़ हैं किः-

अहादीस में हज़रत आयशा से एक रवायत मरवी है जिसमें वह कहती हैं कि एक मरतबा किसी बात पर मुझमें और रसूल में बहस हो रही थी। हुज़ूर (स.अ.व.व) ने फ़रमाया यूं नहीं , किसी को सालिस मुक़र्रर कर लो। कहो , अबू उबैदए ज़र्राह को सालिस मुक़र्रर करने पर रज़ामन्द हो ? मैंने कहा वो सादा मिजाज़ इन्सान है आपकी तरफ़दारी करेंगे। हुज़ूर ने फ़रमाया तो फिर अपने वालिद को मुक़र्रर कर लो। मैं राज़ी हो गयी हुज़ूर (स.अ.व.व) ने अबू बकर को बुलवाया और मुझसे फ़रमाया कि तुम अपनी बात बयान करो। मैंने कहा पहले आप बयान करें चुनान्चे हुज़ूर (स.अ.व.व) ने वो बात जिसके मुतालिक़ बहस हो रही थी अबू बकर से बयान की और जब बात ख़त्म हो गयी तो मैंने अपने वालिद से कहा कि अब आप बताइये क हम दोनों में किसकी बात सही है ? ये सुनते ही मेरे बाप ने मेरे मुंह पर एक ज़ोरदार तमाचा मारा और कहा कि रसूल की मुख़ालेफ़त करती है। तमाचा ऐसा था कि मेरी नाक से ख़ून जारी हो गया। ( 2)

क़ुरान कहता है कि रसूल (स.अ.व.व) की आवाज़ पर अपनी आवाज़ को बलन्द न करो लेकिन आयशा के नज़्दीक क़ुरानी आयात की भी कोई अहमियत नहीं थी। जैसा कि ओक़ाद की तहरीर से पता चलता है। चुनान्चे वो लिखते हैः-

एक बार हज़रत अबू बकर आयशा के हुजरे के क़रीब से गुज़रे उन्होंने अपनी बेटी को रसूलल्लाह (स.अ.व.व) से बुलन्द आवाज़ से बातें करते हुए सुना , वह ग़ुस्से की हालत में हुजरे में दाख़िल हुए और इस ग़ुस्ताख़ी की सज़ा देने के लिये आयशा को थप्पड़ मारना चाहा लेकिन रसूलल्लाह (स.अ.व.व) ने दर्मियान में खड़े हो कर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। ( 3)

अल्लामा शेख़ अब्दुर रहमान शाफ़ेई भी इसी क़िस्म का एक वाक़ेआ तहरीर फ़रमाते हैः-

किसी मौक़े पर रसूलल्लाह (स.अ.व.व) और आयशा में बहसो तकरार हो गयी। रसूलल्लाह (स.अ.व.व) ने फ़रमाया क्या तुम अपने बाप को सालिस मुक़र्रर करने पर तैयार हो ? आयशा ने कहा हां। चुनान्चे अबूबकर सालसी के लिए तलब किये गये। उनसे रसूल (स.अ.व.व) ने फ़रमाया की ये मस्अला है और ऐसी ऐसी बातें हैं। आयशा ने कहाः ख़ुदा से डरिये और हक़ बात कहिये। उस पर अबूबकर ने उन्हें ऐसा तमाचा मारा कि नाक से ख़ून जारी हो गया फिर डंडा उठाया और इस तरह ज़दोकोब किया कि आख़िरकार वो (आयशा) भाग कर रसूल (स.अ.व.व) की पुश्त से लिपट गई। ( 4)

मज़कूरा वाक़ेआत से मुन्दर्जा ज़ेल बातों का पता चलता है।

1. आयशा रसूल (स.अ.व.व) का अदबो एहतराम कतई नहीं करती थीं।

2. आयशा रसूल (स.अ.व.व) की मुख़ालेफ़त करती थीं।

3. आयशा रसूल (स.अ.व.व) की पर आवाज़ बलन्द करती थीं।

4. आयशा रसूल (स.अ.व.व) से बहसो मुबाहेसा और तकरार करती थीं।

5. आयशा हज़रते रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व) पर बोहतान और इत्तेहाम की मुर्तक़िब भी क़रार पाती हैं जैसा कि आपका बयान हैः-

हम रसूलल्लाह के लिये एक मशकीज़ा नबीज़* तैयार करते थे जिसे सुब्ह उठकर आप पी जाते थे। ( 5) (मआज़ल्लाह)

शराब के लिये अरबी ज़बान में बहुत सी लफ़्ज़े इस्तेमाल हुई हैं जिनमें ख़मर और नबीज़ भी हैं। ख़मर उस शराब को कहते हैं जो अंगूर से बनायी जाय और नबीज़ वो शराब है जो खजूर से हासिल की जाय जिसे हम अपनी इस्तेलाह में ताड़ी कहते हैं।

अब्दुल्लाह इब्ने उमर का बयान है कि मेरे बाप उमर ने मिम्बर पर तक़रीर करते हुए कहा कि ये अम्र तहक़ीक़ शुदा है कि ख़मर , अंगूर , जौ , गेहूं और शहद से तैय्यार होती है और नबीज़ खजूर से और ये दोनों चीज़े हराम हैं। ( 6)

इमाम ग़ेज़ाली अपनी किताब मनखूल में रक़म तराज़ हैः-

इमामे अबू हनीफ़ा ने शरीअत को उलट पलट दिया और निज़ामे शर्अ को दरहम बरहम कर दिया। उनके मज़हब का तज़ाद उनकी नमाज़ों की तफ़सीलों में पोशीदा हैं। नमाज़ की क़द्र ज़रूरी जो अबू हानीफ़ा ने तज़वीज की है उसमें उनका ख़ब्त ज़ाहिर है और ये ऐसी नमाज़ है जो किसी जाहिल और सुस्त आदमी के सामने भी पेश की जाये तो वो उसके इत्तेबा से बाज़ रहेगा। इस लिये कि जो शख़्स नबीज़ में ग़ोता लगाये और कुत्ते की खाल पहन कर निकले और नीयत न करे।

इमाम ग़ेज़ाली ने इमाम अबू हनीफ़ा के इस फ़त्वे का मतलब ये अख़्ज़ किया है कि अबू हनीफ़ा का ये कहना कि नबीज़ में ग़ोता लगा कर नमाज़ पढ़ना जायज़ और दुरूस्त है। अगर इमाम ग़ज़ाली के मशरब में नबीज़ हलाल होती तो वो अबू हनीफ़ा के फ़त्वे पर एतराज़ क्यों करते ?

किताब रद्दुल मुख़तार जिल्द 5 सफ़ा 301 के मुताले से ये भी मालूम होता है कि अबू हनीफ़ा हर क़िस्म की नबीज़ को दिल में हराम समझते थे मगर चूंकि साहबा ए केबार इसको बेधड़क पीते थे इस लिये वो इसके हलाल होने का फ़त्वा देने पर मजबूर थे। जैसा कि उनका ये क़ौल बहुत मशहूर है कि अगर तमाम दुनिया मेरे क़ब्ज़े में दे दी जाए तो भी मैं नबीज़ को हराम होने का फ़त्वा नहीं दे सकता। क्यों कि इससे बाज़ सहाबा का फ़ासिक़ होना साबित होगा इस लिये कि ये हज़रात बे ताम्मुल उसे पिया करते थे लेकिन अगर मुझे कोई पूरी दुनिया दे कर ये कहे कि इसे पिया करो तो मैं पियूंगा भी नहीं।

मौलाना शिबली नौमानी अपनी किताब अलमामून दूसरी जिल्द के पेज 221 पर तहरीर फ़रमाते हैं किः-

उस वक़्त इस्लामी सोसाइटियां उमूमन इस रंग में डूबी हुई थीं। मुसलमानों को उस अहद में अम्न , फ़राग़ , इत्मीनान और ज़रोमाल सब कुछ मयस्सर था। कुछ चीज़े थीं जो उनको ज़िन्दगी के पुरख़त मक़ासिद से रोक सकती थी ? एक मज़हब अलबत्ता दरअन्दाज़ हो सकता था लेकिन जिद्दत पसन्द तबीअते उसे खींच तान कर अपने ढबका बना लेती थीं। शराब की जगह नबीज़ (खजूर की ताड़ी) मौजूद थी उसको उमूमी तौर पर इराक के मज़हबी पेशवाओं से जाएज़ होने की सनद मिल चुकी थी।

नबीज़ क्या है ? इसे क्यों हलाल क़रार दिया गया ? हज़रत उमर के क़ौल , इब्ने असीर की तशरीह , इमाम ग़ेज़ाली की तन्क़ीद , इमाम अबू हनीफ़ा के फ़तवे , रद्दुल मुख़्तार के इक़तेबास और शिबली नोमानी की इबारत से ज़ाहिर है। उनकी तसरीहात की रौशनी में हज़रत आयशा की बयान करदा हदीस का मतलब ये निकलता है कि मआज़ल्लाह पैग़म्बर (स.अ.व.व) भी अपने को इससे महरूम नहीं रखते थे।

पैग़म्बर (स.अ.व.व) पर आयशा का ये इत्तेहाम यक़ीनन एक ग़ौरतलब मस्अला है।

1. कशफ़ुल ग़म्माः- जिल्द 2, पेज न. 76

2. आयशा (उक़ाद) – पेज न. 30.

3. आयशा (उक़ाद) – पेज न. 98

4. नुज़हतुल मजालिसः- जिल्द 1, पेज न. 102

* एक तरह की शराब।

5. तलख़ीसुस सहाहः- जिल्द 3, पेज न. 112, मतबुआ लाहौर

6. मिशकातः- जिल्द 5, पेज न. 42 मतबुआ लाहौर