पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी कौन है?

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पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी कौन है? लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: इमामत

पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी कौन है?

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी मीलानी
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी कौन है?

पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी कौन है?

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

पैग़म्बर (स ) का उत्तराधिकारी कौन है ?

लेखक: आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी मीलानी (दामत बरकातुहु)

हिन्दी अनुवाद: सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसवी

अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क

प्राक्कथन

.... ईश्वर का अंतिम व सम्पूर्ण धर्म , आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के भेजे जाने बाद संसार वासियों के लिये पेश किया गया और ईश्वर का विधान व दूतों के आने और संदेश पहुचाने का सिलसिला आपकी नबूवत के साथ ही हमेशा के लिये बंद हो गया।

इस्लाम धर्म मक्का शहर में फला फूला और ईश्वर के संदेश वाहक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और उनके कुछ वफ़ादार साथियों की तेइस वर्षों की कड़ी मेहनत और अंथक प्रयत्नों के साथ पूरे अरब जगत में फैल गया।

ईश्वर के इस पथ को आगे बढ़ाने के लिये ज़िल हिज्जा की अठ्ठारह तारीख़ को , ग़दीरे ख़ुम के मैदान में मुसलमानों की आम सभा में ईश्वर के संदेशानुसार , उसके दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने इस्लाम पर सबसे पहले ईमान लाने वाले हज़रत अली अलैहिस सलाम के हवाले किया गया।

उस दिन हज़रत अली अलैहिस सलाम की इमामत के ऐलान व उत्तराधिकारी बनाये जाने के साथ ही ईश्वर की उसके भक्तों पर नेमत तमाम और धर्म सम्पूर्ण हो गया और इस्लाम धर्म को ईश्वर ने अपना पसंदीदा घर्म घोषित कर दिया। जिसके कारण काफ़िर व मुशरिक इस्लाम धर्म के मिट जाने से मायूस हो गये।

अभी ज़्यादा समय नही गुज़रा था कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के आसपास रहने वालों में से कुछ लोगों ने पहले से किये गये प्लान व साज़िश के तहत उनकी वफ़ात के बाद , मार्गदर्शन व हिदायत के रास्ते से मुंह मोड़ लिया , इल्म के शहर के दरवाज़े को बंद करके , मुसलमानों को दर दर भटकने के लिए छोड़ दिया। उन लोगों ने अपनी हुकूमत के पहले ही दिन से पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की हदीसों को लिखने से मना कर के , हदीसें गढ़ कर , और शैतानी शंकाएं उत्पन्न करके , उन इस्लामी वास्तविकताओं को , जो चमकते हुए सूरज की तरह चमक रही थीं , उन्हे शक व शंका के काले बादलों के पीछे छुपा दिया गया।

स्पष्ट है कि सारी साज़िशों के बावजूद इस्लामी वास्तविकताएं व पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की अमुल्य हदीसें उनके उत्तराधिकारी हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम और उनके बाद उनके उत्तराधिकारियों अइम्मा ए मासूमीन अलैहिमुस सलाम और नबी (स) के वफ़ादार साथियों और सहाबियों के ज़रिये इतिहास में बाक़ी रह गई और हर ज़माने में किसी न किसी सूरत में प्रकट होती रहीं। उन हज़रात ने इस्लामी मुआरिफ़ को सही तौर पर बयान करके , दो दिली मुनाफ़ेक़त , शैतानी बहकावों और इस्लाम विरोधियों का जवाब देकर हक़ीक़त को सबके सामने पेश कर दिया।

इस राह में कुछ नूरानी चेहरा लोग जिन में शैख़ मुफ़ीद , सैय्यद मुर्तज़ा , शैख़ तूसी , ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी , अल्लामा हिल्ली , क़ाज़ी नूरूल्लाह शूसतरी , मीर हामिद हुसैन हिन्दी , सैय्यद शरफ़ुद्दीन आमुली , अल्लामा अमीनी आदि के नाम सितारों की तरह चमकते हैं। इस लिये कि इन लोगों ने इस्लामी व शिया समुदाय की वास्तविकता की रक्षा की राह में अपनी ज़बान और क़लम के साथ उस पर शोध किया और उन पर होने वाले ऐतेराज़ों व आपत्तियों का उत्तर दिया।

हमारे ज़माने में भी एक बुद्धिजीवि व विचारक जिन्होने अपने सरल क़लम और अच्छे बयान के साथ पवित्र धर्म इस्लाम की वास्तविकता के वर्णन किया है और हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की इमामत व विलायत की रक्षा आलिमाना अंदाज़ से की है और वह महान अनुसंधानकर्ता हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी मीलानी हैं।

इस्लामी वास्तविकता केन्द्र को इस बात पर गर्व है कि उसने इस महान शोधकर्ता के क़ीमती आसार को अपने प्रोग्राम का हिस्सा बनाया ताकि और उनकी किताबों को शोध , अनुवाद व प्रसार के साथ छात्रों , पढ़े लिखे लोगों और इस्लामी वास्तविकता के बारे में जानने वालों के हाथों तक पहुचाया जा सके।

यह जो किताब आप के हाथ में है वह इन ही लेखक की एक किताब का हिन्दी अनुवाद है ताकि हिन्दी भाषी लोग इसके अध्धयन से इस्लामी वास्तविकता को जान सकें।

हमे आशा है कि हमारी यह किताब इमामे ज़माना हज़रत बक़ीय्यतुल्लाहिल आज़म (अज्जल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़) की प्रसन्नता और पसंद का कारण बनेगी।

इस्लामी वास्तविकता केन्द्र

प्रस्तावना

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस सलातु वस सलामु अला मुहम्मदिन व आलिहित ताहिरीन व लानतुल्लाहि अला आदाइहिम अजमईन मिनल अव्वालीना वल आख़िरीन।

इमामत व ख़िलाफ़त के मसले में शिया इसना अशरी व अहले सुन्नत के दृष्टिकोण एक दूसरे से भिन्नता रखते हैं।

शिया इसना अशरी मानते हैं कि इमामत व ख़िलाफ़त का पद भी नबूवत की तरह है और उसी मार्ग को आगे बढ़ाना है और ईशदूत (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के लिये इमाम व ख़लीफ़ा व उत्तराधिकारी का चुनाव भी नबी के चुनाव के समान है जो कि ईश्वर का अधिकार है और जनता का इससे कोई सरोकार नही है।

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

अहले सुन्नत मानते हैं कि इमाम व ख़लीफ़ा व नायब का चुनाव व इख़्तेयार जनता के हाथ में है।

इसी बुनियाद पर वह इमाम व ख़लीफ़ा के लिये कुछ शर्तों को अनिवार्य समझतें हैं जिन के पाये जाने के कारण इंसान के अंदर प्रतिनिधित्व की सलाहियत पैदा हो जाती है।

उस समय यह बहस पेश आयेगी कि अगर ऐसा है तो क्या उन्होने ईशदूत (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के बाद जिस इंसान का उत्तराधिकारी के तौर पर चुनाव किया उसमें यह सारी शर्तें पाई जाती हैं या नही ?

अत: इस बहस की दो दिशाएं होगीं और यह धार्मिक सिद्धातों और बहस के सही उसूलों पर आधारित हो कर ही नतीजे तक पहुच सकती है , क्यों कि उन मूलभूत आधारों को छोड़ कर और उत्तराधिकार में पाई जाने वाली शर्तों व योग्ताओं (जिन्हे वह लोग ख़ुद भी मानते हैं) के न पाये जाने की सूरत में अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम की इमामत व ख़िलाफ़त बिना किसी बहस के साबित हो जायेगी और उसको मानने के सिवा कोई रास्ता नही बचेगा। इस लिये कि एक तरफ़ आप की ख़िलाफ़त के बारे में पवित्र क़ुरआन व हदीस में बहुत सी दलीलें पाई जाती हैं तो दूसरी ओर बहुत सी अक़्ली दलीलें भी मौजूद हैं जबकि तीसरी तरफ़ अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम के अलावा किसी के उत्तराधिकारी होने पर कोई दलील मौजूद नही है।

यह किताब जो आपके सामने है इस में इसी महत्वपूर्ण धार्मिक मसले पर बहस की गई है और इस बारे में पाई जाने वाली शंकाओं का निवारण किया गया है और वास्तविकता के खोजकर्ताओं व शोधकर्ताओं के लिये रास्ता दिखाया गया है।

(आयतुल्लाह) सैय्यद अली हुसैनी मीलानी (दामत बरकातुहु)