विलादते इमाम (अ.स)
हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स) कि उमरे मुबारक के चालीस साल गुज़र चुके थे लेकिन आपके कोई औलाद ना थी और ये बात शियों के लिये काफी परेशान कुन थी क्योकि हज़रत रसूले खुदा (स.अ.व.व) और आइम्मा अलैहिमुस्सलाम से जो रवायात नकल हुई थीं। उसकी रौशनी में नवें इमाम अलैहिस्सलाम आठवें इमाम के फरजंद होंगे लेहाज़ा उन्हें इस बात का सख्त इंतेज़ार था कि खुदा वंदे आलम इमाम रज़ा (अ.स) को जल्द एक फरज़ंद से नवाज़े। इसलिऐ कभी इमामे रज़ा (अ.स) की खिदमते अकदस में शरफयाब हो कर इस बात की दरखास्त करते थे कि वो खुदा से दुआ मांगें कि खुदा वंदे आलम उन्हें एक फरज़न्द इनायत फरमाऐ लेकिन इमाम उन को तसल्ली देते थे कि खुदा वंदे आलम मुझे एक फरज़ंद अता करेगा जो मेरा वारिस होगा और मेरे बाद इमाम होगा।
10 रजब 195 को इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) कि विलादत हुई।
आपका इस्मे मुबारक मौहम्मद , कुन्नियत अबु जाफर और आपके मशहूर अलकाब तकी और मौहम्मद तक़ी हैं। आपकी विलादत शियों के लिये खुशियो मसर्रत और ईमानो ऐतकाद में इस्तेहकाम का सबब करार पाई क्योकि विलादत में ताखीर की वजह से बाज़ शियों में जो शक पैदा हो रहा था वो खत्म हो गया।
इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) की वालिदा का इस्मे गिरामी सबीका था लेकिन इमामे रज़ा (अ.स) ने आपका नाम खैज़रान रखा। आप रसूले खुदा कि ज़ौजा मोहतरमा जनाब मारिया कबतिया के खानदान से ताल्लुक रखती हैं।
अखलाको किरदार में अपने ज़माने कि तमाम औरतों से अफज़ल थीं। पैगम्बरे इस्लाम नें एक रिवायत में आपको खैरुल ईमां यानी बेहतरीन कनीज़े खुदा के उनवान से याद फरमाया है।
इमामे रज़ा (अ.स) के घर में आनें से काफी पहले इमाम मूसा काज़िम (अ.स) नें आप की खुसूसियात बयान फरमाई थीं और अपने एक सहाबी जनाब यज़ीद बिन सलीत के ज़रिये सलाम कहलवाया था।
इमाम रज़ा (अ.स) की हमशीरा जनाबे हकीमा का बयान है कि इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) की विलादत के मौके पर मेरे भाई ने मुझसे कहा कि मैं खैज़रान के पास रहुं विलादत के तीसरे दिन नौ मौलूद नें आँखें खोलीं। आसमान की तरफ देखा और दाहिनें बायें नज़र की और खुदा की तौहीद और नबी की नबूवत की गवाही दी।
ये देख कर मैं सख्त हैरान हुई और अपनें भाई की खिदमत में हाज़िर हुई जो कुछ देखा था उसे बयान किया – इमाम नें फरमाया , जो चीज़ें इसके बाद देखोगी वो इससे कहीं ज़्यादा अजीब होंगी।
अबु यहिया सोनआनी का बयान है कि मैं इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमते अकदस में था इतने में इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) जो इस वकत कमसिन थे , इमाम (अ.स) की खिदमत में लाऐ गऐ। इमाम नें फरमायाः ये वो मौलूद है जिससे ज़्यादा मुबारक कोई मौलूद शियों के लिये दुनिया में नहीं आया है।
इमाम का ये इरशाद शायद इस बिना पर हो जिसकी तरफ हम इबतेदा में इरशाद कर चुके हैं इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) कि विलादत से शियों का ये तो हम बिलकुल खत्म हो गया कि इमामे रज़ा का कोई जानशीन नहीं है। आप की विलादत ने शियों को शको तरदीद में मुबतेला होने से बचा लिया। नौफली का बयान है कि जिस वक्त इमाम रज़ा (अ.स) खुरासान तशरीफ ले जा रहे थे उस वक्त मैने इमाम की खिदमत में अर्ज़ किया कि मेरे लायक कोई खिदमत या कोई पैगाम तो नहीं है फरमाया तुम पर वाजिब है कि मेरे बाद मेरे फरज़ंद मौहम्मद की पैरवी करो और मैं एक ऐसे सफर पर जा रहा हूं जहा से वापसी नहीं होगी।
इमाम अली रज़ा (अ.स) के कातिब मौहम्मद बिन ऐबाद का बयान है कि हज़रत हमेंशा अपने फरज़ंद मौहम्मद को कुननियत से याद फरमाते थे।
जिस वक्त इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) का खत आता था आप फरमाते थे कि अबु जाफर ने मुझे ये लिखा है और जिस वक्त मैं (इमाम के हुक्म से ) अबु जाफर को खत लिखता था। इमाम बहुत ही बुज़ुर्गी और ऐहतराम के साथ उन को मुखातिब फरमाते थे। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के जो खुतूत आते थे वो फसाहतो बलाग़त और अदब की खूबसूरती से भरपूर होते थे। मौहम्मद बिन ऐबाद से रिवायत है कि मैने हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) को फरमाते हुए सुना कि मेरे बाद मेरे खानदान में अबु जाफर मेरे वसी और जानशीन होंगे।
माअमर बिन खलाद की रिवायत है कि इमाम रज़ा (अ.स) ने किसी चीज़ का तज़केरा करते हुऐ इरशाद फरमाया कि तुम्हें किस चीज़ की ज़रूरत है ये बात मुझसे सुनो। ये अबु जाफर हैं ये मेरे जानशीन हैं। इन को मैने अपनी जगह करार दिया है। (ये तुम्हारे तमाम सवालात और मसाऐल का जवाब देंगे) हम उस खानदान से हैं जहा बेटा बाप से (हकाएको मआरिफ की) भरपूर मीरास हासिल करता है। (मतलब ये है कि इसरार वा रमूज़े इमामत एक इमाम दूसरे इमाम से हासिल करता है और ये खुसूसियत सिर्फ इमामों से मखसूस है। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम के दूसरे फरज़ंद से नहीं।)
खैरानी ने अपने वालिद से रिवायत की है कि मैं खुरासान में हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमते अकदस में था। एक शख्स ने हज़रत से दरयाफ्त किया कि अगर आपको कोई हादसा पेश आजाऐ तो उस वक्त हम किस की तरफ रूजु करें। फरमाया मेरे फरज़ंद अबुजाफर की तरफ। सवाली इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) की उम्र को काफी नहीं समझ रहा था , (और ये सोच रहा था कि बचपन इमामत कि ज़िम्मेदारियों को नहीं निभा सकता) उस वक्त इमाम रज़ा (अ.स) ने इरशाद फरमाया कि खुदा वन्दे आलम ने जनाबे ईसा (अ.स) को रिसालतो नबूवत के लिये मुनतखिब फरमाया जबकि उनकी उम्र अबु जाफर के उम्र से कम थी।
अब्दुल्लाह बिन जाफर का बयान है कि मैं सफवान बिन यहिया के हमराह इमाम रज़ा (अ.स) कि खिदमत में शरफयाब हुआ और मौहम्मद तकी (अ.स) भी वहा तशरीफ फरमा थे उस वक्त आप तीन साल के थे। हमनें इमाम रज़ा (अ.स) से पूछा कि अगर आपको कोई हादसा पेश आ जाऐ तो उस सूरत में आपका जानशीन कौन होगा। इमाम ने अबु जाफर की तरफ इशारा करते हुऐ फरमाया। मेरा ये फरज़ंद , अर्ज़ किया , इसी सिनो साल में। फरमाया हाँ , इसी उम्र में , खुदा वन्दे आलम नें जनाब ईसा को अपनीं हुज्जत करार दिया जबकि वो तीन साल के भी नहीं थे।
इमामते इमाम तक़ी (अ.स)
इमामत भी नबुवत कि तरह एक ईलाही तोहफा है जिसे खुदा अपने मुनतखिब वा बरगुज़ीदा और शाईस्ता बन्दों को अता फरमाता है और उस अता में सिनो साल कि कोई क़ैदो शर्त नहीं है। वो लोग जो नबुवतो इमामत को बचपन के साथ नामुम्किन ख्याल करते हैं वो इन ईलाही वा आसमानी मसाऐल को मामूली और आम बातों पर क़यास करते हैं जबकि नबुवत और इमामत का ताल्लुक खुदा वन्दे आलम के इरादे व मशीयत से है। खुदा वन्दे आलम अपने बन्दों में से जिसको शाईस्ता समझता है उसे लामहदूद इल्म अता कर देता है। लेहाज़ा मुमकिन है कि खुदा वन्दे आलम बाज़ मसालेह की बिना पर तमाम उलूम एक बच्चे को अता कर दे और उसे बचपने ही में नबुवत या इमामत के ओहदे पर फाऐज़ करदे। हमारे नवें इमाम हज़रत इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) आठ या नौं साल कि उम्र में इमामत के अज़ीम मनसब पर फाऐज़ हुऐ। मोअल्ला बिन अहमद की रिवायत है कि इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मैंने इमाम तकी (अ.स) की ज़ियारत की और आप के खदुखाल कदो अन्दाम पर ग़ौर किया ताकि लोगों के लिये बयान कर सकुं इतने में इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) ने इरशाद फरमायाः ऐ मोअल्ला खुदा वन्दे आलम ने नबुवत की तरह इमामत के लिये भी दलील पेश की है हमने बचपने ही में यहिया को नबुवत अता कर दी।
मौहम्मद बिन हसन बिन अम्मार की रिवायत है कि मैं दो साल से मदीने में अली बिन जाफर की खिदमत में हाज़िर होता और वो रिवायते लिखता था जिसे वो अपने भाई इमाम मूसा बिन जाफर (अ.स) से हमारे लिये बयान करते थे एक दिन हम लोग मसजिदे नबवी में बैठे हुऐ थे इतने में इमाम तकी (अ.स) तशरीफ लाऐ। उन को देखते ही अली बिन जाफर नंगे पैर और बग़ैर अबा के ऐहतराम के लिये उठ खडे हुऐ और उन के हाथों का बोसा लिया। इमाम ने फरमायाः चचाजान आप तशरीफ रखें खुदा आप रहमतें नाज़िल फरमाऐ। अर्ज़ किया। आक़ा मैं कैसे बैठ सकता हुं जबकि आप खड़े हुऐ हैं। जब अली बिन जाफर वापस आऐ तो उन के दोस्तों और साथियों ने उन की मलामत की कि आप उनके वालिद के चचा हैं और इस तरह उनका एहतराम करते हैं। अली बिन जाफर ने कहाः खामोश रहो (अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुऐ फरमाया) जब खुदा वन्दे आलम ने इस सफेद दाढ़ी को इमामत के लायक नहीं समझा और उस जवान को उसके लिये सज़ावार करार दिया। तुम ये चाहते हो मैं उनकी फज़ीलत का इन्कार करूं। मैं तुम्हारी बातों के बारे में खुदा से पनाह मांगता हुं। मैं तो उसका एक बन्दा हुं।
उम्र बिन फरज का बयान है कि मैं इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के साथ दरयाऐ दजला के किनारे खड़ा हुआ था। मैंने हज़रत की खिदमत में अर्ज़ किया कि आपके शिया कहते हैं कि आप दजला के पानीं का वज़न जानते हैं तो इमाम ने फरमायाः क्या खुदा इस बात पर कादिर है कि एक मच्छर को दजला के पानीं के वज़न का इल्म अता करदे। अर्ज़ किया हाँ खुदा क़ादिर है। फरमायाः मैं खुदा के नज़दीक मच्छर और उसकी अकसर मखलूकात से कहीं ज़्यादा अज़ीज़ हुं।
अली बिन हेसान वासती का बयान है कि मैं (इमाम की कमसिनी का खयाल करते हुऐ) कुछ खेल कूद का सामान लेकर बतौरे तोहफा इमाम की खिदमत में पेश करने के लिये हाज़िरे खिदमत हुआ। मैने सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब दिया। इमाम कुछ नाराज़ मालूम हो रहे थे। मुझे बैठने की इजाज़त नहीं दी। आगे बढ़ कर मैनें खेल कूद का सामान उन के सामने रख दिया। इमाम ने मुझ पर एक नज़र की और सारा सामान इधर उधर फेंक दिया और फरमायाः खुदा ने मुझे खेल कूद के लिये पैदा नहीं किया है। मुझे इन तसे क्या चीज़ो से क्या काम। मैनें तमाम चीज़ें समेट लीं और हज़रत से माफी तलब की और हज़रत ने माफ कर दिया। फिर मैं वापस आ गया।
अंबिया और आईम्मा अलैहेमुस्सलाम की ये खुसूसियत है कि उन्होंने दुनिया नें किसी से तालीम हासिल नहीं की। उनके इल्म का सरचश्मा खुदा वन्दे आलम की ज़ाते अक़दस है इस बिना पर उनकी उम्रे रिसालत व इमामत की ज़िम्मेदारिया संभालने की राह में हाऐल नहीं रही। खुदावन्दे आलम की इनायतों से वो किसी भी उम्र में लोगों की हिदायत रहनुमाई के लिये मोअय्यन किये जा सकते हैं। इस बिना पर कुछ हज़रात दरमियाने उम्र में कुछ ज़्यादा उम्र में। कुछ जवानी में और कुछ बिल्कुल बचपनें में , इस अज़ीम मनसब पर फाऐज़ हुऐ और ये सब खुदा वन्दे आलम की खास इनायतों के बगैंर नामुम्किन है। क़ुरआने करीम ने वज़ाहत की है कि जनाबे याहिया बचपन में नबी हुऐ।
ऐ याहिया इस किताब को मज़बूती से पकड़ लो और हमनें उनको उस वक्त नबी बनाया जब वो बच्चे थे और जनाबे ईसा तो बिल्कुल झूले में नबी मोअय्यन किये गऐ और यहूदी कहने लगे हम इस बच्चे से कैसे गुफ्तगू करें। ये अभी झूले में है। जनाबे ईसा ने फरमायाः मैं खुदा का बन्दा हुं मुझे किताब दी गई है और मुझे नबी बनाया गया है।
ये उन लोगों की कजफिकरी और अक्ल से इन्हेराफ है। जो हमारे बाज़ आईम्मा की इमामत पर सिर्फ इस लिये ऐतराज़ करते हैं कि इन्हें कमसिनी में इमामत का मनसब मिल गया। कुरआन की ये आयतें इस तरह के तमाम ऐतराज़ात का जवाब दें। हज़रत इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) अपने वालिद हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स) की बशारत के बाद इमामत के ओहदे पर फाऐज़ हुऐ गुज़िशता इमामों नें बाक़ायदा आपकी इमामत का ज़िक्र किया था अक्सर ऐसा हुआ कि नादान दुशमनों नें आपको आज़माने की कोशिश की लेकिन आपके जवाबात में इल्में खुदा की तजल्ली इस कदर ज़्यादा थी कि आपकी इमामत को जनाबे याहिया और जनाबे ईसा की नबुवत की दलील करार दिया जा सकता है इनकी नबुवत को आपकी इमामत की दलील करार नहीं दिया जा सकता इस लिये कि इमामत का मनसब नबुवत से बुलन्द है।
ग़ैब की खबरें और मोजिज़ात
(1) इमाम अली रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मुखतलिफ शहरो से 80 ओलामा और दानिशमंद हज करने के लिये मक्का रवाना हुए। वो सफर के दौरान मदीना भी गए , ताकि इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की ज़ियारत भी करलें। उन लोगो ने इमाम सादिक़ (अ.स) के एक खाली घर में क़याम किया।
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) जो उस वक्त कमसिन थे। उन की बज़्म में तशरीफ लाए ,मौफिक़ ,नामी शख्स नें लोगों से आप का तारुफ कराया। सब ही ऐहतेराम में खड़े हो गए ,और सब ने आपको सलाम किया। उसके बाद उन लोगोनें सवालात करना शुरु किये। हज़रत ने हर एक का जवाब दिया (उस वाक़ए से हर एक को आपकी इमामत का मज़ीद यक़ीन हो गया) हर एक खुशहाल था। सब ने आपकी ताज़ीम की और आपके लिये दुआऐं कीं।
उनमें से एक शख्स इस्हाक़ भी थे जिस का बयान है कि मैंने एक ख़त में दस सवाल लिख लिये थे कि मौक़ा मिलने पर हज़रत से इस का जवाब चाहुंगा। अगर उन्होंने तमाम सवालों का जवाब दे दिया तो उस वक्त हज़रत से उस बात का तक़ाज़ा करुंगा कि वो मेरे हक़ में ये दुआ फरमाऐं कि मेरी ज़ौजा के हमल को खुदा फरज़ंद करार दे। नशिस्त काफी तूलानी हो गयी। लोग मुसलसल आपसे सवाल कर रहे थे और आप हर एक का जवाब दे रहे थे। ये सोच कर मैं उठा कि खत कल हज़रत की खिदमत में पेश करुंगा। इमाम की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी इरशाद फरमायाः
इस्हाक़। खुदा ने मेरी दुआ क़ुबूल कर ली है। अपने फरज़ंद का नाम अहमद रखना।
मैंने कहाः खुदाया तेरा शुक्र , यक़ीनन यही हुज्जते खुदा हैं।
जब इस्हाक़ वतन वापस आया खुदा ने उसे एक फरज़ंद अता किया जिसका नाम उसने ,अहमद ,रखा।
शियो के हालात का इल्म
(2) इमरान बिन मौहम्मद अशअरी का बयान है कि मैं हज़रत इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की खिदमत में शरफयाब हुआ तमाम बातों के बाद इमाम से अर्ज़ किया कि।
उम्मुलहसन ने आपकी खिदमत में सलाम अर्ज़ किया है और ये दरख्वास्त की है कि आप अपना एक लिबास इनायत फरमाऐं जिसे वो अपना कफन बना सके।
इमाम ने फरमायाः वो इन चीज़ों से बेनियाज़ हो चुकी है।
मैं इमाम के इस जुम्ले का मतलब नहीं समझ सका। यहा तक की मुझ तक ये खबर पहुची कि जिस वक्त मैं इमाम की खिदमत में हाज़िर था उस से 13,14 रोज़ पहले ही उम्मुल हसन का इन्तेक़ाल हो चुका था।
लूट के माल की खबर होना
(3) अहमद बिन हदीद का बयान है कि एक काफिला के हमराह जा रहा था रास्ते में डाकूओं नें हमें घेर लिया (और हमारा सारा माल लूट लिया) जब हम लोग मदीना पहुचे एक गली में इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से मुलाक़ात हुई। हम लोग उनके घर पहुचे और सारा वाक़ेआ बयान किया। इमाम (अ.स) ने हुक्म दिया और कपड़ा , पैसा हम को लाकर दिया गया। इमाम ने फरमायाः जितने पैसे ड़ाकू ले गए हैं उसी हिसाब से आपस में तक़सीम कर लो। हमने पैसा आपस में तक़सीम किया। मालूम ये हुआ कि जितना ड़ाकू ले गए थे उसी कद्र इमाम (अ.स) ने हमें दिया है। उस मिक़्दार से न कम था न ज़्यादा।
इमाम का लिबास
(4) मौहम्मद बिन सहल क़ुम्मी का बयान है कि मै मक्के में मुजाविर हो गया था। वहा से मदीना गया और इमाम का मेहमान हुआ। मैं इमाम से उनका एक लिबास चाहता था मगर आखिर वक्त तक अपना मतलब बयान ना कर सका। मैंने अपने आप से कहाः अपनी इस ख्वाहिश को एक खत के ज़रिये इमाम की खिदमत में पेश करुं और मैने यही किया। उसके बाद मैं मस्जिदे नबवी चला गया और वहा ये तय किया की दो रकत नमाज़ बजा लाऊं और खुदा वंदे आलम से 100 मर्तबा तलब खैर करुं। उस वक्त अगर दिल ने गवाही दी तो खत इमाम की खिदमत में पेश करुंगा। वरना इस को फाड़ कर फेंक दूंगा।।।मेरे दिल ने गवाही नहीं दी ,मैंने खत फाड़ कर फेंक दिया और मक्का की तरफ रवाना हो गया।।।।रास्ते मे मैंने एक शख्स को देखा जिसके हाथ मे रुमाल है जिस्में एक लिबास है और वो शख्स काफिला में मुझे तलाश कर रहा है।जब वो मुझ तक पौंहचा तो कहने लगाः तुम्हारे मौला ने ये लिबास तुम्हारे लिये भेजा है।
(5) दरख्त पर फलो का आ जाना
मामून ने इमाम (अ.स) को बग़दाद बुलाया और अपनी बेटी से आपकी शादी की। लेकिन आप बग़दाद में ठहरे नहीं और अपनी बीवी के साथ मदीना वापस आ गये।
जिस वक्त इमाम मदीना वापस हो रहे थे। उस वक्त काफी लोग आप को विदा करने के लिये शहर के दरवाज़े तक आपके साथ आए और खुदा हाफिज़ कहा।
मग़रिब के वक्त आप ऐसी जगह पहुचे जहा एक पुरानी मस्जिद थी। नमाज़े मग़रिब के लिये इमाम (अ.स) उस मस्जिद में तशरीफ ले गए। मस्जिद के सहन में एक बेर का दरख्त था जिस पर आज तक फल नहीं आए थे। इमाम (अ.स) ने पानी तलब किया और उस दरख्त के नीचे वुज़ु फरमाया और जमाअत के साथ मगरिब की नमाज़ अदा फरमाई। उसके बाद आपने चार रकत नमाज़े नाफेला पढ़ी। उसके बाद आप सज्दए शुक्र बजा लाए और आपने तमाम लोगों को रुख्सत कर दिया।
दूसरे ही दिन उस दरख्त में फल आ गए और बेहतरीन फल ये देख कर लोगों को बहुत तआज्जुब हुआ।
जनाब शैख मुफीद अलैहिर्रहमा का बयान है कि इस वाकए के बरसों बाद मैनें खुद उस दरख्त को देखा और उस का फल खाया।
(6) इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत का ऐलान
उमय्या बिन अली का बयान है कि जिस वक्त इमाम रज़ा (अ.स) खुरासान में तशरीफ फरमा थे उस वक्त मैं मदीने में ज़िन्दगी बसर कर रहा था और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के घर मेरा आना जाना था। इमाम के रिशतेदार आम-तौर से सलाम करने इमाम (अ.स) की खिदमत में हाज़िर होते थे। एक दिन इमाम (अ.स) ने कनीज़ से कहाः उन (औरतों) से कह दो अज़ादारी के लिये तैय्यार हो जाऐ। इमाम (अ.स) ने एक बार फिर इस बात की ताकीद फरमाई कि वो लोग अज़ादारी के लिये आमादा हो जाऐं।
लोगों ने दरयाफ्त कियाः किस की अज़ादारी के लिये।
फरमायाः रुए ज़मीन के सबसे बेहतरीन इन्सान के लिये।
कुछ अर्से के बाद इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत की खबर मदीना आई। मालूम हुआ कि उसी दिन इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत वाके हुई है जिस दिन इमाम (अ.स) ने फरमाया था कि अज़ादारी के लिये तैय्यार हो जाओ।
(7) ऐतराफे क़ाज़ी
क़ज़ी याहिया बिन अक्सम , जो खान्दाने रिसालत व इमामत के सख्त दुशमनों में था। उस ने खुद इस बात का ऐतराफ किया है कि एक दिन रसूले खुदा (स.अ.वा.व) की क़ब्रे मुताहर के नज़दीक इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) को देखा उनसे कहा खुदा की क़सम। मैं कुछ बातें आप से दरयाफ्त करना चाहता हुं लेकिन मुझे शर्म महसूस हो रही है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः सवाल के बगैंर तुम्हारी बातों के जवाब दे दूंगा। तुम ये दरयाफ्त करना चाहते हो कि इमाम कौन है।
मैने कहाः खुदा की क़सम यही दरयाफ्त करना चाहता था।
फरमायाः मैं इमाम हुं ,
मैने कहाः इस बात पर कोई दलील है।
उस वक्त वो असा जो इमाम के हाथों मे था। वो गोया हुआ और उसने कहाः ये मेरे मौला हैं इस ज़माने के इमाम हैं और खुदा की हुज्जत है।
(8) पड़ौसी की नजात
अली बिन जरीर का बयान है कि मैं इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की खिदमते अक़दस में हाज़िर था। इमाम के घर की एक बकरी ग़ायब हो गई थी। एक पडौसी को चोरी के इल्ज़ाम में खेंचते हुऐ इमाम (अ.स) की खिदमत में लाए।
इमाम ने फरमायाः
अफसोस हो तुम पर इसको आज़ाद करो इसने बकरी नहीं चुराई है। बकरी इस वक्त फलॉ घर में है जाओ वहा से ले आओ।
इमाम (अ.स) ने जहा बताया था वहा गए और बकरी को ले आए और घर वाले को चोरी के इल्ज़ाम मे गिरफ्तार किया। उस की पिटाई की उसका लिबास फाड़ ङाला और वो क़सम खा रहा था कि उसने बकरी नहीं चुराई है। उस शख्स को इमाम की खिदमत मे लाए।
इमाम ने फरमायाः वाए हो तुम पर। तुम ने इस शख्स पर ज़ुल्म किया। बकरी खुद इसके घर मे चली गयी थी। उसको खबर भी न थी।
उस वक्त इमाम ने उसकी दिलजोई के लिये और उसके नुक़सान को पूरा करने के लिये एक रक़म उसको अता फरमाई
(9) क़ैद की रेहाई
अली बिन खालिद , का बयान है कि सामर्रा मे मुझे ये ऐत्तेला मिली कि एक शख्स को शाम से गिरफतार करके यहा लाए हैं और क़ैद खाना में उसको क़ैद कर रखा है। मशहूर है कि ये शख्स नबुवत का मुददई है।
मैं क़ैदखाना गया। दरबान से नेहायत नर्मी और ऐहतराम से पेश आया। यहा तक की मैं उस क़ैदी तक पहुंच गया। वो शख्स मुझे बाहम और अक़्लमंद नज़र आया। मैने उससे दरयाफ्त किया कि तुम्हारा क्या किस्सा है।
कहने लगाः शाम मे एक जगह है जिसको रासुल हुसैन कहते हैं (जहा इमाम हुसैन (अ.स) का सरे मुक़द्दस रखा गया था) मैं वहा इबादत किया करता था। एक रात जब मैं ज़िक्रे इलाही मे मसरूफ था। एक-दम एक शख्स को अपने सामने पाया। उसने मुझ से कहा खड़े हो जाओ।
मै खड़ा हो गया। उसके साथ चन्द कदम चला। देखता क्या हुं कि मसिज्दे कूफा में हुं। उसने मुझ से पूछाः इस मस्जिद को पहचानते हो।
मैने कहाः हाँ ये मस्जिदे कूफा है।
वहा हमने नमाज़ पढ़ी फिर हम वहा से बाहर चले आए। फिर थोड़ी दूर चले थे कि देखा मदीना मे मसिज्दे नबवी मे हुं। रसूले अकरम की क़ब्रे अतहर की ज़ियारत की मसिज्द मे नमाज़ पढ़ी। फिर वहा से चले आए फिर चन्द कदम चले देखा कि मक्का मे मौजूद हुं। खानए क़ाबा का तवाफ किया और बाहर चले आए फिर चन्द कदम चले तो अपने को शाम मे उसी जगह पाया जहा। मैं इबादत कर रहा था और वो शख्स मेरी नज़रों से पोशीदा हो गया।
जो कुछ देखा था। वो मेरे लिये काफी ताअज्जुब खैज़ था। यहा तक की इस वाकऐ को कई साल गुज़र गया। एक साल बाद वो शख्स फिर आया। गुज़िशता साल की तरह इस मर्तबा भी वही सब वाकेआत पेश आए। लेकिन इस मर्तबा जब वो जाने लगा तो मैने उस को क़सम देकर पूछाः आप कौन हैं।
फरमायाः मौहम्मद बिन अली बिन मूसा बिन जाफर बिन मौहम्मद बिन अली इब्नुल हुसैन बिन अली इब्ने अबितालिब हुं।
ये वाकेआ मैने बाज़ लोगों से बयान किया उसकी खबर मोतसिम अब्बासी के वज़ीर मौहम्मद बिन अब्दुल मलिक ज़यात तक पहुची। उसने मेरी गिरफ्तारी का हुक्म दिया जिस की बना पर मुझे क़ैद करके यहा लाया गया है। झूठों ने ये खबर फैला दी कि मैं नबूवत का दावेदार हुं।
अली बिन खालिद का बयान है कि मैने उससे कहा कि अगर तुम इजाज़त दो तो सही हालात ज़यात को लिख कर भेजु ताकि वो सही हालात से बा खबर हो जाए।
वो कहने लगाः लिखो।
मैने सारा वाकेआ ज़यात को लिखा। उसने इसी खत की पुश्त पर जवाब लिखा कि उससे कहो कि जो शख्स एक शब मे उसे शाम से कूफा , मदीना और मक्का ले गया और वापस ले आया , उसी से रेहाई तलब करे।
ये जवाब सुन कर मै बहुत रन्जीदा हुआ। दूसरे दिन मै क़ैदखाना गया ताकि उसे सब्रो शुक्र की तल्कीन करुं और उसका हौसला बढ़ाऊं।
जब वहा पहुचा तो देखा दरबान और दूसरे अफराद परेशान हाल नज़र आ रहे हैं। दरयाफ्त किया कि वजह किया है।
कहने लगे जो शख्स पैग़म्बरी का दावेदार था वो कल रात क़ैद खाना से नहीं मालूम किस तरह बाहर चला गया। ज़मीन मे धंस गया या आसमान मे उड़ गया। मुसलसल तलाश के बाद भी उसका कोई पता ना चला।
अबासलत की रिहाई
(10) अबासलत हरवी इमाम रज़ा (अ.स) के मुकर्रब तरीन असहाब मे से थे इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मामून के हुक्म से आप को कैद कर दिया गया।
आप का बयान है कि एक साल तक कैदखाना मे रहा। आजिज़ आ गया एक रात सारी रात दुआ इबादत मे मशग़ूल रहा। पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) और अहलेबैत (अ.स) को अपने मसाएल के सिलसिले मे वास्ता क़रार देकर खुदा से दुआ मॉगी कि मुझे रेहाई अता फरमाऐ। अभी मेरी दुआ तमात भी न होने पाई थी कि देखा इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) मेरे पास मौजूद हैं। मुझ से फरमायाः ऐ अबासलत क्या क़ैद आजिज़ आ गये।
अर्ज़ कियाः ऐ मौला हा आजिज़ आ गया हु।
फरमायाः उठो आपने ज़न्जीरों पर हाथ फेरा। उसके सारे हल्के खुल गए। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और क़ैद खाना से बाहर ले आए। दरबानो ने मुझे देखा मगर हज़रत के रोअबो जलाल से किसी मे ज़बान खोलने की सकत नहीं थी। जब इमाम मुझे बाहर ले आए तो मुझ से फरमायाः जाओ खुदा हाफिज़ अब न मामून तुम्हे देखेगा और ना तुम ही उसको देखोगे। जैसा इमाम (अ.स) ने फरमाया था वैसा ही हुआ।
(11) मोतसिम अब्बासी की नशिस्त
ज़रक़ान , जो इब्ने अबी दाऊद (इब्ने अबी दाऊद ,मामून ,मोतसिम ,वातिक़ और मुतावक्किल के ज़माने मे बग़दाद के क़ाज़ीयों मे था।) का गहरा दोस्त था। उसका बयान है कि एक दिन इब्ने अबी दाऊद , मोतसिम की बज़्म से रन्जीदा वापस आ रहा था। मैने रन्जीदगी का सबब दरयाफ्त किया कहने लगाः ऐ काश मै बीस साल पहले मर गया होता।
पूछाः आखिर क्युं।
कहा आज मोतसिम की बज़्म मे अबु जाफर इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से जो सदमा मुझे पहुचा है।
पूछाः माजरा क्या है।
कहाः एक शख्स ने चोरी का एतराफ किया और मोतसिम से ये तकाज़ा किया कि वो हद जारी करके उसे पाक करदे मोतसिम ने तमाम फोक़हा को जमा किया उनमें मौहम्मद बिन अली इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) भी थे मोतसिम ने हमसे पूछा चोर का हाथ कहा से काटा जाए।
मैने कहाः कलाई से।
पूछा उसकी दलील क्या है।
मैने कहाः आयते तमय्युम मे हाथ का इत्लाक़ कलाई तक हुआ है।
अपने चेहरे और हाथों का मसह करो। कलाई तक हाथ का इत्लाक़ हुआ है। इस मसअले मे फोक़हा की एक जमाअत मेरे मवाफिक़ थी। सब का कौल यही था कि चोर का हाथ कलाई से काटा जाए। लेकिन दूसरे फोक़हा का नज़रिया ये था कि चोर का हाथ कोहनी से काटा जाए। मोतसिम ने उनसे दलील तलब की उन्होंने कहा आयये वुज़ु में हाथ का इत्लाक़ कोहनी तक हुआ है।
अपने चेहरों को धोओ और हाथों को कोहनियों तक यहा कोहनी तक हाथ का इत्लाक़ हुआ है।
उस वक्त मोतसिम ने मौहम्मद बिन अली (इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की तरफ रुख किया और पूछा कि इस मसअले मे आपकी क्या राए है।
फरमायाः इन लोगों ने अपने नज़रयात बयान कर दिये हैं। मुझे माफ रखो।
मोतसिम ने बहुत इसरार किया और कसम दे कर कहा कि आप अपना नज़रिया ज़रूर बयान फरमाइये।
परमायाः चूंकि तुमने कसम दी है लेहाज़ा सुनो ये सब लोग गलती पर हैं। चोर की सिर्फ चार ऊगलिया काटी जाऐगी।
मोतसिम ने दरयाफ्त किया कि इस की दलील किया है।
फरमायाः रसूले खुदा (स.अ.व.व) का इर्शाद है कि सजदा सात आज़ा पर वाजिब हैः पेशानी , हाथ की हथेलिया , दोनो घुटने और पाँव के दोनो अंगूठे।
लेहाज़ा अगर कलाई या कोहनी से चोर का हाथ काटा जाए तो वो सज्दा किस तरह करेगा और खुदा वंदे आलम का इर्शाद है।
जिन सात आज़ा पर सज्दा वाजिब है। वो सब खुदा के लिये हैं। खुदा के साथ किसी और की इबादत ना करो और जो चीज़ खुदा के लिये हो वो काटी नहीं जा सकती है।
इब्ने अबी दाऊद का कहना है कि मोतसिम ने आप का जवाब पसंद किया और हुक्म दिया कि चोर की सिर्फ चार ऊगलिया ही काटी जाएं और सब के सामने हम सब की आबरु चली गयी। उस वक्त मैने (शर्म के मारे) मौत की तमन्ना की।