साज़ीशी शादी
इमाम रज़ा (अ.स) के हालाते ज़िन्दगी के सिलसिले मे हम उस तरफ इशारा कर चुके हैं कि समाज मे जो अफरा तफरी फैली हुई थी। अलवीयीन भी हंगामे बरपा कर रहे थे। उन चीज़ों से नजात हासिल करने के लिये शियों और ईरानियों को अपने साथ लेने के लिये मामून अब्बासी ने अपने को अहलेबैत (अ.स) का दोस्त ज़ाहिर करना शुरु कर दिया। इमाम रज़ा (अ.स) को ज़बरदस्ती वली अहद बना कर अपनी इस ज़ाहिरदारी को और मुस्तहकम करना चाहा और इमाम की नक्लो हरकत को नज़दीक से ज़ेरे नज़र रखा।
दूसरी तरफ मामून के खान्दान वाले मामून के इस इक़दाम से खुश नहीं थे और ये सोच रहे थे कि इस तरह मामून खिलाफत बनी अब्बास से अलवीयो मे मुन्तकिल करना चाहता है। इस लिये बनी अब्बास मामून के इस इक़दाम से काफी नाराज़ थे और उन्होने मामून की मुखालेफत शुरु कर दी। लेकिन जब मामून ने इमाम अली रज़ा (अ.स) को शहीद कर दिया तो बनी अब्बास खामोश हो गए और मामून के इस अमल से काफी खुश भी हो गए और उसके नज़दीक आ गए।
मामून ने इमाम रज़ा (अ.स) को बहुत ही पोशीदा तरीके से ज़हर दिया था कि ये बात फैलने न पाए। अपने जुर्म पर पर्दा ड़ालने के लिये खुद को इमाम का अज़ादार ज़ाहिर किया। यहा तक की तीन दिन तक इमाम के घर पर ठहरा रहा और नमक रोटी खाता रहा। इन तमाम कोशिशों के बावजूद अलवीयो पर हकीक़त वाज़ेह हो गई कि इमाम का कातिल मामून के अलावा और कोई नहीं है। इस बात ने अलवीयो को सख्त रन्जीदा किया और उनको इन्तेक़ाम लेने पर मजबूर कर दिया। मामून को फिर अपना तख्तोताज खतरे मे नज़र आया और उसने तख्तोताज की हिफाज़त की खातिर एक और चाल चली इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से बहुत ज़्यादा मौहब्बत और अक़ीदत का इज़्हार करने लगा और ज़्यादा से ज़्यादा फायदा हासिल करने के लिये अपनी बेटी को इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के अक्द मे दे दिया और ये कोशिश करने लगा कि इस चाल से भी वही फायदा उठाए जो उसने इमाम रज़ा (अ.स) को ज़बरदस्ती वली अहद बना कर उठाना चाहा था। इस मक़सद के हुसूल के लिये मामून ने (204 हिजरी) यानी इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत के एक साल बाद इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) को बग़दाद बुलाया और अपनी लाड़ली बेटी उम्मुल फज़्ल की शादी आपके साथ कर दी।
रय्यान बिन शबीब का बयान है कि जब अब्बासीयो को मामून के इस इरादे की खबर मिली कि वो अपनी बेटी की शादी इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से करना चाहता है। ये सुन कर उनको ये खतरा लाहक़ हो गया कि हुकूमत बनी अब्बास के खान्दान से मुन्तकिल होना चाहती है। इस लिये वो सब मामून के पास गए उसकी मलामत की और ये क़सम दिलाई कि वो अपना इरादा बदल दे और कहने लगे उस अर्सा मे जो वाक़ेआत बनी अब्बास और अलवीयो के दर्मियान रूनुमा हुए हैं उससे तुम वाकिफ हो। तुम से पहले के खलीफा अलवीयो को शहर बदर किया करते थे। उन्हें ज़लील करते थे। जिस वक्त तुमने वलीअहदी का ओहदा रज़ा के सपुर्द किया। हमें उस वक्त भी तशवीश थी लेकिन खुदा ने वो मुशकिल हल कर दी। हम तुम्हें क़सम देते हैं अब दोबारा हमें रन्जीदा ना करो और ये रिशता न करो। अपनी बेटी की शादी बनी अब्बास के किसी नुमाया फर्द से कर दो।
मामून ने जवाब दियाः तुम्हारे और अलवीयो के दर्मियान जो हादसात पेश आए तुम ही उसका सबब थे। अगर इन्साफ से देखो वो तुम से ज़्यादा हक़्दार हैं। मेरे पहले के खलीफा ने जो रविश इख्तियार की थी। वो क़तए रहेम की थी। मैं इस तर्ज़ से खुदा की पनाह माँगता हूँ। रज़ा की वली अहदी के बारे में भी शर्मिन्दा नहीं हुं। मैने तो खिलाफत क़बूल करने की पेशकश की थी। लेकिन खुदा का करना ऐसा हुआ की उन्होंने कबूल नहीं फरमाया। अबु जाफर मौहम्मद बिन अली (इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के बारे मे इतना कहुंगा कि मैने उनको शादी के लिये इस लिये मुन्तखिब किया है कि इस कमसिनी मे भी तमाम उलामा और दानिश मंदो पर फौकीयत हासिल है। ये चीज़ गरचे ताज्जुब का सबब है। मगर ये हकीक़त जिस तरह मेरे लिये वाज़ेह हो गयी उम्मीद करता हुं कि दूसरों के लिये भी रौशन हो जाएगी ताकि उन्हें मालूम हो जाए कि मेरा इन्तेखाब कितना सही है।
खान्दान वालों ने कहाः ये नौजवान अगरचे तुम्हारे लिये बहुत ज़्यादा ताज्जुब खैज़ है। लेकिन अभी कमसिन है। उसने अभी इल्मो फन हासिल ही कहा किया है। सब्र करो ताकि ये कुछ सीख ले। इल्मो अदब से वाकिफ हो जाए। उस वक्त तुम अपने इरादे पर अमल करना।
मामून ने कहाः वाए हो तुम पर मैं इस नौजवान को तुम से बेहतर जानता हूं वो इस खान्दान से ताल्लुक रखता है। जहा इल्मे खुदा दाद है उन्हे सीखने की कोई ज़रूरत नहीं है उनके आबाओ अज्दाद इल्मो अदब मे हमेशा तमाम लोगो से मुस्तग़नी रहे हैं। अगर चाहते हो तो इम्तेहान कर लो जो कुछ मैने कहा है वो वाज़ेह हो जाएगा।
कहने लगे ये तो बड़ी अच्छी पेशकश है। हम उसे आज़माऐगे हम तुम्हारे सामने उससे एक फिक़ही मसअला दरयाफ्त करेंगे। अगर सही जवाब दे दिया तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं होगा और हम सब पर तुम्हारे इन्तेखाब की ज़रूरत वाज़ेह हो जाइगी और अगर जवाब न दे सका। तब भी हमारी मुशिकल आसान हो जाएगी और तुम्हे इस रिश्ते को तोड़ना होगा।
मामून ने कहा। जब चाहो इम्तेहान कर लो।
अब्बासीयो ने उस वक्त के क़ाज़ीउल क़ुज़्ज़ात नामीं गिरामी मशहूरे ज़माना क़ाज़ी याहिया बिन अक्सम की तरफ रुख किया और उससे बहुत ज़्यादा इनामों इक़राम का वादा किया। ताकि वो इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से एक मसअला पूछे। जिसका वो जवाब न दे सकें। याहिया ने ये बात क़बूल कर ली। ये सब लोग मामून के पास आए और कहा तुम ही कोई दिन मोइय्यन कर दो। मामून ने दिन मोइय्यन कर दिया। उस रोज़ हर एक वहा पहुंच गया मामून ने हुक्म दिया कि मजलिस के बालाई हिस्सा मे इमाम मौहम्मद तक़ी के लिये जगह बनायी जाए। इमाम तशरीफ लाए और मोअय्यन जगह बैठ गए। आपके सामने याहिया बिन अक़्सम ने जगह पायी। हर एक अपनी अपनी जगह बैठ गया मामून इमाम (अ.स) के पहलु में बैठ गया।
याहिया बिन अक़्सम ने मामून से कहाः मुझे इजाज़त है कि मैं अबुजाफर से एक सवाल करुं।
मामून ने कहाः खुद उनसे इजाज़त तलब करो।
याहिया ने इमाम की तरफ रुख करके कहाः आप पर फिदा हो जाऊं क्या मुझे एक सवाल करने की इजाज़त है।
इमाम ने फरमायाः अगर चाहते हो तो ज़रूर सवाल करो।
याहिया ने कहाः मै आप पर फिदा हो जाऊ जो शख्स ऐहराम की हालत मे शिकार करे उसका कया हुक्म है।
इमाम ने फरमायाः इस मसअले की मुख्तलिफ सूरतें हैं।
हरम मे शिकार किया था या हरम के बाहर।
उसको शिकार की हुर्मत का इल्म था या नहीं।
जान बूझ कर शिकार किया था या भूले से।
शिकार करने वाला ग़ुलाम था या आज़ाद।
कमसिन था या बालिग़।
पहली मर्तबा शिकार किया था या दूसरी मर्तबा।
शिकार परिंदा था या कोई और चीज़।
शिकार छोटा था या बड़ा। शिकार करने वाला अपने इस अमल पर नादिम था या दोबारा करने का इरादा रखता था।
शिकार दिन मे किया था या रात मे।
ऐहराम उमरा का था या हज का।
इमाम कि ये आलमाना वज़ाहत देख कर याहिया बिल्कुल हैरान रह गया। शिकस्त और आजेज़ी के आसार उसके चेहरे पर नुमाया हो गए। ज़बान लुक़नत करने लगी यहा तक की हर एक पर याहिया की हालत वाज़ेह हो गयी।
मामून ने कहाः मैं इस नेमत पर खुदा का शुक्र अदा करता हुं कि मेरा इन्तेखाब सही निकला अब्बासीयो की तरफ रुख करके कहने लगा। तुम लोग जिस चीज़ का इन्कार कर रहे थे। वो तुम्हे मालूम हो गयी।
इसी मजलिस मे मामून ने इमाम (अ.स) से अपनी बेटी की शादी की पेशकश की और इमाम (अ.स) से खुत्बा पढ़ने की दरख्वास्त की। इमाम (अ.स) ने कुबूल फरमाते हुए युं खुत्बे का आगाज़ किया।
खुदा की नेमतों का इक़रार करते हुए उस की हम्द करता हुं खुलूसे वहदानियत के लिये कलमए तौहीद लाइलाहा इल्ललाह का इक़रार करता हुं खुदा का दुरूद हो अशरफुल मखलूक़ात हज़रत मौहम्मद मुस्तुफा (स.अ.वा.व) पर और उनके मुन्तखिब रोज़गार अहलेबैत पर।
बेशक बंदो पर खुदा की एक नेमत ये है कि उसने हलाल के ज़रिये हराम से बे नियाज़ किया और शादी का हुक्म दिया इर्शाद हैः कि अपने कुवॉरों की शादी करो। सालेह ग़ुलामों और कनीज़ों के रिश्ते करो (फक्र और तंगदस्ती तुम्हे उस काम की अन्जाम दही से मत रोके) अगर वो फक़ीर होंगे तो खुदा उन्हे अपने फज़्ल से ग़नी करेगा। खुदा बंदों की रोज़ी में बरकत देने वाला और हर चीज़ का जानने वाला है।
उसके बाद इमाम (अ.स) ने जनाब फातिमा ज़हरा के महेर के मुताबिक 500 दिरहम महर करार देते हुए। अपनी मर्ज़ी ज़ाहिर कर दी लड़की की तरफ से खुद मामून ने अक़्द पढ़ा और इमाम ने खुद कुबूल फर्माया। मामून के हुक्म से हाज़रीन को कीमती तोहफे पेश किये गए। दस्तरख्वान लगाया गया और लोग खाना खाकर चले गए। सिर्फ मामून के क़रीबी और दरबारी रह गए। उस वक्त जो सूरतें आपने बयान फरमाई थीं। उनका जवाब मरहमत फर्माए। इमाम (अ.स) ने तफसील से हर एक का जवाब मर्हमत फर्माया। (ये जवाब मजलिस की किताबों मे मौजूद है)
जवाब सुन कर मामून ने इमाम की बहुत तारीफ की और ये तक़ाज़ा किया कि आप भी याहिया की तरफ रुख करके फरमायाः कया मै सवाल कर सकता हुं।
याहिया जो शिक्सत खा चुका था और इमाम की इलमियत से मरऊब हो गया था। कहने लगाः आप पर क़ुरबान हो जाऊं आप की मर्ज़ी है। अगर इल्म होगा तो जवाब दूंगा वरना खुद आपसे इस्तेफादा करुँगा।
इमाम ने फरमायाः एक मर्द ने सुब्ह को एक औरत पर निगाह की जबकि निगाह करना हराम था और जब सूरज निकल आया तो ये औरत इसके लिये हलाल हो गयी। ज़ोहर के वक्त फिर हराम हो गयी। जब अस्र का वक्त आया तो हलाल हो गयी। ग़ुरूबे आफताब के वक्त फिर हराम हो गयी। जब ईशा का वक्त आया तो हलाल हो गयी। निस्फे शब को फिर हराम हो गयी और जब सुब्ह हुई तो फिर हलाल हो गयी बताओ इसकी वजह क्या है। ये औरत बाज़ वक्त क्युं हराम हो जाती थी बाज़ वक्त क्युं हलाल हो जाती थी।
याहिया ने कहाः खुदा की क़सम मुझे इस का सबब नहीं मालूम। अगर आप बयान फर्माए तो मै इस्तेफादा करुंगा।
इमाम ने फर्मायाः वो औरत एक शख्स की कनीज़ थी एक नामहरम ने सुब्ह उस पर निगाह की। जबकि ये निगाह हराम थी। जब सूरज निकल आया तो उसने ये कनीज़ उसके मालिक से खरीद ली। उस वक्त उसके लिये हलाल हो गयी। ज़ोहर के वक्त उसने कनीज़ को आज़ाद कर दिया तो उस पर हराम हो गयी। अस्र के वक्त उसने उससे निकाह कर लिया। अब फिर उस पर हलाल हो गयी। ग़ुरूबे आफताब के वक्त उसने ज़ुहार(1) किया तो इस पर हराम हो गयी ईशा के वक्त उसने ज़ुहार का कफ्फारा दे दिया तो उस पर हलाल हो गयी।
मामून ने ताज्जुब से अपने खान्दान वालो को देखा और उनको मुखातिब करके कहाः तुममे ऐसा है कोई जो इस तरह इस मसअले का जवाब दे या पहले सवाल का जवाब जानता हो।
सब ने कहाः बाखुदा कोई नही है।
ये बात क़ाबिले तवज्जोह है कि मामून की तमाम ज़ाहिरदारी फरेबकारी , अय्यारी और मक्कारी इस रिश्ते के बारे मे सिर्फ इस लिये थीं कि शादी से उसका मक़सद सियासत के अलावा कुछ और न था और वो इस शादी से कई और मक़ासिद हासिल करना चाहता था।
(1) इमाम के घर मे अपनी बेटी भेज कर इमाम की नक्लो हरकत पर निगाह रखना चाहता था। (इस सिलसिले मे मामून की बेटी ने अपनी ज़िम्मेदारी को खूब निभाया। वो बराबर जासूसी किया करती थी। तारीख उस हक़ीक़त पर मुकम्मल गवाह है।
(2) इस रिश्ते से मामून का मक़सद एक ये भी था कि इस तरह इमाम (अ.स) को अपने ऐशो नूश मे शामिल करे और उन्हे अपने खेल कूद और अपने गुनाहों मे शरीक करे और इस तरह इमाम की अज़मतो बुज़ुर्गी को दाग़दार करे और इमामत की बुलंदो बाला मन्ज़ेलत को लोगो की निगाहों से गिरा दे।
(3) मौहम्मद बिन रयान का कहना है कि मामून इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) को जितना लहवो लअब की तरफ खेंचने की कोशिश करता था। उतनी ही उसे नाकामी होती थी। इमाम की शादी के मौके पर मामून ने एक सौ खूबसूरत कनीज़ों (जिन मे हर एक बेहतरीन लिबास मे मलबूस थी और हर एक के हाथ मे जवाहरात से लदा हुआ तश्त था) को इस बात पर आमादा किया कि जब इमाम (अ.स) तशरीफ लाए तो ये कनीज़े उन का इस्तकबाल करें। कनीज़ो ने मामून की हिदायत पर अमल किया। लेकिन इमाम (अ.स) ने उन की तरफ रुख ही नहीं किया और अमल से बता दिया कि हम इन चीज़ों से बहुत दूर हैं।
(4) इसी जश्न मे एक गाना गाने वाले को गाने बजाने के लिये बुलाया गया था। जैसे ही उसने गाना बजाना शुरु किया। इमाम (अ.स) ने बुलंद आवाज़ मे फर्मायाः खुदा से ड़रो।
इमाम के इस जुम्ले से वो इतना ज़्यादा मरऊब हुआ कि संगीत का आला उसके हाथ से गिर गया और जब तक ज़िंदा रहा फिर कभी गाबजा न सका।
5. जैसा कि हम ज़िक्र कर चुके हैं कि इस रिश्ते से मामून का एक मक़सद ये भी था कि वो अलवीयो को उनके क़यामो इन्केलाब से रोक सके और अपने को खान्दाने अहलेबैत का दोस्त और चाहने वाला ज़ाहिर कर सके।
6. अवाम फरेबीः मामून बसा औक़ात कहा करता था कि मैने ये रिश्ता इस लिये किया है ताकि इमाम की नस्ल से मेरा एक नवासा हो और मै पैग़म्बर (स.अ.व.व) और अली (अ.स) के खान्दान की एक फर्द का नाना कहलाऊ।
लेकिन खुशकिस्मती से मामून की ये आरज़ू पूरी ना हुई क्योंकि मामून की बेटी
के कोई औलाद नहीं हुई। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की तमाम औलाद जनाब इमाम अली तक़ी (अ.स) , मूसा मबरका , हुसैन , इमरान , फातिमा , खदीजा , उम्मे कुलसूम हकीमा। ये सब औलादें इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की दूसरी ज़ौजा से हैं। जिन का नाम समाना मग़रबिया था।
इन तमाम बातों के अलावा मामून ने सिर्फ सियासी मक़ासिद के लिये इस रिश्ते पर इतना ज़ोर दिया था ये रिश्ता गरचे दुनियावी आसाईशो से भरपूर था , लेकिन इमाम (अ.स) अपने आबाओ अजदाद की तरह दुनिया की रंगीनियों से बिल्कुल बेज़ार थे। बल्कि मामून के साथ ज़िन्दगी बसर करना इमाम के लिये सख्त नागवार था।
हुसैन मकारी का बयान है कि बग़दाद मे इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुआ। जब मैने इमाम का रहन सहन देखा तो मेरे ज़हन मे ये ख्याल आया कि इतनी आसाईशों के होते हुए इमाम मदीना वापस नहीं जाएगे। इमाम (अ.स) ने थोड़ी देर के लिये सर को झुकाया और जब सर उठाया तो आपका चेहरा रंजो ग़म से ज़र्द हो रहा था। आप (अ.स) ने फर्मायाः
ऐ हुसैन रसूले खुदा (स.अ.व.व) के हरम मे जौ की रोटी और नमक मुझे इस ज़िन्दगी से कहीं ज़्यादा पसंद है।
शहादते इमाम (अ.स)
218 हिजरी मे मामून को मौत अपने साथ ले गयी। उसके बाद मामून का भाई मोतसिम उसका जानशीन हुआ। 220 हिजरी मे मोतसिम ने इमाम को बग़दाद बुलाया ताकि नज़्दीक से आप पर नज़र रख सके। हम गुज़िश्ता सफहात मे चोर का हाथ काटे जाने का वाक़ेआ नक्ल कर चुके हैं कि इस मौके पर इमाम को भी शरीक किया गया था और उस वक्त क़ाज़ी बग़दाद इब्ने अबी दाऊद और दूसरों को क्या शर्मिन्दगी करना पड़ी थी। वाकेए के चन्द रोज़ बाद इब्ने अबी दाऊद कीना व हसद से भरा हुआ मोतसिम के पास पहुँचा और कहाः
तुम्हारी भलाई के लिये एक बात कहना चाहता हुं कि चन्द रोज़ पहले जो वाकेआ पेश आया है वो तुम्हारी हुकूमत के हक़ मे नहीं है। क्योंकि तुमने भरी बज़्म मे जिसमे कि बड़े बड़े उलामा और मुल्क की आला शख्सियतें मौजूद थीं , अबु जाफर (इमाम मौहम्मद तक़ी अ.स) के फतवे को हर एक के फतवे पर फौकियत दी। तुम्हे मालूम होना चाहिए कि मुल्क के आधे अवामी लोग उन्हे खिलाफत का सही हक़दार और तुम्हे ग़ासिब समझते हैं। ये खबर अवाम मे फैल गयी और शियों को एक मज़बूत दलील मिल गयी है।
मोतसिम , जिसमे दुश्मनीये इमाम के तमाम जरासीम मौजूद थे। ये सुन कर भ़ड़क उठा और इमाम (अ.स) के कत्ल का दरपे हो गया। आखिरकार उसने अपने इरादे को मुकम्मल कर दिखाया। ज़ीक़ाद की आखरी तारीख थी कि उसने इमाम (अ.स) को ज़हर दे कर शहीद कर दिया।
आपका जसदे अतहर आपके जद बुज़ुर्गवार हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.स) के पहलू मे बग़दाद में दफ्न किया गया।
दुरूद हो उन पर और उनके तय्यबो ताहिर आबाओ अजदाद पर। उन दोनो इमामों का रौज़ा आज भी काज़मैन मे मौजूद है और मुद्दतों से चाहने वालों की ज़ियारत गाह है।
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के शागिर्द
पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की तरह हमारे आइम्मा अलैहिमुस्सलाम भी लोगों की तालीमो तर्बियत मे हमेशा कोशीश करते रहते थे। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम का तरीकाऐ तालीम और तरबियत को तालीमी और तरबियती इदारो की सरगर्मियों पर क्यास नहीं किया जा सकता है। तालीमी इदारे खास औक़ात में तालीम देते हैं और बकीया औकात मोअत्तल रहते हैं। लेकिन आइम्मा अलैहेमुस्सलाम की तालीमो तरबियत के लिये कोई खास वक्त मोअय्यन नहीं था। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम लोगों की तालीमो तरबियत मे मसरूफ रहते थे। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम का हर गोशा , उन की रफ्तारो गुफ्तार , अवाम की तर्बियत का बेहतरीन ज़रिया था। जब भी कोई मुलाक़ात का शरफ हासिल करता था। वो आइम्मा के किरदार से फायदा हासिल करता था और मजलिस से कुछ न कुछ ले कर उठता था। अगर कोई सवाल करना चाहता था तो उसका जवाब दिया जाता था।
वाज़ेह रहे कि इस तरह का कोई मदरसा दुनिया मे कहीं मौजूद नहीं है। इस तरह का मदरसा तो सिर्फ अम्बिया अलैहेमुस्सलाम की ज़िन्दगी मे मिलता है ज़ाहिर सी बात है कि इस तरह के मदरसे के असारात फायदे और नताएज बहुत ज़्यादा ताज्जुब खैज़ हैं। बनी अब्बास के खलीफा ये जानते थे कि अगर अवाम को इस मदरसा की खुसूसियात का इल्म हो गया और वो उस तरफ मुतावज्जेह हो गए तो वो खुद-बखुद आइम्मा अलैहिमुस्सलाम की तरफ खिंचते चले जाएगे और इस सूरत मे ग़ासिबों की हुकूमत खतरो से दो-चार हो जाएगी। इस लिये खलीफा हमेशा ये कोशिश करते रहे कि अवाम को आइम्मा अलैहेमुस्सलाम को दूर रखा जाए और उन्हे नज़्दीक न होने दिया जाए। सिर्फ इमाम मौहम्मद बाक़िर (अ.स) के ज़माने मे जब उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की हुकूमत थी और इमाम जाफर सादिक़ (अ.स) के इब्तेदाई दौर में जब बनी उमय्या और बनी अब्बास आपस मे लड़ रहे थे और बनी अब्बास ने ताज़ा ताज़ा हुकूमत हासिल की थी और हुकूमत मुस्तहकम नहीं हुई थी। उस वक्त अवाम को इतना मौका मिल गया कि वो आज़ादी से अहलेबैत से इस्तेफादा कर सकें। लेहाज़ा हम देखते हैं कि इस मुख्तसर सी मुद्दत में शागिर्दों और रावियों की तादाद चार हज़ार तक पहुंच गयी।
लेकिन इसके अलावा बक़िया आइम्मा के ज़मानो मे शागिर्दों की तादाद बहुत कम नज़र आती है। मसलन इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के शागिर्दों और रावियों की तादाद 110 है।
इससे ये पता चलता है कि इस दौर मे अवाम को इमाम (अ.स) से कितना दूर रखा जाता था। लेकिन इस मुख्तसर सी तादाद में भी नुमाया अफराद नज़र आते हैं। यहा नमूने के तौर पर चन्द का ज़िक्र करते हैः
अली बिन महज़ियार
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के असहाबे खास और इमाम के वकील थे। आप का शुमार इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम अली नक़ी (अ.स) के असहाब मे भी होता है। बहुत ज़्यादा इबादत करते थे , सजदे की बना पर पूरी पेशानी पर घट्टे पड़ गए थे। तोलूवे आफताब के वक्त सर सजदे मे रखते और जब तक एक हज़ार मोमिनो के लिये दुआ न कर लेते थे। उस वक्त तक सर ना उठाते थे। और जो दुआ अपने लिये करते थे वही उन के लिये भी।
अली बिन महज़ियार अहवाज़ मे रहते थे , आप ने 30 से ज़्यादा किताबें लिखी हैं।
ईमानो अमल के उस बुलन्द मर्तबे पर फाएज़ थे कि एक मर्तबा इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने आप की कद्रदानी करते हुए आप को एक खत लिखाः
बिसमिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
ऐ अली। खुदा तुम्हे बेहतरीन अज्र अता फर्माए , बहिश्त मे तुम्हे जगह दे दुनियाओ आखेरत की रुसवाई से महफूज़ रखे और आखेरत मे हमारे साथ तुम्हे महशूर करे। ऐ अली। मैंने तुम्हे उमूर खैर , इताअत , एहतराम और वाजेबात की अदाएगी के सिलसिले मे आज़माया है। मैं ये कहने मे हक़ बजानिब हुं कि तुम्हारा जैसा कहीं नहीं पाया। खुदा वंदे आलम बहिश्ते फिरदोस मे तुम्हारा अज्र करार दे। मुझे मालूम है कि तुम गर्मियों , सर्दियों और दिन रात क्या क्या खिदमत अन्जाम देते हो। खुदा से दुआ करता हूं कि जब रोज़े कयामत सब लोग जमा होंगे उस वक्त रहमते खास तुम्हारे शामिले हाल करे। इस तरह कि दूसरे तुम्हे देख कर रश्क करें। बेशक वो दुआओ का सुनने वाला है।
अहमद बिन मौहम्मद अबी नस्र बरनती
कूफे के रहने वाले इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के असहाबे खास और उन दोनो इमामो के नज़्दीक अज़ीम मन्ज़ेलत रखते थे , आपने बहुत-सी किताबें तहरीर की। जिनमे एक किताब अल जामेआ है। ओलामा के नज़्दीक आपकी फिक्ही बसीरत मशहूर है। फोक़्हा आप के नज़रयात को एहतरामो इज़्ज़त की निगाह से देखते हैं।
आप उन तीन आदमियों मे हैं जो इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे शरफयाब हुए और इमाम ने उन लोगो को खास इज़्ज़तो एहतराम से नवाज़ा।
ज़करया बिन आदम कुम्मी
शहरे क़ुम मे आज भी उनका मज़ार मौजूद है। इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के खास असहाब मे से थे। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने आपके लिये दुआ फर्मायी। आपको इमाम (अ.स) के बावफा असहाब मे शुमार किया जाता है।
एक मर्तबा इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुए। सुब्ह तक इमाम ने बातें की। एक शख्स ने इमाम रज़ा (अ.स) से दर्याफ्त कियाः मैं दूर रहता हूं और हर वक्त आपकी खिदमत मे हाज़िर नहीं हो सकता हूं। मैं अपने दीनी एहकाम किससे दर्याफ्त करुं।
फर्मायाः ज़कर्या बिन आदम से अपने दीनी अहकाम हासिल करो। वो दीनो दुनिया के मामले मे अमीन है।
मौहम्मद बिन इस्माईल बिन बज़ी
इमाम मूसा काज़िम , इमाम रज़ा और इमाम मौहम्मद तक़ी अलैहिमुस्सलाम के असहाब मे ओलामा शिया के नज़्दीक मोअर्रिद एतमाद ,बुलंद किरदार और इबादत गुज़ार थे। मोतदिद किताबें तहरीर की हैं। बनी अब्बास के दरबार मे काम करते थे।
इस सिलसिले मे इमाम रज़ा (अ.स) ने आपसे फर्मायाः
सितमगारों के दरबार मे खुदा ने ऐसे बंदे मुअय्यन किये हैं। जिन के ज़रीये वो अपनी दलील और हुज्जत को ज़ाहिर करता है। उन्हे शहरों मे ताकत अता करता है ताकि उनके ज़रीये अपने दोस्तो को सितमगारों के ज़ुल्मो जौर से महफूज़ रखे। मुसलमानो के मामलात की इस्लाह हो। ऐसे लोग हवादिस और खतरात मे साहेबाने ईमान की पनाहगाह हैं। हमारे परेशान हाल शिया उन की तरफ रुख करते हैं और अपनी मुश्किलात का हल उन से तलब करते हैं। ऐसे अफराद के ज़रिये खुदा मोमिनो को खौफ से महफूज़ रखता है। ये लोग हक़ीकी मोमिन हैं। ज़मीन पर खुदा के अमीन हैं। उन के नूर से क़यामत नूरानी होगी। खुदा की क़सम ये बहिश्त के लिये और बहिश्त इन के लिये है। नेमतें इन्हें मुबारक हों।
उस वक्त इमाम (अ.स) ने फर्मायाः तुममे से जो चाहे इन मक़ामात को हासिल कर सकता है।
मौहम्मद बिन इस्माईल ने अर्ज़ किया। आप पर क़ुर्बान हो जाऊ। किस तरह हासिल कर सकता हूं।
इमाम ने फर्मायाः सितमगारों के साथ रहे। हमें खुश करने के लिये हमारे शियों को खुश करे। (यानी जिस ओहदा और मनसब पर हो। उस का मकसद मोमिनो से ज़ुल्मो सितम दूर करना हो।)
मौहम्मद बिन इस्माईल ,जो बनी अब्बास के दरबार मे वज़ारत के ओहदे पर फाएज़ थे। इमाम ने आखिर में उन से फर्मायाः ऐ मौहम्मद। तुम भी इन मे शामिल हो जाओ।
हुसैन बिन खालिद का बयान है कि एक गिरोह के हमराह इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुआ। दौरान गुफ्तगू मौहम्मद बिन इस्माईल का ज़िक्र आया। इमाम (अ.स) ने फर्मायाः मैं चाहता हूं कि तुममे ऐसे अफराद हों।
मौहम्मद बिन अहमद याहिया का बयान है कि मैं , मौहम्मद बिन अली बिन बिलाल , के हमराह मौहम्मद बिन इस्माईल बज़ी की कब्र की ज़ियारत को गया।मौहम्मद बिन अली कब्र के किनारे क़िबला रुख बैठे और फर्माया कि साहिबे क़ब्र ने मुझ से बयान किया कि इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने फर्मायाः जो शख्स अपने बरादर मोमिन की क़ब्र की ज़ियारत को जाए , क़िबला रुख बैठे और क़ब्र पर हाथ रख कर 7 मर्तबा सूरह इन्ना अन्ज़लना की तेलावत करे , खुदा वंदे आलम उसे क़यामत की परेशानियों और मुशकलात से नजात देगा।
मौहम्मद बिन इस्माईल की रिवायत है कि मैने इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से एक लिबास की दरख्वास्त की कि अपना एक लिबास मुझे इनायत फर्माए ताकि उसे अपना कफन करार दूं। इमाम ने लिबास मुझे अता फर्माया और फर्मायाः इस के बटन निकाल लो।
अक़वाले इमाम तक़ी (अ.स)
आइम्मा मासूमीन अलैहेमुस्सलाम के अक़वाल आफताबे इल्म की शुआए हैं जो बंदगाने खुदा के लिये हिदायत और मशअले राह हैं। क्योंकि ये अफराद हर तरह की खता और लग़ज़िश से पाको पाकीज़ा हैं। उन की हिदायतें सिर्फ एक पहलू को लिये हुए नहीं हैं। बल्कि ज़िन्दगी के तमाम पहलूओं को लिये हुए हैं। उन का ताल्लुक किसी खास फिर्के से भी नहीं है। बल्कि हर फिर्के व तबके के लिये हैं। तमाम इन्सानो को कमाले मुतलक की तरफ हिदायत करते हैं। फितरत और ज़मीर के हर मर्हले मे इन्सान को बेदारी अता करते हैं।
हम यहाँ नवें इमाम हज़रत इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के चन्द अक़्वाल , बिरादराने अहले सुन्नत की किताबों से नकल करते हैं। इस उम्मीद के साथ कि हम इससे इस्तेफादा कर सकें और इन अक़वाल को अपनी ज़िन्दगी के लिये राहनुमा करार दे सकें।
1. जो शख्स खुदा पर भरोसा रखता है लोग अपनी हाजतें उससे तलब करते हैं और जो खुदा से ड़रता है लोग उस्से मोहब्बत करते हैं।
2. इन्सान का कमाल अक़्ल मे है।
3. कमाले मुरव्वत ये है कि इन्सान लोगो से इस तरह पेश न आए जिसे वो अपने बारे मे नापसंद करता है।
4. जिस काम का वक्त ना आया हो उसे अन्जाम न दो , वरना शर्मिन्दा होगे ,लम्बी चौड़ी आर्ज़ुए ना करो कि ये कसावत कल्ब का सबब है ,कम्ज़ोरों पर रहेम करो ,उन पर रहेम करके रहमते खुदा के तलबगार रहो।
5. जो बुरे फेल को अच्छा समझता है वो इस फेल मे शरीक है।
6. ज़ुल्म करने वाला , उसकी मदद करने वाला और ज़ुल्म पर राज़ी रहने वाला सब ज़ुल्म मे बराबर के शरीक हैं।
7. जो शख्स अपने बरादर मोमिन को मखफी तौर पर नसीहत करे उसने उसको ज़ीनत दी और जो बरादर मोमिन को भरी बज़्म मे नसीहत करे उसने उसकी समाजी हैसियत को दाग़दार किया।
8. दिल से खुदा की तरफ मुतवज्जेह होना आज़ाव जवारेह को आमाल पर आमादा करने से ज़्यादा मोवस्सिर है। ,,
9. अदलो इन्साफ का दिन ज़ालिम के लिये उस दिन से सख्त होगा जिस दिन मज़लूम पर ज़ुल्म हुआ था।
10. क़यामत के दिन मुसलिम के नामए आमाल का उन्वान हुस्ने खल्क होगा।
11. तीन चीज़ें इन्सान को खुशनूदिये खुदा के नज़्दीक कर देती हैः
(1)कसरत से अस्तग़फार करना (2) लोगों से नर्मीं से पेश आना (3) ज़्यादा सदका देना।
तीन सिफातें जिस शख्स मे हों वो कभी शर्मिन्दा ना होगाः
(1) जल्दबाज़ ना हो (2) अपने कामो मे मशविरा करता हो (3) (मशविरा करने के बाद) जब किसी काम का इरादा करले तो खुदा पर भरोसा करे।
12. जो किसी गुनहगार को उम्मीद दिलाए उसकी कमतरीन सज़ा महरूमियत है।
13. जो खुदा के अलावा किसी और से उम्मीद लगाए खुदा उस को उसी पर छोड़ देता है और जो बग़ैर इल्म के अमल करे वो सलाह से ज़्यादा फसाद फैलाता है।
14. नेको कारों को नेकी की ज़रूरत , ज़रूरत मंदों से ज़्यादा है क्योंकि नेकी करने से उन्हे अज्रो सवाब और इज़्ज़तो शोहरत हासिल होती है लेहाज़ा जब कोई नेकी करता है तो सब से पहले खुद अपने हक़ मे नेकी करता है। ,,
15. इफ्फत ग़ुरबत की ज़ीनत है। शुक्र इस्तग़ना की ज़ीनत है। सब्र बला की ज़ीनत है। इन्केसारी बुज़ुर्गी की ज़ीनत है। फसाहत कलाम की ज़ीनत है। हाफिज़ा रिवायत की ज़ीनत है। तवाज़ो इल्म की ज़ीनत है। अदब अक्ल की ज़ीनत है। हुज़ूरे कल्ब नमाज़ की ज़ीनत है। बेफायदा बातों से किनारा कशी तक़्वा की ज़ीनत है।
16. जो शख्स खुदा पर एतमाद करे और खुदा पर भरोसा करे खुदा उसे हर बदी से नजात देगा और हर दुशमन से उसकी हिफाज़त करेगा। ,
17. दीन इज़्ज़त का सबब है। इल्म खज़ाना है। खामोशी नूर है। बिदअत से ज़्यादा किसी चीज़ ने दीन को बरबाद नही किया। लालच से ज़्यादा किसी चीज़ ने इन्सान को बरबाद नहीं किया। सालेह रहनुमा से कौम की इस्लाह होती है। दुआऐ बला को रद्द करती हैं।
18. मुसीबत पर सब्र करना दुशमन के लिये खुद एक मुसीबत है। ,
19. जिसका खुदा सरपरस्त हो वो कैसे तबाह हो सकता है। जिसका खुदा तलबगार हो वो कैसे फरार हो सकता है।
20. एक शख्स ने हज़रत से दरख्वास्त की कि एक मुखतसर मगर जामेआ नसीहत फर्माए।
हज़रत ने फर्मायाः ऐसे कामों से दूर रहो जो दुनिया मे ज़िल्लत और आखेरत मे आतिशे जहन्नम का सबब हों।
खुदाया हमें तौफीक़ दे कि हम आईम्मए मासूमीन के बताए हुए रास्ते पर चल सकें और उन्की खुशनूदी हासिल कर सकें। आमीन।
खुदाया तूही बेहतरीन तौफीक़ देने वाला और बेहतरीन नुसरत करने वाला है। हम तुझ ही पर भरोसा करते हैं और तुझही से नेकियों के तलबगार है।
आमीन।
[[अलहम्दो लिल्लाह ये किताबः अबुजाफर इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) जो कि किताबः रहबराने मासूम का एक हिस्सा है , हिन्दी मे पूरी टाईप हो गई। खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क) के लिऐ हिन्दी मे टाइप कराया। ]]
सैय्यद मौहम्मद उवेस नक़वी