अमीरुल मोमिनीन (अ) की इमामत बुद्धि के पैमाने में

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अमीरुल मोमिनीन (अ) की इमामत बुद्धि के पैमाने में लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: इमामत

अमीरुल मोमिनीन (अ) की इमामत बुद्धि के पैमाने में

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी मीलानी
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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अमीरुल मोमिनीन (अ) की इमामत बुद्धि के पैमाने में

अमीरुल मोमिनीन (अ) की इमामत बुद्धि के पैमाने में

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अमीरुल मोमिनीन (अ) की इमामत बुद्धि के पैमाने में

लेखक: आयतुल्लाह सैयद अली हुसैनी मीलानी (दामत बरकातुहु)

अनुवादक: सैयद एजाज़ हुसैन मूसवी

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

प्राक्कथन

.... ईश्वर का अंतिम व सम्पूर्ण धर्म , आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के भेजे जाने बाद संसार वासियों के लिये पेश किया गया और ईश्वर का विधान व दूतों के आने और संदेश पहुचाने का सिलसिला आपकी नबूवत के साथ ही हमेशा के लिये बंद हो गया।

इस्लाम धर्म मक्का शहर में फला फूला और ईश्वर के संदेश वाहक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और उनके कुछ वफ़ादार साथियों की तेइस वर्षों की कड़ी मेहनत और अंथक प्रयत्नों के साथ पूरे अरब जगत में फैल गया।

ईश्वर के इस पथ को आगे बढ़ाने के लिये ज़िल हिज्जा की अठ्ठारह तारीख़ को , ग़दीरे ख़ुम के मैदान में मुसलमानों की आम सभा में ईश्वर के संदेशानुसार , उसके दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने इस्लाम पर सबसे पहले ईमान लाने वाले हज़रत अली अलैहिस सलाम के हवाले किया गया।

उस दिन हज़रत अली अलैहिस सलाम की इमामत के ऐलान व उत्तराधिकारी बनाये जाने के साथ ही ईश्वर की उसके भक्तों पर नेमत तमाम और धर्म सम्पूर्ण हो गया और इस्लाम धर्म को ईश्वर ने अपना पसंदीदा घर्म घोषित कर दिया। जिसके कारण काफ़िर व मुशरिक इस्लाम धर्म के मिट जाने से मायूस हो गये।

अभी ज़्यादा समय नही गुज़रा था कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के आसपास रहने वालों में से कुछ लोगों ने पहले से किये गये प्लान व साज़िश के तहत उनकी वफ़ात के बाद , मार्गदर्शन व हिदायत के रास्ते से मुंह मोड़ लिया , इल्म के शहर के दरवाज़े को बंद करके , मुसलमानों को दर दर भटकने के लिए छोड़ दिया। उन लोगों ने अपनी हुकूमत के पहले ही दिन से पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की हदीसों को लिखने से मना कर के , हदीसें गढ़ कर , और शैतानी शंकाएं उत्पन्न करके , उन इस्लामी वास्तविकताओं को , जो चमकते हुए सूरज की तरह चमक रही थीं , उन्हे शक व शंका के काले बादलों के पीछे छुपा दिया गया।

स्पष्ट है कि सारी साज़िशों के बावजूद इस्लामी वास्तविकताएं व पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की अमुल्य हदीसें उनके उत्तराधिकारी हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम और उनके बाद उनके उत्तराधिकारियों अइम्मा ए मासूमीन अलैहिमुस सलाम और नबी (स) के वफ़ादार साथियों और सहाबियों के ज़रिये इतिहास में बाक़ी रह गई और हर ज़माने में किसी न किसी सूरत में प्रकट होती रहीं। उन हज़रात ने इस्लामी मुआरिफ़ को सही तौर पर बयान करके , दो दिली मुनाफ़ेक़त , शैतानी बहकावों और इस्लाम विरोधियों का जवाब देकर हक़ीक़त को सबके सामने पेश कर दिया।

इस राह में कुछ नूरानी चेहरा लोग जिन में शैख़ मुफ़ीद , सैयद मुर्तज़ा , शैख़ तूसी , ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी , अल्लामा हिल्ली , क़ाज़ी नूरूल्लाह शूसतरी , मीर हामिद हुसैन हिन्दी , सैयद शरफ़ुद्दीन आमुली , अल्लामा अमीनी आदि के नाम सितारों की तरह चमकते हैं। इस लिये कि इन लोगों ने इस्लामी व शिया समुदाय की वास्तविकता की रक्षा की राह में अपनी ज़बान और क़लम के साथ उस पर शोध किया और उन पर होने वाले ऐतेराज़ों व आपत्तियों का उत्तर दिया।

हमारे ज़माने में भी एक बुद्धिजीवि व विचारक जिन्होने अपने सरल क़लम और अच्छे बयान के साथ पवित्र धर्म इस्लाम की वास्तविकता का वर्णन किया है और हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की इमामत व विलायत की रक्षा आलिमाना अंदाज़ से की है और वह महान अनुसंधानकर्ता हज़रत आयतुल्लाह सैयद अली हुसैनी मीलानी हैं।

इस्लामी वास्तविकता केन्द्र को इस बात पर गर्व है कि उसने इस महान शोधकर्ता के क़ीमती आसार को अपने प्रोग्राम का हिस्सा बनाया ताकि और उनकी किताबों को शोध , अनुवाद व प्रसार के साथ छात्रों , पढ़े लिखे लोगों और इस्लामी वास्तविकता के बारे में जानने वालों के हाथों तक पहुचाया जा सके।

यह जो किताब आप के हाथ में है वह इन ही लेखक की एक किताब का हिन्दी अनुवाद है ताकि हिन्दी भाषी लोग इसके अध्धयन से इस्लामी वास्तविकता को जान सकें।

हमे आशा है कि हमारी यह किताब इमामे ज़माना हज़रत बक़ीय्यतुल्लाहिल आज़म (अज्जल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़) की प्रसन्नता और पसंद का कारण बनेगी।

इस्लामी वास्तविकता केन्द्र

प्रस्तावना

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल अलमीन वस सलातो वस सलामो अला सैय्यदना मुहम्मदिन व आलिहित ताहेरीनल मासूमीन व लानतुल्लाहि अला आदाइहिम अजमईन मिनल अव्वलीना वल आख़िरीन।

ख़ुदा वंदे आलम ने पवित्र क़ुरआन में इरशाद फ़रमाया है:

क्या जो सत्य की तरफ़ मार्गदर्शन करता है वह पैरवी के लिये श्रेष्ठ है या वह जो पथभ्रष्ट है जिसे ख़ुद मार्ग दिखाने की आवश्यकता है ? तुम्हे क्या हो गया है ? तुम कैसे फ़ैसला करते हो ?

हक़ का शब्द अरबी भाषा में मज़बूत और दृढ़ता के अर्थ में प्रयोग होता है। आयत के इस भाग का तात्पर्य (क्या वह हक़ का मार्गदर्शन करता है) है कि क्या वह जो तुम्हे क़तई व यक़ीनी मज़बूत कामों की तरफ़ मार्ग दर्शन करता है और हक़ीक़त व वास्तविकता की तरफ़ हिदायत करता है वह पैरवी करने के लिये श्रेष्ठ है या वह जो मार्ग दर्शन नही कर सकता मगर यह कि उसका मार्ग दर्शन किया जाये ?

ख़ुदा वंदे आलम ने इस आयत में हमें एक बुनियादी उसूल का मार्ग दिखाया है , ऐसे उसूल की तरफ़ जिसे सारे मुसलमान व ग़ैर मुसलमान स्वीकार करते हैं वह यह है कि अगर कोई समूह किसी वास्तविकता तक पहुचना चाहता है या अगर वह चाहता है कि संसार की वास्तविकताएं उसके सामने स्पष्ठ व ज़ाहिर हो जायें तो वह ऐसे मनुष्ट के पास जायेगा जो इस संसार की सारी वास्तविकताओं की जानकारी रखता हो तभी तो वह दूसरो के लिये बयान कर सकता है लेकिन अगर किसी को इन वास्तविकताओं की जानकारी नही है तो फिर वह कैसे दूसरों को उसके बारे में जानकारी दे सकता है या उसे बता सकता है ?।

अत: मुनष्य को चाहिये कि वह कुछ वास्तविकताओं व हक़ीक़तों के बारे में ज्ञान की सीमा तक पहुच जाये और केवल गुमान को पर्याप्त न समझे , बल्कि उनके बारे में केवल दूसरों को दृष्टिकोणों तक ख़ुद को सीमित न करे बल्कि उस के लिये आवश्यक है कि वह ख़ुद उनका यक़ीन हासिल करे।

यही कारण है कि शिया व सुन्नी धर्म गुरुओं ने फ़तवा दिया है कि ऐतेक़ादात और उसूले दीन (धर्म के मूल सिद्धात) के सिलसिले में ख़ुद इंसान के लिये वाजिब है कि वह यक़ीन प्राप्त करे और गुमान करने व दूसरों के बताने से यक़ीन तक पहुच जाना काफ़ी नही है। पवित्र क़ुरआन में ईश्वर का इरशाद है:

निसंदेह ख़्याल इंसान को वास्तविकता से बेनियाज़ नही करता और उसे हक़ तक नही पहुचाता।

यह एक अक़्ली उसूल व सिद्धात हैं जिसे सारे लोग स्वीकार करते हैं और पवित्र क़ुरआन ने भी इसके बारे में वर्णन किया है और हमारा उसकी तरफ़ मार्गदर्शन किया है। अब अगर हमें किसी विषय के बारे में दो लोगों में से किसी एक को प्रश्न करने के लिये चुनाव करना हो जिन में से एक ज़्यादा पढ़ा लिखा व समझदार हो और दूसरों का सही अक़ीदे और उसकी हक़ीक़त व वास्तविकता की स्पष्टता की ओर मार्गदर्शन कर सकता हो जबकि दूसरा ऐसा हो जिसे ख़ुद मार्गदर्शन की आवश्यकता हो वह चाहता हो कि कोई ऐसा हो जो उसे सही मार्ग दिखा सके उसका हाथ पकड़ सके ता कि वह पथभ्रष्ट न हा जाये। तो आप उन दोनों में से किसे अपने मार्गदर्शन के लिये चुनेंगे ?। अगर हमें हक़ीक़त तक पहुचना है , हम चाहते है कि वास्तविकता हमारे लिये स्पष्ट व साफ़ हो जाये तो हम उन दोनों में से किस के पास जायेंगे ?। क्या हम अपने अक़ीदे को सही करने के लिये किसी ऐसे के पास जाने के लिये तैयार हो जायेंगे जिसे ख़ुद हिदायत व सीखने की आवश्यकता हो ?।

हमारा मानना है कि इमामत व ख़िलाफ़त उन कार्यों में से है जिसे चुनने का अधिकार ईश्वर के पास है और जनता के चुनाव का इस महत्वपूर्ण कार्य से कोई संबंध नही है और जैसा कि नबूवत ऐसा पद है जिसका अधिकार ईश्वर के पास है ठीक उसी तरह से इमामत व ख़िलाफ़त भी है इस दृष्टि से इमामत व नबूवत में कोई अंतर नही है।

अत: इमाम की पहचान के लिये हमें पक्के सबूत और स्पष्ट व साफ़ दलीलों की आवश्यकता होगी जो हमें यह बता सके कि जनता का नेता व मार्गदर्शक यह इंसान है , इसलिये कि वह ख़ुद मार्गदर्शन प्राप्त कर चुका है और मार्गदर्शन कर सकता है।

इसी तरह से अगर किसी एक या कई इंसानों के मासूम व निष्पाप होने के सिलसिले में दलील पेश की जाये , तो इस बात के ध्यान में रखते हुए कि उसके अंदर निष्पाप होने की विशेषता पाई जाती है तो हमारी बुद्धि हमें आज्ञा नही देती है कि किसी ऐसे इँसान को छोड़ कर हम किसी और के पास जायें और उससे मार्गदर्शन चाहें। इसी कारणवश कहा गया है कि इमामत व ख़िलाफ़त का या किसी पक्के सबूत से या अक़्ली दलील से साबित किया जाना चाहिये और वह पक्का सबूत व दलील या पवित्र क़ुरआन हो सकता है या फिर क़तई सुन्नत।

अंतिम शाब्दिक दलील जो इस बारे में बयान की गई है वह हदीसे मंज़िलत है जो तीन ऐतेबार से अमीरुल मोमनीन अली अलैहिस सलाम के इमाम व ख़लीफ़ा होने को साबित करती है। यह हदीस आपकी इमामत व ख़िलाफ़त की क़तई सनद होने के साथ साथ , आपके मासूम व निष्पाप होने पर भी स्पष्ट व साफ़ दलील है और ईशदूत (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम) के समस्त सहाबियों पर आपकी श्रेष्ठता को साबित करती है।

यह किताब जो आपकी नज़रों के सामने है इस में अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम की इमामत के मसले को अक़्ली ऐतेबार व अक़्ली दलीलों से साबित किया गया है। यह लेख दो भागों पर आधारित है:

1. इमाम की विशेषताएं

2. अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम की विशेषताएं

सैयद अली हुसैनी मीलानी