मुल्ला अब्बास के पत्रों से तर्बरुक हासिल करना
वह जब भी किसी शख़्सियत को ख़त लिखते थे तो वह उनके ख़तों पर अमल करते थे। अपने नाम से पहले (अलअहक़र (नाचीज़)) जैसे अल्फ़ाज़ नहीं लिखते थे , वह कागज़ के तमाम सफ़हे को पूरा लिखते थे जबकि वह विज़ीटिन्ग कार्ड के बराबर होता था , वह उसके किसी भी हिस्से को सफेद नहीं छोड़ते थे , क्योंकि उसको इसराफ़ (फ़ुज़ुलख़र्ची) समझते थे , वह उस कागज़ को बगैर लिफ़ाफ़े के देते थे , अगर किसी को पुलिस वाले या बादशाह के आदमी रोक लेते थे तो उनके ख़त के ज़रीये उसको छोड़ देते थे और अगर किसी से जुर्माना माँगते थे तो उनके खत की वजह से उसको मुआफ कर देते थे और अगर वह क़र्ज़दार होता था तो उनके खत की वजह से क़र्ज अदा करने का वक्त बढ़ा देते थे।
मुझे याद है कि एक रोज़ एक ख़ातून ने शिकायत की कि उसके शौहर को मुहल्ले के रईस ने किसी वजह से रोक लिया है , मेरे वालिद ने एक ख़त जैसा कि ज़िक्र हुआ है , नवाब के नाम लिखा , उस वक्त ज़ोहर का वक्त था वह ख़ातून खत लेकर गई और कुछ देर के बाद वापस आईं और कहा , मैंने आपका ख़त लेजा कर दे दिया , वह खाना खाने के बाद आराम करना चाहता था कि उसके नौकर ने आपका खत उसको दिया उसने ख़त पढ़ कर फाड़ दिया , मेरे वालिद यह बात सुन कर बहुत नाराज़ हुए , उसकी ख़बर नवाब को पहुँची , लिहाज़ा एक दिन वह मेरे वालिद के पास आया और उसी ख़त को अपने पास से निकाला और चूमा और आख़ून्द को दिखा कर कहाः मैंने आपके तमाम ख़तों को हिफाज़त से रख रखा है और मैंने वसीयत कर रखी है कि जब मेरा इन्तेकाल हो तो इन ख़ुतूत को मेरे कफ़न में रख देना , ताकि मेरी नेजात का सबब बन जाऐं , मैंने उस ख़ातून से कहा थाः मैं अब सोना चाहता हूँ और फलाँ शख्स यहाँ नहीं है जो मैं उससे तुम्हारे शौहर को आज़ाद करने के लिये कहूँ , लेकिन उस ख़ातून ने आपसे आकर यह बात झूठ कही है , अफसोस कि ज़रुरत मन्द इस तरह से झूठ बोलते रहते हैं।
इस तरह स्वर्गीय हाज आख़ून्द इबादात के अलावा लोगों की ख़िदमत के लिये हर ज़माने में चाहे वह गर्मियों का ज़माना हो या सर्दियों का रात हो या दिन , हमेशा तैयार रहते थे और उन ख़िदमतों और ज़िम्मेदारियों को अन्जाम देने में अपने अलावा सबकी तरफ़ नज़र करते थे।
मैंने अपनी उम्र के लगभग चालीस साल स्वर्गीय हाज आख़ून्द के ज़माने में गुज़ारे हैं , लेहाज़ा मैं बहुत ही इतमीनान के साथ कह सकता हूँ कि उन्होंने अपने नफ़्स को क़ाबू में कर रखा था , मिसाल के तौर पर कभी ऐसा होता था की आधी रात को हमारे घर के दरवाज़े पर कोई दस्तक देता था और हम डर कर नींद से जाग जाते थे और देखते थे कि आने वाला कह रहा है कि फलाँ शख्स हालते ऐहतेज़ार में है , हाज आख़ून्द उनके सिरहाने चलें , फौरन बग़ैर किसी तअम्मुल और परेशानी के एक परिन्दे की तरह उठते थे , वुज़ू करते थे और चले जाते थे।
अच्छाईयों और नेकियों का आगमन
स्वर्गीय राशिद लिखते हैं कि मेरा (हुसैन अली राशिद) जन्म 1284 हिजरी शम्सी में हुआ और मेरे पिता का 1251 हिजरी शम्सी में हुआ है इस बेना पर मेरे जन्म के समय उनकी आयु 34 साल थी जब मैं तीन साल का हुआ तो मेरे वालिद अपने देहात (कारीज़क) (जब तक हम इसी देहात में रहते थे और शहरे तुरबत में नहीं आये थे) से एक काफ़िले के साथ पैदल करबला गये , यह उस साल की बात है जब संसद भव पर तोप से हमला हुआ था और उस यात्रा से आप सात महीने के बाद वापस आये।
जिस दिन मेरे पिता वापस आये उस दिन सारे मर्द और औरतें जमा हो गये थे और हमारे घर में बैठने की जगह नहीं थी , पानी में शकर डाल कर सबको शरबत पिला रहे थे , और लोगों ने मेरे पिता के चारो ओर घेरा बना रखा था , उस देहात की औरतें सबके साथ पैर मिला कर कभी अपने एक पैर को ज़मीन से उठाती थीं और कभी ज़मीन पर रखती थीं और कहती थीः
धर्म आ गया , ईमान आ गया , नूर आ गया , रहमत , ख़ैर , बरकत , मेहराब , मिन्बर , नमाज़ , मस्जिद , किताब और कुरआन आ गया वह इसी तरह के जुमले कहती जाती थीं , उस वक्त का मन्ज़र और आवाज़ें मेरी नज़र में इस तरह हैं कि जिस तरह यह वाक़ेया अभी कल ही हुआ था।
नूर का जलवा
स्वर्गीय राशिद लिखते हैं कि हमने अपने पिता से जो चीज़ें देखी हैं और वह हमारे लिये अस्पष्ट रह गई हैं , उनमें से एक बात यह है कि मेरे पिता का रविवार के रोज़ 17 शव्वाल 1362 हिजरी क़मरी को सूरज निकलने के दो घन्टे बाद इन्तेकाल हुआ , सुबह की नमाज़ उन्होंने लेटे हुऐ पढ़ी , उनके ऊपर ऐहतेज़ार की हालत तारी हुई , उनके पैरों को क़िबले की तरफ़ किया और अपनी उम्र के आखिरी लम्हे तक वह होशियार थे और आहिस्ता आहिस्ता वह कुछ पढ़ रहे थे जिस तरह वह अपनी मौत से बाख़बर थे और आखिरी लम्हे में कलेम ए ला इलाहा इल्लललाह कह रहे थे।
वह अपने स्वर्गवास से एक सप्ताह पहले रविवार के दिन नमाज़े सुबह के बाद क़िबले की ओर लेटे और अपनी अबा को अपने चेहरे पर ड़ाला , अचानक सूरज की तरह जैसे किसी सूराख़ से रौशनी निकल रही हो , आपका पूरा जिस्म रौशन हो गया और उनका चेहरा जो बिमारी की वजह से पीला हो गया था , साफ़ नूरानी हो गया , बल्कि अबा के नीचे से आपका चेहरा नज़र आ रहा था , वह एक दम से हिले और कहाः सलामो अलैकुम या रसूलल्लाह , आप मुझ हक़ीर को देखने के लिये आये हैं , उसके बाद इस तरह जैसे कोई उनको एक के बाद एक देखने आ रहा हो , हज़रत अमीरुल मोमनीन अलैहिस्सलाम को सलाम किया , और एक एक इमाम को बारहवें इमाम तक सलाम किया और उनके आने का शुक्रिया अदा किया , फिर हज़रते ज़हरा अलैहस सलाम को सलाम किया और उसके बाद हज़रते ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा को सलाम किया , और उस वक्त बहुत रोये और कहाः बीबी मैं तुम्हारे लिये बहुत रोया हूँ , उसके बाद अपनी माता को सलाम किया और कहाः अम्मा मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ कि तुमने मुझे पाक व पाकीज़ा दूध पिलाया और उनकी यह हालत दो घन्टे तक ऐसी ही रही , फिर वह रौशनी जो उनके ऊपर पड़ रही थी खत्म हो गई और उनका चेहरा फिर दोबारा पीला हो गया और ठीक अगले इतवार को उसी वक्त दो घन्टे तक ऐहतेज़ार की हालत में रहै और फिर उनका स्वर्गवास हो गया।
इन दोनों इतवार के बीच एक दिन मैंने उनसे पूछा कि हमने अम्बिया और अइम्मा अलैहिमुस्सलाम के आने की रिवायत सुनी है और आरज़ू करते हैं कि काश हम ख़ुद होते और इस मन्ज़र को देखते , अब इस वक्त कि आप मुझसे ज़यादा नज़दीक हैं , ऐसी हालत देखी गई है मेरा दिल चाहता है कि मैं समझ जाऊँ कि यह क्या हालत थी , वह खामोश रहे और कुछ नहीं कहा , दूसरी मरतबा तीसरी मरतबा अलग अलग तरह से उनसे सवाल किया , लेकिन वह खामोश रहे , जब मैं ने चौथी और पाँचवीं बार दोहराया तो कहाः हुसैन अली मुझे परेशान न करो , मैंने कहाः मेरा इरादा यह था कि मैं कुछ समझ जाऊँ , कहाः मैं तुम्हें नहीं समझा सकता , तुम खुद समझो।
यह थी एक शुद्धहिदय अल्लाह के बंदे के ईमान , अख़्लाक़ , सदाचार और अमल की दुनिया , यह थी एक क़ुरआनी इंसान की मौत , क्या आज की ख़ुदा व क़यामत पर ईमान से बे परवाह और क़ुरआन की शिक्षा से मीलों दूर सभ्यता और संस्कृति में ऐसे क़ुरआन के प्रशिक्षित लोगों की जीवनी की पवित्रता कहीं और देखने में आ सकती है।
क्या समस्त पूरब व पश्चिम में वास्तविकता और अध्यात्म से दूर रहने वाले किली स्कूल , कालेज , यूनिवर्सीटी मे दम है जो ऐसे बा अज़मत , ज़ाहिद , आबिद , मोमिन , ख़िदमत गुज़ार , दिलसोज़ और मेहरबान चेहरों की प्रशिक्षण दे सकें।
देशों और जनता की ग़फलत , हैरत , असुरक्षा , रोष , पाप , अत्याचार से मुक्ति केवल कुरआने करीम की शिनाख़्त और और उसकी तालिमात पर अमल करने से प्राप्त हो सकती है।
जी हाँ अगर दुनिया के लोग कुरआने करीम के साथ दोस्ती करें , और केवल कुरआने करीम के साथ जीवन व्यतीत करें , अल्लाह के नेक और मोमिन बंदों के हाथों में हाथ दें और उनके साथ दोस्ती और मित्रता का रास्ता अपनायें तो निसंदेह दुनिया व आख़ेरतत की ख़ुशबख़्ती और सौभाग्य हासिल कर लेंगे।
वस्तुवाद , अचेतना और फ़साद के दलदल में फँसे हुई सभ्यता ने पूरे संसार को असुरक्षा , खौफ़ व डर और अविश्वास के घेरे में डाल दिया है जिसको केवल कुरआन और उसके बाअज़मत व्याखकों यानी अहलेबैत के सहारे ही से मुक्ति मिल सकती है।
दुनिया वाले अगर कुरआने करीम की तरफ तवज्जो करें और अपनी ज़िन्दगी के तमाम उमूर में क़ुरआने करीम के अहकाम पर अमल करें तो ज़मीन व आसमान से ख़ुदालन्दे आलम की बरकतें उनको नसीब होंगी और हर नेक काम के बदले में दस गुना खैर उनको नसीब होगा।
बेदीनी के तूफ़ान में धर्म की रक्षा
उम्मे कुलसूम बिन्ते उकबा बिन अबी मोईत ऐसे वंश में पैदा हुईं जो इस्लाम के इतिहास में बहुत ही ज़लील व पस्त व नीच था।
इसी ख़ानदान के तीन लोगों को बारे में तीन आयतें नाज़िल हुई , एक उनके पिता उक़बा के लिये , दूसरी भाई वलीद के लिये और तीसरी ख़ुद के लिये।
ध्यानपूर्वक बात यह है कि इस महान नारी ने दुनिया की चमक धमक और अधर्म के तूफ़ान में अपने गन्दी फितरत और पस्त तबीयत बाप और भाई के मुकाबले में अपने दृढ़ ईमान और क़ुरआन और वही प्रशिक्षित होने को प्रमाणित किया और रेसालत और वही की पाठशाला से पाठ लिया।
बेहतर है कि इस ख़ानदान के बारे में कुछ बयान किया जाये ताकि इस महान नारी की इंसानी और ईमानी महानता और व्यक्तित्व स्पष्ट हो जाये।
उनके पिता का शुमार उन लोगों में होता है जिन्होंने मक्के में पैग़म्बरे अकरम सल्ललाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को दुख देने और नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं रखी , यही नहीं बल्कि उसने पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की शान में यह गुस्ताख़ी की कि अपना लोआबे दहेन पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के ऊपर डाला।
” وَ یَوْمَ یَعَضُّ الظَّالِمُ عَلی یَدَیْہِ یَقُولُ یا لَیْتَنِی اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبیلا “ ( ۱ ) ۔
व यौम यअज़्ज़ो ज़ालेमुन अला यदैहे यकूलो या लेतनी इत्तखज़तो मअ अर्रसूले सबीला।
उस दिन ज़ालिम अपने हाथों को (ग़म व हसरत के कारण) काटेगा और कहेगा कि ऐ काश मैंने रसूल का रास्ता अपनाया होता।
वलीद इसी उक़बा का बेटा और उस्मान का माँ जाया भाई है , जिस समय पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के चचा हज़रत हमज़ा की शहादत हुई तो उसने और अम्र बिन आस ने शराब पी और ख़ुशी मनाई। अगरचे वह बाद में मुसलमान हो गया , लेकिन उसके अख़्लाक़ और आचरण में किसी तरह का कोई फर्क़ नहीं पड़ा। उस्मान की ख़िलाफ़त के ज़माने में वह कूफे का गवर्नर बनाया गया और शराब की मस्ती की हालत में सुबह की नमाज़ दो की जगह चार रेकअत पढ़ा बैठा। और जब यह ख़बर मदीने पहुँची तो उस्मान ने उसको तलब तो किया मगर हद जारी न कर सका और उस्मान के क़रीबी होने के बावुजूद हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम ने उस पर शराब पीने की हद जारी की।
एक बार पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने उसको आदेश दिया कि क़बील ए बनी मुस्तलक़ के पास जाये और उनसे ज़कात जमा करके लाये , चूँकि उसके कब़ीले और क़बील ए बनी मुस्तलक़ में पहले दुश्मनी थी इसलिये जब क़बील ए बनी मुस्तलक़ वाले जोश व उत्साह के साथ उसके स्वागत के लिये आये तो उसने सोचा कि यह लोग उसको क़त्ल करने के लिये आ रहे हैं , लिहाज़ा वह भाग कर मदीने आ गया और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से कहा कि उन्होंने ज़कात देने से इंकार कर दिया है।
पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम नाराज़ हुए और आपने उनसे जंग करने का इरादा किया लेकिन ख़ुदावन्दे आलम ने यह आयत नाज़िल फ़रमाईः
یا اٴَیُّہَا الَّذینَ آمَنُوا إِنْ جاء َکُمْ فاسِقٌ بِنَبَإٍ فَتَبَیَّنُوا اٴَنْ تُصیبُوا قَوْماً بِجَہالَةٍ فَتُصْبِحُوا عَلی ما فَعَلْتُمْ نادِمینَ “ ( ۱ ) ۔
या अइयोहल लज़ीन आमनू इन जाअकुम फासेकुन यनबईन फतबईयनू अन तोसीबी कौमन बेजेहालतीन फतोसीहू अला मा फअल्तुम नादेमीन।
ऐ ईमान वालो अगर कोई फासिक़ कोई खबर लेकर आये तो उस ख़बर की जांच पड़ताल करो कहीं ऐसा न हो कि ना वाक़ेफ़ीयत की बुनियाद पर किसी क़ौम को कोई नुक़सान पहुँचा दो और उसके बाद तुम्हे अपने किये पर शर्मिन्दा होना पड़े।
इसी घटना के कारण पवित्र क़ुरआन ने वलीद के लिये फ़ासिक जैसी बुरी उपाधि हमेशा याद रहने के लिये रख दी है।
वह हज़रत अमीरुल मोम्नीन अली अलैहिस्सलाम का सख़्त दुश्मन था।
लेकिन उम्मे कुलसूम का शुमार उन औरतों में होता है जो पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की बअसत के शुरु में मुसलमान हो गई थीं , इन्होंने बैतुल मुक़द्दस और काबा दोनों किबलों की तरफ नमाज़ पढ़ी है , पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की बैअत की और मक्के से पैदल मदीने की तरफ़ हिजरत की।
इनके दोनो भाई वलीद और अम्मारा ने अपने दिलों को इस्लाम के नूर से मुनव्वर नहीं किया था बल्कि इस्लाम और मुसलमानों से शदीद जंग के लिये खड़े रहे , यह किसी भी तरह का ग़लत काम करने से परहेज़ नहीं करते थे , इन्होंने अपनी बहन को भी हिजरत करने से रोकना चाहा था।
उम्मे कुलसूम ने होदैबिया की सुलह के बाद हिजरत की थी , प्रतिज्ञा पत्र के अनुसार मुसलमानों का फर्ज़ था कि वह मक्का से मदीना जाने वालों को उसके क़बीले के हवाले कर दें , इस अहद (प्रतिज्ञा पत्र) नामे की बुनियाद पर जो मुसलमान मक्के से फ़रार करके मदीने आ जाते थे , पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम उनको वापस मक्का भेज देते थे और यह पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का एक महान कारनामा था , जिसने इस्लाम की प्रगति में बहुत से रौशन परिणाम पेश किये , लेकिन यह प्रतिज्ञा पत्र औरतों को शामिल नहीं होता था , क्योंकि सुलह नामे में पहले से स्पष्ट लिखा गया था कि जो मर्द मक्के से मदीने जायेगा उसको वापस किया जायेगा , इस बेना पर हिजरत करने वाली औरतों को वापस करना ज़रुरी नहीं था , उम्मे कुलसूम ने इस मौके से फायदा उठाया और मदीने में बाकी रह गईं , उम्मे कुलसूम और उनके जैसी औरतों के बारे में पवित्र क़ुरआन ने फरमायाः
یا اٴَیُّہَا الَّذینَ آمَنُوا إِذا جاء َکُمُ الْمُؤْمِناتُ مُہاجِراتٍ فَامْتَحِنُوہُنَّ اللَّہُ اٴَعْلَمُ بِإیمانِہِنَّ فَإِنْ عَلِمْتُمُوہُنَّ مُؤْمِنات فلا ترجعوھن الی الکفار
لا ہُنَّ حِلٌّ لَہُمْ وَ لا ہُمْ یَحِلُّونَ لَہُنَّ “ ( ۱ ) ۔
या अइयोहल लज़ीन आमनू इज़ जाअकुम अल मोमेनातो मोहाजेरातीन फअम्तेनबुन्न इलल्लाहो आलमो बे ईमानेहिन्न फिइन्न अलिम्तोमू बुन्न मोमेनाते फला तर्जेऊ हुन्न इला अल्कुफ्फारे वा बुन्न हिल्लुन लहुम वला हुम यहिल्लुन लहुन्न।
ऐ ईमान वालों जब तुम्हारे पास हिजरत करने वाली औरतें (अपने शौहरों को छोड़ कर) आयें तो पहले उनका (मोमिन होने के ऐतेबार से) इम्तेहान लो अगरचे अल्लाह उनके ईमान को खूब जानता है फिर अगर तुम भी देखो कि यह मोमेना हैं तो ख़बरदार उन्हें कुफ्फार (उनके शौहरों) की तरफ़ वापस न करना , न वह उनके लिये हलाल हैं और न यह उनके लिये हलाल हैं।
उम्मे कुलसूम जिन्होंने सिर्फ हक़ को स्वीकार करने के लिये हिजरत की थी , हक़ के आदेश से मदीने में रह गईं और उसी वजह से उनके भाई मक्के वापस चले गये।
उम्मे कुलसूम ने मदीने में ज़ैद बिन हारेसा से शादी की , लेकिन उनकी शादी ज़्यादा दिन तक बाकी न रही और जंगे मोता में ज़ैद की शहादत से ख़त्म हो गई।
उम्मे कुलसूम ने अपने शौहर की शहादत के बाद कई लोगों से शादी की लेकिन उनमें से कोई एक भी ईमान , जेहाद और बलिदान के लेहाज़ से ज़ैद के जैसा न था।
इस बात को नज़र अंदाज़ करते हुए कि इस महान नारी ने इस्लाम और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की इताअत में अपने वतन , ख़ानदान और नज़दीकी रिश्तेदार जैसे भाई आदि को छोड़ा और अपने भाईयों की वापस ले जाने की लाख कोशिशों के बावुजूद मक्के से मदीने तक का फ़ासला पैदल तय किया और किसी रुकावट से नही डरीं। आप वह ख़ातून हैं जिन्होंने पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से एक हदीस भी नक़्ल की है और वह हदीस यह हैः
سمعت النبی ( صلی الله علیه و آله وسلم ) یقول : لیس بالکاذب من اصلح بین الناس فقال خیرا ( ۱ ) ۔
समअतुन्नबी (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम) यकूलः लईस बिल काज़िब मन अस्लह बैनन्नास फकाल खइरा।
जो भी लोगों के दरमियान सुलह कराने की गरज़ से किसी अच्छी बात को झूठ में कहे वह झूठा नहीं है।
बेहतरीन शिक्षक और माँ
औफ़ बिन मोहल्लम शैबानी की एक लड़की थी जिसका नाम अयास था , यह लड़की अपने माँ बाप के घर में उनकी तरबीयत में परवान चढ़ी।
उमर बिन हुजर अलकंदी नाम के एक शख़्स ने उस लड़की के लिये रिश्ता भेजा , जब रिश्ते और शादी की तमाम रस्में पुरी हो गई और दुल्हन अपने शौहर के घर जाने के लिये तैयार हो गई , जिस रात दुल्हन को शौहर के घर ले जाना चाहते थे , दुल्हन की माँ अपनी बेटी के पास आई और उसको नसीहत करते हुए कहती हैः
मेरी बेटी , तुमने अब तक अपने माँ बाप के घर में ज़िन्दगी बसर की है , और अब तुम्हें अपने शौहर का घर आबाद करना है लेहाज़ा अपने घर की ज़िन्दगी को नज़र अंदाज़ कर दो क्योंकि तुम ऐसे आदमी के घर जा रही हो जिसको अच्छी तरह से नहीं पहचानती हो , न उसके अख़्लाक़ को जानती हो , तुम अपनों से दूर जा रही हो। अब तुम्हे उसके साथ रहना है जिससे तुम से मानूस नहीं हो , लेहाज़ा तुम उसके सामने विनम्र हो जाओ ताकि वह तुम्हारे साथ नर्मी से पेश आये , मैं तुम्हें कुछ नसीहतें करना चाहती हूँ अगर तुम उन पर अमल करोगी तो यह तुम्हारे काम आयेंगी , मेरी नसीहतें यह हैं:
1- क़नाअत (निस्पृहता) पर राज़ी रहो।
2- अच्छी तरह से अपने शौहर के बात को सुनो और उसको अंजाम दो।
3- उसके सामने बन संवर कर आओ ताकि वह तुम्हें देख कर नाराज़ न हो।
4- अपने आपको इत्र और ख़ुशबू से महकाओ ताकि वह तुममें से अच्छी खुशबू सूँघे।
5- खाना खाते समय उसकी ख़ूब ख़ातिर करो इसलिये कि भूख में इंसान को ग़ुस्सा आता है।
6- आराम के समय उसकी मदद करो। संभव है कि न सोने की वजह से वह परेशान हो।
7- उसकी ग़ैर मौजूदगी में उसके माल की रक्षा करो।
8- उसके सेवकों और साथियों का ख़्याल रखो।
9- उसके कामों की अवज्ञा न करो।
10- उसके राज़ों को फाश न करो , अगर उसके राज़ को फ़ाश किया और उसकी अवज्ञा की तो मुतमईन रहो कि उसके फ़रेब और धोखे से सुरक्षित नहीं रहोगी।
11- जान लो और अच्छी तरह से याद कर लो कि जिस समय वह परेशान हो तुम खुश न होना और जिस समय वह खुशहाल हो तुम दुखी न रहना।
12- अगर इन नसीहतों को गिरह में बाँध कर अपनी ज़िन्दगी में उन पर अमल करोगी तो निसंदेह तुम दोनों की ज़िन्दगी स्वर्ग की ज़िन्दगी हो जायेगी।
शिक्षक का महान दायित्व
दोस्ती की ज़रुरत
सामजिकता और दोस्ती इंसान के जीवन के अति महत्वपूर्ण मसलों में से है , यहाँ तक कि उसके सही और वास्तविक लक्षण इंसान को दुनिया व आख़ेरत में सच्ची ख़ुशी प्रदान कर सकते हैं , और उसके ग़लत असरात इंसान की दुनिया और आख़ेरत को ख़राब कर सकते हैं।
दोस्ती करना और दोस्त बनाना एक ऐसी हकीकत है कि तमाम इंसानों की फ़ितरत उसकी तरफ मायल है और इंसान के अन्दर उसकी कशिश इस क़दर दृढ़ है कि कुछ लोग उसको इंसान के नेचर का हिस्सा करार देते हैं।
यह फितरी आकर्षण और कशीश इस वजह से है कि ख़ुदा ए मेहरबान ने इंसानों को समाज और मुआशरे में रहने वाला बनाया है और उसकी माद्दी और मअनवी ज़िन्दगी की बाज़ ज़रुरतों को दूसरों के सुपुर्द किया है।
इंसान की पैदाइश ही इस तरह की है कि वह दूसरों से हट कर ज़िन्दगी बसर नहीं कर सकता वह समाज और मुआशरे से दूर रह कर तन्हाई की ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकता।
इंसान अगरचे ज़ाहिरी तौर पर अकेलेपन को पसंद करता है लेकिन फिर भी अपनी ज़िन्दगी को बाक़ी रखने में दूसरों की कोशिशों का मोहताज है और आख़िरकार तन्हाई में भी वह इसी समाज और मुआशरे में ज़िन्दगी बसर करता है।
दूसरों के साथ ज़िन्दगी बसर करने की ख़्वाहिश और दोस्त बनाने का आकर्षण पहले नबी से लेकर इस्लाम के ज़हूर तक एक बुनियादी मसअला रहा है और इस्लाम ने उसकी तरफ खास तवज्जो दी है और इस सिलसिले में बहुत फ़ायदेंमंद क़ानून और मसायल को बना कर इस गरीज़े और इंसानी रग़बत और चाहत की तकमील की है और दुनिया व आख़ेरत में दोस्ती और मुआशेरत की तरफ इंसानों को हिदायत की है।
इस भाग में शिक्षकों व प्रशिक्षकों के बारे में कुछ धार्मिक क़ानून व अहकाम को बयान किया जायेगा ताकि वह अच्छी तरह से अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर सकें।
बेहतरीन शिक्षक इंसानी जीवन के बेहतरीन बाग़बान
कुरआने करीम और रिवायात ने इंसानों को पौधे से संज्ञा दी है और यह संज्ञा शिक्षकों विशेष कर माता पिता की महान ज़िम्मेदारियों की तरफ इशारा करती है कि यह लोग इंसान की ज़िन्दगी के तमाम भागों में उसे अच्छी प्रशिक्षण दे सकें।
बाग़बान (माली) के रोज़ाना के कामों से बाख़बर होने के बाद , जो वह रोज़ाना सुबह व शाम पौधों और पेड़ों के साथ अंजाम देता है , हम प्रशिक्षण और तरबीयत की हक़ीक़त को पूर्ण रुप से जान सकते हैं।
एक बाग़बान (माली) का काम क्या है , वह कभी भी पौधों और पेड़ों में किसी चीज़ की योग्यता और क़ाबिलयत को पैदा नहीं करता और जिस पौधे में सूखने के बाद उन्नती की योग्यता ख़त्म हो जाती है वह उसके बस से बाहर का काम है , बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि बाग़बान पौधों और पेड़ों के उन्नती व प्रगति के लिये विभिन्न कार्य अंजाम देता है उसके अलावा कोई और काम नही करता। अत: बाग़बान के कामों को निम्नलिखित संक्षंप में इस प्रकार बयान किया जा सकता हैः
पौधे और बीज के गुणों की पूर्ण जानकारी होना।
उन्नती व प्रगति की मौजूदा हालत की विशेषता से सही जानकारी के बग़ैर बाग़बान (माली) के तमाम प्रयत्न बेकार हो सकते हैं क्योंकि हर पेड़ और हर पौधे में उन्नती व प्रगति के विशेष हालात पाये जाते हैं , कभी कभी कुछ हालात बाज़ पौधों और बीजों के लिये फ़ायदेमंद होते हैं और तो कुछ पौधों और पेड़ों के लिये नुक़सान देह होते हैं।
उन्नति व प्रगति के लिये रास्ते को समतल बनाना।
उन्नती व प्रगति का रास्ता इस लिये समतल व हमवार किया जाता है कि बीज और पौधा अपनी योग्यता , लियाक़त और क़ाबिलयत को ज़ाहिर कर सके और अकसर रूकावटों को दूर करने से ऐसा हो जाता है।
लिहाज़ा बाग़बान ख़ुदाई के ज़रीये पौधों के जड़ों की जगह को नर्म करता है , पत्थर और दूसरी सख़्त चीज़ों को उसके पास से हटाता है , बाग़ व बाग़ीचे को बीज की उन्नती व प्रगति के लिये तैयार करता है और कभी कभी अपने इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये टेढ़ी शाखों को काट देता है ताकि पेड़ अच्छी तरह से उन्नती व प्रगति कर सके।
उन्नति व प्रगति के लिये ज़रुरी मदद
एक पौधे की परवरिश के लिये अंदरूनी क़ुदरत व ताकत के अलावा बाहरी सहायता की भी ज़रुरत होती है ताकि पौधा सूरज की किरणों से ज़मीन की मिठास और मीठे पानी के ज़रीये अपनी ज़रूरी योग्यता से फायदा उठा सके और अपनी उन्नती के कमाल तक पहुँच सके और अपनी योग्यता को पत्तों , फूल और फलों के ज़रीये ज़ाहिर कर सके इस सिलसिले में कभी कभी बाग़बान (माली) मजबूर हो जाता है कि कुछ परिवर्तन व बदलाव अन्जाम दे और उनके किनारों को किसी चीज़ के मुनासिब पैवन्द से तब्दील करे।
बढ़ते पौधों की लगातार देखभाल
कोई भी पौधा हो या घास (जिसकी उन्नती व प्रगति के लिये एक विशेष तरीक़ा अपनाया जाता है) उसके लिये भी इन शर्तों के अनुसार कार्य होना आवश्यक है , कभी कभी की ग़फलत की वजह से ऐसा होता है कि पौधा अपने रास्ते और विशेष आकार से दूसरी तरफ़ निकल जाता है और अपनी उन्नती के कमाल तक नहीं पहुँच पाता।
यह पौधे की परवरिश के बारे में एक सीधे सादे बाग़बान या माली की कार्यशैली को बयान करने के लिये एक छोटा सा ख़ाका था , जो मुदुलता (नज़ाकत) , विनोद (ज़राफ़त) और तरबीयत के विभिन्न तौर तरीक़ों की पाबन्दी के ऐतेबार से इंसान की तरबीयत के हज़ारवें हिस्सों को भी बयान नहीं कर पाता।
जब एक पौधे की परवरिश के लिये इस क़दर मंसूबा बंदी की जाती है और उसको अहमियत दी जाती है तो इंसानों को प्रशिक्षकों विशेष तौर पर मां बाप को अपनी ज़िम्मेदारियों की जानकारी होनी चाहिये और इस संक्षिप्त हदीस को तफ़सील से पढ़ना चाहिये।
बिल्कुल उसी खाक़े की तरह जो एक पौधे की परवरिश के सिलसिले में बयान हुआ है , हमें उसे बहुत ही बड़े पैमाने पर इस शीर्षक के साथ कि इस इंसान को एक महान समाज में क़दम रखना है , उसके अनुसार इस पर कार्य और उसके नियमों का पालन करना चाहिये।
परवरिश का पहला क़दम बच्चों की रुही , जिस्मी ख़ुसूसियात से आगाही और उनके लिये फ़ायदेमंद और नुक्सानदेह बातों की जानकारी हासिल करना है , लेकिन अफ़सोस कि मां बाप में बच्चों के लिये यह बुनियादी शर्त नहीं पाई जाती और वह बच्चे को किसी भी तरह से नहीं पहचानते लेकिन फिर भी उनसे बहुत ज़्यादा उम्मीद रखते हैं।
आश्चर्य की बात है कि आज के ज़माने में इंसानी इंजीनियरिंग को मशीनी इंजीनियरिंग से कम अहमियत दी जाती है , यानी इंसान से ज़्यादा खुद उसकी बनाई हुई चीज़ों पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है इंसान पर नहीं।
एक सादी गाड़ी के कार्यों या ड्राईवरी को सीखने के लिए कई महीने तक फ़िक्री और अमली क्लासों में समय दिया जाता है लेकिन जिस समय इंसान मां बाप होने के नाते अपने बच्चे की परवरिश करना चाहता हैं तो वह किसी तरह की तालीम हासिल नहीं करना चाहता और अकसर वालेदैन बच्चे को क़ुसूरवार ठहराते हैं और अपने आपसे नहीं मालूम करते कि शायद असली क़ुसूरवार हम खुद हैं , शायद हमने ही सही तरबीयत नहीं की है।
इंसानों में भी फ़ेअल (कर्म) और इंफ़ेआल (पश्चाताप) के मैकानिकी क़ानून पाये जाते हैं , अगर हम उनके साथ काम करना चाहते हैं तो हमें उनके मैकानिकी कायदे और क़ानून को पहचानना पड़ेगा।
इंसान भी एक नम्बरों वाले ताले की तीजोरी की तरह है , जिसको खोलने के लिये एक नंबर का इल्म होना ज़रुरी है ताकत का नहीं , रुह व दिल की किताब को खोलने के लिये भी हर चीज़ से ज़्यादा जानकारी और ज़राफ़त की ज़रुरत है , ज़ोर व जबरदस्ती की ज़रुरत नहीं है।
इंसान के सदाचार उसके आचरण की शिक्षा का क़ानून भी फिज़िक्स कैमिस्टिरी और फिज़ियोलांजी के क़ानून की तरह है उसे उसके अंदर से तलाश करने की आवश्यकता है , बनाने की नही।
इंसानी रहबरी के कुछ क़ायदे व क़ानून अगर अस्ल फितरत और ख़िलक़त को तकाज़ों के अनुसार न हों तो वह मक़बूल नहीं होंगे और किसी भी कुदरत और ताकत के ज़रीये फ़ितरी सुन्नत के ख़िलाफ क़वानीन को इंसानों पर थोपा नहीं जा सकता।
इंसान की परवरिश के सिलसिले में जब पहले अमल को अंजाम दिया जाये यानी प्रशिक्षक बच्चे की विशेषता और उसकी पैदाइश के सिस्टम को समझ ले और यह कि बच्चे की फरदी विशेषताएं जैसे जिस्म की उन्नती व प्रगति , दिमाग़ की परवरिश और ऐतेमाद बे नफ्स को किन चीज़ों की ज़रुरत है और उसके समाजी पहलुओं की परवरिश के लिये क्या करना चाहिऐ ताकि वह समाज व मुआशरे के लिये प्रभावपूर्ण और फ़ायदेमंद इंसान बन सके , तो उस समय इन तीन कामों की ज़रुरत है जिसको हमने एक पौधे की परवरिश के सिलसिले में बयान किया था।
सही प्रगति यह है कि जिसकी तरबीयत कर रहे हैं उसको तमाम पहलुओं में परवान चढ़ायें क्योंकि एक विभाग में प्रगति और दूसरे में अप्रगति बर्बादी का कारण बन सकती है जैसे जब भी किसी बच्चे के जिस्म में केवल दिल बढ़ता रहे लेकिन उसके दूसरे आज़ा न बढ़ें या पूरा जिस्म , दिल की तरह उन्नति न करे तो यह एक तरफ़ा प्रगति , मौत का सबब है , यही बात इंसान के दूसरे कामों में भी जारी है।
जब भी किसी इंसान के माद्दी पहलु और आध्यात्मिक पहलु की उन्नती व प्रगति ज़्यादा हो , और उसकी ज़िन्दगी के दूसरे पहलू ग़फलत का शिकार हों तो इस प्रगति को एक तरफ़ा उन्नती व प्रगति कहेंगे।
सही और बक़ा का ज़ामिन वही उन्नती व प्रगति है जिसके तमाम पहलुओं में एक साथ ऐसा हो और तमाम विभाग एक खास व्यवस्था के साथ आगे की तरफ कदम बढायें।
पश्चिमी दुनिया के सदाचार विधारम संस्कार का कमज़ोर पहलु यह है कि वह इंसान की रुह के एक मूल पर तकिया करते हैं और इंसान की रुह के दूसरे मूलों को नज़र अन्दाज़ कर देते हैं , नफ़्सियाती शिक्षाओं की बुनियाद पर क़ायम होने वाली कोई भी प्रशिक्षक पाठशाला जैसे (फ़रायड) की जो जिन्सियात के अलावा इंसान के तमाम पहलुओं से अंजान था , इंसान की शख़्सीयत को शहवत और अनुभव की निगाह से देखता है और बाकी तमाम शहवतों के दरमीयान शहवत और जिन्सी तवज्जो पर तकिया करता है जिसके नतीजे में इंसान की वाक़ई शख्सियत , शहवत और जिन्सी उमूर में खुलासा हो जाती है और इंसान की रुह के उन दूसरे मूल की जानिब से ग़फलत हो जाती है कि जिन को इल्मे नफ्सियात से कश्फ किया है।
नफ़सियात और तरबीयती उमूर के माहिर लोगों का यह समूह इंसान को शहवत की नज़र और जिन्सी तमायुलात की निगाह से देखता है और बहस व गुफ्तगू के तरीक़े कार के महदूद होने की वजह से उसके दूसरे मूल से ग़ाफिल और बेखबर रहता है , तरबीयती उमूर के माहिर लोगों के इस गिरोह का नुक़सान बहुत ज़्यादा भयानक है।
तरबीयती उमूर के बाज़ दूसरे माहिर लोग जो मैटरियालिस्ट और माद्दियत के क़ायल हैं और जिनके विचार की बुनियाद माद्दा है वह अपनी बहस व गुफ्तुगू में रुह की परवरिश को अहमियत देने की जगह अकसर जिस्म की परवरिश को अहमियत देते हैं , वह ग़रायज़ को कन्ट्रोल और उसकी सही रहबरी करने के बजाय उनको खुली छूट के साथ सेर करने की हिदायत देते हैं उनके इस तरह के ग़लत और अस्वस्थ दृष्टिकोण की बुनियाद पर ऐसे बुद्धिजीवी पैदा होते हैं जो ज़मीन व आसमान और समन्दर की तहों को रौंद कर संसार में एक ही चिँगारी से आग लगा देते हैं।
इंसानी विशेषताओं से पूर्ण इंसानीयत के हमदर्द और सूझ बूझ रखने वाले सम्पूर्ण इंसान उनके इस दृष्टिकोण की बुनियाद पर हरगिज़ पैदा नहीं हो सकते।
शिक्षक और इंसानी जीवन की पाँच श्रेणियां
इस्लाम ने न केवल दोस्त तलाश करने के लिये मोहक विचार और नियम पेश किये हैं बल्कि तमाम इंसानी ग़रायज़ , आरज़ूओं और अंदरूनी कोशिशों के लिये , यहाँ तक कि ज़िन्दगी के सारे विभागों के लिये दृढ़ और फायदे मंद मार्गदर्शन प्रस्तुत किया हैं।
सुर ए हदीद की इस आयत को ध्यान पूर्वक पढ़ें , इस आयत में इंसान के जीवन को पाँच विभन्न भागों में बांटा गया में हैः
” اعْلَمُوا اٴَنَّمَا الْحَیاةُ الدُّنْیا لَعِبٌ وَ لَہْوٌ وَ زینَةٌ وَ تَفاخُرٌ بَیْنَکُمْ وَ تَکاثُرٌ فِی الْاٴَمْوالِ وَ الْاٴَوْلادِ کَمَثَلِ غَیْثٍ اٴَعْجَبَ الْکُفَّارَ نَباتُہُ ثُمَّ یَہیجُ فَتَراہُ مُصْفَرًّا ثُمَّ یَکُونُ حُطاماً وَ فِی الْآخِرَةِ عَذابٌ شَدیدٌ وَ مَغْفِرَةٌ مِنَ اللَّہِ وَ رِضْوانٌ وَ مَا الْحَیاةُ الدُّنْیا إِلاَّ مَتاعُ الْغُرُور “( ۱ ) ۔
ऐलमू अन्नमल हयातो अद्दुनिया लऐबुन व लहलवुन व ज़िनतुन व तफाखुर बैनकुम व तकीसोरुन फि अलअम्वाले व अल औलादे कमसले गैसीन अअजब नबातोहू सुम्म यहेजो फतराहो मुसफर्रन सुम्म यकूनो होतामन व फिल आखेरते अज़ाबुन शदीदुन व मगफेरतुन मिन अलील्लाहे व रज़्वानुन वमा अल हयातुद्दुनिया इल्ला मताऊँ अलगोरुर।
याद रखो कि इस संसार का यह जीवन (वह रखने वाला जो ईमान और नेक कर्म से दूर हो।) सिर्फ़ एक खेल , तमाशा , आपस में एक दूसरे पर गर्व करना और माल और औलाद के ज़्यादा होने का मुक़ाबला करने का नाम है और (ऐसी दुनिया) बस उस बारिश की तरह है जिससे (दृष्य सुन्दर हो जाये) और किसान आश्चर्य चकित रह जाये और उसके बाद वह खेती मुरझा जाये फिर तुम उसे पीला देखो और अंत में वह रेज़ा रेज़ा होकर बिखर जाये (निसंदेग दुनिया को पूजने वाले बे ईमान लोगों के लिये आख़ेरत में बड़ी बुरी सज़ा है (और ऐसे मोमिनों के लिये जिन्होने अपनी दुनिया को हक़ की पैरवी और जनता की सेवा में व्यस्त किया) उनके लिये ईश्वर की ओर से गुनाहों की बख़्शिश और अल्लाह की प्रसन्नता है और इस संसार का यह जीवन तो बस एक धोखे के सिवा कुछ भी नहीं है।
शिक्षक और इंसानी जीवन की पाँच श्रेणियां
निसंदेह अगर जानकार और हमदर्द शिक्षक विशेष कर माता पिता इन पाँचों श्रेणियों को कुरआने करीम , ईश्वरीय तालीमात और इस्लामी रिवायात और हदीसों से सहमत कर लें और उन समस्त कार्यों को इंसान की प्रगति और तरबीयत के लिये इस्तेमाल करें तो आख़ेरत में उसका नतीजा यह होगा कि ख़ुदावन्दे आलम इंसान से खुश हो जायेगा और उसको मुआफ़ कर देगा और अगर इन पाँचों भागों को सही और इस्लामी रंग न दिया जाये तो ताज़े और हरे भरे होने के बाद भी इंसानियत के यह पौधे सूख जाऐंगे और इंसान एक बे प्रशिक्षण , बुराई फैलाने , दूसरों से जलने , लालची और दूसरों का हक़ मारने वाला प्राणी बन जायेगा और वह अपनी इच्छाओं और बेजा ख़्वाहिशों के पूरा करने के लिये हर तरह की बुराइयों और पापों को अंजाम देगा और वह उस नर्क में , जिसे ख़ुद उसने अपने हाथों से बनाया है , जलेगा।
इंसान को इस संसार की माद्दी चीज़ों और अल्लाह की नेमतों से फ़ायदा उठाने का हक़ प्राप्त है , परन्तु यह हक़ ख़ुदा व रसूल सल्लललाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और अइम्म ए अहले बैत अलैहिमुस सलाम के मार्गदर्शन के ज़रिये से प्राप्त होना चाहिये और उस हक़ को क़नाअत जैसी ख़ूबी के साथ संतुलित होना चाहिये।
खाना , पीना , घर बनाना , और सवारी का साधन रखना इंसान की मूल आवश्यकता है और इन समस्त चीज़ों को जायज़ व्यापार और शरई तरीक़ों से प्राप्त करना चाहिये और हर इंसान को (जैसा कि ईश्वरीय तालीमात में बयान हुआ है) जीवन व्यतीत करने के लिये अपने और अपने घर वालों के आराम और सहूलत के लिये जहां तक संभव हो , प्रयत्न करना चाहिये और उन कार्यों को करने में पीछे नही हटना चाहिये।
जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रयत्न करना , ज़रुरत अनुसार अल्लाह की नेमतों से फ़ायदा उठाना और अपने ख़र्च से बचे हुए माल से दूसरों की सहायता करना , नबियों , अइम्मा और अल्लाह के नेक बंदों का स्वभाव रहा है।
निसंदेह इस प्रकार का जीवन व्यतीत करना , हर तरह से पाक व पाकीज़ा रहने और ऐश व आराम के जीवन के साथ साथ क़यामत के दिन अल्लाह की बख़्शिश और ख़ुशी का कारण भी बनता है। हक़ के मार्ग से दूरी और इस्लामी संस्कृति से अलग ज़िन्दगी बसर करना दुनिया में भंयकर अंधकार और क़यामत में कठोर सज़ा का कारण बनता है।
शिक्षक व प्रशिणक विशेष कर माता पिता इस बात पर ध्यान दें कि उनकी औलाद , इंसानियत की पवित्र ज़मीन के पौधे हैं। उनको उन पौधों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिये। इसी तरह से उनकी उन्नती व प्रगति के संबंध में सम्पूर्ण क़ानून की जानकारी होनी चाहिये ताकि वह उनकी रौशनी में इस संसारिक जीवन की पांचों श्रेणियों की सही निगरानी और देखभाल कर सकें और हर भाग में प्रयत्न करें कि इन पौधों के ख़ास ताज़गी और पुर सुकून माहौल में ईश्वरीय और इंसानी क़ानून के साथ , बुद्धिमता आधार प्रगतिशील मंसूबों के साये परवान चढ़ाये ताकि इंसानियत की ज़मीन के यह नाज़ुक पौधे सही रास्ते की ओर क़दम आगे बढ़ा सकें।