सामाजिकता

सामाजिकता0%

सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 40610
डाउनलोड: 7360

कमेन्टस:

सामाजिकता
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 20 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 40610 / डाउनलोड: 7360
आकार आकार आकार
सामाजिकता

सामाजिकता

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

पहला पड़ाव (खेलकूद)

क़ुरआने मजीद ने जीवन के पहले क़दम को लहव लअब (खेल कूद) से नामांकित किया है।

इस भाग में बच्चा खेल के साथ खेलने वाले से बेहद मुहब्बत करता है। वह खेल कूद के समस्त सामान और खिलौनों से मुहब्बत की भावना व्यक्त करता है और अपने हम उम्र बच्चों से पहली ही मुलाक़ात में अपने साथ खेलने के लिये इस प्यार से उसे अपनी ओर आकर्षित करता है जैसे दोनो एक मां बाप से पैदा हुए हों और अगर कोई उसको खेलने से मना करता है तो उसके दिल में उसकी तरफ़ से नफ़रत और घृणा उत्पन्न हो जाती है और इस तरह वह अपने नाज़ुक और छोटे से ज़ेहन पर बोझ महसूस करता है।

बचपन के खेल

शिक्षक विशेषकर मां बाप के लिये आवश्यक है कि वह अपने बच्चों को खेल कूद में स्वतंत्र छोड़ दें , क्यों कि खेल की ओर उसका आकर्षण फ़ितरी है , खेल एक ऐसी वास्तविकता है जिसे ईश्वर ने उसके नेचर में रखा है।

एक हदीस में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम से नक़्ल हुआ है:

” الغلام یلعب سبع سنین “ ( ۱ ) ۔

अल ग़ुलामों यलअबो सबआ सिनीन।

लड़का सात वर्ष तक खेलता है।

खेल का मसअला फ़ितरी है परन्तु उसकी अवस्था और मात्रा का ख़्याल रखना चाहिये। बच्चे का खेल , उसके साथ खेलने वाला और खिलौनों के सामान की क़िस्मों की ओर ध्यान देना आवश्यक है ताकि यह भाग बहुत ही सावधानी , स्वस्थ और सलामती के साथ गुज़र जाये और उसको इस प्रकार से व्यवस्थित करना चाहिये कि बच्चे का व्यक्तित्व में उन्नती व प्रगति हो।

बच्चे को अगर खेल , खेल के साथी और खेल के सामान के साथ स्वतंत्र छोड़ दिया जायेगा तो चूंकि उसका अस्तित्व ज़िद की तरफ़ ज़्यादा मायल होता है लिहाज़ा उस में शरारत पैदा हो जायेगी और फिर वह आहिस्ता आहिस्ता ज़िद करने लग जायेगा। मां बाप और अभिभावकों की बात सुनने से इंकार करने लग जायेगा।

बच्चे के खेल के वातावरण को सही व सालिम रखा जाये और ऐसे बच्चों के पास आने जाने से दूर रखा जाये जो बहुत ही बे परवा और बे प्रशिक्षण है ता कि इस तरह बच्चे की छवि ख़राब न हो।

बच्चों को स्वतंत्र छोड़ देना

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम , इंसान के नफ़्स और उसकी फ़ितरत के आज़ादी की तरफ़ मायल होने के बारे में फ़रमाते हैं:

النفس مجبولة علی سوء الادب والعبد مامور بملازمة حسن الادب والنفس تجری بطبعھا فی میدان المخالفة والعبد یجھد بردھا عن سوء المطالبة فمتی اطلق عنانھا فھو شریک فی فسادھا و من اعان نفسہ فی ھوی نفسہ فقد اشرک نفسہ فی قتل نفسہ “ ( ۱ ) ۔

अन नफ़्सो मजबूलतुन अला सूइल अदब , वल अबदो मामूरुन बे मुलाज़ेमते हुसनिल अदब , वन नफ़्सो तजरी बे तबएहा फ़ी मैदानिल मुख़ालफ़ते , वल अब्दो यजहदो बे रद्देहा अन सुइल मुतालेबते , फ़ मता अतलक़ा अनानुहा फ़हुवा शरीकुन फ़ी फ़सादेहा व मन अआना नफ़सहु फ़ी हवा नफ़सिहि फ़क़द अशरका फ़ी क़तले नफ़सिहि।

इंसान का अस्तित्व फ़ितरी तौर पर स्वतंत्रता और बुरे स्वभाव की ओर आकर्षित होता है जबकि इंसान की दायित्व है कि वह अपने आपको अच्छे सदचार और सही प्रशिक्षण व संस्कार से सजाये संवारे। इंसान का वुजूद फ़ितरी तौर पर जीवन की मसलहतों और अच्छे आचरण से जंग के लिये तैयार रहता है और जानकार और ख़बर रखने वाला इंसान अपनी नाजायज़ तमन्नाओं के रास्ते को अपने ऊपर बंद कर लेता है , जो भी अपने बिगड़े हुए नफ़्स की लगाम को छोड़ और अपनी बेजा ख़्वाहिशों और इच्छाओं को स्वतंत्र छोड़ दे उसने अपने वुजूद को बर्बाद और तबाह होने में मदद की है। जो भी अपने ज़ालिम नफ़्स की अपनी नाजायज़ इच्छाओं और ख़्वाहिशों के पूरा करने में उसकी मदद करे , उसने इंसानीयत को क़त्ल करने में मदद की है।

बच्चे में इतनी शक्ती नही है कि वह अपनी लगाम के आज़ाद होने और अपनी अंदरूनी इच्छाओं को पूरा करने में अपने बिगड़े हुए नफ़्स से जंग करे और ख़ुद को अच्छे आचरण से सजाये संवारे और अपने अस्तित्व का क़ातिल न बने , इस बेना पर बच्चे के खेल , खेल के साथी , खेल का सामान , उन सब की देखभाल और निगरानी करने और उसको अच्छे इंसानी हालात से सजाना संवारना मां बाप का महान दायित्व है। मां बाप को उन्नती व प्रगति के क़ानून की जानकारी होनी चाहिये और बच्चे के अस्तित्व के समस्त पहलुओं पर नज़र रखते हुए उस से बुद्धिमता पूर्वक और समझदारी वाला सुलूक करना चाहिये।

जी हां , लहव लअब (खेलकूद) के ज़माने में खेल कूद , समाज और खेल के साथियों के चुनाव में अपने बच्चों की सहायता करना मां बाप की ज़िम्मेदारी और ईश्वरीय दायित्व है और इस सिलसिले में कमी करना बच्चे के भविष्य को ख़तरे में डालना है।

सीख लेने योग्य घटना

प्रसिद्ध हैं कि एक युवक को जुर्म , क़त्ल और चोरी के कारण जज ने फांसी की सज़ा सुनाई।

जज ने आदेश देते समय उससे पूछा कि अगर तुम्हारी कोई आख़िरी इच्छा हो तो बता दो या लिखवा दो। उसने कहा कि मेरी केवल एक ख़्वाहिश है और वह यह है कि फांसी की मौक़े पर मेरी मां को हाज़िर किया जाये ताकि मैं अपने जीवन के अंतिम पल में उसको देख सकूं।

उसकी मां को फांसी की जगह पर लाया गया ताकि वह अपने बेटे को देख सके। उसने अपनी मां से कहा कि मैं अपने जीवन के आख़िरी पल में चाहता हूं कि तुम अपनी ज़बान मेरे मुंह में दे दो और मुझ पर यह आख़िरी अहसान करो। जब उसकी मां ने अपनी ज़बान उसके मुंह में दे दी तो उस युवक ने अपनी पूरी शक्ति से उसकी ज़बान को इस तरह से काटा कि उसकी ज़बान से ख़ून निकलने लगा। जब उस जवान से इस ग़लत कार्य के बारे में पूछा गया तो उसने बताया कि मुझे यह फांसी इस मां की शाबाशी देते रहने की कारण हो रही है जिसने मुझे बचपन में मुर्ग़ी के अंडे चुराने का हौसला दिलाया और फिर उसके बाद मैंने पीछे मुड़ कर नही देखा बात ऊंट की चोरी और क़त्ल तक पहुच गई।

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम ने (अपने एक बुद्धिमतापूर्ण वाक्य में इंसान को संबोधित करते हुए) फ़रमाया:

” فکرک یھدیک الی الرشاد “ ( ۱ ) ۔

फिकरोका यहदीका एलर रशाद।

तुम्हारे बुद्धिमतापूर्ण विचार और मूल चिंतन तुम्हे वास्तविक मसलहत और मार्गदर्शन के रास्ते की ओर ले जाते हैं। इस दुनिया में एक मां बाप के लिये अपनी औलाद से ज़्यादा बहुमुल्य चीज़ क्या हो सकती है ?

क्या मां बाप का दायित्व नही है कि वह अपने बच्चों की प्रशिक्षण , उन्नति और उसकी सही प्रगति के लिये विचार करें और इस सिलसिले में हकीमाना मंसूबे और दृढ़ नियमों का चुनाव करें ?

जब सही विचार और मूल चिंतन मां बाप के प्रशिक्षण के तौर तरीक़ों में अमली लिहाज़ से ज़ाहिर हो जाये तो उसकी परिणाम बच्चों में हस्तांरित हो जाता है। फिर बच्चे भलाई , सभ्यता और प्रशिक्षण के ख़ज़ाने बन जाते हैं। ऐसे बच्चे भविष्य में समाज के लिये बहुत लाभदायक साबित होते हैं।

दूसरा पड़ाव , मनोरंजन

क़ुरआने करीम के अनुसार जीवन का दूसरा अध्याय मनोरंजन है।

निसंदेह मनोरंजन और ऐसे कामों का करना जो इंसान के व्यक्तित्व की उन्नती व प्रगति में सहायक होते हो और उसे सही विचारधारा की ओर ले जाने पर मजबूर करते हों। इस्लाम धर्म की दृष्टि में न केवल यह कि मना नही हैं बल्कि पसंदीदा और स्वीकार्य हैं।

जो बच्चा खेल कूद के माध्यम से मनोरंजन के मैदान में दाख़िल होता है। मार्कर , स्केच , बेलेड , कैंची , रंग और पेटिंग आदि के सामान के साथ ख़ुद को मशग़ूल करता है और ख़ुद से या दूसरों की मदद से पेटिंग , नक़्शे और डिज़ाइन बनाता है और फिर बेलेड और कैंची आदि से उसको काट कर अलग अलग करता है और उसको दूसरे पेज पर विशेष तरकीब से लगाता है। यहां तक कि वह आहिस्ता आहिस्ता बाग़ व बाग़ीचा , हरे भरे दृष्य , घर व भवन , दूसरे आवश्यक सामाम , विभिन्न प्रकार की गाड़ियों की पेटिंग और स्केच बनाता है या विभिन्न रंगों के कपड़ों को एक दूसरे के साथ सी कर उनसे गुड़ियों के कपड़े बनाता है और मां बाप भी इस तरह के कार्यों में उसका हौसला बढ़ाते हैं , उसे शौक़ दिलाते हैं और उसकी सलाहियतों को परवान चढ़ाते हैं। निसंदेह ऐसे बच्चे भविष्य में बेहतरीन अविष्कारक , मेकेनिक , इंजीनीयर और डाक्टर बनते हैं और जनता को अपनी सलाहियतों से भरपूर लाभ पहुचाते हैं।

फ़ुर्सत के समय

शिक्षकों विशेष कर मां बाप के लिये आवश्यक है कि वह अपने बच्चों को इस सिलसिले में जानकारी रखते हुए उन्हे शौक़ दिलायें , उनका हौसला बढ़ाये उन्हे आवश्यक सामान ख़रीद कर दें ताकि वह फ़ालतु समय में उसमें ख़ुद को मशग़ूल करें , घर को उनके ख़ूबसूरत कार्यों के लिये तैयार करें ताकि वह अपने अंदर छुपे हुनर को निखार सकें।

निसंदेह फ़ुर्सत के समय ताश , शतरंज , जुवा आदि खेलना , संगीत , अनुचित सी डी , फ़िल्में , धारावाहिक आदि देखना , बिगड़े हुए बच्चों के साथ समय बिताना , ख़राब कहानियों की किताबें , ग़लत और नामुनासिब अफ़साने और आम फ़ोटो और कैसेटों आदि में लगने से बच्चों की छवि पर बुरा और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनके अंदर की सलाहियतों को प्रभावित करता है। इसके अलावा इस बात का भी डर होता है कि वह पापी , गुनाहगार , फ़ासिक़ व फ़ाजिर , ज़ालिम व बेईमान न बन जायें।

नफ़्सीयात के विशेषज्ञों का मानना है कि अव्यस्क व मार धाड़ वाली फ़िल्में , बुराइयों और जुर्म व अपराध की संख्या बढ़ाने में असरदायक हैं और बहुत से मुजरिम , जज के सामने खुल कर इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्होने यह बुरे और घृणित काम फ़ला फ़िल्म या धारावाहिक से सीखे हैं जिन में यह सब दिखाये गये हैं।

बुद्धि , बुरे स्वभाव की संरक्षक

इस वास्तविकता में कोई शंका नही है कि समस्त कामशक्ति व इंसानी इच्छाओं में कोई न कोई लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

अगर इंसान में यह इच्छायें न होतीं तो उसके लिये जीवन व्यतीत करना संभव नही हो पाता क्यों कि अगर इंसान में ग़ुस्सा , वासना , माल , पद और औलाद की इच्छा व आरज़ू ख़त्म हो जाये तो ज़िन्दगी उसकी नज़र में ख़त्म हो जायेगी और वह इस जीवन को आगे बढ़ाने के प्रयत्न नही करेगा।

इस में भी कोई शंका नही है कि बुद्धि और विचार की शक्ति इन इच्छाओं में संतुलन पैदा करती है और इन अंदरूनी शक्तियों से फ़ायदा उठाना एक सीमा तक इंसान के लिये आवश्यक व फ़ितरी है।

इंसान की इच्छाएं , गाड़ी के इंजन की तरह उसको आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती हैं जबकि इंसान की बुद्धि और विचार की शक्ति गाड़ी के ब्रेक की तरह उसको ग़लत रास्ते पर जाने से रोकती है। इस तरह वह उस की जान की रक्षा करती है और उसके जीवन को सुरक्षा प्रदान करती है।

बुद्धि व समझदारी गाड़ी की लाइटों की तरह इंसान को रास्ते बताने का काम करती है और उसके लिये रास्ते और गढ्ढे को स्पष्ट करके दिखाती है।

अध्यात्म की व्यवस्था में बुद्धि का स्थान बहुत महान है। इसी लिये ऐसी चीज़ों से बचना चाहिये जो दिमाग़ी व्यवस्था में ख़लल , विचारों की व्यवस्था में बुराई , देखने और सुनने की शक्ति में कमज़ोरी पैदा करें क्यों कि अक़्ल के सही मार्गदर्शन के बिना माद्दी व अध्यात्मिक जीवन संभव नही है।

इस्लाम धर्म ने बुद्धि के स्थान को सुरक्षित रखने के लिये उन चीज़ों से मना किया है जो उसे ख़राब और इंसान के मार्गदर्शन की व्यवस्था को गुमराह करतें हैं। जैसे विभिन्न प्रकार के नशे , शराब , बुराई में संलिप्त करने वाले काम , उन्नती व प्रगति से रोकने वाले कार्य , जुवा , नुक़सानहेद संगत और क्षतिग्रस्त रात भर जागने को मना और हराम क़रार दिया है और उसके विपरित बुद्धि के प्रशिक्षण व परवरिश के लिये प्रयत्न करने का आदेश दिया है ताकि इंसान अपनी बुद्धि के ज़रिये फ़ितरी व अमली अक़्ल को प्राप्त कर सके और अपने अनुभव , इबरत और नसीहतों से , अक़्ल की पाठशाला का साथ दे सके।

ज्ञान और बुद्धिजीवियों के लेखन का अध्ययन और सृष्टि की व्यवस्था पर शोध , बुद्धि की प्रगति का कारण बनता है। इसके विपरित पाप का दोहराना , बुरे लोगों की संगत में रहना , गुनाह दृश्य देखना , अक़्ल की कमज़ोरी का कारण बनते बनतें हैं और ऐसा होने से बहुत सी चीज़ों में पाई जाने वाली बुराई इंसान को दिखाई देना बंद हो जाती है।

विचारों की गुमराही

सबसे बड़ा भटकाव , विचारों की गुमराही है। यह ऐसी गुमराही है जिसके कारण इंसान अच्छे बुरे की समझ खो देता है बल्कि इससे भी बढ़ कर वह हक़ को बातिल और बातिल को हक़ समझने लगता है।

निम्नलिखित हदीस विचारों की गुमराही और वास्तविकताओं को ग़लत समझने के सिलसिले में बयान हुई है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने एक दिन अपने सहाबियों से फ़रमाया:

کیف بک اذا فسدت نساوْکم ، و فسق شبابکم و لم تامروا بالمعروف و لم تنھوا عن المنکر؟ فقیل لہ : و یکون ذلک یارسول اللہ ؟ فقال : نعم و شر من ذلک، کیف بکم اذاامرتم بالمنکر و نھیتم عن المعروف؟ فقیل لہ : یا رسول اللہ و یکون ذلک؟ قال : نعم و شر من ذلک، کیف بکم اذا رایتم المعروف منکرا والمنکر معروفا “ ؟ ! ( ۱ ) ۔ ।

एक दिन वह आयेगा कि जब तुम्हारी औरतें और जवान फ़ासिक़ व फ़ाजिर हो जायेगें और अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर को छोड़ दिया जायेगा।

सहाबियों ने बहुत ही आश्चर्य से पूछा: क्या ऐसा संभव है ? आपने फ़रमाया: इससे भी ज़्यादा बुरे काम किये जायेगें , एक ज़माना वह आयेगा कि जब तुम्हे बुरे काम करने का आदेश दिया जायेगा और अच्छे कामों से मना किया जायेगा।

सहाबियों ने कहा: क्या वाक़ई ऐसा होगा ? आपने फ़रमाया: इससे भी ज़्यादा बुरा होगा और वह यह कि लोगों की नज़रों में अच्छाइयां बुरी और बुराईयां अच्छी नज़र आयेगीं।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम का आख़िरी जुमला इस वास्तविकता को बयान कर रहा है कि लोगों के दृष्टिकोण बदल जायेगें। लोग गुनाहों और बुराईयों के ज़्यादा होने , बुरे कामों में फंसे होने के कारणवश अच्छाइयों और बुराईयों में भिन्नता नही कर पायेगें बल्कि अख़लाक़ी बुराईयां , अख़लाक़ी अच्छाईयों की जगह ले लेगीं।

अफ़सोस है कि बहुत से घरों का वातावरण बिगाड़ने वाले कार्यों के लिये बहुत ही स्वतंत्र , भयावह और ख़तरनाक है।

जो चीज़ें बच्चे विशेषकर नौजवान देख कर और सुन कर सीख रहै हैं वह बहुत ही गुमराह करने वाली हैं। फ़िल्में , वीडियों , सी डी और सबसे बढ़ कर डिश , यह चीज़ें जिस चीज़ को सबसे ज़्यादा ज़ाहिर करती हैं वह है इश्क़ व हवस व वासना और माफ़ियाई गैंगिस्टर है। वह लड़के और लड़कियों को उनके अस्तित्व को ख़राब और बुद्धि व समझ और होश व हवास से दूर करके गुमराही की ओर ले जाते हैं।

इंसान के विचार और उसके काम , इन तमाम तंत्रों और मनोरंजक तत्वों के प्रभाव को देखने और समझने के लिये काफ़ी है कि इंसान बच्चों के नफ़्सियात का अध्ययन करे , जिन्होने कई बार मार धाड़ और जुर्मी दुनिया पर आधारित फ़िल्में देखी है।

अकसर यह बच्चे फ़ालतू समय में उन फ़िल्मों के हीरों की नक़्ल करते हैं , गली सड़क , घर और स्कूलों में एक दूसरे पर हमला करते हैं , हाथ पैर से एक दूसरे क सर और चेहरे पर मारते हैं और मार धाड़ करते समय फ़िल्म के हीरों के नाम को अपनी ज़बान पर लाते है और कभी कभी उससे भी ज़्यादा हो जाता है।

झिंझोड़ देने वाली कथा

अख़बार में छपा कि कुछ बच्चे अपने घरों से भाग कर देश के उत्तरी भाग में पाये जाने वाले जंगलों में चले गये ताकि अपने ज़माने के टार्ज़न बन जायें। एक स्कूल के अध्यापक ने बताया कि उनके स्कूल के एक विधार्थी ने एक फ़िल्म देखी , उसने उस फ़िल्म की नक़्ल करते हुए अपनी क्लास के कुछ साथियों को बताया और स्कूल में चोरों का एक गिरोह बना लिया। जो अपने मंसूबे के अनुसार विधार्थियों के सामान चोरी करते थे।

इस्लामी देश ईरान के अख़बार कैहान के 732 वें अंक में यह ख़बर छपी कि फ्रांस में एक चौदह वर्ष के लड़के एक बच्चे को अग़वा करके उसका क़त्ल कर दिया। बाद में पकड़े जाने पर उसने यह स्वीकार किया कि मैंने यह काम एक फ़िल्म देखने के बाद किया है। उसने पुलिस को बताया कि मैंने क़त्ल से कई दिन पहले पेरिस की टीवी पर एक फ़िल्म देखी। इस फ़िल्म में क़ातिल एक इक्कीस वर्ष का लड़का था जो सज़ा के लिये उन्हे क़त्ल कर देता था , मैंने भी सोचा कि देखूं फांसी का मज़ा कैसा होता है। इसी वजह से मैं उस बच्चे के पास गया जिसका नाम अमानोएल था और उसको अपने साथ खेलने के बहाने शहर स बाहर ले गया। वह बहुत प्रसन्न हो रहा था और मैं उसकी इस प्रसन्नता के कारणवश क्रोधित हो रहा था वह अंतिम क्षणों तक यही सोच कर ख़ुश होता रहा कि मैं उसे खेलाने के लिये लाया हूं और उसके साथ खेल रहा हूं।

यह बुरे काम , बुरी व्यवस्तता के कारण पेश आते हैं जिनकी क्षति की पूर्ती करना बाद में संभव नही होता है।

दूसरे दौर में जो कि खेल कूद और मनोरंजन का ज़माना है। इन वास्तविकताओं को मद्देनज़र रखते हुए मां बाप की महान दायित्व स्पष्ट हो जाता है और अगर इस दौर से लापरवाही की गई तो अचानक हमारे सामने कोई बहुत भयानक घटना आ सकती है। जिससे उठने वाला धुवां सबसे पहले मां बाप की आख़ों को रुलायेगा उसके बाद हमारे समाज और देश को रुलायने का कारण बनेगा।

तीसरा भाग: ज़ीनत (सजना संवरना)

यह भाग उम्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें जवानी , सुन्दर और आकर्षक चेहरे के साथ आती है और इंसान का अस्तित्व मस्ती और जोश से भरा होता है। आशाएं और इच्छाएं अपने कमाल को पहुचने लगती हैं। सजने संवरने , सुन्दर और आकर्षक दिखने की चाहत और सुन्दरता से इश्क़ बढ़ने लगता है। फिर जवान लड़का हो या लड़की अच्छे जूते , कपड़े , गाड़ी , घर और घर के अच्छे सामान के बारे में सोचने लगता है। हर दिन , हर समय यही प्रयत्न करता है कि अपने चेहरे , बालों और शरीर को दूसरों को दिखाये और हर दिन चाहता है कि पहले से ज़्यादा आकर्षक दिखाई दे।

जवानों की शिक्षा व प्रशिक्षण

इस भाग में मां बाप , प्रशिक्षक , शिक्षक , और उन सभी लोगों का दायित्व पहले से ज़्यादा बढ़ जाता है जो किसी नौजवान के साथ किसी भी प्रकार से संबंध रखते हैं। इस मरहले में अगर प्रशिक्षक विशेष कर मां बाप लापरवाही से काम लेंगें तो उस जवान की मूल इंसानियत , इस समाज और इच्छा के कारणवश बर्बाद हो सकती है।

इस भाग में शिक्षकों के लिये बेहतरीन उदाहरण और आईडियल हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम का पवित्र और मुबारक अस्तित्व है। आपने एक सविस्तार पत्र में अपने बुद्धिमतापूर्ण तौर तरीक़े को हज़रत इमाम हसन अलैहिस सलाम के प्रशिक्षण के सिलसिले में बयान किया है। उसमें आपने जवानों में धार्मिक भावनाओं को जगाने के लिये अपने महान दृष्टिकोण को पेश किया है:

” وان ابتدئک بتعلیم کتاب اللہ عزوجل و تاویلہ و شرائع الاسلام و احکامہ وحلالہ و حرامہ “( ۱ ) ۔

मैंने तुम्हारे प्रशिक्षण को क़ुरआने मजीद की शिक्षा और उसकी आयतों के अर्थ को साफ़ बयान करने से आरम्भ किया और इस्लाम के क़ानून और नियम और उसके नूरानी अहकाम , हराम और हलाल को तुम्हे सिखाया।

जी हां , प्रशिक्षकों और मां बाप का दायित्व है कि वह जीवन व्यतीत करने के तौर तरीक़ों को क़ुरआने मजीद से लें और बेहतरीन क़ानून औक उसूल को इस्लाम से हासिल करें और फ़ायदेमंद अहकाम जो कि ईश्वरीय अहकाम हैं और बेहतरीन ज्ञान जो कि ईश्वर के हलाल और हराम की पहचान है , अपने बच्चों और जवानों को सिखायें।

परन्तु यह शिक्षा ज़बरदस्ती , ग़लत तरीक़े और लंबी क्लासों के ज़रिये से नही होनी चाहिये। क्योंकि अगर इस तरह से किया जायेगा तो जवानों की भावना और जज़्बात को ठेस पहुचेगी और उसकी पवित्र आत्मा को ज़ख़्म पहुच सकता है और ख़ुदा न करे वह धर्म और धार्मिक गतिविधियों से दूर हो सकता है और वह उनके चंगुल में फंस सकता है जो ज़ाहिरी तौर पर मुहब्बत और दोस्ती करते हैं और फिर उसका परिणाम यह होता है कि उन भेड़ियों के ज़रिये इंसानियत और आदमियत की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है और कभी कभी वह ख़ुद भी दूसरों का जीवन बर्बाद करने के लिये एक भेड़िया इंसान बन जाता है।

यह शिक्षा और तालीम अगर अच्छे स्वभाव , अच्छे व्यवहार और नर्मी के साथ हो तो जवानों के गोश्त व ख़ून रच बस सकती है और उससे एक शिष्ट स्वभाव , सही प्रशिक्षण और अच्छे आचरण के व्यक्तित्व वाला इंसान वुजूद में आता है।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम इस सिलसिले में फ़रमाते हैं:

” من قراء القرآن و ھو شاب مومن اختلط القرآن بلحمہ و دمہ “ ( ۱ ) ۔

जो क़ुरआन पढ़े और वह बा ईमान जवान हो तो क़ुरआने मजीद उसके गोश्त और ख़ून में रच बस जाता है और उसके पूरे अस्तित्व में अच्छा प्रभाव छोड़ता है।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम एक दूसरी हदीस में इस तरह फ़रमाते हैं:

و یتعلم الکتاب سبع سنین و یتعلم الحلال والحرام سبع سنین “ ( ۱ ) ۔ ।

बच्चे को सात वर्ष में आहिस्ता आहिस्ता क़ुरआने करीम पढ़ना चाहिये और दूसरे सात वर्ष में हलाल व हराम सीखना चाहिये।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम का दृष्टिकोण यह है कि क़ुरआने करीम और हलाल व हराम की शिक्षा , नौजवान पर दबाव डाल कर न दिलवाएं और क़ुरआने मजीद और हराम व हलाल की तालीम कम समय में संभव नही है।

अदृश्य ख़तरा

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम , पथभ्रष्ट लोगों और बुरी सभ्यताओं के भयानक ख़तरों से , जो कि संभव है कि जवानों और नौजवानों को भावना और जोश , जज़्बात के कारण प्रभावित कर दें , को इस प्रकार होशियार रहने की सीख देते हैं:

” بادروا اولادکم بالحدیث قبل ان یسبقکم الیھم المرجئة “ ( ۱ ) ۔ ।

अपने जवानों को अहले बैत अलैहिमुस सलाम की शिक्षा और तालीम देने में जल्दी करो और इस महत्वपूर्ण दायित्व को अंजाम देने में जल्दी करो। इससे पहले कि पथभ्रष्ट मुनाफ़ेक़ीन और संस्कृति वाले लोग अपनी असत्य व बातिल बातों से उनकी बुद्धि और विचार को ख़राब कर दें और उनको पथभ्रष्टता और गुमराही की ओर ढकेल दें और उनकी दुनिया व आख़िरत को तबाह व बर्बाद कर दें।

शिष्टाचार सिखाना

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम ने एक हदीस में सही प्रशिक्षण की ओर इशारा करते हुए इस तरह फ़रमाते हैं:

” من کلف بالادب قلت مساویہ “ ( ۱ ) ۔ ।

जो भी सही प्रशिक्षण और शिष्टाचार प्राप्त करने को तैयार हो और अच्छी तरह से उसे स्वीकार करे तो निसंदेह उसमें बुराई बहुत कम हो जायेगी।

किसी जवान का प्रशिक्षण अगर उसके मां बाप और हमदर्द प्रशिक्षक के ज़रिये सही तौर पर अंजाम पाये तो वह मां बाप के शांति व सुरक्षा का स्रोत और दूसरों को बेहतरीन फ़ायदा देने वाला साबित होगा।

और अगर मां बाप अपने जवानों के सही प्रशिक्षण से ग़ाफ़िल और लापरवाह होंगे और केवल उन के कपड़े , पहनावे और खाने पीने को काफ़ी समझेंगे तो निसंदेह वह भविष्य में अशिष्ट , अप्रशिक्षित और बदमाशी व बुराई के कारण अपने जीवन को ग़म व दुख में व्यतीत करेंगें।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम एक हदीस में इस तरह से फ़रमाते हैं:

” ان خیر ما ورث الآباء لابنائھم الادب لا المال “ ( ۲ ) ۔ ।

निसंदेह मां बाप अपने बच्चों के लिये जो बेहतरीन मीरास छोड़ते हैं वह उन का सही प्रशिक्षण और शिष्टाचार है पैसा और माल नही।

कलयुग में प्रशिक्षण

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने अपनी जिन हदीसों में उम्मत के भविष्य की ख़बर दी है उनमें औलाद के प्रशिक्षण से लापरवाही की शिकायत की है। आपने कुछ बच्चों को देखने के बाद फ़रमाया:

ویل لاولاد آخر الزمان من ابائھم، فقیل : یا رسول اللہ من آبائھم المشرکین؟ فقال : لا من آبائھم المومنین، لا یعلمونھم شیئا من الفرائض و اذا تعلموا اولادھم و رضوا عنھم بعرض یسیر من الدنیا فانا منھم بری و ھم منی برآء “ ( ۲ ) ۔ ।

आख़िरी ज़माने के बच्चों पर उनके मां बाप की लापरवाही के कारण वाय हो। सबने कहा: या रसूलल्लाह , उन के मुशरिक मां बाप पर वाय हो। आपने फ़रमाया: नही , उनके मुसलमान मां बाप पर , ऐसे मां बाप पर जिन्होने धार्मिक और ईश्वरीय आवश्यक व अनिवार्य बातों में उन्हे कुछ भी नही सिखाया और अगर बच्चे ख़ुद से कोई चीज़ सीखना भी चाहते थे तो वह उनको मना करते थे। वह अपने बच्चों के सिलसिले में उस चीज़ पर क़नाअत करते थे कि यह बच्चे अपने इस जीवन में इस दुनिया से कुछ सामान और चीज़ें जमा कर लें। मैं ऐसे मां बाप से बेज़ार हूं और वह मुझ से जुदा और बेज़ार हैं।

प्रशिक्षण का दौर

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम ने औलाद के प्रशिक्षण के दायित्व के सिलसिले में इमाम हसन अलैहिस सलाम को लिखा:

فبادرتک بالادب قبل ان یقسو قلبک و یشتغل لبک “ ۔ ।

मेरे बेटे मैंने तुम्हारे सही प्रशिक्षण और तुम्हे शिष्टाचार सिखाने में तमाम मौक़ों से फ़ायदा उठाया और इस सिलसिले में पूर्ण रूप से अपने दायित्व का निर्वाह किया। इससे पहले कि तुम्हारा दिल इस नौजवानी में ख़तरों के हमलों से कठोर हो जाये और तुम्हारी बुद्धि सभ्यता व संस्कृति के हमलों में फंस जाये।

इमाम अलैहिस सलाम ने मां बाप और प्रशिक्षकों को इस सिलसिले में होशियार किया है कि अगर अपनी औलाद के सही प्रशिक्षण में लापरवाही से काम लिया और उन की बुद्धि और विचारों की आवश्यकता को क़ुरआने करीम और ईश्वरीय अहकाम और अहलेबैत अलैहिमुस सलाम की शिक्षा से सैराब नही करोगे तो वह कठोरता , संगदिली और शैतानी कामों का शिकार हो जायेंगे।

औलाद का अधिकार

इमाम सज्जाद अलैहिस सलाम अपने अधिकारों के बारे में अपने लेखन (रिसाल ए हुक़ूक़) में फ़रमाते हैं:

و اما حق ولدک فان تعلم انہ منک و مضاف الیک فی عاجل الدنیا بخیرہ و شرہ ، وانک مسئول عما ولیتہ من حسن الادب والدلالة علی ربہ عزوجل والمعونة لہ علی طاعتہ فاعمل فی امرہ عمل من یعلم انہ مثاب علی الاحسان الیہ معاقب علی الاسائة الیہ “ ۔ ।

तुम्हारी औलाद का तुम पर यह अधिकार है कि तुम उसे अपने टुकड़ा समझों , इस दुनिया में उसके अच्छे बुरे काम को श्रेय तुम्हे दिया जायेगा। तुम्हे मालूम होना चाहिये कि उसको बेहतरीन शिष्टाचार सिखाने का दायित्व तुम पर है। उसका उसके ईश्वर की ओर मार्गदर्शन करो और ईश्वर के अहकाम की पैरवी करने में उसकी सहायता करो , आवश्यक है कि अपनी औलाद के प्रशिक्षण के सिलसिले में अपने दायित्व का एहसास करो। जो कोई अपनी औलाद को अच्छा प्रशिक्षण देगा उसको उसका अच्छा बदला मिलेगा और जो अपनी औलाद का प्रशिक्षण सही तरीक़े से नही करेगा उसको उसकी सज़ा और दंड मिलेगा।

मां बाप की लापरवाही पर बच्चों की ज़िम्मेदारी

हज़रत अमीरुल मोमिमीन अली अलैहिस सलाम ने उन जवानों को बहुत महत्वपूर्ण नसीहत की है जिन के मां बाप और प्रशिक्षक अपने जवानों के सही प्रशिक्षण में लापरवाही से काम लेते हैं। सारे मां बाप और प्रशिक्षकों को जवानों पर ध्यान देना चाहिये और जवान अपने मां बाप की लापरवाही के कारण ख़ुद को असमर्थ न समझें और यह न कहें कि चूंकि उन्होने हमें अच्छा प्रशिक्षण नही दिया। इस लिये अब हमारी कोई ज़िम्मेदारी नही बनती है और इस सिलसिले में हम पर कोई दायित्व नही है और हमारी गर्दन पर कोई पाप नही होगा।

इमाम अली अलैहिस सलाम फ़रमाते हैं:

یا معاشر الفتیان حصنوا اعراضکم بالادب و دینکم بالعلم “ ۔ ।

ऐ जवानों , शिष्टाचार और सही प्रशिक्षण के ज़रिये अपनी अख़लाक़ी मूल्यों और इंसानी प्रतिष्ठा की रक्षा करो और अपने धर्म को ज्ञान व आध्यात्म से संवार कर उसकी रक्षा करो।